Talk to Sahaja Yogis

Talk to Sahaja Yogis 1990-01-09

สถานที่
ความยาวของการบรรยาย
48'
หมวดหมู่
การสัมภาษณ์
ภาษาที่พูด
ภาษาฮินดี
เสียง
วิดีโอ

ภาษาปัจจุบัน: ภาษาฮินดี. การบรรยายที่มีให้ในภาษา: ภาษาฮินดี

การบรรยายนี้ยังมีในภาษา: ภาษาอังกฤษ

9 जनवरी 1990

Interview

Ganapatipule (भारत)

Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft

साक्षात्कारकर्ता: कहे नानक बिन आपा चीने, मिटे ना भ्रम कोई। संसार भर के शास्त्र और सद्गुरु कह गए है की बिना सत्य की खोज के कुछ संभव नहीं है ज़िंदगी में हासिल करना। सच्ची ख़ुशी सिर्फ सत्य की खोज से हासिल हो सकती है। भारतीय अध्यात्म के अनुसार शरीर में सात चक्र है जो विभिन्न स्थानों पर उपस्थित है और उन सात चक्रो में विभिन्न देवता निवास करते है। भारतीय अध्यात्म के अनुसार शरीर में सात चक्र है जिनमे अलग देवताओ का निवास है। जब शरीर में कुण्डलिनी जागृत होती है तो मनुष्य सत्य को पा लेता है। आज हमने सहज योग के बारे में बात करने के लिए सहज योग की संचालिका माताश्री निर्मला देवी से आपके लिए साक्षात्कार किया हैं। प्रस्तुत है कुछ मुख्य अंश।

[ श्री माताजी अंदर आती है और साक्षात्कारकर्ता से पूछती है व्हाट इस इट नाउ, ऍम आई सपोस तो सीट हिअर। ऑलराइट, या ]

साक्षरकारकर्ता: श्री माताजी जीवन का परम, मानवीय जीवन का परम सत्य क्या है? ईश्वर क्या है और उसे कैसे पाया जा सकता हैं, इस बारे में आप कुछ चर्चा करेंगी?

श्री माताजी: श्री माताजी: मानवी, मानवीय जीवन का परम सत्य और लक्ष्य एक ही हैं की सत्य को पाना है । और सत्य क्या है की हम आत्मा स्वरुप हैं। ये शरीर मन बुद्धि अहंकार आदि हम नहीं, हम आत्मा स्वरुप है और उस आत्मा के स्वरुप को हमे पाना है। बस यही एक सत्य है और यही एक लक्ष्य हैं। क्यूंकि आत्मा जो है ये एक सामूहिक चेतना का अवलम्बन हैं। दूसरी बात यही आनंद का स्त्रोत है। यही सत्य का स्त्रोत है। और यही हमारे चित्त को आलोकित करता हैं। इसलिए इस आत्मा को हमे प्राप्त करना चाहिए। और वो प्राप्त करना बहुत आसान है।

साक्षात्कारकर्ता : पहले तो ये देखा गया है, शास्त्रों में भी लिखा है, की लोग सत्य को पाने के लिए कही -कही भटकते रहते थे। बरसो तपस्या करने के बाद या किसी भी गुरु की सेवा करने के बाद ज़रूरी नहीं की सत्य को पा सके। अभी जैसे में खुद आपके सामने रेअलीसाशन ले चूका हु। और दूसरे लोगो को भी मैंने देखा, हज़ारो लोगो ने लिया है, इतनी आसानी से लिया है, ये कैसे संभव हुआ है?

श्री माताजी: ये संभव होना ही था क्यूंकि हर चीज़ जैसे की एक फूल है या पत्ती है तो शुरुआत में आप देखते है की एक पेड़ पर एक - दो ही पत्तिया आती हैं या एक ही फूल आता हैं। लेकिन जैसे जैसे उसकी उत्क्रांति होती जाती है, जैसे जैसे बढ़ते जाता है, तो उस वक़्त बहुत से फूल एक पेड़ पर आ जाते हैं | उसी प्रकार आज में इसे ब्लॉसम टाइम कहती हूँ कि बहार आयी हुई हैं | और जो लोग पहले गिरिकंदरो में परमात्मा को खोजते थे आज एक बहुत ही सर्व साधारण ग्रहस्ती में रहते हुए ये लोग नज़र आ रहे हैं | इन्होने ये सारे काम कर चुके हैं और कोई सा भी, [श्री माताजी अपना गाला साफ़ करते हुए ] कोई सा भी यदि आप संशोधन देखे तो उसमे बड़ी तपस्या पहले होती है और वो युगो तक चलती हैं | फिर उसको फल स्वरुप वो सब समाज को, समाज हिट के लिए सबके लिए पितवह होते हुए और साध्य भी हो जाती है | जैसे अब बिजली को देखिये आप, इसको पाने के लिए कितनी म्हणत की गयी थी, लेकिन आज हर एक ग्रामीण भाग में आप बिजली को पाते हैं | तो ये समां आना पड़ता हैं |

साक्षात्कारकर्ता : प्रश्न यह है की कुण्डलिनी क्या है, और उसकी जाग्रति कैसे होती है, सत्य की खोज में कुण्डलिनी का जागरण कितना [unclear], कुण्डलिनी ही एक मात्रा उपाय है जिससे सत्य को पाया जा सकता है, इसकी जाग्रति कैसे होती है?

श्री माताजी : कुण्डलिनी हमारे अंदर एक जीवंत व्यवस्था है | जैसे हमारे अनादर ह्रदय है और हमारे अंदर अनेक शक्तिया कार्यान्वित होती है उसी प्रकार हमारे अंदर कुण्डलिनी नाम की शक्ति जो है सुप्तावस्था में त्रिकोणाकार अस्थि में जिसे की सेक्रम अंग्रेजी में कहते है, सेक्रम का मतलब होता है सेक्रेड, सेक्रेड, तो ऐसे एक शक्ति है जिसे हम कहते है की ये शक्ति शुद्ध इच्छा है | बाकि सारी इच्छाएं आप इकोनॉमिक्स में जानते है, की कोई सी भी इच्छाए जो है कहा जाता है की इन जनरल दे आर नॉट साशिएबल| एक इच्छा हुई, फिर दूसरी इच्छा हुई, फिर तीसरी इच्छा हुई, और जो इच्छा पूर्णित भी होती है उससे सुख नहीं मिलता, समाधान नहीं मिलता | पर ये शुद्ध इच्छा है | और शुद्ध इच्छा शायद आप इसके बारे में चेतित हो या न हो, पर शुद्ध इच्छा यह है की हमे परमात्मा की जो चारो तरफ फैली चरा चर में जो शक्ति है उससे एकाकारिता अणि चाहिए |

साक्षात्कारकर्ता : क्या यह साधारण इंसानो के लिए उतना ही आवश्यक है ?

श्री माताजी : साधारण के ही जल्दी होती है| कोई अपने को बड़ा असाधारण समझता है तो उसकी समझ से उसमे इतना अहंकार आ जाता है की उसमे कुण्डलिनी खुद ही मना करती है और हर एक मनुष्य की अपनी व्यक्तिगत अपनी माँ है ये,और वो जैसे की टेप रिकॉर्ड होता है, उस तरह से उसने सब कुछ टेप कर लिया है | और वो सब जानती है की आप कहा तक क्या है और उसी के अनुसार वह स्वयं, स्वयं चालित है | और वो इस तरह से इस चक्रो को जानती है की आपके कौनसे चक्र ख़राब है और उसका उठना कहा तक ठीक है| कुछ कुछ लोगो में तो मैंने देखा है की उनके असामाजिक व्यव्हार के कारण उनके स्वार्थ के कारण और उनके धर्मान्धता के कारण और कभी कभी उनकी दुष्टता के कारण कुण्डलिनी एक दम हताहत दुर्बल हो करके, जैसे की कोई बड़ी ज़ख़्मी शक्ति की तरह पड़ी रहती है| उसको उठाना बहुत कठिन होता है|

साक्षरकारकर्ता : मैंने देखा है [unclear] जैसे श्री अरुण गोयल है, ब्लड कैंसर था, यहाँ पर मैंने बहुत लोगो को देखा की उन्हें काफी गंभीर बीमारिया थी और अब नहीं है, वो मेडिकली तो पॉसिबल नहीं था तो सहज योग के द्वारा ये किस प्रकार संभव हो पाया ?

श्री माताजी : कुण्डलिनी जब जागृत हो जाती है तो वो हमारे सात, छे चक्रो में से गुजरती है | और ये शक्ति जब इन छे चक्रो में से जाती है तो उसके अंदर बसे हुए जो उन चक्रो के जो देवता है वो जागृत हो जाते है और वो अपनी शक्ति को प्रदान करते है | और उस शक्ति से मनुष्य ठीक हो जाता है | अब ये की आज कल के युग में कोई देवता की बात करे तो लोग उसे समझ नहीं सकते. पर जो है सो सत्य में आपसे बता रही हूँ |

साक्षात्कारकर्ता : सहज योग में जो कूल ब्रीज या चैतन्य लेहरी की जो बात करते है वो क्या चीज़ है, इसका कैसे अनुभव होता है, इसका सारा [unclear]

श्री माताजी : असल में हमारे अंदर, चारो तरफ, चरा चर में, अनु रेणू में, हर जगह यह चैतन्य फैला हुआ है | और यह परमचैतन्य जो है यह परमात्मा की या कहिये आदि शक्ति की शक्ति है | और ये शक्ति बहुत सुक्ष्म शक्ति है जो हर चीज़ को चलाती है | हम लोग तो बहुत सी चीज़ें बस मान ही लेते है | जैसे की एक बीज है, उसको हम माँ के उदर में डाले तो उसमे से हज़ारो पेड़ कैसे निकल आते है ? कोई सी भी जीवंत क्रिया कैसी होती है? सारी जीवंत क्रिया यही शक्ति करती है और हमारे अंदर भी जो स्वयं चालित जो शक्तिया है जैसे की हमारे हृदय, हमारी पाचन क्रिया आदि जो वह भी सं यही शक्ति कार्य करती है | सो इस शक्ति को हमने सिर्फ मान लिया है |और साइंस से हम लोग सिर्फ जो कुछ बहिय में हैं वह देखते है, लेकिन जो अंदर उसके सुक्ष्म शक्ति है उसके लिए आपको सूक्ष्मता में उतरना पड़ेगा |

साक्षात्कारकर्ता : आध्यात्मि शास्त्रों में लिखा है की डिजायर शुड बी प्योर डिजायर , ये पुरे डिजायर क्या होता है ? व्हाट इस प्योर डिजायर? शुद्ध इच्छा और इच्छा क्या होता है ?

श्री माताजी: इच्छा जो है मनुष्य की मैंने आपसे बताया की कोई सी भी इच्छा जो होती है जो पूरित ही नहीं होती, वो शुद्ध कैसे हो सकती है | गर वो शुद्ध होती तो उससे कोई तो समाधान होता| पर नहीं होता है | फिर दूसरे पर हम कहते है | पर शुद्ध इच्छा ऐसी चीज़ है की उससे आपका सम्बन्ध उस चरा चर की शक्ति से हो जाने के कारण, जैसे की इसमें ये अब आपके ये कनेक्शन है, जब तक आप इसको मेंस से नहीं लगाएगा आप कुछ भी कर लीजिये, इसका कुछ मन नहीं भरने वाला | इसी प्रकार की चीज़ आप समझ लीजिये की आप जब मैन से लग गए तो आप पूरी तरह से समाधान में आ जाते है | इतना ही नहीं लेकिन आपका चित्त इतना आलोकित हो जाता है की आप स्वयं पे आश्चर्य करते है की में ऐसे कौन विशेष चीज़ | जैसे मान लीजिये कोई देहात में आप गए और वहाँ आप टेलीविज़न ले गए और कहने लगे की इसके अंदर सब तरह की आप सुन्दर - सुन्दर नृत्य वगैरह आप देख सकते है, सारी दुनिया की चीज़े देख सकते है | तो कोई देहाती कहेगा की बेकार की बाते करते हो, इस डब्बे में क्या आएगा | पर जब आप उसको मैन से तो खुद ही हैरान होता है | इसी प्रकार हम भी एक उत्कृष्ट कंप्यूटर है | हम उत्कृष्ट एक टेलीविज़न है | जो कुछ आपने बाहर बनाया है उससे बहुत ही कई अधिक कार्यशील और उत्तम ऐसा हम लोगो का साधन है | उसको इस्तेमाल करना चाहिए |

साक्षात्कारकर्ता : एक और बात यह है की जैसे मैंने अभी देखा है बहुत लोग पहले, सहज योग में आने से पहले शराब पीते थे या सिग्रेटे पीते थे, ये जो सेमिनार हो रहा है इसमें मैंने किसी को भी, इतने हज़ारो लोगो की गेदरिंग हैं, किसी एक को भी सिग्रेटे पीते हुए नहीं देखा है | ये आप कैसे एक्सप्लेन करेंगी?

श्री माताजी : हाँ एक रात में ही छोड़ के खड़े हो जाते है | उसकी वजह ऐसे है की जब आपकी आत्मा की जाग्रुति हो जाती है, तो आपके अंदर प्रकाश आ जाता है | जैसे की समझ लीजिये की हम आपसे कहे की आपने हाथ में एक साप पकड़ा हुआ है और अँधेरा हैं, आपको दिखाई नहीं दे रहा, तो आप कहेंगे ये साप नहीं, ये तो एक रस्सी ही है | और आप मानेंगे ही नहीं की हम कितना भी कहेंगे की ये रस्सी नहीं ये साप है | पर गर आपमें प्रकाश आ गया तो आप स्वयं ही उसको छोड़ देंगे | एक क्षण में, और आप बहुत शक्तिशाली हो जाते है | उस शक्ति में प्रेम है | ये विशेष बात है | बहोत, आप कहना चाहिए की आप बहोत डायनामिक हो जाते है , पर उसी के साथ आपके अंदर अत्यंत प्रेम बहने लग जाता है |

साक्षात्कारकर्ता : और माँ में आपसे ये ज़रूरी पूछना चाहता हु की क्या साधक [unclear] सिर्फ अच्छा होना काफी नहीं, हर एक [unclear] को अध्यात्म में उतरना उतना ही आवश्यक है, जो लोग पुरे डिजायर रखते है उनके लिए?

श्री माताजी : अपने जीवन में जो आदमी सोचते है की हम अच्छा ही कर रहे है, और हम ठीक से रह रहे है, तो उसपे मैं ये कहूँगी की जो कुछ भी वो करते है उसमे एक तरह से उनमे अहंकार ज़रूर जाग्रुत होता है | और इसीलिए कृष्ण ने कहा है की सब कर्मो को करके तुम मेरे ऊपर छोड़ो, मने अकर्म में उतरो | ये सिर्फ आत्मसाक्षात्कार के बाद हो सकता है | और दूसरी बात ये की उन भक्ति के लिए भी कहा है बहोत, एक ही शब्द पर नचाया है, अनन्य, जब दूसरा नहीं होता है, ऐसे आप भक्ति करिये | ये भी आत्मसाक्षात्कार है | इसलिए जो रोज़ के जीवन में हम जो सोचते है हम अच्छा काम करते है, ये सिर्फ हमारी बौद्धिक समझ है, इससे परे नहीं| लेकिन केवल सत्य तो सिर्फ आप आत्मा से ही जान सकते है | की ये केवल सत्य है | इसीलिए आप देखिये की हर आदमी वही बात कहेगा | कोई ऐसा यही होगा की एक आदमी एक बात कहेगा, दूसरा आदमी दूसरी बात कहेगा | कोई वाद विवाद का सवाल ही नहीं आता है | एक दुसरो का मज़ा उठाने के शिव कुछ और होता ही नहीं |

साक्षाकारकर्ता : आपने अभी जैसे बताया की आपके मुताबिक़ हर एक आदमी का आध्यात्म में उतरना बहोत आवश्यक हो चुका है, लेकिन वो आध्यात्मिक और सांसारिक जीवन में कैसे समन्वय कर पायेगा ?

श्री माताजी: बहोत ज्यादा हो जाता है, क्यूंकि परिवर्तन आ जाता है | मनुष्य में परिवर्तन आ जाता है, उसके अहंकार ढल जाता है | उसके अंदर में जो कुसंस्कार है, कण्डीशनिंगस है, वो गिर जाती है | और मनुष्य एक स्वस्थ, एक प्रेम मये और एक बहोत ही समझदार, वाईस जिसको कहते है, इस तरह का इंसान बन जाता है | तो ऐसे आदमी के साथ जीवन बिताना तो बड़े मज़े की चीज़ है | और इससे बच्चे भी बहोत अचे हो जाते है और आपस के संघर्ष कम हो जाते है | संघर्ष इसलिए आते है क्यूंकि हम अज्ञान में है | अंधकार हो उस वक़्त सब लोग बैठे रहते है, उनको ये नहीं पता की हमारा एक दूसरे से रिश्ता ही क्या है | गर वो चलने लग जाये तो चारो के पैर , चारो को अपने पैर से कुचल देंगे | किसी को गिरा देंगे, किसी को मार देंगे, पता ही नहीं चलेगा | पर अगर जब प्रकाश आ जायेगा तो वो देखते है की ये यहाँ, हम यहाँ, हमारी ये जगह, उनकी वो जगह | कोई किसी की, किसी की भी स्वतंत्रता को, किसी पे आक्रमण नहीं करता |

साक्षाकारकर्ता : अब हम ये मान लेते है की एक साधारण इंसान इस समय ये समझ गया है उसे अध्यात्म में उतरना है, उसके लिए उसे किसी गुरु की ज़रुरत होगी, वो मिथ्या गुरु या सत्य गुरु, सद्गुरु उसमे कैसे पहचान कर पायेगा ?

श्री mataji: सद्गुरु के पहचान के अनेक लक्षण बताये गए है | सभी सद्गुरुओ ने इसके बारे में लिखा है | पर एक सर्वसाधारण एक सद्गुरु के बारे में ये सोचना चाहिए की उसका चिट्टा कहा रहता है | उसका चिट्टा गर गरीबो में तंग हुए लोगो में, उनकी परेशानियों में, उनकी आफतो में, उनके सारे जीवन में ही आप देखेंगे शुरू से ही, जैसे की इस वक़्त में हमारे यहाँ, अपने देश के आज़ादी के लिए संघर्ष हुए थे, तो इन संतो ने जैसे टुकड़ू जी महाराज वगैरह ने उसमे ये किया था, फिर गाड़िय महाराज वगैरह जो लोग थे इन्होने गरीबो की सेवा के लिए बहुत कुछ किया | तो इनका सारा चित्त वही रहता है | और रहीस लोग और बड़े सक्सेसफुल लोग और बड़े जिसको कहना चाहिए की यशस्विता की परम सीमा पर पहुंचे हुए लोग, या राजकारण में बड़े ऊँचे पहुंचे हुए लोग है, उनसे ये दूर भागते है | उनसे चाहते है की उनसे दूर ही रहे | और उनसे कोई उनको मतलब नहीं रहता | उनको मतलब उन्ही लोगो से रहता है की जो बिलकुल बहुत नीचे स्तर पर है, जो बहुत दुखित है | और उनके लिए बहोत दुखी भी रहता है | ये एक पहली पहचान तो ये है | दूसरा ये की जो सद्गुरु होता है उसको आपके पैसा या आपकी कोई सी भी दुनियाई चीज़ में कोई भी इंटरेस्ट नहीं होता| कोई इंटरेस्ट नहीं होता | वैसे भी उसको पैसे की बात समझ ही नहीं आती | की पैसा क्या चीज़ है, बैंक क्या चीज़ है | उनको, इकोनॉमिक्स समझ ही नहीं आता है उसको | और वो बहोत दानी होता है | जो चीज़ हाथ में ए वो दान करते जाता है | हमारे घर में तो सब लोग डरते रहते हैं की एक दिन ये सारा घर ही दान कर देंगी, सब हमारे घर वाले तो बहुत घबराते हैं हमसे की इन्होने नजाने कितनी चीज़े दान कर दी है और क्या करने वाली है |

साक्षरकारकर्ता : जैसा की अभी देखने में आ रहा है पश्चिम में तेज़ी से राजनैतिक परिवर्तन हो रहा है, मार्क्स वाद भी एक दम ख़त्म हो चला है | और टूटने लगे है | इसमें एक दम नए राजनैतिक समीकरण तैयार होने लगे है | चाहे [unclear] चेकोस्लोवाकिआ हो, रोमानिया हो, चाहे रूस हो, इसका, यह एकदम से क्यों हो रहा है विश्व में सारे ?

श्री माताजी : आपको विश्वास नहीं होगा लेकिंग योगा सेमीनार रूस में हुआ था, जब उन्होंने मुझे बुलाया | मैं पहले रशिआ हो आयी थी, काफी काम हो चुका था, और सबने कहा की आप क्यों जा रहे है, तो मैंने ये कहा की वहा योगा सेमीनार में ईस्टर्न ब्लॉक के लोग आएंगे | ईस्टर्न ब्लॉक के लोग आये, मुझे सिर्फ पैतालीस मिनट मिले थे, तीस मिनट तो मैंने सहज योग के बारे में बताया, और पंद्रह मिनट में उन लोगो को आत्मा साक्षात्कार हो गया | और जैसे ही में हॉल से बाहर निकली, वो सब छोड़ छाड़ के बाहर चले आये | कोई अंदर बैठा ही नहीं | फिर उन्होंने अपने ऐड्रेसेस दिए, उसमे सं इन्ही देशो के लोग थे | क्यूंकि ये सहज योगी थे, जैसे ही ये वापस गए , तो वह ट्रिग्गरिंग हो गया | ये जो होते है एक जैसे की माध्यम हो जाता है, जो माध्यम, और हंगेरी के लिए मैंने यही कहा था की गर एक भी हंगेरियन सहज योगी हो जायेगा, तो हंगेरी स्वतंत्र हो जायेगा | और आपको आश्चर्य होने लगेगा की जिस दिन एक आदमी हमारे यहाँ आया, उसके आठ दिन में हंगेरी के यहाँ डिक्लेरेशन हो गया | और स्व का तंत्र जानना चाहिए | स्व का तंत्र जानना ही स्वतंत्रता है | स्व माने आत्मा है, अगर आपने स्व का तंत्र नहीं जाना है तो आप बेकार है |पर तांत्रिक और सहज योग में ऐसा अंतर है जैसे अँधेरा और प्रकाश | क्यूंकि ये लोगो कीच मालूमात तो है नहीं | गलत सलत काम करते रहते है , झूठ बोलते रहते है, अंध श्रद्धा निर्माण करते है | लोगो को डराते है और बहुत ही अहित चीज़ो के बारे में बात करते है | और ये साड़ी भूत विद्या, प्रेत विद्या है| यही तक की सम्मोहन करना भी प्रेत विद्या, बड़ी दुष्ट चीज़ है | जो आदमी सम्मोहन करता है वो खुद ही बड़ी बुरी मौत मरता है और किसपे सम्मोहन करता हैं उसकी भी ज़िन्दगी बड़ी बर्बाद हो जाती है |

साक्षात्कारकर्ता : कही ऐसा तो नहीं ये संसार दुबारा पूंजीवाद की तरफ बढ़ रहा हो, क्यूंकि मार्क्सवाद तो ख़तम हो गया है, ये दो एक्सट्रेमेस है |

श्री mataji: कोई सी भी चीज़ एक्सट्रेमेस पे जाना याने अपने संतुलन को खोना है | हमारे दिमाग में भी दो लोबेस है, एक नहीं हैं, एक लेफ्ट में है, एक राइट में है | तो जो आदमी बहोत ज्यादा बाहर की ओर दौड़ता है जिसे एक्सट्रोवर कहते है, उसका एक ही लोब, माने उसका लेफ्ट लोब ही डेवेलोप होता है, राइट नहीं हो सकता, तो उसमे असंतुलन आ जाता है | इसीलिए पाश्चिमात्य देशो में हम यहाँ बैठे बैठे नहीं समझ सकते, जब तक आप जाकर न रहे, क्यूंकि मैंने तो बहोत ही ज्यादा सफर किया हुआ है | और हम देखते है की लोग इतने शुष्क हो गए है, इतने इंसानियत से गिर चुके है, उनको इंसानियत मालूम ही नहीं | इतना ज़्यादा वह पर हिंसाचार है, भ्रष्टाचार इसलिए नहीं है वह पर भय है, पर भ्रष्टाचार भी है | डेमोक्रेसी मनो भ्रष्टाचार के बगैर चल ही नहीं सकती ऐसा लगता है | फिर उन्होंने इतनी गन्दी गन्दी आदते लेली है क्यूंकि अहंकार से भागने के लिए ड्रग्स, और एड्स, न जाने कितनी आदतों में फेज हुए है | मैं तो देखती हु अमेरिका में अधिकतर लोग बहुत ही नर्वस है, और उनके सारे नेर्वेस जो है वो बिलकुल पूरी तरह से अब कहना चाहिए की जर जर हो गए है, जर जर हो हाय है | और जो बाकी के लोग है वह पर, उनको भी स्निजोफ्रेनिआ , किसी को कुछ, ऐसी ऐसी बीमारिया है, की हम हिन्दुस्तान में इसे देखते भी नहीं | तो उनमे क्या है की संतुलन नहीं रह गया | तो जो लोग साइंस के पीछे में भागते है उनको पता होना चाहिए की साइंस में मानवी जीवन के लिए सिर्फ एक साधन मात्रा है, वो सब कुछ नहीं हो सकता | उसकी अपनी एक परिसीमा है, उससे बाहर वो नहीं जा सकता है | और सबसे बड़ी जो साइंस की खराबी वो यह है की मनुष्य की जो इंसानियत है, उसकी जो ह्यूमैनिटी है, उसको नहीं छू पाटा है | इसलिए एक साइंस के पीछे भागने वाला आदमी बहोत ही ज़्यादा क्रोधी, बहोत ही ज्यादा अपने में ही समाने वाला और समाज की व्यवस्था बिगाड़ने वाला होता है | वह का समाज इतना तीतर बितर हो गया है, की आपको आश्चर्य होगा की इंग्लैंड जैसे शहर, इंग्लैंड जैसे देश में, माँ बाप अपने दो बच्चो को कम से कम एक हफ्ते में दो बच्चो को मार डालते है | और कुछ तो वह ऐसे भी हुए है की जहा बहुत से नातीने जो है और उन लोगो ने अपने ग्रैंड पेरेंट्स को मार डाला | एक - एक तरह - तरह के उनके मारने के ढंग को सुनिए तो आप आश्चर्य करेंगे | और उनको बड़ा मज़ा आता है | मैं जब लास्ट टाइम गयी थी वहाँ लॉस एंजेलेस तो जिस रास्ते से में जा रही थी तो किसी ने बताया की इस रास्ते पर गए हफ्ते में ग्यारा आदमी मारे गए | मैंने कहा किस लिए, कहने लगे कुछ नहीं, एट द हैक ऑफ़ इट | बस निकली बन्दुक मार डाला | उनको इसी में मज़ा आता है | क्यूंकि मनुष्य उसमे संतुलन सब खो जाता है | तो जिसके पास, जो सोचता है की पश्चिमात्य देश बहोत अचे हालत में है तो ऐसा बिलकुल नहीं है | क्यूंकि वह पैसा ज़रूर है लेकिन पैसा ही सब कुछ नहीं होता | पूँजीवाद की ओर जाने वाले लोगो को पता होना चाहिए की पूँजी से ही सब कार्य नहीं होते | हाँ अब जैसे की आप कह सकते है समाजवाद जहा हुआ, जहा पूंजीवाद नहीं है , वह भी , अतिशयता हुई, की पावर की तरफ जाने से उस तरफ ध्यान नहीं दिया गया, जो बहुत ज़रूरी चीज़ है | पर तो भी में कहूँगी की राशिआ के लो बहोत बढ़िया लोग है, क्यूंकि वह की गवर्नमेंट ने जो भी उनके साथ किया, उनका दिमाग जो है उसमे किसी भी तरह की धर्मान्धता नहीं है, अंधश्रद्धा नहीं है | और कोई भी धर्म का उनके ऊपर, मतलब मनुष्य के बनाये हुए धर्म का उनके ऊपर पकड़ा नहीं है | वो लोग किस तरह से एक तरह से बड़े स्वतंत्र विचार के लोग है | पर उनको राजकारण में वो फसे नहीं, राजकारण में उनका मतलब नहीं था | और अब जब हम वहा पहुंचे तो में इतने आश्चर्य में हूँ वह लोगो ने श्री चक्र पे भी काम किया है | और इतनी हमारे शास्त्रों की उन्होंने, मतलब इतना अध्ययन किया हुआ है उनको | इतना मालूम है, और बड़े सुलझे हुए लोग है | लेकिन ये ठीक है, क्यूंकि उनकी गवर्नमेंट ने एक साइड ज़रा सी कम कर दी, पर में तो जानती हु की वह गोरबेचेव जैसा आदमी जो की एक आत्मसाक्षाकारी, जो की बड़ा ऊंचा इंसान है , उसकी गवर्नमेंट फ़ैल करने के लिए लोग ये सब प्रॉब्लम खड़े कर रहे है | वह खाना पीना वगैरह सब भरपूर है | वो बस उनको सताने के लिए वह की जो कर्मचारी है, ब्यूरोक्रेट्स है, उन्होंने ये समस्या खड़ी की है |और वह खाने पीने के, हर आदमी को वह घर मिल जाता है, पांच पैसे में आप कही से कही जा सकते है | आप अगर उनके मेट्रो देखे तो पैलेस के जैसे रखे हुए है | ऐसा सब आराम है | पर उनको जो स्वतंत्रता नहीं थी, उसके वजह से वहा, हमारे लिए भी एक प्रश्न था की हम वहा सहज योग नहीं ले जा सकते| लेकिन अब उस एक कहना चाहिये डिसिप्लिन नेचर में बढ़ने से उनमे एक तरीके की बढ़ी साधना सी है | और वो इतने जल्दी सहज योग को प्राप्त करते है, की उनका कोई हेरिटेज नहीं है, पर इसको इतनी जल्दी प्राप्त करते है, और इसमें कहा से कहा उठ गए | यहाँ तक की गवर्नमेंट ने हमको वह रिकग्नाइज़ किया है |

सक्षकारकर्ता : अभी एक नया दौर चला है, संसार में निरस्थित रहने का एक नया दौर चला है |

श्री माताजी : कौनसा दौर?

सक्षकारकर्ता : निरस्थित रहने का,आर्म्स , [unclear]

श्री माताजी : क्या, जस्ट पुट इट ऑफ़, कुडन्ट फॉलो हिम |

साक्षात्कारकर्ता : निरस्थित, शस्त्र

श्री माताजी : हाँ? निशस्त्रीकरण, निशस्त्रीकरण अच्छा | जस्ट अगेन, जस्ट कट इट आउट थिस मच पार्ट | यस दिस मच पार्ट यू विल कट इट आउट लेटर ओन , ऑलराइट |नाउ अगेन पूछिए |

साक्षात्कारकर्ता : संसार में निशस्त्रीकरण का एक नया दौर चला है, गोरबेचेव के आने के बाद, [unclear] उतरने के बाद, उसका क्या भविष्य है |

श्री माताजी : वो तो मतलब कमाल की चीज़ है | क्यूंकि जब दो आदमी होते तब झगड़ा होता है,एक हाथ से तो टालि, ताली नी बज सकती, उसका ये प्रत्यंतर है की जो एक हाथ हट गया तो अब दूसरा हाथ क्या करे | उन्होंने अपने को पूरी तरह से और बहुत ईमानदारी के साथ, अपने को हटा लिया | उसको हटाते ही दूसरा जो हाथ था उसको अब समझ में ही नहीं आ रहा की क्या करे | तो एक तरह से निशस्त्रीकरण तो करना ही पड़ेगा | और ये अगर पहले हो जाता तो बहुत ही अच्छा हो जाता पर सारे, हर एक चीज़ का संभालना पड़ता है | तो उन्होंने निशस्त्रीकरण का बड़ी ईमानदारी से इसका कार्य किया हुआ है और इसके मामले में किसी को शक नहीं | अब ये हो रहा है की फिर काहेको शास्त्र आप रखे, लेकिन अब भी कुछ कुछ देश है ज़िद्दी लोग, वो सोचते है की नहीं ऐसे कैसे हो सकता है, उनको अभी भी अपने सौरक्षण के लिए सोचते है कुछ रखना चाहिए | एक हाथ से तो टालि, ताली नी बज सकती, उसका ये प्रत्यंतर है की जो एक हाथ हट गया तो अब दूसरा हाथ क्या करे | उन्होंने अपने को पूरी तरह से और बहुत ईमानदारी के साथ, अपने को हटा लिया | उसको हटाते ही दूसरा जो हाथ था उसको अब समझ में ही नहीं आ रहा की क्या करे | तो एक तरह से निशस्त्रीकरण तो करना ही पड़ेगा | और ये अगर पहले हो जाता तो बहुत ही अच्छा हो जाता पर सारे, हर एक चीज़ का संभालना पड़ता है | तो उन्होंने निशस्त्रीकरण का बड़ी ईमानदारी से इसका कार्य किया हुआ है और इसके मामले में किसी को शक नहीं | अब ये हो रहा है की फिर काहेको शास्त्र आप रखे, लेकिन अब भी कुछ कुछ देश है ज़िद्दी लोग, वो सोचते है की नहीं ऐसे कैसे हो सकता है, उनको अभी भी अपने सौरक्षण के लिए सोचते है कुछ रखना चाहिए | पर कोई सौरक्षण की ज़रूरत ही नहीं है | अगर आप निशस्त्र है तो आप बहोत ज्यादा सुरक्षित है | जैसे हम सहज योग में ये सोचते है, की गर आप संत है तो आपको किसी के ऊपर कोई भी आक्रमण करने की ज़रुरत नहीं | क्यूंकि आपके पास पूरी शक्तिया परमात्मा की है, कौन आपको हाथ लगा सकता है, और कुछ थोड़ा बहोत हो भी गया, तो ठीक हो सकता है |

साक्षात्कारकर्ता : शांति की स्थापना के लिए यु ऐन ओ की स्थापना हुई थी, और ये काफी समय पहले हुआ था मगर आपने भी देखा होगा की ये कितना, कई बार ये निरर्थक रहा है|

श्री माताजी : उसकी वजह ये है

साक्षात्कारकर्ता : शांति की स्थापना के लिए यु एन ओ की स्थापना हुई थी, शांति स्थापित करने के लिए वीटो पावर भी कुछ नेशंस रखते है, जो ऑलवेज दे यूज़ अगेंस्ट एच अदर, न्यूट्रलाइस हो जाते है जो कमज़ोर देशो के जो प्रस्ताव होते है, शांति प्रस्ताव है, तो इन लोगो का फ्यूचर क्या देखती है? और वो संसार में शांति और यूनिटी लाने में कितना सफल हो पायेगा ?

श्री माताजी : असल में आपको ये सोचना चाहिए की जो लोग शांति प्रस्थापित करना चाहते हैं वो स्वयं शांति में है या नहीं ? उन्होंने शांति को प्राप्त किया है या नहीं | स्वयं वो अशांत है | फिर यु एन का जो पूरा संगठन है, वो बना हुआ है अनेक देशो पे | अब अनेक देशो में अनेक तरह की प्रणालियाँ, और अपनी विचार धारा हैं, गतिविधिया है, और वो उसी चीज़ को मान्यता देते है | की अब गर, सोचता है मैं सही तो वो सोचते हैं यही सही है | वो ये नहीं सोचता की मुझे शांति रखनी है | तो ये डामा डौल जैसे ये समझ लीजिये इनका जो, इनकी जो इमारत है, डामा डौल चीज़ पर कड़ी हुई है | पर गर, इसमें के लोग स्वयं शांति को प्राप्त करे, अब आपको सुनके ख़ुशी होगी की यु एन ओ में भी सहज योग मैडिटेशन सेंटर बन गया है | उसमे गर ये मैडिटेशन से इस शान्ति को प्राप्त कर ले, तो उनकी, उनका अंदर वो एक मूक शक्ति आजायेगी जो कार्यान्वित होगी, और उनके जीवन का असर सभी लोगो पर पड़ेगा | अभी तो हर जो कोई भी वह सेक्रेटरी जनरल होता है , उसको हर देश को खुश करना पड़ता है | क्यूंकि वो देश इन्हे पैसे देते है और गर ज़रा सी कोई बात हो जाये तो देश नाराज़ हो जाता है | ख़ास कर के अभी - अभी आपको मालूम है की यूनेस्को पर अमेरिकन एक दम नाराज़ हो गए और उन्होंने अपने पैसे हटा दिए | तो इस तरह के जहा की आपको संस्थाए मिलती है जहा आपको दुसरो को हर समय खुश करना पड़ता है, उनकी मर्ज़ी रखनी पड़ती है, तब ऐसे संस्थाए किस तरह से कोई भी कार्य को सिद्ध कर सकती है ? नहीं कर सकती | क्यूंकि उनको हर समय हर आदमी को खुश करते होना पड़ता है | हाँ पर गर इसमें जो नियुक्त लोग है वो उस, सिद्ध हो जाये, जिन्होंने इनको नियुक्ति दी है वो साफ़ कह दे की इनकी नियुक्ति में हम कोई भी दखल नहीं करेंगे, तब फिर कार्य हो सकता है | उसके लिए सहज योग फैलनबाहुत ज़रूरी है, की जहा जहा सहज योग फैला है, वहा वहा लोग शांति में, आनंद में है | और वो चाहते हैं की सबको ही शांति मिले | लेकिन जिनको यहाँ शांति के पुरस्कार मिलते है बड़े अशांत लोग है | मैंने देखा है इनको यहाँ शांति के पुरस्कार कैसे मिले पता नहीं | अंदर से तो इतने अशांत है, ऊपर से इन्हे शांति के पुरस्कार दिए जा रहे है | बड़े आश्चर्य की बात है |

साक्षात्कारकर्ता : कितने देशो में सहज योग फैल चूका है अब तक?

श्री माताजी : अभी तक मेरे ख़याल से छत्तीस देशो में है, हिंदुस्तान छोड़ कर के | पर अब कहना चाहिए की हिंदुस्तान मिला के, रशिआ मिला के थर्टी एट नेशंस में हमारा बहुत ज़ोरो पर काम चल रहा है | पर ऐसे अनेक देश में, अनेक [unclear word] है, ये है वो है, ऐसी छोटी छोटी छोटी छोटी जगह बहोत है | और साउथ अफ्रीका में 2 हज़ार लोग सहज योग कर रहे है |

साक्षात्कारकर्ता : जी बड़े आश्चर्य की बात है |

श्री माताजी : बहोत आश्चर्य

साक्षात्कारकर्ता : राजनैतिक से ही सम्बंधित एक और सवाल पूछना चाहता हु, हिदुस्तान की राजनीति से सम्बंधित | हिन्दुस्तान में भी अभी एक बहोत बड़ा राजनैतिक परिवर्तन आया है, पहली बार ऐसा लगा है की लोगो ने क्लियर गवर्नमेंट को, गवर्नमेंट के खिलाफ कोई क्लियर वीटो किया है, नई सरकार हर जगह, चाहे वो दक्षिण हो या उत्तर हो, जो रूलिंग पार्टीज थी उन्ही के खिलाफ वोट दिया गया है | और अभी जो नया पर्दा जो राजनीती का आया है वो भविष्य में किस रूप को वो धारण कर सकता है ?

श्री माताजी : मतलब हिन्दुस्तान के लोग भ्रष्टाचार से हमेशा तंग आ जाते है | लेकिन भ्रष्टाचार से तंग आने पर भी जिन लोगो को उन्होंने सेलेक्ट किया है, जब तक वो इस सत्य को न जाने की भ्रष्टाचार हटाने के लिए हमे यहाँ लाया गया है, और हमे हर हालत में भ्रष्टाचार हटाना चाहिए, और ऐसे लोग की जो भ्र्ष्टाचार में रत है उन लोगो को बिलकुल ही निकाल देना चाहिए | उनसे कोई सम्बन्ध ही नहीं रखना चाहिए | ऐसी गर शुद्ध हमारी व्यवस्था हो जाये, तो अपना देश तो वैसे भी बड़ा सात्विक, बहोत ही धार्मिक और अत्यंत सुन्दर देश है | ये तो योग भूमि है, अभी में आपसे बता सकती हु की लाल बहादुर शास्त्री के प्रति लोगो को कितनी श्रद्धा है, और उनकी जब मृत्यु हुई तो मैंने देखा की मिलिट्री वाले भी ऐसे रो रहे थे जैसे उनका बाप ही मर गया | वो भी अपने आप को किसी तरह से संभाल नहीं पा रहे थे | तो क्या, उनमे क्या विशेषता थी, की वो देश प्रेमी थे, देश के प्रति नितांत उनको श्रद्धा थी, और वो जानते थे की मेरा देश बहोत उत्तम देश है| और दूसरी बात ये है की देश का पैसा खाना, लोगो का पैसा खाना और इस तरह की गिरी हुई बाते वो कभी सोच भी नहीं सकते थे | ऐसे आदमी थोड़े दिन आये संसार में लेकिन उनका अभी भी नाम है और परदेस में भी लोग उनको बड़ी श्रद्धा से देखते है | उनके प्रति किसी ने भी खिलाफत में आज तक एक शब्द नहीं कहा |

साक्षाकारकर्ता : जैसा की मुझे मालूम चला है की आपने आज़ादी की लड़ाई में भी हिस्सा लिया है, और आज़ादी के बाद क्या आपने कभी राजनीती में आने की ज़रूरत महसूस नहीं की ?

श्री माताजी : राजनीती को

साक्षात्कारकर्ता : राजनीति में आने की ज़रुरत महसूस नहीं की?

श्री माताजी : असल में जब तक देश परतंत्र है, में महात्मा गाँधी के साथ बहोत बचपन से थी, वो मुझे नेपाली कहते थे | और वो बहोत धार्मिक, बहोत अत्यंत स्वच्छ आदमी थे | बहोत स्वच्छ | ज़रा कड़क थे लेकिन बच्चो के साथ बहोत प्यारे थे | और मुझे बहुत ही प्यार करते थे, और वो खुद ही कहते थे की जब तक हमे स्वतंत्रता नहीं मिलती तब तक हम आत्मा की बात नहीं कर सकते | और उनकी पूर्ण धारणा थी की हम जब स्वतंत्र हो जायेंगे तो आत्मा का कार्य शुरू हो सकता है | गर आज वो होते तो सहज योग के साथ होते | लेकिन दुर्भाग्य ऐसा है की वो हैं और जिस वखत हमे स्वतंत्रता मिल गयी, तो हमने एक दूसरा ही स्वरुप ले लिया | ऐसे लोग आ गए की जिनका हमने कभी नाम भी नहीं सुना था | जिन्होंने कोई कार्य भी नहीं किया था | है ये बात सही है की उस वखत स्वतंत्रता के इसमें में पूरी तरह से थी, बहोत छोटी उमर में ही मुझे पुलिसो ने बहोत सताया था, इलेक्ट्रिक शॉक्स दिए थे, मुझे बरफ पे लेटाया था, पर में जेल कभी नहीं गयी | क्यूंकि में इधर उधर भागती रही, घर छोड़ कर के और काफी कार्य मेंने किया | जेल नहीं गए | पर मेरे माँ बाप बहोत जेल गए, उन्होंने बहोत त्याग किये | और बड़े कमाल के लोग थे | कभी मेरी मदर जो थी वो कभी झूठ ही नहीं बोलती थी | और बेचारी पांच मर्तबा जेल गई, हम ग्यारह भाई बेहेन थे, और फादर भी हमारे सब कुछ उन लोगो ने सैक्रिफाइस कर दिया | और उनको और कोई चीज़ चाहिए ही नहीं थी, बस येही की देश के लिए ये करना है | हमने तो बहोत बड़े बड़े लोग देखे है जीवन में | और में सोचती हु की ये दुर्भाग्य की हमारे बच्चे वो चीज़ नहीं देख पाते है जो हमने देखा |

साक्षात्कारकर्ता : ऐसा कहा जाता है की उस वक़्त भी स्वर्ग भी धरती पर है और नर्क भी धरती पर है , ऐसा वास्तविकता है या भ्रामिकता है?

श्री माताजी : क्या स्वर्ग ?

साक्षाकारकर्ता : दोनों ही धरती पर है, ऐसा?

श्री माताजी : बिलकुल धरती पर है ये | लेकिन स्वर्ग की हमे जो कल्पना है, वो थोड़ी सी विकृत है | क्यूंकि हम जो जिस, जिस सतह से उस बारे में सोचते है, वो सोचते है की स्वर्ग का मतलब ये की खूब खाने पीने को होगा, और उसमे मोटरे चलेंगी, और उसमे ऐसा होगा, स्वर्ग का मतलब ये है की हमारी स्वयं स्थिति | अब जैसे आत्मा की स्थिति जब मनुष्य को प्राप्त होती है, तो वो सिर्फ आत्मा ही का, संतोष और उसका आराम देखता है | अब जैसे आप जानते है की हम बड़े घर में पैदा हुए है, और रियासत रही, और फिर पिता भी हमारे जेल गए, तो फिर हम लोग झोपड़ियों में भी रहे | और फिर मेरे पति भी काफी बड़े घर के है और वैसे भी हम लोग ऐसे ही रियासत में रहे | लेकिन आप कहे तो में कही भी ज़मीन पे सो सकती हूँ , कही पे रह सकती हूँ , मुझे कोई प्रश्न नहीं है | ऐसे ही सहज योगियों को देखिये, इनके सबके इनके मकानात थे, इनके पास मोटरे है, सब कुछ है, बड़े आराम से रहते है, लेकिन यहाँ देखिये कैसे रह रहे है | इनको कोई नहीं है | इनको बस जहा आत्मा का आनंद आने लग गया, उसको ये ऊपरी चीज़े सूझती ही नहीं है, उसमे वो आनंद लेता है |

साक्षात्कारकर्ता : आजकल पर्यावरण एक महत्त्वपूर्ण विषय बन चूका है | संसार में भी उसे महत्व दिया जा रहा है मगर वातावरण इतना दूषित हो चूका है, इसे कैसे सुधारा जाये? इस बारे में आपका क्या राय है ?

श्री माताजी : वातावरण दूषित होने का कारन ये है की एक सत्य हमे जान लेना चाहिए की मशीने हमने बनाई है हमारे लिए, हम उनके लिए नहीं है | उसका संतुलन नहीं है | मशीने बनाने की जहा तक ज़रूरत है, वही तक बनानी चाहिए | क्यूंकि वो भी जब तक उसको आप पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं करेंगे, तो वो आगे चल नहीं सकती | अब उस संतुलन के लिए पहले सामूहिकता आनी पड़ेगी | जब सामूहिकता आ जाएगी तो मनुष्य ये सोचेगा की में कितनी मशीने बनाऊ? जितनी ज़रूरत है, उससे ज्यादा नहीं | जैसे घर गृहस्ती की औरत होती वो ये सोचती है अच्छा में कितना खाना बनाऊ, जिसकी ज़रूरत है | पर गर वही अगर किसी आदमी को दे दीजिये तो वो कहेगा की चलो इतना बनाएंगे, फिर बाकी का बचेंगे, और फिर बाकी का ये करेंगे | और जब हमारे पास सब साधन है क्यों न हम इस तरह से [unclear word] | तो स्त्री का ये होता है की जितना ज़रूरी है संतुलित उतना हमे बनाना चाहिए | इसी प्रकार हमे मशीनों को भी संभालना चाहिए | और इस तरह से हम लोग बहक जाए, जैसे की परदेस मं तो बहोत ही ज्यादा ये प्रश्न है, बहोत बड़ा प्रश्न है | पर सहज योग से उसमे भी थोड़ी मदत होती है | ऐसे की एक हमारे एग्रीकल्चर के एक्सपर्ट है आप मिलेंगे उनसे मिस्टर हमीद, डॉक्टर हमीद, हाँ हाँ, ऑस्ट्रिया के तो वह पर ये प्रश्न खड़ा हुआ की वह की जो बहोत सारे फारेस्ट है, उसमे इस तरह से दूषित हवा के कारन और एसिड रेन के कारन उनकी सबकी मृत्यु हो रही है | तब इन्होने सहज योग के हम जिसे कहते है की विब्रेटेड वाटर जो होता है, वो इसमें डालने से बता रहे थे की साठ साल के ऊपर के तो नहीं बचा पाए, पर उसके नीचे के जितने भी थे सब बच गए और सब हरा भरा हो गया |

साक्षात्कारकर्ता : उन्होंने मुझे कुछ फोटोग्राफ्स दिखाए थे वाईब्रेटेड सीड्स के, [unclear] वाईब्रेटेड सीड्स का जो प्रोडक्शन था वो नॉन वाईब्रेटेड सीड्स के अपेक्षा तीस प्रतिशत अधिक था |

श्री माताजी : बहोत अधिक होता है ?

साक्षात्कारकर्ता : ये विब्रेशन्स से क्या उसमे प्रक्रिया शुरू हो जाती है ?

श्री माताजी : वाइब्रेशंस का मतलब है उसमे तीन शक्तिया काम से काम निहित होती है | एक तो शक्ति है जिसे आप कह सकते है इलेक्ट्रो मैग्नेटिक जो होती है वो, फिर उसमे प्राण शक्ति होती है, ये दोनों राइट साइडेड शक्तिया होती है, और दूसरी जो शक्ति होती है वो है मन शक्ति, तो मन शक्ति से क्या होता है की जो इस परम चैतन्य की जो इच्छा है, वो पूरित होती है | और तीसरी ये है की उत्क्रांति, तो जैसे, उत्क्रांति जैसे आप समझ सकते है , जैसे एक जेट हमने बनाया, या समझ लीजिये हमने आकाश में एक स्पेस क्राफ्ट भेजा, तो वो किस तरह से भेजा, की एक स्पेस क्राफ्ट में बहुत से, पहले नीचे में वेस्टिब्युल होता है, फिर उसके ऊपर होता है, फिर उसके ऊपर होता है, तो पहले एक सारा का सारा ऊपर जायेगा | तो उस वक़्त में उसकी एक गति है , स्पीड है वो स्लो होती है, उसके बात में नीचे वाला एकदम एक्सप्लोड होता है | फिर उससे दूसरी गति आ जाती है | ऑक्सेलेरेटेड जिसे कहते है | फिर उससे फिर दूसरा हो जाता है | इसी तरह से ये उत्क्रांति का भी विब्रेशन्स में वो शक्ति है | तो वो क्या करता है की वो इसको ट्रिगर करते रहता है | और उससे अने आपको आश्चर्य होगा की हमने एक किलो में हमने बासमती चावल, एक एकड़ में हमने बासमती चावल लगाया था वो था करीबन साठ किलो | और उसमे चौदा सो किलो उगाये | और उसकी जो बीजे थे वो इतने सुन्दर बासमती की लोग कहते हमने इतने सुन्दर बासमती देखे ही नहीं | और वह कहते थे की बासमती होगी है नहीं | ऐसे ऐसे थे, जैसे ऑलिव है, ऑलिव हमने लगाया वो आ गया | आपके टूलिप्स है, वो आ गए, वाइब्रेशनस से कोई भी चीज़ जो कहता है नहीं हो सकती, सब हो सकती है | बहोत सी चीज़े है जो की हिन्दुस्तान में नहीं हो सकती, विब्रेशन्स से हो सकती है |

साक्षात्कारकर्ता : अभी एक दो व्यक्तिगत सवाल में पूछना चाहता हु आपसे, जितनी बार भी मैंने आपके दर्शा किये है, मुझे लाभ मिला है आपके दर्शन का, मैंने नोट किया है, की आपको फूलो का बेहद शौक है और उसमे भी ख़ास कर के गुलाब के फूल |

श्री माताजी : नहीं गुलाब का ऐसा नहीं है, मुझे सभी फूलो का शौक है | मुझे सुगंध अछि लगती है, क्युकी सुगंध जो है, वो पृथ्वी का कौसल है, जैसे की कहना चाहोये की उसी से पृथ्वी बनी हुई है | और क्यूंकि पृथ्वी तत्त्व बहोत ही महत्वपूर्ण चीज़ है, इसलिए मुझे सुगंध कोई सी भी, जो की कृत्रिम न हो, जो नेचुरल है, वो अच्छी लगती है | और मुझे और भी एक शौक है, बच्चो का मुझे बहोत शौक है | जो की आप सौ बच्चे भी दे दीजिये तो में सब दुनिया भूल कर के बैठ जाउंगी | और फूलो का शौक मुझे ऐसा नहीं की मुझे फूल चाहिए, पर गर कुछ देना ही है तो मुझे , फूल , फूल ही दे दीजिये | और कुछ नहीं चाहिए ऐसा में कहती हूँ | पर मुझे कुछ ऐसा नहीं है की इतना मुझे शौक है की मैं फूलो के पीछे में बिलकुल आप फूल दीजिये, नहीं तो इतने | ऐसे नहीं, लेकिन ये की फूल जितने संसार में ज्यादा बढेंगे , उतना हमारा जीवन सुगंधमय हो जायेगा | और फूलो से बहुत कुछ सीखने का भी है | की कितना एक क्षणिक भर रहता है लेकिन वो सबकी सुगंध देता है | और केसी शोभा बढ़ता है वह सबकी , उससे बहुत कुछ सीखने का है | और फूल जो है ये एक चरम सीमा में पहुंच हुआ एक पेड़ का एक प्रतीक है | और उस फूल ही से फिर फल बनते है | इसलिए ये बड़ा एक प्रतीक रूप भी है | और आप जानते है की सारे जितने भी आध्यात्मिक लोग हो गए है उनको फूलो से बहोत प्रेम रहा है | और निसर्ग से भी बहोत प्रेम रहा है | पर अब समय कहा है की निसर्ग से प्रेम करे | पर सबसे ज्यादा प्रेम तो मनुष्य से करना चाहिए | क्यूंकि मनुष्य में सबसे निसर्ग सबसे ज्यादा प्लावित हुआ है | सिर्फ उसपर जो कुछ बादल आए है गर उसको हटा दीजिये, तो मनुष्य से बढ़कर और कोई सुन्दर चीज़ नहीं | परमात्मा ने सबसे उच्चतर चीज़ मनुष्य को बनाया | सिर्फ अभी तक उसने अपना ठौर नहीं पाया |जिस दिन वो पा लेता है तो वो तो इतना बढ़िया हो जाता है, आप देखिये इन लोगो को, ये आपस में कैसे प्रेम से रह रहे है | छत्तीस देश के लोगो ने कोई झगड़ा नहीं, कोई टंटा नहीं, कोई बात नहीं, आपस में इनका प्रेम देख के ही मेरा तो जी इतना खुश हो जाता है |

साक्षात्कारकर्ता : आपको संगीत का भी बहोत शौक रहा है |

श्री माताजी : ऐसे तो मुझे सभी कलाओ में बहोत ये है, मुझे आप जानते है मुझे शिल्प कला और हस्त कला, और संगीत, इसके अलावा आर्किटेक्चर,सभी चीज़ो में मुझे बहोत रूचि है | हर एक चीज़ में, यहाँ तक मेडिकल में भी मुझे बहोत रूचि है | और ज्ञान जो है सब अपने ही दिमाग में होता है | जो कुछ साइंटिस्ट जानते है जो बाहर है, आया है , जो बाहर है उसे देखते है | पर जो निहित है गर उसको जानने की आपमें शक्ति हो तो आप हर एक सब्जेक्ट को जान सकते है | जैसे की आप यहाँ पूछ सकते है एक साब ने आके मुझे जेनेटिक्स के बारे में पूछा, और मैंने सोचा की इनको ज़रूरी है बताना तो मैंने बहोत सी ऐसी बाते बता दी और वो कह रहे अब उसका रिसर्च हो रहा है | किसी ने कुछ पुछा उस पर मैंने बता दिया, पर ऐसा है की जो पूछने वाला हो, वो भी एक अधिकारी होना चाहिए| छत्तीस देश के लोगो ने कोई झगड़ा नहीं, कोई ताँता नहीं, कोई बात नहीं, आपस में इनका प्रेम देख के ही मेरा तो जी इतना खुश हो जाता है |

साक्षात्कारकर्ता : आपको संगीत का भी बहोत शौक रहा है |

श्री माताजी : ऐसे तो मुझे सभी कलाओ में बहोत ये है, मुझे आप जानते है मुझे शिल्प कला और हस्त कला, और संगीत, इसके अलावा आर्किटेक्चर,सभी चीज़ो में मुझे बहोत रूचि है | हर एक चीज़ में, यहाँ तक मेडिकल में भी मुझे बहोत रूचि है | और ज्ञान जो है सब अपने ही दिमाग में होता है | जो कुछ साइंटिस्ट जानते है जो बाहर है, आया है , जो बाहर है उसे देखते है | पर जो निहित है गर उसको जानने की आपमें शक्ति हो तो आप हर एक सब्जेक्ट को जान सकते है | जैसे की आप यहाँ पूछ सकते है एक साब ने आके मुझे जेनेटिक्स के बारे में पूछा, और मैंने सोचा की इनको ज़रूरी है बताना तो मैंने बहोत सी ऐसी बाते बता दी और वो कह रहे अब उसका रिसर्च हो रहा है | किसी ने कुछ पुछा उस पर मैंने बता दिया, पर ऐसा है की जो पूछने वाला हो, वो भी एक अधिकारी होना चाहिए, जो आदमी आकर के कहे की आपको बताना ही पड़ेगा नहीं तो में आप पे बन्दुक लगाऊंगा तो मैं तो कुछ नहीं, फिर में तो बिलकुल बुद्धू बन के बैठ जाउंगी |

सक्षकारकर्ता : ऐसे तो आप इतनी व्यस्त रहती है, मगर फुर्सत के क्षण जो भी मिलते है आपको यदा कदा, वो आप कैसे व्यतीत करना पसंद करती है ?

श्री माताजी : अकेले में तो मैं बहोत खुश रहती हूँ क्यूंकि मेरे ही अंदर सब कुछ है में जानती हूँ | और अकेले में मुझे कभी कागता ही नहीं की मैं अकेली हूँ | कभी जिसको कहते है बोर , बोरिंग वगैरह, वो में जानती नहीं क्या चीज़ होती है | मुझे आज तक मालूम नहीं है |

साक्षात्कारकर्ता : इसके अलावा एक लास्ट क्वेश्चन में पूछना चाहता हूँ , आगामी संसार को आप किस रूप, का भविष्य क्या है ? जो संसार अभी आने वाला है उसका भविष्य क्या रहेगा ? आने वाले वर्षो में संसार क्या रहेगा?

श्री माताजी : में तो सोचती हूँ की कलियुग ख़तम हो गया है अब, और उसकी जगा कृतयुग आ गया है | और उसका प्रकाश फैल रहा है | कृतयुग का मतलब है जहा ये परम चैतन्य कार्यान्वित हो | वो कृतयुग शुरू हो गया है | उसके अलावा अब सतयुग बिलकुल दरवाज़े पे खड़ा हुआ है उसका वरन करना, उसको समझना, मनुष्य के बस का तब होगा जबकि वो आत्मसाक्षात्कारी होगा | मुझे तो लगता है की इन सहज योगियों को में देखती हु तो लगता है की सतयुग ही है | ये तो वैकुण्ठ हु है | ये द्वारिका हैं | और लगता ही नहीं है की इससे बाहर कोई चीज़ है | पर बाहर आने पे देखते है की अभी बहोत कुछ करना है | और अभोत लोगो को ठीक करना है | और बहोत सारी ऐसी गलत चीज़े चल पड़ी है, की जो अवरुद्ध करती है चीज़ों को, जो मनुष्य के लिए बहोत ही हानिकारक है | लेकिन सत्य तो हमेशा स्वयं प्रकाशित होता है, स्वयं प्रस्थापित भी हो सकता है |

साक्षात्कारकर्ता : आपने इतना समय दिया, हमारे दर्शको को जो भी इससे लाभ पहुंचेगा, मुझे पूर्ण विश्वास है इस बात का | और में चाहता हु की आप [unclear] अपने मन से कोई सन्देश कहे, अंतिम कुछ शब्दों में तो अच्छा रहेगा |

श्री माताजी : एक ही, सन्देश तो एक ही है मेरा छोटा सा, की अपनी आत्मा को जानो | अपनी आत्मा की शक्ति को जानो | आप ही की अपनी शक्ति है और मेरा इसमें कोई लेना देना नहीं बनता | जैसे की एक दीप जला हुआ है, वो दूसरे दीप को प्रज्वलित कर सकता है, गर वो दीप ठीक हो तो वो प्रज्वलित हो जाता है | फिर वो जो जला हुआ दीप है वो दुसरो को प्रज्वलित कर सकता है | इसी तरह से संसार का जो सारा कुछ क्लेश है, जितनी तकलीफे है, संघर्ष है, ये सारा कुछ ख़त्म हो सकता है | जबकि हमारे अंदर ये प्रकाश स्थापित हो जाए |

सक्षकारकर्ता : बहोत बहोत धन्यवाद करते है आपका|

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