The Vishuddhi Chakra

The Vishuddhi Chakra 1983-02-02

Location
Talk duration
109'
Category
Public Program
Spoken Language
English, Hindi

Current language: Hindi, list all talks in: Hindi

The post is also available in: English, French, Bulgarian, Italian, Portuguese, Albanian, Marathi.

2 फ़रवरी 1983

Public Program

New Delhi (भारत)

Talk Language: English, Hindi | Transcript (Hindi) - Draft

19830202 TALK ABOUT Vishuddhi, DELHI

[Hindi transcript Q&A]

सवाल - माताजी, क्या पितरों के श्राद्ध करने चाहिये ? उनके चित्र रखने चाहिये ?

श्रीमाताजी - इन्होंने सवाल किया है क्या पितरों के श्राद्ध करने चाहिये? पितरों के फोटोग्राफ्स रखने चाहिये ? जब उनकी तेरहवी होती है तब तो करने ही चाहिये उनके श्राद्ध। और श्राद्ध भी डिस्क्रिशन्स की बात आ 'गयी फिर से। अगर समझ लीजिये कि आपके सहजयोग में आपने देखा कि आपका राइट हार्ट पकड़ रहा है। याने आपके पिता जो है, जो मर गये हैं, वो अभी भी संतुष्ट नहीं तो श्राद्ध करना चाहिये। इसमें कोई हर्ज नहीं। पर सहजयोग स्टाइल से श्राद्ध करना चाहिये। न कि एक ब्राह्मण को बुलाओ और उसको खाने को दो।

एक बार लखनो में हमें पता हुआ कि हमारे जो पूर्वज थे उनका श्राद्ध नहीं हो पाया। तो हमने कहा हम श्राद्ध करेंगे। तो उन्होंने कहा कि, 'तुम्हारा श्राद्ध का क्या विधि है ?' हमने कहा, 'हमारा तो ये है कि हम खाना बनाते हैं और सब को खिलायेंगे खाना। बस यही हमारा श्राद्ध है।' तो हमारी सिस्टर इन लॉ बेचारी ट्रेंडिशनल थी। उन्होंने 'कहा कि, 'यहाँ श्राद्ध ऐसा होता है कि पाँच ब्राह्मण बुलाओ।' मैंने कहा, 'पाँच क्‍या, यहाँ तो एक भी ब्राह्मण दिखायी नहीं दे रहा है।' उन्होंने कहा, 'नहीं, अपने पाँच ब्राह्मण हैं। वो आएंगे और उनका श्राद्ध करेंगे।' मैंने कहा, “चलो, बुलाईये।' फिर पाँच ब्राह्मण आयें। वो तो बिल्कुल पार नहीं थे न ब्राह्मण थे। पाँच आदमी आ के बैठ गये। मैंने सोचा, देखिये तो सही क्‍या होता है! पूछा, 'कैसे श्राद्ध करें ?' कहने लगे, 'कुछ नहीं पाँच पाँच किलो आप 'कलाकंद मंगवाईये।' मैंने कहा, 'अच्छा भाई, ये बहुत आसान है।' उस जमाने में कलाकंद आता था कोई दस रुपये किलो या पाँच रुपये किलो, ऐसा होता था। पच्चीस पच्चीस रुपया काफ़ी होता था। मेरे हज़बंड तो सरकारी नौकर थे। कहा, “चलो, श्राद्ध भी करना है। हमारी ननदरानी है उनको भी खुश करना है। चलो, भाई ले आओ।' तो हम, सब के लिये ले आये। पच्चीस किलो। और पाँच ब्राह्मणों को दिया, जो वो आये थे। मैंने सोचा, ये घर बाँध के ले जाएंगे। उन्होंने वही द्रोणें खोले। न बच्चों का सोचा न किस का सोचा खाना शुरू कर दिया और सब खा गये। पाँच पाँच किलो। मैं तो देखती रह गयी। मैंने कहा, भाई वाह! तो हमारी ननदरानी बड़ी खुश हो गयी। हमारे पितर जो हैं खुश हो जाएंगे। ब्राह्मणों को कलाकंद खिला दिया। मैंने कहा, 'जिजी, क्या वो कलाकंद खाते भी थे। और पाँच किलो इनमें से कोई खाने वाला नहीं होगा, जो ये लोग खाते हैं।' तो उन्होंने कहा, 'आप क्या कह रहे हैं ? हम तो आज यहाँ पाँच किलो खाये हैं। कल जा के और जगह खाएंगे पाँच किलो। हमारे लिये पाँच किलो क्या चीज़ होती है!' मैंने कहा, 'मान गये आपको! आप असली ब्राह्मण हैं। मुझे माफ़ करिये। हो गया आपका हिसाब 'किताब।' कहने लगे, 'हाँ, ठीक हो गया। हम तो पाँच किलो से कभी कम खाते ही नहीं। आप क्या बात कर रहे हैं!' मैंने कहा, 'सॉरी! आप जाईये।' इस तरह के श्राद्ध नहीं करने चाहिये। श्राद्ध का भी एक तरीका होता है।

दूसरा एक और किस्सा है। सहजयोगी एक थे। वो ब्राह्मण हैं। सहजयोग में आ कर के असली ब्राह्मण हो गये। महाराष्ट्र के ब्राह्मण जब हो जाते हैं पार तो वो कहते हैं, अच्छा ये ब्राह्मणों को अब ठीक करना है। जैसे अगर कोई फहमारे पास ईसाई आता है, तो वो जब देखता हे कि सहजयोगी है तो सभी ईसाईयों के पीछे लग जाते हैं कि तुम को ठीक करना है। कोई अगर सरदारजी आता है। हर समय उसे लगता है कि सरदारजी को ठीक करो। मैं ठीक हो गया। बाकी के भी...। सही बात है। वाकई आपको उनके लिये फीलिंग है तो आप चाहेंगे कि सब सरदारजी ठीक हो जाये। तो इसी प्रकार होता है। एक ब्राह्मण हमारे यहाँ थे, वो ब्राह्मण हो गये। अब वो ब्राह्मणों के पीछे पड़ गये। उनकी माँ ने कहा, ये तुम्हारे पिताजी का श्राद्ध है, तो तुम जा के एक ब्राह्मण को बुला लाओ। तो कहा "मैं नहीं जाता किसी को बुलाने। कोई ब्राह्मण नहीं।' कहा, 'भाई, खानदानी ब्राह्मण है।' यहाँ खानदानी होते हैं। जेसे नाई होते है खानदानी। चूड़ीहारनी होती हे... वैसे ब्राह्मण भी खानदानी होते हैं। “वो खानदानी है। उसको बुला के _लाओ।' ये गये उसके पास। उससे कहा, 'भाई, देखो। हमें तो श्राद्ध कराने को माँ ने कहा है। हम तो विश्वास नहीं करते, पर माँ ने कहा हे तो करा देते हैं। तुम आओ श्राद्ध में।' उसने कहा, 'अच्छा, ठीक है। आप ऐसा करो, कि गुरुवार को रखो श्राद्ध का दिन।' कहा कि 'क्या मंगलवार को ठीक नहीं है ?' कहने लगे, 'नहीं। मंगलवार को ठीक नहीं है। और गुरुवार को बड़ा अच्छा दिन है। और पंचाग के अनुसार मैँ तुम्हें बता रहा हूँ। गुरुवार को ठीक है।' ये घर आयें। इन्होंने पंचाग देखा। महाराष्ट्रियन्स तो जानते है संस्कृत। और लोगों जैसे नहीं है। वो संस्कृत खूब जानते हैं। पढ़ा है उन्होंने। पंचाग में लिखा था निषिद्ध है। गुरुवार के दिन होना ही नहीं चाहिये श्राद्ध। तो उन्होंने मंगलवार को अपना सहजयोग से श्राद्ध करा लिया। उनका कहीं और अपॉइंटमेंट रहा होगा। तो उन्होंने सोचा होगा कि अपॉइंटमेंट के अनुसार चलना चाहिये। तो वो जब गुरुवार को आये, तो इन्होंने कहा कि, 'आईये।' उन्होंने कहा, 'अब बताओ श्राद्ध का खाना वगैरा।' इन्होंने कहा, 'अब खाना वगैरा कुछ नहीं। आपको एक कप चाय भी नहीं मिलेगी।' कहने लगे, “ कहा, 'आज श्राद्ध निषिद्ध है। आप देखिये, पंचाग में लिखा है। आज नहीं कर सकते श्राद्ध। और मैंने तो मंगलवार को कर ही लिया। आप जाईये।' उनकी माँ कहने लगी, 'एक कप दूध तो दे दो बेटा।' 'इनको तो कुछ नहीं दूँगा मैं। और अपने यहाँ कभी श्राद्ध करने नहीं आएंगे।' उनको निकलवा दिया। तो इस तरह के श्राद्ध नहीं करिये। इसलिये ऐसे श्राद्ध करने में कोई अर्थ नहीं।

दूसरी बात ये कि पितरों के फोटो रखने चाहिये कि नहीं। फोटो रखने में कोई बात नहीं है। हर्ज नहीं है। अगर आप उनके फोटो के प्रति इनवॉल्व नहीं हो तब अच्छा है। क्योंकि अब वो मर गये हैं। उनको फिर से जनम लेना है। अब बहुतों का है कि उनके फोटो क्या रख दिये, उनकी आरती होगी। पूजा होगी। उनके सामने रोएंगे, घोएंगे। ये हर समय हो रहा है, तो उसको अन्दर रखिये। अब उसके प्रति भावना हो कि ये मर गये हैं। हमारे पिता थे। ठीक है। 'बस्‌। तो कोई ऐसा नहीं, प्रॉब्लेम नहीं है। लेकिन अधिकतर लोगों का तो मैंने देखा यही होता है, कि जब भी देखा 'फोटो किसी का तो लग गये उसकी बात करना। अगर इस तरह की बात हो रही हैं तो फोटो मत रखिये। क्योंकि फोटो से नुकसान होता है। अगर नुकसान नहीं होता है तो फोटो रखना चाहिये। फिर डिस्क्रिशन की बात आ गयी।

सवाल - क्या औरतों को करवा चौथ का ब्रत रखना चाहिये ?

श्रीमाताजी - कोई भी व्रत मत करिये। करवा चौथ का ब्रत करना चाहिये औरतों की नहीं ! ऐसा ब्रत मैंने देखा औरतों को करते वक्त। बहुत परेशान हो जाती है बेचारी। बिल्कुल मत करिये। हाँ, अगर बगैर परेशानी के कर सके तो करिये। पर, कोई करवा चौथ करना है, ऐसे भगवान पर कोई भी संकट ड़ालने की जरूरत नहीं सहजयोगियों को। पार होने के बाद कोई जरूरत नहीं सहजयोगियों को। उनके पति सब स्वस्थ रहते हैं। पति अगर सहजयोगी है तो कोई प्रॉब्लेम ही नहीं। करवा चौथ करने की क्या जरूरत है। सब कहते हैं कि पार्वती जी ने करवा चौथ किया था। लेकिन उन्होंने शादी के पहले किया था, शादी के बाद नहीं। शादी के बाद करने की क्या जरूरत है? करवा चौथ का सब से बड़ा तरीका ये है, कि अपने पति को पति समझ के रहिये। उनकी सेवा करिये। उनको समझिये, वो क्या चीज़ हे! वो बच्चों जैसे होते हैं। बहुत बार उनका बिहेविअर बच्चों जेसा होता है। किसी बात पे तुनक जाएंगे। किसी बात पे बिगड़ जाएंगे। उनका अहंकार बहुत जल्दी टूट जाता है। ये सब देखना चाहिये। तब उनसे प्यार से रहें। उनके साथ मीठी बातें करें। उनको सुख दें। ये करवा चौथ है। ये नहीं कि करवा चौथ के दिन भी आदमी को हजार गालियाँ निकाल रहे हैं। तो फिर वही बात आ गयी न डिस्क्रिशन की।

हालांकि करवा चौथ करने वाली औरतें मैंने तो देखा नहीं कभी भी ठीक तरह से करवा चौथ करती है। अगर 'करवा चौथ करें तो ये कि कब चंद्रमा निकलता है, कब चंद्रमा निकलता है, सब की खोपड़ी चाट जाएंगे। उनको इतनी भूख लगी रहती है। ऐसे लोगों को क्या करवा चौथ करने की जरूरत है? और ये अनर्मरिड लड़कियों को करना चाहिये, कि हमें पति शिव जी जैसा मिले। पर आप पार्वती जी हैं क्या पहले? अपने को पहले पार्वती जी बनाईये। फिर शिव जी की इच्छा करें। शिव जी जैसे बेल पे बैठने वाले पति को सम्भालना कोई आसान नहीं है। 'शिव जी किसी का पति हो नहीं सकता। सिवाय पार्वती का। वही सम्भाल सकती है। और कोई नहीं। बेहड जीव है। ऐसे बेहड जीव की इच्छा भी करना मुझे लगता है गड़बड़ है। तुम लोगों के बस का ही नहीं, तो क्यों ऐसे बेहड जीव की तुम लोग करते हो।

सवाल - क्या मासिक धर्म के दौरान ........ (अस्पष्ट) वाइब्रेशन्स लेने चाहिये ?

श्रीमाताजी - जब औरतों के लिये मासिक धर्म होता है, सहजयोग में कोई भी निषिद्ध बात नहीं। कोई भी चीज़ को निषिद्ध नहीं माना जाता। सिर्फ उस वक्त में औरतों को आराम करना चाहिये। और पूजा के चीज़ में भी आप जाते हैं हमारा क्या विचार है। पूजा भी किस की करते हैं आप पहले ये दिखा दें। वो भी काफ़ी तमाशे हैं। इसमें बड़ा गहरा जाना पड़ेगा। मेरे विचार से पूजा वगैरा बंद कर के सब अगर ध्यान ही करें, जिस लिये पूजा करते थे वो हो गया। आप पार हो गये। अब इसके बाद कौन सी पूजा करने की। माने विश्वास ही नहीं होता कि आप पार हो गये हो। पूजा करने की जरूरत नहीं। ध्यान करने की जरूरत है। ये तो ऐसा ही हुआ कि मैं आ गयी मोटर में ओर यहाँ मोटर में ही रह गयी और मोटर वाले को, चलो भाई चलो, हमें जाना है प्रोग्रेंम में। अरे भाई, अब आ गया है, 'उतरो और भाषण दो। अभी भी तुम कहाँ चल रहे हो ? पूजा की जरूरत तब तक होती है जब तक वहाँ पहुँचे नहीं। पहुँचने के बाद समझ लेना चाहिये, कि कैसे पहुँचे ? क्या करना चाहिये ? सारा ही रवैया बदल जाता है। अब मोटर से उतर के, पैदल चल के यहाँ पर आये ना! सारा रवैया बदल गया। मोटर में तो पैदल नहीं चल रहे थे! मोटर चल रही थी। जब यहाँ आने का था तो मोटर रोक के अन्दर आ गये। रवैया बदल गया न हमारा! ऐसे सहजयोग में अपना रवैया बदलना पड़ता है।

सवाल - ल्यूकोडर्मा के बारे में।

श्रीमाताजी - ल्यूकोडर्मा की बीमारी जो है लीवर के खराब होने से होती है। लीवर में अगर ट्रिगरिंग हो जायें किसी भूतबाधा से, तो बहुत ज़्यादा फैलती है। इसलिये ऐसे इन्सान को पहले भूतबाधा का इलाज करना चाहिये, जिसको ल्यूकोडर्मा बीमारी है। और मूँगफली का तेल बिल्कुल नहीं खाना चाहिये। ये जो पोस्टमन का मूँगफली का तेल आता है ये तो बहुत ही खराब है। अभी पोस्टमन वाले मेरी जान को न लग जायें। लेकिन कौन सा भी मूँगफली का तेल ठीक नहीं है। डालडा आदि से सबसे खराब तेल पोस्टमन का होता है। और जो लोग मूँगफली ज्यादा खाते हैं उनको ये बीमारी होती है। इसलिये मूँगफली तो एकदम छोड़ देना चाहिये। मैंने जीवन में गिन के दो - चार मूँगफलियाँ खायी होंगी। मूँगफली नहीं खाना चाहिये ज्यादा। और जिसको ल्युकोडर्मा की बीमारी हो गयी है वो अगर तेल ले आये। उस तेल को अगर वाइब्रेट कर ले और आप अगर पार हो गये हों, तो उसी तेल से वहाँ मालिश करें और गोल गोल घुमाये तो ठीक हो जाएगा। अपना लीवर पहले ठीक करिये। तो बढ़ेगा नहीं कम से 'कम। घट भी जाएगा।

सवाल - सतखंड या दशम द्वार क्या है?

श्रीमाताजी - (अनुवादित) सचखंड मतलब ब्रेन में जो लिम्बिक एरिया है वो। जहाँ पर सत्य की स्थापना होती है। (हिंदी स्पीच) जहाँ सत्य प्रकाश प्रगटित होता है आपके अन्दर। प्रगटित होना, ये शब्द जो है, प्रगटित का मतलब आपकी चेतना में महसूस होता है। ये नहीं की आपको कोई लेक्चर दें और कहें ये सत्य हे, वो सत्य है। लेकिन जब आपके ब्रेन के अन्दर जो जगह है जिसे लिम्बिक एरिया कहते हैं, जिसे सहस्ार कहते हैं, वो सतखंड है। उसकी चारों तरफ़ हज़ार नाड़ियाँ हैं। और जिस वक्त कुण्डलिनी जा कर के उस खंड में पहुँचती है तब आपको सत्य मालूम होता है। सत्य, सत्य हमेशा आपको अपने चेतना से मालूम होता है। चेतना जो है वो आपके ब्रेन का प्रकाश है और जब चेतना आलोकित हो जाती है, तब आप सत्य को जानते हैं। तो ये जो विराट है, विराट माने सब दूर फैला हुआ परमात्मा है। उस परमात्मा की जागृति से आप अपने अन्दर उस सत्य को जानते हैं।

याने कैसे ? जैसे आप की कुण्डलिनी जागृत हो गयी। कुण्डलिनी यहाँ से निकल आयी और सहजयोग में खो 'गयी। तब उस वक्त क्या होता है? आपको कोई भी सत्य जानना है, समझ लीजिये, कि किसी ने कहा कि नानक साहब झूठ बोलते हैं। समझ लीजिये, किसी ने ऐसी गंदी बात कही। आप कहना 'वाइब्रेशन्स से पूछिये। आप पूछो नानक साहब सच थे की नहीं ?' ऐसा हाथ करते ही साथ पूछेंगे, नानक क्या अवतार थे? धडघडू घडघडू हाथ में से आ गयी। नानक क्या परमात्मा थे? धडधड़्‌ धडघड़्‌ हाथ में से आ गयी। तो आप मान जाएंगे। क्या आप भगवान हैं ? सिर्फ जबानी जमाखर्च नहीं रह जाता। जब सतखंड अपना खुलता है तब आदमी जबानी जमाखर्च या दिमागी जमाखर्च नहीं रहता है। ये काम होने लग जाता है। आप दिखने लग जाते हैं कि साक्षात्‌ हाथ में जो है, आपको पता हो जाता है कि हाँ, ये बात सही, कि वो बात सही है। जैसे कि एक कॉम्प्यूटर है आपका ब्रेन। और ये जब मेन्स से लग जाता है, जब योग घटित होता है, जब अपने को 'आपा चीन्ह' लेते हैं जब आप। तब वो चिन्हे में क्या होता है वो आपा का प्रकाश आपको उस से मिला देता है। और जब उससे मिला देता है आप सब जान सकते हैं अपने हाथ पर, सही क्या है और गलत क्या है?

सो सतखंड जो है वो ये शक्ति है जिसको महालक्ष्मी की शक्ति कहते हैं। जिससे आदमी सत्य को जानता है।

इसके अलावा ओर दो शक्तियाँ हैं हमारे अन्दर आत्मा की, जो प्रगटित होती है। जिसे हम कहते हैं चित्‌ शक्ति। चित्‌ शक्ति से हमारे चित्‌ का जो आवरण है, वो सारा आलोकित हो जाता है। और उस चित्त में अगर बेठे बैठे हम ऐसे ही आँख करे। कुछ पूछे नहीं। कुछ भी नहीं, कुछ भी न पूछे। विशुद्धि चक्र से आप अगर पूछे, तो आपको सत्य मालूम होगा। लेकिन आप बस ऐसे ही हाथ कर के बेठिये। और आप सिर्फ विचार करें, किसी के बारे में। आपको फौरन उसके बारे में पता हो जाएगा। ये तो हो गये सत्य के दर्शन। दूसरा ये कि दूसरा आदमी आपके पास बैठा हुआ है। और बस्‌ आपको एकदम से महसूस हुआ, कि भाई, इससे तो बड़ी गर्मी आ रही है। एकदम से गरम गरम हो रहा है। तो क्या हुआ, कि आप सामूहिक चेतना में जागृत हो गये। तो सामूहिक चेतना जो है ये चित्त का लक्षण है। चित्त जो है सारे दूर वही एकदम आलोकित होता है और हृदय का लक्षण है, आप आनन्द में आ जाते हैं। ये तीनों चीज़ होती हैं। लेकिन सब से पहले कुण्डलिनी सचखंड में पहुँचती है और इसको दशम द्वार कहते हैं। जो ब्रह्मरंध्र है, इसे जब कुण्डलिनी पार कर देती है तब आपके हाथ में ये सूक्ष्म शक्ति जिसे कि कहते हैं परमात्मा की रूह, जो सारे दूर सुहानी फैली हुयी है, वो आपके हाथ में पहली मर्तबा लगती है कि ये रूह है। ठीक है! लेकिन ये जबानी जमाखर्च नहीं होता है। असल में कुण्डलिनी का उठना होता है। “कहे नानक, बिन आपा चीन्हे मिटे न ब्रह्म की काई।' तो आपा को पहले चीन्ह लीजिये। इसका गाना गाने से नहीं होगा। कहने से नहीं होगा, लेक्चर देने से नहीं होगा। कुण्डलिनी का जागरण होना चाहिये। बात सही है न! यथार्थ जो है असलियत को पाना चाहिये।

सवाल - सिशोफ्रेनिया के बारे में।

श्रीमाताजी - सिझोफ्रेनिया नकारात्मक चीज़ों के अटैक करने से होता है। जैसे किसी ने आप पर काली विद्या कर ली। आप अगर गलत गुरु के सामने माथा टेके। मथ्था बहुत भारी चीज़ है। सब से बड़ी चीज़ मध्था है। यहाँ एकादश रुद्र, ग्यारह रुद्र की शक्तियाँ यहाँ माथे पर हैं। इसको किसी के सामने झुकाना ही नहीं चाहिये। मथ्थे को सामने झुकाना चाहिये जिसके, कि जहाँ झुकाने लायक हो। नहीं तो बेकार में हर एक के पैर पे आना। मेरे सामने भी झुकाने की जरूरत नहीं। जब तक आपको पार नहीं किया क्यों मेरे पैर पे आ रहे हैं। मैंने आपको कह दिया। मैं सौ बार कहती हूँ मेरे पैर मत छुओ। उल्टा मेरा नुकसान होता है। मुझे तकलीफ़ होती है, गलत आदमी के पैर छूने पर। तो आपको चाहिये आपका माथा जो हैं यहाँ का उसी के सामने झुकाईये जो सच गुरु है। पर आजकल तो ऐसे ऐसे झूठे निकल आये हैं। अब ठीक है, आप कहीं जाते हैं गुरुद्वारे में, तो हम को चाहिये ग्रंथसाहब के सामने मथ्था 'टिकाये। क्योंकि ग्रंथसाहब असलियत चीज़ है। बाकी हम इस के भी पेर छुओ, उसके भी पेर छुओ, ये गलत बात है। उससे अभी आप गुरुद्वारे में जा कर भी पकड़ सकते हैं। क्योंकि आप ने गलत काम कर लिया। जब गुरु ग्रंथसाहब हैं तो उसके आगे कोई गुरु है ही नहीं। उसके आगे किसी को भी गुरु मान लेना है ये गलत बात है। वही है। गुरु ग्रंथसाहब लीजिये। उसके आगे मथ्था टिकाओ बस्‌! उसके आगे कुछ नहीं।

मथ्था माने क्या? मथ्था टिकाने का मतलब होता है सरेंडर करना। ये नहीं की गुरु ग्रंथसाहब आप अखंड पाठ कर रहे हैं। इससे क्या मतलब हुआ! उन्होंने जो कहा है, इड़ा, पिंगला, सुषमन नाड़ी। उस नाड़ी के अन्दर से कुण्डलिनी का जागरण हो कर यहाँ पर शून्य शिखर पर आ कर के जब तक वो टूटता नहीं, तब तक कुछ भी नहीं हुआ है। तो तब तक सिर्फ सरेंडर में रहना चाहिये। मथ्था टिकाने का मतलब ये होता है।

और भी मैली विद्या लोग करते हैं। उससे भी हो सकता है। कभी कभी वीकनेस हो, कोई आपकी बचपन की वीकनेस हो, कोई ऐसे शॉक बैठ जायें, तभी ये भूतप्रेत आपके अन्दर घुस सकते हैं। उससे भी हो सकता है। लेकिन इसके लिये आपको किसी भी ऐसे आदमी के पास जाने की जरूरत नहीं। तांत्रिक, मांत्रिक ये सब गंदे लोग होते हैं। इसको निकालने वाला अगर पैसा लेता है तो ऐसे आदमी के पास नहीं जाना चाहिये। क्योंकि निकाल के वो दूसरा भूत डाल देते हैं। जिस आदमी का आपके पैसे में इंटरेस्ट है, ऐसे आदमी के पास आपको नहीं जाना चाहिये।

सवाल - कौन से प्रभु की प्रार्थना करनी चाहिये ?

श्रीमाताजी - ये तो आप सहजयोग में आएंगे तो पता होगा कि आप ही अपने गुरु हैं। जब प्रार्थना करनी तो प्रभु माने उसमें सब आ ही गये। उसको किसी भी नाम से पुकारो। कोई उसको प्रभु कहता है। वो भी वही चीज़ है। और उसको सत्‌-श्री-अकाल कहो तो भी वही है। आप उसको किसी भी नाम से पुकार सकते है। लेकिन पहले समझ तो लो, कि इसका मतलब क्या हे ? ये चीज़ क्‍या है? पहले प्रभु का मतलब क्या है, वो तो समझ लो। फिर पुकारना वगैरा बाद में करना। उसके लिये आदमी को तैय्यारी करनी चाहिये। पहले तैय्यार हो जाओ। पहले उस ज्ञान को प्राप्त करो। फिर उसके बाद तुम समझ जाओगे, कि तुम्हे कौनसे ऑस्पेक्ट ऑफ गॉड को जानना है।

समझ लीजिये तुम्हारा राम का चक्र पकड़ा है और तुम नानक को पुकार रहे हो। नानक बेचारों को बेकार में परेशान कर रहे हो, चक्र तो राम का पकड़ा हुआ है। और अगर आपका नानक का चक्र पकड़ा हुआ है तो राम को क्यों परेशान कर रहे हो? नानक को पुकार लो। ये समझ लेना चाहिये पहले। कुण्डलिनी के जागरण के सिवाय आप ये नहीं कह सकते कि कहाँ पर रुका हुआ है। जब तक गाड़ी नहीं चल पड़ी, आपको क्या मालूम कहाँ पर मोड़ आने वाले हैं ? पहले से ही आप उसको मोड़ के रखे लेफ्ट में या राइट में, तो चलेगा क्या ? जैसा मोड़ आयेगा उस तरह से देखते जाना है। उस तरफ़ से मोड़ते जाना है। अब आपकी कुण्डलिनी कौन सी गति पे हैं, कहाँ अटकी है, पहले ये समझ लो। बिल्कुल आप पे है। आपको ये समझना चाहिये कि मेरी कुण्डलिनी कहाँ है? और किस जगह रुकी हुई है? मुझे कौन सा मंत्र कहना चाहिये ? वो मंत्र कहते ही वो देवता जागृत हो गये। फिर आगे चल 'पड़िये। फिर दूसरी देवता जागृत हुई, आगे चल पड़िये। इसमें एक है, दिमाग़ खुला रखना चाहिये, पहली चीज़ कि हमारी कुण्डलिनी कहाँ हैं? उसके अनुसार ये सारी मंत्रविद्या जो है, सहजयोग में पूरी तरह से समझा दी जाती है और उसको आप एक्सपिरिमेंट कर के देखिये और उसका साक्षात्‌ करिये और उसके फायदे देखिये। उसके के लिये 'कोई जरूरी नहीं कि आप आँख मूँद कर के काम करें। उसको बिल्कुल आप एक ही चौज़ को देख सकते हैं आपका चक्र कौनसा पकड़ा है ? अरे, जब ये लोग नानक साहब को समझते हैं और गणेश को समझते हैं, तो आप लोग क्यों नहीं समझेंगे ? आप तो पहले ही जानते हैं। लेकिन समझ लेना चाहिये। कोई क्लोज्ड माइंड नहीं रखना चाहिये। तब समझ जाएंगे, कि हमारी कुण्डलिनी कहाँ अटकी है।

अब ये नहीं कि, हो सकता है किसी ने इस बात पे नहीं कहा, किसी ने उस बात पे नहीं कहा, कोई हर्ज नहीं। क्योंकि जितना टाइम था, तो उनके पीछे में हाथ घोकर लगे हुये थे तब। कोई बोलने भी नहीं देता था। जितना टाइम था, उसमें जितना कवर करना था उन्होंने कह दिया। जो उस वक्त उनको काम करने का था वो कर दिया। ये सब मेरा काम है कुण्डलिनी का जागरण करना। वो मैं कर रही हूँ। जिसका जो काम होता है, वही वो करेगा ना! तो उनका जो काम था, उन्होंने कर दिया। अब आप उसको पकड़ के मत बैटिये, कि उन्होंने ये काम नहीं किया तो हम क्यों करें ? सब ने फ्यूचर की बात करी है। ये खास बात समझ लीजिये। सब ने। आज तक कोई ऐसा नहीं हुआ जिसने ये कहा, कि वो दिन आने वाला हे। ऐसा नहीं कहा है। ऐसा कोई भी हुआ हे प्रॉफिट। वो दिन आएगा जरूर। वो दिन होगा जरूर। ये चीज़ होगी जरूर। सब ने कहा, मोहम्मद साहब ने कहा है, कि रिजरेक्शन का टाइम आएगा। उन्होंने तक कहा है। बहुत बार कहा है। वो टाइम आ गया। जब वो टाइम आ गया तब आप सब चूक रहे हैं। क्योंकि वो जो थे उन्होंने ये कहा, उन्होंने वो कहा। उन्होंने कहा है भाई, ये दिन आने वाला है, जब सब जानोगे तुम। क्या नानक साहब ने कहा नहीं? बिल्कुल कहा है, कि वो दिन आएगा तब तुम लोग जानोगे खुद। सब ने कहा है। जब वो दिन आया तब आप मुकर गये, कि साहब, नानक साहब ने ये बात नहीं कही थी। मेरे कहने के लिये भी तो कुछ छोड़ गये होंगे? कि क्या सभी वही कह गये ? उनको कहने भी दिया तुम लोगों ने! मुझे ही नहीं कहने देते, उनको क्या कहने दिया होगा ? उनकी तो जान ले ली। प्राण के तो पीछे पड़ गये। जिस वक्त वो जिंदा थे उनके पास कितने लोग थे ? उनकी खुद बीबी उनके प्राण लिये हुये थी। जब आज वो नहीं है आप कुछ भी बनाओ क्या फायदा ! उससे कुछ फायदा होने वाला है ? अपने को तो अपना भला देखना चाहिये इस में।

स्वार्थ, स्व का अर्थ पायें, वो स्वार्थ है। बड़ा अच्छा शब्द बनाया हे स्वार्थ। स्व का अर्थ जब नहीं जाना तो स्वार्थ क्या हुआ? सब कह गये, शिवाजी महाराज कह गये, कि स्व का तंत्र खोजने का दिन आयेगा। ज्ञानेश्वरजी कह गये। पसायदान में उन्होंने कहा, कि ऐसा ऐसा दिन आएगा जब तुम अपने तंत्र को जानोगे। स्व के तंत्र को जानो तब ऐसा होगा। ब्रह्म का एकत्व आपको मालूम होगा। सब की चीज़ समझ में आएगी। निराकार साकार का मेल तुमको समझ में आएगा। ये सब कह गये। तो हम लोग तो उस दिन के लिये तैय्यारी नहीं कर रहे हैं। बस्‌ बेठ गये पकड़ के एक चीज़। बेठ गये पकड़ के। उससे किसी का भला हुआ? आपके बापदादाओं का भला हुआ? आपका भला हुआ ? किसी की कोई न कोई चीज़ रह गयी है न! वो चीज़ अभी पूरी होने को है। उन्होंने कुछ कम नहीं कहा है। उन्होंने बहुत कुछ किया है। लेकिन उनका एक अंतिम समय आ जाता है। जब की सब चीज़ समेटी जाती है।

आप अपने घर में पूरी बनाते हैं। सब से पहले उसका आटा गूंदते हैं। फिर आप उसको बेलते हैं। फिर उसको आप तलते हैं। फिर आप खाते हैं। जब आप खा के पचा लें तभी असल में टाइम आ गया। उससे पहले तो उसकी तैय्यारी होती रही। अब आप कहें कि नहीं साहब, पूरी का मतलब ये है कि आटा गूँदना। पूरी का मतलब ये है कि 'तलना। आप खाने के लिये ही तैय्यार न हो तो आटा गूँदने बेठ गये। खाने को तैय्यार हो जाओ। पूरी बन गयी अब खाओ और मजा उठाओ। ये चीज़ आ गयी तो खाते क्यों नहीं। समझे न बात को! यही इन्सान की गलती है और उस गलती की वजह से पिछडा हुआ है। बहुत पिछडा हुआ है। आदमी को समझना चाहिये, कि पूरी खाने का समय आ गया है। माँ ने खाना बना दिया है, भूख हो तो खा लो। सीधा हिसाब है।

सवाल - विशेष चिन्मय रूप का दर्शन कैसे हो सकता है?

श्रीमाताजी - ये सब आयडियाज आप अभी अलग रखिये। सब से पहले सर्वव्यापी ब्रह्मशक्ति हे उसको आप जानिये। उसको आप पा लें। अब आपका चिन्मय का आयडिया क्या है ? आप चिन्मय रूप क्या समझते हैं? ये तो आपका दिमागी जमाखर्चा है। आपने कुछ कहीं पढ़ा होगा? उससे नहीं। कुछ भी पढ़ा हो। मैं तो कहती सीधा हिसाब है। किसी ने कुछ भी कहा हो। आप से क्या मतलब ? आपने तो देखा नहीं। तो आप को कह रहे हैं कि पहले जो सर्वव्यापी शक्ति है उसे पहले पा लें। उसको पाने के बाद धीरे-धीरे सब बातें आपको समझ में आ जायेगी। पहले उस चीज़ को पा लो। उस सूक्ष्म चीज़ को पहले होने दो। अपने अन्दर में घटित होने दो। ये कुण्डलिनी के सिवाय होता नहीं। ये तो सभी कह गये। कुण्डलिनी का जागरण हो कर के पहले उसे पा लो। उसके बाद धीरे धीरे सारी बात आपकी समझ में आ जाएगी। जैसे ही आप कमरे में आते हैं, धीरे धीरे एक एक प्रकाश खुलता है। एक एक दालन खुलते हैं। पहले अन्दर तो आ जायें। एकदम आगे की बात क्‍यों बताऊँ? पहले अन्दर आ जाओ। समझदारी इसमें हे कि पहले अन्दर आ जाओ। पहले पार हो जाओ। पार होते ही कोई तुम बड़े अवधूत नहीं हो 'जाओगे। क्योंकि उतनी शक्ति चाहिये। अवधूत होने की भी शक्ति चाहिये धीरे धीरे शक्ति बनती जायेगी। आप उस तरह के बन जाएंगे तब आप उसको उठा सकते हो। इतना बोझा आप उठा पाएंगे क्या? उस सत्य को आप जान 'पाओगे? अरे, बहुत सी बातें अभी बतायी नहीं मैंने मारे डर के। अगर बताऊंगी तो अभी आप उल्टे कूद जाओगे। इसलिये धीरे धीरे चलो।

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