Public Program, Science/Trigunatmika 1975-03-29
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29 मार्च 1975
Public Program
मुंबई (भारत)
Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft
1975-03-29 Public Program Sweet Home Hall Dadar Mumbai Hindi
आज तक आपको मैंने काफी मर्तबा, काफी समझा के, दिखा के प्रैक्टिकल करके, आपसे पहले भी बताया था कि सहज योग क्या चीज है उसमें क्या होता है, यह कैसे घटित होता है, उसकी काफी मैंने वैज्ञानिक व्याख्या दी थी साइंटिफिक डेफिनिशन (वैज्ञानिक परिभाषा) दिए थे। आखिर जिसे हम साइंस साइंस (विज्ञान विज्ञान) कहते हैं वह मनुष्य द्वारा बनाया हुआ नहीं है। यह मनुष्य ने जो खोजा हुआ है, उसे वह साइंस (विज्ञान )कहता है, लेकिन उसने इस संसार की कोई भी चीज बनाई हुई नहीं है। उसका कोई भी नियम उसका बनाया हुआ नहीं है। कोई सा भी शास्त्र उसका बनाया हुआ नहीं है। गणित का शास्त्र भी उसका बनाया हुआ नहीं है। उसकी नियम, उसकी विधि सब परमात्मा की बनाई हुई है। जैसे कि आप देखिए एक सर्कल (circle, वृत्त) होता है और उसका जो व्यास (diameter) होता है, उसके और उस व्यास के परिधि (circumference) में जो एक रेशों ( अनुपात , ratio) होता है, प्रोपोरशन ( अनुपात , proportion) होता है, वह आपने बनाया हुआ नहीं है। उसका नियम परमात्मा ने ही बनाया हुआ है। वह इससे ज्यादा होगा या इससे कम होगा ऐसा भी नहीं हो सकता है। वह जितना है, उतना ही रहेगा, वह रेशों ( अनुपात , ratio) बंधा हुआ है। सब नियम जितने बनाए हुए हैं, वह परमात्मा के बनाए हुए हैं।
आप लोगों ने, मुझ से बहुत से पूछा है कि माता जी आप साढ़े तीन (3 1/2) कुंडल क्यों कहती हैं? कुंडलिनी के साढ़े तीन (3 1/2) कुंडल क्यों कहती हैं। यह एकदम साइंटिफिक (वैज्ञानिक) बात है समझने वाला है, आपने कभी घड़ी को देखा है क्या ? घड़ी में अगर आप देखे, तो सरकल (circle, वृत्त) का जो व्यास (diameter) होता है, जिसको कि आप डायामीटर(diameter) कहते हैं, और जो सरकम्फ्रेंस (circumference) होता है, तो अगर वोह सात हो, तो यह बाईस ही होना पड़ता है, ना ज्यादा होगा ना कम होगा। वह सात होगा तो यह बाईस होगा। उसका रिलेशनशिप ( संबंध ) हमेशा बाईस और सात में होगा और उसका नाम एक कोएफ़िसिएंट बनाके पाया (π, pi) बनाया है। यह साइंस है। ना तो वह ( अनुपात , ratio) सात से आठ होगा और अगर वह आठ होगा तो इसी प्रोपोरशन ( अनुपात , proportion) में होगा, हमेशा एक ही प्रोपोरशन ( अनुपात , proportion) मे रहेगा। अब यह सात क्यों है डायामीटर? जब बिंदु में से ,मध्य बिंदु (centre of circle) में से जब डायामीटर गुजर जाता है, तो उसे सात होना पड़ता है।
इसी प्रकार हमारे अंदर जो सुषुम्ना गुजर गई हैं, उसको भी सात होना पड़ता है। उसमें भी सात चक्र बनाए गए हैं। और उसमें साढ़े तीन (3 1/2) इसलिए होना पड़ता है, क्योंकि अगर डायामीटर को अगर आप आधा कर दीजिये तो आप साढ़े तीन (3 1/2) हो जाते हैं। अगर आप साढ़े तीन वलय बनाएं, अगर आप साढ़े तीन वलय बनाएं, उस पाया (π, pi) के रेश्यो ( अनुपात ) में अगर आप साढ़े तीन वलय बनाये, एक के ऊपर एक, एक के ऊपर एक, कुंडली जैसे ,और बराबर बीच से अगर आप लकीर खींचे तो उसके बराबर सात टुकड़े हो जाएंगे लेकिन वह साढ़े तीन वलय होगा। है कोई यहाँ साइंटिस्ट मैथमेटिशियन (वैज्ञानिक, गणितज्ञ)? बराबर है कि नहीं? साढ़े तीन वलय जब इस तरह से आप बनाएंगे, एक के ऊपर एक, इस तरह से, एक के ऊपर एक, साढ़े तीन वलय जब आप बनाएंगे और जब उसके बराबर बीच में से, बीच में से, बीच में से बिंदु निकालेंगे, तो उसके अंदर में सात जगह वो कटेगा और इसीलिए अपने अंदर सात चक्र हैं। लेकिन सरकम्फ्रेंस (circumference, परिधि) का हिसाब किताब अलग होता है। अगर आप बाइस का आधा करिए तो ग्यारह होता है। देखिए कितना गणित है। हर एक चीज का कितना गणित है । आप देखिए जो मध्य में चीज चलती है, वह सात के हिसाब से चलती है और जो सरकम्फ्रेंस (circumference, परिधि) में, जो उसके प्रकाश में चीज चलती है वह ग्यारह के हिसाब से चलती है। इसलिए अगर अपने यहां किसी को रुपया देते हैं, तो ग्यारह देते हैं, अब आपको समझ में आया होगा कि ग्यारह का क्या महत्व है । हमारे शास्त्रों में जो चीजें लिखी हुई हैं, वह अनादि हैं । उसको बड़े-बड़े गणितज्ञ भी नहीं समझ पाएंगे, क्योंकि वह साधुओं ने जो कुछ खोजा, वह सब कुछ लिख दिया । उन्होंने लिखा कुंडली साढ़े तीन (3 1/2) बार लपेटी हुई एक कोइल (coil) है, एक कुंडल है, लेकिन उन्होंने यह नहीं बता पाए कि क्यों है? साइंटिस्ट (वैज्ञानिक )बता पाएंगे कि साढ़े तीन (3 1/2) अगर इस तरह से आप लपेटियेगा तो पूरा सरकम्फ्रेंस (circumference, परिधि) उसका कवर हो सकता है । उसके बगैर हो ही नहीं सकता । और उसमें , बराबर सात, ऊपर से नीचे तकअगर आप भेद दीजिए तो बराबर सात चक्र तैयार हो जाएंगे ।
अब साइंटिस्ट (वैज्ञानिक ) इधर खोज रहे हैं और उन्होंने उधर खोज लिया । अब इन दोनों के बीच का एक दुआ (विच्छेद) है जो सहयोग से दूर हो सकता है । सहज योग, साइंस (विज्ञान) जहां रुक गया है साइंस (विज्ञान) जहां झुक गया है और साइंस (विज्ञान) जहां हार गया है वहां उसको आशा दे सकता है । और उसे जता सकता है कि जैसा उन्होंने बताया है, वही तुम्हारे किताबों में लिखा हैं, परिभाषाओं का फर्क है और उसका कारण क्या है ? सहज योग उन साधुओं से भी परे आपको ले जाएगा, ऋषि-मुनियों से भी परे आपको ले जाता है जिन्होंने खोज के निकाला है । आपको आश्चर्य होगा पर है बात सत्य । हमने बहुत बड़े साधु योगीराज देखे हैं, वह ऐसे यहां पैसा इकट्ठा करते नहीं फिरते हैं, वो बहुत बड़े जन हैं अपने संसार से बाहर रह कर के और संसार की वाइब्रेशन (चैतन्य) से सेवा कर रहे हैं किंतु हमने किसी एक ऐसे आदमी को नहीं देखा है जो आप लोगों जैसे कुंडली को उठा सकता है । एक इशारे पर, सिवाय गणेश जी छोड़ के, गणेश जी के हाथ में जो छोटा सा सांप होता है वही आपकी कुंडली का प्रतीक है । सिवाय गणेश जी छोड़कर और आप लोग जो मेरे बेटे हैं और मेरी लड़कियां हैं और जो मेरे सहस्त्रार से पैदा हुए हैं मैंने किसी को नहीं देखा है कि जो कुंडलिनी को इशारे पर खड़ा कर दे । बात सही है । इसमें बहुत से लोग यह कहेंगे कि साहब यह कैसे? इन लोगों ने इतनी मेहनत करी, इतना किया, यह कैसे? एक पते की बात आपको बता रही हूं कि राजा का मंत्री होता है, वह सब कुछ जानता है कि राज्य को कैसे चलाना है । और वह राज्य का सारा कार्यभार संभालता है सब कुछ संभालता है । लेकिन जो घर की लक्ष्मी होती है, रानी होती है, वह अपनी चाबियां बच्चों के हाथ में देती है, लेकिन मंत्री के हाथ में नहीं । होंगे पढ़े-लिखे बहुत विद्वान होंगे, होंगे बहुत पहुंचे हुए पुरुष, लेकिन मेरे सहस्त्रार से जो पैदा नहीं हुए हैं, जब तक वह इस बात को मान नहीं लेते, कि वह मेरे बेटे नहीं है, तब तक उनको इसका अधिकार नहीं मिल सकता और मिलना भी नहीं चाहिए ।
इसके लिए बहुतों ने मुझसे सवाल जवाब किये हैं कि माताजी हम उसके पास गए थे, उस गुरुजी के पास गए थे, इतने बड़े गुरु जी हैं आप भी उनको मानती हैं पर उनको तो यह काम नहीं आता जैसा हमें आता है । हमें तो सब कुछ मालूम होता है कि कौन से चक्र कहां पकड़े हैं और कैसा हाथ कर देते हैं और दूसरों के चक्र छूट जाते हैं । और हमारे इशारे पर हजारों की कुंडलियां उठती हैं और हम सब को पार करा देते हैं । यह कैसे ? वजह यह है कि तुम सब मेरे सहस्त्रार से पैदा हुए हो । एक और ऐसा इंसान है ईसा मसीह जो कि मां के ह्रदय से पैदा हुआ था । उसको भी अधिकार है । लेकिन वह समां भी ऐसा नहीं था, कि यह काम कर सके । लेकिन आज वह समां भी आ गया और तुम लोग तैयार भी आ गए हो । अब तो हो सकता है कि तुम सब सामान्य लोग हो, अत्यंत सामान्य है, और हम कैसे यह काम कर सकते हैं, पता नहीं, लेकिन करते तो हो ना? इसमें तो कोई शंका नहीं है तुम लोगों को, कि तुम सब की कुंडलिया देख सकते हो जाग सकते हो, और समझ सकते हो कि किसका ह्रदय चक्र पकड़ा है, किसका क्या पकड़ा है, और उसे कैसे उसे निकालना है । हजारों भूत बाधाएं और बीमारियां और कुंडलिया तुम निकाल करके फेंक देते हो । और इन लोगों को देखिए मैंने बहुत बड़े-बड़े महंतों को देखा कि हम वहां गए थे और हमें भी लकवा मार गया और लकवा ले गया । तुम्हे न लकवा मारता है न कुछ मारता है । जब से तुम लोग पार हो गए तुम्हारी तंदुरुस्ती ठीक हो गई, और अगर किसी की खराब हो भी जाए तो यूं वह भी ठीक हो जाता है ।यह तुम लोगों के अनुभव हुए हैं ।
इस पर राहुरी में भी मुझसे प्रश्न हुआ था । वहां मैंने इतने खुले तौर पर यह बात नहीं कही थी लेकिन बात यह है कि तुम मेरे से सहस्त्रार से पैदा हुए हो, मेरे सर से मैंने तुम्हें पैदा किया हुआ है इसलिए तुम्हें विशेषाधिकार है । तुम लोग विशेष अधिकारी हो । मानती हूं कि बाकी जो लोग हैं, वह भी सहज योग से पार हुए हैं, बड़े-बड़े साधु संत भी सहज योग से पार हुए हैं, अव्वल क्रियाएं करके, हजारों वर्ष तपस्या करके, लेकिन उनके अंदर अभी तक एक्सेप्टेन्स (स्वीकार्यता) नहीं है मेरा । आज मैं आपसे खोल कर कह रही हूं, जब तक आप मुझे एक्सेप्ट (स्वीकार) नहीं करिएगा तब तक यह काम नहीं होगा । मैंने यह बात पहले नहीं कहीं जैसे कि कृष्ण ने कहा है कि “सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज” ऐसी मेरी भी बात है । जैसे कि क्राइस्ट ने कहा था “ऑय ऍम द लाइट ऑय ऍम द पाथ” (मैं ही प्रकाश हूँ, मैं ही मार्ग हूँ) । वही मेरी बात है , “ऑय ऍम द डेस्टिनेशन नॉट ओनली द पाथ” (मैं ही लक्ष्य हूँ , केवल मार्ग ही नहीं) लेकिन मैंने यह बात आज तक आप लोगों से ही नहीं, इसलिए क्योंकि पिछले अनुभव इतने खराब रहे । इसी वजह से मैंने बात नहीं कही । आप लोगों को मेरी शरणागत लेनी पड़ेगी । मुझे मां मान्य करना पड़ेगा और मुझे बेटा बनकर जीना पड़ेगा । उसके बगैर आपका कार्य नहीं हो सकता ।
किसी एक छोटी सी वजह के कारण आप इस दशा में पहुंच गए कि बड़े-बड़े संत महात्मा लोग हार गए लेकिन वह नहीं पा सके । एक तो मेरा साक्षात उनसे नहीं हुआ और दूसरी चीज अभी उनमें वह अहंकार बना है, क्योंकि वह अनजाने में पार हो गए और पता ही नहीं कि उनकी मां कौन है लेकिन तुमने मुझे जाना है, तब तुम लोग पार हुए हैं । यह समझ के रखो कि जरा सी अगर तुमने इधर-उधर कदम डगमगाए तो तुम्हारे वाइब्रेशन (चैतन्य)छूट जाते हैं तुम कहते हो कि माताजी आल पेरवेडिंग (सर्व व्यापी) है, तो वाइब्रेशन कैसे छूट जाएंगे? आल पेरवेडिंग (सर्व व्यापी) में भी कहां से वाइब्रेशन जाते हैं, सोचना पड़ता है । आप लोग कहीं भी रहे, किसी जगह भी रहे, जिस वक्त आप सहज योग विरोध में एक अक्षर भी बात करेंगे, आपके वाइब्रेशन हाथ से छूट जाएंगे और उसके बाद आप जो भी कार्य करेंगे, जिस भी कार्य में आप रहेंगे, उसमें भूत आपका साथ देंगे, मां नहीं साथ देने वाली । मैंने ऐसे भी लोग देखे हैं जो मेरे यहां आते हैं, उसके बाद वो थोड़े दिन वाइब्रेशन लेते हैं और उसके बाद जब उन पर जो भूत बाधाएं चली जाती तो वह भूत बाधा काम करने लगते हैं । उनका धर्म और हो जाता है, उनका तरीका और हो जाता है, उनका बताना और हो जाता है, फिर वह कुंडली नहीं देखते हैं, वह बताते हैं कि घोड़े का नंबर कौन सा है, तेरे बाप को क्या हो गया, तेरी मां को क्या हो गया, असलियत पर नहीं आते । ऐसे अनेक लोग हमारे इस सहज योग में आए और बिछड़ गए । थोड़े दिन रह गए, बिछड़ गए, फिर थोड़े दिन काम वाम किया, बड़ा इस तरीके का, अपने को साधु महात्मा समझ कर के काम किया और उसके बाद देखा यह गया कि उनके ऊपर बाधाएं जम गई और वह बहुत ही नुकसान और तकलीफ में फंस गए ।
इसलिए एक बात आप जान लीजिए कि सहयोग के विरोध में बात करने से मैं चाहे आपको माफ कर दूं, लेकिन परमपिता परमात्मा, आपको कभी नहीं माफ करेगा । हमारे घर में मेरी अपनी लड़की का मैं आपको बताती हूं कि वह जरा सी गुस्सा हो गई मेरे ऊपर में, फ़ौरन उसके कान में से गर्म गर्म हवा निकलने लगी । उसे मैंने कहा कि तुम कान अपने रगड़ लो और कहो कि कि माफ़ कर दो , मुझसे ऐसी बात करना गलत है सहज योग के विरोध में अगर तुमने एक अक्षर कहा, हालाँकि तुम मेरी अपनी लड़की हो तो भी तुम्हें अधिकार नहीं है । यह सबसे बड़ी अनाधिकार चेष्टा है । जो मैं आज आपके सामने खड़ी हूं यह आप लोगों के बुलाने का फल है । ऐसे भी देखे हैं कि मंदिरों में और मस्जिदों में और जहा जहा भक्त लोग मां को पुकारते हैं, तो मां का ह्रदय उछलने लग जाता है । आपने देखा है कि आप लोग जब भी गाते हैं, तो मेरे बदन से अनगिनत वाइब्रेशन (चैतन्य) बहने लग जाते हैं । अगर कहीं पर भी गाना सुन लू, या रिकॉर्ड सुन लू या या सिनेमा में ऐसा दिखाई दे जहाँ मां को पुकारा जा रहा है, तो मेरे सारे बदन से जैसे करोड़ों रेशिया जैसे वाइब्रेशन निकलने लग जाते हैं । यह आपने भी जाना होगा । आपने भी देखा हुआ है, इस चीज को आप भी समझते हैं कि मां को ऐसा हुआ है । आज वह समय आ गया है कि आप ही लोगों का मांगना, आप ही की चाहत, आप ही लोगों की पुकार साकार मेरे अंदर साकार रूप से आई है । मैं स्वयं से नहीं आई हूं, मैं आप ही की पुकार से आई हूं । आपकी अनादि काल से जो पुकार और चिल्लाहट हो रही थी, उसी के कारण मैंने यह शरीर धारा है ।
और अभी आप ही लोग जो सर्व साधारण जन हैं ,मुझे पहले पहचानेंगे और जो यह बड़े-बड़े साधु संत और बाबा जी बन के बैठे हैं यह पहचानेंगे नहीं । जैसे इन्होंने ना सीता को पहचाना था , ना राधा को पहचाना था , ना देवी को पहचाना था और अब भी यह लोग नहीं पहचान सकते रहे हैं । यह अभी भी अपने घमंड में बड़े बाबा जी बन के बैठे हैं । जो इंसान अपनी मां को नहीं पहचानता, उसे बाप क्यों पहचाने ? सहज योग को खिलवाड़ नहीं समझना चाहिए । सहज योग को एक साधारण चीज नहीं समझनी चाहिए । यह बड़ी अनुपम, अजीब सी, अजीबोगरीब चीज़ आई हुई है । आपको कभी किसी किताब में ऐसा लिखा गया क्या कि अगर यह आपका पकड़ा जाता है तो यह विशुद्धि चक्र है । क्या आपको कहीं यह पता हुआ है कि यह नाभि चक्र होता है? और यह सहस्त्रार होता है ?आपसे कभी भी किसी ने यह बातें बताई है क्या? आपको कुंडलिनी के बारे में किसी ने खुल्लम-खुल्ला क्या यह बातें बताई है क्या ?किसी ने संसार में आकर, हम ने ही पहले कार्य किया जैसा कि आज है, लेकिन आप लोगों का आधा अधूरा पन इसको खत्म कर देगा । आप जो लेने आए हैं वह बहुत बड़ी चीज है, बहुत ही बड़ी चीज है, उसका अंदाज भी आपको नहीं है एक दिन आएगा, चाहे मेरे आंख के सामने ही आ जाए, चाहे बाद में आ जाए, जब संसार में यह पता हो जाएगा कि हम हम लोग अब एक नई डायमेंशन (आयाम) में उतर गए हैं लेकिन आपका आधा अधूरा पन, हो सकता है कि संहार की गति शीघ्र कर दे ।
धर्म का चक्र उल्टा घूम रहा है यह आप जानते हैं और वह दिखाई देता है । उसको सीधा घुमाने का कार्य केवल सहयोग से हो सकता है लेकिन जो लोग सहयोग में आ रहे हैं उन्हें अत्यंत धार्मिक, अत्यंत सच्ची, और अत्यंत उदार चित होना पड़ेगा । धर्म की पूरी व्याख्यान उन्हें सीखनी पड़ेगी, सिर्फ वाइब्रेशन से नहीं होता है, बहुत से लोग मेरे सामने आते हैं और बहुत जोर जोर से उनके अंदर वाइब्रेशन पहुंचते हैं, और जब बाहर चले जाते हैं तो इतने नहीं होते । ऐसे तो हर जगह आना चाहिए आपको, ऐसी कौन सी जगह है जहां हम नहीं हैं? हर जगह यह वाइब्रेशन आने चाहिए और इतने प्रबल होने चाहिए कि किसी प्रकार के काले वाइब्रेशन इसके ऊपर ना चढ़ें । क्योंकि आप जीवंत हैं । अभी हम राजन गांव के गणपति के पास गए थे । हमने देखा राजन गांव के गणपति कि वहां उस गणपति में से बहुत थोड़े थोड़े वाइब्रेशन आ रहे थे । और जो लोग हमारे साथ थे वह इतने आश्चर्य में हो गए कि अगर यह एक जागरूक स्थान है तो इसमें वाइब्रेशन इतने कम क्यों आ रहे हैं । मैंने कहा पहले तो यह बात सोचो तुम कि इसको पहचाना किसने यह एक जागरूक स्थान है ? कोई बड़ा भारी संत महात्मा रहा होगा जिसने पहले वहां वाइब्रेशन देखे होंगे और कहां होगा कि जागृत स्थान है । फिर जब वह जागृत पत्थर लाया गया हो, तो हो सकता है की किसी ने उसको शेप देने के लिए हाथ चलाया हो, हो सकता है, नहीं भी हो सकता है । क्योंकि मनुष्य की है अकल है ना, अपने जैसी दौड़ती है ना । उसको छूने की कोई जरूरत नहीं थी । उसके बाद जो उसके पुजारी जो हमने देखे उनके सबके चक्र पकड़े हुए थे । वह जितने भी पुजारी हैं, उनके सबके चक्र पकड़े हुए हैं, और उनने जो सिंदूर चढ़ाया था, वह सब पकड़ रहा था । मनुष्य को इतनी अकल जरूर है कि जागृत स्थान है, लेकिन इसके इतनी अक्ल नहीं है कि इसके वाइब्रेशन पूरे आ रहे हैं, कि आधे आ रहे हैं, कि कौन से वाइब्रेशन आ रहे हैं । तीन चक्र उस मूर्ति के भी पकड़े हुए थे । और मेरी समझ में नहीं आया जब मैं अंदर जा कर बैठी उस मंदिर में, तो पंडित जी कहने लगे आप अंदर नहीं बैठ सकते आप बाहर बैठिए । और उसको हाथ नहीं लगा सकते । तो मैंने कहा अगर हम इस को हाथ भी नहीं लगा सकते, तो क्या कर सकते हैं? मूर्ति ऐसे ही रह जाएगी । तो पीछे गए, पीछे से जाकर हमने उस मूर्ति की ओर देखा और जाकर के उसमें अपना सर सहस्त्रार ही जाकर के लगा दिया । उसमें से अंदर से इतनी जोर से वाइब्रेशन निकल आए, इसलिए यह जान लेना चाहिए कि आप जीवंत हैं । आपके अंदर तो कहीं अधिक इन मंदिरों से भी वाइब्रेशन आ सकते हैं लेकिन आप पहले जीवंत रहिए ।
मरी हुई चीजों का जो जो लोग शौक रखते हैं, जो मरी हुई बातों का शौक करते हैं वह लोग मर जाते हैं । जिंदा होते हुए भी मर जाते हैं । जड़ वस्तुओं के पीछे में भागना इसी तरीके का शौक है । उसकी ओर भागना या उससे उससे भागना एक ही चीज है । सन्यास भी लेना वही चीज है और सन्यास से भागना भी वही चीज है । दोनों में कोई अंतर नहीं है । आप अपनी स्थिति पर खड़े हो जाइए । पहली चीज है आप अपनी स्थिति बनाइए । दूसरी चीज है आप अपना धर्म बनाइए । धर्म का मतलब है आप अपने अंदर से इन वाइब्रेशन को पूरी तरह बहने दीजिए । आपका मन होता है आप कहीं गए आपने देखा कि आदमी गिर गया । दौड़िये उसको फॉरेन पकड़िए, उसे वाइब्रेशन दीजिए, बचाइए, दुनिया क्या कहेगी कहने दीजिये । आपके अंदर से वाइब्रेशन बह रहे हैं, यही आपका धर्म है मैंने आपसे बताया था कि सोने का धर्म यह नहीं कि वह पीला है, उसका धर्म यह भी नहीं कि उससे कुछ जेवर बन जाता है, उसका धर्म एक ही है कि वह किसी चीज से खराब नहीं होता, उसी तरह से हीरे का एक धर्म है कि वह हर चीज को काट सकता है । वह हार्डन्ड (सख्त ) चीज़ है । इसी प्रकार मनुष्य का एक धर्म होता है उस परमात्मा को पा लेना और जान लेना और जो मनुष्य इसे पा लिया है उसका एक ही धर्म होता है कि इस पाई हुई चीज को पूरी तरह से आत्मसात करके संसार को उसको प्रसारण करें ।
लेकिन इधर उधर की बातें और वही जड़ता के तरीके उससे आप बिल्कुल भी, ना इधर के रहेंगे, ना उधर के रहेंगे । आपके वाइब्रेशन खो जाएंगे और मेरी जितनी भी मेहनत है बेकार है । कोई भी धर्म इस संसार में ऐसा नहीं है जिसने वाइब्रेशंस की बात नहीं की । किसी ने भी ऐसा नहीं कहा है कि वाइब्रेशंस नहीं होते हैं । हर एक जगह इसे रूह कहते हैं, वाटर ऑफ लाइफ (जीवन जल) कहते हैं कुछ भी कहते है मगर हर जगह कहा है कि वाइब्रेशन (चैतन्य) होते हैं । हिंदू धर्म में तो साक्षात आप तो जानते हैं कि न जाने कितनी विवेचना की गई है, आदि शंकराचार्य ने भी । इसको कुछ पढ़ाया नहीं जा सकता, लिखाया नहीं जा सकता, समझाया नहीं जा सकता, यह होना होता है । बहुत से लोगों को होता नहीं है जो, बहुत पड़े लिखे जो अपने को विद्वान समझते हैं, ऐसे महा मूर्खों को कुछ नहीं होता । मैं क्या करूं? यह तो अकस्मात आपके इनोसेंस (अबोधिता) में ही होता है, बहुतों को हो जाता है, हजारों को होता है और आपको भी होना चाहिए लेकिन बेकार की झूठी बातों को पकड़कर अगर आप बैठे रहिएगा और अगर आप झूठी बातें करिएगा और झूठी बातों पर ही आप अगर पूरी तरह से जमे रहिएगा, जो आपको जड़ बना रही , तो इस जड़ता से आप भी तो जड़ ही हो जाएंगे । जो चैतन्य आपके अंदर से बह रहा है, उसको आप, कैसे, किस प्रकार प्रसारित कर पाएंगे? थोड़ा बहुत समय इसके लिए देना पड़ेगा ऐसा मैं पहले कह चुकी हूं, यह बात सही है ।
लेकिन यह प्रायोरिटी (प्राथमिकता) की चीज है, आपको अपनी प्रायोरिटी (प्राथमिकता) बदलनी पड़ेगी, थोड़े दिन में जब आप इसके प्रायोरिटी (प्राथमिकता) में आ जाएंगे तो आप इसका मजा आप उठाएंगे । सारे संसार का जितना सुख और मजा है, सारे संसार का जितना आकर्षण और सौंदर्य, और सारे संसार का जितना भी धन दौलत लक्ष्मी सब कुछ जो भी है, जो कुछ भी जिसे आप नॉलेज (ज्ञान) कहते हैं, जिसे आप ज्ञान करके समझते हैं, सब का स्त्रोत यही है । यह जानता भी है, प्यार भी करता है और सौंदर्य है । यही वह शक्ति है जिसके बारे में हमने हजारों बार पढ़ा है, और हजारों बार, हमने हजारों बार जाना है । इसी शक्ति के सहारे सारी सृष्टि की रचना हुई है, आपकी रचना हुई है ।और इसी के द्वारे आप भी उसको जानेंगे जो यह शक्ति है । यह बहुत बड़ी बात है वह धीरे धीरे फैलना चाहिए, इतनी बड़ी बात इतनी जल्दी नहीं फ़ैल सकती । कोई सी भी जीवंत चीज धीरे-धीरे पनपती है, लेकिन मैं देखती हूं की जड़ जम गई है । इसकी जड़ बहुत गहरी जम गई है ।
अभी मैं राहुरी से होकर आई हूं । मुझे बड़ी खुशी हुई कि वहां के साइंटिस्ट (वैज्ञानिक) लोगों ने इसे बिल्कुल साइंटिफिकली (वैज्ञानिक आधार पर ) प्रूफ (सिद्ध) कर दिया । अपने पौधों पर, इस पर, उस पर, एक्सपेरिमेंट (प्रयोग) करके, एकदम साइंटिफिक (वैज्ञानिक) चीज़ बना ली है, और वह कह रहे थे कि हम गवर्नमेंट (सरकार ) से भी इसके लिए लड़ेंगे । यही एक चीज सत्य है और बाकी सारे जितने भी असत्य है, और उसका नाम सत्य देने से वह सत्य नहीं हो जाता । आपकी अपनी शक्ति उस शक्ति से एकाकार हो जा रही है, जो आपके अंदर बसी हुई है । जैसे कि, जमुना में बहुत से मटके रहते थे और उन मटको में पानी रहता था । जब, उन मटको में छेद हो जाता था तभी उसका पानी और मटको का पानी एकाकार हो जाता था । उसी तरह से आपका भी हाल होना चाहिए । उसी दिन से आपको भी हाल होना चाहिए । आप भी उसे उसी तरीके से जाने और पाएं, जैसे गोपी और कृष्ण के जमाने में जैसे खोज रहे थे, और जानने के प्रयत्न में थे, आज आपको वह चीज पूरी तरह से मिल गई है । मैंने आपको अनेक बार बताया है कि यह गोप से गोपनीय, इसकी जीतन भी गहराई की बातें आपको बताने के लिए ही आई हूँ, लेकिन उसके अधिकारी हो जाइए जिन का अधिकार नहीं है, उनको नहीं बता सकती थी । इसीलिए जो बात आज मैंने सर्वप्रथम कही है उसे पहले कभी नहीं खोलकर नहीं कहीं । आप में से अगर किसी को प्रश्न पूछना हो तो एक दो आदमी पूछ सकते हैं ।
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