Public Program 2000-03-25
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25 मार्च 2000
Public Program
New Delhi (भारत)
Talk Language: English, Hindi | Transcript (Hindi) - Draft
Hamari Atma Kya Chij Hai Date 25th March 2000: Place Delhi: Public Program Type
[Original transcript Hindi talk, scanned from Hindi Chaitanya Lahari]
की। एंसा मुझें लगता है कि लोग जा हैं को हमें केवल सत्य मिला नहीं। जिस चीज को पीतल में खाना नहीं खाएंगे और लोहे में खाना बुद्धि ठीक समझतो थी उसी को हमने सल्य मान खाएंगे। इस प्रकार की बहुत ही औपचारिक बाते लिया। फिर बहकते-बहकते ये बुद्धि उस दिशा इसमें लिखी हैं। लेकिन जो दृश्य हैं जो सामने चल पडी कि कॉई सा भी काम करों व दिखाई देता है यो बहुत भयानका है और बहुत आज तक हम लोग जानते ही नहीं थे कि आ है। ठीक है, अच्छा है। इससे लाभ है ये ही करना विचलित करने वाला है। इसके पोछे यही कहना चाहिए। सत्य से परे सनुष्य भटक गया और चाहिए कि मनुष्य को अपना रास्ता नहीं मिला भटकते-भटकते पता नहीं कौन सी खाई में और वह कहा से कहा भटक गया! उसकी सुख जाकर गिरा। ये देख कर के लोग सोचते हैं कि नहीं मिला। इस सुख की खोज में वो गलत ऐसे कैसे हुआ? ऐसी स्थिति क्यों आई? मनुष्य चीजों के पोछे भागा जिसे मुगतृष्णा कहते हैं। इस के अन्दर जो बुद्धि हैं उस बुद्धि की उस तरह प्रकार मनुष्य भटकते भटकते घार डूब गया। वो ये भी नहीं जानता कि जा मैं कर अँधकार में से कुबुद्धि में परिवर्तित क्यों कर दिया? उसको रहा हूँ वो कुकर्म है और इस कुकर्म का फल सुबुद्धि बनाना था। बो कुबुद्धि हो गई! और उस कुबुद्धि से ऐसी ऐसी चीजें निकलने लगी जिससे न तो दूसरों को कोई सुख हो सकता है न तो स्वयं को कोई सुख हो सकता है। हम लोग कभी-कभी समझ में नहीं आता कि ये संसार मुझको तो बुरा मिलंगा हो और को भी मिलेंगा। इस तरह की चीजें इतनी बढ़ गई है कि कभी-कभी घवरा जाते हैं सोच कर के कि ये कहा जाने वाला है। अपने देश में अनेक प्रश्न हैं और देशों में भी बहुत से प्रश्न हैं। ये सांवना कि का हिंसक कार्य हो रहा है। छोटे-छोटे बच्चों बाहर के लोग बहुत ठीक हैं ये गलत बात है। तक को कोई नहीं छोड़ता। इस तरह की अनेक वो भी खोज में लगे हैं और उस खोज में वह क्या हो रहा है। मारकाट हो रही है और हर तरह विकृतियां हमारे अंदर जो जागरूक हो गई हैं। देखना चाहते हैं कि किस तरह से बों उस स्थिति उसकी देख कर के यही मैं कह सकती हैँ कि का प्राप्त करें जिससे वा मनुष्यता ता कम से घोर कलयुग है। कलयुग की परिसीमा है। इतना तो वर्णन शास्त्री में भी नहीं है कि ये ऐसा काल कम पा लें। इसका जो भी परिणाम है बी ये है कि सनुष्य निराशा में चला गया, उसक अंदर गहन निराशा आ गयो वो सोचता हैं अब क्या आएगा। उन्होंने साधारण इधर उधर की बाते
। कर? सब एसा ही चलना है, चलेगा। इसकी सतसत् विवेक बुद्धि भी खत्म हो जाती है कर महीं सकता। काई ठीक अब इसी आत्मा को पाने की बात है और ऐसे ही चक्त एक बात हमे बाद रहना चाहिए इस आत्मा को किस प्रकार पाया जा सकता है कि साधु सन्तों नं करहा हैं कि अपने ही अदर खोजो अपने हो अन्दर सब कुछ ये समझना चाहिए। इसी के लिए आपके शरीर हैं। के अंदर ही इसकी व्यवस्था है। काई बाहर जान काह र बन की जरूरत नहीं। आपके हो त्रिकोणांकार अस्थि खाजन जाई सदा निचासी सदा अनन्ती तोहे संग समाई बा कौन है । वी कौन सी चीज़ हैं जिसके बारे में सब संतो ने हिन्दुस्तान में भी कहा है में एक शक्ति कुण्डलिनी एकपवित्र शंक्ति स्थित है। जब इसको जागृति होती है तो बो छः बाहर भी कहा है? सब धर्मों सें भी हैं। इतना गुजरती हुई अत भदते हुए उस सूक्ष्म शक्ति से एकाकारिता करती हैं जो परमेश्वर को प्रम शक्ति है। ऐसे अपने शास्त्रों में लिखा था लेकिन एसे तो कोई करता चक्रां में से में बह्मरन्ध्र की विप्रयास धर्मों का भी हो गया कि लोग इस बात का भूल हो गये कि जो हमार अदर है उसे खोजना है। और हमारे अंदर हमारी आत्मा है। हर इसान में ये आत्मा पूरी तरह से जीवित नहीं। अपने देश के बहुत से साधु सत बाहर गये। मेरे ख्याल से मछिदरनाथ, गोरखनाथ गये जो है बही परमात्मा अवस्था में है। वा आत्मा का प्रतिबिम्ब हमारे हृदय में हैं। एसो तो बातें सभी कहते हैं। सबने बताया की ऐसी आत्मा है। है ये चकों के नाम जानते हैं और वो कुण्डलिनी लेकिन लोग कहते हैं माँ हमने तो कभी जाना होंगे क्यांकि बोलिविया में भी ये लोग सब जानते के जागरण को बात जानते हैं रूस में भी मैन देखा है और हर जगह देखती हूँ का पुरातन जा नहीं की ऐसी कोई चीज़ है। अब आपका समय हसी जानने का कि हमारी आत्मा पेंटिंगस है वा कितनी वहाँ चित्रकारी हैं। उसमें आ गया है इ अन्तर-आत्मा क्या चीज़े है और इस आत्मा का सब चक्र बने हैं । आप अगर थोड़ा सफर करे तो आप हैरान होंगे कि ये सब चोजें इन्हांने कहाँ हम किस प्रकार पा सकते हैं। ये आत्मा माने जैसे अच्छी सी अंदर सब चीज़ देख रही है और जानी और कैसे जानी? ये किसने बताया? इसके अपने प्रकाश से भी अपने ही अदर समेटे हुए लिए अपने यहाँ के कोई न कोई संत साध गये है। वो ये भी नहीं करती कि कहीं हम गलत थे ऐसा बताते हैं और उन्होंने ये बातें बताई। काम कर रहे हैं तो इस गलत काम यर कोई मगर हम लोगों को भी बता सब चलं गये और प्रकाश डाले। क्योंकि हम तो अपनी सुबुद्धि को कुबुद्धि बना चुके और हम देख हो नहीं सकते हमारे यहाँ भी लिख कर चले गरये कि ऐसी जो कुण्डलिनो आपके अंदर है। यहां तक के नाथ पंथी लोग थे उन्होंने इसके बारे में किसी कि हम काई गलत काम कर रहे हैं! हर तरह का गलत कर्म हम करते हैं और कहते हैं हम को बताया नहीं क्योंकि वो सोचते थे किसी और को दे दौजिए तो लोग इसका क्या इस्तेमाल तां बहुत अच्छे आदमी हैं। इस प्रकार हमारी
करेंगे? क्या करेंगे क्या नही करेंगे? और हुआ है। जिन्होंने ऐसी चीज पढ़ी बो दुनिया भर की इसलिए इन्होंने साफ-साफ कह दिया कि आप झूठी-मुठों बातें फैलाते हैं आप गलत-गलत चौज की तरफ दौडना और ओर खूब उन्होंने पैसा सब गुरुओं की संवा करिए। एक बोरा भर के ले आइए, उनको पूजा होगा कि ये सर्वसाधारण इन्सान के लिए नहीं करिए। अब बैठ हैं सर्वरे चार बजे से, कर रहे देना। लेकिन किताबों में लिखा है। अब बारहवीं हैं। फिर ये उपवास करिए ये तपास करिए, इतन कमाने धंधा बनाया। तो उनका चही विचार रहा आप बहुत से सूर्तियाँ शताब्दि में ज्ञानेश्वर जो आए उन्होंने अपने गुरू से कहा कि आप मुझे इजाजत दें, मैं अपनी में मिटे जा रहे हैं। ये भी नहीं हमारे समझ में ज्ञानेश्वरी में इसके बारे में लिखना बाहता हूँ। रमकाण्ड हमार अन्दर भर दिए कि हम उसी ी आता ये क्यों कर रहे है? इसका क्या फायदा छठे अध्याय में उन्हांने लिखा। लेकिन ऐसा भी होता है. कि धर्म के नाम पर बहुत लोग पैसा भी यहीं कर रहे हैं? मोहम्मद साहब ने साफ कमाते हैं। तो उन्होंने कहा 'नहीं, ये निषिद्ध है, हुआ हमारे बाप दादाओं ने यहाँ किया और हम कहा कि मुर्ति पूजा बन्द क्योंकि पता नही बंकार चीज़ है। ये सबके किसने बनाई है। ये चीजें किन लोग डसका मत पढ़ो। ये ों ने बनाई है। बस का नहीं। अभी मैंने एक बड़े भारी साधु लेकिन ये टोक है कि इन्होंने जो मक्का बाबा का लैक्चर सुना। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ काले पत्थर के चारों तरफ प्रदक्षिणा डालने की कैसे ये कहा आसानी से? आप नहीं बात कही है वो क्यों है? इस पत्थर सें क्या में ब एक उन्हांने समझ पाएगे। पर इस तरह से गाली दौो कि आप लोग सब प्रवृत्ति मार्गी हैं। निवृत्ति सा्गी नहीं है। प्रवृत्ति माने इधर उधर दौड़ने की आपको जो है। विशेषता थी? इस पत्थर में क्या बात थी जा कह रहे थे कि मूर्ति पूजा मत करो पर इस पत्थर के चारों तरफ क्यों घुमातें हैं? इसकी बजह ये थी क्रिया है वो आप कि मक्का में मक्केश्वर शिव है; वो शिव हैं अब वर्ताइए! और संब हाँ-हाँ कर रहे। पर आप निवृत्ति मार्गी नहीं है तो आप को ज्ञानमार्गो होना चाहिए क्योंकि सहज मक्कश्वर शिव हैं । लकिन अब कैसे जानिएगा कि वो मक्कश्वर शिव है? आप कैसे जानिएगा योग ज्ञान मार्गी हैं। आप अपने तरीके से चलिए कि स्वयंभू मूर्ति कौन सी है? आपके पास कोई और गुरुओं की सेवा करिये। उनको प्रसाद साधन नहीं। इसीलिए जब कुण्डलिनी का जागरण दौजिए इनका ये करिये ब करिये। और लोग होता है तो ये छः चक्रों को छंद कर चारों तरफ मान गये। कोई किसी को कहे कि तुम निवृत्ति फैली हुई दैवी शक्ति से एकाकारिता प्राप्त करती नहीं हो तो एक तरह से तो ये गाली हो गई। हैं तब आपके हाथ में चैतन्य यहता है। तब लेकिन किसी का संस्कृत हो मालूम नहीं। जो आपके हाथ बताएंगे कि क्या सत्य है और क्या बोल रहे है ठीक ही बोल रहे हैं। कुछ तो हमें गलत। इतनी सुन्दर व्यवस्था हमारे अन्दर पहले ही से बनी है। इन्होंने बनाया है और प्रवृत्ति याने का मतलब है ये कुछ बनाने की जरूरत नहीं।
अब आपके हाथ बता रहे है, माने आपके हाथ देवी हमारे अन्दर विद्या है। या कहना चाहिए कि जानते हैं। मोहम्मद साहब ने कहा है कि जब ये मशीन है हमारे अन्दर। जब ये चलकर, जब कियामा आएगा तो आपके हाथ वोलंगे आ गया ये शुरू हो जाती है तल एक से एक वमत्कार आपका अपने ही बारे में दिखाई देते हैं। जितन शराबी शराब पीते थे उन्होंने शराब छोड़ दी क़ियामा। अब इसे प्राप्त करो। कोई पढता भो है, जब हाथ बालेग तो इस हाथ से पता चलंगा क्या चीज गलत है, क्या चीज अच्छी है क्या चीज कितने ही दुष्ट लोग थे उन्होंने दृष्टता छोड़ दो। में तलियाती मं गई तो वहाँ पर एक माफिया के सही? अब कोई कहें कि मक्का में क्या रखा है मुख्य डॉन थे तो उन्होंने सहजयोग ले लिया। मैंन कहा भई कमाल है इन्होंने सहजयोग कसे ले हाथ उधर करके देख लौजिए। जो लोग सहजयोगी हैं सब देख सकते हैं कि कितनी चैतन्य को लहर है तो कौन सत्य है और कौन असत्य। ये लिया? कहने लगे माँ बो सहजयोगों हा गए आपकी मिलना चाहते हैं। वो आए तो इतने नम। आप अपने हाथ पर जान सकते हैं। इतनी सुन्दर बस उन्होंने इतना कहा कि माँ मेने बहुत गुनाह व्यवस्था कि पूरा यन्त्र हो हमारे अन्दर बना हुआ किए हैं इनकी मुझे माफी सिल जाएगो या नहीं है। इतना सुन्दर। जब ये व्यवस्था होती है और ं जय आप उसे प्राप्त कर लेग तो कमाल की बात ये बता दा? अरे! मैंने वाहा क्या बात करते हो, है कि आपके अन्दर के दोष अपने ही आप तुमने गुनाह किए वो तो हो गए। अब भूतकाल विलय हो जाते क्योंकि आप दूसरी ही दुनिया में में हो गए पीछे हो गए। आज में तुमसे जो बात कर रही हूँ वर्तमान की। और वी बात अब खत्म गुजर जाते हैं। आपके अन्दर काम, क्रोध मोह मद-मत्सर, लोभ ये जो आपके शत्रु है भाग हुई, अब वरतमान में तुम क्या हो? तुम आज जाते हैं। हमारे लिए तो आश्चर्य की चात है कि कहाँ से कहाँ हो गए इंग्लैण्ड में जब हमने पहले दिन प्रोग्राम किया उसने इतनी मदद की, हम लोगों की इतनो ही, ये देखना है। फिर था तो वहाँ छ: डुरग एडिक्ट (नशेडी) आए। वो सराहना को और एक तरह से बड़ा आश्चर्य लेते थे और दूसरे दिन हो वो साफ हों लोग ड्रग हुआ कि ये जिस तरह जो माफिया का जा सबसे गएँ। भई ये तो कमाल है ये कैसे हो गया? वहाँ मुख्य आदमी था उसमें ये बदलाव कैसे आ कहने लगे अब तो हमें पता नहीं हमें ता लेना ही गया? वा कैसे इस चीज की मान गाए ? ये घटित नहीं, हमें अच्छा ही नहीं लगता। ये बेकार है । हो बड़े बढ़िया लोग हो गए। वही आज वहुत किसी को समझाया नहीं, बताया नहीं य घटना कार्यान्वित हैं और कार्य कर रहे हैं। तो ये जो है और ये घटना इस कलियुग में होनी अल्यावश्यक चौज़ है कि अपने को प्राप्त करो कहा है, माने गया. उसमें किसी को लैक्चर नहीं दिया, है क्योंकि इससे आदमी जा है परिवर्तित हो जाता अपनी आत्मा को जानो, इसकी व्यवस्था भी है Transiorm हो जाता है। ओर जब आदमी हमारे ही अन्दर बनाई हुई है जैसे कोई बड़ी परिवर्तित हो जाता है तब वो इतना निखर आता
सकें और लोगों की भी जागृति करें और इस है इतना सुन्दर हो जाता है। आज दुनिया को इस जगरण में इसे पाए। इसकी प्राप्त करने के बाद परिवर्तन की जरूरत है। यही परिवतंन करना हो हम सोचते हैं, आप सब सहजयागियों का काम देखिए, मैने ता बही देखा है, न कहीं झगड़ा है। मैंने जहाँ तक हुआ है, की है मेहनत । इतने होता है, न कोई आफ़त होती है। कोई भी देश दंर्शी में घूमी फिरों हैँं। अब भी आएं, न काई मार्चा आप लोगा का के लोग आए, कहीं से चाहिए जो सहजयोग में आए है या आने बाले हैं बाँधता है न कांई झण्डे उठाता है, ों को बताए और कुछ नहीं । वस एक दुसरे का समागम है। सबसे बड़ा आनन्द का सागर है और एक दूसरे से मिलकर उनकी चाहिए कि और लांग उनकी इस परिवर्तन में लाना है बहुत से लोग भटके हुए है यानि परमात्मा के नाम पर भटके ही बड़ा अच्छा लगता है। अपने देश की ता कि भाईचारा होना चाहिए। सबका हुए हैं, धर्म के नाम पर भटके हुए हैं किसी भी सस्कृति है चीज़ में भटके हुए हैं। इनको जब आप इस आपसी मिलावा होना चाहिए। हरेक चीज में एक तरह से दूसरे को मदद करनी चाहिए। यं तो अपनी संस्कृति हैं। अवस्था में लाएंग तब आप देखिए इनका दीप कैसे जलता है अब इतनी सारीं यहाँ बत्तियाँ विचित्र-विचित्र बातें हाती गई। ये देश जल रही हैं। इनका अगर कनेक्शन इनके साथ ो में विभाजित हो गया और इसलिए अनक हिस्स न हो, मेन की साथ, तो क्या जल सकती है? इसी प्रकार जब तक हमारा ही सम्बन्ध जैसे कि इसमें भी बहुत से झगडे हो रहे हैं। जहां देखा ये है इसका सम्बन्ध गर मन के साथ नहीं है तो वहीं झगड़े। कहाँ जाइए तो एक मार्चा लिए ये खड़े हैं तो उधर दूसरा मार्चा लिए खड हैं और इसका कोई उपयोग ही नहीं। इसी प्रकार हमारो कोई भी बात को लेकर के इस तरह से कोई सी हालत है कि हमारा सम्बन्ध इस महान शक्ति के साथ है और सबसे बड़ो बात ये है कि ये सत्य भी चीज को लेकर के एक गठवन्धन करने का और झगड़ा करने का। ये इन्सानियत को निशानी ही थी, सत्य ही हैं| नहीं, ये तो जानवर भी नहीं करते फिर इन्सानों जब आपका वित इस आत्मा के प्रकाश से को तो ऐसा नहीं करना चाहिए। इन्सान जो है ये आलोकित होता है तो आप एक अलग हो एसी सात प्रकाशमान व्यक्ति हो जाते हैं। एसे व्यक्ति कि सबसे ऊँची चीज परमात्मा ने बनाई है और पृर्णतः ये जो सारे संसार की भलाई करता है। सारे संसार इसमें इतना सुन्दर अपने अन्दर जो एक इन्तजाम कर दिया, ऐसी व्यवस्था कर दी है में गर मनुष्य बदल गया तो कौन सी आफ़त कि आप बहुत आसानी से इसे प्राप्त कर ले और इसके लिए आपको पैसा-वैसा देने से कोई से ही है। जब आएगी। सारी आफत तो मनुष्य मानव ही बदल जाएगा तो कोई सी भी परेशानी कोई सी भी तकलीफ नहीं आएगी। इसलिए हमें मतलब ही नहीं है। जैसे एक साहब मुझसे कहने सोचना चाहिए कि किसी तरह से जितना हो लगे कि मै आपको एक लाख रुपया देता हूँ
देखिए हमसे मिलने एक आए थे, साहब वा मैं आपको दो लाख रुपया देती हैूं आप बातचीत थे, वो इतने नमर बन्द करिए। क्योंकि कृण्डलिनी की पैसा नहीं आदमी इतने नम आदमी कि मैं तो हैरान हो गई । आकर नम्रतापूर्वक मुझसे कहते हैं कि माँ ऐसा आप मरी कुण्डलिनी जगाइए। मैन कहा जनाब आइवोरी कीस्ट के मुखिया समझ में आता। कुण्डलिनी जो है एक दैवी कारए कि हमारे देश में सब लोगों को सहजयोगी शक्ति आपके अन्दर है आपको शुद्ध इच्छा हाने वना दीजिए। मैंने कहा अच्छा ठीक है तुम्हीं बना पर, गर आपकी शुद्ध इस्छा नहीं हुई तो जवरदस्ती नहीं हो सकती। ये सकते हो सबका। कहन लगे में तो इतना मके में उन्होंने तीन बीवियोस तलाक लिए। ऐसा क्या चलंगा आप जबरदस्ती नहीं कर सकते। गर आपके अन्दर आ गया हूँ। शुद्ध इच्छा है तभी ये कार्यान्वित होगी। अब हमारी काई सी भी इच्छा शुद्ध नहीं है गर शुद्ध जिन्दगीं है? मैने क्यों ऐसी जिन्दगी बनाई? मेरे अब कहने लगे मैं तो शारमिन्दा हूँ। मेरो क्या अ समझ में नहीं आया पर अब जो है मैं बिल्कुल है ये हाती तो आपका आजकल जो Enomies Economics बदल गया हूँ। अब मेरे अन्दर इतना आनन्द, नहीं चलता। Economics में क्या है कि आज आपने समझ लीजिए मार धाड़ करके घर बनाया इतनी शान्ति और इतना मुख है। और छः सौ लोग, छः सौ लोग वहाँ पर जा हैं सहजयोगी हैं पर इसका कोई सत्ताप नहीं। फिर आपको मौटर चाहिए, इसका भी सन्तोष नहीं। किसी चीज से और उन्होंने मुसलमान धर्म लिया था। मैंने कहा तुम मुसलमान क्यों ही गए? तो उन्होंने कहा कि इसलिए क्योंकि ये जो फ़ैन्ब लॉग है इनमें तो कोई नैतिकता है हो नहीं, Moralily है हो नहीं। इनको तो नैतिकता एक दम बिल्कुल गई बीती है। तो हमने कहा मुसलमानों का धर्म ले लो प्रकाश आपको आनन्द देगा. शान्ति दगा। सव उससे थाड़ी तो नेतिकता बनी रहेगी। इसलिए तरह से जञाने देगा लेकिन सबसे ज्यादा ये आपको हम बन गए। तो मैंने कहा सहजयोग में तो सभी सन्तोष ही जब नहीं मिलता इसका मतलब आपकी इच्छा शुद्ध नहीं। गर शुद्ध इच्छा होती तो आपको सन्तोष मिलता लेकिन एक ही चीज़़ में वो य है कि अपनी आत्मा का शुद्ध इच्छा है, आत्मसाक्षात्कार। आत्मा आपक चित्त में है। इसका सामूहिक बनाएगा। इसमें आप सामूहिक हा जाएगे। सामूहिकता की बात ये है कि दुनिया में लोग ये सोचते हैं हम लोग अलग हैं। ये फ़लाने धर्म एक समान हैं। इसमें किसी धर्म का अपमान हम नहीं, कोई ऊँचा नहीं नीचा नहीं बल्कि आप अपने धर्म को बहुत अच्छे से समझ लेंगे। हैं ढिकाने हैं ऐसा तो परमात्मा की नजर में नही इसकी जो गहराई है उसको समझते हैं। अभी हैं। परमात्मा की नज़र में सब हम लोग उन्हीं के तक आप भटक रहे है तो आप उसे या सकते हैं। ये असलियत हैं जिसके लिए ये धर्म बनाए आश्रय में हैं। ये दिमागी जमाखर्च है कि हम ऊँचे हैं, ये नीचे हैं, ये फलाना है ढिकाना है। सब विल्कुल ही दिमागीो जमा खर्च है। आज लड़ाई-झगड़ा. ये वो करते हैं ये कैसे हो सकता गाए थे। जो लोग आजकल धर्म के नाम पर
है? सब मालूम है उसको सम्भालते हुए ये इसलिए हो रहा है कि फिर से मैं कहूंगी कि आपकी माँ उठतो है और आपको इतनी भी अन्दर एक कुबुद्धि आ गई और कुबुद्धि ये कार्य तकलोफ नहीं होती। आश्चर्य है। इतनी सी भी तकलोफ नहीं होती क्योंकि ये माँ है। जव आप है? ये रालत चीज़़ है और ये गलत काम करती है । हुए थे तो माँ ने सारा इख अपने ऊपर झंला भी प्रकाशित करती है अब इस कुबुद्धि का आपकी कृण्डलिनी। जब ये पैदा था। आपकी कोई तकलीफ नहीं दी थी। उसी इस चक्र से गुजरतो है, आज्ञा जिसे कहते हैं, ता वो प्रकाशित कर प्रकार ये माँ है। जब इसका जागरण होता है तो देती है और आपको समझ में आ जाता है कि किसी प्रकार की आपको तकलीफ नहीं होती कोई परेशानी नहीं होती और आप एकदम कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हैं। और ये मैं ये क्या कर रहा था? ये किस बेवकूपो में दौड़ रहा था ? ये किस बात को लंकर मैं लड़ फिर ये आश्वर्य रहा था। जब तक आप अपने को नहीं जानिएगा होता है कि आप ऐसे थे, ये सत आपके अन्दर था इतनी सम्पदा थो ये पता ही नही। बो हर तब तक आप सत्य को पहचान ही नहीं सकते और अब इसों चीज में अपनी जिन्दगी बरबाद तरह से आपके साध हैं जैसे शारीरिक, मानसिक बौद्धिक आध्यात्मिक चारों स्तर पर यी चक्र कर रहे हैं। अपनी करेंगे, अपने बच्चों की करेंगे, इतना ही नही पर सार देश का ही सत्यानाश हो कार्य करते हैं और सब तरह से ये मामला बन जाता है। इसमें कोई शक नहीं, सहजयोग में जाएगा। अनेक देशों का इस तरह स सत्यानाश हो रहा है। इसलिए एक जा ये चीज हमारे देश में है और जो वहुत ही पवित्र चौज है कि कुछ अन्छा हो जाता है। इतना ही नहीं, लेकिन आपको कुण्डलिनी का जागरण करना है। अब ये कुण्डलिनी आपकी माँ है आपकी अपनी से ठीक हो जाती है। व्यक्तिगत, आपकी अपनी ही माँ है। वा किसी आने के बाद तन्दरुस्ती अच्छी हो जाती है. सब जोा कुछ साम्पत्य स्थिति वा भी लक्ष्मी की कृपा अपने देश में इतने लोग सहजयागी बने हैं। और की माँ नहीं। जैसे आपको माँ के हो सकता अधिकतर उनकी सबकी सम्पत्ति ठीक ही गई, है पाँच-छ: बचच्चे हो आठ दस ब्चे ही, इसे उनका व्यवहार ठोक हो गया उनके झगड़े खत्म कुण्डलिनी के आप ही बेट हैं आप ही बेटी हैं। हो गए। सब कुछ क्योंकि ये शक्ति चारो तरफ अब इस कुण्डलिनी का जब जागरण होता है विद्यमान है। हर जगह विचरण करती है और और जब ये जागृत होती है तो इसकी सबकुछ बड़ी कार्यान्वित है और इस शक्ति के सहार मालूम है आपके बारे में। इसके अन्दर आपके बारे में सारा रिकार्ड है कि आप क्या चाहते है, आप क्या थे. आपमे क्या-क्या दोष हैं, आपके देखकर कहें ये क्या आदमी है इस तरह का। हमारा भला ही नहीं बल्कि एक वशेष रुप का आदर्श जीवन बन जाता है। ऐसा जीवन जिसे जैसा पहले कहते थे. साधु सन्तों के लिए। आज शरीर में क्या दोष हैं? कहाँ कौन सौ तकलीफ.
तो सहजयोग में इतने लाग बैठे है और इतने उन्होंने बहुत लोगों को प्यार दिया, इतन लोगों क सहज में आए है ये इतने देशों में सहजयोग फेक्सस आए कि मैं अभी उनमें से गुजर ही फैलने का कारण ये है कि सब देशों में एक नहीं पाई । इतना प्यार इतनी-इतनी बढ़िया-बढ़िया प्रकार की बड़ी ग्लानि एक तरह को निराशा बाते। जिसके बारे में लोगों ने लिखा मैं साच कर आर दूसरे बहुत ज्यादा हिंसक वृत्तियाँ बढ़ गई हैरान हैँ! मैं नहीं सोचती ्री कि ये इनका इतना हैं। सी उसमें जो लोग थे उन्होंने सोचा व गलत व्यार लोगों में बैटा हुआ है! इतने लोग उनकी है तो वो सहज में आए। ऐसे बताते हैं 86 देशीं में सहजयोग फैला है। हालांकि मैं इतने देशों में जिसमें आप आए सब आपको प्यार करेंगे। आप व्यार करते हैं। तो ये सारा प्यार का माहील भी सबको प्यार करेंगे। यही सवसे बड़ी बात हैं जहाँ भी बहाँ पौधा खड़ा हो सकता है। सहजयोग की कि सहजयोग की शक्ति जो उसी प्रकार सहजयोग फैला और बड़ा आश्चर्य है प्रेम की शक्ति है और इसके आगे कोई होता है कि वहाँ से लोग यहाँ आ जाएगें और और शक्ति नहीं चल सकती। प्रेम से बड़ी शक्ति जो प्रेम की शक्ति हैं इसी के एक बड़े मैं उनके देश में अभी तक नहीं जा पाई और हो भारी आवरण में आप हैं और हमेशा आपका ता गई नहीं, सहा बात है। पर जैसे बीज उड़कर वाए, व्रहाँ भी आते हैं और इटलों भी आ जाते हैं। पर सके तो कभी चली भी जाऊगो। लेकिन उनका संरक्षण हैं आपको कोई छू नहीं सकता क्योंकि आपको यरमात्मा प्रेम करते हैं। इनके आपसी मेलजोल है बो देखकर के बड़ी हैरान आगे कौन चल सकता है. इनके आगे कौन हूँ। किसी एक आदमी के लिए भी अभी बम्बई दुष्टता कर सकता है? ऐसे ऐसे हमारे यहाँ जो व्यार है उनका आपसी प्यार और जो उनका में जब बम यूटा था तो उदाहरण हो गए कि लाग कहते हैं माँ कैसे में एक लड़का था हमशा कहता था माँ मैं जीना नहीं चाहता। मेरी माँ बहुत बदल गया मुझे पता नहीं। केसे में या गया मुझ पता नहीं! ये सारी वातें सुनकर आप लाग भी खराब है। ये है वो है बार-बार यही कहता था। उसी एक लड़के की मौत हुई। तो सारे देशों में बहुत खुश होते हैं क्योंकि सब आपके ही भाई इतने देशों में ये खबर हो गई और सब लोग दोड है। सब आपके ही लोग है और इसे बन्धु पड़े और पता लगाया कहाँ है क्या है ये, वो? दंखकर के यूँ लगता है कि दुनिया बदलने वाली फिर वहाँ जाकर कहा कि साधू सन्त हैं, ये ती है और दुनिया में बड़े अच्छें दिन आएंगे, बहुत उन्होंने कहा अच्छा तो हम तुमको जमीन देतं हैं अच्छे दिन आएगे और उसमें लोग हमेशा हमेशा तुम चाहो तो इसे यहाँ जलाओं इसी में गाडी एक महान देश, एक महान व्यक्तित्व एक ऐसे ऐसे लोगों ने वहाँ चिट्ठियाँ भेजो कि मैं तो हैरान हो गई। इसके चाद में अभी मैंने देखा कि ये होना है, ये हो रहा है, पर महान कार्य का लें) अभी भी बहुत लोगों को परिवर्तित करना हैं। परिवर्तन बहुत जरूरी है और अभी तक इन्सान हमारे भाई साहब की Death हो गई, बाबा मामा।
बनं रहें लेकिन इन्सानियत से भी उतर गाए देगे जैस कि पेड पौधों को आपका जल देना होता है, उसी प्रकार ये ग़र आप नहीं करंगे ता इनका परिवर्तन बहुत आसान है। इसे आप प्राप्त ये बृक्ष बढेगा नहीं। इसोलिए इंसा ने कहा है कि बीज ऐसी करें। परिवर्तन के सिवाय कोई और मार्ग कुछ वीज एसे पत्थर पर गिरे, कुछ जमीन में गए कि वहाँ खत्म हो गए और कुछ बीज ऐस थे जो कायद की जमीन पर रहे और नहीं है और इसमें ये कुण्डलिनी के जागरण से होता है और किसी से होता नहीं। अब कोई कहेगा कि माँ ये इसको अगर हम पानी में पनप करके बृक्ष वने। ता इसमें काई धर्म की निन्दा नहीं है। किसी धर्म के विरोध में नहीं, पर सारे धमों का गौरव इसकी विशेषता है और एक डाल दें तो चलगा या इसको हम जलाए तो चलेगा? नहीं चलेगा इसका सिर्फ कनैक्शन आपको लगाना है। लेकिन थाड़ा समय आपको देना होगा। और जहाँ भी आपक सन्टर है वहाँ जाए और अपनी गहनता बढ़ाए। और ये वहुत लोग होगा एक बहुत ही ज्यादा आनन्दमय सुखमय सम्बन्ध जबरदस्त इन सब धरमों में है वो स्थापित ऐसा जीवन भविष्य में आपके लिए बना है इसे कम करते हैं इसलिए इनकी उन्नति होती नहों। जब तक आप इसे सामूहिकता का प्यार नहीं आप जप्त करी ऐसा मेरा आपको अनन्त आशीर्वाद है।