Sat Chit Anand 1977-02-15
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15 फ़रवरी 1977
Sat Chit Anand
Public Program
New Delhi (भारत)
Talk Language: English, Hindi | Transcript (Hindi) - Draft
किसी ने कलम उठाई, लिख दिया। लिखने वाले जो हैं अधिकतर, कुछ न कुछ मतलब से लिखते हैं, कुछ मतलब होता है या तो लोगों को बेवकूफ बनाना, पैसे कमाना, या कुछ और उद्देश्य होता है। परमात्मा की असीम कृपा से फिर बड़े-बड़े संत हो गए, उन्होंने भी कुछ लिख दिया, हालांकि छापा नहीं था बेचारों ने, लेकिन उनको फिर छाप दिया। हम कह सकते हैं कि हमारे गुरु नानक हैं, रामदास स्वामी हैं, तुकाराम हैं और पहले जमाने में वाल्मीक जी, योगवशिष्ठ हो गए, आदि अनेक लोग हो गए। लेकिन सही कौन और गलत कौन है, ये पहचानना मुश्किल होता है।
जैसे मार्कण्डेय स्वामी हैं, अब आदि शंकराचार्य जी हैं; हम अपने को कहते हैं हम हिंदू हैं, लेकिन कोई आदि शंकराचार्य को पढ़ता ही नहीं, और पढ़ने पर भी कोई समझ नहीं पाता क्योंकि वो तो माँ के बड़े भक्त हैं। बस माँ की स्तुति के अलावा उन्हें कुछ सूझता ही नहीं। वो पूरे समय भगवती की स्तुति करते रहते हैं और कहते हैं कि बस माँ की कृपा से ही सब काम होंगे। उनकी यह बात सही भी है कि योग, सिद्धि आदि से परमात्मा नहीं मिलेगा, माँ की कृपा से ही मिलेगा।
हमारे यहाँ सब लोग हठ योग कर रहे हैं, जो गृहस्थी के लोगों के लिए नहीं है। अब वो कंपलसरी हो गया है। पुलिस वाले कल आए थे, बोले कि हमें हठ योग सिखाएँ। हठ योगी इतने क्रोधी होते हैं कि भगवान बचाए! बीबियाँ घर से भाग जाती हैं जब हठ योगी आता है। आदमी डंडा लेकर दौड़ने लगता है। अगर बीबी हठ योगी हो तो भगवान ही बचाए। हठ योग गृहस्थ जीवन के लिए नहीं है, यह ब्रह्मचर्य में गुरू के साथ किया जाता है। यम, नियम आदि बड़े कठिन होते हैं। फिर भी लोग इसे पढ़कर लेक्चर देने लगते हैं। अब कौन सही है और कौन गलत, ये पहचानना कठिन है। असल में दो प्रकार के लोग होते हैं: एक वे जो परमात्मा को खोज रहे हैं और दूसरे वे जिन्होंने पा लिया है। जो खोज रहे हैं, उनसे क्या सीखना? जैसे अंधा अंधे को पढ़ाए तो क्या फायदा? जिन्होंने पा लिया है, वही मार्ग दिखा सकते हैं।
जो मिलन की बात करते हैं, वही असल में आपको मार्ग दिखा सकते हैं। जे कृष्णमूर्ति जैसे लोग मिलन की बात नहीं करते। वो खुद परेशान और अंधेरे में हैं और बाकी को भी अपने साथ गिरा रहे हैं। जो उनकी किताबें पढ़ते हैं, वे भी वैसे ही बोलने लग जाते हैं। लेकिन भगवान बोलने से थोड़े ही मिलते हैं, वो तो भीतर से होना चाहिए। यह घटना सहज में भीतर होती है। हमारी चेतना एक नए आयाम में उतरती है, एक नई चीज घटित होती है। जब तक यह घटना नहीं होती, तब तक हम कृष्णमूर्ति की तरह अंधे ही होते हैं। सहज योग के बारे में बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं, लेकिन सही मार्ग वो दिखा सकता है जिसने पार पा लिया हो। किसी ने कलम उठाई, लिख दिया। लिखने वाले जो हैं अधिकतर, अधिकतर कुछ न कुछ मतलब से लिखते हैं, कुछ मतलब होता है या तो लोगों को बेवकूफ बनाना, पैसे कमाना, कुछ और आफर करना, ये होता है।
परमात्मा की असीम कृपा से फिर बड़े-बड़े संत हो गए, उन्होंने भी कुछ लिख दिया, हालांकि छापने का साधन नहीं था बेचारों के पास, लेकिन उनके लिखे को बाद में छाप दिया गया। जैसे हमारे गुरु नानक हैं, रामदास स्वामी हैं, तुकाराम हैं, पहले जमाने में वाल्मीकि जी थे, योगवशिष्ठ थे, आदि कई लोग थे। लेकिन उनमें से सही कौन है और गलत कौन, यह पहचानना भी मुश्किल हो जाता है। जैसे मार्कंडेय स्वामी हैं, आदि शंकराचार्य जी हैं। हम कहते हैं कि हम हिंदू हैं, लेकिन कोई आदि शंकराचार्य को पढ़ता ही नहीं। और अगर पढ़ता भी है तो समझ नहीं पाता, क्योंकि वह माँ के इतने बड़े भक्त थे कि उनके लिए माँ की स्तुति के अलावा कुछ सूझता ही नहीं। वह पूरे समय भगवती की स्तुति करते रहते थे। वह कहते थे कि माँ की कृपा से ही सब काम हो जाएंगे, और यह बात सही भी है। उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि किसी योग, सिद्धि या अन्य किसी साधना से परमात्मा नहीं मिल सकता, वह तो माँ की कृपा से ही मिलेगा।
लेकिन हमारे यहाँ सब लोग हठ योग कर रहे हैं, जबकि हठ योग गृहस्थ लोगों के लिए है ही नहीं। अब यहाँ उसे अनिवार्य बना दिया गया है। पुलिस वाले आए थे और कहने लगे कि हमें हठ योग सिखाओ। हठ योगी इतने क्रोधी होते हैं कि भगवान ही बचाए। बीबियाँ घर से भाग जाती हैं, अगर हठ योगी घर में आ जाए। हठ योग ब्रह्मचर्य में, गुरु के साथ ही ठीक है। इसमें यम, नियम आदि का पालन करना बहुत कठिन है। हठ योग करने वाले लोग अक्सर कहते हैं कि फलानी किताब में ऐसा लिखा है, लेकिन उस किताब का लेखक कौन है? सही और गलत को पहचानना मुश्किल है।
असल में दो तरह के लोग होते हैं: एक जो परमात्मा को अभी खोज रहे हैं, और एक जिन्होंने परमात्मा को पा लिया है। जो अभी खोज रहे हैं, उनको पढ़ने से क्या फायदा? अंधे को अंधा पढ़ाए तो क्या लाभ? जिनको मिल गया है, उनको पढ़ना चाहिए, जैसे सूरदास जी।
जो मिलन की बात कर सकते हैं, वही असल में आपको सही मार्ग दिखा सकते हैं। आजकल कई लोग और निकल आए हैं, जैसे जे. कृष्णमूर्ति, जो मिलन की बात नहीं करते। वह खुद भी अंधेरे में टटोल रहे हैं और दूसरों को भी उसी में ले जा रहे हैं।
भगवान बनने के लिए केवल बोलना ही काफी नहीं है, यह एक आंतरिक घटना है। जब तक यह घटना घटित नहीं होती, तब तक बातों से कुछ नहीं होता। सहज योग के बारे में बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं, लेकिन जब तक अनुभूति नहीं होती, सब व्यर्थ है। कृष्णमूर्ति जैसे लोग कह सकते हैं कि मुझे कुछ मिला है, लेकिन असल में वह भी परेशान हैं और उनकी किताबें पढ़ने वाले लोग भी उन्हीं की तरह परेशान हो जाते हैं। बोलने से भगवान नहीं मिलते, भीतर की घटना से ही सब होता है। यह सहज योग में स्वतः घटित होता है, चेतना एक नए आयाम में उतरती है। जब यह घटना नहीं घटती, तब तक जो भी हम पढ़ते या सुनते हैं, वह सब व्यर्थ है। यह सत्य की प्रतिष्ठा है कि उसे पाने के लिए सर झुकाना पड़ता है, जबकि मिथ्या आपको आसानी से चिपक जाता है। am the path, सब उसके साथ गया है, I am the light कोई किसी के बाप का डर नहीं है, कह दिया हाँ है; कबीर दस जी कहते हैं पांचों पचीसो पकड़ बुलाऊँगा। क्या हिम्मत की बात है, 'एक ही डोर बंधाऊँगा, मैं करूँगा यह तो नहीं कि घिगिया रहे हैं भगवान के सामने में, कि भगवान मुझे मिल जाएँ; जो मिल गया है, वो विरह क्यों गाये।
इसलिए अगर तुम को सब को भी पढ़ना चाहिए तो यह गलत बात है, तुम खोज रहे हो जिसको मिल गया है उसको पढ़ो; अब जब तुम भी खोज रहे हो और दूसरा भी खोज रहा है, अब जो खोज रहा है उसके पढ़ोगे तो तुम भी उसके साथ गये गड्ढे में। समझ लो उसको वो गड्ढे में है तो तुम भी गये, तुमको क्या मालूम कि वो ठीक है या नहीं। इसलिए जे कृष्णमूर्ति को तुमने जो पढ़ा है तो जे कृष्णमूर्ति कहीं यह तो नहीं बोलते कि मुझे कुछ मिला है या मुझे कोई अनुभव हुआ है। या कि ऐसे आदमी को पढ़ने में इसलिए मज़ा आता है कि वो हमारे जैसे दुखी है। और हम भी उसके जैसे दुखी हैं सूर्दास के भजन इसलिए अच्छे लगते हैं कि हम भी भगवान को खोज रहे हैं, और वो भी घिगिया रहा है भगवान के आगे भगवान कब मिलोगे, भगवान कब मिलोगे। और मिलन के गीत कोई गाये, तो वो अच्छे नहीं लगते, ऐसा लगता है कि देखो यह तो मिलन के गा रहा है और हम तो यहाँ अभी यहीं बैठे हैं। बात करते हैं ना, बात तो वो दिन... हाँ हाँ। अरे बेटे बात करना एक बात होती है और करना दूसरी बात होती है। बात करते हैं, बात करने की क्या? अरे वो बात करते हैं, बात करने से क्या है? तुम भी बात करोगे, बात पे बात, बात पे बात, बात पे बात, इससे तो बहुत खुश हो रहे हो। बातों का तो जमाना नहीं रहा है, अब तो कुछ करने का जमाना आ गया, हम तो कितनी मेहनत भी कर रहे हैं तुम्हारे ऊपर, कर रहे हैं कि नहीं, तेल भी थोपा तुमको आप कहो तो तुम्हारी मालिश भी कर देते हैं। ऐसा है कि थोड़ा सा, जिसको कहते हैं नीरकशीर विचार होना चाहिए तो आप कहें हम हर एक चीज करना, करेंगे माता जी हमको हर एक चीज करनी हैं, तो भी करो, माँ कैसे रोकेगी, करो तुमको करना है तो करो, अब सबको थोड़ी ना हम कहेंगे कि नहीं लेकिन परमात्मा एक ही चीज है और उसका पाना भी एक ही है और उसको पाने यही एक काम है बाकी कुछ काम नहीं, सब व्यर्थ है। यह सही बात है बाकी सब करना हो तो करते रहो अभी जन्म में करोगे, अगले जन्म में करोगे पर यह इसको पाने का कब करोगे गर कोई हमसे पूछेगा, तो हम एक ही कहेंगे कि बस इसी को करो और इसी को पाओ बाकी सब हमसे कोई मतलब नहीं।
अच्छा और दूसरा करने से अगर कोई भी लाभ होता हो तो हम कहेंगे ज़रूर करो बेटे, लेकिन नहीं होगा, उससे नुकसान हो गया। अभी देखो तुम तीन दिन से मेहनत कर रहे हो; तुम्हारे सामने कितने लोग पार हो गये तुम नहीं हुए हो, है न बात, सच्ची बात है, अब तुम से मेरा कोई दुश्मनी तो नहीं है, हैं! इतनी तो, और फिर पहले दिन तो तुम हो गये थे और फिर तुम पकड़ गये। तुम्हारी यह हालत है, इसकी वजह है क्योंकि तुम लोगों ने सब पढ़ा है वो तुम्हारे खोपड़ी में बैठे हैं, इसलिए मैं कहती हूँ, तुम उनको भूत कहते हो। साफ मैं कर दूँगी, तुम रस्ता बदल के जाना मैं तो यहां तक कि कपड़े बदलवा के भेजूं आज चीज है, आज साफ कर देंगे। असल में क्या बताएँ, मिथ्या जो होता है बड़े जल्दी चिपक जाता है, सत्य नहीं चिपकता है; सत्य बहुत वरण करना पड़ता है, सत्य की अपनी प्रतिष्ठा है। मच्छर आपके पीछे दौड़ेंगे, जहां भी आप जाएंगे क्योंकि उनको आपका खून पीना होता है; पर किसी राजा के घर जाना होता है तो उससे परमीशन लेनी पड़ती है, उसका प्रोटोकॉल होता है। असली कपड़े बनाने पड़ते हैं, टाइम लेना पड़ता है; बड़े शान से जाना पड़ता है वहाँ पर उनके सामने सर झुकाना पड़ता है। ऐसी सत्य है जो सेल्फ प्रतिष्ठी है। उसकी सत्य की अपनी इतनी बड़ी प्रतिष्ठा है कि उसके आगे अपने को सर झुकाना पड़ता है। अगर हम अपने अकड़ में बैठे रहें तो सत्य आपका वरण नहीं करने वाला, आपको सत्य का वरण करना पड़ता है, लेकिन मिथ्या आपको चिपक जाएगा, जहां आप जाएँगे वहाँ चिपक जाएगा। मिथ्या ऐसा जल्दी चिपकता है, कि पूछिए नही, जैसे कि कोई मिट्टी हो। सफाई नहीं जल्दी से होती, लेकिन मिट्टी बड़ी जल्दी से चिपक जाती है। यही बात है, इसी लिए ऐसा हो जाता है। इस लिए तुम लोग पकड़ गये कन्फ्यूजड। पार हो के फिर पकड़ गये। पकड़ना चाहिए नहीं। जरा गहराई से जाओ अंदर तो नहीं होता, जरा गहरे उतरो सहज योग जो है, गहरे लोगों के लिए है, उथले पुथले लोगों के लिए नहीं है। जो लोग सिर्फ बाहर ही से जैसे सब चीज को जानते हैं उनके लिए सहज योग नहीं है। अगर तुम लोगों को अपना कल्याण करना है तो अपने को गहरा उतारो, गहरे उतरना है; हालांकि हम और गरुओं के जैसे तुम लोगों की बड़ी परीक्षा नहीं लेते, तुम लोगों को सताते नहीं; और उन लोगों को देखो जो रहते हैं अमरनाथ में, अब किसका बताएँ, अब अमरनाथ में एक गुरु जी रहते थे, उनके पास एक शिष्य थे उनके बिचारे जगन नाथ जी बाबा। जगन नाथ जी उनको उन्होंने एक बंबे के पास जगह है अंबर नाथ वहाँ भेजा, और उनसे बताया कि तुम वहाँ पे बारह साल तपस्या करो, बारह साल बाद माता जी स्वयं आएँगी, उनका आज्ञा चक्र पकड़ा था, वो निकाल देंगी। अब सोचिए बारह साल बाद में उनसे मिली। वहाँ मेरा प्रोग्राम था वहाँ गई। वो आए जगन नाथ जी - कहा माता जी मेरे गुरु जी ने मुझ से ऐसा कहा था कि वो खुद भी आएँगे। मैने कहा अच्छा। फिर में गई वहाँ, मैने गुरु जी से कहा कि भई इनका एक आज्ञा चक्र निकालने का काम है, तो तुमने क्यों नहीं निकाला। तो मेरे से बोलते हैं, 'मरने दो।' मैने कहा, मरने दो, यह क्यों? तो कहते हैं कि मैंने कितनी मेहनत से कमाया है मेरा आज्ञा चक्र कितने दिन बाद मैंने खोला है इसको मैं ऐसी क्यों दे दूँ। वो कोई विशेष नहीं। फिर उसका आज्ञा चक्र मैंने लिकाल दिया तो कहता, फिर पकड़ेगा यह तो मैंने कहा, क्यों पकड़ेगा? कहा, नहीं, सिगरेट पीता है तो मैंने कहा, तुम इससे कहते क्यों नहीं कि सिगरेट मत कहने लगे, इसको मरने दो; वो भी कहने में उनको हर्ज है कि उस आदमी से यह न कहा जाए कि वैसे सिगरेट मत पी। कहने लगे क्यों कहूं में, इसको मैं क्यों कहूं इसको सिखने दो खुद ही, इसको स्वयं से सिखने दो; और मैं अगर तुम से कोई बात कहती हूँ तो तुम लोगों को बुरा लग जाता है, मैं तुमको इसलिए कहती हूं कि यह तुम्हारे धर्म के विरोध में बैठता है, यह जिद्द ठीक नहीं, यह करना नहीं चाहिए।
अब वो मेरे से कहते हैं सब लोग, हैं बहुत सारे एक पॉंडिचरी में हैं, एक कालीकत में हैं; वो लोग मुझे उल्टा वहाँ से फेंकते हैं, तीन आदमी लोगों के लिए करने से कुछ नहीं, यह जो दुनिया के लोग हैं, यह बड़े दुनिया दारी वाले हैं। यह आज पाएंगे, कल खो जाएंगे, फिर पाएंगे, फिर खो जाएंगे यह जमने वाले नहीं हैं, और मुझे दिखाना है कि यही लोग पाएंगे और पाये हैं, हमारे यहाँ ऐसे लोग हैं, बड़े जमे हुए लोग हैं आपने देखा है कैसे, कैसे यह जैसे इंग्लैंड से आए हैं, छ: सात लोग हैं, क्या और हैं, वहाँ 20-25 आदमी हैं कुछ बड़े जमे हुए लोग हैं, पक्के। जमना पड़ता है परमात्मा को पाने के लिए, मनुष्य चाहें कि वही दुकान में जा के कोई चीज ख़रीद ले सो तो बात नहीं है, अपनी भक्ति को जरा जमाना पड़ता है और किसके लिए है, अपने ही कल्याण के लिए, माता जी का क्या कल्याण होने का, मैं तो कल्याण से परे हूँ, कल्याण तुम्हारा ही है, तुम्ही को मिलने वाला है, तुम्हारा ही आनंद है कि जरा जमना है, थोड़े गहरे उतरो, कोई न कोई दोष तो जरूर है ही। बहुत से लोग पार भी हो जाते हैं, फिर डगर डगर उनकी नाव चलती हैं, नहीं जमते हैं अब मैंने उनसे कहा था, कुछ-कुछ लोगों से कि भई पार होने के बाद, एक फोटो का ट्रीटमेंट हम लोग लेते हैं कि हमारा फोटो, उससे वाइबरेशनस आते हैं उसके सामने हाथ रखो और दो पैर पानी में डाल करके दोनों पैर नमक छोड़ के, ये करो सात दिन, तो तुम्हारा काफी जम जाएगा मामला क्योंकि थोड़ी श्रद्धा भी बढती है, वाइबरेशनस आते हैं और पैर में से वो सारी गंदगियां निकलती जाती हैं क्योंकि दुनिया में रोज ही चीजों से आप मिलते रहते हैं। एक और है, वो गगनगड़ पर रहते हैं उन्होंने इन लोगों से बताया कि मैंने जब मैं मेंड़क था तब से मैं तपस्या कर रहा था भगवान की, हजारों वर्ष की मैंने तपस्या करी तब मेरे वाइबरेशन छुटे, और यह माता जी तुमको वाइबरेशन किसे जल्दी दे रही है, तुमने क्या किया, सब बेकार हो तुम लोग, माता जी के लिए जान देने वाला तुम्हारे में इंसान कोई नहीं। अब यह लड़के सिटपिटा गए सब और यह लोग तो नहीं पर एक आदमी था बिचारा उसको मैंने कहा, मुझे बहुत सताता था मैंने कहा जाएँ तो महाराज को उसने कहा था तो वो 15-20 रोज बाद आया बिचारा और दोनों टँगड़ियाँ गले में डाल करके मेरे पास ले आए; मैंने कहा, यह क्या? कहने लगा अरे वो महाराज जी की तमाशा है। मैंने कहा, क्या किया? वो शेर पर घुमते है उनके शेर ने पहले मुझे फेक दिया नीचे में और मेरे को खाने को नहीं दिया मेरी टँगड़ियाँ तोड़ दी, चार दिन भुखा मारा, पांचवे दिन चार रोटियां नीचे करी और उसके बाद बोला, कहा, टँगड़ियाँ गले में डाल के माता जी के पास ले जाओ, वो ही तेरे को ठीक करेंगी; मैं तो तेर को फिर फेकूंगा नीचे। बिचारे वहाँ पहुंचे हो, तो थोड़ा सा तुमको भी कोऑपरेट करना चाहिए। तुमको भी समझना चाहिए कि संसार में रहते हैं जन साधारण में घुंमते हुए अनेक तरह के बुरे बुरे विचार बुरी बुरी चीज़ें, शक्तियां, सब चल रही हैं; सोलह राक्षसों ने जन्म लिया है कलयुग में। बड़े वाले राक्षसों ने, जिनको कि देवी ने मारा था, मार के भी कोई फायदा नहीं; मार के भी कोई फ़ायदा नहीं, मार तो फिर से वापस हाज़िर है सब के सब अपने सारे आये तो और भी शैतान बन के आए और तुम्हारे साइकी में घुस रहे हैं दुनिया भर के धंधे बनाये हैं, भगवान बन के आए हैं, और कुछ हैं और पैसे वाले हैं, उनके पास इतना पैसा है, कि खरीद लिया आपको। और पैसा डाला तो कौन क्या बोल सकता है जब पैसा डाल जाये तो आप बिक गये बड़े-बड़े ओर्गनाइशन्स हैं उनके हमारे बड़े-बड़े ओफिसर लोग हैं जो रिटायर हो गए हैं, वो उनके सेक्रेट्रिस हैं। वो खरीद लें, किसी को भी चाहे, जिसको चाहे खरीद लें, है राक्षस ही लोग, पक्का राक्षस हैं, महाराक्षस हैं; उनका वर्णन है सारा देवी महात्म्य में और वो ही आकर बैठे हैं अपनी खोपडी पे और हमको उनको मानना ही पड़ता है क्योंकि उनकी Publicity ज्यादा, उनका ढंग अलग, वो आपको Hypnotize कर देंगे, आपको Mesmerize कर देंगे, सब के सब लोग आप उनके पिछे भागने लग जाएंगे। उनका तो ठीक है, क्योंकि उनको कोई Conscience नहीं है उनको कोई स्पष्ट विवेक बुद्धि नहीं है उनको कोई डर नहीं है, भगवान का; और नर्क हजार बार हो आए उनको Immunity हो गई है, कुछ नहीं लगता, क्या किया जाए। नर्क तो भरा पढ़ा हुआ है. अभी इनको भी नर्क भेजने से कोई फायदा नहीं है।
तुम ही लोगों को अपनी पूरी स्वतंत्रता में सत्य का वरण करना पड़ेगा, पूरी स्वतंत्रता में, मैं जबर्दस्ती कैसे करूँ और से जबर्दस्ती से किसी को राजा भी बनाया तो बैठेगा क्या वहाँ। सहजयोग में बहुत सी बातें सुलभ हो गई, जो सहजयोग आज इस दशा में है। सहजयोग तो शुरू ही से था आपको बताओं कि सहजयोग पहले कैसे कैसे था लेकिन आज इस दशा में सहजयोग है इसमें बहुत बाते सुलभ हैं, लेकिन एक बात दुर्लभ है और जो कहना चाहिए कि इसका अगर इसमें कहते है लूप होल है, वो यह है कि मनुष्य की स्वतंत्रता के आगे परमात्मा भी झुका हुआ है, इसमें हिपनौसिस नहीं हो सकता मेरा, कोई मैं आपको किसी भी तरह से कोई चक्कर में डाली नहीं हूँ आपको अपने ही चक्कर में रहना चाहिए. आपको अपने ही विचार में रहना चाहिए और अपने ही से पूरी इसकी इजाजत लेके, परमिशन ले कर के परमात्मा कि ओर आना चाहिए। अगर कोई जबरदस्ती ढकेल ही नहीं सकता है, अगर यह बात आपकी समझ में आ जाए तो सहज योग बहुत जल्दी प्राप्त होयेगा, कि आपकी जो फ्रीडम है, उसकी रिस्पेक्ट है। कल मैंने आपको बताया था कि तो यह स्टाटा, सुपर चेतना का यह स्टाटा, मैंने आपसे कहा, मैं आज चर्चा करूंगी, क्योंकि कल भी मैंने इस पर चर्चा की थी। अब आप कह सकते हैं कि हमें सामूहिक अवचेतन भी करना चाहिए और सामूहिक अतिचेतन भी, हमें सब कुछ करने का प्रयास करना चाहिए। लेकिन आपको न केवल भटका दिया जाता है, बल्कि आप प्रभावित होते हैं, आप आहत होते हैं। लेकिन पूर्णतया सबसे खराब बात यह है कि मानव अवस्था के बाद, यदि आप इनमें से किसी भी अवस्था में जाते हैं, तो आप पिशाच अवस्था में जाते हैं। बाईं ओर आप पिशाच बन जाते हैं, दाईं ओर आप राक्षस बन जाते हैं।
रावण जैसा व्यक्ति बोध के बाद भी राक्षस बन गया। वह एक आत्मज्ञानी था, वह एक ब्राह्मण था, इसमें कोई संदेह नहीं, वह था। लेकिन उसके बाद भी, आप देखिए, उसमें महिलाओं के प्रति ऐसी कमजोरी थी, जब उसने दोबारा ऐसा करने की कोशिश की तो वह गिरा, वह राक्षस बन गया। समस्या यह है कि इस अवस्था के बाद आप या तो महामानव बन जाते हैं या जिसे आप देवता कहते हैं या आप कह सकते हैं कि आत्मसाक्षात्कारी बन जाते हैं या आप राक्षस बन जाते हैं। तो आपको चुनना होगा।
अब मनुष्य की अवस्था ऐसी अवस्था है कि या तो तुम इधर उधर जाते हो या तुम नरक में जाते हो। मान लीजिए कि आप किसी ऐसे व्यक्ति के पास गए हैं जो तांत्रिक रहा है, एक तांत्रिक का मामला लें, वह कोशिश कर रहा है, आप देखिए, ये सभी चीजें और वह सब अनजाने में भी वह नहीं जानता कि वह एक तांत्रिक है, और आप उसके पास जा कर आए हैं। आप मेरे पास आइए, तुरंत हमें पता चल जाएगा कि कोई समस्या है। यदि आप एक आत्मसाक्षात्कारी के पास जाते हैं, तो तुरंत मुझे पता चल जाएगा कि वह रहा है।
आज एक सज्जन मेरे पास आए, मैंने उनसे पूछा, आपका गुरु कौन है और उन्होंने मुझे बताया, उन्होंने कहा, वह एक आत्मसाक्षात्कारी हैं, मुझे पता है, कांची में, कांची के शंकराचार्य, पुराने, वह एक साक्षात्कारी आत्मा हैं, नए नहीं, उनमें से कोई भी एक को छोड़कर नहीं है, कांची के एक के अलावा। जब उन्होंने मुझे बताया, मैंने कहा, आपको आपका आत्मसाक्षात्कार मिल जाएगा, कोई समस्या नहीं है, क्योंकि, आप देखिए, यदि वह एक आत्मसाक्षात्कारी आत्मा है तो उन्हें कोई जटिलता नहीं होगी। बोध के बाद वह कुछ ही समय में ठीक हो गया, इसलिए कोई सवाल ही नहीं था। लेकिन अगर आप किसी और को बताते हैं कि कौन तांत्रिक है, लेकिन यदि आप किसी और के पास जाते हैं, जो तांत्रिक है, तो उससे पहले पकड़े जाते हैं। आप अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं कर सकते। अब आलोचना करने के लिए कुछ भी नहीं है। मैं क्यों करूं, मैं राजनेता नहीं हूं। मुझे कुछ नहीं चाहिए। मुझे पैसा भी नहीं चाहिए, कुछ भी नहीं। मुझे कुंडलिनी के बारे में भी जानने की जरूरत नहीं है, मैं इसके बारे में सबकुछ जानता हूं, बिल्कुल संपूर्ण, मुझे आपसे कुछ भी जानने की जरूरत नहीं है। फिर मैं क्यों कहूं कि यह आदमी ठीक नहीं है, क्योंकि मैं कह सकती हूं, यहां तक कि एक बच्चा भी कह सकता है। यदि किसी बच्चे को बोध हो जाए तो वह कहेगा। तब कह सकता है।
मेरी पोती, वह किसी लामा से मिलने के लिए लद्दाख गई थी, वह, वे लद्दाख गए और उसने एक लामा को देखा। ये लामा हैं, इनमें से कोई भी साकार नहीं है, आश्चर्य की बात है कि इनमें से कोई भी साक्षात्कारी नहीं है, यह एक तथ्य है, मैं आपको बता रही हूं। यदि वे साकार होते, तो मैं कहती कि वे साक्षात्कारी हैं, लेकिन यदि वे साक्षात्कारी नहीं हैं, तो मैं कहूंगी कि वे नहीं हैं। वह साक्षात्कारी व्यक्ति नहीं है। रुकिए, यह राजनीति नहीं है, यह पूर्ण सत्य है। तो यह छोटी लड़की, वह मुश्किल से, वह मुश्किल से उस समय तीन या चार साल की थी, इसलिए उसने उसकी ओर देखा, उसने कहा, 'ये क्या सर मुड़ाय के चोघा पहना के ऐसे बनके बैठे हैं, करम कहीं के', उसने तुरंत यह कहा, क्योंकि वह इसे महसूस कर सकती थी, वह एक बच्ची है। एक बार हमारा एक कार्यक्रम था और मेरी एक और पोती थी, वो आई थी, और बंबई में एक बड़े साधु बाबा थे, मैं उनका नाम नहीं लूंगी क्योंकि आप सब उनको जानते हैं, वो हैं, वो नहीं वो गुरुजी नहीं हैं, लेकिन वह वहां एक बड़ा मिशन चला रहे हैं। वह मंच पर बैठे थे, और यह मेरी पोती सामने किसी के साथ बैठी थी, वह एक छोटी लड़की है, बहुत छोटी, अभी वह मुश्किल से साढ़े पांच साल की होगी, उस समय वह लगभग साढ़े चार साल की होगी। उसने वहां से देखा, ये सज्जन लोग वहां बैठे थे, उन्होंने मुझे मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया था और वह अध्यक्ष थे या ऐसा कुछ, नहीं, मैं अध्यक्ष को नहीं जानती, लेकिन वह अध्यक्ष थे या कुछ और, मुझे नहीं पता। तो उसने वहां से देखा, आप जानते हैं, वह कहती है, नानी, नानी, ये जो मैक्सी पहन के बेटा है, इसको भगाओ बाहर, इसको तो सब गरम-गरम आ रहा है, वहां से चिल्ला रही है। उन्होंने कहा, इसको भगाओ, ये मैक्सी पहन से जो बेटा है, मैक्सी। अब आप सोचिए, साहब इतना बड़े साधु बाबा हैं, और उन्होंने कहा, वो है ये नहीं, झूठ मूड से अपने सर मूला के बेटे हैं, कबीर ने कहा है, सर मूडो ने से क्या होता है, मन को मूडो, चोगा पैहनने से क्या होता है, अंदर का चोगा बदलो, अच्छा इन सबको तो हमने बांध दिया, फिर कोई चोगा वाला आ गया, उसके पैर पे क्यों आने का?
मेरे भाई साहब हैं, यहां एमपी में, उनके साहबजादे हैं, वो भी पार पैदा हुआ, काफी बड़े हैं उम्र उनकी, काफी, ये बड़ा शानदार लड़का है, उसका रात दिन अपने बाप से झगड़ा है, जो चोगे वाला है, उसके पैर पे क्यों जाते, जो चोगे वाला है, उसके पैर पे क्यों जाते, कहते भई हमें डर लगता है, वो हमारा कुछ खराब कर देगा; डर क्यों लगता है, तुम्हारा अगर भगवान पर विश्वास है तो डर क्यों लगता है, क्या बिगाड़ लेगा? तुम क्यों जाते हो, अब कोई उनसे पूछे, तो ये लोग कहते हैं कि ये बड़ा ऑबस्टीनेट है। ऑबस्टीनेट नहीं है, उसको दिखाई दे रहा है, He is telling you the truth. (वह तुमसे सच ही कह रहा है)। उसे जिद्दी क्यों कहें, वह बहुत प्रतिभाशाली लड़का है, बहुत प्रतिभाशाली है। इस मुद्दे पर वह बहुत खास है और एक दिन वह कह रहा था कि अब कोई आएगा तो उसको डंडे से मार के भगाऊँगा, इस घर में सब लोग पैसे लेने चले आते हैं मेरे बाप से। वह इसे सहन नहीं कर सकता। मेरे भाई से एक फादर मिलने आए, और मेरा भाई उनके पैर छूने ही वाला था तो उसने कहा कि अपने छू लिया, नहीं तो मैं फादर को बहुत अच्छे से मारता। तुम्हें उसके पैर क्यों छूने चाहिए? तो आप देखिए ऐसा है कि यह एक संपूर्ण ज्ञान है। यह एक ऐसा ज्ञान है जिसके द्वारा आप जानते हैं कि सत्य क्या है, क्या नहीं है। मैं जानती हूं, यही कारण है कि मुझे इतना खेद है। आप देखिए, मेरा दृष्टिकोण इन गुरुओं से बहुत अलग क्यों है, मैं यह नहीं कहती कि आप अपने आप को खराब करते हैं, इसके पास जाओ, इसके पास जाओ, ठीक है, वहीं मरो। मैं ऐसा नहीं कहती. मैं तुम्हारी देखभाल कर रही हूं, क्योंकि मैं जानती हूं कि तुम खोजी हो। और मुझे दुःख होता है, क्योंकि खोजने वाले दुःखी होते हैं।
अब हिप्पी विदेश में हैं। आप देखिए, मेरा केंद्र हिप्पी गांव के बिल्कुल मध्य में है। क्यों? क्योंकि मैं जानती हूं कि वे खोजी हैं। वे बेचारे कष्ट भोग रहे हैं क्योंकि वे खोजी हैं। देखो, मेरी सारी सहानुभूति, मेरा पूरा दिल उनके साथ है क्योंकि वे खोजी हैं। आप जानते हैं कि मैं आपके साथ कितना काम कर रही हूं, यह आप अच्छी तरह से जानते हैं। क्योंकि मुझे एहसास है कि आप एक साधक हैं। और तुम अपनी अज्ञानता में इन लोगों के पास चले गये हो। अब आप कह सकते हैं कि ईश्वर ने हमें यह संवेदनशीलता क्यों नहीं दी? भगवान के पास थी, भगवान ने तुम्हें दी थी, सीताजी के समय मनुष्य बहुत संवेदनशील थे। राधाजी के समय भी वे बहुत संवेदनशील थे। लेकिन अब, आप देखिए, मनुष्य अपनी स्वतंत्रता में इतना भौतिकवादी हो गया है। जो चीज़ प्रभावित करती है वह है अच्छा किराया, अच्छी सुविधाएँ, बड़ी कार, कोई बड़ी कार में आ रहा है, ओह बड़ी बात।
तुम दिन-प्रतिदिन अत्यंत स्थूल होते जा रहे हो। यही कारण है, और यह स्थूलता हममें विकसित हो गई है, आप देखिए। इसीलिए तुम्हें इसका अहसास नहीं होता। लेकिन ऐसे कई लोग हैं, मैं आपको बताती हूं, जो जे कृष्णमूर्ति को सहन नहीं कर सके। उन्होंने कहा, ओह, वह खोज रहा है। हमें उससे क्या मिलेगा? वह सरल है, आप देखिए। अपने दिमाग का उपयोग करो। या तो अपने दिल की संवेदनशीलता का उपयोग करें या अपने मस्तिष्क का उपयोग करें। भगवान ने तुम्हें दिमाग दिया है। यदि आप जे कृष्णमूर्ति का जीवन पढ़ते हैं, वह खोज रहे हैं। जो खोज रहा है और जो नहीं खोज रहा है, उसका पता लगाना बहुत आसान है।
कल वह गायक सारा विरह गीत गा रहा था। जब उसे बोध हुआ तो मैंने कहा, अब विरह मत गाओ। अब तुम्हें यह मिल गया है। लेकिन फिर भी वह विरह पर चला जाता है, तो भगवान कहेंगे, ठीक है, उसे कोई स्पंदन न हो। तो आप अपना स्पंदन खो देते हैं। आप जानते हैं, छोटी-छोटी बातों में मैंने लोगों को अपना स्पंदन खोते देखा है। इतनी कीमती चीज़ उनके पास लाई गई है। और एक छोटी सी चीज़ के लिए वे उसे खो देते हैं।
एक आदमी था जिसे आत्मसाक्षात्कार मिला। और वह कहीं काशी या कहीं चला गया। वहां से उसने कुछ काला धागा लाया, और उसे पहन लिया। अब इंसान के दिमाग को देखिये. आप कहते हैं कि हम हैं, लेकिन यह मूर्खता है। फिर, उसने वह काला धागा उसे दे दिया। अब आप ही बताइये काला धागा क्या है? क्या महत्व है इस काले धागे का? उसने अपना कंपन खो दिया। जब वह मेरे पास आया तो मैंने कहा, बेटा यह काला धागा फेंक दो। वह फेंक नहीं सकता। उसने कहा, नहीं, नहीं, नहीं, मैं काला धागा नहीं फेंक सकता। मैंने कहा, अब क्या करें? मैंने कहा, यह काला धागा तुम्हें किसने दिया है? अपने दिमाग का उपयोग करो। मैंने उससे चर्चा करते हुए एक घंटा बिताया, फिर उसने काला धागा फेंका। मैंने कहा, इस आदमी ने इस एक छोटी-सी चीज़ के लिए आपसे पाँच रुपये लिये हैं। आपको पता होना चाहिए कि यह आदमी पैसा कमा रहा है। उसकी बुरी स्पंदन खत्म हो गया। और तुम उससे क्यों जुड़े हुए हो? अब क्या आप जानते हैं कि वह क्यों जुड़ा हुआ है? क्योंकि वह उसके प्रभाव में है। तुम मुझे बताओ काले धागे में क्या है? और वह एक पढ़ा-लिखा आदमी है। वह मूर्ख आदमी नहीं है। वह धागा वह फेंक नहीं सका। श्री रूहा, अब आप जाने। मिथ्या को आउट करना होगा। श्री रूहा, आप इसे खरीद लें। आपके पास यह होना ही चाहिए। शक्ति छूटेगा।
आप देखिए, आप जीवन की इन छोटी-छोटी सी चीजों से जुड़े हैं, न कि शाश्वत चीजों से। इसीलिए, इसीलिए आपको इसकी आवश्यकता है। मैं आपसे कुछ भी त्यागने के लिए नहीं कहती। मैं आपसे कुछ भी फेंकने के लिए भी नहीं कहती। मैं यह नहीं कहती कि आप कुछ भी त्यागें। ऐसे लोग हैं जो धूम्रपान करते हैं, शराब पीते हैं। मैं ऐसा भी नहीं कहती। क्योंकि मैं जानती हूं कि अगर मैं कहूं भी तो वे भाग जाएंगे। मुझे पता है कि इंसान ऐसे ही होते हैं। तुम देखो, मैं तुम्हें प्रसन्न करती हूँ। मैंने अनुरोध करती हूँ। मैं ताड़ना देती हूं। मैं तुम्हें डांटती हूं। मैं सब कुछ करती हूं। लेकिन आपको एक बात जरूर जाननी चाहिए कि मैं चाहती हूं कि आप बस वास्तविकता पर टिके रहें। मैं तुम्हारे भीतर झूठ नहीं रहने दूंगी। ऐसे तरीके हैं जो एक माँ अपनाती है। आप देखिए, एक बहुत धूम्रपान करने वाले व्यक्ति मेरे पास आये। उन्होंने मुझसे कहा, "मैं धूम्रपान नहीं छोड़ सकता, इसलिए मैं सहज योग में नहीं आ सकता।" मैंने कहा, "नहीं, नहीं, आप सिगरेट पीना मत छोड़िए। आप मेरे पास आ सकते हो। आपको सहज योग छोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है।" वो आये। और आप जानते हैं क्या हुआ? उसकी नाक, मुंह और चीजों से बहुत सारा धुआं निकलने लगा। उड़बत्ती की खुशबू आने लगी। उन्होंने कहा, "ये क्या हो रहा है?" मैंने कहा, "तुम्हारा सारा धुआं वापस आ रहा है।" अब जब भी वह सिगरेट पीता तो उसे उड़बत्ती की खुशबू आती। उसने छोड़ दिया। तो मैं उसकी मदद के लिए कुछ चालें भी चलूंगी। लेकिन ये आपकी भलाई के लिए ही है। यदि यह आपके नीथों के लिए है, आपके निशहित, आपके कल्याण के लिए है, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए।
एक सवाल था, लोगों ने कहा कि कहते हैं सच बोलना और अच्छा भी लगना चाहिए प्रियम। आप सत्यम और प्रियम एक साथ कैसे कह सकते हैं? क्योंकि यदि आप कुछ सत्य कहते हैं तो लोगों को अच्छा नहीं लगता। यह प्रियकर नहीं है, क्योंकि मान लीजिए कि मैं कहूं कि आप अपनी यह आदत छोड़ दें, तो आपको यह पसंद नहीं आएगा। लेकिन यह एक सच्चाई है। अगर मैं कहूँ कि तुम यह काम मत करो, यह अच्छा काम नहीं है, तो तुम्हें यह काम नहीं करना चाहिए। तो आपको यह पसंद आता। इसलिए क्या करें? तो कृष्ण ने हल निकाल लिया। वह कहते हैं कि आप उन्हें हितम बताएं। हितम बीच में है। जो कुछ भी आपकी आत्मा के लिए हितम् है उसे अवश्य बताना चाहिए। तो भले ही यह अभी प्रिय न हो, कुछ समय बाद यह मुक्त हो जाता है, क्योंकि उसे एहसास हो जाता है कि मुझे इससे क्या मिला है।
निःसंदेह मैं आपमें से किसी को भी खोना नहीं चाहती। मैं नहीं चाहती कि आप किसी भी तरह से अपना स्पंदन खोएं। कभी नहीं। आप ऐसा कैसे चाह सकते हैं? मैं चाहती हूं कि यह आपके पास हो। लेकिन आपको पता होना चाहिए कि आपका मन क्या कर रहा है। कल एक सज्जन यहाँ थे, उनकी कुण्डलिनी ऊपर नहीं उठ पा रही थी, क्योंकि उन पर एक तरह का जुनून सवार हो गया था। इंसान का दिमाग देखिए, यह कैसे काम करता है। फिर उसने मुझे बताया, मुझे एक तस्वीर दिखाई। मैंने मुझसे कहा, "मैं तुम्हें नहीं बताऊंगी।" मैं तो कह रही थी, "मैं तुम्हें नहीं बताऊंगी।" वह मेरी जान के पीछे पड़ा था। "आप मुझे बताएं कि यह क्या है, मेरे साथ क्या हुआ।" तीन दिन तक मेरी ऐसी ही हालत हो गई थी। मैं समाधि में चला गया। मेरे पास ये चीजें थीं। मैं उसे बताना नहीं चाहती थी, क्योंकि मैं जानती हूं कि इससे वह परेशान हो जाएगा। इसलिए मैंने इसे इन सहज योगियों में से एक को दे दिया। मैंने कहा, आप देखिए, उनके अपने हाथ जलाने शुरू हो गये। उन्होंने उसे वापस दे दिया। फिर भी वह मेरी जान के पीछे पड़ा था। उसे मुझे बताना होगा। आपको मुझे बताना होगा। मैंने उसे बताया। मैंने उससे कहा, तुम अच्छे से प्रभुत्व में हो। वह मुझ पर बहुत क्रोधित हुआ। वह कह रहा था, यह कुंडलिनी नहीं है, यह कुछ भी हो सकती है। आप कुंडलिनी को बढ़ते हुए देख सकते हैं। आप इसकी श्वास प्रक्रिया देख सकते हैं। आप इसका चढ़ना देख सकते हैं। आप इसकी क्रियान्विति देख सकते हैं। आप ऐसे लोगों को देख सकते हैं जो इसके बारे में जानते हैं, जो सामूहिक चेतना के बारे में जानते हैं। लेकिन इसके लिए वह मुझसे नाराज हो गये। वह खिसक गया। अब मुझे क्या करना है? आप इसमें खुद को देखें। यही दर्पण है। मैं तुम्हें दिखा रही हूं। एक और व्यक्ति था जो आया। हठयोगी, तुमने वह देखा है। वह एक पुलिसवाला था। तो मैंने उनसे कहा, आपने पतंजला पढ़ी है? उन्होंने कहा हाँ। मैंने कहा, पतंजला में यह पढ़ा जाता है, कहा कि यह गृहस्थों के लिए नहीं है। यह संन्यासियों के लिए है, गुरु के पास जंगलों में बैठने के लिए है। यह यम, नियम, ब्रह्मचर्य और सब कुछ है। उन्होंने कहा, हां ये सच है। आठ काम करने होते हैं। मैंने कहा, क्या आप आठ काम कर रहे हैं? वह बोला, नहीं।
आपकी पत्नी के साथ आपका कैसा रिश्ता है? वह भाग गई है। तब? मैं बहुत क्रोधी हो गया। मेरे गुरु भी बड़े क्रोधी आदमी हैं। अब आप पुलिस वालों को यह सिखा रहे हैं, भगवान ही बचाए? हे भगवान्! उनके पास हृदय ही नहीं बचेगा क्योंकि यदि आप हठ योग करते हैं तो हृदय ऐसा ही हो जाता है। आपने दुर्वासा, उस भयानक व्यक्तित्व विश्वामित्र को देखा है। क्या आप वह बनना चाहते हैं? किसी से कोई स्नेह नहीं है। मैंने ये सब देखा है। मुझे इन हठ योगियों से कहना चाहिए, मेरी इच्छा है कि वे सभी विवाह करें। जो लोग जंगल में बैठे हैं, जो आत्मसाक्षात्कारी हैं। आप देखिए, उनके पास कोई दिल नहीं है, उनके पास कोई भावना नहीं है। मैं आपको बता चुकी हूं कि उनकी भावना क्या है। उनके पास इसके प्रति कोई करुणा नहीं है। वे बस इतना कहते हैं, तुम माँ हो, इसलिए तुम में करुणा है। लेकिन सभी महान संतों का क्या? उनमें करुणा थी। वे शादीशुदा लोग थे। जितने भी हठ योगी हैं, अगर आपको कोई भी हठ योग करने वाला मिल जाए, चाहे पत्नी हो या पति, वे कभी भी शांति से नहीं रह सकते, क्योंकि सभी चक्र खराब हो गए हैं, कोई ब्रह्मचर्य नहीं है।
क्या हुआ? कल सुबह आना। शाम को सत्संग होता है। हम सुबह इलाज करेंगे। ठीक है? हम इसे सुबह करेंगे। क्या हुआ? आप शुक्रवार का व्रत क्यों कर रहे हैं? बंद करिये। तुम्हें व्रत करने को किसने कहा? आपने सिनेमा में देखना (होगा) चाहिए था। अब सिनेमा वाले आकर तुम्हें सिखाएँगे। आप यह बिल्कुल नहीं करेंगे। ये सब हुआ है। यदि तुम अधिक व्रत करोगे तो तुम भाग जाओगे। मैंने तुमसे कहा है कि इसे तीन महीने के लिए छोड़ कर भाग जाओ। अच्छा, पहले तुम कान पकड़कर कहो, मैं कभी व्रत नहीं करूँगा। इसे छोड़ो। मैं उसे दोबारा बुलाऊँगी। व्रत कदापि न करें। क्या ज़रुरत है? तुमसे किसने कहा कि शुक्रवार का व्रत करो? अब सिनेमा वाले आने लगे हैं। हे मेरे भगवान। पहले सिनेमा में धर्म होता था। अब यह अखबारों में है। ठीक है, कल उनकी फोटो ले आना। कोई फोटो नहीं है? ठीक है, उन्हें उनके नाम दिखाओ। ठीक है? उनके सभी नाम दिखाएँ। मैं कल उनका इलाज करूंगी। क्या तुम कल आओगे? सुबह आना। हम कल सब कुछ करेंगे। ठीक है? कल आना।
और अब यदि तू व्रत करेगा, तो देख लेना, मुझ से बुरा कोई नहीं। व्रत के लिए आप क्या करेंगे? तुम्हें भूखा मरने को किसने कहा? क्या भगवान ने यह सब भोजन व्रत के लिये बनाया था? व्रत कदापि न करें। अच्छा बना रखा है। व्रत करो। अपनी जान को मारो। अरे व्रत करने से कुछ नहीं होता। अपने यहाँ तो ऐसे ही लोग भूखे मर रहे हैं। व्रत क्या करने का? जितने भूखे मर रहे हैं, उनको भगवान जी खिलाएंगे? यह सब ब्राह्मणों ने अपना पेट भरने के लिए बनाया है। तुम लोग व्रत करो, खाने को हमको दो। बच्चों का भी पेट भर रहा है।
अरे, उसे बताओ। उसे बताओ, यह एक समस्या है। उसे बताओ क्या करना है। जाओ, वह तुम्हें बताएगी। कौन पागल है? उसे बताओ, मैं समझाऊंगी। जाओ। मेहरबानी से कोई व्रत नहीं करे। सब भूत-प्रेत का मामला है। कल ही मैंने बताया था, व्रत-व्रत मत करो करके।
अच्छा! बेटे, चले जाओ, वह तुम्हें बता रहा है कि क्या करना है। व्रत करते भूत अंदर आते हैं। जैसे ही कोई आदमी कमजोर हो जाता है, वैसे ही भूत पकड़ लेते हैं। व्रत किसे करना चाहिए? सब गलत-सलत बातें बताकर रखी हुई हैं। जाओ, बताएँगे तुम्हें क्या करने का है, अच्छा!
आप क्यों नहीं, आपको कुंडलिनी योग के बारे में कुछ समस्या है, क्या? शंका, सबसे पहले तुम्हें आत्मबोध हुआ? आप कुछ कर रहे हैं, तो गलत हो ही गया। आप चिंता न करें, अभी हम देखेंगे। मान लीजिए, आप देख रहे हैं कि मैं क्या कह रही हूं। मैं आपसे बिल्कुल सहमत नहीं थी। ठीक है, तो यह अच्छी बात है। आप बैठिए, अभी हम देखेंगे। यदि तुम्हें अपना बोध हो जाए, तो अच्छा है। कोई बात नहीं, भूल जाओ। यदि नहीं मिलता है, तो मान लीजिए कि आपके अंदर पहले से ही कोई समस्या मौजूद है, तो वह तुरंत जान जाएँगे। उन्हें तुरंत आपके चक्रों पर पता चल जाएगा; इसमें डिस्कस करने का क्या है। डिस्कस से तो कुछ होने नहीं वाला, वह तो होना पड़ता है; अभी देखो, इसको देखो! हो गया!
ये तो उनका कमाल है कृष्णमूर्ति का, देखो गुर्वनी महाराज एक नमूना है और जाओ उनके पास तुम। और सब लोग बोलते हैं कि माता जी आप क्यों मना करते हैं, सब होने दीजिए। सब लोग बोलते हैं, अरे, सब होने दीजिए मतलब कुंडलिनी गिर जाती है। अब देखिए भाई साहब, आप देखिए, यह देखिए अभी कमाल। यहाँ पे कुंडलिनी आती, no, no; देखिए कुंडलिनी ऊपर आती है और नीचे गिर जाती है। अब इसके लिए मैं क्या करूँ? यह सभी लोग ऐसा करते हैं, आपके चक्र इतने खराब कर दिए कि कुंडलिनी ठहरती ही नहीं, नीचे गिर जाती है। अभी आप बोलते हैं कि सब करो, अब सब कैसे करो, क्या जहर भी खाऊँ? अच्छा-अच्छा, घबराओ नहीं, देखते हैं, बांध देंगे।
वो एक बोलोनी महाराज वहाँ के, हमारे महाराष्ट्र के, उन्होंने सबकी ऐसी कुंडलिनी खराब करके रखी है, जैसे कि कुछ पूछो नहीं। उसका अधिकारी होना चाहिए, उसका सब आना चाहिए। हमारे तो पैर पर ही आपको हम दिखा दें कुंडलिनी का स्पंदन दिखा दें, उसका चढ़ना दिखा दें। कोई अगर डॉक्टर हो तो आप स्ट्रेथोस्कोप से देख सकते हैं उसका चढ़ना-उतरना; जिसको लाभ हुआ, वो जानते हैं, कैसे बताएँ। जो पार हुए, वो हो गए; जिनको हुआ है, उनको हुआ है। अब उस पर शंका करने से क्या फ़ायदा, होना है सो होना है। अच्छा, हाथ ऐसे रखो।
तो आज मैं बताने वाली थी आपसे उस तत्व के बारे में, जो अक्षत है, जिसको सच्चिदानंद के नाम से लोग जानते हैं। वो तत्व जो हमारे हृदय में एक दीप जैसे प्रस्फुटित है, जो हर समय स्फुरित रहता है, जो हमारे हर कामकाज, हमारा हरेक चढ़ना-उतरना, हमारी हर लालसा, हर वासनाएँ और हमारे प्रयत्न, सारी इच्छाएँ—हर चीज़ का साक्षी है। उसका वास हमारे हृदय में रहता है। वो तत्व कुंडलिनी के साथ ही साथ हमारे हृदय में प्रवेश करता है। जैसे ही कुंडलिनी, जैसे मैंने आपसे बताया था, त्रिकोणाकार सिर के जो शिखर हैं, वहाँ से अंदर आ जाती है, और आकर के साढ़े तीन कुंडल में, कुंडलों में अपने त्रिकोणाकार अस्थि में प्रतिष्ठित हो जाती है। सबको समझ में आ रहा है? अंग्रेजी या हिंदी या ऐसा कुछ प्रॉब्लम है? चित्त ज़रा विचलित है। हर कोई हिंदी समझ सकता है? बड़ी कठिन हिंदी में बोल रही हूँ, ज़रा जरूरत से ज़्यादा है क्या? ठीक है!
सबके समझ में आ रही है, हाँ? कान खोलो! हाँ! अगर मैं अंग्रेजी में कहूं तो क्या आप सब मानेंगे? यह तो बहुत ज़्यादा हो गया! हाँ, हिंदी सीखना चाहिए, ज़रूर। ज़रूरी है! इसलिए एक बात तुमसे बताऊँ, अंग्रेजी के विरोध में मैं नहीं हूं, वो तो अंतरराष्ट्रीय भाषा (अस्पष्ट) थी। लेकिन आत्मा की भाषा तो संस्कृत है। इसमें कोई शक नहीं। आत्मा के ऊपर इन लोगों ने ध्यान कब दिया? कभी नहीं। उन्होंने कभी आत्मा की परवाह नहीं की। आप देखिए, इसलिए हमें कुछ सामान्य भाषा का उपयोग करना होगा जो आत्मा के बारे में बात करती है। अंग्रेजी भाषा पर्याप्त नहीं है, मुझे आपको बताना होगा। उनके पास वो अनुभव नहीं हैं, क्योंकि अभी तक वे इसकी गहराई में नहीं गए हैं। और हम बहुत पुराने लोग हैं, प्राचीन लोग हैं। हमारी संस्कृति ईश्वर को जानने की रही है। और सब कुछ संस्कृत में आया है, क्योंकि संस्कृत वास्तव में देववाणी है। इसके अलावा, जब कुंडलिनी गति करती है, तो वह ध्वनियाँ बनाती है। वह अलग-अलग ध्वनियाँ निकालती है, जो हम करते हैं, वे वास्तव में देवनागरी ध्वनियाँ हैं। वे सभी हैं। वे सभी विभिन्न चक्रों पर हैं। यदि मेरे पास समय हो तो मैं आपको वे सभी ध्वनियाँ बताने जा रही हूँ, जो यह उत्पन्न करती हैं। तो हमारी संस्कृत वास्तव में देववाणी है। और यहाँ तक कि जब आप मंत्र बोलते हैं, तो संस्कृत भाषा या देवनागरी के माध्यम से। केवल उच्चारण से ही आप उन्हें बेहतर ढंग से उत्तेजित कर सकते हैं। यदि संस्कृत नहीं, तो कम से कम हिंदी सीखने का प्रयास करें। क्योंकि यह एक प्रकार की सरल भाषा है, और ध्वन्यात्मक भाषा होने के कारण, आप देखिए, इसमें एक ध्वनि है। और वह ध्वनि वह स्पंदनात्मक प्रभाव देती है। आप इसे सीखने का प्रयास करें। हिंदी मेरी मातृभाषा नहीं है। मेरी मातृभाषा मराठी है। मैं हिंदी इसलिए बोलती हूं क्योंकि मैं हिंदी का महत्व जानती हूं। मुझे थोड़ी बहुत अंग्रेजी भी आती है और मैं अंग्रेजी में भी बात करती हूं। इसलिए कम से कम हिंदी जानना बेहतर है। जब हम कोई विदेशी भाषा जान सकते हैं, तो यह बहुत बड़ी बात नहीं है। हम अपनी एक राष्ट्रभाषा जान सकते हैं। इसमें कोई बुराई नहीं है।
मेरा मतलब यह है, मैं इसे राजनीतिक विषय नहीं बनाना चाहती, लेकिन जो मैं कह रही हूं कि अपनी बात कहने के लिए, मेरे लिए मराठी ही ठीक है। बांग्ला बिल्कुल ठीक है। मैं तमिल या तेलुगु के बारे में ज्यादा नहीं जानती, लेकिन तेलुगु भी जानती हूं, तमिल भी, आप जान सकते हैं। क्योंकि, आप देखिए, इस योग भूमि में हमारे पास लोग हैं। यह योग भूमि है। यह योग का महान देश है। आपको पता नहीं, आप हैरान हो जाएंगे, इस भूमि का कण-कण स्पंदित है।
आप देखिए, ये वैज्ञानिक और वे सभी इसे नहीं समझ सकते। जो बहुत अच्छा है। बेशक, वह नष्ट नहीं होने वाला है, लेकिन बात यह है कि वो इसे अपने उद्देश्य के लिए उपयोग नहीं करने जा रहे हैं। हमें वह सब एक तरफ से बंद करना होगा, और हमें कुछ ऐसी चीज को स्वीकार करना होगा जो सिर्फ एक विदेशी, ऐलियन चीज है, और इतनी व्यापक कुछ भी नहीं है। आप कह सकते हैं कि यह समाधान नहीं है, यह हर चीज़ को कवर नहीं करती, तो अंग्रेजी भाषा ही ठीक है। मैं बोल सकती हूं और मैं आपसे बात कर सकती हूं और समझा सकती हूं, लेकिन मैं आपसे अनुरोध करूंगी कि अगर आप थोड़ी सी हिंदी भाषा सीख लें तो यह अच्छी बात है, क्योंकि मुझे यह बहुत कठिन लगती है। आप जानते हैं, मेरा एक भाषण उन्होंने अंग्रेजी में लिखा है, और उसका मराठी में अनुवाद किया गया था, और यह कितनी जबरदस्त बात थी, और अंग्रेजी में मुझे लगता है कि यह एक घटिया शो है, बिल्कुल घटिया शो है। शायद मेरी अंग्रेजी बहुत ख़राब है, शायद वो भी, मैं नहीं जानती, लेकिन शायद ऐसा हो सकता है।
तो, हम सत्, चित्, आनंद की बात कर रहे थे। फिर, मुझे संस्कृत शब्दों का उपयोग करना होगा। अब देखो, मैं क्या कर सकती हूँ? सत्, चित्, आनंद ही परमचेतना, सर्वव्यापी शक्ति है। चित्त ध्यान है, चैतन्य है, चैतन्य है। तुम अभी सचेत हो, मुझे सुन रहे हो। हर पल आप सचेत हैं, लेकिन हर पल अतीत में मृत होता जा रहा है, हर पल भविष्य से वर्तमान में आ रहा है, लेकिन आप इस पल में सचेत हैं, मुझे सुन रहे हैं। एक विचार ऐसे ही उठता है और गिर जाता है। आप विचार का उत्थान तो देख सकते हैं, लेकिन विचार का गिरना नहीं। विचारों के बीच में एक खाली स्थान होता है, जिसे संस्कृत में हम विलंब कहते हैं। बेशक, अंग्रेजी भाषा में ऐसा नहीं है, क्योंकि उन्होंने इसे ऐसा नहीं कहा है। तो वहाँ एक विलंब है, और उस विलंब में, यदि आप रुक सकते हैं, तो आप चेतन, चेतन मन तक पहुँच जाते हैं, और वहाँ सत्, चित, आनंद मौजूद होता है। सत्, चित, आनंद मन की स्थिति है, आप कह सकते हैं, या मन की वह स्थिति है जहां कोई विचार नहीं है लेकिन आप जागरूक हैं। लेकिन कोई विचार नहीं है, निर्विचार, पर तुम जागरूक हो। वह पहली अवस्था है जहां आप अतिचेतन में छलांग लगाते हैं। इसलिए कुछ लोग सोच सकते हैं कि आपको आत्मसाक्षात्कार से कुछ हासिल करना होगा जैसा कि आदि शंकराचार्य ने हासिल किया है। यह संभव नहीं है। कुछ के साथ ऐसा हो सकता है, बहुत कम के साथ, लेकिन हर किसी के साथ नहीं। पहली अवस्था है निर्विचार। आप बिना विचारों के जागरूक हो जाते हैं। यह तो बस पहली अवस्था है। ऐसा तब होता है जब कुंडलिनी आज्ञा चक्र से ऊपर उठती है, यानी लिम्बिक क्षेत्र में प्रवेश करती है। उस समय आपका ध्यान केवल सप्त बिंदु, सप्त को छूता है। वास्तविकता स्वयं से अलग हो जाती है। उस स्तर पर आप अलग होना शुरू करते हैं।
जैसे दूध में आप दही डालते हैं या आप कह सकते हैं कि आप नींबू डालते हैं, यह पानी और दही में अलग हो जाता है। उसी तरह शुरुआत होती है, यह शुरुआत है। यह वह अवस्था है जब आप कह सकते हैं कि कुंडलिनी जागृत हो गई है। समझना चाहिए कि यह अवस्था है। जैसा कि होता है, मैं आपको बहुत कम बता रही हूं, लेकिन नाममात्र के लिए कुंडलिनी ज्यादातर मामलों में झट से उठती है। लेकिन कुछ लोगों में ऐसा नहीं होता है। समय लगता है। वह स्वाधिष्ठान में खो जाती है। यह नाभि में खो जाती है। यह ज्यादा ऊपर नहीं जाती। इसे हृदय चक्र पर अटक जाती है या हो सकता है कि यह बिल्कुल भी न उठे। लेकिन अगर यह आज्ञा चक्र के इस द्वार को पार कर जाती है, तो आप विचारहीन जागरूकता की स्थिति में आ जाते हैं। विचारहीन जागरूकता के साथ, जैसे कि आपको जो भी स्थिति मिलती है, मान लीजिए कि आप राज्यपाल बन जाते हैं, तो आपको एक निश्चित शक्ति मिलती है। उससे आपको कुछ शक्तियां प्राप्त होती हैं। लेकिन इस अवस्था में कुंडलिनी छोड़ना अच्छी बात नहीं है। क्योंकि उस अवस्था में कुंडलिनी इधर-उधर घूमना शुरू कर सकती है, संभवतः अतिचेतन तक जा सकती है या अवचेतन, सामूहिक अवचेतन तक जा सकती है। लोगों को अधिकतर सिद्धियाँ इसी अवस्था में प्राप्त होती हैं। कुछ, शूद्र सिद्धियाँ नहीं, बल्कि उच्चतर सिद्धियाँ, जैसे कि आप देखते हैं, वे भविष्यवाणी कर सकते हैं। वे कह सकते हैं कि यदि कुंडलिनी अतिचेतन में चली गई है, तो ऐसा होने वाला है। यदि कुंडलिनी सामूहिक अवचेतन में चली गई है, तो वे चीजें देखना शुरू कर सकते हैं।
एक व्यक्ति जो ऐसा है, वह मेरे पास आता है, वह देख सकता है कि मैं अपने पिछले जीवन में कौन थी। मुझे उन्हें मनाना नहीं है, यह वही चीज़ है जो आविष्ट व्यक्ति को प्राप्त होती है। जो व्यक्ति नशा करता है, मान लीजिए कि वह पिछली दुनिया का असली शराबी है और वह एक अच्छी आत्मा है, वह अभी भी भगवान की तलाश कर रहा है, ऐसा व्यक्ति मुझे एक अलग रूप में देख सकता है। वह मेरा अतीत देख सकता है, वह मुझ पर अत्यधिक मोहित हो सकता है। उसे पता होगा कि मैं थी, क्योंकि आप देखिए, लोग सोचते हैं कि अतीत हमेशा वर्तमान से बड़ा होता है, क्योंकि अतीत आज की तुलना में बहुत बड़ा रहा है, हालांकि मैंने पहले कभी किसी को आत्मसाक्षात्कार नहीं कराया था, लेकिन यह एक महान अतीत था, क्योंकि इंसान ऐसे ही होते हैं। इसलिए जब वह ऐसी चीजें देखता है तो वह मोहित हो जाता है। ऐसा उन लोगों के साथ होता है जो अतिचेतन स्तर पर होते हैं यदि वे बाहर निकलते हैं। यदि वे बाहर निकलते हैं, तो मुझे खेद है, यह तब होता है जब लोग बाईं ओर जाते हैं, वह अतीत में है। जो लोग दाहिनी ओर निकलते हैं, वे मुझे प्रकाश के रूप में देख सकते हैं। वे प्रकाश देखते हैं। वे सभी पाँच तत्वों को देखते हैं, वे मुझे झरने या हिमखंड के रूप में देख सकते हैं। उन्हें तन्मात्र दिखाई देने लगता है।
अब फिर से संस्कृत शब्द का अर्थ है आकस्मिक, हम कह सकते हैं कारण सार, अहंकार का कारण सार। इससे उन्हें आश्वस्त होने में मदद मिल सकती है, क्योंकि ऐसा व्यक्ति मेरे बारे में आश्वस्त हो जाता है, इसमें कोई संदेह नहीं है। ऐसा व्यक्ति आपसे कहीं अधिक आश्वस्त होता है। अब बहुत सारे तांत्रिक हैं जो जानते हैं कि मैं कौन थी, वे मुझसे डरते हैं, वे मेरे बारे में बात करते हैं, वे मेरे बारे में बताते हैं।
एक साधारण नौकरानी थी, जो मेरे कार्यक्रम में आई थी और वह इसे देख रही थी। वह संस्कृत बोलने लगी और उसने मेरा पूरा वर्णन किया, पंद्रह श्लोक उसने बोले। पहली बार मैंने अपने बारे में, कभी कुछ नहीं कहा, इस तरह इसकी शुरुआत हुई। तो उस स्तर पर मैं आपकी कुंडलिनी को छोड़ना नहीं चाहूंगी, क्योंकि आप लोगों को ठीक कर सकते हैं, limbic क्षेत्र में भी आपकी कुंडलिनी से उपचार किया जा सकता है। मैं सदैव इस बात के लिए उत्सुक रहती हूं कि यह ब्रह्मरंद्र से बाहर आ जाए। उस अवस्था में आपको स्पंदन मिलना शुरू हो जाता है। लेकिन इस स्तर पर आप केवल एक चित्त हैं और आप बस ऐसे बिंदु को छूते हैं। आपका ध्यान केवल आत्मा द्वारा आकर्षित होता है, केवल ध्यान वाला भाग। आत्मा, जैसा कि मैंने आपको बताया, गैस लैंप में टिमटिमाती रोशनी की तरह है। और कुंडलिनी एक गैस की तरह है जो आत्मा को छूती है और आत्मा का प्रकाश केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में फैल जाता है। लेकिन केवल चित्त भाग, बाहरी कोर ही चित्त है, अर्थात ध्यान वाला भाग। उस अवस्था में जब कुंडलिनी ब्रह्मरंद को खोलती है, उस समय आपको जो महसूस होता है आपके हाथ के स्पंदन; और आप दूसरे व्यक्ति के भी महसूस कर सकते हैं, क्योंकि आप सामूहिक रूप से जागरूक हो जाते हैं। केवल सामूहिक रूप से जागरूक। पुनः, सच्चिदानन्द में से आप केवल चित्त भाग को स्पर्श करते हैं। तो आपको अपने चित्त का चित्त सामूहिक चेतना का चित्त बनते हुये महसूस होने लगता है। इसका मतलब है कि आप सच्चिदानंद के सागर में डुबकी लगाते हैं जिसमें आप केवल सामूहिक चेतना को महसूस करते हैं। इसका मतलब है कि आप किसी अन्य व्यक्ति की कुंडलिनी को महसूस कर सकते हैं। कल एक सज्जन थे, जैसा कि आपने देखा, वह मुझसे बहस कर रहे थे - कि आपने खुफिया जानकारी वगैरह सब बंद कर दी है। मैंने कहा, ये सस्पेंडेड क्या होता है? तो मैंने उनसे कहा, ‘मुझे इस बात की जानकारी नहीं है।’ उन्होंने कहा, मैं तुरिया दशा में हूं। मैंने कहा, यदि आप तुरीय में हैं तो आप किसी अन्य व्यक्ति की कुंडलिनी को महसूस कर सकते हैं। वह यह प्रमाणित नहीं कर सका कि आपके पास ऐसा है। क्या आप किसी अन्य व्यक्ति की कुंडलिनी को महसूस कर सकते हैं? वह कहता है, नहीं; मैंने कहा, फिर आप तुरीया में कैसे हो सकते हैं? यदि आप तुरीया में जाते हैं, इसका मतलब है कि यदि आप इस चरण को पार कर लेते हैं, तो आपको किसी अन्य व्यक्ति की कुंडलिनी को महसूस करना होगा। अब आपने देखा कि ऐसे कई लोग हैं जो इसे महसूस कर सकते हैं। और वे सभी एक ही बात, एक ही भाषा कहते हैं। जहां अंग्रेजी हो, हिंदी हो या कुछ भी हो, वे एक ही बात कहते हैं कि उसका चक्र है, यह चक्र छू रहा है, वह चक्र छू रहा है, ऐसा नहीं है। क्योंकि आप अपनी कुंडलिनी देखना शुरू करते हैं, आप दूसरे व्यक्ति की कुंडलिनी देखना शुरू करते हैं। क्योंकि उंगलियों पर आप इसे महसूस कर सकते हैं। आप उंगलियों पर महसूस कर सकते हैं कि क्या हो रहा है। तो आप सिर्फ चित्त को महसूस करते हैं, आनंद को नहीं। पहला चरण केवल चित्त है, कि आप किसी अन्य व्यक्ति की कुंडलिनी को महसूस करते हैं, आप किसी अन्य व्यक्ति की कुंडलिनी को बढ़ा सकते हैं, आप थोड़ी देर बाद किसी अन्य व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कार भी दे सकते हैं। निःसंदेह मेरी तस्वीर का उपयोग करना होगा, लेकिन फिर भी आप कर सकते हैं।
लेकिन आनंद की अवस्था अभी तक छू नहीं पाई है। तो शुरुआत में आप बस हाथ में ठंडी हवा महसूस करते हैं, आप शांति महसूस करते हैं, शांति भी महसूस करते हैं, कोई विचार नहीं होता है, आप विचारहीन जागरूकता महसूस करते हैं। लेकिन आनंद भाग पहली शुरुआत में महसूस नहीं किया जाता है। क्योंकि अब मैंने हजारों मनुष्यों का अध्ययन किया है और उनकी समस्याओं को देखा है और यह एक सच्चाई है। लेकिन कुछ लोग हैं, जैसा कि मैंने आपको बताया है, जो अंतिम चरण तक पहुंचते हैं, बहुत कम, बहुत, बहुत कम। लेकिन हमारे बीच में एक या दो लोग ऐसे हैं जिनके बारे में आप कह सकते हैं कि वे उस स्तर तक भी पहुंच चुके हैं। शायद उन्हें इसका एहसास नहीं है, लेकिन आनंद वे इसे महसूस कर सकते हैं। तो पहला चरण जब आप आते हैं, वह चित्त चरण, चेतना चरण है। आप सत् को छूते हैं, कि आप वास्तविकता को देखना शुरू करते हैं, यह एक बात है कि आप बह रहे हैं, कुछ बह रहा है। फिर आप कहने लगते हैं कि यह जा रहा है, यह आ रहा है, इसी तरह आपने कहा कि यह आ रहा है। आपने यह नहीं कहा, मैं ले रहा हूं, मैं दे रहा हूं, यह आपकी भाषा से बाहर चला जाता है। लेकिन अभी भी अहंकार और प्रति अहंकार पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुआ है, वे अभी भी वहीं हैं, लेकिन आपका ध्यान ऊपर आ गया है और आप चित्त को महसूस करते हैं। इस सामूहिक चेतना से आप लोगों को ठीक कर सकते हैं, आप उन्हें आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं जैसा कि मैंने आपको बताया और साथ ही आप पूरी दुनिया में किसी भी व्यक्ति की कुंडलिनी को महसूस कर सकते हैं और आप उस व्यक्ति की कुंडलिनी को ठीक भी कर सकते हैं। मेरा मतलब इलाज से है, कुंडलिनी से नहीं, बल्कि मैं यह कह रहा हूं कि चक्रों को ठीक करें या सामने वाले के चक्रों को सुधारें, यहां बैठकर आप ऐसा कर सकते हैं। यदि आप रुचि लें तो आप यहां बैठे-बैठे किसी अन्य व्यक्ति की कुंडलिनी की स्थिति के बारे में बता सकते हैं। जहां भी आपका ध्यान जाता है वह काम करता है, चित्त। तो आपका ध्यान सार्वभौमिक हो जाता है, आपके ध्यान की बूंद सत् चित् आनंद के सागर के साथ एक हो जाती है, उसमें से केवल ध्यान का हिस्सा होता है।
मेरी बात बहुत ध्यान से सुनें, क्योंकि इस स्तर पर कई लोग पढ़ाई छोड़ देते हैं। यहाँ बैठ कर, जहाँ भी ध्यान लगाते हैं, वही ध्यान प्रभावी हो जाता है। अब मैं आपको अपने एक शिष्य के बारे में बताऊंगा जो इंग्लैंड से आया है। एक दिन वह बैठा हुआ था और अपने पिता के बारे में सोच रहा था, अचानक उसकी उंगली में जलन होने लगी, उसकी उंगली में जलन होने लगी, उसने अपने पिता को फोन किया और कहा, आप कैसे हैं? तो माँ ने कहा कि वह बहुत बीमार है, उसके गले में तकलीफ हो गयी है। इस लड़के ने अपनी उंगली पर कुछ किया और वह सब, पिता ठीक हो गया, वह कर सकता है। अब, वह सोच सकता है कि वह बहुत शक्तिशाली है, वह ऐसा नहीं करता है, वह नहीं करता है, वह उस तरह से नहीं सोच सकता है। वह सोच नहीं सकता। आप देखिए, क्योंकि संपूर्ण वहां बनाया गया है। तो वह बस यही कहता है, माँ मुझे ऐसा लगा और मुझे ऐसा लगा और वह बिल्कुल ठीक था। वह कभी नहीं कहता कि मैं ठीक हो गया, मैं बाहर चला जाता हूं।
भाषा में, उन शब्दों में कि आप, आप यह नहीं कहते कि मैंने यह किया। आप कहते हैं कि यह आया, यह गया, यह हुआ। यह बाहर नहीं आ रहा है। तुम कहोगे, तब भी यही कहोगे, माँ, आज मेरी आज्ञा पकड़ रही है। माँ, मेरा दिल धड़क रहा है. वो आकर अपने बारे में ऐसा कहते हैं। अब कहें कि अज्ञेय पकड़ रहा है तो इसका मतलब है कि यह थोड़ा परेशान करने वाला है, लेकिन इसमें किसी को बुरा नहीं लगता। क्योंकि वह अपनी कुंडलिनी से नहीं जुड़ा है, वह अपने चक्रों से, मेरा मतलब अपने चक्रों से, बल्कि अपनी आत्मा से जुड़ा हुआ है। तो वह कहते हैं, एक आत्मा के रूप में, वह कहते हैं, हे भगवान, यह चक्र पकड़ा गया है, वह चक्र पकड़ा गया है। एक व्यक्ति, जो अब, मान लीजिए, कैंसर से पीड़ित है, नहीं जानता कि वह पीड़ित है कैंसर से, लेकिन एक आत्मज्ञानी व्यक्ति जिसे आत्मसाक्षात्कार हो जाता है, उसका ध्यान उसे बताएगा कि ये चक्र अव्यवस्थित हैं। और इतने सारे चक्रों के ख़राब होने का मतलब है कैंसर। उसे डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है, वह खुद ही इसका निदान कर सकता है।
लेकिन वह डॉक्टरों की तरह निदान नहीं करेगा, कि आपको दिल का कैंसर है और इस चीज़ का कैंसर है और उस चीज़ का कैंसर है। लेकिन वह कहेगा कि ये चक्र पकड़े गए हैं, बाएँ या दाएँ। अब यह कहां से आ रहा है, कितनी दूर जा रहा है, वह चक्रों की गहराई बता सकता है। क्योंकि चक्र यहीं से शुरू होते हैं और यही शून्य है। तो चक्रों की गहराई वह आपको बता सकता है, यह यहां से है, वह यहां से पकड़ रही है, वह वहां से पकड़ रही है, वह वहां से पकड़ रही है। लेकिन कई अमूर्त चीजें होती हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण बात है। एक बार तुम्हें बोध हो जाए तो चिरंजीव तुम्हें समर्पित कर देते हैं। वे वही हैं जो आप बन जाते हैं। आप उनकी जिम्मेदारी बन जाते हैं। सभी देवता आपसे दूर हैं। यदि आप देवताओं के विरुद्ध कुछ भी करते हैं, तो वे तुरंत आपको मार देंगे। जिस व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कार मिल गया है, यदि वह ऐसी जगह पर जाता है जिसे देखा नहीं जा सकता है या जिसे महसूस नहीं किया जा सकता है, जो अच्छी जगह नहीं है या गुरु या उसके जैसा कोई नहीं है, तो तुरंत उसे गर्मी महसूस होगी। यदि वह भागता नहीं है, यदि वह अभी भी आगे बढ़ता रहता है, तो उसका कंपन खो जाएगा और वह दूसरे व्यक्ति की तरह ही बन जाएगा। तो फिर भी मैं यही कहूंगा कि यह एक बहुत ही क्षणभंगुर स्थिति है, क्योंकि अभी भी इस बिंदु पर प्रतिकर्षण इतना अधिक नहीं है कि आदमी इसे स्वीकार न कर ले। क्योंकि यदि आप इसे स्वीकार कर लेते हैं, तो आप वैसे ही बन जाते हैं। यदि आप इसे स्वीकार नहीं करते हैं, तो यह आपके लिए एक छोटी सी शारीरिक समस्या हो सकती है। आपकी उंगलियां थोड़ी जल सकती हैं या यहां थोड़ी जलन हो सकती है या ऐसा ही कुछ। लेकिन अगर आप इन शारीरिक चीज़ों से डरते नहीं हैं और अगर आप इसे स्वीकार नहीं करना चाहते हैं, तो आप ऊंचे उठने लगते हैं। लेकिन जैसा कि मैंने तुमसे कहा था, सभी चिरंजीव तुम्हारी देखभाल करते हुए उठने लगते हैं। यदि रेलगाड़ी में एक भी आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हो तो दुर्घटना नहीं हो सकती। और अगर कोई दुर्घटना हो जाए तो उस ट्रेन में किसी की मौत नहीं होगी। यदि कोई आत्मसाक्षात्कारी... वे घायल हो सकते हैं। वे घायल हो सकते हैं। ओह, घायल हो सकते हैं। परंतु, आप देखिए, हमें एक घटना याद है, हमने एक घटना देखी है जहां यह घटित हुआ था। वे इतने मामूली रूप से घायल हुए थे कि उनमें से कोई भी उन्हें अस्पताल नहीं ले गया। मेरा मतलब है, थोड़ी बहुत खरोंच आई होगी, लेकिन उन्होंने मुझे यही बताया।
एक आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति था जो एक ट्रेन से यात्रा कर रहा था जो किसी थाने या किसी स्थान पर टकरा गई। फिर... यदि एक आत्मसाक्षात्कारी आत्मा, एक आत्मा सड़क पर चल रही है। मैं अब, आत्मज्ञानी हूं जिसे निर्विचार कहा जाता है, मैं कह रहा हूं। आप देखिए, हमें उसे तोड़ना होगा। सड़क पर चलते हुए अगर उसे कोई हादसा दिखता है तो उसका ध्यान उधर चला जाता है। तुरंत ही हादसा टल जाता है। हाँ। यदि उसे कोई अनहोनी दिख जाए तो वह टल जाती है। ध्यान। आप देखिए, उसका ध्यान धन्य हो रहा है। अब, यह एक वैज्ञानिक के लिए समझ में नहीं आता है।
नहीं, नहीं, नहीं, नहीं। आंतरिक देवता उसके ही अंश हैं। जैसा कि आप कह सकते हैं, मैं अपने दिमाग से निर्देशित होता हूं, इसलिए मैं और कुछ नहीं कर सकता। आप देखिए, देवता आपके आंतरिक अंग हैं, आप स्वयं। फिर स्वयं क्या बचा? आपका स्व क्या है? जब आप उसके साथ एक हो जाते हैं, तो अब आप समाप्त हो जाते हैं। आप एक खोखला व्यक्तित्व बन जाते हैं। तब तुम्हें यह आत्म-बोध नहीं रहता। फिर हर समय तुम जो कहते हो, वह हो रहा है, वह जा रहा है, वह बह रहा है, यह काम कर रहा है, यह।
आप ऐसे भी कह सकते हैं, ये छोटी बच्ची कहती है, काव्या, ये कहती है, ये काव्या नहीं जाऊंगी। वह बहुत जिद्दी है। अभी उसकी आज्ञा पकड़ी गई है, इसलिए वह नहीं जाएगी। वह खुद से बाहर खड़ी है और वह खुद की आलोचना करती है। वह कहती है, उसकी आज्ञा पकड़ी गई है, वह नहीं जाएगी। वह बहुत जिद्दी है। वह काव्या नहीं है। बच्चे भी कई बार ऐसा कहते हैं, अगर आप ध्यान दें तो किसी तीसरे व्यक्ति की तरह। आप खुद को तीसरे व्यक्ति के रूप में देखना शुरू कर देते हैं। आप स्वयं की पहचान स्वयं से नहीं करते हैं।
ऐसा होता है। आप इन लोगों को देखेंगे कि ये कैसे काम कर रहे हैं। फिर थोड़े से आनन्द का भी एक भाग है, जिसे तुम्हें जानना चाहिए, आनन्द, आनंद। आप देखिए, आम तौर पर आप पाएंगे कि अधिकांश सहज योगी एक के आसपास इकट्ठा होंगे, वह व्यक्ति जो आत्मसाक्षात्कारी है, जो आत्मसाक्षात्कारी है, जो कोई कठिन व्यक्ति नहीं है। इसके अलावा, यदि कोई ऐसा व्यक्ति है जो मेरे पैर पर आता है, जो बहुत महान आत्मा है। मैं आपको कलकत्ता में बताऊंगा कि मैं वहां गया था। और मैं एक होटल में रुका हुआ था। और वहाँ एक बहुत अच्छा आदमी था जो मुझसे मिलने आया था। आप देख सकते हैं, उन्हें आत्मसाक्षात्कार नहीं हुआ था, लेकिन वे महान सुरव सम्पदा के साथ एक बहुत ही संत व्यक्ति थे। और उसने बस मेरा पैर छुआ। और अन्य सहज योगी अन्य कमरों के साथ, वे सभी वहां पहुंचे। मैंने कहा, तुम क्यों आये? उन्होंने कहा, हमारे भीतर बड़ा आनंद आने लगा तो हम आ गये। और वे खड़े थे, वह हर समय मेरे पैर पर था। और वे खड़े थे, मैंने कहा, न तो वह मुझे छोड़ेगा, न तुम मुझे छोड़ोगे। पंद्रह मिनट तक वो बस मेरे पैरों का रस पीता रहा। और वे उसके अमृत और उसकी सुगंध का आनंद ले रहे थे। तो दूसरे इंसान का आनंद लेने का आनंद भी शुरू हो गया।
तो तीन चीजें, आप निर्विचार, समाधि का आनंद कैसे लेते हैं। क्योंकि समाधि का मतलब अचेतन में जाना नहीं है। लेकिन अचेतन चेतन हो जाता है। जो अभी तक चेतन नहीं है वह चेतन हो जाता है। अचेतन, सार्वभौमिक अचेतन चेतन हो जाता है। तो यह पहला चरण है जब यह है। ऐसी बहुत सी बातें हैं। और तरह-तरह की चीजें होती हैं। मान लीजिए कि आप अपने पिछले जीवन में बहुत सारी प्रकाश पूजा करते रहे हैं, जिसे हम ज्योति पूजा कहते हैं। तब आप चक्रों, मेरे मौजूदा कंपनों को देख सकते हैं। यहां दो, तीन लोग हैं जो मेरी तरंगों को आते, जाते हुए देख सकते हैं। वे सारी हलचल और हर चीज़ देखते हैं। मान लीजिए कि आप देवी पूजा कर रहे हैं, तो कहें कि आप देवी पूजा हैं। आपके पास उसकी एक सम्पदा है, एक देवी पूजा की। फिर आप देवी प्रमाण का कुछ देखते हैं, आप उसे भी देख सकते हैं। यह पहले देखने से बेहतर बात है। क्योंकि अगर आप अहसास से पहले देखते हैं तो इसका मतलब है कि आप एक आविष्ट व्यक्ति हैं, कोई आपको विचार दे रहा है। बोध के बाद आप कुछ चीजें देखना शुरू करते हैं। तब इसका कुछ मतलब होता है। तो फूल का धीरे-धीरे विकास शुरू हो जाता है। फिर दूसरा चरण जहां आप निर्विकल्प हो जाते हैं, जहां कोई विकल्प नहीं है। अभी दिल्ली में ऐसे बहुत कम लोग हैं, बहुत कम। क्योंकि सबसे पहले स्वभाव से वे विकल्पी होते हैं। कारण यहां पूर्णतया विकल्प का वातावरण है। यदि आप कुछ कहेंगे तो दूसरा कुछ और कहकर आपको नीचे खींच लेगा। तो बात यह है कि पूरा वातावरण इतना विकल्पपूर्ण है कि आप अभी तक इसके बारे में, इस सहज योग के बारे में तय नहीं कर पाए हैं। अभी भी विकल्प में हैं। लेकिन हमारे पास दिल्ली में भी कुछ बहुत महान सहज योगी हैं, बहुत महान। तो विकल्प वहाँ है। अब आप कहेंगे कि आप निर्विकल्प कैसे बनते हैं? मान लीजिए कि आप पानी में हैं, तो आपको डूबने का डर है। तुम्हें उठाकर नाव में डाल दिया जाता है। तो आपको डूबने का डर नहीं है। लेकिन आप कब सेटल हैं? जब आप सेटल हो जाएं। मेरा मतलब है कि यह ऐसी स्थिति है कि आप नाव में कब बसे होते हैं? जब आप एक नाव में स्थापित हो जाते हैं। मेरा मतलब है कि मैं आपको इसी तरह उत्तर दे सकता हूं। तुम्हें व्यवस्थित होना होगा। लेकिन उससे आपको एक निश्चित शक्ति मिलती है। आपकी कुंडलिनी दिखाई देने लगती है, आप देखिए।
हमारे पास बंबई में कुछ लोग हैं जिनकी कुंडलिनी कम से कम एक फुट ऊंची है, एक फुट ऊंची है। आप देख सकते हैं। आप शायद नहीं, लेकिन बहुत से लोग इसे देख सकते हैं। और वे बहुत गहरे लोग हैं, बहुत गहरे। निर्विकल्प अवस्था में सामूहिक चेतना अत्यंत सूक्ष्म, सूक्ष्म, सूक्ष्म हो जाती है। उस अवस्था में आप चीजों के बहुत गहरे महत्व को समझ सकते हैं। और वास्तविकता स्पष्ट होने लगती है। उदाहरण के लिए, आप कुंडलिनी की कार्यप्रणाली को समझना शुरू करते हैं। आप यह समझने लगते हैं कि यह कैसे प्रवेश करता है। आप यह समझना शुरू कर देते हैं कि यह कैसे काम करता है। आप इसे अपने हाथों से प्रयोग के लिए उपयोग कर सकते हैं। आप इसे अपनी इच्छानुसार घुमा सकते हैं। आप लोगों को ठीक कर सकते हैं और दिखा सकते हैं कि कुंडलिनी विभिन्न तरीकों से काम कर रही है। आप कुंडलिनी का संयोजन और क्रमपरिवर्तन और संयोजन कर सकते हैं। आप कह सकते हैं कि संगीत के पहले वर्ष में आप केवल सात स्वर और दो अन्य स्वर सीखते हैं, बस इतना ही। और साधारण राग। लेकिन जब आप सूक्ष्म और उच्चतर हो जाते हैं तो आप सभी सूक्ष्म बिंदुओं को जान जाते हैं कि कैसे सृजन करना है। तो निर्विकल्प में आपको किसी व्यक्ति की ओर हाथ बढ़ाने की जरूरत नहीं है, कुछ भी नीचे बैठने की जरूरत नहीं है। आप जानते हैं कि यह कहां है, क्या हो रहा है, कौन पकड़ रहा है, समस्या क्या है, सामूहिक समस्या क्या है। तब आपको सहज योग के बारे में कोई संदेह नहीं है, न ही कुंडलिनी के बारे में, न ही किसी भी चीज़ के बारे में, कोई संदेह नहीं है। लेकिन उस समय आप इसके साथ प्रयोग करना शुरू कर देते हैं, आप इसका उपयोग करना शुरू कर देते हैं, महारत हासिल होने लगती है। इस स्तर पर चित्त, चेतना सूक्ष्म हो जाती है।
अब मेरे साथ कोई बैठा था, बाहर उन्हें पता था कि इन सज्जन को आत्मसाक्षात्कार मिलने वाला है। वे जानते थे कि माँ किसी को आत्मसाक्षात्कार दे रही थीं। ऐसे लोग बहुत संतुष्ट व्यक्ति होते हैं। वे छोटी-छोटी बातों पर शिकायत या शिकायत नहीं करते। वे छोटी-छोटी बातों में बिल्कुल भी नहीं पड़ते। उन्हें कोई परेशानी नहीं है। वे एक बड़ी दुनिया में रहते हैं। उन्हें छुआ नहीं जाता। उनका ध्यान स्थूल में है। उनके पास बाहरी स्थूल चीज़ों के लिए समय नहीं है। इसलिए उनका ध्यान पवित्र रूपों में बहुत गहरा है। उन्हें कोई परेशानी नहीं है। ऐसे लोग संतुष्ट आत्मा होते हैं। ऐसे लोग ही सहज योग के लिए एक स्तंभ तैयार करने वाले हैं। क्योंकि जब कोई ऐसे व्यक्ति को देखता है तो उस जैसा रूपांतरित व्यक्ति चौंककर कहता है कि इस आदमी को देखो, यह इतना महान व्यक्ति है और यह इतना भयानक आदमी था और यह ऐसा कैसे हो गया? वह कैसे रूपांतरित होता है? इस अवस्था में, निर्विकल्प अवस्था में, कंपन बाहर निकल जाते हैं। तो अब तुम मेरे साथ बैठ सकते हो। आप शुरू करें। फिर कोई सवाल ही नहीं उठता। और ऐसा आदमी अगर किसी को मेरे साथ दुर्व्यवहार करते हुए देख ले तो वह भयानक गुस्से में आ सकता है। दुर्व्यवहार बर्दाश्त नहीं कर सकते। ईसा मसीह ने कहा कि उन सभी को माफ कर दो क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं। लेकिन अगर उन्होंने उसकी माँ के खिलाफ कुछ भी किया होता, तो वह इतना भी माफ नहीं करता जितना मैं आपको बता सकता हूँ, इतना भी। और बाइबल में लिखा है कि पवित्र आत्मा के ख़िलाफ़ कुछ भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और पवित्र आत्मा उसकी अपनी माँ है, आदि शक्ति है।