How realisation should be allowed to develop

How realisation should be allowed to develop 1979-10-15

Location
Talk duration
90'
Category
Public Program
Spoken Language
English

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15 अक्टूबर 1979

Public Program

Caxton Hall, London (England)

Talk Language: English | Translation (English to Hindi) - Draft

बोध को कैसे विकसित होने दिया जाना चाहिए

कैक्सटन हॉल, लंदन, इंग्लैंड। 15 अक्टूबर 1979।

आप में से अधिकांश यहाँ सहजयोगी हैं।

अब जिन लोगों को साक्षात्कार मिल गया है, जिन्होंने स्पंदनों को महसूस किया है, उन्हें पता होना चाहिए कि वे अब दूसरे ही स्वरुप में विकसित हो रहे हैं । अंकुरण शुरू हो गया है, और आपको अंकुरण को अपने तरीके से काम करने देना चाहिए।

लेकिन सामान्य तौर पर, जब हमें बोध भी हो जाता है, तो भी हमें यह एहसास भी नहीं होता है कि यह एक जबरदस्त चीज है जो हमारे भीतर घटित हुई है। कि यह प्रस्फुटन, जो एक असंभव कार्य है, हमारे भीतर घटित हो गया है, और इसे धीरे-धीरे कार्यान्वित होना है। इसे विकसित हो कर, और हमें उसमें उत्क्रांति प्रदान करना है, और चूँकि हम इसे महसूस नहीं करते हैं, हम इसे (आत्मसाक्षात्कार को )उतनी गंभीरता से नहीं लेते हैं, जितना हमें लेना चाहिए।

इसके अलावा, वे ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं जिन्होंने वायब्रेशन महसूस नहीं किया है, वे इस क्षेत्र को नहीं जानते हैं; उन्होंने इसे कभी नहीं देखा है।

जैसा कि गुरु नानक ने कहा है, यह 'अलख' है (अलक्ष्य :अदृश्‍य)। उन्होंने इसे नहीं देखा है, वे इसके बारे में नहीं जानते हैं, वे नहीं जानते कि ईश्वर की एक शक्ति मौजूद है, जो आपको समझती है, समन्वय करती है, सहयोग करती है, जो सामूहिक अस्तित्व में काम कर रही है, जो आपको जागरूक करती है, आपको उस सामूहिक अस्तित्व के बारे में और दूसरों के बारे में भी आप जानते हैं।

यह अलक्ष, या हम इसे परोक्ष (परोक्ष: अदृश्य) कह सकते हैं, जो किसी के भी द्वारा नहीं देखा जाता है, जिसके बारे में कोई नहीं जानता, वे इसके बारे में बात करते हैं। वे ईश्वर के राज्य के बारे में बात करते हैं, वे ईश्वर की शक्तियों, ईश्वरीय शक्ति के बारे में बात करते हैं। यह सब बात है, बातें, बातें, बातें, बातें।

लेकिन एक बार जब आप इसमें प्रस्फुटित हो जाते हैं, तो आपको इसमें विकसित होना पड़ता है। जब तक और जहाँ तक आप इसमें विकसित नहीं होते आपको छोड़ दिया जाएगा, विशेष रूप से उन लोगों को जो नकली गुरुओं और झूठी चीजों से आए हैं जिनका वे अनुसरण करते रहे हैं। वे नहीं जानते कि ये चीजें कितनी भयानक हैं। जैसे आप एक मगरमच्छ पर हैं, और अचानक आपको पता चलता है कि यह एक मगरमच्छ है: आप उससे कितनी तेजी से भागेंगे? लेकिन यह समझ कि, यह एक मगरमच्छ है और यह आपको खा जाएगा भी सरलता से नहीं आती।

तो, यह भी महसूस नहीं होता है, क्योंकि आपको अहसास नहीं होता है कि यह प्रस्फुटन जो सबसे कठिन काम है, आपका हो चूका है, वह मुश्किल है। लेकिन यह आपके साथ घटित हुआ है, आप जानते हैं कि ऐसा क्यों हुआ है।

आप उसे हल्के में लेते हैं और शैतानों को भी हल्के में लेते हैं। कम से कम शैतानों को हल्के में न लें। जितनी जल्दी हो सके उनसे दूर भागो। ध्यान करें, ध्यान करें और ईश्वरीय प्रेम के दायरे में खुद को स्थापित करने का प्रयास करें।

मैं कहती हूं कि यह ईश्वरीय प्रेम है। आप समझ नहीं सकते कि ईश्वरीय प्रेम क्या है। आप किसी ऐसे इंसान को समझ नहीं पाते जो आपसे सिर्फ प्यार के लिए प्यार करता हो। सिर्फ इसलिए कि वह व्यक्ति तुमसे प्रेम करता है, वह प्रेम करता चला जाता है क्योंकि वह उस प्रेम का आनंद उठाता है। संस्कृत में इसे अव्याज (अव्याज: प्राकृतिक; सरल) कहा जाता है, कि निस्वार्थ है, अव्याज, यह सिर्फ बह रहा है।

यहां तक ​​​​कि जब यह आपको सुधारता है, तो यह आपको प्यार में सुधारता है। और ईश्वरीय प्रेम की सुरक्षा ही एकमात्र तरीका है जिससे आप अंकुरित हो रहे हैं। वह प्यार आपको वह आवश्यक गर्माहट, शक्ति व आत्मविश्वास देता है, जिस की जरूरत है। उस ईश्वरीय प्रेम से आपको सब कुछ मिलता है। तो, किसी व्यक्ति को यह महसूस करना होगा कि यह प्रेम है, और प्रेम है, और प्रेम ही इस सारी सृष्टि का आधार है।

ईश्वर ने इस दुनिया को, इस ब्रह्मांड को सिर्फ इसलिए बनाया है क्योंकि उन्होंने प्यार किया था। और वह आपको यह आशीष देना चाहता है क्योंकि वह आपसे प्रेम करता है।

लेकिन समस्या यह है कि, आप खुद से कितना प्यार करते हैं। आप खुद को कहां तक ​​समझते हैं यह समस्या है।

आप स्वयं का मूल्यांकन नहीं करते हैं, और यही कारण है कि, हालांकि कुंडलिनी उठ गई है और आपको बोध हो गया है, आपके चैतन्य बह रहे हैं, विकास बहुत धीमा है। क्योंकि चित्त बाहर रहा है, और बोध के बाद भी वह बाहर है। कभी-कभी यह अंदर खिंचा जाता है लेकिन यह फिर से बाहर चला जाता है।

फिर, हम अपनी पुरानी आदतों को बिल्कुल भी नहीं बदलते। हम उन्हीं पुरानी आदतों से चिपके रहते हैं। हमारे जीवन की संरचना, हमारी सोच की शैली, वही बनी रहती है: फिर से, हम खुद को उसी जर्जर अवस्था में खोया हुआ पाते हैं।

अब सहज योग आपको आत्मसाक्षात्कार देता है, ठीक है, लेकिन यह आपको अपनी गलतियों के अंजाम पर पहुँचने की लम्बे समय की ढील भी देता है, अगर आप स्वयं पर और अपने अस्तित्व पर ध्यान नहीं देते हैं, अगर आप खुद से प्यार नहीं करते हैं और नहीं समझ पाते हैं कि, आप महज साधन हैं ईश्वर के जिस के माध्यम से से आप पहली बार लोगों को आत्मसाक्षात्कार देने जा रहे हैं, आप लोगों को डूबने से बचाने जा रहे हैं। और ऐसा यह पहली बार है जब आप को यह क्षमता प्राप्त हुई हैं। यह क्षमता आपके पास कभी नहीं थी और न ही किसी इंसान में है, जो आज आपको मिल गई है।

बहुत कम लोगों में यह क्षमता थी, बहुत कम लोगों में। लेकिन अब आपके पास वह क्षमता है और आप खुद का मूल्यांकन नहीं करना चाहते हैं। यह कितना महत्वपूर्ण है, यदि आप महसूस कर सकते हैं, तो आप इसे कार्यान्वित करेंगे और खिलने को ऊपर आने देंगे।

इसके विपरीत आज मैं यह पाती हूं कि, (चूँकि आप सभी सहजयोगी हैं, मैं आपसे इस तरह बात कर सकती हूं। आम तौर पर यह बातचीत कुंडलिनी और उसके बारे में होती है,) लेकिन मुझे लगता है कि, आप अपनी कुंडलिनी की गतिविधियों को देखते नहीं हैं।

यदि आप यह समझने की कोशिश करें कि, वह वही है जो आपको सबसे अधिक प्यार करती है, क्योंकि वह आपकी व्यक्तिगत माँ है। और, यदि आप उसका अनुसरण करने का प्रयास करते हैं, तो आप देखेंगे कि वह सुझाव दे रही है कि आपके साथ समस्या कहां है, आपको क्या सुधारना है, आपको क्या करना है|

क्योंकि वह आपको निष्कलंक करना चाहती है। वह आपकी मदद करना चाहती है।

बेहद प्यारी, एक छोटे बच्चे की तरह खूबसूरत नाटकों से भरपूर। वह आपको इधर-उधर गुदगुदी करेगी, आपका ध्यान आकर्षित करेगी। वह आपको परेशान नहीं करती है। आपको उसके बारे में केवल सतर्क रहना होगा, और वह वास्तव में आपको परिपक्व बनाती है। आपने देखा है कि, समय के साथ लोग कैसे परिपक्व होते हैं।

लेकिन आपको उस पर और अपने आप पर चित देना होगा, अन्यथा बिना बोध के आपका क्या मूल्य है? बोध के बिना मनुष्य का क्या मूल्य है? मनुष्य के होने का क्या फायदा यदि वे प्रबुद्ध नहीं हैं? इस यंत्र (माइक्रोफोन) का क्या उपयोग हो सकता है अगर यह शक्ति के मुख्य स्त्रोत्र से ना जोड़ा जाए? बाकी सब बेकार है, है ना?

और यह आप ही हैं जिन्हें लोगों का उत्थान करना है। आपको लोगों को जागरूक करना है।

जैसा कि हमारे पास कुछ गैस लाइटें हैं: एक आदमी गैस की रोशनी को प्रज्वलित करने के लिए दौड़ता है, केवल उसके पास इसे करने का अधिकार या क्षमता होती है। इसलिए, वह सभी गैस लाइटों को जलाते हुए, सड़क पर दौड़ता है। यह वह है, यहाँ, जिसे यह करना है। इसके लिए उनकी नियुक्ति की गई है।

सहजयोगियों को समझना चाहिए कि उनका मूल्य क्या है। आपने सहज योग से क्या बनाया है? आपने कितने लोगों को बचाया है? आपने कितने लोगों की मदद की है? इसके बजाय आपकी अपनी समस्याएं बहुत हैं और आप बात करके, चर्चा करके, बहस करके दूसरों के लिए समस्याएं पैदा कर रहे हैं।

आप इसकी चर्चा नहीं कर सकते। आपको पता होना चाहिए। आप इस पर बहस नहीं कर सकते। इसे अपने आप कार्यान्वित होना होगा। वाद-विवाद, चर्चा, उपद्रव, निर्णय, स्वयं को भ्रमित करके, आप अपनी कुंडलिनी को हल करने के लिए एक और समस्या पैदा करते हैं। क्या आप अपनी आत्मा की चाहत नहीं कर रहे हैं? क्या आप अपनी आत्मा के उद्धार के बारे में चिंतित नहीं हैं? यदि हां, तो आप इसके बारे में क्या कर रहे हैं? यही सबसे महत्वपूर्ण बात है।

मुझे लगता है कि हर कोई इस बात को समझता है, कि केवल आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करना ही इसका अंत नहीं है, क्योंकि यह सिर्फ अंकुरण है जो शुरू हुआ है। आपको और आगे जाना है। आपको उन लोगों के लिए करुणा रखना होगी जिन्हें अभी तक यह नहीं मिला है। आपको उनके बारे में सोचना होगा, आपको उन्हें देना होगा; इसे पर काम करो, अपना सारा दिमाग इसमें लगाओ।

लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि लोग दूसरे कामों में व्यस्त हैं। वे वापस उसी घेरे में चले जाते हैं। निश्चय ही आप व्यस्त होंगे। मैं यह नहीं कहती कि,

आपको अपने जीवन यापन के लिए कुछ नहीं करना चाहिए। आपको यह करना है।

यह एक बात हमारे लिए जानना बहुत जरूरी है, कि हमें इसे कार्यान्वित करना होगा। हमें इसे अपने भीतर विकसित होने देना होगा। लेकिन मेरा कहने का मतलब है कि, अगर आप कहते हैं कि, "माँ, हमें आप पर पूरी श्रद्धा है, बस इतना ही।" यह पर्याप्त नहीं है। आपके पास क्या श्रद्धा है? आस्था से आप क्या समझते हैं? यह इतना अस्पष्ट शब्द है। आखिर श्रद्धा क्या है?

क्या आपने कभी 'श्रद्धा ' शब्द का विश्लेषण किया है? कुछ लोग सोचते हैं कि, "हम सभी को माँ पर श्रद्धा है। अगर हम उनकी स्तुति गाएँ - बस!" उसके लिए, व्यक्ति को एक निश्चित अवस्था तक पहुँचना होता है, जैसे आदि शंकराचार्य पहुँच चुके थे।

क्या आपको खुद पर श्रद्धा है? -मुद्दा यह है। मुझ पर श्रद्धा "कौन" कर रहा है? जिसे खुद पर भरोसा नहीं है! आपको अपने आप में और अपने सभी साथियों पर, इन सभी अन्य सहजयोगियों पर श्रद्धा करना होगी। मैं आपको पहले ही बता चुकी हूं कि, सहज योग व्यक्तिगत रूप से काम नहीं करेगा। कोई भी जो यह सोचता है कि, "मैं दूसरों से कुछ बड़ा हूँ!" गया बिता व्यक्ति है।

किसी को भी इस तरह से 'अकेले खुद से' सहज योग नहीं करना चाहिए। आपको 'उनमें से प्रत्येक के लिए' सामूहिक रूप से काम करना होगा। आप में से कोई भी जो सोचता है कि आपके पास दूसरों की तुलना में कुछ ऊंचा है, आप दुखद रूप से गलत हैं। यह ऐसा है जैसे एक आँख कह रही हो, "मैं दूसरी से ऊँची हूँ!", या एक नाक कह रही है, "मैं आँखों से ऊँचा हूँ!" विराट के शरीर में हर चीज का अपना स्थान है, और हर कोई इतना ही महत्वपूर्ण है, साथ ही अत्यावश्यक भी है।

आप जानते हैं कि सहज योग में क्या होता है - भारत में बहुत आम है, यहां इतना नहीं। मेरा मतलब है कि भारतीय इस तरह से करते हैं: उनके पास कुछ बहुत अच्छे गुण हैं, मेरा मतलब है कि मैं जहां भी जाती हूं, मैं उन्हें बहुत परिपक्व और बहुत विकसित पाती हूं, क्योंकि वे ऐसे विचारक नहीं हैं जैसे आप हैं। आप महान विचारक, दूरदर्शी, बुद्धिजीवी हैं, आप देखिए। और मैं सोच रही थी कि, कुछ समय बाद सभी बुद्धिजीवीयों के इस तरह से सींग विकसित हो रहे होंगे। और जब आप उन्हें देखेंगे, तो आपको पता चलेगा कि ये बुद्धिजीवी जो ईश्वर की निंदा कर रहे हैं और उनके सभी तरीकों की निंदा कर रहे हैं, वे बुद्धिजीवी नहीं हैं, मैं कहूंगी कि उस हद तक।

लेकिन वे [भारतीय] कुछ चीजों में असफल होते हैं, जबकि आप कुछ अन्य बातों में असफल होते हैं। उनके पास हमेशा इस तरह की बातें हुई कि, जहां कोई एक आदमी सामने आया, जिसने कहा, "नहीं, मैं कुछ महान हूं!" तब वह कहता हैं, "मैं यह हूं, मैं वह हूं!" इस प्रकार की अपनी ही बीन बजाता रहता है, और वह अन्य लोगों को नीचा दिखाता है। और फिर अचानक ऐसे शख्स को नीचे उतारा जाता है और लोग हैरान रह जाते हैं. "माँ, कैसे? क्या हुआ?" आप नहीं कर सकते! आप देखिए कि, अगर आपको एक ऐसे निर्जीव कालीन को भी खींचना है, तो आप उसका एक किनारा नहीं खींच सकते, आपको पूरा ढोना होगा। पूरे खेल में केवल एक व्यक्ति सब कुछ परिणाम हासिल नहीं कर सकता।

अब तुम मेरी स्थिति पर विचार करो | हां, मुझे पता है कि मेरे पास सारी शक्तियां हैं, सब कुछ है, बिल्कुल; मुझे बहुत ऊँचा माना जाता है और वह सब - जो होना चाहिए, मुझे कहना चाहिए। पर तुम्हारे सम्मुख मुझे उतरना ही है; मुझे तुम्हारे साथ पहाड़ी चढ़ने के रास्ते पर संघर्ष करना ही है। हर कदम पर हमें साथ-साथ चलना है। आप यह जानते हैं।

किसी के कुछ चक्र पकड़ रहे हैं इसलिए मैं अपने चक्र इस कार्य में लगाती हूँ। यह काम करता है। यह उस तरह से काम करता है। लेकिन आप जानते हैं कि मुझे कितना संघर्ष करना पड़ता है, कितनी मेहनत करनी पड़ती है। यह एक कार्य है, आत्मसाक्षात्कार देना।

मेरी कुंडलिनी को किसी चीज की जरूरत नहीं है, आप जानते हैं, लेकिन फिर भी उसे आपकी भारी कुंडलिनी को अपने ऊपर उठाकर उठाना है। यह बहुत भारी चीज है। केवल वास्तविक प्रेम का व्यक्ति ही ऐसा कर सकता है, यही एकमात्र मानदंड है। जिसके पास प्रेम नहीं है, वह यह नहीं कर सकता [क्योंकि] यह बहुत अधिक करने की बात है - सारा शरीर स्पंदित होता है, हर चक्र स्पंदन करता है; यह आसान नहीं है।

लेकिन यह सिर्फ प्यार है, आपके और मेरे बीच की करुणा, जो मुझे राहत देती है, जो सभी कार्यों और श्रम और उस चीज को ढँक लेती है जिसे मुझे करना है। और कभी-कभी मैं कुछ लोगों के बारे में महसूस करती हूं कि, यह इतनी निरर्थक बात है। यह उनके साथ ऐसी बर्बादी है। लेकिन फिर भी जिस प्यार ने हमें साथ लाया है, वह सुकून देने वाला एहसास देता है और आप बहुत आनंदित महसूस करते हैं। हर सुबह आप अपने भीतर एक नई खुशबू के साथ उठते हैं, इसके बारे में बहुत प्रसन्नता महसूस करते हैं।

इसलिए लोगों के साथ व्यवहार में सावधानी बरतें, आपको प्यार से पेश आना होगा, आलोचना से नहीं या किसी भी तरह से उन्हें किसी भी तरह से नीचा दिखाना। जब आप किसी से किसी भी तरह से ऊँचे नहीं हैं तो ऐसा करने का कोई कारण नहीं है।

यदि आप किसी भी तरह से ऊंचा हो रहे हैं, तो आप सामूहिकत़ा की मदद कर रहे हैं। लेकिन उसमें, यदि आप महसूस कर रहे हैं कि आप दूसरों से ऊंचे हैं तो आप फिर से नीचे आ रहे हैं क्योंकि आप सामूहिकत़ा को नीचे खींच रहे हैं। यदि आप किसी को नीचा दिखाते हैं, या उस तरह किसी की निंदा करते हैं, तो आप उस व्यक्ति को नीचा दिखा रहे हैं।

और, आपको सुधार भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि सुधार करने के लिए मैं वहां हूं। दूसरों को ठीक करना आसान नहीं है, आप उन्हें चोट पहुँचा सकते हैं। तुम लोगों को सुधारने के तरीके भी नहीं जानते। जहाँ तक और जब तक आपके पास वे शक्तिशाली स्पंदन नहीं हैं, जो आपकी उपस्थिति मात्र में प्रेम का उत्सर्जन करें| तब फिर आप इसे कर सकते हैं।

अहंकार उन्मुख समाज के कारण हम दूसरों को चोट पहुँचाने में बहुत अच्छे होते हैं। हम दूसरों पर हावी हैं। हमें पता ही नहीं चलता कि हम दूसरों पर हावी हो रहे हैं। इस देश में मैंने बहुत से तरीके जाने हैं, जिनसे हम बहुत सूक्ष्म तरीके से हावी होते हैं। हम लोगों से इस तरह बात करते हैं कि हम उन पर हावी हो रहे हैं। क्या हम कभी बैठ कर सोचते हैं कि, हम दूसरों से कैसे बात करने जा रहे हैं, ताकि हम उन्हें अपने प्यार का अहसास दें?

मैं आपको बार-बार बताऊंगी कि सहज योग प्रेम, प्रेम, प्रेम के अलावा और कुछ नहीं है। आप दूसरों से कितना प्यार करते हैं यह मुख्य बिंदु है। तिरस्कार करना, निन्दा करना अच्छा नहीं है। कल तुम भी वैसे ही थे, आज तुम बेहतर हो, तुम अभी भी और बेहतर होने वाले हो। बेशक, कुछ लोग जो बहुत भारी हैं, जो बहुत तकलीफदेह हैं, आप उन्हें साफ-साफ बता दें कि: "सॉरी सर, आप बहुत नेगेटिव हैं, हम आपको बर्दाश्त नहीं कर सकते।"

कुछ चालाक लोग भी हैं जो आ सकते हैं और आपको परेशान करने की कोशिश कर सकते हैं। एक बिंदु तक सब ठीक है, तो आपको उन्हें बताना होगा कि: "हमें खेद है।"

लेकिन यह आकलन करने के लिए भी कि कोई व्यक्ति नकारात्मक है या वह किस तरह का काम कर रहा है, आप बस इसके बारे में सोच रहे हैं, आप तर्कसंगत कर रहे हैं - तर्कसंगतता के माध्यम से नहीं, बल्कि चैतन्य के माध्यम से। तर्कसंगतता के कारण, एक व्यक्ति शायद एक बहुत अच्छा व्यक्ति प्रतीत हो सकता है, या एक महिला आ रही हो, देखें, और महिला एक भयानक चीज होगी।

तो आप कितना ध्यान करते हैं इसका मतलब है कि आप कितना प्यार करते हैं। जब आप दूसरों के बारे में सोचते हैं, तो सोचें कि आप उनसे कितना प्यार करते हैं, बस यह सोचने की कोशिश करें कि यह कितना सुंदर है। प्रेम नहीं तो घृणा है। यह एक चिलचिलाती गर्मी की तरह है जिसे आप देखें तो, यह आपके दिल की सारी सुंदरता, मधुरता को पूरी तरह से भगा देगी।

केवल प्रेम से ही सहज योग का प्रसार होगा।

इतने सालों में तुमने नफरत की ताकत देखी है। आपने देखा है कि लोग कैसे नफरत करते हैं, कैसे वे एक दूसरे के बारे में बात करते हैं, कैसे वे एक दूसरे के साथ व्यवहार करते हैं। उनमें कोई कोमलता नहीं है, उनके बारे में कोई दयालूता नहीं है, वे एक-दूसरे के साथ कितने चूभन भरे हैं।

आपको अब वह सब बदलना होगा। आपको ऐसे लोगों की दुनिया बनानी है जो एक-दूसरे से प्यार करते हैं, बिना कुछ लिए: पैसे के लिए नहीं, पदों के लिए नहीं, सुंदरता के लिए नहीं, सेक्स के लिए नहीं, केवल प्यार के लिए, केवल इसलिए कि आपको प्यार का आशीर्वाद मिला है।

अगली बार से हम विज्ञापन देंगे और कई और लोग आएंगे जो सहज योग के नए लोग हैं। और मुझे यकीन है कि यह बढ़ने वाला है। लेकिन मैंने आपसे कहा है कि आप सभी को यह पता लगाना चाहिए कि आप स्वयं कितने लोगों को अंदर ला सकते हैं और कार्यान्वित कर सकते हैं। मुझे कहना होगा कि जिम ने अच्छा काम किया है, बहुत अच्छा काम किया है। मुझे उस पर बहुत गर्व है। वह गया है और बहुत सी चीजें की है, और अकेले ही वहां ऐसे भयानक राक्षस से लड़ते हुए उसने काम किया है, लेकिन उसने इसे किया है। आप सभी को उसका और ऐसे लोगों को भी जो कुछ करना चाहते हैं साथ देना चाहिए ।

अपना दिमाग कुछ इस तरह लगाएं। हर समय हम नौकरियों के बारे में सोच रहे हैं, यह, वह, वह। यह बहुत कीमती समय है जिसे गंवाना नहीं चाहिए। जीवन भर हमने काम किया है, पैसा कमाया है, शादी की है, बच्चे पैदा किए हैं और मर रहे हैं।

इस जीवन काल में चलो हम कुछ विशेष करें, जिसके लिए इस पूरे ब्रह्मांड की रचना की गई है। बाकी लोगों के लिए स्वर्ग के द्वार खोलो। आपको मेहनती बनना होगा। सहज योग में कोई बाध्यता नहीं है यह आप अच्छी तरह से जानते हैं। इसका कोई निर्धारित समय नहीं है। इसमें कोई जबरदस्ती नहीं है, क्योंकि मैं कहती हूं कि यह प्रेम है। यदि आप ऐसा नहीं करना चाहते हैं, तो कोई भी आपको बाध्य नहीं करेगा।

लेकिन, जैसा कि मैंने कहा, सहज योग आप को लम्बी ढील देता है खुद को साबित करने के लिए, जब तक कि आप पूरी तरह से भ्रम में नहीं चले जाते और आपको पता भी नहीं चलेगा कि आपने अपने सभी वायब्रेशन गवां दिए हैं। यह उस हद तक है।

अगर हम किसी ऐसी अभूतपूर्व चीज में प्रवेश कर गए है, तो हमें तरीके भी अभूतपूर्व ही अपनाने होंगे। आप उन तरीकों के बारे में नहीं जा सकते जो आपके पास पहले थे। आपको अपने तरीके बदलने होंगे। अपने हर काम का आकलन प्यार से करो। आप दूसरों के लिए कितना त्याग कर सकते हैं? आप दूसरों के लिए क्या बलिदान कर सकते हैं? आप दूसरों की क्या सेवा कर सकते हैं?

सहज योगियों मैं कह रही हूँ। इसमें कोई बलिदान नहीं है। देखा जाए तो क्या त्याग है? यह प्यार है।

अगर आप किसी से प्यार करते हैं, और आप एक व्यक्ति के लिए गुलाब लेना चाहते हैं, और आप बाजार जाते हैं, तो आपको बड़ी मुश्किल से गुलाब मिलता है। जब आप इसे प्राप्त करते हैं तो आप खुश महसूस करते हैं। लेकिन फिर उंगली में कांटा लग जाता है, फिर भी आपको कोई आपत्ति नहीं है। यह खून बह रहा है, कोई फर्क नहीं पड़ता। तब आप बस उस व्यक्ति को देखने का इंतजार कर रहे हैं। और जब आप उस व्यक्ति को देखते हैं, तो आप वह सब भूल जाते हैं जो इस बीच गुज़रा था और आप उस गुलाब को केवल प्रतीकात्मक रूप से व्यक्त करने के लिए देते हैं। और आप कितना प्रसन्न महसूस करते हैं कि आप उस व्यक्ति को वह गुलाब दे पाए हैं। यह हम अपने जीवन में हर दिन करते हैं। लेकिन सहज योग में आप इसे जाने बिना भी करते हैं - यह हो रहा है।

आप प्रसारण कर्ता हैं। हर जगह आप ध्यान में बैठे हैं, आप वायब्रेशन संचारित कर रहे हैं। क्या तुम यह जानते हो? उस समय यदि आप अपनी नौकरी और अपनी अन्य चीजों के बारे में सोच रहे हैं जिनके बारे में आप पहले सोचते रहे हैं, तो प्रसारण खराब होगा।

प्यार के बारे में सोचो, पूरे देश के बारे में सोचो, उस समय पूरी दुनिया के बारे में सोचो। आप प्रेम की इन तरंगों के प्रसारक हैं, और प्रेम आप से प्रवाहित होगा। मैंने आपको एक बार कहा था कि आप गणेश के रूप में बने हैं, और आपको यही करना है।

आप जानते हैं कि चैतन्य आपसे आ रहे हैं, आप चैतन्य बाहर भेज रहे हैं, आप जानते हैं। इसका मतलब है कि आप किसी भी देवता की तरह हैं जिसे माता के गर्भ से प्रकट किया गया है, मेरा मतलब है पृथ्वी माता का गर्भ, और एक बड़ा मंदिर खड़ा किया गया है, और हजारों लोग उसकी पूजा करने जाते हैं। और वे कहते हैं कि यह एक जागृत देवता का मंदिर है। 'जागृत' का अर्थ है प्रबुद्ध, जागृत। और वह सिर्फ एक पत्थर है, एक पत्थर जो बाहर प्रकट होता है और लोग उसके ऊपर एक मंदिर बनाते हैं और वहां जाकर उसकी पूजा करते हैं।

जबकि यहाँ पहले से ही कितने बैठे हैं, कितनी जाग्रत, बोध प्राप्त-आत्माएँ हैं। ये जी रहे हैं, ये चल रहे हैं, ये समझ रहे हैं, ये कौशल दिखा रहे हैं। पत्थर केवल वातावरण को साफ करने के लिए चैतन्य उत्सर्जित करते हैं, लेकिन आप कुंडलिनी को ऊपर उठा सकते हैं। वे कुंडलिनी नहीं उठा सकते; आप ऐसा कर सकते हैं। और आप इसके बारे में क्या कर रहे हैं? आपके पास इतनी कीमती चीज है। आप इस बारे में कर क्या रहे हैं? क्या इसलिए कि इसमें कोई व्यवसाय नहीं है हम इसे इतनी धीमी गति से ले रहे हैं? मान लीजिए कि यह एक उद्यम होता तो हर कोई उठकर कर रहा होगा, है ना?

हमें अपने समझने के तौर-तरीके को बदलना होगा। किसी भी उद्यम की तुलना में ईश्वर का प्रतिफल हजार गुना है। जब वे आपको आशीर्वाद देते हैं, तो वे इस हद तक वे जाते हैं कि, आपके पास उन्हें धन्यवाद देने के लिए शब्द भी नहीं होते।

क्या हम उस पर निर्भर कर रहे हैं या अपने पुराने तौर-तरीकों पर? हमें बहुत कुछ बदलना है; हमें सोचने के नए तरीकों के अनुरूप खुद को बदलना होगा। यह बहुत, बहुत महत्वपूर्ण है।

मुझे आशा है कि आप इसके बारे में सोचेंगे, जो भी मैंने आज आपसे बात की है। उस जीवन को मत अपनाओ जिसने तुम्हारे लिए कोई प्रसन्नता नहीं लाया है। आप अपने मित्र रखो जो सहजयोगी हों। अपने दोस्त बदलें। अपने जीवन के तरीके बदलें। आप बहुत अधिक आनंद पायेंगे। यह जिम्मेदारी है आपकी कि, स्वयं को और सहज योग के महत्व को समझें।

जब तक यह कोई उद्यम नहीं है, कोई भी इसे गंभीरता से नहीं लेता है। यह पश्चिमी सोच की शैली है। यह होना ही चाहिए, चाहे वह धोखा-धंधा हो या वास्तविक उद्यम, कोई फर्क नहीं पड़ता, जब तक धन का आदान-प्रदान होता है, हर कोई उठ कर और कर रहा है। लेकिन जब सहज योग की बात आती है तो उनके पास ध्यान करने का भी समय नहीं होता है।

क्योंकि हमने अभी तक प्यार नहीं किया है, हमने अपने भीतर उस प्यार को महसूस नहीं किया है। काश आप सभी प्यार की उस गहराई को महसूस कर पाते। तब आप इसे अपने लिए और दूसरों के लिए कार्यान्वित करने के लिए बाहर निकलेंगे।

यदि संभव हो तो मैं आप लोगों की तरफ से से कुछ प्रश्न पूछे जाना पसंद करुँगी|

सहजयोगी, यदि संभव हो, लेकिन किसी को उसे आत्मसाक्षात्कार देने का प्रयास करना चाहिए, वह इसे कुछ ही समय में प्राप्त कर सकता है।

क्या कोई सवाल है? मुझसे - कुछ भी व्यावहारिक पूछो। क्योंकि आज हमारे पास बहुत कम नए लोग हैं, हम बस एक बहुत अच्छी बातचीत कर सकते हैं।

लेडी: क्या आप मुझे इस बारे में समझाएंगी कि, जब कभीकभार लोग कहते हैं कि अगर आप अपने पैरों को इस तरह से सामने बाहर फैलाते हैं तो यह अच्छा नहीं है और आपको उन्हें नीचे रखना चाहिए- क्या गलत है? मेरा मतलब है कि अगर यह यौन मुद्रा या वैसा कुछ और नहीं है, तो आपके सामने अपने पैरों को फैलाने में क्या गलत है?

श्री माताजी : मेरे सामने? क्या आप महारानी के सामने ऐसा करेंगी?

लेडी: नहीं, नहीं, मुझे खेद है।

श्री माताजी : नहीं, नहीं, मैं जो कह रही हूँ, क्या तुम इंग्लैंड की महारानी के साथ करोगी?

लेडी: नहीं, नहीं। यदि आप अकेले हों तब क्या होता है?

श्री माताजी: हम?

लेडी: मेरा मतलब यह नहीं है कि अगर कोई है।

श्री माताजी : मेरी तस्वीर के सामने ? क्या तुम थूकोगे?

लेडी: जब आप ध्यान करने बैठते हैं।

श्री माताजी : नहीं, नहीं, मैं क्या कह रही हूँ अगर तुम्हारी रानी का फोटो है तो क्या तुम उस पर थूकोगे?

लेडी: क्या वह थूकना है?

श्री माताजी: हाँ, यह है! यह एक अपमान है। किसी की ओर पैर रखना अपमान है। यह सामान्य समझ है!

लेडी: क्या यह भारत में केवल एक रिवाज है?

श्री माताजी : नहीं, नहीं, यह पूरी दुनिया में हर जगह एक प्रथा है। आपने अपनी सभी परंपराएं खो दी हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि किसी की तरफ पैर ना रखने की ऐसी कोई परंपरा नहीं थी। कल्पना कीजिए, कोई आपको मिलने के लिए आता है, कोई जिसका आपको सम्मान करना है, क्या आप आपने अपने पैर ऊपर कर लेते हैं? मेरा मतलब यह कोई भी समझ सकता है, एक बच्चा भी इसे समझता है।

आप देखिए हमारे सम्मान करने का भाव हमारे अंदर से आया है, बाहर से नहीं। यह तर्कसंगतता नहीं है। यह हमारे अचेतन से हमारे पास आया है। हम जानते हैं कि हम कैसे सम्मान करते हैं।

जैसे, कोई कहेगा कि, "किसी से इस तरह बात करने में क्या हर्ज है?" आप देखिए, मान लीजिए कोई कहता है, अब आप जानते हैं कि एक बच्चा भी जानता है, अगर वह बड़ों से बात कर रहा है, तो वह अपना सिर नीचे कर लेगा।

लेकिन यहाँ, आप देखते हैं कि हर कोई इतना असामान्य है। आप नहीं जानते कि सब कुछ कैसे करना है क्योंकि सब कुछ तार्किक है, आप देखते हैं। कल, आप कह सकते हैं, "अगर मैं अपने सिर के बल खड़ा हो जाऊं तो क्या होगा?" मेरा मतलब है, "करो", लेकिन वह तरीका नहीं है। प्रार्थना के नवाचार के कुछ सामान्य तरीके हैं। आप चर्च में कैसे प्रार्थना करते हैं? कल्पना कीजिए, चर्च में आप जाकर पुजारी की तरफ अपने दोनों पैर रख कर बैठ जाते हैं। वह क्या कहेगा? "अपने पैर नीचे रखो!"

ये चीजें हमारे भीतर अंतर्निहित हैं। मनुष्य पहले से ही बहुत कुछ जानता है।

वे जानवर नहीं हैं। वे पहले से ही बहुत कुछ जानते हैं। आप नहीं जानते कि आप में कितनी पूर्व-निर्मित चीजें हैं। आपकी समझ में बहुत ही सुंदर तरीके से, एक इंसान के रूप में, आप बहुत सी बातें जानते हैं। दुनिया में कहीं भी आप किसी ऐसे व्यक्ति की तरफ अपने पैर नहीं रखेंगे जिसका आप सम्मान करते हैं। यह सम्मान की निशानी नहीं है।

भारत या कुछ भी का कोई सवाल नहीं है। भारत में केवल एक चीज है, लोगों ने अभी तक अपनी सभी सम्मान की भावना को संरक्षित किया है। अन्य जगहों पर, वे इतने तर्क-उन्मुख और अहंकार-उन्मुख हैं कि उन्हें किसी के लिए कोई सम्मान नहीं है।

लेडी: आप इसे केवल सम्मान की निशानी के रूप में लेते हैं। मान लीजिए कि कोई अकेला बैठा है और उनके पास आपकी तस्वीर नहीं है या उनके पास कुछ नहीं है, तो क्या उनके पैर फैलाना ठीक है?

श्री माताजी : तो यह बिलकुल ठीक है। मेरा मतलब है, आप देखिए कि यह है।

महिला: किसी ने कहा कि अगर आप अपने पैर सामने बाहर रखते हैं तो यह कुछ बुरी ऊर्जा या कुछ और पैदा कर रहा है। इसलिए मैं जांचना चाहती थी।

श्री माताजी : नहीं, नहीं, ऐसे नहीं, ऊर्जा नहीं खो रही है। मैं बस किसी ऐसे व्यक्ति के सामने पैर फैलाने के बारे में सोच रहा था जिसका आप सम्मान करते हैं।

जैसे, मेरा फोटोग्राफ है या मैं वहां हूं। अब तुम मेरा सम्मान करते हो, है ना? तब आप पैरों को सामने रख कर बैठना पसंद नहीं करेंगे। मैं यही कहने की कोशिश कर रही हूं।

लेकिन, आप देखते हैं, ऊर्जा गंवाना और वह सब कुछ नहीं है। किसने कहा तुमसे ये? ऐसी बात नहीं है। तुम सोते इसी तरह हो| आप जमीन पर पैर रखकर नहीं सोते हैं। ऐसा कैसे हो सकता है? अगर कोई ऐसा कहता है तो उसे हल्के में नहीं ले लेना चाहिए। आप देखिए, मुझे लगता है कि यह सब इतना महत्वपूर्ण भी नहीं है। तुम भी सोते हो, तुम कैसे सोते हो? मेरा मतलब है, यह इतना आसान और स्वाभाविक है।

आप जानते हैं कि तर्क बुद्धि के साथ यही हो रहा है। देखिए, बड़ी सीधी-सादी बातें इतनी अजीब बन जाती हैं कि तुम, मुझे समझ नहीं आता कि क्या कहूँ। इसलिए मैंने कहा कि यहाँ से एक सींग उग रहा होगा, आप सभी बुद्धिजीवीयों के। आपके पास एक बड़ा सींग निकल रहा होगा जिससे लोगों को पता चलेगा, "ठीक है, ठीक है, हम इन लोगों को जानते हैं।" कोई उनके स्स्मने नहीं जायेगा।

आप देखिए, यह इतना आसान है। चूँकि, तुम बहुत जटिल हो, सभी साधारण चीजें इतनी भयानक लगती हैं। यह सम्मान का प्रश्न है - अगर आप सो रहे हैं तो बेशक आप ऐसे ही पैर फैलाते हैं, सीधा। सब ठीक है। जब आप बैठते हैं, आप ऐसे ही बैठ सकते हैं, कोई बुराई नहीं है। आपको हर समय आलथी-पालथी होने की आवश्यकता नहीं है। यह आवश्यक नहीं है। यदि आप किसी प्रकार का व्यायाम या कुछ और कर रहे हैं, तो आप ऐसे हो सकते हैं।

लेकिन सब कुछ, अब कहें, उदाहरण के लिए, आपको हाथ मिले हैं। अब यह कई उद्देश्यों के लिए है, ठीक है? यह वायब्रेशन पाने के लिए है, यह खाने के लिए है, यह खुजली करने के लिए है।

अब अगर आप जिस समय खा रहे हैं अगर आपको खुजलाना है तो अब क्या करें? यह एक ऐसा प्रश्न है। देखें कि आपको जो करना है, आप उसे सही समय पर करते हैं, जिस तरह से आप करना चाहते हैं। अगर आपको किसी चीज के लिए अपने पैरों की जरूरत है जैसे - दौड़ना, तो आपको दौड़ना चाहिए। जब बैठना हो तो बैठ जाना चाहिए। जब आपको सोना हो तो आपको सोना चाहिए। मेरा मतलब है कि यह सामान्य है।

सहजयोगियों होने का मतलब यह नहीं है कि आप अपनी नाक काट लें। नहीं, इसका मतलब यह नहीं है। इसका मतलब है कि आपको और अधिक सुंदर होना है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, आप देखिये, यदि आप दस बार झुकते हैं, लेकिन इससे फर्क पड़ता है यदि, आप खुद को एक बार भी पीछे खींचते हैं। कोई बात नहीं, विनम्र होना, अधिक विनम्र और अधिक विनम्र होना, कितना प्यारा और अच्छा है। आप देखिए, आपको अधिक सुसंस्कृत, अधिक सामंजस्यपूर्ण और सुंदर बनाता है।

आदमी: मुझे एक समस्या है।

श्री माताजी: यह क्या है?

आदमी: मैंने अपने विनम्र तरीके से, अपने आप को, अपने आप को आध्यात्मिक बोध के लिए समर्पित कर दिया है, मैंने ध्यान को अपनाया है, मैंने कई वर्षों को पूरी तरह से लगा दिया है। मैंने सूक्ष्म जागरूकता में उस स्थिति को महसूस किया और मैं खुद को इस भौतिक दुनिया से बहुत ऊंचा महसूस करता हूं, आनंद, पूर्ण शांति, खुशी और आनंद की भावना। और, मैं उस आत्मा को देखता हूं जिसे मैं एक बहुत ही शानदार, श्रेष्ठ तरीके से, एक श्रेष्ठ, पूर्ण उन्नत तरीके से बनाता हूं।

वह अवस्था कुछ समय तक चलती है, परन्तु अधिक दिन नहीं रहती, बहुत दिनों तक नहीं रहती है। थोड़ी देर बाद फिर मैं नीचे आ गया। और यह एक वक्र की तरह होता है, और जब मैं देखता हूं कि मैं ऊंचाई से नीचे आ गया हूं, तो मैं थोड़ा परेशान होता हूं, ऐसा क्यों हो रहा है।

और, मैंने पाया है कि जितना अधिक मैं अपने आप को अपने परिवार से, अपने काम से, अपने दोस्तों से, अन्य चीजों से अलग करता हूं, उतना ही हल्का महसूस करता हूं और ध्यान से मुझे उतनी ही अधिक शांति मिलती है।

अब दिक्कत यह है। लगभग एक साल पहले, जब मैं एक सुंदर लड़की, एक सुंदर महिला को देखता, तो मैं शायद दो दिन, तीन दिन या ऐसा ही कुछ बेचैन रहता। जब मुझे पतंजलि के योग के बारे में पता चला -

श्री माताजी : यह कौन सा योग है?

आदमी : माफ़ करना ?

श्री माताजी : आप कौन सा योग कर रहे हैं?

आदमी: अब, मैं बस इतना कह रहा हूँ कि अब, मैं बिल्कुल ठीक हूँ।

श्री माताजी : यह तुमने क्या किया? आपने कौन सा योग किया?

आदमी : सच तो यह है कि मैं किसी योग का अनुसरण नहीं कर रहा हूँ लेकिन मैंने पतंजलि का अध्ययन किया है।

श्री माताजी: पतंजलि, ठीक है।

आदमी: और, फिर जब मिले... अब चिंता यह है कि जो आकर्षण कुछ समय पहले हुआ करता था वो खत्म हो गया है। लेकिन फिर भी, मैं अपने भीतर मन की स्थिति जो मुझे बहुत आनंद देती है,को बनाए रखने के लिए एक दृढ़ इच्छाशक्ति पाता हूं, उस क्षण के लिए वह गायब हो जाती है, और फिर मैं उसी पर लौट आता हूं। यह मेरी निजी समस्या है। मुझे लगता है कि मैंने बहुत खुल कर बताने की कोशिश की है।

श्री माताजी: हाँ, हाँ, यह सही है। ठीक है। अब, पहली बात यह है कि चक्र क्या पकड़ रहे हैं?

आदमी: बायाँ स्वाधिष्ठान।

श्री माताजी : यही है वो।

अब देखिए, पतंजलि को करना शुरू में ही एक गलती थी। एक माँ के रूप में, मुझे आपको स्पष्ट रूप से बताना चाहिए, ठीक है? क्योंकि पतंजलि तब तक नहीं की जा सकती जब तक कि आपके पास इसके पीछे कोई सच्चा गुरु न हो। यदि आप इसे करना शुरू करते हैं, तो यह अनधिकृत है, आप देखते हैं। ऐसा करना एक अनधिकृत बात है।

जैसे, मान लीजिए कि मैं पुलिस वाली नहीं हूं और मैं पुलिस वाले की तरह व्यवहार करने लगी हूं, तो मुझे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। उसी तरह, आपने इसे अनधिकृत तरीके से किया। अनाधिकृत तरीके से करते हुए आपने बिलकुल गलत दिशा में शुरुआत की है। दिशा गलत थी। और जो आनंद और वह सब आपको मिलता है, वह वो आनंद नहीं है जिसके बारे में हम बात कर रहे हैं।

यह आनंद तब मिलता है जब आप जिम्मेदारी से पलायन करते हैं, आप इसे प्राप्त कर सकते हैं। आप देखिए, यदि आप अपने परिवार और बच्चों से बाहर निकल सकते हैं और वह सब कुछ है, तो वह आनंदित महसूस कर सकता है यदि वह सोचता है कि यह आप पर एक प्रकार का दबाव या एक प्रकार का लगाव या कुछ है।

लेकिन सहज योग में ऐसा होता है आप एक ऐसा व्यक्तित्व बन जाते हैं कि, जब आप नाटक में तो होते हैं लेकिन, आप इसे देख रहे होते हैं। आप साक्षी (गवाह) बन जाते हैं। ऐसा होना चाहिए। यही हकीकत है। ऐसा ही होना चाहिए। एक बार आपके साथ ऐसा हो जाए, तो आप पूरी बात को एक नाटक के रूप में देखना शुरू कर देंगे।

आदमी: हाँ।

श्री माताजी: आप समझे?

श्री माताजी : यह क्या कह रहे हैं?

सहज योगी : उन्हें हल्की ठंडी हवा का अनुभव होता है।

श्री माताजी : वह मिल रहा है। हाँ, वह बोध प्राप्त-आत्मा है। हाँ, उसे आत्मसाक्षात्कार हो गया। उसे वह मिल गया।

यहाँ इस सज्जन के बारे में क्या, तुम्हारे सामने मार्कस?

प्रश्न: (अश्रव्य)

श्री माताजी: तो, यह सबसे स्वाभाविक तरीके से, सहज तरीके से होना चाहिए। और, भगवान ने आपको वह अंकुर दिया है जिसे कुंडलिनी कहा जाता है, जिसे आप निश्चित रूप से जानते हैं। कबीर और इन सभी लोगों ने बात की है।

लेकिन यह एक सहज विधि है, यह आपके साथ बस घटित होती है, केवल एक बोध प्राप्त -आत्मा के साथ। आप स्वयं इसे नहीं कर सकते। यदि आप ऐसा करने की कोशिश करते हैं, तो आप एक गलती कर रहे होंगे। और वही आप में हुआ है।

तो अब हमें एक तरह से उसके प्रभावों को पूरी तरह से निष्प्रभावी करना होगा। और फिर हम आपकी कुंडलिनी को ऊपर उठाएंगे जिससे आपको अपनी अनुभूति प्राप्त होगी, जिससे धीरे-धीरे आप अपने वायब्रेशन को प्राप्त करेंगे, और आप समझना शुरू कर देंगे। ठीक है?

तो, आप अभी भूल जाएँ कि आपने क्या किया है, और यह कार्यान्वित होने जा रहा है। फिर यह एक स्थायी बात है।

उसके चैतन्य के बारे में क्या लगता है मार्कस?

मार्कस: विशुद्धि।

श्री माताजी : बाएँ या दाएँ?

आपको आपका बोध हो गया है ना? मैं उससे पूछ रहा हूँ।

दूसरा आदमी: हाँ।

श्री माताजी: क्या यह ठीक है? बाईं ओर एक पकड़ है, है ना? क्या आप कुछ महसूस कर रहे हैं? आपको क्या मिला?

दूसरा आदमी: मेरे पैर में हल्का दर्द है।

श्री माताजी: हम्म।

जिस किसी को भी चक्रों के बारे में कोई समस्या है, सहजयोगियों में से कोई भी, जिस किसी को भी अपने चक्रों के बारे में कोई समस्या है, कृपया मुझसे पूछें। क्योंकि अगली बार जब हमारे यहाँ बहुत सारे लोग होंगे, तब हम बात नहीं कर पाएंगे, इसलिए बेहतर होगा कि मुझसे इसके बारे में पूछें।

दिनेश आपको क्या दिक्कत है?

दिनेश: मेरी समस्या? हम्म।

श्री माताजी: आज्ञा। मैं इसे यहाँ से स्पष्ट रूप से देख पाती हूँ। आपको लोगों को माफ करना होगा। क्या तुम्हें समझ आया? क्षमा करें, और क्षमा करें।

उसके वायब्रेशन के बारे में क्या? अब जरा देखिए।

(रिकॉर्डिंग में ब्रेक)

श्री माताजी: आप यहाँ नहीं आये?

साधक : मैं यहाँ बहुत अधिक नहीं रहा हूँ ।

श्री माताजी : ठीक है। लेकिन क्या आप अभ्यास कर रहे हैं?

साधक : मैंने अभ्यास किया है और मैंने कुछ समय के लिए अभ्यास करना बंद कर दिया है।

श्री माताजी: क्यों?

साधक: हम्म।

श्री माताजी: अब, तुम क्या अभ्यास कर रहे हो? क्या आपने चैतन्य पाए और क्या आपने स्वयं को शुद्ध किया?

साधक : नहीं (अश्रव्‍य) मैंने फुटसोक नहीं लिया।

श्री माताजी : चरण स्नान।

साधक : मुझे नहीं पता था कि कब इस्तेमाल करना है...

श्री माताजी : कभी भी। शाम बेहतर है। तो, फिर क्या है?

साधक : सॉरी?

श्री माताजी: क्या? आप अपने हाथ में कुछ महसूस नहीं कर रहे हैं?

साधक: नहीं। (अश्रव्य।)

श्री माताजी : आप किन उंगलियों में झनझनाहट महसूस कर रहे हैं?

साधक : उनमें से अधिकांश में।

श्री माताजी: उनमें से अधिकतर? हाय भगवान्! (हँसते हुए) तो, मेरे पास आने से पहले तुम कहाँ थे? आप किस समूह में रहे हैं?

साधक : मैं झेन जाता हूं।

श्री माताजी : वह क्या करता है?

साधक : उसने हमें अपने असली चेहरे को देखना सिखाया।

श्री माताजी : वे क्या कहते हैं?

साधक : अपना असली चेहरा देखो। वह जेन है।

श्री माताजी: झेन।

साधक : हाँ।

श्री माताजी : लेकिन वह आत्मसाक्षात्कारी नहीं है। तुम देखो, यह झेन है, यहाँ मैं और क्या सिखा रही हूँ? क्या आपको एहसास हुआ? सहज योग और कुछ नहीं बल्कि झेन है, सरल झेन!

जहाँ तक और जब तक तुम्हें बोध नहीं हो जाता, तब तक तुम मूल को कैसे देखोगे? आप उसमें कैसे प्रवेश करेंगे? यह सरल ज़ेन है जो मैं बता रहा हूँ।

तो, वह यहाँ क्या कर रहा है, तुम्हारे दोस्त? उसके पास कोई क्लास है या कुछ और?

साधक : नहीं, वह तो बस एक मित्र है। वह हमें चीजें लिखता और सिखाता है।

श्री माताजी : बिना समझे लिखने का क्या फायदा? आप झेन की नकल नहीं कर सकते, आपको वहां पहुंचना होगा।

देखिए, वहां छठी शताब्दी में केवल छब्बीस कश्यप थे - 'कश्यप' का अर्थ है बोध प्राप्त -आत्माएं - ज़ेन प्रणाली में, अब तक। और अब हमारे यहाँ वैसे बहुत सारे हैं। तो, यह झेन है, झेन के अलावा और कुछ नहीं। तुम्हें समझना चाहिए।

आप उसे आकर मुझसे कभी मिलने के लिए कहें। आप देखिए, यह सब कृत्रिम है, आप लोगों की नकल नहीं कर सकते। आपको इसे प्राप्त करना होगा; क्या तुम मेरी बात समझे?

साधक : लेकिन मुझे यकीन नहीं है। (अश्रव्य) मुझे समस्या है।

श्री माताजी: यह क्या है?

साधक : एक बार मैं अस्पताल में था, कई बार।

श्री माताजी: हाँ। आप थे।

साधक : हाँ।

श्री माताजी : नहीं, यह सच है, लेकिन मैं जो कह रही हूं, उसके लिए आप अपना इलाज कराएं। ठीक है? हमारे यहां कुछ उपचार हैं। क्या आप जानते हैं कि हम इसके लिए क्या देते हैं?

साधक: (अश्रव्य)।

श्री माताजी : हाँ, क्या तुम वह लाए थे?

साधक : हाँ, मैं लाया था ।

श्री माताजी : आपने एक बार किया था।

साधक : हाँ। मैंने दो बार किया था ।

श्री माताजी : ठीक है। अब आपके दोनों हाथों में झुनझुनी हो रही है या एक हाथ?

(श्री माताजी एक सहज योगी से हिन्दी में बोलती हैं और पूछती हैं कि झुनझुनी कहाँ है।)

श्री माताजी : धीरे-धीरे यह स्थायी हो जायेगा । आप देखिए, इसे आपके भीतर स्थापित होना है।

वह तुम्हारे साथ आया है, है ना?

सहज योगी: हाँ। ...

श्री माताजी : ठीक है, बस उनके वायब्रेशन देखो, तुम स्वयं देख सकते हो। लेफ्ट साइड बहुत कमजोर है। ठीक है।

अब तुम्हारा क्या, दोनों हाथ या बायां हाथ?

साधक: (अश्रव्य।)

श्री माताजी: कहाँ?

साधक: (अश्रव्य।)

श्री माताजी : कुछ यहाँ बैठे हैं, आप देखिए। (श्री माताजी हंस रही हैं।) बहुत तेजी से परिवर्तित हो रहे हैं।

उस आदमी को आत्मसाक्षात्कार दो जो वहाँ कोने में है।

उसे मिल रहा है? उसे अभी तक नहीं मिला है?

सहज योगिनी : नहीं...

श्री माताजी: आह? मैं कभी नहीं जानती थी। वास्तव में? आप कहीं जा चुके हैं क्या,

नहीं?

आओ, देखते हैं! मेरे चरणों में आओ।

Caxton Hall, London (England)

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