Public Program 2000-03-07
7 मार्च 2000
Public Program
पुणे (भारत)
Talk Language: Hindi, Marathi | Transcript (Hindi) - VERIFIED
Public Program, Pune, India 7 th March 2000
सत्य को खोजनेवाले सभी साधकों को हमारा प्रणाम !!
आज संसार भर में सत्य की खोज हो रही हैI क्योंकि लोग सोचते हैं जिस जीवन में वो उलझे हुए हैं, वो उलझन इसलिए है कारन वो सत्य को नहीं जानते। अपने देश में शायद ये भावना कम हो लेकिन और अनेक देशों मे ये भावना बहुत जबरदस्त है और अपने देश में भी होनी चाहिए I अब हम रोज अख़बार पढ़ते हैं तो यही सुनते हैं की इतने यहाँ लोग गुंडागर्दी कर रहे हैं, कोई है चोरी चकारी कर रहे हैं और हर तरह के गलत सलत काम कर के जीना चाहते हैं .भ्रष्टाचार हो रहा है। ये भी बहुत सुना जाता है। इतना पहले नहीं था। उसका कारन ये है कि मनुष्य पथभ्रष्ट हो गया वो जानता नहीं उसे कहाँ जाना है। उसे जो ये शरीर मिला, उसकी ये जो बुद्धि मिली, ये सब किस चीज़ के लिए मिली है? यही वो नहीं जानता है,इसलिए इसी शरीर से वो अनेक विध गलत काम करता है। इस गलती को ठीक करने का अपने अंदर कोई न कोई तो अंदाज़ होगा ही, न कोई न कोई व्यवस्था होगी ही क्यों कि जिस परमात्मा ने हमें बनाया है वो हमें ऐसे गलत रास्ते पर फेंकने वाले नहीं। कुछ न कुछ उन्होंने व्यवस्था ज़रूर करी है की जिस से हम सही रस्ते पर चलें। अब लोग कहेंगे कि सही रास्ते पर चलना क्या जरुरी है। गर आप सही रस्ते पर नहीं चलते हैं तो सबसे बड़े नुकसान तो आपका ही होगा, और समाज का होता ही है। पर आपका सबसे बड़ा नुकसान ये होता है कि आपने अपना स्वाभिमान खो दिया, अपनी प्रतिष्ठा खो दी और आपमें एक लज्जा का जो भी अंश था वो भी खत्म हो गया। यह मनुष्यता का लक्षण तो नहीं है पर ऐसी बातें तो सभी बताते हैं| इसमें कोई नवींन बात नहीं और रोज ही पढ़ पढ़ के जी घबराता है कि क्या हो रहा है। इतनी अनैतिकता तो कभी सुनाई नहीं दी। लोग इतने अनैतिक हो गए! आपके बच्चे अनैतिक हो गए आपके बच्चों के व्यवहार अनैतिक हो गए। अब तो हमें संभलना चाहिए और सोचना चाहिए कि परमात्मा ने हमें संसार में इतनी स्वतंत्रता क्यों दी है? ये स्वतंत्रता इसलिए मिली, आप समझ लीजिए, कि हम अब स्वयं ही प्रबुद्ध हो जाएं। हम अपने को प्रगल्भ बनाएं। हमारे अंदर एक नई जागृति हो जाए। उन्होंने हमारे अंदर ये व्यवस्था की हुई है कि हमारे त्रिकोणकार अस्थि में जो कुंडलिनी नाम की शक्ति है, अपने देश में तो अनादि काल से इस पर बातचीत हुई है, उसको जागृत कर दें। उसकी जागृत अवस्था में हम अपने आप ही एक विशेष व्यक्तित्व के आदमी हो जाते हैं। अपने आप। यह आपकी अपनी शक्ति है जो आपकी उत्क्रांती या इवोल्यूशन को मदद करती है। जब उसकी उत्क्रांती हो जाती है तो मनुष्य एकदम बदल जाता है, परिवर्तन हो जाता है। सोच लीजिए, कि आजकाल के राजकारणी, और आजकाल के राज्यकर्ते अगर परिवर्तित हो जाएं तो हम लोगों के तो नसीब ही खुल जाए। कोई भी गलत काम होगा ही नहीं, कोई भी तकलीफ होगी ही नहीं और सब चीज सुंदर हो जाएगी। यानी यहां तक कि जब ये शक्ति आपके अंदर से दौड़ने लगती है, तो आप इतने सक्षम हो जाते हैं कि आप की खेती बाड़ी ठीक हो जाती है, आपका घर बार ठीक हो जाता है, आपके संबंध रिश्तेदारी ठीक हो जाती है, सब जगह एक प्रेम का अत्यंत सुंदर अनुभव आता है। जो सबसे बड़ी आजकल एक हमारे सामने समस्या है कि लोग सत्ता के पीछे दौड़ते हैं। किसी तरह से सत्ता मिलनी चाहिए, पर जिसकी अपने हीं ऊपर सत्ता नहीं उसको सत्ता मिलने से फायदा क्या? अपने ही अंदर सत्ता नहीं कर सकते अपने ही को रोक नहीं सकते तो आप सत्ता को पाकर के सबका सर्वनाश ही करेंगे। उस सत्ता को प्राप्त करने के लिए आप में आत्म दर्शन होना जरूरी है। अब ये कहा गया है कि हमारे अंदर आत्मा है और इस आत्मा का दर्शन करना चाहिए और हमें आत्मसाक्षात्कार होना चाहिए। ये सब लिखा हुआ है और आपका शरीर, मन, बुद्धि, अहंकार आदि ये सब चीजें हैं इसको किस तरह से आशीर्वादित करना चाहिए, उसका पूरा इलाज हमारे अंदर हमारे परमात्मा ने कर दिया है। इतना सुंदर इंतजाम आपके अंदर हुआ है, वो आप नहीं जानते। गर आप जान लें कि आपके अंदर कितनी बड़ी सृष्टि उन्होंने बनाई है तो आप हैरान हो जाएंगे.
और जब ये कुंडलिनी का जागरण होता है तो उसके लिए आप पैसे वैसे नहीं दे सकते, वो तो एक सृजनात्मक चीज है जैसे एक बीज अंकुरित होता है तो आप किसी को पैसा देते हैं क्या? जमींन को पैसे देते हैं क्या? या बीज को पैसे देते हैं? वो तो अपने आप अंकुरित होता है। उसी प्रकार ये जिवंत शक्ति जो है ये अपने आप अंकुरित होती है किंतु जैसे कि एक दीप जो जला हुआ और वही दूसरे को चेतित कर सकता है इसी प्रकार आपके अंदर बसी हुई सुक्षिप्त शक्ति को वही चेतित कर सकता है जिसकी जागृत हो गई हो लेकिन उस में लेना ना देना! न तो उसकी शक्ति नष्ट होएगी और न तो उसको कोई क्षति होगी, कहते हैं कुंडलिनी जागरण में बहुत क्षतियां होती हैं। मैंने तो , आज तक 30 साल से ये काम कर रही हूँ, मैंने तो देखा नहीं किसी को कोई तकलीफ हुई हो, कोई परेशानी हुई हो । कुछ भी नहीं । तब से ये समझ लेना चाहिए कि हमने अपने को पहचाना नहीं है कि हमारे अंदर ये शक्ति है। समझ लीजिए गर किसी आदमी से कह दीजिए कि उसके पास इतना धन छुपा हुआ है तो वह कूदने लगेगा पर मैं कहती हूं किये शक्ति आपके अंदर विराजमान है और उसकी, प्रचिती उसका अनुभव ,आपको आज ही होने वाला है अभी! आपके अंदर जो सूक्ष्म चक्र हैं जो कि हमारे शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक क्रियाकलापों को संभालते हैं, उन सब चक्रों को ये पूरी तरह से जागृत कर देती है और उनको समग्र कर देती है। माने जैसे एक हार में मोती पिरोये जाते हैं उस तरह से उसके सूत्र के अनुसार ये कुंडलिनी सब को एक सूत्र में पिरो देती है। जब ये पिरो देती है तो उसके लिए किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं। आपको पता होता है। आपकी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तीनों चीजें ठीक हो जाती हैं और चौथी जो शक्ति है जिसको की हम आध्यात्मिक कहते हैं, आप अध्यात्म में आ जाते हैं। माने आपकी आत्मा जो है वो आपके चित्त में प्रकाशित होती है। आपका चित्त प्रकाशित होता है और जहां जहां ये चित्त जाता है, ये कार्यान्वित होता है। इतनी सारी शक्तियां आपके अंदर होते हुए भी, आप उससे गर अनभिज्ञ रहे, उससे गर आप दूर रहे, तो इसमें परमात्मा का दोष तो नहीं मानना चाहिए। लेकिन हमारा अंधकार और हमारे बुद्धि की जो कहना चाहिए, अतिक्रमण, जो कि अतिशयता में ये बुद्धि धीरे-धीरे कुबुद्धि हो जाती है। इसकी सुबुद्धि भी इसी कुंडलिनी के जागरण से होती है। उसका कारण ये है कि कुंडलिनी जब जगती है, तो वो जा करके आपके ब्रह्मरंध्र को छेदती है और चारों तरफ फैली हुई इस परमात्मा की प्रेम शक्ति, इसे परम चैतन्य भी कहते हैं, उससे एकाकारिता स्थापित करती है। उससे आपका संबंध उस परम शक्ति से हो जाता है जिससे सारी सृष्टि की चालना होती है। आइंस्टीन ने इसे कहा हुआ है कि ये टोरशन एरिया है। जब उससे संबंध होता है तो उससे केवल सत्य ही मानते हैं। उस सत्य को कोई कह नहीं सकता कि ये गलत है या सही! हां कभी-कभी गलती ऐसी हो जाती है कि आप सबके स्पंद देखते नहीं , ये देखते नहीं कि ये आदमी कैसा है? क्या है? तब जरूर गड़बड़ हो सकती है पर गर आप देख ले तो आप समझ जायेंगें कि ये आदमी कैसा है? हर एक चीज का सत्य, सूक्ष्म आप जान लेंगे और उसी सत्य में आप विभोर रहेंगे। हम विश्वास से कह सकते कि सत्य और प्रेम एक है। प्रेम जिससे होता है, आप उसके बारे में सब जानते हैं, पर ये तो मै उस सत्य की बात कर रही हूं जो सारे सृष्टि में विचरण करता है, लेकिन उसमे शक्ति जो है सत्य में, वो प्यार की, प्रेम की है। सोचिए कि आप उस प्यार से, उस प्रेम से पूरी तरह से आच्छादित हैं लेकिन अभी अछूते हैं, क्योंकि आप अपने को अलग समझते हैं।
अब ये चीज होने वाली है, ये घटना घटित होने वाली है। (मराठी)।