The Experience Of God's Love, Prabhu ke Prem ka Anubhav

The Experience Of God's Love, Prabhu ke Prem ka Anubhav 1975-12-27

Location
Talk duration
70'
Category
Public Program
Spoken Language
Hindi

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27 दिसम्बर 1975

Public Program

मुंबई (भारत)

Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft

1975-1225 Prabhu Ke Prem Ka Anubhav Mumbai NITL HD

प्रभु के प्रेम का अनुभव

हमारे आदरणीय जस्टिस वाई. के. सहाब, वे मेरे बेटे हैं। माँ के लिए ये बड़ा गर्व का अनुभव है कि वे अपने बेटे को ही इतने ऊँचे पद पर देखें। आप सब, बंबई के निवासी भी, जिसमें से अनेक सहजयोग से आशीर्वादित हैं, और वे भी, जो कि आज प्रथम बार ही यहां प्रभु के प्रेम को स्वीकार करने के लिए पधारे हैं, सब को ही मेरा अभिनंदन है।

जस्टिस वैद्य साहब ने जो कुछ भी कहा है, वो एक प्रकांड पंडित हैं, अत्यंत विद्वान हैं, मैंने तो कुछ भी जीवन में पढ़ा नहीं, पुस्तक के रूप में, किंतु सारा पढ़ते हुए भी, सब किताब में खोजते हुए भी, उनकी दृष्टि में हनुमान जैसी एक आस्था है, कि इसमें भी नहीं है, शब्दों में भी नहीं है; इसमें सिर्फ संकेत मात्र है, वो चीज अभी मिली नहीं, मिली नहीं, और जैसे ही मिल गई, जैसे कि प्राप्त थी, उसे पहचान थी, ये बड़ी भारी, विशेष रूप की आस्था है।

अधिकतर तो पढ़े-लिखे लोगों ने कभी भी परमात्मा को स्वीकार किया ही नहीं, ईसा मसीह को आपको आश्चर्य होगा कि एक जज ने ही सूली पर चढ़ाया था। आज कलयुग की ये महानता देखिए, कि एक जज साहब ने उसी परमात्मा को स्वीकार ही नहीं किया है, किंतु उसका इतना सुंदर वर्णन किया है। वे स्वयं ही बहुत बड़ी विभूति पूर्व जन्म-जन्मांतर से रहे हैं, वे अपने बारे में अभी कुछ इतना जानते नहीं हैं; इसी कारण खोज उन्हें रही। इसी कारण अनेक लोगों में खोज रही। आप अगर शुरू से अब तक के जितने भी फिलॉसफर्स को पढ़िए; मैंने तो पढ़ा नहीं, लेकिन मेरे शिष्य मुझे बताते हैं। अभी एक बहुत विद्वान, फ्रांसीसी महोदय लंदन में पढ़ा रहे थे, वे भी, इसे मैं कहती हूँ कि उपासना में लीन हो गए, उन्होंने मुझे पत्र में लिखा कि आदि काल से हर एक फिलॉसफर ने एक बात की और संकेत किया हुआ था कि हम जो जड़ वस्तु हैं, हमारा मन भी जड़ वस्तु है, फाइनाइट है, वो इस सूक्ष्म में कैसे उतरेगा, वो इन्फाइनाइट में कैसे उतरेगा? प्रश्न एक छोटा सा है, कि हम सब जड़ वस्तु से बने हुए हैं और सीमित हैं, फाइनाइट; वो परमात्मा अगर इन्फाइनाइट है, असीम है, तो उसमें कैसे उतर सकता है और उसे कैसे जान सकता है? अगर हम अपने मन से प्रयत्न करें, परमात्मा को जानने की, तो हम पढ़ेंगे, लिखेंगे, किताबें हमारे सामने खुलती जाएंगी, लेकिन हम किस तरह से वहां कूद सकते हैं, जहाँ हमारा स्रोत है? सारा प्रश्न यहां आकर रुक जाता है, सारी समस्या यहीं एक है, कि इस जड़ देह से उस चेतन में कैसे उतरा जाएगा, उस चेतन को इस जड़ता से कैसे जाना जाएगा।

इसलिए आज तक कभी भी कोई परमात्मा की बात करता है, तो लोग उस पर हंसते हैं। ज्यादातर कहते हैं, चलो इन्होंने बात की है, कुछ परमात्मा तो है। अगर इधर-उधर की कोई और बातें कहीं जाएं, कि देखिए संसार कैसे चल रहा है, पृथ्वी कैसे चल रही है; पृथ्वी की इतनी गति होते हुए भी हम लोग कोई गिर नहीं रहे हैं, आदि अनेक तर्क-वितर्क दे करके भी अगर बुद्धि से यह मान लिया जाए, कि इसके पीछे कोई एक महान शक्ति है, जो इस संसार को चला रही है, तो भी, इस मनुष्य की बुद्धि से उसे कैसे जाना जाएगा, उसे कैसे समझा जाएगा। मान लीजिए बैठ के भजन गाया गया, सर के बल खड़े हो गए, गर्दनें तोड़ी गईं, योग किए गए, जंगलों में रहा गया, परमात्मा को याद किया गया; किन्तु दीवार तो बनी ही रहती थी। इसके लिए कुछ ऐसी बात घटित होनी चाहिए, जिससे कि मानव उस इन्फायनाइट में, उस असीम में डूब जाए।

साइंटिस्ट हिंदोस्तान के अभी उस किनारे पर नहीं पहुँचे हैं, जहाँ पर वेस्टर्न साइंटिस्ट पहुँचे। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण है, वे लोग उस किनारे पर पहुँच गए, उस कगार पर पहुँच गए, जहां से वे कह रहे हैं, जैसे साइकोलॉजिस्ट हैं, मनोविज्ञानिक, वो कह रहे हैं कि अब साइकोसिंथेसिस होना चाहिए किसी तरीके से; माने ये कि हमारा मन अनेक हिस्सों में जो बंटा है, उसको किसी तरह से एक होना चाहिए। यहां तक कि वो लोग हायर सेल्फ की बात करने लग गए, क्योंकि उनके यहाँ बहुत से ऐसे पेशेंट्स आते हैं, वो कहते हैं कि हमने तो कुछ हायर सेल्फ देखा है, कुछ एक अजीब अनुभूति हमें हुई। वो उनको पेशेंट्स कहते हैं; इस पर जुटे हुए हैं हर जगह लोग पता लगाने के लिए, लेकिन, फिर बार-बार वो यही कहते हैं, कि हम इस जड़ शक्ति से, इस जड़ता से, उस इन्फाइनाइट में, उस असीम में नहीं उतर सकते हैं, इस कारण उधर हमें प्रयत्न ही नहीं करना चाहिए, क्योंकि जैसे ही हम प्रयत्न करते हैं, तब हमारी सुप्तावस्था में रही हुई जितनी भी जड़ शक्तियां हैं, वो हमारे अंदर दौड़ने लगती हैं।

यानि, जैसे कि रूस में इन लोगों ने बहुत प्रयोग किए, अमेरिका में भी बहुत प्रयोग किए, उन प्रयोगों के कारण उनके अंदर से उन्होंने देखा कि गेहूं बहने लग गया, चावल बहने लग गया, किसी ने ये देखा कि एकदम आधार से चीजें उठने लग गए, यहां से टेबल उठकर के उधर जाने लगा; लेकिन दिमाग उनका एकदम घबरा गया। रूस में खासकर लोगों ने इस तरह के प्रयोग किए, उन लोगों की किताबें छपी हुई हैं, कभी आप लोग पढ़ें तो आप भी समझ सकते हैं, वो कहते हैं कि इससे शांति नहीं मिली हमें। अजीब तरह के अनुभव आने लगे, ये कौन सी शक्तियां हैं, जो हमारे अंदर आ रही हैं। उनको इस बात का पता नहीं, कि ये हमारी सबकॉन्शस की, सुप्तचेतन मन की, सामूहिक रूप से हमारे अंदर स्थित है, जो कुछ मरा हुआ है, वो भी हमारे ही अंदर है। वो मरे हुए लोग, हमारी मदद कर रहे हैं, यह भूल नहीं जाओ।

साइंटिस्ट मेरे पास आए थे, बहुत बड़े देश के लोग हैं, बहुत बड़े साइंटिस्ट हैं, उनमें से कुछ, चंद्रमा पर पहुँचे, वे आकर मुझ से कहने लगे, माँ, हम ये जानना चाहते हैं कि हम आकाश में किस तरह से उड़ें, उन्होंने प्रयोग किए इसके, आपको आश्चर्य होगा। हिंदुस्तान का साइंटिस्ट उस हद तक पहुँचा नहीं है, जो इस चीज़ को सोच रहा है, हम अभी साइंस में अच्छा है, थोड़े पीछे ही हैं। मैंने कहा, बेटे तुम क्यों उड़ना चाहते हो, अरे तुम तो पहले ही चंद्रमा पर पहुँच गए हो, आखिर चाहते क्या हो! कहने लगे हम चाहते हैं, कि हम आकाश में उड़ें, बगैर किसी की मदद के। मैंने कहा, अगर मैं कहूँ कि इसमें भूत तुम्हारी मदद करते हैं, तो क्या तुम करोगे? कहने लगे हाँ हम तो करेंगे, क्योंकि फलांना देश है, वो भी यही कर रहा है। मैंने कहा, अगर वो लोग भूतों के सहारे जा रहे हैं, तो तुम क्यों भूतों में फँसना चाहते हो, बेटे? अपनी शक्ति पर खरे उतारिए। चंद्रमा पर जाना कोई बड़ी भारी जरूरी बात नहीं है।

आज सारा संसार इतना ऊँचा बढ़ गया है, हम लोगों के यहाँ ज़रूर थोड़े से अभी प्रश्न हैं, वो भी हल हो जाएंगे। खाने, पीने के प्रश्न उन देशों में हल हो चुके हैं, अधिकतर प्रश्न उन देशों में हल हो चुके हैं, लेकिन उस संसार के लोग जितने दुखी हैं, उतने आप दुखी नहीं हैं। घर-घर में आग लगी है, बाप बच्चे को खा रहा है, बच्चा बाप को खा रहा है, माँ का पता नहीं, बहन का पता नहीं, एक गौरव (अस्पष्ट)। इतने दुखदाई उनके अनुभव जीवन के हैं कि वो परमात्मा तो क्या, पर किसी सुख को भी नहीं मानते, कि संसार में कोई चीज सुख नहीं होता। इतने आंतरिक पीड़ा से वह लोग प्लावित हैं, साइंस उस चीज को नहीं सोच सकता है, कारण साइंस हर एक चीज को अलग-अलग तरह डील (अस्पष्ट) करता है, अलग।

इसको एक जोड़ने वाली शक्ति, कुंडलिनी है। इन लोगों ने कुंडलिनी के बारे में बहुत पढ़ रखा है, आपको आश्चर्य होगा; उन लोगों से मुझे कुंडलिनी समझानी नहीं पड़ती। हमारे देश में पढ़े-लिखे लोग कहाँ कुंडलिनी के बारे में जानते हैं, आपकी बात छोड़िए। अब वो ये भी मानते हैं कि कुंडलिनी के जागरण के सिवाय आदमी, उस सर्फी में नहीं पहुँच सकता। लेकिन उसके बारे में भी हजारों चर्चाएँ संसार में हैं। वो कुंडलिनी जो जगाता है, उसे ये होता है, वो होता है। मैंने देखा है वरणनों से कि लोग कूदने लगते हैं, चीखने लगते हैं, चिल्लाने लगते हैं। कुंडलिनी जो कि आपकी माँ, उसके जागरण से ये सब होना भी एक अजीब सी बात लगती है। इसका अर्थ सही यह है कि वो कुंडलिनी का जागरण नहीं होते हुए, किसी दुष्ट प्रवृत्ति का जागरण है।

अब रही बात ये कि इस असीम में उतरने के लिए, सब ने अगर मान लिया है कि कुंडलिनी ही इसका एक अर्थ है, आप लोगों ने नहीं माना है, क्योंकि यहाँ के साइंटिस्ट उसको पढ़ते ही नहीं, मैं क्या करूँ! तब भी ये सोचना पड़ता है कि कुंडलिनी के जागरण के लिए, परमात्मा ने क्या व्यवस्था की हुई है। जैसे कि आज का विषय है 'प्रभु के प्रेम का अनुभव'। प्रभु के प्रेम का अनुभव हमारे यहाँ पुस्तकों में अनेक लिखा है, लेकिन कोई विश्वास नहीं करता है। जैसे कि प्रह्लाद, जिनके सामने नृसिंह अवतार हुआ था, और जिस वक्त उन्होंने पूछा कि तुम्हें क्या चाहिए, तो प्रह्लाद ने उनसे सिर्फ एक ही चीज माँगी, तव चरणारविंदे प्रीति रहे, तुम्हारे चरण कमलों में मुझे प्रीति रहे, यही प्रभु मुझे दो! वो प्रह्लाद तो आज है नहीं संसार में, और नहीं नृसिंह अवतार होने की कोई बात है, इसलिए सब ऐसा लगता है कि झूठा और फोका है। यह सब झूठी बातें हैं, इसमें कोई अर्थ नहीं, अवतार आदि वगैरा सब झूठी बातें हैं। यूहीं लोगों को भरमाने के लिए कहा गया है।

ठीक है, मनुष्य अपने को इतना बुद्धिमान समझने लग गया है, यह एक तरह से अच्छी बात नहीं है, लेकिन जब आप कहते हैं कि कलयुग आ गया है, और महान घोर कलयुग आ गया है, उसके दंश से हर एक आदमी जब पूरी तरह से छटपटा रहा है, कैंसर जैसी बिमारियां शरीर को खा ले रही हैं, दुख के पहाड़ के पहाड़ इंसान पे टूटे जा रहे हैं, किसी का भरोसा नहीं रहा, कोई किसी का भाई नहीं, कोई किसी की बहन नहीं, कोई रिश्ता संसार में पूरा बैठता नहीं, उस वक्त, परमात्मा के प्रेम की बात कहना, किसे मंज़ूर होगा। बात कहने की नहीं है, इसी वक्त में, कभी भी संसार में हुआ नहीं, इस तरह से प्रभु प्रेम का वर्षाव हो रहा है! चारों तरफ से, आपको दिखाई नहीं देता, आप इसे जान नहीं सकते। ये मैं मानती हूँ, कारण आपको ऐसा ही बनाया गया है, कि उस अचेतन मन को, उस अन्कॉंशस को जिसकी बातचीत आप साइकॉलजिस्ट कर रहे हैं, जिसके बारे में पूर्ण वर्णन हो चुका, कुछ अन्कॉंशस, अचेतन मन है। वो हमें किसी तरह से मदद कर रहा है, लेकिन हमारा उससे कनेक्शन नहीं है, वो अपना कनेक्शन बना ले, उसकी छत्र छाया है, लेकिन हम उसे नहीं पा पाते। वो अनेक तरह से आपकी मदद कर रहा है, पहली बार आपकी मदद वो इस तरह से कर रहे है, कि सारे मानव जाती में एक विचार चल रहा है, कि समय बचाना है, समय बचाना है, समय बचाना है। समय व्यर्थ हो रहा है, समय व्यर्थ हो रहा है, किन्तु यहीं मनुष्य की मूर्खता भी आ जाती है, कि वो जो समय बचा रहा है, वो कहाँ व्यर्थ कर रहा है। अगर वो एक क्षण भी इसे सोचे, कि समय, मैं जो बचा रहा हूँ, उसे मुझे कहां लगाना है, तो उसमें संतुलन आ जाएगा। कलयुग के मानव पर, जो परमात्मा का बहुत जोरों में वर्षाव हो रहा है, उसको पाने के लिए सिर्फ जरा संतुलन लाने की ज़रूरत है।

आपने अभी बताया, कि योग में कुंडलिनी का वर्णन है, पातांजली योग शास्त्र में, जिस तरह से बताया गया है, कि आपको छ: तरह की चीज़े करनी पड़ेगी, आपको जंगलों में रहना पड़ेगा, गुरू का समागम करना पड़ेगा, तब कहीं जा करके ये चीज़ अंदर बनेगी। अभी (अस्पष्ट) के बहुत बड़े महाराज हैं, वो कहने लगे कि माता जी 21 हजार वर्ष कि तपस्या के बाद मेरे हाथ में वाइब्रेशन्स छूटे थे, और आप इन लोगों को यूं ही देती चली जा रही हैं। आपने अगर शंकराचार्य जी को पढ़ा हो, तो उन्होंने भी चैतन्य लहरीयों पर अनेक श्लोक लिख दिए। या तो वो बिल्कुल ही झूठे थे, और झूठे नहीं थे, तो वो लहरीयां गई कहाँ, जिनके बारे में उन्होंने बताया था। परमात्मा जो अचेतन रूप से सारे संसार में है, वास्तविक उससे चेतन और कोई चीज़ है ही नहीं, किन्तु हम अचेतन हैं, हम उसे नहीं जान पाए, उसे हम महसूस नहीं कर पाए, उसे हम फील नहीं कर पाते हैं; यह दूसरी बात है, हमें उसे पाना है, फिर आप किसी भी धर्म के हो, किसी भी व्यवस्ता के हो, किसी भी रेस के हो, किसी भी देश के हो, आज कलयुग में, उसका साक्षात होना ही पड़ेगा। 1979 से कलयुग खत्म होना चाहिए, शुरुवात हो गई, और 1999 में सत्य युग आने की बात है, पर बात ही बात नहीं रहनी चाहिए। बात ही बात रह सकती है, अगर आप लोग सत्य को स्वीकार न करें।

असत्य के लिए तो हजार चीजों से भी, आप उसको स्वीकार कर लोगे, कोई भी असत्य हो, उसे मनुष्य इतने जोर से पकड़ लेता है, जिसकी कोई हद नहीं, लेकिन सत्य पे टिकता नहीं। इतनी ताड़ना और पीड़ा, मानव ने क्यों उठाई, एक मां के हृदय से, ये चीज़ें विदीर्ण कर देतीं हैं। लेकिन क्या करें, मानव उसके बगैर मानने वाला नहीं, उसके बारे में सोचने वाला नहीं है। मानव बड़ा हठी है, बड़ा घमंडी है, अहंकारी है, और समर्पित भी हमेशा असत्य ही को रहता है। कुछ चमत्कार देखे, उसी ओर दौड़ पड़ा; किसी ने दो पैसे दे दिए, उसी ओर दौड़ पड़ा। जितनी भी असत्य की बातें हैं, जिससे की मन में घृणा किसी के प्रति हो, जैसे मैं आप से कहूँ, आप हिंदुस्तानी हैं, आप दुनिया भर के लोगों को नफरत करें, तो अभी सब हिंदुस्तानी एक हो जाएंगे। मैं कहूँ, आप एक योग भूमि के वासी हैं, सारे संसार को आप प्रेम करें, तो मुझे लोग लेक्चर देते हैं, माता जी, आप तो सबको प्रेम सिखा रही हैं, वो हमें प्रेम करते हैं या नहीं। ऐसा मनुष्य असत्य को पकड़ा हुआ है, कि सत्य धर रहा है, वहां चला जा रहा है, लेकिन उसे स्वीकार नहीं है। इतना हठी है, कि असत्य को कस के पकड़ के बैठा है, उसे छोड़ता ही नहीं; उसी को वो माना हुआ है, यही सब कुछ है।

मानव को स्वतंत्रता दी गई, विशेष रूप से, अचेतन ने दी है, अनकांशस ने दी है, परमात्मा के प्रेम ने दी है, जिसे हम प्रणव कहते हैं। जो परमात्मा का प्रकाश है, उसी ने जानबूझ करके आपको स्वतंत्रता दी। आपने अगर मेरे पहले लेक्चर कभी सुने हों, तो आप जानते हैं, कि किस तरह से हमारे मस्तिष्क में कार्य करके, हमको अलग कर दिया गया, उस चेतन शक्ति से, जो चारों तरफ है, उस इन्फाइनाइट से दूर करके, हमको फाइनाइट कर दिया, उस असीम से हमें हटा करके, और हमें सीमा में बांध दिया, हम अलग हो गए, आप अलग हो गए, आप अलग हो गए। क्यों किया ऐसा? इसलिए, क्योंकि आप एक परमात्मा के हाथ में, जंतु स्वरूप बनना चाहते हैं, उस यंत्र को व्यवस्थित, संतुलित बनाने की जिम्मेदारी आप पर छोड़ते हैं।

मनुष्य, कितनी बड़ी चीज़ है, सारे संसार में, सारे विश्व में, आज तक जितने भी गुरुजन हुए हैं, पृथ्वी तल पर जो मानव आज खड़ा है, वो भी कलयुग में, हर ग्रहस्थी में सामान्य तरह से रहने वाला मानव सबसे ऊंचा है। वो जितना पा सकता है, कोई भी संसार में नहीं पा सकता। एक बड़े भारी संतुलन की ज़रूरत है, अपने मस्तिष्क में, प्रतिहंकार और अहंकार नाम की, दो थैलियां हैं, दो परदे हैं, इसे इगो और सुपर इगो कहते हैं, वो जानबूझ कर बनाए गए। एक तरफ से एक चीज बढ़ती है, दूसरी तरफ से दूसरी चीज बढ़ती है, जो बीचो बीच आ जाए, जो संतुलन में आ जाए, जो टेम्परंस में आ जाए, अति में न जाए, वो पार हो सकता है।

उसी के अंदर कुंडलिनी उठ करके, बीचो बीच से निकलती है, उसे प्लावित कर देती है; उसी के अंदर उसका चित, अतिश कुंडलिनी पर बैठा हुआ, उस अचेतन में आपको छोड़ देता है। जैसे ही ये घटित होता है, वैसे ही ऊपर से अचेतन अंदर बहने लगता है, आप एकाकार उस सागर से हो जाते हैं, मानों जैसे एक बूंद है सागर में पड़ गई, तो सागर हो गया, सागर की लहर के साथ उठ रहा है और गिर रहा है। उससे कोई पूछता है, अरे तू क्या कर रहा है, तो मैं क्या कर रहा हूँ, मैं तो जा रहा, और आ रहा था...

उसके अंदर से लहरें उठ रहीं हैं। उसका अंतर एकदम शांत हो जाता है, ऊपर से धीरे धीरे ये धाराएं शांति की बहती रहती हैं। यह सत्य है, यह मन घडन्त बात नहीं है, यह सत्य है, महान सत्य जिसे आप पाइएगा। और पाने के बाद उसे स्थिरता लानी पड़ती है, किसी किसी में नहीं है, जैसे आप बैठे हैं, आपके लिए ज़रूरत नहीं है, आप जो एकदम पा गए, इसको वहाँ पहुँच गए पर कुछ लोगों में थोड़ी सी स्थिरता लानी पड़ती है, कोई हल नहीं है। साधन तो मिली गया, पहचान हो गई, आप वहाँ पहुँच गए, और स्थिर्ता भी लाने के लिए पूर्ण व्यवस्था है।

उसकी स्थिर्ता आते ही साथ, परम शांति में, और परम आनंद में, आप उस साक्षी स्वरूप को प्राप्त करते हैं, जिसका वर्णन श्री कृष्ण ने कहा था, जिसके बारे में ईसा मसीह ने बताया था, जिसके बारे में सारे शास्त्रों में बताया गया है, चाहे वो किसी भी (जर्दूस-अस्पष्ट) का हो, चाहे वो सोक्रेटीस ने लिखा हो, कंफ्यूशस ने बताया हो, या दत्तात्रेय जी के जितने भी अवतार हो चुके, उन लोगों ने जिसके बारे में कहा है वो हो जाता है।

आश्टक, ये लोग जो उचित चित्त थे, जो उची दशा में पैदा होते थे, वो अपनी बात करते थे, और दूसरों को समझ में नहीं आता था, ये क्या बात कर रहे हैं; उनको दसवें मंजिल की बात दिखाई देती थी, जबकि ये लोग पहले ही मंजिल पर रहते थे, उनको समझ में नहीं आता था, कि ये बात ही क्या हो रही है।

सहजयोग हमेशा से ही रहा, आज जो आप जानवर से मनुष्य बने हैं, वो भी सहजयोग से ही हुआ है, लेकिन आज कलयुग में जो सहजयोग है, उसमें आप सीमित शरीर से असीम में एकाकार हो जाते हैं।

ये आपने मुझे आज जो यहाँ पर बुला कर के, और मेरा आदर किया, उसका कहना यही है, कि इस आदर में उस परमात्मा का आदर करिये, कि जो आपके दरवाजे पर बिल्कुल खड़ा हुआ है। एक क्षण में यह बात घटित होती है, और फिर आने की उपलब्धि। लेकिन बहुत से लोगों को ऐसी गलतफहमी है, कि इस तरह की चीज़े करने से आप संसार से उठ जाएंगे, यह प्रैक्टिकल बात नहीं, यह बहुत अन-प्रैक्टिकल बात करते हैं। माता जी हमसे कहेंगी, कि आप सच बोलते रहो हमेशा, और हमारा धंधा कैसे चलेगा, या इस तरह की भी बात, बहुत से लोग कहते हैं, कि माता जी मैं नौकर पेशा आदमी हूँ, मेरी नौकरी कैसे चलेगी? यह प्रश्न तब खड़े होते हैं, ये प्रश्न तब खड़े होते हैं जब तक आप पार नहीं हुए। पार होते ही आप प्रभु के साम्राज्य में जब चले जाते हैं तो आपकी नज़र में आता है कि अरे वो तो कर ही रहा है सब कुछ।

एक उदाहरण के लिए बात बताएं कि सहज योग में कोई भी मनुष्य सत्तर साल से पहले नहीं मर सकता अगर वो पार हो जाए। ऐसे लोगों के जिनके बारे में कहा गया था कि उनकी आयु इतने साल में खत्म हो जाती है, इस साल में मर जाएँगे, ऐसे भी लोग मेरे पास आए। और सहज योग के पास जो अभी तक जो काफी अच्छे से चल रहे हैं। अभी हाल में एक ऐसा किस्सा था कि गलती से ऐसे खबर आई कि हमारे एक सहज योगी, जिनकी उम्र कोई 40-45 साल की होगी, उनकी मृत्यु हो गई; और उन्होंने मुझे चिट्ठी लिखी मैंने कहा असंभव हो ही नहीं सकता। फिर मैंने वाइबरेशन से जाना कि वो तो जीवित है। उसके बाद मैंने चिट्ठी लिखी यहां बैठे और वहां मेरे लंडन के जो डिसाइपल्स थे उनसे भी बताया कि बताओ क्या है, कहने लगे नहीं, माँ वो तो जीवित है क्योंकि जब कोई मर जाता है तो हाथ में एक अलग तरह के वाइबरेशन आते हैं। तो मैंने जब चिट्ठी यहां पहुंची इन लोगों ने पता लगाया और फ़ौरन मेरे पास तार भेजा कि नहीं इसे एल एन आट। असंभव है इससे बढ़के और आपको कौन सा मैं experience बताऊँ? कैंसर की बीमारी आप जानते हैं कि हम लोगों ने अनेक कैंसर के रोगी ठीक किये हैं। लेकिन हम लोग यही धंधा नहीं करते हैं पहले बता दें क्योंकि ऐसे बताते ही साहब सब लोग कैंसर के रोग लेकर मेरे पास आ जाते हैं। ऐसे ही के साथ इसा मसीह के साथ हुआ था, उन्होंने तो 21 आदमियों को ठीक किया था लेकिन हमारे तो एक-एक शिष्यों ने 500-500 लोगों को ठीक किया है; अभी एक साहब राहूरी से आए हैं, राहूरी की यूनिवर्सिटी के हैं, वे कैंसर के पेशेंट थे, उनको ठीक कर दिया। हाँ! कैंसर सहज योग के सिवाय ठीक नहीं हो सकता है, यह मैंने पहले भी कहा था, और आज भी कह रही हूँ। और हेल्थ मिनिस्ट्री में भी हम लोग जाने वाले हैं, लेकिन प्रॉब्लम हमारे लिए यह है कि जैसे ही हम कहेंगे हम कैंसर ठीक करते हैं, सारे कैंसर के बिमार ठीक करते-करते हम डॉक्टर कब बन गए। हमको तो लोगों को पार कराना है और जिस वक्त वो पार होते हैं, उनकी कैंसर की बिमारी ठीक होनी ही पड़ती है। हर एक तरह की बिमारी ठीक हो जाए, आप कम से कम 20 साल की आपकी उम्र छोटी लगेगी। क्योंकि ये सारी जो आप सर पे, खोपड़ी पर लादे, जिम्मेदारी घूम रहे हैं, और सोच रहे हैं कि मुझे ये करना है, वो करना है, वो सब खत्म हो जाता है और सब होते ही रहता है। सब काम बनते रहते हैं, होते रहते हैं। जैसा हम चाहते हैं, वो हो जाना होता नहीं है, जो वो चाहता है, वो होता है। और वो जो चाहता है, वो अच्युतम है हमारे लिए।

एक उदाहरण के लिए मैं अपनी ही जीवन का एक आपको उदाहरण देती हूँ। मेरे पति पहले, आप जानते हैं, शिपिंग कॉर्पोरेशन में चेयरमैन थे और उनके लिए एक बड़ी भारी नौकरी इंग्लैंड में ऑफर हुई थी, लेकिन किसी कारण वश पॉलिटिकल बात थी, तो उनका वहाँ अपॉइंटमेंट नहीं हुआ। और कुछ नीची तरह की नौकरी मिली, तो उन्होंने जाना अच्छा ठीक नहीं समझा। लेकिन मैं मजे में मस्ती में थी, उन्होंने कहा तुम्हें कुछ नहीं लगता? मैंने कहा मुझे क्या फ़रक पड़ने वाला, मुझे तो इसमें कोई फ़रक नहीं पड़ने वाला, तुम क्यों परेशान हो? मैं तो बहुत आनंद में हूँ और जो कुछ होता है, सो भले ही के लिए होता है। ऐसा ही सोचना चाहिए। परमात्मा का हर एक चीज में कोई न कोई संकेत है, मैंने कहा अगर आप नौकरी को इतनी बड़ी चीज समझते हैं तो उसमें भी परमात्मा का कोई संकेत ही होगा। उसके अगले ही साल बड़ा भारी चुनाव हुआ और 176 देशों ने उनको चुन करके इतने ऊँचे पद पर बिठाया कि जिस आदमी की जगह है वो जाना चाहते थे, उसके ही खोपड़ी पर जाकर बैठ गए। तब उनको बड़ा आश्चर्य हुआ और मैंने कहा, नहीं भी बिठाते तो भी मैं सोचती थी कि अगर हिंदुस्तान छोड़कर जब बाहर के देश जाना है, तो लोगों ने कहा कि माता जी आपका तो कार्यक्षेत्र आप कहते हैं कि हिंदुस्तान है और ये योग भूमि है। मैंने कहा योग भूमि तो है लेकिन जितने योगी हैं सब इधर ही पैदा हुए हैं, क्या करें?

सच बात, आपको आश्चर्य होगा कि हिंदुस्तान के सारे योगी आजकल इधर ही पैदा हुए हैं। यहाँ नहीं, यहाँ तो कीचड़ जैसा मुझे लगता है। आप माफ करें, लेकिन हँस के। उन लोगों को आप एक-एक को देखें तो आपको आश्चर्य होगा, कितने महान लोग थे। उनके लिए परमात्मा कितनी बड़ी चीज है, उनके खोज में कितनी सच्चाई है, कितनी गहराई है। सर्वस्व अर्पण करके भी वो चाहते हैं कि हर पल इसी में बने रहें।

अभी एक साहब यहाँ आए थे, वो भी यूनाइटेड नेशंस में बड़े भारी ऑफिसर हैं, हमारे लोगों से मिले। ये लोग दंग हो गए, कहने लगे भई मुझे सिखाओ, गणपति की पूजा सिखाओ। लोगों ने पूछा तुम गणपति पूजा करोगे, तुम तो इसाई हो। उन्होंने कहा, नहीं, मैं इसाई-विसाई नहीं हूँ, मैं किसी धर्म का नहीं हूँ, मैं सहजयोगी हूँ, मैं गणपति के बगैर कुछ नहीं हूँ। पूजा क्या है? पूजा भी उसी असीम में उतरने की बात है, नमाज क्या है? उसी असीम में उतरने का मंत्र है, प्रेयर क्या है? उसी असीम में उतरने की एक व्याख्या है। लेकिन बिना परमिशन के, बिना कनेक्शन के कोई भी इसका अर्थ नहीं रहा है; आप करते रहें जितनी पूजा करें, किसी काम का नहीं है।

आज ही एक स्त्री हमारे पास आई थीं, मुझसे कहने लगीं कि "माता जी, मुझे हृदय की बहुत तकलीफ है।" मैंने पूछा, "तुम कौन सा मंत्र कहती हो?" कहने लगीं, "माताजी, ओम शिवाय।" देखिए, आप शिव का नाम लेती हैं, शिव तो हृदय में ही बैठे हैं। उनका हृदय में ही स्थान है। जिसने शिव को पा लिया, उसका हृदय इधर से उधर होना संभव नहीं। और वह ओम नमः शिवाय का जप कर रही है और हृदय उनका खराब है; ये कैसे? मैंने एक ही बार उनको याद किया, उसका हृदय एकदम स्थिर हो गया, शिव जी जान गए। क्या अंतर है उनमें और मुझमें? एक ही अंतर, मेरा शिव जी से कनेक्शन है। मैंने उनसे अनुमति ली हुई है। जैसे किसी के घर पर आपको जाना है, तो आपको उससे अनुमति लेकर जाना पड़ेगा। अब आप किसी जज के यहाँ जाना चाहें, तो आप जाकर दरवाजे पर ठोकर मारेंगे, तो वह आपको पुलिस में बंद करवा देगा। लेकिन आप कायदे से उनके पास पहुंचे, तो वह भी आपकी आवभगत करेंगे, कहेंगे बैठिए, आइए विराजिए!

कनेक्शन के बिना जितनी भी पूजा-अर्चना होती है, और वह भी जब अति में जाती है, संतुलन से परे, उसका नुकसान होता है। आपने हठयोग में भी सुना, हठयोगियों के प्रति मेरा यही आजतक अनुभव रहा है। आश्चर्य की बात, अमेरिका में भी पहुँच गए हठयोगी! जितने भी हठयोगी हैं, सबको हृदय की परेशानी होती है। हठयोगी तो विशेषकर शिव के बड़े पुजारी होते हैं। उसका कारण यह है कि हठयोग संसार में रहने वाले लोगों के लिए नहीं है, जंगलों में रहने वाले लोगों के लिए है, पर्शुराम के लिए है। संतुलन से थोड़ा बहुत करना दूसरी बात है, लेकिन हठयोग आप लोगों के लिए नहीं है। अगर आप उसको अति में करेंगे, तो हृदय की परेशानी होना निश्चित है।

अभी आप देख रहे हैं कि संसार में हरे रामा हरे कृष्णा लोग आते हैं। लंदन में कितने ही उनके शिष्य मेरे पास आते हैं, उन्हें यहाँ पर कैंसर की बीमारी है। आपको आश्चर्य होगा, इस कंठ में श्रीकृष्ण का ही वास है। वे ही यहाँ विराजते हैं। जब कभी किसी को कंठ में या सर्वाइकल में कोई भी शिकायत होती है, तो श्रीकृष्ण का, राधाकृष्ण का नाम लेना पड़ता है। कुण्डलिनी शांत! और इनके यहाँ देखें, इनकी जो कुण्डलिनी अवरुद्ध तो है ही, लेकिन यहाँ पर श्रीकृष्ण नाराज बैठे हैं, वहाँ से लुप्त हो गए हैं। क्या वजह है? हम लोग सोचें तो क्या यहाँ हम अपनी संस्कृति फैला रहे हैं? हालाँकि इसमें संस्कृति, असंस्कृति कुछ नहीं फैलाते हैं वो लोग। मैंने देखा, उनकी चोटियाँ नीचे गिर जाती हैं, धोतीयां नीचे गिर जाती हैं; इतना भद्दापन आ रहा है। लेकिन जाने भी दीजिए उत्पात, परमात्मा के नाम पे जो कूट काट रहे हैं और चिल्ला रहे हैं, उनके विशुद्धि चक्र पर जहाँ श्रीकृष्ण का वास है, उस जगह कैंसर की बीमारी कैसे हो गई? उसका भी यही कारण है। और नहीं तो उनको एक बार भी याद करना बहुत कुछ होगा। उनको इतने बार याद करने की ज़रूरत ही क्या है? जिसको जाना है, उनको सिर्फ एक बार 'कृष्ण कन्हैया' कहते ही सुदर्शन चक्र लेकर, शंख, चक्र, गदा, पद्म, गरुण लेकर पधारते हैं! उनके लिए इतना आफत करने की ज़रूरत क्या है? इतना आफत मचाने की ज़रूरत क्या है? इतना सोचने की और इतना प्रदर्शन करने की क्या ज़रूरत है, जोकि साक्षात आपके अंदर हर समय विराजमान हैं? किन्तु आप अपनी हठ करते हैं। आप वास्तविक अगर परमात्मा को मानते हैं, तो शरणागत में रहें, मौन में रहें, उसे जानें। अंदर में घटित होना है ही। आखिर आप ही सोचिए, जिस परमात्मा ने ये विश्व बनाया है, जिसने ये सारी सृष्टि रची है, क्या वह इस सारी सृष्टि को विनाश कर देगा? इसका संहार कर देगा? परमेश्वर का प्रेम कलियुग में तो विशेष रूप से कार्यान्वित है।

अभी बीमारी की बातें तो आप जानते ही हैं कि हमारे यहाँ शिष्यों ने ही बहुतों को ठीक किया है। बहुत से मानसिक रोग भी लोगों के ठीक हुए हैं, यह कोई विशेष चीज़ नहीं है, ये तो होना ही है। जो मंदिर परमात्मा का है, उसको साफ करने के लिए भैरों से लेकर हनुमान जी वगैरह सब लगे ही रहते हैं। वे हैं या नहीं? ये इस साम्राज्य में आकर देखें आप। अगर बाहर ही रहकर पूछें कि हमें ला कर दिखाएं, तो हम आपको कैसे दिखा सकते हैं? अगर कोई अंधा चाहे कि रंगों को जानें, तो उसको कैसे बता सकते हैं? हम अगर कोई चींटी चाहे कि उनको हमारे राजनीतिक संस्थानों को समझाएं, हमारे राजकरण को समझाएं, तो उनको हम कैसे समझाएं?

आप परमात्मा के राज्य में आएं, उसके अंदर प्रवेश करें, और फिर बिल्कुल फ्री हैं कुछ करने के लिए। ये तो मानव सोचता है कि वह परमात्मा को खरीद सकता है। ये तो मानव की बुद्धि है, जो उसे सोचती है कि मैं उसे अपना सकता हूँ। नहीं, उसमें उसका मानना है, उसमें समर्पित होना पड़ेगा। आप आइए इस साम्राज्य में, परमात्मा के प्रेम के साम्राज्य में आने से। आप देखेंगे, यहाँ अनेक सहज योगी हैं, उनके अनुभव अगर लिखने जाएं, तो न जाने कितनी किताबें हो जाएंगी। लेकिन सहज योगी बहुत धीरे-धीरे बनता है, जैसे कि भूतों की संख्या अनेक होती है।

कोई अगर भाषण देता है, तो उसके हजारों लोग शिष्य हो जाएंगे, क्योंकि वह आपमें मोहिनी मंत्र डाल देगा, आप मोहिनी व्रत सुनते रहेंगे। जब भाषण ख़त्म होगा, आपको पता नहीं चलेगा, आपका दिमाग खराब हो जाएगा। आप विचित्र लीलाएँ करने लग जाएंगे, आपके बीवी बच्चे कहेंगे कि "ये पता नहीं कैसे साधू जी के होकर आए!" बीवी को सुबह-शाम मारेंगे, उधर साधू बाबा के पास जाकर बैठेंगे। वह आपसे रुपया मांगेगा, पैसा मांगेगा, आप उसे लुटा देंगे। ये मानव की बुद्धि को, उसे मैं क्या करूँ? धीरे-धीरे सहज योगी बनता जाता है। सत्य हमेशा धीरे-धीरे होता है। अगर मुझे प्लास्टिक के फूल बनाने हों, तो एक घंटे के अंदर हजारों फूल बन सकते हैं मशीन से। लेकिन मुझे अगर असली गुलाब के फूल खिलाने हैं, उसमें थोड़ा सा समय जरूर लगेगा। फिर भी कलियुग में ही ये विशेषता है कि प्रभु का प्रेम इतना उमड़ पड़ा है, इतनी उनकी अनुकंपा बह रही है कि अनेक जन्मों में मैंने ये प्रयत्न किए हैं। सिर्फ इसी जन्म में और इसी कलियुग के विशेष प्रांगण में ही अनेक लोग क्षण में पार हो जाते हैं। सर्व साधारण, अत्यंत साधारण में कृष्ण ने भी उनके जमाने में बड़ी मेहनत की थी गोप-गोपियों को पार कराने की। खास जमाने में मानो। क्राइस्ट के कोई भी शिष्य पार नहीं हो सकते थे। बहुत प्रयत्न किया, बड़ी मेहनत की, कोई भी पार नहीं हुआ। उस जमाने में आप भी थे, आप लोगों में से भी कुछ लोग थे। आज वही लोग आप में बैठे हुए हैं। आप कुछ आज के नहीं हैं, जन्म-जन्मांतर के खोजने वाले हैं। आप जंगलों में घूमते रहे जब पहले जमाने में, गुरुओं के पास भागते रहे। हजारों वर्ष की आपकी ज़िंदगी है, आज आप उसे फलीभूत होने के लिए आए हैं और क्षण में हो जाता है, इसमें शंका क्या है? इसका वचन बहुत पहले दिया गया था कि कलियुग में ही ऐसा काल आएगा, और वह हो रहा है। इसमें इतना आश्चर्य क्यों है? इसमें इतनी शंका क्यों है? इतना वितर्क क्यों? इतना विलम्ब क्यों? सहज योग में आने से आप जानते हैं कि साथ चक्रों का खेल है। विशेषकर आप लोगों को हिंदोस्तान में लक्ष्मी जी की बड़ी परवाह लगी रहती है, और देशों में नहीं। और देशों में तो लोग भिखारियों के वेश में घूमते हैं। वे तो तंग आ गए लक्ष्मी जी की कृपा से। कृपया पाएं, अब नहीं चाहिए लक्ष्मी जी।

अभी मैं गई थी मुम्बासा में, तो वे लोग कहने लगे कि "माता जी, लक्ष्मी जी तो बहुत हैं, लेकिन अब शांति दीजिए हमारे को। बीवियों के दिमाग खराब हो गए। हमारे तो घरों में आफ़त पड़ गई। सब बच्चे पागल हो गए, मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गए। सबसे ज़्यादा यहाँ पर आत्महत्या के मामले हैं। अमेरिका में भी यही हाल है। जहां जाएं वहां, जहां पैसा बहुत है, वहां-वहां ज्यादा पागल हैं।" लेकिन सहज योग में लक्ष्मी जी की भी कृपा बरसती है, उसका भी संतुलन आता है।

उसका भी संतुलन आता है, आप उस साम्राज्य में जाते हैं। उस विशेष आशीर्वाद में उतरते हैं, जो सारा ही कार्य ऐसा बनाते जाता है कि आपका सारा ही मार्ग सुलभ और सहज होगा। हमारे यहां ऐसे बहुत से लोग हैं जो इसकी शहादत देंगे, विटनेस देंगे, साक्ष्य देंगे। अब मां है न, हर चीज के प्रलोभन बच्चे को देगी, कि बेटे ऐसे ही खाले, ये नहीं, तो मैं तुझे वो दूँगी, तु ये खाले तो मैं दो पैसे दूँगी, तु खाले भाई। फिर उस पे भी नहीं माना, तो कहेंगे अच्छा मैं तुझे एक महल बना दूँगी, तु खाले; ऐसा ही मेरा हाल है! सब तरह से मनाते रहती हूँ और सब देती भी हूँ, प्रेम भी बहुत देती हूँ, माँ तो से सिर्फ देती है। माँ कहती है, बेटे! अपने को जानो जो अपने अंदर शक्ति है उसमें उतरे रहो, उसको मांगो जो असलियत है, उसे मांगो, यह नकलीयत पे नहीं। आनंद जितना भी आपके पास है, आश्चर्य नहीं, कितनी भी संपदा हो, कितना भी आपके पास पावर हो, आप कितने भी उच्च पद पे हों, वो महारानी हो, महाराजा हो आनंद नहीं आ सकता है, नहीं आ सकता है, जब तक आप आनंद के साम्राज्य में न खड़े हों, और जब आनंद के साम्राज्य में खड़े हैं, तब आप हर हालत में, बादशाह, महारानियाँ हैं! आपको कोई खरीद नहीं सकता, आपको कोई जीत नहीं सकता, आप जीते हुए हैं। बादशाह हैं! बादशाह हैं, ऐसे बड़े-बड़े बादशाह अपने यहाँ हो गए, एक से एक बादशाह हो गए अपने देश में; आपके यहीं पर इस महाराष्ट्र में एक बहुत बड़ी विभूति हो गई है, जोकि शिरडी के एक छोटे से गाँव में रहती है, बादशाह थी; वो ती है, बादशाहत लोग जान ही नहीं पाए कि बादशाहत कैसी रही, क्या मज़े में रहते थे वो हमारे इस भारत वर्ष। हमारे इस भारत वर्ष के गुरुनानक जैसे दूसरे एक बादशाह हो गए, कबीर जैसे तीसरे बादशाह हो गए इन्होंने कोई इन्होंने कोई राज भोगे थे, आज सारा संसार उनके चरणों में झुका रहता है, उन सबको समझाने की, उनके पूर्ण कार्य करने की और उनकी जो कुछ बातचीत है, जो कुछ उन्होंने कहा है, उसको सिद्ध करने के लिए ही पूर्ण कार्य करने के लिए ही मैं आपके सामने आई हूँ। कोई भी उनकी बात झूठ नहीं थी, जो ईसा कह गए, वो कृष्ण कह गए, जो गीता में है, जो वेदो में है, जो बाइबल में है, जो कुरान में है; सारी बातें मैं आपके सामने सिद्ध करके दिखाना चाहती हूँ। दिखने को तो मैं बहुत साधारण प्रतीत हूँ, लेकिन मेरे ही अंदर से वो शक्ति आपको सिद्ध करके दिखा सकती है कि जो अचेतन है, जो अनुकांशस है, वो किस तरह से काम करती है। जब आप पार हो जाते हैं, हर एक उंगली पर हर एक जगह पर आपके चक्र हैं, वो बताता है देखो, यहाँ पर इनको प्रॉब्लम है, यहाँ पर इनको शिकायत है उंगलियों पर, मानें वो शब्दों में नहीं बताता, आपको जला के बताता है, ठंडा करके बताता है। जैसे आपके अंदर ठंडी-ठंडी लहरे भरने लगे वो आशीर्वाद रूप से चला आरहा है, ठंडा-ठंडा हिमालय से जैसे कि कोई धारायें चल रही हों। यह सबजैक्टिव नॉलेज है, मानें करता का ज्ञान है, आप करता हो जाते हैं, आपके अंदर करता का ज्ञान आता है; आप वही हो जाते हैं जो आप हैं, बाहर पढ़ने की कोई ज़रूरत नहीं है, किताबों में देखने की कोई ज़रूरत नहीं है, सब यहीं पे लाइब्रेरी है। कोई बड़े-बड़े विद्वान मेरे सामने आते हैं, कहते हैं माता जी आप तो वहां की बात करते हैं जो निरंजन संहिता में है; मैंने कहा भाई संहिता तो छोड़ो मैंने कभी उपनिषद भी पढ़े नहीं, कभी गीता भी पढ़ी नहीं; तो फिर यह जाना कैसे, क्योंकि जहां से जाना जाता है वो तो अंदर ही है, अपने दिमाग में ही सारा बैठा हुआ है ना। आपके अंदर अगर लाइब्रेरी आप जो चाहे खोज लीजिए, पढ़ लीजिए। आप पूर्ण ज्ञान में हो जाते हैं फिर जो आप बोलते हैं, वो सत्य है। आप पूर्णतया सत्यमेव हो जाते हैं! जो भी आप कहते हैं, उसका आप साक्षात कराते हैं। आपके हाथ से कुंडलिनी यूँ उठेगी। मेरी तो छोड़ दीजिए ये बात, यहाँ पर ऐसे अनेक लोग यहाँ पर हाजिर हैं जो आपके ही जैसे दिख रहे हैं, उनके सिर्फ इशारे पर कुंडलिनियाँ उठती हैं, हजारों की उठती हैं। (अस्पष्ट)। विश्वास अंधा मत करिये, इसको आप जानिये। लंदन में मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक साहब ने मेरे फोटो पर छ: आदमियों को पार कर दिया, वो सिर्फ मेरे फोटो के तरफ हाथ कर के बैठे थे। मैं बड़ी आश्चर्य चकित हुई, जब देखा तो मैंने कहा हहहह कहां से अनादि काल के महापुरुष हो गये संसार में उनके पाँव छू के में हृदय से लगा लूँ कहां रखूँ उनको मैं। फोटो देखते ही तुम तो पार होने वाले थे, वैसे पार ही हो, तुम्हारा क्या! दूसरा बड़ा भारी आशीर्वाद संसार में हो रहा है, इसकी शायद आपको खबर न हो; बहुत से छोटे बच्चे जिनकी उम्र आठ साल से नीचे है, कुछ तो बारह साल के भी मैंने देखे, अमेरिका में भी हैं, लंदन में तो बहुत हैं और यहाँ पर भी हैं, बड़े-बड़े जीव पैदा हुए हैं, सारे कुंडलिनी शास्त्र में पारंगत हैं; आज ही एक लड़का छोटा सा पाँच साल का अपने बाप ही के मारे जा रहा था, नाभी चक्र पे मारा जा रहा था उसके।

आग्या चक्र पे मारा जा रहा था, वो समझ रहा था इसकी ये चीज़ पकड़ रही है, उसकी वो चीज़ पकड़ रही है। उसको कुछ बताना नहीं था मारे ही जा रहा था, छुड़ा के ही छोड़ा उसने, जब तक उसका छुटा नहीं उसके दो-चार लगाए उसके उसको छुड़ा लिया। साक्षात ज्ञान! उनका एक-एक हाथ का इशारा, उनकी एक-एक चलन, उनकी एक-एक बात चीत, सब में ज्ञान। हमारी भी एक नातिन है, दोनों नातिन मेरे बहुत पहुँचे हुए हैं, दोनों ऐसी पैदा हुए हैं। एयरपोर्ट पर हम लोग गए तो यू यू यू हाथ चलाने लगे, मैंने कहा क्या कर रही हो, नानी सबको बांध रही हैं, कितने 'काले' यहाँ पे लोग हैं। काले का मतलब उनका होता है, जिसे आप कहते हैं नेगेटिव। सब को बांध रहे हैं। इतनी छोटी सी थी, तीन साल की तो बताने लग गई कि सहजयोगियों को बता दीजिए कि देखिए, हमारा मन जो है वो घोड़ा, घोड़े पर बैठिए पर घोड़े को अपने ऊपर मत बैठने दीजिए और हमेशा सफेद घोड़े पर बैठिये। कलयुग में कहा गया है कि सफेद घोड़े पर सवारी होगी। तीन साल की उमर में छोटा बच्चा; ऐसे अनेक बच्चे हमने देखे हैं जो आज के भारत वर्ष में भी, मैं कहती हूँ, कम से कम तीन सौ बच्चे मैंने देखे हैं। क्योंकि जितना भी रोको, कलयुग में ये लोग जन्म लेते ही आए हैं और इसके अलावा राक्षस भी जन्म ले रहे हैं, नहीं तो कलयुग रहेगा कैसे। और बहुत से जानवर भी जन्म ले रहे हैं, साधारण मनुष्य जरा कतराते हैं जन्म लेने में क्योंकि वो जानते हैं कि हालात बहुत खराब हैं। इतने जानवर भी जन्म ले रहे हैं, इसी से इनकी पॉपूलेशन भी बहुत ज्यादा है। जिस दिन सतयुग आ जाएगा, ये संख्या अपने आप घट जाएगी। साधारण मनुष्य जन्म लेगा, क्योंकि जो इसे देखता है कि ये रवरव स्थिति है, वो क्यों शरीर धारणा करें बाबा? इस आफ़त में क्यों जाएँ, जहां बाप बाप नहीं रहा, बहन बहन नहीं रही; ऐसी आफ़त में कौन अपने को फंसाना चाहेगा? ऐसे महान विभूतियां तो जन्म ले रही हैं ही, लेकिन उनके साथ दूसरी शक्तियां भी जन्म लेंगी। आपके भारत वर्ष में सोलह राक्षसों ने जन्म लिया, एक हो तो उसे पार करें। अब संहार की भी बात नहीं हो सकती क्योंकि उनका संहार करें, एक साहब उनमें से मर गए, तो वो भूत बन के और छा गए। इतनी दुष्ट प्रवृत्तियाँ संसार में कहां से आयी हैं? उसका सोर्स क्या है? उसका स्रोत क्या है? इसको आप लोग कैसे समझेंगे? उसका निदान आप लोग कैसे देंगे? साइन्टिस्ट लोग बताएं कि ये कैसे हो रहा है? साइंस से बता सकते हैं। साइन्टिस्ट का तो ये हाल है कि, अमेरिका में बहुत से लोगों ने गांजा और ये पीना शुरू कर दिया। तो पाँच साइन्टिस्ट लोगों की कमेटी बनाई गई इसका पता लगाने कि गांजा वांजा पीने से क्या होता है? वो पता लगाने को गए तो उन पे ये भूत बैठ गए, ये ही लोग गांजा पीने लग गए। इन्होंने सब रिजाइन कर दिया अपनी जॉब्स। अगर इतने बड़े साइंटिस्ट थे तो फिर गांजा क्यों पीने लगे? शराब क्यों पीते हैं इतना ज़्यादा? मुहम्मद साहब बता गए शराब नहीं पीना है, नानक साहब बता गए शराब नहीं पीना है; कर के दिखाएं, पर साइंस से ये लोग कर के दिखा दें, तो हम साइंस को मानने को तैयार हैं। ये लोग क्या खुश हैं? आप लोग तो थोड़े बहुत खुश हैं, लेकिन उन लोगों ने जिन्होंने साइंस में इतनी तरक्की की है, वो बहुत बड़े दुख में हैं। United Nations के सामने एक बड़ा भारी प्रश्न है, आपको पता है? कि जो डेवलपिंग कंट्रीज बढ़ रही हैं, उनको इस जंजाल में फंसाएँ कि नहीं, जिसमें हम लोग फंसे हैं। नेपाल के बारे में विशेष कर लोगों ने ये रिपोर्ट दी कि यहां के लोग गरीब जरूर हैं लेकिन बहुत खुशहाल हैं, बहुत आनंद में हैं, आप क्यों इनका सत्यानाश कर रहे हैं। आप लोगों को भी देखकर बहुत से लोग कहते हैं कि हिन्दुस्तानी अब भी बहुत ही सक्रिय हैं। अब भी इतनी दुख की प्ररकाष्ठा में नहीं पहुंचे, इनको क्यों तुम लोग डेवलप करके इस चक्कर में फंसा रहे हो, जिसमें हम लोग फंसे हैं। फिर आपको यह सोचना है क्या हम शॉर्टकट कर सकते हैं? क्या हम इस प्रगति को किसी तरह से छोटा कर सकते हैं? बिल्कुल कर सकते हैं हम, क्योंकि आपको इसका अधिकार है। आप उस असीम को पा लें, जो कि कठिन कार्य है; जो कि कठिन कार्य है, जो सभी कार्य है, जो सब कुछ है, उसी को आप पा लें, उसी के बराबर केंद्र बिंदु पर आपको सहज योग परमात्मा का प्रेम का आविष्कार है। आज तक आप लोगों ने परमात्मा के प्रेम को जाना नहीं था, क्योंकि आपका कनेक्शन नहीं है, पर कनेक्शन मात्र हो तभी तो जो लोग इस हाल के अंदर बैठे हैं, वही तो न मेरा भाषण सुनेंगे। उसी प्रकार जो परमात्मा के साम्राज्य में आ जाएँगे, वही उसका सर्वव्यापी स्वरूप, हर एक कण कण में बसी हुई बात जिसे कहते हैं, उसका सारा विधान आप जान जाएंगे; कोई शंका नहीं रहेगी। क्या कमाल है, क्या चमत्कार है! नहीं तो वैसे ही लंदन में चर्चिल की तरह; फिर से चर्चिल क्या करते हैं? जैसे खरीदे थे, वैसे बेच रहे हैं। जब तक कोई जीवंत चीज संसार में नहीं दिखाई देगी, आजतक बिक रहे हैं हिंदुस्तान में। जब तक जीवंत चीज संसार में नहीं दिखाई देगी, भगवान का नाम भी नहीं रह सकता ना। क्योंकि परमात्मा जीवंत है, सिर्फ आप उसको पा लें, क्योंकि आप लोग स्टेज पर हैं, आप ही के थ्रू यह होने वाला है, आप ही के वज़ह से यह होने वाला है। क्योंकि आप लोग सब स्टेज पर हैं, आप ही की कार्य कुशलता है। आप ही को संसार में दिखाना है, अगर संसार डूब गया, विध्वंस हो गया तो उसकी...जिम्मेदारी आप लोगों पर है और किसी पर नहीं होगी। सुनने में बहुत फैंटास्टिक लगता है। आजकल के युग के आदमी को विश्वास नहीं होता कि ऐसा हो सकता है। यह तो विश्वास की बात नहीं, माता जी तो कुछ ऐसी बात कहती हैं, लेकिन यही सोचिए, अनमोल हीरा आपको मिलने वाला है, जिसे आप लेंगे। आप लोग मेरी ओर थोड़ा हाथ करके जरा बैठें थोड़ी देर, थोड़ी देर घड़ी न देखें, यह महत्वपूर्ण है, सबसे महत्वपूर्ण यही है।

मंत्रोचारण (अस्पष्ट)। आँख बंद करिए,

देखिए निर्विचारिता आई है क्या, किसी-किसी को तो ठंडी ठंडी भी आ रही होगी। लेकिन निर्विचारिता पहले आती है।

(मंत्रोचारण)। बीच में से मत उठिएगा जरा! थोड़ी देर, पाँच मिनट बैठ जाइए।

(मंत्रोचारण लगातार जारी)। पैर सीधे रखिए, दोनों पैर सीधे।

(मंत्रोचारण लगातार जारी)।

अगर आँख बंद नहीं हो रही है तो आँख खोल लीजिएगा, अगर फड़क रही है।

(मंत्रोचारण लगातार जारी)।

आप लोगों में से बहुत से लोगों में निर्विचारिता आई है, मैं जान रही हूँ! मतलब आँख बंद करने पर अगर आप मन के और देखें तो कोई विचार भर नहीं आ रहा। चैक कर लें, निर्विचारिता मात्र हो, सिर्फ तो ये सोचना चाहिए कि कुंडलिनी जागृत हो गई है। आज्ञा चक्र को वो लांघ गई है। और आपके ऊपर का जो हिस्सा है, जिसे हम सहस्रार कहते हैं, वो उसमें वह छा गई, लेकिन अभी यहाँ से पार नहीं हुई। लेकिन किसी के हाथ में अगर ठंडी-ठंडी हवा आ रही है, तो समझ लेना चाहिए कि ब्रह्मरंध्र खुल गया है।

हर हालत में हम लोगों का कार्यक्रम फिर से बालमोहन में है, और बाहर आपको फोटो मिलेंगे, फोटो लेते जाइएगा। फोटो पर भी आपका प्रयोग करेंगे, फोटो के ओर आप दोनों हाथ खोलकर बैठें, अगर ठंडा दोनों हाथ में आ जाए तो सोचना कि ठीक है। कोई भी बीमारी हो, हर चीज के लिए आप फोटो प्रयोग में ला सकते हैं। लेकिन फोटो की इज्जत रखिएगा, इधर उधर नहीं फेंकना, उसके साथ में सब लगे हुए हैं। उससे अगर ठंडी-ठंडी हवा आने लगे, तो फिर कोई प्रश्न ही नहीं है, सब ठीक है, तो समझ लीजिए कि सब ठीक है। लेकिन अगर गर्म हवा आने लगी, तो इसका मतलब है कि आपकी तबीयत ठीक नहीं है। आपको अंदर से कोई शिकायत है, तकलीफ है, विशेषकर इस हाथ में अगर गर्म आ रहा हो तो आप एक हाथ जिस पर गर्म आ रहा है, इधर फोटो की तरफ करें, और दूसरा हाथ बाहर की ओर। किन्तु आपके हाथ में अगर कंपन हो रहा हो, हाथ थरथरा रहे हैं, आपकी आँख फड़क रही है, तो इसका मतलब है कि आपके भीतर परेशानी है, आप बहुत नर्वस टेंशन में हैं। आप ऐसा करिए कि दोनों हाथ फोटो की तरफ रखें और उसके सामने एक मोमबत्ती या कोई दीपक जला दें, और दोनों पैर आप पानी में रखें। पानी में रखते ही उधर से वाइब्रेशन्स फोटो से आएंगे और पानी में चले जाएंगे। यह ही कितनी बड़ी बात है कि फोटो में ही वाइब्रेशन्स आ गए। आप कहेंगे कितना कमाल परमात्मा ने कर दिया। फोटो में ही वाइब्रेशन्स आ रहे हैं और बहुत ज़ोरों में आ रहे हैं। उतने नहीं जितने मेरे पीछे हैं, लेकिन फिर भी काफी हैं।

आप लोग यहां से फोटो ले लीजिए, बाहर हैं, और उनसे वाइब्रेशन्स प्राप्त कीजिए। कोई भी बीमारी, कोई भी बीमारी आपको हो, कोई भी तकलीफ हो, आप देखिएगा कि आपकी चली जाएगी। अगर आपको नींद की शिकायत हो, अगर आपको बहुत शरीर में बेचैनी हो, दिमागी परेशानी हो, आपके घर में कोई व्यक्ति पागल हो, कोई भी तरह की शिकायत हो, आप सब कुछ ट्राई करें। लेकिन आपके अंदर से अगर ठंडा-ठंडा आ रहा है, तो आप किसी भी बीमार को भी ठीक कर सकते हैं। आप अपना एक हाथ फोटो की तरफ करें और दूसरा हाथ उस आदमी की तरफ करें; तो फिर आप अंदर से खुद देखें, आपके अंदर से वाइब्रेशन्स जाना चाहिए।

आप लोग इसका अनुभव करके देखें और बालमोहन में भी आप अवश्य पधारें, वहाँ पर विशेष रूप से और भी मैं आपको बता सकूँगी कि आगे क्या करना है। चार दिन के अंदर अगर आपके अंदर ठंडी हवा नहीं आने लगे, तो आप दोनों हाथ फोटो के ओर रखके और पैर पानी में रखें और एक दीपक जला लें। हो सकता है कि आपके अंदर कोई बड़ी बीमारी हो जिसका आपको पता नहीं, और हो सकता है कि आपके ऊपर कोई भूत बाधा हो गई हो। कोई आप ऐसे बाधा हो, आप दोनों हाथ फोटो की ओर करके और दोनों पैर पानी में, बेसिन में नमक डालकर पानी रखें। हल्का सा गुनगुना पानी हो अगर ठंड हो। आप प्रयत्न करिए और देखिए इससे कितना लाभ होता है। बालमोहन में भी जब आप आइयेगा तो मैं आगे की बातें बताऊंगी। इसका शास्त्र बहुत कठिन है, यह तो बात सही है, जैसे इंजीनियरिंग बहुत कठिन है, लेकिन इसका कार्य बहुत सहज और सरल है, जैसे कि आप लाइट जलाना, एक आप स्विच ऑन करना। बहुत ही सहज है, और वह फोटो में आप इसे देखिएगा, आपको सलाम होगा। आप लोगों से बस में इतना ही कहना चाहती हूँ कि मेरा विश्वास करिए कि परमात्मा साक्षात हैं, हर जगह उपस्थित हैं, और आप पर अत्यंत प्रेम करते हैं। मेरा जो प्रेम आप देख रहे हैं, वह उन्हीं का प्रेम है, और वह आपसे इतना प्रेम करते हैं, इतना प्रेम करते हैं कि आपको ही आज संसार बनाया हुआ है, और आपके ही अंदर से यह महान लीला संसार में बहने वाली है।

बहुत धन्यवाद। आशा है कि फिर से आपसे मुलाकात होगी।

Mumbai (India)

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