How the Divine is working within us? 1973-03-23
23 मार्च 1973
Public Program
Cowasji Jehangir Hall, मुंबई (भारत)
Talk Language: English
सार्वजनिक कार्यक्रम, पहला दिन
जहांगीर हॉल, मुंबई 23-03-1973
श्री माताजी: उदाहरण के लिए, यदि आप किसी मेडिकल डॉक्टर से चर्चा करेंगे, तो वह आपको यह नहीं बता पाएगा कि कामेच्छा क्या है, जो कई मनोवैज्ञानिक निष्कर्षों का आधार है। यदि आप मनोवैज्ञानिक से पूछें, तो वह आपको यह नहीं बता पाएगा कि सिम्पैथेटिक और पैरासिम्पेथेटिक तंत्रिका तंत्र के लक्षण क्या हैं।
फिर, "योग शास्त्री" (योग विशेषज्ञ) का तो कोई स्थान ही नहीं है। शायद हमने कभी यह महसूस नहीं किया कि ये सभी ज्ञान एक ही स्रोत से आते हैं, वह है जागरूकता। एक ही स्रोत ये सब फूल दे रहा है और फिर भी हम अलग हो गए हैं। और हम एक दूसरे से लड़ रहे हैं, बिना यह जाने कि यह एक ही स्रोत है जिसने इतने सारे फूल खिलाए हैं।
यह विघटन हमें भ्रम की ओर ले जाता है। और कलियुग, यह आधुनिक युग अपनी भ्रामकता के लिए जाना जाता है। धर्म और अधर्म, दोनों भ्रमित हैं। सही और गलत एक उलझा हुआ विषय है. दैवीय और शैतानी भ्रमित हैं। सभी बातों को ध्यान में रखते हुए हमें एक वैज्ञानिक की तरह बहुत खुले विचारों वाला बनना होगा। और पता लगाएं कि परमात्मा हमारे भीतर कैसे काम कर रहा है।
जीवन के विषय पर काम कर रहे कुछ जीव विज्ञानियों ने इतने कम समय में पैदा हुए जीवन के बारे में एक बहुत अच्छी थीसिस पेश की है। उन जीवविज्ञानियों के अनुसार, जब पृथ्वी सूर्य से अलग हुई तब से मानव जीवन के विकास में लगा समय, जीवन उत्पन्न करने के लिए भी बहुत कम है। उन्होंने स्पष्टीकरण दिया है कि यदि आप संयोग का नियम लागू करें तो यह असंभव है।
आइए देखें कि संयोग का नियम क्या है? संयोग के नियम को एक सरल सादृश्य से समझा जा सकता है। मान लीजिए कि पचास लाल पत्थर और पचास काले पत्थर हैं। और उन्हें एक जार में डाल दिया जाता है और कुछ यांत्रिक तरीकों से हिलाने की अनुमति दी जाती है, फिर आप पाते हैं कि वे सभी मिश्रित हो गए हैं। यही तो अराजकता है. और, जब आप उन्हें उनकी मूल स्थिति में वापस लाने का प्रयास करते हैं, तो आप पाते हैं कि इसमें एक निश्चित संख्या में झटकों की आवश्यकता होती है जो कि न्यूनतम आवश्यक है।
कृपया इस सादृश्य को समझने का प्रयास करें। यह एक बहुत ही सरल सादृश्य है. वहाँ एक घड़ा है जिसमें पचास सफ़ेद या काले-लाल कंकड़ या आप कह सकते हैं कि छोटे-छोटे, गोल-गोल कंकड़ हैं, ये बच्चे उससे खेलते हैं; उसी तरह की चीज़। और तुम इसे हिलाओ. जब आप इसे हिलाना शुरू करते हैं, तो वे सभी मिश्रित हो जाते हैं। अत: अव्यवस्था से लेकर व्यवस्थित जीवन तक, यह एक कोशिका की तरह है। पदार्थ की तुलना में अमीबा एक व्यवस्थित जीवन है। यहां तक कि अणु भी संगठित हैं, यहां तक कि परमाणु भी संगठित हैं, लेकिन उनमें खुद को व्यवस्थित करने की,या खुद की रक्षा करने की इच्छाशक्ति नहीं है।
तो इस जीव तक, जो स्वयं जीवन है, पहुँचने में आम तौर पर इन दो सौ अरब वर्षों की तुलना में बहुत अधिक वर्ष लगने चाहिए थे जो कि बहुत कम समय है। उनके अनुसार, लिया गया समय मान लीजिए, 'n' को घात 'xyz' तक बढ़ा दिया गया है। यह एक गणितीय बात है; मैं उसमें नहीं जाना चाहती. अब जो समय लगता है वह केवल 'एन' है; किसी भी घात को लगाना तो दूर की बात है। इतने कम समय में मनुष्य जैसी जटिल संरचना को संयोगवश विकसित कर पाना असंभव है। पूर्णतया स्वीकृत बकवास है।[अस्पष्ट/स्वीकृत/बेतुका]।
लेकिन जब आप उन कंकड़ों को देखते हैं, तो यदि कोई बाजीगर हो तो आप उनका निर्माण उचित तरीके से कर सकते हैं। यदि कोई व्यक्ति यह जानता है कि लाल वाले को लाल तरफ और काले वाले को काली तरफ कैसे धकेला जाए, तो आप इस कमाल को प्रबंधित कर सकते हैं। इससे पता चलता है कि कोई बाजीगर है; पूरी तरह से सचेत और जागरूक, लौकिक समझ और शक्ति के साथ, जो इतने कम समय में शो का प्रबंधन कर रहा है।
वैज्ञानिक के लिहाज से यह केवल यह बताना है कि कोई बाजीगर है। वे इससे अधिक कुछ नहीं बता सकते। [अस्पष्ट/एक]। अब देखते हैं कि इस विषय पर मनोवैज्ञानिकों का क्या कहना है। मनोवैज्ञानिक इस बात पर विश्वास करते हैं और उन्होंने इसे स्वीकार भी किया है। इस तथ्य को कि, हमारे भीतर, बाहर, एक सार्वभौमिक अस्तित्व है, उन्होंने अभी तक स्वीकार नहीं किया है। लेकिन हमारे भीतर ही 'कौन' है जो हमें एक साथ बांधे रखता है, क्योंकि जब हम सो रहे होते हैं और जब हम अपने आप को अपने अवचेतन मन में डुबो देते हैं, तो हमें सपने में कुछ प्रतीक दिखाई देते हैं।
कई मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित और उनके द्वारा समर्थित एक सिद्धांत है; कि ये प्रतीक सार्वभौमिक रूप से हर चीज़ में एक जैसे दिखाई देते हैं। उदाहरण के लिए, यदि यह सार्वभौमिक अचेतन यह सुझाव देना चाहता है कि आपकी हत्या होने वाली है, या किसी हिंसा, या हिंसा के साधन के माध्यम से आपको कोई खतरा है। आप एक त्रिकोणीय, लम्बा प्रतीक देखते हैं।
चाहे तुम भारतीय हो, चाहे तुम अमेरिकी हो, चाहे तुम जापानी हो या रूसी, इससे प्रतीक में कोई फर्क नहीं पड़ता। इसका मतलब है कि एक सत्ता है जो प्रतीकों के माध्यम से सार्वभौमिक रूप से काम कर रही है।
एक और बात है जिसका कई मनोवैज्ञानिक समर्थन करते हैं, कि अचेतन हर समय हमें उचित मार्ग पर रखने की कोशिश कर रहा है। यह हमें संतुलन प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, मैं युंग, को उद्धृत करूंगी, जिन्होंने लक्षणों के माध्यम से अनकांशस द्वारा सुझाए गए संतुलन के दो उदाहरण दिए हैं।[अस्पष्ट]।
एक सज्जन उनके पास आये और उनसे कहा कि, “मैं तो बस सपना देखता हूँ। और मेरे सपने में, हमेशा, मुझे मेरे बेटे, जो एक राजा है, के सामने पेश किया जाता है। कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं रास्ता भटक गया हूं। कभी-कभी मैं ट्रेन नहीं पकड़ पाता। मेरे सपने में सभी प्रकार की दुखद चीजें देखीं और अंततः मैंने पाया कि मैं अपने बेटे के सामने आ गया हूं जो एक राजा की तरह सिंहासन पर बैठा है। तो, श्री युंग ने उनसे पूछा, "आपके बेटे के साथ आपके क्या संबंध हैं?"। इन सज्जन ने कहा, “आप देखिए, वह मेरी पहली पत्नी का बेटा है और मेरी दूसरी पत्नी उससे बहुत खुश नहीं है। इसलिए मैं उसे बाहर रखता हूं. लेकिन फिर भी, मुझे कहना चाहिए कि एक पिता के रूप में मैंने उनके साथ कोई न्याय नहीं किया है।”
श्री युंग ने कहा, "अचेतन आपको सिखा रहा है कि आप उसका सम्मान करें क्योंकि वह एक राजा है"। एक दिन ऐसा आदमी अपने ही बेटे के साथ ऐसा व्यवहार करने के लिए अपने दिल में पश्चाताप करेगा, जो पूरे प्यार और सुरक्षा के लिए अपने पिता पर निर्भर है।
दूसरा मामला एक लड़की का है जो उनके पास आई और उनसे कहा कि, “मुझे सपना आता है कि मेरी माँ एक चुड़ैल है। और ये होना इतना आम हो चुका है कि अब मैं उस सपने से तंग आ चुकी हूं. और मैं अपनी माँ के बारे में ऐसी भयानक बात स्वीकार नहीं करना चाहती।” तो उसने उससे पूछा, “तुम अपनी माँ के साथ कैसे संबंध में हो ? क्या आप उससे खुश हैं?”
उन्होंने कहा, ''मैं लंबे समय के बाद पैदा हुई इकलौती संतान हूं। मैं उनसे बहुत लाड़-प्यार पाती हूं. और वह मुझे वह सब करने की इजाजत देती है जो मुझे पसंद है। वह मुझसे कुछ नहीं कहती. वह कहती हैं, 'मैं बस यही चाहती हूं कि आप खुश रहें और जो चाहें वैसा करें वही करें। मुझे इस बारे में कुछ नहीं कहना है. कभी-कभी मैं भ्रमित भी हो जाती हूं. वह मुझे कोई मार्गदर्शन नहीं देती और मेरा मार्गदर्शन करने की कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती। ना ही वो मुझसे अपने किसी अनुभव की चर्चा करती हैं. नतीजा यह हुआ कि मैं एक बिगड़ैल इंसान बन गयी हूं.' मैं एक बहुत ही फसादी व्यक्ति बन गयी हूं और मैं असहनीय रूप से गर्म स्वभाव का हो गयी हूं।'' तो निष्कर्ष यह था कि अचेतन आपको सुझाव दे रहा है कि, "मेरे बच्चे, सावधान रहो। तुम डायन बन जाओगी. अगर तुम इस डायन की बात सुनो”।
अब, यह कहने से कि एक सार्वभौमिक सत्ता है, एक सार्वभौमिक चेतना है, एक जागरूकता है जो हमारे अंदर काम कर रही है; आप बस किसी चीज़ को एक नाम दे रहे हैं। यह कुछ स्पष्ट नहीं करता. यह कहना ऐसा है जैसे कि कोई बाजीगर काम कर रहा है या यह कहने जैसा है कि कोई सार्वभौमिक प्राणी है जो आपकी देखभाल कर रहा है, आपका मार्गदर्शन कर रहा है और आपको संतुलन दे रहा है। वे इसे "अंतर्ज्ञान संचालन " (इन्टूशन ड्राइव)और सभी नामों से बुलाते हैं।
अब हम चिकित्सा विज्ञान को देखें; उनका क्या कहना है. जब आप किसी मेडिकल के आदमी के पास जाते हैं और उससे एक सरल प्रश्न पूछते हैं कि, "कृपया मुझे बताएं कि मेरा दिल किस कारण से धड़क रहा है?" मेरी बीमारियों को कौन नियंत्रित कर रहा है [अस्पष्ट]। मेरी श्वसन की देखभाल कौन कर रहा है?” वह बस यही कहेंगे कि "एक प्रणाली है जिसे स्वायत्त तंत्रिका तंत्र के रूप में जाना जाता है जो इस कार्य प्रणाली के लिए जिम्मेदार है"। यह भी उसी विश्वव्यापी परमात्मा को दिया गया दूसरा नाम है।
यह कथन बिल्कुल भी उन सब की निंदा करने के लिए नहीं है और न ही किसी भी तरह से खोजने के उनके प्रयासों को कमतर करने के लिए है। इसके विपरीत, उन्हें जो कुछ भी पता चला है, वे उस स्थान पर पहुंच गए हैं जहां अब उन्हें यह कहना होगा कि कुछ ऐसा है जहाँ तक पहुँच बनाना अभी भी बाकी है। यह अभी भी समझना बाकी है. हमारे शरीर में दो स्वायत्त तंत्रिका तंत्र होते हैं। एक है परानुकाम्पी और दूसरा है अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र।
अब अनुकंपी तंत्रिका तंत्र फिर से दाएं और बाएं भाग में विभाजित हो गया है और परानुकंपी तंत्रिका तंत्र केंद्र में है। जो व्यक्ति दाएं हाथ का है उसका बायां भाग अनुकम्पी पूर्ण कार्य करता है जबकि बाएं हाथ का व्यक्ति का बायां भाग (दाएं होना चाहिए) अनुकम्पी पूर्ण कार्य करता है। अब कोई बिल्कुल शांत रहता है.
अब ये दोनों अनुकम्पी और परानुकाम्पी तंत्रिका तंत्र जिम्मेदार हैं, एक गतिविधि के लिए, दूसरा निष्क्रियता के लिए। एक सिकुड़ता है, दूसरा शिथिल होता है। एक आपको तनाव में डालता है, दूसरा आपको बिल्कुल आराम देता है। अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र ने अब डॉक्टरों के सामने एक बहुत बड़ी, कठिन समस्या खड़ी कर दी है। अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र की अत्यधिक सक्रियता से आपको कैंसर नामक रोग हो जाता है।
जब शरीर में जलन होती है और किसी तरह की सुरक्षा की जरूरत होती है तो वह हिस्सा अधिक सक्रिय होने लगता है और कोशिकाएं बढ़ने लगती हैं। अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र उस हिस्से की सुरक्षा के लिए काम करता है। लेकिन अंततः उस हिस्से में कोशिका की अधिक सक्रियता के कारण घातक परिणाम सामने आते हैं। यह एक साधारण सी चीज़ है जिसे कैंसर के नाम से जाना जाता है।
कलियुग में कैंसर का आगमन अब दुनिया के सभी वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौती है। क्योंकि कोई भी इससे बच नहीं सकता यदि उन्हें पता नहीं है, अब एहसास करें कि इस से मुक्ति मनुष्य की गतिविधि से नहीं अपितु निष्क्रियता से होगी। लेकिन परानुकम्पी के लिए उनका कहना हैं कि परानुकम्पी को नियंत्रित करना मानवीय रूप से संभव नहीं है।
उदाहरण के लिए, आप अधिक मेहनत करके या अधिक दौड़कर अपने हृदय को अधिक तेज़ स्पंदित कर सकते हैं; लेकिन अपने ह्रदय को आप शिथिल नहीं कर सकते। ऐसा करना आपके हाथ में नहीं है. वे कहते हैं कि एक अन्य शक्ति कार्यान्वित है जो हृदय की शांति का ध्यान रखती है। योगशास्त्र, जो इतने वर्षों से कुंडलिनी का वर्णन कर रहा है, वह कुछ और नहीं बल्कि उसमे निहित परानुकम्पी (पैरासिम्पेथेटिक) तंत्रिका तंत्र है।
परानुकम्पी (पैरासिम्पेथेटिक) तंत्रिका तंत्र उस तंत्र की स्थूल अभिव्यक्ति है जो रीढ़ की हड्डी में स्थित है। रीढ़ की हड्डी में| हम इसे कुंडलिनी और चक्र कहते हैं। मार्गदर्शन करने वाले केंद्र; बाहर के केंद्रों और (पलेक्सस) जालों को चक्र के रूप में जाना जाता है। उदाहरण के लिए, आपके हाथ का एक स्थान आपके सिर में भी है। उसी तरह, ये प्लेक्सस जो हमारे अस्तित्व में हैं, अर्थात्, नीचे से आप शुरू कर सकते हैं, पेल्विक प्लेक्सस। फिर आपको (एओटिक पलेक्सस) महाधमनी जाल मिला है, फिर आपको (सोलर पलेक्सस) सौर जाल मिला है, फिर आपको (कार्डियक पलेक्सस) ह्रदय जाल मिला है। फिर आपको मिला है, मैं इसका अंग्रेजी नाम भूल गयी हूं, आपको यहां (सर्वाइकल पलेक्सस) विशुद्धि चक्र मिला है।
फिर हम यहाँ आ गए हैं, आज्ञा चक्र जिसे हम यहाँ कहते हैं। लेकिन यद्यपि योगशास्त्र में हम इसे आज्ञा चक्र कहते हैं; चिकित्सा विज्ञान में आज्ञा चक्र का कोई नाम नहीं है। लेकिन वे स्वीकार करते हैं कि "तीसरी आँख" भी हो सकती है। लेकिन जहां तक चिकित्सा विज्ञान का सवाल है तो यह बहुत ही काल्पनिक बात है। तो आज्ञा चक्र जो वास्तव में ऑप्टिक चियास्मा में है, मस्तिष्क के केंद्र में, जहां दोनों ऑप्टिक तंत्रिकाएं एक दुसरे को पार करती हैं, योगशास्त्र के अनुसार आज्ञा चक्र है। इसे वहां रखा गया है.
और सहस्रार, जब आप मस्तिष्क को खोलेंगे, तो आप पाएंगे कि मस्तिष्क पर पंखुड़ी जैसी डिज़ाइन हैं। यदि आप इसे लंबवत रूप से काटेंगे तो आप पाएंगे कि पंखुड़ियों में पंखुड़ियाँ हैं। और ये डिज़ाइन, चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, नौ सौ बयासी हैं। जबकि योगशास्त्र के अनुसार ये एक हजार हैं।
अब, मेरा अपना ज्ञान वैज्ञानिक नहीं है. मुझे ये कहते हुए बहुत दुख हो रहा है. मेरा ज्ञान व्यक्तिपरक है। वैज्ञानिक ज्ञान वस्तुनिष्ठ है। मैंने इन सभी चक्रों को अपने भीतर देखा है। और यदि आपको मेरे सहज योग के अनुसार आत्मसाक्षात्कार मिलता है तो आप उन सभी को देख भी सकते हैं। और यदि आप अपने अस्तित्व में गहराई से जाएं, तो आप उन सभी को देख सकते हैं। क्योंकि आत्म-साक्षात्कार का अर्थ है, आप स्वयं को और उस शक्ति को जानें जो आपका मार्गदर्शन कर रही है।
अंतिम सहस्रार एक हजार पंखुड़ियों वाला है। मैंने लपटों के रूप में देखा है, एक साथ गुच्छित हजारों लपटें .
बाइबिल में, एक सुंदर वाक्य है, "मैं ज्वाला की लपटों की तरह तुम्हारे सामने प्रकट होऊंगा"। और वास्तव में आप इसे ज्वाला की लपटों के रूप में देखते हैं।
चाहे आप बाइबल पढ़ें या कुरान, आपको कई उदाहरण, कई वाक्य मिलेंगे जिनसे आप देख सकते हैं कि उन सभी में कुंडलिनी का एकीकरण है - और इसका वर्णन किया गया है। एकमात्र परेशानी यह है कि बाइबिल देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित कई लोगों द्वारा लिखी गई थी और उन्होंने देखा भी खण्डों में था। और इस तरह के अलग-अलग अनुभवों के कारण बाइबल में जो ज्ञान है वह बिखर गया है। लेकिन अगर कोई बैठ कर पता लगाने की कोशिश कर सके, तो आप बाइबिल में कुंडलिनी का पूरा विवरण पा सकते हैं।
तो वैज्ञानिक रूप से, जब आप इसके बारे में बात करते हैं, तो यह अब भी यही है। अब वैज्ञानिक तौर पर मैं यह साबित कर सकती हूं कि यह लाउडस्पीकर अमूक-अमूक तरह से काम करता है, कि यह ध्वनि तरंगों को आप तक पहुंचाता है। लेकिन जब मुझे जीवन के बारे में वर्णन करना हो, तो आपको आना होगा दिव्यता के पास, दिव्य प्रेम के पास ।
जरा सोचिए, यह मनुष्य अपनी तमाम वैज्ञानिक खोजों के बावजूद भी जीवन की रचना नहीं कर पाया है। हम एक बीज से एक पौधा नहीं बना सकते। जबकि कोई ऐसा कर रहा है, हर पल करोड़ों-करोड़ों, इतने सारे अद्भुत चमत्कार। और हमने उन्हें हल्के में ले लिया है.
क्या हम कभी सोचते हैं कि एक फूल अचानक फल कैसे बन जाता है? यदि हम एक फूल को वैज्ञानिक दृष्टि से देखें, तो हम कह सकते हैं कि वहाँ पराग है, और वहाँ एक पराग जार है और वे इसे मिलाते हैं और ऐसा होता है। आख़िर कैसे? क्यों? इसे कौन कार्यान्वित करता है? वह कौन सी प्रबल शक्ति है जो कार्य करती है? क्या आप ऐसा कर सकते हैं यदि आप पराग को पराग कार्य के साथ मिलाते हैं तो क्या आप ऐसा कर सकते हैं? तुम नहीं कर सकते।
तो कोई अलौकिक अस्तित्व है, कोई जो आपसे कहीं अधिक शक्तिशाली है, जो इन चीजों को एक खेल की तरह कर रहा है। इसलिए जब आप दिव्य प्रेम पर आते हैं, तो आप जानते हैं कि यह सिर्फ एक नाटक है। कल मैं आपको समझाऊंगी कि मेरा सहज योग दिव्य प्रेम के माध्यम से कैसे काम करता है। और यह कितना सहज है.
लेकिन जब हम एक बीज से एक पौधा भी उत्पन्न नहीं कर पाते, तो हमें भूल जाना चाहिए कि हमने कोई महान कार्य किया है [अस्पष्ट/कार्य]। हम व्यर्थ ही कुछ ऐसा करने का श्रेय ले रहे हैं जो बिल्कुल मृत है। यदि हमारे पास कुछ निर्जीव पत्थर हैं और हम ऐसी कोई एक सुंदर इमारत बना लेते हैं तो हमें लगता है कि हमने बहुत अच्छा काम किया है।
विज्ञान निर्जीव वस्तुओं से तो व्यवहार कर सकता है लेकिन जीवंत से नहीं। जब वे जीव विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान और मनोविज्ञान जैसे जीवन विज्ञानों की बात करते हैं, तो आप जानते हैं कि क्या होता है; वे एक बिंदु पर ठहर जाते हैं। भौतिकी के साथ, आप चीजों को समझाते रह सकते हैं, लेकिन जीवंत के साथ ऐसा संभव नहीं है।
यहां तक कि एक बिंदु से आगे भौतिकी के मामले में भी आप नहीं समझा सकते। वे कहेंगे कि गुरुत्वाकर्षण है जो पृथ्वी को आकर्षित कर रहा है। लेकिन यह गुरुत्व कौन लाया? यह कहां से आया है? यदि गुरुत्वाकर्षण न होता तो हम यहां न होते। यदि महासागर, अटलांटिक महासागर या प्रशांत महासागर, जितनी गहराई उसकी है उससे थोड़ा अधिक गहरा होता; वहां कोई जीवन नहीं होता. ऐसे बहुत से बिंदु हैं जिन्हें वैज्ञानिक उद्धृत कर सकते हैं जिससे पता चलता है कि पूरी सृष्टि बहुत ही संतुलित और खूबसूरती से बनाई गई है।
लेकिन मैं जानती हूँ की यह सवाल आपके मन में घूम रहा होगा कि, “फिर यह सारा दुख क्यों? केवल विज्ञान ही दुख को मिटा सकता है।” यह कर सकता है, आंशिक रूप से, यानी भौतिक रूप से हो सकता है। बहुत आंशिक रूप से. लेकिन मैंने कई शारीरिक रूप से स्वस्थ लोग देखे हैं। वे बहुत दुखी हैं. कुछ "पहलवान" मेरे पास आते हैं और मुझसे कहते हैं, "माताजी, हमें कुछ मानसिक शांति दीजिए। हम आतंरिक प्रसन्नता चाहते हैं”।
तो, विज्ञान ने यही किया है, भौतिक रूप से उन्होंने मदद की है। मानसिक तौर पर भी कुछ मनोवैज्ञानिकों ने जरूर मदद की है. आप इससे इनकार नहीं कर सकते. लेकिन वे आपको केवल कुछ समय के लिए स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। सहज शक्ति सिर्फ स्वास्थ्य नहीं है; यह उससे कहीं ज़्यादा है। उससे कहीं अधिक गतिशील जो इस ब्रह्माण्ड की सम्पूर्ण योजना को कार्यान्वित कर रही है। और अब हम वहां पहुँच गये हैं, जिसे मैं आधुनिक काल कहती हूं. जो मनुष्य के विकास की दूसरी तरफ छलांग लगाने के लिए सबसे उपयुक्त है।
यह हमारे लिए बहार का समय है। निःसंदेह जब फूल खिलने का समय होता है, तो आप साँपों को भी इधर-उधर मंडराते हुए पाते हैं। अतः विपरीत एवं बराबरी की शक्तियां कार्य कर रही हैं। और, सबसे पहले वैज्ञानिक होंगे जो इस संबंध में सकारात्मकता का निर्माण करने में मदद करेंगे, मुझे इस बात का पूरा यकीन है। क्योंकि अमेरिका में जब मैं डॉक्टरों और न्यूरोलॉजिस्ट से बात करती हूं, तो उनमें से कुछ ने इस जगह का दौरा किया। और वे डॉक्टरों का एक सम्मेलन आयोजित करने जा रहे हैं. जिस तरह खुले मन से उन्होंने मेरे वक्तव्य को लिया, उससे मैं आश्चर्यचकित रह गयी।
बेशक, अमेरिका में एक अजीब कानून है कि आप किसी का इलाज नहीं कर सकते। अगर तुम डॉक्टर नहीं हो फिर भी इलाज करोगे तो सलाखों के पीछे डाल दिए जाओगे। लेकिन मुझे कोई इलाज नहीं मालूम. मैं बस लोगों से अपने हाथ मेरी ओर रखने के लिए कहती हूं। वैज्ञानिक दृष्टि से वे यह सिद्ध नहीं कर सकते कि मैंने कोई इलाज किया है। सिवाय इसके कि जब वे रक्त गणना देखते हैं और जब वे एक्स-रे देखते हैं, तो उन्हें पता चलता है कि कैंसर ठीक हो गया है।
लेकिन अन्यथा, वे मुझे नहीं पकड़ सकते। फिर भी मैं वह जोखिम नहीं लेना चाहती थी क्योंकि मेरे पास उतनी विदेशी मुद्रा नहीं थी। लेकिन मुझे लगता है कि ज्ञान एक दिन शायद अमेरिका से आएगा, जो वापस भारत में प्रतिबिंबित होगा। यदि चिकित्सा जगत के लोग [अस्पष्ट/लोग] और मनोवैज्ञानिक हैं, तो मेरे पास कुछ लोग हैं जो मेरे शिष्य हैं जो डॉक्टर होने के साथ-साथ मनोचिकित्सक भी हैं और मेरे बच्चे हैं जिन्हें बहुत लाभ हुआ है।
अगर वे खुले मन से आ सकें. क्योंकि मैं एक मां हूं. मैं यहां किसी भी तरह से उनकी निंदा करने या उनका अपमान करने के लिए नहीं, अपितु उन्हें पूरा, संपूर्ण ज्ञान देने के लिए आयी हूं, जिसकी वे तलाश कर रहे हैं। मेरे पूरे प्यार और समर्पण के साथ। यदि वे इतना साहस जुटा सकें और अपने व्यवसाय के बारे में चिंता न करें, जिसका नुकसान कभी भी [अस्पष्ट] नहीं होगा। क्योंकि, जो सम्पति का सृजन करता है, जो सोंदर्य का सृजन करता है, जो हर तरफ निर्माण करता है खोज़ उसी की है।
फिर आप कोशिश करें समझने की कि ये चीजें जो वैज्ञानिक रूप से आपके लिए इतनी महत्वपूर्ण हैं, अर्थशास्त्र का एक विज्ञान है; कुछ चीजें बहुत महत्वपूर्ण हैं. आपकी प्राथमिकताएँ अचानक बदल जाती हैं। क्योंकि आख़िरकार, आप सभी खोज रहे हैं। मानव जाति सिर्फ आनंद पाने के लिए भटक रही है, काम कर रही है, श्रम कर रही है। यह सब प्रयास लोगों के जीवन में खुशी लाने के लिए है और जब आपको वह आनंद मिलता है, तो आपको खुश करने वाली सभी कृत्रिम चीजें छूट जाती हैं।
कल हम ठीक साढ़े आठ बजे ध्यान करने जा रहे हैं। मैं आप लोगों से अनुरोध करूंगी कि आप आएं और स्वयं देखें क्योंकि मैं वैज्ञानिक रूप से आपको कुंडलिनी की धड़कन दिखा सकती हूं। यदि आपको यह बोध हो गया जैसा कि पुणे के कुछ डॉक्टरों को हुआ है। मैंने उनसे कहा कि, “अब मैं आपको वे केंद्र और चक्र दिखाऊंगी जिनके बारे में हम बात कर रहे हैं। आप आ सकते हैं और उन्हें अपने हाथों से देख सकते हैं”। और वे चकित रह गये. उन्होंने कहा, "हम इसे कैसे देख सकते हैं?" मैंने कहा, "आपके पास मौजूद स्पंदन के माध्यम से [अस्पष्ट/जो आपको दिया गया है]"।
मैं आपसे अनुरोध करूंगी कि आप खुले दिमाग से आएं और खुद देखें। दूसरों की कहानियों पर निर्भर न रहें. मुझे यहां कोई गुरुपद नहीं चाहिए. आप मुझे कुछ नहीं दे सकते, मैं आपको आश्वासन दे सकती हूँ। सिवाय इसके कि तुम मेरे प्रेम को स्वीकार करो जो मेरे अस्तित्व से उमड़ रहा है। बस अगर आप कुछ समय निकाल सकें और स्वयं कुंडलिनी, कुंडलिनी की श्वास को देख सकें। यह कैसे धड़कती [अस्पष्ट/रहती है] और यह कैसे काम करती है, बहुत खूबसूरती से।
और जो गलतियाँ फ्रायड जैसे अत्यंत नासमझ मनोवैज्ञानिकों ने की थीं वही कुछ योगशास्त्री लोगों ने भी की हैं। किताबों में, जो कुछ उनके अनुभव का वर्णन भी हैं उसे सुधारा नहीं जा सकता; सत्य। और उनके द्वारा की गई कुछ गलतियों के कारण, स्वयं कुंडलिनी ने ही साधकों के लिए समस्याएं पैदा कर दी हैं। लेकिन अब तक बम्बई में कम से कम दस हजार लोगों को कुण्डलिनी जागृति प्राप्त हो चुकी होगी। लेकिन मैं एक भी ऐसे व्यक्ति को नहीं जानती हूं, जिसे किसी तरह की परेशानी हुई हो, या नाचना पड़ा हो, या नग्न होना पड़ा हो, या चिल्लाना पड़ा हो। या यह इस को व्यक्त करने, विज्ञापित करने के किसी भी प्रकार के मूर्खतापूर्ण प्रयास किये हों कि आप जागृत हैं [अस्पष्ट/जागृत]। [अस्पष्ट]।[एक छोटा सा वाक्य है जो सुनने योग्य नहीं है।]
हम किसे धोखा दे रहे हैं? जब यह कार्यान्वित होता है, तो यह शांति पूर्वक काम करता है। स्वचालित रूप से अपने भीतर. और सबसे बड़ा [अस्पष्ट] वैज्ञानिक तरीका यह है कि आप स्वयं महसूस करें कि आपको आत्मसाक्षात्कार हो गया है। आप स्वयं अपने अंदर से चैतन्य महसूस करते हैं और आप स्वयं दूसरों की कुंडलिनी को जागृत कर सकते हैं और दूसरों की कुंडलिनी को देख और महसूस कर सकते हैं।
चाहे आप गृहस्थ हों या संन्यासी, ईश्वर को इसमें कोई रुचि नहीं है। [बीस से तीस सेकंड के लिए अस्पष्ट]। बस परमात्मा और उसके कार्य के बारे में सोचो। परमात्मा को इस बात में कोई रुचि नहीं है कि किसी के पास कुछ है। जैसे वे आजकल [मानव] को ऐसे ही नाम देते हैं। [दो और वाक्य हैं, जो स्पष्ट नहीं हैं] इस विषय पर भी, मैं गुरुवार को बोलने जा रही हूं, जहां मैं कामेच्छा का वर्णन करूंगा। कल मैं [अस्पष्ट] सहज योग की व्याख्या करूंगी जिसमे हम परानुकंपी का वर्णन करेंगे। और तीसरे दिन कामेच्छा जो अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र के दाहिनी ओर होती है।
उसके बाद, हमारा एक ध्यान का सत्र होगा। सभी को पधारने हेतु सादर आमंत्रित किया गया है।
माँ के सामने कभी यह महसूस न करना कि तुमने पाप किया है। यह जानकर मेरे हृदय स्थित आत्मा को दुख होता है कि मेरे बच्चे कैसे पाप कर सकते हैं? एक माँ के लिए, आप सबसे प्यारे हैं।
और आप स्वयं भी बहुत सुन्दर और महान हैं। तुम्हें पता ही नहीं की तुम इतने गौरवशाली और प्रेम से इतने सुगंधित हो। एक बार जब आप इसके बारे में जान जाते हैं, तो आप इसके बारे में जागरूक भी हो जाएंगे [अस्पष्ट]।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं सचमुच आपको धन्यवाद देती हूं. और मुझे आशा है कि आप कल और परसों आना सुविधाजनक बनायेंगे।
[तालियां और रिकॉर्डिंग ख़त्म]।