Public Program

Public Program 1976-04-01

Location
Talk duration
21'
Category
Public Program
Spoken Language
English, Hindi, Marathi
Video
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1 अप्रैल 1976

Public Program

New Delhi (भारत)

Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - NEEDED

AI GENERATED.

This is the recording of our holiness माताजी's lecture at New Delhi on first of April nineteen seventy six थोड़ा बहुत। प्रस्तावना के तौर पे introductory कुछ ना कुछ बताना होगा। सहज का नाम आप लोगों ने सुना है। इस पर कबीरदास जी ने बहुत लिखा है, नानक जी ने बहुत लिखा है। श्री कृष्ण ने भी सहज को बहुत बखारा है। शंकराचार्य ने भी सहज के बारे में कहा है। कि ना योग, ना सांख्ये, ना किसी चीज़ से नहीं हो सकता है, ये तो सहज ही हो सकता है। ग्रेस से परमात्मा की कृपा से। पर मनुष्य ये बात सोचने में असमर्थ रहता है। की किस प्रकार? ये ग्रेस हो पाएगा। किस प्रकार ये बात घटित होती है। जिससे यह सीमित बुद्धि उस हसी में जाकर टकराती है। जिससे यह सीमित बना हुआ मनुष्य का चित्त। उस हसी में एक आकार होता है। अनाधिकार से यही प्रश्न। मानव के अंदर। टकराता रहा। घर कहाँ है कि ऊपर से ही डरने से होता है। तो लोग सोचते हैं कि उसके लिए क्या करना चाहिए। जब वो ऊपर ही से डरने वाला है तो उसके लिए आप कर भी क्या सकते हैं। ऐसा ही समझ लीजिए। कि एक बीज को अगर पनपना है तो उसको एक माली। खुद ही ज़मीन में लगा देता है, उसके ऊपर पानी भी डालता है, उसका संगोपन भी करता है और उसे बड़ा भी करता है। उसी प्रकार आपका भी। जो आज तक हुआ है। जो आप एक छोटे से कीटाणु से मनुष्य के रूप में यहाँ बैठे हुए हैं। जो आपकी उत्क्रांति हुई है, जो आपका इवोल्यूशन हुआ है। वो भी उसी परमात्मा ने किया है और आप इससे आगे जाना है, वो भी वही करने वाले हैं। कि तो मनुष्य के लिए सबसे बड़ी कठिन बात है कि वो सहज हो जाए। और सहज है। वो अपने को complicate किये हुए हैं। वो नहीं समझ पाता कि ये कैसे। हम देखते हैं कि पहले बहुत लोग कठिन तपस्या के बाद जंगलों में रहकर हज़ारों वर्षों की अत्यंत घोर तपस्या करने के बाद इस स्थिति को प्राप्त होते थे जिसे वो अस प्रज्ञात समाधि कहते थे। जिसे वो निर्विचार समाधि कहते थे। और इसके लिए बहुत उन्हें साक्ष्य भी दी है। बहुत से ऋषिमुनियों ने हमारे सहयोगियों को बताया है कि उन्होंने कितनी मुश्किल से ये vibrations पाए। ये तो ऐसा ही हुआ। कि जब बाग लगाते हैं तो पहले बीच में थोड़े थोड़े अंकुर बड़े मुश्किल से आते हैं। अभी ज़मीन ठीक नहीं हुई। अभी उसमें बहुत मेहनत करने की ज़रूरत है। फिर मेहनत होती है। उसके बाद पौधे ज़रा बड़े होते हैं। और जब बाहर आती है तो हज़ारों फूल खिल जाते हैं। समझ लीजिए कि बाहर का मौसम। लेकिन बाहर का मौसम भी। जैसे बड़ी तपस्या के बाद आता है। वैसे ही ये बाहर का मौसम भी कल युग की बड़ी तपस्या के बाद आया है। कलयुग में कोई परमात्मा की बात सोचे यही बड़ी तपस्विता है। सब तरफ से हाहाकार, अंधकार, पाप, घृणा। और जहाँ मनुष्य देखता है रातदिन की दृष्टि संसार में प्रभावशाली होते हैं। जहाँ किसी भी अच्छे आदमी का जीना दुर्भर हो जाता है। वहाँ पर भी कोई अगर परमात्मा को याद भी कर ले, वो बड़ी भारी तपस्विता है। उसी के फलस्वरूप आज सहयोग आपके सामने। खड़ा हुआ है। सहज का मतलब है सहज, स माने आपके साथ और ज माने पैदा हुआ। हर एक मनुष्य के अंदर ये शक्ति है, ये अधिकार है, उसका जन्मसिद्ध अधिकार है कि वो इसे प्राप्त करे। इस योग को, इस यूनियन को, इस परमात्मा से मिलान को या प्राप्त करे। इस आत्मसाक्षात्कार को इस self actualization को वो देखे पाए। सुनने में बहुत ही ज्यादा बड़ी बात लगती है। लोग सोचते हैं इतनी बड़ी बात माताजी कह रही हैं ये कैसे हो सकता है। संसार में कितनी बड़ी बातें हो रही हैं वो आपकी नज़र में भी नहीं आया। एक छोटी सी बात देख रही। हज़ारों वृक्ष खिलते हैं, हज़ारों फूल खिलते हैं। करोड़ो ना जाने कितने आकाश में तारागढ़। घूमते फिरते रहते हैं। ये पृथ्वी कितनी प्रचंड शक्ति से संसार में विचरण कर रही है। और उस पर आप जैसे जीव कैसे उससे चिपके बैठे हैं, जो महसूस भी नहीं कर रहे उसकी शक्ति को और उसके घुमाओ। लेकिन वो इस कदर हमारे जीवन में स्थाई रूप से अस्तित्व पा गया है। कि हमें कुछ लगता ही नहीं की ये कोई विशेष बातें हो रही हैं। और अगर है भी कोई विशेष बात अगर समय आ गया है तो उसमें ये रुकावट क्यों डाले कि कैसे हो सकता है अगर होता है तो होने दीजिये। साधारणतः मनुष्य का यही दिमाग होना चाहिए। किन्तु मनुष्य जरा असाधारण बातों में विश्वास करता है। अगर उससे कहा जाये कि भई इसी तरह से है तो नहीं वो कहेगा कैसे क्यों मैं तो इधर से खाऊंगा। ये मनुष्य की बुद्धि का फिर है। कहने को तो बड़े बड़े लोगों ने कहा है कि ये सारा ब्रह्म है, ये माया है। ये भी कहा है कि अगर कोई आपको रस्सी में भ्रम हो जाए की ये साफ है तो उसको जान लेना चाहिए, उसको समझ लेना चाहिए। लेकिन मेरा ये अनुभव है कि मनुष्य बहुत डरपोक वो रस्सी तक जायेगा ही क्यों? वो पहले ही से दूरी से देख रहा है की ये साफ है और उसके डरने में ही वो समझता है भाई इसी में मैं बचा रहा हूँ। इसी तरह दुनिया में रहने का है तो इसी तरह से रहना चाहिए। इसलिए खुद ही रस्सी उठा के उसे दिखानी हुई। कि भाई देखो ये रस्सी है। इतना ही कार्य हम कर रहे हैं। आपके अंदर खुद ही दीप सजे हुए हैं। जन्म जन्मांतर से आप लोग खोज रहे हैं। अनेक जन्मों से आप लोग खोज रहे हैं और इस जन्म में पाने का समय आ गया। इसके बारे में पुराणों में भी अपने यहाँ वर्णन है। नल और डी के किस्से में एक बार नल को गली का। मुकाबला पड़ा और उन्होंने उसको किसी तरह से काबू भी कर लिया। और उसे कहा की अब मैं तुझे मार ही डालूंगा तू महादुष्ट, तूने मुझे इतना सताया है। इसकी कोई हद नहीं। तो कली ने कहा कि भई तुझे मार डाल तू मुझे, मुझे हर्ष नहीं। लेकिन इतना जान ले। कि ये जितने भी लोग मेरे संसार में माने कलयुग में आएंगे। वे वही होंगे, उनमें से अधिकतर लोग वही होंगे जो परमात्मा को खोजते हुए गिरी कंदरों में भटक रहे हैं। और वे लोग मेरे ही समय में उनकी खोज को पाएंगे। तू क्या चाहता है की उनको हमेशा के लिए निराश कर दिया जाए? नल ने कहा भाई ठीक है तुम्हारा, तुमने तो मेरे साथ बहुत ज्यादती की है, लेकिन मैं तुम्हे अब क्षमा कर देता हूँ। क्योंकि ये तो बहुत बड़ी बात तुमने कह दी, इस पर तो मैं तुम्हे नहीं मार सकता। अब हम लोगों के साथ, हिंदुस्तानियों के साथ। ये सब कि वदंतिया हो गयी, पुराण की बातें हो गयी, सब पुरानी बातें हो गयी, सब कर्मकांड हो गए, ये वो दुनिया भर की बातें हम लोग सोचते हैं। और सोचते हैं की ये सब फालतू की बातें हैं, मंदिरों में घूमना और भटकना और ये। सब धर्म की बात करना। यहाँ नहीं। प्रदेश में भी आजकल आपको मालूम है कि बहुत से चर्च वगैरह लोग बेच रहे हैं। मस्जिदें खाली पड़ी है। हर जगह जाइये यही हाल। अपने ही देश का हाल है। परमात्मा से अगर विश्वास उठ गया है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है और वास्तविक में उठना भी चाहिए। क्योंकि जैसे जैसे महादुष्ट लोग परमेश्वर का नाम लेकर के रुपया कमा रहे हैं, तो मनुष्य को परमेश्वर में तो विश्वास हो ही नहीं सकता। और क्योंकि उनका साक्षात कहीं होता नहीं है। इसीलिए मनुष्य इस बात को विश्वास नहीं करता। सहयोग में साक्षात होता है उनका। आपको पता होगा। जब आप इसमें अग्रसर होंगी श्री गणेश कोई हमारी बनाई हुई चीज़ नहीं है। ये परमात्मा ने ही बनाया हुआ वो symbol है। एक प्रतीक है। जो चिरकाल के बालक का है। eternal childhood का है। ये परमात्मा ने ही हमारे अंदर ये प्रतीक भेजा हुआ है। अब प्रतीक पे तो साइकोलॉजिस्ट भी विश्वास करने लगे। साइकोलॉजिस्ट भी उस कगार पे पहुँच गए हैं कि वो जानते हैं कि हम कहीं रुक गए हैं। इससे आगे हम नहीं जा पाते। वो भी बहुत सारी बातें हैं उनको समझा नहीं पाते। डॉक्टरों भी मेडिकल डॉक्टर जिसको हम कहे कि बड़ा मेडिकल साइंस है। वो भी एक हद तक चलते हैं उससे आगे कहते हैं कि ये स्वय चालित है, ऑटोनॉमस है। पर वो स्वयं कौन है और वो autonomous कौन है वो नहीं बताता। आप सहयोग से उन्हें बता सकते हैं। सहयोग से ना कि इसे आप प्राप्त कर सकेंगे। लेकिन इस शास्त्र को पूरी तरह से आप जीत सकते हैं। इसमें प्रवीण हो सकते हैं, मास्ट कर सकते हैं। पूरी तरह से इसे जान सकते हैं। पहली मर्तबा परमात्मा से संबंध घटित होता है। पहली मर्तबा आप परमात्मा के राज्य में आते हैं। पहली मर्तबा कम्युनिकेशन होता है। आप उसको इन चैतन्य लहरियों से जानते हैं इनके बारे में शंकराचार्य ने कहा है, क्राइस्ट ने कहा है। हर बड़े आदमी ने इसकी बात की है। जो भी मैं बात कहती हूँ उसका साक्षात आप कराइए। क्योंकि साइंस का ज़माना है। इसमें हर एक चीज़ का मुझे साक्षात देना पड़ेगा। लेकिन फर्क इतना ही है कि आपको इसका माइक्रोस्कोप लेना पड़ेगा और इसका माइक्रroscope है कि आप पार हो जाएं। आपका चित्त जो है वो उस परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति से एकाकार हो जाए। लेकिन लोग पहले ही इसको लेकर वहाँ पहुँच शुरू कर देंगे। डिस्कशन शुरू कर देंगे, बातचीत शुरू कर देंगे। ये कैसे वो कैसे उस किताब में ऐसा लिखा है, उसने ये लिखा है, हमारे हमारे फलाने गुरु है, हम उसके पास गए थे, उन्होंने ये कहा। आपको अभी तक मिला है क्या? सीधा सवाल। अगर मिला है। तो हम हमारे पास आप किस लिए आए। और नहीं मिला है तो ले लो। हम तो देने को बैठे हैं आप बेकार की बात है क्या इधर उधर भी लगा रहे हैं। Argument और discussion से ये चीज़ घटित नहीं होती। घटित होने के बाद इसकी क्याक्या उपलब्धि है, उसके लिए भी एक लम्बा चौड़ा lecture देना पड़ेगा। वो शायद मैं कल बताऊँगी। लेकिन मैं ज़रूर चाहूंगी कि आप में से जो लोग इसपे सवाल पूछना चाहे, ज़रूर पूछे। क्योंकि ये ना हो कि जब आप ध्यान में जाएं, उस वक्त कोई दिमाग में फितूर बैठा रहे। क्या आप सोचे ये मैंने पूछा नहीं माता जी से, सब पूछ लीजिये। लेकिन बेकार की बकवास नहीं करना चाहिए क्योंकि दूसरों का भी समय बर्बाद होता है अपना भी। आपने अगर बहुत पांडित आप को तो आप लेक्चर जा के दीजिए। लेकिन यहाँ पर अगर आपको खुद कुछ जानना हो तो आप उसको जान सकते हैं और मुझसे पूछ लीजिए। और दूसरा जो कल विषय है उस पर मैं सब इसका यंत्र क्या है वो बताउंगी, जिसके कारण ये कार्य घटित होता है। आप जैसे की एक लाइट है उसको जलाना चाहे तो एक आप बटन दबाइए लाइट जल सकते। लेकिन उसके पीछे में उसका बहुत बड़ा इंजीनियरिंग तो है ही। वो भी समझा दिया था। और पहले लाइट तो जला ले, नहीं तो पहले अगर आपको इंजीनियरिंग समझाए ये पानी कहाँ से गिरा और वह इलेक्ट्रिसिटी कैसी हुई, फिर ये कैसे हुआ, वो कहे साहब पहले लाइट तो जलाए आपके सर दर्द हो जायेगा। पहले आप लाइट जला दीजिए। अधिकतर लोगों को तो ज़रूरत ही नहीं होती। जानने की लाइट हो गयी, लाइट हो गयी बस काम क्या मतलब अपने को लाइट से मतलब और जिसको ज़रूरत होती है वो जान भी सकता है। और उसका साक्षात हो सकता है, एक्चुअलाइजेशन हो सकता है। आईटीएस आ फैक्ट कोई झूठी बात नहीं है। अब आप लोगों को सवाल पूछना हो तो मुझे पूछ लें। वो अच्छा रहेगा। आपने उसका की सवाल पूछे पहले आपसे लोगों ने कैसे सवाल पूछे यही की कैसे होगा क्या होगा आदमियों को तो ये है इंसान के तो कवालों का कुछ ठीक नहीं कुछ कहना है की ये कैसे हो सकता है। किसी ने कहा कि ये कैसे हो सकता है? आप बताइए कैसे होता है? मैंने कहा भई तुमको भूख लगी है? मैंने खाना बनाया। खाना है खा लो। नहीं है तो फिर सवाल पूछो, कैसे होगा? मैंने कहा ये तो ठीक है, कैसे होगा मैं बताउंगी ना। मैंने कैसे खाना बनाया वो तो मैं बताउंगी ही। कोई चीज़ आपसे छिपा के नहीं रखने वाली हूँ। गुप्त से गुप्त तर जो कुछ भी है, सब चीज़ मैं आपको बताने वाली हूँ। एक चीज़ खोल के रख दूंगी। ये मेरा वचन है। लेकिन पहले आप बात हो लीजिए, अपने चक्षु तो खोल लीजिए। और कुछ लोगों ने अपना ही पांडित बहुत दिखाया। अब ठीक आ गए थोड़े दिन बाद लेकिन देर हो गयी उनको। जो पहले आए थे, जिन्होंने मांगा वो बहुत दूर तक चले गए। और जो लोग पूछते बैठे हैं वो अभी तक उनमे से एक साहब अभी तक पार नहीं हुए उनके चार साल पांच सालों के रैंगलर है वो बहुत बड़े आदमी हैं। आते हैं रोज ध्यान में बैठते हैं, सब कुछ करते हैं पर अभी उनका दिमाग हल्का नहीं हुआ। सीधा सवाल होना चाहिए, अभी तक तो हमें मिला नहीं। और अब मिल रहा है तो ले लेना सीधा। हमसे तो आपको कुछ और मतलब ही नहीं है, हमको तो सिर्फ देने से मतलब। हाँ। और आप उनके दरवाजे पहुँच गए। आपको कोई अधिकार नहीं है। बहुत से लोग हैं, आज एक साहब आये थे, उन्होंने कहा साहब एक गुरूजी ने मुझे राम नाम दिया। मैंने कहा भाई राम नाम लेने के गुरूजी का कुछ चाहिए, वो तो आपको कहीं भी मिलता है। मेरा ले लियाओ, चलो कोई बात नहीं। लेकिन उनके हृदय चक्र पकड़े हुए हैं दोनों साइड में खासकर राइट साइड में जहाँ श्री राम का आवास। मैंने कहा आपका अधिकार क्या है कि राम को आप बुलाइए हम जिस तरह से हुक्म देते रहते हैं कि चल मेरे बच्चे को ठीक कर, मेरे फलाने को ठीक कर, मेरे नौकरी दे दे, मेरा ये ठीक कर दे, तो क्या वो आपके नौकर बैठे? आप तो अभी उनके साम्राज्य में पहुंचे भी नहीं। अगर समझ लीजिए हम इंडिया में इंडियन नहीं है, हम Indian citizenship हमारी नहीं है। तो क्या हमको इंडिया के एडवांटेज मिल सकते हैं क्या?

उसी प्रकार होता है। अगर आप उसके साम्राज्य में चले जाएं और तब उन्हें कहें तो आपका अधिकार होता। इसलिए अनधिकार चेष्टा हो गई। इसलिए जो रखते शाम शाम हम देखते हैं उनके वही चक्र पकड़ा रहता है। आश्चर्य की बात है। फिर हम उनसे माफी मांगते हैं कि बच्चे ने भाई माफ कर दो क्योंकि इन्होने गलती में कर दिया इनकी समझ में आई नहीं बात। तुमको याद कर लिया नाराज़ हो गए होंगे। माफ कर दीजिये, मान जाते हैं। ऐसे बड़े कृपाल हो, बड़े दयाल। यही समझ लीजिये आप अपने prime minister हैं उनसे बगैर कुछ भी नहीं। कनेक्शन हुए बगैर किसी अथॉरिटी के बगैर हम पहुँच गए उनके दरवाज़े और वहाँ लगे खटखटाने के साहब हमको ये दो और रोटी दो और कपड़ा दो और फलाना दो आपको जेल में बंद होना पड़ेगा सीधे। हालांकि उनके साम्राज्य में आप हैं तो भी ये हाल है कि जिनके साम्राज्य में अभी आप गए भी नहीं उनपे इतना अधिकार आप कैसे लगा सकते हैं। अब आप ये भी। साहब ने ये भी कहा कि बड़े बड़े लोगों ने जैसे स्वामी रामदास समर्थ बहुत बड़े, बहुत बड़े थे। श्री हनुमान जी के अपहरण थे वो। उन्होंने कहा कि तुम राम का नाम लो। तो वो कैसे भाई उन्होंने अपने शिष्यों से कहा जिनको उन्होंने अवेकन किया था। जो साम्राज्य में पहुँच चुके थे उनसे कहा था राम का नाम लो और उनको क्या मालूम कि आप लोग भी उनका नाम लेना शुरू कर दे। वो क्या जानते हैं कि आप अभी तक अवेकन भी नहीं है। वो तो यही सोचते हैं क्योंकि वो इतने ऊँचे पद पर हैं, वो समझते भी नहीं कि आप लोग अभी भी नहीं है। ये तो मैंने पता लगाया। एकदम पूर्णतः मनुष्य हूँ मैं इसलिए मैंने समझ लिया। क्या आप लोगों में अभी वो जागृति भी नहीं हुई है, वो भी अधिकार नहीं है। इसीलिए गड़बड़ हो रही है और भगवान का कोई इसमें कोई दोष नहीं है। अभी तक वो जागरूक भी नहीं है। रमण महर्षि जैसे आदमी ने लिखा है। मुझे पढ़ के ऐसा लगता है जैसे कोई छोटा बच्चा नहीं होता है। उनको ये पता ही नहीं की अभी आप जागरूक नहीं कहते हैं की वल फोर्स को अपने हृदय में लेकर के ऊपर उठा रहे है भई वल फोर्स तो तभी आएगा भाई, जब की आप अवेक होगे आप उनके जैसा सबका हाल थोड़ी ना है कि वो वल वो तो बन्ड रियलाइज्ड आदमी थे अवेक। रियलाइजेशन उनको बाद में हुआ। उनकी stage ही ऊँची पैदा हुए थे ना, ऊँची स्टेज पे आये थे तो he could do that अब हमसे आपसे हम कहे कि आप vital force हो गए भाई है क्या चीज़ माता जी क्या कह रहे हैं आप? ये तो ऐसा ही हुआ। जिसने जिसने कभी रेलगाड़ी देखी नहीं है उसने कहा भाई तुम टिकट खरीद कर के और रेल पे चढ़ाओ भाई सच्ची क्या बोले तुम। तो ये सब नाटक ही हो रहा है। असलियत तब होती है जब आपको इसका अधिकार हो जाता है। ये अनधिकार चेष्टा है। इसमें बुरा मानने की कोई बात नहीं। और मनुष्का हर एक चीज़ में prestige issue हो जाता है उस पर तो मुझे और भी आ रहा है। अभी तुमको मिला नहीं है ना। नहीं मिला है तो प। अब उसमें हर एक चीज़ में प्रेस्टीज इश्यू हो जाता है साहब इन्होने हसा कर दिया हमको। भई हमने क्या कहा भई, ये तो ऐसे हो छोटा बच्चा है, कोई बिजली के उसमें ऊँगली डालता है उससे कहा बेटे नहीं हाथ लगाओ तो उसको प्रेस्टीज इश्यू हो गया। ऐसा ही ये prestige issue है। सबसे बड़ा prestige तो ये है कि आप पालो। बाकी सब व्यर्थ है। सब misidentifications हैं लाइफ में। पहले पैदा हुए तो हमारा नाम, फिर हमारा गाँव, फिर हमारा देश, फिर ये और वो और फिर हमारे आगे बढ़े तो हमारी फिर पैसा फिर सत्ता और फिर उससे आगे। हमारे गुरु। वो गुरु है कि घंटाल है इसका पता नहीं। और मजाल नहीं आप कह दीजिये साहब। चाहे आपको नोच खाया होगा। ये आपका है नहीं और आपके अंदर साक्षात हो रहा है। आपके अगर गुरु असली है तो हमारे लिए तो बहुत बड़ी बात हो गयी। हम तो उनसे जाके मिलेंगे ज़रूर और उनका आदर करेंगे। मैंने है कहाँ? पान की जैसे दुकान खोलते हैं ऐसे सब दूर गुरु हो गए हैं आपके। मैं उनको दोष नहीं देती, दोष आप लोगों का।

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