Christ and Forgiveness

Christ and Forgiveness 1981-05-11

Location
Talk duration
77'
Category
Public Program
Spoken Language
English

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11 मई 1981

Public Program

Caxton Hall, London (England)

Talk Language: English | Translation (English to Hindi) - Draft

इसा मसीह और क्षमा

कैक्सटन हाल,

यूनाइटेड किंगडम (यू.के.)

11 मई, 1981

...उस सत्य की खोजना जिस के बारे में सभी धर्मग्रंथों में वर्णन किया गया है। सभी ग्रंथों में कहा गया है कि, आप का पुनर्जन्म होना है। आप का जन्म होना है, उस के बारे में पढ़ना नहीं है, सिर्फ यह कल्पना नहीं करनी कि आपका पुनर्जन्म हुआ है, सिर्फ यह विश्वास नहीं करना कि आप का पुनर्जन्म हुआ है या फिर कोई नकली कर्मकाण्ड जो यह प्रमाणित करता है आप दोबारा जन्मे है उस को स्वीकारना नहीं है अपितु निश्चित रूप से हमारे अंदर कुछ घटित होना चाहिए। सच्चाई का कुछ अनुभव तो हमारे अंदर होना ही चाहिए। यह सिर्फ कोई विचार नहीं है कि ये ऐसा है कि, हां! हां! हमारा पुनर्जन्म हुआ है! अब हम चुने हुए लोग हैं! हम सब से बढ़िया लोग हैं! परंतु निश्चित ही कुछ है कि हमारे अंदर कुछ क्रमागत उत्क्रांति है जो प्रकट होनी चाहिए, जिस की सभी धर्मग्रंथों में भविष्यवाणी की गई है। बिल्कुल भी कोई अपवाद नहीं है! हिंदू धर्म से शुरू कर के आज के सब से अधिक आधुनिक व्यक्तित्व, जो हम कह सकते हैं कि नए गुरु नानक है, हम कह सकते हैं कि ये वो हैं जिन्होंने धर्मग्रंथ लिखा।

कुरान में साफ़ कहा गया है कि, आप को पीर बनना है,

वह जिसके पास ज्ञान है। वेद स्वयं यही कहते हैं, वेद पढ़ने से, वेद का अर्थ है 'विद' माने जानना, अगर आप नहीं जानते तो यह बेकार है।' पहले अध्याय में, पहले छंद में इतना साफ साफ कहां गया है कि आप को जानना है!

हमारी चेतना को कुछ होना चाहिए, जो नहीं जानती। इसका अर्थ है कि हम अब तक ज्ञान से काफी दूर है, और कुछ तो हमारी चेतना में होना चाहिए जिस से हम और अधिक जान सकेंगे। यह ज्ञान दिव्य शक्ति के दिव्य नियमों के विज्ञान का शुद्ध ज्ञान है।

ऐसा कहा जाता है कि हमारे चारों तरफ एक दिव्य शक्ति, सर्वव्यापी दिव्य शक्ति, परमात्मा की कृपा है। अब अगर आप इस पर एक बड़ा भाषण दें, हर सप्ताह मै आप को एक भाषण दे सकती हूं कि,' यहां एक दिव्य शक्ति है और वह कितनी महान वस्तु है!''

जैसे अभी हाल ही में एक महाशय मुझ से मिलने आए और कहने लगे, ओह! मैं एक आत्म साक्षात्कारी हूं। आह, हा, हा, हा, हा, हा! मैं एक आत्म साक्षात्कारी हूं। मैंने कहा, सच? और मै एक दिव्य शक्ति में हूं! आहा, हा, हा, हा, हा, हा, हा! उस के बाद उस ने कहा, यह दिव्य शक्ति है जिस का मै अनुभव कर रहा हूं! आहा, हा, हा, हा! '' मैंने उसकी और देखना शुरू किया। मैंने कहा, यह किसको मूर्ख बना रहा है? वो खुद को ही मूर्ख बना रहा है! किस को हानि हो रही है? उस को हो रही है। वह और कोई नहीं है। मेरे कहने का अर्थ कि वह मुझे तो मूर्ख नहीं बना रहा किसी भी तरह से। अगर मैं मूर्ख हूं तो भी मुझे मूर्ख बनाने से कोई लाभ नहीं। यह वह है जो खुद को ही मूर्ख बना रहा है। वो उसी टहनी को काट रहा है जिस पर खड़ा है। वह ये नहीं समझ रहा कि उस का स्वयं का व्यक्तित्व मूर्ख बनने के योग्य नहीं है।

और वह आधे घंटे तक मेरे सामने यही कहे जा रहा था, और मुझे नहीं पता था कि मैं उसे क्या कहूं, क्योंकि आप इन दृष्टिहीन लोगों से क्या बात कर सकते हैं? जो दृष्टिहीन है, और जानते भी हैं कि वह दृष्टिहीन हैं और आंखें होने का दावा करते हैं! वह सब से अधिक खतरनाक लोग होते है अपने किए और समाज के लिए भी। क्योंकि एक बार वो ऐसे किसी बकवास पर विश्वास करने लगते है वह चाहते कि सब उस बात पर विश्वास करें। उनमें से कुछ सही मायने में मूर्ख हो सकते हैं और उनमें से कुछ लोग कुटिल हो सकते है।

तो आप के अन्दर एक अनुभव घटित होना चाहिए। आप को इस तर्क पर भी मुझ पर विश्वास नहीं करना चाहिए। जैसे कि मैं कहूं, 'ओह ये बात है!' और मै शायद बहुत बड़ा नाटक करूं, पर इस से हम को कोई भी मदद नहीं मिलने वाली। हम सत्य के साधक हैं और जब तक हम इस को प्राप्त नहीं करते, हम क्यों किसी भी चीज़ से संतुष्ट हों कुछ भी हो?

तो हम यहां सत्य जानने के लिए आए है और सत्य बहुत सरल है। वह इतना सरल है कि उस पर विश्वास करना संभव नहीं है, कि आप सम्पूर्ण (विराट) के अंग प्रत्यंग हैं और आप को उस सम्पूर्ण का अनुभव करना है। यही है जो आप खोज रहे हैं। आप की सारी खोज, अमीबा अवस्था से आज कि अवस्था तक की यह सरल तलाश है कि सम्पूर्ण का अंग प्रत्यंग बनना है, जो आप पहले से ही हैं, परंतु यह जानने के लिए आप है, आप को जानना है। तो जानने का अर्थ है कि अपनी चेतना में अनुभव करें कि आप सम्पूर्ण का अंश हैं। जब आप सम्पूर्ण हो जाते है तब आप और नहीं खोजते। अगर वह तलाश पूरी हो गई तो आप फिर और नहीं खोजते।

मेरे ख्याल में आज बहुत गर्मी है, क्या आप कुछ दरवाजे खोल सकते हैं कृपया? जब से मैं आई हूं तब से और अधिक गर्मी हो गई है! (हल्के से हंसते हुए) मुझें नहीं पता (क्यों)!

तो जो मुख्य बात आपको सीखनी है वह यह है कि आपको किसी के भी भाषण से, नाममात्र के चमत्कारों से और मूरखतापूर्ण बातों से विचलित नहीं होना है, अपितु मूल घटना घटित होनी चाहिए।

अब यह घटना को हमारे अंदर तब से स्थापित किया गया था जब हम अमीबा थे। जैसे एक बीज अंकुरित हो कर वृक्ष बनता है उसी प्रकार हम आज एक ऐसे चरण पर है कि हम मानव हैं। और यह अवस्था सिर्फ क्षणभंगुर है दूसरे चरण में छलांग में लगाने के लिए जहां आप एक ज्ञानपूर्ण व्यक्तित्व बन जाते हैं। और क्योंकि वह अवस्था इतनी निकट है, इसलिए आप इतने उत्साहपूर्वक इसे खोज रहे हैं।

इस विज्ञान के युग में परमात्मा की बात करना असंभव है। लेकिन जब वैज्ञानिक जानेंगे कि मानवीय समझ के परे कोई ज्ञान है, और जब वह उस चेतना को अपने अंतर में प्राप्त कर लेंगे, तभी उन्हें ज्ञात होगा कि अब तक जो कुछ उन्हे पता था उसका कोई मूल्य ही नहीं है। इसलिए यह सारे प्रयत्न, यह सारा मानवीय समझदारी का प्रकटीकरण इत्यादि (कहने मात्र के लिए) उन्हें भ्रम और समस्याओं की ओर ले गए हैं। उन्हें मालूम नहीं है कि उन्हें स्वयं के साथ क्या करना है। उनके सिर पर एक परमाणु युद्ध भी रखा हुआ है। उनके सिर पर एक और सदमा है। उन्हें नहीं पता कि भविष्य में क्या होने वाला है। उनकी सभी कल्याणकारी और शुभ कामनाओं के बावजूद वह हमारे लिए परमानंद की अवस्था प्राप्त नहीं कर पाए हैं।

अब अगर मैं कहूं कि परमात्मा है (अस्पष्ट) और हमारे अंतर में परमानंद की वह अवस्था है, जो परमात्मा से एकरूप हो कर हम को प्राप्त करनी है तो आपको मुझ पर विश्वास करने की जरूरत नहीं है, किंतु मुझे नकारिए भी मत।

हमारे अंदर वो शुद्ध इच्छा स्थित है, पूर्णत: अव्यक्त इच्छा हमारे अंदर है, जिसे संस्कृत भाषा में कुंडलिनी कहते हैं। और यह त्रिकोणकार अस्थि में साढे तीन कुंडल में स्थित है।

आप सहज योग की प्रक्रिया में आप अपनी खुली आंखों से इस कुंडलिनी का स्पंदन देखेंगे। जब स्पंदन उठता है तो आप इस स्पंदन को अपने सिर के ऊपर भी अनुभव कर सकते हैं, जिसके बारे में कई महान संतों ने स्पष्ट रूप से लिखा है, विशेषकर नवीनतम में से एक, कबीर ने इसका बहुत बहुत स्पष्ट रूप से वर्णन किया है। छठी शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने इसका वर्णन किया है। बाइबिल में भी आपको इसका वर्णन मिलेगा परंतु थोड़े रहस्यमय तरीके से क्योंकि उस समय लोग बहुत ही विचित्र थे कि आप उनसे कुछ भी स्पष्ट नहीं कर सकते थे। जैसा कि आप जानते हैं कि क्या हुआ।

जो कुछ भी इस धरती पर घटित हुआ है उसके पीछे परमात्मा की योजना है विशेषकर सारे अवतरणो का आगमन। जैसे ईसा मसीह का धरती पर आगमन, मोसेज का लोगों को गुलामी से दूर ले जाना। श्री कृष्ण का इस धरती पर अवतरण, श्री राम का इस धरती पर एक 'कल्याणकारी राजा' के रूप में आना। इन सब ने हमारे अंदर एक स्वयं की विशेष शक्ति प्रदान की है। ये सब शक्तियां सुप्तावस्था में हैं। वह निष्क्रिय हैं, हम कह सकते हैं कि वे सुप्तावस्था में हैं, जैसे कुछ मोमबत्तियां जो अभी तक जलाई नहीं गईं हैं। जब कुंडलिनी जागृत होती है वह हमारी अंदर की इन शक्तियों को जागृत कर देती हैं। इसलिए हमारे अंदर जो शुद्ध इच्छा है परमात्मा से एकरूप होने की वह हमें संपूर्ण से जोड़ देती है, सिर्फ यही नहीं वह हमारे अंदर उन अगाध शक्तियों को जागृत कर देती है जो अभी तक हमारे अंदर जागृत नहीं है।

आज में आप को इसा मसीह की शक्तियों के बारे में बताना चाहती हूं, जिसके बारे में पहले कभी बात नहीं हुई, क्योंकि जिन लोगों ने ईसा मसीह की बात की वह ये जानते नहीं थे। वो आत्मसाक्षात्कारी नहीं थे, वे सिर्फ साधारण मानव थे। और अब भी जो ईसा मसीह के बारे में कर रहे हैं वो भी आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं। इस सूक्ष्म पक्ष को जाने बिना वे ईसा मसीह के बारे में बातें कर रहे हैं।

इस उत्क्रांति की प्रक्रिया में ईसा मसीह हमारे अंदर उस चौराहे के बिंदु पर स्थित हैं। इस चक्र के देवता यहां बिठाए गए हैं। ईसा मसीह के आगमन के उपरांत उन्हे यहां नहीं रखा गया अपितु बहुत पहले रखा गए जब मानव का निर्माण हुआ। और फिर वे इस प्रथ्वी पर अवतरित हुए।

इस देवता को विशेष रूप से निर्मित किया गया था उस बिंदु , उस द्वार को जो परमात्मा के साम्राज्य का है, जो सहस्त्ररार है, जो हजार पंखुड़ियों वाला कमल है, उसे लांघने के लिए, जो खुला है जिसे कहा जाता है, दशम द्वार या सचखंड (limbic area)। स्थूल स्तर पर उसे सचखंड कहा जाता है और उन्हें (ईसा मसीह को) विशेष रूप से बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य के लिए निर्मित किया गया था जो लोगों द्वारा कभी भी समझा नहीं जा सका।

जब प्रभु यीशु मसीह हमारे अंदर जागृत होते हैं, तो वो क्या करते हैं? यह कहा जाता है, कि वो हमारे पापों के कारण मर गए। सब कहते हैं कि, ईसा मसीह हमारे पापों के लिए मरे इसलिए आप ईसाई बन जाते हैं। तो वो हमारे लिए मरे और सब कुछ ठीक है। आप तब तक ईसाई नहीं हैं जब तक आप का बपतिस्मा नहीं होता। आप जब तक यहूदी नहीं है जब तक आप का बपतिस्मा नहीं होता। अब कौन सा बपतिस्मा हम ले रहे हैं? क्या हम सचमुच ईसा मसीह का जागरण अपने अंदर प्राप्त करते हैं? क्या हम मोसेस का जागरण अपने अंदर प्राप्त करते हैं? क्या हम श्री कृष्ण का जागरण अपने अंदर प्राप्त करते हैं? अगर ऐसा है हमारे पास वह शक्तियां नहीं हैं। जब ये देवता हमारे अंदर जागृत होते हैं, तो कहा जाता है कि वे हमारे पापों के लिए मरे।

भारत में हमारे यहां एक लंबा सिद्धांत था कर्म का। वो श्री कृष्ण के समय पर था जिन्होंने वर्णन किया था कि जैसे कर्म आप करते हैं, उसी के अनुसार आपका जन्म होता है, उसी के अनुसार आप कष्ट पाते हैं। यह यह सिद्धांत श्री कृष्ण के समय में था जो आज से छ हज़ार वर्ष पूर्व हुए थे। इसके द्वारा लोगों को बताया गया था कि अगर आप अशुभ कर्म करते हैं तो उसी अनुसार आपको कष्ट भोगने पड़ते हैं। कष्ट का कारण होता है मानव द्वारा भूतकाल में किए गए अशुभ कर्म या ईश्वर विरोधी कार्य। लेकिन उन्होंने पाया कि सब इंसान एक जैसे ही हैं।

जब मोसेस यहूदियों को ले आए तो वो सब एक से ही थे। जब श्री कृष्ण ने उपदेश दिया, उन में कोई परिवर्तन नहीं आया, वह वैसे ही रहे। वह अपने कर्मों पर ध्यान नहीं दे रहे थे। उन्हें अपने कर्मों की बिल्कुल भी परवाह नहीं थी और उन्होंने कष्ट भोगे। अपने अज्ञान में उन्होंने कष्ट उठाए क्योंकि वह उन अवतरणो़ं पर विश्वास नहीं करते थे। वह किसी भी अवतरण पर विश्वास नहीं करते थे। तो वे जो करते थे वह करना उन्होंने जारी रखा, अपने जीवनाधार, अपने धर्म, अपने मानवीय कल्याण के विरुद्ध जाना। इसीलिए कुछ ऐसा करना था जिससे एक ऐसे यंत्र का निर्माण हो जो सभी के लिए एक बार इन कर्मों को अवशोषित कर ले। इस प्रकार बहुत अधिक प्रयास, मानवीय समस्यायों की बहुत गहरी समझ के साथ प्रभु ईसा मसीह का निर्माण हुआ, पृथ्वी पर एक सामान्य मनुष्य के रूप में अवतरित होने के लिए। और जब उन्होंने स्वयं को पुनर्जीवित किया, उन्होंने अपने जीवन द्वारा दर्शाया की आत्मा अविनाशी है। यही बात आपको श्री कृष्ण ने बताई थी की आत्मा अनादि है। किसी को तो यह साबित करना था कि आत्मा अविनाशी है, और ईसा मसीह ने साबित कर दिया कि आत्मा अविनाशी है।

अब तक, जब प्रभु ईसा मसीह का आगमन हुआ, सारे अवतरनों की शक्तियां उनकी व्यक्तिगत शक्तियों के रूप में अभिव्यक्त होती थीं, अर्थात देवी वह इस धरती पर आईं राक्षसों के नाश के लिए, श्री कृष्ण इस धरती पर आए राक्षसों के विनाश के लिए, उन्हें बताने के लिए कि क्या सही है और क्या गलत। मोजेस इस धरती पर आए लोगों को बचाने के लिए।

परंतु हमें ऐसे किसी की आवश्यकता थी जो हमारे पाप हर ले, जो लोगों को क्षमा कर दे, जो धरती पर आए क्षमाशीलता का अवतार बन कर, उन पापमय मानवों को प्रेम और करुणा से क्षमा करने जो इतने अज्ञानी हैं, ना कि अपनी महान शक्तियों का दिखावा करने, जो उन के पास अभी भी हैं, परंतु सिर्फ अपनी करुणा और क्षमाशीलता से उन लोगों के पापों को अवशोषित कर ने के लिए।

और इस देवता को बहुत समय पहले स्थापित किया गया था, जो इस धरती पर मानव के रूप में अवतरित हुए, परंतु हमने उन्हें कभी पहचाना ही नहीं। आप कल्पना कर सकते हैं? अब सारे विश्व में हमारे यहां हजारों हजारों सहज योगी हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं की तब एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं था, सिवाय उनकी मां के, जिसने उन्हें समझा हो। जब उनका पुनरुत्थान प्राप्त हुआ तभी सब कहने लगे कि हां हां, तब तक उन पर कोई विश्वास नहीं करता था। आप लोगों की तरह नहीं। लेकिन ठीक है क्योंकि वह लोग आत्म साक्षात्कारी नहीं थे, तो इस बात को भी क्षमा किया जाता है। इसलिए उन्होंने कहा कि, मेरे खिलाफ कुछ भी क्षमा किया जाएगा। क्योंकि वह जानते थे कि लोग आत्म साक्षात्कारी ही नहीं है। परंतु आत्म साक्षात्कार के बाद, अपनी जागृति प्राप्त करने के पश्चात, अगर आप परमात्मा को नहीं पहचानते तब प्रभु ईसा मसीह आपको क्षमा नहीं करेंगे। कल्पना करें क्षमा के सागर ने अपनी क्षमा करने से इनकार किया। यह बड़ा अपराध, बड़ा पाप होगा कि आत्म साक्षात्कार के बाद भी आप परमात्मा को नहीं पहचानते।

प्रभु ईसा मसीह धरती पर लोगों के पापों को अवशोषित करने के लिए आए। जब कुंडलिनी उठती है और आपका आज्ञा चक्र खुल जाता है, जो कि बहुत ही कठिन बात है, औरों के लिए तो मैंने देखा है यह बहुत बहुत कठिन है। परंतु सहज योग में प्रभु ईसा मसीह को जागृत करना आज बहुत ही सरल हो गया है। सारे पाप खत्म, पूरी तरह अवशोषित हो जाते है। आप के कोई कर्म बचते ही नहीं।

बहुत से लोग अभी भी कर्म के सिद्धांत की अवेहलना कर रहे है, अभी भी उस का उपहास कर रहे हैं क्योंकि जब प्रभु ईसा इस धरती पर आए, और उन्होंने बहुत से चमत्कार किए, और जब उन्होंने लोगों को बताया कि वो लोगों के पापों के लिए मृत्यु का वरण कर रहे हैं, और वह लोग यह जानते थे, उन्होंने यह कहा, वह इस के बारे में लोगों को उपदेश देने लगे, उन्होंने ईसा मसीह को एक पुस्तक की तरह लिया। उन्होंने उन का बहुत ग़लत तरह से प्रयोग किया, और उन्होंने कभी इसका समझा कि इसका क्या अर्थ है, कि एक आत्म साक्षात्कारी बनने के पश्चात जब आप का पुनर्जन्म होता है, जैसा उन्होंने कहा था, आप का पुनर्जन्म होना है। उन्हें उन्होंने पुनः पुनः यह सब बातें कही थीं।

यह बात में जरूर बताऊंगी आप को, कि जब में 1973 में अमरीका गई, और जब मैं बातें कर रही थी तो वह मेरी सब बातों को रिकॉर्ड कर रहे थे, और लोगों ने कहा कि आपको उन्हें आपकी बातों को रिकॉर्ड करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। आप के पास एक प्रकार का, जैसे कहते है,पेटेंट इत्यादि होना चाहिए । मैंने कहा,'' क्या? यह तो बहुत मुश्किल है।'' और उन्होंने मेरी बातें रिकॉर्ड कर ली। मैंने कहा वो यह सब एक अच्छी सामग्री की तरह छापेंगे! छपने दो! यह तो बहुत अच्छी बात है! आखिरकार उन्हें आत्म साक्षात्कार के लिए सहयोग के पास ही आना पड़ेगा। कुंडलिनी का जागरण तो होना ही है, तो उन्हें इस बारे में बात करने दो।''

तो वास्तव में मनुष्य बहुत शानदार है। उन्हे पता है कि हर अच्छी चीज़ का कबाड़ा कैसे करना है। उन्होंने एक संस्था बनाई 'टवाइस बौर्न' क्योंकि मैंने कहा था कि आप का पुनर्जन्म होना है। तो उन्होंने कहा कि सही है हमारे यहां भी एक संस्था है जिसका नाम है टवाइस बौर्न। और यह खुद को प्रमाण पत्र देने वाले लोग जो चारों तरफ हैं मुझसे लड़ रहे हैं। और उन्होंने कहा कि, ''यह हमको अमेरिका से मिला है।'' और इनके जैसे वहां कई है, जो इसमें या उस में विश्वास करते हैं और जिन्होंने कई संस्थाएं बना रखी है। संस्था का निर्माण करने से आप पुनर्जन्म प्राप्त नहीं कर लेंगे! यह एक जीवंत क्रिया है। यह जीवंत वस्तु है। आप किसी पर यूं ही छाप नहीं लगा सकते कि, आप दोबारा जन्मे हैं। आप किसी को ऐसे ब्रांड नहीं कर सकते। यह घटित होना चाहिए। पर ठीक है, जो उनके साथ हुआ है वह बहुत शीघ्र ही सही रास्ते पर आ जाएंगे।

तो प्रभु ईसा मसीह का तत्व, जब हमारे अंदर जागृत होता है, हमारे सारे कर्म अवशोषित हो जाते हैं। यह कितनी शानदार बात है! जरा सोचिए इस बारे में! जरा सोचिए इसको! अब और पाप नहीं! अतीत के सब पाप समाप्त हो जाते हैं - हर एक पाप! और जब कुंडलिनी आज्ञा चक्र को भेदती है, आप वास्तव में निर्विचार समाधि में चले जाते है, पूर्णत: सजग निर्विचारिता। यह आपके साथ घटित होता है। यह ऐसा नहीं है कि मैं कह रही हूं इसलिए आप उस पर विश्वास करना चाहिए, परंतु यह आप के साथ घटित होता है। आप को स्वयं खोजना चाहिए। और जब कुंडलिनी ब्रह्मरंध का भेदन करती है, अर्थात आप जब सही मायने में अपना बपतिस्मा प्राप्त करते हैं, जब वो भेदती है, तब आप अपने हाथों में ठंडी हवा बहती हुई अनुभव करने लगते हैं। यह एक घटना है, जिस के लिए आप प्रयास नहीं कर सकते।

लेकिन फिर इन देवता को जाग्रत रखने के लिए आप को कुछ करना होगा इस बारे में, की अब आप और आगे गलत कार्य ना करें। आप के पाप उस बिंदु पर समाप्त हो जाते है, जब कुंडलिनी जागृत होती है और ईसा मसीह जागृत होते हैं परंतु उन्हें जागृत रखिए। यह आरंभ में होता है, मैंने देखा है कि आप फिर से पहले जैसे कार्यों में लग जाते हो और वह (प्रभु यीशु) सुप्तावस्था में चले जाते है। आपको उन्हें प्रसन्न रखना होगा। जो विधियां उन्हें प्रसन्न रखने के लिए हैं प्रयोग की जाती हैं उनको शुद्ध विद्या या निर्मल विद्या कहते हैं। क्योंकि एक बार चित्त प्रकाशित हो जाता है, यह इस रोशनी की तरह नहीं है, निस्संदेह इस में कई शक्तियां होती हैं। जब रोशनी होती है तो हम यह सब साफ-साफ देख सकते हैं। आप अपने अंतर में अपने सारे चक्रों को साफ-साफ देखने लगते हैं और आप दूसरों के चक्रों को भी देखने लगते हैं अपनी उंगलियों पर उन्हें अनुभव करके। इतना कम से कम है जो घटित होता है।

लेकिन आपको आश्चर्य होगा कि यह शक्तियां जब अच्छी तरह से हमारे अंदर जागृत होती है आप को एक चेतना प्राप्त होती है, जिस के द्वारा आप अगर किसी पर भी चित्त डालते हैं, वह कार्य करता है, आप का चित्त कार्य करता है। यह वह है जो वास्तव में निर्मल विद्या कहलाती है। यह है जहां चित्त अपने आप कार्यरत होने लगता है। आप किसी पर चित्त देते हैं आप जरा उस के बारे में सोचिए, और यह कार्यान्वित होता है। सामान्य तौर पर आप का चित्त कुछ नहीं है परन्तु जहां आप की इच्छा है, जहां आप जाना चाहते चाहते हैं, आप अपने चित्त से जा सकते हैं। परंतु वह हर जगह कार्यान्वित नहीं होता, वह आप को कुछ भी विवरण नहीं देता जब तक कि आप किसी पर चित्त डालें जिस के बारे में आप जानना चाहते हैं और आप उस व्यक्ति से जुड़ जाते हैं, और आप जान जाते हैं कि उस व्यक्ति के संग क्या समस्या है।

तो सबसे पहले, क्योंकि कुंडलिनी आप के मस्तिष्क में फ़ैल जाती है, आप की चेतना आलोकित हो जाती है। सब से पहले यह स्थापित करना है कि चित्त आलोकित हो जाए और यह कि वह सक्रिय हो जाए। सक्रिय गलत तरीके से नहीं, हमेशा सही दिशा में। जो भी वह करता है अच्छा है, वो अच्छा है, आप की आत्मा के लिए अच्छा है। इस के लिए संस्कृत भाषा में शब्द है हितकारी। आप का सारा निर्णय लेना बहुत सरल हो जाता है क्योंकि जब आप अपनी ' चैतन्यमय चेतना' का प्रयोग करते हैं, तुरंत ही आप को ज्ञात होता है, की यह सही है, वह गलत है। आप अपने चैतन्य पर अनुभव कर सकते हैं क्योंकि अब आप असीम से, अपनी आत्मा से जुड़े हैं और आप जानते हैं क्या करना है और क्या नहीं करना है।

आत्म साक्षात्कार कुछ ऐसे है जैसे मृत से जीवन में छलांग। चित्त जो मृत की तरह कार्य कर रहा था, जीवंत हो जाता है, उसका हर एक कण। तो यह एक बहुत जबरदस्त बदलाव आप के अंदर होता है और इस बड़े बदलाव को स्थापित करने के लिए आप में सबूरी और समझ होनी चाहिए। जिन्होंने वह धैर्य और समझ दिखाई, उन्होंने उस स्थापन को बहुत अच्छे से प्राप्त कर लिया है। जिन्होंने वह समझ नहीं दिखती वह पूर्व स्थान पर वापस चले गए हैं।

मैं यहां बिल्कुल भी किसी तरह का कोई भी पंथ इत्यादि बनाने के लिए नहीं हूं, बिल्कुल भी कोई पैसा बनाने या कोई अन्य बेकार के बात के लिए नहीं हूँ। मैं यहां हूं आप को वो ज्ञानपूर्ण व्यक्तित्व बनाने के लिए जो आप बहुत सरलता से हो सकते हैं। किसी को तो यह करना है। आप ये कल कर सकते हैं। यहां दो लोग हैं जो ऑस्ट्रेलिया गए और उन्होंने हजार लोगों को आत्म साक्षात्कारी बना दिया। भारत में एक सज्जन है जिन्होंने दस हज़ार लोगों को आत्म साक्षात्कारी बना दिया। आप सब ये स्वयं कर सकते हैं। सबसे पहले आपको खुद को स्थापित करना होगा। किसी चीज पर शंका करना बहुत सरल है, आपको शंका करनी चाहिए। शंका करने में कुछ भी गलत नहीं है, पर आपको जानना चाहिए कि इस में मेरा कोई लाभ नहीं है!! यहां बहुत सारे नकली लोग हैं, बहुत सारे पैसे बनाने वाले और बहुत सारे गुमराह करने वाले कि जब आप मेरे पास आते हैं, आप ऐसा ही सोचेंगे मुझे पता है।लेकिन सोचिए की आप यहां साधना के लिए आए हैं। आप को कोई हानि नहीं होगी।

लेकिन अगर आप को यह अनुभव मिल जाता है, यही वह है जो आप सदियों से खोज रहे हैं और इस आधुनिक समय में आप इस धरती पर जन्मे हैं जब यह महायोग आरंभ हुआ है। लेकिन यह धीरे-धीरे काम करता है! आप को इसे प्राप्त करना होगा। अपने आप को एक सहज योगी सूचीबद्ध करने का कोई तरीका नहीं है, कोई तरीका नहीं है। इसे घटित होना होगा। मैं आपको रजिस्टर या उसके जैसे किसी चीज़ पर नहीं दिखा सकती कि, अपने नाम लिख दीजिए! ठीक है यह सहज योगी हैं! आप ऐसा कर ही नहीं सकते। अगर यह आप के संग घटित नहीं हुआ है, तो आप वहां नहीं हैं। आप को वहां होना होगा। अगर आप वहां नहीं है तो आप एक आत्म साक्षात्कारी नहीं है। आपके इस प्राप्त करना होगा। तो हम उस प्रकार व्यवहार नहीं कर सकते जैसे अन्य लोग करते हैं।

अभी हाल में ही कुछ सहज योगियों ने मुझ से पूंछा कि, मां! इनको पाठ्यक्रमों की आदत है, कि पहले दिन आप ये पाठ्यक्रम करेंगे अपनी नाक को खींचने का, दूसरे दिन अपने कान खींचने का, तीसरे दिन अपनी ठोडियां खींचने का। ऐसा यहां कुछ नहीं है सहज योग में, एक पाठ्यक्रम जैसा। और मुझे आप को बताना है कि यह एक जीवंत प्रक्रिया है। यह कुछ बहुत भिन्न है। यहां पाठ्यक्रम जैसा कुछ नहीं है क्योंकि जो कुछ भी आप को प्राप्त करना है, आप कुंडलिनी जागरण के माध्यम से प्राप्त करना हैं। और आप अनुभव करते हैं की निर्विचार समाधि से आप निर्विकल्प समाधि में छलांग लगाते हैं। यह एक चेतना है हमारे अंदर, एक अवस्था है, जो हमारे अंदर एक अंतरंग भाग हैं। इसके लिए कोई पाठ्यक्रम कैसे हो सकता है? कोई पाठ्यक्रम नहीं हो सकता इस के लिए अपने आप में। परन्तु आप निस्संदेह निर्मल विद्या के बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। आप कैसे अपने देवताओं को जागृत करेंगे यह सीख सकते हैं। आप सीख सकते हैं कि किस प्रकार अपनी कुंडलिनी को चढ़ाएंगे। आप सीख सकते हैं किस प्रकार दूसरों की कुंडलिनी को चढ़ाएंगे।

दूसरी एक और बात है, जो कुछ लोगों को परेशान कर सकती है जो पहली बार आए है, मैंने ऐसा होते देखा है। वह यह है कि यहां कुछ लोग हो सकते हैं सब कि बीच, जो अपने को सहज योगी कहते हैं परन्तु पूर्णतः वैसे नहीं हैं। क्योंकि दरवाजा सब के लिए खुला है अंदर आने के लिए, हर प्रकार के लोग अंदर आ जाते हैं। उन में से कुछ यह दावा कर सकते है कि वह सहज योगी हैं वो दुर्व्यवहार करने का प्रयत्न कर सकते हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि सहज योग के साथ कुछ गलत है। परतुं उस व्यक्ति ने अभी वो स्तिथि प्राप्त नहीं की है। उन लोगों से परेशान होने की कोई आवश्यकता नहीं जो इस प्रकार व्यवहार करते हैं। आप को कहना चाहिए, ' यह ठीक हो जाएगा'! वो निस्संदेह बाद में ठीक हो जाते हैं।

हमारे पास ऐसे लोग हैं जो सीधे पागलखाने से चले आ रहे हैं। डरिए मत परंतु ऐसे लोग थे हमारे यहां। मुझे नहीं पता कि अगर आज भी कोई ऐसा है यहां। लीड्स में, एक महिला सीधे पागलखाने से मुझे मिलने आई, और जब वह वापस गई तो वहां उसे कहा गया कि 'अब आप की यहां आवश्यकता नहीं है, आप ठीक हैं।' अब अगर ऐसा व्यक्ति आता है, अगर आप उस व्यक्ति से मिलते है वह कहेगा, ओह! मैं सहज योगी हूं। मै यह हूं। मैं वो हूं! आप को ऐसे व्यक्ति पर विश्वास नहीं करना है। आप को अपनी उपलब्धियों पर विश्वास करना है ना की दूसरों की उपलब्धियों पर। यही सहज योग है!

जबकि एक कृत्रिम जगह में अपने आस पास वे एक बड़ा प्रभामंडल बनाते हैं। उनके पास दस वस्त्रों से सजे लोग होंगे सिर्फ आप का ध्यान आकर्षित करने और आप को प्रभावित करने के किए। वे उन्हें वस्त्रों से तैयार करेंगे, वे अध्ययन करेंगे ऐसी पुस्तकों का कि दूसरों को कैसे प्रभावित करना है, और उन लोगों को बहुत ही आकर्षक और बहुत ही प्रभावशाली बना कर दिखाएंगे। और वे आप को ऐसे बड़े बड़े हॉल और ऐसे बड़े बड़े गलियारों से गुजारते हुए ले जाएंगे और उस से आप को प्रभावित करेंगे। आप और आश्चर्यचकित होंगे जब आप वहां पहुंचेंगे तो आप पाएंगे कि कोई आपसे सात कदम आगे बैठा हुआ है और आप को उसके आगे जाकर झुककर प्रणाम करना है बिना कोई सवाल किए और आप ये करेंगे। क्योंकि आप इन बातों को उस समान देखेंगे जैसे की अगर आपको किसी राजा से मिलने जाना हो, या फिर आपको किसी पादरी या किसी और से मिलना हो। इस प्रकार यह सब बहुत प्रभावशाली लगता है।

परंतु परमात्मा के लिए यह बिल्कुल भी प्रभावशाली नहीं है। वे विश्व की सारी संपदा को नष्ट कर सकते हैं और दोबारा से पुनर्निर्माण कर सकते हैं। उनके लिए आपकी आत्मा से ज्यादा कुछ भी प्रभावशाली नहीं है, आत्मा जो आपके अंदर है। वही सबसे महत्वपूर्ण है। यह नहीं कि आप किस देश से आ रहे हैं, किस वंश से आ रहे हैं। परमात्मा के साम्राज्य में इन बेतुके भेदभावों का कोई अस्तित्व नहीं है। आप एक साधक हैं और आप की आत्मा को ज्योतिर्मय होना चाहिए।

तो आज शायद हमारे पास कैक्स्टन हॉल है, कल शायद हम एक समुद्र के किनारे बैठे हों, या शायद कहीं किसी पहाड़ी पर।

ऑस्ट्रेलिया में हमारे साथ एक समस्या हुई और हमारे यहां बहुत सारे लोग थे। हमें समझ नहीं आ रहा था कि हम क्या करें। तो हमें खुली जगह पर चले गए, एक पार्क में और वहां पर कार्यक्रम का आयोजन किया। हमारा कार्यक्रम कहां होता है, उसका आयोजन किस प्रकार होता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। शायद कभी-कभी ये ठीक से आयोजित नहीं हो पाता, शायद कोई छोटी मोटी समस्या होती है यहां वहां। वह महत्वपूर्ण नहीं है। आपको अनुभव करना है, वह अनुभव जो बहुत सौंदर्य पूर्ण तरीके से सयोंजित किया गया है। आप अपने अंदर अच्छे से सुव्यवस्थित है। आप वह संगठन देखिए जो आप के अंदर है ना की उस संगठन को जो आपके बाहर है। जो चीज आप के अंदर है, आप की आंतरिक सुन्दरता, आपको उसे देखना चाहिए, उसका अनुभव करना चाहिए और उसका आनंद लेना चाहिए।

मुझे आशा है कि सभी नए लोगों के साथ यह कार्यान्वित होगा। मुझे लगता है इनमें से अधिकतर लोग पहले से ही आत्म साक्षात्कारी हैं। और आप सब के खुद के पास अपने अंदर देखने की गहरी अंतर्दृष्टि होगी और आप आत्मा का परमानंद और हर्ष का आनंद लेंगे और अपने अंदर सामूहिक चेतना की शक्ति का अनुभव करेंगे।

यह सब नए लोगों के लिए है परंतु आज मैं पुराने सहयोगियों से भी बात करना चाहती हूं, कुछ उनके बारे में, सरस्वती जी की शक्ति जो हमारे अंदर है उनके बारे में, इसके बारे में मैंने अभी आप से बात नहीं की है अब तक, क्योंकि आप पहले से उसका बहुत अधिक प्रयोग कर रहे हैं।

श्री सरस्वती की शक्ति...(श्री माताजी कुछ क्षण रुकती हैं) यह बात भी लोगों को परेशान करती है की जूतों को ऊपर रखा जाता है। आप देखिए, इंगलैंड में लोग सोच सकते हैं कि, जूते ऊपर क्यों रखने हैं? लेकिन आप देखिए उन्हें उस व्यक्ति के जूतों को भी सम्मान देना चाहिए जिस में चैतन्य है, क्योंकि वहां बहुत सारा चैतन्य होता है। बहुत सी ऐसी बातें जो धीरे-धीरे आपको देखनी हैं कि क्यों की जाती है। चीजों से परेशान नहीं होना है पर समझना है कि किस प्रकार हमें अपने अंदर की और दूसरों के अंदर की दिव्यता और दिव्य शक्ति का सम्मान करना है।

आप इनके बारे में- हमारे अंदर तीन शक्तियां हैं, ताकि उन लोगों के लिए भी सहायक हो जो पहली बार आए हैं। एक शक्ति जो दाएं तरफ से गुजर रही है बाईं तरफ जाती है, इच्छा शक्ति है। सहज योग की भाषा में हम इस को महाकाली शक्ति कहते हैं। यह सब हमारे अंदर जागृत हैं। यह सब शक्तियां हमारे अंदर जागृत है क्योंकि हम जो भी इच्छा करते हैं, वो इच्छा पूर्ण होती है। कुछ समय बाद आप देखेंगे कि आप ऐसे किसी भी चीज की इच्छा नहीं करेंगे जिसकी आवश्यकता नहीं है। आप सिर्फ वही इच्छा करते हैं जो आपकी आत्मा के लिए अच्छा है और दूसरों की आत्मा के लिए अच्छा है। आप सिर्फ यही इच्छा करते हैं। आप एक ऐसी स्थिति में आ जाते हैं जहां आप कुछ मांगते ही नहीं।

शुरुवात में लोग ऐसे मांगते है कि, मां मेरे पिताजी बीमार हैं। क्या आप उनकी देखभाल करेंगी? मां मेरा भाई बिगड़ा हुआ है। वह शराब पीता है सिगरेट पीता है वगैरह वगेरह।क्या आप उसकी देखभाल करेंगी? फिर ऐसा ही कुछ और। यह गलत नहीं है पर यह महानतम नहीं है। लेकिन फिर आप मांगने लगते है कि, मां कृपया लोगों को आत्म साक्षात्कार प्रदान कीजिए। तब आप यह नहीं कहते कि मेरा भाई! मेरी बहन! आप सब के विषय में सोचने लगते हैं।

फिर आप शायद कहे इंग्लैंड! उस स्थिति तक आ जाते हैं आप। मां कृपया करके इंग्लैंड को जागृत कीजिए! कृपया करके अंग्रेजों की सहायता कीजिए! आप इस तरह कहते हैं। फिर आप सारी दुनिया के बारे में सोचते हैं फिर सारे ब्रह्मांड के बारे में सोचते हैं। इस प्रकार अपने आप को विस्तार देना शुरू करते हैं उसके साथ आपकी चेतना का भी विस्तार होने लगता है। आपकी इच्छाएं बदल जाती हैं आपकी सारी प्राथमिकताएं बदल जाती हैं। आप पूर्णत: अपनी प्राथमिकताएं बदल लेते हैं। आप किसी के पीछे नहीं जाते, विशेषकर आपनी आदतों की इच्छाओं के पीछे। लोग अपनी कुछ आदतों के अभ्यस्त होते हैं। उदहारण के लिए, कुछ सिगरेट पीते हैं। आप को उन्हे कहना नहीं पड़ता, मत पियो। उन्हे मत कहिए। उन्हें कहने की कोई आवश्यकता ही नहीं कि इस से कैंसर होता है। रातो रात वे इसे स्वत: ही बंद कर देते हैं। मैं ऐसे लोगों को जानती हूं जो शराबी थे। रातों-रात उन्होंने पीना बंद कर दिया। उनकी इच्छा बदल जाती है उनकी पूरी प्राथमिकता बदल जाती है क्योंकि अब वह जागृत हैं। आपकी इच्छा शक्ति अब जागृत है।

परंतु दूसरी शक्ति जो हमारे अंदर जागृत है, दाएं तरफ की शक्ति है, वह कार्य करने की शक्ति है। कर्म करने की जो शक्ति है वह कहलाती है महासरस्वती। आप सोचने से, योजना बनाने और शारीरिक श्रम से वास्तव में बहुत सा कार्य करते हैं। शारीरिक तौर से और मानसिक तौर से हम जरूरत से ज्यादा अत्यधिक सक्रिय हैं, विशेषकर उन समाजों में जो कहने के लिए उन्नत हैं। हम प्रगति करते हैं इस शक्ति का प्रयोग करके जो कार्य शक्ति कहलाती है। हम कार्य करते हैं, और जब हमें लगता है कि हमारे पास कुछ अधिशेष है तो बहुत सरलता से हिंसा का सहारा लेने लगते हैं। यह कार्य करने की शक्ति जो हमारे अंदर है पूर्णत: क्षीण हो जाती है, जिस के कारण बहुत सी समस्याएं होती है। परंतु क्योंकि आपकी इच्छाएं बदल जाती हैं आपका कर्म भी बदल जाता है। जो व्यक्ति हर रात मदिरालय जा रहा था वहां जाना बंद कर देता है। वे कुछ और करने लगता है जो ज्यादा आनंददायक और परम सुखमय है। इच्छा कर्म को स्वत: ही बदल देती है। पर आप भी अपने कर्म को बदल सकते हैं।

परंतु कर्म की सूक्ष्म बात ऐसी है कि आप को अनुभव होता है कि शक्ति आप की उंगलियों से बह रही है। आप को अनुभव होता है कि शक्ति का उत्सर्जन हो रहा है। आप किसी स्थान पर जाते हैं और अचानक आप को अनुभव होता है कि आप से शक्ति निकल रही है। आप को पता चलता है कि कुछ बाहर बह रहा है उस क्षेत्र में। आप पता करते हैं कि यह किस प्रकार का क्षेत्र है? आप को पर चलता है कि किसी महान संत की शायद यहां मृत्यु हुई थी। कभी आप किसी स्थान पर जाते हैं और आपको अनुभव करते हैं कि आपके हाथों में चुभन हो रही है। आप को अच्छा नहीं लगता। आप लोगों से पूछते हैं यह किस प्रकार का स्थान है? यह ऐसा स्थान है जहां लोगों की हत्या हुई थी, यह हुआ था वह हुआ था, लोग बहुत अधिक परेशान है। उनके अंदर शांति नहीं है।

तो क्रिया भी बदल जाती है, आप अपने तरीके बदल देते हैं। आप ऐसे स्थानों पर जाते हैं जहां आप ज्यादा खुश होते हैं। परंतु इस कार्य का सूक्ष्म पहलू यह है कि इन उंगलियों का हिलना, आप के हाथों की क्रिया भी, आप का बोलना, आप कि आंखों का घूमना सब कुछ जागृत हैं। आप उस के साथ विकसित होने लगते हैं।

जब आप सूक्ष्म से और सूक्ष्म होने लगते हैं आप अपने तत्व पर पहुंच जाते हैं, तत्व जो की आत्मा है। और एक बार जब आप अपने तत्व पे पहुंच जाते हैं फिर आप किसी भी चीज के तत्व पर पहुंच सकते हैं। परंतु उसके लिए आपको अपनी दाईं पक्ष को अच्छे से विकसित करना होगा, अपने हाथों का सही तरह से प्रयोग करना होगा। उदहारण के लिए, आप देखंगे बहुत से लोग कुंडलिनी इस तरह उठाते हैं और बहुत से लोगों के चीजों को ले कर पारंपरिक विचार होते है।

उदाहरण के तौर पर, अगर एक पादरी एक बच्चे को लेता है, हाथों में उठाता है, कहीं से थोड़ा पानी ले कर उसके सिर पर रखता है और इस बच्चे को बपतिस्मा देता, तो सब उसको स्वीकार कर लेते हैं। किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। या अगर कोई पादरी कोई अजीब सा परिधान धारण करता है जिसे देखकर पहले तो बच्चे डर जाते हैं या कोई 'डोंकी टोपी' पहनता है, आप सोचिए कोई भी उस पर आपत्ति नहीं करता, क्योंकि यह हमारे सारे मानदंडों द्वारा स्वीकार्य है।

सिंगापुर में, मुझे आश्चर्य हुआ कि नीचे की तरफ एक मदिरालय हैं और उसके ऊपर मंदिर है और एक ही संस्था द्वारा संचालित! वह स्वीकार्य है। किसी को भी यह विचित्र नहीं लगता। पर अगर कोई (सहज योगी) कहे कि मुझे आप की कुंडलिनी उठानी है, अगर जरा सा हाथ हिलाता है, 'अरे यह विचित्र लोग हैं आपको पता है, यह पागल हैं। (ऐसा लोग कहते हैं) गैर आत्म साक्षात्कारी लोगों के मापदंड के अनुसार यह लोग (सहज योगी) पागल हैं।

आप कुंडलिनी कैसे उठाते हैं? आप उसे चित्त से उठा सकते हैं! पर ऐसा करना नहीं चाहिए, क्योंकि अन्य लोगों को पता चलना चाहिए कि कुछ किया गया है। क्योंकि लोग जब तक कुछ देख नहीं लेते कि कुछ किया गया है उनके साथ, वह विश्वास नहीं करेंगे।

कल कोई हमारे यहां आए थे जिन्हे बहुत बुरी तरह से छाजन हो रहा था, बहुत बुरा छाजन। उस के सारे हाथ पूर्णत जले और भयानक थे, दोनों हाथ। और मैंने उनसे अपने हाथों को मेरी तरफ करने के लिए कहा। वह मेरी तरफ हाथ कर के ही रोगमुक्त हो सकते था, पर मुझे उस के हाथों पर क्रॉस और स्वस्तिक का निशान बनाना पड़ा और वो उनका हाथ साफ़ हो गया, और सब ठीक हो गया। तो उस ने मुझे कुछ करते देखा। अगर मैने कहा होता, ठीक है, यह ठीक हो जाएंगे! ऐसा होता है सहज योगियों के साथ, हो सकता है। लेकिन मैं अगर ये कहूं और अगर यह हो जाए क्योंकि चित्त जागृत है, तो लोग कहेंगे, ओह यह तो एक संयोग से ठीक हुआ है!

इसलिए आप को कुंडलिनी को अपने हाथ से उठाना है, जिस से कि जो व्यक्ति उठा रहा है देख सके कि जहां तक हाथ उठता है कुंडलिनी उठती है। आप अपनी रीढ़ की हड्डी में इसका अनुभव कर सकते हैं। आप दूसरे व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी में यह देख सकते हैं। तब आप उसे उठाइए। हे ईश्वर! यह ऊपर आ रही है। यह ऊपर आ रही है। अब देखिए आपके हाथ के हिलने से, और अन्य लोग भी यह देख सकते हैं, यह वह संचलन है जो आप को समझना है।

जब मैं कहती हूं की आपको अपने आपको एक सुरक्षा देनी है एक सुरक्षण देना है, तब आपको अपनी आभा के द्वारा खुद को बंधन देना है। आप को अपना हाथ गोल घुमा कर ले जाना है और उसको नीचे रखना है इस प्रकार और वापस लाना है। जब कोई ऐसा करता है तो तुरंत लोग कहते हैं, 'ओह ये पागल लोग हैं, हाथों को ऐसे चला रहे हैं'। मैं इस की तुलना भारतीय शास्त्रीय संगीत से करूंगी। जब एक भारतीय शास्त्रीय संगीतकार गाता है, क्यों नहीं? हमारा भारतीय संगीत और यह कांपता संगीत! (हंसने की आवाज़ें) और फिर वो चीज़ अपने हाथ में ले लेते हैं (अजीब सी हरकतें कर रहे हैं). मेरा मतलब, आप को अनुभव होता है या तो वो टूट जाएंगे या तो आप टूट जाएंगे, जिस प्रकार वे सब हैं। हो,हो,हो,हो,हो,हो, ऐसे करते जाते हैं वो। सो आरंभ में तो यह देखना एक सदमा था, कि क्या हो रहा है! क्या ये ठीक है? क्या ये पागल हो गया है या इस बारे में ये क्या कर रहा है? हम उस को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे।

यह सच में, मेरे जैसे बुजुर्ग व्यक्ति के लिए, यह देखना बहुत बड़ा सदमा था कि लोग उसे (माइक) को कैसे पकड़े हुए थे और हो हो हो कर रहे थे! और बाकी लोग अपने पैर इस तरह या उस तरह हिला रहे थे। तो वे इस प्रकार कर रहे थे, ये अपना सिर उठा रहा था! यह पहला शो था जो मैंने देखा, मुझे लगता है शायद '65 में, जब में यहां आई थी। मैं तो स्तब्ध हो गई। मेरा मतलब है कि उस समय किसी को हमारा फोटो खींच लेना चाहिए था जिस तरह हम उस बात से बिल्कुल अनभिज्ञ थे। उसी प्रकार, लोगों को शायद ये थोड़ा असामान्य लग सकता है, जिस प्रकार हम को कुंडलिनी जागरण करना होता है, जब कि यह इतना बुरा नहीं है, यह मै आप को बता दूं। (हंसने की आवाज़ें) यह काफी शालीन है। यह बहुत शालीनता से कार्यान्वित होता है। परंतु किसी के विचार जड़ भी नहीं होने चाहिएं। आप को अपने को यह स्वीकार करने के लिए तैयार रखना चाहिए कि यह परमात्म का कार्य है और इस को उठाना है।

अब कोई कह सकता है कि इस ने देखा है कि ईसा मसीह अपनी उंगली ऐसे करके खड़े हैं। इस का बहुत गहरा अर्थ है, क्या अर्थ है वह आप सहज योग में समझ सकते हैं। सहज योग में आप समझ सकते हैं कि इसका क्या अर्थ है, उनके (ईसा मसीह के) पिता हैं आप जानते हैं। जो यह जानते हैं ये उंगलियां किस लिए है, आप जान जाएंगे कि इसका क्या अर्थ है। वे हमेशा यह दो उंगलियां दिखाते थे। वह उनके पिता है जिसका उन्होंने वर्णन किया है। सब कुछ जो, जैसे बुद्ध अलग तरह की मुद्रा में बैठे हैं। कोई इस प्रकार कर रहा है कोई वैसे। आप नहीं समझते क्यों, उन्होंने ऐसा क्यों किया? पर हम ने उस बिंदु को स्वीकार कर लिया है। और हम ने स्वीकार कर लिया है, तो हम को बुरा नहीं लगता। परंतु जब यह एक नई चीज है जो हम साथ घटित हो रही है तो लोग स्वीकार नहीं करना चाहते।

यह बहुत-बहुत गुप्त ज्ञान था एक जमाने में। जैसे कि आपका सिर्फ एक राजा था जिसकी सात पत्नियां थीं, परंतु आजकल सब लोग इक्कीस कर सकते हैं अगर वो चाहें। इसी प्रकार अपने आंतरिक सत्ता में आप सब राजा बनने में समर्थ हैं। आप सब महान व्यक्ति बनने में समर्थ है। बाहर आपने खो दिया है अंदर आपने पा लिया है। बाहर आपने बहुत खो दिया है जैसे यह सोच कि जो भी गलत कार्य, जो कहने को इन शक्तिशाली लोगों ने किए, वह हासिल किया जाने योग्य थे। इस प्रकार आपने खो दिया, पर आपकी आत्मा ने पा लिया है। उसने बहुत ज्यादा प्राप्त कर लिया है क्योंकि अब आपको अनुभव हुआ, आप उस मुकाम पर पहुंच गए है, जहां आप को अनुभव हुआ कि वह एक गलती थी। वह एक गलती थी कि हमने सोचा कि इस तरह की शक्ति हमें खुशी देगी, इस प्रकार की वस्तु हमे आनंद देगी। अब आप को अनुभव हो रहा है, हम सब यह अनुभव कर रहे हैं कि यह वह चीज नहीं है जो हम मांग रहे थे। यह दुख भरी स्थिति है जहां हम ने स्वयं को पहुंचा दिया है। (यहां भाषण कि आवाज़ बीच में कट जाती है)

....और आंतरिक आनंद का अनुभव लेना चाहिए। और आप उसके लिए बिल्कुल तैयार हैं। तो हमारे अंदर जो कार्य शक्ति है उसको बहुत पवित्र रखना चाहिए।

अब सहज योगियों के लिए जैसा कि मैं कहती हूं, कोई कर्मकांड नहीं है उस तरह। अनुष्ठान संबंधित कार्य आपको बिल्कुल मृत बना देते हैं। यह बिल्कुल नहीं होने चाहिए। जैसे कि सुबह-सुबह आप एक मंत्र लेना शुरू करें, और उस मंत्र को बार-बार रटते जाएं यांत्रिक क्रिया की तरह। यह बिल्कुल भी आदर देना नहीं है देवता को। परंतु सही तरह से, जिस भी देवता को आप जागृत करना चाहते हैं, उस देवता का चिंतन करें इस को शुद्ध करने का प्रयास करें, पूरी जानकारी, विचार विमर्श, पूर्ण आदर और एक नवाचार के साथ, ना कि सिर्फ किसी का नाम लेना, कोई मंत्र रटते रहना जो आप चाहें। ये यांत्रिक क्रिया नहीं है। कुछ लोग इससे यंत्र वत करने लगते हैं, क्योंकि उन्होंने पहले भी बहुत से काम किए हैं यंत्रवत।

सहज योग ऐसी चीज़ है जो आपके हृदय से आना चाहिए। यह हार्दिक है। अगर आप इसे अपने हृदय से नहीं करते तो इसका कोई अर्थ नहीं है। आप जारी रख सकते हैं इस तरह, परंतु कुछ समय बाद आप पाएंगे कि आप ने अपना चैतन्य खो दिया है, आप ने चैतन्य लहरी खो दी है, क्योंकि हृदय को यांत्रिक बातें पसंद नहीं। वह प्रतिदिन नया कार्य करता है, जैसे जीवंत क्रिया जो रोज होती है, जैसे नया फूल, एक नई शैली, एक नया तरीका। वह आदतों से कभी नहीं चिपकता है। वह कभी चीजों की एक सी दिनचर्या से नहीं चिपकता। कभी आप इस रास्ते से आते हैं, कभी आप दूसरे रास्ते से आते हैं। वह हर दिन उत्साह से भरा है नए रूप के साथ। और जो यांत्रिक कार्य आप करते है, श्री सरस्वती जी की शक्ति को मृत कर देते हैं।

आप को इसे अपने प्रति और दूसरों के प्रति सम्पूर्ण प्रेम से करना है, अपने अस्तित्व के प्रति पूर्ण सम्मान से और दूसरों के के प्रति पूर्ण सम्मान से। पूरा व्यवहार इस प्रकार होना चाहिए। जबकि मैं देखती हूं कुछ लोगों का व्यवहार अभी भी बचकाना है। और कुछ लोग बहुत पाखंड भरे व्यवहार को अपना रहे हैं। सहज योग को मध्य में होना चाहिए। बचकाना और बच्चों जैसा व्यवहार दोनों में फर्क है। आप बच्चों जैसे भोले हो सकते हैं पर आप परिपक्व है। आप चीजों को समझते हैं। यह दोनों बातें ऐसे व्यक्ति को एक विशेष गरिमामय व्यक्तित्व देते हैं। यह सारी चीजें आपको दाएं तरफ की शक्ति से आती है, जब आप उस का सही प्रयोग करते हैं। जब तक आप इसे अच्छी तरह स्थापित नहीं कर देते, आप लोगों को अपने व्यवहार से आकर्षित नहीं कर सकते। दूसरे लोग, नए लोग जो आपके पास आते हैं, उनको आपके अंदर यह वैभव और कुलीनता दिखनी चाहिए, जिसका आप आनंद ले रहे हैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर से प्राप्त परमानंद जैसा।

परमात्मा आप सब को आशीर्वादित करें।

मैं चाहूंगी की नए लोग मुझे से कुछ सवाल करें। यह एक अच्छा विचार है।

हेलो! हेलो! वो मुझे पहचानते हैं। उन्हे आनंद लेने दीजिए। उन्हे अपनी आजादी पाने दीजिए, उन्हें पता है कि क्या करना है। वो जो भी करते है, उसका अर्थ होता है।

आप लोग कुछ सवाल पूछिए!

पहला साधक - क्या हम बीमार होकर भी पुनर्जन्म प्राप्त कर सकते हैं बड़ी बीमारी के बाद या ऐसा ही कुछ? कोई बड़ी बीमारी जिसके बारे में आपने सोचा कि अब आप और ज्यादा जी नहीं पाएंगे?

श्री माताजी - आप के कहने का अर्थ है कि क्या एक बड़ी बीमारी के बाद आप को पुनर्जन्म प्राप्त हो सकता है?

साधक - हां!

श्री माताजी - हां हां बिल्कुल! हां! असल में जब आप का पुनर्जन्म होता है, आप की पूर्णत: शुद्ध हो जाते हैं और आप रोगमुक्त हो जाते है। हमने कैंसर को ठीक किया है। कैंसर सहज योग में बड़ी आसानी से ठीक किया जा सकता है। बहुत सारी बीमारियां ठीक हो जाती है जैसे ही कुंडलिनी ऊपर उठती है। उस में शुद्ध करने की शक्ति है। वह आप के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप स्वरूप को शुद्ध करती है। वह आप को शुद्ध करती है इसमें कोई संदेह नहीं है। वह ये करती है क्योंकि वह उसका कार्य है, यह उसका स्वभाव है। यह कुंडलिनी का स्वाभाव है कि वह आपको शुद्ध करती है।

पहला साधक - जब मैं आखरी बार यहां आया था तो उन लोगों ने कहा कि मेरी छाती में कुछ है! फिर उसके बाद में विश्वविद्यालय के अस्पताल और कुछ अन्य जगह गया और उन्होंने कहा कि मेरी छाती में कोई समस्या नहीं है। और जब मैं यहां आया तो मैं सांस भी नहीं ले पा रहा था और आपने कहा कि मेरे सीने में कुछ समस्या है पर डॉक्टर ने तो ऐसा नहीं कहा!

श्री माताजी - हां! अब आप देखिए, यही तो बात है! वैद्य मनुष्य की सिर्फ शारीरिक समस्याओं को समझते हैं वह मानसिक अवस्था को नहीं जानते। आपको आश्चर्य होगा कि मुझे पता चला कि कैंसर जैसे रोग भी मन से शुरू होता है तो यह बाई तरफ से बायी नाड़ी से आरंभ होता है। अब डॉक्टर्स ने यह स्वीकार कर लिया है कि हमारे अंदर कुछ प्रोटींस होते हैं जो हमारे निर्माण से हमारे अंदर ऐसी स्थान पर होते हैं जो हमें ज्ञात नहीं और हम पर आक्रमण करते हैं। तो जो समस्याएं आप को आती रही है, डॉक्टर कहेंगे कि आपके साथ कोई समस्या नहीं है जब तक उस का प्रदुर्भाव शरीर पर नहीं होता। अगर आपके सीने पर कोई समस्या है तो पहले हमें पता चलेगा और डॉक्टर्स को बहुत बाद में पता चलेगा। शायद उसको ठीक करना इतना कठिन होगा कि डॉक्टर शायद उसके बारे में कुछ नहीं कर पाएंगे।

अभी हाल में ही हमारे यहां एक लड़का था जिसको दमा की समस्या थी। उस का किसी भी प्रकार इलाज नहीं हो पा रहा था। पर उस का सहज योग से इलाज हो गया, क्योंकि सहज योग ना सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक अवस्था को भी ठीक करता है। आपको किसी डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक पर अलग-अलग जाने की जरूरत नहीं है। सिर्फ आपकी कुंडलिनी सब कुछ ठीक करती है, आपकी आध्यात्मिक समस्याएं भी।

जैसे कि हम को ऑस्ट्रेलिया से टेलीफोन आया कि एक साहब है जो (transcendental) भावातीत ध्यान करते थे, आए है और वो पशु जैसा व्यवहार कर रहे हैं। वो गुर्रा रहे है और सब तरह कि आवाजें वगैरह कर रहे हैं। उन्होंने खुद को डॉक्टर्स को भी दिखाया। और डॉक्टरों ने कहां कि जो भावातीत ध्यान करते हैं हम उनका उपचार नहीं कर सकते। अच्छा रहेगा कि आप भावातीत ध्यान कराने वालों से पूछिए। इस ने उनसे पूंछा, तो उन्होंने कहा कि आप तनाव में है और तनाव को बाहर निकाल रहे हैं इत्यादि इत्यादि। उस ने कहा, यह तो एक अनंत क्रिया है। पिछले 12 सालों से मैं तनाव में जी रहा हूं, पर मैं तनाव में क्यों हूं? कुछ निकल तो रहा नहीं है यह तो बढ़ रहा है। परंतु फिर मैंने फोन पर उसे कुछ बताया जिससे उसे उसकी समस्या से मुक्ति मिल गई।

तो यह बातें डॉक्टर्स नहीं समझ सकते। खुद डॉक्टर्स को भी इस के लिए आना पड़ता है। मनोवैज्ञानिक शारीरिक समस्याओं के बारे में अवगत नहीं है और शरीर का इलाज करने वाले डॉक्टर मनोविज्ञान के बारे में अवगत नहीं। जब मैंने आपसे कहा था कि कोई बीमारी हो सकती है और अब अगर यह बात साफ हो गई है तो उसका उपचार करेंगे। और आप स्वयं यह बात जान जाएंगे। आपने खुद ही है अनुभव किया।

पहला साधक - हां लेकिन मैं जानता था कि वह चीज है!

श्री माताजी - हां! परंतु डॉक्टर इसको ठीक नहीं कर पाएंगे। तो ये बहुत ही सूक्ष्म चीज़ है। यह सब का पता कर लेती है इससे पहले की परेशानी आरंभ हो, यहां तक ​​कि थोड़ी सी भी, यहां तक कि थोड़ी सी भी, जिसका प्रादुर्भाव बाहर हो रहा है आपको उसका अंदर पता चल जाता है।

श्री माताजी - हां कहिए क्या बात है?

स्त्री साधक - ( अस्पष्ट)

श्री माताजी - आप भयानक चीजें अनुभव करती हैं? यहां हमारा चित्त पेट में हैं। यहां हमारा चित्त है हमारे अंदर। और ये गुरु का सिद्धांत है, यह शिक्षक का, बीजभूत शिक्षक का सिद्धांत है, वो हमारे अंदर यहां स्थित हैं। उनका जागरण करना है। आप देखिए कि जो मार्गदर्शन हम दूसरों से लेते हैं हमें नुकसान कर सकते हैं या जिस प्रकार आप लोगों की सुनते हैं कभी-कभी। आप देखिए कुछ लोग बातें करते हैं जो हमें बिल्कुल अच्छी नहीं लगती। कभी कभी ऐसा होता है अगर मैं किसी को देखती हूं, मुझे पता चल जाता है कि ऐसा कुछ है। ऐसे संवेदनशील होना एक बहुत अच्छा संकेत है। और यह सहज योग में सही किया जा सकता है, कि आप इसे ग्रहण कर सकें पर उस का तनाव अनुभव नहीं करते। तो आप यह ग्रहण करते है बेशक क्यों की संवेनशीलता समाप्त नहीं हुई है लेकिन उस का प्रभाव इतना ज्यादा नहीं होता। आप उसका अनुभव करते हैं और सिर्फ कहते हैं- उसके भवसागर पर पकड़ आ रही है- बस इतना ही।

फिर आप देखते हैं कि दूसरे व्यक्ति के साथ घटित हो रहा है आपके साथ नहीं। यह होता है आपके साथ आत्म साक्षात्कार प्राप्त कर लेने के पश्चात। आपको इस सब से छुटकारा मिल जाता है। यह सब होना एक बहुत अच्छा संकेत है।

स्त्री साधक - क्या सच में?

श्री माताजी - हा है! हां बिल्कुल है। हां यह बहुत अच्छा संकेत है, बहुत अच्छा संकेत कि आप इसके बारे में बहुत ज्यादा संवेदनशील हैं। इसका अर्थ है कि आप युगों से साधक हैं।

साधक - मेरा गुर्दे का एक तरह का ऑपरेशन हुआ था। मुझे मालूम नहीं था कि उस समय मेरा गुर्दा खराब हो चुका है, परंतु मैं किसी के पास गया और उन्होंने मुझे बताया कि मेरे गुर्दे में पत्थर है। बहुत समय मैं जिंदा से ज्यादा मरा हुआ था और मुझे किसी भी चीज की परवाह नहीं थी। परंतु उन्होंने मेरा ऑपरेशन करने का निर्णय लिया। यह डॉक्टर बहुत अच्छे इंसान थे और उन्होंने मुझे बताया। और मुझे नहीं पता था कि मेरे गुर्दों में कोई खराबी है। परंतु मुझे उससे किसी और काम के लिए मिलना था। और उसने मुझे कहा कि जाने से पहले मैं उससे जरूर मिल लूं। मैं उससे जरूर मिलूंगा और यह काम करवा लूं। यह 1952 की बात है।

श्री माताजी - यही तो बात है! यही तो! बिना देखे कि वह क्या है आप कैसे कह सकते हैं? आप को वह देखना चाहिए। आपको वह स्वयं देखना चाहिए। यही सहज योग है जिसमें आपको उसे देखना है। आपके द्वारा जो ज्ञान आता है इतना स्पष्ट होता है, परंतु पहले आप उस पर विश्वास नहीं करते। आप उस पर विश्वास ही नहीं कर सकते। यह इतना शानदार है कि आप इस पर बिल्कुल विश्वास नहीं करते।

परंतु जैसी यह भद्र महिला कहती हैं, अब अगर यह जा कर किसी को इस बारे में बताएं, वह कहेंगे, ओह यह महिला! या वो कहेंगे कि ये पागल है, या वह कहेंगे कि इनको मनोवैज्ञानिक उपचार की आवश्यकता है या कहेंगे, रहने भी दो! कोई भी विश्वास नहीं करेगा क्योंकि उनको यह समस्या नहीं है। आप समझ सकते हैं यह बात है! जब तक आप उसे नहीं देखते आप उसे नहीं देख पाएंगे। यह बिल्कुल सत्य है। जो आप कहते हैं वह सत्य है। जब तक आप उसे नहीं देखेंगे आप उस पर किस प्रकार विश्वास करेंगे?

कोई और सवाल?

साधक - (अस्पष्ट) उस समय जब यह हुआ था तो मैं ने अपने गुर्दे का (अस्पष्ट)और अब मैं काफी बेहतर है। और मैं नहीं जानता था कि उस समय कुछ ऐसा है। यह 1952 की बात है। मैं उनसे एक बार मिला और दोबारा कभी नहीं गया।

श्री माताजी - तो अब आप कैसा अनुभव कर रहे हैं?

साधक - (अस्पष्ट)

श्री माताजी - नहीं वह कुछ और था, धीरे-धीरे आप जान जाएंगे कि वह क्या था। उसकी सफाई होनी चाहिए। (अस्पष्ट) यह बाईं नाड़ी की तरफ से आ रहा है आपको यहां पीछे की तरफ से मिल रहा है। यह पीला चक्र है आप देख रही हैं यहां। इसकी दो साइड है दाईं और बाईं। यह दोनों तरफ चलती हैं। बाईं तरफ जो चक्र है उसे बायां स्वाधिष्ठान कहते हैं, हम उसे बायां स्वाधिष्ठान कहते हैं चक्र है जो काले जादू के लिए है।

आप समझ सकते हैं, जब लोग आप पर काला जादू करते हैं, आप को कोई समस्या हो जाती है। और स्वाभाविक रूप से जब उसका प्रदूर्भाव होना आरंभ होता है तो वह गुर्दे को प्रभावित करता है क्योंकि वह गुर्दे के निकट है। तो पहले वो एक काले जादू जैसे शुरू होता है और जब हम कुंडलिनी को उठाया, वह ऊपर यहां तक धकेला गया और वह नहीं निकल पाया यहां से। तो बात यह है कि यह हिलता भी है आप उसका संचलन अनुभव भी कर सकते हैं।

कुछ समय बाद अगर यह नहीं गया तो, आप को अनुभव होता है यह यहां है, यह यहां है, यह यहां है! वह चीज़ गतिमान होने लगती है और डॉक्टर्स कह सकते हैं कि बेहतर होगा आप इस से छुटकारा पाने के किए बी कॉम्प्लेक्स लें। पर आप को छुटकारा नहीं मिलता क्यों कि यह एक आत्मा है। यह आत्मा है जो गति में है और जब यह गतिमान होती है, हम जानते हैं कि इसे कैसे बाहर निकालना है और इसे कैसे कार्यान्वित करना है।

हमारे कुछ तौर तरीके हैं जिस के द्वारा हम वास्तव में उसे बाहर निकालते हैं। एक ताक़त है, शैतानी ताक़त, जो यह सब कार्य करता है। यह सत्य है। उस ने आप का अनुभव किया। उस में वह संवेदनशीलता है। आप को उतना संवेदनशील होना चाहिए कार्यवाही करने के लिए। पेट पर देखिए क्योंकि आप का पेट कमजोर है। उन्हे पता है किस प्रकार कार्य करना है, कहां कार्य करना है, कहां जाना है! मुझे उस में बहुत दिलचस्पी है।

महिला साधक - अगर सारे चक्र अवरुद्ध हो जाते हैं तो क्या कोई एक विशेष चक्र है जो अवरुद्ध हो जाता है, फिर उसे कैसे स्वच्छ करते हैं?

श्री माताजी - अगर वो अवरुद्ध हो जाते हैं तो उन्हें कैसे उठयें, उसके तरीके और विधि हमारे पास है।

महिला साधक - (अस्पष्ट)

श्री माताजी - (अस्पष्ट) यहां है।

महिला साधक - अगर अंदर दे पूरी तरह अवरुद्ध हो जाता है तो क्या होगा?

श्री माताजी - मुझे लगता है पहला, दूसरा, तीसरा और चौथा वाला आपका कहने का मतलब है? यह सुरक्षा का चक्र है। अगर यह अवरुद्ध है तब आप को स्तन की और कभी कभी स्वास संबंधी या ऐसी ही अन्य और समस्याएं हो जाती हैं। यह सुरक्षा चक्र है और उसका एक देवता है। और जो देवता है वह ब्रह्मांड की माता हैं और आप को उन्हे जागृत करना है। अगर वह जागृत हो जाती हैं तब आप को यह समस्याएं नहीं होती। यह बहुत सरल है।

श्री माताजी - (किसी और साधक से) क्या आप को ठंडी हवा का अनुभव हो रहा है?

साधक - हां! ऐसा लग रहा है जैसे मेरे अंदर से बिजली बह रही है और मैं अनुभव का रहा हूं!

श्री माताजी - जरा अपने हाथ मेरे तरफ करिए ! हां यह कुछ उसके जैसा है!

साधक - हां और अब मुझे अनुभव हो रहा है कि मेरे अंदर कुछ अवरुद्ध है!

श्री माताजी - (हंसते हुए) अब आप सब मेरी तरफ जरा इस तरह हाथ करिए! अपनी आंखें बंद करिए! अपने दोनो पैरों को जमीन पर सीधा रखिए, सीधा जमीन पर, जरा इस तरह!

पर जैसे कि मैंने आपसे कहा था कि अगर आपको आत्म साक्षात्कार मिल गया है इसका अर्थ यह नहीं कि आपने यह प्राप्त कर लिया है। आपको उसे स्थापित करना होगा जो की बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सारा एक बहुत बड़ा परिवर्तन है, और उसको स्थापित करने में समय लगता है। तो आज सिर्फ आना, आत्म साक्षात्कार प्राप्त करना और कार्य समाप्त किसी काम का नहीं है! यह मेरे लिए समय की बर्बादी है और आप के लिए भी। आप दोबारा वापस आएंगे एक बड़ी समस्या के साथ क्योंकि एक बार आप आत्म साक्षात्कारी हो गए आपको स्थापित करना चाहिए। आपको स्थापित होना चाहिए यह इस सम्पूर्ण प्रक्रिया का बहुत महत्वपूर्ण अंग है।

क्या आप अपने हाथ मेरी तरफ रखेंगे?

महिला साधक - (अस्पष्ट)

श्री माताजी - कुछ लोगों को यह वास्तव में स्थायी मिल जाता है ऐसा मुझे लगता है कि कुछ लोगों को ये स्थाई रूप में मिल जाता है, परन्तु कुछ लोग इसे कुछ समय के लिए छोड़ देते हैं। आप समझ सकते हैं कि यह हमारा काम है इसे बनाए रखना, इसे स्थापित करना। एक बार ये जागृत हो गया तो जागृत हो गया। मैंने कुछ लोगो को देखा है जो चार से पांच महीने के लिए खो जाते हैं, फिर से वापस आ जाते हैं। परंतु फिर उनकी इतनी प्रगति नहीं होती जितनी उन लोगों कि जो निरंतर प्रगति जारी रखते हैं। आप को यह जानना चाहिए कि आप साधक हैं, और बिना साधना के आप प्रसन्न नहीं रह पाएंगे। तो क्यों अध्पके रहें इस विषय में? यह कोई खरीदारी नहीं है। यह वो है जो असली और महत्त्वपूर्ण है, जो जीवंत है। तो आप को कुछ ऐसा करना चाहिए जो जीवंत हो।

महिला साधक - क्या आप को ध्यान करना चाहिए (अस्पष्ट)

श्री माताजी - नहीं! नहीं! यह समय नहीं है! यह मत कहिए कि समय नहीं है। यह तो ऐसा है कि आप हर समय ध्यान में हैं। हर समय। जो भी आप कर रहे हैं, आप ध्यान में हैं।

तो कृपया अपने हाथ इस प्रकार रखिए मेरी तरफ! अपने हाथ बाहर रखिए! कृपया अपनी आंखें बंद करिए! अगर आप को कोई सांस की समस्या है उसे ठीक करने कि आवश्यकता है।

अपनी आंखें बंद करिए, कृपया अपनी आंखें बंद करिए! अपने हाथ सीधे मेरी तरफ करिए, इस प्रकार! क्योंकि अगर हाथों में कोई कम्पन होता है तो आप देख सकते हैं। थोड़ा सा दूर अपने से, इस प्रकार! घुटनों पर नहीं, क्योंकि आरंभ में आप को देखना चाहिए भारीपन कहां है।

अब जो मैं अनुभव कर रही हूं वह ज्यादा हृदय पर है। अब अपना दाया हाथ अपने हृदय पर रखिए। दाया हाथ हृदय पर रखिए।

अब आपको क्षमा मांगनी है यह कहते हुए कि, अगर हमने कुछ गलत किया है तो कृपया हमें क्षमा कर दीजिए। आपको क्षमा मांगनी है। अब जैसे ही मैं यह कहती हूं, आप एकदम से उस चक्र को पकड़ ने लगते है जो दिखाता है कि आप दोषी हैं। आप को दोषी अनुभव नहीं करना है। एक बार आप ही कह देते हैं तो बात खत्म हो जाती है। इसलिए तो आप कहते हैं इसकी सफाई के लिए। सिर्फ अपना हाथ हृदय पर रखिए और बाया हाथ मेरी तरफ करिए।

आप इसको कहिए बिना कोई दोषी भाव आपके अंदर आए। सिर्फ कह दीजिए। क्योंकि आपने गलतियां की होगी। आखिरकार गलतियां मनुष्य से ही होती है और क्षमा परमात्मा देते हैं। अपने अंदर दोषी भाव मत बनाइए। यह दोषी भाव क्यों रखना है?

कोई बच्चे को ले ले और उसे घुमा लाए।

अपने दोषी भाव को मत बनाइए। यह चीज है जो बहुत ज्यादा होती है। आपको हृदय से पकड़ आती है, आप क्षमा मानते हैं और आप यह सोचने लगते हैं, यह किया है मैंने। उसके बारे में भूल जाइए! भूल जाइए उसे! भूल जाइए उसे! तो यह तीसरे बिंदु पर पहुंच जाता है। विकसित देशों में यह बहुत ही सामान्य परिभ्रमण है। तीसरी परिभ्रमण वह है जहां आपको स्वयं को क्षमा करना है और दूसरों को क्षमा करना है। आपका आज्ञा चक्र पकड़ता है। इसलिए आप क्षमा करिए। सबसे पहले आप स्वयं को क्षमा करिए। आपको स्वयं का सम्मान करना है क्योंकि आप परमात्मा के मंदिर हैं। स्वयं को क्षमा कर दीजिए। क्या आप स्वयं को क्षमा कर सकते हैं? अपनी आंखें बंद करिए और स्वयं को क्षमा कर दीजिए।

अपना सम्मान करिए। आपको अपना सम्मान करना चाहिए क्योंकि आप कुछ मांग रहे हैं क्योंकि आप उसके योग्य हैं। जो कुछ भी आपने किया है वह अब समाप्त हो चुका है, तो स्वयं को क्षमा कर दीजिए।

अब अपना दाया हाथ मेरी तरफ करिए और बाया हाथ पेट पर रखिए और दूसरों को क्षमा कर दीजिए। पेट पर काम, अपने जिगर पर ज्यादा और अन्य लोगों को क्षमा कर दीजिए! अन्य लोगों को को क्षमा कर दीजिए! सबको क्षमा कर दीजिए! अगर उन्होंने आपको नुक़सान भी पहुंचाया तो भी उन्हें क्षमा कर दीजिए क्योंकि उसको याद करके आप बेकार ही दुखी हो रहे हैं!

अब अपने दोनों हाथ मेरी तरफ करिए! मेरे चेहरे को देखिए बिना कुछ सोचे अगर ऐसा कर सकें! बस मुझे देखिए बिना कुछ सोचे!

ऐसे कई तरीके हैं जिससे आप अभी भी अनुभव कर सकते हैं और उसके साथ आप स्वयं को स्थिर कर सकते हैं। आपकी चेतना में सब कुछ है, परंतु आरंभ में आप अपनी कुंडलिनी को उठाने का प्रयास और स्थापित करने का प्रयास करते हैं। सिर्फ उस के उपरांत ही कुछ बातों को हमें समझाया जाता है। कैसे करना है? क्या ज्यादा है? क्योंकि सत्य (अस्पष्ट??) है आप उसे सहन नहीं कर सकते, बदल नहीं सकते।

लोग इस सत्य को सहन नहीं कर पाए की ईसा मसीह एक अवतरण थे, कि वह परमात्मा के पुत्र थे और उन् लोगों ने उनको मार दिया। यह बहुत मुश्किल है कि मनुष्य में बहुत अधिक अहंकार होता है, वो कुछ भी सहन नहीं कर सकते। इसीलिए आरंभ में आपको सब कुछ नहीं बताया जाता है। पर धीरे-धीरे आप को बोध हो जाएगा। और एक बार आप सत्य को उसकी पूरी सामार्थों के साथ स्वीकारने लिए तैयार हो जायेंगे, आप को ज्ञात हो जाएगा। परंतु आरंभ में नहीं (अस्पष्ट) उस देवता का, उस आत्मा का जो आप हैं। परंतु इतनी (जानकारी) में भी आप लोगों को दिखा सकते हैं और उन्हें दे सकते हैं। परंतु सबसे पहले आप उस स्वयं को निरोग करना चाहिए आपको अपना सम्मान और उपचार करना चाहिए, वह बहुत महत्वपूर्ण है।

अगर आप अन्य गुरुओं के पास गए हैं और उस से आपका नुक़सान हुआ है, तब आपको कुछ विशेष चीजें करनी होंगी। अगर आपको बाई तरफ की समस्याएं आदि हैं तो कुछ विशेष चीजें हैं जो करने की आवश्यकता है। उसके लिए आपको ध्यान केंद्र पर आना होगा, पूछताछ करके पूरी जानकारी लीजिए, क्या करना है, क्योंकि अब पार हो चुके हैं आप स्वयं का उपचार कर सकते हैं, आपको यह करने के लिए किसी और की आवश्यकता नहीं है। सिर्फ इतना है कि आपको पता होना चाहिए कि कैसे करना है। एक बार आप स्वयं का इलाज कर लेते हैं तो फिर आप दूसरे लोगों को भी ठीक कर सकते हैं।

इस समस्या को या आप की किसी भी अन्य समस्या को दूर करने के लिए, कुछ विशेष कार्य हैं जो आपको करने होते हैं। और ये आपको बताएंगे कि कैसे यह करना है, किस प्रकार आदि गुरु के देव को हमारे अंदर जागृत करना है,जिस के द्वारा वह भवसागर की देखभाल करते हैं।

आपकी अन्य सारी समस्याएं भी हल हो सकती है जैसे ही आप जान जाते हैं कि उन्हें किस प्रकार दूर करना है। यह सारा ज्ञान पूर्णत: निशुल्क है, प्रेम के साथ और बहुत आनंद के साथ। आप इसके लिए भुगतान नहीं कर सकते। आप इसके लिए कभी भुगतान नहीं करते।

मुझे आशा है कि प्रत्येक सोमवार को आप सब लोग यहां आने वाले प्रथम लोग होंगे। कुछ ऐसे नकारात्मक शक्तियां भी हो सकती हैं जो आएंगे और आपको रोकेंगे, पर उनकी बात मत सुनिए।

दूसरी बात यह है कि अहंकार यहां बहुत ज्यादा है। सिर्फ स्वयं को स्थापित करने का प्रयास करें। अपने अंतर में गहरे उतरे और अपनी सारी शक्तियों को स्थापित करने का प्रयास करें। यह आपकी अपनी है पूर्णता अपनी है जो आपको मिली है।

परमात्मा आपको आशीर्वादित करें।

आपके सर के ऊपर आप अनुभव कर सकते हैं। एकदम साफ अनुभव होगा आपको। ठंडी चैतन्य लेहरी का अनुभव कीजिए जिस से आपको ज्ञात होगा कि आप को आत्म साक्षात्कार मिल चुका है।

फिर आप चीजों को देखने लगते हैं, कि किस प्रकार ये कार्यान्वित होता है। यह बस काम करता है! काम करता है!

तो क्या मैं जा सकती हू?

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Caxton Hall, London (England)

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