Maintaining purity of Sahaja Yoga

Maintaining purity of Sahaja Yoga 1979-10-08

Location
Talk duration
125'
Category
Public Program
Spoken Language
English

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8 अक्टूबर 1979

Public Program

Caxton Hall, London (England)

Talk Language: English | Translation (English to Hindi) - Draft

परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी,

'सहज योग की शुचिता कायम रखना '

कैक्सटन हॉल, लंदन

10 अक्टूबर, 1979

...कुछ समय से अपने ही ढंग से चल रहा है (श्री माताजी किसी सहज योगी के विषय में कह रही हैं) मैंने कहा, 'उसे प्रयास करने दो।'

डगलस फ्राई: मै लाउडस्पीकर का प्रयोग नहीं कर रहा हूं। मै सिर्फ आप को रिकॉर्ड कर रहा हूं। यह सिर्फ रिकॉर्डिंग के लिए है।

श्री माताजी: ओह, यह लाउडस्पीकर नही है!

सहज योगी: ये सिर्फ टेप है।

श्री माताजी: ओह, ये बात है!

और उसने कई प्रकार की चालें चलना आरंभ कर दिया था। आप समझे, जो मैंने उसके बारे में अनुभव किया था, कि उसने अपने आत्म साक्षात्कार के बारे में कुछ चालबाजी करनी आरंभ कर दी। क्योंकि सिर्फ यही वो एक चीज है, जिस में आप पड़ सकते हैं, जिस में आप को बहुत अधिक सावधान रहना चाहिए।

और उसने प्रेतात्माएं एकत्रित कर लीं, क्योंकि उसको उपचार करने में बहुत अधिक रुचि हो गई। मैंने उसे और ज्यादा उपचार करने से मना किया था। मैंने कहा, 'आप मेरा फोटो दे सकते हैं, पर उपचार कार्य में संलग्न मत हो, क्योंकि अगर आप प्रेतात्माएं से ग्रस्त हो गए, तो आप को पता भी नहीं चलेगा, आप उसके प्रति असंवेदनशील रहेंगे और फिर आप को समस्याएं हो जाएंगी।'

और फिर उस में ऐसी विचित्र प्रेतात्माएं थीं कि जो लोग उसके पास आए, वो प्रेतात्मयें उन लोगों को इसको धन देने के लिए प्रभावित कर रही थीं। और कुछ लोग बाध्य किए गए। मेरा मतलब वो खुद को रोक नहीं पाए। उनके दिमाग में जो एक ही विचार चला, की उन्हे उस (सहज योगी) को धन अवश्य देना चाहिए। परंतु यह तो कुछ नहीं था! उसने मेरा फोटो आंखों में दिखाना आरंभ कर दिया और साईं बाबा का फोटो आंखों में दिखाना शुरू कर दिया और हर प्रकार की निरर्थक बातें!

हेलो, आप कैसे हैं?

सहज योगी: मैं अच्छा हूं।

श्री माताजी: आप की पीठ कैसी है?

सहज योगी: मेरी पीठ? मैं आभारी हूं कि मेरे पास एक (पीठ) है।

श्री माताजी: और इस प्रकार उसने बहुत सारे बुरे काम किए। तो आप को सावधान रहना चाहिए, जब आप किसी को देखते हैं, यह उसके साथ होते हुए, जो इसमें आगे जा चुका है, तो इस बारे में सावधान रहें, क्योंकि अहंकार आप को धोखा दे सकता है। उसे लगा कि वो एक महान सहज योगी है, और वो इतना अधिक कार्य कर रहा था, और उसे बहुत अधिक उपचार करना चाहिए।

असल में आप का चित्त उपचार पर ज्यादा नहीं होना चाहिए, क्योंकि अगर आपको कोई पकड़ आए, तो भी आपको कुछ समय बाद पता ही नहीं चलेगा और पूरी बात.. बन जायेगी..

हेलो सुधा, तुम कैसी हो? आगे आ जाओ।

तो अब हमें बहुत अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है, कि हम क्या कर रहे हैं और हम किस प्रकार सहज योग में आगे बढ़ेंगे। हमे सहज योग की पवित्रता - शुचिता को बनाए रखना है। वह शुचिता है। उसे शुचिता कहते हैं, जो सहज योग की पवित्रता है। आप को सहज योग को उसके पवित्र स्वरूप में समझना चाहिए, और जब आप को ये योग प्राप्त हो गया है, आप को अब इस में जमना है और साथ ही सहज योग के अनुसार आप को स्वयं को शुद्ध करना है।

क्योंकि अब तक आप ने (एब्सोल्यूट) एकमेव का अनुभव नहीं किया है, आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने से पहले। देखिए आत्म साक्षात्कार के द्वारा आप एकमेव से एक रूप हो जाते हैं, आप एकमेव को जानते हैं। एक बार आप एकमेव को जानते हैं, तभी आप सापेक्ष (रिलेटिव) को जान सकते हैं। जब तक आप एकमेव को नहीं जानते आप विक्षेप (कन्फ्यूजन) में रहते हैं, क्योंकि हर चीज सापेक्ष है। और इसलिए कोई नहीं जानता की वास्तव में क्या सही है, और क्या नहीं।

तो, आप के पास एक एकमेव बिंदु होना चाहिए, जैसे पेरिस में आप के पास एक मीटर है, जो एक स्थिर चीज है, और जब आप कहते है कि ये दस मीटर है तो वो दस गुना है उस एक मीटर का जो पेरिस में है। परंतु क्योंकि हमने अपना एकमेव प्राप्त नहीं किया है, हम विक्षेप में हैं, तो इस विक्षेप में कोई भी उसका लाभ उठा सकता है। तो प्रथम चीज है कि हमें एकमेव को प्राप्त करना चाहिए, और आत्मा ही एकमेव (एब्सोल्यूट) है।

आत्मा विद्यमान है, और बिना किसी से टकराव के लहरें बना रही है। उदाहरण के लिए अगर मुझे ध्वनि पैदा करनी है, तो मुझे अपने दोनों हाथों से ताली बजानी होगी। या फिर आप इसे इस प्रकार समझ सकते हैं। मान लीजिए, आप तलाब में पत्थर फेंकते हैं, तो तालाब में लहरें उठने लगती हैं। इसका अर्थ हुआ, कि पत्थर को पानी पर आघात करना होगा, लहरों का वह नमूना बनाने के लिए। परंतु क्या आप ऐसे पत्थर के बारे में सोच सकते हैं जो पानी में ही है और बिना टकराए ध्वनि उत्पन्न कर रहा है? इसीलिए कहा जाता है कि आत्मा निस्पंद है। हमें यह नहीं कहना चाहिए की वो वाइब्रेट नहीं करती, वो वाइब्रेट करती है पर स्पंदन निर्मित नहीं करती। वह कोई ऐसी वस्तु नहीं जो टकराव में जाती हो। बिना किसी चोट या टकराव के वो निर्मित करती है। उदाहरण के लिए मैं यहां बैठी हूं। आप मेरे चैतन्य को अनुभव कर सकते हैं। बिना किसी टकराव के लहरे आ रही हैं! यह सिर्फ उत्सर्जित करती है।

इसी प्रकार आपकी आत्मा का आप अनुभव करते हैं, जब आप उसको अपनी कुंडलिनी के द्वारा स्पर्श करते हैं। जब वह जागृत होती है, वह एक जागृत वस्तु होती है, परंतु जब वह आपके चित्त से जुड़ जाती है, तब आपका चित्त बिना टकराव के उन लहरों को प्राप्त करता है, जो आपके हाथों पर चैतन्य लहरी के रूप में प्रवाहित होती हैं। और क्योंकि यह परम से आ रहा है, आपको इनसे परम के बारे में पूर्ण उत्तर प्राप्त हो सकता है।

और इस बिंदु पर बहुत अधिक लोगों ने आत्म साक्षात्कार प्राप्त किया है, कि आप कोई भी परम प्रश्न पूछे और आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं।

इसीलिए पहले योग हैं और फिर क्षेम आता है। पहले आता है योग यानी मेल, या जैसे संस्कृत में कहा जाता है आपके चित्त की युक्ति को जीव कहते है और आत्मा को शिव कहते हैं। इन दोनों का मिलन होना चाहिए। जब तक वे नहीं मिलते, तब तक आप अपने परम तक नहीं पहुंच सकते! जब एक बार आप परम का अनुभव कर लेते हैं आप अन्य चीजों का निर्णय सापेक्ष में ले सकते हैं। संस्कृत भाषा में इसे 'अपरा' कहते हैं जो एब्सोल्यूट है। इसमें कुछ 'परस्पर' नहीं है यानी कि कुछ भी सापेक्ष नहीं है। यही परम है।

पर जैसे कि आपने देखा होगा, उसको जानने के लिए भी आप समय लेते हैं। उसमें पूर्णत: डूबने के लिए भी आप समय लेते हैं। ये विकास समय लेता है, इसीलिए आपको सावधान रहना चाहिए। ना सिर्फ सावधान, बल्कि सतर्क रहना चाहिए, और इसे कार्यान्वित करना चाहिए। इसके साथ पूर्णत: एकरूप होने के लिए आपको परिपक्व होना चाहिए।

अंकुरण शुरू होने पर परिपक्वता बिंदु आरंभ होता है। अगर आप अंकुरित भी नहीं हुए हैं, तो आप परिपक्व कैसे होंगे? तो परिपक्वता आत्म साक्षात्कार के पश्चात आरंभ होती है। आपका क्षेम भी आरंभ होता है। आप अपना क्षेम अर्थात आप का कल्याण प्राप्त करते हैं योग के पश्चात, और फिर धीरे धीरे आप परिपक्व होना आरंभ कर देते हैं। और एक बार जब आप समझदारी से परिपक्व हो जाते हैं अच्छी तरह, आपको कुछ मात्रा में शुद्धता रखनी होगी, हर एक को शुचिता रखनी चाहिए।

अगर वह शुद्धता वह शुचिता आप अपने अंदर नहीं रखेंगे और इसके बारे में वह सच्चाई नहीं रखेंगे, तो आप उतनी शीघ्र उन्नति नहीं करेंगे। मेरा मतलब है, यह किसी और का काम नहीं है, यह आपका काम है। यह आपको ही करना है! अगर आप नहीं करते, तो आप लूजर (हारे हुए) हैं!

मेरा तात्पर्य है कि सभी साधकों का रवैया एक साधक के रवैए जैसा होना चाहिए। इसका अर्थ है, कि आप खोज रहे हैं। जब आप खोज रहे हैं तो आप मांग रहे हैं। आप एक उपहार मांग रहे हैं। अब उस उपहार को प्राप्त करने के लिए जो कुछ भी अनिवार्य है, वह आपको करना ही है, पूरी समझ के साथ, पूरी परिपक्वता के साथ।

अब जब परिपक्वता आरंभ भी होती है, आरंभ में बहुत से लोग काफी भ्रमित होते हैं। अगर वह उस विक्षेप की स्थिति से बाहर निकल पाते हैं, तो वह स्वयं को पूरी तरह स्थापित कर सकते हैं। पर अगर वे बाहर नहीं आ पाते, और उसी विक्षेप में रहते हैं, तब वे सिर्फ उसी स्तिथि मे हो सकते हैं, तब फिर वह दिशा ज्ञान रहित हो सकते हैं, और वो उससे कभी भी बाहर नहीं निकल सकते। इस भ्रांति से लड़ना होगा, इसका सामना करना होगा, इसको देखना होगा।

अब विक्षेप भी आपके अंदर की जो पहले अवधारणाएं रही उसके कारण आता है। आप की बहुत सारी अवधारणाएं रही हैं। आप का बहुत ब्रेनवाश हुआ है। और साथ ही आप को बहुत सारी शारीरिक समस्यायें हुई हैं, मानसिक समस्याएं हुई हैं, और वातावरण और अन्य प्रकार की चीजें भी, जिन्होंने आप का यंत्र खराब कर दिया है। परंतु कुंडलिनी के जागरण के कारण आप के चक्र जाग्रत हो जाते है, और इस जागरण के माध्यम से आप सब कुछ देख सकते हैं। अब अगर इस कमरे में रोशनी न हो, तो आप नहीं जानते की इस को कैसे सही करना है। परंतु जब प्रकाश आ गया, तो आप स्वयं का सुधार करना और ऊपर ही ऊपर उठना आरंभ कर देते हैं।

कुछ लोग अन्य लोगों की तुलना परिपक्वता तेजी से प्राप्त कर लेते हैं, इस तथ्य के बावजूद कि उन्हें कई लोगों द्वारा बर्बाद कर दिया गया, पर फिर भी वे प्राप्त करते हैं। तो क्या कार्य करता है? उस में किस वजह से तेज़ी आती है? यह बायां पक्ष है, जिसे हम महाकाली शक्ति कहते हैं, और हम उसे इच्छाशक्ति कह सकते हैं, इच्छा करने की शक्ति।

अगर आपकी इच्छा शक्ति बहुत प्रबल है और आपके हृदय से आती है, पूर्णत: आप के हृदय से आती है, तब ये और शीघ्रता से कार्यान्वित होता है। इसलिए आप को हृदय में एक अंतरिक भावना विकसित करनी होगी। कोई और आप को नहीं संभालेगा। अगर आप स्वयं को धोखा देना चाहते हैं, तो दे सकते हैं। अगर आप चाहें तो आप पीछे छूट सकते हैं। परंतु सिर्फ अपने हृदय से आपको इसको अनुभव करना है, कि आपको इसमें परिपक्व होना है। आपको इस के स्तर तक ऊपर आना है। एक बार आप अपना पूरा हृदय इसमें लगा देंगे, सब कुछ कार्यान्वित होगा, क्योंकि पूरी ताकत आपके हृदय से आ रही है, क्योंकि हृदय में ही आत्मा का वास है।

तो एकमात्र निर्णायक बिंदु है, 'क्या यह कार्य में हृदय से कर रहा हूं? या क्या सतही तौर पर ये कर रहा हूं?' और जो भी कार्य आप सिर्फ अपने हृदय से करते हैं, वही आपको आनंद प्रदान करता है। और जब आप इसे अपनी आत्मा से करते हैं, उस से आपको महानतम खुशी और आनंद प्राप्त होना चाहिए।

और अब आप स्वयं, आप में से बहुत से, आनंद के आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं, बस सिर्फ एक दूसरे की आत्मा और उसकी सुगंध का अनुभव कर रहे हैं। जैसे दूसरों से एकरूप होने के आशीर्वाद, मित्रता, शुद्ध मित्रता के पवित्र संबंध सिर्फ एक दूसरे की आत्मा का आनंद लेने के लिए, और किसी चीज के लिए नहीं, ना शरीर, ना मन, ना बौद्धिक खोज और ना बातचीत।

आप सभी को यहां फिर से देखकर बहुत अच्छा लगा।

अब हमें विभिन्न प्रकार की समस्याएं हैं। मुझे लगता है कि यह देश से अधिक संबंधित हैं, और संबंधित हैं.. मैं कहूंगी कि यह स्थानीय प्रकार की हैं। जैसे बम्बई के लोगों की अपनी समस्याएं हैं, और दिल्ली के लोगों की अपनी समस्याएं हैं, और उनमें से अधिकांश की शैली समान है। यह सब से आश्चर्यजनक है! और मैं कहूंगी कि एक खास गांव के लोग और उस गांव की शैली में उनकी अपनी समस्याएं हैं। तो धरती माता को भी इस बारे में कुछ करना पड़ता है।

अब मैं कहूंगी कि बंबई मे वास्तव में कुछ बहुत ही पहुंचे हुए सहज योगी हैं, बहुत गहन लोग। परंतु अब तक स्थानीय भाग बहुत ही कमजोर है, इस अर्थ में कि यह इस तरह नहीं फैला! यह बहुत गहरा चला गया। और जड़ों को नीचे जाना होता है। और बहुत ही कम जड़े होती हैं जिनकी वास्तव में आवश्यकता होती है, परंतु शाखाएं नहीं फैली हैं।

दिल्ली एक और है। दिल्ली शाखाओं की तरह है

जो हर तरफ फैली हैं, और लंदन फलों की तरह हैं या मैं कहूंगी पुष्प हैं, जिस प्रकार यहां स्थिति है। लेकिन ये लोग सुभेद्द हैं, इस प्रकार स्थित होने के कारण, बहुत नाजुक जिन्हे आसानी से चोट पहुंचाई जा सके हैं। यहां हर प्रकार की मधुमक्खियाँ इधर-उधर मँडरा रही हैं।

सभी प्रकार की समस्याएं आपके सामने हैं, सब प्रकार के परिवेश के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए। अब अगर मैं आपको भीड़ के कोलाहल से पूरी तरह से बाहर रखूं, जैसा आप उसे कहते हैं, तब ऐसा होगा कि वो प्रतिरोधक क्षमता आप में विकसित नहीं होगी जो होनी चाहिए थी। और अगर आप इन लोगों के ज्यादा नजदीक जाएंगे, आप भी प्रभावित हो सकते हैं, जो आप प्रभावित होते हैं यहां, क्योंकि यहाँ बहुत ही भयावह रूप से नकारात्मक लोग हैं।

तो सबसे अच्छी बात यह होगी, कि सब से पहले आप खुद को विकसित करें, आप सहज योगी एक साथ। एक दूसरे के बीच बंधुत्व विकसित करें, एक समूह बनाएं और उस समूह को समग्र रूप से बढ़ाते चले जाएं। और यह सबसे सर्वोत्तम तरीका होगा जिससे हम सभी की रक्षा की जा सके, और किसी प्रकार इस तरह से काम हो रहा है। मैं बहुत प्रसन्न हूं। आपने चीजों के प्रति एक समझदार रवैया अपनाया है।

अब सहज योग और आत्म साक्षात्कार देने के इस तरीके, जो की एकमात्र तरीका है, के बारे में अन्य लोगों से बात करना।

मैंने पाया है कि पश्चिम में लोग पहले ही दूसरे मार्गों पर जा चुके हैं। उनके लिए यौन क्रिया किसी भी और चीज से ज्यादा महत्वपूर्ण है। उनके लिए पैसा किसी और चीज से ज्यादा महत्वपूर्ण है। इस प्रकार की बातें वहां हैं।

इसलिए जब आप उनसे इस बारे में बात करते हैं, तो वे इस बिंदु पर घबराकर पीछे हट सकते हैं।

तो आपको बैठकर आपस में विशेषज्ञ मंडल (ब्रेन ट्रस्ट) विकसित करना होगा। क्योंकि यह बहुत नाजुक मामला है कि इन लोगों को कैसे प्रभावित किया जाए! प्रभाव के बजाय आप उनके मन में अवसाद पैदा कर सकते हैं! तो सब से उत्तम होगा की आपस में बैठ कर विचार विमर्श करें, क्योंकि आप उन में से एक हैं और वे आप मे से एक हैं, और आप जानते हैं कि उनकी क्या समस्याएं हैं! कुछ चीजों पर अचानक इतना जोर कैसे दिया जाता है? और मुख्य तर्क होगा, 'क्या गलत है? मैंने ये सामना किया है! क्या गलत है? इसमें क्या गलत है?' जब तक कुंडलिनी के जागरण तक नहीं पहुंचते हैं, उन्हें पता ही नहीं चलेगा कि क्या गलत है। क्योंकि तब वह स्वयं देखेंगे कि कुंडलिनी रुक गई है, और ऊपर नहीं उठ रही है इस वजह से, उस वजह से। पर वे आएंगे नहीं। तो बैल को चारे तक कैसे लाया जाए, यही तो समस्या है!

तो आप सबको साथ बैठना होगा, क्योंकि अभी आज यहां ज्यादतार सहज योगी हैं, और इन लोगों से संपर्क करने के तरीके और विधि खोजें। एक दिन आपस में विचार-विमर्श करिए। क्योंकि इस विषय में शायद मैं आपकी इतनी अच्छी मार्गदर्शक ना हो सकूं। मुझे लगता है कि आप लोग ही इस देश के दार्शनिकों से, और इस देश के नेताओं से, और जो लोग यहां के नागरिकों के लिए प्रतिमान और आदर्श माने जाते हैं, उनसे निबटने के लिए सबसे बढ़िया हैं।

तो आप स्वयं देख सकते हैं, कि उनके बारे में इतना प्रभावशाली क्या है। किस प्रकार ये उनके दिमाग में लाना है कि आप नहीं देख पा रहे हैं, की अगर आप ये सब चीजें करेंगे तो आप के लिए कितनी नुकसानदायक हो सकती हैं!

परंतु उसके लिए, आप जानते हैं, कि भारत में उन्होंने क्या किया है। उदाहरण के लिए जैसे मैं आप से रजनीश के बारे में बात कर रही थी। तीन चार डॉक्टरों ने कुछ ऐसे लोगों को पकड़ लिया जो रजनीश के पास गए थे, क्योंकि वे वहां थोड़े पागल हो गए थे। उन्होंने उन्हें पकड़ लिया और फिर उन्होंने उनकी अच्छी तरह जांच की। उन्हें पता चला कि मामला क्या है और उन्होंने इसके बारे में पेपर प्रकाशित किया। इस तरह से अगर आप करें! आप देखिए कि उन्हें धार्मिकता में, स्वस्थ जीवन जीने में पूरा विश्वास था, तो वे जानना चाहते थे कि वह सही है या नहीं। जब उन्हें उन लोगों के बारे में पता चला उनकी समस्याओं के बारे में पता चला, तो ही वह उसके बारे में लिख पाए।

मुझे लगता है ऐसा ही कुछ यहां भी करना चाहिए लोगों को आश्वस्त करने के लिए, कि अगर आप इन गलत तरीकों को अपनाते हैं, तो ऊपरी तौर पर वह कोई बुरे परिणाम नहीं देते, परंतु आंतरिक तौर पर वह ऐसी समस्याओं पैदा करते हैं और रिक्तता उत्पन्न होती हैं। यह इतने ज्यादा हानिकारक हैं! इसी प्रकार अहंकार स्वयं इतना हानिकारक है, और इन बातों से अहंकार कैसे सिर चढ़ जाता है, यह अगर आप उन्हें इस तरीके से समझा सकें, तो यह बहुत अच्छा विचार है। तो यह तो सहज योगियों के लिए हो गया।

अगर आपके कोई प्रश्न हैं, तो आप मुझसे पूछ सकते हैं। फिर हम उन नए लोगों से मिलेंगे जो यहां आए हुए हैं।

सहज योगियों का कोई सवाल है? मैने जॉन डॉन को नहीं देखा!

सहज योगी: जॉन कैंब्रिज में है।

श्री माताजी: वह अभी भी वही है?

सहज योगी: वह अब वहां गया है।

श्री माताजी: तो उसने ज्वाइन कर लिया है! हां?

तो आप में से किसी को भी सहज योग पर सवाल पूछना है तो पूछिए। यही बेहतर होगा! फिर मैं नए लोगों से बात करूंगी।

तो आप कैसे हैं? बेहतर? सभी लोग पहले से बेहतर लग रहे हैं। लिंडसे आप कैसे हैं?

लिंडसे: उत्तम

श्री माताजी: (मराठी भाषा में) आप कैसे हैं? ठीक हैं एकदम?

सहज योगिनी: एकदम!

श्री माताजी: यह क्या है?

सहज योगी: (अस्पष्ट)

श्री माताजी: इन्होंने संस्कृत में कविता लिखी है।

आप सब की जानकारी के लिए, अब राजेश की भी शादी हो रही है। वह इंग्लैंड की एक लड़की से शादी कर रहे हैं। वह चंदारिया हैं। आपने देखा होगा उनको। आपने जरूर देखा होगा उनको? आप में से कुछ ने देखा है। और वह बहुत अच्छी लड़की है। तो अब हमारा परिवार आकार में बढ़ जाएगा।

तो कोई सवाल नहीं? कुछ है? संडोर (इलेस)? (श्री माताजी हंसते हुए) सब लोग निर्विचार समाधि में हैं।

मेरा मतलब है कि सहज योग का नाम महायोग है। यह वो है, जहां आप परमात्मा से मिलते हैं। तो यह महायोग है, क्योंकि सब कुछ इसमें सहज ही है। आरंभ से ही यह सहज है, सब कुछ। हमारी नाक, आंख हमको सहज में ही प्राप्त हुई हैं। इसके लिए हमने कुछ नहीं किया है। पर अब बात है की जहां हम परम से मिलते हैं। उस बिंदु को महायोग कहते हैं।

जैसे कि जब तक मैं यहां नहीं आई, जब तक आपने मुझे नहीं देखा। यह आधा रास्ता था। तो योग नहीं था। यहां जो कुछ भी रहा हो, वो असली योग नहीं था। आप लोग सारी तैयारियां कर रहे हैं, सारी व्यवस्था कर रहे हैं, और वहां सब कुछ था, पर जब हम मिले यह योग है। तो जिस बिंदु पर आप मिले, वही असली स्थान है, और इसीलिए यह महायोग है।

जैसे मैं हवाई जहाज से लंदन आ रही हूं। फ्रैंकफर्ट तक मैं लंदन में नहीं हूं। जब मैं लंदन में उतरती नहीं, तब भी मैं वहां नहीं हूं, क्योंकि अभी तक मैं आपसे मिली नहीं हूं। जब तक मैं आपसे द्वार पर नहीं मिलूंगी तब तक योग घटित नहीं होगा। तो यह वो बिंदु है, वह क्षण है, वह क्षणांश है, जब आप अपनी आत्मा से मिलते हैं। यही योग है। तो वास्तव में ये महायोग है।

असल में आरंभ में, मैं इसे महायोग कहना नहीं चाहती थी क्योंकि पहले से ही अहंकार के सर्प (श्री माताजी हंसते हुए) अपने सारे संपूर्ण फणौं के साथ मेरे सिर पर बैठे थे। तो मैंने कहा, बेहतर होगा सहज से शुरू करें। क्योंकि अगर मैंने कहा, 'ये महायोग है', वे सब आकर मुझ पर जोर से प्रहार करेंगे और कहेंगे कि, 'हे भगवान! ऐसा कैसे हो सकता है?' परंतु ये वो (महायोग) है।

और अब यह स्थापित हो चुका है, कि इस में कुछ बात है, कि यह कार्यान्वित हो रहा है, क्योंकि लोगों ने अपनी कुंडलिनी उठते हुए देखी है। उन्होंने अपनी आंखों से देखा है सारे चक्रों को जागृत होते हुए, और अब वे इस में विश्वास करते हैं। वह जानते हैं कि इसमें कुछ खास है की ये कार्यान्वित हो रहा है। और उस महिला (श्री माताजी) में भी कुछ खास बात है, कि यह घटित हो रहा है। अन्यथा यह एक कठिन बात है। मेरा मतलब यह बहुत मुश्किल है, इसमें कोई संदेह नहीं। कुंडलिनी को उठाना बहुत कठिन है।

लेकिन यह कुछ ऐसा होगा, जैसे कोई बहुत ही भोला व्यक्ति कुछ करने की कोशिश कर रहा है। जैसे पहले हाथों को प्लग में डालना, फिर एक किताब लिखना, 'कुंडलिनी का अर्थ आपको झटका लगना'। फिर दूसरी पुस्तक, 'बिजली का अर्थ अर्थात आप को दूसरा झटका लगना'।

इस प्रकार की तीन चार किताबें आएंगी और लोग विश्वास करने लगेंगे की बिजली का अर्थ है की आप को झटका लगेगा, आप को हार्ट अटैक आएगा, आप कूदने लगेंगे।

परंतु जो ये जानता है की बिजली क्या है, वो एक ही है, जो सहज योगी है। परंतु वो जिसने मान लीजिए कनेक्शन का काम किया है और सब से अच्छा इंजीनियर है। ऐसे व्यक्ति के लिए सब कुछ एक खेल है।

इस देश की कुछ बीमारियों के बारे में भी मैं पता कर पाई हूं, कि हम क्या कर सकते हैं। उन में से एक गठिया है, या जिसे आप आर्थराइटिस कहते हैं। यह बिल्कुल ठीक हो सकती है।

पर मैं सोच रही थी हमें उन्हें बताने की जरूरत नहीं है की हम ये कैसे करते हैं, क्योंकि पहले उन्हें आत्म साक्षात्कार के लिए आने दो। तब हम उन्हे ये जानकारी देंगे। ये बहुत सरल है।

श्री माताजी: क्या यहां कोई है जो इस से ग्रस्त है? आप हैं? अच्छा! यह इसलिए है क्योंकि..

साधक: मेरे गले में!

श्री माताजी: आप के गले में?

साधक: बहुत बुरा नहीं है!

श्री माताजी: हां! फिर भी, यह बहुत जल्दी ठीक हो जायेगा। मैं आपको बता सकती हूं कि कैसे करना है। लेकिन यहां मैं आपकी मदद नहीं कर सकती, पर और सब कर सकते हैं। यह बहुत अधिक चैतन्य लहरियों के कारण है जो आपको मिल रही हैं। तो कोई एक सहज योगी अगर अपना हाथ रख दे। रेजिस तुम अपना हाथ उसकी पीठ पर रखो और उसके इस स्थान पर रखो और अपना हाथ बाहर की ओर रखो, यह सब बाहर वातावरण की ओर निकल जाएगा।

सहज योगी: क्या आप कोई भी किताबें (द एडवेंट) वापस ला पाईं?

श्री माताजी: किताबें? किताबें (श्री माताजी हंसते हुए) मै कहूंगी कि आपके सहज योगी मित्र, या आपके भाई और बहनें इस वजह से शर्मिंदा है। पर क्या करें?

आप देखिए ये हमारा देश है। अकुशल होने में माहिर होता जा रहा है। और उन्होंने पोर्ट पर हड़ताल शुरू कर दी, तो जहाज़ नही भेजे गए। उन्होंने मुंबई से सारे जहाज़ भेजने बंद कर दिए। तो ज्यादातर जहाज़ कलकत्ता या मद्रास से आ रहे थे। तो मैंने उनसे कहा बेहतर होगा आप सारी किताबें मद्रास या कलकत्ता भेज दें और उन्हें यहां भिजवा दें। लेकिन ऐसा करना एक बहुत ही जोखिमभरी चीज थी। किसी को पूरे रास्ते किताबों के साथ जाना पड़ेगा, और

उन्हे रेलगाड़ी द्वारा जाना होगा और किसी को उन्हे रखना होगा।

तो मैंने उनसे पूंछा अधिकतम समय क्या है? फिर उन्होंने कहा इस महीने के पंद्रह तारीख को जहाज़ जा रहा है। मैंने कहा, ठीक है! तो हम पंद्रहवें दिन के पश्चात एक महीने में उसके आने की उम्मीद कर सकते हैं। इसलिए किताबें बहुत जल्द यहाँ आ जाएँगी। उस से पहले आप तैयारियां आदि कर लें किताबों के आने के लिए। और उन्होंने कहा कि इंग्लैंड में किताबों पर कोई आयकर नहीं है, और हम बेवजह ही उसके लिए परेशान हो रहे थे।

तो किताबें सब बांध कर रख दी गई हैं। वे मेरे संग एक खेप भेजना चाहते थे पर मैंने कहा कि, 'अब भाड़े के लिए भुगतान कौन करेगा?' क्योंकि अगर मैं एयर इंडिया से आती तो मैं उसका काफी बड़ा हिस्सा ला सकती थी। परंतु क्योंकि मैं एयर इंडिया से नहीं आ सकी, तो मैं कुछ भी लेकर नहीं आ सकी। लेकिन कोई बात नहीं, वो हर हाल में आ ही जाएंगी!

आप लोगों ने किताब के बारे में बड़ी अच्छी रिपोर्ट दी हैं, कि यह बहुत अच्छी लिखी गई है, और ज्यादातर बातें बहुत अच्छे से समझाई गई हैं। लेकिन अब आप को विस्तार में जाना होगा। कोई उसका मराठी भाषा और हिंदी भाषा में भी अनुवाद कर रहा है। परंतु अब हमें कई बातों को विस्तार से समझना होगा।

अब किताब में अभी भी यह उल्लेख नहीं किया गया है, कि यह (लास्ट जजमेंट) अंतिम न्याय है। मुझे पता नहीं कि मैं आपको यह बता चुकी हूं, कि यह अंतिम न्याय है, जिसके बारे में हम सुनते रहते हैं। इस प्रकार आप का न्याय किया जाएगा, और वह बात हमने अभी तक पुस्तक में नहीं बताई है, जिसे आप को देखना है। आखिरकार आपको इस तरह से ही आंका जाएगा! और क्या?

ग्रेगआयर कहीं जर्मन भाषा सीख रहे हैं। मुझे उनसे कभी कोई पत्र नहीं मिला पर कोई बता रहा था, कि उसके पास उनका पता है, उनके भाई का भी पता है। आपको मालूम करना चाहिए।

परंतु आप लोगों की ओर से भी कुछ और पुस्तकें लिखी जानी चाहिए। एक छोटी किताब या कुछ और जो उन लोगों को दी जा सकती है, जिन्हें अब तक आत्म साक्षात्कार प्राप्त नहीं हुआ है, तो बहुत बेहतर होगा।

कौन से नए लोग आज आए हैं? क्या आप आगे आ सकते हैं?

कृपया आइए! कृपया आइए! आइए! आइए! हां आगे आइए! यहां बैठ जाइए! बैठ जाइए!

यह बहुत सरल है!

और कौन है? जो लोग पहली बार आए हैं, और जो अब तक आत्म साक्षात्कारी नहीं है, कृपया आगे आएं।

श्री माताजी: आप कैसे हैं मैं पूछ रही हूं! वह कैसे हैं? ठीक है? हां? अब ठीक है? आप कैसे हैं?

सहज योगी: थोड़ा बेहतर! जरा बेहतर!

श्री माताजी: हृदय? अभी भी? पर अब तो आप काफी बेहतर हैं?

सहज योगी: काफी बेहतर!

श्री माताजी: काफी बेहतर, हां?

बस इस तरह अपने हाथ सीधे रखें! क्या आप अपने मौजे निकाल सकते हैं, यह बेहतर रहेगा। हमें धरती मां की सहायता लेना होती है, आपकी कुछ समस्याओं को दूर करने के लिए! कृपया अपने मौजे निकाल लें। उन्हे नीचे जमीन पर रख दीजिए। बिल्कुल सीधा! सीधे जमीन पर! हां?

जरा अपने कान पकड़िए और यह चला जाएगा। क्या है? इनकी आज्ञा में थोड़ी पकड़ आ रही है। अपनी आंखें बंद कीजिए। जरा अपनी आंखें बंद कीजिए। जरा अपनी आंखें बंद कीजिए! उनका आज्ञा चक्र बहुत सुदृढ़ है!

आप पहली बार आए हैं? आपको आपका आत्म साक्षात्कार मिला?

साधक: क्षमा करें?

श्री माताजी: क्या आपको चैतन्य लहरी का अनुभव हुआ?

साधक: हां!

श्री माताजी: बढ़िया! रुस्तम कहां है?

सहज योगिनी: मुझे पता नहीं है। यहीं होना चाहिए।

श्री माताजी: उसने बहुत अच्छा कार्य किया है।

इसको रिकॉर्ड कर लीजिए, ये अच्छा रहेगा। वह क्या करते हैं कि मेरी सारी चैतन्य लहरियों को रिकॉर्ड कर लेते हैं और उस पर मेरे प्रवचन को अध्यारोपण कर देते हैं। तो उसका दोहरा असर आता है।

आपको क्या लगता है क्या है?

सहज योगी: बाईं नाभी!

श्री माताजी: ये महिला? बेहतर हुआ? आपको क्या लगता है?

योगी: दाईं नाभी!

श्री माताजी: दाईं नाभी? बस इतना ही?

सहज योगी: दाईं विशुद्धि!

श्री माताजी: दाईं? ठीक है?

सहज योगिनी: हां!

श्री माताजी: और ये?

सहज योगी: बाईं नाभी!

श्री माताजी: बाईं नाभी?

सहज योगिनी: बाईं विशुद्घि

श्री माताजी: सभी बाईं ओर!

ठीक है। आप सब अपनी कुंडलिनी उठाइए! उनको प्राप्त हो जाएगा! आप सब कुंडलिनी उठाइए, आप सभी! ऊपर बांधिए।

मंत्र बोलिए, मेरा मंत्र और कुंडलिनी उठाइए।

(तीन महा मंत्र बोलते हुए सहज योगियों का स्वर)

मेरा मतलब है कह के देखिए, 'त्वमेव साक्षात श्री निर्मला देवी नमो नमः' बस इतना ही। मुझे निर्मला देवी के रूप में स्थापित करना मुख्य बात है!

सभी सहज योगी: ओम त्वमेव साक्षात श्री निर्मला देवी नमो नमः (तीन बार बोलते हैं)

श्री माताजी: इसे सात बार बोलिए!

सभी सहज योगी: ओम त्वमेव साक्षात श्री निर्मला देवी नमो नमः (चार बार और बोलते हैं)

श्री माताजी: अब अपने वाइब्रेशन देखिए! आइए देखते हैं! अब अच्छा है! ठंडी हवा का अनुभव हो रहा है? हाथ में ठंडा आ रहा है?

सहज योगिनी: हां!

श्री माताजी: महसूस हो रही है ठंडी हवा इस तरह? आप का क्या हाल है? अभी तक नहीं? हां, यह कार्यान्वित होगा!

आप का क्या हाल है? उसका बायां, दाईं और डालिए! क्या आप किसी गुरु या किसी अन्य के पास गए थे! नहीं? क्या आपने मादक पदार्थों का प्रयोग किया है? कभी नहीं?

साधक: सिगरेट!

सहज योगी: सिगरेट!

श्री माताजी: वो क्या है?

सहज योगी: धूम्रपान करना।

श्री माताजी: धूम्रपान करना? सिर्फ साधारण सिगरेट? वो दूसरा स्टाइल नहीं?

इनको प्राप्त हो गया है!

जरा यहां देखिए। कृपया अपनी आंखें बंद करिए। मुझे उसकी चिंता है!

अपने चित्त को ढीला छोड़ दीजिए। आप को कुछ नहीं करना। ठीक है? उसे अकेला छोड़ दीजिए। किसी एक विशेष बिंदु पर उसे मत डालिए। बस उसे अकेला छोड़ दीजिए। तभी ये कार्यान्वित होगा। उसे ऊपर जाना है तो उसे अकेला छोड़ दीजिए। अपनी आंखें बंद कीजिए।

आप क्या कहते हैं पीटर? बाएं को दाएं ओर!

पीटर: हां!

श्री माताजी: बाएं को उठाइए दाएं ओर!

अब कुंडलिनी को उठाइए! अगर हंसा चक्र में पकड़ आ रही है तो आपको 'प्रणव' कहना है या आप 'ओंकार' कह सकते हैं, आप समझे ओम! उस के लिए मंत्र। कोशिश करिए। बस कहिए 'त्वमेव साक्षात ओंकार साक्षात'। सिर्फ इतना कहिए हंसा चक्र के लिए।

सभी सहज योगी: (दो बार बोलते हैं) ओम त्वमेव साक्षात, श्री ओंकार साक्षात, श्री आदिशक्ति साक्षात, श्री भगवती साक्षात, श्री माताजी श्री निर्मला देवी नमो नमः

श्री माताजी: देखिए! अब देखिए! आप से वाइव्रेशंस बह रहे हैं? विशेषकर टी एम लोगों के लिए।

हैलो हेस्टर, आइए! भगवान आप को आशिर्वादित करें। आप बहुत गतिशील रहे हैं! (हंसते हुए)

हेस्टर स्पिरो: मैं जल्दी नहीं आ सका!

श्री माताजी: देखिए! आप को क्या लगता है? पीटर? यह सहस्त्रार तक आ गया है। ठीक है?

सहस्त्रार के लिए 'मोक्ष दायिनी' मंत्र बेहतर काम करता है। कोशिश करें!

सभी सहज योगी: (तीन बार दोहराते हैं) ओम त्वमेव साक्षात श्री मोक्षदायिनी साक्षात, श्री आदिशक्ति साक्षात, श्री भगवती साक्षात, श्री माताजी, श्री निर्मला देवी नमो नमः।

श्री माताजी: उसे मिल गया! उसे अब मिल गया!

पीटर: बायां और दायां, मध्य की ओर!

श्री माताजी: यह मध्य हृदय है परंतु उस को वाइब्रेशन आ रहे हैं। थोड़ा सी अपनी सांस को रोको! कृपया थोड़ी सी अपनी सांस को रोको!

आप ने जरूर प्राणायाम किया है। क्या आप ने प्राणायाम किया है, साँस लेने के व्यायाम?

साधक: केवल थोड़ा सा!

श्री माताजी: आप ने किया है! थोड़ी देर के लिए कृपया अपनी सांस रोकिए।

ओम साक्षात जगदंबा, ओम साक्षात जगदंबा, ओम साक्षात जगदंबा, ओम साक्षात जगदंबा

अब ठीक है? बांधिए इसे! ऊपर बांधिए। आप सब ऊपर बांधिए। अगर आप इसे ऊपर बांधते है, स्वयं अपना, आप समझे, वो इस चीज को बांधे रखेगा।

क्या अब बेहतर है? अपने हाथ इस तरह रखें।

(रिकॉर्डिंग में रुकावट)

श्री माताजी: आपका ह्रदय छोटा सा है, है ना? तो आप आगे आइए। देखते हैं। आप आगे आइए और उसे भी बुला लीजिए। देखते हैं। आगे आइए! बस आप बैठ जाइए दोनों हाथ मेरी तरफ करके। ठीक है! तो आप सब अब यह कर सकते हैं। बैठ जाइए! अब जरा रखिए। अब हृदय पे शिवजी का मंत्र कहिए सब।

सभी सहज योगी: (तीन बार बोलते हैं) ओम त्वमेव साक्षात श्री शिव पार्वती साक्षात, श्री आदिशक्ति साक्षात, श्री भगवती साक्षात, श्री माताजी, श्री निर्मला देवी नमो नमः

श्री माताजी: आत्मा परमात्मा मंत्र बोलिए! ठीक है!

सभी सहज योगी: ओम त्वमेव साक्षात श्री आत्मा परमात्मा साक्षात, श्री आदिशक्ति साक्षात, श्री भगवती साक्षात, श्री माताजी, श्री निर्मला देवी नमो नमः

श्री माताजी: पुनः बोलिए!

सभी सहज योगी: ओम त्वमेव साक्षात श्री आत्मा परमात्मा साक्षात, श्री आदिशक्ति साक्षात, श्री भगवती साक्षात, श्री माताजी, श्री निर्मला देवी नमो नमः

श्री माताजी: फिर से बोलिए

सभी सहज योगी: ओम त्वमेव साक्षात श्री आत्मा परमात्मा साक्षात, श्री आदिशक्ति साक्षात, श्री भगवती साक्षात, श्री माताजी, श्री निर्मला देवी नमो नमः

श्री माताजी: अब बेहतर है?

सहज योगी: हां!

श्री माताजी: अपना दायां हाथ दोबारा हृदय पर रखें। अब देखें! क्या यह बेहतर हुआ? बेहतर है? सभी लोग अपनी बाईं साइड को उठा कर दाईं ओर छोड़ें यह बेहतर रहेगा, तीन बार। पूरी तरह करें दिल से। पूरे हृदय से करें।

अब अपनी कुंडलिनी उठाइए। आप ठीक हैं। आप दोनो ठीक हैं। आप को उस पर कार्य करना होगा। वह ठीक हो जाएगी। चिंता ना करें। मै यह कार्यान्वित करने की कोशिश कर रही हूं। ठीक है?

क्या आपके हाथों में ठंडी हवा आ रही है? अच्छी बात है! ठीक है, बढ़िया!

अब उसकी क्या स्थिति है? मार्कस?

मार्कस: विशुद्धि!

श्री माताजी: दोनों? दोनों?

मार्कस: गर्म!

श्री माताजी: आप सिगरेट पीने के लिए अभी बहुत छोटी हैं! कब शुरू किया आपने?

महिला: बहुत समय पहले!

श्री माताजी: अब आप ठीक हैं, हैं ना? आप ठीक हैं, हैं ना? अब बेहतर है। आपके हंसा चक्र में समस्या है। आपने प्राणायाम किया था, है ना?

साधक: सिर्फ एक ध्यान किया है पहले, मोमबत्ती के साथ।

श्री माताजी: यहां? अच्छा इसीलिए। वहां बहुत खराब है। वैसे आप ठीक हैं? क्या आप अच्छा महसूस करते हैं? आपने किस प्रकार का ध्यान किया था? क्या नाम था उसका?

साधक: मैं किताबें पढ़ रहा था और ध्यान मोमबत्ती के साथ होता था।

श्री माताजी: ओह! अब बेहतर है? मेरे ख्याल से अपनी आंखें खुली रखें, लाभ होगा। यह बात है कि सहज योग वास्तव में कार्य करता है! आपने बहुत सालों तक किया? और कोई तस्वीर वगैरह नहीं थी, कुछ नहीं? अपने आप ही आप ने किया? यूं हीं? यह लॉमबर्ड है ना? क्या वो है?

साधक: नहीं!

श्री माताजी: परंतु आपको यह पृथक किसने सिखाया? इस तरीके के बारे में आपको किसने बताया? कौन आदमी था?

साधक: मैंने किताब पढ़ी थी। कुछ किताबें इस बारे में।

श्री माताजी: इसीलिए आप को यहाँ ये अस्थिरता मिलती है। ऐसे कैसे? अस्थिरता? सिर में?

साधक: (अस्पष्ट)

श्री माताजी: सब कुछ इस सघनता के कारण अस्त-व्यस्त हो जाता है। इसीलिए आप को यह सब परेशानियां हो रही थीं।

अब बेहतर है वो? स्थिर हुआ? हां? बेहतर? मुझे तुम को भी कुछ पैटर्न सीखाने हैं, जो तुम्हे बनाने हैं। अब बेहतर है?

सहज योगी: थोड़ा सा, नाभी।

श्री माताजी: हां?

सहज योगी: मुझे बाईं नाभी महसूस हो रही है।

श्री माताजी: बाईं? बेहतर?

(एक तरफ: यह शक्ति ले लेती है)

अब बेहतर? हां बेहतर है अब! बहुत बेहतर! इसीलिए आप के साथ दुर्घटना हुई, आप समझे? क्योंकि ये बाएं के द्वारा हुआ है।

दूसरा सहज योगी: बाईं विशुद्धी! मैंने आप को बताया था बाईं विशुद्धि।

श्री माताजी: हां, बायां..आप ये जानते हैं, परंतु ये बहुत खराब है।

अब बेहतर हुआ? आह! अब बेहतर हुआ?

सहज योगी: बांई आज्ञा!

श्री माताजी: ये साफ हो गई है।

सहज योगी: बांई आज्ञा!

श्री माताजी: अब? बांई आज्ञा! ठीक है।

सहज योगी: बांई आज्ञा!

श्री माताजी: हां?

सहज योगी: ये घूम रही है बाएं हृदय और बांई आज्ञा से।

श्री माताजी: बायां हृदय? ठीक है, ठीक है, यह सिर्फ ..अब वे सक्रिय हो गए हैं आप देखिए। अब, अच्छा है! हां? बायां, देखिए यह कितना सक्रिय है। आप इसमें और उस में अंतर देख सकते हैं। अब? साफ हो गया?

यहां आए इन नए लोगों को बंधन दीजिए।

बेहतर!

आह! दाएं स्वाधिष्ठान को बंधन दीजिए। हां! उसे उठाइए। अभी भी बाएं ओर? आप देखिए उस ने अपने आत्म साक्षात्कार को छू लिया है अभी!

सहज योगिनी: विष्णुग्रंथि!

श्री माताजी: हां?

सहज योगिनी: विष्णुग्रंथि!

श्री माताजी: क्या ये है?

सहज योगी: दाईं विशुद्धि! हां यह ठीक है विशुद्धि।

श्री माताजी: दाएं विशुद्धि? दाएं विशुद्धि, हां।

दाएं विशुद्धि का मंत्र है : त्वमेव साक्षात विट्ठल रुक्मणि साक्षात।

सहज योगी: विट्ठल?

श्री माताजी: विट्ठल रुक्मणि!

सहज योगी: विट्ठल रुक्मणि!

श्री माताजी: हां!

सभी सहज योगी: (तीन बार कहते हैं) ओम त्वमेव साक्षात श्री विट्ठल रुक्मणी साक्षात, श्री आदिशक्ति साक्षात, श्री भगवती साक्षात, श्री माताजी श्री निर्मला देवी नमो नमः

श्री माताजी: बढ़िया! (हंसते हुए) हां? अगर मंत्र जागृत है तो वह कितने शक्तिशाली हो सकते हैं। ठीक है? अब बढ़िया है? क्या वो आत्म साक्षात्कारी हैं? वाइब्रेशन आ रहे हैं?

आइए इसे इस प्रकार करते हैं। अब अपने हाथ मेरी तरफ़ करिए।

मैं बताती हूं कि अगर किसी को वाइब्रेशंस महसूस नहीं होते- क्यों? अगर आप स्वाधिष्ठान पर उस तरह घुमा दें या सहस्त्रार पर इस तरह, आप देखिए, यह काम करता है। आइए और स्वयं देखिए। आइए! आइए! जरा इसे घुमाइए! अब देखिए ये कैसा है। अब बेहतर है? ढीला छोड़ें। एक नॉब की तरह घुमाइए। आप देखिए यह वास्तव में शिव जी का डमरू है। डमरू वो चीज है..

योगी: ड्रम!

श्री माताजी: ड्रम! वो ड्रम है। ठीक हो? ठंडी हवा आ रही है? वो हाथ? जरा प्रयास करिए। उन को भी हृदय की बीमारी है। जरा उस पर भी कोशिश कर के देखिए। आइए!

मार्कस या कोई अन्य.. उस पर कोशिश कर के देखिए! गेविन आप प्रयास करिए! इस तरह! एक हाथ मेरी तरफ और दूसरा उसके ऊपर। आप एक दूसरे की सहायता कर सकते हैं। जरा अपना हाथ, अपना बायां हाथ मेरी ओर करिए।

नही नहीं, बाएं हाथ पे। हां बाईं तरफ! हां, इस प्रकार। थोड़ा उंगलियों को खोलिए! उंगलियां खोलिए। हां इस प्रकार। देखिए!

रुस्तम: ये बहुत शक्तिशाली है।

श्री माताजी: ये है (शक्तिशाली) आप के हृदय को खोलने के लिए।

सहज योगी: उसका बायां हृदय वाकई बहुत गरम है।

श्री माताजी: बायां हृदय है, वो खुल रहा है। आप देखिए पहले वे गर्म होगा और फिर वह ठीक हो जाएगा।

सहज योगी: आज्ञा गरम है।

श्री माताजी: ये हृदय को जा रहा है, आप समझे? अब आज्ञा की ओर! अब आज्ञा की और मुडें। अपने आज्ञा चक्र को घुमाएं। ठीक है। आराम से बैठिए।

रूस्तम चला गया है!! (श्री माताजी हंस रही हैं)

बैक आज्ञा, है ना? बैक आज्ञा! हां हां, हो गया।

अन्य सहज योगी: हंसा चक्र अभी है।

श्री माताजी: हंसा चक्र ही बिंदु है। हंसा ही बिंदु है। मेरी हंसा चक्र से उस को निकालिए सब से बढ़िया तरीका है, आप समझे?

आपने सबसे अधिक हानि अपने हंसा चक्र की हुई है। यह काम आपने किया हुआ है। जरा अपना हाथ उसकी तरफ कीजिए।

कितने लोग इस दुनिया में ऐसा ही कर रहे होंगे है ना? जिस आदमी ने किताब छापी है, उस पर तो मुकदमा करना चाहिए!

अपने हाथ मेरी तरफ करिए! वास्तव में उन पर मुकदमा होना चाहिए। उन्हें कोई अधिकार नहीं ऐसे तरीके सिखाने का जिससे आपको सिर दर्द होते हैं, और आपको हर प्रकार की समस्याएं होती हैं।

जरा उसे दीजिए, जरा उसे वाइब्रेशंस दीजिए।

रुस्तम: मां मुझे लगता है कि यह दाएं हृदय को भी जाता है! एक से दूसरी ओर! फिर दाएं विशुद्धि तक ऊपर। यह गोल घुमावदार चीज है।

श्री माताजी: आप कहें, सर्वचक्र विभेदनी। अगर यह एक से दूसरे तक जा रहा है, तो आप सिर्फ कहें 'सर्वचक्र विभेदनि'।

सभी सहज योगी: ओम त्वमेव साक्षात श्री सर्वचक्र विभेदनी साक्षात, श्री आदिशक्ति साक्षात, श्री भगवती साक्षात, श्री माताजी श्री निर्मला देवी नमो नमः

श्री माताजी: इसे कहिए (श्री माताजी बहुत जोर से हंसते हुए)

सहज योगी: फिर से कहें?

श्री माताजी: फिर से, दोबारा।

सभी सहज योगी: ओम त्वमेव साक्षात श्री सर्वचक्र विभेदनी साक्षात, श्री आदिशक्ति साक्षात, श्री भगवती साक्षात, श्री माताजी श्री निर्मला देवी नमो नमः

श्री माताजी: सही सब आपस में!

सभी सहज योगी: ओम त्वमेव साक्षात श्री सर्वचक्र विभेदनी साक्षात, श्री आदिशक्ति साक्षात, श्री भगवती साक्षात, श्री माताजी श्री निर्मला देवी नमो नमः

श्री माताजी: अब ठीक है? आप हाथों में क्या अनुभव कर रहे हैं? अब ठीक है! बहुत बेहतर! अपने को बंधन दीजिए। परमात्मा आप को आशिर्वादित करें। वो ठीक है। ऐसे ही अच्छा करते रहिए!

आपके लिए मंत्र है 'ओंकार' । हंसा चक्र के लिए ओंकार है। यह कार्य करेगा। यह अब बेहतर है। आप देखिए कि यह बहुत खराब हो गया है आप जानते हैं! सावधान रहिए! सदा ओंकार, ओंकार कहिए! यह आपको ठीक रखेगा। अभी तो हर कोण से आपको परेशानी दे रहा है। ठीक है!

परमात्मा आपको आशिर्वादित करें।

अब आप सब यहाँ आ जाइए। आज मैं आप सब से मिलना चाहूंगी, क्योंकि हम सब अधिकतर सहयोगी हैं। जरा देखिए। जरा अपने हाथ मेरे पैरों के नीचे रखिए। आइए देखते हैं समस्या क्या है- ह्रदय। यहां ब्लड प्रेशर कम है, लो ब्लड प्रेशर।

सहज योगी: बायां स्वाधिष्ठान!

रुस्तम: उसने एक कब्रिस्तान में काम किया था।

श्री माताजी: नहीं! पर आपने कहा कि आप ने छोड़ दिया है।

सहज योगी: मैं एक कब्रिस्तान में काम करता था।

श्री माताजी: अभी भी वहां है! आप इसे यहां पकड़ें। यह सर्वोत्तम है। बिलकुल यहां। मैंने यह समझा है की आप का प्रति अहंकार यहां संयुक्त हो जाता है फंदा बनाते हुए। इसे कस के पकड़िए। अब!

सहज योगी: बाईं साइड कमजोर है।

श्री माताजी: हां?

रुस्तम: मूलाधार से!

श्री माताजी: कब्रिस्तान? हां, बेहतर!

अहम साक्षात महाकाली, अहम साक्षात महाकाली, अहम साक्षात महाकाली

रुस्तम: हृदय चक्र तक सफाई करें। हृदय चक्र और बाईं विशुद्धि।

श्री माताजी: हां!

सहज योगी: ??

श्री माताजी: (बहुत जोर से हंसते हुए) हा हा हा हा

अन्य सहज योगी: (हंसते हुए) जब आप यहां नही थे, तो हम को कुछ डराने वाली बाते हुईं।

श्री माताजी: आप ने देखा?

रुस्तम: ये अब विशुद्धि तक है।

श्री माताजी: ये कब्रिस्तान भयावह हैं! पूरे लंदन में! ये जल रहा है। सारे कब्रिस्तानों को मैं बंधन देती हूं। इंग्लैंड और लंदन के सारे कब्रिस्तान।

अब बेहतर है?

सहज योगी: अब खुल गया है।

रुस्तम: यह भी! मुझे पता नहीं कि क्या यह बहुत मेहनत करते हैं, पर इन के स्वाधिष्ठान पर पकड़ आ रही है।

श्री माताजी: नहीं, नहीं वह ठीक है। वो ठीक है। यह सब कब्रिस्तान की वजह से है। आप कब्रिस्तान के लोगों की सारी समस्याएं अपने साथ ले आए हैं। उन्हें अब जन्म ले लेना चाहिए, और उन्हें अपनी मुक्ति के लिए वापस आना चाहिए। तो एक तरह से यह अच्छा है। आप कैसे हैं? बेहतर?

सहज योगी: हां! मुझ में बहुत गर्मी है।

श्री माताजी: अब अभी इस समय क्या हो रहा है? अब बेहतर है? क्या ठंडी हवा आ रही है?

सहज योगी: हां अब बेहतर है! ठंडी हवा आ रही है।

श्री माताजी: तो आप कब्रिस्तान का नाम लिख दीजिए। आप समझे! अब अच्छा है!

सहज योगी: कब्रिस्तान?

श्री माताजी: कब्रिस्तान!

सहज योगी: ओह! कब्रिस्तान!

श्री माताजी: तो जब आप वो लिखेंगे तो वहां जितने भी लोग हैं उनको आप (शू बीट) जूते से मारिए। उसको बंधन दीजिए। ठीक है? और वो ले जाते हैं। ठीक है?

गैविन ब्राउन: तो श्री माताजी अगर ये अंतिम न्याय है, पुनरूत्थान अवश्य होगा कि वे आएं।

श्री माताजी: इसीलिए उन्हें आना है। आप समझे ये अच्छी बात है। क्या मैंने नहीं बताया था कि ये अंतिम न्याय है?

सहज योगी: हां, आप ने बताया था।

श्री माताजी: ठीक, आप को ठीक होना चाहिए। आबादी इसीलिए बढ़ रही है।

बढ़िया! परमात्मा आप को आशिर्वादित करें।

अब मैं इस लड़की से मिलूंगी। देखते हैं उसके संग क्या समस्या है। यहां आओ और बैठ जाओ उस तरफ मुंह कर के। अब उस तरफ मुंह करो। आ जाओ। तुम्हारा क्या नाम है?

लड़की: हैलेन

श्री माताजी: कौन?

लड़की: हैलेन

श्री माताजी: हैलेन! अब आप सावधान रहें! ठीक है? जरा इस तरह बैठो। क्या आप..

सहज योगी: हैलेन अपने पैर आगे लाओ।

श्री माताजी: अब इनके साथ, आप क्या कहते है उन्हे? पालथी मार कर बैठना? क्या तुम? हां, आ जाओ! अब मुझे देखने दो यहां क्या समस्या है! हे भगवान! तुम्हे वहां कोई दर्द तो नहीं हुआ?

हैलेन: नहीं!

श्री माताजी: नहीं? यह एक स्पॉन्डिलाइटिस की तरह है। यह है।

अब क्या समय है?

रुस्तम: मां आठ बजने में बीस मिनट

श्री माताजी: परंतु मुझे आप सब को अपने चरणों पर देखना है। हेलो आप कैसे हैं?

रुस्तम: तीन और नए लोग अभी अभी आए हैं।

श्री माताजी: हां! जिनको तुमने आत्म साक्षात्कार दिया है।

हेलो, आप लोग यहां आइए। मैं नए लोगों से मिलना चाहूंगी। यह महिला?

सहज योगी: यह मैलकॉल्म (मुरदोच) की मां है। वह पहले भी आपके पास आई थीं।

श्री माताजी: आह! ये कितनी बदल गई हैं।

बैठिए! बैठिए! आप आइए! कृपया बैठ जाइए! हां! आइए! ऊपर आइए!

हेलो, वो बहुत अच्छा है। मैने उसे वहां देखा।

अपने लिए एक कुर्सी ले आइए। क्या अब आप अपने दोनों हाथ मेरे पैरों के नीचे रख सकती हैं? अब सावधान हो जाइए। हे भगवान! यह बहुत गर्म है, है ना? आपके हाथ बहुत गर्म है। मुझे पता नहीं था, कि धूम्रपान इतना बुरा हो सकता है।

साधक: मैं इतना भी धूम्रपान नहीं करती।

श्री माताजी: हां?

रुस्तम: मां, वो इतना धूम्रपान नहीं करती।

श्री माताजी: नहीं? इसलिए मैं कह रही हूं। क्या आपने मंत्र इत्यादि कुछ कहा था?

सहज योगिनी: नहीं, श्री माताजी!

रुस्तम: क्या आपने कोई मंत्र कहे थे?

साधक: नहीं!

श्री माताजी: नहीं? कुछ नहीं?

सहज योगी: (श्री माताजी से) मैं उससे पूछ सकता हूं। (महिला साधक से) आप क्या काम करती हैं?

श्री माताजी: आप क्या काम करती हैं?

महिला साधक: इस समय कुछ नही।

सहज योगी: क्या आप ने पहले कुछ किया है?

महिला साधक: मैं तीन साल के लिए विद्यार्थी रही हूं।

रुस्तम: मां ये विद्यार्थी रही हैं। और क्या?

श्री माताजी: किस की विद्यार्थी?

महिला साधक: कला की!

श्री माताजी: कला! पर क्या पहले आपको सर्दी और इस प्रकार की चीजें होती रही हैं?

महिला साधक: नहीं!

श्री माताजी: एक और समस्या है। आप देखिए, मुझे लगता है कि यहां लोग गर्म, ठंडा ठीक से नहीं समझते। यह समस्या हो सकती है। उसकी विशुद्धि पूरी तरह जमी हुई है।

आप कैसे हैं? मुझे आपके नाम जानने हैं। अब मैं जानना चाहती हूं। थोड़ा जोर से क्योंकि वास्तव में, मैं अंग्रेजी नामों में इतनी अच्छी नहीं हूं। आइए, आरंभ करें!

सहज योगी: किंग्सले

श्री माताजी: किंग्सले? कितना बढ़िया नाम है! सहज योगिनी: सराह

श्री माताजी: सराह

सहज योगिनी: डाउलिंग, डाउलिंग

श्री माताजी:डाउलिंग!

अगला सहज योगी: जॉन

सहज योगिनी: नील

श्री माताजी: एन-ई -आई -एल

सहज योगिनी: नहीं, एन-ई-डबल एल

श्री माताजी: एन-ई-डबल एल?

सहज योगी: नोएल

श्री माताजी: नोएल

सहज योगिनी: ओलिविया

श्री माताजी: ओलिविया

एक अन्य सहज योगी: डैरल

सहज योगिनी: ग्रेस

श्री माताजी: क्या कहा आप ने?

सहज योगिनी: ग्रेस! मां

सहज योगी: ग्रेस

श्री माताजी: ग्रेस, ग्रेस!

क्या इन लोगों ने आपको सहज योग के बारे में सब कुछ बताया? उसमें गहरा कैसे उतरना है। दूसरों की सहायता कैसे करनी है। खुद की सहायता कैसे करनी है।

अगली बार से मैं सहज योग पर फिर से श्रंखला शुरू कर रही हूं। आज मैं सिर्फ आप लोगों से मिलना चाहती थी। तो क्या आप गए हैं, आप में से कोई भी किसी गुरु या अन्य के पास गए हैं? नहीं? आप मे से कोई नहीं?

सहज योगी: आप गए हैं। क्या आप गए हैं?

ऑस्ट्रेलिया का नया सहज योगी: हां!

श्री माताजी: कौन सा?

ऑस्ट्रेलिया का सहज योगी: मैं कुछ समय के लिए भारत में था, तिब्बती बौद्ध धर्म में एक निर्देश पुस्तिका का अध्ययन करने के लिए।

रुस्तम: मां, तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी!

श्री माताजी: हे भगवान!

रुस्तम: आज्ञा! उसके आज्ञा चक्र पर ठीक सामने एक बड़ा निशान है!

श्री माताजी: उन्होंने आप को मारा तो नहीं?

ऑस्ट्रेलिया का सहज योगी: नहीं, वह लोगों को नहीं मारते!

श्री माताजी: लेकिन आप देखिए कि एक व्यक्ति जो यहां थे, जो कई बार यहां आते हैं, गैविन उसका नाम क्या है?

सहज योगी: ओम!

श्री माताजी: वह उसे मारते हैं।

सहज योगी: ओम!

श्री माताजी: ओम! वो अपने को 'ओम' कहता है। बेचारा! वे उसे मारते थे। अब उन्होंने यहां भी शुरू कर दिया है। कल टेलीविजन पर बौद्ध धर्म के अनुयायियों के बारे में एक बड़ा कार्यक्रम था।

गैविन: यह वही (कार्यक्रम) है जहां से यह आया था। याद है वह बहुत अच्छा सा, जो कार्यक्रम में आया था?

श्री माताजी: ऐसा है?

गैविन: वो उसी स्थान से आया था।

श्री माताजी: हा! सच में?

पीटर पियर्स: वह कह रहे थे कि अगर आप (श्री माताजी) किसी दिन आकर उनसे बात कर सके तो, और मैंने कहा..

श्री माताजी: परंतु आप देखिए यह उनके सिद्धांतों के विरुद्ध हो सकता है। कल वे बात कर रहे थे। आप जानते हैं क्या कह रहे थे? कुछ नहीं सिर्फ खाना कैसे देना है, खाना कैसे खाना है, खाने को कैसे मिलाना है और ये सब बकवास। कहां सहज योग है, और कहां यह सब चल रहा है!

तो अगर मैं उन्हें कहूं, यह सब आपको कहीं भी नहीं पहुंचाएगा! तो उन्हे झटका लगेगा। बहरहाल मैं उनसे जाकर बात कर सकती हूं फिर देखते हैं। (श्री माताजी हंसते हुए) जो कुछ भी हो, वह मुझे मारेंगे तो नहीं। क्योंकि ये अब हद से ज्यादा हो रहा है। मैने थोड़ा बहुत देखा और मुझे आश्चर्य हुआ। एक बौद्ध एक कटोरा लाया सही औपचारिक शिष्टाचार के साथ और वो एक व्यक्ति के सामने बैठ गया, घुटने मोडे और उस कटोरे को दूसरे व्यक्ति को दे दिया, जिसने उसे बहुत गंभीरता से ले लिया (हंसने का स्वर)। फिर उसने उस में कुछ मिलाया और उन्होंने उस से छ कटोरे खाना बनाया है ना! यह सब होता रहता है।

पीटर पियर्स: मैंने नहीं देखा।

श्री माताजी: तुम इस वाले के पास नहीं गए थे?

सहज योगी: वो भारत में था।

श्री माताजी: तुम भारत में थे?

नया ऑस्ट्रेलिया का सहज योगी: मुझे पक्का नहीं है कि आप किसका जिक्र कर रही हैं।

श्री माताजी: आप कहां गए थे? आप उसी जगह गए थे जहां ये टेलीविजन वाला काम होता है?

साधक: आह नहीं! मुझे पता नहीं।

सहज योगी: ये इंग्लैंड में कहीं हुआ था।

श्री माताजी: पर भारत में आप कहां थे?

ऑस्ट्रेलिया का नया सहज योगी: मुख्य रूप से पूरे हिमालय में!

श्री माताजी: हे भगवान! अब आप ये प्रश्न पूछिए - मां क्या आप हिमालय हैं?

सहज योगी: पूछिए - मां क्या आप हिमालय हैं?

ऑस्ट्रेलिया का नया सहज योगी: मां क्या आप हिमालय हैं?

श्री माताजी: आप सिर्फ कहें, मां क्या आप हिमालय हैं?

ऑस्ट्रेलिया का नया सहज योगी: मां क्या आप हिमालय हैं?

श्री माताजी: फिर से बोलिए!

ऑस्ट्रेलिया का नया सहज योगी: मां क्या आप हिमालय हैं?

श्री माताजी: फिर से बोलिए!

ऑस्ट्रेलिया का नया सहज योगी: मां क्या आप हिमालय हैं?

रुस्तम: शायद उसे आप से ये भी पूंछना चाहिए, क्या आप हिमालय की पुत्री हैं?

श्री माताजी: (हंसते हुए) ये कुछ ज्यादा ही हो जायेगा।

क्या अब ठीक है? बेहतर है? बेहतर है अब?

रुस्तम: मां अब वो बहुत ठंडा हो गया हैं। उस की आज्ञा में कुछ है, वरना सब कुछ ठंडा है।

श्री माताजी: क्या इन लोगों ने आप के माथे को छुआ था?

ऑस्ट्रेलिया का नया सहज योगी: कहते हैं की जब मैं एक साल का था एक दुर्घटना हुई थी।

श्री माताजी: ओह मैं समझी! तो फिर उन्होंने उसे नहीं छुआ?

ऑस्ट्रेलिया का नया सहज योगी: ओह नहीं! उन्होंने बहुत फायदा पहुंचाया।

रुस्तम: उन्होंने तुम्हारे माथे को नहीं छुआ। छुआ उन्होंने?

नया ऑस्ट्रेलिया का सहज योगी: कभी-कभी!

रुस्तम: कभी कभी! कैसे?

ऑस्ट्रेलिया का नया सहज योगी: हिंदू परंपरा के जैसे।

रुस्तम: क्या वे ऊपर कुछ लगाते हैं?

ऑस्ट्रेलिया का नया सहज योगी: हां वैसा ही! मेरा मतलब है की मूलत: एक सा है।

(श्री माताजी किसी और महिला साधक को देखने लगती हैं)

श्री माताजी: बेहतर? अब आप बेहतर हैं? आप चीजों से बहुत ज्यादा जुड़ जाते हैं, है ना? आप जुड़ जाते हैं।

ऑस्ट्रेलिया का नया सहज योगी: विशेष रूप से नहीं!

श्री माताजी: तुम लोगों से अलग- थलग रहते हो?

ऑस्ट्रेलिया का नया सहज योगी: हां!

श्री माताजी: यह भी कार्य कर सकता है अगर आप आत्म साक्षात्कार से पहले अलग- थलग रहते हैं।

ऑस्ट्रेलिया से नया सहज योगी: अगर मैं अलग- थलग रहूं?

श्री माताजी: अलग- थलग! आप देखिए। आत्म साक्षात्कार से पूर्व अनाधिकार है ये। आप को ये बनना है।

रुस्तम: ओह मैं समझा श्री माताजी, वरना आप सिर्फ..

श्री माताजी: आप समझे कि यह नकली है। अब बात को समझे?

रुस्तम: तो इसलिए विशुद्धि में पकड़ आती है, क्योंकि ये (महिला) जीवन के खेल में शामिल नहीं हैं।

श्री माताजी: आप देख सकते हैं कि वह अभी तक साक्षी नहीं हैं। उन्हे इस में होना चाहिए। ये तो सन्यास लेने जैसा हो गया। ये बनावटी है। ये आप के साथ घटित होना चाहिए, है ना? पृथकता आप के साथ घटित होनी चाहिए। आप को ऐसे ढोंग नहीं करना चाहिए जैसे आप अलग थलग हैं। आप नहीं हैं!

देखिए! अब बेहतर हैं! ज्यादा साफ!

अब ठंडी हवा का अनुभव करते हैं। जरा मुड़िये। अपने हाथ फैलाए। आप को मिल गई? आप को ठंडी हवा महसूस हुई? आ रही है। आप को आ गई।

साधक: मुझे प्रतिअहंकार अनुभव हो रहा है।

श्री माताजी: थोड़ा सा है। परंतु आप अभी भी विद्यार्थी हैं?

साधक: नहीं, नहीं अब मैने खत्म कर ली है (पढ़ाई)।

श्री माताजी: खत्म कर ली है! आप कहां पढ़ रहे थे?

साधक: मैनचैस्टर!

श्री माताजी: हां?

साधक: मैनचैस्टर!

श्री माताजी: और वो खत्म हो गई?

साधक: वो ऊपर उत्तर में है, एक शहर उत्तर में।

श्री माताजी: अब बेहतर है। आप आराम से हैं।

साधक: हां! मेरी पीठ में पहले दर्द था, पर अब वो चला गया है।

श्री माताजी: अब देखिए। अब बेहतर है? उसकी आँखें फैली हुई हैं! यह ठीक हैं।

वे ठीक हो जाएंगी। उन्हे मेरा फोटो दिया जाना चाहिए और उन्हें थोड़ा बहुत अभ्यास करना होगा।

उसकी आँखें देखो वे कितनी फैली हुई हैं! आप देखिए, वे काली दिख रही हैं।

आज्ञा चक्र! अपना आज्ञा चक्र देखिए। यहां आइए! चलिए! आगे बैठिए! यदि आप अपने मोज़े निकाल सकते हैं तो यह एक अच्छा विचार होगा।

श्री माताजी: तुमने टांके यहां लगवाए या...? (श्री माताजी उस साधक के घाव पर लगे टाकों की बात कर रही हैं जो तिब्बती बौद्धों के पास गया था)

साधक: नहीं! ये चर्बी और तेल से है, जलता हुआ तेल!

श्री माताजी: ये एक संत हैं। तो वो कैसे जलाते हैं, ये देखिए। ये एक नकारात्मक ताकत है। कैसे वो एक संत पर हमला करते हैं।

रुस्तम: थोड़ा सा हंसा चक्र!

श्री माताजी: हंसा चक्र है, इसीलिए मैं आज पूरे समय हंसा चक्र पर ध्यान रख रही थी।

हेलो! आप कैसे हैं? बाला आज नहीं आ पाया?

रुस्तम: नहीं! मुझे लगता है उसे काम करना होता है।

श्री माताजी: हम्म्म!

रुस्तम: वो समय समय पर यहां आने के लिए प्रवृत्त रहता है।

श्री माताजी: हूं! देखिए किस प्रकार कुंडलिनी आप के दिमागों को साफ कर देती है। आप देख सकते हैं। वो नीचे बहती है। अभी आप देख सकते हैं कि वो अभी कैसी है, तो बाद मे आप जान जायेंगे। ज़रा देखो यहाँ-वहाँ कितने उभार हैं। सिर समतल नहीं है।

परंतु जैसे आप विकसित होंगे, आप को आश्चर्य होगा कैसे आप का सिर बिल्कुल समतल होगा और कोई उभार या अन्य कुछ नहीं होगा।

नाभी में भी पकड़ आ रही है, दाईं नाभी।

रुस्तम: नाभी, भवसागर, स्वाधिष्ठान चक्र।

श्री माताजी: हां, अब बेहतर है।

रुस्तम: बायां स्वाधिष्ठान!

श्री माताजी: बायां स्वाधिष्ठान! घूम जाईए, घूम जाईए।

वे असली परजीवी हैं, मैं आपको बताती हूं असली परजीवी! कल वे सारे अंग्रेज लोग आए थे। क्या ये सब अंग्रेज हैं?

सहज योगिनी: कुछ लोग कनाडा के निवासी हैं।

श्री माताजी: हां?

सहज योगिनी: कुछ लोग कनाडा के निवासी हैं।

श्री माताजी: वे जटिल लोग हैं। कनाडा वासियों की एक समस्या है।

ये अच्छा है! अपने हाथ सिर्फ मेरी ओर करिए। उसे प्राप्त हो गया!

रुस्तम: आज्ञा में पकड़ आ रही है।

सहज योगी: तुम्हारी कितनी उम्र है?

साधक: सौलह साल!

श्री माताजी: पिट्यूटरी! बाएं से दाएं

(श्री माताजी एक छोटे बच्चे से बात कर रही हैं)

अरे नहीं! क्या है तुम्हारे पास? मां कहां हैं? वो वहां हैं? क्या वो नहीं आईं?

बच्चा: वो नानी के घर पर हैं।

श्री माताजी: वो नानी के घर पर हैं?

बच्चा: हां!

श्री माताजी: छोटा बच्चा कहाँ है? वो नानी के पास है?

बच्चा: हां!

श्री माताजी: कितनी विशुद्धि हैं यहां? आप ने देखा? कितना साफ? देखिए यह कैसे साफ करता है - विराट! आप देखिए कि पिट्यूटरी विराट को नियंत्रित करता है!

सहज योगी: और वो श्री कृष्ण हैं, जो विराट को नियंत्रित करते हैं।

श्री माताजी: श्री कृष्ण के उच्चता महान है। और पिट्यूटरी जब यह बौना हो जाता है, आप देखते हैं कि दोनों के संयोजन, दोनों के बीच के संबंध हैं। मेरे लिए कठिन नहीं है। वो पुत्र है और वो पिता है।

क्या उसके माता पिता कैथोलिक हैं?

सहज योगी: नहीं!

श्री माताजी: प्रोटेस्टेंट?

सहज योगी: नहीं!

श्री माताजी: कौन सा गिरजाघर?

सहज योगी: वो गिरजाघर नहीं जाता।

श्री माताजी: नहीं? अब बेहतर है? यह वह स्थान है जहां वे आते हैं, परंतु अभी तो शादी नहीं हुई? या उन्होंने आप को विवाह करने के लिए मना किया है, या ऐसा की कुछ और?

ऑस्ट्रेलिया का नया सहज योगी: ऐसा कुछ नहीं!

श्री माताजी: ऐसा कुछ नहीं? बढ़िया!

तो अब थोड़े देर के लिए अपने विवाह के बारे में सोचिए। आप सोचेंगे? सन्यास के बारे में नहीं।

हां, आप देखिए, ये अब बेहतर है।

अन्य सहज योगी: मुझे अभी भी भवसागर महसूस हो रहा है।

श्री माताजी: भवसागर? आप को भवसागर अनुभव हो रहा है? ठीक है, एक प्रश्न पूंछिए, परंतु यहां से हाथ हटा लीजिए। ठीक है?

मेरे आज्ञा चक्र की तरफ देखते हुए एक प्रश्न पूंछिए, 'श्री माताजी क्या आप आदि गुरु हैं?'

सहज योगी: श्री माताजी क्या आप आदि गुरु हैं?

श्री माताजी: फिर से!

सहज योगी: श्री माताजी क्या आप आदि गुरु हैं?

श्री माताजी: फिर से!

सहज योगी: श्री माताजी क्या आप आदि गुरु हैं?

श्री माताजी: बढ़िया!

अन्य सहज योगी: यह साफ हो गया है।

श्री माताजी: वह ऊपर उठ गया है! हृदय से चलता है! हृदय! यह हृदय तक आ गया है!

Caxton Hall, London (England)

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