Public Program

Public Program 1983-03-28

Location
Talk duration
26'
Category
Public Program
Spoken Language
English, Hindi

Current language: Hindi, list all talks in: Hindi

The post is also available in: English, Spanish.

28 मार्च 1983

Public Program

New Delhi (भारत)

Talk Language: English, Hindi | Transcript (Hindi) - Reviewed

सहज योग जो है, यह अंतर विद्या है, अंदर की विद्या है. यह जड़ों की विद्या है, इसलिए आँख खोलने की ज़रुरत नहीं। आँख बंद रखिये। अंदर में घटना घटित होती है, बाह्य में कुछ नहीं होता, अंदर में होता है।

अब इसी को, इस हाथ को आप ऊपर हृदय पर रख के कहें कि , ''मैं स्वयं आत्मा हूँ'। आप परमात्मा के अंश हैं। आप ही के अंदर उसकी रूह जो है, वह प्रकाशित होती है। इसलिए कहिये कि ''मैं आत्मा हूँ'। बारह मर्तबा कहिये क्योंकि हृदय के चक्र पे बारह कलियाँ हैं।

जिनको हार्ट अटैक आदि आता है, उनके उनके लिए यही मंत्र है कि 'मैं आत्मा हूँ'।

आत्मा जो है, निर्दोष है । उसमे कोई दोष नहीं हो सकता. निर्दोष है। अधिक तर लोग आदमी को जीतने के लिए ऐसे कहते हैं कि 'तुम ऐसे खराब हो, 'तुमने यह पाप किया, तुम फलाने हो, तुम किसी काम के नहीं हो और तुम को परमात्मा माफ़ नहीं करेंगे और तुम बड़े दोषी हो और तुम मानो के तुम दोषी हो'।

उलटे हम कहते हैं 'आपने कोई दोष नहीं किया। आप परमात्मा के बनाये हैं. परमात्मा के आगे, उनकी रहमत के आगे, उनकी अनुकम्पा के आप कोई दोष नहीं कर सकते क्योंकि उनकी अनुकम्पा एक बड़े भIरी दरिया जैसी है।' वह सब कुछ धो डाल सकती है।

इसलिए इस हाथ को फिर से ऊपर उठा कर के अपनी लेफ्ट साइड में विशुद्धि में रखें और कहें कि 'माँ, मैं दोषी नहीं हूँ। मैं निर्दोष हूँ, मैं आत्मा हूँ। मैं निर्दोष हूँ। ' पूर्ण विश्वास से कहें। आप निर्दोष हैं। वास्तविक। गर आप दोषी होते तो इंसान कभी नहीं बनाये जाते। इंसान जो है, बहुत बड़ी चीज़ है। और एक विशेष चीज़ है जिसे परमात्मा ने पूरी स्वतंत्रता दे दी है। पूरी आज़ादी दे दी है कि वो तय करले अच्छा और बुरा रास्ता कौन सा है। गर वो ऐसा न होता, तो ऐसी आज़ादी कभी नहीं पाता।

इसलिए कहिये कि 'माँ, मैं निर्दोष हूँ। ' क्योंकि परमात्मा प्रेम के, करुणा के, क्षमा के सागर हैं। हम कहते तो हैं कि परवर्दीगार, कहते हैं कि रहीम - लेकिन सिर्फ कहते हैं, विश्वास नहीं है। पूर्ण विश्वास से कहें 'तुम वाकई मैं सागर हो उस रहमत के, उस कम्पैशन के'।

सोलह मर्तबा कहिये क्योंकि शहर के लोगों को ज़रा ज़्यादा ही आदत होती है अपने को भला बुरा कहने की। आप परमात्मा के मंदिर, मस्जिद सब आप हैं। और इसके अंदर गर उनकी रोशनी आने वाली है तो आप किस प्रकार दोषी हो सकते हैं। रोशनी नहीं है, अंधकार है , अज्ञान है। लेकिन यह दोष तो नहीं। अज्ञान में अगर कोई गलती हो जाए, तो दोष नहीं होता। गर बचपने में कोई आदमी गलती कर दे, तो वह कोई दोष नहीं होता। सोलह मर्तबा कहिये। Please say 16 times, Mother, I am not guilty’ because you are the spirit and spirit cannot commit anything that is so-called guilt.

अब ये हाथ माथे पे रखिये. आड़ा यही हाथ माथे पे रखिये और कहें 'माँ, हम ने सबको माफ़ कर दिया, क्षमा कर दिया '। क्योंकि किस से नाराज़ होएं ? जब आप जानेंगे, कि उस विराट, उस अकबर के शरीर के अंदर एक आप जागृत आत्मा हैं, तो उस शरीर के किस हिस्से से आप नाराज़ रह सकते हैं?

इसलिए कहिये 'माँ, मैंने सब को क्षमा कर दिया' . पूरे दिल से कहिये, पूरे विश्वास से क्योंकि गर हम दूसरों को माफ़ नहीं कर सकते, तो भगवIन भी हम को माफ़ नहीं करेगा। हमारी हज़ारों गलतियां जो माफ़ कर देता है, तो हमें चाहिए की दूसरों की गलतियां माफ़ कर दें। और नहीं करते तो आप करते क्या हैं, अपने को तो दुःख दे रहे हैं। आप को ही तकलीफ दे रहे हैं। सर दर्द है बिलकुल माफ़ न करना। बार बार कहिये, 'माँ, हमने सबको माफ़ कर दिया'। बहुत ज़ोरो में आ रहा है पकड़।

अब इसी हाथ को सर पे रखें, अपने सहस्रार, बीचों बीच, गोल घुमाएं और कहें सहस्रार पे रख के, 'माँ, हमें आत्म साक्षात्कार चाहिए। हम पीर होना चाहते हैं। हम परमात्मा के बन्दे होना चाहते हैं। हम पार होना चाहते हैं। हम संत होना चाहते हैं।'

क्योंकि आपकी स्वतंत्रता जो है, आज़ादी है, उससे मैं आगे नहीं चल सकती, इसलिए आपको मांगना होगा। कहें। आपकी स्वतंत्रता में ही आप जान सकते हैं।

अब इस हाथ को ऊपर उठायेंऔर देखें कुछ ठंडक सी आ रही है, सर में से ? सर में से ठंडक सी आएगी पहले। गर टोपी वगैरह पहनी है, तो उतार लें क्यूंकि हम तो माँ हैं, माँ के आगे क्या टोपी पहननी? कोई गुरु हो तो ठीक है, पर माँ के आगे कोई टोपी पहनने की बात ही नहीं होती। दुसरे हाथ को उठा के देखें अब। एक हाथ हमारी ओर करें- राइट हैंड और लेफ्ट हैंड से देखें ठंडक आ रही है क्या? हाथ बदल बदल के देखें।

अब दोनों हाथ ऊपर उठा के पूछें, 'क्या ये ब्रह्मा शक्ति है जो चारों तरफ कार्यान्वित है? क्या यही वो जीवंत शक्ति है, जीवंत परमात्मा की? यही वो रूह है?' हूँ, अब देखिये हाथ मैं ठंडक सी आ रही है। आँख बंद कर लें। देखिये, हाथ मैं ठंडी, ठंडी, शीतल चैतन्य की लहरियां आने लग जाएंगी।

हरेक धर्म शास्त्र में इस के बारे में अलग अलग तरह से बताया गया है। उसकी सूझ बूझ अलग हैं जिससे सब तरह से इसका वर्णन हो जाए। लेकिन इसका पहचानना जो है, वह सिर्फ इसके बोध से, या इसके महसूस करने से नहीं होता है। इसके कार्य से देखिये। यह क्या काम करती है। इसके करिश्मे को देखिये. तब आप जानिएगा।

हाथ नीचे कर के, मेरी ओर रखिये दोनों,और देखिये। जिसकी वजह से सारी सृष्टि की जितनी भी जीवंत क्रियाएं हैं, जैसे की फूल से फल होना, एक आम में आम लग जाना, जिस तरफ के माता पिता हैं, उस तरह से बच्चों का पैदा होना आदि अनेक तरह की जितनी भी आश्चर्य जनक, जीवंत क्रियाएं हैं, सब इसी की शक्ति के द्वारा होती हैं।

वही शक्ति आपके अंदर से बह रही है। उसे जानिए , उसको महसूस करें। उसका बोध करें। जब बोध होता है, तभी आप बुद्ध होते हैं। जब तक बोध नहीं होता है, तब तक आप बुद्ध नहीं होते हैं, तब तक आप सुजान नहीं हुए, सुजान। बड़ा सुन्दर शब्द - सुजान। आप ज्ञानी नहीं हुए। यही ज्ञान है। बुद्धि से किसी चीज़ को जानना, ज्ञान नहीं है। वो तो कांसेप्ट हुआ फिर। लेकिन हृदय से, अपनी आत्मा से किसी चीज़ को जानना, जो की सेंट्रल नर्वस सिस्टीम में, आपकी मज्जा संस्थाओं में जाना जाता है और इसके बाद इसकी खोज कि ‘क्या चीज़ मिल गयी’। बड़ी शीतल शीतल सी लेहरी हाथ में आती है।

जब हमारा जन्मदिन २१ मार्च को माना गया, जो फोटो आये हैं, उसमें मेरे पांवों और मेरे हाथ, दोनों जैसे बर्फ से बने हो, ऐसे सफ़ेद। इसकी वजह यह है कि जब चैतन्य बहुत बहता है, तो सारा शरीर जैसे कोई बर्फ पिघल रहा हो, ऐसे बहने लग जाता है. गर कोई हिमालय हो, और उस पर कोई गर्मी पहुंचा दे, और गर महसूस कर सके, तो देखिएगा कि उसके अंदर से जो उसकी शक्ति है, वो प्रवाह बनके बह रही है। लेकिन हिमालय ही तो जान सकता है, ना? बाह्य से तो कौन जानेगा? इसी प्रकार से जब आप से यह चीज़ बहने लग जाएगी, आप जानिएगा बह रही है।

देखिये मेरी ओर, आप निर्विचार हैं। विचार कोई नहीं आ रहा है। सबसे पहली स्थिति आती है जब निर्विचार हो जाता है आदमी, लेकिन आप जागृत हैं, पूर्णतया जागृत हैं, और आप निर्विचार हैं। कोई भी दिमाग में हलचल नहीं है। शांत - यह पहली दशा है। जब कुण्डलिनी पूरी तरह से बाहर निकल आएगी, तो ऐसा लगेगा की उभर के ऐसे पूरी बहती चली आ रही है। और उसके साथ ही साथ आप जानते हैं, शारीरिक, मानसिक आदि व्याधियां सब दूर हो जाती हैं। सब जैसे माने सब धो डालती है। इस चैतन्य को जानना, समझना, उसकी सारी क्रिया प्रक्रिया को जानना समझना बहुत सुख कारी हैं।

मैंने आपसे पहले भी बताया था, कि कश्मीर में एक बार ऐसे जाते जाते, एकदम मुझे ऐसे लगा कि कहाँ पहुँच गए। मैंने ड्राइवर से पूछा, 'भई, कहाँ हैं?' उनने कहा, 'कहाँ, यहाँ तो वीरान है। ' 'वीरान कैसे? यहाँ कोई मंदिर है, देखो तो सही ' ज़रा घूम फिर के गए, मैंने कहा, 'चलो तो आगे, पूछो'. कहने लगे 'यह तो मुसलमान हैं. मैंने कहा 'मुसलमान क्या मतलब, पूछो तो सही' . कहने लगे, 'एक हैं यहाँ, हज़रत इक़बाल' . आ, मैंने कहा नाम लेने से आप ही देख लीजिये। हज़रत इक़बाल, एक बाल - बाप रे, एक बाल में इतना चैतन्य? पांच मील की दूरी से पकड़ लिया।

पर आप में गर वो संवेदना ही नहीं है, तो कौन हज़रत इक़बाल और कौन मुहम्मद साहब, और कौन बुद्ध, और कौन ईसा और कौन हम? सब एक ही जैसे हैं। उनका कोई अर्थ ही नहीं लगता। इसकी संवेदना पहले बढ़ानी चाहिए, तब आगे की बात कहनी चाहिए।

आज वेणुगोपालन साहब ने और वारेन साहब ने बहुत बड़ी बड़ी बातें कह दीं, उस से घबराने की कोई बात नहीं। बिलकुल सही हैं, सब बातें। सिर्फ आप धीमे धीमे इस में चढ़िए, नम्रता पूर्वक। अपने दिमाग से इसको आप नहीं समझ पाएंगे। अपनी आत्मा से ही आप समझ पाएंगे। अब इस पे आप सोच विचार मत करिये। शांति पूर्वक सो जाएं। कोई सोच विचार से होने नहीं वाला। अब वह क्रिया शुरू हो गयी है। इसे हम कहते हैं कुण्डलिनी का जागरण या आपके अंदर जो अंकुर है, वह जाग उठा। अब इसे बढ़ने दीजिये, इसे वृक्ष होने दीजिये, तब आप देखिये आप क्या चीज़ हैं। आप कितनी बड़ी चीज़ हैं। जिसने बनाया है, बहुत सोच समझ के बनाया है। आलिशान बनाया है। उसको देखिये, जानिये और उसके आनंद में रहिये।

परमात्मा आप सबको सुखी रखें।

New Delhi (India)

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