Confusion, A Sign Of Modern Times

Confusion, A Sign Of Modern Times 1980-07-14

Location
Talk duration
30'
Category
Public Program
Spoken Language
English

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14 जुलाई 1980

Public Program

Caxton Hall, London (England)

Talk Language: English | Translation (English to Hindi) - Draft

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी

'विक्षेप, आधुनिक काल का लक्षण'

सार्वजनिक कार्यक्रम,

कैक्सटन हॉल,लंदन

14 जुलाई, 1980

आधुनिक काल में आज के समय में हमारा सामना (कन्फ्यूजन) विक्षेपों से है। ये आधुनिक काल का लक्षण है। साथ ही, सत्य को खोजने की सामूहिक तीव्र जिज्ञासा प्रकट हो रही है। ये सिर्फ एक व्यक्ति नहीं है जो ऐसा अनुभव करता है, ये सिर्फ आठ और दस लोग नहीं हैं जो ऐसा अनुभव करते हैं, परंतु जनसमूह के जनसमूह, बहुताय अनुभव कर रहे हैं, कि उनको एक उत्तर खोजना होगा। आप को पता करना होगा कि आप यहां क्यों हैं। आप को जानना होगा, आप कौन हैं। आपको अपनी हितकारिता का पता लगाना है। आपको संपूर्णता का पता लगाना है।

ये एक बहुत बड़ी गतिविधि एक बहुत ही सूक्ष्म तरीके से होती है, यानी जन समूह को इस खोज की ओर ले जाना। परंतु शायद हमें इस बारे में कोई अंदाजा नहीं, कि क्या माहौल है जिस में हम जन्मे हैं, क्या परिस्थिति है, पूरा मंच कैसे बिछाया गया है! हमें कुछ नही पता!

जैसा कि हमने खुद को इंसान के रूप में बिना उसके महत्व को समझे स्वीकार कर लिया है। हम हर चीज उपलब्ध होने के कारण उस का महत्व नहीं समझते। हम मनुष्य रूप में अपनी उत्क्रांति के द्वारा जन्मे हैं, परंतु हम विचार भी नहीं करना चाहते, कि हम अमीबा से इस उच्चतर अवस्था तक कैसे विकसित हुए! सारे

'क्यों' हम बंद कर देते हैं! जो कुछ भी है हम इन आंखों के द्वारा, इन कानों के द्वारा देखना चाहते हैं। इन ज्ञानेंद्रियों के द्वारा हम समझना चाहते हैं। परंतु अभी भी यह जानने की जिज्ञासा है, कि इस के परे क्या है!

जिस वातावरण में हम जन्मे हैं, उसे समझा नहीं जा सकता, देखने के लिए प्रकाश के बिना की अंधकार क्यों है, और इतना गहन अंधकार, जो इस धरा पर पहले कभी सर्वत्र व्याप्त नहीं हुआ। वो पहले इतना कभी नही था, पहले कभी नहीं, कभी नहीं, जितना आज है! इसलिए विक्षेप आ जाता है। उस की क्रिया होती है, और उसकी प्रतिक्रिया उसी प्रकार होती है। जितनी अधिक तीव्र इच्छा होगी, उतना ही अधिक विक्षेप होगा, उतना ही अधिक अंधकार होगा!

अब हमारे अंदर अंधकार अज्ञान का ही नहीं है, जैसा हुआ करता था। वेदों में और ग्रंथों में हर जगह लिखा है, कि आपको स्वयं को जागृत करना है। आपके पास प्रकाश होना चाहिए। मैं भी यही कहा करती थी, पर आपको इसके बारे में अधिक डराने के लिए नहीं! मैंने सोचा कि पहले इनमें प्रकाश आ जाएगा, फिर यह देख पाएंगे। तीन वर्षों तक मैंने कुछ नहीं कहा, इस अंधकार के बारे में एक शब्द, इस अंधकार का स्रोत, जब तक कि उन्होंने स्वयं इसे देखना आरंभ नही कर दिया। मुझे मालूम था कि वो देखेंगे। और फिर मुझे उसके बारे में बात करना आरंभ करना पड़ा।

हमें यह समझना होगा कि कुछ भयानक शैतानों द्वारा, शैतानी शक्तियों को विचरण करने के लिए खुला छोड़ दिया गया है, जो अपराधियों की तरह फरार हैं। हजारों और हजारों ऐसे जीव हैं, जिन्हें कुछ बहुत ही भयावह और दुष्ट लोगों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। वो (दुष्ट) स्वयं को महान व्यक्ति कहते हैं, या फिर जैसे गुरु और या कोई पुण्यात्मा, या प्रबंधक, जो भी आप कहें। वो इस शैतानी ताकत को नियंत्रित कर रहे हैं। और हम सब उस शैतानी ताकत से घिरे हुए हैं। जैसे ही हम स्वयं को उनके क्षेत्र में (प्रोजेक्ट) प्रक्षेपित करना आरंभ करते हैं, हमें पकड़ आने लगती है।

आइए देखते हैं, कि किस प्रकार हम उन में प्रक्षेपित करते हैं, और हम इस में क्यों पड़ते हैं, और इन शैतानी ताकतों का क्या इलाज है? पहले हम उस में अपने (सबकांशियस) अवचेतन मन द्वारा प्रक्षेपित करते हैं, जिसका कई मनोवैज्ञानिकों द्वारा वर्णन किया गया है। वे इसे मनोवैज्ञानिक शक्तियां कहते हैं। ये सिर्फ मनोवैज्ञानिक शक्तियां नहीं है, इस के बारे में और भी कई चीजें हैं।

हमारी अवधारणाओं के द्वारा, हमारे भय के द्वारा हमारा स्वयं का एक (माइंड) मन है! अब इस मन को दो भागों में विभाजित करना है। अंग्रेजी भाषा में माइंड का अर्थ संस्कृत भाषा के माइंड 'मानस' से अलग है। मानस है जो भी आप के अंदर का प्रति अहंकार, जो भी आप के अंदर अवधारणाएं हैं। और अहंकार भिन्न है। तो मानस में एक प्रतिअहंकार है और एक अहंकार है, जिन में से प्रतिअहंकार है, मन है जो आदतें बनाना आरंभ करता है।

उदाहरण के लिए, मनुष्य में आसानी से आदत बनाने की क्षमता होती है प्रति अहंकार यानि मन के अभ्यास के कारण। जो व्यक्ति अब कुर्सी का प्रयोग कर रहा है, मान लीजिए वो उसे दस साल इस्तेमाल करता है, वो जमीन पर नहीं बैठ सकता। तो पदार्थ हम पर बैठने लगता है और हम उसके गुलाम हो जाते हैं। जब हमारा ध्यान पदार्थ और भौतिकता के प्रति आसक्त होता है, और हम खुद को भौतिकवाद के दायरे में पेश करने लगते हैं। जो भी पदार्थ हम पर हावी हो रहा है, उसे स्वीकार करने लगते हैं।

उदाहरण के लिए एक व्यक्ति फुटबॉल का दीवाना है। किसी चीज को पसंद करना ठीक है, लेकिन हम यह नहीं जानते कि खुद को कैसे सीमांकित किया जाए। हम उस के अंदर इस हद तक प्रक्षेपित करते चले जाते हैं, की कोई नियंत्रण नहीं होता, हम उसके गुलाम हो जाते हैं, इतना कि हम खुद को, उस फ़ुटबॉल के साथ हमारी अपनी उपलब्धि से पहचानने लगते हैं। हम उस हद तक चले जाते है, जहां हम अपना सारा संतुलन खो देते हैं।

लेकिन मनोवैज्ञानिक शक्तियाँ वास्तव में सैक्स की आदतों से उत्पन्न होती हैं। एक बार जब आप सैक्स और उसकी विकृतियों में लिप्त होने लगते हैं और अन्य सब चीजों में, आप आलस्य में चले जाते हैं, अपने अवचेतन छेत्र में, सामूहिक अवचेतन में और सामूहिक अवचेतन में सभी प्रकार के गंदे लोग होते हैं, धूर्त, साज़िश करने वाले, भयभीत, स्वयं को पीड़ा दे कर सुख पाने वाले लोग आप कह सकते हैं। उस प्रकार के लोग वहां हैं। उन्हें विचरण करने के लिए खुला छोड़ दिया गया है इसलिए वे वहां हैं! वे आपको पकड़ लेते हैं। फिर वे आपको सैक्स की और सभी प्रकार की चीजों की विकृतियों में ले जाते हैं। आप कहते रहते हैं, ' इस में क्या गलत है? क्या गलत है?'

अवचेतन क्षेत्र में रहने के लिए आप मदिरा और मादक द्रव्य लेते हैं। ये अकर्मण्यता उत्पन्न करते हैं। आप ये कह कर समझाते हैं कि, 'जो बहुत फुर्तीले होते हैं, वे आक्रामक होते हैं। इसलिए हम ऐसे जीवन को अपना रहे हैं जिस से हम आलस्य में जा रहे हैं।' परंतु जब आप उस में बहुत अधिक जाते हैं, ये भयावह लोग भी आप को पकड़ लेते हैं। आप उनमें शामिल हो जाते हैं और वे आपके माध्यम से हर तरह के हथकंडे आजमाते हैं। वे बहुत प्रभावी हो जाते हैं!

अब ये गुरु, आप को मंत्र या उस प्रकार की चीजें देते हैं। यह उन जीवों के नाम होते हैं, जो अंधकार में विद्यमान हैं। आप उन मंत्रों का जाप करते हैं, और आप उसमें चले जाते हैं।

बहुत सारे तरीके हैं। ये सारे प्रेतविद्या विषारद और (ई एस पी) अतिंद्रिय संवेदन और हर तरह की यह चीजें इस संसार में हो रही हैं। जिस तरीके से आप उनका आकलन कर सकते हैं, कि वे एकमेव की बात नहीं करते, वे आत्मा की बात नहीं करते जो आप में विद्यमान है। वे प्रेम का नाम लेते हैं, पर वो जो भी करते हैं प्रेम विरुद्ध होता है। वे आप के भाई के मरने की बात करते हैं, पिता मर रहे हैं, मां मर रही हैं। 'क्या आप उनसे बात कर सकते हैं? अगर आप चाहें तो आप उनसे वार्तालाप कर सकते हैं।' वे सभी आप को अवचेतन में ले जाने का प्रयास कर रहे हैं, उस भयानक वातावरण में, और आप ये नहीं जानते। आप बस उसे स्वीकार कर लेते हैं। इन सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों को विचरण करने के लिए खुला छोड़ दिया जाता है।

दूसरा पक्ष और भी ज्यादा खतरनाक है, दाएं तरफ हमारे अस्तित्व में (सुप्राकॉन्शस) अग्रचेतन क्षेत्र में। एक पक्ष में आप अपनी भावनाएं रखते हैं उन्हें प्रक्षेपित करते हैं। जब आप अपनी भावनाएं प्रक्षेपित करते हैं, तो आप किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। जैसे मैंने लोगों को देखा है कि वह चीख रहे हैं, रो रहे हैं, विलाप कर रहे हैं और भयानक बहुत भयानक भयावह कविताएं पढ़ रहे हैं ऐसा लोगों की जैसा लॉर्ड बायरन। वे आप को अवचेतन में फेंक देते हैं जहां आप दुखी होने में खुशी महसूस करते हैं। आप एक दुखी व्यक्ति के रूप में खुश हैं। दूसरे खुश हो आप ऐसा भी नहीं चाहते या और आप ऐसे ही चलना चाहते हैं उस नाटकीय रूमानी तरीके से बढ़ते रहना चाहते हैं, जिस से की आप सोचते हैं कि आप बहुत ही दुखी व्यक्ति हैं और सारी दुनिया आप को यंत्रणा दे रही है, और आप स्वयं बहुत अच्छे इंसान हैं। इस प्रक्रिया में आप खुद को नष्ट कर देते हैं, आप अपने अस्तित्व को नष्ट कर देते हैं और आत्मा को पूरी तरह अपने अवचेतन के विचारों से आच्छादित कर देते हैं। आप अपने दुखों का आनंद लेते हैं, क्या आप कल्पना कर सकते हैं? अगर आनंद आपके सामने खड़ा हो आप कहेंगे, 'मुझे नहीं लगता मैं खुश हो सकता हूं।' जिस के बारे में आप जानकार नहीं हैं, और आप उसका आनंद लेना आरंभ कर देते हैं।

आप दूसरा पक्ष है जहां आप अपनी तर्कसंगतता का उपयोग करते हैं, जो आपके दिमाग से आता है। एक तरफ आप हृदय, बाहरी हृदय से लेकर अपने भावनाओं का इस्तेमाल करते हैं मैं कहूंगी और दूसरी तरफ आप अपने दिमाग का अपनी तर्कसंगतता का प्रयोग करते हैं। आप समस्याओं को तर्कसंगतता के माध्यम से सुलझाना आरंभ कर देते हैं, परंतु उस पर कोई नियंत्रण नहीं है। आप एक माँ को भी तर्कसंगतता के आधार पर उचित बता सकते हैं, आप युद्ध को भी तर्कसंगत मान सकते हैं, आप हर चीज, हर आक्रामकता को जो आप करते हैं, को तर्कसंगत मान सकते हैं।

अगर आप रूसियों से पूछें तो वो कहेंगे की उनका अफगानिस्तान पर आक्रमण करना तर्कसंगत है। यदि आप अमरिकियों से पूछें, तो वे कहेंगे कि तर्कसंगत है की वे सभी विकासशील देशों पर हमला कर रहे हैं। सब को लगता हैं की वे पूर्णत: सही है। स्पेन निवासियों का अर्जेंटीना, पेरू और इन सभी जगहों की सभी सभ्यताओं को नष्ट करना, या अंग्रेजों का सोचना की अगर वे किसी को पसंद नहीं करते तो ये उनका अधिकार है कि वे कहें, 'यह हमें पसंद नहीं!' उन्हे ये कहने का हक वे जो कुछ भी पसंद करते हैं, जिस के साथ भी करना चाहें दुर्व्यवहार करने का। वह ऐसा कर सकते हैं क्योंकि यह उन्हें पसंद नहीं है। या ऐसे ही अन्य लोग।

तो विकासशील देशों में अवचेतन ज्यादा कार्यरत होता है अधिक मात्रा में, और विकसित देशों में अग्रचेतन कार्यरत होता है। दोनों एक से ही हैं। दोनों ही एक ही अंधकार में हैं। कुछ भी भिन्न नहीं, सिर्फ शायद रंग अलग हैं। हम कह सकते हैं कि एक कोयले का काला धुआं है और दूसरा (बेंजोइन) लोबान/गुग्गल का पीला धुआं, दोनों में समान रूप से दम घुटता है।

दूसरा पक्ष, दायां पक्ष ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि यह कोई संकेत नहीं देता है। यह अहंकार है। आप सोचते हैं कि यह तर्क संगत है। आप तर्कसंगतता के द्वारा प्रश्नों को सुलझाने लगते हैं। आप अंतत: कहां पहुंचते हैं? विवाद, छोटी छोटी बातों पर ऊंची आवाज में झगड़ना, मारपीट, हत्या, हिंसा में!

कोई भी संस्था जो इन दोनों चीजों पर आधारित है, उनका इरादा जो भी हो अच्छा या बुरा, उनका अंत ऐसा ही होता है। एक तरफ वे साज़िश, धूर्तता और आलस्य में जाते हैं और दुसरी तरफ हिंसा में। या फिर मुख्य गुण में बदलाव आ सकता है, कुछ सुस्त इंसान अत्यधिक हिंसक हो सकते हैं, परंतु क्योंकि वह इतने सुस्त होते हैं उनको प्रतिक्रिया करने में समय लगता है। आलसी लोगों को अधिक हिंसक बनाना सरल नहीं है, क्योंकि उनके अंदर इतनी संकल्पशक्ति बची नहीं होती।

तो दूसरी ओर अग्रचेतन इतनी खतरनाक स्थिति में रखा है। अब बहुत से गुरु इस को नियंत्रित करते हैं। बेशक मानसिक पक्ष भी कई गुरुओं द्वारा प्नियंत्रित किया जाता है, जो कहते हैं की सैक्स के द्वारा आप परमात्मा को प्राप्त कर

सकते हैं। मैं किसी भी तरह से सैक्स की निंदा नहीं कर रही हूँ। मैं कह रही हूं की सैक्स में संयम और सैक्स में पवित्रता होनी चाहिए।

दूसरी तरफ में तार्किकता को अस्वीकार नहीं कर रही, परंतु तार्किकता माने सुबुद्धि। परंतु अगर सुबुद्धी नहीं है, तो तार्किकता बहुत खतरनाक हो सकती है। परंतु खतरा आप से स्वयं से नही आता, अपितु बाहर से ज्यादा आता है। जब उस प्रक्षेपों में भीतर प्रवेश करते हैं, आप अपनी सीमाओं के द्वारा नियंत्रित होते हैं।

आप यहां बायां ओर दायां पक्ष देख सकते हैं, अहंकार और प्रतिअहंकार। यह एक गुब्बारे जैसा है, और गुब्बारा इस प्रकार हरकत करता है, आप को इस प्रकार अपने साथ रखता है, और दूसरा गुब्बारा इस प्रकार हरकत करता है, और दोनो गुब्बारे आप को दोनों तरफ खींच रहे हैं।

वे आप को मंत्र देते हैं। ये मंत्र और कुछ नहीं बल्कि आप की तार्किकता, आप के मन के (प्रोजेक्शन) प्रक्षेप हैं। एक सरल शब्द में हम उसे काला जादू कहते हैं। और एक को आप पीला जादू कह सकते हैं और दूसरे को काला जादू, जिस प्रकार आप को अच्छा लगे। यह सब एक ही चीज हैं। और इन प्रक्षेपों से, लोग मार सकते हैं। यहां बैठे बैठे, लोग हत्या कर सकते हैं। वो जो चाहें कर सकते हैं यहां बैठे बैठे, और इसे वो शक्ति कहते हैं।

अब लोग अग्रचेतन क्षेत्र को अच्छादित करते हैं, जब उन्हे शक्ति अच्छी लगती है, जब उन्हे शक्ति चाहिए। अब मान लीजिए अगर उन पर राजनीतिक शक्ति है, लेकिन अब वे षड्यंत्र करना चाहते हैं, और जिसे आप जासूसी लोग कहते हैं। मेरा मतलब है की लोग ये गंदी चीजें करते हैं। कल्पना कीजिए! यह राजनीति है जिसे जासूसी माना जाता है और वह सब! ये सभी गंदी चीजें उन लोगों द्वारा की जाती हैं जो शक्ति, अधिक शक्ति, और अधिक शक्ति, और अधिक शक्तियां चाहते हैं। और ये शक्ति भी अंततः संपूर्ण का नाश कर रही है।

एक व्यक्ति को नष्ट कर देता है, दूसरा संपूर्ण को नष्ट कर देता है। उदाहरण के लिए हिटलर कुछ नहीं, बस इन्हीं सब से आसक्त था। और उसने ये शक्तियां अपने प्रक्षेपों के द्वारा प्राप्त की। उसने लोगों को मंत्रमुग्ध करना शुरू कर दिया और उन्हें गलत विचार दिए, उसने एक युद्ध खड़ा किया और पूरी दुनिया हिल गई। ये किसी के साथ भी हो सकता है। परंतु अब लोग उसका नाम भी नहीं लेना चाहते। वे यह सोचकर कांपते हैं कि वह क्या शैतान था। परंतु वो एक शैतान बन गया।

ये शक्तियां हमारे चारों ओर हैं। तो जो चीज़ों को

वश में करना चाहते हैं, अब जो उड़ना चाहते हैं या जो अलौकिक शक्तियाँ प्राप्त करना चाहते हैं, वे उन्हें बुलाते हैं, जैसे आप आते हुए ट्रक को रोक सकते हैं। ट्रक पकड़ने की क्या जरूरत है? आप अपने ऊपर से एक हाथी गुजरने दे सकते हैं। मेरी समझ में नहीं आता की आप के शरीर के ऊपर से हाथी गुजारने की क्या आवश्यकता है! इस देश में कितने हाथी हैं? और आप ऐसी दुर्घटना का सामना कहां करेंगे?

ऐसे लोग जब अति करते हैं, तो दूसरों को मारने के लिए तथाकथित शक्तियाँ विकसित कर लेते हैं। वे दुर्घटनाएं निर्मित करेंगे। वे दुर्घटनाएं निर्मित करते हैं, वे लोगों की हत्याएं करते हैं, वे हर प्रकार की चीजें करते हैं। ये सब भारतीय लोगों को पता है। जिन्होंने इस बारे में थोड़ा पढ़ा है, वे जानते हैं की ये सब चीजें विद्यमान हैं। आप लोग अभी भी सीधे सादे हैं। आप नहीं जानते। भारतीय आधुनिक, पाश्चात्य रंग में रंगे भारतीय भी नहीं जानते। वे सोचते हैं वह सब शेक्सपियर है। वे अपने ज्ञान के बारे में कुछ नहीं पढ़ते। तो यह हाल है।

तो अब इसके लिए (एंटीडोट) विषहर औषधि क्या है? इसके लिए विषहर औषधि यह दिव्य प्रेम है। प्रेम इन सारे शैतानों पर विजय प्राप्त कर सकता है। अगर कोई व्यक्ति जिसके अंदर उसका दिव्य प्रेम है, अगर उसके अंदर से बहने लगे तो यह सारी चीजें गायब हो जाएंगी। यही एक रास्ता है जिससे आप विश्व को बचा सकते हैं, दिव्य प्रेम! सिर्फ प्रेम के द्वारा ही आप इन भयानक ताकतों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं जो मुक्त घूम रहे हैं, और आपका अपने में विश्वास स्थापित हो जाएगा।

ईश्वर का प्रेम सब ओर व्याप्त है। समस्या यह है कि मनुष्य इस बारे में जागरूक नहीं है। यह सब से गतिमान शक्ति है, और यही एक मात्र शक्ति है जो विद्यमान है। अंधकार तभी तक विद्यमान है, जब तक रोशनी नहीं है। वरना उसका कोई अस्तित्व नहीं है। ये एक मिथक है। इसी प्रकार जब ईश्वरीय प्रेम की रोशनी आप में बहने लगती है, जब आप उस ईश्वरीय प्रेम से स्वयं को पहचानने लगते हैं, तो यह सारी नकारात्मक ताकत विलीन हो जाती हैं।

यह मंत्र, तथाकथित मंत्र जो उन्होंने आपको सिखाएं, जो उन भयानक जीवों को आमंत्रित करने के लिए बुलाए जाते हैं, लुप्त हो जाते हैं अदृश्य हो जाते हैं और वास्तव में जिन देवताओं को जागृत होना होता है, वे जाग्रत हो जाते हैं। अग्नि जो किसी जगह को पूरी तरह ध्वस्त कर सकती है एक दीए की अग्नि बन जाती है, जब आप यह समझ जाते हैं, कि आग कहां लगानी है।

ईश्वरीय प्रेम की रोशनी हर एक उस व्यक्ति तक आनी चाहिए जो सत्य का साधक है। हम यही खोज रहे हैं। यह ईश्वरीय प्रेम आपसे बहना चाहिए, जिससे कि आप सारे विश्व को बचाएंगे।

यह बहुत खतरनाक और अनिश्चित स्थिति है। जो वास्तव में आत्म साक्षात्कार प्राप्त लोग हैं, और जो असल में सच्चे लोग हैं वह हिमालय या दुनिया में कहीं एक प्रकार की गुफाओं में स्वयं को छिपाए हुए हैं। वे आप का सामना नहीं करना चाहते क्योंकि वह सोचते हैं कि आप लोग अधिक अंधकारमय हैं आपके प्रक्षेप दो सींगों की तरह हैं, और जैसे ही आप उन्हें देखेंगे आप एक बैल की तरह उन पर आक्रमण कर देंगे।

आपको अत्यधिक धैर्य और बहुताय समझदारी और पर्वत जैसा साहस चाहिए इन सब बातों का सामना करने के लिए। परमात्मा ने आपके अंदर सारा इंतजाम करा हुआ है। आप स्वयं ही देख सकते हैं, जो यहां दिखाया गया है।

मुझे विश्वास है छाया ने आपको इस बारे में बताया होगा, कि हमारे अंदर एक शक्ति है जो हमें आत्म साक्षात्कार प्रदान कर सकती है, जिसके द्वारा हम ईश्वरीय प्रेम के स्रोत को प्राप्त कर सकते हैं, और आप उस ईश्वरीय प्रेम की नदी बन जाते हैं, जिससे आप पूर्णत: स्वच्छ हो जाते हैं, और अन्य लोग जो आपके सम्मुख आते हैं, वह भी स्वच्छ हो जाते हैं।

हर बार मुझे कुंडलिनी और इन बातों के बारे में दोहराना पड़ता है, पर मुझे पूरा विश्वास है कि आप पुस्तक में पढ़कर स्वयं देख सकते हैं कि यह सब चीजें क्या है। तो आज आपातकाल यह है, कि हम को यह समझना होगा कि इस ईश्वरीय प्रेम को मनुष्यों की चेतना में लाना होगा उनके समझ में, जिससे कि वे इसे संचालित कर सकें, और हमेशा के लिए इसे जीत लें, विजय प्राप्त कर लें संपूर्ण अस्तित्व के इस खौफनाक शत्रु पर!

ईश्वर आपको आशीर्वादित करें। धन्यवाद।

डगलस?

मैं हमेशा कहा करती थी कि, 'ये कैसे कार्यान्वित होगा?' क्योंकि ये बहुत धीमी गति से चल रहा था। इस देश में विशेषकर बहुत कम लोगों को आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ। वह ऊपर नीचे होते रहते हैं, और उनको स्थापित करना कठिन है। यह एक सत्य है। पर हम धीरे-धीरे, स्थिरता और दृढ़ता से स्थापित कर रहे हैं। सब लोग काफी परेशान थे कि, 'मां! आप इतने बड़े स्तर पर यह काम कैसे कर पाएंगी?' या 'क्या विदेशी लोग आपके कार्यक्रम का हिस्सा नहीं रहे?' और मैंने उनसे हमेशा कहा, 'एक दिन ये जगमगाएगा!' मुझे लगता है कि मैंने पहली चिंगारी अब देखी है।

मुझे आपको बताते हुए बहुत खुशी हो रही है, कि एक साहब जो ऑस्ट्रेलिया से आए, दो लोग भारत आए, उन्होंने अपना आत्म साक्षात्कार प्राप्त किया और वह वापस ऑस्ट्रेलिया चले गए। उन्होंने लोगों को आत्म साक्षात्कार दिया। और आज मुझे एक अमेरिका के सज्जन से पत्र मिला जो ऑस्ट्रेलिया गए थे, जिनकी अपनी बहुत बड़ी एक संस्था है, जिन्हे आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ उन्होंने लिखा है। उन्होंने बहुत सुंदर पत्र लिखा है। काश कोई आप लोगों के लिए पढ़कर सुना सकता जिससे कि आप जान जायेंगे, कि किस प्रकार चिंगारी भड़क उठी है।

क्या आप मुझे मेरा पर्स भी पकड़ा सकते हैं? जैन कैसी है? क्या आपके पास इसके बारे में कोई रिपोर्ट है? मेरा पर्स!

सहज योगिनी: (अस्पष्ट)

श्री माताजी: ठीक है! बढ़िया! किंतु अब तुम वहां जा रही हो, तो मैं तुम्हें एक बात के बारे में सचेत कर देना चाहती हूं। अन्य नकारात्मक ताकतों के बारे में बात मत करना। ठीक है? जैसे भगवान बुद्धि के अनुयायियों का जाप करना और ये सारे जाप वगेरह। बहुत पवित्रता बनाए रखें! धन्यवाद!

(कोई श्री माताजी को उनका पर्स पकडाता है)

श्री माताजी: मैं इसे जरा गौर से देखूंगी। वो कितना प्यारा है! देखिए वह कितनी मेहनत कर रहा है! सिर्फ दो लोगों ने ऑस्ट्रेलिया में कितना बड़ा कार्य कर दिया है। आप कहते थे की ऑस्ट्रेलिया वासी सिर्फ अपराधी हैं जो यहां से गए थे। मुझे लगता है, कि अब बाजी पलट गई है। (हंसते हुए ) वे लोग अब बहुत ही सौंदर्यपूर्ण लोग साबित हो रहे हैं। कोई है जो बहुत स्पष्ट पढ़ सकता है? कौन?

क्या आप इसे ऊपर रख सकते हैं?

सहज योगी: (पत्र पढ़ना आरंभ करते हैं)

'' प्रिय, अतिप्रिय माताजी!

आप को पत्र लिखने में देरी के लिए क्षमा करिए, क्योंकि मैं प्रेम और समझदारी के संदेश के साथ ऑस्ट्रेलिया गया हुआ था, ध्रुवीयता के काम, जिन शिन और जीवंत शक्ति के साथ।

सिडनी में मेरी मुलाकात वॉरेन रीव्स से हुई। यह मुलाकात योजनाबद्ध नहीं थी, और इसका सहज स्वभाव मेरी आत्मा को आनंद से भर देता है। उसके घर में प्रवेश करते हुए, मुझे उस शक्ति की उपस्थिति का अनुभव हुआ जो आप के माध्यम से आती है। इस प्रेम का अनुभव करना बहुत शक्तिशाली था। अब जब मैं यह पत्र टाइप कर रहा हूं, मुझे आपकी और उन सारे लोगों की उपस्थिति का आभास हो रहा है, जिन्होंने मेरे आत्मसाक्षात्कार में भाग लिया। दशा परिवर्तन में बहुत पीड़ा है लेकिन मैं इस चुनौती को स्वीकार करता हूं। आत्म साक्षात्कार के अनुभव के उपरांत जो भी अनुभव हुए हैं बहुत गहन हैं।

जो मैं बांटता हूं उसमें प्रेम मुख्य घटक है, और मैं आत्म साक्षात्कार पाने के बाद इसे और अधिक पूरी तरह से प्रसारित करने में सक्षम हो गया है। मैं ज्यादा बेहतर समझ रहा हूं, और इस आत्म साक्षात्कार को साझा कर रहा हूं उनके साथ जो इस ओर आकर्षित हैं। ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में बहुत सारे सकारात्मक अनुभव सामने आए हैं। मेरी चेतना पुनर्जन्मी प्रतीत होती है। धन्यवाद!

मैं उस संस्था के बारे में जो मैने स्थापित की है, जानकारी सलग्न कर रहा हूं। उसका नाम 'इंटरनेशनल हॉलिस्टिक सेंटर' है और मेरी योजना उसे सही व्यक्ति के हाथ सौंपने की है, जो इस उत्तरदायित्व को निभाने के लिए आएगा।

मैं ये आप को इसलिए बता रहा हूं, आप के अमरीका आगमन पर आप को इस संस्था से सहायता मिलने की संभावना के कारण। जब आप अमरीका आने के लिए तैयार हों, संस्था को लिखिए। मैं नए डायरेक्टर को साझा करूंगा, की आप उन्हे संदेश भेज सकती हैं और वो आप के लिए सहायक हो सकते हैं।

कृपया आप ये जान लीजिए, कि मैं कुछ भी करूंगा जो करने के लिए में समर्थ हूं अमरीका की इस यात्रा को साझा करने योग्य बनाने के लिए।

वारेन ने उल्लेख किया है, कि उनका संगठन एक महत्वपूर्ण कड़ी हो सकता है आपके अमेरिका आने की श्रृंखला में। मेरी योजनानुसार मुझे कुछ समय के लिए होनुलुलु जाना होगा और फिर ऑस्ट्रेलिया जाना होगा, प्रेम ऊर्जा के आलोक में कई लोगों के साथ काम करने के लिए।

यदि संभव हो तो क्या मुझे आपसे शीघ्र ही उत्तर प्राप्त हो सकता हूँ, और क्या आपका आशिर्वदित कार्य उस शक्ति के साथ जारी रहेगा जो मैंने वॉरेन की उपस्थिति में अनुभव की थी।

मुझे हमेशा आपका प्रेम और कृपा प्राप्त हो।

धन्यवाद।''

श्री माताजी: कृपया इन सज्जन का नाम पढ़िए और उनका फोटो दिखाइए।

सहज योगी: स्टेन टेल्सन, इंटरनेशनल होलिस्टिक सेंटर, एरीजोना

श्री माताजी: देखिए कितना शक्तिशाली व्यक्ति अब हमारे पास है!

उसके बारे में बहुत सी बातें छपी थीं। उसने समाचार पत्रों में अपने बारे में छपे लेखों को काटकर भेजा है, पर यह उसका फोटो है आत्म साक्षात्कार पाने के पश्चात। आप यह साफ-साफ देख सकते हैं। इस प्रकार अब यह सब चमक उठेगा। देखते हैं!

कोई सवाल? सवाल पूछिए!

मैं आपकी मां हूं। मुझसे डरने की कोई भी आवश्यकता नहीं है। मैं आप को डराना नहीं चाहती थी, पर यही सच्चाई है। यह सत्य है जो हमें समझना होगा। ये सभी भयानक मंत्र और ये सभी जादुई चीजें और अन्य सभी बकवास चल रहे हैं! पश्चिमी देशों में यह ज्यादा है क्योंकि ऐसे संत यहां पैदा हुए हैं। उनके बहकावे में न आएं! सावधान रहें!

किसी का कोई सवाल है?

साधक: नहीं, यह सिर्फ मेरी अपच थी।

श्री माताजी: क्षमा करें! आपने क्या कहा?

सहज योगी: यह उसका पेट में गड़गड़ाहट है!

श्री माताजी: ऐसा है? पेट में गुड़गुड़ हो रही है?

ठीक है आप अपना बायां हाथ पेट पर रखिए। कुंडलिनी यहां तक आ गई है और वह आपका उपचार करने का प्रयास कर रही है। दायां! दायां हाथ मेरी तरफ इस तरह!

और क्या? आप देखिए हम स्वयं पर कहर बरपा रहे हैं, है ना? और कभी हम अपना लीवर भी खराब कर लेते हैं, और कभी अपना अग्न्याशय।

अगर आप एक मेहनती व्यक्ति हैं और एक योजनाकार हैं, आपका अग्नाशय खराब हो सकता है। तो कुंडलिनी, वो वहां पहुंचती है और उसको ठीक करने के लिए शक्ति प्रदान करती है।

आपके हाथों में ठंडी हवा आई? क्या आपके हाथों में ठंडी हवा आई? हाथों में ठंडी हवा, क्या आपको आ रही है? नहीं?

अपने दोनों पैरों को जमीन पर इस तरह से एकदम सीधा रखें। हां पूरी तरह! थोड़ा सा इस तरह आगे बढ़ जाइए! हां सीधा रखिए! पैरों को सीधा रखें!

पर इस तरह बैठें की पैरों पर थोड़ा दवाब रहे। खींचिए, उन्हे अपनी तरफ खींचिए! हां अब देखिए! इस तरह! दोनो हाथ इस तरह रखिए।

Caxton Hall, London (England)

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