Description of Kundalini

Description of Kundalini 1976-01-23

Location
Talk duration
62'
Category
Public Program
Spoken Language
English

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23 जनवरी 1976

Public Program

New Delhi (भारत)

Talk Language: English

कुण्डलिनी का विवरण.(दिल्ली), १९७६.

माननीय न्यायाधीश तताचारी और दिल्ली के नगरवासी और सहज योगिओं। हम अब इतिहास के ऐसे मोड़ पर हैं जहां यह जरूरी हो गया है कि हम देवी शक्ति के अस्तित्व को सिद्ध करें। हमने पढ़ा है इस सर्वव्यापी शक्ति के बारे में। हमारे शास्त्रों में बहुत विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है इस देवी शक्ति के बारे में जो हमारे अंदर प्रवाहित होती है। और जो इस ब्रह्मांड की हर एक अणु रेणु से भी प्रवाहित होती है। पर अभी तक बहुत कम लोग ही इस दिव्य देवी शक्ति के साम्राज्य में आने में समर्थ हुए हैं इस दिव्य शक्ति की अनुभूति के लिए। ऐसे लोगों का जन्म बहुत ऊँचे स्तर पर हुआ था कि वह और दूसरे लोगों से बात नहीं कर पाए। उन्होंने सिर्फ देवी शक्ति के बारे में गीत गाए जो लोगों तक पहुंचे पर लोग उस शक्ति के अस्तित्व को अनुभव नहीं कर पाए जो अनुभव उस कविता या गीत के लिखने वालों ने किया | जैसे मैंने पहले बताया मनुष्य की यह खोज रही है की अनंतता में जाना। पर उसकी सीमित बुद्धि और समझ अनंतता में नहीं जा पाती | तो अब बहुत कुछ मशीनी क्रिया या ऊपरी क्रिया हो गई है। धर्मों का महत्व कम हो गया और लोग विश्वास नहीं कर पाते धर्म या परमेश्वरी शक्ति की बातों में।

पर अब समय आ गया है लोगों के एक साथ परमेश्वर के साम्राज्य में उतरने का और उनके अस्तित्व को महसूस करने का जो उनके खुद के अंदर स्पंदन कर रहा है। जैसे कि मैंने बताया 1970 में मुझे यह समझ आया कि मनुष्य जागरूक साधक या खोजने वाले भी नहीं है। और इसीलिए सब ग़लतियाँ हुई क्योंकि जो दसवीं मंज़िल पर पैदा हुए वो पहली मंज़िल वाले लोगों को भी नहीं समझा सके। जब मुझे यह मानव जागृति मिली और उसके होने का कारण मिला तब मैंने बहुत से लोगों पर कार्य करना शुरू किया। और पता किया कि उनकी जागृति के रास्ते पर आने वाली बाधाएं क्या है। ऐसा करते हुए मैं 2 साल तक यह जागृति नहीं दे पा रही थी | यह मुझे कहना चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा 12 लोग तक जागृति ले पा रहे थे | और यह बहुत कठिन काम था क्योंकि जो लोग मेरे पास आए थे वे बहुत ज्यादा आकर्षित नहीं थे | उन्हें लगा कि इसका क्या प्रमाण है कि हमसे परे कोई देवी शक्ति है| पर जब उन्हें जागृति मिली और अनुभूति हुए उनकी उंगलियों के छोर पर जिन्हें हम चैतन्य लहरी कहते हैं, जिससे वे निर्विकार हो जाते हैं, जिससे वे दूसरों को ठीक करने लगे | जिससे वे दूसरों को जागृति देने लगे | इससे उन्हें विश्वास हो गया कि वे आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर चुके हैं।

यह कोई अतिशयोक्ति यह दुष्प्रचार नहीं है, यह आपके अंदर होना चाहिए | आप किसी को झूठा प्रमाण नहीं दे सकते क्या हुआ है | यह आपके अंदर पूर्ण रूप से होना चाहिए और आपको यह महसूस करना है, क्या हुआ है, और जब आप उसका उपयोग करते हैं आपको पता चलता है कि ऐसा हुआ है। उस दिन आपने देखा कि कुंडलिनी किस प्रकार उठती है, आपकी खुली आंखों से। आप में से कुछ लोगों ने कुंडलिनी शब्द सुना भी नहीं था पर आपने कुंडलिनी का स्पंदन होते हुए देखा | कैसे वो ऊपर उठी रीढ़ में से। जब कुण्डलिनी ऊपर उठती है ,आप उसका स्पंदन वाकई में देख सकते है |

बहुत से लोग हो चुके हैं जिन्होंने कुंडलिनी जागरण की बात की है। पर वास्तव में उनमें से किसी ने भी कुंडलिनी का जागरण और स्पंदन होते हुए नहीं दिखाया| वह इसलिए कि कुंडलिक कभी उठी ही नहीं। कुंडलिनी तभी उठती है जब कोई ऐसा व्यक्ति सामने हो जो स्वयं जागृत हो यह आत्म साक्षात्कारी हो और जिसे कुंडलिनी उठाना आता हो। तो उन्होंने वर्णन किया कि, कुंडलिनी जागरण करने से आप वास्तव में बहुत गर्म हो जाते हैं, या कभी-कभी आप नाचने लगते हैं, कभी आप चिल्लाने लगते हैं, और कभी आपको पूरे शरीर पर छाले आ जाते हैं| जिस तरह से उन्होंने कुंडलिनी का वर्णन किया, कोई सोचेगा कि आप जैसे हैं वैसे ही रहे तो अच्छा है, बजाय इसके कि इस तरह के कठिन परीक्षा से गुजरना पड़े, जहां आप पूरी तरह खत्म हो जाए या खदेड़े जाये |

कुण्डलिनी आपकी माँ है और वह त्रिकोणाकार अस्थि में रहती है, जो मूलाधार चक्र के ऊपर स्थित होती है। उस त्रिकोणाकार अस्थि को मूलाधार कहते है | आप सब संस्कृत जानते हैं, और आपको मूलाधार का अर्थ भी पता है। कुण्डलिनी वहाँ रहती है और जो लोग उसे गलत दिशा से उत्तेजित करते है, तो श्री गणेश, जो मूलाधार चक्र पर बैठे है, वो क्रोधित हो जाते है, और वह क्रोध अभिव्यक्त होता है, जिसे लोग कहते है कुण्डलिनी नाराज़ है| कुण्डलिनी कभी नहीं उठेगी| उसे आपकी परेशानियां पता है| वह आपसे प्रेम करती है। वही सिर्फ आपकी मां है, और वह आपके साथ कई जन्मों से है। तो वह बिल्कुल नहीं उठती है। वह वही रहती है| सिर्फ श्री गणेश क्रोधित होते हैं क्योंकि उन्हें आपकी मां की पवित्रता की रक्षा करनी है| आपके मां के सिद्धांत की रक्षा करनी है।

अब हम शुरू यहां से करते हैं कि श्री गणेश है या नहीं। किसी को भी शुरुआत में जानना चाहिए| लोग कहते हैं कि उन्होंने श्री गणेश का चिन्ह देखा है अंदर | श्री गणेश है या नहीं, हम पड़ताल कर सकते हैं क्योंकि जब आप किसी को उस तरह से परेशान होता देखते हैं या पीड़ा में देखते हैं तो आपको श्री गणेश का आवाहन करना होता है, कि कृपया नाराज़ ना हो | इस व्यक्ति ने अंजाने में गलती की है| और वो तुरंत आपकी सुनते हैं। फिर वह व्यक्ति शांत और ठंडा हो जाता है | उसके छाले या फफोले ग़ायब हो जाते हैं, और उसे बहुत आराम मिलता है।

पिछली बार दिल्ली में अगर आपको याद हो तो एक आदमी मेरे पास भागते हुए आया था, पहले वह बॉम्बे गया फिर वह वापस दिल्ली आया| वह दिल्ली का रहने वाला था और उसने मुझे बताया कि किसी ने उसकी कुंडलीनी को उत्तेजित कर दिया है| और वह सब दूर भाग रहा था, चिल्लाते हुए जैसे बहुत सारे कीड़ों या मकड़ियों ने काटा हो। मैंने उससे पूछा आपको जागृति कैसे मिली?वह कौन आदमी था जिसने यह किया? उसने मुझे बताया कि वह इतना गोपनीय तरीका था कि वह उसे बताने में भी बहुत भद्दा महसूस कर रहा था | और जब मैंने उसे कहा कि आप कैसे विश्वास कर सकते हो कि परमात्मा को पाने का इतना गोपनीय और भद्दा तरीका हो सकता है| और वह बहुत पढ़ा लिखा आदमी था। फिर मैंने श्री गणेश को कहा कि कृपया इसे क्षमा करें, क्योंकि उसे नहीं पता, वह अज्ञानी मनुष्य है और किसी ने उसके पैसे निकलवाने का प्रयास किया या उसे अपना ज्ञान का दिखावा करने का प्रयास किया। उसने उसकी कुंडली में खेला है, तो कृपया उसे ठीक कर दीजिये | और बहुत सारे लोगों ने यह सब देखा कि तुरंत ही वह शांत हो गया है और ठीक हो गया।

सभी देवी देवता जो आपकी कुंडलिनी पर है चाहे वे वहां है या नहीं है क्योंकि किसी ने लिखा है, क्योंकि किसी ने कहा है, क्योंकि वह शास्त्रों में भी है, हम क्यों वह स्वीकार करें? क्योंकि एक बुद्धि मानी व्यक्ति कुछ भी स्वीकार करना नहीं चाहता | तुम्हारे बच्चे वह स्वीकार नहीं करेंगे | हम श्री गणेश के अस्तित्व को सिद्ध कर सकते हैं| उसी प्रकार हम इन सभी देवी देवताओं के अस्तित्व को भी सिद्ध कर सकते हैं जो मनुष्य की रीढ़ पर स्थित चक्रों पर है।

अब भारतीय संस्कृति के विषय में कहना हो तो हिंदू संस्कृति और मुस्लिम संस्कृति और दूसरी संस्कृतियाँ,यह बहुत आश्चर्यजनक है कि कुण्डलिनी या हम कह सकते है कि विराट् की आदि कुंडलिनी के पास यह सब बड़े इंकारनेशन या अवतरण है चाहे वह मुस्लिम हो, चाहे वह क्रिश्चियन हो, चाहे वह भारतीय हो, वह सब चक्र पर बैठे हैं | जैसे कि अगर आप मूलाधार चक्र से ऊपर की तरफ शुरू करें तो हम दूसरे चक्र पर जाते हैं स्वाधिष्ठान चक्र | श्री ब्रह्मदेव जो कि सृजन शक्ति रखते हैं, परमात्मा की सृजन का पहलू है, और उनकी शक्ति सरस्वती है | स्वाधिष्ठान चक्र पर उनका स्थान है| आपने देखा कि दिल्ली में आप सभी को स्वाधिष्ठान चक्र पर पकड़ थी, क्योंकि दिल्ली वह जगह है जहां हम बहुत ज्यादा नियोजन कर रहे हैं| योजना करने की शक्ति और भविष्य के विचारों की शक्ति स्वाधिष्ठान चक्र से आती है | और इस प्रकार आप में से बहुत से लोगों का स्वाधिष्ठान चक्र पकड़ा हुआ है। तीसरा चक्र जिसे नाभि चक्र कहते हैं, उसे वास्तव में मणिपुर चक्र कहते हैं | वह त्रिकोणाकार अस्थि के ऊपर होता है। वह सोलर प्लेक्सस याने सूर्य जाल को शारीरिक रूप में नियंत्रित करता है, और यही चक्र है जो हमारे धर्म को दर्शाता है|

अब हम धर्म की बात करते हैं तो तुरंत ही आधुनिक दिमाग मुझे कहेंगे आप किस बारे में बात कर रहे हैं? जब मैं कहती हूँ, उदाहरण के लिए अगर आप आम का पेड़ लगाएंगे तो आम मिलेगा। नहीं तो जैसे मैंने कल बताया कि एक सोने की चूड़ी सोना ही है, क्योंकि वह मलिन नहीं होता, तो वह सोने का धर्म है। पानी का धर्म है शुद्धीकरण करना, उसी प्रकार मनुष्य का अपना धर्म होता है जिसे बाइबिल में 10 ईश्वरी आदेश बताएं हैं। यह धर्म के लिए मनुष्य का जन्म होता है। पर उसे खुद को धर्म में स्थापित करना होता है जब उसे धर्मार्थी की स्थिति में जाना होता है जो उसके परे है। पर यह १० धर्म तो स्थापित करने ही पड़ते हैं | अगर ये स्थापित नहीं किए गए तो हम उनके साथ काम नहीं कर सकते ।

नाभि चक्र सबसे महत्वपूर्ण है और वहां बहुत बड़े अवतरण या( परमात्मा के पहलू) का स्थान है जिन्हें हम नारायण करते हैं, या श्री विष्णु और उनकी शक्ति श्री लक्ष्मी। विष्णु दर्शाते हैं जीवन के लिए अति आवश्यक तत्व। विष्णु दर्शाते हैं परमात्मा का वह पहलू जिसे हम धर्म कहते हैं। और विष्णु जिम्मेदार है मनुष्य के विकास या उन्नति के लिए। हम कभी पता नहीं लगाते कि एक अमीबा से मनुष्य क्यों बना। किसकी वजह से वह इतना उन्नत होकर मनुष्य बना? और अब इस मनुष्य का क्या होने वाला है? और आखिर उसे मनुष्य क्यों बनाया गया? आपको किसी कारण से बनाया गया है। मनुष्य के साथ आगे क्या होने वाला है जहां हम कभी सोचते नहीं हैं। यह उन्नति और विकास की शक्ति हमें श्री विष्णु के द्वारा आती है। श्री विष्णु हिंदुओं के देवता नहीं है। वह भारत के नहीं है। के किसी एक राज्य है या इस जगह के लिए नहीं है। वे तो आदि पुरुष है, वो महान आदि पुरुष जिन्हें हम कहते हैं इस्लाम में अल्लाह हू अकबर। वे आदि पुरुष की अभिव्यक्ति है जो बहुत महान है।

परमात्मा के बहुत से पहलू है, और उनमें से एक हैं उनकी महानता का | और इसीलिए विष्णु के जैसे वे चाहते हैं हम भी महान हो। कल मैंने आपको बताया कि विराट् के अंदर सब कुछ है जो विष्णु प्रकट करते हैं , और हमें यह जानना चाहिए कि हम उस महान विराट् के अंग प्रत्यंग है। और हम उसे जाने की प्रक्रिया में है क्योंकि हम उसी परमात्मा की छवि की तरह बनाए गए हैं।

फिर आता है हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण भाग जो कि पेट है। वह भवसागर का प्रतिबिंब है वह माया है जिसमें हम रखे गए हैं। हम इस भवसागर में जन्मे हैं जहां श्री विष्णु स्वयं बार-बार अवतार लेते हैं। और वो खुद मनुष्य की अगुवाई करते हैं उनकी उन्नति के पथ पर। उनकी मदद एक और देवता कहते हैं जिन्हें हम आदि-गुरु कहते हैं। आदि गुरु दत्तात्रेय। श्री विष्णु भवसागर से उठते हैं और आपको नेतृत्व देते हैं खुद में ऊंचा उठने का। वे आपकी जागरूकता को धीरे-धीरे बढ़ाते हैं और आज आप मनुष्य बने हैं। आपके अंदर ही वे दो और चक्र बनाते हैं एक हृदय पर हृदय चक्र और उसके ऊपर विशुद्धि चक्र। जिसे हम श्री कृष्ण का पूर्ण अवतार कहते हैं। विशुद्धि चक्र पर श्री विष्णु अपना अवतार पूरा करते हैं विराट् के रूप में। उन्हें विशुद्धि चक्र पर दर्शाया है। वो यहां है या नहीं यह आप पता कर सकते हैं जब आपकी कुंडलिनी जागृत होती है | बाएँ बाजू में विराट् है | हृदय में शिव का वास होता है | शिव परमात्मा की अस्तित्व की शक्ति का स्वरूप है, जो पूरी अभिव्यक्ति को अस्तित्व में लाते हैं। और जब उन्हें प्रदर्शन अच्छा नहीं दिखता, उन्हें नाटक अच्छा नहीं लगता, तो वे बंद कर देते हैं। इसीलिए उन्हें संहारक भी कहा गया है। अगर उन्हें वह प्रदर्शन अच्छा लगता है वह सही दिशा में जा रहा है तो वे उसे देखते रहते हैं पर अगर उन्हें अच्छा नहीं लगता तो नष्ट कर देते हैं |

तो परमात्मा के 3 पहलू है एक उनकी स्थिति (अस्तित्व), दूसरा उनकी रचनात्मकता ब्रह्मदेव द्वारा और तीसरा जो विकासवादी है, जो धर्म पर आधारित है। एक मनुष्य के ३ दृष्टिकोण होते हैं और ३ पहलू हो सकते हैं। परमात्मा के और ज्यादा पहलू है पर जो साफ दिखाई देते हैं वे ३ है। अब यह तीन पहलू , इनका सार जो है या इन तीनों पहलुओं की मासूमियत या सरलता को एकत्रित किया गया आदि-गुरु में। या आदि गुरु दत्तात्रेय में, जो वास करते हैं भवसागर में और वे मदद करते है श्री विष्णु को, आप के विकास में। उन्होंने बहुत से अवतार लिए हैं। मुख्यतः १० अवतार | यह बहुत महत्वपूर्ण है की हमे उन्हें समझना होगा उनके पूर्ण रूप में। अगर आप उन्हें दत्तात्रेय के रूप में स्वीकार करते हैं, तो आपको उन्हें राजा जनक के रूप में भी स्वीकार करना होगा। हिन्दू मस्तिष्क को बहुत आसान है उन्हें स्वीकार करना राजा जनक के रूप में, पर वो मोहम्मद साहब को स्वीकार नहीं करते जो की राजा जनक ही थे | यह सत्य है और यह आप अपनी कुंडलिनी पर सिद्ध कर सकते है। एक व्यक्ति जो पेट के कैंसर से पीड़ित है, यहां वह बात आती है।जब मैं कहती हूँ कि सहज योग आपका कैंसर ठीक कर सकता है, तो आपको कुछ धारणाऐ छोड़नी होंगी जो हमारे दिल में है। एक मनुष्य अगर वो हिंदू है और पेट के कैंसर से पीड़ित है, तो उसे मोहम्मद साहब का नाम लेने के कहना पड़ता है। अगर मैं उससे वह कहलवा नही पाई, तो मैं उसका कैंसर ठीक नही कर सकती। मैं माफी चाहती हूँ, पर मैं उसका कैंसर ठीक नहीं कर सकती। पर अगर वो मुस्लिम है, तो मुझे उसे कहना होगा, आपको दत्तात्रेय का नाम लेना होगा।मनुष्यों ने मूर्ख समान एक विश्वास के जीवित पुष्पों को छीन लिया और अब वो लड रहा है, ऐसी वस्तु के लिए जो टूट चुकी है। वे दत्तात्रेय थे, इसमें कोई शक नही।और उनकी लड़की फातिमा जो और कोई नही पर सीता जानकी और उनके दो बेटे हसन और हुसैन, और कोई नहीं पर लव और कुश थे। उनके बार-बार जन्म हुए। उन्होंने ही महावीर और बुद्ध के रूप में जन्म लिया। और फिर उन्होंने ही हसन और हुसैन के रूप में जन्म लिया। यह सहज योग से ही संभव है जानना की यह सत्य है, यह वास्तविकता है। उन्होंने नाना और नानकी के रूप में जन्म लिया। वह और कोई नहीं जानकी ही थी। नानक के जीवन में उन्होंने यह व्यक्त किया है। मैं नहीं जानती कि कितने लोगों ने नानक के बारे में पढ़ा है। नानक एक बार सो रहे थे और उनके पैर काबा की ओर थे और लोगों को उस दिशा से चैतन्य आ रहा था, तो उन्होंने कहा आप क्या कर रहे हैं? आपके पैर काबा की तरह है। तो उन्होंने कहा ठीक है मैं अपने पैर दूसरी ओर कर लेता हूं, और फिर लोगों को दूसरी ओर से चैतन्य का प्रवाह आने लगा। उन्होंने कहा है क्या काबा हिल गया है क्या? यह दर्शाता है। उन्होंने बहुत कम बातें बोली, लोगों ने उन्हें मार दिया, उन्हें सताया। अगर आप मोहम्मद साहब का जीवन पढे, आपको लगेगा कितने मूर्ख लोग थे। जिस तरह वो कट्टरता और धर्मांधता के खिलाफ लडे। जिस तरह से उन्हें मार दिया गया। कोई जगह नहीं थी उन्हें अपना सर छुपाने के लिए। जिस तरह लोग उनके पीछे थे, क्योंकि वे सच्चाई बता रहे थे और वे कट्टरता से और धर्मांधता से लड़ रहे थे।

तो गुरु तत्व मारा जाता है, जैसे ही आप कट्टर इंसान बन जाते हैं। आपका गुरु तत्व खत्म हो जाता है जैसे ही आप किसी प्रकार की कट्टरता को अपनाते हैं। अब आप ऊपर हृदय चक्र पे आते हैं। हृदय चक्र तीन भागों मे विभाजित है। हृदय के मध्य में जगदम्बा वास करती है। पर बाई ओर जैसे मैंने बताया रहते है शिव और उनकी शक्ति पार्वती। जब पार्वती स्वयं अपनी पहचान अपने भगवान से अलग करती है और मध्य मे आती है, अपने बच्चों की रक्षा करने के लिए, दुष्ट आत्माओं से, तो वह मध्य मे रहती है।

और वह जगदम्बा है जिसे बाइबिल में पवित्र हृदय कहा गया है। वह जगदम्बा के रूप में निवास करती है। उन्होंने बहुत सारे अवतरण लिए है अपने बच्चों को बचाने के लिए। आज ललिता पंचमी है। उन्होंने ललिता के गाने गाए | . जिस तरह उन्होंने अवतरण लिया शैतानी शक्तियों से लड़ने के लिए, भक्तों को बचाने के लिए | शैतानी और दुष्ट लोगों के प्रभुत्व से अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए उनका अवतरण हुआ | वे आपके अंदर भी है | अगर जागृत नहीं है , तो उन्हें जागृत किया जा सकता है । वह पूरे समय वहाँ है शैतानी शक्तियों से आपकी रक्षा करने के लिए | आज बहुत सारे राक्षसों ने जन्म लिया है कलयुग में | वो यहाँ है , जैसे की कुछ लोग खुद को कहते है `भगवान’ और “भगवान आदमी” | पर उनके आचरण से आप पता कर सकते है ,की वे मनुष्य नहीं है , मनुष्य से भी कम है | ऐसे सभी भयानक अवतार आए है छल अवतरण के रूप में ‘माया’ के रूप में | क्यों कि यह कलयुग है | रावण रावण के जैसे नहीं आने वाला | वह यह नहीं कहेगा ,की मैं रावण हूँ | पर उसके तौर तरीके से वह ये सिद्ध कर देगा की वह रावण है |

ऐसे कुछ चुनौती पूर्ण धर्म या मज़हब है, ऐसे लोग है जो सिखाते है की यौन क्रिया से परमात्मा को पाना चाहिए | ऐसा कैसे हो सकता है | सेक्स से आपकी जागृति का कोई लेना देना नहीं है| क्योंकि जैसे मैंने आपको बताया की सेक्स पॉइंट बहुत नीचे है मूलाधार से जहाँ आपकी माँ वास करती है | यह इतना बेतुका विचार है जो पश्चिम में पूरी तरह फैल चुका है | मुझे नहीं पता की कैसे लोग अपनी बुद्धि खो चुके है और समझते नहीं है | और ऐसी धारणाएं आज देश में फैल रही है | मैं चाहती हूँ न्यायाधीश तताचारी लोगों पर थोड़ा दबाव डाले, जिन्होंने लम्बे समय तक इन भयावह बातों को रोकने का प्रयास किया, की उसे लोग कबूल ना करे| क्योंकि जब आप खुद को ऐसी भयावह शैतानी ताक़तों के हवाले करते है, तो वो आपके पास अस्तित्व बनकर आती है और आपको पकड़ लेती है | वो आपको अधिकार में कर लेती है | फिर आप आपका सब कुछ देने लगते है | जो भी पैसा आपके पास है, आप उन्हें देते है | जो भी आपका चित्त है, आप उन्हें देते है | आखिर आप यह देखते है की अब वे न्यायलय पहुँच चुके है और कोई जीवन भर की सज़ा काट रहे है | तो यही बेहतर है की आप अकेले रहे | आपको समझना चाहिए की एक धार्मिक व्यक्ति, एक जागृत व्यक्ति, वो एक पाई भी नहीं लेगा किसी से | जब आप इतने आत्म सम्माननीय है , तो कोई भी व्यक्ति जो परमात्मा से आशीर्वादित है, आपसे कुछ भी क्यों लेगा ? इस तरह वो आपके अहंकार को तृप्त करते है , की आप एक धार्मिक व्यक्ति को खरीदने में सफल हो गए | आप परमात्मा को बाजार में नहीं ख़रीद सकते | आपको यह समझना चाहिए | और जब कोई व्यक्ति आपके अहंकार को तृप्त करने का प्रयत्न करता है इन सब बातों से, तो आपको पता होना चाहिए की वो काम अधार्मिक है |

मनुष्य को यह समझना चाहिए की परमात्मा सबसे ऊपर है | यह उनका आशीर्वाद है की वो आपको वहाँ ले जाए | उसके लिए आप कुछ नहीं कर सकते | ये वो है जिन्हे आप पर बीज डालना है | जब एक बीज को फूटना होता है , तो वो क्या करता है ? कुछ नहीं | पर वो वही रहता है, और जो माली है , वो उसे अपना आशीर्वाद देता है और प्यार देता है| और फिर वो बीज खुद से अंकुरित होता है | यही सहज है | याने ये आपके साथ ही जन्मा है | उस बीज के जैसे आपको अंकुरित होना है | पर आपको बहुत सावधान रहना है उन भयावह, कपटी और भ्रामक ताक़तों से जो बहुत सरे तरीक़ों से आए है | मैं आपको बता सकती हूँ की १६ राक्षस जिन्होंने जन्म लिया है - मायासुर है, तारकासुर है , रक्तासुर है | १६ राक्षसों ने जन्म लिया है और आपको कोई अनुमान नहीं है, की वो क्या कर रहे है | वे सभी प्रकार के छल करेंगे आपको समझाने के लिए की वो अच्छे लोग है या धार्मिक लोग है | पर आपको सिर्फ परम को माँगना चाहिए जिसका बहुत से साधु संतो ने वर्णन किया है जैसे मार्कण्डेय, शंकराचार्य | आप बहुत भाग्यशाली है की हमारे यहाँ ऐसे महान लोग हो गए है जिन्होंने विस्तार से बताया है की यह ही परम है | सत्य को मांगो | उससे सस्ता या तुच्छ नहीं | आप परमात्मा की कीमत कम नहीं कर सकते | आप उन्हें अपने छोटे प्यालों में ढाल नहीं सकते |

उस चक्र के ऊपर, दाई ओर हृदय चक्र में श्री राम और सीता का स्थान है | उन्हें बाजू में रखा है क्योंकि उन्हें अपनी विष्णु की शक्ति को भुलाने को विवश किया था | वे एक मनुष्य बने हर प्रकार से | और इसलिए उन्होंने इस प्रकार बर्ताव किया जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम | वे दाई ओर है | वे एक आदर्श राजा है जिनके बारे में तत्वज्ञानियों ने आपको बताया है | वो व्यक्ति है, जो सभी राज कार्य करते है| वो वह व्यक्ति है जो सभी राज कार्य करते है | वो वह व्यक्ति है जिनका अनुसरण शासन प्रबंध के उच्च अधिकारियों ने करना चाहिए | और वो मर्यादा पुरुषोत्तम राम है जो की दाई बाजू में है | और आपको पता है उनकी शक्ति सीता है | वो आदि शक्ति है, जिन्होंने बार बार जन्म लिया |

विशुद्धि चक्र पर स्थान है महान देवता श्री कृष्ण का | वो दर्शाते है विराट् को, अकबर को, अल्लाह हु अकबर उन्हें

यहाँ दर्शाया गया है | यह ऊंगली है श्री कृष्णा की | श्री कृष्णा ने अर्जुन को अपना विराट् स्वरूप दिखाया था, पर अर्जुन डर गया | सोचिये उस समय अर्जुन को वह सब देखना संभव नहीं था और वह डर गया | अब कलयुग में समय आ गया की आप विराट् को देखे | आप देख सकते है अगर आप सहज योग से जागृति लेते है | अगर आप अपनी जागरूकता को उस स्तर पर ले जाते है, जहाँ आप विराट् को देख सके, तो आप उसे देख सकते है | श्री कृष्ण के बारे में मुझे ज़्यादा बताने की आवश्यकता नहीं है, आप सब उनके बारे में जानते है | पर उनके जीवन का सार, उनकी शिक्षा का सार एक आसान बात थी, की यह सब एक नाटक चल रहा है | जब आप पूर्ण है, जब आप संपूर्ण है, तभी आप महसूस करते है की आप सिर्फ साक्षी है | जब आप साक्षी है ,तब आप सब कुछ देखते है |इस जगह पर आप एकाकार हो जाते है, जहाँ आप अंदर से पूर्ण वैराग्य और बाहर प्रेममय हो जाते है| अंदर के वैराग्य से ही बाहर का प्रेम बहता हैं| वास्तव में यह इतना सुन्दर है, की इसका वर्णन नहीं किया जा सकता |

उदाहरण के लिए - आज की पूजा ने मुझे चैतन्य से भर दिया | इतना सारा चैतन्य मेरे चक्रों से बहाने लगा, कि मुझे पता नही चला की मैं क्या करूँ | फिर वह चैतन्य बाहर बहाने लगा | इसलिए मैंने कल कहा कि सहज योग आपको सिखाता है चैतन्य के मालिक बनना | और जब वो बहार की ओर बहता है, तो आप जानते है की वह सब के लिए है, आप कुछ नही कर सकते | जब वह अंदर है, तो आप उन्हें बाहर देना चाहते है | आपको दुसरो को देना होगा जो आपको मिला है | क्योंकि आप उसका संग्रह करके नही रख सकते, जो अपने प्राप्त किया है | यहाँ अपने आप होता है, आपको उसे छोड़ना या देना जरूरी है | जैसे कि - अगर मुझे ऐसी समस्या है, तो मुझे मेरे सहजियों से ही मिलना होगा | अगर नही मिले तो मैं पेड़ के पास जाती हूँ, और पेड़ को मेरा चैतन्य देती हूँ या आकाश को | क्योंकि मुझे देना ही पड़ेगा, क्योंकि वह कार्यान्वित है और उन्हें इस सीमित व्यक्ति से बहार प्रवाहित होना है क्योंकि वह असीमित है | यह इतना मजेदार है की जैसे जब हम कहते है जब आप अपने माता पिता के चरण छूते है, आपको आशीर्वाद मिलता है | यह बिलकुल सत्य है, क्योंकि जब आप अपने माता पिता के चरण दबाते है, तो चैतन्य सभी चक्रों से प्रवाहित होता है | वो हमारे अंदर अता है और हमें आराम पहुँचाता है, शांति देता है, और उन्हें भी आनंद और शांति महसूस होती है |

इस चक्र के ऊपर आज्ञा चक्र है, जो बहुत महत्वपूर्ण चक्र है और जो सहस्त्रार का दरवाज़ा है | आज्ञा चक्र के ऊपर महाविष्णु रहते है | जिन्होंने मार्कण्डेय पुराण या देवी भागवत में महाविष्णु के बारे में पढ़ा है, उन्हें पता चलेगा की मैं किस के बारे में बात कर रही हूँ | पर आपको नहीं पता की उन्होंने कब अवतरण लिया, और वे कौन थे | वे और कोई नहीं पर जीजस क्राइस्ट थे | जीजस क्राइस्ट मैरी के इकलौते बेटे थे | मैरी जो राधा थी, वह महालक्ष्मी थी | वह महालक्ष्मी थी जिन्होंने मैरी के रूप में अवतार लिया, और जीसस क्राइस्ट और कोई नहीं पर महाविष्णु थे | अगर आपको महाविष्णु के बारे में जानना है तो आपको देवी भागवत पढ़ना चाहिए | उसमे यह विस्तार से बताया गया है | पर वे वाकई में है या नहीं, यह सत्य है या नहीं, यह देखा जा सकता है| क्योंकि किसी को अगरआज्ञा चक्र की पकड़ है तो हमे जीसस क्राइस्ट का नाम लेना पड़ता है| वे ओंकार स्वरूप है, तो आप ओंकार का नाम भी ले सकते है| पर आपको जीसस क्राइस्ट का नाम लेना होगा| अगर आप उनका नाम नहीं लेते, आप उन्हें स्वीकार नहीं करते, तो मै आपका आज्ञा चक्र खोल नहीं सकती| मुझे क्षमा करें पर ऐसा ही है| क्योंकि हिंदुओं के लिए यह स्वीकार करना बहुत कठिन है| और क्रिस्चियन लोगों को दूसरी बाज़ू स्वीकार करना कठिन है| देखो क्या आप उसे स्वीकार करते है या नहीं | यह सत्य है| आपके अपने स्वभाव के कारण, आपके सीमित ऊर्जा के कारण , आपके अहम् के कारण और आपका परमात्मा के प्रति बहुत संकीर्ण दृष्टिकोण के कारण, आप सत्य को स्वीकार नहीं करते, जो की बहुत विस्तृत और महान है| यह सत्य है और इसे देखना चाहिए | आज्ञा चक्र में उनका स्थान है | वे आपका अहंकार और प्रति अहंकार दोनों को नियंत्रित करते है | वो आपके अंदर बनी संस्थाओं को हटाते है | वो आपके दर्प और अहंकार को खत्म करते है | वो आपके अहंकार की देखभाल भी करते है | यदि आप किसी के आगे झुकते है जो आत्मसाक्षात्कारी नहीं है, जो सिर्फ अनाधिकार चेष्टा कर रहा हो, पूछ रहा हो ,और आप आसानी से नियंत्रित हो जाते है, आप पर वर्चस्व किया जा सकता है, तब आप हार जाते है और इस प्रकार आज्ञा चक्र बंद हो जाता है |

आज्ञा चक्र मनुष्य के ऑप्टिक थैलेमस के मध्य में होता है और बहुत महत्वपूर्ण है| वह एक बार खुलने पर बहुत आसान हो जाता है आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना | आप में से पचास प्रतिशत लोग जो आत्मसाक्षात्कारी है, जो जानते है कुण्डलिनी को कैसे संभालना, जिन्होंने कुण्डलिनी की महारत हासिल की है| तो मैं आपको क्या कह रही हूँ, मैं दोहरा रही हूँ| पर बहुत से नए लोग है इसलिए मुझे उन्हें इसके बारे में बताना है| जो आख़िरी और सबसे महत्वपूर्ण है, वह है लिम्बिक तंत्र जहाँ सहस्त्रार रहता है| हमारे मस्तिष्क में ९८२ तंत्रिकाएं है, और दूसरी ८ तंत्रिकाएं है | तो हम कह सकते है की कुल १००० तंत्रिकाएं है | डॉक्टरों से झगड़ने में कोई अर्थ नहीं क्योंकि वो पूरे समय आपसे झगड़ेंगे और कहेंगे ऐसा नहीं है | वे कभी आकर देखेंगे नहीं | क्योंकि हमने कैंसर ठीक किया है, हमने इतने सारे लोगो को ठीक किया है, वो लोग कभी आकर देखेंगे नहीं |

हमारे यहाँ बहुत सारे डॉक्टर्स है जो आत्मसाक्षात्कारी है, और वे यह मानते है की सिर्फ सहज योग से ही कैंसर ठीक हो सकता है| पर वे अभी भी ये मानने को तैयार नहीं होंगे क्योंकि अहंकार बहुत ज्यादा है| वे यह कैसे मान लेंगे क्योंकि उसी पर वे आधारित है| और अब उन्हें ये स्वीकार करना होगा | क्या वे क्राइस्ट को स्वीकार करेंगे? क्या वे गणेश को स्वीकार करेंगे? हे भगवान ! ये बहुत कठिन है वैज्ञानिको के लिए श्री गणेश को स्वीकार करना क्योंकि क्राइस्ट मानव अवतरण है श्री गणेश के| वे भौतिक रूप है शाश्वत बाल्यावस्था का |

सहस्त्रार में हमारे सातों चक्रों का एकीकरण है| जिन्हे हम सात पीठ कहते है, वे वहाँ स्थित है | और इस एकीकरण के कारण हमे सहस्त्रार पर कार्य करना है | सहस्त्रार को खोलने का कार्य १९७० में हुआ | जब मैंने देखा की कोई ये सात चक्र कैसे संभाल सकता है सहस्त्रार में | यहाँ रहती है श्री भगवती जो सात चक्रों को संभालती है, देखती है , इस प्रकार की इन सभी चक्रों के सारे मेल और संयोजन या जोड़ को सहस्त्रार पर कार्यान्वित कर सकते है | एक बार वह उस पर कार्य करे,तो वे आपको जागृति दे सकती है | और इस प्रकार हमे सात चक्र मिले है | इनके ऊपर ३ और निराकार रूप है, जहाँ तक आपको पहुँचना है | त्रिगुण, जो की मस्तिष्क, उसके ऊपर अर्धमात्रा, फिर बिंदु और फिर वलय| ऐसा वो कहते है | पर बात यह है की, यह सब जिसके बारे में मैं कह रही हूँ, यह आपके लिए महत्वपूर्ण नहीं होना चाहिए| क्योंकि ये सब आप किताबों में पढ़ सकते है | मैं यहाँ आपको किताबें देने नहीं आई हूँ | मैंने कोई किताबें लिखी भी नहीं है | और मुझे नहीं पता जो किताब मैं लिख रही हूँ, वह पूरी होगी या नहीं| क्योंकि एक बार आप किताब लिखते है, तो लोग उसमे इतने खो जाते है की वे सत्य को नहीं पूछते | तो आप अपने लिए पहले सत्य को देखिये | अब पूरी दुनिया में सहजयोगी है, जिन्होंने कुण्डलिनी को उठते हुए देखा है | जिन्होंने कुण्डलिनी में महारत हासिल की है | जो जानते है क्या हो रहा है | क्योंकि आत्मसाक्षात्कार के बाद आप उसे अपने उँगलियों पर महसूस करना शुरू कर देते है | आप अपनी चैतन्य लहरी को अपने अंदर आते महसूस करते है | केवल यह ही नहीं, पर यह हमारा सर्वशक्तिमान परमात्मा से संपर्क करता है| और आप अपने उँगलियों पर महसूस करना शुरू करते है, की दूसरों के साथ क्या तकलीफ़ है | जैसे की यदि आप अपने हाथ दूसरे मनुष्य के सामने रखते है और आपको यहाँ जलन होती है, तो आप जानते है की यह आज्ञा चक्र है | अब किसी व्यक्ति के लिए जो नया है, जो पहली बार आया है वह कहेगा की यह ऊँगली है | एक बच्चा भी बता सकता है | मेरी पोती है, वो जन्मा से ही आत्मसाक्षात्कारी है, वह भी ऐसे ही बता सकती है | वह मुझे बताती है , नानी यह है| अब उसे नाम भी पता है |

तो आपको अब संपर्क दे दिया है | वह आपको जलाता है, वह आपको बेचैन करता है | कभी आपको धड़कन महसूस होती है, कभी आपको लगता है की कुछ बह रहा है | इस तरह आपको पता चलता है | यह वह ज्ञान है जिसके लिए आपको स्कूल जाने की ज़रुरत नहीं | मै यहाँ हूँ इन सबको समझाने के लिए और आपको बताने के लिए, और फिर आप देखिये वह सही है या नहीं | आप बताये की ऐसा है या नहीं | केवल यह नहीं की आप दूसरे व्यक्ति को महसूस कर सकते है, पर उसके साथ आप उस व्यक्ति की कुण्डलिनी भी उठा सकते है | कुण्डलिनी उठाने से आप उसकी शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक परेशानियां भी ठीक कर सकते है | उन्हें आत्मसाक्षात्कार देने से आप उनकी आध्यात्मिक परेशानियां दूर कर सकते है, और इस तरह वे परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश कर सकते है जहाँ संपर्क है | यदि आप में से कोई भी कुछ प्रश्न पूछना चाहे तो या कुछ समझना चाहे तो श्री माता जी उसका उत्तर देने के लिए तैयार है |

प्रश्न :(सुनाई नहीं दिया )

उत्तर : आपका चित्त हल्का होना चाहिए, फ्री होना चाहिए | आपके आत्मसाक्षात्कार के समय जब कुण्डलिनी जागृत करते है, आपका पूरा चित्त अंदर लिया जाता है, और कुण्डलिनी उठते समय उसे अपने सिर पर बिठा-कर चित्त को सहस्त्रार से बाहर ले जाती है | इसलिए उस समय सबसे अच्छा है की अपने आप को ढीला छोड़ दे | सिर्फ नीचे बैठे, उसे देखे क्या हो रहा है, कुछ भी करने की जगह | यह एक निष्क्रिय क्रिया है जो आपकी सबसे अच्छी मदद करेगी| तो कोई भी मंत्र बोलने की आवश्यकता नहीं है | आत्मसाक्षात्कार के बाद आपको पता होना चाहिए, कौन सा मंत्र कहाँ बोलना है | उसके बारे में बड़ा विज्ञान है |

तो पूरा तंत्र जिसे आप कुण्डलिनी कहते है, वहां है | पर आपको पता होना चाहिए उसे कैसे नियंत्रित करना है या संभालना है | कौन सा मंत्र कहना है, क्या कहना है कौन से चक्र में कुछ कमी है, उसमें आपको निपुण होना है | और यहाँ दिल्ली में भी बहुत लोग है जो इसमें निपुण है | तो यह कठिन नहीं है, कोई भी इसमें निपुण हो सकता है | एक छोटी लड़की है प्रज्ञा, उसने भी कुण्डलिनी में निपुणता हासिल की है | वो कर सकती है तो आप लोग क्यों नहीं कर सकते? तो आपको सिर्फ पता होना चाहिए की कौन से चक्र ख़राब है, और आप उन्हें ठीक भी कर सकते है | अभी जो लोग आत्मसाक्षात्कारी नहीं है, आप लोग अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है | तो आप जायेंगे और उन लोगो से मिलेंगे डी -२८८ पंडारा रोड पर| वहां आप जाएं और वो आपको बताएँगे की आपको आगे क्या करना है | उसकी गहनता में जाइये और खुद को स्थापित कीजिये और कुण्डलिनी में निपुण होइए | यह सब गुह्य गुह्यतम है मैंने उन्हें बताया है, और आपको उसका पूरा ज्ञान मिलेगा |

प्रश्न : यह बहुत अच्छा प्रश्न है | वे पूछते है विश्वव्यापी चेतना क्यों? यह सब विचार है | यह सोया हुआ क्यों रखा है मनुष्यों में ?

उत्तर :अब विकास की उन्नति में एक छोटेअमीबा से आप मनुष्य के स्तर पर आए | मनुष्य के स्तर पर सब जोड़ होता है| याने जैसे अंडे का आवरण या ऊपरी कवर बनता है| अंडे को बनने के लिए उसका आवरण बनता है|

आप सीमित बनाए गए है| आपके अहंकार और प्रति अहंकार के बढ़ने से आपका ब्रह्मरंध्र बंद हो गया है| आपका टालू बंद हो गया है| और आपको आप पर छोड़ दिया गया है | मैं आपको एक उदाहरण दूंगी जिससे आपको समझ आएगा | जैसे की अगर मुझे यह माइक्रोफोन का उपयोग करना है, सबसे पहले यह और कही बनाया गया है, मैन्स से दूर | फिर वह लाकर मैन्स से लगाया गया | उसी प्रकार मनुष्य मैन्स से कट गया है | उसे अहम दे दिया गया उसको विकसित करने के लिए, उसे जानकार बनाने के लिए | इस प्रकार से की जब उसे मैन्स मिलेगा, वह संपर्क कर पाएगा | वो समझ पाएगा और उस विकास के लिए जोड़ बंदी होती है | उसी प्रकार जैसे एक अंडा उसके शैल में बनता है, उसकी सुरक्षा और विकास के लिए | फिर जब बच्चा तैयार हो जाता है शैल में, उसकी माँ उसे फोड़ देती है | यहाँ बिलकुल वैसे ही मैं ब्रह्मरन्द्र को खोलती हूँ | यह वैसा ही है |

प्रश्न : अब अध्यात्म के बारे में| अगर यह किताबों में पढ़ा जाए तो यह समझना कठिन होगा | पर कुण्डलिनी के जागरण से क्या होता है ? सबसे पहले, जब आप उस असीमित वस्तु में प्रवेश करते है, कुछ लोग बहुत जल्दी ऊपर उठते है, जेट के जैसी रफ़्तार से | पर कुछ लोग बहुत धीरे उठते है, और फिर हम उनकी उन्नति के पड़ाव देख सकते है | पहली बात जो आप में होती है, वह है की आप निर्विचार हो जाते है | पर आप जगरूत रहते है | पहली सीढ़ी होती है निर्विचार समाधी | निर्विचार समाधी याने आप विचारों को देखने लगते है | इसका अर्थ आप खुद से अलग हो जाते है | जैसे आप पानी में थे और फिर आप नाव में कूद गए | अब आप पानी के देखते है | याने आप अलग हो गए | ऐसा होता है लोगों के साथ जो धीरे धीरे उत्थान प्राप्त करते है | आप निर्विचारिता में जागृत रहते है | जिसे हठ योग में हम असाम्प्रग्यता समाधि कहते है | निश्चित ही उनके अनुसार यह बहुत ऊँची दशा है | पर आप निर्विचारिता में जागृत हो हो जाते है और आपके हाथों से चैतन्य बहने लगता है, जिससे आपको पता चलता है की कुछ बह रहा है | आप मुझसे ठंडी चैतन्य लहरी पाने लगते है | और आप दूसरे सहज योगियों से भी ठंडी चैतन्य लहरी पाने लगते है | और जब आप यह दूसरों को देते है, आप देखते है की वह बह रही है | यह हम कह सकते है की पहली बात होती है | याने आप दूसरे व्यक्ति के बारे में भी जान सकते है | आप सामूहिक रूप से जागृत हो जाते है| यह पहली सीढ़ी है |

दूसरी स्तर पर जहाँ आप पहुंचते है, वह है निर्विकल्प | याने वह स्थिति जहाँ आप डॉक्टर हो जाते है | फिर आप मुझसे प्रश्न नहीं पूछते | कुछ लोग है इस प्रकार के | तो उन्हें कोई प्रश्न नहीं है | उन्हें यह महसूस हुआ है | उन्हें यह पता है | मैं इसे दूसरे तरीके से कहूँगी | मानिये मैंने आपको हज़ार रुपये दिए | अब अगर आप उसे खर्च नहीं करते| अगर आप उन्हें खर्च नहीं करते तो आपको कैसे पता चलेगा की उनकी कीमत क्या है? आप कहेंगे आपने क्या दिया ? हज़ार? आपने क्या दिया? हमें सिर्फ चैतन्य दो | पर एक बार जब उसको आप उपयोग करना शुरू करते है, तो आप देखेंगे की आपके पास कितनी अथाह शक्ति है | और इस चैतन्य की शक्ति जिसे आप मामूली समझते है,कुछ लोग ऐसा सोचते है की इतनी आसानी से उपलब्ध है| वह आपको इतनी सहजता से मिला है, की आप उसकी कीमत नहीं समझते | पर जब आप उसे इस्तेमाल करने लगते है, तो आप जानते है की यह बहुत ज़बर्दस्त और ऊंची वस्तु है जो आपको मिली है | वह आपको परम आनंद देती है और वह ख़ुशी जो आपके अंदर बहती है | आप निर्विकल्प समाधी के स्तर पर पहुंच जाते है |

तीसरा स्तर मैं कहूँगी जब पूर्ण आत्मसाक्षात्कार स्थापित होता है | अब निर्विचार समाधी में, जैसे आप कह सकते है, मान लीजिये यहाँ न्यायाधीश बैठे है, तो फिर वे न्यायाधीश है| उनके कुछ शक्तियां है | उसी प्रकार जब आप निर्विचार समाधी तक पहुंच जाते है, तो आप कुछ शक्तियाँ पाते है, जिससे आप लोगों को जागृति दे सकते है | सिर्फ अपने हाथ हिलाइये और लोगों की कुण्डलिनी हिलेगी | यह आश्चर्य है, पर ऐसा होता है | आप हाथ हिला सकते है और आप कुण्डलिनी को महसूस कर सकते है | आप दूसरे लोगों की कुण्डलिनी को महसूस कर सकते है | आप दूसरे लोगों के चक्रों को महसूस कर सकते है | यह होता है, सिर्फ निर्विचार समाधि से | पर निर्विकल्प समाधी से आप उन्हें जागृति देना शुरू करते है | निस्संदेह आप दे सकते है | ऐसे ही | और उच्च आत्मसाक्षात्कार के साथ क्या होता है ? आप सिर्फ साक्षी बन जाते है | कोई परेशानी नहीं | आपको किसी की पकड़ नहीं होती | आप देखिये , सामान्यता क्या होता है ? जब कोई व्यक्ति आपके पास आता है, आप अपने स हाथ उसके सामने रखते है, और आप महसूस करते है, ओह यह व्यक्ति तो जल रहा है | आप पसंद नहीं करते क्योंकि आप देखते हैं की उस व्यक्ति के चक्र आपकी उँगलियों को जला रहे हैं | और आप जानते है की वे जल रहे है | फिर कभी कभी आपको पकड़ भी आती है | फिर आप उसमे शामिल हो जाते है |

पर बाद में जब आप पूर्ण रूप से आत्मसाक्षात्कारी हो जाते है , तो आप निर्लेप हो जाते है | आप किसी बात से प्रभावित नहीं होते| आप ऊँचे उठते है, जहाँ आप पूर्ण वैराग्य में होते है | आप सिर्फ बहते जाते है और साक्षी स्वरूप हो जाते है | पर इन अवस्थाओं के बाद, अवस्था आती है परमात्मा के साक्षात्कार की, जिसमे आप प्रकृति को नियंत्रित कर सकते है पूरी तरह से | कुछ लोग हठ योग से निस्संदेह प्रयत्न करते है प्रकृति को नियंत्रित करने का पर वह सिर्फ ऊपर नीचे है | हम शुरू करते है ऊपर से और नीचे जाते है | सबसे पहले हम दिव्य स्तर या देवी स्तर पर जाते है और फिर नीचे आते है | फिर उसमे स्थापित होते है | यदि हम प्रकृति को नियन्त्रिक करे, देखो क्या आप बारिश को नियंत्रित कर सकते है ?तो आप सूर्य को नियंत्रित कर सकते है | यह सब किया जा सकता है | पर यह सब देखिये आपकी रूचि कम हो जाएगी करने में | पर आप अपने आप यह कर सकते है |

जैसे की जब मै जा रही थी ऐसे एक महाराज से मिलने के लिए, और वो एक बहुत पहुंचे हुए व्यक्ति थे, महान आत्मा थे, और उन्हें ये हज़ार वर्षों की तपस्या से मिला था | वो वहाँ बैठे थे और बारिश आ रही थी और वे नहीं चाहते थे की मैं भीग जाऊ, इसलिए वो बरसात को नियंत्रित करना चाहते थे मुझे पता है वो बरसात को नियंत्रित कर सकते है पर बरसात आ ही रही थी | उन्हें नहीं पता चला क्या करें, और इसलिए खुद से परेशान हो गए | जब मै ऊपर गई वे बोले, क्या आप मेरा अहंकार ख़तम करना चाहती थी ?जिसके कारण आपने बारिश को रुकने नहीं दिया ? मैंने कहा ऐसा नहीं था| देखिये मै माँ हूँ | इसलिए उन्हें बहुत प्यार से बोला की मुझे पता है तुमने मेरे लिए एक साड़ी लाई है और अगर मै भीगती नहीं, तो तुम मुझे साड़ी नहीं दोगे | इसलिए मै बारिश चाहती थी | तो आप देखे की कैसे थोड़ा सा अहंकार जो था की मै बरसात को नियंत्रित कर सकता हूँ|

तो यह वो बात है जो अपने आप होती है | आप करना नहीं चाहते पर वो हो जाती है अपने आप | आपको इन बातों के लिए परेशान होने की आवश्यकता नहीं है | ये अपने आप होती है | आप जहाँ भी है, यह अपने आप होता है | यह वह स्थिति है जहाँ आप परमात्मा के साक्षात्कार की ओर बढ़ते है | जब आप परमात्मा के साक्षात्कार में होते है तो आप कही भी बैठे हो, यहाँ या कही भी, आप सब कुछ देख सकते है | आप लोगों को प्रभावित कर सकते है | आप लोगों की मदद कर सकते है | आप बहुत कुछ कर सकते है कही भी बैठे बैठे | आप हिमालय पर बैठ सकते है | ऐसे लोग है जो हिमालय पर बैठे है और आपकी मदद कर रहे है | तो वे ऐसा कर सकते है, और वो एक है | जैसे की इस व्यक्ति के बारे में मैंने आपको बताया, जो बहुत बड़े संत है, इन्होंने मेरे जन्म के समय देखा जो कुछ भी हुआ | वो मेरे पुराने जन्मों के बारे में जानते है हज़ारों वर्षों से | वो मुझे ज्यादा अच्छे से जानते है | एक और है जो मुझे देखने आये थे अमरनाथ से जो ३०० साल की आयु के है | वो भी इसी प्रकार के व्यक्ति है, और उन्होंने भी यही सब बातें कही थी |

पर उनका तरीका अलग है और आपका तरीका अलग है | आप लोग श्री गणेश के जैसे है, वो लोग नहीं | उन्हें अभी भी पकड़ आती है, आपको पता नहीं | इसीलिए वो ३०० साल के बूढ़े आदमी को पकड़ थी उनके शरीर पर | मैंने कहा आपने क्या किया नागनाथ बाबा ?आपको ये कैसे हुआ? उन्होंने कहा मुझे यह एक भयानक व्यक्ति से हुआ, उसने मुझे छुआ था | मैंने कहा आपको हुआ तो ठीक है, मैं इसे आपके लिए निकाल देती हूँ | फिर वे बोले, तो आपको क्या होगा ? मैंने कहा , मुझे नहीं होगा, मैं माँ हूँ | माँ को वह नहीं होता | माँ को बच्चों से कभी पकड़ नहीं आती | कुछ लोग है यहाँ जिनका कैंसर ठीक हुआ है | उन्होंने कभी किसी से कुछ पकड़ नहीं ली | तो आप देखिये, आपमें कही ज्यादा शक्ति है | क्योंकि आप लोग ऐसे है जो बहुत साधारण हो | आप श्री गणेश की तरह हो | क्योंकि श्री गणेश में बहुत ज्यादा शक्ति है किसी भी और देवता से | क्योंकि आप बहुत सीधे हो, अपनी माँ के प्रति बहुत समर्पित हो |

प्रश्न: हम इस संसार में रहते है, क्योंकि हमे परमात्मा के हाथ में उनका माध्यम बनना है| वे हमे अपना माध्यम बनाना चाहते है| आप देखिये हमे उनके हाथ में अच्छा माध्यम बनना है| उदाहरण के लिए, एक कलाकार के पास ब्रश रहता है | वो ब्रश वहाँ क्यों है ? उस कलाकार को उसे उपयोग करने के लिए| अब मैं आपको उसकी एक बहुत प्यारी कहानी बताउंगी| एक बार राधा जी बहुत जलती थी मुरली से जो श्री कृष्ण उनके होठों पर लगाए थे | तो उसने मुरली से पूछा आपकी क्या ख़ासियत है जो आप पूरे समय मेरे प्रभु के होठों के पास रहती हो ?तो उसने कहा की मेरी विशेषता यह है की मैं विशेष नहीं हूँ | मैं एक खाली व्यक्ति हो गई हूँ | इसलिए मेरे अंदर से सुर निकल सकते है | वो मुझे सिर्फ एक माध्यम की तरह इस्तेमाल करते है | और मैं उन लोगों पर हँसती हूँ, जो कहते है, तुम नौकर बन गई हो | मैं कहती हूँ, मैं केवल साक्षी बनकर देख रही हूँ| और अगर मैं कही भी बीच में खड़ी हो जाती हूँ, तो उनकी धुन ख़राब हो जाएगी | यही सिद्धांत है | और यदि आप यह सिद्धांत नहीं पाते तो यहाँ दुस्साहस या लापरवाही आती है| यह सब परेशानियाँ आती है |इस तरह, उस तरह | फिर आपके परसिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम पर तान आता है| फिर आप सोचते है हम कौन होते है करने वाले | हम कहाँ कूदने वाले है अब? इस शरीर का पूरा पेट्रोल खत्म हो जाता है | पर एक बार जब आप मैन्स पर खुल जाते है, वह आपके अंदर बहने लगता है, और आप पूरी तरह आराम में हो जाते हैं या निश्चिंत हो जाते है |

प्रश्न : (सुनाई नहीं दिया )

उत्तर : इसे सिर्फ १ सेकंड लगता हैं, यदि आप तैयार हो तो | हर साधारण मनुष्य के लिए, इसे सिर्फ १ सेकंड ही लगता है | फिर वह उठती है | उसे उठने में सिर्फ १ सेकंड ही लगता है | पर क्या होता है की कुण्डलिनी आपकी माँ है | तो मान लीजिये आपकी माँ आपको देखने के लिए आ रही है, और आप बीमार है | तो सबसे पहले वह क्या करेगी की, यह देखेगी की पहले आपकी बीमारी दूर हो जाए | फिर वह देखेगी की आप मानसिक रूप से दुखी है | तो वह आपकी मानसिक परेशानियों को दूर करेगी | फिर वह देखेगी की आप आध्यात्मिक रूप से गलत जगह स्थापित है | तो वह आपको ठीक करती है और अंततः वो आपको आशीर्वादित करती है | यदि कोई उस परम में हो ,यह मस्तिष्क जिसके पास अच्छी सेहत हैं , साधारण जीवन व्यतीत करता हैं, साधारण वैवाहिक जीवन जी रहा है, वह सबसे अच्छा साधक है | और ऐसे कुछ है जिन्हे बस ऐसे ही यह प्राप्त हुआ है |

पर कुछ लोग बीमार है | उन्हें कुछ परेशानियाँ है, क्योंकि वो जीवन की कुछ कठिन परिस्थितियों से गए है | उन्हें तकलीफ़ दी गई| उन्हें बहुत परेशान किया गया | उन्हें मानसिक परेशानियाँ है | तो माँ को उन्हें ठीक करना होता है | आप देखिये, आप यह नहीं कह सकते की यह वृक्ष कब अंकुरित होगा | वह अंकुरित होगा | क्या आप कह सकते है की इस इस दिन फूल आएँगे? क्या आप कह सकते है की इस दिन सब फल आएँगे? नहीं, आप नहीं कह सकते | जीवंत प्रक्रिया का कोई निश्चित समय नहीं होता | वह अपने आप कार्यान्वित होता है | वह आपके लिए अपने आप कार्य करता है | यही सहज है |

प्रश्न :(लंबा प्रश्न, सुनाई नहीं दिया)

उत्तर: सही | ऐसे किसी के लिए जो आत्मसाक्षात्कारी नहीं है, यह प्रश्न होना चाहिए | ऐसी बहुत से वस्तुएँ है आस पास | अब उसने २ प्रश्न पूछे है | पहला कष्ट का और दूसरा अति जनसंख्या का | तो पहले मैं पहले प्रश्न का उत्तर दूँगी | आप कहते है की कष्ट या दुःख बहुत है | मैं मानती हूँ की कष्ट या दुःख है, पर वह मनुष्यों की वजह से ही है | क्योंकि उन्होंने खुद के अंदर दिव्यता नहीं प्राप्त की | यदि उनमें दैवी शक्ति आती है तो वे किसी पर हावी नहीं होंगे | और किसी को अपने ऊपर हावी नहीं होने देंगे | वो अलग लोग होंगे | पर हम एक बात कह सकते है| लोगों के कष्ट काम कैसे हो सकते है जब आप जागृत होते है | देखो मैंने आपको बताया है की मनुष्यों में ७ चक्र होते है | जब वो जागृत होते है, तो क्या होता है आइए देखते है | सबसे पहले आपकी शारीरिक समस्याएँ दूर हो जाती है| आपकी सेहत सुधर जाती है | आप बहुत स्वस्थ जीवन जीते है और आपको आश्चर्य होगा की सहज योग में कोई भी ७० साल से पहले नहीं मरता | वह बहुत ही स्वस्थ जीवन जीता है सबसे पहले | शारीरिक जीवन के कष्ट समाप्त हो जाते है | सिर्फ यही नहीं की वो शारीरिक रूप से स्वस्थ जीवन जीता है, पर वह दूसरों का भी शारीरिक स्वास्थ ठीक करता है | वो दूसरों को शारीरिक रूप से स्वस्थ रखता है, बिना एक पैसा लिए | उससे जो चैतन्य बहता है , उससे वो दूसरों को ठीक करता है | और दूसरा व्यक्ति अच्छा हो जाता है |

अब जैसा मैंने आपको बताया की यहाँ लोग है जिन्होंने बहुत से लोगों को ठीक किया है, बिना एक पैसा लिए | क्योंकि यह प्रेम बह रहा है और वह आप खुद है | तो शारीरिक समस्याएँ ठीक हो गई | फिर दूसरी समस्या आपकी भावनात्मक समस्या है | व्यक्ति भावनात्मक पीड़ा से ग्रस्त होता है | वो भावनात्मक रूप से परेशान हो जाता है | कभी कभी वे धारणा करते है | वह उनके अचेतन मस्तिष्क से आती है| और कुछ परेशानियाँ भावनात्मक तरफ से भी आती है| अब आत्मसाक्षात्कार के बाद लोग साक्षी बन जाते है| याने भावनात्मक रूप से वे शामिल नहीं होते वस्तुओं में, और वो परेशान नहीं होते किसी बात से| मैं आपको उदाहरण दूंगी- मेरा एक पोता था | पहला पोता मेरे परिवार में जन्मा हुआ| वह बच्चा जन्मा था ऐसे हृदय के साथ जो की पूरा समय हमेशा पल्मोनरी था | उसमे clottage था जो ठीक नहीं किया जा सकता था| क्योंकि यह मूलभूत परेशानी थी और मुझे उसके विषय में मालूम था जब से उसका जन्म हुआ था पर मैं चुपचाप थी| पाँचवें दिन मैंने डॉक्टर को कहा आपको X -ray निकालना चाहिए| मैंने कहा आप लो| मैं उसे चुपचाप ले गई और डॉक्टर को दिखाया| उन्होंने देखा उसका हृदय बढ़ा था | अब जब मैं घर आई, मैंने अपनी बेटी को बताया नहीं | मैंने अपने पति को भी नहीं बताया जो दिल्ली से आने वाले थे | जब वो वापस आए , तो मैंने बहुत अच्छे से समझाया , उन्हें बताया | तुरंत ही वो बेहोश हो गए | वो बहुत स्वस्थ आदमी है मानसिक रूप से, बहुत संतुलित व्यक्ति है वो | पर वे बेहोश हो गए | हमने यह बच्चे के पिता को बताया| वो भी बेहोश हो गए | मेरी बेटी भी बेहोश हो गई | वो सहन नहीं कर पाए | मैं बच्चे को अस्पताल ले गई और उसे वहाँ भर्ती कर दिया | क्योंकि डॉक्टर ने कहा उन्हें दूसरी जांच करनी है | फिर हमे बच्चे को अमेरिका ले जाना पड़ा और मुझे पता था की बच्चा मरने वाला है | पर मुझे लगा ठीक है, अगर उन्हें लगता है उसे ले जाना चाहिए, तो मैं ले जाती हूँ | वे कोई ले नहीं जा पाए, मैं उसे वहाँ ले गई |

ये तथाकथित दुखी लोग बहुत ज्यादा कर रहे है, जिससे वो सभी का जीवन ख़राब कर रहे है | और खुद को भी दुखी बना रहे है | जिस तरह से हम हमारे दुःख के बारे में बोलते है, वो बहुत बढ़ा चढ़ा कर दिखाते है | मुझे नहीं पता क्या सच में वो इतने दुखी है, जिस तरह वो उसे बताते है | और वे उसके लिए कुछ नहीं कर सकते क्योंकि जब तक आप अपनी परेशानी से अलग होकर उसे नहीं देखेंगे, आप उसे कैसे सुलझा सकते है ?आप देखिये, आपको अलग होना होगा | जब तक आप डॉक्टर नहीं है, आप उसे ऑपरेट नहीं कर सकते | मानिये आप मरीज़ है, आप खुद को कैसे ऑपरेट करेंगे ?इसलिए आपके अंदर के डॉक्टर को अलग होना पड़ेगा | यही सहज योग करता है | क्योंकि आप ही मरीज़ है , और आप ही डॉक्टर है, इसलिए सब बात ज्यादा बढ़ गई है | यदि आप किसी डॉक्टर को देखे जो बहुत ज्यादा बीमार है, वो सबसे ख़राब मरीज़ होगा | मैंने देखा है की वास्तव में ऐसा है | इसलिए जो दुखी है , वो बहुत ज़्यादा दुखी हो जाते है, क्योंकि उन्हें नहीं पता की कैसे ठीक करना है | इस तरह भावनात्मक परेशानियां ठीक हो जाती है |

फिर दूसरी परेशानी है जो हम जूझते है पूरे समय, वो हमारे धर्म के बारे में | हमारे गौरव के बारे में | अपने गौरव को कैसे बनाए | अपना अस्तित्व कैसे बनाए | आध्यात्मिक परेशानी | और वो परेशानी भी सुलझ गई | निस्संदेह | क्योंकि आपके अंदर से चैतन्य बहते हुए आप देखते है | आप वास्तव में गतिशील या स्फूर्ति से भरे हुए व्यक्तित्व पा सकते है | अब आप जान गए है लक्ष्मी क्या है | ऐसा व्यक्ति भिकारी नहीं बन सकता | एक सहजयोगी भिकारी नहीं बन सकता | क्योंकि उसका लक्ष्मी तत्व जागृत है | उसकी देखभाल की जाती है | देखो, परमात्मा है जो आपकी देखभाल करते है | यह परमात्मा के खिलाफ पाप है की पूरा समय आप असुरक्षित है | जिसने आपको बनाया है, जो आपकी देखभाल करता है, वो आपकी देखभाल हर जगह करेंगे | पर आपको दूसरी ओर भागना है, आपको स्मगलिंग करना है, आपको सब प्रकार के काम करने है | आपको एक दूसरे का गला काटना है, और फिर आपको देखना है की आप खुश रहे | और फिर आपको उस पर निर्भर होना है | पर जो व्यक्ति आत्मसाक्षात्कारी है, वह बादशाह की तरह होता है | वह राजा है, वह हमेशा राजा होता है | वह परेशान नहीं होता | मैं आपको अपने बारे में बता सकती हूँ मुझे कभी महसूस नहीं हुआ की मुझे पैसों की कमी हैं या किसी चीज़ की कमी है | कभी नहीं | अगर आप मुझे बोले, तो मैं ज़मीन पर भी सो सकती हूँ | यद्यपि मेरा जन्म बहुत अमीर घराने में हुआ और मेरे पति भी बहुत अमीर है, पर अगर आप मुझे कहे, तो मैं कही भी रह सकती हूँ |

मैं खाने के बिना कई दिनों तक रह सकती हूँ | लोग पूरे समय खाने के बारे में ही बोलते रहते है|आप कितना खा सकते है? इतना ज्यादा खाने की कोई आवश्यकता नहीं है | इसलिए कुछ लोग गरीब है |कुछ लोग इतना ज्यादा खाते है, की कुछ लोग बहुत गरीब है| पर अपने आप आपका चित्त खाने पर से हट जाता है |आपको अपने आप मिल जाता है |अगर आपको मिल गया तो भी अच्छी बात हैं, और नहीं मिला तो कोई बात नहीं |आज सुबह मैंने नाश्ता नहीं किया फिर भी मुझे पता नहीं चला |क्योंकि यदि आपके शरीर में ताकत है, एनर्जी है, तो आपको ज़रुरत नहीं है |यह पहली बार है जब आपके अंदर पूर्ण ऊर्जा भरी हुई है| फिर आप चैतन्य देते है |

राहुरी में (महाराष्ट्र राज्य) में एक विश्वविद्यालय है, वहाँ उन्होंने प्रयोग किया है | पहली बार कृषि विश्वविद्यालय में उन्होंने प्रयोग किया | इस चैतन्य के साथ उन्होंने देखा की गेहू की पैदावार १० गुना ज़्यादा है | उन्होंने पाया की जो फल आए, वो बहुत सुन्दर थे | वो बहुत स्वादिष्ट और नरम थे | उन्होंने देखा, जब गाय को चैतन्य युक्त पानी दिया गया, भारतीय गाय ने ऑस्ट्रेलियन गाय की तरह दूध देना शुरू कर दिया | पर मैं आपके लिए गारंटी चेक नहीं लिख सकती | यहाँ एक बात है | तो सभी परेशानियाँ और दुःख खत्म हो जायेंगे |

अब अत्यधिक जनसंख्या की परेशानी के बारे में | ये बड़ा दिलचस्प है | मैं आपको बताती हूँ इसके बारे में | अत्यधिक जनसंख्या क्यों है | देखो, अनुकूल वातावरण है राक्षसों और भूतों के लिए, मनुष्यों के रूप में आने के लिए | एक बार यहाँ अनुकूल वातावरण चला जायेगा, तो सिर्फ संत लोग आएँगे और वो बहुत ज्यादा नहीं है | और उन्हें बहुत ज्यादा वस्तुओं की आवश्यकता नहीं होगी | मुझे लगता है, मनुष्य को बहुत ज्यादा आवश्यकताएं नहीं होती | बहुत कम से ही वह संतुष्ट हो जाता है | वह ज्यादा नहीं चाहता | वह बादशाह है | वह सिर्फ उसके मानसिक दृष्टि से भिखारी होता है | नहीं तो ऐसे हम बहुत अमीर लोग है |

और क्या ?

प्र.{सुनाई नहीं दे रहा }

उ. अब मैं कहूँगी, कि जो सचमुच बहुत भूखा है, वो परम को माँगेगा, पर जो नहीं, वे मुझसे प्रश्न पूछेंगे | जैसे मैंने कहा, मैंने आपके लिए खाना पकाया है | तो जो भूखे है वो कहेंगे, माँ हमे दो| हम बहुत भूखे है | बहुत हुआ, ये लोग हमारा समय ख़राब कर रहे है | यह बात है | और इसी के लिए आपको पूछना चाहिए , माँगना चाहिए, और वह आप पाएंगे |

New Delhi (India)

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