Christmas And Its Relationship To Lord Jesus

Christmas And Its Relationship To Lord Jesus 1979-12-10

Location
Talk duration
90'
Category
Public Program
Spoken Language
English, Hindi

Current language: Hindi, list all talks in: Hindi

10 दिसम्बर 1979

Public Program

Caxton Hall, London (England)

Talk Language: English, Hindi | Transcript (Hindi) - NEEDED | Translation (English to Hindi) - Draft

[Translation from English to Hindi,Scanned from Hindi Chaitanya Lahari]

आज का दिन हमारे लिए यह स्मरण करने का के लिए यंह बात अत्यन्त कष्टकर है और उन्हें है कि ईसामसीह ने पृथ्वी पर मानव के रूप में जन्म खेद होता है कि जो अवतरण हमें बचाने के लिए लिया। वे पृथ्वी पर अवतरित हुए और उनके आया उसे इन परिस्थितियों में रखा गया। क्यों नहीं, सम्मुख मानव के अन्दर मानवीय चेतना प्रज्जवलित परमात्मा ने, उन्हें कुछ अच्छे हालात प्रदान किये? करने का कार्य था मानव को यह समझाना कि वे परन्तु ऐसे लोगों की इस बात से कोई फ़र्क नहीं यह शरीर नहीं हैं, वे आत्मा हैं। ईसामसीह का पड़ता, कि चाहे वो सूखी घास पर लेटे रहें या पुनर्जन्म ही उनका सन्देश था अथात् आप अपनी अस्तबल में या किसी भी और स्थान पर, उनके आत्मा हैं यह शरीर नहीं । अपने पुनर्जन्म द्वारा उन्होंने लिए सभी कुछ समान है क्योंकि इन भौतिक चीजों दर्शाया कि किस प्रकार वे आत्मा के साम्राज्य तक का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वो इतने उन्नत हो पाए, अपनी वास्तविक स्थिति तक। क्योंकि निर्लिप्त होते हैं तथा पूर्णतः आनन्द में बने रहते हैं। वे ब्रह्मा थे, महाविष्णु वे अपने स्वामी होते हैं। कोई अन्य चीज उन पर थे, जैसे मैंने उनके जन्म के विषय में आपको स्वामित्व नहीं जमा सकती है। कोई पदार्थ उन पर वे 'प्रणव' थे, वे ब्रह्मा थे - बताया है। परन्तु वे पृथ्वी पर मानव रूप में अवतरित हावी नहीं हो सकता। किसी भी प्रकार की सुख-सुविधा हुए। उन पर स्वामित्व नहीं जमा सकती। अपने अंदर ही एक अन्य चीज़ उन्होंने दर्शानी चाही कि आत्मा वे पूर्ण सुख के स्वामी होते हैं। सभी उन्होंने सुख का धन तथा सत्ता से कोई लेना देना नहीं। यह अपने अन्दर ही प्राप्त किये होते हैं। ऐसे लोग सर्वशक्तिमान है तथा सर्वव्याप्त है। परन्तु उनका अत्यन्त सन्तुष्ट स्वभाव होते हैं और यही कारण है जन्म एक अस्तबल में हुआ, वे किसी राजा के यहां कि वे सम्राट हैं, उन्हें बादशाह कहा जाता है। वो नहीं जन्मे, एक सर्वसाधारण व्यक्ति के यहां जन्मे-एक बादशाह नहीं जो पदार्थों के पीछे दौड़ते रहते हैं या बढ़ई के यहां। क्योंकि आप यदि राजा हैं, जैसे जीवन की सुख सुविधाएं खोजते रहते हैं। कहने से मेरा अभिप्राय यह है कि आपके पास हिन्दी भाषा में कहा गया है 'बादशाह' हैं तो आप से बड़ा कुछ है और यदि नहीं हैं है? इसका अर्थ यह है कि आप से ऊंचा कुछ भी तो भी ठीक है, कोई अन्तर नहीं पड़ता। जब मैं नहीं है। कोई भी चीज आपको अलंकृत नहीं कर लैटिन अमेरिका गई तो बहुत से लोगों ने कहा कि सकती (आपके रुतबे को नहीं बढ़ा सकती), आप जो हैं, आप सर्वोच्च हैं। आप के लिए सारी सांसारिक गरीब व्यक्ति के रूप में क्यों हुआ।' एक बार फिर भी नहीं है। क्या यह बात ठीक नहीं यदि सुख-सुविधाएं हैं तो ठीक 'हम यह नहीं समझ सकते कि ईसामसीह का जन्म चीजें सुखे घास सम है, तृणवत हैं। यह मानवीय धारणा है। मानव परमात्मा को चलाना ईसामसीह को घास पर सुलाया गया। कुछ लोगों चाहता है, 'सम्राट के महल में जन्म लेना'- आप

परमात्मा को इसकी आज्ञा नहीं दे सकते परमात्मा रूप से हमें बचाने के लिए वो यहां थे। उनके बहुत के विषय में भी हमारी अपनी धारणाएं हैं। क्यों वह से पक्ष हैं। मैं कहना चाहूँगी कि वो इस पृथ्वी पर निर्धन व्यक्ति बने. क्यों वह असहाय हो? परन्तु केवल मानव को बचाने के लिए ही नहीं आए, ईसामसीह ने कभी भी नहीं दर्शाया कि वह असहाय उनके और भी बहुत से पक्ष थे। यह एक अन्य पक्ष हैं। वे आपके सभी राजा-महाराजाओं से तथा राजनीतिज्ञों है। मानव ने मांग की थी कि उसकी रक्षा होनी से कहीं अधिक प्रगल्भ (dynamic) थे। उन्हें चाहिए। क्यों? क्यों उनकी, उन सभी की रक्षा होनी किसी का भय न था। जो भी कुछ उन्होंने कहना था चाहिए? उन्होंने परमात्मा के लिए क्या किया है? वह उन्होंने कहा। उन्हें न तो क्रूसारोपित होने का किस प्रकार आप परमात्मा से मांग कर सकते हैं कि भय था और न ही किसी अन्य तथाकथित दण्ड वह हमारी रक्षा कर? क्या आप ये मांग कर सकते का। आप जानते हैं कि मानव में ही जीवन के इस हैं? क्या आप ऐसा कर सकते हैं? आप यह मांग प्रकार के विचार हैं और यह विचार वह परमात्मा नहीं कर सकते। जैसा आप देख रहे हैं वे विशुद्धि पर भी लादना चाहता है और प्रयत्न करता है कि और सहस्रार के बीच का मार्ग बनाने के लिए परमात्मा भी उसकी इन धारणाओं का अनुकरण अवतरित हुए - आदिपुरुष (primordial being) करे। परमात्मा आपकी धारणा नहीं है। वो धारणा विराट के आज्ञा चक्र में इसी द्वार (आज्ञा) को विल्कुल भी नहीं है। आप लोग भी कहते हैं कि खोलने के लिए वे अवतरित हुए। विकास प्रणाली में धारणा तो आखिरकार धारणा ही है, वास्तविकता हर एक अवतरण हमारे अन्दर का एक द्वार खोलने, नहीं। यह बात मैंने हाल ही में पता लगाई है। ये एक मार्ग बनाने या हमारी चेतना को ज्योतिर्मय करने एक अन्य मिथक (myth) है जो लोगों के मस्तिष्क के लिए आया। अत: ईसामसीह विशेष रूप से हमारे में समाई हुई है कि धारणा तो धारणा ही है। ठीक अन्दर बने उस छोटे से द्वार को खोलने के लिए है, माताजी कहती हैं तो ठीक है। तो क्या! परन्तु आए जिसे हमारे अहं और प्रतिअहं ने संकीर्ण कर यह भी एक धारणा है क्योंकि धारणा एक विचार दिया है। अहं और प्रतिअहं हमारी विचारप्रणाली के है और आपकों विचार के स्तर से एक ऊंचे उपफल (byproduct) हैं कुछ विचार भूतकाल स्तर पर उठना है - निर्विचार चेतना के स्तर पर से सम्बन्धित होते हैं और कुछ भविष्य के विचार जहां आपमें कोई विचार नहीं होता, जहां आप होते हैं। बे इसी दूरी को समाप्त करने के लिए. इसे विचार के मध्य में होते हैं अर्थात् जहां एक विचार उठता है और गिरता है और इसके बीच के लिए उन्होंने अपने शरीर का बलिदान दे दिया। में कुछ स्थान होता है। फिर दूसरा विचार उठता है और गिरता है। आप इन दोनों विचारों के चीज हो सकती है परन्तु ऐसे अवतरणों के लिए इस मध्य में होते हैं जिसे हम 'विलम्ब' कहते हैं पाटने के लिए. अवतरित हुए और इसी लक्ष्य प्राप्ति आपके लिए यह अत्यन्त खेद एवम् पछतावे को प्रकार का कोई खेद या पछतावा नहीं होता। यह एक लीला है कि उन्होंने इस तरह की भूमिका निभानी तब आप ईसामसीह को समझ पायेंगे। आशिक है, इसलिए मेरी समझ में नहीं आता कि क्यों आप वह समय जब आप रुकते हैं।

लोग उन्हें इतना ढीला-ढाला, दुखी व्यक्ति के रूप लगते हैं, यह बात मेरी समझ में नहीं आती। में दर्शाना चाहते हैं! वो कभी दुखी नहीं थे। ऐसे लोग कभी भी इस प्रकार से दुखी नहीं हो सकते पृथ्वी पर अवतरित हुआ वह अत्यन्त आनन्ददायी जैसे आप होते हैं। यह एक अन्य धारणा है कि है। इसलिए हम सबके लिए, पूरे ब्रह्माण्ड के लिए ईसामसीह को ढीले-ढाले, सूखे हुए. भूख से पीड़ित क्रिसमस महान आनन्द का त्यौहार होना चाहिए हड्डियों का ढांचा-जिनकी एक एक हड्डी को क्योंकि ईसामसीह हमारे लिए वो प्रकाश ले कर परमात्मा का यह बालक जो शिशु रूप में इस - इस प्रकार का व्यक्ति होना आए जिससे हम जान सकते हैं कि कोई ऐसा चाहिए। मैं आपको बताती हैँ कि ऐसा सोचना अस्तित्व भी है जिसे हम परमात्मा कहते हैं; कोई भयानक है। अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक वे तो ऐसा है जो इस अंधकार को दूर करेगा यह गिना जा सकता हो सदैव आनन्दमय व्यक्ति थे। वे प्रसन्नता एवम् पहली शुरुआत थी। अत: हम सब के लिए आनन्द की प्रतिमूर्ति थे जो आपके अन्तः स्थित आवश्यक है कि हम आनन्दित, प्रसन्न और आनन्द के स्रोत, हृदय में बसी आपकी आत्मा को शान्त हों तथा किसी भी घटना को उतनी गम्भीरता ज्योतिर्मय करके आपको आनन्दमय बनाना चाहते से न लें जितनी गम्भीरता से उसे हम लेते हैं। थे, प्रसन्नता का प्रकाश आपको देना चाहते थे। दिव्य जीवन आपको गम्भीर नहीं बनाता क्योंकि यह विश्व में वो केवल आपको बचाने और प्रसन्नता को सब तो मात्र लीला है, यह माया है। जो कर्मकांड प्रदान करने ही के लिए नहीं आए, आपको आनन्द लोग करते हैं, सभी तथाकथित धार्मिक लोगों में मैंने प्रदान करने के लिए भी वो अवतरित हुए क्योंकि देखा है कि धर्म के नाम पर वे बहुत गम्भीर हैं। अज्ञान, अंधकार में फंसे हुए अपनी मूर्खताओं से धार्मिक व्यक्ति से तो हँसी फूट पड़ती है। उसकी मनुष्य व्यर्थ में स्वयं को पीट रहा है और नष्ट कर समझ में नहीं आता कि किस प्रकार से वो अपने रहा है। शराबखानों तथा कष्टों में फंसने के लिए आनन्द को छिपाए तथा व्यर्थ में गरम्भीर लोगों को किसी ने आपसे नहीं कहा, यह भी नहीं कहा कि देखने पर किस प्रकार अपनी हंसी को नियन्त्रित घुड़दौड़ पर जाकर दिवालिए हो जाओ कुगुरूओं के करे कहने से अभिप्राय यह है कि कोई मर नहीं पास जाकर कष्टों में फंसने के लिए किसी ने गया है। जिस प्रकार से लोग बातें करते हैं उससे आपसे नहीं कहा। परन्तु स्वेच्छा से आप अपना कई बार तो यह समझ नहीं आता कि अपने साथ विनाश खोजते हैं। उपाकाल में खिले हुए फूल की वो क्या करें। ईसामसीह जैसे व्यक्ति को उदास तरह से आपको प्रसन्नता प्रदान करने के लिए वे करने के लिए संसार में कुछ भी नहीं है। आप यदि हुए। स्वयं को प्रसन्नता एवम् आनन्द देने वास्तव में उन पर विश्वास करते हैं तो सर्वप्रथम के लिए आप किसी बालक को देखें। मैं तो, कम कृपया यह मूर्खता भरी उदासी, खीज, मुंह लटका से कम स्वयम् को जानती हूँ, अटपटे लोगों के कर बैठना, चिड़चिड़ापन, किसी से बात न करना विषय में नहीं जानती। कहने से मेरा अभिप्राय यह तथा मौन, नीरसता को त्याग दें। ईसामसीह को है कि इन लोगों को फूल भी कांटों की तरह से समझने का यह तरीका ठीक नहीं है। आप देखें कि अवतरित

किस प्रकार जा कर उन्होंने जनता से बातचीत की! आप उनका जन्मदिवस समारोह मना सकते हैं। वे किस प्रकार चहुँ ओर के लोगों के सम्पुख उन्होंने आपकी चेतना को ज्योतिर्मय करने के लिए अवतरित अपने हृदय को खोला और किस प्रकार उन्हें हुए क्योंकि जिस बिन्दु तक आपकी चेतना पहुँच प्रसन्नता प्रदान करने का प्रयत्न किया। उन्होंने कहा चुकी है इसका वे सम्मान करते थे। परन्तु आप इसे कि आपको पुनर्जन्म लेना होगा. अर्थात् उन्होंने यह (चेतना) नीचे लाने का प्रयत्न कर रहे हैं । उन्हें कार्य करना था तथा किसी न किसी समय आपने समझने का क्या यही तरीका है? इसे प्राप्त करना है। उन्होंने वचन दिया है कि आपको वास्तव में पुनर्जन्म लेना होगा अर्थात् उन्होंने (Baptism ) होगा आपको पुतर्जन्म लेना होगा यह कार्य करना था तथा किसी न किसी समय और अब सहजयोग में यह वचन पूर्ण किया जा रहा हैं उन्होंने वचन दिया है कि आपका बपतिज्म आपने इसे प्राप्त करना है। उन्होंने बचन दिया है कि है अत: आप आनन्दित हो कि आपके आज्ञा चक्र आपको वास्तव में पुनर्जन्म लेना होगा। ईसामसीह पर पुनः इंसामसीह ने आपके ही अन्दर जन्म लिया वे वहां पर विराजमान हैं और आप जानते हैं। , को हमारे अन्दर जन्म लेना है। मैं नही जानती इस है। बात से ईसाई लोग क्या समझते हैं। किस प्रकार किस प्रकार उनसे सहायता मांगनी है। यही मुख्य आप द्विज (Born again ) बनते हैं? बपतिज्म चीज है जो व्यक्ति ने समझनी हैं, कि वह समय आ (Baptlism) के कर्मकांड द्वारा नहीं। धर्मविद्यालय गया है, धर्मग्रंथों में जिसका वचन दिया गया हैं, बह से आकर कोई व्यक्ति आपको ईसाई नहीं बना प्राप्त करने का समय आ गया है-केवल बाईबल में सकता। जैसे हमारे यहाँ भारत में कुछ बैतनिक ही नहीं परन्तु विश्वभर के सभी धर्मग्रन्थों में। आज ब्राह्मण हैं, जैसे आपक यहां भी कुछ बैतनिक लोग समय आ गया है जब आपने केवल कुण्डलिनी हैं जो सारा दिन शराब पीते हैं और खाते रहते हैं और स्वयं को परमात्मा द्वारा अधिकृत व्यक्ति बताते इसके बिना कोई अन्य मार्ग नहीं। हैं। परमात्मा से अधिकार प्राप्त किये बिगा अधिकारी बने बिना आप आनन्द प्रदान नहीं कर सकते यही कुण्डलिनी जागृति के माध्यम से परमात्मा आपका कारण है कि मैंने इन सब लोगों को देखा है । इन आंकलन करेंगे अन्यथा वो किस प्रकार आपको तथाकथित पंडितों और पादरियों को, जो परमात्मा आंक सकतें हैं। आप किसी व्यक्ति के बारे में द्वारा अधिकृत न होने के कारण अत्यन्त गम्भीर हैं, सोचते हैं, कोई व्यक्ति अन्दर आता है और अन्दर ईसामसीह के जन्मदिवस पर भी गांव से आया कोई उसका निर्णय करने के लिए कोई बैठा हुआ है। व्यक्ति यदि देखे तो उसे लगेगा जैसे शवयात्रा हो। कैसे? यह देखकर कि आप कितने हज्जामों के पास जागृति द्वारा ईसाई, ब्राह्मण एवम् पीर बनना है। आपके अन्तिम निर्णय का समय अभी है। केवल समारोह समाप्ति के पश्चात जब आप घर जाते हैं तो गए या आप कितने उपहार लाए या आपने कितने किस प्रकार से आप उत्सव मनाते हैं। मैं नहीं मंगलकामना कार्ड भेजे। कितने लोगों को आपने जानती क्यों? परन्तु लोग शैम्पेन (Champagne) ऐसी चीजें भेजी जो आपको तहीं भाती थीं यह पीते हैं। ईसामसीह का अपमान करके किस प्रकार तरीका नहीं है। या ये कि कितने मूल्य पर आपने

ये चीजें खरीदीं, जिस प्रकार हम करते हैं कौन से जीते हैं इससे भी आपका आंकलन नहीं किया तरीके से परमात्मा हमारा आंकलन करेंगे? लोग जाता। लोकहित में आपने कौन से कार्य किए हैं या कहते हैं कि सतही रूप से यह आंकलन नहीं होता। कितना धन. आपने दान दिया है इससे भी नहीं। तो हमने कितनी गहनता प्राप्त की है? आईए देखें आपने यदि बहुत अधिक धन दान दिया है तो कि इस गहनता में हम कहां तक जा सकते हैं। किसी न किसी प्रकार से आपके अहं का कद बढ़ ज्यादा से ज्यादा हम उस बिन्दु तक पहुँचते हैं जहां जाएगा और यह आपको आपके स्तर से नीचे ले पर एक बार फिर धारणा बन जाते हैं। अत: जो भी जाएगा, समुद्री जहाज से भी ज्यादा नीचे। व्यक्तित्व गहनता हमें प्राप्त हुई है वो केवल तार्किकता ( ra आंकलन का यह बिल्कुल भिन्न तरीका है। हम tionality) तक ही पहुँचती है, धारणा के विन्दु देख सकते हैं कि मनुष्यों ने किस प्रकार ईसामसीह तक, उससे आगे हम नहीं पहुँच सकते। तो किस का आंकलन किया और परमात्मा ने किस प्रकार। प्रकार हमारा आंकलन किया जाए? लोग जब वे आए और सूखी घास पर उन्हें रखा गया मानो वे चिकित्सक के पास जाते हैं तो वह किस प्रकार किसी पंख की तरह हों। उनकी इस तकलीफ को उनका रोग निदान करता है? उसके पास यन्त्र होते उनकी माँ ने भी कभी महसूस नहीं किया। इसी प्रकार से जिन लोगों ने अपने आचरण से कभी हैं और वह इस कार्य को करता है। अन्दर प्रकाश डाल कर स्वयं देखता है और फिर कहता है कि अन्य लोगों को नहीं सताया या कभी किसी पर स्थिति यह है। अब आपकी आध्यात्मकता किस क्रोधित नहीं हुए, इस आंकलन में उन्हें प्रथम दर्जा प्रकार जांची जाएगी? बीज को किस प्रकार जांचा दिया जाएगा। कुण्डलिनी जागृति के मार्ग में भी कुछ अंतर्निहित जाता है? इसके अंकुरण द्वारा। बीज का जब आप अंकुरण करते हैं और इसकी अंकुरण शक्ति को दोष हैं। आपके पूर्व कर्मों के कारण कुण्डलिनी के देखते हैं तब आप जान जाते हैं कि बीज अच्छा है अन्दर निहित कुछ दोष हैं। इस जीवन में आप कौन या बुरा। इसी प्रकार जिस तरह से आपका अंकुरण से कर्म करते रहे, जो चीजें केवल धारणा मात्र थीं होता है, जिस प्रकार से आपको आत्मसाक्षात्कार उन्हें आपने वास्तविकता मान लिया क्योंकि आपको प्राप्त होता है, जिस प्रकार आप इसे बनाए रखते हैं पूर्ण (Absolute) का ज्ञान न था। ऐसी स्थिति में जो और इसका सम्मान करते हैं उसी से आपको जांचा भी कुछ आप करते रहे उसका उद्भव अन्धकार से जाता है। आपको जांचने का यही तरीका है। किस हुआ। अन्धकार में जो कार्य आपने किया उसमें प्रकार के कपड़े आप पहनते हैं, कपड़ों का रंग अन्धकार का अंश होना ही है। आत्मसाक्षात्कार मिलान आप किस प्रकार करते हैं या आप कौन से प्राप्त किये बिना यदि आपने घोषणा की है कि आप हज्जामों के पास जाते हैं, इससे नहीं। आप कौन से महान सन्त हैं, ये हैं, वो हैं, तो आपके लिए कोई पदों पर आरूढ़ हैं, कितने बड़े राजनीतिज्ञ या अफसरशाह बन गए हैं, किस प्रकार के घर आपने दिव्य व्यक्तित्व हैं या आत्मसाक्षात्कारी हैं तो आपको बनवाए हैं या किस प्रकार के नोबल पुरस्कार आपने कोई अवसर नहीं। सभी पुजारियों (सभी धर्मों के) अवसर नहीं है। यदि आप यह सोचते हैं कि आप

को सबसे अन्त में आत्मसाक्षात्कार मिलेगा। रामायण भी हैं और इन दोनों के मध्य के लोग भी हैं। श्रेष्ठ लोग बहुत कम है। ऐसे लोग जन्म से है। एक कुत्ते से पूछा गया कि अपने अगले जन्म में आत्मसाक्षात्कारी होते हैं। मेरे सम्मुख उनकी समस्या वह क्या बनना चाहेगा? कुत्ते ने उत्तर दिया मुझे कुछ अधिक नहीं है। परन्तु हमें उन लोगों को सम्भालना भी बना देना परन्तु मठाधीश नहीं बनाना. पुजारी है जो मध्य में हैं वो अच्छाई की ओर बढ़ना चाहते नहीं बनाना। चाहे जो कुछ बना देना परन्तु कहीं है परन्तु कोई बाधा उन्हें पकड़े हुए है। ऐसे लोगों पुजारी नहीं बना देना। कुत्ते के अन्दर उस विवेक की कुण्डलिनी में अन्त्निर्हित कुछ दोष होते हैं । की कल्पना कीजिए! मैं यह भी नहीं कह रही हूँ जिन्हें समझ लेना हमारे लिए आवश्यक है। सर्वप्रथम अस्वस्थ शरीर-शारीरिक रूप से में बाल्मिकी ने एक बहुत ही रोचक कहानी कही श कि सभी पुजारी ऐसे ही होते हैं। हो सकता है कि कुछ लोग सच्चे भी हों, कुछ पुजारी वास्तव में अस्वस्थ होना है। विशेष रूप से इस देश (इंग्लैंड) आत्मसाक्षात्कारी हो सकते हैं-परमात्मा द्वारा अधिकृत। में लोग जुकाम आदि कष्टों से पीड़ित हैं। इसका परन्तु मुझे विश्वास है कि आम जनता उन्हें स्वीकार कारण वहाँ के जल में चूना (Calcium) का नहीं करती। इस बात का मुझे विश्वास है। मैंने बाहुल्य है इसी प्रकार से देश विशेष-स्थान विशेष आपका इतिहास देखा है और पाया है कि उन्हें ऐसे के अनुसार यह समस्याएं हैं। जैसे हमारे देश में सभी लोगों द्वारा दुत्कारा गया तथा सताया गया| हमारी कुछ अन्य समस्याएं हैं, आपके देशों में कुछ अन्य समस्याएं हैं। जिस देश में व्यक्ति का जन्म गया है। अब आप किसी को सूली पर नहीं चढ़ा होता है उसके अनुरूप शारीरिक समस्याएं हाती हैं। आप में से अधिकतर लोगों ने किसी देश विशेष में परन्तु अब उचित-अनुचित को जाँचने का समय आ सकते। आप ऐसा नहीं कर सकते। हर व्यक्ति का आंकलन कुण्डलिनी की जागृति के माध्यम से जन्म लेने का निर्णय किया है। इसी कारण से आप लोग उस देश से इस प्रकार से जुड़े हुए हैं कि अब आपको जान लेना चाहिए कि मानव की आपको उसमें कोई दोष ही नजर नहीं आता। हर तीन श्रेणियां हैं। मरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं देश में कुछ विशेषता है जिसके कारण व्यक्ति को होगा। किस प्रकार से यह बात शुरु करू ताकि आपको स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं आती हैं। अत: सहजयोंगी सदमा न पहुंचे। एक तो हमारे जैसे मनुष्य हैं। इसे होने के नाते व्यक्ति को समझना चाहिए कि स्वास्थ्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह शरीर परमात्मा का मन्दिर बो लोग जो है। अत: आपको अपने स्वास्थ्य की देखभाल करनी नर योनि' कहा जाता है। दूसरी श्रेणी 'देव योनि' है जन्मजात साधक हैं या आत्मसाक्षात्कारी हैं। और तीसरी श्रेणी के लोग राक्षस' हैं। इन्हें गण उठती है तो एहली घटित होने वाली घटना होगी। आप यह भी जानते हैं कि जब कुण्डलिनी भी कहा जाता है। परन्तु हम कह सकते हैं कि आपके स्वास्थ्य का ठीक हो जाना है। क्योंकि मनुष्यों का एक वर्ग राक्षस है, ऐसे लोग जो असुर आपका पराअनुकम्पी (Parasympathetic) हैं। अत: संसार में असुर लोग भी हैं, श्रेष्ठ लोग तंत्र कार्यान्वित हो जाता है। पराअनुकम्पी, व्यक्ति

को ज्योति प्रदान करता है जिसका प्रवाह आप लोगों को ठीक कर सकते हैं। यह न अनुकम्पी तंत्र (Sympathetic तथा व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा हो जाता है। लोगों को ठीक करना आपका कर्त्तव्य है। नहीं, ) में होता है समझे कि आप कोई महान चिकित्सक हैं और इसके विषय में आज मैं बहुत विस्तार से नहीं आप ऐसे नहीं हैं। आप आध्यात्मिकता हितेषी हैं बताऊंगी क्योंकि समय का अभाव है। परन्तु यदि जिसके उपफल स्वरूप साधक के शरीर में भी आप किसी पुस्तक को पढ़ेंगे-मैंने बहुत अधिक सुधार होता है। क्योंकि यदि इस शरीर में ईसामसीह पुस्तकें नहीं लिखी हैं-परन्तु यदि आप मेरे प्रवचनों को जागृत होना है. परमात्मा ने इस शरीर में आना को सुनेंगे और जो लिखे हुए हैं उन्हें पढ़ेंगे तो आप है तो शरीर को शुद्ध होना ही चाहिए। यह कार्य जान जाएंगे कि किस प्रकार कुण्डलिनी अधिकतर कुण्डलिनी करती है। परन्तु अस्पतालों की तरह से रोगों को ठीक करने में सहायक होती है-सिवाय उन यह कोई अलग कार्य नहीं है। मैं ऐसे लोगों को रोगों के जिन्हें मानवीय तत्व बढ़ावा देते हैं-जैसे जानती हूँ जो रोग मुक्त करने की शक्ति के कारण किडनी रोग। गुर्दा रोग के एक रोगी का इलाज भी पगला गए और नियमपूर्वक अस्पतालों में जाने लगे सहजयोग द्वारा हो चुका है। नि:सन्देह हम गुरदा रोग तथा अस्पतालों में ही उनका अन्त हो गया। उन्होंने का इलाज कर सकते हैं परन्तु व्यक्ति यदि एक बार कार्यक्रमों में भी आना छोड़ दिया। वो मुझे मिलने मशीन (डायलिसिस) पर चला जाए तो कोशिश भी ना आते। करने के बाद भी उसे रोग मुक्त नहीं किया जा सकता। उसका जीवन बढ़ाया जा सकता है परन्तु व्याधि पूरी तरह से रोगमुक्त नहीं किया जा सकता है। तो यह परमात्मा की सबसे बड़ी बाधा है। यह परन्तु दूर रोग करना किसी भी प्रकार से आपका शारीरिक रोगों की व्याधि है। शारीरिक रोग के कार्य नहीं है, यह बात आपको याद रखनी है कोई कारण भी आपको इतना नीचे नहीं गिर जाना चाहिए। भी सहजयोगी लोगों के रोग ठीक करने में न लग आपको यदि कोई समस्या भी है तो उसे भूल जाएं, जाए। रोगी मेरे फोटो का उपयोग कर सकते हैं। शनै शनैः आप ठीक हो जाएंगे। कुछ लोगों को ठीक परन्तु आपको रोग दूर करने के कार्य में नहीं लग होने में समय लगता है। मुख्य बात तो अपनी जाना है क्योंकि इसका अर्थ यह है कि आप स्वयं आत्मा को प्राप्त करना है। अतः हमेशा यही न को बहुत बड़ा परोपकारी मान बैठे हैं। मैंने देखा है कहते रहें, "श्रीमाताजी, मुझे ठीक कर दीजिए, कि जो भी सहजयोगी रोग दूर करने के कार्य में लग मुझे ठीक कर दीजिए, मुझे ठीक कर दीजिए।" उनके लिए यह कार्य पागलपन बन गया और आप मात्र इतना कहें, श्रीमाताजी, मुझे वो लोग भूल गए कि उन्हें भी कोई पकड़ हो गई आध्यात्मिक जीवन में बनाए रखिए ।" आप स्वतः हैं तथा कुछ कष्ट हो गया है । परन्तु वह स्वयं को ही ठीक हो जाएंगे। हो सकता है कुछ लोगों को ठीक नहीं करते और अन्ततः, मैं देखती हूँ, कि वो ठीक होने में समय लगे। परन्तु आप तो जीवन भर सहज से बाहर चले जाते हैं परन्तु मेरे फोटो से बीमार रहे. तो ठीक होने में भी यदि कुछ समय लग गए

जाए तो कोई बात नहीं। भिन्न रोगों को ठीक करने की विधियाँ जो हमने बताई हैं उनके अनुसार कार्य स्वास्थ्य महत्वपूर्ण है, परन्तु आपका चित्त आत्मा पर होना चाहिए। चित्त आपकी आत्मा पर होना चाहिए क्योंकि चित्त ही भिन्न दिशाओं करें। इस देश (लंदन) में विशेष रूप से जिगर तथा जोड़ों की समस्या है। इन सभी चीजों का हमारे पास में दौड़ता है और उलझ जाता है। आप इसे इलाज है जिसे अपने शरीर के प्रति कर्तव्य मान कार्यान्वित होने दें और यह कार्यान्वित हो कर, इस मन्दिर के प्रति कर्त्तव्य मान कर हमें जाएगा। कार्यान्वित करना होगा। आपके जीवन का यही अन्तिम लक्ष्य नहीं होना चाहिए। घर की सफाई की अकर्मन्यता तरह से यह तो एक छोटा सा कार्य है जिसे करके भूल जाना चाहिए। आप मुझसे पूछ सकते हैं कि कहा जाता है अर्थात् व्यक्ति के अन्दर कार्यान्वित सफाई क्यों करनी है? जब मैं ऑक्सटेड में थी तो करने की इच्छा का अभाव होना। निःसन्देह जो लोग मैंने देखा और हैरान हुई कि सभी लोग हर चीज को बेकार हैं और जो आत्मसाक्षात्कार नहीं पाना चाहते चमकाते थे, बगिया को भी बहुत अच्छी तरह से दूसरी बाधा जो मैं महसूस करती हैं उसे अकर्मन्यता उन्हें भूल जाएं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के रखा जाता था। हर चीज को चमका कर रखा जाता पश्चात भी लोगों के अन्दर एक समस्या है कि वो था फिर भी उनके घर में चूहा तक नहीं घुसता था। इसे कार्यान्वित नहीं करना चाहते। सहज रूप से महीनों तक उनके घर में आते या घर से बाहर यदि कहा जाए तो वे आलसी हैं। हैरानी की बात है निकलते मुझे कोई दिखाई नहीं देता था। दोनों कि इस देश में आलस्य बहुत अधिक है। उस दिन पति-पत्नि सफाई के विषय में बहुत ही सावधान मैंने एक फिल्म देखी जिसमें दर्शाया गया था कि थे। मैं नहीं जानती कि सफाई-स्वच्छता आदि के आपके यहां से लोग जर्मनी गए और वहाँ विषय में इतनी सावधानी किस लिए? यहाँ तक कि चालकविहीन वायुयान बनाने वाले कारखाने को पति-पत्नि एक दूसरे से भी बात नहीं करते थे, यह उड़ा दिया। उन लोगों ने कुछ बहुत ही ज्यादा कर सब मैंने देखा। हमारे घर के अंतिरिक्त वहाँ सात दिया ताकि हमारे बच्चे भविष्य में अच्छी तरह से और घर थे। सभी लोग हैरान थे कि हमारे घर पर रह सकें। परन्तु सहजयोग में हमें बहुत ही सावधान रहना होगा। लोग जब सहजयोग में आते हैं तो क्या के एक इतने लोग कैसे आते हैं। उन्होंने पूछा कि क्या आपका घर सबके लिए खुला है?' मैंने कहा, "हाँ, होता है? उन्हें आत्मसाक्षात्कार मिल जाता है, शीतल यह घर सबके लिए खुला है।" उनकी समझ में चैतन्य लहरियाँ प्राप्त हो जाती हैं जो बाद में समाप्त नहीं आया कि हमें क्या समस्या हैं। कोई भी हो जाती हैं। इसका कारण यह है कि वो इसे चमकाई हुई और स्वच्छ चीजों को नहीं देखेगा। इस कार्यान्वित ही नहीं करना चाहते। अकर्मन्यता एक प्रकार हम भी उस सीमा तक नहीं जाते जहाँ पर अन्य खतरा है। चैतन्य लहरियाँ जब चली जाती हैं। यह वास्तविक सहजयोग बन जाए जो कि परमात्मा तो एक साल के बाद वो वापिस आते हैं और कहते के लिए महत्वपूर्णतम है। हैं" श्रीमाताजी, हमें इस पर विश्वास नहीं है, परन्तु

मेरे पेट में कुछ दर्द है, क्या आप इसे ठीक कर बीमारी है जो फैलती है। मान लो, पति-पत्नी हैं देंगी ?" सहजयोग की सभी शक्तियों से लैस होने के और पत्नी इसी प्रकार (अकर्मन्य) है। अपनी पत्नी स्थान पर आप बेकार व्यक्ति बन जाते हैं और यहां को उठाने के स्थान पर पति, विशेष रूप से पश्चिमी आ कर मेरा समय बर्बाद करते हैं। यह सभी देशों में, पत्नी के सम्मुख घुटने टेक देता है। भारत शक्तियां आपके अन्दर विद्यमान हैं। यह आपकी में इसका बिल्कुल उलट है। क्योंकि वहाँ पर पति सम्पत्ति है। यह आपकी आत्मा की सम्पत्ति है जो बहुत ही ज्यादा रौबीले हैं तो वहाँ पत्नियाँ पतियों के आपके अन्दर आपकी देखभाल कर रही है। निश्चित सम्मुख झुक जाती हैं। होता क्या है कि जिन दो रूप से यह अपनी अभिव्यक्ति करेगी। परन्तु जिन लोगों ने प्राप्त किया हुआ है वो भी उसे खो देते -हैं। बाधाओं को आप स्वीकार कर लेते हैं उनके कारण यदि उनमें से एक जो साक्षात्कार की दृढ़ अवस्था यह अपनी अभिव्यक्ति नहीं कर पाती। हम कह में होता यदि वह अपनी इच्छाशक्ति का उपयोग सकते हैं कि यह अकर्मन्यता है जो इसे कार्यान्वित करता कि 'नहीं, मैं इसे देखूंगा देखने के लिए मेरे नहीं होने देती। बिना यह जाने, बिना यह समझे कि पास दृष्टि है, मुझे देखने दीजिए, मुझे स्वयं को एक सहजयोग क्या है, किस प्रकार इसका उपयोग करना अवसर देने दीजिए' तो दोनों बहुत अच्छे है, चैतन्य लहरियाँ क्या हैं और किस प्रकार यह आत्मसाक्षात्कारी होते। वे यदि इसे स्वीकार करते तो कार्यान्वित होती हैं, लोग कहते हैं" ओह! यह बहुत यह कार्यान्वित होता और वह दूसरी सीढ़ी तक बड़ी बात है", क्योंकि वो वास्तविकता का सामना पहुँच जाते हर चीज़ तीव्र गति से उड़ने वाले नहीं करना चाहते। ज्योंही कुण्डलिनी उठती है, वायुयान की तरह से नहीं हो सकती कि यहाँ आप आंखें बंद होने से पूर्व यान में बैठे और अगले क्षण चाँद पर पहुँच जाएं। ज्योंही प्रकाश अन्दर आता है, आप यदि चाँद पर भी हैं तब भी आपके अन्दर जाता है और तब आप आंखें खोलना ही नहीं चाहते तीसरी प्रकार का खतरा शुरु हो सकता है। ही आप देखते हैं कि अचानक प्रकाश अन्दर आ क्योंकि आपके लिए यह बहुत ही बड़ी बात होती है क्योंकि अब तक आप सोए हुए थे। यदि आप थोड़ी सी आंखें खोल भी लें तो भी, हे परमात्मा! संशय यह संशय कहलाता है अर्थात् सन्देह करना। मेरी आप प्रकाश का सामना नहीं करना चाहते क्योंकि समझ में नहीं आता कि सन्देह रूपी पागलपन का आप तो उस अवस्था से एकरूप हैं, आप अपनी वर्णन किस प्रकार किया जाए! उदाहरण के लिए, आंखें खोलना ही नहीं चाहते। कुण्डलिनी आपकी यहाँ पर आए हुए आप लोगों का न जाने कितना आँखें खोलना चाहती है इसमें कोई सन्देह नहीं प्रतिशत अगले दिन इस वक्तव्य के साथ नहीं आया परन्तु आप पुनः अपनी आँखें बन्द कर लेते हैं। तो कि"अभी मुझे सन्देह है।" क्या यह विवेक का अकर्मन्यता के सम्मुख झुक जाने के लिए आप चिन्ह है? आप किस चीज़ पर सन्देह कर रहे हैं । स्वतन्त्र हैं। अब यह सामूहिक भी हो सकती है। मैं अब तक आपने क्या प्राप्त कर लिया है? यह आपको इतना बता सकती हूँ कि यह बहुत बड़ी सन्देह कहां से आता है? यह आपके 'श्रीमान

अहम्' कि देन है जिसके विषय में मैंने एक भाषण को उठते हुए धड़कते हुए और सहस्रार तोड़ते हुए के बाद दूसरा भाषण दिया है। यही 'श्रीमान अहम्' देखेंगे। फिर भी वो बैठ जाएंगे ओर कहेंगे कि"मुझे इस पर सन्देह कर रहे हैं क्योंकि वो नहीं चाहते कि सन्देह है ।" अब आप हैं कौन? आप कहाँ तक आप पूर्ण (Absolute) को पा लें। अपने अहम् पहुँचे हैं? क्यों आप सन्देह कर रहे हैं? किस चौज क के साथ आप एकरूप हैं और आप भी इसे खोजना पर आप सन्देह कर रहे हैं? अपने विषय में आपने नहीं चाहते क्योंकि हर समय यही 'श्रीमान अहम्' क्या जाना है। इस बिन्दु पर आकर आप विनम्र हो आपके जीवन का पथ-प्रदर्शन करते रहे हैं। अब जाएँ। अपने हृदय में विनम्र हो कर कहें" मैंने स्वयं आप शक करना चाहते हैं।- किस पर शक? आप को नहीं जाना है, मुझे स्वयं का ज्ञान प्राप्त करना है, का सन्देह क्या है? आपको शीतल चैतन्य लहरियाँ अभी तक मुझे स्वयं का ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ महसूस होती हैं तो ठीक है. बैठ जाइए। यह तो वैसे मुझे यूर्ण (Absolute) प्राप्त नहीं हुआ है, कौन से होगा जैसे विश्वविद्यालय में प्रवेश लेकर कोई व्यक्ति उपकरण (शरीर तन्त्र) से मैं सन्देह कर रहा हूँ? वहाँ बैठ जाए और अध्यापक कहे," यह चित्र कुण्डलिनी जागृति में यही सबसे बड़ी बाधा है कि (Diagram) है यह मैं आपको देता हूँ" और वह जागृति के बाद भी 'संशय' बना रहता है। विद्यार्थी उठ कर कहे कि, "हमें इस पर सन्देह " है।" तो बिचारा अध्यापक क्या कहे? परन्तु वहाँ पर प्रमाद विद्यार्थी ऐसा नहीं करते क्योंकि उन्होंने फीस दी हुई होती है, उसके लिए धन खर्चा होता है। चाहे यह कारण हम हर समय लडखड़ाते रहते हैं। हर समय चौथी बाधा को हम प्रमाद कह सकते हैं। इसके भयानक नाटक हो, उबाऊ हो, फिर भी हम इसे बेवकूफी भरे प्रश्न करते हैं । कहने से अभिप्राय यह सीखते हैं क्योंकि हमने इसके लिए पैसा खर्चा है। है कि मान लो आप सड़क पर चल रहे हैं और हम इसे सीखते हैं 'आखिरकार हमने इस पर पैसा आपको यूरोपियन तरीके से गाड़ी चलाने की आदत खर्चा है, क्या किया जाए?' परन्तु सहजयोग के लिए है तो सदैव आप गलत दिशा में ही गाड़ी मोडेंगे। आप पैसा भी नहीं दे सकते। मैंने लोगों को सभी परन्तु लन्दन में तो आपको पकड़ लिया जाएगा। प्रकार की मूर्खता करते हुए देखा है । लोग कई-कई इसी प्रकार से आप अभी तक यूरोपियन शैली में गुरुओं को स्वीकार करते हैं। कोई गुरु कहता है," मैं गाड़ी चला रहे थे, अब आप लन्दन में हैं, तो तुम्हें उड़ना सिखाऊंगा।" इस बात के लिए वो पूरी बेहतरी इसी बात में है कि लन्दन के लोगों की तरह से तैयार होते हैं। इसके लिए वो धन देते हैं शैली को अपना लें और वहां के आवश्यक नियमों और जरा भी सन्देह नहीं करते कि एसी घोषणा का पालन करें। परन्तु आप इसमें सन्देह कर रहे हैं। करने वाला व्यक्ति क्या स्वयं भी कभी उड़ा है? यह मुख्य वात है। फिर आप इसके अनुरूप नहीं क्या आपने कहीं उसे उड़ते हुए देखा है? कृपा चलना चाहते। तो प्रमादरूपी दुर्गुण का उदय इसलिए करके उसे उड़ने के लिए कहें तो सही। वे कुण्डलिनी होता है क्योंकि यहां पर आने वाले सभी लोगों के को उठते हुए देखेंगे, अपनी आँखों से वे कुण्डलिनी लिए कुण्डलिनी की जागृति निःशुल्क है, सभी

लोगों के लिए, चाहे, नरक में रहे हों या स्वर्ग में, या वो पूरे विश्व को बताते हैं और यह कहते हुए कि चाहे उन्होंने दुनिया के सभी दुष्कर्म किए हों परन्तु 'इस चीज़ का चैतन्य ठीक नहीं है', 'उस चीज़ का हम सहज-योग को दोष देते हैं अपने अन्दर स्वतः चैतन्य ठीक नहीं है', सभी पर रौब डालते हैं घटित होने वाली इस घटना को हम दोष देते हैं. जबकि वास्तव में उन्हें चैतन्य लहरियों पर स्वामित्व कभी स्वयं को दोष नहीं देते कि, नहीं मैंने ही यह नहीं होता। अब मुझे सावधान होना पड़ेगा। किसी गलती की होगी। ठीक है, कोई बात नहीं। मैं यदि गुरु की तरह से मैं बात नहीं कर सकती। इसलिए गलती करता हूँ तो इन्हें ठीक भी करूंगा, ठीक है। मैं कहती हूँ कि ठीक है आप स्वयं को बन्धन दे नि:सन्देह श्रीमाताजी क्षमा करती है, परन्तु कई बार लें और अपने हाथ मेरी ओर करके देखें। किसी मेरी क्षमा भी बेकार होती है, क्योंकि जब तक आप तरह से यदि उन्हें पता चल जाए कि मैं जान गई हूँ अपने अन्दर यह महसूस नहीं करते कि मैंने यह कि वो झूठ बोल रहे हैं तो बस वो तो समाप्त हो गलती की तब तक आप इस मार्ग पर जाने के स्थान गया। अंत: उनका झूठ भी मुझे स्वयं तक रखना पर दूसरे मार्ग पर जाने लगते हैं। आप उस मार्ग पर पड़ता है। इस बारे में मैं बहुत सावधान हूँ क्योंकि जानती हूँ कि वो लोग भयानक फिसलन पर खड़े चले गए हैं तो सड़क पर चलने का नियम समझना मैं होगा। अत: प्रमाद रूपी बाधा होने के पश्चात् हमारे हुए हैं। किसी चीज़ को कहने की मेरी शैली चाहे अन्दर एक अन्य अंतर्निहित समस्या खड़ी हो जाती रूखी ना हो फिर भी वो चीज़ घटित हो सकती है। है। जिसे कहते हैं: भ्रमदर्शन, अर्थात दृष्टि भ्रम । हमें लगता है, विशेष रूप से उन लोगों को जो LSD हमारे जो विचार हैं उनसे हमें बहकना नहीं चाहिए। अत: व्यक्ति को यह बात समझ लेनी है कि सत्य भ्रमदर्शन होने पर डटे रहने में ही हमारा हित है। अपने विषय में तथा अन्य इस प्रकार के नशे लेते हैं। वो मुझे नहीं देखते। कभी-कभी तो उन्हें केवल प्रकाश दिखाई विषयचित्त देता है या इसी प्रकार का भूत या भविष्य, या कोई एक अन्य बाधा जो व्यक्ति में आ जाती है वह और भ्रम। वे इसी प्रकार कोई अन्य भ्रम देख सकते है 'विषयचित्त'। इस स्थिति में हमारा चित्त उन हैं। आप यदि मुझे स्वप्न में देखते हैं तो ठीक है या पदार्थों की ओर आकर्षित होता है जो आत्मसाक्षात्कार स्वप्न में यदि किसी और चीज़ को देखते हैं तो से पूर्व हमें रुचिकर थे, जिन पर पहले हमारा चित्त है। ठीक है। परन्तु यदि आप भ्रम दर्शन करना शुरु कर होता था। मान लो आपका चित्त क्रिकेट की ओर देते हैं तो आपमें भ्रम विकसित हो जाता है। इसकी आकर्षित थी। ठीक है, परन्तु आप को यह रोग नहीं सबसे बड़ी कमी यह है कि लोग इसके बारे में झूठ होना चाहिए। मेरा कहने से अभिप्राय यह है कि बोलने लगते हैं। मैं सभी के विषय में जानती हूँ। क्रिकेट का अर्थ यह नहीं है कि आप क्रिकेट का भ्रम दर्शन यदि शुरु हो जाता है तो यह चैतन्य बल्ला ही बन जाएं। तथा क्या आप किसी अन्य लहरियों के लिए बहुत भयानक होता है। कुछ लोगों चीज़ के लिए बिल्कुल बेकार हैं, सभी व्यावहारिक को स्वयं पर पूर्ण विश्वास है यह बात मैं देखती हूँ। कार्यों के लिए क्या आप मर चुके हैं। किसी भी

चीज़ के प्रति पागल आकर्षण आप के चित्त को कार्य किया। मैं जानती हूँ कि सभी लोग अब उससे नाराज नहीं हूँ क्योंकि उसने जो भी कुछ किया भूतवाधित हो कर किया। कोई नहीं अत्यन्त गलत अवस्था में ले जाता है। अत: यह नाराज़ हैं परन्तु मैं सहजयोगियों के लिए ठीक नहीं है । आज का प्रवचन मुख्यत: सहजयोगियों के लिए जानता कि भूतवाधित अवस्था में व्यक्ति कौन सा है। मैं बता रही हूँ कि आत्मसाक्षात्कार को बनाए पागलपन कर बैठे। कहने से अभिप्राय यह है कि रखने के मार्ग में हमारे सम्मुख कौन सी अन्तर्निहित ऐसे लोगों को तो पागलखाने पहुँच जाना चाहिए कठिनाईयाँ है। इन्हें समझ लेना वहुत ही आवश्यक परन्तु सहजयोग के कारण वो उस स्थान पर स्थिर है। इन कठिनाईयों के अतिरिक्त दो अन्य बहुत बड़े खतरे, जिन के कारण हम कष्ट उठाते हैं, वो को उठती है और फिर नीचे गिर जाती है। मनुष्य के निम्नलिखित हैं । एक तो लोग भूतबाधित हो जाते हैं अन्दर यह अन्तनिर्हित भय है। बहुत से लोगों ने और उनके मस्तिष्क में बहुत सी धारणाएँ भर जाती मुझसे पूछा," श्रीमाताजी, आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर हैं। वो भजन गाने लगते हैं आदि-आदि। यह चौज़ें लेने के पश्चात् क्या यह स्थिति बनी रहती है?" मुझे उलझन में डाल देती हैं, मेरी समझ में नहीं यह स्थिति बनी रहती है। इसका कुछ अंश बना आता कि क्या कहा जाए। उनके माध्यम से बोलता रहता है। कभी तो इसका बहुत थोड़ा हिस्सा बना नहीं हुए हैं जहाँ उन्हें होना चाहिए। दो अन्य स्थितियाँ हैं जिनमें कुण्डलिनी ऊपर हुआ असुर मुझे दिखाई दंता है। परन्तु मेरी समझ में रहता है और कभी पूरी की पूरी कुण्डलिनी वापिस नहीं आता कि किस प्रकार उन्हें बताया जाए कि खिंच जाती है। यह वापिस खिंच जाती है। जब ऐसा ' है तब आप कहेंगे," हमें संदेह होने लगा है । ' कृपा करके बन्द कर दीजिए।' मेरी स्तुति वो लोग होता गाते हैं फिर भी मुझे पता होता है कि बास्तरव में यह बह कहाँ लिखा हुआ है कि आपका उत्थान होगा क्या है। पर वे लोग मेरे पास आते हैं और कहते और आप उस उच्च स्थिति में स्थायी रूप से हैं," श्रीमाताजी, हम आपको एक भजन सुनाएंगे। " स्थापित हो जाएंगे चाहे आप के अन्दर कोई भी ठीक है । मैं कुछ नहीं कह सकती क्योंकि वो लोग नहीं मानते हैं कि उन्हें यह ज्ञान कहाँ से मिलता है। मुझे भारत जाना हो तो भी मुझे रोग-अवरोधी उनके अन्दर यह कार्य कोई अन्य कर रहा है। इन टीकाकरण कराना होगा। पासपोर्ट लेना होगा, साक्षात्कार सभी समस्याओं के कारण आप भूत बाधित हो जाते देना होगा। और जब आपको परमात्मा के साम्राज्य में हैं। उस दिन कोई व्यक्ति मेरे पास आया और कहने प्रवेश करना है तब भी तौ आपका जाँचा जाएगा। लगा." श्रीमाताजी, मुझे स्वयं पर बहुत विश्वास होता केवल जाँचा ही नहीं जाएगा यदि आपको कुछ चला जा रहा है। " चास्तव में दृढ़ विश्वास. तथा मैं कृपा अंक दे कर यान में बिठा दिया गया है तो हो कोई बहुत बड़ा कार्य करता चाहता हूँ।" और उसने सकता है कि आपको उतरने के लिए कह दिया वो कार्य किया। पहले तो उसने अपने अन्दर वो जाए। कुछ लोगों के साथ ऐसा होता है कि उनकी बाधा आते हुए देखी और फिर बड़े जोर शार से कुण्डलिनी नीचे को गिर जाती है। यह बहुत ही कमियाँ रही हों। क्या यह संभव है? यहाँ से यदि

नहीं हो जाता-यह मेरी जिम्मेदारी नहीं है, यह तो भयानक चिन्ह है। यह समस्या गलत गुरुओं के कारण, गलत स्थानों पर जाने के कारण, मृत आत्माओं एक अवस्था है-जिसमें आपके हाथों के इशारे से तक पहुँचने तथा काला जादू करने के कारण होती कुण्डलिनी उठेगी। जब तक आप इस अवस्था को है। जो लोग अवतरण नहीं हैं उनके सम्मुख सिर प्राप्त नहीं कर लेते तब तक कृपा करके इसे झुकाने से, गलत प्रकार के देवताओं की पूजा करने कार्यान्वित करने में लगे रहें, आलसी न बने। से, गलत प्रकार के कर्मकांड करने से, गलत समय आपको अपने चहूँ ओर देखना है, लोगों से मिलना पर व्रत रखने से, व्रत, कर्मकान्डों तथा चक्रों का है, उनसे बातचीत करनी है। जितना अधिक आप मतलब न समझने से और पूर्ण सहजयोग की इसके बारे में बतायेंगे, जितना अधिक आप इसे सम्यकता को न समझ पाने के कारण यह समस्या करेंगे, जितना अधिक आप इसे देंगे उतना ही होती है। कुछ लोगों में, आपने देखा है कि कुण्डलिनी अधिक यह प्रवाहित होगा। जितना अधिक आप उठती है और तुरन्त गिर जाती है। यह अत्यन्त अपने घर पर बैठकर सोचेंगे. यह "ओह! मैं घर पर पूजा कर रहा हूँ", तो कुछ नहीं होगा। यह निष्क्रिय अन्तिम खतरा, जिसका ज्ञान आपको होना चाहिए, होता चला जाएगा। आपको इसे अन्य लोगों को देना यह है कि आपको लगने लगता है कि आप होगा। अधिक से अधिक लोगों को आत्मसाक्षात्कार भयानक बात है। वास्तव में यह कष्टकर भी है। परमात्मा बन गए या किसी अवतरण सम बन गए। देना होगा. हजारों लोग इसे प्राप्त करेंगे। अत: यह यह बहुत बड़ा खतरा है। तब आप कानून को अपने समझ लेना आवश्यक है कि आपको इस बात से हाथों में लेने लगते हैं, दूसरे लोगों पर हुक्म चलाने धोखा नहीं खाना कि ब्रह्मांड की सभी शक्तियां लगते हैं तथा बहुत ही अनियन्त्रिता से कार्य करने आपमें प्रकट हो गई हैं। इन शक्तियों की अभिव्यक्ति लगते हैं तथा अपने आपसे अत्यन्त संतुष्ट हो जाते जब आपमें होगी तब आप इनके विषय में जान पायेंगे। आप कल्पना करें कि सूर्य कहे "मैं सूर्य हैं। यह बहुत बड़ा खतरा है। विनम्रता एक मात्र मार्ग है जिससे आप जान हूँ।" क्या वो कहता है कि मैं सूर्य हूँ? कहने को सकते हैं कि आपके सम्मुख विशाल सागर है। ठीक क्या है? आप जा कर यदि सूर्य से पूछे," क्या आप है कि आप नाव पर सवार हो गए हैं परन्तु आपने सूर्य हैं?" तो वो कहेगा" हाँ मैं ही सूर्य हूँ, इस बहुत कुछ सीखना है, बहुत कुछ समझना है तथा विषय में में क्या करू?" यह इतनी सहज चीज़ है अभी आपने अपने चित्त की ओर ध्यान देना है, कि आप अत्यंत सहज व्यक्ति बन जाते हैं, पूर्णतः अपनी चेतना की ओर ध्यान देना है। अभी आपने सहज। न तो इसमें कोई छूपाव है और न ही कोई इस प्रकार से कार्य करना है कि आप वास्तव में जटिलता, आप वही हैं। कोई आपसे अटपटा प्रश्न स्वयं को पूर्ण सहज-योगी के रूप में स्थापित कर पूछता है तो आप कहते हैं,"इसमें पूछने वाली सकें, जिससे की सामूहिकता आपके अस्तित्व का कौन-सी बात है?" यह सत्य है। मेरा अर्थ यह है अंग-प्रत्यंग बन जाए और आपमें किसी भी प्रकार कि मैं आत्मसाक्षात्कारी हूँं। मैं आत्मसाक्षात्कारी हूं। के संशय न रह जाएं। जब तक आपमें यह घटित इससे क्या फर्क पड़ता है?" इस सूझ-बूझ से हमें

ना सहज-योग में जाना है। मैं कहँगी कि जिस चमत्कारिक समझ लें कि आप भी एसा ही कर सकते हैं। अत: ढंग से यह कार्य कर रहा है उससे में हैरान हूँ और आप सावधान रहे। सावधान रहे। यह कार्यान्वित हो रहा है। आप लोग इसे अपने अत: आज जब हम ईसा-मसीह के जीवन की अन्दर स्थापित कर सकते हैं। महान घटना का उत्सव मना रहे हैं तब हमें जान अब आपमें से कुछ लोग तो परिंधि रेखा (किनारे लेना चाहिए कि ईसा-मसीह हमारे अन्दर उत्पन्न हो पर) खड़े हैं । उन्हें हम किनारे पर रखते हैं, यह गए हैं तथा बैथलहैम ( Bethlehem) हमारे बात आप अच्छी तरह से जानते हैं। कुछ लोग मध्य अन्तनिहित है। आपको वैधलहैम जाने की कोई में आ जाते हैं और कुछ बहुत थोड़े से, अन्दर वाले आवश्यकता नहीं। यह हमारे अन्दर स्थित है। बृत्त में (मध्य-बिन्दु) पर है । सभी लोग ऐसी स्थिति में है जहां से परिधि रेखा से उन्हें बाहर किया जा ईसा-मसीह वहाँ है और हमने उनकी देखभाल करनी हैं। वे अभी बालक हैं, आपने उनका सम्मान सकता है। तब आपकी समझ में नहीं आता कि करना है सहजयोगी ने ऐसा व्यवहार क्यों किया। किसी वास्तव में प्रकाश बढ़ता है और लोग मान लेते हैं सहजयांगी को यदि आप ऐसा व्यवहार करते हुए कि आप आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति हैं। कोई भी संदेह देखें, परिधि की बाह्य रेखा पर जाते हुए देखें तो नहीं करेगा कि आप आत्मसाक्षात्कारी हैं । और उनकी देखभाल करनी है। अतः परमात्मा आपको धन्य करें।

Caxton Hall, London (England)

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