An ocean of illusion

An ocean of illusion 1981-10-15

Talk duration
91'
Category
Public Program
Spoken Language
English

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15 अक्टूबर 1981

Public Program

Reorganized Church of Jesus Christ, Los Angeles (United States)

Talk Language: English | Translation (English to Hindi) - Draft

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी

'माया का सागर'

सार्वजनिक कार्यक्रम, दिवस 1,

पुनर्गठित जीसस क्राइस्ट गिरजाघर,

लॉस एंजिल्स (संयुक्त राज्य अमेरिका)

15-10-1981

कल मैंने आपको बताया था कि हमारे भीतर दो बहुत महत्वपूर्ण शक्तियाँ हैं। पहली शक्ति वह है जिसके द्वारा हम कामना करते हैं, जिसे संस्कृत भाषा में 'इच्छा शक्ति' कहा जाता है और दूसरी शक्ति जिसे 'क्रिया शक्ति', कार्य करने की शक्ति

कहा जाता है। ये दोनों वास्तव में स्थूल शक्तियाँ हैं, जो बाहर बाएँ और दाएँ अनुकंपी तंत्रिका तंत्र के रूप में व्यक्त होती हैं।

केंद्रीय मार्ग को 'सुषुम्ना नाडी' कहा जाता है, जो हमारे उत्थान की नाड़ी है। यह नाड़ी युगों से हमारे विकास का प्रतिनिधित्व करती है। हम कह सकते हैं कि यह नाड़ी हमें अमीबा से मानव के रूप में इस अवस्था तक हमारे विकास के लिए जिम्मेदार है, और जितने केंद्र आप वहां देखते हैं, एक, दो, तीन, चार, पांच, छह और सात - ये सभी हमारे विकास में मील के पत्थर हैं। ये सब हमारे अंदर स्थित हैं। ये सूक्ष्म केंद्र हैं। यह सब वहां हैं और हम इस सुंदर यंत्र से बने हैं। बेशक हमें इसका बोध नहीं है, और हमें यह भी बोध नहीं है, कि हम उन्हें देख नहीं सकते क्योंकि वे सूक्ष्म केंद्र हैं और हम उन्हें अपनी खुली आँखों से नहीं देख सकते। हम इन चक्रों की अभिव्यक्ति को केवल स्थूल में प्लैक्सैज के रूप में बाहर देख सकते हैं।

आज, जैसा कि मैंने आपको कल बताया था, मैं हर एक चक्र के बारे में बताऊंगी, और मैं आपको बताऊंगी, कि ये केंद्र हमारे भीतर किस का प्रतिनिधित्व करते हैं।

हमारे अंदर पहला चक्र हमारी अबोधिता का चक्र है। हमारे निर्माण से पूर्व, ब्रह्मांड के निर्माण से पूर्व अबोधिता को निर्मित किया गया। इस धरती पर अबोधिता सबसे शक्तिशाली शक्ति है।

अबोधिता प्रेम है। अबोधिता ईश्वर है। अबोधिता

ही एकमात्र ऐसी चीज है, जो वास्तव में हमें इस भयानक दुनिया में बनाए रखती है, जिसमें हम पैदा हुए हैं। यह अबोधिता हम पदार्थ में पाते हैं। पदार्थ निर्दोष है। यदि आप पदार्थ को चोट देते हैं, तो वह आपको चोट देगा। यदि आप इसे चोट नहीं देते हैं, तो यह ठीक है। आप पदार्थ के स्वरूप को बदल सकते हैं। उदाहरण के तौर पर यह हॉल आपको कोई कष्ट नहीं पहुंचाएगा। अगर आप हॉल के अंदर है, तो वह आपको छाया देगा। अगर आप चाहें तो आप इसका प्रयोग दूसरों को परेशान या नष्ट करने के लिए कर सकते हैं। आप जिस प्रकार भी इसका उपयोग करना चाहें कर सकते हैं, क्योंकि ये हॉल हम से कुछ नहीं कहता।

इस चक्र पर कार्बन तत्व है, जो हमारे भीतर कार्य करने लगा। हम कह सकते हैं कि कार्बन तत्वों की पूरी प्रणाली के केंद्र में है। वह केंद्र में है, क्योंकि यह एक चतुष्संयोजक (टेट्रावलेंट) तत्व है। जैसा कि आप जानते हैं कार्बन की चार (वैलेंसीज) सयोंजकता होती हैं, और जब कार्बन अस्तित्व में आया तभी जीवन का आरंभ हुआ। इस प्रकार यह चक्र वो चक्र है, जहां हम वास्तव में टेट्रावलेंट बन जाते हैं। इसका मतलब है कि हम एक ऐसा तत्व बन गए हैं, जिससे हम इंसान बन सके, हम जीवित चीजें बन सके। जब कार्बन अस्तित्व में आया, तब जीवित प्राणी भी बनने आरंभ हुए। तो यह चक्र अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह चक्र मानव की उत्क्रांति की अवस्था का प्रतिनिधित्व करता है, जहां हम जीवित प्राणी बन गए। उससे पूर्व हम मृत प्राणी थे। हम पत्थरों जैसे थे या उन वस्तुओं जैसे जो आप आसपास देखते हैं।

उसके बाद मैने कल आप को दूसरे चक्र के बारे में बताया था। फिर हमारे दूसरा चक्र है जो की खोज (सीकिंग) का चक्र है। जब पशु अस्तित्व में आया तो उसने खोजना आरंभ किया। प्रथम उसने भोजन खोजना शुरू किया। उदाहरण के लिए (यूनिसलुलर) एक कोशिका वाला अमीबा जैसा जंतु, सिर्फ भोजन ही खोजता है। वह कुछ और नहीं सिर्फ भोजन ही खोजते हैं, और वहीं से हमारी खोज आरंभ होती है। तो पहली अधिकतम स्थूल खोज थी भोजन, जहां हमने अपने विकास के लिए, अपने पोषण के लिए कुछ खोजना शुरू किया।

तो दूसरी खोज कब आरंभ हुई, जब कुछ पशुओं को ऐसा प्रतीत हुआ, कि वह अपने आकार से बहुत बड़े हैं। वे इधर-उधर नहीं जा सकते थे, और उन्हें इसके बारे में कुछ करना असंभव लगा। अब हम कह सकते हैं, कि इन जानवरों के बनने से पहले ही मछलियाँ खुद जमीन से घिरी हुई थीं, और मछलियों में से एक को ऊपर आना था, जो भविष्य में होने वाला था। इस अराजक स्थिति और भ्रम में, हम अधिक से अधिक खोजने लगे, और वास्तविक खोज परे की है। निश्चित रूप से हमें यह कहना चाहिए, कि खोज का खेल मानव का ही नहीं है, इसमें ईश्वर की लीला भी है।

वह परमात्मा हैं, जो चाहते हैं कि आप खोजें। वह परमात्मा हैं, जो चाहते हैं कि आप अपना आत्म साक्षात्कार प्राप्त करें। आप उनकी आदर्श रचना हैं। मनुष्य वह उच्चतम रचना है, जिसे उन्होंने बनाया है। क्या आप ने गौर किया, कि उन्होंने हजारों साल में अमीबा से, कार्बन से, कितनी खूबसूरती से हमें बनाया है, या कहें कि हाइड्रोजन परमाणु से आप ऐसे बन गए हैं? कोई तो कारण होगा? कोई तो वजह होगी, जो भगवान ने आपको ऐसा बनाया है। यह परमेश्वर की व्यर्थ, उद्देश्यहीन गतिविधि नहीं है। लेकिन ईश्वर का उद्देश्य क्या है? उसने ऐसा क्यों किया? इस विषय में कोई नहीं सोचता।

वैज्ञानिक, निश्चित रूप से ईमानदार होने के नाते, कहते हैं, कि हम इसका पता नहीं लगा सकते हैं, इसलिए इसके बारे में भूल जाइए। जो कुछ भी वे पता नहीं लगा सकते हैं, और तर्क नहीं कर सकते हैं, वे उसकी चर्चा नहीं करते हैं। तो यह देखना होगा, कि कोई कारण है या नहीं, हमारे जीवन का कोई उद्देश्य है, या क्या हम इस धरती पर किसी अन्य जानवर की तरह मरने के लिए आए हैं? क्या हमारी मानव जागरूकता का कोई लाभ नहीं है?

यह प्रश्न हजारों लोगों के मन में उठता रहा है, और इस समय जैसा कि आप जानते हैं, कि बाजार इस विचार से भरे हैं, कि हमें कुछ खोजना है। इसलिए बाजार हर तरह के लोगों से भर गया, जो इसकी मार्केटिंग करना चाहते थे। यह स्वचालित है। हर चीज के विपणक होते हैं। आप को कुछ चाहिए? आप पाएंगे कि बाजार वाले आने लगते हैं, और ऐसा ही हुआ। उन्होंने लोगों की सादगी और भोलेपन का फायदा उठाया, उनका गलत इस्तेमाल किया और उन्हें गुमराह किया। भोले लोग समझ नहीं पा रहे थे, कि इन लोगों द्वारा भगवान को कैसे संगठित किया जा सकता है। क्या वे भगवान के ठेकेदार थे? वरना वे भगवान की बात कैसे कर सकते थे? आपके पास आने वाले व्यक्ति का संकेत और लक्षण क्या है? जो आप के पास आए और कहे की मैं भगवान हूं और आप को मुझ से ये वस्तुएं प्राप्त करनी चाहिएं। इस पर हमने विश्वास कर लिया। वह ऊपरी सतही था।

जैसे एक व्यक्ति के पास अट्ठावन रोल्स रॉयस कारें हैं। वह एक बड़ा आदमी हो सकता है, लेकिन एक संत नहीं हो सकता। संत के पास रोल्स रॉयस कार नहीं होती। अब यह बात लोग देख नहीं पाए। हमारे लिए यह बहुत बड़ी बात थी, कि वह एक बड़ी हवेली में रहता है। संत नहीं। संत को मकान नहीं चाहिए। वह सड़क पर रह सकता है। उसके लिए यह मायने नहीं रखता कि वह हवेली है या गली, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। यह एक साधारण सी बात है, जो लोग एक संत के बारे में नहीं जानते थे और वे इन सब बातों से, मीडिया से और जिस तरह से बाजार में मौजूद लोग तमाशा और सर्कस करते हैं, उससे प्रभावित हो गए। यह पूरी कहानी का सबसे दुखद हिस्सा है, और इसी तरह हमारी खोज को गुमराह कर दिया गया।

आज मैं इस चक्र के बारे में विशेष रूप से कहना चाहूंगी, जिसे हम 'नाभि चक्र' कहते हैं। यह हमारे विकास का केंद्रीय मार्ग है, जहां आप अपनी खोज शुरू करते हैं। अब इसके चारों ओर आप पाएंगे कि माया का सागर है, और माया के इस महासागर को एक देवता द्वारा शासित किया गया था, एक विशेष शक्तिशाली व्यक्तित्व जिसे हम 'दत्तात्रेय' कहते हैं। वे आदिगुरु हैं और उन्होंने कई बार इस धरती पर अवतार लिया है।

क्राइस्ट के समय में, और उससे भी पहले, उन्होंने इब्राहीम, मूसा, सुकरात, लाओ त्ज़े के रूप में अवतार लिया। बाद में उन्होंने मोहम्मद साहब के रूप में अवतार लिया, फिर वही महान सिद्धांत नानक के रूप में अवतरित हुए। फिर वही सिद्धांत अंत में शिरडी के साईनाथ के रूप में अवतरित हुआ। तो इस आदिगुरु का वही महान सिद्धांत अवतरित हुआ है, क्योंकि गुरु के बिना आप इस भ्रम से कैसे दूर होंगे। आप उस वास्तविकता से कैसे रूबरू होंगे, जो आपको महसूस नहीं होती? आपको क्या होना है, कि आपको उस सर्वव्यापी को महसूस करने के लिए अधिक संवेदनशील, अधिक खुला, जागृत और प्रबुद्ध होना होगा?

ये गुरु बार-बार आए और उन्होंने आपसे कहा, कि आपको अपने धर्म का ध्यान रखना चाहिए। धर्म का मतलब कोई भी धर्म नहीं है, जो इन लोगों के नाम पर स्थापित किया जा रहा है, क्योंकि मनुष्य को हर बात में समस्या पैदा करना आता है। वे बड़े विशेषज्ञ हैं। सभी धर्म तत्व में एक ही हैं, और समान हैं। लेकिन जैसे एक ही पेड़ के फूलों को समय-समय पर ले जाया जा सकता है, और जब वे बदसूरत हो जाते हैं, और पूरी तरह से खराब हो जाते हैं, तो लोग दावा कर सकते हैं, कि यह मेरा फूल है, यह मेरा फूल है। हर कोई इस चीज़ का ठेकेदार बन गया है। वास्तव में ये लोग (सभी सदगुरु) पूरे ब्रह्मांड के हैं। वे सार्वभौमिक प्राणी हैं, और वे इस धरती पर हमारे भीतर हमें हमारे धर्म देने के लिए आए थे।

धर्म का अर्थ है वे गुण जो मानवीय है। उदाहरण के लिए, सोने में एक गुण होता है कि वह अविनाशी होता है। कार्बन का एक गुण है कि यह टेट्रावैलेंट है। इसी प्रकार मनुष्य के दस धर्म हैं या हम कह सकते हैं उन में इन दस धर्मो को रखने का गुण है, जिस के वे मनुष्य कहलाते हैं। इन सभी दस विशिष्टताओं का प्रतिनिधित्व इस पृथ्वी पर, इन आदिगुरु के दस अवतारों द्वारा किया जाता है। बहुत सी अन्य आत्माएं हैं जो आईं, जो अनुयाई हैं या हम कह सकते हैं, इस महान शक्ति जिन्हें हम आदिगुरु कहते हैं के अवतरण हैं। ऐसे आदिगुरु की निःसंदेह आवश्यकता होती है, लेकिन ऐसे आदि गुरु में कुछ गुण होने चाहिए। यदि वो गुण नहीं हैं, तो वह हमारा गुरु कैसे होगा? गुरु का अर्थ है एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास गुणों का, धार्मिकता का, पवित्रता का वजन है।

एक व्यक्ति जो धार्मिक नहीं है, जो परजीवी है, जो बुरा जीवन व्यतीत करता है, वह आपका गुरु नहीं हो सकता। इतना ही नहीं, गुरु की विशेषता होती है, कि वह आप को परमात्मा से मिलवाते हैं, परमात्मा से जोड़ते हैं। वह आपको हर तरह की अजीबोगरीब चीजों से नहीं जोड़ता, जो आजकल ये गुरु कर रहे हैं। इस विषय पर मुझे आपको यह बताना है, कि झूठे लोग इसे कैसे कार्यान्वित करते हैं, और वास्तविकता कैसे काम करती है।

अब अगर आप इस के दाएं तरफ देखें, यहां आप की क्रिया शक्ति है। अब वो क्या करते हैं, कि वह आपसे कहते हैं, कि आप एक प्रकार से कूदना शुरू कर दीजिए, या अपने सिर पर खड़े हो जाइए या अपनी जीभ बाहर निकाल लीजिए। ये सब से बदतर है। एक बार एक गुरु था- अब वो यह नहीं करता। उसकी मृत्यु हो चुकी है। लेकिन उसने लोगों से जीभ को आधार से काटने और जीभ को वापस रखने और इस तरह के अन्य काम करने के लिए कहा। मुझे नहीं पता कि उन्होंने इसे क्या कहा, एक अवस्था है "खेचरी।" पर ये लोग कुछ अन्य बेतुकी बातें करने लगे, अपनी आँखों को इस तरह नीचे धकेलना, अपने सिर के बल खड़े होना, एक पैर पर खड़े हो कर, ये सब तरह के टोटके करना।

इस प्रकार आप भगवान के पास नहीं जा सकते। ये इस प्रकार नहीं होता। परमात्मा तक पहुंचने का यह रास्ता नहीं है। वह सहज होता है। यह एक जीवंत क्रिया है। ये किसी भी प्रकार की तरकीबों से, जो लोग आप को बताते हैं, कार्यान्वित नहीं होने वाला। यह करें, वो करें! इस प्रकार ये कार्यन्वित नहीं होने वाला। याद रखें कि यह तभी काम करेगा, जब कुण्डलिनी जागरण की एक सहज घटना होगी जो आपको मिली पवित्र माँ है। वह शुभ माता है, वह पवित्र माता है। वह अपवित्र नहीं है, और आप किसी भी अपवित्र उद्देश्य के लिए उनका उपयोग नहीं कर सकते।

हमने 'होली' यानी पवित्र शब्द का अर्थ खो दिया है। हमने शुभता शब्द का अर्थ खो दिया है। इस आधुनिक काल में, हम नहीं जानते कि धार्मिकता क्या है। ये शब्द सुनने में बहुत खोखले और हास्यास्पद लगते हैं। पर आप को आश्चर्य होगा कि ये हमारे अंदर विद्यमान हैं, भले ही हम इन्हें पसंद करे या नहीं। अगर आपको पवित्रता का आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता, तो आप कुंडलिनी को उठा नहीं सकते। कुंडलिनी एक सहज चीज है। यह उस बीज के समान है, जो धरती माता में अंकुरित होता है। इसी प्रकार जब शुचिता और शुभता की गर्माहट का सामना मनुष्य करता है, सिर्फ तभी कुंडलिनी उठने वाली है।

तो अगर कोई भी गुरु आकर आपसे कहे कि, 'मैं आपको आत्म साक्षात्कार देता हूं आप सिर के बल खड़े हो जाइए।' तो आप उससे कहिए, 'आप सिर के बल खड़े रहिए जब तक आप को आत्म साक्षात्कार प्राप्त नहीं होता।' फिर बहुत सी अन्य बातें हैं, जो वो आप को बताएंगे। वह कहते हैं, कि आप उड़ना आरंभ कर देंगे। अब हमें इन सब बकवास चीजों को समझना है। हम क्यों करना चाहते हैं? आप हवा में क्यों उड़ना चाहते हैं? आप पहले ही हवा में कुछ ज्यादा उड़ रहे हैं।

अभी मैं आकाश मार्ग से आ रही थी। मैंने बहुत सारे हवाई जहाज देखें। मैंने सोचा कि एक दिन ऐसा आ सकता है, जब आपको इन हवाई जहाजों के क्रासिंग की व्यवस्था करने और वहां भी यातायात की व्यवस्था करने का कोई तरीका खोजना पड़े। अब ये सभी विचार कि हम अब उड़ा करेंगे या कोई कहता है, कि हम वे इंसान बन जाते हैं जो शरीर छोड़ देते हैं और ऊपर जाकर वहां से देखते हैं या फिर कोई जो रंग देखता है या प्रभामंडल देखता है। यह चीजें देखना आप वैसे भी कर सकते हैं। देखना महत्वपूर्ण नहीं है।

ऐसे बहुत से लोग हैं जो कहते हैं, कि यह सत्य है। आपको सत्य बनना है। आज जो दूसरी बात आपको समझनी है, कि किसी चीज को देखने से आप कुछ बनते नहीं है। अगर आप कुछ देखते हैं, उदाहरण के तौर पर अगर आप इस रास्ते से आ रहे हैं। आप ने इस गिरजाघर को देखा। परंतु जब हम अंदर आ गए, तो अब हम इसे नहीं देख रहे। जब हमने पर्वत को लांघा हम ने उसे नहीं देखा। जब हम उस से दूर थे, तब हमने उस पर्वत को देखा। तो किसी चीज को देखना उसे प्राप्त करना नहीं है, ऐसा नहीं होता है। अपनी जागरूकता में सघन होने के लिए, अपने केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में आपको यह अनुभव होना चाहिए, कि आप आत्मा बन गए हैं।

कल मैंने आपको आत्मा के बारे में बताया था, और आत्मा के आशीर्वाद क्या हैं, और आप उन्हें कैसे प्राप्त करते हैं। परंतु अगर आपका धर्म ठीक नहीं है। मान लीजिए कि आप दाएं ओर ज्यादा चले गए हैं। यहाँ तक कि बहुत व्यस्त व्यक्ति भी चूहा दौड़ दौड़ रहा है, उसके पास परमात्मा के लिए समय नहीं है उसके पास अपनी आत्मा के लिए समय नहीं है। वो बहुत तेज दौड़ रहा है। आप तेज दौड़ते हैं और जहां आपको पहुंचना है, उस स्थान पर छलांग लगाते हैं। आप को मध्य में होना चाहिए। अत्यधिक कार्रवाई न करना आपको आपके वास्तविक मार्ग पर ले जा सकता है। उदाहरण के लिए अपने व्यावहारिक जीवन में यदि आप एक कार लेते हैं, आप हमेशा हर चीज को केंद्र में रखने का प्रयास करते हैं। इस मायने में आपकी कार एक तरफ के पहियों पर नहीं चल सकती। उसकी दोनों तरफ पहिए होने चाहिए। इसी प्रकार आप कुर्सी पर बैठ नहीं सकते, अगर एक ही तरफ उस में सिर्फ दो पैर लगे हों। गुरुत्वाकर्षण का बाहरी केंद्र मध्य में कार्य करता है। हम अपने सामान्य जीवन में मध्य में रहते हैं। एक पैर ऊपर उठाकर चल नहीं सकते। हमें दोनों पैरों को जमीन पर रखना होगा और दोनों पैरों से चलना होगा। इसी प्रकार अगर आप एक तरफ ही कोई गतिविधि करना चाहते हैं, तो आप असंतुलन का निर्माण करते हैं।

विशेषकर धर्म में ऐसा होता है, इसीलिए आज मैं आपसे बता रही हूं, धर्म में आप के किसी भी अतिवादी व्यवहार की आवश्यकता नहीं है। पागलों की तरह, हे भगवान! हे भगवान! आ जाओ! कहते रहने की जरूरत नहीं है।

अब लोग मंत्र कह रहे हैं। किसी भी तरह के मंत्र वो बताते हैं। एक गुरु है जो तीन सौ पाउंड लेता है और जो मंत्र देता है वह हिंदी में शब्द है 'ठिंगा', जब आप ऐसे दिखाते है (श्री माताजी अपना दाहिना अंगूठा दिखाती हैं) वो ऐसा है। बहुत सारे लोग ऐसा कर रहे हैं। तीन सौ पाउंड का भुगतान कर रहे हैं। आप किसी भारतीय को यह बात बताएंगे, तो वह बहुत हंसेगा। ऐसा कैसे हो सकता है? मराठी भाषा में 'इंगा' का अर्थ है बिच्छू की पूंछ। इस प्रकार से मंत्र नहीं दिया जा सकता। ये गलत विचार है, कि आप इस प्रकार किसी को कोई मंत्र दे सकते हैं। हर चक्र का अलग मंत्र है। हर चक्र की कोई समस्या है, और जब कुंडलिनी उठती है, तो आपको ज्ञात हो जाता है।

उदाहरण के लिए, जब आप श्री कृष्ण के चक्र पर पहुंचते हैं, आपको श्री कृष्ण का नाम लेना होता है। अगर आप आदिगुरु के स्थान पर पहुंचते हैं, तो वहां पर आपको सद्गुरु या आदिगुरु का मंत्र लेना होता है। सद्गुरु का अर्थ है जो गुरु असली है, जो वास्तविक गुरु है। तब आप को उन के नाम लेने होते हैं। परंतु अगर आप किसी एक व्यक्ति का नाम ले रहे हैं- उदाहरण के लिए हम श्री राम का नाम ले रहे हैं। अब श्री राम का चक्र कहां है? आप वहां देख सकते हैं, कि श्रीराम का चक्र हृदय चक्र के दाहिनी ओर है। अगर आप श्री राम का नाम ले रहे हैं, और आपको अभी तक कोई समस्या नहीं है, तो आगे समस्या हो जाएगी। समस्या में पढ़ना यहां आसान है, क्योंकि श्री राम एक देवता हैं। आप बिना किसी (प्रोटोकोल) शिष्टाचार के इस प्रकार उनका नाम नहीं ले सकते। कोई तुक या कारण नहीं है।

उदाहरण के लिए, अगर मैं इस स्थान के गवर्नर का नाम लूं। उनके घर के आगे जाकर उनका नाम लेकर चिल्लाने लगूं, वे लोग मुझे गिरफ्तार कर लेंगे। उसी तरह आप बिना किसी शिष्टाचार के, बिना किसी समझ के श्री राम का नाम लेते हैं, सर्वप्रथम ये चक्र (श्री माताजी कंठ की तरफ उंगली करते हुए) खराब हो जायेगा, क्यों की आप नाम लिए जायेंगे। मतलब आप बेवजह अपनी आवाज का प्रयोग कर रहे हैं। और दायां हृदय चक्र में भी पकड़ आ जायेगी। और ऐसे सारे लोग शारीरिक तौर पर अस्थमा से पीड़ित हो जाएंगे। अगर आपको अस्थमा की समस्या है, तो आप पता कर सकते हैं, कि आपके श्रीराम के चक्र में पकड़ है। आपके पिता के साथ कोई समस्या है या आपके पितृत्व के साथ कोई समस्या है, या आप अपने पिता की कमी अनुभव करते हैं, या के पिता की मृत्यु हो चुकी है, या इसके साथ कोई समस्या है। राम का नाम लेने से ही अस्थमा ठीक हो सकता है, लेकिन अगर आपको अस्थमा है तो नाम एक पार व्यक्ति को लेना है, एक ऐसे व्यक्ति द्वारा जो सशक्त है, जिसके पास प्रोटोकॉल है, जो श्री राम से बात कर सकता है, अर्थात् जो उनसे जुड़ा हुआ है। कोई भी ऐरा गेरा नत्थू खैरा उनका नाम नहीं ले सकता। उसका एक शिष्टाचार है। इसी प्रकार गुरुओं के नाम भी हम बिना प्रोटोकॉल के नहीं ले सकते। हमारे पास प्रोटोकॉल होना चाहिए। कोई भी जो हर समय 'गुरु, गुरु, गुरु, गुरु' रटे जा रहा है, उस पर पूरा चित्त नहीं दे रहा है, ना ही उनको सम्मान दे रहा है। मैंने ऐसे लोगों को देखा है, जो गुरु की शिक्षा के विरुद्ध जाते हैं। उधारण के लिए सभी गुरुओं ने कहा है, कि आप को अपनी चेतना का खयाल रखना है। चेतना उस स्थान पर हैं। चेतना लिवर द्वारा पोषित होती है। वे बहुत चिंतित हैं, कि आप का लीवर सही रहे। जो कुछ भी उन्होंने सिखाया, उन्होंने देखने का प्रयास किया है, की आप का लीवर ठीक रहे और सभी गुरु शराब के खिलाफ रहे हैं। चाहे मूसा को ले लो, चाहे इब्राहीम को ले लो, चाहे तुम नानक को ले लो, चाहे तुम मोहम्मद साहब को ले लो, उन सभी को किसी और चीज से ज्यादा लिवर की चिंता है। किसी ने मुझसे पूछा, ''ईसा मसीह ने शराब की निंदा क्यों नहीं की?'' पर उन्होंने उस का पक्ष भी नहीं लिया। उन्हे कुछ और कार्य करने थे, इसलिए उन्होंने इसके विषय में बात नहीं की। पर उन्होंने कभी शराब नहीं पी। उन काल में वाइन का अर्थ सड़ी हुई शराब नहीं होता था, जैसा कि अब है।

कहते हैं, मोहम्मद साहब के समय धूम्रपान नहीं था, इसलिए उन्होंने कभी भी धूम्रपान पर प्रतिबंध नहीं लगाया। लेकिन उन्होंने कहा कि नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए, जागरूकता के खिलाफ जाने वाली कोई भी चीज नहीं लेनी चाहिए। तो लोगों ने कहा, "ओह, तो धूम्रपान करने में कोई बुराई नहीं है।" फिर गुरु नानक ने जन्म लिया। इसी सिद्धांत ने गुरु नानक के रूप में जन्म लिया और गुरु नानक ने फिर धूम्रपान और शराब दोनों नहीं लेने की बात कही। क्यों? क्योंकि वे मनुष्य की चेतना को ले कर चिंतित थे। यदि आपकी जागरूकता ठीक नहीं है, तो आपको आप को आत्म साक्षात्कार देने का क्या लाभ? आपको इसकी जानकारी पहले से ही नहीं है।

अब ड्रग्स, वही बात। यदि आप ड्रग्स या ऐसा कुछ लेते हैं, तो आप अपनी जागरूकता में नीचे जाते हैं। यदि आप कुछ ड्रग्स लेते हैं तो आप की दाईं ओर यानि पिंगला नाड़ी ज्यादा क्रियाशील हो सकती है, और आपको रंग और चीजें दिखाई दे सकती हैं। लेकिन वह मतिभ्रम है। आप दूसरी तरफ जाते हैं, आप महसूस कर सकते हैं। ओह, आप मर रहे हैं और आप सुप्तचेतन और सामूहिक सुप्तचेतन में जा सकते हैं या आप दाहिनी ओर सामूहिक अग्रचेतन में जा सकते हैं। परंतु ऊपर जाने के लिए आप को मध्य में रहना होगा। आपको सतर्क रहना होगा, और आपकी जागरूकता सामान्य होनी चाहिए।

इसे सामान्य रखने के लिए, इसे संतुलन में रखने के लिए ये लोग सलाह देते हैं, कि आपको ऐसा कुछ भी करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए जो बहुत अधिक हो। अति से बचना चाहिए। लेकिन उसका परिणाम ठीक इसके विपरीत हुआ। सभी कट्टरपंथियों का जन्म इन्हीं शिक्षाओं से हुआ! कल्पना कीजिए की सभी कट्टरपंथियों का जन्म इन्ही शिक्षाओं से हुआ, जो कट्टरता को दूर करने के लिए बनी थीं। वास्तव में यदि कोई कट्टर है, तो उसे पेट के रोग हो जाते हैं। कट्टरता आपको पेट के भयानक रोगों से ग्रसित कर देती है।

हाल ही में हमारे पास ईरान के एक सज्जन आए। वे वहां डॉक्टर हैं और उन्हें कैंसर था। उन्हें मेरे बारे में पता चल गया और वह मुझसे मिलने लंदन आ गए। मैंने उनसे पूछा, "क्या आप मानते हैं कि केवल मोहम्मद साहब ही दुनिया को बचा सकते हैं?'' उन्होंने कहा, हाँ। "फिर मुझे लगता है कि उसे इसे बचा लेना चाहिए था।" नहीं, लेकिन मुझे लगता है कि वही बचा सकते हैं। वह आखिरी थे।' मैंने कहा, "शायद उन्होंने सोचा होगा कि मैं आखिरी हूं, लेकिन वह रहे होंगे, जिस तरह से आप व्यवहार कर रहे हैं, उन्होंने अपना जन्म फिर से लिया होगा।" वह शायद इसे उस अवस्था में नहीं रख सके। मैंने कहा, "क्या आप विश्वास कर सकते हैं कि वह गुरु नानक के रूप में वापस आए?" उन्होंने कहा, "मैं इस पर विश्वास नहीं कर सकता। नहीं मैं विश्वास नहीं करता।" मैंने कहा, "वह वही सिद्धांत थे।" "मैं इस पर विश्वास नहीं कर सकता।" मैंने कहा, "फिर मैं आपकी मदद नहीं कर सकती। यदि आप कट्टर हैं, तो मैं आपकी मदद नहीं कर सकती। इसका इलाज नहीं हो सकता।”

वह घर गए और उनकी हालत बहुत खराब हो गई। उनकी पत्नी काफी समझदार थी। उसने कहा, "इस्लाम ने अब तक आपकी मदद नहीं की है। आप इतने बड़े मुसलमान रहे हैं, नमाज़ वगैरह करते रहे हैं. अभी भी आपका कैंसर ठीक नहीं हो सका है। तो क्यों न माँ की बात मानी जाए? अगर वह कहती हैं मान लो?'' तो वह मेरे पास पास आए और उन्होंने कहा, "ठीक है, मैं सहमत हूं, कि वे नानक थे जो इस धरती पर आए थे," और आप को आश्चर्य होगा कि वह चंगे हो गए। वह उस परेशानी से मुक्त हो गए हैं।

ये सभी कट्टरपंथी हैं। हम अब इसके बारे में जानते हैं। अमरीकियों ने हाल ही में उन पर एक अच्छी नज़र डाली थी, उन्हें मिस्टर खुमैनी नामक एक व्यक्ति से अच्छा झटका लगा था। परन्तु यदि तुम जाकर उससे पूछो तो वह कहेगा, “ओह, मैं तो बस परमेश्वर की ओर से हूँ। मैं भगवान से जुड़ा हुआ हूं। और ये वो थे जिन्होंने मुझे ये आदेश दिए और उन्हीं के आदेशों से मैं ने पूरा किया।” क्योंकि वे कट्टरता से इतने अंधे हैं कि देखना ही नहीं चाहते, और इस तरह की कट्टरता अगर आपके अंदर घुस गई तो आपको भी नहीं दिखेगी। उदाहरण के लिए ईसाई कट्टरपंथी भी वही हैं या हिंदू कट्टरपंथी भी वही हैं। मुझे उनमें कुछ अलग नहीं लगता।

यदि आप किसी ईसाई से यहूदी के बारे में पूछना चाहते हैं, तो आप यहूदियों के बारे में जानेंगे, लेकिन यदि आप यहूदियों के पास जाएंगे, तो वे कहेंगे कि ईसाई सबसे बुरे हैं और यदि आप मुसलमानों के पास जाते हैं, तो वे यहूदियों को कहेंगे कि वे सबसे बुरे हैं, वे शापित लोग हैं। उन सभी को लगता है कि वे सबसे अच्छे हैं, चुने हुए और बाकी बर्बाद होने वाले हैं। मैं आपको बता दूं कि सभी कट्टरपंथियों का अंत होने वाला है, सभी का! और मुझे लगता है कि नरक के उस क्षेत्र में वे एक-दूसरे से सहमत हो सकते हैं लेकिन यह समझने में बहुत देर हो सकती है, कि भगवान ने कट्टरपंथियों को नहीं बनाया है। उन्होंने नहीं बनाया।

आप संपूर्ण के अंग प्रत्यंग हैं। मान लीजिए कि यह उंगली कहती है कि मैं अकेली ठीक हूं, तो यह पूरे शरीर को परेशान करने वाली है। यह ऐसी बकवास है! इसे वहां रखने से बेहतर है कि इसे काट दिया जाए। मालिगनेंसी जो हम में काम करती है, वही है आप बस अपने दम पर हैं। ''क्या गलत है? मैं अपने दम पर हूं।" कोई भी कोशिका जो इस तरह बन जाती है वह वास्तव में मालिगनेंट है, क्योंकि उसका संपूर्ण से कोई संबंध नहीं है। इसका पूरी चीज़ के समन्वय और सहयोग से कोई संबंध नहीं है। यह अपने दम पर है। क्या गलत है? गलत यह है कि आप चलन से बाहर हो रहे हैं, और बहुत जल्द आप एक ऐसी जगह पहुंचेंगे जिसे नर्क कहा जाता है। और फिर आप पूछेंगे, "ओह, मुझे कभी नहीं पता था!'' आप सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। आप सभी एक सामूहिक अस्तित्व के अभिन्न अंग हैं, जिसे आपको बस महसूस करना है और समझना है कि आप वह बन गए हैं। जब तक यह [माइक्रोफोन] मुख्य स्त्रोत से नहीं जुड़ा है, यह काम नहीं करता है। एक बार जब यह मुख्य से जुड़ जाता है तो यह काम करता है।

उसी तरह जब तक आप मुख्य से जुड़े नहीं होते तब तक आप यह नहीं जान सकते कि आप एक सामूहिक प्राणी हैं। इससे पहले [अस्पष्ट - कि, जब उन्होंने इन] बड़े संगठनों का गठन किया कि आप सभी भाई-बहन हैं, और उस गठन के ठीक एक महीने बाद आप पाते हैं कि लोग एक-दूसरे का गला काट रहे हैं। क्यों? क्योंकि वे वास्तव में भाई-बहन नहीं हैं। उन्होंने इसे महसूस नहीं किया है। जब आप बन जाते हैं, तो आप खुद को रोक ही नहीं पाते।

जैसे लोग कहते हैं, कि माँ आप इतने लोगों की मदद करती हैं, आप उनके लिए इतना कुछ करती हैं। आप उनका इलाज क्यों करती हैं? मैंने कहा, "मैं किसका इलाज करूं? दूसरा कौन है? अगर इस उंगली में दर्द हो रहा है तो मुझे इसे रगड़ कर निकालना होगा। ये मेरा ही अंग प्रत्यंग है।'' यदि दूसरा नहीं है तो आप केवल दूसरे व्यक्ति की मदद करें क्योंकि वह आपका अभिन्न अंग है। अगर कोई डूब रहा है और आप उसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि आप के अंदर कुछ सही है। आप ऐसा इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि आप उस व्यक्ति की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं बल्कि आपके भीतर कुछ मर रहा है और आप उस व्यक्ति को बचाना चाहते हैं। यही वो है और इस सामूहिकता को आप केवल तभी महसूस कर सकते हैं, जब आप सबसे पहले संतुलन में हों। जो लोग अपने संतुलन से भटक जाते हैं, उनका आत्म साक्षात्कार प्राप्त होना बहुत कठिन होता है। यह धर्म में भी आंदोलन का एक पक्ष है जब वे भगवान की तलाश करते हैं, जब वे अपने आत्म साक्षात्कार की तलाश करते हैं।

अब लोगों को विश्वास नहीं होता कि इसके लिए आप कोई प्रयास नहीं कर सकते। किसी कार्रवाई की आवश्यकता नहीं है। अब पेड़ों को देखें। फूलों को देखो। अनायास कैसे फल बन जाते हैं। वृक्षों को देखो, कैसे वे पत्तियों को सूर्य की ओर मोड़ते हैं, कैसे वे उनमें अपना क्लोरोफिल स्थापित कर लेते हैं, कैसे यह अनायास हो जाता है, कैसे वे समझ जाते हैं। हम सोचते हैं कि किसी तरह का प्रयास करने से हम कुछ ऊंचा हो जाएंगे, यह बिल्कुल बेतुका विचार है। वैसे भी आपने इंसान बनने के लिए कुछ नहीं किया। आप ने कुछ भी नहीं किया। आप बिना प्रयास से मनुष्य बने हैं और यदि आपको आगे बढ़ना है, तो इसे बिना प्रयास के ही करना होगा। हर महत्वपूर्ण चीज हमेशा सहज होती है। अगर आपको सांस लेनी है और सांस लेने के लिए अगर आपको पुस्तकालयों में जाना है और किसी गुरु के पास जाना है और उन्हें कुछ पैसे देने हैं, तो कितने लोग जीवित रहेंगे? यह इतना महत्वपूर्ण है कि इसे होना ही है। इस विकास और अब तक के विकास में केवल इतना ही अंतर है, कि आप मुक्त होने के कारण इसे अपनी जागरूकता में महसूस करने जा रहे हैं।

इससे पहले आपने इसे अपनी जागरूकता में कभी महसूस नहीं किया। केवल इस समय आप इसे अपनी जागरूकता में महसूस करने जा रहे हैं, कि आप दूसरे व्यक्ति बन गए हैं, कि एक कोकून तितली बन गया है, कि अंडा पक्षी बन गया है। आप इसे अपने भीतर महसूस कर सकते हैं कि यह हो रहा है, आप इसे अपने भीतर पूरी तरह से देख सकते हैं और आप इसके बारे में जानते हैं कि यह मेरे साथ हुआ है। यह आपके भीतर लंबे समय से रखा गया आशीर्वाद है और इसीलिए यह सहज है, जिसका अर्थ है आपके साथ जन्म लेना।

लेकिन आज यह सहज योग एक महायोग बन गया है। यह एक महान योग बन गया है, क्योंकि इसे सामूहिक तौर पर कार्यान्वित किया जा सकता है, जिससे अनेक लोगों को आत्मसाक्षात्कार मिल सकता है। जैसे बहार के खिलने के समय में, बहुत से फूल फल बन सकते हैं। इसी प्रकार बहुत से लोगों को आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो सकता है इस समय जब यह इतना महत्वपूर्ण समय है, यह 'न्याय का समय' है जो शुरू हो गया है। आप खुद को कैसे परखेंगे? परमेश्वर आपका न्याय कैसे करेगा? क्या वह आप से किसी प्रकार का भारोत्तोलन करवाएंगे या मानवीय तरीके अपनाएंगे, जिसे हम किसी व्यक्ति की क्षमताओं का न्याय करने के लिए खेलते हैं!

नहीं! सर्वप्रथम कुंडलिनी उठेगी। जब कुंडलिनी उठती है आप को अपनी उंगलियों पर चेतना आने लगती है। आप परमात्मा की सर्वव्यापी शक्ति को अपनी उंगलियों पर अनुभव करने लगते हैं, क्योंकि आप के सूक्ष्म तंत्र के अंदर के जो चक्र हैं वे जाग्रत हो जाते हैं। आप इसे महसूस करना शुरू करते हैं, और उस भावना से आपको वह चैतन्यमयी चेतना मिलती है, जिसके द्वारा आप ये अंतर जान जाते हैं कि आपके साथ क्या समस्या है, और आप ये भी जान जाते हैं कि दूसरों के साथ क्या समस्या है।

तो आप खुद का आकलन करते हैं, आप खुद को सुधारते हैं। आप खुद को सुधारने का तरीका जानते हैं। आप बेहतर और बेहतर महसूस करते हैं और फिर एक बार जब आप ठीक हो जाते हैं, तो आप फिर खुद का आकलन करते हैं। ईश्वर को न्याय करने की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन आपके भीतर का ईश्वर, आपकी अपनी आत्मा आपका न्याय करती है। जब कुंडलिनी उठती है तो वह ब्रह्मरंध्र क्षेत्र को छूती है, जहां वह भेदन करती है। आप पहले कभी-कभी धड़कते महसूस कर सकते हैं, और फिर ठंडी हवा आने लगती है। वहां आत्मा है। आत्मा का आसन, यद्यपि वह मनुष्यों के हृदय में निवास करता है, आत्मा का आसन आपके सिर के ऊपर है, और जब वहां भेदन होता है, तो आपको यह विवेक प्राप्त होने लगता है और आप को समझ प्राप्त होने लगती है।

अब अगर मैं आप से कहूं कि ऐसा मत करो, इसीलिए ये दस कमांडमेंट्स हैं, कि यह मत करो, वह मत करो। लेकिन इंसान ऐसे होते हैं अगर आप उन्हें कहें कि ऐसा मत करो, तो वे ऐसा सौ बार करेंगे। उनके साथ कुछ खराबी है मुझे लगता है कि मस्तिष्क कभी-कभी उल्टा होता है। यदि आप उनसे कहते हैं कि कृपया ऐसा न करें, यहां तक ​​कि एक बच्चे को भी, यदि आप उससे कहते हैं कि अपना हाथ मोमबत्ती में मत डालो, तो भी वह उसे जला देगा। वह इतना अहं उन्मुख है, कि उसे अपना हाथ जलाकर ही सीखना है। उसे अपने अहंकार के अनुभव के माध्यम से ही सब कुछ सीखना है। जब तक वह अच्छी तरह से पिट नहीं जाता, तब तक वह नहीं सुनेगा।

इसलिए सबसे अच्छी बात, जो मैंने सोची वह थी, वो है आत्म साक्षात्कार देना। एक बार आपको आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो जाए, एक बार आपकी कार शुरू हो जाए, तो आपको पता चल जाएगा कि समस्या कहां है। यदि आप किसी को बताते हैं, कि यह समस्या है तो वह आप पर पलटवार कर सकता है। ये आसन नहीं है। यदि आप किसी से कहते हैं, आप में बहुत अधिक अहंकार है, तो वह आएगा और आपको आ कर पीट देगा। आपको सूली पर चढ़ाया जा सकता है, जो कि ईसा मसीह के साथ हुआ। इंसानों के साथ व्यवहार करना आसान नहीं है। वे बिलकुल नीचे बैठे हुए एक बड़े साँप की तरह हैं। आप उन्हें कुछ बताते हैं, और वे बस आप पर आक्रमण कर देता है। यदि आप उन्हें मंत्रमुग्ध करते हैं, यदि आप उनके अहंकार को दुलारते हैं, "अरे तुम महान लोग हो, केवल अपना धन मुझे दे दो और तुम योगी हो जाओगे, तुम सिद्ध हो जाओगे,'' तो वे बुरा नहीं मानते। यह ठीक है, बहुत आसान है।

आप माताजी निर्मला देवी को कुछ धन दे दें। ठीक है। उनके पास सारा पैसा है। कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारे पास सिद्ध हैं, हम सिद्ध हैं।

''मेरा नाम फलाना आनंद, ठिकाना आनंद, ढोंगा आनंद है।” ये सब नाम तुम धारण करोगे। तब तुम जो वस्त्र पहिनकर बड़े गर्व से चलोगे, ''ओह, हम योगी हैं।'' बिल्कुल मूर्ख। आप नहीं हैं लेकिन आप इसमें विश्वास करते हैं, क्योंकि इस में आपको विकसित होने की जरूरत नहीं है, बहुत आसान है। बहुत सरल।

परंतु आप साधक हैं और आप तब तक खोजी रहेंगे, जब तक आप उसे पा नहीं लेते। बेहतर है कि आप इसे खोज लें और इसे स्वीकार कर लें। क्योंकि मैंने कहा कि मत करो, वहां मत जाओ, तुम यह कर रहे हो। ठीक है, तो माँ की शैली अलग है। ठीक है! तो कुंडलिनी जागरण करो! सबसे पहले सब की कुंडलिनी जगाओ।

हमारे यहां एक डॉक्टर रुस्तम वीरा थे, और वह एक बहुत अच्छे डॉक्टर हैं, जिन्हे आत्म साक्षात्कार प्राप्त हुआ है। इसके बाद मैंने उनसे कहा की अब आप शराब नहीं पियेंगे, और वे पीना पूरी तरह भूल गए। मैंने उन्हें पहले कभी नहीं बताया था। ''आप पीते हैं? ठीक है, साथ चलिए, कोई बात नहीं। तुम जो भी करो, साथ आओ।'' उसने कहा, "माँ, मुझे पीने का कभी मन नहीं हुआ।" लेकिन कुछ समय बाद एक बार वे जर्मनी गए, और उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें एक तरह की शराब पसंद है, और उन्होंने कहा कि अब देखते हैं क्या होता है। क्योंकि वह इसे बहुत पसंद करते था, वह पीने गए और उनके पेट में भयानक दर्द हुआ, और उन्हें उल्टी हो गई और पूरी चीज में एक सड़े हुए कॉर्क की तरह गंध आ रही थी। उन्होंने कहा, ''मानो मेरे मुंह से कोई कॉर्क निकल रहा हो, मुझे बहुत भयानक लगा और उसके बाद मैंने कहा कि मैंने कहा बस बहुत हुआ।” और उनकी सेहत में सुधार हुआ, और उनके पैसे में सुधार हुआ, क्योंकि वह इन बेतुकी चीजों पर और पैसा बर्बाद नहीं कर रहे थे। उसके घर में संगीत के अच्छे-अच्छे उपकरण थे, और वह हर तरह से अपने जीवन को बेहतर बनाने लगे। वह इतना सुंदर और इतना अच्छा दिखने लगे।

अब बात यह है, कि अगर मैं कहूं कि मत पीओ, तो सारे मदिरालय वाले आकर मुझे जोर से मारेंगे। लेकिन मैं ऐसा नहीं कहती। यह कार्यान्वित होने लगता है, क्योंकि एक बार जब आप खुद की सुंदरता के अमृत को खोज लेते हैं, आप इसको नहीं करते। आप शराब पीते हैं, क्योंकि आप ऊब चुके हैं। आप धूम्रपान करते हैं, क्योंकि आप खुद से ऊब चुके हैं। आप बस ऊब जाते हैं। यदि आप कैद हैं, तो आप इतने दुखी क्यों हैं? आप बस अपने आप का सामना कर रहे हैं। यह सबसे अच्छी चीज है, जो किसी व्यक्ति के साथ हो सकती है वह कैद है, क्योंकि आप सिर्फ खुद को देख रहे हैं, और आप स्वयं सबसे खूबसूरत चीज है। लेकिन लोग दुखी हैं, क्योंकि वे स्वयं का सामना नहीं कर सकते। वे भाग जाना चाहते हैं। पांच मिनट के लिए भी लोग एक साथ बैठकर एक दूसरे से बात नहीं करेंगे। वे आपको कॉकटेल के लिए बुलाते हैं। तो या कोई टेलीविजन चल रहा हो या कोई किताब हो जिसे दो लोग पढ़ रहे होंगे। वे पांच मिनट भी बात नहीं कर सकते। कोई तालमेल नहीं है।

लेकिन आत्म साक्षात्कार के पश्चात आप अपने आप को इतना आराम में और बहुत खुश महसूस करते हैं। आप अपने आप में इतना आनंद लेते हैं, कि आप इन बातों को भूल जाते हैं।

अब हमारे यहां लोग हैं, उनमें से कुछ पूरी तरह से मादक पदार्थों का सेवन करने वाले और रसायनज्ञ रहे हैं, कुछ शराबी और अन्य कुछ ऐसे ही लोग रहे हैं। पर सहज योग इतनी अच्छी तरह से कार्यान्वित हुआ है, कि वे लोग बहुत ही सौंदर्यपूर्ण हो गए हैं। उनके पास उनकी आत्मा का यह अमृत है, और वे इसे दूसरों को दे रहे हैं।

बाईं पक्ष में असंतुलन - क्योंकि कल मैंने आपको भौतिक पक्ष और भावनात्मक पक्ष के बारे में बताया था, लेकिन आज मैं आपको धार्मिक पक्ष के बारे में बता रही हूं। हम क्या करते हैं, कि हम आत्माओं के पास जाने में विश्वास करते हैं, सभी आत्माओं के लिए, प्लैंशेट के पास और अन्य तरीकों से। मुझे बताया गया कि लॉस एंजिलिस में जादू टोना होता है, और वहां हर तरह की निरर्थक बातें हो रही हैं।

आप इसे किस लिए करते हैं? उन्होंने कहा कि, ''आप देखिए मेरे पिता की मृत्यु हो गई, और मैं उनसे बहुत प्यार करता था, और अब उनसे मिलना चाहता हूं।'' ''उन्हे मरने दो। बेचारे अब मर गए, तुमसे मुक्त हो गए हैं। उन्हे उनकी स्वतंत्रता मिलने दो। आप उनकी आत्मा को क्यों सता रहे हैं?” "ओह, मैं उससे बात करना चाहता था," और फिर आपको जो मिलता है वह अस्थमा है। उसके परिणामस्वरूप आप के पिता को पीड़ा होती है, क्योंकि उन्हें अब मरना है, उन्हें दूसरी दुनिया में होना है, और आप को इसका सामना करना है क्योंकि आप तो जीवित हैं। आप वर्तमान में हैं। आप उन लोगों को क्यों बुलाना चाहते हैं जो अब जा चुके हैं और समाप्त हो चुके हैं? लेकिन एक बार जब आप ये सब करना शुरू कर देते हैं, तो सम्मोहन क्रिया शुरू हो जाता है, ईएसपी शुरू हो जाता है, यह सब बकवास शुरू हो जाती है, और आप इसके गुलाम बन जाते हैं, और ये चीजें बहुत खतरनाक हो सकती हैं।

अंग्रेजी भाषा इतनी अजीब भाषा है कि आपको 'स्पिरिट' शब्द मिला है, भले ही आपको कहना पड़े कि शराब आत्मा है। यहां तक ​​​​कि जो आत्मा मर चुकी एक आत्मा है, और आपकी आत्मा जो आपके हृदय में है, वो भी आत्मा है। और पवित्र आत्मा भी एक आत्मा है। इसलिए मुझे नहीं पता कि आप किस आत्मा की पूजा कर रहे हैं, मैं उस आत्मा की बात कर रही हूं जो आपके हृदय में आत्मा है। और हम सुबह से शाम तक सभी प्रकार की आत्माओं के पास जाते हैं, जो बाईं ओर जा रही हैं।

अब आप चकित होंगे कि शारीरिक रूप से इसका परिणाम यह है - शारीरिक रूप से, अन्य चीजों को छोड़ दें - मल्टीपल स्केलेरोसिस रोग उनमें से एक है। हाल ही में मैंने मल्टीपल स्केलेरोसिस के एक मरीज को ठीक किया। वह इन गुरुओं में से एक के पास गया है, जो इस देश में बहुत लोकप्रिय है। उन्हें अब मल्टीपल स्केलेरोसिस हो गया है। एक और चीज जो आपको मिलती है वह है ब्लड कैंसर। अधिकांश कैंसर उस तरफ से आते हैं, और ये सब चीजें आपके साथ हो सकती हैं, यदि आप बाईं ओर लिप्त हैं। अब तो डाक्टरों ने भी यह सिद्ध कर दिया है, कि कुछ प्रकार के प्रोटीन होते हैं, जो अज्ञात स्थान से हम पर आक्रमण करते हैं, जो हमारे निर्माण के बाद से हमारे भीतर निर्मित है, जिसका अर्थ है हमारा बायां भाग, सामूहिक सुप्तचेतन पक्ष।

इसे स्वीकार कर लिया गया है, लेकिन निस्संदेह, वे इसे अज्ञात कहते हैं, क्योंकि वे दृष्टा नहीं हैं। ये लोग उस अवस्था तक नहीं पहुँचे हैं, कि वे जान सकें कि ये आत्माएँ बाईं ओर से आ रही हैं। मैं वास्तव में उन्हें ऐसा करते और उन पर हमला होते, और उनसे बाहर निकलते हुए देखती हूं, और वे हमारे भीतर हैं। किसी भी समय वे अचानक उत्पन्न हो सकते हैं, और शारीरिक स्तर पर कैंसर जैसी किसी भी चीज को उत्प्रेरित कर सकते हैं। तब आपको मिर्गी हो सकती है, आप को सिज़ोफ्रेनिया हो सकता है। आप इन सभी प्रकार की मानसिक समस्याओं, पागलपन से ग्रस्त हो सकते हैं। ये सारी समस्याएं आप को बाईं ओर से आती हैं।

दाहिनी ओर की गति से आप अत्यधिक अहंकारी बन सकते हैं। किसी वार्तालाप या चर्चा के लिए आप बिल्कुल बेकार हो सकते हैं। आपमें अनुपात की भावना का अभाव होता है और आप हिटलर भी बन सकते हैं। हिटलर दाएं पक्ष के इस विकास के प्रतीकों में से एक है। जो लोग आपको अपने अहंकार में धकेलते हैं, और आपको बहुत अधिक लाड़ प्यार करते हैं, उनसे बहुत सावधान रहें क्योंकि वे तुम्हें दाहिनी ओर धकेल रहे हैं, तुम्हारे धर्म में भी, तुम्हारे उत्थान में, तुम्हारी खोज में, और जो तुम्हें बाईं ओर धकेल रहे हैं, वे भी वही कर रहे हैं।

अब सीधी सी बात ये है, कि जो लोग पैसे के पीछे भागते हैं उन्हें खुद ही दिक्कत होती है। हमेशा धन-उन्मुख लोग होते हैं। मुझे नहीं पता कि उन्हें क्या कहा जाए। वे बिल्कुल अटके हुए लोग हैं, क्योंकि धन उन्मुखता हमारे पास आती है, क्योंकि हम धन को किसी भी चीज़ से ज्यादा महत्व देते हैं। धन किसी भी तरह से आनंद का स्रोत नहीं है। यहां तक ​​कि जिनके पास बहुत पैसा है, अगर आप जाकर उन्हें देखें, तो वे सबसे दुखी लोग हैं। इसके विपरीत, जिस आदमी के पास इतना पैसा नहीं है, जिसके पास कोई समस्या नहीं है, वह खुश है।

उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि मैं इस मशीन की मालिक हूं। मेरी स्तिथि क्या होती है - मुझे इसकी चिंता है, इसकी सफाई की, इसके बीमा की, मुझे नहीं पता कि आयकर क्या है, इसके साथ ये सब चीजें आती हैं। यदि मेरे पास यह नहीं है, अगर इसका स्वामित्व श्रीमान ह्यूगो के पास है, तो मेरा तो सिरदर्द दूर हो गया। किसी चीज का मालिक होना मतलब सिरदर्द है।

आज मैं कुछ पैसे नकद करना चाहती था। यह आपके जैसे विकसित देश का अनुभव था और लॉस एंजिल्स में, मैं चकित थी। हमें कहीं भी पैसा नहीं मिल सका। हमें केवल दो हजार डॉलर चाहिए थे। मुझे लोगों को नकद पैसे देने थे, और उन्होंने कहा कि हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं। उन्होंने हमें मुख्य बैंक जाने के लिए कहा, और यह ऐसा था जैसे हम टकसाल में गए हों। साढ़े नौ बजे से करीब एक बजे तक पैसा नहीं मिल सका। उन्होंने मुझसे इस पर हस्ताक्षर करवाए। उस पर हस्ताक्षर किए, इस पर हस्ताक्षर किए। मैंने कहा, "क्या हो रहा है? आप लोग संपन्न लोग माने जाते हैं। भरोसा नहीं है! कहीं बंदूक लिए लोग खड़े हैं। क्या हो रहा है जब आपके पास इतना पैसा है तो मुझे समझ नहीं आ रहा है। आपके पास इतना कैसे हो सकता है?''

लेकिन भारत में कोई समस्या नहीं है। मैं नीलाम्बर नामक स्थान पर थी। मैंने वारेन से कहा, “मैं नहीं जा रही हूँ। तुम मेरा पासपोर्ट ले लो, और उन्हें यह चीज दे दो जिस पर मैंने हस्ताक्षर किए हैं।' इतना ही नहीं, उन्होंने पैसे भेजे, उन्होंने सुना कि मैं यहाँ हूँ, वे बैंक से मेरे दर्शन करने और आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने आए। गरीब देशों में लोग भरोसा करते हैं, वे सिर्फ भरोसा करते हैं। यहां आओ तो, तुम्हारे पास वीजा होना चाहिए और यह बात। भारत में अगर आप आते हैं, तो किसी को परेशानी नहीं होगी। आपको भरोसा करना होगा। अगर अमीरी का मतलब अविश्वास है?

लंदन में लोग अपने घर नहीं खोलते। इनके घर में चूहा भी नहीं घुसता। सुबह से शाम तक पत्नियां बिचारी सफाई करती हैं। मैंने उन्हें सारी दरवाजों की घुंडी साफ करते, बगीचे की सफाई करते, इन सब चीजों को साफ करते देखा है। मैंने एक चूहे को भी उनके घर में घुसते नहीं देखा। वो बहुत जरा सा दरवाजा खोलते हैं। मैंने किसी को उनके घर में घुसते नहीं देखा। केवल पति-पत्नी आते हैं, सभी भयभीत होते हैं, एक-दूसरे को देखते हैं, इस तरह अपना पर्स पकड़ते हैं। यह सबसे आश्चर्यजनक है। आप एक आजाद देश के लोग हैं। आप इन लोगों को कहां से लाए?

भारत में कोई सवाल नहीं है। हम अपने सभी गहनों के साथ चलते हैं। कोई हमारे साथ ऐसा नहीं करता। केवल एक महिला की हत्या तब हुई, जब उसने बहुत सारे गहने पहने हुए थे। सुबह-सुबह, वह प्रथम श्रेणी में अकेली ट्रेन से जा रही थी। वह एक शादी में जा रही थी, और कुछ आदमियों ने उसकी हत्या कर दी और सारे गहने ले गए। यह बहुत अधिक प्रलोभन था। और वह जगह थी और वह समय था। हे भगवान! इसके लिए पूरा विश्वविद्यालय हड़ताल पर चला गया था। ऐसा हंगामा खड़ा हो गया था। मैंने कहा कि लंदन में हर तीसरे दिन डकैती होती है। यह कुछ भी नहीं है। लंदन में यह इतना आम है, और अब मुझे बताया गया है कि यहां बैंक में भी पैसा नहीं मिल रहा है। सामान्य दो हजार डॉलर लेने के लिए मुझे तीन घंटे के लिए जाना पड़ा। क्या आप विश्वास कर सकते हैं? और क्या ये आजादी का संकेत है? क्या ये संपन्नता का संकेत है?

हो क्या रहा है, कि इस पैसे के बढ़ने से लोग असुरक्षित हैं। वे अपने पैसे के साथ रहते हैं। पैसा नहीं है तो क्या फर्क पड़ता है? कोई फर्क नहीं पड़ता। यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है। लेकिन जिस तरह से लोग पैसे के पीछे हर समय एक-एक पाई गिनते रहते हैं, वे इस अवसर को खो देते हैं। उनका विशुद्धि चक्र खराब हो जाता है लेकिन सबसे खराब उनका नाभि चक्र हो जाता है। आपको बाईं नाभी की समस्या हो जाती है। ऐसे लोगों को ब्लड कैंसर भी हो सकता है, और ऐसे लोगों में गजब की फुर्ती और इतनी उन्मत्तता होती है। अगर वे कहीं पैसा देखते हैं, तो बिल्कुल पागल हो जाते हैं, जैसे कि पैसा किसी प्रकार की आत्मा या भूत जैसा है जिसे उन्होंने देखा है। पैसे की कोई भी बात हो, वे उसमें कूद पड़ते हैं। मैं ऐसे व्यक्तित्वों को नहीं समझ सकती। वे सबसे असामान्य, बेतुके लोग हैं। अगर पैसा आप पर राज कर सकता है तो आप कैसे इंसान हैं? तो आप पैसे के गुलाम हैं। आप स्वतंत्रता और आजादी की बात करते हैं। आपकी स्वतंत्रता कहां है? यहां पैसा आप पर राज कर रहा है। आप की खोज में यही होता है, जब आप किसी धन आसक्त के पास आओगे, तो वह कहेगा, "तुम मुझे धन का भुगतान कर सकते हो और तुम भगवान को खरीद सकते हो।" आप बहुत खुश महसूस करते हैं। "आह, बहुत अच्छा विचार। हम भगवान को भी खरीद सकते हैं।” क्या आप भगवान को खरीद सकते हैं? इस तरह ये लोग उस अहंकार का फायदा उठाते हैं। तुम सोचते हो कि हमारे पास पैसा है, और हम भगवान को भी खरीद सकते हैं। ईसा मसीह ने कहा है, कि धनी व्यक्ति ईश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता। सूई के छेद से ऊँट भी निकल जाता है, परन्तु धनी मनुष्य परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता, क्योंकि वह अटका हुआ है। वह इस पैसे से पूरी तरह से मुग्ध है।

अब जब लोग समझ जाते हैं, कि यह सब कबाड़ है और यह सब बकवास है, तो उन्हें इससे बाहर निकल जाना चाहिए। तो आप क्या करते है? आप कहते हैं कि इन चीजों को छोड़ दें, आइए हम एक और जवाबी सभ्यता शुरू करें। लेकिन आप इससे बाहर नहीं हैं। बस यह एक विश्वास है। आप इससे बाहर नहीं हैं। आपको लगता है कि आपने यह किया है, लेकिन आपने ऐसा नहीं किया है। आप इससे कैसे बाहर निकल सकते हैं? केवल इस केंद्र के जागरण के माध्यम से, जहां एक देवता है जो पिता है, जो संरक्षक पहलू है, जो इस क्षेत्र में विद्यमान है। जब तक आप यह विश्वास नहीं करते, कि कोई संरक्षक है जो हमारी देखभाल करता है, सर्वशक्तिमान ईश्वर हमारी देखभाल करता है, तब तक आप इससे बाहर नहीं निकल पाएंगे।

आत्म साक्षात्कार के उपरांत, मान लीजिए कि आप एक गरीब व्यक्ति हैं, यदि आपको पैसे की समस्या है तो आप हैरान होंगे कि आपका भौतिक पक्ष सुधरता है, इतना सुधार होता है। आख़िर कैसे? कृष्ण ने कहा है, "योग क्षेम वहाम्यहम।" जब आप योग प्राप्त करते हैं तो आप कल्याण प्राप्त करते हैं। जब परमात्मा से मिलन हो जाता है, तो यह लक्ष्मी का केंद्र है, धन की देवी का केंद्र, कल्याण का - यदि वह आप में जागृत हो जाती हैं, तो आपको धन प्राप्त होता है। लेकिन मिस्टर फोर्ड के पास जो पैसा है, ये वह पैसा नहीं है। नहीं नहीं! यह लक्ष्मी है। लक्ष्मी एक संतुलित, धनवान व्यक्ति का एक बहुत ही सुंदर प्रतीक है। उनके एक हाथ में, सबसे पहले, वह एक महिला हैं। वह एक कमल पर खड़ी महिला है। क्या आप सोच सकते हैं कि वह कितनी हल्की होंगी। यहां अगर कोई अमीर आदमी चलता है, तो आप देखिए उसके पास एक खास सम्मान वाली शैली जरूर होती है। अगर वह यहां बैठता है, तो उसे यह दिखाना होगा कि वह बहुत अमीर आदमी है। वह विशेष तरह से चलता है, और उसके पास यह दिखाने के लिए बड़ी कार होती है, कि वह बहुत बड़ा आदमी है।

लेकिन श्री लक्ष्मी देवी सिर्फ एक कमल पर विराजमान हैं। वह बहुत सरल हैं, और उसके चार हाथ हैं। उनके दो हाथों में कमल है। कमल का अर्थ है उसके पास गर्मजोशी है, उसके पास प्रेम है, गुलाबी रंग है, और कमल के अंदर एक ऐसा कोमल बिस्तर है और बिस्तर का उपयोग एक बहुत ही कांटेदार कीट द्वारा किया जाता है, जिसे हम भृंग कहते हैं। यह एक बहुत ही काँटेदार काली चीज़ है, जिसका उपयोग विश्राम के लिए किया जाता है। अतः जिसके पास धन है, उसे कमल के समान स्नेही होना चाहिए, और जो कोई भी उसके घर आता है उसका स्वागत उसी तरह करना चाहिए जिस तरह कमल स्वागत करता है, और उसे इस खूबसूरत मुलायम शय्या पर बिठाता है। यहां तक की कांटेदार कीट के जैसा भी कोई व्यक्ति अगर आता है, तो उसे आश्रय का निमंत्रण देना चाहिए। यह संकेत है गर्मजोशी का।

यहाँ (परदेस में) कोई मेहमान आया तो बस हो गया। मेहमान घर में प्रवेश करते ही, जैसे ही व्यक्ति का चेहरा देखता है एकदम से भाग जाता है। वह उसे बर्दाश्त नहीं कर सकता, क्योंकि उसका होना मतलब खर्चा। किसी भी मेहमान का आने का मतलब है खर्चा। किसी अन्य को कुछ देने का कितना आनंद आपको प्राप्त हो सकता है, आपको ज्ञात नहीं है। तो धन के लिए अपने लोभ पर काबू करने के लिए उदारता ही एकमात्र रास्ता है। अगर आप धन कमा सकते हैं, तो बेहतर होगा आप उसे दान भी करें। अगर आप दो कमाते हैं, तो आप तीन दें। अगर आप कुछ खरीदते हैं, तो देने के लिए खरीदिए। अगर आप ऐसा करना शुरू कर देंगे, तो आप अपने धन- उन्मुखता पर काबू पा लेंगे, जो ऐसा कीचड़ है जिसमें इतने सारे लोग समा गए हैं।

वास्तव में गरीब लोग बहुत बेहतर हैं। अगर आप किसी गरीब के घर जाएं, तो वह आपको पीने के लिए बहुत सारा दूध प्रस्तुत करेगा। वह खुश होगा कि आप उसके घर आए हैं। जो कुछ भी उसके पास होगा, वो आपके आगे प्रस्तुत करेगा। परंतु अगर आप किसी अमीर व्यक्ति के घर जाते हैं, तो वास्तव में डरा हुआ होगा कि एक मेहमान घर में आया है, जबकि वह हजारों की देखभाल कर सकता है। वो ये सह नहीं सकता। इसलिए उदारता ही उन लोगों के लिए एकमात्र उपाय है, जो हमेशा धन के बारे में सोचते हैं।

इसके विपरीत होता ये है, कि आपकी उदारता उन लोगों की ओर बहेगी, जो उस के योग्य नहीं हैं, जैसे कि ये भयावह गुरु। आप देखते हैं कि उनके पास रखैल है, उनके पास बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ हैं, उन्होंने बड़ी-बड़ी हवेलियाँ बना ली हैं। वे परजीवी हैं और तुम उन पर धन बहा रहे हो, क्योंकि तुम्हारा अपना अहंकार है।

हमारे भारत में पंथ हैं जहां उनकी प्रतियोगिताएं हैं। वे भगवान की तस्वीर बाहर निकालते हैं। वह जो पांच सौ पाउंड देने जा रहा है, उदाहरण के लिए, घोड़े पर बैठता है। जो हजार पाउंड देगा, वह हाथी पर बैठेगा। इसी तरह वे भगवान के साथ चलते हैं, और इसी तरह वे उस समुदाय में चलते हैं। मैंने देखा है कि वे इसकी नीलामी भी करते हैं। अब घोड़े पर बैठने वाला, कितना, कितना, कितना, पांच सौ पाउंड! यह ऐसा ही है, वे भगवान को बेच रहे हैं, और यह एक बहुत ही आम बात है। आपको जाना है और हम इसे कॉल करना कहते हैं। उसके लिए कॉल करना, आप कितना पैसा देने जा रहे हैं। क्या यही तरीका है परमेश्वर को पाने का और उसे समझने का? पैसे वाले लोगों के लिए यह सब ठीक है। वे रुपयों के दलदल में जाकर वहीं समाप्त हो जाएँगे। ईश्वर प्रेम है। वह पैसा नहीं है। वह पैसे को नहीं समझता, और दिव्य लोग भी पैसा नहीं समझते।

मैं बिल्कुल बेकार हूं, मुझे यह समझ में नहीं आता, मुझे चैक पर हस्ताक्षर करना नहीं आता, मुझे कुछ नहीं आता। मैं केवल कुंडलिनी को जानती हूं, लेकिन अगर आप मुझसे पैसे वाले हिस्से के बारे में पूछें, तो मैं इतनी बुरी हूं कि आप हैरान रह जाएंगे। मैं बिल्कुल एक देहाती व्यक्ति की तरह हूं, जिसे किसी भी चीज का ए बी सी समझ नहीं आता है। जहां तक धन का प्रश्न है, मुझे समझ नहीं आता कि इसके बारे में इतनी चिंता क्यों करें? हर बार गिनती करने की, हर बार नापने की, हर बार पता लगाने की क्या बड़ी जरूरत है? कोई जरूरत नहीं है। ऐसा सिरदर्द, ऐसी चिंता, ऐसी समस्या। आपको जो कुछ भी मिलता है उसका उपयोग करें, आप बस उसके साथ ही गुजारा कीजिए। क्या जरूरत है इन सभी छोटी-छोटी चीजों के बारे में चिंता करने की, और भौतिक चीजों जैसी निरर्थक वस्तुओं के लिए अपना जीवन बर्बाद करने की?

ये हम बना सकते हैं। बस अगर आप आरंभ कर लें तो सब कुछ बन जायेगा। मनुष्य ने पहले ही बना लिया है। उसे में इतना बड़ी बात क्या है?

अब आपको जीवंत मार्ग पर चलना है, अपने भीतर की जीवंत शक्ति का प्रयोग करना है, जिसके द्वारा आप जीवित कार्य का निर्माण करते हैं। आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने के बाद आप दंग रह जाएंगे। यदि आप गेहूँ को या ऐसी किसी वस्तु को, फूलों को चैतन्य देते हैं, तो आपको बहुत बड़े फूल मिलते हैं। हमने इसे एक कृषि विश्वविद्यालय में आजमाया है, और उन्होंने पाया है कि जब आप गेहूं को चैतन्य देते हैं, तो यह अपनी उपज में पांच गुना अधिक वृद्धि कर सकता है। उन्होंने एक भारतीय गाय देखी है, अगर उसे पीने के लिए वाइब्रेट किया हुआ पानी दिया जाए, तो वह काफी दूध दे सकती है। ऑस्ट्रेलियाई गाय को हम इतना तो नहीं कह सकते, लेकिन ऑस्ट्रेलियाई गाय का दूध अच्छी चीज नहीं है। यह दाहिने नाडी की ओर बहुत अधिक है। लेकिन वह जितना सामान्य रूप से देती है, उससे कहीं अधिक देगी।

आप भी कुछ बहुत अधिक नहीं बनते। आप लक्ष्मीपति बन जाते हैं, यानी आपको इतना धन मिलता है कि आप लोगों का स्वागत कर सकते हैं, आप उन्हें आमंत्रित कर सकते हैं। आप खुद आराम में हैं, और आप एक ऐसे घर में रहते हैं जो सुंदर है।

उनका (श्री लक्ष्मी जी) एक और हाथ है जो सिर्फ दे रहा है। यदि आप कमाते हैं तो आपको देना चाहिए। नहीं तो सब कुछ सड़ जाता है। मैं ऐसे लोगों को जानती हूं, जिन्होंने पचास साल से अखबार इकट्ठा किए हैं। जब से वे पैदा हुए हैं तब से उन्होंने टूथपेस्ट की ट्यूब इकट्ठी कर ली हैं। हर तरह की चीजें हम लोग इकट्ठा करते हैं। आप हर तरह के पागल लोगों को देखते हैं, जो चीजों को इकट्ठा करते रहते हैं, और आपको वास्तव में नगरपालिका के लोगों को मोटी रकम देकर इसे ले जाने के लिए बुलाना पड़ता है, ताकि इन लोगों द्वारा इकट्ठा किए गए बेकार कचरे को हटाया जा सके, जो उन्होंने घर में बनाया हुआ है।

तो इस तरह आपको अपने घर से चीजों को बहने देना चाहिए। जाने दो, दे दो, दे दो और दे दो। जब आप देते हैं, तो नई चीजें आती हैं। मैं अपने जीवनकाल में ही देती आई हूं। आप चकित होंगे, मैं देती जाती हूं और देती हूं और देती हूं, लेकिन फिर भी मेरा घर और मेरा सब कुछ इतना भरा हुआ है, कि मुझे नहीं पता कि क्या करना है। जब भी मुझे मौका मिलता है मैं देती हूं, लेकिन मैं देखती हूं, कि पूरा घर भर रहा है।

आप किसी को एक फूल दें, वे दस फूल भेजेंगे। क्या करें? मैं उन लोगों को नहीं समझ सकती, जो वस्तुओं को संरक्षित करते हैं। बैठ कर सब कुछ गिनते रहने से उनका क्षय हो जायेगा और वे बूढ़े हो जायेंगे । जबकि मैंने देखा है कि यह इस दुनिया में जीने का सबसे स्वस्थ तरीका है कि बस दे दो, देते रहिए। चिंता न करें। कोई भी कुछ भी मांगता है, ऑर्डर देना पसंद करता है- तो ये लीजिए! देना इतनी खूबसूरत चीज है, इतनी बड़ी चीज है, इतनी आनंददायक है।

आप अचानक किसी से मिलते हैं। अभी हाल ही में एक पार्टी में मेरी मुलाकात एक महिला से हुई। वो बोली, 'क्या आप को याद है कि आप ने मुझे ये दिया था?' मैंने कहा, 'कौन सा?' वो बोली, 'यह वाला। मैंने मोती का हार पहन रखा है। जब मेरा विवाह हुआ था मैं आप के घर आई थी, और आप ने मुझे यह मोती हार दिया था।' मैंने कहा, 'सच! मुझे याद नहीं है।' मैंने आज यह आप को दिखाने के लिए पहना है।' मुझे बहुत खुशी हुई। मोती का हार जैसी क्या एक छोटी सी चीज मैंने उसे दी थी। लेकिन जीवन भर याद रखना, क्या बात है। वह मुझसे बीस साल बाद मिली थी। उस समय वह गर्भवती थी और आज उस का एक पुत्र है। इस खूबसूरत घटना को घटित होते देखकर मैं बहुत चकित हुई। उसने इसे हर समय पहना था, और उसने इसे उस दिन पहना था, जिस दिन वह मुझसे मिलने वाली थी। वह जानती थी कि मैं पार्टी में आ रही हूं। कितना अच्छा अहसास है। आप इसे खरीद नहीं सकते। जो मुझे अनुभव हुआ, मेरे जीवन की उस छोटी सी खूबसूरत घटना पर हजारों मोतियों के हार वारे जा सकते हैं। कैसे इस महिला ने ऐसी छोटी सी बात का ख्याल रखा। ये सभी चीजें आपके प्यार का इजहार करने के लिए हैं, और अगर आप प्यार की कीमत समझ जाते हैं तो आप छुटकारा पा सकते हैं।

अब देवी का दूसरा हाथ इस प्रकार है [श्री माताजी अपना दाहिना हाथ दिखाती हैं]। इसका अर्थ है कि जिस व्यक्ति के पास धन है, उसे आश्रय अवश्य देना चाहिए। आश्रय का मतलब है, कि उसे लोगों को सुरक्षा देनी चाहिए। उसके पास कुछ लोग होने चाहिए जो उनकी सुरक्षा में हों। जैसे भारत में लोग कहते हैं कि आपके यहां नौकरों की व्यवस्था है, लेकिन बेशक मैं यह नहीं कहती कि भारत में नौकरों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है। मेरा मतलब है कि मेरे नौकर के पास मुझसे बेहतर बेडरूम है, क्योंकि मेरे पति का एक बेडरूम है, और वास्तव में मेरे पास एक छोटा है, क्योंकि मैं उनका बेडरूम साझा करती हूं और उन के पास बड़ा है। और वो (नौकर) वह कई मायनों में मुझसे बेहतर रहता है, लेकिन वह एक ऐसा व्यक्ति है जो यह सब काम कर सकता है।

अब मुझे कुंडलिनी का काम करना है। अगर मैं घर में झाडू-पोंछा करने लग जाऊं, अगर मेरे पति को झाडू-पोंछा करना पड़े, तो उनके दफ्तर की देखभाल कौन करेगा? यहाँ (परदेस में) बात यह है कि अध्यक्ष को भी झाड़ू-पोछा करना चाहिए, अन्यथा वह सही नहीं है। मुझे समझ नहीं आता। यदि आपके पास ऐसे लोग हैं जो आप पर निर्भर हैं, मेरा मतलब है कि आपके बच्चों को आपके लिए काम करना चाहिए। इसी प्रकार सेवक होते हैं। अगर वे आपके लिए काम करते हैं, तो क्या गलत है?

इंग्लैंड में मैंने बूढ़े लोगों को मरते देखा है। उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। एक महीने से वे कमरों में पड़े हैं। उनके शरीर को उठाने वाला कोई नहीं है, क्योंकि उनके पास मदद करने के लिए कोई नहीं है, और युवा बाहर बैठकर गांजा ले रहे हैं। शर्मनाक बात है! बड़े बच्चे हैं जो गांजा ले रहे हैं, और उनके पिता यहां मर रहे हैं। ये लोग क्यों काम नहीं कर सकते? क्यों अपने माता-पिता की मदद नहीं कर सकते? उनकी देखभाल क्यों नहीं कर सकते? जो लोग बूढ़े हैं उन्हें सफाई करना, झाडू लगाना और पोंछा लगाना होता है। यहां तक ​​कि अस्सी साल के लोगों को भी अपनी कार चलानी पड़ती है, उन्हें गंतव्य तक पहुंचना होता है। अच्छी बात नहीँ हे। आप उनके साथ न्याय नहीं कर रहे।

तो अगर आपके पास पैसा है, तो आपके पास आश्रय में लोग होने चाहिए। आपके पास आपका काम करने के लिए लोग होने चाहिए। लेकिन यहां हर कोई हर काम अपने आप करना चाहता है। उदाहरण के लिए अब ब्लाउज की सिलाई। हमारे पास एक दर्जी है। हमारे पास वह करीब बीस से तीस साल से है। जब से मेरी बेटियों की शादी हो गई हैं, वह मेरे ब्लाउज की सिलाई कर रहा है। अब वह एक गरीब आदमी है। वह कितना लेता है? अधिक से अधिक, इस चीज़ के लिए लगभग दो डॉलर या एक डॉलर कहें। उसे लेने दो। वह इतना ही काम कर सकता है। उसे वह काम करने दो। वह अब इसमें विशेषज्ञ हैं। मेरे पास अपनी सिलाई करने का समय नहीं है, तो आप कहेंगे, "आप क्यों अपना समय इस पर बर्बाद करती हैं? आप उस पर अपना पैसा क्यों बर्बाद करती हैं?'' लेकिन मैं उस तरह से सिलाई नहीं कर सकती, जिस तरह से वह दर्जी करता है। उसे करने दो। इसमें क्या गलत है?

यहां हमने अपनी सारी कला, अपने सारे सौंदर्यशास्त्र को खुद ही सब कुछ करके मार डाला है। आप स्वयं सब कुछ नहीं कर सकते। अब वॉलपेपर, अगर आपको वॉल पेपर लगाना है, तो आपको स्वयं ही लगाना होगा। आप अपना पैसा किसी और के साथ साझा क्यों नहीं करते? आप सब कुछ खुद ही क्यों करना चाहते हैं?

हमारे खाना पकाने के साथ भी ऐसा ही हुआ है। यहाँ लोग चारे के सिवा कुछ नहीं खाते। कभी -कभी जिस तरह सब कुछ काट लेते हैं, उतना ही खा लेते हैं। यह कहना एक अच्छा बहाना है कि हम सभी विटामिन खा रहे हैं, लेकिन मानव पाचन के लिए यह बहुत कठिन है। अच्छी बात नहीँ है। आप घर में कभी खाना नहीं बनाते क्योंकि पत्नी को काम करना चाहिए, पति को काम करना चाहिए, उन सबको ऑफिस जाना चाहिए, उन सभी को काम करना चाहिए, पत्नी के पास समय नहीं है, पति के पास समय नहीं है, बच्चों के लिए समय नहीं है।

पत्नी को घर में खाना बनाना पड़ता है। अगर उसके पास खाली समय है, तो ठीक है, उसे काम भी करना चाहिए, उसे बच्चों की देखभाल करनी है। उस काम में कुछ भी गलत नहीं है, वह बहुत नेक काम है। ये विचार मैं कभी-कभी कहती हूं, कि जिन लोगों ने अपने पिछले जन्मों में अच्छे काम किए हैं वे आज माताएं हैं। वे अच्छा समय बिता रही हैं। मैं अपने पति को देखती हूं, मैं कहती हूं कि वह कितनी मेहनत करते हैं। अब एक माँ के रूप में, मैं अपने सहज योग के लिए काम करती हूँ, अन्यथा मेरे पास एक आरामदायक जीवन है।

तो आप सभी को सारा काम क्यों करना चाहिए? आपके पास आपके आश्रय के लिए कुछ लोग होने चाहिए, आप उन्हें कुछ धन अवश्य दें, अपना धन दूसरों के साथ साझा करें, उनकी रक्षा करें। यह उन कई बातों में से एक है, जिसे हमें इस देवी के बारे में समझना है, जिन्हे लक्ष्मी कहा जाता है और वह हमारे पेट में वास करती हैं। यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है, कि यदि आप परमात्मा का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो आपको एक संतुलित व्यक्ति होना चाहिए। आपको अपने भीतर लक्ष्मी सिद्धांत को जगाना होगा, और लक्ष्मी इस तरह के संतुलन में रहती है, जब आप समझते हैं कि प्रेम हमारे सभी आर्थिक व्यवहार, आर्थिक आदान-प्रदान और तालमेल का निर्धारण कारक है। इसे आंकने का कोई और तरीका नहीं है, और यही मुख्य बुनियादी बात है, जिस की आज के आधुनिक समय में कमी है।

अब कुंडलिनी जागरण होता है, और इस चक्र को जगाता है, तब यह जागृत हो जाता है। तब आप ऊपर चक्र की ओर बढ़ते हैं जो उच्चतर है, जिसे हम हृदय चक्र कह सकते हैं। लेकिन इन दोनों के बीच एक चक्र है जो गोल-गोल घूम रहा है, हमारी गतिविधि का एक चक्र है जो स्वाधिष्ठान चक्र कहलाता है। इसके बारे में मैंने आपको कल बताया था कि कैसे स्वाधिष्ठान चक्र को ज्यादा सक्रिय करने से हमारे अंदर असंतुलन पैदा हो जाता है। हम मधुमेह जैसी बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं, किडनी, स्प्लीन की समस्या और महिलाओं में गर्भाशय की परेशानी भी होती है, क्योंकि हमारे अंदर असंतुलन होते हैं।

इस चक्र के बाद, हमारी गतिविधि का चक्र है। जब हम इस चक्र से आगे निकल जाते हैं, तो हम इस चक्र पर जाते हैं जिसे हृदय चक्र कहा जाता है। यह मनुष्यों में एक बहुत ही महत्वपूर्ण चक्र है, जो जगदंबा के द्वारा शासित है, जिसका अर्थ है ब्रह्मांड की माता। यह चक्र हमारे बचपन में आपकी उरोस्थि (स्टर्नम बोन) पर कार्य करता है। जब यह चक्र कार्य करना आरंभ करता है, तो हम अपने स्टर्नम में एंटीबॉडी विकसित करते हैं। ये एंटीबॉडी बाद में पूरे शरीर में फैल जाते हैं, और हमें हर तरह की बीमारियों से, हम पर हर तरह के हमले से बचाना शुरू कर देते हैं। ये डॉक्टर इसके बारे में जानते हैं। वे जानते हैं कि एंटीबॉडी हैं, लेकिन वे यह नहीं कह सकते कि उनका निर्माण कैसे होता है, और वे हमारे भीतर कैसे हैं। जब हम पर बाहर से किसी चीज का हमला होता है, तो क्या होता है कि आप की धड़कने शुरू हो जाती है, क्योंकि इन लोगों को स्टर्नम बोन के माध्यम से सूचित किया जाता है, कि हमला आ रहा है और यह घबराहट बताती है कि एक आपात स्थिति है और एंटीबॉडी को इससे लड़ना चाहिए।

अब जो महिलाएं इस तरह असुरक्षित हैं, उन्हें स्तन कैंसर हो जाता है और ये सभी बीमारियां उन लोगों के लिए बहुत खतरनाक हो सकती हैं जिनमें असुरक्षा होती है, और जो खुद को छुपाते हैं और जो असुरक्षा के बारे में नहीं बताते हैं। वे इन बीमारियों से ग्रस्त हो सकते हैं और अंततः वे भयानक संकट में पड़ सकते हैं।

आज मुझे खेद है कि मैं सभी केंद्रों के बारे में नहीं बता पाऊंगी, क्योंकि पहले ही काफी देर हो चुकी है और हमारे पास यह हॉल केवल साढ़े दस बजे तक है। इसलिए हमें आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने का असली अनुभव करना है, और हमें उसे कार्यान्वित करना है। तो वह मुख्य बात है। और जो कुछ भी संभव था इन चक्रों तक कुण्डलिनी जागरण के सिद्धांत को मैंने आपको बता दिया है, और कल हो सके तो बाकी दो चक्रों को भी बताने का प्रयास करूंगी।

अब क्या हमें अनुभव होना चाहिए? मुझे लगता है कि सभी आगे बढ़ें तो बेहतर होगा। आप बस अपने दोनों हाथ मेरी ओर कर दो। बेहतर होगा कि आप अपने जूते बाहर निकाल लें, क्योंकि धरती माता को आप की समस्यायों को अपने अंदर खींचना है! अब मुझे आपसे निवेदन करना है, कि आज आपको आत्म साक्षात्कार प्राप्त हो सकता है, लेकिन कुंडलिनी सिर्फ कई धागों से बनी होती है और एक धागा आपके सहस्रार को खोलने के लिए इस बिंदु पर आता है। [श्री माताजी फॉन्टानेल बोन एरिया की ओर इशारा करते हुए] और फिर इसे उठाया जाता है [अस्पष्ट] लेकिन यह इसका अंत नहीं है। सहज योग में खुद को स्थापित करने के लिए, आपको अन्य धागों को बाहर लाने के लिए और अधिक जगह बनानी होगी। अब ऐसा करने के लिए आपको एक इस केंद्र पर आना होगा, जहां यह सामूहिक घटना हो सकती है। बेशक कल हम यहां यह कार्यक्रम करने जा रहे हैं, लेकिन उसके बाद मैं चली जाऊंगी और ये यहां रहने के लिए सहमत हो गए हैं और यह [अस्पष्ट] से इसे हल करने जा रहा है। वे यहां लॉस एंजिलिस में किसी तरह का ध्यान केंद्र स्थापित करना चाहते हैं, जहां आप लोग हर हफ्ते जा सकते हैं, जैसे सप्ताहांत में।

अपनी शक्तियों को विकसित करें, और इसमें महारत हासिल करें, ताकि आप दूसरों को आत्म साक्षात्कार देना शुरू कर सकें। आप सब ये कर सकते हैं।

शुरुआत में क्या होता है कि, किसी भी चीज की तरह, कोई भी प्रकाश जिसे आपने प्रकाशित किया है, काफी कठिन है। जो भी बीज अंकुरित हुआ है, उसे आप को सम्भालना है। अंकुर एक संवेदनशील, कोमल चीज है जिसका आपको ध्यान रखना है। लेकिन फिर जब यह बड़ा होता है, यह एक पेड़ की तरह हो जाता है और आप बहुतों को आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं।

अब हम यहां हैं। जैसे ये खुद मेरे साथ केवल अठारह महीने ही रहे हैं, और कल्पना कीजिए कि उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में कितने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिया है, आप इसे गिन नहीं सकते। प्रत्येक व्यक्ति जो यहां है, जो आपके [अस्पष्ट] में है, उसे कोई मंजूरी या कुछ भी प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है। आप शुरू कर सकते हैं, अगर आप इसमें जम चुके हैं। यह बहुत आसान है। आप अपने घर से ही शुरुआत कर सकते हैं, है ना? आप कहीं भी विज्ञापन दे सकते हैं, और सहज योग ध्यान केंद्र शुरू कर सकते हैं।

तो पहले आप को इसमें प्रगति करनी होगी और इसी में बसना है। तो ऐसा नहीं है की आज आप को प्राप्त हो अंतिम क्षण में [अस्पष्ट] आप इसे कल कुछ समय के लिए खो सकते हैं, लेकिन एक बार यह स्थापित हो जाने के बाद आप इसे कभी नहीं खोएंगे। यह हमेशा होता है।

[श्री माताजी आत्म-साक्षात्कार क्रिया कराती हैं]

Reorganized Church of Jesus Christ, Los Angeles (United States)

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