Aim of Seeking 1981-04-02
Current language: Hindi, list all talks in: Hindi
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2 अप्रैल 1981
Public Program
Royal Exhibition Building, Melbourne (Australia)
Talk Language: English | Translation (English to Hindi) - Draft
परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी,
'खोज का उद्देश्य'
रॉयल एग्जीबिशन बिल्डिंग,
मेलबॉर्न, ऑस्ट्रेलिया
2 अप्रैल, 1981
मेलबॉर्न आ कर वास्तव में प्रसन्नता हो रही है। मैं यहां आई क्योंकि कोई व्यक्ति जो सिडनी आया था बोला, 'मां आप को मेलबॉर्न जरूर आना चाहिए। हमें आप की आवश्यकता है।' जब मैं यहां किसी और उद्देश्य से आई, मुझे अनुभव हुआ की मेलबॉर्न में चैतन्य वास्तव में बहुत अच्छा है, और ये बहुत संभव है, कि यहां अनेक साधक हो सकते हैं।
जैसे मैंने कहा, यहां आप सब के बीच होना वास्तव में बहुत सुखद है। ये एक सत्य है, कि समय आ गया है हजारों, हजारों और हजारों के लिए और लाखों लोगों के लिए अपना आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने का, जो इस धरती पर साधकों के रूप में जन्में हैं। उन्हे अपना अर्थ जानना होगा। उन्हे जानना होगा कि प्रकृति ने अमीबा से मनुष्य क्यों बनाया। उनके जीवन का क्या उद्देश्य है? जब तक आप अपने जीवन का उद्देश्य ना पा लें आप खुश नहीं हो पाएंगे, आप संतुष्ट नहीं हो पाएंगे। आप कुछ भी अन्य आज़मा लें। आप अंहकार यात्रा या अन्य यात्राएं जैसे पैसे की खोज पर निकलें, या आप अन्य चीजें आजमा लें जैसे मादक पदार्थों का सेवन, मदिरा का सेवन, योगिक ऊर्जा से हवा में उड़ना, हर प्रकार की चीज़ें, परंतु इन चीज़ों ने किसी को भी संतुष्टि नहीं दी है। आप को वो परम पाना होगा, जिस के बिना हम भ्रांति में हैं।
ये परम आप के अंदर है, इस लिए सहज योग एक सरल चीज है। एक जीवंत चीज है। 'सह' माने साथ, 'ज' माने जन्मा। ये आप के साथ जन्मा है। जैसे एक बीज में, बीज के सारे मानचित्र जिन का प्रदुर्भाव होना है, उसके अंतरंग भाग हैं, इसी प्रकार आपकी आत्मा और कुंडलिनी पहले से ही आप के अंदर हैं, और वो इंतजार कर रहे हैं आप को आप का आत्म साक्षात्कार देने के बस एक अवसर का!
आत्म साक्षात्कार के फायदे बताने से पहले मुझे आपको बताना है, कि आपको अपने दिमागों को खुला रखना चाहिए, जैसे आप किसी विज्ञान के लेक्चर या अन्य लेक्चर के लिए रखेंगे। सहज योग में कोई बाज़ीगरी, कोई शॉपिंग, कोई गुरु शॉपिंग नहीं है। ये एक घटना है, एक यथार्थीकरण है। ये आप के अंदर है। ये एक जीवंत ताकत है। जैसे एक फूल एक फल बनता है, या एक अंडा एक चूज़ा बनता है, आप को आपका साक्षात्कार प्राप्त होता है, और आप एक अलग व्यक्तित्व बन जाते हैं। चेतना का नया आयाम आप में बढ़ता है, और चेतना का ये नया आयाम एक यथार्थीकरण है। ये सिर्फ शब्द या एक प्रकार का ब्रेनवाश (मत आरोपण) नहीं है। ये एक यथार्थीकरण है आप के अंदर जो घटित होता है, जिस के द्वारा आप सामूहिक चेतना का अनुभव करना आरंभ कर देते हैं। आप विराट के अंग प्रत्यंग हैं। कई अन्य ने ऐसा कहा है। हम भी यही विश्वास करते हैं, कि हम विराट के अंग प्रत्यंग हैं। परंतु अब तक अपनी चेतना में, अपने सेंट्रल नर्वस सिस्टम में हमने उसे अनुभव नहीं किया है। तो यह वास्तव में हमारे साथ होना चाहिए। ये घटित होने के लिए, आत्म साक्षात्कार के उपरांत जो कुछ भी हमारे विकास के लिए पुष्टिकारक है, हमें स्वीकार करना होगा। धीरे धीरे आप स्वीकार करने लगते हैं, और मैं आप को बताउंगी ये क्यों होता है।
परंतु बात ये है, सिडनी में मैंने पाया कि अपनी खोज को लेकर लोग बहुत अधिक ईमानदार हैं और उन्होंने वास्तव में मेरी ईमानदारी की सराहना की।
ये एक प्रक्रिया है जो हमारे अंदर बहुत समय पहले निर्मित की गई थी। यहां जो आप विभिन्न चक्र देख रहे हैं। ये चक्र मनुष्यों के अंदर रखे गए और वो रीड की हड्डी और मस्तिष्क में सूक्ष्म चक्रों के रूप में स्थित हैं। संस्कृत भाषा में इन्हें चक्र कहते हैं। ये केंद्र हमारे भीतर उत्क्रांति के मील के पत्थर के रूप में मौजूद हैं।
उदाहरण के लिए, सब से नीचे का चक्र जो मूलाधार चक्र कहलाता है। वो चक्र है उस बिंदु पर जहां हम कार्बन परमाणु थे, हम पदार्थ थे। उस बिंदु पर हम अबोध थे। पदार्थ अबोध होता है। तो जो पहली चीज हमारे अंदर निर्मित की गई वो अबोधिता थी। अबोधिता के निर्माण के उपरांत सारा ब्रह्माण्ड निर्मित किया गया। ये चक्र कुंडलिनी के नीचे रखा किया गया है, अगर आप स्पष्ट देखें। कुंडलिनी इच्छा की शुद्ध शक्ति है, इच्छा की शुद्ध शक्ति है। जो कुछ भी शुद्ध है, उसे हम पवित्र (होली) कहते हैं। ये इच्छा की पवित्र शक्ति है जो सुप्त रहती है। ये शक्ति आत्मा से एकरूप होने की इच्छा है। बिना आत्मा को जाने आप परमात्मा को नहीं जान सकते।
आप को मुख्य विद्युत स्त्रोत में जुड़ाना होना होगा। आप अभी तक मुख्य स्त्रोत से जुड़े नहीं हैं। उदाहरण के लिए अगर यह यंत्र (माइक्रोफोन) जो हमने बनाया है, अगर मुख्य स्रोत से न जोड़ा जाए, तो इसका कोई अर्थ नहीं है। तो ऐसा होना ही है। ये बीज में भ्रूणनीय जड़ जैसा है, एक बीज में अंकुरित होने की शक्ति है कि आप को ये शक्ति प्राप्त है, सुप्तावस्था में अवशिष्ट शक्ति, किसी ऐसे व्यक्ति की प्रतीक्षा करती हुई जिसे परमात्मा द्वारा अधिकार प्राप्त हो, कोई जो स्वयं आत्म साक्षात्कारी हो, एक जाग्रत व्यक्ति जो यह जानता हो कि ये शक्ति क्या है, ना की किसी संस्था से या प्रमाण पत्र से अधिकार प्राप्त हो, जो मनुष्य आप को ये दें। वो ऐसे व्यक्ति के आने की प्रतीक्षा करती है और फिर वो स्वयं को जाग्रत कर देती हैं, और आप को अपना आत्म साक्षात्कार मिल जाता है। इसे सहज होना चाहिए। जिंदगी में हर महत्वपूर्ण चीज को सहज होना चाहिए।
हमारा सांस लेना इतना सहज है, कि हम उसे हल्के में ले लेते हैं, जब तक की वो थम न जाए, या जब तक हम महसूस न करें कि हम सांस नहीं ले सकते। अगर आप को जा कर किताबें पढ़नी पड़े, या आप को कोई प्रयास करना पड़े सांस लेने के लिए, तब हम में से कितने पांच मिनिट से ज्यादा जीवित भी रह पाएंगे। ये कितना महत्वपूर्ण है। ये हमारे उत्क्रांति की , पराकाष्ठा है, और जैसे कि सारा संसार परमात्मा ने बनाया और आप भी परमात्मा द्वारा बनाए गए, तो यह महान कार्य भी परमात्मा द्वारा ही किया जाएगा।
अब कुछ लोगों ने मुझसे पूछा, 'क्या ये हमें स्वयं घटित नहीं हो सकता?' हमें ज्ञात नहीं है, कि हमारी उत्क्रांति के हर चरण पर परमात्मा के किसी स्वरूप को अवतरण लेना होता है या परमात्मा से कोई मार्गदर्शन मिलना होता है, हमें उच्चतर चेतना देने के लिए। तो विशेष रूप से इस समय यह बहुत महत्वपूर्ण है, कि किसी को यह कार्य करना है, क्योंकि आप ऐसी अवस्था में पहुंच गए हैं, जहां आपको इसे शब्दों में जानना है, और परमात्मा को बताना है।
ये बहुत आम सवाल है, मेरे खयाल से लोग अहंकार उन्मुख हैं। वह पूछते हैं, 'मां, आप क्यों?' मैंने कहा,'तो बेहतर होगा आप आइए। मुझे बहुत खुशी होगी अगर आप यह कर सकें, क्योंकि मैं एक सुखी विवाहित महिला हूं। मुझे किसी से कुछ नहीं चाहिए। मुझे सिर्फ देना है। परंतु अगर आप मेरा काम कर सकें, मुझे सेवानिवृत्त होने में बहुत खुशी होगी।' यह कहना बहुत सरल है कि 'आप क्यों?' मेरा मतलब है आपको परमात्मा से पूछना चाहिए, कि उन्होंने मुझे ये शक्तियां क्यों दीं? परंतु वे तो हैं! परंतु आपको इसके बारे में इतना आहत महसूस करने की आवश्यकता नहीं है। आखिर आपके पास भी इतनी सारी शक्तियां हैं जो मेरे पास नहीं हैं। उदाहरण के लिए, मुझे गाड़ी चलानी नहीं आती। सच में मुझे नहीं आती! मुझे बहुत सी चीजें नहीं आती। मुझे साधारण से कैन खोलना भी नहीं आता। परंतु अगर मैं जानती हूं कि कुंडलिनी को कैसे खोलना है, तो इससे आपके अहंकार को क्यों चोट लगती है? और आपको बुरा क्यों लगना चाहिए, क्योंकि मुझे वास्तव में निरंतर लंबे समय काम करना पड़ता है यह कार्य करने के लिए? आपके लिए यह उपहार जैसा है। यहां कोई शॉपिंग नहीं करनी है। आप इस के लिए पैसा नहीं दे सकते। यह आपके नियंत्रण के परे है। परमात्मा को जानने के लिए आप को सत्य को देखना होगा जैसे वो है। आप को अपनी भ्रांत धारणाओ को त्यागना होगा।
मान लीजिए, मैने देखने से पहले इस हॉल की कल्पना कर ली होती, मेरे विचार विचित्र होते, परंतु इसे देखने के पश्चात ही मैं वास्तव में जानती हूं कि ये क्या है। इसी प्रकार लोगों ने हजारों पुस्तकें लिखी हैं, लाखों भी पुस्तकें लिखी हैं। तो क्या किया जाए? उन्होंने पुस्तकें लिखी हैं, परंतु क्या उन्होंने आप को आत्म साक्षात्कार दिया है? क्या उन्होंने आप को परम का वो अनुभव दिया है, जिस के द्वारा आप स्वयं को जानते हैं, आप अपने चक्रों और दूसरों की चक्रों को जानते हैं, और अपनी शक्तियों को प्रत्यक्ष रूप से प्रकट करना आरंभ कर देते हैं? आप अपनी शक्तियों के स्वामी बन जाते हैं। यही वो है जो आपकी खोज की कसौटी होना चाहिए। आपको स्वयं के अलावा किसी और से तादात्म्य क्यों अनुभव होना चाहिए? क्योंकि मुझे लोग मिलते हैं इस पंथ, या इस दल से, या इस धर्म से, परंतु आप को समझना चाहिए कि आप यहां इन में से किसी लिए याचना करने के लिए नहीं हैं। मेरा मतलब है कि आप उन्हे पैसे देते है उनका अभिवक्ता होने के लिए, या उनके वकील या उनके सॉलिसिटर होने के लिए, आप इसे जो भी कहें। परंतु आप को वास्तव में ईमानदारी से प्रयत्न करना चाहिए सत्य को खोजने का, और इस सत्य को मांगने का। तभी आप को सत्य मिलेगा।
तो पहली बात आप को समझनी चाहिए, कि आप परमात्मा को खरीद नहीं सकते। आप उनके लिए भुगतान नहीं कर सकते। ये एक अपमान है। यह एक अपमान है!
और दूसरी बात कि आप उस के लिए कोई प्रयास नहीं लगा सकते। जब आपको एक बीज अंकुरित करना होता है तो आप क्या करते हैं? आप उसे धरती मां में रख देते हैं और वो सहज में ही स्वयं अंकुरित हो जाता है। उस में वो ताकत है। आप को सिर्फ धरती मां में रखना है, और धरती मां अपनी गर्माहट से बीज को अंकुरित करती हैं। क्या आप इसके लिए धरती मां से क्रोधित होते हैं, उसे ऐसा क्यों करना चाहिए? अगर यह उनको करना है तो करना ही होगा। जो कुछ भी सूर्य को करना है, वह करना है। और जो कुछ आपको करना है आप कर सकते हैं। और जो कुछ पशुओं को करना होता है वह करते हैं। अगर हम समझ लें की अभी हमने प्राप्त नहीं किया है जो हम प्राप्त करना चाहते थे, तब आपको ज्ञात होगा कि बहुत थोड़ी सी दूरी है। कुंडलिनी जागरण तत्क्षण होता है, परंतु उसके उठने में समय लग सकता है, चक्रों में रुकावट के कारण, या हमारे अंदर कुछ असंतुलन के कारण।
मैं आपको संक्षेप में बताने का प्रयास करूंगी कुंडलिनी क्या है, और यह चित्र किस बारे में है। मुझे आशा है कि आपके पास कुछ पुस्तकें होंगी। आप भी उन्हें खोल कर स्वयं ही देख सकते है। जिनके पास किताब नहीं है, वह इन से किताब ले सकते हैं। समझना आसान होगा। किताब के पीछे आपको एक अच्छा सा चार्ट दिखेगा।
सर्वप्रथम आपको अपनी खोज के बारे में ईमानदार होना होगा, उसके बारे में पूर्णत: ईमानदार, तब सब कुछ कार्यान्वित होगा। अब यहां इस चार्ट में आप देखिए जो पहला चक्र है, वह मूलाधार चक्र है, जैसे मैंने कहा था, और यह सैक्रम है। सैक्रम शब्द का अर्थ पवित्र है। सैक्रम बोन वह स्थान है, और कुंडलिनी यहां स्थित है। मैं चाहूंगी की आप ऊपर से देखें, यह नीले रंग की गुब्बारे जैसी आकृति नीचे की ओर उतरती है पहले चक्र तक। अब यह एक सूक्ष्म शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है, जो हमारे अंदर इच्छा शक्ति है। ये बाहर बाएं सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम के रूप में प्रकट होता है। ये मनुष्य का भावनात्मक पहलू है, पर यह सिर्फ भावनात्मक ही नहीं है। ये ही है जो अपने अंदर संस्कार भी एकत्रित करता है, जब हम कहते हैं, वो मत करो! वो मत करो! वो मत करो, जिससे एक गुब्बारे जैसा आकृति बनती है जिसे प्रति अहंकार कहते हैं, जिसे संस्कृत भाषा में मन कहते हैं। तो यह मन की शक्ति है, मन शक्ति।
अंग्रेजी भाषा थोड़ी भ्रमित है। जब आप मानसिक मामलों की बात करते हैं, तो आपका अर्थ उन मानसिक मामलों से नहीं होता जिन का लेना देना दिमाग से है जो सोचता है, परंतु जब आप कहते हैं मानसिक मामले, आप के कहने का अर्थ होता है कि ये वो लोग हैं जो भावनात्मक समस्याओं से कष्ट भोग रहे हैं। यह थोड़ा भ्रमित करता है।
परंतु मनोविज्ञान में इसका अच्छा वर्णन किया है यूंग ने, जो एक आत्म साक्षात्कारी थे। प्रति अहंकार और ये शक्ति है जिस के द्वारा हमारे अंदर ये सारे संस्कार आते हैं, और हम उन्हे अपने भूतकाल की ओर बढ़ा देते हैं। इस जगह के परे बाएं हाथ की और पर हमारा सुप्तचेतन है और उसके परे सामूहिक सुप्तचेतन। जो कुछ भी निर्माण के समय से मृत है इस तरफ आपके बाएं हाथ की तरफ रहता है। ये जैसे मैंने आप को बताया था, बायां सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम है। अब चिकित्सा विज्ञान में बाएं और दाएं में कोई फर्क नहीं है। परंतु आपको ज्ञात होगा कि उनके दो पूर्णता भिन्न कार्य हैं। बायां सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम हमारे भावनात्मक पहलू की पूर्ति करता है, जो सहज योग के अभ्यास में सिद्ध किया जा सकता है।
अब दाएं हाथ की और एक दूसरी शक्ति है, जो कार्य करने की शक्ति है। जब हम इच्छा करते हैं, इच्छा को क्रियान्वित करना होगा। ये इच्छा करने की शक्ति कहलाती है प्राण शक्ति या कार्य शक्ति। कुछ लोग इसे क्रिया शक्ति कहते हैं और ये हमारे प्रज्ञात्मक पहलू, हमारी अक्लमंदी, दिमाग जिस से हम सोचते हैं की देखभाल करती है, मानसिक पहलू के बारे में, शारीरिक पहलू के बारे में, जिस से हम कार्य में प्रवर्त होते हैं। ये गतिविधि दूसरा गुब्बारा बनाती है, आप उसे वहां देख सकते हैं, एक पीले रंग का गुब्बारा जिसे अहंकार, ई. जी. ओ. इगो कहते हैं। और ये दोनो शक्तियां एक बिंदु पर मिलती हैं। जब एक बच्चा बारह साल का होता है, तो यहाँ पूरी तरह सख्त हो जाता है। परंतु बचपन में, एक साल की उम्र में डेढ़ साल की उम्र में, आप इस मुलायम हड्डी का सख्त होना अनुभव करने लगते हैं, जो ब्रह्मरंध्र कहलाती है।
मध्य में तीसरी शक्ति है जो उत्क्रांति की शक्ति, जीवनाधार की शक्ति, धर्म की शक्ति कहलाती है जो हमारे अंतर्निहित है। अब 'रिलिगो' का अर्थ है क्षमता या आप कह सकते हैं एक गुण। अब सोना नष्ट नहीं हो सकता, ये सोने का गुण है। कार्बन की चार वैलेंसी हैं यह कार्बन का गुण है। इसी प्रकार मनुष्यों के भी दस जीवनाधार हैं और यह दस जीवनाधार मनुष्य के धर्म हैं। इसका बाहरी धर्म से कोई लेना देना नहीं है, जिसमें आप विश्वास करते हैं, जिसके गिरफ्त में आप आ गए हैं, या जिस में आप जन्मे हैं। परंतु हमारे अंदर दस धर्म हैं जो इस क्षेत्र में आते हैं जिसे (वायड) भवसागर कहते हैं परंतु यह वो वाइड नहीं जो झेन लोग कहते हैं। सहज योग में भवसागर 'विस्सेरल कैविटी' है। इस क्षेत्र में हम अपने धर्म विकसित करते हैं। धर्म को विकसित करके ही हम उत्क्रांत हो सकते हैं। उदाहरण के लिए पहले एक मछली पानी से बाहर आई और एक उसने एक धर्म विकसित किया जिस के द्वारा उसने रेंगना आरंभ किया और एक रेंगने वाले जंतु बन गईं। पहले सिर्फ एक मछली आई और फिर समूह, और बड़े मछलियों के समूह जल से बाहर आने शुरू हुए। तो उत्क्रांति ऐसे ही चलती रही जब तक हम मनुष्य बने।
इस प्रक्रिया में, जैसे आप अच्छे से जानते हैं, बाएं पक्ष के पशु हैं और दाएं पक्ष के पशु हैं। दाएं पक्ष जो हैं वो ज्यादा महत्वकांक्षी हैं, दूसरों पर हावी होने वाले और आक्रामक और बाएं पक्ष के रहस्यपूर्ण होते हैं। जैसे आप के बहुत सारे रात्रि में जागने वाले पशु हैं जो बाएं पक्ष के हैं। वो डरे हुए हैं और बाएं पक्ष में रहते हैं, जो आक्रमक हैं दाएं पक्ष में हैं। वे बाहर कर दिए गए, कुछ सब्जियां भी और जिन्हे आप पौधे कहते हैं, वो भी उत्क्रांति की प्रक्रिया में बाहर फेंक दिए गए। वो दाएं तरफ या बाईं तरफ फेंक दिए गए, और परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया। इस का अर्थ है कि मनुष्य के पास वो सब है जो परमेश्वर के पास है। अगर वह आदि जीव हैं, वो विराट विश्व (मैक्रोकॉस्म) हैं तो आप सुक्ष्म विश्व (माइक्रोकॉस्म) हैं। आप उनके शरीर में एक सैल हैं, हालांकि आप उस से बारे में जागरूक नहीं हैं।
जागरूकता (अवेयरनेस) और आभास (कॉन्शियसनेस) होने में एक अंतर है। जागरूकता एक यथार्थीकरण है जब कि आभास का अर्थ है कि आप किसी पर मानसिक रूप से विश्वास करते हैं, तर्कसंगतता से आप को आभास हैं, 'मैं ये जानता हूं, या हम सोचते हैं हम भाई बहन हैं।'
अब जो चक्र हमारे अंदर स्थित हैं। पहला, जैसा मैंने आप को बताया था, मूलाधार चक्र है। आप को ये जान कर खुशी होगी की विश्व में ऑस्ट्रेलिया मूलाधार चक्र है। (श्री माताजी मंद मंद हंसते हुए) यह एक सत्य है। आप ये जान लेंगे। चैतन्य से अगर आप प्रश्न पूछें आप जान जायेंगे। मूलत: आप अबोध लोग हैं। जब आप कोई पाप करते हैं आप जानते भी नहीं कि ये पाप है। आप भोलेपन में सिर्फ कर देते हैं। आप जानते हुए नहीं करते हैं, भोलेपन में करते हैं। और दूसरा चक्र है स्वाधिष्ठान चक्र। पहला चक्र आप के पेल्विक प्लेक्सस को प्रकट करता है।
दायां पक्ष, जैसा मैने आप को बताया था दाएं सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम को प्रकट करता है। मध्य की नाडी आप के पैरासिम्पैथेटिक को प्रकट करती है जो टूटा है, जो अभी तक पूरा नहीं हुआ है। एक मनुष्य होने के नाते, जो कुछ भी आप ने अपनी मानवीय चेतना में प्राप्त किया है, वो वहां है। और वहां थोड़ा अंतराल है जहां आप को भेदन करना है, और उस ताकत से मिल जाना है।
अब दूसरा चक्र वह चक्र है, जो स्वाधिष्ठान चक्र कहलाता है। आप को नामों की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, परंतु ये कार्य करने का चक्र है, जिस से आप सोचते हैं, सोचते है भविष्य के बारे में। और ये चक्र हमारे बहुत अन्य विस्सेरस, या आप कह सकते हैं अन्य बड़े अंगों की देखभाल करता है। यह हमारे यकृत (लीवर) की देखभाल करता है। हमारा चित्त इस चक्र द्वारा संभाला जाता है। फिर ये आप के अग्न्याशय (पैंक्रियाज), आप की तिल्ली (स्पलीन),आप के गुर्दे (किडनी) और महिलाओं में गर्भाशय (यूटरस) की देखभाल करता है। सबसे महत्वपूर्ण कार्य इस चक्र का है स्थूल में आर्टिक प्लेक्सिस को प्रकट करना है, और पेट की मेद सेल्स को रूपांतरित करके मस्तिष्क की मेद
सेल्स को प्रतिस्थापित करना है। आखिरकार मस्तिष्क की मेद सेल्स को प्रतिस्थापित होना है, क्योंकि आप सोचते हैं, सोचते हैं, सोचते है, सोचते हैं और सोच, सोच के पागल हो जाते हैं। आप इतना सोचते हैं जैसे की आप के सोचने से दो सींग बाहर आ रहे हैं।
आप कह सकते हैं कि, 'मां मन बहुत महत्वपूर्ण है।' वास्तव में मन एक समस्या है। क्या आप नहीं जानते कि ये मन सीमित है? तर्कसंगतता सीमित है। आप को असीमित में जाना है। जब में हॉल में आई, हम को कार बाहर छोड़नी पड़ी। मन एक बिंदु तक जा सकता है और अगर आप उस के परे जाने का प्रयत्न करें तब आप सच में पागल हो जाते हैं। हम कार अंदर नहीं लाते। उसी प्रकार ये मन आप को असीमित तक नहीं ले जा सकता। वो एक सीमित चीज है। आपको मन के परे जाना है।
यह चक्र मेद सैल्स की आपूर्ति करने का अपना काम कर रहा है, और जब आप बहुत अधिक सोचते हैं तो आपके दूसरे विस्सेरा, दूसरे बड़े आंतरिक अंगों की देखभाल नहीं हो पाती। वो उपेक्षित हो जाते हैं, जिस के द्वारा जो व्यक्ति बहुत सोचता है, जो भविष्य में रहता है, जब बहुत ज्यादा योजनाएं बनाता है, फिर ऊपर से वो मदिरा का सेवन करता है मान लीजिए और ऊपर से अन्य चीजें करता है जैसे मादक पदार्थों का सेवन, और बहुत अधिक चिकनाई वाला भोजन करना और इसी तरह और भी, तो वो वास्तव में बेचारे यकृत को खात्मा कर देता है। और यकृत वो अंग है जो आप के शरीर के सारे विष को बाहर निकालता है, हर प्रकार के विष। यकृत खराब हो जाता है और आप को ये महसूस नहीं होता। सिर्फ गर्मी एकत्रित होने लगती है। आप को हमेशा उबकाई आने जैसे अनुभव होता है और आप इतने नाखुश महसूस करते हैं कि आप वर्तमान का सामना नहीं करना चाहते। आप भाग जाना चाहते है। आप बहुत खराब महसूस करते हैं, आप नहीं जानते कि अपने साथ क्या करना है। ये सब खराब यकृत से आता है।
फिर सिर्फ आप का यकृत ही नहीं आप का अग्नाशय भी खराब हो जाता है और आप डायबिटीज यानि मधुमेह नाम की बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं। उस के साथ आप कॉफी पीते हैं या अन्य चीजें लेते हैं जिससे कि यह बीमारी और भी बढ़ जाती है। जिस मात्र में आजकल लोग कॉफी पीते हैं, कभी कभी मुझे समझ नहीं आता। और यह कॉफी अग्नाशय को इस हद तक खराब कर सकती है, कि आपको अग्न्याशय की डायबिटीज से अधिक गंभीर बीमारी हो सकती है।
अग्नाशय से परे स्पलीन होता है। आधुनिक काल में स्प्लीन असली पीड़ित होता है। असली पीड़ित स्प्लीन है। स्प्लीन हमारे अंदर स्पीडोमीटर होता है। वो आप की गति को नियंत्रित करता है। जब आप भोजन कर रहे होते हैं, अचानक आप टीवी पर समाचार या अन्य चालू कर देते हैं, भयानक चीजें हो रही हैं। आपको इतना सदमा लगता है। आपात स्थिति बन जाती है। स्प्लीन पहले से ही पाचन के लिए आरबीसी (रेड ब्लड कॉर्पोसिल) बनाने में व्यस्त है और अचानक दूसरी आपात स्थिति आ जाती है। तीसरी आपात स्थिति आती है जिस प्रकार आप अपना नाश्ता खाते हैं। आधा सैंडविच मुख के अंदर, आधा बाहर कार के अंदर जाते हुए अपनी पत्नी से कहते, ये करो! वो करो! और फिर अंधाधुंध दौड़ में तेज गति से जाते हुए, जिसका अंत होता है एक बहुत पगलाए स्प्लीन में। स्प्लीन नहीं जानता कि इस दूरबीनी व्यवहार से कैसे निबटे। वो इतना पगला जाता है कि वो उत्तेजित कोशिकाएं बनाने लगता है और अंततः बहुत ही गंभीर बीमारी ब्लड कैंसर निर्मित करता है।
अभी हाल ही में किसी ने मुझ से एक सवाल पूछा, ' मां क्या ऐसा है कि बच्चों को ब्लड कैंसर हो जाता है?' मैंने कहा, 'अगर मैं आपको बताऊं तो आपको मुझसे नाराज नहीं होना चाहिए।' पर ये तब होता है जब हम अपने बच्चों के पीछे पड़े रहते हैं। बिचारे! वो छोटे बच्चे हैं और हम उन्हें अच्छा नागरिक बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
तो ये पगला स्प्लीन पूर्णत: अनियंत्रित हो जाता है। वो ऐसी रक्त कोशिकाएं का उत्पादन करने लगता है जो मैलिंगनेंट हो जाती हैं। वो अंधाधुंध, किसी भी समय निर्मित होती हैं और मैगलीजैंसी आरंभ हो जाती है तब एक कोशिका बहुत बड़ी और बड़ी और अनोखी हो जाती है।
कई बार हम भी मलिंगनैंट लोग हो जाते हैं। हम समाज में अनोखे होना चाहते हैं, सब को निगलते हुए, दूसरे लोगों पर अतिक्रमण करते हैं। इस प्रतिस्पर्धा में हम स्वयं के लिए सब कुछ पाना चाहते हैं, और जब तक हम बूढ़े होते हैं, हम पाते हैं कि हमारे हाथ और पैर कांप रहे हैं, हम ठीक से चल नहीं पा रहे या हम दिल का दौरा और स्ट्रोक जैसी बीमारियों से ग्रस्त हो चुके हैं।
अंधाधुंध दौड़ बहुत प्रतिस्पर्धात्मक होती है। किस बात की प्रतिस्पर्धा? हर किसी को दूसरों से संबंधित हो कर बढ़ने में सक्षम होना चाहिए। उदाहरण के लिए अगर आपकी नाक ऐसे बढ़ने लगे, आपके शरीर और चेहरे से कोई संबंध रखे बिना, आप के बाकी हिस्से के साथ क्या होने वाला है? अपने दम पर होना! मैं अपने दम पर हूं, और आप समाज में अन्य लोगों से, या दुनिया के अन्य हिस्सों से बिना किसी संबंध या सामंजस्य के अपने दम पर ही बढ़ने लगते हैं, तब आप मैलिगनेंट हो जाते हैं। आप सारा संतुलन खो देते हैं। आप नहीं जानते आप क्या कर रहे हैं। यही त्रासदी है कि जब ये हमारे साथ होता है, हम इतने अहंकार उन्मुख हैं कि हमें दर्द महसूस नहीं होता, जब हम ऐसी अवस्था में पहुंच जाते हैं कि अचानक एक व्यक्ति, जिसे अंग्रेजी में कहते हैं 'गागा' (बुढ़ापे के कारण सठिया हुआ) हो जाता है, अमरीकी अंग्रेजी में। आप पाते हैं कि वो बात नहीं कर सकते!
मैंने पेरिस में देखा, कुछ लोग, ज्यादा बूढ़े नहीं, मुझ से उम्र में छोटे, बस में चढ़े और वो ऊंची आवाज में बातें कर रहे थे, हर प्रकार के फ्रांसीसी शब्द, और मैंने पूंछा, 'वे क्या कर रहे हैं?' उन्होंने बताया, 'मां वो पिछली जंग की बातें कर रहे हैं।' मैने पूंछा, 'क्यों?' उन्होंने बताया, 'वे बस इस तरह बात करते चले जाते हैं। वे हो चुके है!' (एक सहज योगी की तरफ देख कर पूछते हुए) आप ने क्या बताया था कि वे 'आउट ऑफ द डेक' हैं। (श्री माताजी हंसते हुए) क्योंकि आप नर्क की ओर ऐसी दौड़ती हुई छलांग लगा रहे हैं, जिस से की तथाकथित उन्नति हमारे समाज को बहुत हास्यास्पद लोग बनना देगी, जो बहुत जल्दी घबरा जाते हैं, जो अपने सिर और गर्दन और सब कुछ फड़का रहे हैं, और उनके उनके बच्चे इतने आतताई हैं, कि ये समझना असंभव है कि वो ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं।
हमें समझना होगा कि हम विराट के अंग प्रत्यंग हैं। और जो कुछ भी बिना दूसरों के साथ सबंधित हुए किया जाता है, संसार के लिए जबरदस्त समस्याएं निर्मित कर सकता है, और ये निर्मित कर रहा है।
आधुनिक लोगों के लिए दूसरा चक्र बहुत महत्वपूर्ण है, जैसा मैने आप को बताया, क्योंकि जब आप बहुत ज्यादा सोचने भी लगते हैं, आप क्या करते हैं कि आप अपने दाएं पक्ष का इस्तेमाल करते हैं और बायां पक्ष जम जाता है। अपने सोचने की प्रक्रियाओं को बेहतर करके, भविष्य के बारे में बहुत अधिक सोचना और प्लानिंग करना, और बेशक बहुत सारी योजनाएं बेकार चली जाती हैं। हम सोचने में इतनी सारी शक्ति बर्बाद करते हैं, और हमें ज्ञात होता है कि अगर हमने इतना सोचा नहीं होता, हम इतने हताश नहीं होते। इस हद तक योजना बनाना, किसी भी तरह से मदद नहीं करता।
उदहारण के लिए मुझे इस हॉल में आना है और मैं रास्ता नहीं जानती। योजना बनाने का क्या लाभ? मुझे सिर्फ किसी से पूछना होगा किस रास्ते जाना है और सामना करना होगा जैसा वो है। मान लीजिए एक बीज को जड़ बनना है, क्या वो पहले से कोई योजना बनाता है? वो नहीं करता। वो क्या करता है कि वो सामना करता है। वो एक छोटी कोशिका है किंतु ये कितनी बुद्धिमान है। उसे ज्ञात है कि एक प्रकार का व्यवधान है, कि इस चट्टान से लड़ना का कोई लाभ नहीं, तो वो चारों तरफ जाती है, जिनका भेदन कर सके वो सब मुलायम स्थान ढूंढती है और खुद को मजबूती से बैठाती है समझदारी बुद्धिमानी से। वो उस चट्टान का इस्तेमाल करती है, उस चट्टान का इस्तेमाल करती है उस वृक्ष को सुदृढ़ करने में।
तो जब हम दूसरों को दबाने करने का प्रयत्न करते हैं, मेरा मतलब परिष्कृत, जितना ज्यादा परिष्कृत आप होते जाते हैं, उतना अधिक परिष्कृत ये अहंकार होता जाता है और आप उस परिष्कृत्य से बहुत प्रसन्न हो जाते हैं। आप सॉरी, येस और अन्य बातें कहते हैं, परंतु अंदर एक बड़ा श्रीमान अहंकार एक गुब्बारे की तरह विकसित हो रहा है, और वो आपके प्रतिअहंकार पर दबाव डालता है और वो नीचे आ जाता है। अब दोनों के बीच जो फासला है, और वो स्थान जहां उसे होना चाहिए था, वो नहीं है। अहंकार प्रति अहंकार पर दवाब डालता है, जब प्रति अहंकार अति विशाल अहंकार को देखना आरंभ करता है, और फिर ऐसा व्यक्ति इससे पलायन के रास्ते ढूंढता है। ऐसा व्यक्ति मदिरा का उपयोग शुरू कर देता है जो प्रति अहंकार को जन्म देता है, या फिर वो जीवन में मादक पदार्थों का सेवन और सभी प्रकार के पालयनवाद का सहारा लेता है अपने स्वयं के अहंकार से भागने के लिए, क्योंकि वह उसे बर्दाश्त नहीं कर पाता। अब डगमगाना आरंभ हो जाता है। अहंकार और प्रति अहंकार डगमगाना आरंभ कर देते हैं और इस तरह आपको ऐसे लोग मिलते हैं, जो पूरी तरह से भ्रमित हैं।
इसके अलावा, इस समस्या में और बढ़ोतरी होती है, क्योंकि आधुनिक काल वो काल है, कि इस भ्रम में अंतिम न्याय पहले से ही आरंभ हो चुका है। अपनी कुंडलिनी के जागरण के द्वारा ही आप स्वयं को आकेंगे और सुधार करेंगे और आप परमात्मा के राज्य में प्रवेश करेंगे। यह भ्रम वास्तव में मनुष्यों को ऐसे उन्मत्त और अनिश्चित युग में ले गए, कि सहज योग को इस धरा पर इन समस्याओं को हमेशा के लिए दूर करने के लिए उतरना पड़ा। आत्म साक्षात्कार पाने के उपरांत यह कितना उल्लेखनीय है, कि आप कुंडलिनी जागरण द्वारा स्वयं का संपूर्ण प्राप्त करते हैं, और देखते हैं की कितने सारे लोग रातों रात अनेक गलत चीजों को त्याग देते हैं।
जैसे मैं एक वृद्ध व्यक्ति को जानती हूं, बहुत वृद्ध व्यक्ति सिंगापुर में, जो बहुत प्रसिद्ध हैं, जो बहुत अमीर और बहुत जाने-माने व्यक्तित्व हैं। उन्होंने अपना आत्म साक्षात्कार प्राप्त किया और मुझे बताया कि, 'रातों रात मैने जुआ छोड़ दिया, मैंने मदिरा सेवन छोड़ दिया, मैंने रेसिंग छोड़ दी।'
ये भी पालयनवाद के भिन्न प्रकार हैं। अपने जीवनों से पलायन करने के तरीके हैं, क्योंकि हम अपने जीवनों से बहुत ऊबे हुए हैं। कल्पना कीजिए कि एक व्यक्ति कैद है। अगर वह एक अच्छी जगह पर कैद है तो उसे परेशान होने की जरूरत नहीं है। आखिरकार यह स्वयं का सामना करने के लिए बहुत अच्छा तरीका है, और यह सबसे सुंदरतम वस्तु है जो हमारे पास हैं। परंतु क्योंकि हम स्वयं से इतने अधिक भयभीत हैं, हम अकेला छोड़े जाना नहीं चाहते। हम सोचते हैं हम अकेले हैं। हम स्वयं से भागना चाहते हैं। हम चाहते हैं कोई और हो। कोई साथ में हो यह बेहतर होगा। और अगर कोई साथ में हो, तो भी हम उस का बराबरी से सामना नहीं करना चाहते। हम बीच में कोई चीज चाहते हैं, जैसे कि बीयर की बोतल या कुछ अन्य।
आत्म साक्षात्कार के उपरांत, आप पहली बार एक दूसरे का आनंद लेना आरंभ करते हैं। पहली बार आप दूसरे व्यक्ति के चैतन्य लहरियों का अनुभव करने लगते हैं, और आप वास्तव में उसके सौंदर्य का अनुभव करते हैं उस ठंडी चैतन्य लहरी द्वारा, जो उसके अस्तित्व से आ रही है। और ये आप सब के साथ घटित होना चाहिए। आप सब को यह प्राप्त करना चाहिए। यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि आप संपूर्ण साधक हैं। परंतु पहले आप को आत्म आकलन होना चाहिए। आपको ज्ञात होना चाहिए कि यहां आप स्वयं से खेल खेलने के लिए नही हैं। हर प्रकार के खेल उपलब्ध है, उद्योगों ने उपलब्ध कराएं हैं, उद्योग क्रांति ने उपलब्ध कराए हैं। आधुनिक सोचने वालों और पुस्तकों में यह उपलब्ध है, और ऊपर से भारत से गुरू आ गए हैं इस बाजार की मांग की आपूर्ति के लिए। तो तस्वीर पूरी है।
इस से आप को परेशान नही होना चाहिए क्योंकि सब नकल और झूठ के पीछे सत्य है। हजारों नकली फूलों के मध्य आपको ज्ञात होना चाहिए, कि एक असली गुलाब होना चाहिए। और इसी प्रकार सारे झूठ और भ्रम के पीछे सत्य है, जो बहुत ही सुंदर है स्वयं आपके अंदर, और जिसे आपको कुंडलिनी जागरण के द्वारा प्राप्त करना है।
अब संक्षेप में मैं आपको अन्य चक्रों के बारे में बताऊंगी। अगर आप पुस्तक पढें तो आप नाम और चीजों के बारे में जान जायेंगे, पर मैं आप को संक्षेप में बताऊंगी।
तीसरा चक्र हमारे खोज का चक्र है। ये चक्र है जिसके द्वारा हम खोजते हैं। वह नाभि चक्र है जिसके द्वारा एक अमीबा को भूख लगी, वह भोजन को खोज रहा था। इस भोजन को खोजते हुए वो प्राचीन हाथी और अन्य बड़े जानवरों की अवस्था तक पहुंचा, परंतु वे ऐसे भरी भरकम थे, कि वो खुद का रख रखाव नहीं कर पाए। तो फिर बुद्धिमान जानवर आ गए। उस में भी, उनमें से कुछ बहुत भयानक थे जैसी लोमड़ियां। फिर बहुत शक्तिशाली पशु आए, जिन में ज्यादा शारीरिक शक्ति थी और एक छोटा शरीर। इस तरह हम इस खोजने से एक हद तक उन्नत होते हैं, जब तक हम वास्तव में मनुष्य बन जाते हैं। और जब हम मनुष्य बन गए, हम ने संपत्ति जैसी चीजों की तलाश शुरू कर दी, अगर संपति नहीं तो फिर शक्ति की खोज आरंभ हुई राजनीति में, आर्थिक, सामाजिक कार्य में, सामाजिक चीजों और अन्तत: आत्मा में!
आत्मा ही सारी खोजों का समाधान है। बिना प्रकाश के आप इस संसार में कुछ भी नहीं देख सकते। मैं यहां अंदर बिना प्रकाश के आप को देख नहीं सकती। मेरे लिए, अधंकार में आप अँधेरे के सिवा कुछ नहीं हो। मैं देख नहीं सकती। मैं एक से दूसरे को संबंधित नहीं कर पाती। मुझे मालूम नहीं है, कि कौन यहां बैठे हैं और मुझे सुन रहे हैं। परंतु एक बार प्रकाश हो जाए, आप सब कुछ साफ देख सकते हैं। और ऐसा ही होता है! जब आप को अपना आत्म साक्षात्कार मिल जाता है, आप स्वयं के गुरु हो जाते हैं। यह खोज का अंत है। इस आलोकित खोज में ही, खोज के चारों ओर ही धीरे धीरे हमारे धर्म विकसित होते हैं, और अंत में हम मनुष्य बन जाते हैं। और मनुष्यों के लिए दस धर्म हैं, जो दस धर्मादेशों में वर्णित हैं।
जब मैंने दस धर्मादेशों के बारे में बात की, तो एक सज्जन बहुत क्रोधित हुए और बोले, 'तुम एक ईसाई हो, तुम एक ईसाई हो, तुम एक ईसाई हो!' (श्री माताजी हंसते हुए) परंतु दस धर्मादेश लिखे गए थे, जब यहूदी यहां थे। मूसा ईसाई नहीं थे, वह एक यहूदी थे, और यह यहूदी मुझ पर क्रोधित हो गया, क्योंकि मैं ईसाई थी।
मूसा, अब्राहम, कन्फ्यूशियस, सुकरात, मोहम्मद, नानक, जनक, लाओ त्से यह सभी आदि गुरु हैं, आदि गुरु का तत्व और आदि गुरु जो इस धरती पर अवतरित हुए हमें यह सिखाने के लिए कि अपने धर्म को कैसे रखें। उन्होंने हमेशा मदिरा और अन्य मादक पेय के विरुद्ध बात की। ईसा मसीह ने इस बारे में बात नहीं की, परंतु इसका अर्थ ये नहीं, कि जब उन्होंने पानी को वाइन में परिवर्तित किया था उन्होंने वाइन को सड़ाया था। आप वाइन को एक मिनट में सड़ा नहीं सकते। आप ये समझते हैं! वाइन एक बहुत आम शब्द है। आज भी आप पाएंगे कि वाइन का अर्थ अंगूर है। अंगूर की बेल भी वाइन कहलाती है। अंगूर का रस भी वाइन कहलाता है। आजकल फर्क रखने के लिए हम ने उसे अंगूर का रस कहना शुरू कर दिया है, परन्तु ये बहुत अधिक भ्रमित करने वाला है। लोगों ने अवश्य भारत में भी ये पचास वर्ष पहले करना आरंभ कर दिया होगा और विदेश का मैं नहीं जानती। आज भी बहुत से लोग इसे वाइन कहते हैं, यानि द्राक्षासव! भारतीय भाषा में भी ये वाइन कहलाती है। कोई भी अंगूर का रस वाइन कहलाता है।
तो बहुत सी अन्य बातें हैं, जो इन लोगों (अदिगुरुओं) ने हमें बताई, जो आप को नहीं करनी चाहिएं, अपने आप को मध्य में रखने के लिए। अब मैं हमारी गलतियों को दो वर्ग में विभाजित करूंगी। हमारी पहली गलती है विश्वास न करने की सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमारे हित की की देखभाल करेंगे। श्री कृष्ण ने बहुत साफ स्पष्ट कहा है, 'योगक्षेमं वहाम्यहम' अर्थात 'परमात्मा के साथ योग के उपरांत, मैं आपकी भलाई का ध्यान रखूंगा।' इसका अर्थ है कि आप को जुड़ा होना चाहिए। मान लीजिए कि मैं ऑस्ट्रेलिया की नागरिक नहीं हूं तो ऑस्ट्रेलिया की सरकार मेरी देखभाल क्यों करेगी? इसी प्रकार अगर आप परमात्मा की समुदाय के सदस्य नहीं हैं, अगर आप परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश नहीं कर चुके, अगर आप उनके राज्य के नागरिक नहीं हैं, तो आपके कल्याण का ध्यान रखना उनकी जिम्मेदारी नहीं है। मेरा मतलब है बेशक उन्होंने आप का निर्माण किया है, तो वे आप की देखभाल करते हैं। परंतु यह निश्चित नहीं है कि वे आप की देखभाल करेंगे।
लोग परमात्मा से इतना मांगते हैं। वह सोचते हैं कि वह पहले से ही उनसे जुड़े है। वह उन से ऐसा व्यवहार करते हैं, जैसे वो उन्हें कहीं भी ढूंढ सकते हैं पत्थर के नीचे। वे मांग करते जाते हैं, 'कृपया मेरे बेटे की देखभाल कीजिए। कृपया यह कर दीजिए।' सुबह से शाम तक प्रार्थना करते रहते हैं। मेरा मतलब ये तंग करना हुआ।
जब आप परमात्मा से जुड़े नहीं हैं, अगर आप ऐसे करते जाएंगे किसी मनुष्य के साथ भी, आप गिरफ्तार हो जाएंगे। और यही होता है कि हम कल्पना में रहते हैं, 'ओह मैं प्रार्थना करता रहता हूं और परमात्मा ने मुझे यह दिया है, और मैं यह करता रहता हूं।' परंतु हम ये नहीं देखते क्या हम इस के योग्य हैं? क्या हम आत्मा हैं? क्या हमने आत्मा बनने का प्रयत्न किया है? हमने सभी प्रकार की चीजें की हैं, आत्मा बनने के अलावा। जब आप आत्मा होते हैं तो आप वास्तव में आशीर्वादित होते हैं, वास्तव में आशिर्वादित होते हैं, ना सिर्फ अपनी शक्तियों से, परंतु आप अपने अस्तित्व के गुरु बन जाते हैं और अपनी स्वयं की शक्तियों को प्रकट करने लगते हैं।
ये खोज और उसके चारों ओर धर्म जिस की आदिगुरुओं द्वारा देखभाल की जाती है, यहां इस चक्र में है और उसके ऊपर विश्व की माता का चक्र है, जो हमें सुरक्षा देती हैं। ये जब खराब हो जाता है, सुरक्षा भाव खराब हो जाता है। विशेषकर महिलाओं में, जब उन्हे लगता है कि उनके पति बेपरवाह हैं, या फिर वे अन्य महिलाओं के साथ फ्लर्ट कर रहे है इत्यादि, तो ये चक्र खराब हो जाता है। जब ये चक्र खराब हो जाते हैं, वे ब्रेस्ट कैंसर जैसी बीमारी से ग्रस्त हो जाती हैं। ब्रेस्ट कैंसर उन समाजों में ज्यादा आम है जहां तलाक होते हैं। इस विषय पर मैंने एक भाषण दिया है, जो आप को सिडनी से मंगा लेना चाहिए, और आप इस के बारे में सब जान जायेंगे।
अब दाएं तरफ का हृदय जो आप यहां देख रहे हैं यहां, पिता का चक्र है और बायां मां का चक्र है। दाईं तरफ का हृदय चक्र पर पकड़ तब आती है जब आपने एक पिता के रूप में अपने कर्तव्य पूरे नहीं किए, या आपके पिता का देहांत बहुत पहले हो गया था और आपको सदमा लगा था तब भी ऐसा हो सकता है। एनोरेक्सिया और यह सारी बीमारियां इस प्रकार की घटना के कारण भी हो सकती हैं या दमे (अस्थमा) की बीमारी भी। दमा ज्यादातर इस चक्र के बिगड़ने के कारण होता है।
बाईं तरफ मां का चक्र है। हमने अपने माता पिता अपने जन्म से पहले चुने थे। हमने उन्हें चुना! हम काफी मूर्ख थे भयानक माता पिता चुनने के लिए, हमें अपनी गलती के लिए भुगतान करना होगा। एक जीवनकाल में भुगतान करना बेहतर है, जिस से अगली बार वो फिर से आप को नहीं मिलें। लेकिन हमें उनका आकलन नहीं करना है। अगर वे साधक नहीं हैं, तो उनके संग रहना बहुत कठिन होता है। मैं जानती हूं। ऐसे माता पिता के साथ रहना बहुत कठिन है, जो सुबह से शाम तक एक एक पाई गिनते रहते हैं, हर टीन को गिनते रहते हैं जो खाली हो चुकी है, हर ट्यूब को जो खाली हो चुका है। वो हर चीज़ को जमा करते हैं। वे इतने भौतिकवादी हैं और आप ऐसे लोगों को बिल्कुल सहन नहीं कर सकते। मैं समझ सकती हूं। आपकी पत्नी भी ऐसी हो सकती है, या पति भी ऐसे हो सकते हैं, बहुत-बहुत भौतिकवादी और आप तंग आ जायेंगे। वे हर चीज लिखते हैं। उन्हे हर लैंपपोस्ट पता होना चाहिए। वे हर चीज गिनते हैं।
आज जिस महिला ने मेरा इंटरव्यू लिया मुझ से पूंछा,' मां आप ने कितने लोगो को आत्म साक्षात्कार दिया है, और कितने लोगों को रोगमुक्त किया है?' मैंने कहा, 'बेहतर होगा पहले आप सूर्य से पूंछे कि उसने कितनी पत्तियों को हरा किया है, फिर मुझ से बात करिए।' (श्री माताजी समेत कई अन्य के हंसने का स्वर) मैंने कभी कोई हिसाब किताब नहीं लिखती, इंसानों की तो बात ही छोड़िए, पैसे का भी नहीं। मैं कभी नहीं लिखती। मेरे पास समय नहीं है, और मेरे पास ये समझ नहीं है कि हिसाब किताब कैसे लिखना है। अगले जीवन में शायद मैं आपके लिए अकाउंटेंट बनूं।
तो ये हमारे संग होता है, जब हम अपने माता-पिता के विरुद्ध हो जाते हैं। मैं यह नहीं कह रही कि आप पागल लोगों के संग निभाते जाएं। इसमें कोई लाभ नहीं है कि आप बैल को कहें कि आकर आपसे टकराए। ये सही है! लेकिन आपको उन का आकलन करने की जरूरत नहीं है। आप उन्हे छोड़ सकते हैं, दूर रहें और उन्हे अपनी जिंदगी में ना रखें। ये ठीक है! परंतु अगर आप उनमें दिलचस्पी ले रहे हैं, और सुबह से शाम तक उन से लड़ भी रहे हैं तब आप को हृदय चक्र पर पकड़ आती है। मैं कहूंगी कि इस मामले में भारतीय समझदार लोग हैं। वे बहुत समझदार हैं। वह अपने माता-पिता को ठीक से रखते हैं। और माता-पिता भी बहुत समझदार लोग होते हैं। वे अपने बच्चों से प्रेम करते हैं, और जो कुछ उनके पास है सब कुछ देते हैं और बच्चे वास्तव में माता-पिता से प्रेम करना शुरू कर देते हैं। वे मरते दम तक उनकी देखभाल करते हैं।
इसका परिणाम बेशक बहुत खराब है क्योंकि यहां सभी पश्चिमी देशों में माता-पिता अभी भी विवाह के मनोस्थिति में हैं, वे दुल्हन और दूल्हा हैं। वे माता-पिता बनने लायक कभी बड़े नहीं होते। आप पाएंगे कि एक अस्सी साल का बूढा भी एक अठारह साल की लड़की से शादी कर रहा होगा। मेरा मतलब यह चीज हर समय चलती रहती है। भगवान जाने वह किस प्रकार की बुद्धिमता है! जो कुछ भी हो रहा है उसके साथ बेचारे बच्चे नहीं जानते कि कौन से माता-पिता को वह चुने। और अंतिम न्याय आरंभ हो चुका है। अब क्या किया जाए? अपने आपको उनके स्थान पर रखिए और सोचिए। आप क्या करेंगे अगर आप के ऐसे पागल मां-बाप हों कि आज वे साथ हैं और कल वह तलाकशुदा हों? सड़कों पर वे एक दूसरे को चूमेंगे, गले लगाएंगे, हर तरह की बेहूदा हरकतें करेंगे। ये बहुत झेंपानेवाला भी है! फिर अगर आप उनसे पूंछे, 'आप कहां जा रहे हैं?' वे कहेंगे कि वे अपने तलाक के लिए जा रहे हैं। इस तरह की बेतुकी बातें होती जा रही हैं और इसी कारण ऐसे स्थानों पर बच्चे जन्म नहीं लेना चाहते।
इंग्लैंड, जर्मनी, स्विट्जरलैंड सब जगह जन्म दर माइनस मे है। विशेषकर जर्मनी में, पश्चिमी जर्मनी और पूर्वी जर्मनी में से परिवार एलाउंस के तहत लोगों को इतना ज्यादा पैसा दिया जाता है, की एक स्त्री अगर तीन बच्चे पैदा करती है, तो वो उनके प्रधान मंत्री से अधिक धन कमाती है। परंतु फिर भी स्त्रियां पैदा नहीं करना चाहतीं। वो मुक्त और स्वतन्त्र रहना चाहती हैं। वो माएं नहीं होना चाहतीं। परिणामस्वरूप बिचारे भारत को आज पैदा हुए सभी बच्चों को समायोजित करना पड़ता है जो जन्म लेना चाहते हैं, और हमें अत्यधिक आबादी के लिए दोष किया जाता है। अब क्या कर सकते हैं। हमें भार उठाना है!
ये आप की भी जिम्मेदारी है यह देखना, कि अगर आपके बच्चे पैदा नहीं कर रहे, तो जो बच्चे पैदा कर रहे हैं उनके लिए कम से कम थोड़ी दया रखें और थोड़ी समझ। उन्हे दोष ना दें।
सब मुझसे पूछते हैं, 'ओह आप की आबादी की समस्या का क्या?' मैं उनसे कहती हूं, कि अब हमारी आबादी के लिए कौन जिम्मेदार है? क्योंकि भारत देश में अगर किसी के चौदह बच्चे भी हैं, तो वह हर एक बच्चे से प्यार करते हैं। वे इतने अहंकार उन्मुख नहीं है, उनके हृदय बंद नहीं हैं, वो इतने भावनाहीन नहीं हैं। जिनके बच्चे नहीं हैं, वे सभी पवित्र स्थानों पर जाकर आशीर्वाद मांगते हैं कि उनके बच्चे हों। भारत में बच्चा पाना एक ऐसा आशीर्वाद है और बच्चा बहुत महत्वपूर्ण है।
लेकिन वो जो गलती कर रहे हैं, वो आप से उलट है। उन विकासशील देशों में गलती यह है कि वह यह विश्वास नहीं करते कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही वे हैं, जो आप की भलाई का ध्यान रखेंगे। वे अपने पिता की शक्ति पर विश्वास नहीं करते। उनकी देखभाल करने की अपने पिता की शक्ति पर विश्वास न करके, वे अपने पिता के विरुद्ध एक अपराध या पाप करते हैं। जब आप अपने पिता की क्षमता पर विश्वास नहीं करते, तो रिश्वत का लेनदेन, भ्रष्टाचार और हर प्रकार की चीजें चालू है, गैर कानूनी या वे सब चीज़ें। अभी भी भारत में, मैं यह कहूंगी कि आम आदमी बेईमान नहीं है। शायद हमारे सरकारी अफसर, नेता और व्यापारी हैं, परंतु भारत में आम आदमी बहुत इमानदार है। पर यही होता है।
दूसरी तरफ अगर एक भारतीय आपके घर आता है, सावधान रहिए वे किसी भी चीज के साथ भाग सकता है जो आप के घर में है। परंतु एक अमरीकी अगर आपके घर आता है, अपनी पत्नी के लिए सावधान रखिए। वह आपकी पत्नी और बेटी के साथ भाग सकता है। और अगर एक अंग्रेज आता है, क्योंकि वह एक विद्वान है, वह एक सूक्ष्म तरीके से ये करेगा। तो वह आपकी पत्नी को कविता पढ़ के सुनाएगा, और रात में आपको पता चलेगा कि आपकी पत्नी गायब है। यह तो बुनियादी है।
एक पत्नी जो इस तरह भाग जाती है गृहस्थी के लिए एक बुनियादी समस्या निर्मित करती है। जरा कल्पना कीजिए एक घर में जहां बच्चे हैं और पति है, रसोईघर और अन्य स्थान हैं। सब आराम से सो रहे हैं, और फिर तड़के सवेरे उन्हें पता चलता है के घर का मुख्य खंबा गायब है, और पूरा परिवार ढह जाता है।
बच्चों का क्या होगा? कोई नहीं सोचता। कोई नहीं समझता, या वे सोचते हैं कि वह प्रेम में हैं, तो उन्हे जाना चाहिए। पुरुष भी ऐसा ही करते हैं। मेरा मतलब है कि पुरुष और स्त्री में कोई फर्क नहीं है। परंतु यह मां के विरुद्ध पाप है। स्त्री को सम्माननीय और सम्मानित दोनों होना चाहिए।
हमारे अंदर ग्रहणी का स्थान बाएं हाथ पर नाभी पर है। और अगर एक गृहणी, गृहलक्षमी की देवी घर में उपस्थित नहीं हैं, जो सिर्फ एक स्त्री ही नहीं अपितु एक ग्रहणी है, तब हमारा स्प्लीन खराब हो जाता है। हम, हमारे बच्चे पगला जाते हैं! ये अनुशासनहीनता क्यों हैं?
आज किसी ने मुझ से पूंछा, 'ऐसे लोगों के साथ क्या होता है, जैसे वो आदमी जिस ने रीगन को मारने का प्रयास किया?' मैंने कहा, 'उसकी मां से पूंछों!' वह सुबह से शाम तक बच्चे की जिंदगी के पीछे पड़ी रहती होगी, और इसलिए वो दुर्व्यवहार कर रहा है, या फिर ये उसकी प्रतिक्रिया है जो भी उसके साथ हुआ है। यह जटिलताएं उत्पन्न होती हैं आप के परिवार में, घोंसले में, जो आप का घर है। आप को उस घोंसले में जीना है एक पिता की तरह, एक मां की तरह अपने बच्चों की देखभाल करते हुए। बच्चे मनुष्यों के लिए सारे विश्व में सब से अधिक महत्वपूर्ण हैं। राजनीति को भाड़ में जाने दो, और अर्थव्यवस्था को अपना स्वयं का रास्ता ढूंढने दो, परंतु बच्चों की देखभाल होनी चाहिए। ये आप का प्रथम कर्तव्य है।
परंतु भारत में हम दूसरे छोर तक चले जाते हैं, जब हम अपने बच्चों की देखभाल करना आरंभ देते हैं, आपने बच्चों के नाम पर हमें अपने देश को भी बेचने में कोई आपत्ति नहीं होती।
इस प्रकार हम दो चरम सीमाओं के साथ रहते हैं। मुझे लगता है की मां के विरुद्ध पाप और पिता के विरुद्ध पाप करते हैं। जब हम मां के खिलाफ पाप करते हैं ऑस्ट्रेलिया निवासी होने के नाते, जैसे अभी मैं भी एक ऑस्ट्रेलिया वासी हूं, आइए देखें कि हमारे साथ क्या होता है। हम स्वयं के द्वारा पूर्णत: भावनात्मक ब्लैकमेल होते हैं। हम खुद को यंत्रणा देते हैं। हम नकली धारणा के साथ रहते हैं। अगर एक पत्नी किसी अन्य पुरुष के साथ भाग जाना चाहती है, हम उसके लिए हनीमून का टिकट लाने की हद तक भी जायेंगे, क्योंकि हम बहुत अच्छे ध्यन रखने वाले पति हैं। वही बात पत्नी के साथ। अगर उससे पता चलता है कि पति दूसरी महिला में दिलचस्पी ले रहा है, उसे ईर्षा नहीं होनी चाहिए।
सहज योग में यह बहुत सराहनीय नहीं है। पति को एक पति की तरह व्यवहार करना चाहिए। उसे अपनी पत्नी से घर चलवाना चाहिए। और महिला को एक महिला होना ही चाहिए। उसे अवश्य देखना चाहिए की बच्चे को कोई खतरा न हो। आप को कोई हक नहीं इस प्रकार किसी को चोट पहुंचाने का। हम नहीं जानते हम कितनी चोट पहुंचाते हैं। हम अपनी पत्नियों और पतियों को कैंसर का रोग देते है। हम हर प्रकार की भयानक बीमारियों और मानसिक यंत्रणा के कारण बनते हैं। हम उन्हें पागल बना देते हैं, हमारी भावनाओं को समझने की अपनी पागल, सनकी, और बहुत सतही समझ द्वारा।
एक आदमी अन्य स्त्री के पास जाना आरंभ कर देता है। फिर वो किसी अन्य स्त्री के पास जाता है, फिर दस स्त्रियों के पास। फिर दस आदमी दस स्त्रियों के पास जाते हैं और अंत में पागलखाने या अनाथाश्रम पहुंच जाते हैं। मैंने देखा है, इंग्लैंड में हमारे पड़ोसी थे जिनका बहुत बड़ा घर था। वो बहुत बूढ़े थे, जब उनकी मृत्यु हुई तो आप को आश्चर्य होगा कि वे लोग एक महीने तक उनका शरीर नहीं ढूंढ पाए, क्योंकि कोई परिवार की भावना नहीं थी, कुछ भी नहीं। एक चूहा भी उस घर में प्रवेश नहीं करता था। क्या आप कल्पना कर सकते हैं? तो यह हुआ है हमारी सोच में, 'मैं असल हूँ, मैं व्यक्तिवादी हूं, मैं विशिष्ट हूं!' अगर आप वास्तव में व्यक्तिवादी हैं, अगर व्यक्तिगत रूप से आप वास्तव में परिपक्व हैं, फिर आप सही रूप से जानते है एकता का महत्व। आप समझते हैं कि आप संपूर्ण का सहारा हैं, क्योंकि आप इतने परिपक्व हैं।
कोई आश्चर्य नहीं कि हमारे बच्चे परिपक्व नहीं हो रहे हैं, कि वे इस तरीके से व्यवहार कर रहे हैं। हम जिम्मेदार हैं। हमें स्वीकार करना चाहिए, कि हमारे अनुकूलता या अन्य बकवास के बारे में विचार, भारत में हमारे ऐसे विचार नहीं हैं। भारत में हम बहुत आराम में हैं और हम बिल्कुल ठीक बच्चे पैदा कर रहे हैं। हमें कोई समस्याएं नहीं हैं। आप क्यों इन छिछले, सनकी विचारों के पीछे भागते हैं?
आप उत्तरदाई माने जायेंगे उन सभी भयानक बीमारियों के लिए जो पुरुषों और स्त्रियों को हैं, और उन सभी बच्चों के लिए जो कष्ट उठाएंगे। अगर आप परोपकार करना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि आप उसे घर से आरंभ करें। बेहतर होगा कि आप अपनी पत्नी और अपने पति के प्रति परोपकारी बनें। अपने बच्चों के प्रति परोपकारी बनें। प्यार में पड़ने की अवधारणा के आगे मत गिरना। आप वास्तव में गिरेंगे और दूसरों को भी गिराएंगे। यह एक अवधारणा है, सिर्फ एक अवधारणा। मेरे खयाल से इनमें से कुछ भयानक लोगों ने आप को यह विचार दिया होगा। अगर आप वाकई प्यार में पड़ते हैं, तो आप कैसे उठ कर किसी और से विवाह कर सकते हैं? आप गिरते हैं और किसी और से विवाह कर लेते, फिर दोबारा आप किसी अन्य से विवाह के लिए तैयार हो जाते हैं। आप एक व्यक्ति का हाथ पकड़े है जो आप का तथाकथित प्रियतम है, और किसी और को देख रहे हैं। ये अवधारणा बिलकुल गलत है। आप को प्रेम में विकसित होना है।
जैसे आप का अपना बच्चा है, वैसे ही आप का अपना साथी। एक रथ के दो हिस्से होते हैं। एक बाया है और एक दायां है। वे कम ज्यादा नहीं हैं, वे बराबर हैं। लेकिन वे समान नहीं हैं। उनकी अपनी भूमिका है। और महिलाओं को एक मां होने के लिए अपनी भूमिका हिम्मत से निभानी होगी।
जैसे मैं हमेशा कहती हूं, 'मेरी ओर देखिए! मैं एक मां हूं और किसी तरह नहीं, किसी भी तरह से मैं सोच नहीं सकती की मैं इस से बेहतर भी हो सकती हूं। ये होने से बेहतर मैं कुछ नहीं सोच सकती।' अब अगर मैं सोचना आरंभ कर दूं, 'हे ईश्वर मैं मां हूं, यह ठीक है परंतु मुझे गाड़ी चलाना आना चाहिए।' तब मैं खत्म! 'मुझे बस चलानी आनी चाहिए, मुझे रेलगाड़ी चलानी आनी चाहिए।' क्या आवश्यकता है?
मैंने एक फोटोग्राफर को देखा जो मुझ से मिलने आया था। वह मेरी तस्वीरें लेने वाला था और उसके हाथ पूरे छालों से भरे हुए थे। मैंने कहा, 'मुझे पहले तुम्हारे छाले ठीक करने दो। तुम मेरे फोटो कैसे खींचोगे? तुम अपनी फोटोग्राफी के साथ क्या करते रहे हो?' वो बोला,' ये तो मैं वन में गया था और मैंने वहां कुछ वृक्ष काटे।' मैंने कहा, ' किस लिए? तुम एक फोटोग्राफर हो। तुम्हारे हाथ बहुत कोमल और निपुण हैं। तुम्हें अपनी उंगलियों की निपुणता को क्यों खत्म करना चाहते हो? उसने कहा, 'नहीं! की हमें और चीजें भी करना चाहिएं!' मैंने कहा, 'तुम क्यों करो? नाक आंखों का कार्य नहीं करती, और आंखें कानों का काम नहीं करतीं। तुम क्यों करो? तुम्हारे हाथ सब बर्बाद हो गए हैं!'
और यही बात है! हम को ऐसा लगता है कि पुरुष महान हैं तो हम पुरुषों जैसा कार्य करें। पुरुष सोचते हैं कि स्त्रियां ऐसी क्यों हों? आप साथी हैं, शाश्वत साथी! आप एक रथ के दो सुंदर पहिए हैं। इसे आपके भीतर विकसित और परिपक्व होना है।
और जब ये चक्र खराब हो जाता है, आप को इस चक्र संबंधित समस्याएं हो जाती हैं, दमा, टीबी और स्तन संबंधी समस्याएं। पुरुषों को दमा हो जाता है, बहुत गंभीर दमा, अन्य फेफड़े की समस्याएं और अंतत: लंग कैंसर विकसित हो सकता है।
जब आप अपने दाहिने हाथ के पक्ष से बहुत मेहनत करते हैं आप अहंकार उन्मुख होते हैं, आप का अहंकार बहुत अधिक विकसित हो जाता है। फिर आप की बाईं ओर उपेक्षित हो जाती है और आप भावनाहीन हो जाते हैं। समय आने पर आपका दिल एक संकेत देता है और आप को दिल का दौरा पड़ता है। जब आप बहुत ज्यादा कार्य करते हैं तो आप शायद दिल के दौरे से बच सकते हैं पर आपको शायद मस्तिष्क का पक्षाघात हो सकता है। हम खुद को नष्ट करने पर आमादा हैं। विनाश अंदर से आयेगा बाहर से नहीं! कुछ लोग आपको आघात देने की कोशिश करते हैं, कि ऐसा होगा या सूर्य ऐसा कर रहा हैं। ये कुछ नहीं है! ये सब आप के अंदर है। विनाश आरंभ हो चुका है। आप इस का सामना कर रहे हैं, क्यों कि आप इसे स्वीकार नहीं कर सकते। आप को ये स्वीकार करना होगा कि ये एक चुनौती है, कि मैं अपने आप को मूर्खतापूर्ण और बेवकूफी के विचारों से नष्ट होने की अनुमति नहीं दूंगा जो चारों और चल रहे हैं। और फिर आप अपनी आत्म सम्मान और वैभव से खुद ही आश्चर्यचकित होंगे। आत्म साक्षात्कार के बाद आप समृद्ध होंगे, परंतु बिना आत्म साक्षात्कार के, मै कह नहीं सकती यह एक व्याख्यान है, एक व्याख्यान बन जाता है या बस एक ब्रेनवॉश!
यह खूबसूरत अनुभव आप के साथ होना चाहिए और एक बार आप स्वयं के अंदर ये सौंदर्य पायेंगे, मैं ने लोगों को रातों रात बदलते देखा है। रातों-रात ऐसा होता है और मुझे यकीन है, कि यह आज रात आपके साथ होगा।
आज मैने आप के साथ इस चक्र के बारे में बात की है, और बाद में मैं आप से दो अन्य चक्रों के बारे में बात करूंगी, जो यहां है और यहां है और आत्म साक्षात्कार जो लिंबिक एरिया से प्राप्त होता है फॉन्टनेल मेंब्रेन में, जिसे संस्कृत भाषा में ब्रह्मरंध कहते हैं।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद!
परमात्मा आप सभी को आशिर्वदित करें।
अगर आपके कोई सवाल हैं, तो कृपया मुझसे पूछ लीजिए। परंतु प्रश्न इस तरह के हों जो सहायक हों, किसी प्रकार के झगड़े जैसे ना हों। मैं यहां आपसे झगड़ने नहीं आई हूं। अगर आप अपना आत्म साक्षात्कार नहीं चाहते, तो मैं आपको बाध्य नहीं करूंगी। कृपया किसी अन्य संगठन या किसी अन्य गुरु के लिए याचना न करें, क्योंकि मुझे उस मे कोई दिलचस्पी नहीं है। मुझे केवल आप में दिलचस्पी है। मुझे आप में वह चमक दिखाई दे रही है, इसलिए मुझे सिर्फ आप में दिलचस्पी है। मुझे दूसरों की परवाह नहीं है। तो दूसरे विचार लाने का प्रयत्न न करें, कि इस गुरु ने यह कहा है, या इसने ये कहा है और ये पुस्तक में है।
हलवे का स्वाद ही उस का सबूत है, यानी कि आपको आपका आत्म साक्षात्कार प्राप्त नहीं हुआ है। अगर आपको प्राप्त हुआ है, तो अब बाहर जा सकते हैं। अगर आप आश्वस्त हैं कि आपको प्राप्त हो चुका है, तो मैं आप पर इसे बाध्य नहीं करना चाहती। किसी बारे में कोई झगड़ा नहीं है। कोई इलेक्शन नहीं चल रहा है। कुछ नहीं! आप मुझे कुछ नहीं दे सकते। कोई शॉपिंग नहीं है। ये एक मंदिर है और आप आशीर्वाद पाने के लिए यहां आए हैं। ठीक है? अब आप प्रश्न पूछ सकते हैं। बहुत बहुत धन्यवाद!
डाक्टर वॉरेन: कोई प्रश्न? इस तरह के मौके पर सामान्यतः ऐसा होता है कि, जब श्री माताजी बोल रही हैं, तो चैतन्य लहरियो से जो वो प्रसारित कर रही हैं, आप मौन में प्रवेश कर जाते हैं, आप निर्विचार हो जाते हैं। आप जो भी तर्कसंगत बातें पूछना चाहते हैं, जो वास्तव में हमारे अहंकार से आती हैं, बस चुपचाप बैठ जाती हैं। शोर वाला रेडियो बंद हो जाता है। और यही आत्म साक्षात्कार के समय भी होता है। आप मौन में प्रवेश करते हैं।
श्री माताजी: भयभीत होने की कोई भी आवश्यकता नहीं है। कुंडलिनी इस बिंदु को पार करती है (श्री माताजी अपनी उंगली माथे पर रखती हैं) और आप निर्विचार समाधि का अनुभव करते हैं। ये पहला कदम है। आप सचेत है, पर आप निर्विचार होते हैं।
डॉक्टर वॉरेन: (प्रश्न दोहराते हुए) अपने आत्म साक्षात्कार को काफी समय देने को अधिकांश लोग आधुनिक जीवन में बहुत अधिक समय लेने वाला (टाइम कॉन्सुमिंग) मानते हैं। परम पूज्य की क्या राय है?
श्री माताजी: पहले तो आप आत्म साक्षात्कारी हैं या नहीं? आप को आत्म साक्षात्कार मिल गया है? आप को मिल गया है! अब अगर आपको अपना आत्म साक्षात्कार मिल गया है, तो वास्तव मे आप ध्यान की अवस्था में हैं। आप ध्यान में हैं। अब ध्यान करने के लिए, जैसे कहा जाता है, जबकि करने जैसा कुछ नहीं है, परंतु सफाई की आवश्यकता है, क्योंकि प्रारंभ में आपको नजर रखनी होगी, किस प्रकार चेतन लहरी आ रही हैं। क्या सही बहाव है या नहीं है? किन चक्रों में आपके पकड़ आ रही है? इस के अलावा आप की जीवन शैली भी बदल जाती है, क्यों कि आप उन चीजों से खुश नहीं होते, जो आप को आत्मा का असली आनंद नहीं देतीं। और आत्मा का महानतम आनंद है दूसरों को आलोकित करना। अगर आप दूसरों को प्रकाश नहीं देंगे, तो आप कभी भी संतुष्ट नहीं होंगे। आप शायद बेहतर अनुभव करेंगे क्योंकि आप पार हो गए हैं, परंतु उसकी पूर्णता या आप के अस्तित्व की प्रगति नहीं होती, जब तक आप सामूहिक स्थानों पर नहीं आते।
सबसे बढ़िया ये होगा, कि आप जहां कहीं भी हैं, एक छोटा समूह बना लें और हर सप्ताहंत या किसी अन्य समय उनसे वहां मिलें और ध्यान करें। ये बहुत अच्छा विचार रहेगा। फिर आप दूसरे व्यक्ति की मधुरता और सौंदर्य का अनुभव करने लगते हैं। आप उसे स्पष्ट देखने लगते हैं, और उसका आनंद लेने लगते हैं। आप इतना समय अन्य चीजों पर नहीं लगाते। जब आप इस में लग जाते हैं, और उसका आनंद लेते हैं, आप भी विकसित होते हैं।
एक स्त्री जिसे आत्म साक्षात्कार मिला, उसने मुझे बताया कि वो बहुत भिन्न हो गई थी। उसे सब चीजों के नाम और इस की, उस की गुणवत्ता भी याद नहीं थी, जो उसकी थीं। वो एक सेल्स गर्ल या ऐसी ही कुछ थी। उसका अपना व्यापार था, और वो चीज़ें बेचा करती थी। 'मुझे वो सब याद नहीं और मैं इतनी सतर्क नहीं हूं।' मैंने कहा, 'क्या हो गया?' वो बोली, ' परंतु मैं बहुत खुश हूं, और आनंदित हूं और चीजें की बिक्री बेहतर हो गई है। मुझे बहुत ज्यादा मुनाफा हो रहा है।' ये सत्य है! यह बहुतों के साथ हुआ है। ये परमात्मा का आशीर्वाद है। जब मैं यह कहती हूं, मैं झूठ नहीं कह रही हूं। आपको स्वयं ही देखना है, किस प्रकार ये आशीर्वाद कार्यान्वित होते हैं। और फिर आप सिर्फ अपने आशीर्वाद एक-एक करके गिनेंगे।
डॉक्टर वॉरेन: ध्यान का अभ्यास बहुत ही सरल है। हम इसके बारे में आपको बाद में बताएंगे। बहुत सरल! बात यह है, जैसे माताजी कहती हैं, कि ध्यान में होना है हर समय। और यही हमको विकसित करना है।
श्री माताजी: क्या कोई अन्य सवाल है?
डॉक्टर वॉरेन: कोई अन्य सवाल? फिर माता जी आपको अब उसका अनुभव दे सकती हैं। मेरी सलाह है कि आप अपने जूते उतार लें अपने पैर जमीन पर रखने के लिए, और अपने हाथ बाहर की ओर करें, आराम से आपकी गोद में रखते हुए। परंतु सबसे अधिक मन को ग्रहणशील स्तिथि में रहें।
श्री माताजी: (किसी को संबोधित करते हुए)
वे हैं! वे बहुत अधिक ऐसी हैं।
डॉक्टर वॉरेन: बस मां से मांग लीजिए!
बस मां से अपना आत्म साक्षात्कार मांगिए। ये सहज है तो नम्रता से, अन्य कुछ नही बस इसे मांगिए। वो एक मां की तरह यहां है, आप को उपहार देने के लिए।
श्री माताजी: आप बस आपने दोनो हाथ मेरी ओर करिए, जैसे आप कुछ मांग रहे हैं। अब आंखें बंद कीजिए। आपको अपनी आंखें बंद करनी है, क्योंकि जब कुंडलिनी आज्ञा चक्र से ऊपर उठती है, पुतलियों का फैलाव होता है। तो बेहतर होगा आप अपनी आंखें बंद कर लें।
(श्री माताजी डॉक्टर वॉरेन से) क्या आप वो लाइट बंद कर सकते हैं।
(डॉक्टर वॉरेन एक सहज योगी से) क्या आप लाइट को बंद कर सकते हैं? लेकिन आप बस उसे बंद कर सकते हैं।
श्री माताजी: ये यहां! अब बेहतर है! बस अपने दोनो हाथ मेरी तरफ करें, और अपनी आंखें बंद कर लें। मुझे नहीं लगता इन्हे प्राप्त हुआ है।
(श्री माताजी साधक से) क्या आप ने पहले कार्यक्रम में भाग लिया है?
सहज योगी: क्या बात है?
श्री माताजी: इनके लिवर में पकड़ है। (साधक से) अपना बांया हाथ लीवर पर रखिए। आपको प्राप्त हो गया है। क्या आप अब ठंडी हवा का अनुभव कर रहे हैं? या आप को गर्म हवा महसूस हो रही है? अगर वह गर्म है, तो अपना बाया हाथ आप मेरी तरफ इस तरह रखें और दायां हाथ लिवर पर। लिवर यहां है।
डॉक्टर वॉरेन: बायां हाथ लीवर पर!
श्री माताजी: मुझे क्षमा करें! बायां हाथ लिवर पर। दायां हाथ मेरी तरफ और बायां हाथ लिवर पर। लिवर वहां है जहां वो आप को दिखा रहे हैं, और हाथ ऐसा होना चाहिए, मेरी तरफ, इस प्रकार। थोड़ा नीचे, वो पसली के नीचे है। आप हाथ घुमा का देखिए। शायद आप उसे पा लेंगे।
डॉक्टर वॉरेन: (श्री माताजी से) लेफ्ट हार्ट और राइट स्वाधिष्ठान, थोड़ी सी राइट नाभी भी!
श्री माताजी: मैं प्रार्थना करूंगी आप से कि लोगों को ध्यान में डिस्टर्ब ना करें। अगर आप जाना चाहते हैं, तो आपको पहले चले जाना चाहिए था। यह एक और प्रकार की आक्रामकता है जो आप देख रहे हैं। मेरा मतलब है कि कोई भी इन महिलाओं को प्रताड़ित नहीं कर रहा था, लेकिन यह बस सभी लोगों को परेशान करने के लिए हैं। ध्यान के दौरान हॉल छोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है, तो आप को पहले चले जाना चाहिए। दूसरों का खयाल रखना चाहिए, है ना?
(श्री माताजी साधक से): अब आप अपना बायां हाथ मेरी तरफ रख सकते हैं, और दायां हाथ अपने हृदय पर रखिए। अब ये उलट करना है। बायां हाथ मेरी तरफ और दायां हाथ हृदय पर। अब कृपया अपनी आंखें बंद कर लीजिए। अब अपने हृदय में आप सवाल पूछ सकते हैं,'मां क्या मैं आत्मा हूं?' अपने मन में यह सवाल पूछिए। यह सवाल दोहराते जाइए। अब कहिए, 'मां कृपया मुझे मेरा आत्म साक्षात्कार दीजिए। कृपया मुझे मेरा आत्म साक्षात्कार दीजिए।' आपको मांगना है, 'मां में एक साधक हूं। कृपया मुझे मेरा आत्म साक्षात्कार दीजिए।'
(श्री माताजी माइक में फूंकती हैं)
डॉक्टर वॉरेन: ये अच्छा है। थोड़ा सा लेफ्ट हार्ट अभी भी है।
श्री माताजी: आपको कहना चाहिए, 'मां अगर मैंने अपनी साधना में या जो कुछ भी अन्य मैंने किया है, उसमें कोई त्रुटि की हो, तो कृपया मुझे क्षमा कर दीजिए।' आप को परमात्मा से क्षमा मांगनी है। 'कृपया मुझे क्षमा कर दीजिए क्योंकि आप प्रेम, करुणा और क्षमा के सागर हैं। तो हे प्रभु! कृपया मुझे क्षमा कर दीजिए, अगर मैंने कोई भी गलतियां की हों।'
अब जब आप यह कह रहे हैं, तो अपने अंदर कोई दोषी भाव उत्पन्न ना करें, क्योंकि यह सामान्यतः होता है। बस ये कहना कि मैं दोषी नहीं। कोई दोषी भाव न विकसित करें क्योंकि एक बार आप कहें, कृपया मुझे क्षमा करें, आप को क्षमा कर दिया गया। तो आप के अंदर कोई दोषी भाव नहीं होना चाहिए, कि मैंने ये गलत किया वो गलत किया। इसे तीन बार कहें, बहुत नम्रता से कहें कि, 'अगर मैने गलतियां की हैं, या मैने स्वयं को नष्ट करने का प्रयास किया हो, तो हे प्रभु मुझे क्षमा कर दीजिए।' अब कोई भी अपराध बोध ना रखें। वास्तव में आप को कहना चाहिए ' मैं दोषी नहीं हूं!' इसे तीन बार कहिए स्पष्ट कहिए कि मैं दोषी नहीं हूं, क्योंकि ईसा मसीह ने स्वयं को आप के पापों और कर्मो के लिए सूली पे चढ़ा लिया, जिस के बारे में आप को कल बताऊंगी। तो आप सिर्फ कहें कि, ' मैं दोषी नहीं हूं।' तीन बार कहें! यह आपकी बहुत अधिक सहायता करेगा। आप अनावश्यक रूप से स्वयं का विश्लेषण कर रहे हैं, स्वयं की आलोचना कर रहे हैं और खुद को दोषी बता रहे हैं।
अगर आप में कोई भी कंपन हो रहा है, तो आप आंखें खोल लीजिए। आप को कांपना नहीं चाहिए। अगर आप कांप रहे हैं, इस का अर्थ है कोई समस्या है।
अब आप अपने दोनों हाथ मेरी तरफ करें। ठंडी हवा का अनुभव आने लगा है! यह देखिए! यह बहुत सूक्ष्म चीज है, बहुत सूक्ष्म! हमारा चित्त स्थूल पर है, और ठंडी हवा का अनुभव जो होली घोस्ट की ठंडी हवा है, आपको इसे अपने हाथों पर अनुभव करना है।
(श्री माताजी बार-बार माइक्रोफोन में फूँकती हैं)
फिर से कहिए, ' मैं दोषी नहीं हूं।' क्या आप को ठंडी हवा आ रही है हाथों में? अपनी आँखें बंद करके ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करें, अपनी उंगलियों ध्यान केंद्रित करते हुए। देखिए कि क्या कोई ठंडी हवा आ रही है, और अगर नहीं आ रही तो आप सबको क्षमा कर दीजिए। सबसे पहले आप दूसरों को क्षमा कर दीजिए और क्षमा करते जाइए बार-बार और फिर कहिए, 'मां मुझे मेरा आत्म साक्षातकार दीजिए।' आपको क्षमा करना चाहिए। आपको दूसरों को क्षमा कर देना चाहिए। यह बहुत महत्वपूर्ण है। क्षमा ना करके आप स्वयं को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं, और स्वयं को बर्बाद कर रहे हैं। जिस व्यक्ति को क्षमा नहीं कर पा रहे हैं, उसे तो कुछ नहीं हो रहा। तो बस कहिए, ' मैंने क्षमा किया, मैंने क्षमा किया, मेरे क्षमा किया!' अब अपना आत्म साक्षात्कार मांगिए। 'मां मुझे मेरा आत्म साक्षात्कार दीजिए।' (कुछ समय उपरांत) ठीक है! यह बढ़िया है!
डॉक्टर वॉरेन: बहुत ठंडा!
श्री माताजी: बस खुद का आनंद लें! आनंद लें! मजे करिए! अपनी आंखें बंद रखें। सोचिए मत! कृपया सोचिए मत! आराम करें और आनंद लें! अपने हाथ अपने पैरों पर रखें और आनंद लें! अपने हाथ गोद में रख सकते हैं। ठीक है!
डॉक्टर वॉरेन: बहुत अच्छा! अच्छा संतुलन है!
श्री माताजी: आप सब जो ठंडी हवा महसूस कर रहे हैं, अपने हाथ उठाइए। दोनो हाथ! कृपया उन्हें ऊंचा उठाइए! दोनों हाथ जिन्हें ठंडी हवा महसूस हो रही है। बहुत बढ़िया! क्या बात है! जिन्हें ठंडी हवा महसूस नहीं हो रही है, वह यहां मौजूद सहज योगियों से सहायता ले सकते हैं। कृपया अपने हाथ नीचे कर लीजिए। बहुत-बहुत धन्यवाद!
हम देखना चाहते थे कि मेलबर्न में ये कैसा कार्यान्वित होता है, और मैं सोमवार की शाम यहां वापस आना चाहूंगी। मैं सिडनी जा रही हूं और हम यहां सोमवार शाम को वापस आएंगे, यही समय, यही स्थान बिल्कुल, आप को अन्य दो चक्रों के बारे में बताने के लिए।
जिन लोगों को आत्म साक्षात्कार प्राप्त नहीं हुआ है, उनको सहयोगियों से बात करनी चाहिए। सारे सहज योगी कृपया यहां आकर खड़े हो जाएं। इनसे बात करिए और इन से सहायता लीजिए। यह थोड़ी देर में आ सकते हैं। आइए! ये आपके जैसे ही दिखते हैं, परंतु उन्हें सामूहिक चेतना प्राप्त है, और वह कुंडलिनी के बारे में सब कुछ जानते हैं। यह वह लोग हैं जो यहां हैं, जिनसे आप बात कर सकते हैं, वार्तालाप कर सकते हैं, और पूछ सकते हैं, अगर आपको ठंडी हवा महसूस नहीं हुई है।
अगर आप को मिल गई है, तो उस के बारे में सोचिए मत और आज रात आप उसे कार्यान्वित करें।
कृपया आप आइए और इन लोगों से बात करिए और आप कुंडलिनी को बेहतर समझ पाएंगे। यह लोग ऑस्ट्रेलिया निवासी हैं, और यह ऑस्ट्रेलिया के लोगों की समस्याओं को जानते हैं, और इन्होंने मेरी अनुपस्थिति में लोगों को आत्म साक्षात्कार दिया है।
सिर्फ वॉरेन और टेरेंस दोनो भारत से आए हैं, और इन्होंने उन्हे आत्म साक्षात्कार दिया है। तो बस आप इन से बातचीत कीजिए और अगर आप को कोई समस्याएं हैं, तो इन्हे बताइए। इन्हें अपने पते दे दीजिए, और सोमवार को मैं यहां होंगी, तो अधिक मित्रों, अधिक संबंधियों और अधिक लोगों को भी लेकर आइए, और उन्हे उनका आत्म साक्षात्कार दिलवाइए।
आप सब का बहुत-बहुत धन्यवाद! मैं आप सब से मिलने की आशा करती हूं सोमवार को जब मैं आपको दो अन्य चक्रों, यानी श्री कृष्ण और ईसा मसीह के, बारे में बताऊंगी।
परमात्मा आपको आशीर्वादीत करें!
इस किताब को पढ़े और जाने कि क्या करना है।
डाक्टर वॉरेन: दरवाजे के पास एक बड़ी पुस्तक है। हम इसे एक बहुत बड़ा सौभाग्य समझेंगे, अगर आप उस किताब पर बस अपने नाम और पते के साथ हस्ताक्षर कर दें क्योंकि यह वास्तव में उन लोगों का जन्मदिन है जिन्हें आज आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ है, आपका दूसरा जन्म!
यहां मेलबॉर्न में एक हमारा संपर्क पता है, जो हम उन लोगों को देंगे जो इसे तत्परता से विकसित करना चाहते हैं, और इसके बारे में और अधिक जानना चाहते हैं, लेकिन अभी के लिए बस इसमें स्थिर हो जाइए! किताब के पीछे पढ़िए जहां समझाया गया है की ध्यान कैसे करना है। ये बहुत सरल है! लेकिन किसी भी चीज़ से अधिक अपनी चैतन्य लहरी को स्थिर करिए, अपना आत्म साक्षात्कार स्थिर कीजिए, और सोमवार शाम को आइए।
माताजी आप को एक कदम आगे ले जाएंगी, साथ में यहां ये चक्र, यहां और यहां अधिक दृढ़ता से स्थिर हो जायेंगे। तो उम्मीद है कि आपसे फिर मिलेंगे!
जिन्हें ठंडी हवा महसूस नहीं हुई या जिन्हें कोई खास समस्या है, बस यहां रुक जाएं और हम आप की सहायता करेंगे।