Samarpan 1977-01-08
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8 जनवरी 1977
Samarpan: Kuch Bhi Nahi Karnahai
Public Program
Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)
Talk Language: English, Hindi | Transcript (Hindi) - Draft
यह निष्क्रियता है | क्या आप अपने विचारों, जो सहज नहीं हैं, के द्वारा कह सकते हैं कि यह कैसे हो सकता है? आप पीछे जाकर यह नहीं कह सकते कि मैंने कुछ नहीं किया है । आप हमेशा आगे बढ़ते हैं, आगे बढ़ते जाते हैं यह कहते हुए कि कैसे?
कैसे आगे जाने का? इसी को स्वीकार कर लेना कि यह घटना चेतना की ओर होती है और चेतना ही इसको घटित करती है। हमें पूरी तरह से प्रयत्न को छोड़ देना है । जब हम अकर्म में उतरते है तब यह चेतना घटित होती है। इसका मतलब है कि आपको कुछ भी नहीं करना है। यह बहुत कठिन काम है मनुष्य के लिए । कुछ नहीं तो विचारही करता रहेगा। लेकिन यह घटना जब घटित होती है तो विचार भी डूब जाते हैं क्योंकि अभी तक जो भी आपने साधना देखी है उसमें आपको कुछ न कुछ करना पड़ता है । यह सब साधना आपको अपने से बाहर ले जाती है । सहजयोग घटना है वह अन्दर ही घटित होती है । जब लोग पुछते है कि समर्पण कैसे करना है? सीधा हिसाब है, आपको कुछ नहीं करना है। समर्पित हो गया। मनुष्य इस गति में, इस दिशा में आज तक चला नहीं इसलिए उसके लिए यह नई चीज़ है और नया मार्ग है । इसमें मनुष्य कुछ नहीं करता। अपने आप चीज़ घटित हो जाती है | क्योंकि उसने बहुत कुछ कर लिया है, बहुत कुछ दूर चला गया है अपने से । इसलिए उसे अन्दर खिंचना मुश्किल हो जाता है। इसलिए किसी किसी की कुण्डलिनी एक क्षण में जागृत हो कर मनुष्य पार हो जाता है। और किसी किसी की जागृत हुई कुण्डलिनी भी फिर से लौटकर वापस चली जाती है। कुछ भी नहीं करना है यही समर्पण है । उस point तक अगर आप पहुँच जायें तो कुछ भी नहीं करना है, जहाँ नि:शब्द, निर्विचार । लेकिन यह भी करना ही होता है । मनुष्य ने यह भी करना ही होता है । इसलिए उसी पर छोड़ दीजिए जो इसे करेगा । आपको कुछ भी नहीं करना है। आप बस उसे छोड़ दीजिए । कोई पुछेगा कि आज हम नयें आयें हैं तो क्या करें। सिर्फ आप इस तरह से हाथ उपर कर लीजिएगा। सीधे ऐसे करिए, घटना घटित हो जाएगी। और जिसकी घटित नहीं होगी , बाद में ये लोग जा कर के देख लेंगे आपको । | आज इतने लोग यहाँ सहजयोगी है और एक एक आदमी पार है । इतना ही नहीं लेकिन कुण्डलिनी शास्त्र में एकदम पारंगत है। एक एक आदमी यहाँ जो बैठे हुए है कुण्डलिनी शास्त्र में पूरी तरह से पारंगत है और हजारों आदमीयों की कुण्डलिनीयाँ अपने उँगलियों के इशारे पे उठा सकते है , इतना ही नहीं पार कर सकते है । आप पुछेंगे फिर यह करते क्यों नहीं? इसका कारण यह है कि सहजयोग के तरफ लोग बहोत आसानी से नहीं आते। मनुष्य के लिए बहोत मुश्किल है ऐसी जगह आना जहाँ ये कहा जाए तुम्हे कुछ पैसा नहीं देना है, कुछ करना नहीं है, चुपचाप बैठ जाओ । लेकिन जब ड्ूबने लगते है तब फिर आते है । इसलिए सहजयोग जल्दी नहीं है । क्योंकि सहजयोग में आपको कुछ कुछ चीज़ें छोड़नी पड़ती है। मतलब यह कि हमें कुछ करना है, हमें कुछ विचार करना है, हमें कुछ ন सर के बल खड़ा होना है, हमको कोई द्राविड़ी प्राणायाम करना है या हमें कुछ किताबें पढ़नी है या हमें कुछ ग्रन्थ रखने है या हमें कुछ मन्त्र कहने है। यह सबकुछ आप छोड़ दीजिए। और बाद में पार होने के बाद में आप | अधिकारी हो जाते है । जो कुछ भी करना है फिर तब होता है। अकर्म ही, in action ही action में आता है। कर्म रख दिए जाते है। तो कैसे क्या आप देखिए, जो घटित होगा वह होगा, जो नहीं होना हो वह नहीं होगा। इसमें कोई compulsion नहीं, इसमें कोई argument नहीं। जिसका होना है उसका होगा, जिसका नहीं होना है वह नहीं होगा। जिसकी रुकावट जो है वो है। उसको निकाल | सकते है लेकिन उसको argue नहीं कर सकते । जिसके अन्दर जो रुकावट जैसे बन गयी, अब कोई कहता है साब मैने तो किया नहीं। है अन्दर रुकावट तो है। उसको निकालना चाहिए। फिर अपना स्वार्थ देखिए । 'स्व' का अर्थ जानिए । इसमें हमारा कोई लाभ नहीं होनेवाला। लाभ आपका ही होगा, पुरी तरह से। आप ही का पूरा लाभ होने | वाला इतना समझ कर के हाथ उपर करें। अब जब घटना घटित होती है तो पहले कुण्डलिनी उठकर के आज्ञा चक्र को लाँघ जाती है । जैसी यह आज्ञा चक्र को लाँघ जाएगी वैसे ही आपको निर्िचार, समाधी जाना चाहिए । लेकिन समाधी का अर्थ बेहोश होना, ट्रान्स में जाना आदि है ये नहीं । तब आप पूरी तरह चेतन अवस्था में है। पूरी तरह से सतर्क है। लेकिन आप निर्विचार में है, शांति में है । लेकिन आप पूरी बात सुन रहे हैं। अन्दर से कोई विचार आपके अहंकार, प्रति | अहंकार, ego, superego से नहीं आने वाला। आप एकदम इस तरंग हैं। और जब कुण्डलिनी आपके ब्रह्म रंध्र को छेड़ देती है तब आपके अन्दर से यह चैतन्य की लहरियाँ जिसको शंकराचार्य ने बताया है वो बहेगी । बिलकुल सीधा हिसाब है। इसमें करना कुछ नहीं है जैसे एक जलता हुआ दिप दूसरे दिप को एकदम जलाकर के सीमा से असीम में छोड़ देता है। उसी प्रकार यह घटित होता है । इसमें बुद्धि का कोई भी चिन्ह नहीं । सब लोग हाथ इस तरह से कर के आराम से बैठें । जो लोग पार नहीं हुए अभी तक वो थोडी देर आँख खुली रखें