The Truth Has Two Sides 1985-06-11
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11 जून 1985
Public Program
Geneva (Switzerland)
Talk Language: English | Translation (English to Hindi) - Draft
'सत्य के दो पहलू होते हैं'
जिनेवा सार्वजनिक कार्यक्रम 11 जून 1985
मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं।
लेकिन सत्य के दो पहलू हैं: माया जो हमें दिखाई देती हैं वह सत्य की तरह लग सकती है, और भ्रम का सार भी सत्य प्रतीत हो सकता है। लेकिन दूसरा पहलू निरपेक्ष है और इसे महसूस करना होगा, अपने मध्य तंत्रिका तंत्र पर अनुभव करना होगा। यह कोई मानसिक प्रक्षेपण (कल्पना)नहीं है जिसके बारे में हम सोच सकते हैं, न ही भावनात्मक कल्पना, लेकिन सच्चाई यह है कि इसे बदला नहीं जा सकता है। यह समझौता नहीं कर सकता। सत्य जानने के लिए हमें खुद को नम्र करना होगा। अब इतनी सारी चीजें जो हमें अब तक ज्ञात नही थी हमने विनम्रता से विज्ञान में खोज ली हैं । लेकिन बाहरी रूप में जो कुछ भी जाना जाता है, जैसे पेड़, उसकी जड़ें होनी चाहिए, और अगर आप सिर्फ पेड़ को देख रहे हैं तो इन जड़ों का ज्ञान नहीं हो पायेगा। और जब कोई जड़ों की बात करता है, तो हम हिल जाते हैं, क्योंकि हमें इसका पहले से कोई ज्ञान नहीं था। इस प्रकार हम केवल वृक्ष को देखने के लिए संस्कारित हैं, और हम अपने मन को यह नहीं समझा पाते हैं कि इसकी कुछ जड़ें होनी चाहिए।
तो हम कह सकते हैं कि लोग विज्ञान में काफी आगे बढ़ चुके हैं, और तरक्की कर चुके हैं और विकसित देश बन गए हैं। लेकिन वे नहीं जानते हैं कि, अगर वे अपनी जड़ों की तलाश नहीं करते हैं तो वे पूरी तरह से नष्ट हो जाएंगे। अब जब मैं आपके सामने हूं, तो किसी को भी यह महसूस नहीं करना चाहिए कि मैं यहां आपको ठेस पहुंचाने के लिए हूं, लेकिन मैं यहां आपको जड़ों के बारे में बताने आयी हूं, आपके भीतर जो महान गुण हैं। हम ज्ञान के वैज्ञानिक क्षेत्र में बिजली, गुरुत्वाकर्षण जैसी कई ऊर्जाओं के बारे में जानते हैं। लेकिन हमारे भीतर सूक्ष्म ऊर्जाएं हैं जिन्हें, हमें एक वैज्ञानिक की समान विनम्रता और खुले दिमाग से समझने की कोशिश करनी चाहिए।
अब पश्चिम में हमारे सामने कौन सी समस्याएँ आ रही हैं, हमें समझने की कोशिश करनी चाहिए। जैसे अमेरिका में किसी ने मुझसे पूछा, "पश्चिम में क्या गलत हो गया है?" हमें देखना होगा कि हमारे विकास में हमारे साथ क्या हुआ है। जब हम औद्योगिक विकास के माध्यम से विकसित हुए, तो हमने कुछ स्वभाव और कतिपय मूल्य प्रणाली विकसित की। औद्योगीकरण एक अच्छा विचार था, लेकिन इस बात का कोई विवेक नहीं है कि,रूकना कहां है। और इसी तरह जब हम बहुत औद्योगीकृत देशों में जाते हैं तो हमें लगता है कि हम सिर्फ रसायन खा रहे हैं, खाना नहीं। अब संतुलन बनाये रखना है, लेकिन कैसे? जड़ों के बारे में जानकर।
अब मैं पश्चिमी मन के बारे में महसूस करती हूं कि पहली समस्या यह है कि, वे ऐसे प्राणी हैं जो की मानसिक है; उन लोगों ने इस मानसिक क्षमता को संतुलन से परे विकसित कर लिया है। जैसे उद्योगों में हमें हर समय नई चीजें बनानी पड़ती हैं; हर बार जब हमें कुछ सामान बेचना होता है तो हमें नए फैशन करना चाहिए, नहीं तो मशीनें भूख से मर जाएंगी। उसी तरह हमारा दिमाग नई चीजें पैदा करने लगता है, ऐसे ही ये चीजें मानव निर्मित होती हैं। मानसिक प्रक्षेपण के साथ हम हर समय नई चीजों के बारे में सोचना शुरू करते हैं और जो कुछ भी हमारे लिए नया आता है उसकी हम सराहना करते हैं। हमें नई चीजों को अपनाना है, लेकिन ऐसी चीज नहीं जो किसी भी पारंपरिक मूल्य से बिल्कुल रहित हो। दूसरे दिन की तरह मैंने कहा कि "फ्रायड के बारे में इतना खास क्या है, आपने उसे क्यों स्वीकार किया और युंग को क्यों नहीं?" कारण बताया गया कि उन्होंने हमें बहुत नए विचार दिए। कुछ भी नया हमेशा अच्छा नहीं होता; उदाहरण के लिए प्लास्टिक एक जमाने में नया था, आप जानते हैं कि प्लास्टिक के विकास के क्या परिणाम हुए हैं। अगर यह बात पदार्थ के बारे में सच है, तो आत्मा के बारे में क्या?
इसलिए जब हम सत्य की भी तलाश करते हैं, तो हम हर समय एक नई विधि को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। और मुझे लगता है कि गलत प्रकार के गुरुओं के रूप में जो बुराई आई, वह इस तरह की मांग का उत्पाद है। केवल सत्तर-सौ साल पहले, मुझे कहना चाहिए, भारत में अचानक जड़ों के ज्ञान के बारे में कुछ नए विचारों की एक नई लहर शुरू हुई। कुछ बातें जिनकी वे बात करते हैं, वे न वेदों में लिखी हैं, न पुराणों में, न ही किसी प्राच्य ज्ञान की किसी पुस्तक में; न ही किसी किताब में जो ईसा के बाद लिखी गई है जैसे बाइबिल, या मोहम्मद साहब के बाद कुरान, और जोरोस्टर के लेखन भी। इसका जड़ों के बारे में प्राचीन निष्कर्षों से कोई संबंध नहीं है। तो हमें उसी तरह धर्म के बारे में एक समस्या थी।
उदाहरण के लिए, आइए हम ईसाई धर्म को लें: जैसा कि आप बाद में जानेंगे, ईसामसीह आत्मा के बारे में हमारे भीतर एक विशेष जागरूकता पैदा करने के लिए इस धरती पर आए। वह हमारे भीतर एक विशेष चक्र में स्थित है, जिसे हम आज्ञा चक्र कहते हैं, और भारतीय शास्त्रों में महाविष्णु के रूप में वर्णित है। और शुद्धतम रूप में वे ओंकार के रूप में, 'लोगोस' के रूप में विद्यमान हैं। उनके बारे में पश्चिम में, पश्चिमी ज्ञान में मानसिक रूप से बहुत कुछ वर्णित है, लेकिन वास्तव में यह भारतीय दर्शन में बहुत खोजा गया है। आप मानसिक प्रक्षेपण (कल्पना)से ईसामसीह को नहीं समझ सकते, क्योंकि वह मन से परे है। उन्होने स्वयं कहा है, "तुम्हें नया जन्म लेना है।"
जब 'नीकोडेमुस' ने कहा, "तुम्हारा 'फिर से जन्म लेना' का क्या मतलब है? क्या मुझे अपनी माँ के गर्भ में प्रवेश करना होगा?”
"नहीं," उन्होंने कहा, "जो कुछ मांस से पैदा हुआ है वह मांस है, और आपको पवित्र आत्मा से जन्म लेना है।"
और पवित्र आत्मा क्या है? कैंटरबरी के बिशप से यह प्रश्न पूछा गया था, मैंने इसे टेलीविजन पर देखा, और वे कहते हैं, "मैं अज्ञेयवादी हूं।"
तो साक्षात्कारकर्ता ने उससे पूछा, "फिर तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"
उन्होंने कहा, "मैं अपना काम कर रहा हूं।"
तो साक्षात्कारकर्ता ने कहा, "ठीक है, मैं भी अपना काम कर रहा हूँ" - दो मानसिक अनुमानों के बीच आपसी समझ।
पवित्र आत्मा आपके भीतर स्थित प्रतिबिंब है, यही कुंडलिनी है। (अनुवादक के लिए: नहीं, कुंडलिनी आप बस उन्हें दिखाईये। निचली - नहीं, नहीं, कुंडलिनी आप दिखायें, त्रिकास्थि में, अभी।)
अब इस कुंडलिनी का वर्णन भारत के कितने ही शास्त्रों में बहुत स्पष्ट रूप से किया गया है। बाइबल में कहा गया है कि "मैं ज्वालाओं की तरह तेरे सामने प्रकट होऊंगा।" ये सारे चक्र हैं, और यह जीवन का वृक्ष है जिसका वर्णन किया गया है। अब कुरान में इसे अस्स के रूप में वर्णित किया गया है। इन प्राचीन शास्त्रों में से किसी एक में, या कबीर के समय तक, जो मुश्किल से चार, पांच सौ साल पहले था, किसी ने नहीं कहा कि यह कुंडलिनी आपको कोई परेशानी देती है। लेकिन मैंने बाद में कई लोगों को कुंडलिनी के बारे में किताबें लिखते हुए देखा है, और उस तरह की एक बहुत मोटी किताब है, एक जर्मन लेखक द्वारा कुंडलिनी के बारे में उन्होंने जो विवरण दिया है, उसे देखकर मैं चकित रह गयी, कि यह आपको गर्मी दे सकती है, ऐसा कर सकती है तुम्हें बीमारियाँ देती है, यह तुम्हें नृत्य करवा सकती है, यह तुम्हें छलांगे लगवा सकती है।
तो इस तरह उन्होंने आपको आपकी उत्क्रांती की प्रक्रिया के खिलाफ ढालने की कोशिश की है। और महान अवतारों के बाद जो धर्म आए, उन्होंने भी यही तरकीब आजमाई। पॉल वह व्यक्ति है जिसने बाइबिल में इस तरह का कुसंस्कार शुरू किया था। दरअसल पॉल का ईसामसीह से कोई लेना-देना नहीं था। बाइबल में वह कैसे है, मैं बचपन से ही समझ नहीं पायी। और फिर उनका जन्म ऑगस्टाइन के रूप में हुआ, जिन्होंने फिर से धर्म बनाया, उसे संगठित किया, और उसे संस्कारित किया। और आज, आश्चर्यजनक रूप से, लोग ईसामसीह के जन्म और, चमत्कार करने की उनकी दिव्य शक्तियों को चुनौती दे रहे हैं। अब अपने मानसिक प्रक्षेपण से वे यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि वह हमारे जैसा ही था। और उनके और उनकी माता के बारे में भी गंदी गंदी बातें कही जाती हैं। यह वह नरक है जिसे हमने अपने मानसिक अनुमानों से बनाया है। ईसामसीह जैसे महान व्यक्तित्व के बारे में ये बातें कहने की हमारी हिम्मत कैसे हुई! यह हमारा अहंकार है जिसने हमें इतना साहसी और इतना अहंकारी बना दिया है कि हम ऐसे व्यक्तित्वों को चुनौती देकर अपना विनाश तैयार कर रहे हैं, जो वास्तव में हमारी रक्षा कर सकते हैं और हमें हमारे उत्थान के लिए मार्गदर्शन कर सकते हैं।
फिर से, यह इसी नवीनता के आकर्षण का परिणाम है, क्योंकि मन हर समय कुछ नया खोजना चाहता है, इस अहंकार को विकसित करता है। जैसे अमेरिका में आप जाते हैं, तो बेहतर होगा कि आप उनसे पूछ लें कि बाथरूम के नल कैसे खोलें, क्योंकि हर नल अलग होता है। आप बस किसी चीज को दबायें और आप भीग सकते हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि हर जगह नयापन हो। और उन्हें यह तय करने में घंटों लग जाते हैं कि उन्हें किस तरह के नल लगाने हैं। अमेरिकी कार, कार में चढ़ना, बेहतर होगा कि उनसे पूछ लें कि कौनसा, दरवाजा कैसे खोला जाए, क्योंकि अगर कोई दुर्घटना हो जाती है तो आप को पता भी नहीं होंगा, यह कुछ नया हो सकता है। विकल्प के चुनाव की यह शक्ति इतनी आगे तक चली गई है कि लोग वास्तव में मूर्ख बच्चों की तरह ही प्रतीत होते हैं।
अहंकार किसी व्यक्ति को परिपक्वता हासिल करने से रोकता है। अहंकार नामक कुसंस्कार सबसे खराब है, जिसे हटाया नहीं जा सकता। यदि आप अपने प्रति-अहंकार से बद्ध होते हैं तो आपको अपने दर्द मिलते हैं, आपको अपनी परेशानियां मिलती हैं, लेकिन जब आपको आपकाअहंकार मिल जाता है तो आप दूसरों को परेशान करते हैं, आप दूसरों पर आक्रमण करते हैं। फिर अहंकार पर विजय पाने के लिए वे फिर से कुछ मानसिक प्रक्रियाओं की कोशिश करते हैं, कि वे आदिम लोगों की तरह पोशाख पहनने की कोशिश करते हैं। आदिम लोगों की तरह कपड़े पहनने से यह दिमाग आदिम नहीं बनने जा रहा है। मेरा मतलब है, आप जानते हैं कि यह अब अपनी अति पर पहुंच गया है; उन्हे उस बेवकूफी भरे तरीके से व्यवहार करना बंद कर देना चाहिए।
जैसे इंग्लैंड में, यदि आप जाते हैं तो, आप पाएंगे कि लोग अजीब रंगों का उपयोग कर रहे हैं, अपने बालों पर अजीब रंग लगाने के लिए, और वे खुद को पंक कहते हैं। तो मैंने उनमें से कुछ से पूछा जो हमारे कार्यक्रम में आए थे, "आप अपने साथ इस तरह की हरकतें क्यों करते हैं?" तो उन्होंने कहा कि यह लोगों को बहुत आकर्षक बनाता है। मुझे वे जोकर की तरह दिखते हैं, लेकिन उन्हें लगता था कि हर कोई उससे आकर्षित होता है। तो दूसरा अभिशाप, मुझे लगता है कि हम चाहते हैं कि हर कोई हमारी ओर आकर्षित हो। लेकिन क्या फायदा? यह एक आनंदहीन खोज है। अगर हर कोई हमारी ओर आकर्षित होता है तो उसे क्या मिलता है या उस व्यक्ति से आपको क्या मिलता है? - मुझे समझ नहीं आ रहा है। लेकिन इसके विपरीत, आप मुश्किल में पड़ जाते हैं। मेरा मतलब है, निश्चित रूप से, यदि आप बदमाशों जैसे बन जाते हैं तो आप भयानक अंधापन विकसित कर सकते हैं। या हो सकता है कि आपको सिर में आपकी त्वचा की कोई समस्या हो जाए।
लेकिन जिस तरह से आप हर समय अपनी आँखें घुमाते हैं यह देखने के लिए कि आप से कितने आकर्षित हैं, आप जानते हैं कि आपको क्या मिल सकता है? यह “Alzheimer’s ("अल्जाइमर") रोग जो अभी सामने आ रहा है, वह प्रारंभिक पागल व्यवहार है। अब अमेरिका में उन्हें पता चला है कि पैंतीस साल की उम्र से पहले, पांच में से एक पागल हो जाता है - पांच में से, क्या आप कल्पना कर सकते हैं? पाँच में से; आज मैंने इसे रीडर्स डाइजेस्ट में पढ़ा। बन सकता है, बन सकता है। ("अल्जाइमर" रोग वे इसे कहते हैं।("अल्जाइमर"[Alzheimer's?] रोग; एक नई बीमारी,एक नई बीमारी उन्होंने कहा। यह एक वैज्ञानिक का नाम है, Altmiser [Alzheimer?] या कुछ और। और वे दोष देते हैं कि यदि आप पैंतीस के बाद जीवित रहे तो ये बातें फैलने लगती हैं। लेकिन भारत जैसे साधारण देश या अन्य देशों में जहां वे इश्कबाज़ी करने के लिए इतने विकसित नहीं हैं, उन्हें यह बीमारी नहीं है। इसलिए ईसामसीह ने कहा है, "तू व्यभिचारी आंखें न रखना।" और यह समझना इतना कठिन है कि जो लोग चर्च जाते हैं वे बस यही चाहते हैं।
मुझे खेद है कि मुझे इस बारे में बात करनी पड़ी, क्योंकि मैं इसे पश्चिम में हर जगह देखती हूं। यह एक भयानक बीमारी है जो अब बढ़ रही है। यह देखने में बहुत तुच्छ है, लेकिन ऐसा नहीं है, इसके बहुत गहरे निहितार्थ हैं। आंखों को इतना मासूम होना चाहिए कि उनके माध्यम से कोई लालच और वासना व्यक्त न हो। कुंडलिनी जागरण और बोध ही एकमात्र समाधान है, जिसके माध्यम से आपके मध्य तंत्रिका तंत्र में ईसामसीह आपके भीतर जाग्रत होता है। आज्ञा चक्र में वह रहता है, जो ऑप्टिक चियास्म पर है - जो ऑप्टिक चियास्म में है। अगर किसी व्यक्ति में अबोधिता नहीं है, तो यह आज्ञा चक्र पकड़ता है। और यही सबसे बड़ी शुद्धि है जिसकी हमें आज आवश्यकता है। कल्पना कीजिए, जो लोग कहते हैं कि वे ईसाई हैं, ये ईसाई राष्ट्र हैं, जोकि वे लोग बस ईसामसीह के विरुद्ध जा रहे हैं - यह बहुत आश्चर्य की बात है। किसी के द्वारा जो भी उपदेश दिया जाता है - जैसे भारत में कहा जाता है कि सभी में आत्मा निवास करती है; लेकिन भारत के मूर्ख बुद्धिजीवी जाति व्यवस्था में बहुत व्यस्त हैं। ऐसे बुद्धिजीवियों को समझना चाहिए कि वे ईश्वर को बौद्धिक नहीं बना सकते। लोगों को यह पसंद नहीं आता जब मैं उनसे कहती हूं कि आपको अबोध व्यक्तित्व बनने के लिए खुद को शुद्ध करना होगा।
यह आज पश्चिम की समस्या यह है कि, जहां तक शुद्धिकरण का संबंध है, वह अपना मूल्य खो चुका है। पवित्रता शरीर की नहीं है, यह नहीं है कि आप बाहर कैसे स्वच्छ रहते हैं, यह नहीं है कि आप अपने आप को कैसे प्रस्तुत करते हैं, बल्कि यह आंतरिक है। विनाश बाहर से नहीं होने वाला है, यह हमारे भीतर है कि हम हर पल अपने विनाश का निर्माण कर रहे हैं। 1972 में जब मैं पहली बार अमेरिका गयी थी, मैंने उनसे कहा था कि "आप फ्रायडियन सिद्धांतों को नहीं अपनायें, और निरर्थक विकृतियों में शामिल नहीं हों। यदि आप ऐसा करते हैं, तो आप एक ऐसी बीमारी विकसित कर सकते हैं जो पूरे देश और राष्ट्रों को मार डालेगी।" और आप जानते हैं कि एड्स की महामारी शुरू हो चुकी है।
आपको यह जानकर खुशी होगी कि आप अपने कुंडलिनी जागरण से इन सभी रोगों को ठीक कर सकते हैं; क्योंकि जब कुंडलिनी जाग्रत होती है तो सबसे बड़ी बात यह होती है कि अब तक आपने जो कुछ भी किया है वह पूरी तरह से समाप्त हो जाता है। यह हर चक्र में होता है, लेकिन विशेष रूप से आज्ञा में। आज्ञा चक्र में, जब वह आज्ञा चक्र खोलती है, तो ईसामसीह के देवता जाग जाते हैं। और अहंकार और प्रति-अहंकार जिन्होंने हमें एक अंडे जैसी संरचना का बनाया है, वे अनायास ही शोषित कर लिये जाते हैं, क्योंकि कुंडलिनी एक जीवंत शक्ति है और यह आपको पूरी तरह से शुद्ध करती है। तब आप को भरोसा आता है कि मसीह हमारे शुद्धिकरण और पवित्र्य के लिए मरा। उसने कष्ट सहा और उसके लिए उसे सूली पर चढ़ाया गया, ताकि वह अहंकार और प्रति-अहंकार के बीच की उस छोटी सी जगह में समा सके।
अब इन सभी महान अवतारों और सभी महान शास्त्रों को सिद्ध करने का समय आ गया है। अब, जब हम देवताओं की बात करते हैं, तो लोग काफी दंग रह जाते हैं क्योंकि उन्होंने इसके बारे में कभी नहीं सुना। देवता मील के पत्थर हैं, जैसे हमें बचाने आए लोग, नेता। उनके भीतर दिव्य शक्ति थी, और जब भी वे इस धरती पर आए, उन्होंने हमें एक नई जागरूकता देने की कोशिश की। जैसा कि, हम पहले चक्र से शुरू कर सकते हैं, रासायनिक आवधिक कानून periodical lawमें कार्बन का गठन और कुछ नहीं है। कार्बन के निर्माण से ही हम कार्बनिक रसायन प्राप्त कर सके और उसके द्वारा बाद में हमारे पास अमीनो एसिड प्राप्त हुए थे, और फिर अमीनो एसिड ने जीवन का निर्माण किया। जैसा कि आप जानते हैं, फिर जीवन से अमीबाआया, और अमीबा से विकसित हो करआज हम इंसान हैं।
लेकिन हम कारण, कारण के बारे में क्यों नहीं सोचते कि हम इंसान क्यों बन गए हैं? क्या इसमें कुछ खास है, कि हम लोग ही इंसान बनें? और हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है? क्या केवल अपनी घड़ियाँ देखना और जुए में अपना समय बर्बाद करना है? क्या इसलिए कि हम पैदा हुए हैं कि - अपने लिए कोई सम्मान नहीं रखें? ईश्वर की दृष्टि में, तुच्छ होना अपराध है। आपको पता होना चाहिए कि आप बहुत गहरे व्यक्तित्व हैं। उन सात मंजिलों को देखें जिनमें आप बने हैं। आप उन सभी उपकरणों के प्रतीक हैं जिनके भी बारे में आप सोच सकते हैं। अब केवल, जो आपको होना है, वह अंतिम ट्रिगर है। और एक बार ऐसा हो जाने पर आप पूरी तरह से शुद्ध हो जाते हैं, तब आप वास्तविक साधन बन जाते हैं। जैसे हर यंत्र को मुख्य से जोड़ना होता है, वैसे ही तुम्हें भी जोड़ा जाना है। और तब आपको एहसास होता है कि आप कितने शानदार हैं, आप कितने गतिशील हैं, आपके पास कितनी महान शक्तियां हैं। लेकिन यह तुच्छ लोगों के लिए या उन लोगों के लिए नहीं है, जिन्हें अपने अस्तित्व के लिए कोई सम्मान नहीं है। यह केवल उन लोगों के साथ होता है जो सच्चे और ईमानदारी से खोज रहे हैं, सही मायने में और ईमानदारी से खोज रहे हैं। इसलिए हमारे लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि यदि हम ईश्वर के क्षेत्र के नागरिक बनने जा रहे हैं, तो हमें अपना बोध, अपना स्व प्राप्त करना होगा।
बुद्ध तो इस हद तक चले गए कि उन्होंने कहा, "ईश्वर की बात मत करो, केवल स्वयं की बात करो।" यही बात महावीर ने भी कही थी। झेन और भी आगे बढ़ गया, उसने कहा कि केवल निर्विचार जागरूकता की बात करो। कुंडलिनी जागरण के रूप में वह पहली जागरूकता प्राप्त करता है, कि आप निर्विचार पुर्णतया जागरूक हो जाते हैं। जैसे जब आप एक सुंदर झील देखते हैं, जिस में लहरें नहीं होती हैं, तो आप देखते हैं कि उसके चारों ओर की पूरी सृष्टि उसमें परिलक्षित होती है, जो पूर्ण आनंद देती है। अभी तक हमने उस आनंद को नहीं जाना है, जिसमें कोई द्वैत नहीं है। हम उस सुख को जानते हैं जो और कुछ नहीं है, केवल अहंकार की संतुष्टि है, और जब अहंकार थोड़ा टूट जाता है, तो हम दुखी हो जाते हैं - यही हमारा भ्रम है।
वास्तविकता तक पहुंचने के लिए हमें स्वयं बनना होगा, और स्व अहंकार और प्रति-अहंकार से परे है। तब आप सापेक्ष शब्दावली पर नहीं जीते, लेकिन आप निरपेक्ष के साथ जीते हैं। जैसे आप हाथ में ठंडी हवा को महसूस करते हैं जैसे कि यह कंप्यूटर शुरू हो गया है, और आपका संबंध परम के साथ है। यहां तक कि जब आप किसी भी प्रश्न की ओर अपना हाथ रखते हैं, तो आप उत्तर को ठंडी हवा के रूप में प्राप्त कर सकते हैं, जिसका अर्थ है "हाँ, बहुत अच्छा" और गर्म हवा के रूप में, जिसका अर्थ है "बुरा"; लेकिन आपको फफोले भी पड़ सकते हैं यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति के पास जाने की कोशिश करते हैं जो एक आविष्ट व्यक्तित्व है। सारी जानकारी अचेतन से आपके पास आती है, जो अब मध्य तंत्रिका तंत्र पर सचेत हो गई है। यही समझना है कि तुम्हारा अचेतन हो गया है, या उसे बनना है,चेतन। तो अचेतन से अभी तक जो भी जानकारी मिलती रही है, वह तर्क से पूरी तरह से समझ में आती है।
तो पहली बात जो आपके केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के साथ होती है, कि आप हो जाते हैं - फिर मैं कहती हूं कि आप सामूहिक रूप से जागरूक हो जाते हैं। यह कोई मानसिक प्रक्षेपण नहीं है, लेकिन तुम बस हो जाते हो। आप अपने बारे में भी जानते हैं क्योंकि आप अपने स्वयं के चक्रों के बारे में जानने लगते हैं, और यदि आप इन चक्रों को ठीक करना जान जाते हैं तो आप पूर्ण, पूर्ण स्वास्थ्य में, पूर्ण आनंद में होते हैं।
यह सब सहज योग का परिचय देने के लिए था: सह का अर्थ है "साथ", ज का अर्थ है "जन्म" - यह सहज है। और "योग" का अर्थ “union” मिलन ,जुड़ना है। इसके अलावा इसका एक और अर्थ है, जिसका अर्थ है युक्ति, जिसका अर्थ है "तरकीब।" युक्ति। और यह भी, इसका मतलब है चतुराई, इस शक्ति को कैसे संभालना है जब यह आपके माध्यम से बहने लगती है, इसके बारे में सब कुछ जानने के लिए; इसलिए इस की व्याख्या की जानी है।
यह सब आपका अपना है। एक प्रबुद्ध दीप दूसरे दीप को प्रज्वलित करता है। कोई अहसान नहीं है। यह सब आपका अपना है, जिसे आपको प्राप्त करना है और फिर इसे स्थापित करना है। यह सब मुफ्त (निशुल्क) होना है क्योंकि यह प्रकृति का उपहार है, यह जीवंत प्रक्रिया है, आप इसके लिए भुगतान नहीं कर सकते। आप धरती माता को एक बीज अंकुरित करने के लिए भुगतान नहीं कर सकते, क्या आप कुछ भी भुगतान करते हैं? हम फूलों को फल बनने के लिए कितना भुगतान करते हैं? प्रकृति पैसे को नहीं समझती; उसी तरह परमात्मा पैसे को नहीं समझते हैं। लेकिन जिस तरह से हम अब तक जीते रहे हैं, हमने हमेशा परमेश्वर के काम के लिए पैसे दिए हैं। विशेष रूप से स्विट्जरलैंड में लोगों का मानना है कि अगर आप कुछ देशों को पैसा देते हैं, तो आप ईश्वर का काम कर रहे हैं। गरीबी इंसानों ने पैदा की है, ईश्वर ने नहीं। भारत जैसा देश, जिस पर तीन सौ वर्षों तक शासन किया गया, यदि वह गरीब हो गया तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है? तो इससे पता चलता है कि आप पैसे देकर परमात्मा का काम नहीं कर रहे हैं। यह एक मानवीय समस्या है, जिसे मनुष्य ने बनाया है, जिसका समाधान मनुष्य को ही करना है।
भगवान का कार्य शुद्ध करुणा है: करुणा जो बोलती नहीं है, जिसे पैसे में नहीं आंका जा सकता है। यह सिर्फ बहता है, उत्सर्जित करता है और कार्य करता है। यह किसी चीज की अपेक्षा नहीं करता है, इसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता, इसे मारा नहीं जा सकता, इसे किसी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है - यह ऐसा ही है, ईश्वर का कार्य है। क्योंकि भगवान के लिए दूसरा कौन है? हम सब उनके अस्तित्व के अभिन्न अंग हैं। अगर एक हाथ दूसरे हाथ की मदद कर रहा है, तो उसमे अहसान की क्या बात है? इसलिए व्यक्ति को परमेश्वर का कार्य करने की वास्तविकता और भ्रम के बीच के अंतर को समझना चाहिए।
यह परमात्मा का गुण है जो पानी की तरह आपकी प्यास बुझाता है। यह आपको वह प्रकाश देता है जो आपका मार्गदर्शन करता है, यह आपको शक्ति देता है जो आपको धर्म कीओर खड़ा करता है, यह आपको करुणा देता है जो आपको अपने गुणों का आनंद देता है, यह आपको वह आकर्षण देता है जो आपको आत्मा के उच्च स्तरों पर ले जाता है। यह भ्रम के सागर में सभी मोतियों की खोज करता है। यह आपको भीतर और बाहर वह शांति देता है, और आप हमेशा आनंद के आनंद की बौछारों में भीगते रहते हैं। इसे पाना आपका अधिकार है, आपको यह पाना ही होगा। आप यहाँ होने के लिए ही हैं - लेकिन विनम्रता के साथ। यह महत्वपूर्ण है, अनुग्रह के एक संकेत के रूप में। जब कोई आपको मेडल देता है तो जिस तरहआप सिर झुकाते हैं। उसी तरह जब आप इससे सुशोभित होते हैं, तो आपको अपना सिर ईश्वर के सामने झुकाना पड़ता है। जब दर्शक आपके लिए ताली बजाते हैं, आपको एक ओवेशन देते हैं, स्टैंडिंग ओवेशन देते हैं, तो अभिनेता इसके सामने झुक जाता है, वह दर्शकों को सलाम करता है। (अनुवादक को : वे श्रोताओं को प्रणाम करते हैं - ठीक है?) अब इसी प्रकार हमें परमात्मा को प्रणाम करना है। हम जो समर्पण करते हैं वह स्वतः ही हमारा अहंकार और हमारे कुसंस्कार है।
मुझे आशा है कि आज आप सभी को अपनी अनुभूति प्राप्त होगी। और परसों जब मैं आत्मा पर ही बोलूंगी, मुझे आशा है कि आप इसे उतर आने में सहूलियत देंगे। बाद में आपको इसे पूरी तरह से स्थापित करना होगा। नहीं तो यह ईसामसीह के उस दृष्टांत के समान होगा, कि जो बीज अंकुरित हुए थे, वे भी जड़ नही पकड़ पाये।
परमात्मा आप सबको आशीर्वाद दें।
(क्या हमें प्रश्न पूछना चाहिए? कोई प्रश्न नहीं। या चाहिए ....) आप चाहते हैं कि आप कुछ प्रश्न पूछें? ... अच्छा। आइए अब अनुभव करते हैं।
[प्रश्न: किसी ऐसे व्यक्ति से अपनी रक्षा कैसे करें जिससे आपको चक्रों पर कुछ अच्छा महसूस न हो?]
(अहंकार समस्या। आह, आह, ठीक है।) यही आपको सीखना है। बोध से पहले भी तुम दूसरों से पकड़ लेते हो, लेकिन तुम उसे महसूस नहीं करते। लेकिन बोध प्राप्ति के बाद आप महसूस करते हैं, लेकिन अस्थायी रूप से, एक संकेतक की तरह। तो आपको सीखना होगा कि कैसे रक्षा करना है, और जब आप हमारे केंद्र में आएंगे तो वे आपको सब कुछ विस्तार से बताएंगे।
जब भी मैं स्विट्ज़रलैंड या किसी अन्य जगह आयी हूं तो मैंने देखा है कि घर हमेशा भरे रहते हैं, लोग मुझे सुनना पसंद करते हैं; लेकिन वे एक बात नहीं सुनते, कि उन्हें इसे एक अभ्यास, एक संपूर्ण समझ, एक संपूर्ण घटना बनाना है। कोई कोर्स नहीं है, इसके लिए कोई कोर्स नहीं है, लेकिन खुदआपको दूसरों से,जिन्होंने हासिल किया है समझना होगा , और आप खुद निपुण हो सकते हैं। केवल एक चीज, आपको कुछ समय देना होगा। स्विस अच्छी घड़ियाँ बनाने में बहुत अच्छे हैं, और वे चाहते हैं कि लोग अपना समय बचाएं; लेकिन उनके पास परमात्मा के लिए समय नहीं है। जापानी के साथ भी ऐसा ही है कि, जो घड़ियों में बहुत अच्छे हैं, उनके पास परमात्मा के लिए समय नहीं है। वे दूसरों के लिए घड़ियाँ बनाते हैं, अपने लिए नहीं। वे घड़ियां बनाने में लगे हैं। अब तुम्हें भी स्वार्थी होना है, तुम्हें स्वयं को देखना होगा। बेहतर होगा कि ईश्वर के लिए और अपने लिए कुछ समय बचाएं।
तो अब हम पायेंगे - यदि आपके कोई प्रश्न हैं, तो आप हमेशा सीख सकते हैं क्योंकि स्विट्जरलैंड में हमारा एक नियमित केंद्र है, और आप हमेशा जाकर उन लोगों से मिल सकते हैं, उनसे सभी उत्तर प्राप्त कर सकते हैं।
अब, सबसे पहले मुझे आप सभी से अनुरोध करना है कि आप अपने आप को क्षमा करें और जो कुछ भी मैंने कहा है उसे भूल जाओ, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि आप किसी भी चीज़ के लिए दोषी महसूस करें। पश्चिम में यह सबसे बड़ी बाधा है कि लोग हर चीज के लिए दोषी महसूस करते हैं। मेरा मतलब है कि अगर आप कुछ ऐसा पहन लेते हैं जो मेचिंग नहीं है, तो लोग दोषी महसूस करने लगते हैं। यह बहुत अधिक है, जिस तरह से हम दोषी महसूस करते हैं, इसलिए मुझे बहुत विनम्र अनुरोध करना है कि आप बिल्कुल भी दोषी महसूस न करें। आप जो कुछ भी कर रहे हैं, जो कुछ भी रहा है, उन्हे पता होना चाहिए कि आप सर्वशक्तिमान परमात्मा के मंदिर हैं, और आपकी कुंडलिनी आपको पूरी तरह से शुद्ध करते हुए, आपको आत्मसाक्षात्कार देने में काफी सक्षम है; लेकिन किसी भी चीज़ के लिए दोषी महसूस न करें। यह पहली शर्त है: हमें अपने प्रति सुखद रूप से रहना होगा क्योंकि हम ईश्वर के राज्य में प्रवेश करने जा रहे हैं।
दूसरी बात जो मुझे निवेदन करनी है वह यह है कि हमें धरती माता का लाभ उठाना है, हालांकि मैं जानती हूं कि वातावरण थोड़ा ठंडा है, लेकिन कोई बात नहीं, आप अपने जूते निकाल सकते हैं और अपने पैर जमीन पर रख सकते हैं; क्योंकि जूते भी कभी-कभी थोड़े टाइट होते हैं, और आपको धरती माता के संपर्क से दूर रखते हैं।
यह एक बहुत ही सरल विधि है, अत्यंत सरल है, चुंकि हम अभी तैयार हैं। यह बेहद आसान है क्योंकि आप अभी तैयार हैं। अब सबसे पहले हमें यह देखना होगा कि हम अपने स्वयं के चक्रों को महसूस करने की कोशिश करें और उन्हें स्वयं साफ़ करें, क्योंकि यदि कोई जटिलताएँ हैं, तो उन्हें दूर किया जा सकता है। उसके लिए मैं आपको बताऊंगी कि अपना दाहिना हाथ कैसे रखा जाए, लेकिन बायां हाथ मेरी ओर इस तरह होना चाहिए, जो आपकी आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति की इच्छा का प्रतीक है।
अब दाहिने हाथ का प्रयोग बाईं ओर के केंद्रों को छूने के लिए किया जाना चाहिए। और यह बहुत आसान है: सबसे पहले हम दिल पर हाथ रखेंगे, जब मैं आपको बताऊं। फिर हमें इसे पेट के ऊपरी हिस्से में, फिर पेट के निचले हिस्से में, फिर पेट के ऊपरी हिस्से में, फिर दिल पर रखना है। अब यहाँ हाथ को गर्दन और कंधे के कोने में रखना है - सामने से, इस तरह, पीछे से नहीं। यह वह केंद्र है जो हमेशा सबसे खराब होता है, जो आपको दोषी महसूस करने पर पकड़ लेता है। इसे ऐसे देखें जैसे आप कुछ मजाक कर रहे हों। दोषी महसूस करने जैसा क्या है? एक और मानसिक प्रक्षेपण; यह एक भ्रम है। ठीक है। अब, आपको अपना हाथ अपने माथे के ऊपर इस तरह और फिर पीछे सर पर रखना है। फिर आपको अपनी हथेली को फैलाना है और इस हिस्से को फॉन्टानेल बोन एरिया (तालू)पर लगाना है। इसे जोर से दबाएं, और जब मैं आपको बताऊं तो आपको इसे सात बार दक्षिणावर्त घुमाना होगा। अब, अपने विचारों या किसी भी चीज़ को रोकने की कोशिश न करें, यह सब अपने आप ठीक हो जाएगा। यदि बहुत अधिक विचार हैं, तो आप अपना ध्यान यहां फॉन्टानेल हड्डी (तालू)पर लगा सकते हैं।
तो चलिए अब शुरू करते हैं। आप सभी अवश्य करें। जो नहीं करना चाहते उन्हें बाहर जाना चाहिए, दूसरों को परेशान न करें, क्योंकि दूसरे विचलित हो जाते हैं। यह सभ्य तरीका नहीं है। अब सभी को आंखें बंद करनी हैं। अपना चश्मा निकालो क्योंकि तुम्हें कुछ देखना नहीं है, तुम्हें अपनी आँखें बंद रखनी हैं।
अब। अब इस प्रकार अपना बायाँ हाथ मेरी ओर रखो, और अपने ऊपर विश्वास रखो। अब, अपने आप को माफ कर दो और अपनी आँखें बंद करो, अपनी आँखें बंद रखो। अपनी आँखें बंद करो, अपना दाहिना हाथ अपने ह्रदय पर और बायाँ हाथ मेरी ओर रखो। अपने दिल पर। बायाँ हाथ मेरी ओर और दाहिना हाथ क्रिया के लिए उपयोग किया जाए। (अनुवादक को: उन्हें बताओ।)
अब, कृपया अपना दाहिना हाथ हृदय पर, दाहिना हाथ हृदय पर रखें। इसलिए बाएं हाथ को अपनी गोद में ऊपर की ओर रखना है। सहज रहो, तुम्हें सहज रहना है। अब, आपको मुझसे एक बहुत ही मौलिक प्रश्न पूछना है। हृदय में आत्मा निवास करती है, इसलिए कृपया मुझसे तीन बार एक प्रश्न पूछें, "माँ, क्या मैं आत्मा हूँ?" यदि आप मुझे "श्री माताजी" कह सकते हैं तो ठीक है, या "माँ" - जो भी आपको ठीक लगे। आपको वास्तव में खुद पर विश्वास होना चाहिए।
अब इस दाहिने हाथ को अपने पेट के ऊपर, ऊपर वाले हिस्से को बायीं तरफ नीचे की ओर ले जाएं और दबाएं। यह गुरुत्व का केंद्र है, जो इस धरती पर आए नबियों द्वारा बनाया गया है। तो यहाँ, आपको मुझसे एक और प्रश्न पूछना है। यदि आप अपनी आत्मा हैं, तो आपको अपना स्वयं का मार्गदर्शक बनना होगा। तो आपको कहना होगा, "माँ, क्या मैं अपना स्वयं का गुरु हूँ? क्या मैं नबी हूँ? क्या मैं अपना गुरु हूँ, क्या मैं अपना स्वामी हूँ?”
हा! .... तीन बार। अब कृपया अपने हाथ को पेट के निचले हिस्से में ले जाकर दबाएं। यह परमात्मा के बारे में ज्ञान का केंद्र है। यह ज्ञान मानसिक नहीं है, बल्कि वह तकनीक है जो आपके केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में निर्मित होती है। तो यहां आपको कुछ कहना होगा, क्योंकि मैं आपको कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया को स्वीकार करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती। अब आपको अपने आप से पूछना है कि आप सच्चे ज्ञान के बारे में, शुद्ध ज्ञान के बारे में जानना चाहते हैं। तो कृपया छह बार कहें, "माँ, मुझे सच्चा ज्ञान प्रदान किजिये? मुझे सच्चा ज्ञान प्रदान किजिये?" इतना कहते ही कुंडलिनी गति करने लगेगी। छह बार, कृपया प्रश्न पूछें, "माँ, मुझे सच्चा ज्ञान प्रदान किजिये?"
अब हमें कुंडलिनी के लिए रास्ता बनाना है, जो जाग्रत है। कृपया अपनी आंखें बंद रखें। अपना दाहिना हाथ उठाएं और इसे पेट के ऊपरी हिस्से में लगाएं। अब कृपया अपनी आंखें बंद रखें, बीच में न खोलें, क्योंकि चित्त भीतर जाना है। इस बिंदु पर, जैसा कि मैंने आपको बताया, आपके गुरुता का केंद्र है। अब यहाँ आपको अपने आप पर पूर्ण विश्वास के साथ कहना है, “माँ, मैं अपना गुरु हूँ। मैं अपना खुद का मार्गदर्शक हूं, मैं अपना खुद का नबी हूं। कृपया इसे दस बार कहें।
कृपया जब आप ऐसा कहें तो दोषी महसूस न करें, कृपया दोषी महसूस न करें। आप नबी हैं। विलियम ब्लेक ने कहा है कि "मेन ओफ गोड(भगवान के बंदे)," जिसका अर्थ है साधक, "नबी बन जाएंगे, और उनके पास दूसरों को नबी बनाने की शक्ति होगी।" तुम परमेश्वर के जन हो, और नबी बनोगे। आह - अब, बेहतर। विलियम ब्लेक मदद करता है!
अब, कृपया अपना हाथ अपने दिल पर लाएं। प्रार्थनाएं शीघ्रता से नहीं, बल्कि समझ और गहराई से कहनी चाहिए। अब इस बिंदु पर आपको फिर से अपने आप पर पूरे विश्वास के साथ जोर देना है और कहना है, "माँ, मैं आत्मा हूँ।" कृपया इसे बारह बार कहें... अब, अब बेहतर। कार्यंवित हो रहा है।
अब अपने हाथ को अपनी गर्दन और कंधे के बीच के कोने पर उठाएं। इसे काफी पीछे ले जाएं ताकि आप हड्डी पर दबाव डाल सकें। यहाँ आपको अपने आप पर पूर्ण विश्वास के साथ कहना है, "माँ, मैं बिल्कुल भी दोषी नहीं हूँ।" इसके अलावा आपको यह जानना होगा कि ईश्वर जो प्रेम और करुणा का सागर है, सबसे बढ़कर वह क्षमा का सागर है। क्षमा करने की ईश्वरीय शक्ति की तुलना में आपका अपराध चाहे कुछ भी हो, आपके पास कोई अपराधबोध नहीं हो सकता। तो कृपया सोलह बार कहें, "माँ, मैं बिल्कुल भी दोषी नहीं हूँ।"
यहां तक कि कुछ लोगों को भी लगता है कि वे विश्वास नहीं कर सकते कि वे दोषी नहीं हैं, इसलिए स्वयं को दंडित करने के लिए वे इसे 108 बार कह सकते हैं! .... वह बेहतर है। कोई नहीं चाहता कि सजा मिले, एक अच्छा विचार है.... बेहतर?
अब, कृपया अपने हाथ को अपने कपाल तक उठाएं और - हथेली को अपने कपाल की ओर, और इसे दोनों तरफ दबाएं। इसे दोनों कनपटियों पर पकड़ो। मेरा मतलब है, इसे आड़ा रखें। और अब इसे जोर से दबाएं। यहाँ आपको कितनी बार नहीं बल्कि अपने दिल से कहना है, "माँ, मैं सभी को क्षमा करता हूँ।" कुछ लोग सोचते हैं कि यह मुश्किल है, लेकिन यह एक मिथक है जब आप मानते हैं कि आप क्षमा करते हैं या आप क्षमा नहीं करते हैं। लेकिन अगर आप सभी को माफ कर देते हैं, तो आप गलत लोगों के हाथों में नहीं खेलते हैं - एक मिथ्या तरीके से, बिल्कुल।
अब, अपना हाथ उठाएं और इसे अपने सिर के पीछे की ओर ले जाएं, और इसे कस कर पकड़ें। अपने हाथ को थोड़ा पीछे की ओर दबाएं और कस कर पकड़ें। अब यहां आपको अपनी संतुष्टि के लिए कहना होगा, कि "हे भगवान, कृपया मुझे क्षमा करें यदि मैंने आपके खिलाफ कुछ भी गलत किया है।"
अब... अब अपना हाथ फैलाइए, और अपनी हथेली को अपने सिर के ऊपर फॉन्टानेल बोन एरिया (तालू)पर रखिए और इसे जोर से, बहुत जोर से, क्लॉकवाइज (दक्षिणावृत)तरीके से घुमाईये, एक बात कह कर, कि आप अपनी बोधप्राप्ति चाहते हैं; क्योंकि मैं यहाँ फिर से तुम्हारी आज़ादी को पार नहीं कर सकती। तो कृपया कहें, "माँ, मुझे मेरी बोधप्राप्ति चाहिए। कृपया मुझे मेरा आत्मसाक्षात्कार दें, ”सात बार। इसे हथेली से ही दबाएं, उंगलियों से नहीं।
[श्री माताजी कई बार माइक्रोफोन में प्र्णव फुंकते हैं।]
अब अपने हाथ को धीरे-धीरे नीचे करें, अपनी आंखें धीरे-धीरे खोलें। अपना दाहिना हाथ मेरी ओर रखो, और बाएँ हाथ को तुम इसे अपने सिर के ऊपर रखो। मत सोचो, मत सोचो, देखो क्या ठंडी हवा आ रही है। कृपया अपना हाथ बदलें। अपना दाहिना हाथ रखें और खुद देखें कि क्या ठंडी हवा आ रही है।घबराओ मत; यह सूक्ष्म है, यह बहुत सूक्ष्म है। अब, फिर से बदलो।
अब अपने हाथों को सिर के उपर इस तरह उठाएं और अपने सिर को पीछे धकेलें, और एक प्रश्न पूछें। (अनुवादक के लिए: माइक पर - माइक के करीब आओ।) अब एक प्रश्न पूछें, "माँ, क्या यह cool breeze of the Holy Ghost पवित्र आत्मा की ठंडी हवा है? क्या यही ब्रह्म शक्ति है? क्या यह सर्वव्यापी परमेश्वर का प्रेम है?" अब, कृपया अपने हाथ नीचे करें। स्वयं की तरफ देखो। मत सोचो। क्या आप इसे अपने हाथ पर महसूस कर रहे हैं?
जो अपने हाथों पर ठंडी हवा महसूस कर रहे हैं - यह बहुत सूक्ष्म है - या उनके सिर से बाहर आती हुई, कृपया अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाएं।
आप में से अधिकांश ने इसे महसूस किया है। लेकिन अब मैं आपको बताऊंगी कि अपनी रक्षा कैसे करें, आप सभी को पता होना चाहिए कि कैसे अपनी सुरक्षा करना है; चुंकि कुछ ने महसूस नहीं किया है क्योंकि उन्हें यहां विशुद्धि चक्र में समस्या है। या शायद उन्होंने दूसरों को माफ नहीं किया है।
इसे इस्तेमाल करे। संतुलन के लिए - अपना दाहिना हाथ मेरी ओर और अपने बाएँ हाथ को इस तरह, आकाश की ओर रखें। यह अब हम ईथर का उपयोग करते हैं। यदि आप ठंडक या कुछ नीचे महसूस कर रहे हैं, तो इसे वैसे ही वापस रख दें, यदि आप हवा नीचे की तरफ महसूस कर रहे हैं।
स्विस लोग बहुत तेज गति वाले होते हैं और वे बहुत दायें पक्ष वाले होते हैं, इसलिए यही उनकी समस्या है। कोई बात नहीं, यह काम करेगा। बहुत अधिक सोचते हैं! भविष्यवादी, वे फ्यूचरिस्टिक हैं। अपनी समस्याओं का सामना करते हुए ही आप उनका समाधान करते हैं। मानसिक प्रक्षेपण(कल्पना) नहीं बल्कि उनका सामना करना, बस उन्हें उसी रूप में ही देखना जैसी वे हैं। तुम आत्मा हो, तुम समस्या नहीं हो; तुम इन सब से परे हो। आत्मसाक्षात्कार के बाद "समस्या" शब्द आपके शब्दकोश से बाहर हो जाता है!
अब बाएँ हाथ को इस प्रकार और दाएँ हाथ को धरती माता की ओर रखें... बेहतर, बहुत बेहतर। हम्म! मत सोचो। आप इसे अभी कर सकते हैं।
अब मैं आपको बताऊंगी किअपनी सुरक्षा कैसे करना है। यह बहुत सरल है। आपको अपनी आभा को सुरक्षा देनी होगी। (आप चाहें तो अपना चश्मा पहन सकते हैं।) कि आप सभी को करना चाहिए, चाहे आपने ठंडी हवा का अनुभव किया हो या नहीं। आप अपनी आभा को इस तरह से सुरक्षा देते हैं, कि आप अपने बाएं हाथ को इस तरह रखते हैं और दाहिने हाथ को औरास के चारों ओर घुमाते हैं, आप अपने सिर के उपर ले जाते हैं और इसे नीचे लाते हैं। बायाँ हाथ मेरी ओर। ठीक है, इसे सात बार करते हैं, सात आभा के लिए। एक - मत सोचो। मत सोचो.... तीन, चार, पांच, छह और सात। यह महत्वपूर्ण है।
अब, अपनी खुद की कुंडलिनी कैसे उठाएं, फिर, यह बहुत आसान है। अब अपना बायां हाथ अपनी कुंडलिनी के सामने रखें - आप स्वयं कर सकते हैं। और दायें हाथ को बायें हाथ के ऊपर, आगे, नीचे, उसे घड़ी की दिशा में, घुमाना चाहिए। बायां हाथ स्थिर होना चाहिए, बायां हाथ सीधा होना चाहिए। और फिर नीचे। और यह बायां हाथ सीधा उपर की तरफ चलना चाहिए। ध्यान बाएं हाथ पर होना चाहिए। अब हाथ को ठीक से घुमाने की कोशिश करें। अपने सिर के ऊपर आपको इसे ले जाना है, इसे अपने सिर के ऊपर ले जाना है। अपने सिर को पीछे कीओर झुकाएं, और अपने हाथों को एक मोड़ दें, और इसे एक मोड़ दें, बड़ा मोड़ दें, और इसे एक गाँठ की तरह बाँध लें।
फिर से करते हैं, इसे ठीक से स्थापित करने के लिए। कृपया इसे फिर से करें। दूसरी बार, चलो बस इसे करते हैं। अब अपने सिर को पीछे धकेलें, और हाथों को एक बड़ा घुमाव दें, और इसे एक गाँठ दें। अब, तीसरी बार उसी तरह, लेकिन तीन गांठें। फिर से। अब यह तेजी से आगे बढ़ रहा है। रखो - अब एक, फिर से एक घुमाव दो; दो, फिर से एक घुमाव; और एक तीन। अब अपने हाथ देखें।
आप बहुत हल्का महसूस करते हैं। इसे अपने सिर पर भी महसूस करें, ठंडी हवा निकल रही है। आपको बिल्कुल आराम मिलेगा। अब तुम्हे विचार भी नहीं आ सकते; लेकिन आप चाहें तो कर सकते हैं। लेकिन इसके बारे में मत सोचो, तुम इसके बारे में नहीं सोच सकते। बस इसे महसूस करें - आप सभी को प्राप्त हो गया है। अच्छा! आप देखेंगे, आपकी आंखें चमक उठेंगी। आपकी आंखों में ज्योत होगी।
अब आप विचार नही करें अन्यथा अगली बार जब मैं आऊँगी, तो तुम कहोगे, "माँ, मैंने अपने वायब्रेशन खो दिये है।" यदि आप इसके बारे में सोचते हैं तो आप वहां नहीं पहुंच सकते।
ठीक है। अब यदि तुम मुझसे हाथ मिलाना चाहो तो मैं यहाँ तुम्हारे लिए कुछ देर बैठूँगी। आप हाथ मिलाने के लिए इधर आ सकते हैं। लेकिन सहजयोगियों, आपको इसकी आवश्यकता नहीं है - अन्यथा इसका कोई अंत नहीं है!
आह आह। आप यहां आकर देख सकते हैं। क्या आपको ठंडी हवा का अहसास हुआ? क्या तुमने किया? अब जब मैं देख सकती हूँ।
फिलिप, बस उसकी मदद करो, बस देखो - उन सज्जन को ठंडी हवा का एहसास नहीं हुआ। वह अधिक दाईं ओर है। उसे दायां दें.... ठीक है ठीक है। बस एक मिनट, कृपया, बस एक मिनट। नमस्ते आप कैसे हैं? इसे अनुभव किया? आपने इसका लुत्फ उठाया.... नमस्ते आप कैसे हैं? .... ईश्वरआपका भला करे ...।
हाँ, मैं वहाँ रहूँगी.... वह कब वापस आएगा? .... हाँ, मैं वहाँ रहूँगी, हाँ.... नहीं, मैं रहूँगी - वह कब वापस आएगा? .... ओह, मैं देखता हूं, और फिर लंदन, वह वहां नहीं होगा? .... उसका आत्मसाक्षात्कार हो गया? .... ओह, मुझे पता है, हाँ, मुझे पता है। ठीक है, तो वह लंदन आ सकता है? मैं लंदन में रहूंगी। ठीक है ...। ठीक है ठीक है। शुक्रिया। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, धन्यवाद। आपको अपना आत्मबोध हो गया। अच्छा ...। हाँ। परमात्मा आपका भला करे। मैं बहुत ही खुश हूँ। अब तुम ठीक हो। अब आपको पूरी तरह से सहजयोगी बनना होगा, ताकि आपको पूरा भरोसा हो। आपको पूरा विश्वास होना चाहिए, ठीक है? .... मुझे बहुत खुशी है कि ऐसा होना चाहिए। ईश्वर आपका भला करे।
.... क्या हुआ तुझे? ठीक है। तो यह आपके साथ हुआ है? अच्छा। वह एक जन्मजात आत्मसाक्षात्कारी, एक महान व्यक्ति हैं। अब अपनी आँखों को देखो। क्या आप एक दूसरे की आंखें देख सकते हैं? .... अब, लेकिन वह कहती है कि किसी ने उससे बात की। किसने बात की? ....
नहीं, नहीं। वह नहीं कर सकती। इसके बारे में एक विज्ञान है। यह एक जन्मजात आत्मसाक्षात्कारीसाकार बच्चा है। वह गलत है। वह गलत है। ऐसा नहीं होगा। आपको पूरा ज्ञान होना चाहिए, ठीक है? .... आप जिस महिला को अस्थमा है उसे बुलाओ, वह उसे ठीक कर देगा, लेकिन उसे बस इतना कहो कि अस्थमा वाली महिला को ले आओ।
[हिंदी] आप कैसे हैं? खुशी है कि आपको मिल गया। [हिन्दी]
आपको खुद को स्थापित करना है, यह महत्वपूर्ण है, फिर आपको इसे सभी को देना होगा....
मैं यह बताऊंगा। लेकिन आप देखिए एक बार हम.... हां, बात यह है कि आप देखिये कि एक व्याख्यान में आप सभी के बारे में नहीं बोल सकते। लेकिन मैंने उन सभी के बारे में बात की है - जीसस, क्योंकि वे यहां अधिकतर जीसस की पूजा करते हैं। लेकिन वो सब रूहानी हैं, वो सब हमारे अपने हैं, कोई फर्क नहीं है.... इतना ही। हाँ, यही है, यही है। तो अब आप इसे सीखें, और आप मेरे अन्य व्याख्यानों को सुनेंगे जहाँ मैंने सभी के बारे में बात की है, ठीक है? परमात्मा आपका भला करे।
.... वह ... का भाई है आपको एक अच्छी भाभी मिल रही है! ...वह तुम्हारा भाई है? वे ठीक हो जाएंगे, आप देखिए, क्योंकि लोग हाल ही में यहां आए हैं, और जब मैं आयी, तो मेरे पास एक राजनयिक पासपोर्ट था, लेकिन केवल उन्होंने पासपोर्ट के अर्थ में मेरी जांच की और फिर उन्होंने मेरा टिकट देखा, और वह सब - और किसी की नहीं। वे ऐसे ही हैं, बहुत... लोग, क्या करें? आप नहीं जानते, आपको कुछ और भारतीय लाने होंगे ताकि.... वह ठीक हो जाएगा, इसमें कोई शक नहीं। और आप उन्हें मुंबई में भी प्राप्त करते हैं!
नमस्ते आप कैसे हैं? .... आत्मविश्वास। ठीक है, मुझे ऐसा लगता है, कि आप लोगों में आत्मविश्वास की कमी है। अब आप जो सोचते हैं वह लोगों द्वारा आप में बोए गए सभी प्रकार के निरर्थक संदेहों के कारण हिल गया है। आप आत्मा हैं, और आपको वह बनना है। मैं आपको पूरी तरह से आश्वस्त होने के लिए मार्गदर्शन कर रही हूँ, ठीक है? तो तुम्हें आकर इन लोगों को भी देखना होगा, ये हैं... लेकिन मैं बाद में आ रही हूं... मैं परसों आऊंगी, ठीक है? अपने दोस्तों को पहले ही कॉल कर लें। मुझे आप सभी को बहुत, बहुत आश्वस्त करना चाहिए। लेकिन जरूर आएं, क्योंकि....
कंबोडिया? आह!
क्या हाल है? बस आनंद लें, आनंद लें! लेकिन आपको आश्वस्त होना होगा, और इसे काम करने देना होगा। बार - बार ...। फालो अप करना है, फिर देखना है.... इसके बारे में पूरी तरह से आश्वस्त, ठीक है? परमात्मा आपका भला करे।
तो आप कैसे हैं? परमात्मा आपका भला करे। अब चलो, तुम बहुत बहादुर हो गए हो, ठीक है? .... उससे कहो कि मैंने कहा था कि तुम आओ, और बहुत जल्दी आओ। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
क्या तुम ठीक हो? .... यह मदद करने वाला नहीं है .... यह ठीक है, लेकिन आपको इसके बारे में भी सब कुछ पता होना चाहिए, और यह ठीक है। आप देखिए, आपको इसे अंधाधुंध नहीं करना चाहिए.... मैं यह उन पर छोड़ती हूँ, वे सब यहाँ हैं। आप यहां रहते हैं? हाँ? परसों मैं आ रही हूँ, और वे तुम्हें पता देंगे। हाँ, और परसों आपको अपने मित्रों को भी लाना है। आप किस देश से हैं? पेरू? ठीक है, सब ले आओ। ठीक है? मुझे उन्हें देखना होगा।
क्या हाल है? आपने कैसा महसूस किया? आप किस देश से आए हैं? प्यूर्टो रिको! ओह, अच्छा देश। मुझे कभी इन सब जगहों पर जाना है। मुझे जाना चाहिए। मैं अभी तक वहां नहीं गयी हूं, लेकिन मैं जाऊंगी। आइए देखते हैं ...
क्या आप यहां हैं? बहुत अच्छे! क्या हाल है? ... साथ आओ! और अपने दोस्तों को प्राप्त करें! बस उन्हें बताओ, उन्हें आना चाहिए! ठीक है? परमात्मा आपका भला करे।
अब आप कैसे हैं? ... नहीं, आप मिले नहीं? ... आप बोलिवियाई नहीं हैं? ....लेकिन मैं बोलीविया जाऊंगी, मैं जाऊंगी
तो आप कैसे हैं? .... अब, आपको क्षमा करना होगा। आपको यह कहना होगा। आपको माफ करना होगा। तुमने सबको माफ नहीं किया....कि तुम्हें माफ करना है। बस यह कहो, "मैं क्षमा करता हूँ।" बस इतना कहो, "माँ, मैं क्षमा करता हूँ।" बस दिल से कहो...बेहतर होगा। आह, अब, देखा? .... अब, अपने आप को स्थापित करें। यह बहुत महत्वपूर्ण है। नहीं तो आपमें आत्मविश्वास नहीं होगा। स्थापित करना होगा। परसों मैं आ रही हूँ... अपने दोस्तों को भी ले आओ... और फिर आपको इन लोगों को देखना होगा। उनके पास....
आह, बहुत अच्छा! आह, बढ़िया! .... मैं रूस गयी हूं। मैं वहां तीन बार जा चुकी हूं और मैंने रूस के लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया है। मैं अब जा रही हूँ.... वे पहले हैं जो इसे प्राप्त करेंगे। वे बहुत अच्छे हैं। वे बहुत अच्छे लोग हैं। रूस में लोग बहुत अच्छे हैं, बहुत अच्छे.... महान आत्माएं! केवल सेक्स पॉइंट, यह मज़ेदार है, बहुत ज्यादा पी लो? उनका लीवर खराब हो रहा है। भारत से LIV52 आयात करना। लेकिन वे बहुत मिलनसार, अच्छे लोग हैं। हम उनके साथ बहुत आसानी से तालमेल बिठा सकते हैं। हम इसे मैनेज कर लेंगे। मैं सरकारी स्तर पर कोशिश करूंगी। हम यह कर सकते हैं। परमात्मा आपका भला करे।
अभी आओ...परमात्मा आपका भला करे, आप एक साधक हैं। अपने आप को स्थापित करें। बस कहो, "माँ, मेरे दिमाग में आओ। बस इतना ही।"