Mooladhara: evening talk

Mooladhara: evening talk 1979-03-12

Location
Talk duration
65'
Category
Public Program
Spoken Language
English, Hindi, Marathi

Current language: Hindi, list all talks in: Hindi

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12 मार्च 1979

Public Program

New Delhi (भारत)

Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft

आज सबेरे मैं आपसे बता रही थी कि जो आपका चित हमारी और है उसे अगर हम कहें कि आप अंदर के और ले जाये तो आप नहीं ले जा सकते हैं और एक बात और पूछनी थी हिंदी में बोलें कि अंग्रेजी में बोलें सब लोग अंग्रेजी समझते हैं कि हिन्दी समझते हैं। हम तो बेटे सभी मैं बोलते हैं, क्या करें इस जन्म में अंग्रेजी भी सीख ली; हिंदे मैं बोलें, अच्छा हिन्दी में बोलते हैं।

उसके लिए कुछ न कुछ घटना अंदर होनी चाहिए, कुछ हैपनिंग होनी चाहिए; यहाँ सब मैंने बताया था आपसे मैंने, [गुस्ती-Unclear] और एक बात बहुत ज़रूरी है कि पर्मात्मा की और आत्मा की उपलब्धि अगर एक दो लोगों को ही हो, सिलेक्टेड लोगों को और सर्व सामान्य इस से अगर अछूते रह जायें तो इसका कोई अर्थ ही नहीं निकलता, पर्मात्मा का भी कोई अर्थ नहीं लगने वाला, ना इस संसार का कोई अर्थ निकलने वाला है, इस क्रियेशन का भी कोई अर्थ नहीं निकलने वाला है।

ये उपलब्धी सर्व सामान्य की होनी ही चाहिए, अगर ये सर्व सामान्य की न हों और बहुत ही सिलेक्टेड लोगों की हुई तो वो ही हाल होगा जो सबका हुआ। जो ऐसे रहें वो कभी किसी ने माना नहीं और मानने से भी क्या होता है ये बताईए मुझे; समझ लीजिए कोई गड़बड़ है राजा है, तो राजा है अपने घर में है हमसे क्या; हमको तो कुछ मिला नहीं है, हमको भी तो कुछ मिलना चाहिए तब तो उसका मतलब होता है।

इसलिए ये घटना घटित होनी ही चाहिए, इतना ही नहीं ये सर्व सामान्य में, अधिक लोगों में होना चाहिए, काफी लोगों में होना चाहिए। साइंस का भी मैंने बताया ऐसा तरीका होता है, कोई आप एक बिजली का आपको पता लग गया; जिसको पता लगा होगा वो अगर सर्व सामान्य के लिए नहीं उप्योग में आएगी तो उस बिजली का क्या मतलब।

आज जो सहज योग की उपलब्धि है, सहज तो कितने सालों से चले ही आ रहा है। जब से सृष्टी बनी, सहज ही बनी है सृष्टी। जैसे एक बीज होता है और उस बीज के अंदर उसके अंकुर बने रहते हैं सब चीज उसके अंदर बनी रहती है। सारे लक्षण उसके अंदर बने रहते हैं, जितने भी उसके अंदर से पेड़ निकलने वाले हैं; उसी प्रकार इस सृष्टी का सारा नक्शा है, माइक्रोस्कोपिक पहले ही से बना हुआ और वो सारा बना हुआ, खिलता हुआ, चला आ रहा है सहज से ही।

सहज माने, 'सह' याने आपके साथ और 'ज' माने पैदा हुआ; आप ही के साथ यह चीज पैदा हुई है, और जिस प्रकार पेड़ में एक, दो फूल पहले लगते है लेकिन जब वृक्ष बड़ा हो जाता है, बहार आती है तब अनेक फूल लगके उसके अनेक फल हो जाते है। उसी प्रकार, जो आज ये सहज योग हमारे हाथ में नए आयाम में, डाइमेंशन में ख़ड़ा हुआ है। वो सर्व सामान्य के लिए है असामान्य के लिए नहीं। इसे पहले तो अपने दिमाग से बात निकाल देना चाहिए कि हमें कैसे होगा भाई; हम तो इसकी योग्य है भी या नहीं है ये घटना हमारे अंदर घटित हो ही नहीं सकती। ऐसे दिमाग में बातचीत ले करके पहले से आये हो तो उसे अपने जूते के साथ बाहर रख दीजिए। ये तो होना है ही, यह घटना होनी ही है, चाहे आज ही होगी, कल ज़रूर होगी और हमें करना ही है, और आप इसके पात्री भी हैं।

अब सत्पात्र ढूंढते कहां तक घूमा फिरा जाए, माने अगर एकदम सबसे बढ़िया चीज हो और उसमें ही काम कर दिया तो कौन सी कमाल कर दिया? सो ये कभी नहीं सोचना कि ये चीज हमें होगी ही नहीं पहली बात तो यह है। इस मामले में कोई भी नर्वसनैस हो तो उसे पहले ही निकाल दिजिए क्योंकि हम तो मेंहनत करेंगे और ये चीज होगी; अब दूसरी बात यह है कि शंका होती है कि माँ ये कौन होती है करने वाली और हमने तो सुना था कि कुंडलीनी की जागृती तो बड़ी कठिन चीज है वो तो सर के बल खड़े होइये, हजारों वर्षों बाद हो जाती है, सब लोग यहीं कहते हैं; पता नहीं क्या क्या चीजें लिख वाली हैं। लेकिन ये बात हमारे साथ नहीं है, हो सकता है कि हम बड़े माहिर हैं इसके कारीगर हैं, जानते हैं काम, इसलिए हमें तो कभी हमें आज तक देखा ही नहीं कि किसी पर किसी ने कहा है कि माँ हमें पार करो, किया नहीं। हर तरह की होती हैं प्राब्लेम्स, बड़े परमुटेशन्स, कॉंबिनेशन्स हैं इसके, प्राब्लेम्स भी हैं क्योंकि इन्सान ने अपने को काफी गलत रास्तों में डाल रखा है, ज़रूरी नहीं कि वो खराब आदमी है, अच्छा आदमी होता है पर धर्म में भी गलतियां हो जाती हैं। गलत जगह मत्थे टिक जाते हैं, गलत लोगों को मान लेते हैं, चक्कर चलते हैं। आदमी बड़े शरीफ हैं बिचारे, बहुत शरीफ आदमी हैं, कोई खराबी नहीं है वे चक्कर में आ गए, उधर थोड़ी बेवकुफी कर गए और क्या!

और क्योंकि शैतान की जो शक्तियां हैं इतनी ज्यादा कार्यान्वित हैं कलयुग में, उसके चक्कर से मुश्किल से बचते हैं बच्चे, हैं ना! हजारों की कुंडलीनियां हमने जाग्रत करी हैं, और आपकी भी कर सकते हैं इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन अगर हम कर सकते हैं तो इसके लिए आपको हमसे नाराज होने के लिए कोई ज़रुरत नहीं है। आज सबरे में मैंने बताया था कि अगर में इसके कारीगर गर हैं, तो कर लेते हैं; आप अगर इसके कारीगर हैं हमसे अगर कोई कहे कि इसे ठीक करो तो हम तो नहीं कर सकते इसका मतलब कोई हम नींचे नहीं हो गए न वो उचे नहीं हो गए; हमसे अगर कही इसे चलाइये तो हम इसे चला नहीं सकते। आप सत्रह मरतबा सिखाईएगा, हमारे बसका नहीं है। इतना हम इस मामले में बेकार हैं।

लेकिन जिसकों हम जानते हैं वो काम जानते हैं वो हम करते हैं और किया है और आप में भी घटित हो सकता है। इसलिए इस तरह की तैयारी कर के बैठे जाय, कि होना है, हमारा पात्र भी है, और यह घटना होगी और सर्व सामान्य के लिए यह है, सिर्फ तैयारी रखी जाएगी, अगर कोई दोष हो तो हमें बताना ही होगा, कोई परहेज करना हो तो बताना होगा या कुछ आपने ऐसा परहेज गडबड कर दिया हो, उसके बारे में भी कहना होगा; तो लोग तो बात-बात में नाराज हो जाते हैं। इंसान भी अजीब है अगर मैं आप से कहूँगी मेरे लिए आप तीन हजार रुपया लाईये तो आपको कोई हरज नहीं है, आप लाकर के फ़ौरन दे देंगे; लेकिन मैं कहूँगी बेटा ये जरा गलत काम है, इसे जरा छोड़ दो तो बड़ा बुरा मान जाएँगे, फ़ौरन पंडाल छोड़ के चल देंगे।

तो हम तो माँ हैं, थोड़ा बहुत बताना भी पड़ेगा, उसका बुरा नहीं मानना, पहली बात; दूसरी बात ये है कि इसमें जमना होता है। आज आप आए हैं बहुत से लोग, कुछ लोग सबेरे आये थे वो फिर से आयें; सहज योग में जमना होता है, क्योंकि जैसे एक पौधा होता है और उसकी जीवन्त क्रिया होती है उसे जमाना पड़ता है। पहले ही जैसे बीज अंकुरित होता है तो कितना कोमल होता है सारा कुछ मामला, उसको बहुत संजोना पड़ता है, संभालना पड़ता है; फिर जब पेड़ अच्छे से जम जाय तो फिर चाहे कितने भी जोर से हवा चले, कोई भी आफत आ जाए, कितना भी झंझावात हो जाए, कोई डर नहीं होता उसको।

इसलिए यह चीज़ जानना चाहिए, कि पाने के बाद आपको जमना है तीसरी बात यह भी है कि बहुत से लोगों को भाषण सुनने की बहुत आदत हो गई। एक साहब आये थे, वो तो मेरे ख्याल से गुरु शौपिंग करते हैं। उनसे मैंने पूछा, वो सब गुरुओं के पास जाए, मेरे पास भी ऐसे आगये झोंला उठा करके। गुरु शौपिंग हो रहा है, चलो यहां भी कुछ कर ली जाये। सो यहाँ मामला और है। यहां कोई आप शौपिंग नहीं कर सकते हैं, भाषण से ही मैं संतोष पाती हूँ, भाषण ही ठीक है, उसमें भी आपकी कुंडलिनी मैं नचा रही हूँ और उठा रही हूँ और पार जब तक आप नहीं होंगे तब तक मुझे संतोष नहीं होने वाला और आप भी क्यों इस झमेले में फसे हुए हैं, क्यों नहीं पार हो जाते, आखिर तो वही पाने का है, उसी को जानने का है, लेकिन सहज योग इसीलिए नहीं जमता है कि लोग चाहते हैं कि माँ को पैसा दे दो, कुछ तो भी करो ऐसा वैसा कुछ करा दो, छुट्टी करो हरेक गुरु ऐसी करते हैं, मा को आप यहां पैसा नहीं दे पाते। माँ को आप जीत नहीं सकतें जब तक आप पार नहीं हो जाते और उसमें जमते नहीं; यह दो चीज़ होती है लोग नहीं चाहते हैं, वो सोचते हैं बहुत यह तो महनत की चीज़ है। पार होते वक्त तो कोई आपको मेहनत करने की, उस वक्त नहीं, पार होने के बाद, आपको जमना पड़ता है और जमना चाहिए समय आ गया है।

यह समय की पुकार है और इस समय की पुकार में अगर आप अपने को जाग्रत नहीं करें तो बड़ी मुश्किल होगी बाद में, बहुत बड़ी मुश्किल होगी, वो मैं आपको बताऊँगी; दूसरी बात यह भी है कि सहज योग में लोग जमते नहीं, उसके बाद बिमारीयां हो जाती हैं, उसके बाद वो मेरे पास आते हैं और कहते हैं माँ हमें ठीक कर दो। सहज योग में आने के बाद लोगों ने डॉक्टरों के दर्वाजे बंद कर दिए, उनके घर नहीं जाते हैं; सब तरह से ठीक हो सकता है पर एक बात है कि अपने को जानने के बाद अपने में उतरना पड़ता है, समरस होना पड़ता है और पूरी अपनी शक्ती को इस्तेमाल करना होता है।

ऐसे वैसे लोगों के लिए सहज योग नहीं है; जो कोई होयेगा माई का लाल वही माई से पायेगा, ये मैं पहले आप से बता दूँ, आप बुरा नहीं मानना। तुकाराम ने कहा है 'मराठी-एर्या गबाल्याचे कामनोही' कोई तो पट्टी के वही सहज योग में उतर सकते हैं। अब थोड़ा सा आपको मैं कुंडलिनी के बारे में बताती हूं जो कि मैं [मराठी वार्तालाप-'कुण सा लेक्शर ला लो तो तुम्ही कुण सा, कुण सा काल सा काल तो फारब जाल सर्वन'] तो अब हम यहाँ पांच एक दिन हैं और पांच दिन में कुंडलिनी के बारे में पूरा हम आपको बता रहे हैं। कल से आप थोड़ा कागज पेंसिल भी ले आईए तो आप नोट भी कर सकेंगे, बातें जो मैं बता रही हूँ पहले।

तो आपको यहां सामने दिख रहा है यह पर्मात्मा ने हमारे अंदर पूरी तरह से यंत्र बनाया हुआ है। अब यंत्र जैसे हम संसार की चीज़ों को देखते हैं उस तरह का यह मरा हुआ यंत्र नहीं है, जीवंत है; और जिसे सुरति कहते हैं, वही कुंडलिनी है। आखिर हम जो मानव स्वरुप हैं वो किसी न किसी चीज़ के बुते पे चल रहे हैं न। इस आग को देखिए, तो कितनी कमाल की चीज़ है, सारे शरीर का चलन वलन कितना एफिशिएन्ट और कितना सुंदर है, सारी सृष्टि की रचना कितनी खूबी से की हुई है। यह सारी चीज़ें, कोई न कोई ऐसी शक्तियां हैं, जो गुप्त हैं; वो गुप्त इसलिए हैं, कि हमारा जो ग्रोस अटेंशन है, हमारा जो जड़चित्त है, वो उसे नहीं जान पाता, उसके लिए सूक्ष्मता आनी पड़ती है; ये सूक्ष्मता पाना ही सहजयोग का लक्ष्य है।

इस स्टिलनेस में उतरना ही सहजयोग का लक्ष्य है जिसे कहते हैं कि आपा को पहचानना, आत्मा को पहचानना। जैसे मैंने आज सबरे बताया था आप से कि आत्मा को पहचाने बगैर आपका भ्रम टूट ही नहीं सकता और आप पर्मात्मा को जान ही नहीं सकते। जो कुछ भी आप उसके बारे में जानते हैं वो ज्ञान मात्र है, बोध नहीं है; बोध आत्मा को जानने के बाद होता है, इसलिए आत्मा को पहले जाना जाएगा, उसके बाद सारी बातें समझ में आ जायेंगी। अब ये जो कुंडलिनी है, ये पूरा जो यंत्र है इसको मैं समझाती हूँ। और फिर कुंडलिनी भी बताती हूँ, कहाँ है; पहले तो जो, [ किसी को निर्देशित करते हुए 'उठाया था, जरा उठाया एक एक करवाओ'] ये जो लेफ्ट हैंड साइड में आप देखिए कि सर के राइट हैंड साइड से जो शक्ती हमारे अंदर गुजर के नीचे में उतरती है लेफ्ट हैंड साइड में, ये शक्ती से हमारा अस्तित्व है, एकजिस्टन्स है ये सूक्ष्म शक्ती है, ये हमें दिखाई नहीं देती, ये हमारे सर से निकल के और हमारे रीड़ की हड़ी में गुजर के और नीचे तक आती है ये आँखों से ऐसे दिखाई नहीं देती, लेकिन जब रियलाजेशन होता है तब आपको एक एक शक्ती मैं दिखा सकूँगी।

इस शक्ती को वहन करने वाले नाड़ी को हम लोग ईडा नाड़ी या चंद्र नाड़ी इस प्रकार के ये सूक्ष्म शक्ती जब बाह्य में अपना विर्भाव करती है, जब इसका expression होता है manifestation होता है तो हमारी left sympathetic nervous system इस से बनती है। ये हमारे existence की, हमारे अस्तित्व की शक्ती है और जब ये शक्ती शुप्त हो जाती है तो हमारी मृत्यु हो जाती है, इसलिए इस शक्ती को लोग संहार शक्ती भी कहते हैं, संस्कृत में इस शक्ती को महाकाली शक्ती कहते हैं। अंग्रेजी में इसके शब्द नहीं हैं क्योंकि अंग्रेजी में इस चीज़ का पता ही नहीं लगाया है कि इसके under currents क्या हैं, sympathetic और parasympathetic nervous system के under currents क्या हैं उसका अभी तक पता ही नहीं लगाया है science में।

इसलिए इसके लिए, अगर मैं महाकाली की शक्ती कहूँ तो बड़े घवडाने की बात नहीं है, हम लोग कोई अंग्रेज नहीं हैं। और दूसरी जो शक्ती हमारे अंदर लेफ्ट हैंड साइड से गुजर करके और राइट हैंड साइड पर आ जाती है इसे महा सरस्वती की शक्ती कहते हैं। इस शक्ती से हम अपने शरीर का चलन बलन, शारीरिक क्रियाएं और बौद्धिक क्रियाएं, मेंटल एक्टिविटीज करते हैं। आप मेडिसिन में लेफ्ट और राइट सिम्पिथाटिक का फ़रक लोग नहीं लगा पाते हैं, लेकिन यह दोनों दो चीज़ हैं; लेफ़्ट से आपकी इमोशनल साइड होती है और राइट से आपकी मेंटल और फिजिकल साइड होती है।

इसका फ़रक मेडिसिन में नहीं होता है, इसी के कारण डाइबिटीज जैसी बिमारी लोगों को समझ में नहीं आती; वो मैं आपको बताऊँगी कैसे इमबैलेंसस आ जाते हैं और इमबैलेंस ये दो चीज़ का फ़रक समझ लेने से ही समझ में आता है कि एक नाड़ी ज़्यादा चलती है एक कम चलती है एक कम चलती है तो उसके कारण उसकी बिमारीयां हो जाती है और जो ज़्यादा चलती है उसके कारण उस पे एगरेशन भी हो जाता है। इमबैलेंस का सेंस जो है वो तभी आता है जब उसके दो सिरे आप देख सकते हैं।

सो राइट साइड में जो शक्ती है उसका वहनो करने वाली जो नाड़ी है उसे पिंगला नाड़ी कहते हैं। इसको लोग सूर्य नाड़ी भी कहते हैं, इससे राइट साइड की जो सिम्पथाटिक नर्वस सिस्टम है उसका प्रादुरभाव होता है। इसके बीचों भी जो आप एक देख रहे हैं नाड़ी है, इस नाड़ी को शुश्मना नाड़ी कहते हैं। यह नाड़ी जहां तक बनी हुई है हमारे अंदर में माने यह सारा सिमपथेटिक नर्वस सिस्टम को manifest करती है। वही तत्व विश्व पहुंचा हुआ है। अब आज तक जो कुछ हम लोगों ने हासिल किया हमारे उत्क्रांति में, एवॉल्यूशन में अमीबा की दशा से इंसान की दशा तक वो सारा हमारे सेंट्रल नर्वस सिस्टम में है। हमारे जो सेंट्रल नर्वस सिस्टम है वो समझ लीजिए इस सब का रिफलेक्टर है। वो हमारे कौंसियश माइंड में है।

जो लेफ्ट हैंड साइड की ईड़ा नाड़ी है, ये हमारे सुप्त चेतन को प्लावित करती है, मानें सब कॉंचिस को प्लावित करती है या उसको चलाती है जैसे आप मुझसे कुछ बात सुन रहे हैं अभी, ये अपने कॉंचिस माइंड से सुन रहे हैं लेकिन ये बात आपके सुप्त चेतन, मानें सब कॉंशिस में चली जाती है। यह काम जो है लेफ्ट साइट की जो ये नाड़ी है यह करती है; कि जो हमारी आपसे बात सुनी, उसको फ़ौरन उधर रख दिया सब कॉंशिस में।

और इसलिए इसे कंडिशिनिंग लोग कहते हैं, वो दो प्रकार के हो सकते हैं- सुसंसकार भी हो सकते हैं और कुसंसकार भी हो सकते हैं। अब फ्राइड जैसे लोगों ने कुसंसकार ही देखे, उनकी आँख तो मतलब यह, जो नौलेज लेने का तरीका है इन लोगों का, वो ऐसा है कि यह अंधेरी जगह है, आये जिसके हाथ में जो मिल गया वही लेके बैठ गये, यही सत्य है। ऑब्जेक्ट थिंग जिसको कहते हैं, दूसरा तरीका यह है कि लाइट जला दी आप सब देख लो। यह सहज योग का तरीका है; और ऐसे ज्ञान पाने का, किसी से सुनने का या साइंस या किसी तरह से पाने का अंधा तरीका है; तो उस तरीके से जब खोजा गया तो श्री फराइट साहब अंधे तो थे ही और खुद भी दिमाग के कुछ अजीब उल्टे आदमी थे मेरे ख्याल से। उनके बारे में तो क्या-क्या गंदी बातें लोग बताते हैं।

उन्होंने पकड़ लिया एक इसको और इसी पे काम किया और वो कहने लगे कि जो कुछ भी आप इस तरह से किसी को मना करते हैं कि ये नहीं करो, वो नहीं करो, ऐसा नहीं करो, वैसा नहीं करो उससे कंडिशनिंग हो जाता है, उससे आदमी जो है फ्री नहीं रहता है; पर उन्होंने ये नहीं सोचा कि अगर किसी आदमी को किसी चीज़ को मना नहीं करो तो दूसरी नाड़ी उसकी बलवती हो जाएगी। पहली नाड़ी से सुपर इगो हमारे अंदर बनता है; पहली जो नाड़ी है ईड़ा नाड़ी, उससे सुपर इगो बनता है। कंडिशिनिंग से और जो दूसरी नाड़ी है, इगो की जो नाड़ी है जो की राइट हैंड साइड की है, उससे इगो बनता है; पहले आप सरकारी नौकर हो गए साहब, तो आप किसी से ठीक मुँह बात ही नहीं करते हैं; कुछ लोग मिनिस्टर साहब से मिलने गए तो वहाँ एक साहब बहुत उचल कूद कर रहे थे बिचारे देहाती लोगों समझ नहीं आए तो उन्होंने पूछा कि मैं एक बात क्या है कहले तुमको पता नहीं मैं पीए हूँ; कहने लगे कि हमैं पहले ही बता देते कि आप पी कर आए हैं, हम क्या वो आप से बात करते हैं; तो यह चढ़ता है इगो।

यह इनकी समझ में नहीं आया है फ्रॉयट साहब के कि लेफ्ट साइड को आप ज़ब काटेंगे तो दूसरी साइड चढ़ जाएगी और इगो खोपड़ी पर चढ़ जाएगा सुपर इगो। इगो और सुपर इगो इस तरह से हमारे सर में हैं; अब इगो सुपर इगो थोड़ा समझा दें क्योंकि आप लोग कोई मानस शास्त्र के नहीं भगवान की कृपा से! मानस शास्त्र में भी इसे माना गया है इगो और सुपर इगो को, जिस तरह से कि समझ लीजिए एक छोटा बच्चा माँ से अपने दूध पी रहा है, आनंद में बैठा है, आनंद में है; उसको अब माँ ने उसे उठाया, दूसरी तरफ ले जाना चाहें तो उसका इगो जाग्रत हो गया कि ऐसा क्यों किया तो माँ ने डांटा कि नहीं बेटे, ऐसे नहीं करो।

तो उसका सुपर इगो जाग्रत हो गया। इस तरह से हमारे अंदर इगो और सुपर इगो के जैसे बलून जैसी चीज हमारे सर में इस तरह से इकठी हो जाती है। इगो की सामने से लेकर की यहां तक और सुपर इगो की पीछे से इस तरह से। अब यह दोनों जब जम जाती हैं यहां पर आकर ठीक से, तभी हमारा सर का यह जो फॉंटनेल बोन का हिस्सा है यह बिल्कुल कैल्सिफाइड हो जाता है, बिल्कुल पक्का हो जाता है, तालू भर जाती है तब हो गया, तब आप 'आप' हो गये, आप 'आप' हो गये; सब छूट गया, सब अलग हो गये, सब के अपने, अपने शैल बन गये जैसे अंडे के शैल बन जाते हैं, ऐसे ही इंसान के भी शैल बन जाते हैं। वो इसलिए बनाये जाते हैं कि उसके अंदर इंसान पूरी तरह से अपनी स्वतंत्रता को पहचाने, उसका ठीक से उपयोग करें, उसको उपयोग करने के बाद वो समझें कि कौन सी चीज़ ठीक है और कौन सी बुरी। बैहराल आदमी पर पूरी तरह से छोड़ा हुआ नहीं। बड़े बड़े संतों ने संसार में अवतार लिए और आपको समझाया कि ये धर्म है, ये नहीं करो, ये करो; वो क्या सब पागल थे हम लोगों ने तो उनकी जाती अलग बना के उनको किनारे बीठा दिया, सुबह से शाम उनको नमस्कार करना काम ख़तम।

अपने जीवन में उनकी बात सुनना हमारे लिए व्यर्थ है। आखिर उन्होंने क्यों कहा था, ये बात उन्होंने क्यों कही? कि ऐसा न करो, ऐसा मत करो, ये करने से वैसा हो जाएगा, वो करने से ऐसा हो जाएगा, क्योंकि हम बहुत अक्लमंद हैं ना, हम तो सब चीज़ साइंस से जानेंगे, साइंस होता ही क्या है, बहुत ही थोड़ा हिस्सा है, क्या बताएँ, मैं वो भी आपको बताऊँगी, कि सायंस से आप कितना छोटा सा हिस्सा जानते हैं, बहुत थोड़ा सा हिस्सा है, पिंगला नाड़ी से जो पांच तत्व आपके अंदर गुजरते हैं, उससे पंच महाभुतों को आप उनके बारे में जानते मात्र हैं; जैसे कि पृथ्वी के अंदर में ग्रेविटी है, पर क्यों है, कैसे है?

एक सवाल आप पुछें, कि हम अमीबा से इंसान क्यों बनें, क्या वजह है, अगर हम इसको बना रहे हैं, तो इंसान पुछेंगा, कि आप इसे क्यों बना रहे हैं, आखिर इसका कोई अर्थ होगा, परमात्मा ने क्यों बनाया हमकों; आज एक बायोलॉजी के आए थे, वो कहने लगे, मुझे भगवान पर विश्वास नहीं, मैंने कहा, आपके मुझे आश्चर होता है, कि बायोलॉजी वाले को विश्वास नहीं तो, तो फिर हो गया, बाकी तो जड़ तत्वों से काम करते हैं, कम से कम जो आदमी बायोलॉजी में हैं, उसको तो सोचना चाहिए, कि कितने खूबसूरती से मनुष्य को बनाया भगवान ने, और इतने छोटे टाइम में बनाया है, कि बड़े बड़े बायोलॉजिस्ट हैरान हैं, कि लव, चांस से तो आदमी बन ही नहीं सकता था, ज्यादा से ज्यादा एक अमीबा बन जाता।

तो हमारे उपर यह जिम्मेदारी परमात्मा ने देदी, हमें उसने स्वतंत्रता देदी कि हम स्वतंत्र रूप से जाने, कि अच्छा और बुरा क्या है, और जब हम अपने स्वतंत्रता में परमात्मा को पुकारा करें, तो वो आपको ये वर्दान दें, कि आप उसे भी जाने। इस प्रकार ये मशीन बनाई गई और तैयार की गई, लेकिन जब तक इसको मेन से नहीं आप ने लगाया, तब तक इसका क्या अर्थ निकला? इसी के अंदर कार्ड बना देते हैं न, उसी प्रकार आपके अंदर जो कार्ड बनाया, वो ही कुंडलिनी है।

परमात्मा ने बना के पहले से रखा है, आपको बनाना, वनाना कुछ नहीं, आपको कुछ मेहनत नहीं करने की। जैसे कोई अंकुर होता है, प्रिम्यूल होता है, उसी प्रकार परमात्मा ने आपके अंदर, इसका अंकुर रखा हुआ है, वही कुंडलीनी है, जो ट्राइंगुलर बोन में है। अब बीच में गैप आप देखते हैं, यही गैप इंसान की सेंट्रल नर्वस सिस्टम में भी है। वो गैप यह है, कि उसके हृदय में जो आत्मा है, उस के हृदय में जो स्पिरिट है, उससे उसकी जो गैप बनी हुई है, वही यह गैप है। हमारे अंदर आत्मा है, वो सब कुछ जानता है, वो क्षेत्रज्ञ है, लेकिन वो हमारे सेंट्रल नर्वस सिस्टम में नहीं है, माने हमारे कौनशीयस माइंड में नहीं है, मानें यह कि हमने उसे जाना नहीं, वो हमें जानता है; इसलिए ये जो gap है, इसको बनाया गया है क्योंकि इसी के अंदर से कुंडलिनी को उठना है; यही घटना, जो मैं happening आपसे कहती थी, वो होती है, कुंडलीनी awakening, वो घटना है; पर ये मेकेनिकल, जिसको आप मरा हुआ नहीं समझें, यह जीवंत घटना है। जैसे कि एक बीज में से अंकुर निकलता है, उसी तरह की ये लिविंग चीज है। इंसान ने आज तक कोई लिविंग काम नहीं किया, किया है क्या? एक बीज में से एक अंकुर निकाल दीजिये; कोई पेड़ मर गया, आपने खंबा खड़ा कर दिया, हो गये बड़े भारी आदमी; ये तो मरे को आप बदल रहे हैं, चाहे उसको कुर्सी बनाओ चाहे उसका कुछ बना लो। फिर वह कुर्सी पर बैठने लग गये तो कुर्सी खोपड़ी पर बैठ गई, नीचे बैठ नहीं सकते और तंग रहे हैं, देखिए आप पीछे में बैठे हुए हैं लोग। जमीन पर बैठ नहीं सकते। यह हालत आ गई, उसकी गुलामी शुरू हो गई।

यह मरे हुए काम से फायदा क्या हुआ आपका? सारे मरे हुए तत्व का आप पता लगाते हैं, कोई जीवंत तत्व का आप पता लगाएं कि कैसे होता है? एक अंकुर किस प्रकार एक बड़ा भारी पेड़ बन जाता है? इसका पता आप लगा पाएंगे क्या? हजारों ऐसी चीज़ें आप चारों तरफ देखते हैं, हाँ ये आप कहते हैं इस प्रकार है, इस प्रकार है जो दिखाई देता है पर वो घटना कैसे घटित होती है? यह बहुत सूक्ष्म घटना है, वो आप देख नहीं पाते हैं। यहाँ तक आप जानते हैं कि बहुत सी आवाजें इतनी high frequency कि होती हैं कि आप सुन नहीं सकते।

मनुष्य जिस दशा में बनाया गया है, उस दशा में इस सूक्ष्म को वो नहीं जान सकता। लेकिन वो ऐसा बनाया गया है, कि वो उसको भी जान ले, सिर्फ मनुष्य ही जान सकता है; मनुष्य में ही ऐसा ही विशेष रूप से ब्रेन बनाया गया है जो त्रिकोणाकार है, जिसमें ये सारी घटनाएँ घटित होती हैं; इसके अंदर इगो और सुपर इगो इस तरह से मिलते हैं और मनुष्य में ही कुंडलिनी इस प्रकार से बैठी रहती है और ये घटना सिर्फ मनुष्य में ही होती है। अब आप सोचिए कि सारी सृष्टि बनाई गई उसमें पृथ्वी विशेष रूप से बनाई गई, उसमें वनस्पति बनाई गई और उसके बाद आपको बनाया गया और आपको विशेष रूप से बनाया गया और उसमें इस तरह की सब चीज़ें रखी गई और आप ही को यह अधिकार है कि आप परमात्मा को जानें और उसकी शक्ति को अपने अंदर से वहन करें। यही आपका लक्ष्य है, यही आपका फुलफिलमेंट है; जब तक आपके अंदर से परमात्मा की शक्ति वहन नहीं होगी तब तक आपका कोई अर्थ नहीं निकलता, आपका कोई मतलब नहीं बनता और सारे सृष्टि का भी कोई मतलब नहीं बनता। यह हैपनिंग होना है और आज जो हो रहा है यह भी हिस्टोरिकल चीज़ है।

सबका संसार में आना भी स्टेप बाइ स्टेप सबका ज़रूरी है, उसके बारे में कल बताऊँगी कैसे हर बड़े बड़े अवतार और जिनको हम प्रोफिट्स कहते हैं, जिसको हम गुरु कहते हैं, किन प्रकार वो इस संसार में आए और उन्होंने क्या-क्या हमारे अवेरनेस में हमारे चेतना में किस तरह से काम किया और वो किस-कहां हमारे अंदर बसे हुए हैं, वो सब मैं आपको कल बताऊँगी। यह कुंडलिनी यहाँ त्रिकोणा-कार अस्थि में है या नहीं, यह तक लोगों को नहीं मालूम है और कुंडलिनी पर इतनी बड़ी-बड़ी किताबें लिख देते हैं, बताइए मैं क्या करूँ? इतनी बड़ी-बड़ी किताबों में यह भी पता नहीं कि कुंडलिनी कहाँ है; इसका आपको हम साक्षात करा सकते हैं, आप अपनी आँख से कुंडलिनी का स्पंदन देख सकते हैं, आँख से, चाहे आप पार हो चाहे नहीं हों, उसका स्पंदन आप देख सकते हैं, उसका उठना, गिरना आँख से आप देख सकते हैं; जैसे आपके श्वास चल रहा है, ऐसे कुंडलिनी से श्वास उसका दिखाई देगा। त्रिकोणाकार अस्थि को आप नीचे देखेंगे, उस समय उस कुंडलिनी ऐसे पनपते दिखाई देगी, आप देख लेना, आँख से देख लेना। उसका हमने फिल्म भी बनाई है जब कुंडलिनी उठती है तो वो उसका स्पंदन शुरू होता है, पर कोई-कोई लोग ऐसे बढ़िया लोग होते हैं कि एकदम झट से और खट ऊपर पाओ, उनमें नहीं दिखता; जिनके नाभी चक्र की पकड़ होगी, जो नाभी चक्र वहाँ पर है, उसकी जब पकड़ होती है तब कुंडलिनी नु कौन पी दिखाई देगी; इतना ही नहीं आपको यह भी दिखाई देगा कि जब कुंडलीनी उठती है, समझ लीजिए आपके लिवर ट्रबल है तो आपको दिखाई देगा कि लिवर के तरफ जा करके वहाँ पर स्पंदन हो रहा है। आपको दिखाई देगी आँखों से; आप अगर स्टेथोस्कोप लगाएँ तो आप उसको देख सकते हैं कहां चढ़ रही है। अन्त में वो जाकरके यहां पहुंच जाये, जिसमें कबीर ने कहा 'शुन्य शिखर पर अनह्रद बाजी रे' पल्सेशन उसका फील होता है; 'अनह्रद' माने पल्सेशन होता है, फिर जब वो खुल जाती है तभी वो पल्सेशन रुक जाता है और जो सब्दूर सर्वव्यापी जो शक्ति है, जो की सूक्ष्म में जिसे आप नहीं जानते, जिस से एक एक पत्ता, दुनिया का एक एक फूल, एक एक फल और एक एक इंसान जिस से पूरी तरह से संभाला हुआ है, चलता है, उसी के आश्रय में है, उस शक्ति से आप एकाकार हो जाते हैं। अभी तक तो आपने जाना ही नहीं है, अभी आपको खबर ही नहीं होगी। सिर्फ पढ़ा, पढ़ा है उसके बारे में, उसका अभी तक आपको बोध नहीं हुआ। उसका बोध होना चाहिए, बगैर बोध हुए सब चीज़ बैठ गई, आप पहले से शक करने बैठ गए; अरे भाई, इसमें शक करने की कौन सी चीज है?

क्या यह इसके बारे में पहले लिखा नहीं लोगों ने, सब ने बताया, लेकिन अब टाइम आ गया है सबको पाने का, तो सबको मिलना ही चाहिए; लेकिन सब लोग लेंगे इसे, ये भी मैं जानती हूँ उसकी बहुत सी वजह है। अब ये जो सेंटर्स हैं, ये जो चक्र हैं, ये सूक्ष्म सेंटर्स हमारे अंदर बने हैं। ये सेंटर्स हमारे अंदर हमारी जो उत्क्रांति या एवोल्यूशन हुई है उसके एक एक टप्पे हैं, स्टेजेज़ हैं; पहले जब हम कार्बन थे, तो ये पहला चक्र है जो गणेश जी का है। उसके बाद में जब ब्रह्मदेव ने सारी सृष्टि बनाई तो दूसरा चक्र है, जो ब्रह्मदेव का है, ये स्वाधिष्ठान चक्र है, वो भी हमारे अंदर है उसी की वजह से हम सृष्टि बना सकते हैं; उसी की वजह से हम सोचते हैं, प्लान करते हैं, थिंक करते हैं।

उसके बाद नाभी चक्र है। नाभी चक्र से, आपको मालूम है कि मछली से ले लेकर इंसान बनने तक जो कुछ भी हुआ है, वो इसी गोद में हुआ है। इसकी मदद करने के लिए हमारे अंदर जो बड़े बड़े गुरू हो गए जिनकों के आप जानते हैं, सौक्रेटीस से लेकर कन्फ्यूशियस, मोज़स, राजा जनक, मोहम्मद साहब, नानक साहब, कभी ये सब जो बड़े-बड़े गुरू हो गए, ये सारे गुरूओं ने इस पर मेहनत की और मनुष्य के धर्म बनाये। मनुष्य का धर्म अंदर में है, पेट में है, उसके धर्म बाहर नहीं; जैसे ये सोना है, इसका धर्म है ये खराब नहीं होता, अंटारनिशेबल है; उसी प्रकार दस धर्म मनुष्य के धर्म पेट में बने हुए हैं; अगर ये धर्म से मनुष्य अच्युत हो जाए तो उसकी कुंडलिनी नहीं उठती भाई, इन धर्मों को फिर से ठीक करना पड़ता है।

कुंडलिनी को, खुद आकर के इनको फिट करना पड़ता है, प्लावित करना पड़ता है; उसके बाद में ही कुंडलिनी उठती है, तो Suck होता है वहाँ पर, और ये जो काम है ये काम कुंडलिनी करती है, आपको कुछ नहीं करना है, एफर्टलेस; आप पैदा हुए, आपने कौन सा एफर्ट किया है, या बीज में से पेड़ निकला, बीज ने कौन सा एफर्ट किया, उसने कौन सी किताबें पढ़ी। ऐसे ही जब ये जीवंत क्रिया है तो आपको कौन सा एफर्ट करना है, एफर्टलेस। सहज का मतलब होता है एफर्टलेस और सहज शब्द से आया है, इसका मतलब है आपके साथ पैदा हुआ।

ये योग का अधिकार आपके साथ पैदा हुआ है क्योंकि आप इंसान हैं, आपका ये जन्म सिद्ध अधिकार है कि आप इस योग को प्राप्त करें, इससे आप परमात्मा को जानें, ये आपका अधिकार है लेकिन आप खुद ही नहीं चाहते अपने अधिकार को इस्तेमाल करें, उससे परमात्मा क्या करें? अब ये जो सटल सेंटर्स हैं, सूक्ष्म सेंटर्स अगर आप इन सेंटर्स को पाले और इनको अगर आप जाग्रत कर सकें तो आपकी तंदरुस्ती वैसे ही ठीक हो जाए। एक विमारी है, समझ लीजिए क्या कहते हैं उससे Multiple Sclerosis कहते हैं; वो डाक्टर लोग कहते हैं, ठीक नहीं होती है, हम कहते हैं सहज योग से ठीक हो जाएगी। बिल्कुल ठीक हंड्रेड प्रतिशत हो जाएगी। इसमें तीन चक्र हम देखते हैं, जो खराब हैं: मुलाधार चक्र, नाभी चक्र और आज्ञा चक्र। यह तीन चक्र अगर हमने ठीक कर दिये तो ठीक हो जाएगी।

एक चीज़ की खोज जब आप बाहर से करते हैं, समझ लीजिए एक पेड़ है उसमें खराबी आ गई अब बाहर से उसमें आपने कुछ ठीक ठक किया भी तो कुछ ठीक ठक हो सकते हैं पर अगर आप उसके जड़ से ही कोई चीज़ को ठीक करना जाने तो पेड़ ठीक हो जाएगा। इसी तरह से कैंसर की बिमारी; कैंसर की बिमारी भी आपकी इसलिए होती है कि आपकी यह जो सिम्पैथैटिक नर्वस सिस्टम है इसको बहुत इस्तेमाल करते हैं या तो इमोशनली करते हैं या बहुत ज़्यादा आप और वजह से करते हैं, कभी इररीटेशन भी हो जाता है, कभी इंफेक्शन हो जाता है; किसी भी वजह से सिम्पैथैटिक एमरजैन्सी जो होती है वो आप पे बनी रहती है। अगर आपके लाइफ में एमरजैन्सी बनी रहे जैसे यहाँ एमरजैन्सी का आलू आता है वैसे इंसान का हो जाता है।

उस वक्त में पैरा सिम्पथैटिक जो है हर समय आपका कैंसर ठीक करती रहती है; आपकी कैंसर रोज होती ही रहता है, मतलब रोज आप इस्तेमाल करते रहते हो और उसको पैरा सिम्पेथैटिक ही ठीक करती रहती है, बैलेंस करती रहती है, जो बीचो बीच है सुशुम्णा नाड़ी, लेकिन जैसे यह समझ लीजिए लेफ्ट साइड है और राइट साइड है। अब लेफ्ट साइड की सिम्पैथैटिक है और राइट साइड की सिम्पैथैटिक है, ये दोनों पूरी समय चल रहे हैं इस तरह से; जब ये टूट जाते हैं तो इसके अंदर की जो देवता हैं वो भी सो जाते हैं, फिर मेलीगनैन्सी हो जाती है।

एक सेल जो है बहुत बढ़ने लग जाता है, उससे दूसरे को लग गया, वो भी बढ़ने लग गया। उसका संबंध, संबंध से होता है, पूरे से होता नहीं। पूरे शरीर से जो होता है एक, अकेला arbitrary बढ़ने लग गया। कैंसर बन गया, अगर हम इस देवता को जाग्रत करते ही, कैंसर ठीक हो गया; अब देवता हैं या नहीं लोग कहेंगे कि देवता में क्या विश्वास करेंगे देवता हैं या नहीं। अब ये तो सहज योग के बाद आप खुद ही देख लेंगे कि उनके नाम लेते ही चीज़े ठीक होती हैं।

तो देवता हैं ये तो सहज योग के बाद होगा पर मेंटली भी हम समझा सकते हैं। जैसे अड्रिनलीन और आसिटी कोलिंन दो केमिकल्स हैं; दोनों समझ लीजिए बिल्कुल डेड केमिकल्स हैं, लेकिन वो अपने शरीर में अजीब तरह से व्यवहार करते हैं, किसी को समझ ही में नहीं आता, कहते हैं कि मोड ओफ एक्शन इनका हम समझा नहीं सकते हैं। मतलब इमानदार लोग हैं, सब साइन्टिसट झूट नहीं, लेकिन उनकी अपने मर्यादाएं हैं, उनके लिमिटेशन्स हैं, उसके हिसाब से बता रहे हैं कि हम यह नहीं बता सकते कि कहीं जगह तो वो ओग्मेंट करता है, कहीं रिलैक्स करता है, समझ में नहीं आता एक यही चीज़ ये देवता लोग करते हैं।

हमारे अंदर अगर फौरन मैटर चला जाए तो शरीर से उसे फैकने की कोशिश होती है। पर अगर पेट में अगर फीटस जो बच्चा होता है वो पिंड जब रुक जाये तो फैंका तो नहीं जाता है, उसको संभाला जाता है, उसको नरचर किया जाता है, उसको देखा जाता है। और टाइम आने पर बराबर टाइम पर बाहर फैक दिया जाता है। यह गणेश जी के काम ये गणेश जी करते हैं। गणेश जी का तत्व हमारे अंदर यह कार्य करता है।

अब डॉक्टर लोग गणेश जी को नहीं मानेंगे, फोटो रखेंगे अपने घर में जब, नानक जी का फोटो रहेगा, गणेश जी का रहेगा, सब रहेगा; लेकिन गणेश जी हमारे अंदर बसे हुए यहाँ मुलाधार चक्र पर हैं, यह नहीं मानने वाले अब मैं क्या करूँ, बताईए आप इनको कैसे सिखाया जाये? अब स्क्लिरॉसिस की वो लड़की जो आयी थी यहाँ पर मंच पर सुबह, उससे मैंने सिर्फ कहा तुम गणेश जी का मन्त्र बोल दो हमारे सामने उनका ठीक हो गया, लेकिन आप कहेंगे तो नहीं होने वाला, क्योंकि आपको अधिकार होना चाहिए गणेश जी को जगाने का; लेकिन अगर आप पार हो जाए तो आपको भी अधिकार आ जायेगा।

जब आप दिल्ली के सिटीजन हैं तो आप दिल्ली के जो कुछ भी अधिकार हैं उससे पूरे हैं न, अगर आप पर्मात्मा के साम्राज्य के सिटीजन हो गये, अगर हो जाएंगे तो गणेश जी क्या और हनुमान जी क्या सब आपके सामने पूरी तरह से हाथ जोड़ के खड़े, बोलो क्या करने का तुम्हारा काम बोलो। अब ये बात सही है या नहीं है इसको आप पड़ताला करके देखना चाहिए; पहले पर्मात्मा के सामराज्य में आ जाओ, यह पहली चीज़ है, नहीं तो उसके तो आप सिटीजन नहीं हैं; आप तो गवर्नर्मेंट ओफ इंडिया के हैं। उसकी ऐफिशियनसी में रहिये, हम तो कह रहे हैं गवर्नमेंट ऑफ गौड में आप आईए फिर हम आपको बताते हैं बात; फिर देखिए कि आपके पावर्स कहां से कहां पहुँचते हैं, फिर तो कोई बिमारी आपको छुएगी नहीं, कैंसर ऐन्सर तो छोड़ दीजिए। आप दूसरों के कैंसर ठीक करियेगा, लेकिन पार हुए बगैर तो कोई बात ही नहीं कर सकते ना।

पॉइंट यह है कि पार तो होना चाहिए पहले, तब ही सूक्ष्म में आप उतरते हैं, आप सूक्ष्म में जब उतर जाते हैं तो आप खुद ही उसको कंट्रोल कर लेंगे। आप खुद उस चीज़ को कंट्रोल कर सकते हैं जिससे सारी सृष्टि कंट्रोल है क्योंकि यह सरोव्यापी शक्ती है, उसमें जैसे ही आप आ जाते हैं आपके सेंट्रल नर्वस सिस्टम में से ही यह बहना शुरू हो जाता है, आपका जो हृदय है उसका स्पंदन आपके सेंट्रल नर्वस सिस्टम में से बहना शुरू हो जाता है, आपको वायब्रेशन्स हाथ में से आते हैं, ठंडी ठंडी बहें, इसको चैतन्य लहरियां कहते हैं; जब वो आपके अंदर से बहना शुरू हो जाता है, माने आत्मा आपके अंदर से बहने लगता है तब फिर आप जो भी करते हैं वो परमात्मा के ही सामराज्य में कर रहे हैं यह होना ज़रूरी है इनसान के।

फिर मुझे यह भी नहीं कहना पड़ता कि आप शराब छोड़ो कि सिगरेट छोड़ो कुछ नहीं; छोड़ना ही पड़ता है, छोड़ ही देते हैं, क्योंकि जब अंदर का मजा आने लग जाये तो बाहर का कौन मजा उठाएगा। अब यहाँ जितने बैठे हैं ना! बड़े पूयक्कड़ थे, पिछे में जितने लोग बैठे हैं बड़े पक्के पियक्कड़ थे; पियक्कड़ तो क्या आप लोगों को ठिकाने पहुंचा दे इस तरह से यह ड्रग लेते थे, सब छोड़-छाड़ करके आज मजे में बैठे हो, ऑटोमेटिक हो जाता है।

उसमें फिर कहने की कोई ज़रूरत नहीं रहती, जब अंदर का आनंद आने लग जाता है, बाह्य की सब चीज़े अपने आप छूट जाती हैं, मुझे कुछ कहना भी नहीं पड़ता खास! जैसे एक छोटी बात है जानवर को चाहो तो आप गंदगी में से ले जाओ, लीद में से ले जाओ, गोबर में से ले जाओ, उसको बदबु नहीं आती जानवर को, लेकिन इंसान को ले जाओ तो उसको आती है ना! उसी प्रकार जब आप परमात्मा के सामराज्य में जाते हैं, आपकी चेतना ऐसी हो जाती है कि आपसे बर्दाश्त ही नहीं होता, आपके हाथ में बर्निंग सी आ जायेगी, अच्छा ही नहीं लगेगा, इससे अपने आप ये चीज़े छूट जाती हैं।

और इसीलिए जितनी भी आफतें हैं, सब कुछ आपका अपने आप झड़ जाता है। उसमें मुझे कहना नहीं पड़ेगा, सब घटना अपने आप घटित होगी। आज आपके सामने मैंने सहज योग के बारे में प्रस्तावना कि है कि जितनी भी घरी बातें हैं सब बताऊँगी मैंने कहा है कि जितना सूक्ष्मतर, सूक्ष्मतम इसका ज्ञान है, उस सब मैं आपको बताने की तैयार हूँ सारी विद्या यही है, बाकी सब अविद्या है। आपके उंग्लियों के इशारे पे चीज़ें चलेंगी, आप अपने को पहले जान तो लो!

आप अपनी शक्ति ही नहीं जान रहे हो और फिर हत बुद्ध बैठे हुए हो; अभी तक आपकी मोटर शुरू नहीं हुई, मोटर तो शुरू करो, फिर पता चलेगा। उससे पहले ही आप दूसरे काम कर रहे हैं। एक यह छोटी सी चीज़ है। तो पहली चीज़ है घटना घटित होना, दूसरी चीज़ है इसमें जम जाना, तीसरी चीज़ पूरी विद्या को जान लेना कौन सा चक्र कहाँ है, किस तरह से उस चक्र को चलाना है, किस तरह से ठीक करना है; बस तीन ही स्टेप्स होते हैं सहज योग के, यह एक बार हो गए तो आप हो गए बड़े भारी सहज योगी और यहीं बैठे बैठे करिश्मे करो अपने भी और दूसरों के भी, और मजा उठाओ क्योंकि आपके अंदर से शक्ति बहती रहेगी पूरी समय।

आई बात समझ में? सबके समझ में आई कि नहीं आई? क्या अभी प्रश्न है कोपड़ी में? अगर नहीं हो प्रश्न, तो अब इसके बाद हम लोग ध्यान में जाएंगे सब. एक दो मिनिट में मैं आती हूँ, आप लोग जरा अपनी कमर अमर जरा ढीली कर लें, थोड़ी टाइ वाई उतार लें क्योंकि विशुद्धि चक्र पर पकड़ आ रही है। और हल्के होकर बैठें। बिलकुल हल्के, हम कोई गुरु वुरु नहीं हैं, आपकी माँ हैं। आप हमारे सर आखों पर हैं आप है और हम आपके; मा ने जरा ढीली कर लें, बदन को, हाँ सॉक्स अगर चाहो तो करो, कोई हर्जा नहीं है कोई कोई नाइलान, आइरलान की चीज़ होती ना? उसमें कुछ ही करो!

New Delhi (India)

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