Athena - the Primordial Mother

Athena - the Primordial Mother 1999-11-09

Location
Talk duration
52'
Category
Public Program
Spoken Language
English
Live Translation
Greek

Current language: Hindi, list all talks in: Hindi

The post is also available in: English, French.

9 नवम्बर 1999

Public Program

Athens, Caravel Hotel (Greece)

Talk Language: English | Translation (English to Hindi) - Draft

मैं सत्य के सभी साधको को नमन करती हूं। सबसे पहले, हमें यह जानना होगा कि हम जिस सत्य की तलाश कर रहे हैं वह क्या है और हम इसे कैसे खोजेंगे और इसका प्रमाण क्या है कि आपको सत्य मिल गया है। सबसे पहले, हमें यह जानना चाहिए कि सत्य को आप खरीद नहीं सकते। यह है, आप इसका व्यापारनहीं कर सकते, क्योंकि सत्य प्रेम है और प्रेम करुणा है।

तो अब, मैं आपको सत्य के बारे में बताने जा रही हूँ, कि ग्रीस में उन्हें सत्य के बारे में कैसे पता चला। आपका देश बहुत-बहुत प्राचीन है। और हमारे देश में भी, हमारी पुरानी पुस्तकों में, प्राचीन पुराणों में, आपके देश के बारे में उल्लेख है। उन्होंने एथेना का बहुत स्पष्ट वर्णन किया है। और धीरे-धीरे यह महान देश जो कुछ भी जानता था उससे बिल्कुल अनजान हो गया। अब आपके और मेरे बीच, मैं आपको बताना चाहूंगी कि हमारे भीतर त्रिकोणीय हड्डी में एक शक्ति स्थित है।

श्री माताजी, एक तरफ: यदि आप बाहर जा सकते हैं तो आपको कोई दिखा सकता है। ठीक है?

[हिन्दी]

यह वह हड्डी है जिसे हम सेक्रम कहते हैं। यह नाम "सैक्रम" उन दिनों यूनानियों द्वारा दिया गया था जिसका अर्थ पवित्र होता था। इसका मतलब है कि उन्हें पता था कि रीढ़ की हड्डी के नीचे एक पवित्र हड्डी है। यह वह त्रिकोणीय हड्डी है जो अस्तित्व में थी और उसमें यह शक्ति थी, जिसे भारत में हम कुंडलिनी कहते हैं।

श्री माताजी, एक तरफ: इतनी जल्दी? [हँसी]

कभी-कभी ग्रीक भाषा बहुत लंबी होती है और कभी-कभी बहुत छोटी।

[हँसी]

ठीक है।

अब इस हड्डी में यह शक्ति है और यदि आप एथेना को उसके कवच पर देखते हैं, तो उसके पास यह शक्ति है और उसके हाथ में भी है, वह यह शक्ति दिखाती है।

यह शक्ति उसे ज्ञात थी और हम एथेना को आदि मां कहते हैं। संस्कृत में "अथ" शब्द का अर्थ आदिम है। परन्तु बाद में यह ज्ञान लुप्त हो गया। अब, सिकंदर आपके देश से भारत की ओर गया।

और वह पार्थेनियन, पार्थेनियन था। [पार्थेनन एथेंस में एथेना का मंदिर था] वह पार्थेनियन था, और वह पार्थेनियन धर्म का पालन कर रहा था, आप कह सकते हैं कि पैगन। लेकिन जब वह भारत गया तो उसने पाया कि भारतीय संस्कृति में पवित्रता सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। और उसने एक भारतीय महिला से शादी की थी। इसके अलावा, वह भारत से एक बहुत एक कवि, प्रसिद्ध कवि को भी लाया था। उसने पर्सेपोलिस का वर्णन किया और साथ ही, उसने अपनी कविता में एथेंस की हर चीज़ का वर्णन किया। लेकिन जब अलेक्जेंडर यहां आया तो उनकी इच्छा थी कि इस कैथोलिक चर्च को शुद्ध ऑर्थोडॉक्स शैली का बनाया जाए। और मुझे यकीन है कि उसने जरूर कोई किताब लिखी होगी या उसने बताया होगा कि पवित्रता बनाए रखने के लिए हमें क्या करना चाहिए। ये सभी कोड वही हैं जिनका हम भारत में पालन करते हैं। और रूढ़िवादी चर्च धर्मांतरण में विश्वास नहीं करता था। हम भी धर्मांतरण में विश्वास नहीं रखते थे।

यह वह संबंध है [जो] आपके रूढ़िवादी चर्च के अस्तित्व में स्थापित हुआ। और वे सभी धर्मों का सम्मान करते हैं, आदर करते हैं। अब, मुझे नहीं पता कि बदलाव क्या हैं। लेकिन वे जो कुछ भी कहते और करते रहे हैं, वह भारतीय संस्कृति पर खरा उतरता है।

मुझे लगता है कि उन्हें यह "संन्यासी" या त्याग बौद्ध धर्म से भी मिला है। मुझे इसमें बहुत कम अंतर लगता है। लेकिन फिर पश्चिमी संस्कृति आई और सब कुछ उल्टा हो गया। इसके अलावा, भारत में भी हमारी यही समस्या थी। उनके वही देवता थे जो हमारे भारत में हैं। लेकिन देवताओं को, आप देखिए, बहुत सारी कमजोरियों के साथ उन्हें इंसान बना दिया गया। लेकिन भारत, भारत में हम इस तरह नहीं सोचते हैं। देवता तो देवता हैं।

तो, यही वह आधार है जिसके कारण पर आप यहां हैं। मेरे लिए अंग्रेजों से बात करने की तुलना में आपसे बात करना आसान है। अब यह शक्ति त्रिकोणीय हड्डी में विद्यमान थी और इसे कुंडलिनी कहा जाता है। यह साढ़े तीन कुंडलियों में है। और जब यह ऊपर उठती है, तो छह केंद्रों से गुजरती है और अंतिम केंद्र, जिसे हम ब्रह्मरंद्र कहते हैं, को छेदती है। यह आपके बपतिस्मा का बोध है, बोध है। ऐसा नहीं है कि कोई यह कह सकता है, "अब, मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ।" यह ऐसा नहीं है। आपके पास आध्यात्मिक प्राधिकार होना चाहिए। और अब यह हर जगह हो रहा है। किसी तरह यह बहुत तेजी से फैल रहा है और मुझे लगता है कि अब लगभग बहत्तर देश ऐसे हैं, जहां वे बताते हैं, कि सहज योग है।

इसलिए, जब वह उठती है, तो वह सभी केंद्रों का पोषण करती है। वह सभी केन्द्रों का पोषण करती है और उन्हें एकीकृत करती है। जब वे एकीकृत होते हैं तो आप एकीकरण के व्यक्तित्व बन जाते हैं। लेकिन इससे आपकी आत्मा प्रबुद्ध होती है। और आप आत्मा बन जाते हैं। तो, सच्चाई यह है कि हम यह शरीर, यह मन, ये भावनाएँ, आपके विचार, महत्वाकांक्षाएँ नहीं हैं, बल्कि आप शुद्ध आत्मा हैं। जो कि आपको बनना है। जैसे ही आप आत्मा बन जाते हैं, ये सभी समस्याएं, मानवीय समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। शारीरिक रूप से आपको उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है। मानसिक रूप से आप बिल्कुल संतुलित हो जाते हैं और भावनात्मक रूप से आप बिल्कुल संतुष्ट हो जाते हैं। आप सच्चे अर्थों में संत बन जाते हैं। लेकिन आप जो महसूस करते हैं, वह आपके हाथों में है, देखिए, आप पवित्र आत्मा की ठंडी हवा महसूस करते हैं।

एक और बड़ी बात यह है कि आप मां, पवित्र मां में विश्वास करते हैं। लेकिन बाइबिल में उन्हें सिर्फ महिला बताया गया है। लेकिन क्रूस पर ईसा मसीह ने कहा, "देखो माँ को।" लेकिन मानवीय भावना और मानवीय समझ के कारण आपके पास मैडोना है। खासतौर पर ऑर्थोडॉक्स चर्च मैडोना का बहुत सम्मान करता है। शायद एकमात्र अंतर यह है कि भारतीय दर्शन में आपको अपना आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करना होता है। उस भाग पर जोर दिया जाना चाहिए था। और आपको अपने बपतिस्मा का बोध, बोध प्राप्त करना चाहिए। आपको फिर से जन्म लेना होगा। लेकिन यदि आप बस कहते हैं, एक प्रकार का प्रमाण पत्र लेते हैं, "मैंने फिर से जन्म लिया है," तो आप वह नहीं बन जाते। वास्तव में ऐसा होना ही चाहिए कि आप एक आत्म-साक्षात्कारी व्यक्तित्व के रूप में फिर से जन्म लें।

अब इसका समय आ गया है और यह कई देशों में काम कर रहा है। ग्रीस में क्यों नहीं? यह सब बहुत सरल है। हम इसे "सहज" कहते हैं, जिसका अर्थ है स्वतः, जैसे एक मोमबत्ती, एक मोमबत्ती जो प्रकाशित है, कई मोमबत्तियों को प्रकाशित कर सकती है। लेकिन, मोमबत्ती स्वयं प्रकाशित नहीं हो सकती। यदि आप प्रबुद्ध हैं तो आप दूसरों को प्रबुद्ध कर सकते हैं। फिर आप दूसरों को अपनी उंगलियों पर महसूस करना शुरू कर सकते हैं क्योंकि आपका चित्त और आपका व्यक्तित्व सामूहिक हो जाता है। दूसरा कौन है? लेकिन ये तो होना ही है, ये तो होना ही है। हर कोई कुंडलिनी से संपन्न है और हर कोई आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर सकता है। लेकिन कुंडलिनी शुद्ध इच्छा है और यदि आपके पास आत्मा बनने की शुद्ध इच्छा है, तो आप इसे प्राप्त कर लेंगे। सभी इच्छाएँ अशुद्ध हैं। आज आप कार लेना चाहते हैं और संतुष्ट नहीं हैं। और आप एक मकान लेना चाहते हो; आप संतुष्ट नहीं हैं। यह इसी तरह चलता रहता है, आप देखिए, यह अर्थशास्त्र है। तो कोई संतुष्टि नहीं है। लेकिन जब आपको आपका आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हो जाता है तो संतुष्टि घर कर जाती है, क्योंकि आप निर्विचार रूप से जागरूक हो जाते हैं, क्योंकि आप साक्षी बन जाते हैं। आप सिर्फ देखते हैं, प्रतिक्रिया नहीं करते।

उदाहरण के लिए, देखिए, यहाँ एक सुंदर कालीन है। एक सामान्य इंसान के रूप में, मैं सोचूंगी, "हे भगवान, यह कितना अच्छा कालीन है।" मुझे यह कहां मिलेगा? मुझे कितना भुगतान करना है?" और अगर यह मेरा होगा, तो मुझे अधिक चिंता होगी कि, "यह खराब नहीं होना चाहिए।" मैं बीमा करवाऊंगी या कुछ और।'' लेकिन अगर मैं एक आत्म-साक्षात्कारी व्यक्ति हूं, तो मैं इसे सिर्फ देखूंगी और प्रतिक्रिया नहीं करूंगी। कलाकार ने इसमें जो सुंदरता डाली है वह बहुत आनंद देती है! तो, आप आनंद से भर जाते हैं।

आपका चित्त प्रबुद्ध हो जाता है, चित्त। आप जहां भी चित्त रखते हैं, वह काम करता है। आपकी सभी समस्याओं का समाधान हो गया है। बड़े आश्चर्य की बात है कि यह इतनी आसानी से कैसे सुलझ जाती है! और आपको अपनी चिंताओं, सभी समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है।

इसके अलावा, हमारे अन्य बुरे दुश्मन जो हैं, जैसे क्रोध, ईर्ष्या और बाकी सभी, वह छह, वे सभी समाप्त हो जाते हैं। आप खुद पर हंसने लगते हैं और आपके दिल से केवल करुणा और प्यार बहता है । वास्तव में आपके साथ यही होता है। और जब ऐसा होता है तो आप वास्तव में स्वयं आनंदित होते हैं और दूसरों को आनंद लेते हैं। आप आनंद से इतने अधिक भर जाते हैं कि आप उससे रोमांचित हो जाते हैं। आप रोमांचित हो जाते हैं। मेरा मतलब है, अब हमारे साथ दुनिया भर से लोग हैं, जो यहां भी बैठे हैं। कुछ आस्ट्रेलिया से भी आये हैं। लेकिन वे एक-दूसरे से इतने एकाकार हैं मानो एक बूंद समुद्र, महासागर बन गई हो। यह तो होना ही है।

हम शांति की बात करते हैं; हम इसकी और उसकी बात करते हैं। बात करने से बात नहीं बनेगी। जब हम अपने मानवीय व्यक्तित्व की सीमाओं को पार कर एक-दूसरे के साथ एक हो जाते हैं, तभी शांति अपने आप आ जाती है। यही तो प्राप्त करना है। कोई तर्क नहीं, कोई भुगतान नहीं, किसी चीज़ की आवश्यकता नहीं। केवल इस कुण्डलिनी को ही ऊपर उठाना है। यह आपके विकास की जीवंत प्रक्रिया है। इस मानवीय जागरूकता से आपको सामूहिक जागरूकता की ओर बढ़ना होगा।

मुझे कहना होगा, यह विषय बहुत गहरा और बहुत व्यापक है। मैंने अपने जीवन काल में हजारों व्याख्यान दिये होंगे। लेकिन संक्षेप में यह जानना होगा कि हम यहां क्यों हैं। हमें क्या प्राप्त करना है?

और एक बार जब आप जान जाते हैं कि आपने क्या प्राप्त कर लिया है, तो आपकी सभी समस्याएं गायब हो जाती हैं [अनिश्चित?]

इसलिए, हमें अपना आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करना होगा। हर किसी ने कहा है कि आपको पुनः जन्म लेना है, लेकिन आप खुद को प्रमाणित नहीं कर सकते, "मैंने पुनः जन्म लिया है"। क्योंकि कुंडलिनी द्वारा आपको ऐसी शक्तियां प्रदान की जाती हैं जिससे आप दिव्य प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति को महसूस करना शुरू कर देते हैं। यह झूठ नहीं है; यह सत्य है। और यह आपको आश्चर्यचकित करता है कि आपने अचानक अपने आप को कैसे परिवर्तित कर लिया है। हम धर्मांतरण में नहीं बल्कि पुनरुत्थान में विश्वास करते हैं और आपके लिए इसे प्राप्त करने का समय आ गया है। तो, इसे पाने में आपको मुश्किल से दस मिनट लगेंगे। इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो हानिकारक है।

सभी प्रकार की बीमारियाँ ठीक हो गई हैं, सभी प्रकार के मानसिक रूप से प्रभावित लोग ठीक हो गए हैं और भावनात्मक रूप से भी जुड़े लोग अब बहुत अलिप्त हो गए हैं। आपको ये भगवा कपड़े पहनने की ज़रूरत नहीं है, कुछ भी नहीं। यह स्वतः ही आपके अंदर घटित होता है और आप एक बहुत ही सामान्य जीवन जीते हैं। अब मेरे परपोते हैं। परपोते हैं मेरे । और अब मैं सतहत्तर साल की हूं और मैं हर जगह यात्रा कर रही हूं, हर जगह जा रही हूं। तो, आप एक सामान्य जीवन जीते हैं लेकिन अंदर से आप शांत और आनंदित हैं और आप दूसरों को आनंद देते हैं।यही आज की आवश्यकता है। क्योंकि यह आखिरी निर्णय है। चाहे आप झूठ को अपनाएं या सच को, यह आपका चयन है। लेकिन यदि आप सत्य को अपनाते हैं तो आप आनंद के स्वर्ग में हैं। और हर पल आप महसूस करेंगे कि आप आशीर्वदित हैं। जब तक आप परमात्मा से नहीं जुड़ेंगे, आपको आशीर्वाद कैसे मिल सकता है? आप प्रार्थना करते रह सकते हो, सब कुछ कर सकते हो; आप जुड़े नहीं हो।

मान लीजिए कि यह उपकरण मेन्स से जुड़ा नहीं है, तो यह बेकार है। इसी प्रकार यदि आप ईश्वर से नहीं जुड़े हैं तो आपको कुछ भी पता नहीं है। तो, आपको निर्णय लेना होगा, "क्या आप आत्म-साक्षात्कार लेना चाहेंगे या नहीं?" यदि आप नहीं लेना चाहते तो कोई भी आपको बाध्य नहीं कर सकता। आप इसके लिए भुगतान नहीं कर सकते, ऐसा कुछ भी नहीं। इसलिए जो नहीं चाहते वे हॉल से बाहर चले जाएं।' फिर हमारा दस मिनट का सत्र होगा। निस्संदेह, शुरुआत में आपको ठंडी हवा और सबकुछ महसूस होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन कभी-कभी लोगों को परिपक्व होने में कुछ समय लगता है। साथ ही विनाश की बुरी आदतें भी छूट जाती हैं। मैंने युवाओं को रातों-रात नशा छोड़ते देखा है, रातों-रात। इतना ही। तो, यह हमारे पूर्ण मोक्ष के लिए है। फिर से, मैं कहूंगी, जो लोग आत्म-साक्षात्कार नहीं लेना चाहते हैं वे जा सकते हैं और आपके साथ कुछ भी नहीं हो सकता, ऐसा कुछ भी नहीं जो परेशान करने वाला हो या किसी भी तरह से शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाने वाला हो। कुछ भी नहीं होगा, आपको केवल एक चीज प्राप्त होगी आपको आत्म-साक्षात्कार मिलेगा।

[आत्म-साक्षात्कार भाग]

अब सबसे पहले मुझे निवेदन करना है कि आपको अपने जूते निकालने होंगे। यह अच्छा है हम तहखानों में हैं, इसलिए, हम धरती माँ के बहुत करीब हैं। क्योंकि वह - वह हमारी बहुत मदद करती हैं । मुझे आश्चर्य है, अगर आप उनसे अपने जूते निकालने के लिए कहेंगे, तो उन्हें यह पसंद नहीं आएगा।

इंग्लैंड में इससे भी बुरी स्थिति यह थी कि जब मैंने उनसे जूते निकालने के लिए कहा तो उनमें से आधे चले गए। [हँसी] वहां उन्हें अपने जूतों से बहुत लगाव होता है।

ठीक है। तो, बस सहज रहें। एकदम सहज रहें। अब अपने दोनों पैरों को एक दूसरे से अलग रखें। मैं जानती हूं कि यह बहुत तेजी से कार्य करेगा, क्योंकि आप सत्य के सच्चे साधक हैं।

अब कृपया अपने दोनों हाथ मेरी ओर ऐसे रखें, थोड़ा ऊपर, थोड़ा ऊपर।

और अब आप अपने बाएं हाथ को अपने सिर के ऊपर रखें और अपने सिर को झुकाएं और देखें कि क्या आपके फॉन्टानेल हड्डी क्षेत्र पर, जो आपके बचपन में एक नरम हड्डी थी, आपको चैतन्य या, या आपके सिर से निकलने वाली ठंडी या हवा गर्म हवा जो आप कह सकते हैं, निकल रही है ।

अब, आप अपनी आंखें बंद करें या न करें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बायां हाथ मेरी ओर करें और अपना सिर नीचे झुका लें। और स्वयं देखें कि आपके सिर से ठंडी या गर्म हवा निकल रही है।

अभी तो, गर्म हवा आ रही है क्योंकि आपको सबको क्षमा करना है। अतः कृपया सभी को क्षमा करें। कुछ लोग कहते हैं, "माँ, क्षमा करना कठिन है"। लेकिन चाहे आप क्षमा करें या न करें, आप करते क्या हैं? लेकिन अगर आप क्षमा नहीं करते हैं, तो आप गलत हाथों में खेलते हैं।

अब, इसे महसूस करने का प्रयास करें, कि आपके फॉन्टानेल हड्डी क्षेत्र से ठंडी या गर्म हवा निकल रही है। आप फिर, अपना दाहिना हाथ मेरी ओर रखें और देखें कि क्या आपके फॉन्टानेल हड्डी क्षेत्र से, जो आपके बचपन में एक नरम हड्डी थी, ठंडी या गर्म हवा आ रही है।

[कुछ सेकंड के लिए ध्वनि गायब]।

फिर, अब अपना दायाँ मेरी ओर करके और बायाँ हाथ सिर के ऊपर करके आप महसूस करें कि आपके फॉन्टानेल हड्डी क्षेत्र से गर्म या ठंडी हवा आ रही है । अब अपना बायाँ हाथ फिर मेरी ओर करके और दायाँ हाथ से सिर में देखें। कृपया अपना सिर झुकाएँ। अपना सिर झुकाएं। और देखें कि क्या आपके फॉन्टानेल हड्डी क्षेत्र से ठंडी या गर्म हवा आ रही है। यदि यह गर्म है तो इसका मतलब है कि आपने क्षमा नहीं किया है।

अब अपने दोनों हाथों को इसी तरह आसमान की ओर उठाएं। और अपने सिर को ऐसे ही ऊपर की ओर रखें। अब आपको इन तीन सवालों में से एक, या एक सवाल तीन बार पूछना होगा। पहला प्रश्न है, "माँ, क्या यह पवित्र आत्मा की ठंडी हवा है?"

[जोर से, जोर से, जोर से, वे [अस्पष्ट] हैं]। यह प्रश्न तीन बार पूछें। या आप पूछ सकते हैं, "माँ, क्या यह दिव्य प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति है?" यह प्रश्न तीन बार पूछें।

या आप पूछ सकते हैं, "माँ क्या यह 'रूह' या परमचैतन्य है ?" यह प्रश्न तीन बार पूछें, उनमें से एक।

अब अपने हाथों को नीचे रखें और स्वयं देखें कि क्या आपके हाथों में ठंडी हवा आ रही है या गर्म हवा आ रही है।

अब, जिन लोगों ने अपनी उंगलियों पर, या हथेलियों पर, या फॉन्टानेल हड्डी क्षेत्र के बाहर ठंडी या गर्म हवा महसूस की है, कृपया अपने दोनों हाथ उठाएं।

हे मेरे ईश्वर! ईश्वर आप सबका भला करे । आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

आप सभी को यह मिल गया है, बहुत, बहुत कम को छोड़कर लगभग सभी को। संभवतः, उन्हें कुछ परेशानियाँ हैं जो मानसिक या भावनात्मक हो सकती हैं। या हो सकता है, वे किसी झूठे गुरु के पास गए हों। संभवतः। या जो भी हो उसे ठीक किया जा सकता है।

जब मैं आई तो उन्होंने जो गीत गाया, वह बारहवीं शताब्दी में भारत में लिखा गया था- [अनुवादक के लिए] यह इस गीत से संबंधित है। और यह एक कवि ने लिखा है और वह यह कहता है कि, "माँ, मैं तुमसे अपना योग मांगूंगा," इसका मतलब है कि यह 'योग' है, परमात्मा के साथ 'मिलन' है। और वह कहता है, “मैं अपने आप को शुद्ध कर लूँगा। मैं यह करूंगा, मैं वह करूंगा। लेकिन आप मुझे योग, मिलन दीजिए।'' और वे भारत के गांवों में इतने वर्षों से गाते आ रहे हैं। बेशक, अब यह काम कर रहा है।

तो ईश्वर आप सभी का भला करें मैं बहुत खुश हूं।

एक तरफ: क्या अब आप एक छोटा सा गाना गा सकते हैं? एक छोटा सा.

[महामाया गीत गाया जाता है।]

श्री माताजी: आनंद उठाओ, आनंद। और अब, कृपया उनके पास जाएं और उत्थान को प्राप्त करें। और आपका बहुत धन्यवाद ।

ईश्वर आप सबका भला करे ।

ईश्वर आप सबका भला करे ।

Caravel Hotel, Athens (Greece)

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