What is the difference between Sahaja Yoga and other yogas?

What is the difference between Sahaja Yoga and other yogas? 1989-08-06

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Talk duration
36'
Category
Public Program
Spoken Language
English
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Italian

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6 अगस्त 1989

Public Program

Milan (Italy)

Talk Language: English | Translation (English to Hindi) - Draft

सहज योग और अन्य योग में अंतर

मिलान, 6 अगस्त 1989

मैं सत्य के सभी साधकों को नमन करती हूं।

आप यहां सत्य को महसूस करने के लिए आये हैं। न की केवल मानसिक रूप से इसकी अवधारणा करने।

अब, एक प्रश्न है, कल लोगों ने पूछा कि सहज योग और अन्य योगों में क्या अंतर है। इन सभी योगों को पतंजलि नामक एक संत ने बहुत पहले लिख दिया था। और उन्होंने इसे आठ पहलुओं वाला अष्टांग योग, अष्टांग कहा। उनका अस्तित्व हजारों साल पहले हुआ था, और उस समय हमारे पास एक प्रणाली थी जिसमें छात्र किसी प्रबुद्ध आत्मा, एक गुरु, सतगुरु के अधीन अध्ययन करने के लिए विश्वविद्यालय में जाते थे।

तो, योग अर्थात परमात्मा के साथ मिलन के आठ पहलू हैं।

तो, पहला उन्हें जिस रूप में मिला 'यम' है। यम, नियम। यम पहले हैं जिसमें उन्होंने लिखा है कि हमें अपने श्वसन को ठीक करने के लिए या अपने दुर्व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए क्या करना चाहिए।

तो उसमें से एक तिहाई आसन हैं जहां आप किसी विशेष प्रकार की समस्या के लिए शारीरिक व्यायाम करते हैं।

लेकिन वह हठ योग नहीं है। हठ योग एक पूर्ण पतंजलि योग शास्त्र है, योग - अर्थात पूर्ण पतंजलि योग शास्त्र है।

आसन या शारीरिक व्यायाम के ये अभ्यास बहुत छोटा भाग हैं, उनमें से एक का चौबीसवां भाग हैं।

'ह' और 'ठ', ह का अर्थ है सूर्य और ठ का अर्थ है चंद्रमा। अतः हठ योग में दोनों का विचार किया गया है। क्योंकि हमारा अस्तित्व केवल शारीरिक नहीं हैं। हम एक प्राणी है शारीरिक, हम मानसिक प्राणी हैं, हम भावनात्मक प्राणी हैं, हम आध्यात्मिक प्राणी हैं। इसलिए केवल अपने भौतिक अस्तित्व को बनाए रखना इतना महत्वपूर्ण नहीं है।

किसी व्यक्ति को यह समझना होगा कि ये सभी चीजें एक सिद्ध आत्मा द्वारा की गई हैं जो जानता था कि किसी व्यक्ति विशेष के लिए कौन से आसन का उपयोग करना है, कौन से शारीरिक व्यायाम का उपयोग करना है।

लेकिन कुछ लोग जो हिमालय में गुरुओं के पास गए थे, और वे बहुत लालची लोग थे, किसी भी तरह के योग के लिए ठीक नहीं थे। तो, गुरुओं ने कहा कि, बेहतर होगा कि तुम शारीरिक व्यायाम करो, बस उनसे छुटकारा पाने के लिए ।

तो वे नीचे आए और यह सब कलाबाजी सिखाने लगे [हँसी]। लेकिन अब ऐसी दीवानगी है कि लोगों को पता ही नहीं है कि इस तरह के असंतुलित व्यवहार के क्या साइड इफेक्ट होते हैं।

यदि आप दायीं बाज़ू का बहुत अधिक उपयोग करते हैं तो, बाईं बाज़ू पूरी तरह से उपेक्षित हो जाती है।

तो ऐसे लोग स्वभाव से बहुत शुष्क हो जाते हैं, उनमें न प्रेम होता है, न करुणा। ये बहुत गर्म स्वभाव के हो जाते हैं और जरा-सी बात पर गुस्सा करने की कोशिश करते हैं।

कभी-कभी इतने गर्म मिजाज के होते हैं कि आपको उन से दुरी रखने के लिए हाथ में डंडा लेकर उनके पास जाना पड़ता है, आप देखिए। वे डरावने पिता या माता बन जाते हैं, और हमेशा एक-दूसरे से लड़ते रहते हैं और अधिकतर इसका अंत तलाक पर होता हैं।

और जो स्त्रियां इस हठ योग का बहुत अधिक प्रयोग करती हैं वे बच्चे भी पैदा नहीं कर सकती हैं।

वे इतने दबंग स्वभाव के हो जाते हैं कि यह पहचानना मुश्किल हो जाता है कि वे पुरुष हैं या महिला हैं या बाघ हैं। तो - लेकिन पतंजलि योग शास्त्र में, यह उन शारीरिक व्यायामों का वर्णन करता है जो आपकी रीढ़ की हड्डी के शारीरिक सुधार के लिए आवश्यक हैं।

तो, जब कुंडलिनी उठती है, तो आप देखतें हैं की समस्या किस चक्र पर है, और आप उन विशेष चक्रों को सुधारने का प्रयास करते हैं।

उदाहरण के लिए, यदि आपका यह केंद्र आज्ञा पकड़ रहा है, तो आपको कहना होगा कि 'मैं सभी को क्षमा करता हूं', अन्यथा यह किसी भी कीमत पर नहीं खुलेगा। तो, जब तक और जहाँ तक कुंडलिनी नहीं चलती, आपको कैसे पता चलेगा कि रुकावट क्या है? और फिर आपको कैसे पता चलेगा कि कौन सा आसन करना है या क्या नहीं करना है। तो, ऐसा करना दवाई के डब्बे में से सभी दवाएं ले लेने जैसा है यह सोचकर कि आप बहुत बीमार हैं। तो, यह इतना अंधाधुंध है।

अब, दूसरा राज योग है जहां यह कहा जाता है कि आपको यह जानना होगा कि जब कुंडलिनी उठती है तो केंद्रों पर वाल्व जैसे कुछ स्थान होते हैं। वे कुंडलिनी को नीचे गिरने से रोकते हैं। अब जब कुण्डलिनी उठती है जैसे गाड़ी चलती है, इग्निशन होता है तो सारी मशीनरी अपने आप काम करने लगती है।

साथ ही जीभ थोड़ी सी अंदर खींच जाती है जिसका आपको अहसास भी नहीं होता हैं, लेकिन यह थोड़ा सा अंदर खींच जाती है। क्योंकि कुंडलिनी इस केंद्र से नीचे नहीं गिरनी चाहिए [यह विशुद्धि को छूती है]।

लेकिन आज का भयानक राज योग यह है कि जीभ के धागे को काट देते हैं और जीभ कुत्ते की जीभ की तरह हिलती है, आप बोल नहीं पाते, आप खा नहीं सकते।

ऐसा जीभ को पीछे रखने के लिए करते हैं।

ऐसा किसलिए कर रहे हो, कुण्डलिनी वहां है ही नहीं, तुम उसे वहाँ क्या रोक रहे हो?

उस स्वत: क्रिया को खेचरी कहते हैं और यह लोग इसे कृत्रिम रूप से कर रहे हैं।

मैंने लॉस एंजिल्स में कई लोगों को देखा है, बूढ़े लोग जिन्हें मैं भी जानती थी, उनकी इस तरह से जीभ लटकती है। तो वे आपको अपना पेट थामना सिखाते हैं, यहाँ छाती थामना, लेकिन कुंडलिनी वहां नहीं है, आप क्या पकड़ रहे हैं?

जब कार स्टार्ट ही नहीं हुई तो चोक लगाने या पहिया निकालकर घुमाने से क्या फायदा? यह बहुत कृत्रिम है। फिर किसी ने मुझसे पूछा है - इसे वे क्रिया योग कहते हैं।

लेकिन सहज योग एक क्रिया है।

क्रिया का अर्थ है कार्यवाही, कुंडलिनी को जगाने के लिए कौन सी क्रिया 'आप' कर सकते हैं?

यदि आपको बीज को अंकुरित करना है, तो आप क्या क्रिया करते हैं? तुम बस बीज को धरती माता में डाल दो। खत्म। अब तुम बीज को खोलो, प्रमूल निकालो और वापस डाला दो, क्या तुम सोचते हो [हंसते हुए], क्या तुम सोचते हो कि इस तरह यह अंकुरित होगा?

इस प्रकार कितने सुन्दर साधकों को हानी पहुँचती है। ऐसे बहुत सारे हैं।

अजीब-अजीब, मज़ेदार बातें।

इस तरह वे सिर्फ बात करते हैं, बात करते हैं, बात करते हैं, बात करते हैं, बात करते हैं। बड़े-बड़े व्याख्यान, बड़ी-बड़ी किताबें, बड़ी-बड़ी बातें करना।

चूँकि तुम लोगों ने इन शब्दों के बारे में नहीं सुना है, वे हर तरह की बकवास लिखते रहते हैं और तुम्हें इसे पचाना पड़ता है।

हर तरह के लोग हैं जो आपसे कह रहे हैं, "किसी का नाम लो, कुछ जपते रहो"। या वे कहते हैं कि तुम यह किताब पढ़ो, वह किताब पढ़ो।

क्राइस्ट ने कितनी किताबें पढ़ीं? [हंसी]

सोचिए, इस तरह की मूर्खता ये चारों तरफ फैला रहे हैं।

और आपको अपने दिमाग का इस्तेमाल करना होगा।

उस दिन मैं एक ऐसे व्यक्ति से मिली, जिसने गीता की एक छोटी सी पुस्तक सोने में बनवाकर यहाँ गले में बाँध रखी थी। और उसने बताया कि उसका गुरु यह बेच रहा है और अब वह स्वर्ग में है, बस काल्पनिक।

लेकिन इस सब झूठ के बारे में बताया जा चुका है, इतने संतों ने इस बारे में लिखा है। गुरु नानक ने कहा है कि, "जो तुमको परमात्मा से मिलवाये, वही सतगुरु है, वही गुरु है"।

तो, ये सभी अजीबोगरीब लिखे गए या आपको बताये गए विचार, दिए गए व्याख्यान हैं, इन सभी को एक ही तरह से समझना है, कि: "आपको इससे क्या मिला?"।

जैसे किसी ने कहा कि उसे हीरा मिला है ।

लेकिन हीरा तो आपको बाजार में भी मिल सकता है!

ठीक है। और वह खुद दिल के मरीज हैं। और वह अपना इलाज कराने मेरे पास आये। तो मैंने उससे कहा कि पहले यह हीरा किसी गरीब को दे दो, फिर मेरे पास आना।

फिर दूसरे प्रकार के भी होते हैं, जो आपको सम्मोहित कर लेते हैं। लेकिन उन्हें ज्ञान कुछ भी नहीं हुआ है, कुछ भी नहीं है।

बस वे मंत्रमुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि हमने अनुभव किया। लेकिन उन्हें इस बात का कोई ज्ञान नहीं है कि हुआ क्या है, आपके भीतर क्या है, इसे कैसे कार्यान्वित करना है, कुछ भी नहीं।

बस उन्हें ऐसा लगता है कि, "अरे, हमें कुछ हुआ है"। साथ ही पता नहीं उन्हें क्या हो गया है। तो इस तरह की समझ के साथ, आप निश्चित रूप से भटक जाने वाले हैं। आपको यह जानना होगा कि जो कोई आपसे आपको आत्मसाक्षात्कार या अन्य कुछ भी देने के लिए पैसे लेता है, वह एक झूठा व्यक्ति है। यह ठीक है कि, वे हॉल के लिए भुगतान कर सकते हैं, या वे हवाई जहाज के लिए भुगतान कर सकते हैं, लेकिन आप आत्म-साक्षात्कार के लिए भुगतान नहीं कर सकते। फिर तीसरी बात आपको देखना चाहिए कि उनके शिष्यों के साथ क्या हो रहा है।

अब शिष्य पागलों की तरह हो गए हैं, कुछ पागलखाने में हैं, कुछ भीख मांग रहे हैं, कुछ आक्रामक, हिंसक लोग हैं। ऐसे लोग, वे आध्यात्मिक कैसे हो सकते हैं?

न ज्ञान है, न प्रेम है, न करुणा है। तो, अपनी शक्ति को इतनी बेतुकी चीज़ों पर बर्बाद करने का क्या फायदा है, चूँकि आपने इसे पहले कभी नहीं जाना है?

किसी भी नई चीज को आंखों पर पट्टी बांधकर स्वीकार नहीं करना चाहिए। लेकिन हमें पहले इसे पूरी तरह से होशपूर्वक समझना चाहिए और फिर हमें इसे स्वीकार करना चाहिए।

बेशक सम्मोहित करना बहुत आसान है क्योंकि आप हजारों लोगों को सम्मोहित कर सकते हैं।

लेकिन वास्तव में ज्ञानी, बहु-आयामी, करुणावान, प्रभावी और शक्तिशाली लोगों का निर्माण करना बहुत कठिन है।

सहज योग के बाद आप देखेंगे कि आप अत्यंत शक्तिशाली हो गए हैं। और आपको पता चल जाएगा कि आपके पास क्या शक्ति है। और तुम जानोगे कि यह प्रेम की शक्ति है।

आप हर समय परमात्मा के आनंद को महसूस करते हैं।

और हर बार आप पता लगा सकते हैं कि यह सच है या नहीं।

इसलिए जब आपको अपना आत्मबोध होता है, तो सबसे पहले आप पहली बार होली घोस्ट की शीतल हवा को महसूस करते हैं, और अपनी उंगलियों पर आप उन चक्रों को महसूस कर सकते हैं जो आपके और दूसरों के चक्र हैं। साथ ही जानने लगते हैं की इसका इस्तेमाल कैसे करना है।

आप देख सकते हैं यहां दुनिया भर से कुछ अंग्रेज, कुछ इटालियन, लोग संस्कृत गीत गा रहे हैं।

संस्कृत सबसे कठिन भाषा है, लैटिन से भी दुरूह। और इन लोगों के लिए हिंदी बोलना भी एक मुश्किल काम है।

और जिस गति से वे गाते हैं, वह तो कोई भारतीय भी नहीं कर सकता।

स्विस भी ऐसा कर रहे हैं, स्विस! जैसे वे थे... [हंसी, श्री माताजी हंसती हैं]।

और अंग्रेज! जिनका गाना तो एक चमत्कार है! [हंसी, श्री माताजी हंसती हैं]

और आप यह नहीं बता सकते कि कौन अंग्रेज है और कौन जर्मन [श्री माताजी हंसती हैं]। हमारे पास कई यहूदी हैं जो ईसा-मसीह की पूजा करते हैं। और हमारे यहां कई मुसलमान हैं जो राम की पूजा करते हैं।

दूसरे दिन मैंने एक ईरानी और इराकी को बस एक-दूसरे को गले लगाते और बहुत दोस्ताना व्यवहार करते देखा। इराकी और ईरानी।

यह भाईचारा उन्हें कितना पसंद है। क्योंकि वे सामूहिक रूप से सचेत हो गए हैं।

यह सब पतंजलि में वर्णित है। सबसे पहले, वे कहते हैं, यहाँ कपाल पर निर्विचार जागरूकता है जिसे वह संस्कृत भाषा में निर्विचार समाधि कहते हैं। और फिर यहाँ तालू पर वे इसे संदेह रहित जागरूकता कहते हैं, जिसे हम निर्विकल्प समाधि कहते हैं।

और इस सर्वव्यापी शक्ति को वह ऋतम्बरा प्रज्ञा कहते हैं। [श्री माताजी अनुवादक को दोहराती हैं] ऋतम्बरा प्रज्ञा।

देखिए, वह इटालियन है [श्री माताजी हंसती हैं, हंसी]।

तो, यह आपके भीतर एक शक्ति है, यह आपके भीतर पहले से ही स्थित एक शक्ति है, यह आपकी अपनी है।

और आपकी अपनी व्यक्तिगत माँ है, यह कुंडलिनी है। और आप इसे स्टेथोस्कोप से महसूस कर सकते हैं, कुछ लोगों में जब यह धीरे-धीरे चलती है, यहां तक कि यह आपके सिर के ऊपर तक पहुंचती है, तो आप धड़कता महसूस कर सकते हैं, जब तक कि यह तालू को (फोंटेनिअल बोन) भेद ना दे। और तब आप महसूस करते हैं कि आपके ही सिर से ठंडी हवा निकल रही है।

आप बहुत आराम और शांति महसूस करते हैं।

आप अपनी उंगलियों पर ठंडी हवा महसूस करते हैं।

एक महीने के भीतर, आप एक निपुण गुरु बन जाते हैं। आप दूसरों को आत्मसाक्षात्कार दे सकते हैं। आप दूसरों का इलाज कर सकते हैं। और आप एक बहुत ही बहुआयामी शांतिपूर्ण व्यक्तित्व बन जाते हैं।

आपका चेहरा दमकने लगता है। आपकी उम्र कम दिखने लगती है कम से कम दस साल। आपकी आंख में चमक आ जाती है। और तुम संत हो!

आप एक बहुत ही समझदार भोले व्यक्ति बन जाते हैं। और सारा जीवन एक वास्तविक आनंद बन जाता है। आप इतने निश्चिंत हो जाते हैं कि हर दिन छुट्टी है [हँसी]। पूरी गतिशीलता के साथ भी, आप अत्यधिक तनाव मुक्त रहते हैं।

उन्होंने मुझे बताया कि पूरा इटली छुट्टी पर है। वे सभी स्पेन गए हैं और सभी स्पेनिश यहां आए हैं। [हँसी]

तो मैंने कहा "ठीक है, मैं इतालियन भाषा में स्पेनिश को आत्मसाक्षात्कार दूंगी"। [हँसी]

और फिर, छुट्टी के बाद वे थक जाते हैं, इसलिए उन्हें थकावट से उबरने के लिए एक और छुट्टी की जरूरत होती है।

तो, आप बस हर चीज का, अपने जीवन के हर पल का, हर पल का आनंद लेना शुरू कर देते हैं। क्योंकि आपकी आत्मा आनंद का स्रोत है।

यह स्रोत है जो आपको सत्य देता है।

कोई भी प्रश्न पूछें, और यदि इसका उत्तर हाँ है, तो आपको एक शीतल हवा मिलती है। यदि यह नहीं है, तो आपको गर्म हवा मिलती है।

और आपको हर बात का एक जवाब मिलता है। यह इतना उल्लेखनीय है, यह इतना महान है कि मैं आपको बता नहीं सकती कि आपके जीवन में कितने चमत्कार होते हैं।

यह आप पर निर्भर है कि आप परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करें और स्वयं देखें कि वहां होना कितना सुंदर है।

तो अब हम आत्मसाक्षात्कार की प्रक्रिया करेंगे।

कुछ सवाल थे, जिनका जवाब मैंने दे दिया है।

[श्री माताजी एक कागज़ पढ़ती हैं] अब, वे कहते हैं कि एक बार उन्होंने दाहिने हाथ पर गर्मी महसूस की, और दाहिने हाथ में... नहीं। बाएं हाथ पर उन्होंने गर्मी महसूस की, और सिर पर उन्होंने ठंडक महसूस की।

नहीं [श्री माताजी हंसती हैं], बिल्कुल उल्टा। तुमने क्या महसूस किया। "तालू भाग पर दाहिने हाथ से मुझे कुछ गर्मी और दाईं बाजू पर शीतलता महसूस होती है"। सीधा क्या, दाहिना हाथ?

योगी: दाहिना हाथ।

श्री माताजी: ठीक है, दाहिने हाथ। अभी। वह कहता है, दाहिनी ओर शीतलता मालूम पड़ती है और सिर पर गरमी मालूम पड़ती है। ठीक है। क्या कारण है? कि सिर में अभी भी गर्मी है। इस बिंदु तक [वह अपने गले को छूती है] ठंडा हो जाता है, लेकिन सिर को साफ करना होता है।

उसके लिए आपको बस माँ कुंडलिनी से प्रार्थना करना है: "माँ कुंडलिनी, मेरे सिर में आ जाओ"। बस इतना ही।

और [श्री माताजी हंसती हैं] एक और प्रश्न भी बहुत प्यारा है।

वह: "मुझे विश्वास है कि तुम मेरी माँ हो, लेकिन क्या आप मानती हो कि मैं तुम्हारा बेटा हूँ?"। [हँसी]

और बड़े प्यार से कहते हैं कि "जब आप भारत चली जाओगी, तो मैं यहाँ क्या करूँगा?"।

बेशक, तुम मेरे बेटे हो और मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी, चाहे भारत में हो या यहां।

चलो अब हम अपना आत्म-बोध पाएं। यही करने योग्य सबसे अच्छा तरीका है। हो सके तो- जो लोग नीचे बैठे हैं, वे अब कुर्सियों पर बैठ सकते हैं, कुछ लोग चले गए हैं।

सभी भारतीय चले गए हैं, क्योंकि वे यहां पैसा बनाने आए हैं, बस इतना ही [श्री माताजी हंसती हैं]। भगवान का शुक्र है।

भारतीयों को हमेशा सबसे पीछे बैठने को कहें।

[हिंदी] मैं हिंदुस्तानी कहती हूं। भारतीय ऐसे ही हैं। इसलिए भारतीयों को हमेशा सबसे पीछे बैठने को कहें। बेकार लोग। जो विदेश में हैं। [हिंदी]

भारत में मेरे कार्यक्रम में हजारों, बारह हजार लोग आते हैं, एक भी नहीं हिलता! [श्री माताजी हंसती हैं] यहां के भारतीय हैं ... मुझे नहीं पता कि वे यहां कैसे हैं। [कोई, शायद मंच से कोई भारतीय संगीतकार, कुछ कहता है] फिर उन्हें पीछे जाना चाहिए। [हिंदी - बेकार] लेकिन मुझे लगता है कि वे हमें परेशान करते हैं, वे अगली पंक्ति की सीट पर बैठते हैं और चले जाते हैं। [हिंदी]

यहां कुछ सीटें हैं। आप चाहें तो कुछ सीटें हैं, आप यहां आ सकते हैं।

यहाँ आओ; आप चाहें तो यहां भी कुछ सीटें हैं, आगे की पंक्ति में। जो बैठना चाहें आ सकते हैं। हां, हां, अगर आप बैठना चाहते हैं तो कृपया बैठ जाएं। आराम से रहो। आओ, आओ, बैठो।

अब, यह एक बहुत ही सरल तरीका है। सहज का अर्थ है सरल, और हम इसे जल्द ही पूरा कर लेंगे। मुश्किल से दस मिनट लगेंगे, बस दस मिनट लगेंगे।

पहले मैं आपको दिखाऊंगी कि हमारे चक्रों को कैसे पोषित किया जाए और फिर आपको अपनी आंखें बंद करनी होंगी।

इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है कि आप अपने जूते बाहर निकाल दें क्योंकि यह धरती माता भी हमारी बहुत मदद करती है।

यहाँ एक सीट है। तुम चाहो तो यहां बैठ सकते हो, यहां तुम्हारे लिए एक सीट है। यहाँ एक सीट है। और वहां भी एक सीट, पीछे। चले आओ। ठीक है, बेहतर है तुम बैठो। अच्छा।

तो, अब, दोनों पैरों को एक दूसरे से अलग रखना है क्योंकि दो ऊर्जाएं हैं, बाएं और दाएं तरफ।

आपको बाएं हाथ को, जो आपकी इच्छा का प्रतीक है, इस तरह खुला रखना है, क्योंकि यह इच्छा की शक्ति है, आत्म-साक्षात्कार पाने की इच्छा है।

अब, दाहिने हाथ का उपयोग आपके शरीर के बाईं ओर के केंद्रों को पोषित करने के लिए किया जाना है, क्योंकि यह क्रिया की शक्ति है।

जैसा कि हमने कल कहा था कि दो शर्तें हैं। एक शर्त यह है कि आपको खुद को माफ करना होगा, बीती बातों को भूल जाना होगा। बस अतीत को भूल जाओ। आपको अपने प्रति बहुत ही सुखद स्थिति में रहना होगा। अपने को क्षमा कीजिये।

दोषी महसूस मत करो। बिलकुल दोषी महसूस नहीं करना है।

दूसरा यह है कि आपको सभी को क्षमा करना होगा। यदि आप सभी को क्षमा नहीं करते हैं, तो इस चक्र पर एक समस्या होगी [श्री माताजी आज्ञा चक्र को इंगित करती हैं], और कुंडलिनी नहीं उठेगी। इसलिए कृपया सभी को दिल से माफ कर दें, क्योंकि अगर आप माफ करते हैं या माफ नहीं करते हैं, तो आप कुछ नहीं करते हैं, यह एक मिथक है। लेकिन अगर आप माफ नहीं करते हैं तो आप गलत हाथों में खेल रहे हैं।

अब, कृपया अपना बायाँ हाथ मेरी ओर इस प्रकार रखें। आप सभी को करना है। जो नहीं करना चाहते उन्हें चले जाना चाहिए, उन्हें दूसरे लोगों पर नजर नहीं रखनी चाहिए, यह सभ्य नहीं है।

ठीक है। तो, अब, कृपया अपना बायाँ हाथ मेरी ओर रखें, और दाहिना हाथ अपने हृदय पर रखें।

यहाँ, अब, तुम्हें पता होना चाहिए कि आत्मा निवास करती है।

इसलिए यदि आप आत्मा हैं तो आप ही अपने गुरु हैं।

तो अब आपको अपना हाथ अपने पेट के उपरी हिस्से में, बायीं तरफ रखना है। यहां आपकी गुरुत्व का केंद्र है।

तो अगर तुम आत्मा हो तो तुम गुरु बन जाते हो।

फिर अपने हाथ को अपने पेट के निचले हिस्से में ले जाएं, बायीं तरफ। यह शुद्ध ज्ञान का चक्र है। यह शुद्ध ज्ञान आपके मध्य तंत्रिका तंत्र के माध्यम से प्रकट होता है। यह कोई मानसिक ज्ञान नहीं बल्कि एक ईश्वरीय ज्ञान है, जिससे आप जान जाते हैं कि सत्य क्या है।

आप ईश्वरीय नियमों को भी जानते हैं: एक नया विज्ञान मैं कहूँगी, देवत्व का।

अब आपको अपने हाथ को फिर से अपने पेट के उपरी हिस्से में उठाना है। फिर आपके दिल पर, और फिर आपकी गर्दन और कंधे के कोने में। और जितना हो सके अपने सिर को अपने दाहिनी ओर घुमाएं। यह वह चक्र है जो तब अवरुद्ध हो जाता है जब आप दोषी महसूस करते हैं, जो एक बहुत खतरनाक चीज है; इससे आपको स्पॉन्डिलाइटिस, एनजाइना, कई बीमारियां हो जाती हैं।

अब हम अपने हाथ को अपने माथे पर रखते हैं और अपने सिर को झुकाते हैं, इसे अपने हाथ पर टिकाते हैं, और इसे दोनों तरफ से जोर से दबाते हैं।

यह वह चक्र है जहां आप दूसरों को क्षमा करते हैं।

अब आप अपने हाथ को अपने सिर के पीछे की तरफ ले जाएं और अपने सिर को पीछे की तरफ जितना हो सके पीछे धकेलें।

यह वह केंद्र है जहां आपको बिना दोषी महसूस किए, अपनी गलतियों को गिनाए बिना ईश्वर से क्षमा मांगनी है।

अब अपना हाथ फैलाएं, इसे अच्छी तरह से फैलाएं, और अपनी हथेली के मध्य भाग को फॉन्टानेल हड्डी (तालू) क्षेत्र के ऊपर रखें, जो आपके बचपन में नरम हड्डी थी। अपनी उँगलियों को पीछे खींचे, अपनी उँगलियों को पीछे धकेलें, तालू भाग पर एक अच्छा दबाव डालें और अपनी खोपड़ी को सात बार दक्षिणावर्त घुमाएँ, बहुत धीरे-धीरे।

आपको बस इतना ही करना है।

[श्री माताजी अपने सहस्रार की मालिश करती हैं]

ठीक है, अब अपने हाथ नीचे करो।

अब जब तक मैं न कहूँ, तब तक तुम्हें अपनी आँखें बंद रखनी हैं, उन्हें खोलना नहीं है।

कृपया बायां हाथ मेरी ओर रखें और दोनों पैर एक दूसरे से अलग रखें।

दाहिने हाथ को अपने दिल पर रखें और अपनी आंखें बंद करें।

यहाँ आपको मुझसे तीन बार एक प्रश्न पूछना है, जो बहुत महत्वपूर्ण है - आप मुझे श्री माताजी या माँ कह सकते हैं, जो भी आपको ठीक लगे - "माँ, क्या मैं आत्मा हूँ?" यह तीन बार पूछो।

अब, यदि आप आत्मा हैं, तो आप ही अपने गुरु हैं, इसलिए कृपया अपना दाहिना हाथ अपने पेट के ऊपरी हिस्से में ले जाएँ और इसे जोर से दबाएं। यहाँ आप मुझसे फिर से तीन बार एक प्रश्न पूछते हैं: "माँ, क्या मैं स्वयं का गुरु हूँ?" तीन बार।

मैं तुमसे पहले ही कह चुकी हूँ कि मैं तुम्हारी स्वतंत्रता का सम्मान करती हूँ और मैं तुम पर शुद्ध ज्ञान थोप नहीं सकती। इसके लिए आपको मांगना होगा। तो अब आप अपने दाहिने हाथ को अपने पेट के निचले हिस्से में रखें। इसे जोर से दबाएं और छह बार कहें: "मां, कृपया मुझे शुद्ध ज्ञान दें", क्योंकि इस चक्र में, इस चक्र में छह पंखुड़ियां हैं।

अब, जैसे ही आप कहते हैं कि आपको शुद्ध ज्ञान चाहिए, कुंडलिनी उठने लगती है।

इसलिए हमें अपने आत्म-विश्वास से ऊपर के चक्रों को पोषित करके उसे साफ करना होगा। तो अब अपने हाथ को बाएं तरफ अपने पेट के ऊपरी हिस्से पर ले जाएं और जोर से दबाएं।

यह आपके गुरु तत्व का केंद्र है। तो इस केंद्र को खोलने के लिए आप कृपया पूरे विश्वास के साथ दस बार कहें: "माँ, मैं ही स्वयं का गुरु हूँ"।

अब, हमें यह जानना होगा कि हम यह शरीर नहीं हैं, हम यह मन नहीं हैं, हम ये भावनाएँ नहीं हैं, और हम यह बुद्धि नहीं हैं।

हम अपने संस्कार नहीं हैं, हम अपना अहंकार नहीं हैं, बल्कि हम शुद्ध आत्मा हैं।

इसलिए अपना दाहिना हाथ उठा कर अपने हृदय पर रखें, और पूरे विश्वास के साथ बारह बार कहें: "माँ, मैं आत्मा हूँ", जो कि आपके बारे में सबसे बड़ा सत्य है।

अब, हमें यह जानना होगा कि ईश्वरीय प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति करुणा और प्रेम का सागर है। यह आनंद और आनंद का सागर है। सबसे बढ़कर यह क्षमा का सागर है। तो आप जो भी गलतियाँ करते हैं वह इस सागर द्वारा आसानी से क्षमा की जा सकती हैं।

तो अब, कृपया अपने आप से खुश रहें, अपने आप को क्षमा करें, और अपना दाहिना हाथ अपने कंधे के कोने और अपनी गर्दन में, बिल्कुल पीछे की ओर रखें, इसे पीछे की ओर धकेलें, और अपने सिर को अपने दाहिनी ओर मोड़ें।

यहाँ आपको पूरे विश्वास के साथ अपने आप को सोलह बार कहना है: "माँ, मैं बिल्कुल भी दोषी नहीं हूँ।"

मैं तुमसे पहले ही कह चुकी हूँ कि क्षमा करना या न करना, तुम कुछ नहीं करते, यह एक मिथक है। लेकिन अगर आप माफ नहीं करते हैं, तो आप गलत हाथों में खेल जाते हैं।

तो अब आप अपना दाहिना हाथ उठाएं और अपने कपाल पर रखें और जहां तक हो सके अपना सिर झुकाएं और दोनों तरफ से दबाएं, और यहां आपको कहना है: "मां, मैं सभी को क्षमा करता हूं।" इसे अपने दिल से कहो।

अब अपने हाथ को सर के पिछले भाग पर रखें और धीरे-धीरे अपने सिर को पीछे की ओर ले जाएं। यहाँ अब, अपनी गलतियों को गिने बिना, दोषी महसूस किए बिना, अपनी संतुष्टि के लिए आपको कहना होगा: "हे ईश्वर, अगर मैंने कोई गलती की है, तो कृपया मुझे क्षमा करें।"

अब अपने हाथ को पूरी तरह से फैलाएं और अपनी हथेली के मध्य भाग को अपने सिर के ऊपर, तालू भाग (फॉन्टानेल बोन) एरिया पर रखें, जो एक नरम हड्डी है, और अपना सिर झुकाएं।

और अब आपको अपने सिर की त्वचा को सात बार बहुत धीरे-धीरे दक्षिणावर्त घुमाना है। अपना सिर झुकाएं। लेकिन यहाँ फिर से, मैं आपको आत्म-साक्षात्कार के लिए बाध्य नहीं कर सकती, यह आपको मांगना होगा। तो आपको अपना हाथ हिलाते हुए कहना है: "श्री माताजी, कृपया मुझे मेरा आत्म-साक्षात्कार दें।" सात बार।

[श्री माताजी माइक्रोफोन में प्रणव फूंकती हैं]

कृपया अपने हाथ नीचे करें। और अपने हाथ खोलो। कृपया अपने हाथ इस तरह [श्री माताजी की ओर] रखें।

निर्विचार हो कर मुझे देखो।

अब अपने सिर को झुकाएं और अपने बाएं हाथ को अपने सिर के ऊपर तालू

के ऊपर क्षेत्र पर रखें, और खुद महसूस कर देखें कि आपके सिर से ठंडी हवा आ रही है या नहीं। या वहाँ कुछ गर्मी हो सकती है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

अब, बायां हाथ मेरी ओर रखें, और सिर को नीचे करें और खुद देखें कि क्या आपके तालू भाग (फॉन्टानेल बोन) एरिया से ठंडी हवा आ रही है। यह आगे हो सकता है, यह निकट हो सकता है, यह निर्भर करता है।

अब अपना दाहिना हाथ मेरी ओर रखें और अपने सिर को फिर से ठीक से झुकाएं, और खुद देखें कि आपके तालू भाग(फॉन्टानेल बोन एरिया) से ठंडी हवा आ रही है या नहीं।

अब, अपने हाथों को अपने सिर के ऊपर इस तरह पीछे उठाएं और एक प्रश्न पूछें, इन तीन प्रश्नों में से कोई एक: "माँ, क्या यह होली घोस्ट की शीतल हवा है?"

"माँ, क्या यह ईश्वर के प्रेम की सर्वव्यापी शक्ति है?"

"माँ, क्या यह परमचैतन्य है?"

यह प्रश्न इनमें से कोई एक तीन बार पूछिए।

अब कृपया अपने हाथ नीचे करें।

जिन लोगों ने अपने हाथों में या अपने सिर से ठंडी हवा महसूस की है कृपया अपने दोनों हाथ ऊपर उठाएं।

बाप रे बाप।

परमात्मा आप पर कृपा करे।

परमात्मा आप को आशिर्वादित करें।

अब जानो कि तुमने इस सर्वव्यापी शक्ति को स्पर्श कर लिया है। कुछ लोगों ने नहीं भी किया है। शायद उन्हें खुद पर शक हो रहा था। शायद वे शारीरिक रूप से ठीक नहीं थे या मानसिक रूप से ठीक नहीं थे। शायद सिर्फ इसलिए कि वे आज ही आए हैं। लेकिन आप सभी को आत्मसाक्षात्कार मिल सकता है।

इसे प्राप्त करना आपका अधिकार है। इस पूर्ण अवस्था तक पहुँचना उत्क्रांती की प्रक्रिया की सफलता है। तो अब मैं आप सभी से अनुरोध करूंगी कि आप उत्तरोतर कार्यक्रम में आएं और उन पाठ्यक्रमों में जहां आपको स्वयं को समझने के लिए ज्ञान और प्यार दोनों मिलता है।

जो भी हो, मैं उन लोगों से मिलना चाहूंगी जिन्हें आज आत्मसाक्षात्कार मिल गया है। और जिन्हें यह नहीं भी मिला है वे भी यहां मंच के किनारे आ सकते हैं और इस पर काम किया जा सकता है।

बस आनंद आ रहा है! आनंद हो रहा है।

Milan (Italy)

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