
How to get to the Spirit that lies within 1979-11-26
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26 नवम्बर 1979
How To Get To The Spirit That Lies Within
Public Program
Caxton Hall, London (England)
Talk Language: English | Translation (English to Hindi) - Draft
आत्मा को कैसे पायें
सार्वजनिक कार्यक्रम। कैक्सटन हॉल, लंदन, इंग्लैंड। 26 नवंबर 1979।
...और किस प्रकार यह हमारे भीतर रहती है और कैसे हम माया के पर्दों में खोए रहते हैं।
आज मैं आपको बताने जा रही हूँ कि हम उस आत्मा तक कैसे पहुँचते हैं।
उस आत्मा का पता लगाने के लिए लोग दो प्रकार के तरीके अपनाते हैं। एक को अणुवोपाय कहा जाता है, और दूसरे को शाक्तोपाय कहा जाता है। 'अणु' का अर्थ है एक अणु। जब हम माया में खोए होते हैं, जैसा कि मैंने आपको पिछली बार बताया था, वास्तव में आत्मा शाश्वत है, सर्वशक्तिमान है। यह कभी भी अपनी शक्ति नहीं खोता है चाहे हम बूढ़े हों, युवा हों, चाहे हम किसी भी स्थिति में हों, आत्मा की अपनी शक्ति है, हर समय। लेकिन, हम में आत्मा का प्रतिबिंब, हम में आत्मा का प्रकाश, हमारे परावर्तक की गुणवत्ता पर निर्भर करता है कि हम कैसे हैं। और गुणवत्ता अत्यधिक घटिया होने के कारण कभी-कभी हमारे भीतर अँधेरा पैदा हो जाता है और उस अँधेरे में कभी-कभी तो हमें पता ही नहीं चलता कि परे कुछ अन्य भी है।
तो खोजने की पहली शैली अणुवोपाय है, जैसा कि आप इसे कहते हैं, जो अणुओं के बाद अणुओं को पृथक करने पर निर्भर करती है। क्योंकि इन परिस्थितियों में, जब आप अंधेरे से घिरे होते हैं, तो आप आत्मा को एक अणु के रूप में देखते हैं या आप एक चिंगारी या झिलमिलाहट कह सकते हैं। कभी-कभी आपको बस इसकी एक झलक ही मिलती है।
जैसा कि आप जानते हैं कि विचार हमारे भीतर उठते हैं और धूमिल हो जाते हैं। हम विचारों को उठते और धूमिल होते देखते हैं। और हमारे चारों ओर कई विचार हैं। हमारा ध्यान उन विचारों पर है, जो हर समय गतिमान रहते हैं। दो विचारों के बीच उस खाली स्थान को खोज पाना बहुत कठिन है, इसलिए जो हम देख पाते हैं वह सिर्फ एक झलक मात्र है, आप ऐसा कह सकते हैं, या उस आत्मा का एक छोटा सा परमाणु, कभी-कभी जगमगाता हुआ। और फिर इंसानों के बीच तलाश शुरू होती है।
उस अंधकार से, तमोगुण से, वे खोज की शुरूआत करते हैं और हमारे भीतर क्रिया शुरू होती है। तो हम बाईं ओर देख सकते हैं जैसा कि आप इड़ा नाड़ी देखते हैं, जिसके द्वारा हम तमोगुण में रहते हैं, और फिर हम पिंगला नाडी पर दाहिने हाथ की ओर बढ़ते हैं, जिसमें हम कार्यरत होते हैं। उस क्रिया में हम आत्मा को खोजने का प्रयास करते हैं। बेशक, पहले हम सोचते हैं कि भौतिक उन्नति प्राप्त करने में ही आप उस आत्मा को, उस झलक को पाएंगे, और इसलिए हम भौतिक उन्नति के लिए आगे बढ़ते हैं।
अब, भौतिक उन्नति आध्यात्मिक उन्नति से बहुत अलग है । या हम कह सकते हैं कि जो भौतिक घटनाएँ हो रही है, जिन्हें हम देखते हैं, जैसे कोई विमान का उतरना या एक विमान का उड़ान भरना या दो ट्रेनों की टक्कर या ऐसी कोई भी घटना बाहर है और आध्यात्मिक घटना भीतर है।
हमारा चित्त हमेशा बाहरी घटनाओं की ओर आकर्षित होता है और इस चित्त को अपने भीतर ले जाना असंभव है। इसलिए उस चित्त को अपने भीतर आकर्षित करने के लिए हमारे भीतर कुछ तो होना ही है। हम अपना चित्त अंदर नहीं ला पाते हैं, इसलिए लोग कोशिश करते हैं, आम तौर पर, वह अणुवोपाय है जिसे आप अष्टांग योग और अन्य योग कहते हैं, जिसके द्वारा वे खुद को मिथक से, अंधेरे से अलग करने की कोशिश करते हैं; जिसके लिए आपको बहुत ही दक्ष, ईमानदार, लगनशील लोग, बहुत युवा ब्रह्मचारी, निर्दोष लोगों की जरूरत है, जिन्हें अपने गुरुओं के साथ जंगल में रहना पड़ता है। तो, वे अपना चित्त बाहर रखते हैं, जिसे निरोध (संयम) कहा जाता है। वे अपना चित्त खुद ही फैलाना बंद कर देते हैं। वे एक साक्षात्कारी आत्मा की सहायता से अपना चित्त केंद्रित करते हैं।
यदि आप भारत आते हैं तो आपको कुछ ऐसे वास्तविक संत मिलेंगे जो पहाड़ियों और पहाड़ों की चोटी पर रहते हैं, जो लोगों के लिए आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। वे अपना धर्म नहीं बेचते हैं या वे लोगों को अपना बोध नहीं बेचते हैं। पागल भीड़ से छिपे हुए, वे वहां मौजूद हैं। उनमें से एक ने किसी को, कुछ सहज योगियों को बताया है कि वह केवल मेंढक था तब से, तब से इक्कीस हजार साल तक उसने अणुवोपाय का अभ्यास किया है!
यह शानदार है कि वह इक्कीस हजार साल तक चलता रहा, हर साल, हर जन्म, जब वह पैदा हुआ और फिर भी वह आसानी से दूसरों की कुंडलिनी को नहीं उठा सकता! फिर भी, उसके पास कुंडलिनी को उस तरह से ऊपर उठाने की शक्ति नहीं है जिस तरह से आप सहज योगी उठा सकते हैं! यह सबसे आश्चर्यजनक है! उन्होंने एक ही व्यक्ति को साक्षात्कार दिया है, केवल एक को। पच्चीस वर्षों तक उसने उस पर काम किया; उसी तरह, अणुवोपाय। ये वे लोग हैं जो अलग हैं, वीतराग। ऐसा नहीं है कि आपको कहीं से भी भागना है, लेकिन समाज में रहकर ही आप इसे हमारे सहज योग या महायोग के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं। यह शाक्तोपाय है। लेकिन ये लोग अभी भी शहरों में आने से डरते हैं क्योंकि ये लोगों को समझा नहीं सकते थे। इन्हें इंसानों पर भरोसा नहीं होता और ये इनसे दूर रहना चाहते हैं। वे शादीशुदा नहीं हैं। वे एक ब्रह्मचारी जीवन जीते हैं। वे कभी-कभी दो सौ साल तक जीते हैं, कभी एक हजार साल भी। लेकिन यह एक बहुत ही व्यक्तिवादी गतिविधि है, एक या दो लोगों पर काम करता है। जन्म-जन्मान्तर उन्होंने स्वयं को शुद्ध किया। यह अणुवोपाय है।
तो परमात्मा या आत्मा की खोज सदियों से चल रही है, यह कोई नई बात नहीं है जो हम यहां कर रहे हैं। और आप अपने पिछले जन्मों में और पहले के कई जन्मों में भी उस परमात्मा को खोजते रहे हैं। लेकिन तुम्हें पता होना चाहिए कि खोजने के लिए तुम्हें भीतर जाना होगा। यह बाहर नहीं है। और अंदर तुम कैसे जाते हो? समस्या यह है। कुछ लोग कहते हैं कि यदि आप सुझाव देते रहें कि, "मैं भीतर जा रहा हूं," तो तुम भीतर चले जाते हो। यह सब काल्पनिक है, क्योंकि जब चित्त हट जाता है, तो ज्ञाता और ज्ञान दोनों अलग-अलग होते हैं। जैसे अगर मैं इस चीज़ को अभी देखती हूँ, उदाहरण के लिए, अगर मैं एक साक्षात्कारी आत्मा नहीं हूँ, तो मैं इसे देखूँगी और मैं बस यही सोचूँगी कि, “उन्होंने इसके लिए कितना भुगतान किया होगा? यह किस चीज़ से बना है? उन्हें यह कहाँ से मिला?” ऐसी सभी प्रकार की सतही बातें, जैसा कि आप इसे कह सकते हैं। अधिक से अधिक कोई कह सकता है, "इसे बहुत ही सौंदर्य की दृष्टि से रखा गया है और इसमें बहुत अच्छा संतुलन है," और वह सब। अधिक से अधिक! लेकिन यह सब बाहर है, क्योंकि, जो जानने वाला अर्थात 'ज्ञाता' है वही संज्ञान के बाहर है।
इसलिए घटना के बाहर घटने और भीतर घटने में बहुत बड़ा अंतर है। जब आप ट्रेन को टकराते हुए देखते हैं तो आप कहेंगे, "ओह, इसे देखो! ये क्या किया है इन्होंने? यह ड्राइवर गलत है!" और यह कि, "इन लोगों ने बहुत कुछ सहा है," और हर तरह की चीजें। आप पैसा इकट्ठा करना शुरू कर देंगे। हम जो कुछ भी सामान्य रूप से करते हैं, आप देखते हैं। लेकिन इसके बारे में ज्ञान उस ज्ञाता जो आपका स्व है के संज्ञान के बाहर है। लेकिन जब आध्यात्मिक घटना घटती है तो ज्ञान और ज्ञाता एक हो जाते हैं।
उदाहरण के लिए अब यह मशीन जो यहाँ है, एक सामान्य व्यक्ति के लिए जैसा कि मैंने आपको बताया, "यह इतना ही है कि, इसकी लागत बहुत अधिक है," या जो कुछ भी है, आप देखें। लेकिन एक साक्षात्कारी आत्मा के लिए इस प्रकार होगा कि, "क्या यह चैतन्य उत्सर्जित कर रहा है? क्या यह वायब्रेशन उत्सर्जित कर रहा है? यह किस प्रकार के वायब्रेशन उत्सर्जित कर रहा है? यह अच्छा है या बुरा?" क्योंकि तब आप इसे आध्यात्मिक मूल्य के अनुसार समझने लगते हैं न कि भौतिक मूल्य के अनुसार । मुझे आशा है कि आप इस बिंदु को समझ गए होंगे।
आध्यात्मिक मूल्य एक परम मूल्य है। और इसका पैमाना क्या है आध्यात्मिक आनंद। चैतन्य आपको आध्यात्मिक आनंद देते हैं - अच्छा वायब्रेशन, मेरा मतलब है। अच्छे वायब्रेशन क्या हैं? और कुछ नहीं बल्कि इस पूरी चीज की क्षमता इसके माध्यम से उत्सर्जित हो रही है, सर्वव्यापी शक्ति, जो आपको आनंद दे रही है। यह एक निरपेक्ष मूल्य है। तुम दस बच्चों को लेते हो जो साक्षात्कारी आत्मा हों: तुम उनकी आंखें बांधते हो और उन्हें एक व्यक्ति की ओर हाथ रखने के लिए कहते हो। वे सब आपको एक ही उँगली दिखाएँगे, जो जल रही है; वे जिस भी चक्र को पकड़ रहे हैं। इसमें कोई भ्रम नहीं होगा, कोई दूसरा मत नहीं होगा, कोई झगड़ा नहीं होगा, क्योंकि यह वही है, क्योंकि ज्ञाता और ज्ञान एक ही है।
इसीलिए जब हमारा चित्त बाहर होता है और हम कुछ खोज रहे होते हैं या कुछ जान रहे होते हैं, तो हम उसे अपनी विचारधारा के अनुसार देखना शुरू कर देते हैं और जो सोच रहा है वह मिस्टर अहंकार या शायद प्रति-अहंकार है।हम यहाँ इसके बारे में सोचने के लिए नहीं हैं, इसलिए आप उन्हें जो कुछ भी देते हैं, उदाहरण के लिए आप आधुनिक समय में दो व्यक्तियों की शादी करते हैं। तो, वे बैठकर इसे कार्यान्वित करेंगे। आप किस प्रकार अपनी बोद्धिकता से कोई शादी कार्यान्वित कर सकते हैं? यह आपके दिल का प्रश्न है। बस इसका आनंद लो। आप उन्हें खाना दें, वे बैठ कर और उस पर काम करेंगे, उसका विश्लेषण करना शुरू करेंगे। वे इसे संश्लेषित नहीं कर सकते। खाना ठंडा हो जाएगा, वह अपना सारा स्वाद खो देगा और सब कुछ बर्बाद हो जाएगा। वे अपने जीवन से वही चीज़ बनाते हैं। वे अकारण सोच-विचार कर समस्याएँ खड़ी कर देते हैं। विश्लेषण बाहर शुरू होता है, संश्लेषण अंदर शुरू होता है।
अब यह निरोध आपके चित्त को पीछे हटाकर भीतर लाना है जैसा कि मैंने तुमसे कहा था कि यह अंदर घटित होने से ही संभव है। अब आप अपने भीतर घटित होने वाली घटनाओं को कैसे प्राप्त करते हैं? उदाहरण के लिए, मैं आपसे बात कर रही हूं, आप मेरी तरफ चित्त दे रहे हैं: मान लीजिए कि कुछ गिर जाता है, तुरंत आपका ध्यान उस घटना पर जाता है। तो भीतर कुछ घटित होना चाहिए। अब जो हो रहा है, वह कुंडलिनी योग है, और यह कुंडलिनी योग शाक्तोपाय है, जिसे शक्तिपथ कहा जाता है, शक्ति देना है। बहुत कम लोग इस से संपन्न हैं, मेरा मतलब है कि आज ये सभी वहां 'शक्तियां' बेच रहे हैं। उनके आश्रम वगैरह हैं, वे शक्ति की बात कर रहे हैं, जब वह लोग नाचने लगते हैं, कूद पड़ते हैं, चीखते-चिल्लाते हैं। वह शक्ति कतई नहीं है।
केवल उच्च कोटि का व्यक्ति ही कुंडलिनी को ऊपर उठा सकता है क्योंकि उसे ईश्वर द्वारा अधिकृत किया जाना है। लोगों को साक्षात्कार देना बहुत दुर्लभ बात है। केवल ऐसे लोग जिन्हें परमात्मा द्वारा अधिकृत किया गया है, वे कुंडलिनी को सीधे आगे बढ़ा सकते हैं।
तो अणुवोपाय एक बहुत धीमी क्रिया है, कुछ व्यक्तियों के लिए है जो इस माया, इस भ्रम से बाहर निकलते हैं और लोगों को बताते हैं कि, "यह सब भ्रम है, एक मृगतृष्णा है, आप एक मृगतृष्णा के पीछे भाग रहे हैं। इस मृगतृष्णा के पीछे मत भागो।" लेकिन फिर भी लोग उन पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं। वे उन्हें सूली पर चढ़ाते हैं, वे उन्हें जहर देते हैं, वे उन्हें पीटते हैं, वे उनके साथ हर तरह की हरकत करते हैं। मेरा मतलब है, उन्होंने किसी का कुछ भी नुकसान नहीं किया कि उनके साथ इंसानों द्वारा इतना बुरा व्यवहार किया जाए।
तो, यह समझना है कि आपका चित्त अंदर खींचा जाना है। निरोध को कार्यान्वित होना है। बातों को नकारने के माध्यम से नहीं, "महिलाओं को मत देखो।" "सोने को मत देखो।" "चीजों को मत देखो, तुम्हारा चित्त खराब हो जाएगा।" उन तरीकों से नहीं। या आपको जंगलों में ले जाकर, एक ब्रह्मचारी जीवन व्यतीत करके, अपने चारों ओर एक बहुत ही पवित्र वातावरण बनाकर और बस आपको मजबूर कर दिया कि [जो] बुरा है वो आप ना देखें। लेकिन जब आप इसे से देखते हैं तो आप फिर से वापस उसी पर चले जाते हैं!
कोई प्रतिरक्षा विकसित नहीं हुई है।
तो कुंडलिनी के उठने पर जब चित्त अंदर की तरफ आकर्षित होता है, तो सबसे पहली बात जो आप देखते हैं, वह यह है कि पुतली का फैलाव होता है। अब, पुतली के फैलाव से सामान्य रूप से एक प्रकार का अंधापन हो जाएगा। एक महिला डॉक्टर थी जो एक बार मेरे पास अपने साक्षात्कार के लिए आई थी और मैंने उसकी कुंडलिनी को चढ़ाने की कोशिश की, यह आज्ञा से आगे नहीं जा पाई। जब वह गाड़ी चला रही थी तो अचानक उसने महसूस किया कि उसकी आँखें फैल रही हैं और वह देख नहीं पा रही थी, इसलिए उसने अपनी कार को एक तरफ ले लिया और उसने कहा, "लगभग एक मिनट के लिए मुझे कुछ भी नहीं दिख रहा था, मैं काफी चिंतित थी। मुझे लगा कि मेरी पुतली का फैलाव हो रहा है और मुझे इस बात की चिंता थी कि मैं अंधी कैसे हो गयी हूं। और फिर उसकी दृष्टी वापस आ गई लेकिन जब वह वापस गई, तो वह बहुत बेहतर देख पा रही थी और उसकी आँखों में चमक थी, आँखें चमक रही थीं। उसने मुझे फोन किया, उसने कहा, "क्या ऐसा होता है?" मैने कहा 'हां '।" आपका ध्यान बाहर से अंदर की ओर आकर्षित करने के लिए कुंडलिनी आपके साथ ऐसा करती है, कि वह आपकी पुतली को फैला देती है। अब डॉक्टर मुझ पर चढ़ाई कर सकते हैं कि यह एक परानुकम्पी parasympathetic अथवा अनुकंपी sympathetic क्रिया है। वे नहीं जानते, उन्होंने अभी तक फैसला नहीं किया है। यह कुंडलिनी की क्रिया है।
वे कुंडलिनी के बारे में नहीं जानते हैं। अगर आप उन्हें इसे धड़कते हुए दिखा भी देंगे तो वे इस पर विश्वास नहीं करेंगे। वे इस पर विश्वास नहीं करना चाहते। वे बाहर रहना चाहते हैं, अज्ञानता में। सब ऐसे ही हैं।
अब हर कोई कह रहा है कि अब बाहर का संघर्ष खत्म हो गया है, हमें अंदर ही अंदर संघर्ष करना है, हमें खुद से लड़ना है। तुम कहीं भी जाओगे, वे कहेंगे कि, "हमें अपनी पूर्णता को तलाशना होगा।" ओह, बड़े व्याख्यान आप जानते हैं! सम्मेलन के बाद सम्मेलन लोग इतनी बड़ी बात कर रहे हैं! बात करो, बात करो, बात करो, बात करो, बात करो, बात करो, बात करो। लेकिन जब वास्तविकता की बात आती है कि, आप इसे प्राप्त कर सकते हैं, तो इसकी बहुत धीमी गति है लेकिन अणुवोपाय से तो बेहतर है! अणुवोपाय द्वारा वे लोग जो शहर में रह रहे हैं वे कहीं नहीं पहुंचेंगे, वे नहीं कर सकते। यदि आप उन सभी चीजों को करने की कोशिश करते हैं, यदि आपके पास गुरु के रूप में एक साक्षात्कारी आत्मा नहीं है और वातावरण भी नहीं है, तो या तो आप अहंकार में या प्रति-अहंकार में आ जाएंगे; आपको वहां समस्या होगी, या तो बाईं ओर या दाईं ओर। मान लीजिए कि आप उनसे कहते हैं, "अब, मत पीओ, धूम्रपान मत करो!" तुरंत तुम बद्ध हो जाओगे और मिस्टर फ्रायड खड़े हो जाएंगे और कहेंगे, "देखो, तुम बद्ध हो, तुम्हें पूरी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए!" ठीक है। तो आप आगे बढ़ें और चाहें जो करें। तो आपका मिस्टर ईगो आपके सिर पर एक बड़े गुब्बारे की तरह बन जाएगा यदि आप जो चाहें करें। और फिर आपका एक बड़ा माथा बाहर आ रहा है, सभी को ऐसे ही खा रहा है। (हंसते हुए) और मैंने मिस्टर ईगो पर एक अच्छा भाषण दिया है कि कैसे यह सभी का गला घोंटने की कोशिश करता है और कैसे हम सबके खिलाफ उठा रहे हैं। यह श्रीमान अहंकार हमें यह एहसास दिलाता है कि हम कुछ हैं और यही हमें अज्ञानता के बंधन में बांधे रखता है।
और मुझे कभी-कभी यह, एक मुक्केबाज की मुट्ठी की तरह लगता है! कोई भी इसके पास जाने की कोशिश करता है, यह आपको एक घूंसा मारता है! इसके बारे में कोई भी कुछ भी कहने की कोशिश करेगा, यह आपके सिर पर जोरदार प्रहार करेगा। इसलिए यदि आप अपने अहंकार की तरफ चित्त नहीं देते हैं और कहते हैं, "नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, मुझे यह नहीं खाना चाहिए, मुझे यह नहीं करना चाहिए, मुझे वह नहीं करना चाहिए," समाप्त! आप बाईं तरफ चले जाते हैं और फिर आपको बद्धता मिलती है और फिर आप मिस्टर रजनीश या किसी ऐसे व्यक्ति के जाल में पड़ सकते हैं, जो आप पर काबिज़ हो रहा है। और आप इससे बाहर नहीं निकल पाते। आप अपने स्तर पर सबसे अच्छा प्रयास करते हैं, आप इससे बाहर नहीं निकल सकते हैं, क्योंकि वे आपको अपने सम्मोहन से फँसाते हैं, आप अपने प्रति-अहंकार में जाते हैं, आप सम्मोहित होते हैं, आप पर कब्जा होता है और आप जो भी प्रयास करें, इस प्रकार के सभी लोग सहज योग के लिए बहुत कठिन होते हैं। उन्हें लगता है कि मैं नहीं जानती कि वे क्या कर रहे हैं, लेकिन यह मेरे जानने का विषय नहीं है, यह आपके जानने का विषय है। हारने वाला तुम्हारे भीतर है, और विजेता भी तुम्हारे ही भीतर है।
यह आप हैं जिसे हासिल करना है, मुझे नहीं। सहज योग मेरे लिए बिल्कुल नहीं है। मुझे यह नहीं करना है। यह आप पर है कि, आप उस ज्ञान को जो आपका स्व है प्राप्त करें। केवल एक चीज जो मैं कर सकती हूं वह है शक्ति पथ लेकिन वास्तव में मैं भी नहीं करती, मैं आपको बता सकती हूं। मैं कुछ नहीं करती। मैं बस शांत बैठी हूँ। यह सिर्फ उत्सर्जित होता है, मैं क्या कर सकती हूँ? यह मेरा स्वभाव है, बस बहता रहता है। यह उस तरह से काम करता है।
लेकिन, अपने अहंकार के कारण, हम सभी चुनौतियां चाहते हैं। मान लीजिए मैं कल आपसे कह दूं कि, "आप इसे केवल सौ बार कूद कर प्राप्त कर सकते हैं," आप तुरंत ऐसा करना शुरू कर देंगे! अगर मैं आपको एक अन्य प्रकार की दक्षता यात्रा के लिए कहूं, जैसे कि, " यदि आप पांच मिनट में सौ छलांग लगाते हैं, तो आप इसे तेजी से प्राप्त करेंगे," आप ऐसा करेंगे। या फिर मैं आपको एक और तरह का प्रलोभन देती हूं, जैसा कि वे इसे कहते हैं, एक प्रलोभन। जैसे आपने आज पांच रुपए रखे तो मैं कहती हूं, "नहीं, नहीं, बेहतर है कि आप दस रुपए रख दें," और आपने वह रख दिये। यह एक घोड़े की दौड़ जैसा है। देखिये कि, हम इसे कितने सतही तौर पर देखते हैं। इस सतहीपन में हम पूरी तरह खो जाने वाले हैं। यदि आप वास्तव में तलाश कर रहे हैं तो आप इसे पा सकते हैं और वहां रह सकते हैं और इसे प्राप्त कर सकते हैं! यह आपका अपना है! हम बड़ी बात करते हैं; मुझे बहुत अच्छा लगता है - मेरा मतलब है कि मैं उन लोगों से मिलती हूं जो मुझे कहना चाहिए, हर राष्ट्र के उत्तमांश हैं, और वे एक-दूसरे की मिज़ाज़ पुरसी कर रहे हैं, बस! इससे ज्यादा कुछ नहीं। वे इसकी गहराई में नहीं जाना चाहते हैं और इस बारे में बात कर रहे हैं, "ओह, हम समझते हैं। एक मसीहा होना चाहिए। होना चाहिए कि, हमारे साथ कुछ होना चाहिए।" "हम सभी को पुष्टिदायक बनना चाहिए।" अब वे पा रहे हैं कि कट्टरता उन्हें परेशान कर रही है इसलिए वे कह रहे हैं, "नहीं, ये कट्टरपंथी हैं।" और जब हम बाहर होते हैं तो हम सभी कट्टर होते हैं। मेरा मतलब है, अगर आप मुझसे पूछें, तो वे मुझे पागलों की तरह लगते हैं। ऐसे चरमपंथी! उनका सारा चित्त बाहर ही है।
और जैसा कि मैंने तुम्हें बताया, तुम्हारे भीतर एक व्यवस्था की गई है, कुंडलिनी को वहां त्रिकोणीय हड्डी पर रखा गया है। यह इतने सुंदर ढंग से निर्मित है, बस कुंडलिनी की सुंदरता देखें। अपनी खोज में भी हम अपनी कुंडलिनी को यातना देने के लिए पूरी तरह आमादा हैं। हम अपने प्रति और अपनी मां, कुंडलिनी के प्रति ईमानदार नहीं हैं, जो हमें हमारी प्राप्ति, हमारा पुनर्जन्म देने के लिए वहां बैठी हैं। वह वहां है, आप खुद अपनी खुली आंखों से देख सकते हैं। उदाहरण के लिए, सहजयोगियों में से एक, जो एक डॉक्टर है, गया और डॉक्टरों से बात की। मैंने पूछा, "अब, वे क्या कर रहे हैं?"
उन्होंने कहा, "हां, हम जानते हैं, हमारे हाथ में ठंडी हवा चली, ठीक है।" "फिर?" "और हाँ हम देखते हैं, हम जानते हैं कि त्रिकोणीय हड्डी में कुछ धड़क रहा है।" "फिर?
क्या यह आप में दिलचस्पी नहीं जगाता है?"
"लेकिन फिर भी, यह आत्म-साक्षात्कार कैसे हो सकता है?"
मेरा मतलब है, किसी अन्य के लिए पानी पीना और उसे पचाना और उसका आनंद लेना किसी के भी बस के बाहर है। आप किसी को पानी के पास ले जा सकते हैं, उन्हें पिला सकते हैं, उन्हें पानी में धकेल सकते हैं, लेकिन अगर वे मना कर दें तो आप इसके बारे में क्या कर सकते हैं? और फिर वे इससे बाहर आएंगे और एक बड़ा सम्मेलन करेंगे: “यह एक बड़ा सम्मेलन है। एक बड़े, बड़े सम्मेलन होने के बाद! ” हॉल वे भर देंगे! और वे क्या चर्चा कर रहे हैं? कैसे जाने की आप एक जीवंत संस्था के अंग-प्रत्यंग हैं! फिर से तुम कुछ किताबें निकालते हो, यहाँ पढ़ते हो, एक बड़ी चर्चा करते हो, उसमें से एक बड़ी पार्टी करते हो और समाप्त करते हो। यह 'रविवारीय स्कूल' की तरह से खोज़ , हमारी मदद नहीं करने वाली है।
सबसे पहले हमें इसके बारे में वास्तविक होना चाहिए कि हम इसे खोजना चाहते हैं। जैसा कि आप सहज योग में जानते हैं, जो आगे बढ़े हैं, जिन्होंने वास्तव में बाहर चित्त लगाये बिना वास्तव में काम किया है, वे परमात्मा को जानने, इसका आनंद लेने और दूसरों को देने में सक्षम हैं। लेकिन जीवन में कहीं भी आप देखें, बिना सच्चाई के, आप क्या हासिल करने जा रहे हैं? यह किसी पागल आदमी की तरह है जो एक संपर्क अधिकारी है, आप देखिए। कल्पना कीजिए कि क्या डेढ़ काम है! वह एक संपर्क अधिकारी है, इसलिए वह एक व्यक्ति के लिए फूलों के साथ दौड़ रहा है, एक से दूसरे व्यक्ति के पास, उसे नहीं पता कि कौन आ रहा है। वह किसी और को फूल दे सकता है, हर तरह का पागलपन। उसी तरह, हम संपर्क अधिकारियों की तरह हैं, हमारे दिल में कोई भावना नहीं है। लेकिन इस घटना के होने के बाद आप दूसरे को अपने भीतर महसूस करने लगते हैं। आप महसूस करने लगते हैं। यह एक वास्तविकता है, जैसा कि मैंने आपको पिछली बार बताया था। और जब वह बोध होता है, तो आपको केवल इतना करना होता है कि उसे विकसित होने देना है, क्योंकि यह अनायास ही हो गया है बिना आपके प्रयास को लगाए और यह स्वतःस्फूर्त रूप से काम करने वाला है। केवल अपने अहंकार और चीजों को देखने की अपनी शैली से, इसकी प्रगति को न रोकें। आप इसमें से अपना करियर या व्यवसाय नहीं बना सकते। इसका आनंद लेना है!
अब मैं हैरान हूं कि कैसे इंसान अपने बच्चों को नहीं बेच रहा है। मेरा मतलब है कि सब कुछ तो वे बेच रहे हैं। वे अपने बाल, नाक, आंख, सूरज के नीचे जो कुछ भी संभव है, खून, सब कुछ बेच रहे हैं। लेकिन आपके भीतर जो आनंद है, उसका स्रोत हृदय में स्पंदन है। इसे प्राणशक्ति कहा जाता है, यह आपके भीतर आत्मा की स्पंदित शक्ति है, जिसे केवल प्रबुद्ध होना है ताकि सारा चित्त प्रबुद्ध हो जाए।
और एक साधारण जागरूकता, जहां जानने वाला और ज्ञान दो अलग चीजें हैं और एक प्रबुद्ध जागरूकता, जहां दोनों एक हो जाते हैं, के बीच का अंतर जबरदस्त है! लेकिन कोई भी स्वयं इसका अभ्यास कर देखना नहीं चाहता है कि यह कितना गतिशील है! आज पूरी दुनिया यही चाह रही है, हम इसी की बात कर रहे हैं और इसी तरह भारत से हर तरह के ठगों की सप्लाई आ रही है! तो यह एक बड़ा सर्कस हर जगह चल रहा है! क्या आप भी उसी सर्कस में दौड़ना चाहते हैं? मेरा मतलब है, यह मुझे खुश करने के लिए नहीं है, श्रीमान, बल्कि स्वयं आपके आनंद करने के लिए है। क्योंकि जो कुछ भी आपको आनंद देने वाला है, उसका केवल आध्यात्मिक मूल्य ही है, और कुछ नहीं।
जागरण होने दो। इसे कुछ समय दें। आपको समस्या है, कुंडलिनी उठती है, ठीक है। यह सहस्रार को छूती है, यह भी सही है। लेकिन बहुत से लोग कहते हैं, "माँ, जब छुआ है तो इसे गिरना क्यों चाहिए?" अब, यह मेरी गलती नहीं है। मेरा नहीं गिरता। यह आपके दोषों के कारण गिरता है, जो कुछ भी आपने अपने साथ किया है। कुंडलिनी को आपूर्ति करनी है, उसे आपकी देखभाल करनी है। आपने जो कुछ भी किया है, आप खुद के या दूसरों के प्रति इतने क्रूर रहे हैं। आपने अब तक सभी गलत काम किए हैं, इसलिए कुंडलिनी गिरती है।
उसे इन सभी चीजों का ध्यान रखने दें। वह जानती है कि आपको कोई समस्या है। लेकिन अगर तुम सच्चे नहीं हो, तो वह यह भी जानती है कि तुम सच्चे नहीं हो। वह त्रिकोणीय हड्डी में आपके मूलाधार में गायब हो जाएगी और कभी नहीं उठेगी। वह बहुत बुरी तरह से जमी होगी। जब आप कुंडलिनी के बारे में सोचना शुरू करते हैं, तो आप उसे पूरी तरह से वहीं बंद कर देते हैं और वह बस नीचे चली जाती है। वह देखती है, “यह आदमी कुछ नहीं जानता। उसे अपनी कुंडलिनी को फिर से वापस लाने के लिए शायद दस और जन्म लेने होंगे।" लेकिन कुछ लोगों के साथ यह ऊपर आती है और वहीं बनी रहती है। आपको इसका सम्मान करना चाहिए। आपको इसे महत्व देना चाहिए। यदि आप इसे महत्व देते हैं, तो आपने खुद को महत्व दिया है और किसी और को नहीं। ईसा-मसीह को सूली पर चढ़ाने से, आप किसी भी तरह से उनके मूल्य को कम नहीं कर सकते। जब आपने उन्हें सूली पर चढ़ाया था, तब आपने उन के माध्यम से खुद ही को सूली पर चढ़ाया था।
तो अच्छा समय आ रहा है, क्रिसमस आगे आ रहा है। यहाँ हमारे आज्ञा पर क्रॉसिंग पॉइंट पर हमारे भीतर ईसा-मसीह का जन्म हो। आइए हम उन सभी महान अवतारों और नबियों को याद करें जो इस धरती पर आए थे, जो हमारी तरह, आम इंसानों की तरह, सबसे साधारण तरीके से रहते थे। वे बहुत ही साधारण सादा जीवन व्यतीत करते थे। उनमें से कुछ विवाहित भी थे, उनके बच्चे भी थे। क्यों? वे सभी बकवासों से बचकर बहुत आसानी से पहाड़ियों और पहाड़ों पर रह सकते थे। नहीं, वे आपको आपके विकास की उपलब्धि में एक मील का पत्थर देने के लिए आए थे, और यही विकास है, महा योग, जहां आप आत्मा के साथ एकाकार हो जाते हैं। बाकी सब बेकार है, जिसका कोई मूल्य नहीं। आत्मा तुम्हारा स्व है, जो तुम हो।
आप अपने अहंकार से पहचाने जाते हैं, इसलिए आप हमेशा अपने अहंकार को संतुष्ट करना चाहते हैं, "मुझे यह पसंद है।" "मुझे यह पसंद है," इसका मतलब है कि श्रीमान अहंकार इसे पसंद करते हैं, वास्तव में, ज्यादातर समय। और स्व कभी यह नहीं कहता, "मुझे यह पसंद है।" यह महसूस करता है। यह अपने भीतर महसूस होता है। यह निरपेक्ष है। यह शक्तोपाय है, जिसका अभ्यास बहुत से लोग कर रहे हैं। मुझे अब तक ऐसा करने वाला एक भी वास्तविक व्यक्ति नहीं मिला है। मेरा मतलब है कि हमारे पास: नानक थे, कबीर थे, हमारे पास भारत में - महान लोग थे। और उन्होंने इन नकली लोगों के बारे में बात की है। अणुवोपाय में भी कुण्डलिनी को हर हाल में उठना ही पड़ता है ! बुद्ध और महावीर के मामले में ऐसा हुआ है। लेकिन मैंने तुमसे कहा था कि वे राम के बच्चे थे और हजारों साल बाद, उन्हें उनका आत्मसाक्षात्कार प्राप्ति हुई, और वे केवल अवतार की तरह हैं, आप कह सकते हैं, लेकिन वे अलग-अलग शैलियाँ हैं।
हमारे पास अब बर्बाद करने का समय नहीं है। यह अंतिम निर्णय है जहाँ हमें अपने सभी निरर्थक विचारों को त्यागना है। आप देखिए, उन लोगों से बात करना मुश्किल है, जिन्होंने परमेश्वर का भी व्यापार बनाया है, या किसी प्रकार का राजनीतिक मुद्दा परमेश्वर से निकाला है। लेकिन संवेदनशील लोगों को समझना चाहिए कि उन्हें सबसे पहले खुद को जानना है, उन्हें स्व बनना है और तब उन्हें पता चलेगा कि वे वास्तव में पूर्ण का, विराट अर्थात, अकबर का अंग प्रत्यंग हैं।
आप धर्म को ऊपरी तौर से नहीं जान सकते जैसे ये लोग कह रहे हैं, "अल्लाह हो अकबर, अल्लाह हो अकबर," और आपको मार रहे है! या चर्च में बैठ कर और, "आइए हम अमुक और ऐसे, ऐसे भजन गाते हैं।" या हमारे मंदिरों में हर तरह का नशा बिकता है। इसलिए यह विरोधाभास समझ में नहीं आता कि धार्मिक लोग ऐसे कैसे हो सकते हैं। और फिर आपको कुछ अच्छे लोग मिलते हैं, 'सज्जन', आप जानते हैं, 'बहुत अच्छे लोग'। निकम्में! "ओह, वे बहुत अच्छे हैं," ठीक है, वे क्या करेंगे? वे कुछ पुल बनाएंगे या कुछ सुरंगें बना सकते हैं या कुछ उपन्यास या कुछ लिखने का रचनात्मक कार्य कर सकते हैं। लेकिन फिर भी ज्ञाता और ज्ञान उनमें अलग-अलग ही हैं। वे स्वयं अपने लिए अनुपयोगी हैं, मैं कह रही हूं, दूसरों के लिए नहीं।
और अपने पूर्णत्व को प्राप्त करके भ्रम को बिदा करना होगा। लेकिन हर समय हमारा ध्यान दूसरों की आलोचना करने या दूसरों में दोष खोजने या किसी छोटी सी बात पर होता है। इस दुनिया में यह सब कितना तुच्छ लगता है, जिस तरह से हम अपनी ऊर्जा बर्बाद कर रहे हैं। यहाँ भंडार है हमारे द्वारा अर्जित हमारे अपने पुण्यों का, जिसके द्वारा आपको उसका आनंद लेना है जिसका वादा किया गया है और यहाँ आपके लिए कुंजी है! अपने दिमाग को खुला रखें और इसे ग्रहण करें, यह एक उपहार है। जैसा कि आप स्वयं जानते हैं कि - आपको ईश्वर की ओर से बहुत सारे उपहार मिले हुए हैं। कैसे आप इंसान बन गए हैं? इंसान बनने के लिए आपने क्या किया है? यह ईश्वर का उपहार है, यह सुंदर मानव शरीर, मन, सब कुछ जो आपको मिला है। और अब वह उपहार स्वयं आपको सबसे महान उपहार में परिवर्तित करने वाला है - अपने पिता को जानना है। जिसने तुम्हें पैदा किया है, वह अपनी सारी शक्तियाँ तुम्हें देने के लिए उत्सुक है, जैसे एक पिता अपनी सारी संपत्ति देना चाहता है। तो इसे दोनों हाथों से लें और इसे लें और इसका आनंद लें।
बोध से पहले, मैं तुमसे यह नहीं कहती कि तुम शराब पीना, धूम्रपान करना छोड़ दो या अन्य किसी भी प्रकार का निरोध करती हूँ। नहीं, मैं आपसे ऐसा करने के लिए नहीं कह सकती। लेकिन बोध के बाद, आनंदपूर्वक आप इसे छोड़ देते हैं, आप बस ऐसा कर लेते हैं, क्योंकि अब आप अमृत, अमृत का स्वाद लेते हैं। तब आप कुछ और नहीं चाहते हैं। लेकिन, जब तक आप इसका स्वाद नहीं ले लेते, तब तक थोड़ा समय दें, थोड़ा धैर्य रखें।
इसके लिए आपको बहुत अच्छी तरह से शिक्षित होने की आवश्यकता नहीं है। आपको बहुत अच्छा अभ्यास जैसे की सिर के बल खड़े होने का करने की आवश्यकता नहीं है! आपको चर्च या अन्य कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं है। यदि आप एक सामान्य इंसान हैं, तो यह कार्यान्वित हो जाने वाला है। लेकिन ज्यादातर, जब हम ये सब चीजें करते हैं, तो हम असामान्य होते हैं। यह कहते हुए भी कि हम ईश्वर को खोज रहे हैं, हम बहुत सी असामान्य चीजें कर रहे हैं। हमें बिल्कुल सामान्य होना होगा। यह ऐसा है जैसे इस कमरे में अंधेरा हो रहा है, तुम यहाँ बैठे हो, अब बैठ जाओ! यह कार्यान्वित हो जाने वाला है। लेकिन हम इधर-उधर कूदने लगते हैं और चोटिल हो जाते हैं। यह एक नाव में यात्रा करने जैसा है: बस शांत रहो, बस मध्य में रहो, नाव के गुरुत्वाकर्षण के केंद्र के साथ। बस वहीं पर रहें! यही धर्म है। अपने गुण-धर्म में, वहीं रहो। मेरा मतलब अच्छा बने रहने के लिए, आपको कुछ करने की जरूरत नहीं है। मेरा मतलब ख़राब बनने के लिए, आपको कुछ करना होगा, है ना?
प्रकाश होने पर ये सब चीजें अपने आप आप तक आ जाएंगी। बस शांत रहो। आप सभी इसे प्राप्त करने जा रहे हैं। इस के लिए आदेश दिया जा रहा है, वह व्यवस्थित किया जा रहा है, संगठित किया जा रहा है, आपके भीतर बहुत अच्छी तरह से, खूबसूरती से। जैसे एक वृक्ष बनाने के लिए, एक बीज में सब कुछ व्यवस्थित होता है, यह आपके भीतर व्यवस्थित होता है। लेकिन आपको एक साथ रहना होगा, इस पर काम करना होगा, एक-दूसरे को समझना होगा और यह समूह उस समझ में, सामूहिकता में बढ़ता है, और एक आदर्श केंद्रक बनाता है ताकि अन्य लोग इसका अनुसरण करें।
तो आपको यह समझने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए कि यह एक विशेष कृपा है। क्योंकि तुम खास हो, शायद मैं भी खास हूं, और खास लोगों को किसी खास की जरूरत थी, इसलिए मुझे यहां उतरना पड़ा! आइए इसे आपसी प्रशंसा के रूप में लें, यह एक अच्छा विचार होगा। बाध्यता महसूस करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि मुझे यह करना है। मैं इससे भरा हुआ महसूस करती हूं और जब आप इसे प्राप्त करते हैं तो मैं हल्का महसूस करती हूं। एक माँ की तरह मैं आपको बताती हूँ। कभी-कभी मुझे सख्त होना पड़ता है। मैं एक माँ का काम जानती हूँ। तुम्हें मुझसे बिल्कुल भी डरने की जरूरत नहीं है। मैं तुम्हारे बारे में सब कुछ जानती हूं, किसी तरह। जैसे हमारे साथ एक डगलस फ्राई था और मैंने अचानक उससे पूछा, "आपके जन्मदिन के बारे में क्या?" वह अवाक रह गया! वह नहीं जानता था - वह यहाँ बैठा है - मुझे कैसे पता चला कि उसका जन्मदिन था। और उसका वास्तव में उस जीवन से पुनर्जन्म हुआ था जैसा उसका था। और जब मैंने कहा, तो उसने कहा, "माँ, आप कैसे जानती हैं?" मैंने कहा, "मुझे पता है कि आपके जन्मदिन के बारे में क्या है।" और मैं उसके घर गयी और उसे मिली। मैं उसे स्थापित हुए देखकर बहुत खुश हुई। यह आश्चर्यजनक है कि आपका बीज कैसे बढ़ता है और आप कितने सुगंधित हो जाते हैं।
परमात्मा आप सबको आशिर्वादित करे।
यदि आपके कोई प्रश्न हैं, तो कृपया मुझसे पूछें। हमारे पास समय कम है।
इन लोगों के पास पहले से ही चौरासी टेप हैं और यदि आप अपने लिए टेप रखना चाहते हैं, तो आप उन्हें टेप दे सकते हैं और वे आपके लिए टेप कर सकते हैं या शायद...
जिन्हें वायब्रेशन महसूस नहीं होता उन्हें परेशान नहीं होना चाहिए। कहीं कुछ गड़बड़ है। हो सकता है कि मैं आपको आपके मुंह पर न कहूँ, क्योंकि मैं आपको किसी भी तरह से चोट नहीं पहुंचाना चाहती। लेकिन कोई बात नहीं, मैं इसे ठीक करने जा रही हूं, आप देखिए, डॉक्टर कभी आ कर आपको ऐसा नहीं कहते हैं कि, "आपको ये सभी बीमारियां हो गई हैं और आप अगले पल मर सकते हैं।" अगर डॉक्टर ऐसा कर सकते हैं तो आखिर मैं तो आपकी मां हूं, इसलिए मैं आपको बताने वाली नहीं हूं। आपको खुद बाद में पता चल जाएगा कि आपके साथ क्या गलत था। क्योंकि इसे जान कर आप अपनी मदद नहीं कर पायेंगे। इसके विपरीत, आप निराश महसूस करने लगेंगे।
अब कृपया अपने हाथ ऐसे ही रखें, ऐसे ही। और दोनों पैर जमीन पर, सीधे। जमीन पर।
मुझे लगता है कि शायद अगला सोमवार आखिरी मुलाकात है, है ना? दो और? तुम मुझे अंत तक रखने वाले हो ना? ठीक है!
तो मैं सोच रही थी, अगले सोमवार, मैं तत्वों और उन सभी चीजों के बारे में बताऊंगी कि हम कैसे बने हैं। ये अच्छा रहेगा।
अब कृपया अपनी आँखें बंद करें।
यदि आप अपने विचारों को देखते हैं तो आप पाएंगे कि कोई विचार नहीं हैं। अपनी आँखें बंद रखो। अभी देखा। आपके मन में कोई विचार नहीं हैं।
अब, आपकी उंगलियों में आप एक ठंडी हवा के आने का अनुभव करेंगे। इसका मतलब है कि बोध हुआ है क्योंकि ठंडी हवा पवित्र आत्मा (होली घोस्ट)का संकेत है, संस्कृत में यह "सलिलं, सलिलं" है, जिसका वर्णन किया गया है आप कह सकते हैं, कि आत्मा स्वयं को ठंडी हवा के रूप में उत्सर्जित या विकीरण करती है, ।
आत्मा का प्रकाश शीतल वायु है। ईश्वर की शक्ति। यह हवा जैसी चीज है जो बहने लगती है या आपके अंदर जाने लगती है... अगर आप में से किसी को भी नींद आ रही है, तो कृपया अपनी आंखें खुली रखें। सतर्क रहिये।
तुम्हें सतर्क रहना होगा क्योंकि यह वो घटित हो रहा है जिसकी तुम इच्छा करते रहे हो। अपने आप को देखो। आप जितने अधिक इच्छुक हों, उतना ही अच्छा है।
क्या आपके हाथ में ठंडी हवा चल रही है? अच्छा। अपनी आँखें बंद करो और आनंद लो।
जिन लोगों को ठंडी हवा मिल रही है, कृपया अपने हाथ ऊपर उठाएं, आप सभी। जिन लोगों के हाथ में ठंडी हवा चल रही है, कृपया अपने हाथ ऊपर उठाएं। जिन लोगों को हाथ में ठंडी हवा का अहसास हो रहा है, कृपया अपने हाथ ऊपर उठाएं।
अब जो आज आए हैं और अभी तक बोध नहीं पाए हैं और ठंडी हवा नहीं मिल रही है, कृपया अपने हाथ ऊपर उठाएं। क्या आप आगे आ सकते हैं?
कृपया अपनी आँखें बंद रखें।
वह महिला?
आपके हाथों में ठंडी हवा चल रही है? क्या आपको कोई ठंडी हवा महसूस हो रही है?
लेडी: इतना नहीं।
श्री माताजी: इतना नहीं? तो आप इसके बारे में सोचने लगी, बस इतना ही।
ठीक है। तो उसके लिए आप क्षमा प्रार्थना करो, कि, "मुझे इसके बारे में नहीं सोचना चाहिए," और यह बहने लगेगी। ठीक है? सोच ने से आप इसे उपलब्ध नहीं कर पायी। तो, यह अब ठीक है। अच्छा! देखो यह कितना होशियारी भरा है!
अभी भी वही पहन रहे हैं? वो क्या है? अब उसे देखिए क्या बात है। उसे हृदय पर पकड़ है। अब, अब बेहतर? यह चकमा देता है।
जॉन, यहाँ देखें, यह हिस्सा। इस समय दूसरों को न देखें। आप अपने आप को देखें, ठीक है? बहुत ज़रूरी। तुम लोगों की पकड़ ले लेते हो। बस मत देखो। अपने आप को देखो। यह समय अपने आप को देखने का है, ठीक है?
डेविड, आगे आओ, यहाँ। जॉन, तुम भी यहाँ आओ, मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ। जॉन, तुम यहाँ आओ। डेविड, तुम यहाँ आओ। लिंडसे, तुम भी यहाँ आओ। आइए देखते हैं। पहले तुम यहीं बैठ जाओ।
लिंडसे बस यहाँ आओ मैं तुम्हें भी देखना चाहती हूँ। बस वहाँ। बस यहीं कहीं। बैठ जाईये।
क्या वह एलन है? आप कैसे हैं? अब बेहतर है? बेहतर? क्या आप आगे आ सकते हैं। तुम भी। बस मुझे देखने दो। मैं आपके वायब्रेशन भी देखना चाहती थी| जी बोलिये। आगे आओ। क्या आप दो कुर्सियाँ ले सकते हैं? आपको अपने वायब्रेशन देखना चाहिए। हमें खुद को सुधारना चाहिए। कुछ प्रकार की बात हो सकती है क्योंकि वायब्रेशन अगर ठीक से शोषित नहीं हो पा रहे हैं, तो कुछ समस्या है। आइए इसे ठीक करें। किसी भी बात पर बुरा मानने की क्या बात है? ठीक है, एलन, यदि संभव हो तो यहाँ आओ। ठीक है। आप यहां जॉन के बगल में एक कुर्सी ले सकते हैं।
एलन, कृपया अपनी आँखें खोलो, कृपया।