Rationalism, Emotionalism And Wisdom

Rationalism, Emotionalism And Wisdom 1978-06-12

Location
Talk duration
32'
Category
Public Program
Spoken Language
English

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12 जून 1978

Public Program

Caxton Hall, London (England)

Talk Language: English

"तर्कबुद्धि, भावनात्मकता और विवेक"

कैक्सटन हॉल, लंदन, 12 जून 1978।

... तो तर्कसंगतता क्या कर सकती है? हमारे अंदर तर्कसंगतता होने के कुछ कारण होने चाहिए [और] भगवान ने हमें तर्कसंगतता क्यों दी है। वह अपने हीरे को इस तरह बर्बाद नहीं करता है!

तर्कसंगतता हमें यह समझने की समझ देती है कि हम तर्कसंगतता के माध्यम से वहां नहीं पहुंच सकते।

क्योंकि जहाँ तक और जब तक यह घटना आपके साथ घटित नहीं होती, तब तक आप उस पर विश्वास नहीं करेंगे। आप इस पर विश्वास नहीं करने जा रहे हैं कि, यह तर्कसंगतता, जिस पर हम निर्भर हैं, जो हमारा सहारा है, जो ; हम हर समय सोचते हैं कि तर्कसंगतता के साथ ही हमारी पहचान पूर्ण होती है। और हम बहुत तर्कसंगत हैं और हमें अपनी तर्कसंगतता पर भी गर्व है।

तो, आप तर्कसंगतता के माध्यम से एक बिंदु पर पहुंचते हैं, जहां आप को समझ आता है कि, यह घोड़ा अब आगे किसी भी उपयोग का नहीं होगा। यह तर्कसंगतता का उपयोग है! एक तरह से यह आपको उस समापन बिंदु पर ले जाता है जहाँ आपको लगता है कि इसे छोड़ दिया जाना चाहिए या इस पर निर्भर नहीं किया जा सकता है। दूसरी तरफ तर्कसंगतता आपको एक दृष्टिकोण देती है जिसका आप को अनुभव प्राप्त होने के बाद में संबंध समझ आ सकता है। आप समझने लगते हैं कि तर्कसंगतता आपको क्यों निराश कर रही थी। तो यह एक नकारात्मक तरीके से एक शिक्षक है। यह एक नकारात्मक तरीके से एक शिक्षक है। लेकिन यह आवश्यक है क्योंकि मनुष्य को स्वतंत्रता दी गई और उसने अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करना शुरू कर दिया, उसने अपनी तर्कसंगतता का उपयोग करना शुरू कर दिया।

जब वह उस अवस्था पर पहुँचता है तब वह अपने विवेक पर निर्भर होना शुरू करता है। और विवेक उसकी भावुकता और तर्कसंगतता के बीच का संतुलन है, उसके मध्य में, उसके दिल और दिमाग के बीच। यह वहीँ कहीं बीच में या कहें आलंब का मध्य है। इसलिए यदि आप भावुकता में बहुत अधिक हैं, या तर्कसंगतता पर बहुत अधिक हैं, तो आपको मध्य की तरफ आगे बढ़ कर और इसे एक बिंदु पर संतुलित करना होगा, तभी केवल आप विवेक में हैं, और इसी तरह आप अपने ही अंदर विकसित होते हैं |कोई भी चरम व्यवहार, बाईं या दाईं ओर, या निर्भरता, आपकी मदद करने वाली नहीं है।

इसे आप भावुकता के माध्यम से भी समझ सकते हैं। एक व्यक्ति जो बहुत भावुक है: वह एक प्रकार से किसी को 'प्यार' करता है, देखिये,प्यार करता है; और वह उस प्रेम के पीछे ईमानदारी से आगे बढ़ता है, और वह दीवानगी में पड़ जाता है। जब बाद में उसे एहसास होता है, “ओह! यह आनंद नहीं है। मैं कैसे असफल हो सकता हूँ? तो वह कहता है, "मेरा दिल टूट गया है।" यह बेहतर है कि उसको इस बात का एहसास होता है। इसलिए वह अपने दिमाग की ओर मुड़ जाता है। लेकिन वह अपने दिमाग , अपने मस्तिष्क की तरफ इतनी अति तक झुक जाता है कि वह अपने टूटे हुए दिल को पूरी तरह से छोड़ देता है। जबकि यह मध्य में है, आपके हृदय और आपके मस्तिष्क के मध्य में, यह आलंब (आधार)बिंदु है।

तर्कसंगतता और भावनात्मकता दो अति हैं, लेकिन इसके मध्य में। अतः विवेक एक अमूर्त शब्द है। विवेक क्या है? आप किसी से पूछते हैं, "क्या यह विवेकपूर्ण है?" “यह विवेक है? वह विवेक है? ” फिर आप विवेक को कैसे समझते हैं? अमान्य कर के, यह कहकर कि, "नहीं, यह विवेक नहीं है," "यह विवेक नहीं है," "यह विवेक पूर्ण नहीं हो सकता।" यहां, जब आप यह तय करना शुरू करते हैं कि यह सच है तब, आप अपनी भावुकता और तर्कसंगतता दोनों का उपयोग करते हैं।

इसलिए मैंने कहा कि इस अर्थ में ये नकारात्मक शिक्षक हैं कि, वे आपको सकारात्मकता की ओर ले जाते हैं। इस अर्थ में कि वे आपको वास्तविकता की ओर ले जाते हैं। वे आपको सिखाते हैं कि यह सही बात नहीं है। अपने किसी भी ’राजनीतिक उद्यम’ को लें, जैसा कि मैं उन्हें कहूंगी,जिन्हें आप ’राजनीतिक संस्थान ’कहते हैं : साम्यवाद को लें, पूंजीवाद को लें, इन सभी प्रकार के ' वाद 'को लें, जो आपके पास हैं। सभी प्रयोग, आपके सभी राजनीतिक प्रयोग, जो आपने अपने तर्कसंगत दृष्टिकोण के माध्यम से पाए हैं - वे आपको समाधान नहीं दे सकते।

लोकतंत्र विफल होता है, साम्यवाद भी विफल होता है। कोई अन्य राज शाही विफल। उसी तरह शैतानी तंत्र भी विफल होता है। सब फेल! तब आपको एहसास होता है कि, "क्या इन बातों से गुजरने में कोई सच्चाई है?" "क्या इस तरह से हम कहीं पहुँचने वाले हैं?" तब आप यह समझने लगते हैं कि, “नहीं, नहीं। हम सभी ने कहीं न कहीं कुछ गलतियाँ की हैं। ” लेकिन प्रतियोगिता में शामिल दौड़ रहे लोगों के लिए यह समझ पाना संभव नहीं है। [उन लोगों के लिए] जो प्रतियोगिता में शामिल हैं यह संभव नहीं है। उदाहरण के लिए, मैं नौकरशाहों से बात नहीं कर सकती - असंभव - क्योंकि वे बैग थामे हुए जा रहे हैं। इसलिए, कुछ लोकतांत्रिक हैं, कुछ कम्युनिस्ट हैं, मुझे नहीं पता कि उनके पास किस तरह की सनक है।

इसलिए ये बड़े आदमी हमारी बात सुनने वाले नहीं हैं। नहीं वे नहीं कर सकते! क्योंकि उनके लिए वह जो है, पहचाना है। उनके लिए, जैसा की वे कहते हैं, वह एक 'संपूर्ण' राजनीतिक संस्थान है, पूरा जीवन है, और सभी को इसमें आना चाहिए! इसीलिए, जब ये अलग-अलग विचारधाराएँ और अलग-अलग ' वाद ' फलने- फूलने लगते हैं, तो आप पाते हैं कि वे अभी तक किसी भी नतीजे तक नहीं पहुंचे हैं और वे बस सिकुड़ कर अपना अस्तित्व खो देते हैं, क्योंकि तर्कसंगतता आपको सम्पूर्ण दृश्य से परिचय नहीं कराती है। यह आपको पूरी तरह नहीं समझा पाता है कि मनुष्य तर्कसंगतता के साथ कितनी प्रगति कर सकता है और परिणाम प्राप्त करने के लिए कहाँ तक जाना होगा। इसका परिणाम क्या है? हम क्या उम्मीद करते हैं? आनंद पाना। लेकिन किसी भी लोकतंत्र या किसी भी कम्युनिस्ट देश या किसी भी निरंकुश देश, आप कहीं भी जाएं, आप पाएंगे कि लोगों को कोई आनंद नहीं है; यहाँ तक की वे मुस्कुराना भी भूल गए ! आपने उन्हें हँसाने के लिए एक इंजेक्शन दिया है!

तो, यह तर्कसंगतता हमें एक समझ देती है कि हमारे सभी प्रयास या हमारे सभी उद्यम जो तर्कसंगतता के माध्यम से सामने लाए गए हैं, वे संतोषप्रद नहीं हैं। वे हमें कुछ दिखाते हैं लेकिन खत्म हो जाते हैं, दूर छिटक जाते हैं।

वैसा ही हमारी भावुकता के साथ जैसी श्रद्धा, हमारी ईश्वर में है | आपको ईश्वर पर भरोसा है, इसलिए कोई भी व्यक्ति कहता है, "मैं ईश्वर हूं" लोग ऐसे व्यक्ति के पीछे भागते हैं। ऐसे कई लोग हैं जो इस तरह से दीवाने हैं! एक अन्य दिन, मैं एक टीवी शो देख रही थी , जहाँ उन्होंने एक व्यक्ति को दिखाया, जिसने कहा, "मैं ईसा-मसीह हूँ" और वह हिटलर का अनुयायी था। और वह लोगों को मार रहा था और वह हर तरह का काम कर रहा था और उसके पास बड़ी संख्या में अनुयायी थे ! और जब वह अपने मुक़दमे का सामना कर रहा था तब लोग चीख रहे थे और उसके लिए रो रहे थे । कोई भी इन चीजों की व्याख्या नहीं कर सकता है कि ये चीजें कैसे होती हैं। भगवान कैसे इतना कमजोर हो सकता है ? और जो लोग परमेश्वर के बारे में बात कर रहे हैं वे कैसे इस तरह के हो सकते हैं? क्योंकि वे लोगों की भावनात्मकता पर खेलते हैं। वे लोग सोचते हैं, "ओह मैं बहुत अच्छा महसूस करता हूं"। "मैंने इनमें से कई लोगों को कहते देखा है," "ओह, मैं उनकी संगती में बहुत अच्छा महसूस करता हूं, उस गुरु ने मुझसे मुलाकात की," "ओह, मैं यहां बहुत प्रसन्न महसूस करता हूं!" उसने क्या किया? आप कैसे ठीक महसूस करते हैं? इसमें आपको क्या अच्छा लगता है ? यह वास्तविकता से एक अति सूक्ष्म प्रकार का दिशा परिवर्तन है। यह इतना सूक्ष्म

है की आप पहचान भी नहीं पाते। विशेष रूप से तर्कबुद्धि वाले लोग नहीं कर सकते हैं, वे सबसे पहले मुर्ख बनाए जाते हैं! तथाकथित अहंकारी लोगों को भावुकता के साथ पहले मुर्ख बनाया जाता है। उनके लिए जो कोई भी भावनाओं के साथ आता है - बहुत बड़ी भावनाओं के साथ खड़ा होता है और आंखों में आंसू और लाउड स्पीकर पर चिल्लाता है, जैसे कि वह बस दर्द के साथ मरने वाला है, या ऐसा कुछ (हंसते हुए) - उन्हें इतना आकर्षित करता है। चूँकि यह उनके तर्कसंगत दिमाग के लिए संतुलन है, इसलिए वे जाल में फंस जाते हैं।

तो इस तरह की भावुकता पागलपन की एक अन्य अति पर भी जा सकती है! जैसे आपने लोगों को भगवान से जुदाई के गीत गाते देखा होगा।जिस तरह से यह किया जाता है यह मुझे कभी-कभी बीमार कर देता है । यह तकलीफ देह है! मुझे नहीं पता कि लोग इसे कैसे पसंद करते हैं। एक अन्य दिन हमारे पास वह एक संगीतकार आया था, इसलिए मैंने कहा, "तुम मुझे एक गाना सुनाओ", उन्होंने कहा "किस प्रकार का गीत, माँ, आप सुनना चाहते हैं?" मैंने कहा, "हमारे लिए खुशी के कुछ गीत गाओ"। "खुशी का गीत?" वह खोज ना सका था! उसने कहा, "उन्होंने पिछले बीस वर्षों से इस देश में कहीं भी आनंद का कोई गीत नहीं बनाया है!" अंग्रेजी समाज या पश्चिमी लोगों में से किसी ने नहीं बनाया है। मैंने कहा, "खुशी का कोई गीत नहीं?" उसने कहीं से कुछ उठाया, और उसमे भी कही एक रोने -बिलखने का स्वर था। मैंने कहा, "अब कहीं भी पूर्ण आनंद नहीं है!"

जरा इस बारे में सोचें ! भावुकता इस हद तक पहुँच चुकी है कि आप पूरी तरह से आनंद के गीत खो चुके हैं। इसलिए, हम उस तरह की भावुकता पर निर्भर नहीं हो सकते हैं कि, - जब चर्च में, आप जाते हैं और कोई व्यक्ति मंच पर खड़ा होता है और कहता है, "ओह, मैं ऐसा ही हूं!" सभी कम्पित आवाजें और भावुकता के नाटक के साथ। और तुम कहते हो “ओह! क्या बात है! ओह मैं बहुत खुश था! ” अगर जीवन में ऐसी कोई बात स्वीकार की जाती है, तो मैं आपको बता सकती हूं, निश्चिंत रहिए, जब ऐसी कोई चीज आप को आकर्षित करती है, तो आपको पता होना चाहिए कि आप वास्तविकता का सामना नहीं कर रहे हैं। आप वास्तविकता का सामना करने के लिए तैयार नहीं हैं। आप इसका सामना नहीं करना चाहते हैं! आप इसके बारे में कोई बहाना दे सकते हैं। आप खुद की पहचान इस प्रकार की बना सकते हैं कि, "ओह, मैं बहुत अधिक तर्कबुद्धि संगत व्यक्ति हूं। मैं बहुत अधिक तर्कसंगत हूं, मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता। यह मेरे बस के बाहर है, बस मैं अभी ऐसा नहीं कर सकता! " या आप यह भी कह सकते हैं, "मैं अंग्रेज हूँ, थोड़ी अधिक ही अंग्रेज, इसलिए मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता!" या कोई यह कह सकता है कि, "मैं बहुत अधिक भारतीय हूं, मैं इस तरह की बात को स्वीकार नहीं कर सकता।" लेकिन जब आप कहते हैं कि आप एक भारतीय हैं, तो सबसे पहले, आप अपनी गलत ढंग से पहचान बना रहे हैं और दूसरी बात यह है कि आप एक अति या दूसरी अति के साथ गलत पहचान बना रहे हैं।

इसलिए अपनी खोज में शुरूआत करने से पहले, आपको खुद को समझना होगा - आप किस अति पर खड़े हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है। इस भाग को समझना बहुत महत्वपूर्ण है, "आत्म-साक्षात्कार के लिए प्रार्थना करने के पहले मैं कहां खड़ा हूँ ?"

आत्म-बोध के बारे में एक और बात जो बहुत महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से पश्चिमी मन में, जो कि मुझे आपको बताना होगा - मैं कहती हूं 'पश्चिमी' क्योंकि पूर्वी लोगों का मन अभी तक तर्कबुद्धि संगतता की उस अति पर नहीं गया है, इसीलिए - ऐसा, व्यक्ति को यह समझना होगा कि सत्य के लिए हम प्रार्थना कर रहे हैं; और सत्य तुम्हारे चरणों में गिरने वाला नहीं है। यहाँ कोई एक क्लिनिक नहीं खोला गया है, जहां आपने पैसे दिए हैं और आप डॉक्टर के पास जाते हैं और उससे कहते हैं," आपने मुझे दवा दी है फिर भी मुझे बुखार है ?" और आप उसे शिकायत करते हैं कि, “यह क्या है? मैंने तुम्हें दस पाउंड का भुगतान किया है और अब तक मुझे कोई फायदा नहीं हुआ है, तुम्हारा क्या बचाव है ? आप इस तरह से किसी भी सत्य की मांग नहीं कर सकते। अब पश्चिमी मन के लिए यह समझना मुश्किल है! मेरे प्रति भी वे उसी तरीके से व्यवहार करते हैं! जबकि मैं अच्छी खासी ग्रहणशील हूँ। इसलिए मुझे आपको चेतावनी देनी चाहिए कि, कोई भी आपके चरणों में गिरने वाला नहीं है या आपके पीछे भागने वाला नहीं है कि आपको अपना आत्म बोध प्राप्त हो। नहीं, यह बिल्कुल आप सभी को समझना चाहिए।

आप इसे खरीद नहीं सकते। आप इसके लिए भुगतान नहीं कर सकते। आप इसे नियंत्रित नहीं कर सकते। आप इसकी मांग नहीं कर सकते। आप देखिये, यह वह अनुग्रह है जो कार्यान्वित होना होता है, जिसे मनुष्य नहीं समझ सकता है| हमने कभी ऐसा नहीं किया, हमने कभी ऐसा नहीं देखा। हमारे लिए सब कुछ एक खरीदारी रही है। इसलिए हमें हमारी खरीददार होने की शैली को थोड़ा बदलना होगा। हम भगवान की खरीददारी नहीं कर रहे हैं। कोई खरीददारी संभव नहीं है।

जब भी मैं लोगों से मिलती हूं तो मुझे उनमें ऐसा ही रवैया देखने को मिलता है। जैसे कि आप अपनी बाल्टी भरने के लिए गंगा नदी में गए हैं और, उसे मुहँ की तरफ से जहां से पानी घुसने की जगह है नदी में डालने के बजाय आप उलटी ही तरफ से डाल रहे हैं। और फिर आप कहते हैं, " माँ ऐसा कैसे है की यह मुझे नहीं मिला? आप में अवश्य कुछ नकली होना चाहिए। “हाँ और ऐसा ही है। तो कृपया मुझे छोड़ दो!

यह मुश्किल है क्योंकि हम अनावश्यक लाड़ प्यार के आदी हैं। यहां तक ​​कि डॉक्टर आपको बहलाते-फुसलाते हैं; वे हमें झूठ बोलते हैं। यहां तक ​​कि अगर कुछ भी समस्या नहीं है, तो भी वे आपको बीमार साबित करने के लिए दवा के नाम पर पानी के इंजेक्शन देते हैं। क्योंकि उन्हें अपना व्यवसाय करना है! हर कोई आप को बहलाता है, झूठ कहता है। लेकिन यहाँ ऐसी कोई जरूरत ही नहीं है, बहलाने-फुसलाने की कोई जरूरत नहीं है।

आपको पता होना चाहिए कि जो लोग आपको लाड़ करते हैं, वे कभी भी आपका कल्याण नहीं करेंगे। वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वे आपसे पैसा कमाना चाहते हैं। वे तुमको बेवकूफ बनाना चाहते हैं। वे आपका फायदा उठाना चाहते हैं। वे आपको कभी सच नहीं बताएंगे। वे क्यों करें? यदि वे आपको सत्य बताते हैं तो आप उन्हें कभी पैसे नहीं देंगे क्योंकि सत्य को पैसे के माध्यम से नहीं खरीदा जा सकता है। वे ऐसा कभी नहीं कहेंगे। वे आपके पर्स, आपकी स्थिति पर ध्यान देंगे। उन्हें यह बताने की परवाह नहीं हैं कि मानव जाति एक अवस्था में पहुंच गई है जहां उसे छलांग लगाना है, उसे सफलता प्राप्त करना है। उसे सामूहिक चेतना में उतरना होगा। उसे तो वह बनना ही है। यह एक महत्वपूर्ण बात है। यह सबसे महत्वपूर्ण बात है।

वे बहुत निम्न कोटी के लोग हैं, लेकिन वे आप को आकर्षित करते हैं क्योंकि वे आपके निम्न स्तर के व्यक्तित्व को आकर्षित करते हैं। यहां तक ​​कि तर्कबुद्धि संगतता मनुष्य में एक निम्न स्तर का व्यक्तित्व है, मेरी बात मानो। तर्कसंगतता के माध्यम से आप सभी प्रकार की क्षुद्र चीजें कर सकते हैं। बहुत अधिक तर्कसंगतता आपको विचार दे सकती है कि,कैसे योजना बनाएं, कैसे बैंक लूटें। यह कौन सी योजना ठीक है? बैंक को कैसे लूटा जाए, राष्ट्रपति को कैसे मारा जाए, किसी को कैसे परेशान किया जाए जो कुछ अच्छा कर रहा है। यह एक तथ्य है कि वे तर्कसंगतता के माध्यम से ऐसा करते हैं। और लोगों अपनी अंतरात्मा में जरा भी खेद किये बिना सब कुछ नष्ट कर गुजरते हैं कि, - "तो क्या?"

यहां तक ​​कि तर्कसंगतता भी, अगर कोई आपसे ईश्वर के नाम पर भी अपील करता है, तो आपको पता होना चाहिए कि आप गुमराह किये जा रहे हैं। क्योंकि [यह] अपने अहंकार को लाड़ करने के लिए बहुत अच्छा है, "वाह, आप कितने बुद्धिमान व्यक्ति हैं! तुम्हें पता है, तुम बहुत बुद्धिमान हो! - हमेशा के लिए शापित हो जाना ! "ओह, आप बहुत अच्छी तरह से पढ़ -लिख गए हैं!" - हमेशा के लिए अभिशप्त। इस पर कभी विश्वास मत करो।

आप किताबों में सच्चाई नहीं पढ़ सकते। आप अपने दिमाग के माध्यम से ईश्वर को नहीं समझ सकते। यदि आपके पास ऐसे विचार हैं, तो आप उस तक नहीं पहुँच सकते। हमारे प्रभु यीशु मसीह कितना पढ़े थे ? उनके पास कितनी प्रोफेसर पदवी थी? वह किस स्कूल में गये? और उसके साथ ही दुनिया के सभी संत, उनमें से कोई एक, उन्होंने कितना अध्ययन किया? तो अपने जूते की तरह, यहाँ से बाहर, अपनी तर्कसंगतता को दूर रखें! विनम्र रहें।

यह निश्चित रूप से आकर्षित नहीं करता है क्योंकि तर्कबुद्धि संगतता अहंकार को पुचकारती है और अहंकार एक बड़ा गुब्बारा है, आप देखते हैं। आप इसे एक तरफ से दबाते हैं दूसरी तरफ से यह उभर आता है। लेकिन मैं काफी चतुर हूं और मैं एक मां हूं। मैं एक माँ हूं, इसलिए मुझे पता है कि यह धीरे-धीरे कैसे नीचे आता है। आप किसी भी तरह से अहंकार नहीं हैं। न ही आप प्रति-अहंकार हैं। आप आनंद हैं। तुम शाश्वत हो। आपने इसे खो दिया है इसलिए कृपया इसे पाएं। और इन घिसे-पिटे विचारों पर ध्यान न दें।

मैं आपको प्यार करती हूं, लेकिन वास्तविकता पर, वास्तविकता पर और कुछ अवास्तविकता पर नहीं|

आपने इतिहास में देखा होगा कि इस धरती पर जब भी कोई महान ऋषि आया, एक महान अवतार आया, वे बौद्धिक लोगों से बात नहीं कर सके। फिर से मैं कहूंगी, कबीरदास, जो बहुत मुखर व्यक्ति थे, बहुत मुखर थे, वे कहते हैं, "पढ़ी, पढ़ी पंडित मुरख भई," का अर्थ है कि, "पढ़ पढ़ कर," विद्वान भी निरे मूर्ख बन गए! " और हिंदी के कवि आज भी उनकी आलोचना करते हैं कि उनकी भाषा बहुत अशिष्ट थी, बहुत असभ्य थी; वह, वह बहुत ही कठोर व्यक्ति थे। वे उसे 'सधुक्कड़ी ' कहते हैं। आप जो भी कहें, लेकिन उन्होंने सच कहा।

और यह आपके लिए बड़ा हिमालयी कार्य है, ऐसा मैं आपको यह बता सकती हूं। सभी तर्कसंगत लोगों के साथ आप समस्या को हल करने की कोशिश कर रहे हैं। हर कोई बहुत 'सक्षम' है। वे इस तरह से बात करेंगे "मुझे विश्वास है"। अब आप क्या मानते हैं? तुम क्या जानते हो? बड़ी-बड़ी बातें, तुम जानते हो! "मेरा मानना ​​है कि यह किया जाना चाहिए!" बड़ी बातें! व्याख्यान! तुम क्या जानते हो? क्या आप जानते हैं कि एक पत्ता भी आपके विश्वासों और श्रद्धा से और आपकी बातों और बात-चीत और सांस लेने से नहीं हिल सकता। कुछ भी तो नहीं! यह वह है। यह वह है जो इस दुनिया में सब कुछ चलता है। यह वह है जो प्रबंधन करता है, आयोजन करता है। यह वह है जो प्रत्येक और सब कुछ की देखभाल करता है, और यह वह है जिसने आपको बनाया है और जिसने इस महान ब्रह्मांड का निर्माण किया है। यह आप या आपकी, यह, मूर्खतापूर्ण तर्कबुद्धि संगतता नहीं है।

कृपया कोशिश करें, समझने की कोशिश करें। क्योंकि मैं चाहती हूं कि तुम उसे पाओ जो आनंद है, जो बहुत सुंदर है, जो महान है। और समय आ गया है, समय आ गया है। आप उसे खोज लोगे। समय आ गया है। लेकिन अपनी स्वतंत्रता में आपने अपने सिर में इतना बड़ा गुब्बारा विकसित किया है! बल्कि कभी-कभी इसे नीचे ले जाना मुश्किल होता है। और परमात्मा ऐसे लोगों के साथ चालें खेलता है, खूब चालबाजी करता है। और ऐसे लोगों को वो नहीं मिलता जो वो चाहते हैं। आप ईश्वर से अपने सांचों में क्रिस्टलीकृत होने के लिए नहीं कह सकते! आपको उसे उसी रूप में स्वीकार करना होगा जैसे वह है। जैसा वह है। आपको बस यह कहना है कि, "भगवान, हम यह नहीं कर सकते हैं"। अब, बस हमें अपने राज्य में प्रवेश दें । आइए हम स्वयं देखें कि यह कैसा है। ” खुले दिमाग से आओ। लेकिन आप बस वैसे ही ऐसा नहीं कह सकते कि, "हम जानते हैं कि यह परमेश्वर का राज्य नहीं है!" और, "वह भगवान का राज्य नहीं है!" और, "यह सच नहीं है!" आप खुद ही देख लीजिए। नम्रता पूर्वक ! क्या तुमने अब तक उसे पाया है?

एक अन्य दिन कोई मेरे पास आया, उसने कहा कि, “मैं ईश्वर से मिलना चाहता हूँ। मुझे आत्म-साक्षात्कार नहीं चाहिए! " मानो उन्होंने उन्हें वोट दिया हो और उन्हें अपना भगवान चुना हो! आप ईश्वर से मिलना चाहते हैं? तुम कौन हो? बहुत ही सरल प्रश्न मैं पूछ रही हूँ। आप कैसे मांगते हो ? आपने किया क्या है? क्या आप उसके लायक हैं? ईश्वर आपको क्यों मिलना चाहिए? सबसे पहले स्वयं आपको स्वच्छ होना चाहिए, उस दर्पण में केवल तभी आप ईश्वर से मिल सकते हैं।

"मैं जो चाहता हूं" वह बात नहीं है, क्योंकि हमने बीबीसी के लोगों को सड़कों पर घूमते हुए देखा है और उनसे सवाल पूछते देखा है कि, "अब, आप क्या कहते हैं? आपका क्या कहना है? आपका क्या कहना है? आपका क्या कहना है?" यह राजनीतिक चुनाव के लिए ठीक है या यदि आपको कुछ चीज़े बेचनी है। लेकिन ईश्वर के मामले में आपकी राय मायने नहीं रखती। यह परमेश्वर की राय है जो मायने रखती है ना कि, उसके बारे में आपकी राय।

यह उनकी कृपा है, यह उनकी दया है, यह उनकी करुणा है। यह आपके बारे में उनकी समझ है जो मायने रखती है। और इसीलिए, हर जगह, चाहे धर्म में, या राजनीति में या कहीं भी, हम कहीं भी सत्य के निकट नहीं हैं, कहीं भी नहीं। आप एक चर्च में जाते हैं: हे भगवान! यह एक सिरदर्द है। हम एक मंदिर जाते हैं: एक और सिरदर्द। भारतीय मंदिरों में इन दिनों वे हशीश (एक नशा) बेच रहे हैं! और यहाँ चर्च में, उस दिन मैं गयी थी, मैंने पाया कि वे सभी लड़कियाँ और लड़के, एक-दूसरे को आकर्षित करने के उद्देश्य से विशेष कपड़े पहने हुए थे और जो वे कर रहे थे! और किसी को ईश्वर या किसी चीज़ में दिलचस्पी नहीं थी! मानो वे किसी डिस्कोथेक या किसी तरह के क्लब में गए हों।

तो, इस तरह का रवैया मदद नहीं करता है। आपका आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त करना बहुत बड़ी बात है, इसमें कोई शक नहीं। आधुनिक समय के कारण इसे आसान बना दिया गया है। यह होना चाहिए था, जैसा कि आप कभी भी सूर्य या चंद्रमा पर नहीं जा सकते थे, आप कभी भी चंद्रमा के बारे में नहीं सोच सकते थे, आप कभी भी नहीं देख सकते थे, यहां तक ​​कि यह भी नहीं देख सकते थे कि सूर्य पर क्या था। अब आप जानते हैं कि सूर्य के साथ क्या हो रहा है, आप चंद्रमा तक पहुंच सकते हैं; आप वहां उतर सकते हैं यह केवल पिछले पचास वर्षों में ही हुआ है। सब कुछ इतनी जल्दी, नाटकीय रूप से हुआ है! पचास साल पहले कोई चाँद पर जाने की सोच भी नहीं सकता था। और इसलिए, आत्म-बोध अब एक सामूहिक घटना बन गया है। लेकिन यह सस्ता नहीं है। यह अशिष्ट नहीं है। यह बेचने योग्य नहीं है। इसकी अपनी गरिमा और अपना प्रोटोकॉल है।

जिस व्यक्ति को अपनी तर्कबुद्धि पर, या अपनी बुद्धि पर, या अपने धन पर गर्व है, उसे वहीं रहने दो, जहां वह है। वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता। जो अपने पिता पर गर्व करता है, वह जो अपने ईश्वर पर गर्व करता है, और जो जानता है कि वह हर पल, हर समय, हमारी देखरेख करता है, वह बचाया जाएगा।

मेरी दादी मुझे एक कहानी सुनाती थीं, कि धर्म में और धार्मिक होने में फर्क है। और फिर उसने मुझे एक आदमी की कहानी सुनाई जो उसने कहा कि वह भगवान में विश्वास करता था , और यही उसके लिए सच्चाई थी। यही उनकी सच्चाई थी। इसलिए, एक दिन, उसे एक आदमी मिला - बेशक यह एक कहानी है - भगवान से मिलने जा रहा है। तो उसने पूछा, “आप भगवान को देखने जा रहे हैं। क्या आप मेरी मदद करेंगे?" उन्होंने कहा, “हां, मैं क्या कर सकता हूं? ” वह बस सड़क के किनारे, एक तरफ पड़ा हुआ था और वह कह रहा था, “तुम देखो, तुम जाओ और भगवान से कहना कि, मैं इन दिनों थोड़ा भूखा हूं। आप मेरे भोजन की बेहतर व्यवस्था करें। ” उन्होंने कहा, "क्या?" उसने कहा, "तुम बस जाओ और उसे बताओ।" उन्होंने कहा, “इस आदमी को देखो! वह बस भगवान को आदेश दे रहा है कि वह उसे भोजन दे! ” फिर वह आगे बढ़ गया और जंगल के बीच से वह गुजर रहा था। उसने एक योगी को देखा, जो उसके सिर के बल पेट अंदर खींचे हुए खड़ा था, सभी हड्डियाँ दिखायी दे रही थीं और मानो अब वह भक्ति की बहुत उन्मत्त अवस्था में समाप्त होने जा रहा हो । तो उसने पूछा ...

(टेप में समस्या )

इसलिए आपको आत्मसाक्षात्कार होना चाहिए क्योंकि तब तुम वायब्रेशन को महसूस करने लगते हो, तुम अलग-अलग चक्रों को महसूस करने लगते हो, तुम उनका अभ्यास करने लगते हो। तब आप सत्य के साथ स्थिर हो जाते हैं और आप जानते हैं कि यह सत्य है। तब आप यह भूल जाते हैं कि आप पश्चिमी हैं, पूर्वी, आप भूल गए कि आप तर्कसंगत हैं, आप भावनात्मक हैं - कुछ भी नहीं! आप ईश्वर के नागरिक और उनके राज्य के नागरिक बन जाते हैं। क्योंकि आप शक्तियों का आनंद लेना शुरू कर देते हैं। और शक्ति का अर्थ उत्पीड़न नहीं है, इसका अर्थ है प्रेम: ईश्वर के प्रेम का आनंद। इसका मतलब सेक्स नहीं है और ना ही उसकी बकवास है। इसका अर्थ है ईश्वर का प्रेम, जो इतना शुद्ध, आनंद देने वाला और आनंदित करने वाला है, जो आपको सामूहिक होने के साथ एकाकार बनाता है।

लेकिन किसी भी व्यक्ति को अपने सीमित क्षेत्र और सीमित विचारों और सीमित चीजों से बाहर निकलना होगा: ऐसे विचार जो उसने दूसरों के बारे में और आसपास के वातावरण और सभी के बारे में बनाए हैं। बस यही सब माया है, भ्रम है! केवल सर्वशक्तिमान ईश्वर ही वास्तविकता है, बाकी सब भ्रम है। और आपको यह भ्रम पता होना चाहिए, जब यह समाप्त होता है, तो आप चकित हो जाते हैं कि, "यह भ्रम, ऐसा कैसे हो सकता है?" यह किस प्रकार काम करता है! यह गतिशील है। तब आप उसकी कृपा के सोंदर्य का आनंद लेने लगते हैं और आप उसे जानना शुरू कर देते हैं। और तुम खुद चकित होते हो कि, तुम इतने महान थे और तुम यह हो, अब अब तुमने इसे देख लिया है।

मैं सभी नए लोगों को शुभकामनाएं देती हूं। आइए देखें कि यह कैसे काम करता है।

इसलिए, यदि आप बुरा नहीं माने तो कृपया अपने जूते उतार दें। आपको धरती माता पर भी अपने पैर रखने होंगे। वह हमारी मदद करती है। हम धरती माता से बने हैं, वह तत्व हमारे भीतर है। और मैंने एक महिला से अपने जूते निकालने के लिए कहा; यहाँ तक की वह अपने जूते भी नहीं निकालना चाहेगी! दूसरे व्यक्ति का कहना है, "मैं किसी भी अनुष्ठान में विश्वास नहीं करता।" अब एक अनुष्ठान क्या है? मेरा मतलब है कि अगर आपको (सर्जरी)ऑपरेशन की आवश्यकता है, तो मुझे अपने हाथों को हिलाने की आवश्यकता है या नहीं? क्या ऐसा नहीं है? मैं कहती हूँ ऐसी मांग करने वाले लोग ! हो सकता है किसी एक दिन कोई हाथ में हंटर लिए आकर यहाँ, आत्म-साक्षात्कार की माँग कर रहा हो! "आप मुझे देते हैं की नहीं?" (हँसते हुए) यह कभी-कभी इतना मज़ेदार होता है!

श्री माताजी: तो, अन्ना आप कैसे हैं? आह कैसे हो? आपको कभी कबीर को लाना चाहिए, मैं उसे देखने के लिए व्यग्र हूँ ।

योगिनी: मैं एक दोस्त को लाई हूँ

श्री माताजी: यह महिला? वो अच्छी है। वह बहुत अच्छी है। आपके पास ऐसे मीठे अच्छे दोस्त हैं जो मुझे कहना चाहिए। मेरा मतलब है, वे कहते हैं, "एक जैसे परों वाले पक्षी साथ उड़ते हैं," उसी तरह से। अन्ना एक और सुंदर व्यक्तित्व है, वह एक जन्मजात आत्मसाक्षात्कारी है। और ऐसे लोग वास्तव में बहुत अच्छे होते हैं। उसे किसी के द्वारा गुमराह किया गया था, लेकिन जब मैंने उसे बताया, तो वह थोड़ा चौंक गई, और फिर वह ठीक हो गई, क्योंकि वह एक जन्म-जाट आत्मसाक्षात्कारी है, उसके पास सत्य को समझने के लिए बहुत अधिक शक्ति है। लेकिन भले ही आपको कोई फर्क न पड़े। आप खुद को अद्भुत बना सकते हैं। आपको अपने स्वयं के बारे में जानने की आवश्यकता है। उनका एक बेटा है जो बहुत ही गतिशील है, कबीर, वह बहुत ही अद्भुत और बहुत बुद्धिमान है।

अब, हमें करना चाहिए? तुम्हारे हाथ इस तरह रखें ?

(टेप समाप्त होता है)

Caxton Hall, London (England)

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