This is not the work of mediocres

This is not the work of mediocres 1979-06-16

Location
Talk duration
51'
Category
Public Program
Spoken Language
English, Hindi, Marathi

Current language: Hindi, list all talks in: Hindi

The post is also available in: English, German, French.

16 जून 1979

This Is Not The Work Of Mediocres

Public Program

Doctor Johnson House, Birmingham (England)

Talk Language: English | Translation (English to Hindi) - Draft

"यह औसत दर्जे के लोगों का काम नहीं है"

सार्वजनिक कार्यक्रम, डॉ जॉनसन हाउस, बर्मिंघम (यूके), १६ जून १९७९।

मुझे वास्तव में खेद है कि हम यहाँ एक ऐसी ट्रेन से पहुँचे, जो लेट थी। चीजों को ईश्वर की समय योजना के अनुसार घटित होना होता है, आप अपनी चीजों की योजना खुद नहीं बना सकते। और इसी तरह कभी-कभी किसी को देर से होना पड़ता है और कभी-कभी किसी को समय से पहले होना पड़ता है।

लेकिन एक बात निश्चित है: तुम्हारे अस्तित्व की अंतिम घटना का नियत समय आ चुका है। यह जीव जीवन के विभिन्न चरणों से गुजर रहा है। आप जानते हैं कि, आप एक छोटा सा अमीबा और फिर एक मछली, एक सरीसृप रहे हैं, और इस तरह उत्क्रांति तब तक चलती रही जब तक आप आज, यहां, एक इंसान के रूप में बैठे हैं।

यह सब आपके साथ आपकी जानकारी के बिना, आपके विचार-विमर्श के बिना हुआ है। और आपने यह मान लिया है कि आप एक इंसान हैं और एक इंसान के रूप में सभी अधिकार आपके अपने हैं। उसी तरह आप जो हैं उससे ज्यादा कुछ बनने का अधिकार है, क्योंकि आज भी आप नहीं जानते कि आपका उद्देश्य क्या है, आपको बनाने के लिए यह सब प्रयास क्यों किया गया?

इस जीवन का अर्थ क्या है? क्या यह अर्थहीन है? बस आप हजारों वर्षों तक अकारण ही बनाए गए थे? इस तरह से कि कितनी नामंजूर कर दी गईं, कितनी ही आकृतियां अस्वीकृत कर दी गईं, कितने रूपों को ठुकरा दिया गया, और फिर धीरे-धीरे, एक-एक करके, वे इस पृथ्वी से गायब होने लगे। अंतत: हम पाते हैं कि इस पृथ्वी पर अब इतने सारे मनुष्य हैं कि यह समझा पाना आसान नहीं है कि कैसे, इतने कम समय में, आप बनाए गए और कितने बनाए गए।

आप मानें या न मानें, लेकिन एक स्रोत है, एक नियंत्रण शक्ति है, जो वह करती है। मनुष्य स्वयं ईश्वर के बारे में बात करते रहे हैं, ईश्वर के बारे में लिखते रहे हैं - स्वयं। बेशक, अवतारों द्वारा उनका रक्षण किया गया था जिन्होंने उन्हें इस तरह का निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया, इसमें कोई संदेह नहीं है। लेकिन फिर भी पशु ईश्वर के बारे में विचार नहीं करते हैं, वे किसी भी अमूर्त के बारे में नहीं सोच सकते हैं।

इसलिए प्रत्येक मनुष्य के भीतर एक जागृति होती है कि हम पूर्ण नहीं हैं और कुछ इसके परे है।

अब, अगर मैं यह कहूं कि, अभी, "जो कुछ भी हम अपनी इंद्रियों के माध्यम से इस ब्रह्मांड के बारे में जानते हैं वह तो सिर्फ एक सपना है," यह एक तथ्य है। सिर्फ एक सपना है। आप मुझ पर विश्वास नहीं करने जा रहे हैं कि यह सब एक सपना है जबकि आप इसे बहुत स्पष्ट रूप से देख पाते हैं। लेकिन क्या हम सपनों में सब कुछ साफ नहीं देखते हैं? सपने में क्या हम उन सभी चीजों से संबंधित नहीं हैं जो वे बनाते हैं, वैसे ही जैसे आज मौजूद हैं? तो जब मैं कहती हूं कि तुम्हें इस स्वप्न से जागना है और उस जागरूकता में कूदना है, जो पूर्ण जागृति है, तो आप कह सकते हैं कि, "क्या यह एक स्वप्न से दूसरे स्वप्न में और इस स्वप्न से दूसरे स्वप्न में होगा?" मैं यह कैसे सिद्ध करने जा रही हूं यहाँ तक कि वह जागरण भी जो तुम्हारे परे है? आप वायब्रेशन को महसूस करने लगते हैं जैसे आपने इसके बारे में सुना होगा। फिर आप कैसे विश्वास करें कि वे वायब्रेशन जो आप महसूस करते हैं और जिस सर्वोच्च शक्ति को आप महसूस करते हैं, वह सर्वव्यापी सामूहिक चेतना जिसे आप अपने भीतर महसूस करते हैं, वह भी एक अन्य सपना नहीं है और आपको उससे परे जागना होगा?

मैं चाहूंगी कि सहजयोगियों में से कोई भी यदि संभव हो तो इस प्रश्न का उत्तर दे। क्या आप मुझे यह बता सकते हैं? आप देखिए, हमारा एक, आप देखिए, एक प्रकार का प्रमाण है। मैं जानना चाहती हूं कि क्या कोई सहजयोगी निश्चित रूप से कह सकता है कि वह सपना, जिस से कि अब आप बाहर आ गए हैं, क्योंकि आप वायब्रेशन महसूस कर रहे हैं, और आप अपने भीतर सामूहिक चेतना महसूस कर रहे हैं, वह भी दूसरा सपना नहीं है। मैं चाहती हूं कि आप इसके बारे में सोचें। क्या कोई स्पष्टीकरण दे सकता है? क्या कोई उस स्पष्टीकरण के बारे में सोच सकता है जो कि यह साबित करता है कि, आप जिस सर्वव्यापी शक्ति को महसूस कर रहे हैं वह भी एक सपना नहीं है?

सहज योगी : सपना नहीं बदलता।

श्री माताजी : क्षमा करें।

सहज योगी : सपना नहीं बदलता।

श्री माताजी: लेकिन आप कैसे कह सकते हैं? अगर आप अभी भी सपने में हैं, तो आप कैसे कहेंगे कि यह बदलेगा या नहीं? आप निश्चित रूप से कैसे कह सकते हैं कि यह बदलने वाला नहीं है?

आप देखिए, क्योंकि मैं यहां बहुत सारे बुद्धिजीवी बैठे पाती हूँ , इसलिए मैं आपको थोड़ा सा अवसर देना चाहती हूं। आप भी मुझ पर विश्वास क्यों करें? आपको इसके बारे में खुला होना चाहिए और आपको पता लगाना चाहिए की क्या मैं आपको सपनों से सपने में और फिर से दूसरे सपने में ले जा रही हूं।

बाला चलो, तुम बहुत होशियार लड़के हो! मेरा मतलब है, हमारे पास बुद्धिजीवी हैं। आज ही मैंने गेविन से कहा था कि मैं तुमसे एक प्रश्न पूछूंगी। आप कैसे कहते हैं कि ये वायब्रेशन जो वहां हैं, आप उनके बारे में सपना नहीं देख रहे हैं?

मारिया लैवेंट्ज़ : अगर वे हैं तो हम उनके बारे में कैसे सपना देख सकते हैं?

श्री माताजी: क्षमा करें?

मारिया लावेंट्ज़: अगर वे हैं तो हम उनके बारे में कैसे सपना देख सकते हैं?

श्री माताजी: आप देखते हैं, लेकिन हो सकता है कि, इस मामले में वे इसलिए हैं क्योंकि आप एक और स्वप्न अवस्था में हैं, तीसरी अवस्था में!

मारिया लावेंट्ज़: यह मेरी निजी राय है कि मेरे लिए यह सपना, यह वही है जो सच हो गया है।

श्री माताजी : सच है, लेकिन अगले सपने के लिए आप क्या कहते हैं, अगले सपने के बारे में क्या? शायद वहां कुछ और होता।

सहज योगी : हम वायब्रेशन से इसकी परीक्षा कर सकते हैं।

श्री माताजी : लेकिन वायब्रेशन भी स्वप्न हो सकता है! तुम देखो, तुम बस इसके बारे में सोचो। मैं ऐसा क्यों कह रही हूं, इसलिए कि आप मुझे वैसे ही स्वीकार न करें जैसा मैं कह रही हूं, अपने दिमाग को सतर्क रखें।

सहज योगी: हम नहीं सोचते।

श्री माताजी : आप इसके बारे में नहीं सोचते। क्यों नहीं? आप भी इसके बारे में सोच सकते हैं और यही बात है। बात यह नहीं है कि आप इसके बारे में नहीं सोचते हैं, लेकिन सपने में आपके पास जो कुछ भी है, अब आप चेतना की स्थिति में आ गए हैं जहां आप सिर्फ जागरूक हैं। फिर इस सचेत अवस्था में आपके पास जो कुछ भी है, वह आपके सपने में उपयोग नहीं किया जा सकता है; आप इसे अपने सपने से नहीं जोड़ सकते। लेकिन जब आपको आत्मसाक्षात्कार हो जाता है तो आप इस सपने की समस्याओं को हल करने के लिए उस खोज- (संस्कृत में इसे उपलब्धि कहा जाता है) का उपयोग कर सकते हैं - । आप समझ सकते हैं? इसलिए यह सपना नहीं है।

सपने को बनाने वाला अज्ञान है। आप सहज योग की उपलब्धियों से इसका सामना कर सकते हैं। हर मिनट आप इसका सामना कर सकते हैं,यहां उपस्थित लोगों के सामान।

तो, यह कोई मापदंड नहीं होना चाहिए कि मैं आपसे कोई पैसा नहीं लेती, इसलिए आप बस मुझ पर विश्वास करें। नहीं! आपको इस बिंदु के आधार पर विश्वास नहीं करना चाहिए। लेकिन बात यह है कि अगर आपका सपना, यानी आज का चेतन मन, जहां हम चेतन मन के केंद्र में हैं, जब यह चेतन मन अति-चेतनता प्राप्त करता है, तो उस चेतना का उपयोग इस सपने की समस्याओं को हल करने के लिए किया जा सकता है। और इसलिए हमें यह जानना होगा कि, सहज योग से आप जो कुछ उपलब्धि हासिल करते हैं, वह सारे सपने तोड़ देती है।

बाद में आप इसे सपने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं, क्योंकि आप पूर्ण स्थिति शुरू कर देंगे और आपके पास वह पूर्ण जागरूकता है जिसे हम चैतन्य लहरी कहते हैं - वायब्रेशन है - जिसके द्वारा आप हर चीज का आकलन कर सकते हैं: वह सपना जो वहां था, सुषुप्ति ( सुषुप्ति - गहरी नींद) जैसा कि वे इसे कहते हैं - और यह सचेत अवस्था का काल, और भविष्य अर्थात ईश्वर, और उनके तरीके। इन सभी चीजों को इन वायब्रेशन के माध्यम से महसूस किया जा सकता है।

आपके रास्ते में जो रुकावटें आती हैं, जिस से हम महसूस नहीं कर पाते, उन्हें हम बाधा कहते हैं। रुकावटों को 'बाधा' कहा जाता है: जिसका अर्थ है 'जिसके कारण हम चैतन्य को पूरी तरह से महसूस नहीं कर पाते'। हो सकता है कि साधन ठीक न हो, हो सकता है कि कुछ गड़बड़ हो। लेकिन इन वायब्रेशन के बारे में आपको जो अनुभूति आती हैं, वे आपके मन में सुस्पष्ट नहीं होती हैं और एक विकल्प रहता है। 'विकल्प' का अर्थ है 'संदेह'। संदेह इसलिए है क्योंकि अभी आपकी अनुभूतियाँ ठीक नहीं हैं। इस बिंदु पर एक दुष्चक्र है। यहां तक ​​कि जब आप अपने वायब्रेशन प्राप्त भी कर रहे होते हैं, तब भी संदेह रहता होता है, क्योंकि आपकी अनुभूति अभी ठीक नहीं हैं।

तो जब आप वायब्रेशन को पूरी तरह से अच्छी तरह महसूस करते हैं तो आप संदेह से परे हो सकते हैं। यह एक दुष्चक्र है। शंकाओं के कारण तुम स्पंदनों को अनुभव नहीं करते और स्पंदन नहीं होने के कारण तुम संदेह में हो। बोध हो जाने के बावजूद यह बात पहले से जानकारी में होना चाहिए, क्योंकि हमें अनुभव है कि लोग मेरे कार्यक्रम में आए, उन्हें बोध हुआ और फिर चले गए, वे कभी वापस नहीं आएंगे। उसका कारण यह है कि यह काल खंड बहुत महत्वपूर्ण है और यही वह समय है जब इसे प्राप्त करने की आपकी क्षमता की परीक्षा होती है।

लोगों को आत्मसाक्षात्कार मिलता है, वायब्रेशन उन्हें मिलते है, लेकिन उस स्थिति में स्थिर रहने की आपकी क्षमता तभी संभव है जब आप, स्वयं, आप इसे प्राप्त करने के लिए दृढ़ हैं।

नहीं तो आप फिर से उसी सपने में फँस जाते हैं। जैसे अगर आप डूब रहे हैं और कोई आपको बचाने की कोशिश करता है, आपको नाव पर ले आता है, लेकिन फिर भी आप सुनिश्चित नहीं हैं कि आप नाव में हैं या डूब रहे हैं, और फिर से नीचे खिसक जाते हैं। फिर से वह तुम्हें वापस रखता है। फिर से, तुम नीचे खिसक जाते हो। और ऐसा चलता रहता है। लेकिन अगर आप थोड़े से दृढ़ संकल्प के साथ नाव पर टिके रह सकते हैं तो यह बहुत अधिक मदद करता है। क्योंकि इसी से आप अपने जीवन का अर्थ जानेंगे।

इस छोटी सी समस्या के कारण मैंने देखा है, सहज योग में, हमें ऐसे लोग मिलते हैं जो उत्कृष्ट लोग हैं। यह काम आम औसत दर्जे के लोगों का नहीं है। मराठी भाषा (संत तुकाराम की) में एक कहावत है, "येड़ा गबाल्यात्ज़े काम नो है" "इसमें घटिया लोगों के आने का काम नहीं है।"

तो यह एक ऐसा बिंदु है जहां आपको वह हासिल करना है, और वह बिंदु बहुत महत्वपूर्ण है। मैंने आज इसकी शुरुआत इस तरह क्यों की है क्योंकि मैंने कई बार देखा है कि सभी प्रयास कभी-कभी ऐसे ही व्यर्थ चले जाते हैं।

अब यह आपके भीतर है, ये सभी चक्र जो यहां दिखाए गए हैं। क्या आप चाहते हैं कि मैं आपको यहाँ इन चक्रों के नाम बताऊँ?

अब यह चक्र हमारे भीतर केंद्र का पहला चक्र है, जो सूक्ष्म रूप में है जिसके बारे में हम नहीं जानते हैं, लेकिन हम इसके बारे में स्थूल रूप में जानते हैं, फिर से स्वप्नलोक में, आप कह सकते हैं। स्थूल रूप को श्रोणी जाल कहा जाता है, लेकिन यह मूलाधार नामक इस सूक्ष्म चक्र द्वारा प्रकट होता है।

यह हमारे भीतर एक बहुत ही महत्वपूर्ण चक्र है, क्योंकि इसी तरह से हमने जीवन की शुरुआत की। हम कह सकते हैं कि जीवन में कार्बन पेश किया गया था, हमारे अंदर। कार्बन के बिना आप जीवन नहीं बना सकते। और इसलिए यह चक्र है जहां, यह वह अवस्था है जहां हम वास्तव में जीवित प्राणी बन गए: जीवन हम में स्पंदित हो गया, और इस तरह इसका सीमांकन किया गया। यह उन सभी पदार्थों का भी प्रतिनिधित्व करता है जो हम रहे हैं, क्योंकि कार्बन आवर्त सारणी के केंद्र में है, जैसा कि आप इसे समझते हैं। और वह उच्चतम विकसित तत्व है, क्योंकि जब कार्बन का प्रवेश हुआ था, तभी हम जीवित प्राणियों के रूप में स्पंदित होने लगे थे। लेकिन इसका कुंडलिनी से कोई लेना-देना नहीं है।

तो सभी जीवित चीजें अब इस स्तर पर हैं, लेकिन जब आपके पास एक उच्च स्थान होता है, तो आप सभी के अंदर निर्मित होते हैं, हालांकि उनमें भी इन सभी को रखने की क्षमता होती है। तो मानव इतिहास सीधे यहीं से शुरू होता है, यह आधारभुत है, इसलिए इसे 'मूलाधार' चक्र कहा जाता है - [अर्थ] जड़ का आधार, जड़ का आधार।

अब जो जड़ है वह यह कुंडलिनी है। यह आपके भीतर अंकुरित करने वाली शक्ति है जिसके द्वारा आप एक उच्च अवस्था में विकसित होते हैं। और इसे आपकी त्रिकोणीय हड्डी के भीतर रखा गया है जिसे आप अपनी खुली आंखों से देख सकते हैं, आप वहां कुंडलिनी को देख सकते हैं। वह मौजूद है। लेकिन अगर आप डॉक्टर को बताते हैं तो वह आप पर विश्वास नहीं करेगा। मैं खुद चिकित्सा शास्त्र की छात्रा थी और मैं कहूंगी "अब, इन लोगों से कैसे बात की जाए? उनकी भाषा सीखना बेहतर है ताकि आप उनसे बात कर सकें।" यह वहां मौजूद है और यहां मौजूद कई लोगों ने उनमें इस स्पंदन को देखा है। यह वाला।

और यह कुंडलिनी वह शक्ति है, जिसे वहां रखा जाता है, अवशिष्ट शक्ति, जिसे आपके पुनर्जन्म के लिए वहां रखा जाता है, जैसा कि वे इसे कहते हैं। ब्राह्मण को द्विजः कहा जाता है जिसका अर्थ है जो फिर से जन्म लेता है, पुनर्जन्म लेता है। जैसा कि स्वयं क्राइस्ट ने कहा है, कि आपको दो बार जन्म लेना है। मुर्गी के अंडे की तरह, हम पैदा होते हैं, इस सपने में जीते हुए और स्वयं के अस्तित्व के कोकून में। जब तुम तैयार हो जाते हो, तब माँ कोकून के सिर में छेद कर सकती हैं और तुम्हें बाहर ला सकती हैं। यद्यपि परिवर्तन आपके द्वारा अपने ही भीतर, इसे महसूस किए बिना, दैवीय शक्ति के माध्यम से किया गया है। और मुझे लगता है कि आज वह समय आ गया है जब आप अंडे से बाहर निकलने योग्य परिपक्व हैं, जैसा कि वे कहते हैं।

फूल आने का समय आ गया है। परिवर्तन का समय आ गया है। और हजारों को परिवर्तित किया जाना है। आपको अपने जीवन का अर्थ जानना होगा क्योंकि आप एक उद्देश्य के लिए बनाए गए थे - अमीबा से इस चरण तक आपको लाया गया था - और अब जिसने आपको बनाया है, जिसने आपको इस ब्रह्मांड का सारा सौंदर्य और उपहार दिए हैं , चाहता है कि आप उसे जानें और सभी वरदानों का आनंद लें, जैसे कि पिता अपने प्रेम के कारण इस पृथ्वी पर अपने सभी आनंद और संपत्ति प्रदान करते हैं। यह उनके प्रेम की अभिव्यक्ति है जो हमें इस स्थिति में लाया है, और उनका प्रेम ही आपको वह दर्जा देने जा रहा है जिसके द्वारा आप परमेश्वर के राज्य में विराजमान होने जा रहे हैं। अन्यथा, मुझे पता है, लोगों को बहुत अधिक नुकसान हुआ होता।

यह बहुत, बहुत ही सरल प्रस्तावना है, जिसे समझना मनुष्य के लिए कठिन है, कि यह उसी तरह वांछित था जैसा कि एक पिता अपने पुत्र के लिए चाहता है। यहां तक ​​​​कि जब वह अभी तक एक पिता नहीं है, तो भी वह एक बेटे के बारे में सोचता है कि: वह किस प्रकार उसका पालन करने वाला है और कैसे वह अपना सारा प्यार और अपनी सारी कमाई उस बच्चे पर न्योछावर करने जा रहा है। उसी तरह, महान पिता ने इतनी सुंदर तरीके से पूरी योजना बनाई है और वह अपनी रचना की देखभाल करने जा रहे हैं। इसे कोई नष्ट नहीं कर सकता। वह सर्वशक्तिमान है। केवल एक चीज यह है कि तुम अपने आप को नष्ट कर सकते हो, क्योंकि उसने तुम्हें स्वतंत्र किया है। उसने तुम्हें आजादी दी है। उसने आपको एक दोस्त के रूप में माना है। क्योंकि अगर आपको सिंहासन पर बैठाया जाना है, तो आपको एक स्वतंत्र व्यक्ति बनना होगा और आपको पता होना चाहिए कि स्वतंत्रता की महिमा का आनंद कैसे लेना है।

उस आजादी में अगर आपने कुछ गलत चुना है तो उसके लिए आप परमात्मा को दोष नहीं दे सकते। लेकिन अगर यह सिर्फ एक गलती है तो वह आपकी देखभाल करने के उद्देश्य से अपनी हजार गुना कृपा और दया से इसे कार्यान्वित करेंगे ताकि, आपकी रक्षा हो। वह यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी सारी शक्तियों का उपयोग करने जा रहे है कि आपको वह सौन्दर्य प्राप्त हो जिसका वादा किया गया है। वही सहज योग है।

'सहज' का अर्थ है 'अनायास'। शायद हम 'सहज' का पूरा अर्थ नहीं समझते हैं, क्योंकि समझने के लिए 'सहज' अपने आप में एक अमूर्त शब्द है। यह सिर्फ उनकी सहज शक्ति है जो इसे कार्यान्वित करती है। वह स्वयं सहजता है, और उनकी शक्तियाँ स्वतःस्फूर्त हैं, उसका प्रेम स्वतःस्फूर्त है।

आप हर तरह से देख सकते हैं कि कैसे प्रकृति अनायास स्वतःस्फूर्त ही हजारों चीजें करती है जिनका हम जवाब नहीं दे सकते, न ही हम इसे समझ सकते हैं, न ही हम इसकी सराहना कर सकते हैं। जैसे कोई छोटा फूल फल बन रहा हो। हम इसे 'यूं ही' मान लेते हैं। अगर फूल हैं, तो ठीक है, ले लो, वे हैं। अगर फल हैं, तो हम उन्हें खाते हैं। उसी तरह हमने सब कुछ हलके में ही ले लिया है और सहज योग को भी हलके में ही ले लिया है। यह काम करने जा रहा है, यह आपके भीतर घटित होने वाला है, और आप सभी इसे प्राप्त करने जा रहे हैं।

इस केंद्र में, दूसरा केंद्र, जिसे आप देखते हैं, वह पहला केंद्र है, क्योंकि यह केंद्र है, जिसे मणिपुर चक्र कहा जाता है; जो हमारे नाभी अंगों को नियंत्रित करता है या, हम उन्हें सौर जाल कह सकते हैं। सौर जाल है जो पेट के सभी अंगों, सभी विसरा को नियंत्रित करता है। और यह चक्र [स्वादिष्ठान] वास्तव में इसी चक्र से निकलता है। यह इसका एक अतिरिक्त केंद्र है, जो इस क्षेत्र के चारों ओर घूमता है और पेट के अंदर के अंगों की देखभाल करता है।

जैसे भगवान ने आपको अपनी छवि में बनाया है, आप देख सकते हैं कि यह वह जगह है जहां ईश्वर ने इस ब्रह्मांड को बनाया है: जहां सितारे और सभी आकाशगंगाएं बनाई गई हैं। और फिर पृथ्वी यहाँ नीचे बनाई गई है, और हमारे पास एक सूर्य और एक चंद्रमा है।

लेकिन अपने अस्तित्व में भी, हमने इन सभी चक्रों को अपने भीतर स्थापित पाया है।

यह बृहस्पति का तारा है जिसे आप कह सकते हैं। वे सभी ग्रह भी रखते हैं जो पुश बटन की तरह होते हैं। ये सभी बड़े ग्रह, सर्वशक्तिमान ईश्वर के विसरा या पेट में, 'पुश बटन' हैं। उसी तरह हमें भी यह केंद्र प्राप्त है जो बहुत महत्वपूर्ण है।

यदि आप यहां देख सकते हैं कि यह इस जल तत्व से घिरा हुआ है, और इस चक्र का तात्पर्य आप की खोज़ से है। तो, पहले इस पानी में जीवन का अस्तित्व शुरू हुआ और तलाश शुरू हुई। खोज इसलिए शुरू हुई क्योंकि हमारे पास एक जन्मजात, अंतर्निर्मित, खोज की भावना है। अमीबा भोजन की तलाश में है। जानवर भी भोजन चाहते हैं, और सुरक्षा जैसी चीजें भी। वह अपनी रक्षा करना सीखता है। लेकिन मनुष्य अपने अस्तित्व का अर्थ ढूंढता है।

आज, यह परे की खोज हमारा विषय है।

इस बाजू है, यह नीली रेखा (इड़ा नाड़ी) जो आपके भीतर दिखाई गई है, आपके अस्तित्व की रेखा है, जो आपके बाईं ओर अनुकंपी तंत्रिका तंत्र left sympathetic nervous system को अभिव्यक्त करती है। और वह रेखा, दूसरी रेखा, जो यहां दिख रही है, वह आपकी रचनात्मकता (पिंगला नाड़ी) की, आपके भौतिक अस्तित्व की रेखा है, जो आपके दाहिनी ओर अनुकंपी तंत्रिका तंत्र right sympathetic nervous system द्वारा दर्शायी जाती है या अभिव्यक्त होती है।

मध्य की नाड़ी खोज़ के लिए है। और तुम देखते हो कि बीच में एक शून्य है, एक निर्वात है। आप नहीं जानते कि यहां से कैसे संपर्क किया जाए। मनुष्य के पास यह केंद्र बहुत महत्वपूर्ण है, चूँकि सुरक्षा की एक स्थिति के बाद जानवर उत्थान करते हैं, उन्होंने खुद को बचाने के तरीके सीखे।

लेकिन यह एक बिंदु (विशुद्धि) है, जो बहुत महत्वपूर्ण है, जहां मनुष्य ने अपना सिर उठाया है। यह चक्र एक बहुत ही महत्वपूर्ण केंद्र है क्योंकि यही वह बिंदु है जहां मनुष्य ने अपनी जिम्मेदारियों को स्वीकार किया है। उन्होंने इस स्थिति को स्वीकार कर लिया है कि वे कुछ हैं: यह 'मैं' पन इस चक्र से शुरू हुआ था।

चूँकि इस केंद्र पर - जैसा कि चित्र में दिखाया गया है, यह थोड़ा गलत है क्योंकि यह दोनों तरफ जुड़ा हुआ है - इस केंद्र पर, जब मनुष्य अपने भीतर इन दोनो शक्तियों, एक अस्तित्व की और दूसरी रचनात्मकता की - या हम कह सकते हैं कि भावनात्मक और दूसरी मानसिक, शारीरिक शक्तियाँ, का उपयोग करना शुरू कर देता है- वे अपने अस्तित्व से, तनाव के धुएं को मुक्त करती हैं। और ये दो धुएं जैसा कि हमने वहां दिखाया है, मस्तिष्क में जाते हैं और इस तरफ प्रति-अहंकार और उस तरफ अहंकार के आकर में बनाते हैं।

अब प्रति-अहंकार कैसे बनता है और अहंकार कैसे बनता है और यह क्या है, मैं आपको संक्षेप में बताती हूँ।

जैसे किसी कारखाने में जब क्रिया होती है तो आप धुएँ को निकलते हुए देखते हैं, उसी प्रकार जब हमारी भावनात्मक गतिविधि या हमारी शारीरिक, मानसिक गतिविधि होती है, तो उस साए की सभी गतिविधियों का प्रतिनिधित्व करने वाला धुंआ इन दो गुब्बारे जैसी संरचनाओं में जमा हो जाता हैं। गुब्बारे जैसी ये दो संरचनाएँ जब मिलती हैं, तो मनुष्य मुख्य स्त्रोत्र से अलग हो जाता है। जानवरों को अलग नहीं किया जाता है। केवल मनुष्य अलग होता हैं। उन्हें वह स्वतंत्रता दी गई है।

जब वे पैदा होते हैं, तो तालू क्षेत्र fontanel area में जैसा कि आप देख सकते हैं, बचपन में बहुत नरम होता है। और आप उस स्पंदन को वहां स्पष्ट देख सकते हैं जिसके माध्यम से शक्ति मस्तिष्क क्षेत्र limbic area में प्रवाहित होती है। लेकिन जब कोई बच्चा बढ़ता है और उसकी दोनों गतिविधियां उसी तरह बढ़ती हैं, तो उक्त हड्डी कठोर calcification हो जाती है और आप पाते हैं कि यहां सिर सख्त हो गया है। इसलिए कभी-कभी लोग "हार्ड नट्स" कहते हैं। यह कठोर जगह ही वह स्थान है जहां इस कुंडलिनी को छेदना होता है। उसे अपनी आसंदी से उठना है, ऊपर जाना है और उस तालू क्षेत्र fontanel area को छेदना है। जिसे हम सभी जानते हैं इसी को बपतिस्मा कहा जाता है। यही वह बपतिस्मा था जिसे जॉन द बैपटिस्ट ने कहा था, ऐसा नहीं कि आप किसी धर्मशास्त्रीय कॉलेज theological college से या किसी प्रशिक्षण या किसी प्रकार के मसखरे दिखने वाले लोगों से बपतिस्मा लेते हैं। वे यह नहीं कर सकते। वे जोकर की तरह कपड़े पहन सकते हैं और कह सकते हैं, "ठीक है, मैं तुम्हें बपतिस्मा देता हूं।" यह बेतुका है! ऐसी चीजें करने का उनका अधिकार क्या है? और ऐसा तब होता है, जब आधुनिक समय में आप लोगों से पूछते हैं, "क्या आप ईश्वर में विश्वास करते हैं?"

"नहीं!"

"क्यों?"

"क्योंकि हमारा पादरी (पुरोहित) ऐसा ही है।" परन्तु चर्च को ऐसा नहीं मानना ​​चाहिए कि वे परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

इसी तरह, हर धर्म में, लोगों ने आपका शोषण किया है, तथाकथित हिंदू धर्म, जिसे आप बहुत महान समझते हैं और भी गंदा है और ईसाई धर्म से भी बदतर कभी भी हो सकता है।

इस प्रकार का शोषण आपके आत्म साक्षात्कार पाने में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। कई बार साधक - निर्दोष साधक जो खोज रहे हैं - वे इसे चर्च में नहीं पाते हैं, इसलिए वे एक भारतीय मंदिर में जाते हैं जहां वे कुछ गांजा खरीद सकते हैं और अंततःकिसी स्विमिंग पूल या ऐसी ही कुछ उनकी प्राप्ति हो सकते हैं। मैं आज कहती हूं कि यह सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है कि जिस तरह से लोग सोचते हैं कि वे साधकों की मासूमियत का शोषण कर वे पैसा कमा सकते हैं। वे खुद अपनी खोज के बारे में चिंतित नहीं हैं तो वे आपकी खोज का सम्मान कैसे कर सकते हैं? या उन्हें इससे किसी तरह की कपटी दुखदायी खुशी मिलती है।

यह चक्र, यह पूरा केंद्र, जो आपके पोषण द्वारा समर्थित है, इससे व्यथित है। यहां एक मानव पोषण को बनाया जाता है और बनाए रखा जाता है और उसकी देखभाल की जाती है। और ऐसे महान अवतार हैं जो हमें यह सिखाने के लिए पृथ्वी पर आते हैं कि यही वह जीवनचर्या है जिसका आपको पालन करना चाहिए। लेकिन भयानक, दुष्ट, दुष्ट प्रतिभाएं भी हैं जो इस धरती पर आती हैं। वे इस क्षेत्र में आते हैं और वे आपके पोषण में बाधा डालते हैं। यानी, जैसा कि मैंने कहा, यही मेरे सामने सबसे बड़ी समस्या है।

वास्तव में, यह एक सुंदर बगीचे जैसा कुछ होगा जिसमें मैं आती हूं, और मुझे चारों ओर सुंदर फूल मिलते हैं और मैं अभी आ ही रही होती हूं और यहां मुझे पूर्ण रूप से भ्रष्ट और निम्न प्रकार के मनुष्यों की स्वार्थ पूर्ति के लिए कटे-फटे फूल मिलते हैं। उनके पास वास्तव में सींग और पूंछ होनी चाहिए; जैसे वे भ्रष्ट हैं। सींग वाले जानवर भी हजार गुना बेहतर होते हैं। वे आपकी प्रगति को रोकना चाहते हैं। और इस तरह हम पाते हैं कि आज स्थिति यह है कि खिलने के समय सभी फूल नष्ट हो गए हैं। नहीं तो वे बहुत आसानी से फल बनने वाले थे। यह उन सभी के साथ होना था। बड़ी सावधानी और चिंता के साथ, उस आड़ू को बनाने के लिए, लेकिन अब जब की वे इस स्तर तक आ गए हैं और यहाँ हम उन्हें अचानक से बेहूदा भयानक लोगों जो वास्तव में

किसी योग्य नहीं हैं द्वारा नष्ट कर दिया पाते हैं। आप उस पीड़ा को नहीं समझ सकते। अब फूलों को ही यह बात समझना है।

मुझे यह जानकर खुशी हुई कि लोग खुद को 'फूल वाले' कहने लगे हैं। यह एक अच्छा विचार था। लेकिन उन्होंने हताशा में आत्म-विनाश की एक अन्य शैली शुरू की। जब तुम ही स्वयं को नष्ट कर रहे हो, दूसरे भी नष्ट हो जाते हैं। इसका दूसरा पहलू भी बहुत दुखद है।

मैं यहां सहज योगियों में से एक से मिली, जिन्होंने पैराशूटिंग करने के कारण अपनी कमर तोड़ दी थी। तो मैंने कहा, "तुमने ऐसा क्यों किया?" "इतनी चीजों में से पैराशूटिंग करने के चुनाव की क्या जरूरत थी?" चूँकि मैं उसका मूल्य जानती हूं, मैं उसका सार जानती हूं, मुझे पता है कि उसके पास अनुभूति है। मैंने कहा, “आपको पैराशूटिंग के लिए नहीं जाना चाहिए था। आप विमानों के टाइप के नहीं हैं। ” उसने कहा, "निराशा वश मैंने सोचा कि बेहतर मेरी गर्दन तोड़ दो! फिर भी मैं इस तकलीफ से बाहर आ गया। तब मैंने सोचा कि जिस तरह से मैंने इसे किया, मुझे कुछ और मूल्यवान होना चाहिए। मैंने इसे बहुत अच्छा किया। लेकिन फिर भी यह बात कायम है कि इस जीवन से कुछ अधिक मूल्य प्राप्त किया जाना चाहिए। ”

लेकिन आप में से कुछ लोगों ने सब कुछ अति कर दिया है। क्यों? क्योंकि आप स्वयं का मूल्यांकन नहीं कर पाए हैं, और अपने बारे में पता नहीं लगा पाए हैं, अपने बारे में जान नहीं पाए हैं और आप क्या चीज़ हैं। जब की तुम पूरी सृष्टि की आशा हो, तो यह कैसे हुआ कि तुमने अपने अस्तित्व पर ध्यान नहीं दिया? और यह दूसरी बाधा है जिसका मुझे सामना करना पड़ता है, आपको सामना करना पड़ता है और जो लोग मानते हैं कि उन्हें आत्मसाक्षात्कार होना चाहिए, उन्हें सामना करना पड़ता है। मैं शून्य का वर्णन इस तरह से कर रही हूं क्योंकि मुझे बहुत कम समय में करना है और आप जानते हैं कि विषय बहुत विस्तृत है।

मेरा सुझाव है कि हमें पहले "प्रकाश" प्राप्त हो जाए। आइए पहले ज्ञान प्राप्त करें। तब इसके बारे में बात करना आसान होगा। प्रकाश के बिना, मैं आपको क्या वर्णन करने जा रही हूँ? और तुम मुझ पर विश्वास क्यों करोगे? तो बेहतर है आप प्रकाशित हो। बेहतर होगा इसे महसूस करें, इसका इस्तेमाल करें, इसे समझें और फिर इसका इस्तेमाल करें।

पहली बार जब कुंडलिनी ब्रह्मरंध्र को छूती है या जब वह इस बिंदु पर खुलती है, तो आपको इन शांत स्पंदनों का अनुभव होने लगता है। तो वास्तव में ऐसा हुआ है? आइए देखते हैं, चिकित्सा शब्दावली में। मध्य मार्ग, जो सुषुम्ना है, परानुकम्पी तंत्रिका तंत्र parasympathetic nervous system का प्रतिनिधित्व करता है। मैं आपको चिकित्सा शब्दावली से बोर नहीं करना चाहती क्योंकि मैं खुद काफी ऊब चुकी हूं!

इस सुषुम्ना का यह मध्य मार्ग परानुकंपी प्रकट कर रहा है और यदि आप जाकर डॉक्टरों से पूछेंगे, तो वे कहेंगे, "ओह, हम इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। मत पूछो।" यह सही बात है; यह वह रेखा है जिसके द्वारा हम अपना वर्तमान प्रकट करते हैं: अभी, आज, अभी-अभी | आज भी सच है, लेकिन वास्तव में यही क्षण। हम इस क्षण पर नहीं रह सकते, या तो हम अतीत में जाते हैं या भविष्य में, लेकिन हम यहाँ नहीं रह सकते। अगर हम यहां रह पाते तो इन दोनों चीजों को साफ-साफ देख सकते थे। लेकिन हम हर समय कूदते रहते हैं और हम देख नहीं पाते क्योंकि अतीत समाप्त हो गया है और भविष्य मौजूद नहीं है। तो हमें कुछ दिखाई नहीं देता। कुल योग यह है कि हम कुछ भी नहीं देखते हैं।

हम कुछ देख सकते हैं या कुछ महसूस कर सकते हैं केवल तभी यदि हम अपने आप को इस परानुकंपी पर स्थिर कर सकें, जो हम नहीं कर सकते; चिकित्सकीय रूप से, वे कहते हैं कि हम परानुकम्पी parasympathetic की ऊर्जा का दोहन नहीं कर सकते। अब मनुष्य के रूप में हमने इस मुकाम तक यही हासिल किया है। यह हमारी उपलब्धि है, जो हमारे भौतिक अस्तित्व में, हमारे भावनात्मक अस्तित्व में और हमारे मानसिक अस्तित्व में महसूस की जाती है। लेकिन साथ ही, एक और सत्ता है जो हमारी आध्यात्मिक सत्ता है जिसकी हम आकांक्षा कर सकते हैं, लेकिन हम उसे महसूस नहीं कर सकते। और वह आध्यात्मिक प्राणी आत्मा के रूप में हृदय में निवास करता है।

वह आत्मा तुम्हें देखती है, वह तुम्हारे बारे में सब कुछ जानती है, लेकिन तुम उस तक नहीं पहुंच सकते। आपका अपना चित्त उस तक नहीं पहुंचता है, इसलिए आप इसे महसूस नहीं कर सकते। उदाहरण के लिए, आप इस स्तंभ को देखते हैं; तो खम्भा तुम नहीं हो, तुम इन फूलों को देखते हो तो फूल तुम नहीं हो, तुम इस हाथ को देखते हो, इसलिए यह हाथ तुम नहीं हो, क्योंकि तुम इसे देखते हो। तो हर समय दो चीजें चल रही हैं। तब आप देखते हैं कि आपके पास दिमाग है, इसका मतलब है कि आप अपना दिमाग नहीं हैं। तब आप देखते हैं कि आप सोचते हैं तो आप अपने विचार नहीं हैं। फिर जो सब कुछ देखता है, वही हृदय में निवास करता है। यह सर्वशक्तिमान ईश्वर का प्रतिबिंब है, जो आपके सिर पर, आपके हृदय में निवास करता है।

अब तुरंत, यदि आप उछलने वाले बंदर की तरह कूदने लगते हैं, कि, "कैसे आप ईश्वर के बारे में बात करते हैं?" मैं सिर्फ इसकी बात कर रही हूं, मैं यह नहीं कह रही हूं, " कुंजी यही है।" बाद में हम वास्तव में पता लगाएंगे अगर मैं जो कुछ भी बोल रही हूं वह सच भी है या नहीं। लेकिन फिलहाल यह सिर्फ एक परिकल्पना है और आप इसे सिर्फ एक परिकल्पना के रूप में सुनिए।

तो हमारे भीतर ईश्वर का प्रतिबिंब आत्मा है, और जब कुंडलिनी उठती है, तो वह सर्वशक्तिमान ईश्वर के चरण स्पर्श करती है - यह प्रतीकात्मक रूप से मैं कह रही हूं - तब तुरंत, आप आत्मा, आत्मा से प्रबुद्ध हो जाते हैं, और यह तुम्हारे भीतर स्पंदित होने लगता है, तुम्हारे हृदय में स्पंदन होता है। लेकिन आप आमतौर पर अपने शरीर में उस स्पंदन को महसूस नहीं कर सकते। जब ऐसा घटित होता है तो जब आत्मा स्पंदित होती है आप उस स्पंदन को गतिमान होता हुआ महसूस करने लगते हैं। और जबकि वह एक है जो संपूर्ण का अभिन्न अंग है, तो आप संपूर्ण से जुड़ जाते हैं, आप संपूर्ण को महसूस करने लगते हैं और इस तरह आप इसे साकार अनुभूत करते हैं। आप वास्तव में इसे अपने भीतर प्राप्त करते हैं, सामूहिक चेतना की अभिव्यक्ति।

यह पशु चेतना की तुलना में बहुत उच्च है। हालाँकि आश्चर्यजनक रूप से बहुत से मनुष्य जानवर बनने की ख्वाहिश रखते हैं,! जैसे, किसी जानवर को गंदगी से गुजरना पड़े तो वह महसूस नहीं करता, लेकिन इंसान कर सकता है। वे रंग महसूस नहीं करते, मेरा मतलब है, वे रंगों का आनंद नहीं लेते हैं। वे एक अच्छी पेंटिंग का आनंद नहीं ले सकते। एक जानवर के लिए, यदि आप उसे एक पेंटिंग दिखाते हैं, वह समझ नहीं पाएगा कि यह इसकी सुंदरता क्या है। वह नहीं जानता कि सुंदरता क्या है।

तो, उसी तरह जब आप अपना अस्तित्व बन जाते हैं, तो आपकी चेतना सामूहिक रूप से प्रकट हो जाती है। इसका मतलब है कि आप समग्र के साथ एकाकार हो जाते हैं। मान लीजिए कि आप यहां कहीं परमात्मा की छवि में एक कोशिका cell हैं, तो यह कोशिका cell सम्पूर्ण के साथ जुड़ जाता है। आप संबंध महसूस कर सकते हैं, इस तरह आपके भीतर पूर्ण से एकाकारिता (पुष्टिकरण) स्थापित होती है।

ऐसा इस प्रकार होता है कि आप अपने हाथों से बहने वाले स्पंदनों को महसूस करना शुरू कर देते हैं, और ये सभी चक्र जो प्रबुद्ध हैं, यहां हाथों पर प्रबुद्ध हो जाते हैं और सक्रिय हो जाते हैं। ये सभी रंग आपको बताएंगे कि यहां कौन से चक्र किस उंगली से संबंधित हैं। यहां इस स्केच के साथ, आप उन सभी को पहचान सकते हैं। अब जब ये सक्रिय होते हैं, तो आप दूसरों को इन सक्रिय हाथों पर महसूस करने लगते हैं। आप उनके चक्रों को महसूस करना शुरू कर सकते हैं। आप अपने स्वयं के चक्रों को महसूस करना शुरू कर सकते हैं। यही है आत्म-साक्षात्कार, कि तुम अपने चक्रों को अनुभव कर सको। अन्य सभी बकवास का कोई मतलब नहीं है।

लोग आत्म-साक्षात्कार की बात करते हैं और किसी प्रकार के कब्रिस्तान में जाकर समाप्त होते हैं। वे यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि मरे हुओं में से वे आपको कुछ ऐसा उपलब्ध करवाने जा रहे हैं जो जीवित से ऊपर है! केवल यही तरीका है जिससे आप अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं। यदि आप कहते हैं कि एक बीज अपने भ्रूण से अंकुरित होता है, तो यह एक सच्चाई है। लेकिन अगर कोई कहता है कि तुम तने के माध्यम से एक बीज अंकुरित कर सकते हो, तो क्या तुम ऐसा कर सकते हो? या बीजपत्र के माध्यम से, जैसा कि आप इसे कहते हैं? बीजपत्र में आपके पास अंकुरण शक्ति हो सकती है, जो नहीं है। यह सब ठीक से हमारे भीतर स्थापित और अंतर्निहित है। और यह वह यंत्र है, जो हमारे भीतर है, और केवल इस यंत्र के द्वारा ही तुम अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने जा रहे हो।

कोई दूसरा रास्ता नहीं है।

और यह इतना सुंदर है क्योंकि, यहाँ तुम्हारी माँ है, तुम्हारी व्यक्तिगत माँ है। वह इस दिन का इंतजार कर रही हैं। वह वही है जिसने आपका मार्गदर्शन किया है। वह वही है जो आपको आध्यात्मिकता की ओर ले गई, एक वही है जो, जानती है कि ऊपर कुछ है, और वह बस उत्थान कर आपको वह बोध देने के मौके की प्रतीक्षा कर रही है।

अब इसमें भी ठग हैं, जैसा कि मैं उन्हें बुलाती हूं। उनका वर्णन करने के लिए मेरे पास और कोई शब्द नहीं है। उन्होंने तुम्हारी कुण्डलिनी में गड़बड़ी की है। यदि आप कोई कुंडलिनी पुस्तक पढ़ते हैं तो आप मेरे कार्यक्रम में नहीं आएंगे। उन्हें लगता है कि वह अब तक पैदा हुई सबसे क्रूर महिला है। आपकी इस माँ के विषय में उन्होंने सब प्रकार की विकृत बातें कही हैं; जबकि वह सबसे प्यारी चीज है जो आपके पास कभी भी हो सकती है।

वह वो है जो आपको अपना आनंद प्रदान करने जा रही है, जबकि भयानक लोगों ने उसे बदनाम करने, उसे शर्मिंदा करने, उसका अपमान करने और ऐसी चीजें करने की कोशिश की है जो अपमानजनक है, बिल्कुल जहर है।

हर बार मुझे आपको इन भयानक लोगों के बारे में बताना पड़ता है जिनके बारे में मैं बात नहीं करना चाहती, क्योंकि इन भयानक सांपों के बारे में बात करना बहुत बदसूरत है। लेकिन वे वहाँ बगीचे में हैं और मुझे बात करनी है। मुझे आपको हर समय चेतावनी देनी है और आपको उनके बारे में बहुत सावधान रहना होगा।

अब, मुझे लगता है कि यह इतना बड़ा विषय है कि मुझे नहीं पता कि मैं इसके बारे में पूरी रूप-रेखा कैसे दे पाऊंगी। लेकिन अब तक, मुझे लगता है कि मैंने आपको समझाया है कि आपके जीवन में एक उद्देश्य है, और आपके विकास के मील के पत्थर आपके भीतर चक्रों, सूक्ष्म केंद्रों के रूप में रखे गए हैं, जिन्हें आप अपनी आंखों से स्पंदित होते हुए देख सकते हैं और स्टेथोस्कोप के माध्यम से महसूस कर सकते हैं। और यहाँ आपके भीतर अहंकार और प्रति-अहंकार है जिसने आपको स्वतंत्रता, एक स्वतंत्र व्यक्तित्व दिया है और आप स्वतंत्र लोगों के रूप में कार्य कर सकते हैं। और इस व्यक्तित्व से ही आप उस उच्च अवस्था को प्राप्त करते हैं। और जब आप को उस की उपलब्धि हो जाती हैं, तो आपके माध्यम से उस दिव्य शक्ति की अभिव्यक्ति प्रवाहित होने लगती है। दिन के अंत में, मैं कहूंगी कि आप एक खोखले (पोला)व्यक्तित्व बन जाते हैं; कि आप ईश्वर के वास्तविक साधन बन जाते हैं, कि शक्ति आपके माध्यम से बहने लगती है और आप इसे बहते और कार्य करते हुए देखते हैं और आप इसे संचालित कर सकते हैं।

बेशक, फिर से सांपों के बारे में बात कर रहे हैं: वे तुम्हें कोई भी शक्ति नहीं देते हैं, और तुम्हारे पास जो भी शक्तियाँ हैं उन्हें छीन लेते हैं। लेकिन पूरी सृष्टि बनाई गई है, और अपनी स्वयं की शक्तियों को प्राप्त करने के लिए आप मनुष्य के रूप में अभिव्यक्त किये गए।

तो राधा और कृष्ण के बारे में एक प्यारी सी कहानी है: एक बार,- ऐसा कहते हैं कि राधा को श्री कृष्ण की बांसुरी से जलन होती थी। तो वह कृष्ण के पास गई और उसने कहा, "यह क्या है? हर समय तुम उसे [बांसुरी] अपने होठों से लगाते हो, मुझे यह पसंद नहीं है। ” उन्होंने कहा, "क्यों? क्या आपको ईर्ष्या हो रही है?" उसने कहा, "मुझे उससे बहुत जलन होती है। उसकी विशेषता क्या है? उसके बारे में इतना खास क्या है?" उन्होने कहा, "तुम जाकर उससे क्यों नहीं पूछ लेती?" उन्होने कहा, "बेहतर है कि तुम जाकर उससे पूछो।" तो उसने जाकर पूछा कि, "तुम्हारी क्या विशेषता है कि वह तुम्हें हर समय अपने दिल के पास रखते है? और हर समय वह आपका उपयोग कर रहे है?" वह जोर से हंस पड़ी और बोली, ''तुम्हें पता है मेरी खासियत क्या है? मेरी खासियत यह है कि मुझमें कोई विशेषता नहीं है। मैं एक खोखला इंसान बन गयी हूं। मैं बिल्कुल खोखली हूं और वह बजाता है और दुनिया आनंद लेती है और मैं अपने भीतर से बहती हुई चीज को देखती हूं, और मैं बस वह सब देखती हूं। और लोग कहते हैं कि यह मुरली है, यह बाँसुरी है, जो बज रही है। मुझे लगता है कि मैं सिर्फ एक खोखली शख्सियत हूं।" तो राधा कृष्ण के पास गई और उसने कहा, "ठीक है, अगली बार आप मुझ में से एक खोखला व्यक्तित्व बनायें !"

यही है! और जो वादा किया है उसे निभाना ही है। परमेश्वर कभी ऐसे वादे नहीं करते जो वे ना निभाएं ।

परमात्मा आप सबको आशिर्वादित करें।

मुझे आशा है कि आप सभी को बोध प्राप्त होगा और आप इसे स्थिर रखेंगे। यह बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि जैसा कि मैंने आपको बताया है, यह घटिया लोगों के लिए नहीं है।

आपका बहुत बहुत धन्यवाद। मैं यहां इतने सारे लोगों को देखकर बहुत खुश हूं जो साधक हैं, जो गहरे लोग हैं, जो जीवन भर खोजते रहे हैं और उन्हें यह महसूस करना होगा कि यही एकमात्र तरीका है जो करना है।

जैसा कि मैंने कहा, मुझे नहीं पता कि लोग इसके लिए पैसे कैसे लेते हैं: यह कुछ हास्यास्पद है और यह बहुत ओछापन है, मेरा मतलब है, अगर आप इसके बारे में बात करते हैं। आप अपने प्यार के लिए पैसे नहीं ले सकते। मैं भारत में काम करती हूं और उन्होंने मुझसे कहा, "माँ, क्या आप हमें उन लोगों की सूची दे सकती हैं जिन्हें आपने ठीक किया है?" मैंने कहा, "यह बहुत शर्मनाक है। मुझसे ऐसे सवाल मत पूछो!" उन्होंने कहा, “परन्तु आप हमें उन लोगों की सूची देना, जिन्हें आप ने चंगा किया है!” मैंने कहा, "मैंने कभी सूची नहीं बनाई है।" तो उन्होंने कहा, "ओह सच में? क्यों नहीं?" मैंने कहा, “क्या आप उन लोगों की सूची बनाते हैं जिन्हें आप खाना खिलाते हैं? जिन्हें आप प्यार करते हैं? जिन पर कृपा करते हैं, अपनी सन्तान पर? क्या आप उन सभी की सूची बनाते हैं? आपने अपने बच्चों को कितनी बार नहलाया है? या आप इसका इतना मज़ा लेते हैं कि इन सब बेहूदा बातों के लिए समय कहाँ है?” होना ही पड़ेगा! मुझे लगता है कि यह बहुत शर्मनाक है।

यह देने का वह सुंदर तरीका है।

ईश्वर आपको बार-बार आशीर्वाद दें। और देखते हैं अब क्या होता है। आप इसे कहाँ तक पाते हैं।

मैं कहूंगी कि हम कुछ प्रश्न पूछेंगे, और यदि आप कुछ प्रश्न पूछ सकते हैं। लेकिन आपको इसे लेकर ज्यादा संवेदनशील नहीं होना चाहिए। क्योंकि लोग मुझसे बहुत सीधे सवाल पूछते हैं और जब मैं उन्हें जवाब देती हूं तो उन्हें दुख होता है। और मैं तुम्हें किसी भी बात के लिए चोट नहीं पहुँचाना चाहती क्योंकि तुम पहले से ही बहुत आहत हो। मैं आपको चोट नहीं पहुंचाना चाहती हूँ। लेकिन ऐसा होता है, और ऐसा होता है, कि आप अजीब सवाल पूछते हैं और जब मैं आपको जवाब बताती हूं, तो कभी-कभी आपको दुख होता है। तो बस मुझसे सवाल पूछो।

साधक : जब मैं विश्राम में जाता हूँ तो मुझे उदर क्षेत्र में ऐंठन होती है।

श्री माताजी : मेरे बच्चे, यह आराम कैसे हो सकता है? ज़रा मुझे बताओ। अगर ऐंठन हो तो ऐसा कैसे हो सकता है? यह एक बीमारी है। यह एक ग्रसित होना है।

क्या आपने ग्रसित लोगों को देखा है? उन्हें वही अनुभव होता है। जब वे ग्रसित होते हैं तो उन्हें वही मिलता है। वे आराम महसूस करते हैं क्योंकि किसी और ने उनकी जिम्मेदारी ली है, लेकिन शारीरिक रूप से वे दबाव नहीं उठा सकते हैं और उन्हें विकृति होती है। यह पता लगाना बहुत आसान है: आपके पास यहाँ बहुत सारे पागलखाने होंगे, आप जा सकते हैं और उन्हें देख सकते हैं, जब वे आविष्ट होते हैं कि वे कैसे व्यवहार करते हैं। जैसे, मिर्गी उन्हीं में से एक है। अगर आपने मिर्गी में देखा है कि कैसे लोग एक ऐसी मुद्रा में आ जाते हैं, जहां से घंटों नहीं निकल पाते हैं। यह ग्रस्त होना है।

इससे न सिर्फ आपका पेट पूरी तरह से रिलैक्स होगा बल्कि आप दूसरों के पेट को भी आराम देंगे।

साधक : क्या यह हमें ईश्वर प्राप्ति की ओर ले जाएगा?

श्री माताजी: क्षमा चाहती हूँ क्या कहा आप ने?

साधक : क्या यह हमें ईश्वर प्राप्ति की ओर ले जाएगा? यह आत्म-साक्षात्कार, क्या यह हमें ईश्वर तक ले जाएगा?

श्री माताजी : बेशक, बिल्कुल! आप देखते हैं कि कुछ लोग हैं [जो] वहां बहुत तेजी से पहुंचते हैं, लेकिन कुछ लोग को कुछ चरणों से गुजरना होता हैं।

बोध का पहला चरण, जब कुंडलिनी आज्ञा चक्र को पार करती है, निर्विचार जागरूकता कहलाती है। केवल इस निर्विचार जागरूकता से ही आप लोगों को ठीक करना शुरू कर सकते हैं। यदि आपकी कुंडलिनी ने आज्ञा को पार कर लिया है तो आप लोगों को ठीक कर सकते हैं। इस तरह आप पाते हैं कि बहुत से लोग इलाज कर सकते हैं, लेकिन वे यह नहीं जानते कि इसे कैसे करना है, वे यह नहीं जानते कि इसे कैसे चलाना है।

और फिर हमारे पास तालू क्षेत्र fontanel से ऊपर उठने वाली कुंडलिनी है, जिसे हम कह सकते हैं, समयानुसार मैं इसे आत्म-साक्षात्कार कहती हूं। क्योंकि यही वह समय है जब आप सामूहिक चेतना के साथ एक भिन्न इंसान बन जाते हैं। इसके साथ, आप दूसरों को बोध देना शुरू कर सकते हैं, अपने स्वयं के चक्रों, सभी के चक्रों को ठीक कर सकते हैं, और आप इसे महसूस करना शुरू कर सकते हैं। इतनी बातें होंगी। मेरा मतलब है कि यह अंतहीन है। मैं आपको यह नहीं बता सकती कि इससे आप परमानंद को कैसे महसूस करते हैं।

यह इतना अद्भुत है कि आप चकित रह जाएंगे। हमारे यहां एक सहज योगी है। शुरुआत में, आप जानते हैं, आपकी जानकारी के लिए, इंग्लैंड में चार वर्षों में मेरे पास केवल छह थे। और मैंने उन छह के साथ काम किया। और उनमें से एक ने शुरुआत में ऐसा महसूस किया, "आइए देखते हैं कि यह सामूहिक चेतना कैसे काम करती है!" तो उसने कहा, "मेरे पिता ने मुझे कोई पत्र नहीं लिखा है।" मैंने कहा, "ठीक है, तुम उसे मत लिखो, तुम बस उसके बारे में सोचो और उसके वायब्रेशन को महसूस करो।" उसे यहां गर्मी लगने लगी और यहां जलने लगी। उसने कहा, "माँ, इसका क्या मतलब है?" मैंने कहा, "ये सब सेंटर आप लोगों के पिता के हैं । तो आप उन्हें फोन करें और पता करें। उन्हें ब्रोंकाइटिस होना चाहिए।" उन्हें ब्रोंकाइटिस था। लेकिन जब उस व्यक्ति ने उससे बात की तो उसका ब्रोंकाइटिस ठीक हो गया। यह वह शानदार है।

तो निर्विचार जागरूकता से आप सामूहिक चेतना, सामूहिक जागरूकता में कूद पड़ते हैं। यह सामूहिक जागरूकता आपको सामूहिक चेतना की शक्ति प्रदान करती है जिससे आप दूसरों को ठीक करते हैं। यहां बैठकर भी आप अन्य लोगों को ठीक कर सकते हैं, आप उनकी कुंडलिनी जगा सकते हैं, उन्हें साक्षात्कार भी दे सकते हैं। लेकिन जिस व्यक्ति से आप फोन पर बात करते हैं, वह जुड़ा होना चाहिए और उसे पता होना चाहिए कि किसी के कुछ विचार-विमर्श से एक गतिविधि हो रही है, जिसे हम सहज योगी कहते हैं।

फिर तीसरी अवस्था है पूर्ण आत्म-साक्षात्कार। वह अवस्था आती है, उसे हम निर्विकल्प समाधि कहते हैं, अर्थात जहाँ निःसंदेह बोध हो, कि उसमें अब कोई संशय नहीं बचा। यह तर्कसंगत नहीं है लेकिन यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें आप स्थापित हो जाते हैं।

उस स्थिति में अब आपको इसमें कोई संदेह नहीं रहता है। तब शक्तियां गतिशील होती हैं, और आप इतने आयामों पर कार्यान्वित होना शुरू कर देते हैं कि आप चकित रह जाते हैं कि चीजें कैसे काम करती हैं।

उदाहरण के लिए, मैं आपको बताऊंगी कि हमारे यहां एक महिला है, मुझे कहना होगा कि वह निर्विकल्प जागरूक है। वह किसी के चक्रों या अपने चक्रों को महसूस नहीं करती है। हर समय उसके वायब्रेशन पूर्ण होते हैं। उसने मुझे एक पत्र लिखकर कहा कि, "माँ एक लड़की है जिसे कैंसर हो गया है, उसकी उम्र लगभग दस, ग्यारह साल है और मुझे नहीं पता कि हम उसकी मदद कैसे कर सकते हैं। वह हांगकांग से आई है और वे कह रहे हैं कि उसे लगभग तीन महीने में मरना है। मैंने कहा, "ठीक है।" "और वह अब आगे की जांच के लिए अमेरिका जा रही है।" तो वह अमेरिका गई और अमेरिकी डॉक्टर ने कहा, "उसे कोई कैंसर नहीं है, कुछ भी नहीं। तुमसे किसने कहा कि उसे कैंसर है?” यह बस कई बार होने वाली कुछ गतिशील चीजों में से एक है। पहले तो आप इस पर विश्वास नहीं कर सकते, यह बहुत ही शानदार है।

तो यह निर्विकल्प जागरूकता की स्थिति है। पहले निर्विचार जागरूकता, फिर निस्संदेह (निर्विकल्प)जागरूकता।

अब, 'जागरूकता' शब्द, आप देखते हैं, सपने में हम इसे केवल जागरूकता कहते हैं। जैसे, अब, मैं कहती हूं कि आम तौर पर हम चेतन मन में जो होते हैं, वह एक सपना होता है। तो यह भी जागरूकता है। और उसके बाद भी जागरूकता है। लेकिन संस्कृत में दो शब्द हैं: एक 'बुद्ध' है, दूसरा 'प्रबुद्ध' है। यदि आप 'प्र' लगाते हैं, तो इसका अर्थ है 'प्रबुद्ध'। इसलिए हमें इसे 'प्रबुद्ध जागरूकता' कहना चाहिए। तो यह निर्विचार, प्रबुद्ध जागरूकता है। और प्रबुद्ध जागरूकता को 'समाधि' भी कहा जाता है: ऐसा ही 'निर्विचार समाधि' है। और दूसरा है निस्संदेह, प्रबुद्ध जागरूकता: 'निर्विकल्प समाधि' है, जहां कोई विकल्प नहीं है।

अब यह भी एक शब्द है जिसे बहुत ध्यान से समझना होगा कि 'विकल्प' क्या है। लेकिन मुझे लगता है कि यह मैं कभी और करूंगी। और यही है आत्म-साक्षात्कार। जब आप इसे हासिल कर लेते हैं, तब परमात्म साक्षात्कार की प्राप्ति होती है जो शुरू होती है, जहां आप प्रकृति को नियंत्रित करना शुरू करते हैं, आप जो देखते हैं उसे नियंत्रित करना शुरू कर देते हैं और आप उस सब के मालिक बन जाते हैं, लेकिन आप सब कुछ हित के लिए करते हैं। अपने और सम्पूर्ण के कल्याण के लिए इसका मतलब है।

जब आप परमात्म-साक्षात्कारी हो जाते हैं तो संपूर्ण के साथ आपका संबंध बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है।

यानी आपकी जागरूकता इतनी स्पष्ट और इतनी प्रभावी हो जाती है कि लोग कहेंगे कि, "इस आदमी को देखो! वह इसे कैसे करता है? और यह कैसे होता है?" वह अवस्था भी जिम्मेदार है। आखिर पूरी सृष्टि सहज-अनायास से ही हुई है। और इसी तरह यह भी स्वतःस्फूर्त है।

केवल दो व्यक्ति हैं, हालांकि वे अवतारों के लिए पैदा हुए थे, जो दिव्य थे, और जो स्वयं अवतार बने। वे मनुष्य के रूप में पैदा हुए थे लेकिन स्वयं अवतार बन गए। लेकिन उस अंतर को भी पूरा किया जा सकता है। क्यों नहीं?

साधक : माँ आप ऐसा भी कहती हैं कि हिमालय में बहुत से योगिक लोग गलत बातें सिखाते हैं। ईश्वर इसकी अनुमति क्यों देते हैं?

श्री माताजी : वह अनुमति नहीं देते। आप अनुमति देते हैं। मैंने तुमसे कहा है, तुम्हें चुनने की आजादी है। पहली बात जो आपको जाननी चाहिए: एक आदमी जो पैसे लेता है, वह ईश्वर के करीब कैसे हो सकता है?

तुम्हें याद है, तुम्हारे सामने ईसा-मसीह है। तुम्हें पता है कि उन्होने एक कोड़ा लिया और चर्च में इन लोगों को कोड़े मारे। उन जैसा एक व्यक्ति जिसने कहा, "उन्हें माफ कर दो क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।" उसने उन्हें पीटा। उसने उन लोगों को पीटा। वे इसी के योग्य थे, और तुम उनके पास गए और उन्हें प्रणाम किया। जबकि आप सब बहुत बुद्धिमान लोग हैं और ऐसे बुद्धिमान लोग इस तरह की बकवास और बेतुकी बात की ओर क्यों आकर्षित हो रहे हैं?

जबकि गरीब साधारण अशिक्षित बेहतर हैं। वे जानते हैं, "ओह, हम वह सब समझते हैं!" वे मूर्ख नहीं हैं। आपको समझना चाहिए कि जब आपके पास पैसा होगा, तो ऐसे सभी ठग यहां आने वाले हैं।

मैं अब दूसरी स्थिति लेती हूं, देखते हैं: मान लीजिए कि कोई व्यक्ति जेल से बाहर आता है, भारत में उसकी कोई सामाजिक स्थिति नहीं है। वह सामाजिक रूप से ठीक से नहीं रह सकता। तो वे सोचते हैं, "ठीक है, मुझे दूसरा रूप लेने दो," या "मुझे एक नाटक करने दो।" वह इससे छलावा करता है। वह एक ऐसा व्यक्ति बनता है जो बहुत संत हो - ओह, बहुत गरीब - अब वह आपको वहां ठगता है। या वह कुछ हाथ की सफाई में ?? में भी महारत हासिल कर सकता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। फिर वह प्रकट होता है। वह कहता है, “देखो, मैं तुम्हे दिखाऊँगा कि जल पृथ्वी पर से अभी निकलेगा।” पहले उसने रात को व्यवस्था की होगी कि एक पाइप लाइन जा सकती है, और उसने वहाँ किसी तरह की घड़ी लगाई होगी, और जिसे उसने उठाकर आपको दिखाया होगा कि पानी निकल रहा है। और लोग कहेंगे, "ओह, यह एक महान चमत्कार है! उसने वहाँ मारा और पानी आने लगा!" तो समझदार व्यक्ति को पिछले दरवाजे से जाकर देखना पड़ता है कि वह किस प्रकार का जीवन जीता है। और पाइपलाइन के बारे में देखता है। आपको सावधानी पर रहना चाहिए। यह सतर्कता, यदि आप अध्यात्म में नहीं रहते हैं....साक्षात्कार के बाद भी आपको अपने ध्यान के प्रति सचेत रहना होगा। पहली सतर्कता दूसरों के बारे में है, लेकिन बोध के बाद सतर्कता तुम्हारे खुद के बारे में है, क्योंकि तुम्हारे भीतर चोर हैं जो तुम्हारे भीतर आ गए हैं, इसलिए तुम्हें उसे देखना होगा।

लेकिन तुम लोग इतने सरल और इतने मासूम हो। और मैं वास्तव में इसके लिए आपकी स्वतंत्रता को दोष भी नहीं देना चाहती, वास्तव में, क्योंकि उन्होंने इस पर अच्छा काम किया, इसमें कोई संदेह नहीं है।

साधक : क्या मैं एक पूछ सकता हूँ? यदि आपको बोध प्राप्त होता है, तो व्यक्ति कुंडलिनी को ऊपर उठाता है और बोध प्राप्त करता है। क्या आपको इसे दोहराना है या एक बार पर्याप्त है?

श्री माताजी: हाँ, हाँ। आपको करना होगा। आप कुछ लोगों के साथ देखते हैं कि यह बस ऊपर जाती है और नीचे जाती है। भारत में हमारे पास एक भयानक गुरु है। मुझे नहीं पता कि उसने क्या किया है कि आप कुंडलिनी को ऊपर उठाते हैं, आप इसे ऊपर लाते हैं और यह फिर से नीचे खींची जाती है। आप इसे फिर से ऊपर लाते हैं और फिर से इसे वापस खींच लिया जाता है। ओह, आप नहीं जानते कि कितनी मेहनत करनी पड़ती है। कुछ लोगों के साथ ऐसा नहीं है। लेकिन पूरी रात सुबह से शाम तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। कल रात मुझे लगता है कि हम लगभग 2:30 सोए थे। ओह, यह एक भयानक काम है, लेकिन इसे करना ही होगा। लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है।

अब, आप एक बात समझेंगे, यह बहुत सरल है, क्योंकि आप ईश्वर के सापेक्ष एक अलग अनुभव से आ रहे हैं, कि यहां कुछ भी बिक नहीं रहा है, कुछ भी गारंटी नहीं है। यह मर्ज़ी है जिससे आपको अपना साक्षात्कार प्राप्त होता है। यह ईश्वर की मर्जी है कि वे आपको साक्षात्कार देते हैं। यह पूरी आजादी में है कि वह वहां बैठते है। आप उनकी स्वतंत्रता पर हावी नहीं हो सकते, क्योंकि वह चुनाव नहीं चाहता है। आपको उसे चुनना है। यह उनकी तरफ दूसरा ढंग है, आप देखिए? इसलिए किसी चीज की गारंटी नहीं है। क्या आप ऐसी स्थिति को समझते हैं?

साधक : हम इसे चाहते हैं, हमें इसकी इच्छा करनी है, परमात्मा के लिए। और हम एक गुरु के पास जाते हैं और शायद हमारी समझ, हमारी युक्तिकरण, हमारी सतर्कता, उतनी तीव्र नहीं है जितनी होनी चाहिए।

श्री माताजी: हाँ।

साधक : ये लोग, ये आदमी, कैसे करते रह सकते हैं और परमेश्वर के बारे में इतने चमकदार शब्दों में, इतने ऊंचे शब्दों में बोल सकते हैं?

श्री माताजी : उनकी कोई कुंडलिनी नहीं है, उनके पास कोई आत्मा नहीं है। उन्होंने बहुत समय पहले उनका विनाश सुनिश्चित कर लिया है। आप देखिए, एक व्यक्ति जो बिल्कुल बेशर्म है, आप ऐसे व्यक्ति के बारे में क्या कर सकते हैं? वे अपना उत्थान नहीं चाहते हैं। जैसा कि कहानी है, कुछ बंदर खेल रहे थे, और बंदर की एक पूंछ कट गई थी, इसलिए वह चाहता था कि सभी की पूंछ काट दी जाए। यह उनका रवैया है: वे चाहते हैं कि सबकी पूंछ कट जाए! केवल एक चीज जो आप कर सकते हैं, वह यह है कि आपका उनसे कोई लेना-देना नहीं हो।

साधक : तो फिर हम एक प्रामाणिक व्यक्ति को कैसे जान सकते हैं जो हमें ईश्वर के पास ले जाएगा?

श्री माताजी: हम कैसे जानते हैं? चूँकि अगर कोई व्यक्ति आपको प्रामाणिक बनाता है, तो वह व्यक्ति निश्चित रूप से प्रामाणिक है! आप बहुत स्पष्ट रूप से देख सकते हैं, आप देखिए, जब वे कहते हैं, "हम आपको ये शक्तियाँ और यह देंगे।" आप कुशलता नहीं पा सकते! आप उन्हें समझ नहीं सकते, यहाँ तक की आपको जानकारी भी नहीं होती है। आप देखिए, मैं कैसे कहूं कि आप एक प्रामाणिक इंजीनियर हैं? क्योंकि आप इंजीनियरिंग जानते हैं। ठीक है? इस तरह आप प्रामाणिक हैं। यदि आप कुछ करना नहीं जानते हैं, तो आप प्रामाणिक कैसे हैं? तो प्रामाणिक वह है जो आपको स्वयं प्रामाणिकता देता है। यदि वह आपको वे शक्तियाँ देता है जिससे आप को तकनीक का ज्ञान होता हैं और आप स्वयं उन शक्तियों को दूसरों को दे सकते हैं, तो आप कह सकते हैं कि यह प्रामाणिक है, है ना। ओह, आप सब इसके बारे में जानते हैं!

मैं आपको बताती हूँ कि क्या होता है। अब, मैं आपको बताती हूँ कि वह क्या है जो आपको परेशान करता है। ऐसा क्यों हुआ, मैं आपको बताऊंगी। आप देखिए, वे ग्रीक हैं इसलिए उनका अनुवाद करना होगा। इस बात से परेशान न हों। वास्तव में, हुआ क्या है, क्या मुझे आपको बताना चाहिए?

अब जो हुआ है वह इस प्रकार है कि आपने अपने समाजों को विकसित किया, आपने अपने देशों को विकसित किया और आप विकसित देश बन गए। आपने अपने दिमाग का भी बहुत अधिक विकास किया है, और पूरी बात राइट साइड की गतिविधि थी, जैसा कि हम इसे कहते हैं: बहुत अधिक मानसिक गतिविधियाँ। आपने हर चीज का विश्लेषण करना शुरू कर दिया। आपने सोचा था कि आप हर चीज का विश्लेषण कर सकते हैं, आप सब कुछ कर सकते हैं। और तुमने बहुत अधिक अहंकार विकसित कर लिया।

हम कह सकते हैं कि लगभग पचास साल पहले एक ब्रिटिश व्यक्ति का अहंकार इतना अधिक था कि वह सभी प्रति-अहंकार को एक तरफ धकेल रहा था। लेकिन तब दमन दर्दनाक हो गया और तुम्हें चोट पहुँचाने लगा। तो जो लोग उनका अनुसरण कर रहे थे, उन्होंने उसे फिर से पीछे धकेलने की कोशिश की। ठीक है? उन्होंने कहा, "नहीं, यह बहुत अधिक अहंकार है, हम इसे सहन नहीं कर सकते, यह बहुत अधिक है! वे थोड़े ज्यादा ही अहंकारी हैं।" इसलिए उन्होंने अपने प्रति-अहंकार को बहुत ज्यादा धक्का देना शुरू कर दिया। अब जब आप ऐसा करना शुरू करते हैं, तो क्या होता है कि आपके दिमाग में उहापोह शुरू हो जाती है और आपको यकीन नहीं होता कि यह अहंकार था या प्रति-अहंकार, आप समझ नहीं पाए। यह पहली शुरुआत थी। फिर युद्ध छिड़ गया, हिटलर आया और उसने आपके परिवारों को तोड़ दिया, उसने आपके मूल्यों को कुछ उदात्त और सर्वोच्च में तोड़ा। ये सारी बातें हुईं। फिर फ्रायड जैसे लोग और वे सब जो आपको एक अन्य प्रकार के विचार देने के लिए आये, जिसने आपको भी नष्ट कर दिया।

अब आप अनिश्चित परिस्थितियों और अनिश्चित सोच में थे। आप मूल रूप से उस स्थिति में थे। तो जब किसी विदेशी देश से कुछ आया, जिसके बारे में आपको कोई ज्ञान नहीं था, एक अज्ञानता थी, तो आपने सोचा, "बेहतर है कि इसके बारे में न सोचें क्योंकि सोचकर भी हमने क्या हासिल कर लिया है? विचारों से हमने दूसरे देशों पर आक्रमण किया है। विचारों से हमने अपने परिवारों को बर्बाद कर दिया है। विचारों से हमने किया है। तो बेहतर होगा कि इसके बारे में विचार ना करें, आइए इसे स्वीकार करें। वे जो भी कहें, मान लें।" और जब वे 'दुनिया की शांति', 'इस और उस का एक क्षेत्र' जैसे महान शब्दों के साथ सामने आए तो आप बस उस पर मोहित हो गए। लेकिन स्वाभाविक रूप से।

तब मैं कहूंगी, कि आप सहज योग के लिए सही लोग हैं, और आप लोग हैं। आप वे सर्वोच्च लोग हैं जिन्हें इन ठगों ने चुना है, क्योंकि अब आप ठगों के सभी तरीकों को जानते हैं और आप उसमें अधिक नहीं जाने वाले हैं। यह आपके भीतर प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए था, चूँकि आपको वहां जाना था। और डरने की कोई बात नहीं है, क्योंकि तुम्हारी माँ काफी सक्षम है। आप ही दूसरों के लिए सूली पर चढ़ाए गए थे, क्योंकि केवल आप ही ऐसा करने में सक्षम थे। यह आपकी ही ताकत थी जो इसे सहन कर सकती थी। यह अच्छा था कि मजबूत फूल निकाले गए। अगर वे बहुत कमजोर फूल होते तो तुम समाप्त हो जाते! तो आपको वह भूमिका निभानी थी। इसकी चिंता क्यों करें? हम इसे हल करने जा रहे हैं इसलिए अतीत के बारे में चिंता न करें। आप तो ??। कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके अलावा आपको आश्चर्य होगा: जब तक मनुष्य ऐसे अनुभवों से नहीं गुजरते, वे सहज योग में भी नहीं आते हैं।

क्या आप जानते हैं, ये लड़के चाहते थे कि मैं ब्राइटन जाऊं, मैंने कहा, "ठीक है! तुम ब्राइटन जाओ, फिर मैं शामिल हो जाऊंगी! अभी नहीं!" क्योंकि मैं ब्राइटन गयी हूं, मुझे पता है कि यह किस तरह की जगह है। और मुझे नहीं पता, लेकिन बेचारे, उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया, और ब्राइटन गए। और एक भी आत्मा कार्यक्रम में नहीं आई। लेकिन वहाँ एक दूसरा ही भयानक मौजूद है, जो कि वे सभी उछल-कूद कर रहे हैं, चिल्ला रहे हैं। वे आकार में इतने बढ़ रहे हैं कि उन्हें दूसरी जगह और दूसरी जगह लेनी है, और ऐसा वहां चल रहा है इसलिए उन्हें इससे गुजरने दें। मुझे क्या करना है? मैं आपको जबरदस्ती नहीं कर सकती।

तुम्हें पता है, मैंने अपना काम 1970 में शुरू किया था, वास्तव में, लेकिन एक व्यक्ति के साथ। इस इंग्लैंड में, चार साल तक, मैंने छह लोगों के साथ काम किया, जैसा कि मैंने आपको बताया था। तो, यह सब ठीक है।

उनमें से अधिकांश, यहाँ तक कि, वे कभी-कभी एक बड़े समूह में आते हैं। उदाहरण के लिए कल हम दूसरी जगह गए, और उनमें से ज्यादातर जो वहां थे, उनमें से ज्यादातर दो या तीन को छोड़कर, वे किसी न किसी तरह से बीमार थे इसलिए मैं उनके गले में सुधार कर रही थी और एक महिला को मिर्गी हो रही थी, दूसरी को दूसरी परेशानी हो रही थी, और मैं बस उन्हें सुधार रही थी।

तो आप वही हैं जो वर्णित हैं, जिन्हें हम सच्चा प्राणी कहते हैं। तो क्या फर्क पड़ता है? आपके साथ कुछ भी गलत नहीं हुआ है। बहुत निम्न महसूस नहीं करना। मैं इसे बहुत सावधानी से करूंगी। आपको बिल्कुल भी दुख नहीं होगा। तुम्हें उसका सम्पूर्ण, और सारी गूढ़ता, सारे रहस्य मिल जाने वाले हैं। और आप इस कला में महारत हासिल करने जा रहे हैं और आप पूरी दुनिया को बदलने जा रहे हैं, चिंता न करें।

आप अपनी शक्तियों को बहुत जल्द जान जाएंगे कि आप कितने गतिशील हैं। इसलिए इसके बारे में परेशान न हों, और अतीत के बारे में चिंता न करें। किसी को (ईश्वर को)मार्ग बनाना है। यह अच्छा है कि उन्होंने मेरे इतने मजबूत बच्चों को चुना। मुझे बहुत खुशी है कि उन्होंने अपंगों पर हाथ नहीं डाला। तो चिंता की कोई बात नहीं है। ठीक है?

परमात्मा आप पर कृपा करे।

वह क्या है? क्या कोई अन्य प्रश्न हैं? नहीं?

श्री माताजी: हाँ मेरे बच्चे?

साधक : क्या आप बता सकते हैं कि हमें कर्म के बारे में क्या बताया गया है?

श्री माताजी: कर्म? ठीक है। वह, मुझे आपको समझाना होगा। यह एक और कहानी है। लेकिन उन्हें यह कहां से मिली, मुझे नहीं पता, कि "आपने अपने कर्म किए हैं, आपको इसे शुद्ध करना होगा।" फिर वे वहाँ क्यों हैं? वे क्या कर रहे हैं? ये हैं सफाईकर्मी, सारी गंदगी क्यों नहीं झाड़ते? हमें गंदगी क्यों साफ करनी चाहिए? आप उन्हें भुगतान कर रहे हैं! उन्हें इसके लिए भुगतान किया जाता है!

कर्म कौन करता है? क्या तुम जानते हो? अहंकार कर्म करता है। क्या जानवरों को लगता है कि उन्होंने कोई कर्म किया है? वे कोई गंदगी जमा नहीं करते हैं। हम अपने कर्म क्यों जमा करते हैं? क्योंकि हमारा अहंकार वहां है। क्योंकि आपको लगता है कि "मैं यह कर रहा हूं।" ठीक है? लेकिन आप वास्तव में कुछ नहीं करते हैं, आप जानते हैं।

मैं कुछ ग्रामीणों के हवाई जहाज पर जाने की कहानी सुनाती रहती हूं, और उन्हें कहा गया था कि वे बहुत अधिक सामान न ले जाएं, इसलिए वे बहुत सतर्क थे। जब वे बैठ गए, तो उन्होंने अपना सारा सामान लिया और अपने सिर पर रख लिया। लोगों ने पूछा कि ऐसा, "क्यों?" उन्होंने कहा, "आप देखिए कि हम नहीं चाहते कि हवाई जहाज बहुत अधिक सामान ले जाए।" वैसे ही तुम अपने कर्मों को ढो रहे हो! यह बेतुका है! केवल आपका अहंकार ही कर्म करता है। जब आपका अहंकार गिर जाता है, जब आप खुल जाते हैं, तो आप कोई कर्म नहीं करते हैं, आप जान जाते हैं कि आप कर्ता नहीं हैं।

यह भगवद गीता में बहुत अच्छी तरह से समझाया गया है। क्योंकि इन लोगों ने आपको इसके बारे में कुछ नहीं बताया है। यह इतना सुस्पष्ट है, कि जब आप बोध प्राप्त करते हैं तो कर्म अकर्म बन जाते हैं। ज्ञान, ज्ञान क्या है जागरूकता है। जब जागरूकता प्रबुद्ध हो जाती है तो आप प्रबुद्ध हो जाते हैं। यानी आपका अहंकार दोनों तरफ गिर जाता है। अहंकार अब नहीं रहा। कर्म करने का मिथक समाप्त हो गया है। और ये लोग उस मिथक पर यह कहकर खेलते हैं, "ठीक है, तुम यह सामान ले जा रहे हो? अब बेहतर होगा कि आप हवाई जहाज को भी अपने सिर पर उठा लें!” (हँसी)

बेहतर होगा कि आप इन सभी हवाई जहाजों को उनके सिर पर रख दें। और उनके कर्म, उन्हें कौन शुद्ध करेगा? क्या उन्होंने इसके बारे में सोचा है? वे तुम्हारे कर्मों के बारे में बात कर रहे हैं, लेकिन उनके कर्मों के बारे में क्या?

कर्म एक मिथक है, जब तक आप एक मिथ्या में हैं। उदाहरण के लिए सपने में आप पुलिस से बचने के लिए तेजी से भाग रहे हैं। आप तेजी से दौड़ रहे हैं, आपको सीढ़ी नहीं मिल रही है, आपको इसका आधा हिस्सा मिल गया है और आप इस पर कूद पड़ते हैं और उस पर कूद जाते हैं। जब सपना पूरा हो जाए, अगर मैं तुमसे कहूं, "अब, बेहतर है कि तुम कूद जाओ!" आप कहेंगे, "ओह, सपना पूरा हुआ!" आपको जगाने के बजाय, अगर मैं कहूं, "ठीक है, दौड़ो, दौड़ो, दौड़ो पुलिस अब भी तुम्हारे पीछे है!" फिर पुलिस उन्हें पकड़ लेगी, वो पुलिस।

यह सब काल्पनिक है। यह बहुत स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह अकर्म बन जाता है। जैसे सूर्य आपको किरणें दे रहा है: क्या यह कोई काम करता है? नहीं, यह सिर्फ उत्सर्जित करता है, यह सिर्फ उत्सर्जित करता है। जैसे लोग कहते हैं, "माँ आप बहुत मेहनत कर रही होंगी।" लेकिन नहीं, आप देखते हैं, यह सिर्फ उत्सर्जन होता है। मैं कोई काम नहीं करती, कुछ नहीं करती, वह तो बस उत्सर्जित हो जाता है। यही मेरा स्वभाव है। यह सिर्फ बहता है।

कुछ कहते हैं, "माँ, हम कैसे इसे लौटा पायेंगे।" जैसे हमारी एक लड़की थी, उसने कहा, "माँ मैं आपके पैरों की मालिश करना बहुत अच्छी तरह जानती हूँ।" मैंने कहा, "ठीक है, चलो। कर दो।" उसने मेरे पैरों की मालिश करना शुरू कर दिया और उसके पैर शिथिल हो गए और उसे आराम महसूस हुआ और उसे नींद आने का अहसास हुआ। तो उसने कहा, "यह क्या है माँ?" मैंने कहा, "यही तो है!" क्योंकि मैं कुछ नहीं करती। बिल्कुल आलसी व्यक्ति! बस बैठी हूँ। यह सिर्फ उत्सर्जित करता है यह बस बहता है, यह काम करता है।

जैसे सूरज की किरणें आती हैं और सारे संसार को बदल देती हैं, क्लोरोफिल बन जाता है, लेकिन सूरज यह नहीं कहता, 'मैं करता हूं। मैंने यह कर दिया।" ठीक ऐसा ही आपके साथ होता है जब आपको साक्षात्कार मिलता है, स्पंदन बहने लगते हैं, तब आप कहते हैं, "माँ उठ नहीं रही है।" आप कभी नहीं कहते, "मैं यह नहीं कर रहा हूँ।" "यह नहीं आ रहा है, यह काम नहीं कर रहा है।" आप तीसरे व्यक्ति के रूप में बात करते हैं। आप कभी भी अपने तरीके से बात नहीं करते हैं कि, “मैंने ऐसा नहीं किया है। मैंने इसे हासिल नहीं किया है।" "मैंने आत्मसाक्षात्कार दिया है।" आप ऐसा कभी नहीं कहते! तुम कहते हो, "उसे बोध नहीं हुआ है।" अब, अगर आपका अपना बेटा है, अगर उसे बोध नहीं हुआ है, "आप कहते हैं, आप जानते हैं, माँ, यह कार्यान्वित नहीं कर रहा है। क्या करें?"

तो कर्म, जो कुछ भी किया जाता है, महसूस नहीं किया जाता है, तो उसके बारे में फल ही कहाँ है, उसके बारे में फल ही क्या है? कुछ भी तो नहीं! मुझे आपको गीता पर एक और व्याख्यान देना होगा, मुझे लगता है, तब आप समझेंगे कि आप कोई कर्म नहीं करते हैं और इसके बारे में कोई फल नहीं है। यह सिर्फ एक मिथक है। और यही श्री कृष्ण चाहते थे कि आप को इस का अहसास हो, इसलिए उन्होंने अपनी कूटनीति निभाई। और मैं तुम्हें उनकी चाल के बारे में बताऊंगी, क्योंकि केवल मैं ही हूं जो जानती हूँ। तब तुम सब उनकी चालों के बारे में जानोगे कि: तुम कोई कर्म नहीं करते, इसलिए इसमें कोई फल नहीं है। लेकिन जब आप सपने में होते हैं तो आप यह नहीं कह सकते। जब तुम जागते हो तब तुम बस अनुभव करते हो, तुम कहते हो, "नहीं, यह नहीं जा रहा है। यह नहीं आ रहा है। यह काम नहीं कर रहा है। यह काम नहीं करता है। यह हल नहीं हुआ है।"

आज यहां आने से पहले मैं एक कैंसर रोगी को देखने गयी थी। उसकी अपनी बेटी कह रही थी, "माँ नहीं, यह नहीं बह रही है। अब भी यह नहीं आ रहा है। यह लेफ्ट कैचिंग है, राइट कैचिंग है। यह पक्ष और वह। ” और उस स्त्री ने स्वयं बोध को छुआ है। वह कह रही थी, ''हां मां, अब भी मेरा बायां हिस्सा खराब है।'' ऐसा वो खुद कह रही थीं. तो वे कहते हैं, "वह बायाँ है, वह दाहिना है, वह सामने है, वह दूसरा है।" जैसे बच्चे कहते हैं। यदि आप एक बच्चे को लेते हैं और कहते हैं, "अब, क्या तुम घर जाओगे?" तो वे कहते हैं, “यह लड़का नहीं जाएगा!” इसका मतलब है कि वह 'इस लड़के' से अलग हैं: "यह लड़का नहीं जाएगा।" वे तीसरे व्यक्ति के रूप में बोलते हैं। उसी तरह तुम भी तीसरे व्यक्ति के रूप में बोलते हो। सब कुछ अकर्म बन जाता है। तो मिथक को तोड़ना है, स्वप्न को विसर्जित करना है।

साधक : क्या इसका मतलब पुनर्जन्म नहीं है?

श्री माताजी : आप ऐसा कैसे कह सकते हैं कि, "कोई कर्म नहीं है इसलिए, कोई पुनर्जन्म नहीं है," ये सब उनके विचार हैं जो, बकवास हैं। वे इस तरह बात करते हैं। फिर कृष्ण ने स्वयं इस पृथ्वी पर इतनी बार पुनर्जन्म क्यों लिया? क्या उनका कोई कर्म था? वे स्वयं योगेश्वर थे। आपको उनसे पूछना चाहिए, "उन्होंने पुनर्जन्म क्यों लिया? क्या उन्होने नहीं लिया?" वह मछली के रूप में आये, फिर वे इस और उस रूप में आये, और फिर वह राम, परशुराम के रूप में आये, और फिर वह श्री कृष्ण के रूप में आये: क्यों? कैसे? चूँकि वे, कम से कम, कर्मों से परे थे।

मैं समझाऊंगी कि वास्तव में, यह कैसे काम करता है, और आप सभी समझेंगे - यह सब राइट साइड गतिविधियां हैं - कि, जब पूरी मशीनरी स्थापित की गई थी, पूरा कार्यालय स्थापित किया गया था, वहां कुछ अधिकारी नियुक्त किए जाने थे। इसलिए लोगों को उनके अच्छे कामों और अच्छे व्यवहार के अनुरूप चुना गया था। उन्हें देवता बनाया गया था और अधिकारियों के रूप में कार्य करने के लिए स्थायी रूप से स्थापित किया गया था। जैसे आपके यहाँ एक अधिकारी है जो आपको हॉल के अंदर आने की अनुमति देगा। एक सार्वजनिक स्थान, या आप कह सकते हैं, एक सार्वजनिक कार्यालय में अधिकारियों की नियुक्ति हो गई है। लेकिन आप वे लोग हैं जिनका स्वागत किया जाना हैं, आप देखिए। उदाहरण के लिए, रानी को आना है, इसलिए आप किसी को नियुक्त करते हैं, आप सिंहासन को देखते हैं, दूसरे को लाल कालीन बिछाने के लिए नियुक्त किया जाता है। फिर तीसरे को वहीं खड़े होकर फूलों के गुलदस्ते के साथ नियुक्त किया जाता है। और जब रानी आती हैं तो उन्हें अपने स्थान पर बिठाया जाता है। उन्हें पुनर्जन्म की आवश्यकता नहीं है।

लेकिन तुम्हें हॉल में प्रवेश करना है। आपको मंच पर आना है। यह आप ही हैं जिनके लिए ये सभी स्थायी व्यवस्था बनाई गई थी। आप क्यों वहां कुछ स्थायी फर्नीचर बनना चाहते हैं? हमारे पास वे पर्याप्त है।

मंच पर कौन आने वाला है? कौन आरूढ़ होगा? हम मध्य पथ पर हैं। वे सभी दाहिने बाज़ू की ओर और बाएं हाथ की तरफ स्थापित हैं। इन्हें बायीं ओर 'गण' तथा दायीं ओर 'देवदूत' कहते हैं...

(रिकॉर्डिंग में ब्रेक)

..यह ब्रह्मांड क्यों बनाया गया था? इन सभी तत्वों को क्यों बनाया गया और फिर देवताओं को बनाया गया? क्यों? ये सभी चिरंजीव बनाए गए: जिन्होंने स्थायित्व की स्थिति प्राप्त की, वे चिरंजीव हैं। क्यों? बस आपको विकसित करने के लिए।

ठीक है? उन्होंने आपको और कौन सा मिथक दिया है?

साधक : अहंकार पर कुछ और बात कर सकती हैं। ऐसा लगता है कि अहंकार मुख्य समस्या है। आपको इससे आगे जाना होगा।

श्री माताजी : नहीं, नहीं, नहीं! यह अहंकार नहीं है, यह दोनों हो सकता है। मेरा बच्चा यह अहंकार या प्रति-अहंकार हो सकता है। आप देखिए, वास्तव में, आजकल यह अधिक प्रति-अहंकार है। आप हैरान हो जाएंगे।

साधक : जैसे आप अहंकार के पार जाना कह रही हो।

श्री माताजी : नहीं, अहंकार ही नहीं। यह अहंकार या प्रति-अहंकार हो सकता है। मैं आपको बताती हूँ कि कैसे। मुझे आपको अहंकार और प्रति-अहंकार के बारे में बताना चाहिए ताकि आप समझ सकें।

अहंकार का एक उदाहरण यह है कि, मान लीजिए, एक बच्चा मां से दूध पी रहा है: पूर्ण आनंद में बच्चा है, और तब आप बच्चे को उस आनंद से हटा देते हैं। तब वह अहंकार का विकास करता है। वह कहता है, "तुमने ऐसा क्यों किया? !!" तब आप उससे कहते हैं, "ऐसा मत करो!" तब वह बच्चा अपने भीतर प्रति-अहंकार विकसित करता हैं। तो प्रतिबद्धता conditionings प्रति-अहंकार के माध्यम से आती है। और अहंकार वह है जिसके द्वारा तुम स्वयं को मुखर करते हो। और प्रति-अहंकार वह है जिसके माध्यम से आप कंडीशनिंग (जड़ता) प्राप्त करते हैं।

तो दोनों हो सकते हैं। और मैं आपको बताती हूं, अहंकार से ज्यादा प्रति-अहंकार उन लोगों में है जो इन अजीब, भयानक, लोगों के साथ रहे हैं। काश, वे इतने अहंकारी होते कि, उनके चेहरे पर अच्छी तरह से वास्तव में थप्पड़ मार पाते। लेकिन वे नहीं थे। वे इतने विनम्र थे उन्हें स्वीकार करने के लिए, इसीलिए वे प्रतिबद्ध conditioned हैं, वे अधिक जड़ conditioned हैं और अहंकार से अधिक वे प्रति-अहंकार से दुष्प्रभावित हैं।

तो आजकल हमारे पास प्रति-अहंकार के बहुत सारे मामले हैं।

साधक : हमें कैसे बाधित किया जा सकता है?

श्री माताजी: आप हो सकते हैं यदि आपके चक्रों में कुछ गड़बड़ है, तो आप में बाधा है। लेकिन कुंडलिनी स्वयं इसकी देखभाल करती है। वह खुद इसको कार्यान्वित करती है। तब आप अन्य सहजयोगियों द्वारा वहां वायब्रेशन प्राप्त कर सकते हैं। वे आपकी मदद कर सकते हैं। उन्हें खुशी-खुशी आपकी मदद करनी होगी क्योंकि वे अपने भीतर बाधा को महसूस करेंगे!

जब तक आप ठीक महसूस नहीं करते, मैं अपने आप को ठीक महसूस नहीं कर पाती हूं: चाहे दो रातें हों या पांच रातें कोई फर्क नहीं पड़ता। यह इस प्रकार है। मेरा मतलब है, अन्यथा, भले ही आप किसी ऐसे व्यक्ति को बचाने की कोशिश करें जो डूब रहा है, अगर आपको लगता है कि आप इसे दूसरों के लिए कर रहे हैं तो दुखद है की आप गलत हैं| यह आप में ही कोई है जो डूब रहा है, इसीलिए आप वहां हैं|

Doctor Johnson House, Birmingham (England)

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