
Public Program Evening 1977-02-03
3 फ़रवरी 1977
Public Program
Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)
Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft
अंदर स्वयं चालित शक्ति जिसे कहते हैं, जिसे अंग्रेजी में ऑटोनोमस नर्वस सिस्टम कहते हैं वो सूक्ष्म तरह से अपने पीठ के रीढ़ की हड्डी के अंदर मज्जा रज्जु में, स्पाइनल कॉर्ड के अंदर, मेड्यूला ओब्लोंगेटा में स्थित है। मैंने आपसे बताया था कि ये तीन सूक्ष्म शक्तियाँ हैं जिनसे हमारी ऑटोनोमस नर्वस सिस्टम चलती है, स्वयं चालित संस्था चलती है। वो दो शक्तियाँ जो कि लेफ्ट में और राइट में हैं, एक का नाम इड़ा और दूसरी का पिंगला है और जो बीच में है उसका नाम सुषुम्ना है। ये तीन नाड़ियाँ हैं और इन तीन नाड़ियों पे जो तीन शक्तियाँ हैं, उनका नाम जो लेफ्ट में हैं उसका महाकाली, जो राइट में है उसका महासरस्वती और जो बीच में है उसका महालक्ष्मी। महाकाली शक्ति से हमारी स्थिति और लय होती है, महासरस्वती से हमारी शरीर धारणा तथा पूरा हमारा विचार का कार्य - आगे की जो कुछ तज़वीज़ है, जो कुछ भी हम लोग प्लैंनिंग करते हैं, विचार करते हैं, कार्यान्वित होते हैं, जो कुछ हमारी सृजन शक्ति है, क्रिएटिव कपैसिटीज़ हैं वो सब उससे प्रदर्शित होती हैं, मैनिफेस्ट होतीं हैं। और जो बीच की शक्ति है जिसे कि हम महालक्ष्मी की शक्ति कहते हैं, जिसको इस बम्बई शहर में बहुत ज़्यादा मानते हैं लोग, इस महालक्ष्मी की शक्ति से ही हमारा ऐवोल्यूशन होता है, उत्क्रांति होती है। आज अमीबा से जो आज मनुष्य की दशा में हम आये हैं, ये इसी शक्ति के कारण है। इस शक्ति के कारण हम अपने अंदर धारणा करते है; धारणा मतलब सस्टेन करना। हर एक वास्तु मात्र में जो धारणाएं हैं, जैसे मैंने आपसे कल बताया था कि कार्बन में चार वैलेंसीस हैं, हर एक वस्तु मात्र में जो उसकी प्रकृति है या उसकी, जिसे कहते हैं, प्रॉपर्टीज़ हैं, वो सारी इसी शक्ति के द्वारा आती है और मनुष्य में भी जो धर्म धारणा होती है, वो भी इसी कारण होती है। मनुष्य का भी अपना कुछ धर्म ज़रूर अवश्य है ही, नहीं तो वो मनुष्य क्यों कहलाएगा। उसके दस धर्म हैं जिसके बारे में आप साधारण तरह से ये कह सकते हैं कि बाइबिल में जिसे टेन कमांडमेंट्स कहते हैं, वही वो दस धर्म हैं। इन दस धर्मों के अनेक और सूक्ष्म स्वरुप हैं जिसके बारे में हमारे शास्त्रों में आदि काल से अनेक ऋषि मुनियों ने पता लगाकर उसपे काफी कुछ लिखा हुआ है। कल मैं आपसे आखिरी बात जो बता रही थी वो धर्म के बारे में क्योंकि हम लोग तीनों चक्रों का वर्णन करते हुए जब नाभि चक्र पे आए, तो मैंने कहा था कि लक्ष्मीजी का धर्म से बहुत नज़दीक सम्बन्ध है क्योंकि हमारे पेट में धर्म होता है। धर्म विचार में नहीं होता है। जो मनुष्य विचार से धर्म करता है वो धार्मिक नहीं है। धर्म विचार से नहीं होता है, अपने पेट में होता है। जैसे एक साधारण आपसे मैं बात बताऊँ कि अगर कोई वास्तविक धार्मिक आदमी हो, माने जिसे रिएलाइज़ेड सोल कहना चाहिए मैं धार्मिक उसे नहीं मानती जो बड़ा पट्टा-वट्टा लगा के घूमते हैं लेकिन अंदर से जो टूटा हुआ आदमी है जो कि परमात्मा से एकाकार हो चुका है, जो असल माने में योगी है, जो रिएलाइज़ेड सोल है, वो आदमी अगर किसी ऐसे आदमी के घर में गया हो, जिसने कि मर्डर किया है लोगों को परेशान किया है, उस आदमी के घर खाना में खाना खाते ही उसे उल्टी होनी शुरू हो जाएगी। वो बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। वो किसी भी नग्न स्त्री को देख नहीं पाएगा उसको देखते ही साथ उसके अंदर से उल्टी आ जाएगी। उसका पेट उसे बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। आपमें से भी बहुत से लोग ऐसे होंगे कि वो किसी-किसी के घर का खाना ही नहीं खा सकते। उनके घर में जाते होएंगे तो उनको उल्टी ही आती होगी। इसका कारण कोई बता नहीं सकता है। इसका सीधा कारण ये है कि आपका धर्म उस धर्म से मेल नहीं खा रहा जो उस घर में है। बहुत सारी बातें इस प्रकार आपने अपने जीवन में भी अनुभव की होगी जिसका अनुभव आपने पाया नहीं होगा। जब हमारा धर्म शिथिल हो जाता है या जब मनुष्य का धर्म गिरने लग जाता है, जिस वक्त उसके धर्म की हानि होने लग जाती है, धीरे-धीरे वो कोम्प्रोमाईज़ करने लगता है ज़िन्दगी के साथ। जब उसका कोम्प्रोमाईज़ शुरू हो जाता है धीरे-धीरे वो कमज़ोर होता जाता है। जैसे ही वो कमज़ोर हो जाता है कभी-कभी उस पर कुछ पिशाच भी आ जाते हैं। कभी-कभी वही स्वयं एक पिशाच हो जाता है। मनुष्य जब धर्म से गिर जाता है तो वो राक्षस योनि में ही उतर सकता है। क्योंकि जानवरों की योनि में तो वो अब जा नहीं सकता और देवताओं की योनि में जा नहीं सकता तो जब वो मनुष्य होकर के और अपने धर्म से च्युत हो जाता है तब वो कहाँ जायेगा?
उसको राक्षस योनि में ही जाना पड़ता है या उसे नर्क की गति में जाना पड़ता है। अब नर्क हैं या नहीं, इसकी कोई सिद्धता है कि नहीं, इसका प्रूफ क्या है, साइंटिफिकली माताजी दिखाइए सो बात हो नहीं सकती, लेकिन हाँ ये बात ज़रूर है कि आपको मैंने आज भी सवेरे दिखाया है और कल भी दिखाया है, कुण्डलिनी का स्पंदन जिसे आप देख सकते हैं। कुण्डलिनी का स्पंदन आप देख सकते हैं अपने आँख से, हाँलाँकि अभी तक आप पार नहीं हुए हैं और जो लोग पार हो गए हैं, उन्होंने भी उस शांति को अनुभव कर लिया, जिसकी मैं बात कर रहीं हूँ, उस निर्विचारिता की, जहाँ मनुष्य साइलेंट हो जाता है, अंदर सब विचार उसके रुक जाते हैं और वो साक्षी होकर के देखने लग जाता है। ये घटना घटित होती है। इसका कौन सा साइंटिफिक प्रूफ दे सकते हैं जो कि आपके ही अंदर घटित होती है। समझ लीजिए कोई अच्छा, सुन्दर आप संगीत सुन रहे हैं और आप कहें इसका आनंद आ रहा है इसकी साइंटिफिक कोई वो दीजिये, तो कैसे देंगे? आप हो जाते हैं, आपके अंदर ये घटना हो जाती है, और आपके अंदर से ठंडी-ठंडी सी लहरें चलनी लगतीं हैं। ये कल आप में से बहुत लोगों को हुआ और उन्होंने इसका अनुभव भी लिया और बहुतों को उसका फ़ायदा भी हुआ होगा और आगे भी इसमें आगे बढ़ना चाहिए। जिन लोगों ने गहराई से इस बात को पकड़ा और आगे चले हैं वो आज कहाँ से कहाँ पहुँच गए। संसार में रहते ही हुए वो कितने ही ऋषि-मुनियों से ऊँचे हो गए हैं, और कितने ही लोगों को वो पार भी कर रहे हैं, और कितने ही को वो ठीक भी कर रहे हैं। कैंसर जैसी बीमारियाँ भी, हमारे यहाँ एक साधारण स्कूल के शिक्षक हैं, उन्होंने कितने लोगों का कैंसर ठीक किया है। और बहुत पहुँचे हुए आदमी हैं, हालाँकि वो बहुत ही साधारण एक शिक्षक हैं। बहुत पहुँच गए हैं और कुण्डलिनी शास्त्र में एकदम उसके बिल्कुल समझ लीजिए कि बड़े समझदार। इतना उनमें ज्ञान आ गया है कि कुण्डलिनी शास्त्र पे कि आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि इस इंसान के अंदर इतना ज्ञान कहाँ से आया है। अभी तक तो आपने कुछ जाना ही नहीं। जब जानना शुरू हो जाता है, तो प्रगाढ़ ज्ञान जितना भी है सब अंदर से बहना शुरू होता है क्योंकि पहले शक्ति आनी चाहिए जानने की। जिसमें जानने की शक्ति नहीं है - अगर आपके अंदर सुनने की शक्ति नहीं है, तो आप क्या समझ पाएंगे मैं क्या कह रहीं हूँ। आपके अंदर अगर देखने की शक्ति नहीं है, तो आप क्या देख पाएँगे जो मैं दिखा रही हूँ? इसलिए पहली वो सूक्ष्मतर आपकी चेतना हुए बगैर ये कार्य हो नहीं सकता। कल एक साहब आये थे, वो मुझसे कहने लगे कि, "मेरे भाई की तबियत, एक आपके शिष्य हैं, वो ठीक नहीं कर पाए" और हमें कोई आपके प्रति श्रद्धा नहीं है," तो मैंने कहा, "भई, अगर तुम्हें मेरे प्रति श्रद्धा भी नहीं है, तो तुम यहाँ किस सिलसिले में आये?" "अगर तुम्हारे भाई को मैं ठीक करूँ, तो तुम मेरे ऊपर श्रद्धा रक्खो; ये अच्छी ज़बरदस्ती है।" "मैंने कोई आपसे रुपया पैसा नहीं लिया, आपका क्या मेरे ऊपर अधिकार है, कि मुझसे आप कहें कि 'मैं आपके भाई को ठीक करूँ।'" आप इतने अधिकार से मुझसे कह रहे हैं कि, "मेरी कुण्डलिनी आप जागृत कर दीजिए," तो आख़िर कोई अधिकार क्या चीज़ का है आपका? आपका अधिकार यही है, कि आपने मुझे माँ माना, आपने मेरे ऊपर श्रद्धा रक्खी, नहीं तो आपसे तो मुझे कुछ लेने का है ही नहीं, न आप कुछ मुझे दे सकते हैं। लेकिन अगर आपके अंदर ज़रा भी श्रद्धा नहीं, तो आप ही सोचिये, ये जो सारे देवता बैठे हुए हैं चक्रों पे ये क्या इस बात को मान्य कर लेंगे, कि आपका कोई भी विश्वास मुझ पर न हो, कोई भी विश्वास इन देवताओं पे नहीं हो, भगवान् पे कोई विश्वास नहीं हो, सबको आप सुबह-शाम आप गालियाँ दे रहे हैं, और वो क्या आपके लिए दौड़-दौड़ के काम करेंगे? अरे, एक साधारण अधिकारी कोई होता है, तो उसका इतना प्रोटोकॉल होता है, तो उस परमात्मा का कितना प्रोटोकॉल होगा! हम लोग कितने अहंकारी हो गए हैं, कि हम सोचते हैं, हमारी कुण्डलिनी जागृत हो जाये हमारा ये हो जाये, हमारा वो हो जाये, और हमें बिल्कुल ही परमात्मा के प्रति श्रद्धा नहीं है, हम बड़े लाट-साहब हैं, तो बैठे रहिए आप। ऐसे लोगों को जागृति होना बहुत कठिन है, मैं पहले ही बता दूँ। ज़रूरी है कि आप श्रद्धा से आएं। श्रद्धा किसानों में बहुत होती है। मैं राहुरी गई थी, मुझे आश्चर्य हुआ हज़ारों आदमी आये थे; पाँच-पाँच, छह-छह के क्राऊड्स में खड़ा-खड़ लोग पार हो रहे थे। (अस्पष्ट) कह रही, "ये कैसे ये धरती माँ के पुत्र हैं, कितनी जल्दी ये पा रहे हैं।" थोड़े बहुत पढ़े-लिखे भी थे, कुछ रईस लोग भी थे - ऐसा नहीं था कि बिल्कुल ही अनपढ़ लोग थे - कुछ अनपढ़ भी थे, लेकिन सब लोग पार बहुत जल्दी होते थे। तो मैंने उनसे पूछा, "क्या बात है?" कहने लगे, "माँ, हमें तुम्हारे ऊपर बड़ी श्रद्धा हो गई है।" तो हमने कहा, "क्यों श्रद्धा हुई?" कहने लगे, "हमको है ही। हम खेती वाले लोग हैं।" "हम बगैर श्रद्धा के खेती कैसे करें? खेती तो हो ही नहीं सकती बगैर श्रद्धा के।" सही बात है। श्रद्धा के बगैर खेती नहीं हो सकती है। मनुष्य ये जब सोचता है कि ज़मीन किस तरह से एक बीज है उसको उगाती है, अपने आप उसमें से इतने फ़ल देती है और कुछ नहीं चाहती कि हम उसे दें। उसको देख कर के मनुष्य ज़रूर आश्चर्यचकित होता है और देखता है, कि कितना बड़ा मिरैकिल है, कितना बड़ा आश्चर्य है और हम लोग यहाँ पर बाजार में जाके ख़रीदते हैं तो हम लोग, वी टेक इट फॉर ग्रांटेड [हम इसे सामान्य मान लेते हैं] हमको लगता ही नहीं है कि ये कोई विशेष बात हो रही, ये कोई मिरैकिल है। परमात्मा के प्रति श्रद्धा होना एक सहज बात है, अत्यंत सहज है, क्योंकि जो कुछ भी हमें मिला है, सोचिए, आज हम अमीबा से भी इंसान हुए हैं, तो अपने बूते पर नहीं हुए हैं। परमात्मा ने ही अनेक बार संसार में अवतार ले कर के - उन्होंने दस अवतार संसार में लिए थे और उन दस अवतारों में से, उन्होंने हर अवतार में अत्यंत मेहनत कर के और आप लोगों का आज इस दशा में लेकर के छोड़ा है। ये बात सही है। ये है या नहीं इसको तो हम बाद में साक्षात कराएंगे। हमने आपसे कल ही कहा था कि, एस अ साइंटिस्ट [वैज्ञानिक की भांति] आप अपनी सिर्फ बुद्धि खुली रखें। उसके बाद हर एक चीज़ का साक्षात आपको हम कराएंगे। ऐसे परमशक्तिमान परमात्मा के सामने, हमको नतमस्तक होकर के ही आना चाहिए। जो मनुष्य अपने को परमात्मा से भी ऊँचा समझता है, वो बैठा रहे। पर एक माने में है। मनुष्य को परमात्मा ने अपने से ऊँचा बनाया है। ये बात सही है, एक माने में, जहाँ परमात्मा भी हार जाता है और हम भी हार जाते हैं। वो है कि आपको परमात्मा ने स्वतंत्रता दी हुई है। आपको अपनी उत्क्रांति, ऐवोल्यूशन मनुष्यता के लैवल पे आने पर, इस प्लेन पर आने पर, स्वतंत्रता से ही ढूँढ़नी पड़ेगी। आप पे ज़बरदस्ती हम नहीं कर सकते, कि हम चाहें कि आपको मंत्रमुग्ध कर दें, कि आपको हम बेहोश कर दें, कि आपको ट्रांस में डाल दें, आपको बेवकूफ़ बना लें, इस तरह से नहीं हो सकता है। पूरे होश में, पूरी अवेयरनेस में आपको इसका चयन करना होगा, इसका डिसीशन लेना पड़ेगा, इसको मान्य करना पड़ेगा, कि, 'हाँ, मैं परमात्मा के रास्ते पर चलने वाला हूँ, मुझे परमात्मा की शक्ति जाननी है।' तभी होगा। इस माने में आप सबसे ही ऊँचे हैं। प्राणी मात्र में ये प्रश्न नहीं रहता है, ये प्रश्न मनुष्य का है। और मनुष्य के सामने परमात्मा इसीलिए झुक गया कि उसका ऐवोल्यूशन, उसकी उत्क्रांति, इस दशा में आने पर, स्वतंत्रता के बगैर हो ही नहीं सकती है। क्योंकि अगर आपको हमें राजा बनाना है, तो आपको अपनी स्वतंत्रता में ही हम राजा बना सकते हैं। अगर आप स्वयं परतंत्र हैं, और आप अगर हमारी वजह से कोई कार्य कर रहे हैं, तो हम आपको कैसे राजा बनाएंगे। ये सबसे बड़ा लिबरेशन है, सबसे बड़ी मुक्ति है, और सबसे बड़ी मुक्ति के लिए पहले मनुष्य की बुद्धि थोड़ी बहुत स्वतंत्र होनी चाहिए। उसका डिसिशन स्वतंत्रता से होना चाहिए। हर एक आदमी को पूर्ण स्वतंत्रता से इस बात को स्वीकार्य करना चाहिए कि, 'हाँ, हम इसको चाहते हैं।' पूर्ण श्रद्धा का मतलब ही अत्यंत स्वतंत्रता है। कल हमने आपसे तीन चक्रों के बारे में बताया था - आज बहुत से लोग नए आये हुए हैं - और उनमें से मैंने बताया था कि मूलाधार का चक्र सबसे नीचे में है। इसमें श्री गणेश की शक्ति जो कि इटरनल चाइल्डहुड [शाश्वत बचपन] है, वो है। और इसका जो महत्वपूर्ण पॉइंट मैंने ये बताया था कि मूलाधार, जो देवीजी का, गौरीजी का, या जिसे कहना चाहिए कुण्डलिनी शक्ति का स्थान है, त्रिकोणाकार, उससे नीचे है, ऊपर नहीं है, उससे नीचे है। सो कुंडलिनी को अगर उठाना है, तो मूलाधार चक्र को नहीं छूना चाहिए जिससे सेक्स कण्ट्रोल होता है। मूलाधार चक्र का सम्बन्ध सेक्स से है क्योंकि श्री गणेश एक छोटे से बालक हैं और उन्हें, छोटे बालकों का इस मामले में कुछ मालूम नहीं होता है। वो अबोध होते हैं, उनमें इनोसेंस होता है। कुण्डलिनी जागरण में या ऐवोल्यूशन में, मनुष्य के, कोई भी सेक्स का हाथ नहीं है। वो पहले ही से सब्लीमेटेड [परिशुद्ध/निर्मल] है। पर, किन्तु मनुष्य का इस वक्त उल्टा ही सम्बन्ध है वो ऐसा कि जब वो परमात्मा के सामने अपने हाथ फैलाये और ये चाहे कि अपनी कुण्डलिनी जागृत हो, तो वो ये जान ले कि कुण्डलिनी मेरी माँ है। सदा सर्वदा मेरे साथ रहने वाली मेरी पवित्र माँ है। और उसके प्रति अत्यंत पवित्र बालक जैसे उनके प्रति अपना विचार रखें जैसे श्री गणेश का गौरीजी के प्रति था। बाद में अपने देश में तांत्रिक लोगों ने आ कर के यही सारा विप्रयास कर दिया है। कभी अगर टाइम हो गया तो उस पर भी बताऊँगी मैं तांत्रिक पर, पर बात यह है, कि यही विप्रयास करके उन लोगों ने सारा सर्वनाश इस देश में फैलाया हुआ है। लेकिन जो सत्य होता है ,वो अटूट रहता है, बना रहता है। अपना देश, भारतवर्ष, वास्तविक योग भूमि है। इतनी बड़ी योग भूमि है कि यहाँ पर कोई भी मिथ्या ज़्यादा देर नहीं चल सकता। ये बात सही है और इसीलिए आज भी इस देश में ये कार्य हो सकता है। नहीं तो इस देश में अनेक प्रयत्न हुए हैं कि इस देश की पवित्रता टूट जाए लेकिन टूट नहीं सकी। अनेकों ने किया। अभी-अभी तक ऐसे लोग हुए हैं कि जो गन्दी बातें फैला रहे हैं लेकिन ये देश उस तरह से नहीं टूट सका जैसे कि पाश्चिमात्य देशों में पूरी तरह से नष्ट-भष्ट हो गया। कितने कमाल की बात है कि हमारे देश में अभी तक ये पवित्रता का सम्बन्ध माँ बेटे का बना हुआ है। दूसरा चक्र हमारा जो है मैंने आपसे स्वाधिष्ठान चक्र बताया था जिससे कि हम सारे क्रिएटिव वर्क [सृजनात्मक कार्य] करते हैं और जिसकी शक्ति जो है सरस्वती है। तीसरा चक्र मैंने लक्ष्मी जी और नारायण, माने विष्णुजी, का बताया था। इस चक्र के चारों तरफ जो जगह बनी हुई है इस जगह में ब्रह्मा जी ने सारी सृष्टि बनाई हुई है। और ये जो सृष्टि बनाई हुई है इस सृष्टि को आज की इस दशा में भवसागर कहते हैं। उसकी अनेक दशाएँ हैं, स्टेजेस हैं, इस दशा में उसे भवसागर कहते हैं। इसीलिए हम कहते हैं कि 'भवसागर से तराओ, भवसागर से बचाओ' - भव सागर है, जो हो गया सो सागर बना हुआ सागर। इस सागर में, इस संसार में जो हम आये हुए हैं और जो इस संसार में जो हम रह रहे हैं, इसी को भवसागर कहना चाहिए। और युग में आज कलयुग है, ये भी बात सही है। आज कलयुग है, अत्यंत घोर तरह का कलयुग है, और साथ ही साथ सतयुग भी शुरू हो गया है। कलयुग चल रहा है, उसी के साथ-साथ सतयुग भी शुरू हो गया है। इस भवसागर में हमारे अंदर एक बड़ी महान शक्ति बार-बार अवतरित हुई है। ये विराट का चित्र है और विराट का ये भवसागर है। इस शक्ति का नाम है गुरु सम्पदा। आदि गुरु दत्तात्रेय इन्होंने इस संसार में अनेक बार जन्म लिया है। आदिनाथ, जिसको कि जैन लोग मानते हैं, उन्हीं का अवतरण हैं। उसके बाद दत्तात्रेयजी भी उन्हीं का अवतरण हैं। राजा जनक उन्हीं का अवतरण हैं। जिसे हम नानक और नानकी कहते हैं वो भी जनक और जानकी ही हैं। और मोहम्मद साहब भी इन्हीं का अवतरण हैं और उनकी लड़की जो फातिमा थीं वो भी जानकी थीं। उसके जो दो लड़के थे वही लव और कुश थे। वही आगे जा कर के, संसार में आने बाद अनेक बार उनके जन्म होते हैं। वो पहले लव और कुश थे। लव और कुश के बाद वो महावीर और बुद्ध, इन दोनों के रूप में जन्म लेकर इस संसार में आये। और उसके बाद उन्होंने फातिमा के दो लड़के, जिनको हसेन और हुसैन कहते थे, उनके रूप में जन्म लिया। ये बात सत्य है या नहीं इसको आप फिरसे कुण्डलिनी पे साक्षात् करें। जैसे कि एक मुसलमान डॉक्टर, जो कि ईरान में रहते हैं, लंदन में मेरे पास आये और मुझसे कहने लगे कि, "मुझे बहुत बुरी तरह का कैंसर हो गया है माँ और मैं इसे कैसे ठीक करूँ?
मैंने कहा, "तुम तो मुस्लमान हो और तुम्हारा विश्वास कोई भी और गुरुओं पे तो हो नहीं सकता है सिवाय मोहम्मद साहब के।" तो उन्होंने कहा, 'हाँ।' मैंने कहा, "फिर मैं तुम्हारा कैंसर नहीं ठीक कर सकती।" कहने लगे, 'क्यों।' मैंने कहा, "ये तो इम्बैलेंस [असंतुलन] से होता है ना - हमेशा कैंसर इंबैलेंस से होता है।" तुम्हारे अंदर इतनी ज़ोर से, घनी-भूत ये भावना बैठी हुई है, कि मोहम्मद साहब ही एक अवतरण हो गए और क्या उनके अनेक नहीं हो सकते? हाँलाँकि मोहम्मद साहब ने हज़ार बार कहा है कि, 'मेरे जैसे और अनेक आएंगे।' उन्होंने अनेक बार कहा है, लेकिन मुसलमान इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं, कि उनके जैसे अनेक आये हैं और आएंगे। तो उसने कहा, 'उन्होंने कहा तो है लेकिन हमने किसी को देखा नहीं।' मैंने कहा, "अच्छा अगर तुम दत्तात्रेयजी का मन्त्र जपो, तो हम तुम्हें ठीक कर सकें।" जब पहले तो बहुत नाराज़ हो गए वो मुसलमान साहब, वो चले गए, गुस्से होकर मेरे साथ। उसके बाद - पर कैंसर की बीमारी होती ही ऐसी है कि क्या करें - फिर आये दौड़े-दौड़े कि, "अच्छा माताजी, जो भी कहो मैं करने को तैयार हूँ।" अब उनकी तबियत ठीक है, क्योंकि खुद दत्तात्रेय इस बात को नहीं गवार कर सकते कि आप मुझे इतने हिस्सों में क्यों बाँट रहे हैं? मनुष्य चाहता है इस तरह से अपने को बाँटना। परमात्मा अपने को बाँटना नहीं चाहता है। मनुष्य चाहता है कि, 'मैं मुसलमान हूँ, मैं हिन्दू हूँ' - परमात्मा के लिए ये घिनौनी बात है। अजीब सी चीज़ है कि कोई कहे कि, 'मैं नाक हूँ, मैं आँख हूँ, मैं कान हूँ।' - इसी तरह से बेकूफ़ी की बात करना। परमात्मा ने सारी सृष्टि में मनुष्य को बनाया है। वो कोई उसको अलग-अलग साँचे में ढलने के लिए नहीं। एक ही वृक्ष पर अनेक फूल खिले हुए हैं। उन फूलों को लेकर के उनको तोड़ कर के, उनको मार कर के आप लोग आपस में झगडे कर रहें हैं कि, 'ये धर्म अलग है, वो धर्म अलग है।' अभी कल ही एक साहब आये थे - उनका किस्सा आपसे बताऊँ - दिल्ली से। उनको भी बहुत तकलीफ़ है; वो पार हो गए हैं लेकिन कहने लगे कि, "मेरा तो ये वॉइड," जिसे हम वॉइड कहते हैं, भवसागर को, "वो पकड़ा हुआ है।" मैंने कहा कि पूछा उनसे बहुत पूछा मैंने कहा, "ये है क्या आपका, वो है क्या?" कहने लगे, "नहीं," मैंने कहा, "आप क्या जनसंघी हैं?" कहने लगे, "हाँ, मैं मन से तो बड़ा जनसंघी हूँ।" मैंने कहा, "इसीलिए हो रहा है - अब मोहम्मद साहब को बैठ के नमाज़ पढ़ो।" "थोड़ी देर मुसलमान हो जाओ।" कहने लगे, "माताजी, क्या कह रहें आप।" मैंने कहा, "हो के देखो। थोड़े दिन तुम मुसलमान हो के देखो," और देखते ही साथ [मराठी] "मुसलमान हो कर के देखो और तब तुम्हारे समझ में आएगा कि तुम ठीक हो जाओगे।" मैंने कहा, "अच्छा तुम मोहम्मद साहब का नाम लो थोड़ी देर।" वैसे लेते ही साथ उसके अंदर से वाईब्रेशन्स शुरू हो गए। वाईब्रेशन्स शुरू हो जाते हैं। जो बात मैं कह रही, अगर झूठ हो, तो आप वाईब्रेशन्स पे जान सकते हैं। फ़ौरन आपके वाईब्रेशन्स बता देंगे सत्य क्या है, झूठ क्या है। ऐबसोल्यूट जो चीज़ है, अभी तक आपको पता ही नहीं है। माँ कह रही ये सच्चा है, कि वो कह रहे कि वो सच्चा है, तुम हर एक चीज़ का देख लो। इसका प्रत्यक्ष सामने है। आप लोग बिल्कुल कंप्यूटर जैसे हैं; सिर्फ आपके कंप्यूटर को अभी मेन्स में लगाने की ज़रुरत है। जैसे ही आप मेन्स में लग जाएंगे, आपको फ़ौरन पता हो जायेगा कौन सी चीज़ सच्ची है, कौन सी चीज़ झूठी है। मैंने कुछ गुरुओं के बारे में कहा कि, 'भई, ये गुरु ठीक नहीं,' तो वो साहब बहुत गुस्से हो गए। मैंने कहा, "अच्छा भई, तुम पार हो जाओ फिर देखना।" उसके बाद अब उनका ये हाल है कि वो जो गुरु का कोई नाम लेता है, तो वो कहते हैं, 'हे भगवान्, किसका नाम लिया।' भागते हैं वहाँ से। जो सच्चा और झूठा है उसको पहचानना ही चाहिए। क्या मुझे ये नहीं कहना चाहिए कि जो सच्चा है वो सच्चा है जो झूठा है वो झूठा है। आप अगर कबीरदास को पढ़ें, उन्होंने ने तो पूरी अपनी कबीरदास की जितनी सुक्तियाँ हैं, सब में ऐसा निकाला है कि ये चोले वाले और ऊपर से झगडे लगाने वाले और ये करने वाले और ये जो साधु पैसे लेते हैं और ये जो ढकोसले वाजे/वाले हैं और ये जो तांत्रिक हैं सबको उन्होंने एक-एक को ऐसा लताड़ के रखा है, जो खेचरी करते हैं - दुनिया भर की, सबको खूब ठीक-ठीक करके रखा है, लेकिन कबीरदास को कौन पढ़ेगा। हिंदी भाषी लोगों में से कबीरदास किसी ने नहीं पढ़ा होएगा, ये मैं आपसे बताती हूँ। मनोहर कहानियाँ - फिर वो ऍम.ए. इन हिंदी होंगे तो भी वे मनोहर कहानियाँ ही पढ़ते रहेंगे। ये मनुष्य की वृत्ति है आज। हिंदुस्तान की मनुष्य की वृत्ति बहुत उथली हो गई। कबीरदास को पढ़िए तो रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं। अकेले आदमी ने, जुलाहा के लेवल पे होते हुए, ऐसा लताड़ के रक्खा है सबको, लैशिंग जिसको कहते हैं। एक एक आदमी की पोल-पट्टियाँ निकाल-निकाल के उसने रक्खा है जो जादू-मंतर दिखाते हैं, जादू-टोने दिखाते हैं। नानक को देखिए। नानक ने चैप्टर्स आफ्टर चैप्टर्स लिखे हैं इन ढोंगी लोगों पर। ये पैसे बनाने वालों पर, ये चमत्कार दिखाने वालों पर, सब पे चैप्टर्स आफ्टर चैप्टर्स [एक के बाद एक अध्याय] लिखे हैं। उसको काहे को कहीं जाने को है; इन्हीं लोगों को पढ़ो। मराठी लोगों ने तुकाराम को इतना पढ़ा होएगा पर किसी को ये नहीं मालूम कि उन्होंने इस पर कितना लिख मारा है। और मालूम भी होगा तो भी आँख बंद करके 'अमचे गुरु आहे'। वो तो मराठियों के तो ऐसा स्टैम्प पोस्ट जैसे गुरु चिपक जाते हैं। उसको आप बोल नहीं सकते फिर। तुमचे गुरु कौन? तो वो वहाँ के गुरु हैं। अच्छा उनका क्या नाम? अब आपने उनको मान लिया। "और क्या वो मेरी बीबी को लेकर के भाग गए तो भी हर्जा नहीं - मेरे लिए वो माँ हो गई।" और गुजरातियों को तो टाइम ही नहीं - सब पैसा ही इकठ्ठा कर रहे हैं। भगवान-अगवान कहाँ हैं। थोड़ा बहुत दीप-दाप दिखा दिया हो गया काम ख़तम चलो। इस दशा में हम लोग आ गए हैं, इस योग भूमि में, इतनी गंभीरतापूर्वक, जिस देश में हमारा रहन-सहन है, जहाँ हम रहते हैं वहाँ हमें कितना गंभीर होना चाहिए, कितनी परमात्मा की हमें लगन होनी चाहिए, कितने उसमें गहरा उतरना चाहिए, उसका विचार किसी को भी नहीं। किसी को टाइम ही नहीं है भगवान के लिए। सारे धंधे करने को टाइम है, भगवान के लिए टाइम नहीं है। और उसी में सारा आनंद है बेटे और कहीं आनंद नहीं, मैं तुम्हें सच-सच बता दूँ। तुम कोई भी चीज़ ढूंढ लो। यही गुरु सम्पदा अपने भारतवर्ष में अत्यंत बलवती थी। और जगह भी हुए बड़े-बड़े गुरु। कोई नहीं कह सकता कि कन्फूशियस उसी के एक अवतरण हैं। और भी जगह बहुत बड़े-बड़े गुरु हैं, लेकिन अपने देश में बहुत बड़ी सम्पदा हो गई। ज्ञानेश्वरजी हो गए - कितने बड़े-बड़े गुरु हो गए - रामदास स्वामी हो गए। लेकिन उनका असर हमारे ऊपर कितना आया कि सिर्फ गाना गाना। उनके भजन लेकर के सुबह से शाम गाते रहना कि 'घट ही खोजो भाई, घट ही खोजो भाई, घट ही खोजो भाई'। अरे भई, ये तो उन्होंने प्रिस्क्रिप्शन दिया कि घट को खोजो। तुम लोग वही गाते फिर रहे हो कि, 'घट ही खोजो, घट ही खोजो' - पर खोजोगे कब? कबीरदास का भजन बहुत शौक से लोग गाते हैं। उन्होंने गाया है कि 'शून्य शिखर पर अनहद बाजी रे'। बिल्कुल कुण्डलिनी का सारा वर्णन दे चुके हैं। मतलब कोई नई बात थोड़ी न मैं कहने वाली हूँ आपसे सारा उन्होंने 'इड़ा, पिंगला, सुखमन नाड़ी रे' सब उन्होंने गा दिया है, कह दिया है। वो बैठ कर, हारमोनियम ले के, तबला बजा-बजा कर के खूब जोर-जोर से लोग गाएँगे। 'अरे भई गा क्या रहे हो?' 'कबीरदास।' क्या गा रहे हो?
उसमें क्या लिखा है। माने ये भी एक मनोरंजन का साधन हो गया है। भजन मण्डली का मतलब है, लगे हैं अपने पागल जैसे। अरे गा क्या रहे हो, कर क्या रहे हो, सोच क्या रहे हो - कोई सम्यकता नहीं उसमें। इसलिए अपने यहाँ की गुरु सम्पदा जो है उसको बड़े गहराई से जानने की ज़रुरत है। अभी सिक्ख लोगों का बताऊँ आपको। लंदन में सिक्ख लोगों ने बड़ा-भारी ओप्पोसिशन [विरोध] कर दिया है क्योंकि उनको अपने सर में वो घमेला बाँधना पड़ता है। क्योंकि वो अब गिरेंगे कहीं तो सर फूटेगा न, अगर उससे जा रहे हैं, बाइक से, मोटरबाइक से। तो एक घमेला पहनना पड़ता है। तो उन्होंने कहा, 'हमारे धर्म में मना है।' 'कहाँ लिखा है?' पूछिए उनसे। अब अंग्रेज़ों ने बेचारों ने तो पढ़ा नहीं है। वो कहें, 'उनका धर्म अजीब है। जब इनका सर फूटेगा, ये घमेला क्यों नहीं पहन सकते।' और बड़ा भारी पार्लियामेंट तक सवाल पहुँचाया, पार्लियामेंट तक। और एक चीज़ जिसे बिल्कुल पूरी तरह से मुहम्मद साहब ने भी और गुरुनानक ने मना किया है, कि कोई भी तरह का नशा, कोई भी तरह का, शराब, सिगरेट, कोई भी तरह का नशा मना है। उसमें सबसे नंबर एक हैं - अंग्रेज़ भी उनके आगे हार गए। अगर कोई उधर से शराब पी कर के सरदारजी आ रहे होएंगे और इधर से कोई अंग्रेज आ रहा हो, तो अंग्रेज भागेगा। 'जब तक,' वो लोग कहते, 'सरदारजी लोग यहाँ रहेंगे, हमारी स्कॉच व्हिस्की कभी भी ख़तम नहीं हो सकती है।' 'उसका व्यापार चलता रहेगा।' ये तो हम लोगों ने वहाँ नाम कमाए हुए हैं और इनका नाम है नानक के ख़ास और पार्लियामेंट तक पहुँचे कि घमेला चाहिए। नहीं। ये गुरु सम्पदा की हालत कर दी जो क्योंकि इतनी महान शक्ति परमात्मा ने हमारे अंदर अवतरित की थी। उसका ये हाल हम लोगों ने कर दिया है कि अलग-अलग ग्रूप्स बना कर के, और अलग-अलग चीज़ बना कर के, और हम इसको कह रहे हैं कि, 'हाँ, यही हमारा धर्म है।' और मुसलमान जितनी शराब पीते हैं उसके मामले में तो कहना ही क्या। उनसे ज़्यादा तो कोई शराब का शौक़ीन ही नहीं होता; इतना ही नहीं उन्होंने कविता भी लिख रखी है। काफ़ी कवि, एक से एक कवि हो गए इस शराब, पिशाच की वो इतनी स्तुति कर रहे हैं। राक्षस है बिल्कुल शराब चीज़। फर्मेन्टेड शराब जो होती है इसमें राक्षस आते हैं। मनुष्य को राक्षस कर देती है। आप लोगों को शायद ये बात पसंद नहीं आएगी लेकिन मैं आपसे बता रहीं हूँ कि शराब मनुष्य ने बनाया हुआ एक एटम बॉम्ब है अंदर में। इतनी मूर्खता की चीज़ है। पता नहीं कैसे, कहाँ दिमाग में कब आ गया इनके और इन्होंने शराब बनानी शुरू कर दी और अभी मुझसे एक साहब बताने आये थे कि देवता भी सोमरस पीते थे। तो मैंने कहा तभी तो उनका फॉल हुआ था। और ये कहाँ से उन्होंने एक शास्त्र निकाल के लाये कि देवता सोमरस पीते थे। मैंने कहा, "तब तुम थे वहाँ देखने के लिए?" लेकिन तुम मत पियो। तुम अगर पियोगे तो पिशाच हो जाओगे और जो पीते हैं उनको देखकर भी फिर पीने लग जाते हैं। इसके लिए कोई प्रोहिबिशन की पॉलिसी लाने की ज़रुरत नहीं। अपने मन से ही सोचिए इस विचार को। विचार करो, कितनी गन्दी चीज़ है! गुरु सम्पदा में सबसे बड़ी चीज़ मनाही है नशे की। हर गुरु जो भी संसार में आया है उसने नशा को एकदम मना किया है क्योंकि बाकी अवतारों में इसका विचार नहीं हुआ था, इसलिए इन्होंने गुरु सम्पदा है, उन्होंने किया। बिल्कुल मना था। और ईसाई लोग ये कहेंगे कि ईसा मसीह ने मना क्यों नहीं किया? किया है उन्होंने लेकिन उनके ज़माने में जो मोसिस नाम के हो गए थे, उन्होंने साफ़-साफ़ लिखा है कि कोई सी भी नशे की चीज़ नहीं पीनी चाहिए क्योंकि वो जो थे, वो गुरु सम्पदा वाले थे। उन्होंने इस बात को साफ़ किया हुआ है लेकिन ये जो ईसा मसीह के बड़े भारी कहते हैं, कि हम ईसा मसीह के बड़े भारी फॉलोवर्स [अनुयायी] हैं, इन्होंने तो जितना उनका अपमान किया है, संसार में कोई कर ही नहीं सकता है। क्योंकि जिसने पूरा जीवन ब्रह्मचर्य से बिताया है, उनके ये शिष्य लोग हैं - ज़रा देखिए इनकी शक्लें। आपको तो पता ही नहीं है किस गर्त में फँसे हुए हैं ये लोग। अपने को ईसा मसीह के ये लोग चेले कहते हैं। उनके पक्के दुश्मन उनका अपमान करने वाले ये लोग हैं। ऐसे ही हम लोग हैं। हम लोग कुछ कम नहीं। धर्म विचार जब भी हम करेंगे, गुरु सम्पदा के साथ ही सम्बंधित होता है। एक चीज़ बताई गई है हमारे अंदर कि हर मनुष्य के अंदर एक ही आत्मा की ज्योत होती है। वहीं परमात्मा का दर्शन है और हर आदमी का पुनर्जन्म हो सकता है। फिर हम ऐसा कैसे कह सकते हैं कि कोई मनुष्य जाति से ही ब्राह्मण होता है। और उसमें कहते हैं कि गीता में लिखा है। तो आप उनसे ये सवाल जाके पूछें कि, 'गीता किसने लिखी है?' 'व्यास ने।' 'व्यास किसके लड़के थे?' पराशर मुनि के लड़के ज़रूर थे लेकिन उनकी माँ एक ढीमरनी थी और वो भी इल्लेजिटेमिट। सबको मालूम है। वो कोई ब्राह्मण के लड़के नहीं थे। विवाहित भी नहीं हुए थे उनके पिता-माता और उनके लड़के पैदा हुए थे व्यास। क्या वो लिख सकते हैं कि जन्म से ही वो ब्राह्मण होना चाहिए। ये आरोप है। वाल्मीकि कौन थे? आप जानते हैं सब लोग। फिर इस तरह का अट्टहास करना कि, 'कोई मनुष्य जन्म से ही ब्राह्मण हो सकता है,' ये बहुत ही गलत बात है। अपने सारे ही मार्ग तोड़ने का ये बड़ा गन्दा तरीका लोगों ने बना लिया है। ब्राह्मण का मतलब होता है जो ब्रह्म को जानता है, द्विज, जिसका दूसरे बार जन्म हुआ है। जो रिएलाईज़ड [साक्षात्कारी] नहीं हुआ वो ब्राह्मण हो ही नहीं सकता है। हमारे यहाँ तो ब्राह्मण आप घर में खाना बनाने के लिए रख लो। हो गए - ब्राह्मण घर में खाना बनाता है 'हम पवित्र आदमी हैं, हमने घर में ब्राह्मण रक्खा है वो घर में खाना बनाने के लिए।' पूजा करने लिए ब्राह्मण रखिए /रख लिए। भाड़ोत्री ब्राह्मण नहीं हो सकता। ब्राह्मण एक दशा है एक वृत्ति है। जो ब्रह्म को खोज रहा है। आप सब ब्राह्मण हैं क्योंकि आप ब्रह्म को खोजते मेरे पास आये हैं। जो ब्रह्म को खोजता है वो ब्राह्मण है, जो सत्ता को खोजता है वो क्षत्रिय है। इस प्रकार वृत्ति पर अवलम्बित है ये सारा। लेकिन हिंदुस्तान में इसकी इतनी गन्दी प्रथाऐं चलती आईं हैं, इस कदर हम लोगों ने अपने गुरुजनों को सताया है ज्ञानेश्वरजी को, क्योंकि वो संयासी के लड़के थे - ऐसा इन लोगों का कहना था - उनके प्राण ले लिए। अभी-अभी तक, जो साईं नाथ हमारे शिरडी में हो गए, जो कि स्वयं साक्षात् दत्तात्रेय के अवतार थे उनको इसलिए सताया गया कि वो मुसलमान हैं। और अभी जब वो मर गए, तो उनके सामने उन्हीं के दुश्मन, वही लोग जिन्होंने उनको सताया था इतने बड़े-बड़े पेट निकाल कर के, खड़े हो कर के उनके [घर] आरती कर रहे हैं। पैसे बनाने के धंधे बना लिए। चारों तरफ से उनको बंद कर दिया वहाँ - कुंद कर दिया है। एक दिन ऐसा आएगा कि वहाँ से उनकी आत्मा उठ जाएगी। उनका एक बिज़नेस बना लिया है। परमात्मा को बेचने को निकाल आये। इन गुरुओं को बेच रहे हैं हम लोग। जब वो ज़िंदा रहते हैं, तब उनको सता-सता कर के मार डालते हैं। जो कुछ, जो कुछ भी, संसार का जितना भी दुष्ट, क्रूर है, सारा उनके साथ होता है। और जब वो ख़त्म हो जाते हैं - जब हम मर जाते हैं, तब हमें पता होता है, क्योंकि हम कलेक्टिव सबकॉन्शियस [सामूहिक अवचेतन] में जाते हैं, जो मैं कल सब बताने वाली हूँ आपको सवेरे जब हम कलेक्टिव सबकॉन्शियस में जाते हैं तो हम को पता हो जाता है, कि हमने ये-ये दुष्टता करी, ये-ये हमने क्रूरता करी, फिर आ कर के उनके भजन शुरू कर देते हैं। और उसके साथ अगर कुछ पैसा-वैसा मिलता है, बहुत अच्छी बात है। क्या ये धर्म का हाल बना रक्खा है! ये धर्म सम्पदा हमारे भवसागर में हमारे भी अंदर है इसलिए इसके बारे में करेक्ट [सही] आइडियाज होने चाहिए आदमी को। सबसे बड़ी करैक्ट आईडिया ये होनी चाहिए कि धर्म हमारे अंदर की इन्नेट चीज़ है, हमारे अंदर की चीज़ है। और हर एक बड़े-बड़े धर्मों में और धर्म संस्थापकाओं में, एक ही धर्म की शक्ति अलग-अलग स्थान पर, अलग-अलग जगह, अलग-अलग स्वरुप में आई है और ये कंटीन्यूअस प्रोसेस है, जैसे पेड़ में पहले फूल आता है, फिर उसकी बूँधा आता है, फिर उसकी पत्तियाँ लगतीं हैं, फिर उसके फल लगते हैं, बीज आते हैं - उसके अनेक रूप में आता है, पर शक्ति उसके अंदर एक ही होती है, उसी प्रकार धर्म के इस वृक्ष में, महान वृक्ष में, जो कि एक ही चीज़ है अनेक समय में, अनेक तरह की, अनेक चीज़ें हुईं हैं, लेकिन सब के अंदर एक ही शक्ति चालित है और हमें कोई अधिकार नहीं कि हम उसका विभाजन करें या उसको अलग-अलग कह करके और हम उसके मत्तेदार बैठ जाएँ। हम कहें कि हम फलाने हैं और हम ढिकाने हैं। आदिशंकराचार्य के - देखिए आज जितने शंकराचार्य बैठे हैं - एक शंकराचार्य छोड़ के बाकी सब आदिशंकराचार्य, जिन्होंने कहा था कि, 'न योगे न सांख्ये' न किसी चीज़ से ये नहीं होने वाला है; सिर्फ माँ की कृपा से ही आदमी पार हो सकता है। शंकराचार्य को बाँध कर के जंगल में डाल दिया है। और ये लोग सब सर पे सोने के चँवर लगा कर के घूम रहे हैं। आपको पता है सोने का छत्र चाहिए। अंदर शकल देखी है कैसी है। शंकराचार्य का मतलब - कितनी बड़ी चीज़ होती है। साक्षात् दत्तात्रेयजी का अवतरण कहाँ, और कहाँ ये आज कल के भाड़ोत्री! फिर उसका रिएक्शन आता है। ये समझ लेना चाहिए कि इस शक्ति को अगर आपने ठीक से समझा नहीं - उसका रिएक्शन आज ही आया है कि हमारे यंग लड़के यहाँ कोई दिखाई नहीं दे रहे हैं। सब कॉलेज में उठ करके समय बर्बाद कर रहे हैं। कोई यहाँ आने वाला नहीं। उनको धर्म से कोई मतलब नहीं। सोचते हैं, "ये बेवक़ूफ़ लोग हैं हमारे माँ-बाप, चले जाने दो, इनको करना है करने दो, हमसे कोई मतलब नहीं है।" वो सोचते हैं हम बड़े अक्लमंद हैं। वो भी बेवकूफी मैं जा रहे हैं। एक चीज़ से छूटे तो दूसरे में जा रहे हैं। लेकिन आपको भी धर्म की स्थापना अगर करनी है, जागृति तो होनी चाहिए, पार भी होना चाहिए, लेकिन अपने विचारों में थोड़ा सा बैलेंस आप लाइए, संतुलन लाना होगा। और सोचना होगा, कि कोई भी एक्सट्रीम विचार अगर हम लेकर चलें, तो सहज योग में आपको फायदा नहीं होने वाला है। यू हैव टू बी इन द सेण्टर [आपको मध्य में रहना होगा]। कोई भी एक्सट्रीम आदमी हम सहज योग में लाभान्वित नहीं हो सकता है। आप उससे बहुत ही अगर निकट हैं और आपको आत्मसाक्षात्कार नहीं चाहिए, तो हम कुछ नहीं कर सकते हैं। बहुत से लोग ऐसे भी हैं कि वो कहते हैं कि, "चाहे आत्मसाक्षात्कार हो ना हो, हम तो भई जनसंघी हैं," "और हम उसी से चिपक के रहेंगे। हम तो मारेंगे ही जहाँ मुसलमान मिलेगा।" तो वो चिपके रहेंगे। जब भगवान के सामने जाएंगे तो भगवान आपसे पूछेंगे कि, "भैया क्या बात?"
कहेंगे, "भई, हम तो जनसंघी थे और हमने एक गुरु बनाया था; उसको हम पैसा देते थे।" "अच्छा!" और उसने हमसे कहा कि, "तुम स्मगलिंग करो चाहे कुछ करो, पर पैसा इधर में दे दो, मेरे पास में पर्स।" "तो मैं उसको पैसा देता था। फिर स्मगलिंग में पकड़ा गया हूँ और अब मर गया हूँ, अब तुम्हारे सामने आ गया।" तो भगवान बोलेंगे, "अब जाओ नर्क की गति।" वहीं उनके गुरु भी बैठे होंगे और ये भी बैठ जाएंगे। गुरु लोग कभी नहीं बोलेंगे, "आप ऐसा नहीं करो, वैसा नहीं करो।" ना, ना, ना, ना, ना, ना, ना। वो तो ऐसा बोलेंगे तो उनकी सारी ये चली गई। ये तो माँ ही बोल सकती है कि, 'बेटे ये नहीं करने का।' ये करना मना है, गलत बात है। वो क्यों बोलने चले। उनको तो आपसे पर्स से मतलब है, पर्स यहाँ रखो और आराम से बैठो। 'हमको गुरु मानते हो न, भजो हमको और पर्स इधर में देओ।' काम ख़तम। तुम्हारे मृत्यु के बाद, परमात्मा के साक्षात के बाद क्या होगा, इसका उन्हें विचार नहीं। उनको खुद भी अपना विचार नहीं है कि स्वयं उनका क्या होगा। ये पैसे और ये चीज़ें जो इन्होंने इकट्ठी यहाँ कर रखीं हैं, इसका क्या बोझा उठा कर के ले जाएंगे। ये लोग ख़ुदी नर्क में अति घोर नर्क में जा के बैठेंगे। इनका भी महान सत्यानाश होने वाला है, इसमें तो कोई शंका नहीं। लेकिन आपको भी साथ ले कर के डूबेंगे। इनकी गठरियाँ इनके साथ नहीं जा सकतीं ये आप स्वयं जानते हैं। कोई भी आदमी पैसा आपसे माँगे अगर परमात्मा के नाम पे, तो पहले ही समझ लो कि यहाँ भगवान नहीं मिल सकता है। ये बात दूसरी कि समझ लीजिए आज ये भारतीय विद्या भवन बनाना है - ठीक है। भारतीय विद्या भवन का भगवान से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसको भवन बनाना है, इसके लिए पैसा इकठ्ठा करो, बनाओ, हो गया। इसका भगवान से कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता है। कोई कहे कि, 'भगवान के लिए दो।' भगवान के लिए क्या दे सकते हैं आप? क्या है आपके पास? क्या दे सकते हैं? सभी कुछ जब उसका है उसे कुछ भी देने लायक नहीं है। हम क्या दे सकते हैं सिवाय अपना ह्रदय उसको दे दें, अपनी श्रद्धा उसे दे दें, और देने का कुछ नहीं। और जो आपसे - आज ही एक साहब मुझे कह रहे थे कि, "माताजी, आप कुछ फीस लगाओ" "आप तो एक पैसा नहीं लेते हैं, इसी से लोगों को इसकी कीमत नहीं रह जाती है।" मैंने कहा, 'वाह, क्या कहने आपके!' मैंने कहा, "ये बताओ, तुम अपने माँ के प्यार को कितने रुपये में बेचोगे? कीमत लगाओ।" आज ऐसी बात कही सो कही, फिर कभी नहीं कहना। ये सब चीज़ कोई सोच ही नहीं सकता क्योंकि हरएक चीज़ हम पैसे के मामले में सोचते हैं। वो बालाजी के कुछ उसमें है वो उसे मार्क सर पे कुछ लगाते हैं - उसकी लगा रहे बोली। इसके चँवर घुमाने के, उसकी बोली लग रही। सब जो है शेयर मार्किट हो गया है। तुम लोग अपने माँ के प्यार को भी बेचने निकले हो क्या? अपने धर्म की कल्पनाएं कितनी, कितनी घृणित हो गईं - ज़रा सोचो। ज़रा सोच लो। क्या हम लोग बिल्कुल प्यार नाम की चीज़ जानते ही नहीं। क्या हम लोगों की माएँ ही नहीं थीं? क्या हम ने संसार में प्यार ही नहीं देखा है? क्या इतने हम लोग जड़ हो गए हैं कि इसे समझ नहीं सकते?
ये सब विचार हमारे सामने, हमारे सामने हमारे गुरुओं ने रखे और हमें बताया, सिखाया, इतना सफर किया बेचारों ने। उससे ऊपर जो चक्र हैं, वो सारे ही गुरु हमारे अंदर स्थित हैं। वो सारे हो गुरु, सारे ही गुरु हमारे ही अंदर रहते हैं और हमारा मार्गदर्शन करते हैं। अगर हमने अपना रास्ता गलत कर दिया - माने सहज योग में मैं ये किसी से नहीं कहती कि 'तुम भई शराब मत पियो, सिग्रेट मत पियो,' ये किसी से नहीं कहती हूँ। जब आप पार हो जाते हैं आप ख़ुदी छोड़ देते हैं। 90% लोग ख़ुदी छोड़ देते हैं। कोई आदत ही नहीं रह जाती है। कारण ये है कि जब आप अपना ही मज़ा उठाने लग जाते हैं, तो आपको टाइम कहाँ है कि कोई और चीज़ का मज़ा उठाएँ। आप बोर होना ही भूल जाते हैं। आनंद इतना आने लग जाता है ह्रदय का कि आप इस चीज़ को भूल ही जाते हैं। इसलिए मैं किसी से कहती नहीं हूँ लेकिन ये घटित हो जाता है, ऑटोमैटिक हो जाता है। उसके बाद आप ऊपर देखेंगे कि जो चक्र है, जिसे कि ह्रदय चक्र कहते हैं, इस ह्रदय चक्र में जगदम्बा का स्थान है। आप जानते हैं जगदम्बा जी, शिव की पत्नी शिवा हैं। शिव ह्रदय पे वास करते हैं। हमारे सब के ह्रदय पर शिव जी का वास है। और ह्रदय के अंदर आत्मा की ज्योत है, जो परमात्मा का प्रतिबिम्ब है। ये है या नहीं है, ये आप बाद में देखिएगा। है। इस प्रतिबिम्ब स्वरुप, आत्मस्वरूप के अंदर एक प्रकाश, ज्योति सी है, जो ह्रदय में रह कर के आपके पूरे कार्य को देखती है। आपको पूरा वॉच करती रहती है, वो कहीं इन्वॉल्व नहीं होती, साक्षी होती है, देखती रहती है। और आपके अंदर जो कुण्डलिनी त्रिकोणाकार अस्थि में रक्खी हुई है, उसके ऊपर उसका रिकॉर्डिंग होता है। वो जो कुछ देखती है, वो आत्मज्योत जो कुछ आपका कार्य जानती है, देखती है वो हर कार्य को जानती है - आप उससे कुछ नहीं छिपा सकते। वो साक्षी है, देखती जाती है रिपोर्टर जैसे, और वो सारा इस कुण्डलिनी पर उसका प्रकाश पड़ते जाता है और कुण्डलिनी जानती जाती है। उसका एक त्रिकोण सा बना हुआ है ह्रदय से यहाँ पर। माथे के ऊपर सदाशिव जी का पीठ है। वहाँ से कुण्डलिनी को इंफॉर्मेशन जाता है और जैसे कोई टेप रिकॉर्डर होता है, इस तरह से कुण्डलिनी सारा नोट करती जाती है। बहुत से लोग, कभी-कभी मैं उनसे कुछ बात पूछतीं हूँ, तो बहुत आश्चर्य से पूछते हैं, "माताजी, आपको कैसे मालूम?" तो तो मैं कुण्डलिनी से जो जानतीं हूँ तुम्हारा। सारा टेप ही बजा सकतीं हूँ। तुम्हारा टेप बजा लिया - ख़तम। और जो चाहिए वो टेप खींचना भी नहीं पड़ता है - सब सामने आ जाता है। सारा कुण्डलिनी में जमा रहता है और ये आत्म की ज्योत, अकेली, तनहा जलती रहती है। जब कुण्डलिनी जागृति होती है, जब कुण्डलिनी उठ कर के और ब्रह्मरंध्र को छेदती है, तो सदाशिव जी का पीठ जो सर के ऊपर में यहाँ पर है, सदा सर्वदा आपके ऊपर वो रहता है। इसी के कारण आप में सत्य/सत असत्य विवेक बुद्धि होती है। कॉनशिऐंस उसी की वजह से रहता है। और तब जब वो वहाँ जा कर के छू जाती है, तो जैसे गैस में एक छोटी सी लाइट जलती रहती है और उसमें जब गैस का फाॅर्स आ कर के मिल जाता है, तो सारा वो प्रज्जवलित हो जाता है उसी प्रकार आपकी सारी चेतना में ही उसका आभास आ जाता है, उसकी चेतना आ जाती है । ये जो हाथ में जो बाद में जो वाईब्रेशन्स आपके आते हैं, ये उसी की चेतना का असर है। और उसी के बाद मनुष्य साक्षी स्वरुप हो जाता है। ये घटना घटित होनी पड़ती है। ये कोई भाषण से नहीं होने वाली। अभी जब मैं भाषण आपको दे रही हूँ, अब भी वाईब्रेशन्स मेरे चल रहे हैं और आ रहे हैं और आपके अंदर उसकी घटना, जो भी है, हो रही है लेकिन सब लोगों जो भाषण देते हैं और वो ये किताबें पढ़ते हैं, उससे नहीं होता ये। इसके लिए बड़ा अधिकारी कोई चाहिए और अधिकारी ऐसा चाहिए कि जो प्रेम में पूरी तरह से परमात्मा से एकाकार हो। अधिकारी का मतलब तो स्पेक्टैक्युलर [शानदार] कोई होना चाहिए कि सात मंज़िल पे बैठा हो सब लोग उसके नीचे जा के पाँव छूएँ। उन्होंने आये गर्दन एक से मारी गुरूजी के सर पे, फिर दूसरे आए उसने गर्दन मारी। वहाँ पच्चीस रुपये रक्खो, किसी ने पाँच सौ रुपये रक्खे, और वो चार पंख लगा कर के वहाँ बैठे हुए हैं दो सींग लगा कर के। नहीं, इसका अधिकारी अत्यंत सीधा-साधा होता है। हम लोग राधाजी को आदिशक्ति मानते हैं, सीताजी को मानते हैं - सीताजी में क्या विशेषता थी? हम लोग मैरी को मानते हैं, क्राइस्ट की मदर को आदिशक्ति - क्या था उनमें? बहुत सर्व साधारण माताएँ थीं, बहुत सर्व साधारण लेकिन अंदर से शक्तिशाली थीं। उनकी शक्ति को जानने के लिए लोगों को रियालाईज़ेड [साक्षात्कारी] होना पड़ता था नहीं तो लोग नहीं जानते हैं। सीताजी के समय में तो इस कदर लोगों में सेंसिटिविटी थी, इतने सेंसिटिव लोग थे - आज वैसी बात नहीं दिखाई देती है। मैं अभी सातारा गई थी तब मुझे लगा कि वो सेंसिविटी के लोग यहाँ हैं। लेकिन और तो कहीं मैंने ऐसे देखे नहीं कि एकदम मानो जैसे उन्होंने जान ही लिया कि चीज़ क्या है। इतने सेंसिटिव लोग थे फट से पार हो गए। उनके राजा की मदर ही इतनी सेंसिटिव थीं कि मुझे बड़ा आश्चर्य लगा। मैंने कहा 'ये सातारा जैसे छोटी जगह में - शिवाजी के शायद वहाँ के पुण्य प्रताप से ऐसा हो - लेकिन लोग इतने सेंसिटिव थे, कि जैसे कि बिल्कुल पूरी तरह से तैयार थे दीप और चट से जल गए। खटा खट - बहुत ही सुन्दर। इस तरह के लोग जब होते हैं तो ये कार्य हो जाता है। सेंसिटिविटी ज़रूर होनी चाहिए इस चीज़ के लिए कि आदमी सेंसिटिव हो। नहीं हो तो हम मेहनत करते हैं और किया है। अब ऊपर के चक्रों में से जो मैंने जगदम्बा का चक्र बताया है, आप जानते हैं कि जगदम्बा जी ने अनेक बार अवतार ले कर के भवसागर में आ कर के और सब भक्तवत्सल लोगों की रक्षा की है; उन्हीं में से आप लोग भी हैं। आज कलजुग में आप उसी को खोज रहे हैं। आप भी उन्हीं में से आये हुए हैं। आप में भी कोई सम्पदा हुए बगैर आप आने वाले नहीं और आप पार होने वाले नहीं। अगर आप ये जान लें कि ये आप ही का चेक है जो मैं कैश कर रहीं हूँ, आप ही की वहाँ सब जमा रकम जो है उसको मैं दे रही हूँ; मेरा अपना कुछ नहीं, मैं बीच में बैठी हूँ। मीडिएटर जैसा होता है, मैं बीच में बैठी हूँ। आपका है आप ले लीजिए, लेकिन इतना ही है कि मैं अनाधिकार नहीं दे सकती हूँ। अधिकारी जो होगा उसे दूँगी और जो कुछ भी मुझसे बन पड़ेगा, जितना भी मेरे प्यार से, उसमें शक्ति से मैं डाल सकूँगी, करुँगी। होता है, अनेकों को हुआ है और हज़ारों को हो गया है और आपको भी होना चाहिए। अब उससे ऊपर, उसके साइड में जो चक्र है, उसको आप कह सकते हैं कि वो श्री राम और सीता का चक्र है क्योंकि जब ऐवोल्यूशन में दस उनके अवतरण हुए थे, तो उनमें से एक अवतरण श्री राम और सीता का हुआ था और श्री राम का अवतरण इसलिए हुआ था, कि संसार में ये बताया जाए, कि आदर्श राजा कैसे होना चाहिए। अब इस पर बहुत ज़्यादा मैं बता नहीं सकती हूँ क्योंकि टाइम कम है। और उसके ऊपर का जो चक्र है, जिसको कि हम आज्ञा चक्र कहते हैं, जो ऑप्टिक थैलमस जहाँ पर कि हमारे दो आँखों की जो नर्वस हैं मिलतीं हैं, उस जगह सेण्टर में एक सेण्टर है जिससे कि पिट्यूटरी और पीनियल ग्लैंडस [ग्रंथियाँ] दोनों कण्ट्रोल होतीं हैं, जिससे ईगो [अहंकार] और सुपरईगो [प्रतिअहंकार] मनुष्य का जो सर में बना हुआ है, वो कण्ट्रोल होता है और इसके अलावा ये जो चक्र है, इसके बीच, यहाँ पर अब, यहाँ पर देखें एक तो ये आज्ञा चक्र है, और यहाँ बीचो-बीच यहाँ पर श्री कृष्ण का चक्र है। ये श्री कृष्ण का चक्र है, क्योंकि ये चक्र ये बताता है कि मनुष्य ने जब अपनी गर्दन उठा ली, तब उसने आँख परमात्मा के तरफ उठाई है। जब तक वो पृथ्वी के तरफ उसकी गर्दन थी, तब तक विराट या परमात्मा की ओर उसकी दृष्टि नहीं थी। जब उसने अपनी गर्दन ऊपर को उठा ली, जब वो जानवर से मनुष्य हो गया है, जब उसने गर्दन उठाली, तब यहाँ कंठ में श्री कृष्ण का वास है। और श्री कृष्ण की शक्ति राधा जी हैं। आप जानते हैं रा-धा, रा माने शक्ति, और धा माने धारने वाली। और इस शक्ति के कारण, इस शक्ति के कारण ही आप साक्षी स्वरुप होते हैं। अब ये काफी अंदर की बातें हैं; और सिर्फ मैं अभी आपको चक्र और उसके अधीष्ठित देवताओं के नाम बता रहीं हूँ। उससे आगे इससे क्या होता है, उसकी बारीकी क्या है, उसमें सटिलनैस क्या है, उसका और क्या है, बहुत कुछ है बताने का। हमारे यहाँ कुछ ऐसे लोग हैं जो इसमें निशनाद हो गए हैं। आप लोग भी प्रयत्न करें। करीबन आप अगर, बार-बार यहाँ प्रोग्राम होते रहते हैं हमेशा भारतीय विद्या भवन में। आप लोग आएं, जानें, समझें; किताब भी किसी-किसी ने लिखी हुई है। मैंने तो अभी तक कुछ लिखा नहीं लेकिन सब लोगों ने कुछ-कुछ लिखा हुआ है उस देखें, मेरे लेक्टर्स हैं उनको सुनें और समझें और अपने हाथ चलाएँ, तब आपको पता होगा कि जो मैं कह रहीं हूँ वो सही है या नहीं। अब जो ऊपर का जो आज्ञा चक्र है, जिसे मैंने बताया था उसमें महाविष्णु का अवतरण है, उसको आप अगर देवी भगवत पढ़ें, तो आपको पता होगा कि महाविष्णु एक बहुत बड़ी बालक की अवतार की स्थिति है, और उसमें उन्होंने श्री गणेश को ही मुख्य तत्व माना है। श्री गणेश मुख्य तत्व मान कर के उस अवतार को संसार में भेजा गया था, जिनका नाम ईसा मसीह है। ईसा मसीह दूसरे तीसरे कोई नहीं, श्री महाविष्णु का अवतरण हैं, जिसके बारे में जिसको कि हम लोग बौद्धा कहते हैं। ये ईसा मसीह का अवतार हैं और उनकी जो मदर थीं, वो स्वयं राधाजी स्वयं थीं। इसका प्रत्यक्ष ये है कि, जीसस नाम जो उन्होंने दिया हुआ है, ये जेसू नाम है, यशोदा से है। यशोदा का नाम कहीं भी नहीं आया है इसलिए उन्होंने इसका नाम जेसू दिया है और उनका नाम जो क्राइस्ट है; वो दूसरा-तीसरा कोई नहीं कृष्ण से है, क्योंकि कृष्ण ही उनके पिता थे। बार-बार जो वो पिता का वर्णन करते हैं, आप देवी महात्म पढ़ें, देवी महात्म में इस बालक के बारे में पूरी तरह से लिखा हुआ है। सिर्फ नाम का फरक है। उसमें महाविष्णु लिखा है और उनका नाम जीसस क्राइस्ट है। अगर आप उनको पढ़ें, तो आपको बिल्कुल पता होगा कि ये उन्हीं का वर्णन है। पूरी तरह से उनका वर्णन है कि वो संसार में आए और उन्होंने जो कार्य किये और जिस तरह से उन्होंने क्षमा; क्षमा उनका मुख्य तत्व था। क्षमा के ऊपर में, क्षमा के ऊपर में उन्होंने सारे ही जितने भी आयुध थे, उनको क्षमा में घोल कर के डाल दिया। कि मनुष्य के पास सबसे बड़ा आयुध उन्होंने क्षमा का दिया है। अब इसकी भी सत्यता, प्रचीति आपको सिर्फ कुण्डलिनी जागरण में हो सकती है सब चीज़ों की कि जब कुण्डलिनी उठती है और जब वो रुक जाती है किसी भी चक्र पे, तो उसी डेटी [देवता] का नाम लेना पड़ता है। अगर उसका नाम नहीं लेंगे तो कुण्डलिनी ऊपर नहीं आएगी। ये आप खुद देख सकते हैं। कुण्डलिनी जब ऊपर आती है धीरे-धीरे आप देख सकते हैं कि चक्रों पे आपको वाईब्रेशन्स आते रहेंगे। आप आँख से भी देख सकते हैं। वहाँ पर आपको उसी डेटी का नाम लेना पड़ेगा जो मैं कह रहीं हूँ। अगर नाम नहीं लीजियेगा तो कुण्डलिनी चढ़ेगी नहीं और जब वो कुण्डलिनी चढ़ेगी तो आप जान लीजिये कि वहाँ पर डेटी जो हैं वो खुश हैं। उसके बाद में सहस्त्रार। सहस्त्रार में कल्कि का अवतरण मानते हैं। कल्कि माने, जो सारा ही पूरे सारे सात चक्रों का, सातों चक्रों के जो मालिक हैं, वो कल्कि हैं। और इसलिए उनका अवतरण सहस्त्रार में मानते हैं और ये आदिशक्ति का सबसे अति उच्च अवतरण है क्योंकि इसी के कारण, आदिशक्ति के कारण ही यहाँ पर सहस्त्रार को खोला जा सकता है। नहीं तो कभी नहीं खोला जा सका। साथ ही के साथ ही सारे देवता इस चक्र पे विराजमान होते हैं और ये सहस्त्रार का अवतरण है। अब आपसे मैंने काफ़ी बता दिया है इसके मामले में। अब आप हम थोड़ा सा ध्यान करेंगे और देखेंगे कि हमारी क्या स्थिति है।