The Three Paths Of Evolution

The Three Paths Of Evolution 1979-05-30

Location
Talk duration
84'
Category
Public Program
Spoken Language
English

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30 मई 1979

Public Program

Caxton Hall, London (England)

Talk Language: English | Translation (English to Hindi) - Draft

विकास के तीन रास्ते

सार्वजनिक कार्यक्रम, कैक्सटन हॉल, लंदन (यूके)। 30 मई 1979।

हम जो भी जानते हैं उससे अधिक ऊँचे जीवन के बारे में आपसे बात करने के लिए मैं यहां हूं, उस शक्ति के बारे में जो हर अन्य शक्ति को व्याप्त करती है, प्रविष्ट कर जाती है ; और उस दुनिया के बारे में जिसे शांति और आनंद की दुनिया कहा जाता है।

इन सभी शब्दों के बारे में आपने पहले भी सुना होगा। लेकिन मैं यहां आपको उस यंत्र के बारे में बताने वाली हूं जो हमारे भीतर रहता है, सभी हमारे अस्तित्व में बहुत अच्छी तरह स्थापित किया गया हैं, जैसा कि आप यहां चित्र में देख रहे हैं, जो कि एक जीवंत उपकरण है, जिसे आप वास्तव में अपनी आंखों से धड़कता हुआ देख सकते हैं, जब कुंडलिनी अर्थात यह कुंडलित ऊर्जा चढ़ती है।

हम पहले से ही अपने अस्तित्व में इस उत्थान का आशीर्वाद पा कर धन्य हो गए हैं, अचेतन में महत्वपूर्ण भेदन के द्वारा, हमारी पूर्ण जागरूकता में एक और नए आयाम में प्रवेश करने के लिए जिससे हम वास्तव में आपकी सभी परम तत्व जिज्ञासाओं के उत्तर पा सकते हैं।

अब तक, प्राचीन भारत में, हमारे पास तीन प्रकार के आंदोलन थे। मैं नहीं जानती कि, आप उन सभी के बारे में जानते हैं या नहीं , लेकिन हमारे पास तीन प्रकार थे। और उस के प्रतिबिंब हमारे देश में प्रकट हो रहे थे, दूसरे देशों में भी। यहां तक ​​कि इंग्लैंड में भी हमारे पास ऐसे लोग हुए हैं जो बहुत से बुनियादी, निरपेक्ष सवालों के जवाब खोजने में बहुत व्यस्त रहे हैं।

तो,खोज पूरी दुनिया में हर जगह रही है। लेकिन, जैसा कि मैंने आपको पहले बताया था, भारत अपनी जलवायु परिस्थितियों के कारण, शायद सबसे अनुकूल देश था, और क्योंकि लोगों को अपनी खोज का उत्तर जानने के लिए एकांत स्थानों पर जाने की बहुत गुंजाइश थी।

आज जो आप खोज कर रहे हैं, मैं उसके तीन तरीके, या तीन रास्ते और उसके परिणाम बताना चाहूंगी।

पहले वाला बाईं ओर है: वह मार्ग है जिसके द्वारा वे भगवान की भक्ति करते हैं, जिसे वे भक्ति कहते हैं। उन्होंने परमात्मा को पाने की इच्छा किये बिना भगवान की स्तुति गाई। उन्होंने उसे पुकारा, उन्होंने उसकी मदद मांगी।

शुरुआत में उन्होंने सोचा कि उनके पास सबसे बड़ी चुनौती तत्वों से है; इसलिए उन्होंने तत्वों पर काबू पाने की कोशिश की। और तत्वों पर काबू पाने की कोशिश में गतिविधि दाईं ओर थी, जैसा की वे बताते है, उन्होंने कई तरीकों का इस्तेमाल किया जिससे वे देवताओं या तत्वों के सूक्ष्म सिद्धांत को उत्तेजित कर सकते थे या खोज कर सकते थे।

पहला तरीका भक्तों का था और दूसरा तरीका उनका जो तत्वों पर प्रवीणता प्राप्त करने के तरीके ढूंढते रहे थे।

एक तीसरा मध्य में था और खोज करने वाले दो प्रकार के लोग थे। मैं कहूंगी कि पहले जिन्होंने खोजा, वह दूसरे जिन्होंने मदद करने के लिए इस पृथ्वी पर अवतार लिया और यह हमारे उत्थान का विकासवादी मार्ग था। आप आश्चर्यचकित होंगे, खुद कृष्ण के इस धरती पर आने के भी बहुत बाद में, यहाँ तक की ईसा-मसीह के भी बाद हमारे उत्थान का विकासवादी मार्ग प्रकाश में आया, लोग हमारे भीतर विकास के तरीकों के बारे में बात करने लगे। इसलिए हमें इन तीन तरीकों के बारे में कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। लोगों की भक्ति के कारण, लोगों की मांग के कारण, भगवान के विभिन्न पहलू इस धरती पर अवतारों के रूप में अवतरित हुए।

जो यह सब मैं कहती हूं वह सच है या नहीं, आपको विश्वास करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मैं आपके सामने एक परिकल्पना रख रही हूं। और फिर बाद में आप यह पता लगा सकते हैं कि यह सच है या नहीं। आपको इसके बारे में जानने के लिए केवल एक वैज्ञानिक की तरह अपने दिमाग को खुला रखना होगा।

अब विकास का मध्य मार्ग वही है जिस पर हम यहां चर्चा करने जा रहे हैं।

जो प्रकृति पर स्वामीत्व रखता है, वह वही है जिसका वे वेदों में उल्लेख करते हैं जहां उन्होंने देवताओं का भी उल्लेख नहीं किया है, उन्होंने भगवान सर्वशक्तिमान के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं किया है, लेकिन केवल ब्रह्म तत्त्व की बात की है, एक सिद्धांत जिसके द्वारा सभी पांच तत्व शासित हैं। और तत्वों को उत्तेजित करने के लिए, बस उन सभी मंत्रों और श्लोक का पाठ इन तत्वों के शोधन के साथ-साथ उन पर नियंत्रण पाने के लिए किया गया था।

तो किसी समय में, कहें की, बारह हज़ार साल पहले, भारत में, हमारे पास पायलट रहित बम थे। हमारे पास ऐसे उपकरण थे जो आपकी मिसाइलों से बहुत बेहतर काम कर सकते थे। उन्होंने दायीं बाजु गतिविधि के अविष्कारों से इसे हासिल किया।

जब मैं कोलंबिया गयी तो मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि उन्होंने भी दायीं बाजू गतिविधियों का उपयोग किया। इसके लिए वे एक तरह का नशा भी करते थे, जिसे हम भारत में ’सोमरस’ कहते हैं। यह एक नशीला पदार्थ था जो आपको लत नहीं देगा लेकिन आपको एक ऐसी स्थिति में ले जाएगा जहां आप समझ सकते हैं कि हमारे ज्ञान से परे भी कुछ है; आप शायद एलएसडी जैसा कुछ कह सकते हैं।

लेकिन यह एलएसडी जो आप लेते हैं वह उनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले पदार्थ से बहुत अलग है।मुझे कहना चाहिए कि, यह एक पवित्र चीज रही होगी जिसका ईश्वर के साथ कुछ सम्बंध था; चूँकि भारत में जो कुछ भी लोगों खोज करने की कोशिश की, उन्होंने स्वयं पर अप-केन्द्रिय बल, जो की यह धारणा थी कि ईश्वर है, को बनाए रखा। इसलिए वे दायीं बाजू Right Side की वजह से बहुत ज्यादा विचलित नहीं हुए। वे अधिक भटकाव में नहीं गए।

उस खोज के परिणामस्वरूप, हमारे पास विज्ञान आया। यह अचेतन के माध्यम से आया और सभी खोजें हुई | लेकिन हमारी चेतना - आखिरकार यह दुनिया एक है - हमारी चेतना को एक ऐसी स्थिति तक समायोजित किया गया जहां हम विज्ञान को समझ सके। उस तरह के अविष्कार के परिणामस्वरूप उन्होंने बहुत सी चीजों में महारत हासिल की और उन्होंने कई युद्धों का आयोजन किया जैसा कि हम आजकल कर रहे हैं। और उन युद्धों में हवाई जहाज और सभी प्रकार के आयुध (आयुध: हथियार) का वर्णन है, वे इसे हथियार कहते हैं, जो शानदार हैं।

लेकिन एक अन्य गतिविधि भी चल रही थी, बायीं तरफ जहां लोगों ने इन सभी चीजों की परवाह नहीं की। उपरोक्त दायीं बाजु गतिविधि क्षत्रियों, राजाओं के लिए थी जो बहुत महत्वाकांक्षी थे और पूरी दुनिया पर हावी होना चाहते थे।

लेकिन मैं कहूंगी, बायीं बाजू Left Side वाले सज्जन, भगवान के लिए समर्पित थे, जिन्होंने हमेशा भगवान की मदद की याचना की थी, वे अपनी समझ के अनुसार समर्पण जिसे हम पूजा अर्चना कहते हैं, को आयोजित करने में व्यस्त थे।

लेकिन मध्य मार्ग की देखरेख पर दो शक्तियों द्वारा ध्यान दिया गया था: पहला वे थे जो किन्ही गुरुओं के अधीन साधक थे, जो की ऊँचे स्तर के आत्मसाक्षात्कारी थे। और दूसरे वे अवतार थे जो इस धरती पर भगवान के भक्तों को बचाने उनकी रक्षा करने के लिए आए थे।

यह शुरुआत में यह गतिविधियाँ बहुत गुप्त थी , अत्यंत गुप्त थी । पूरे समाज से केवल एक या दो लोग ही इस तरह के काम में लगाये जाते थे। एक पीढ़ी में आप बमुश्किल पाँच या छह लोग पायेंगे जो लोगों में नई जागरूकता विकसित करने का काम करता हुआ पाते । यह मैं आपको उस समय से भी पहले की बात बता रही हूं जब वेद ​​लिखे गए थे। क्योंकि जो अवतार आने वाले थे, जिन्हें स्थापित नहीं किया गया था, उन्हें एक बहुत ही सुरक्षित गुप्त रहस्य के रूप में रखा गया था। कारण यह था कि यदि वे यह खुलासा कर देते कि ये अवतार हैं जो आने वाले हैं तो नकारात्मक शक्तियां, जो विकास को नीचे खींचने की कोशिश कर रही थीं, एक ऐसी विधि का आयोजन करेगी जिससे वे अवतारों को उनके प्रकट होने से भी पहले नष्ट कर दें।

लेकिन फिर भी, जैसा कि आप ईसा-मसीह के जीवन में देख सकते हैं, कि ईसा-मसीह के आने से बहुत पहले भविष्य वक्ताओं द्वारा उनका आगमन घोषित किया गया था। ये सभी भविष्य वक्ता गुरुओं की उस श्रेणी से संबंधित हैं जिनके बारे में मैं बात कर रही हूं।

इसलिए पूरी दुनिया में तीन तरह की गतिविधि चल रही थी। उदाहरण के लिए, हम कह सकते हैं, दाईं ओर के वैज्ञानिक, और बाएं बाजू के लोग भगवान के भक्त हैं जो भगवान की स्तुति गाते हैं। और मध्य में इब्राहीम और, मूसा जैसे लोग थे, जो बस भगवान के भक्तों की रक्षा के लिए, सिर्फ उपदेश करने के लिए इस पृथ्वी पर आए थे।

अब आज विकास का यह मध्य आंदोलन अपने चरम पर पहुँच चुका है, क्योंकि सभी अवतार अब आ चुके हैं और आपके भीतर अपना काम कर चुके हैं। उन्होंने आपके भीतर, आपकी चेतना में, इन विभिन्न चक्रों पर अपने पद ग्रहण कर लिये है।

तो जो हमारे यहाँ पहला केंद्र है जो कार्बन परमाणु में स्थापित है। कार्बन को चार संयोजकता मिली हैं उसी तरह इस केंद्र को भी चार हाथ मिले हैं। आप इस केंद्र की चारों तरफ देख सकते हैं।

इसका मतलब है कि पदार्थ अवस्था तक यह उससे भी नीचे है। फिर कार्बन ने जीवन प्रारम्भ किया। इस कार्बन परमाणु ने वास्तव में इस पदार्थ में जीवन प्रक्रिया को प्रज्वलित किया। हालाँकि इसके लिए लिया गया समय, जब से पृथ्वी को सूर्य से अलग किया गया है, उस अनुपात में बहुत कम है। मेरा मतलब है कि कोई भी यह नहीं समझा सकता है कि ऐसा क्यों और कैसे हो पाया : केवल कोई बाजीगर ही ऐसा काम कर सकता हैं। तो इस कार्बन परमाणु ने जीवित प्राणियों की सक्रियता की शुरुआत की।

बाद में, हम कह सकते हैं कि मध्य के अवतार, यह हरे रंग का चक्र, जिसे हम नाभी चक्र कहते हैं उसके अवतार, विकास क्रम में एक के बाद एक जीवित जानवरों के विभिन्न रूपों को लेते हुए इस बिंदु से शुरू हुए। जैसे,पहले मछली। यह एक मछली के रूप में आया था। वे कहते हैं कि जब नूह ने जल प्रलय का बुरा समय बिताया था तो इस मछली ने उसकी मदद की। वे एक अवतार के रूप में आए, ईश्वर का वह पहलू जिसे हम विकासवादी कहते हैं।

जो कि इस पृथ्वी पर मछली बनकर आया और फिर कछुआ हो गया। फिर यह एक छोटे आदमी (वामन) के रूप में आया। यह एक मजबूत व्यक्ति (परशुराम) के रूप में आया था। और फिर ऐसा होता रहा लगातार जब तक की हम इस अवस्था पर पहुंच गए, जहां आप शीर्षस्थ को देख सकते हैं, यहां पर। यही वह स्थिति है जहां आठ हजार साल पहले आए श्री राम।

यह हमारे भीतर एक मील के पत्थर की तरह स्थापित हुए थे। वे हमारे विकास के अगुआ थे। उन्होंने हमें विकास की ओर अग्रसर किया और साथ ही उन्होंने वहाँ हमारे लिए एक छाप छोड़ी और वे हमारे भीतर मौजूद हैं।

इसलिए मध्य के दाईं ओर, इसे हृदय चक्र कहा जाता है, जैसा कि आप इसे Cardiac Chakra कह सकते हैं या हम इसे संस्कृत भाषा में हृदय चक्र भी कह सकते हैं। दायीं ओर श्री राम प्रकट हुए। अब वह दाहिनी ओर श्री राम क्यों प्रकट हुए, क्योंकि उन्हें अपने अवतार के बारे में भूलना था। उन्हें भुला देना था कि, सार रूप में, वह मध्य में स्थित ईश्वर के विकासवादी पहलू श्री विष्णु हैं, क्योंकि वह कहीं अलग रूप में थे। इसलिए वह इसके बारे में भूल गये थे। उन्हें एक इंसान की तरह व्यवहार करना था ताकि कोई भी इंसान उनके अवतार होने का संदेह न करे। वह एक राजा, परोपकारी राजा, एक आदर्श राजा, राजा की मर्यादाएं और एक राजा की सुंदरता सब कुछ बन गये। और इस तरह ऐसा यह अवतार आठ हजार साल पहले इस पृथ्वी पर आया था।

उसी समय जब यह चक्र जिसे हम भवसागर कहते हैं, लेकिन आप इसे संपूर्ण ब्रह्मांड कह सकते हैं, कह सकते हैं; यह उन लोगों से भरा था जो नकारात्मक थे और ईश्वर भक्तों को नष्ट करने की कोशिश कर रहे थे। तब आदिम शक्ति जिसे आदि शक्ति कहा जाता है, वह आदिम माता, वह राम से बहुत पहले उस चक्र में आई थी। वह इन भक्तों की रक्षा करने के लिए बारह हज़ार साल से एक हज़ार अवतारों में लगभग बारह हज़ार साल पहले वहाँ आई थी। बेशक, मुझे लगता है कि और भी बहुत अवतार हुए है, लेकिन एक हजार मुख्य अवतार हैं जो इस धरती पर आदिम माता के रूप में आए थे, वे अपने बच्चों, अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए आए थे।

अब सबसे ऊपर वाला, सबसे ऊपर नहीं, लेकिन उससे नीचे वाला दूसरा, यह केंद्र वह चक्र है जहां विष्णु तत्व, या ईश्वर के विकासवादी पहलू, पूर्ण रूप से प्रकट होते हैं। इस सिद्धांत का पूर्ण प्रकटीकरण हुआ, और यह श्री कृष्ण का सिद्धांत है। तो श्री कृष्ण को इस विकासवादी प्रक्रिया की पूर्ण अभिव्यक्ति के रूप में माना जाता है। लेकिन जैसा की हम जानते हैं परमात्मा सर्वशक्तिमान सब कुछ है। वह केवल विकासवादी सिद्धांत नहीं है, वह बाईं ओर का अस्तित्व भी है और वह दाईं ओर का निर्माता भी है।

लेकिन यह सब शुरू होने से काफी पहले चेतना की अन्य अवस्था थी। चेतना की उस स्थिति में इस दूसरे चक्र जिसे आप यहाँ देख रहे हैं, जो निर्माता है। उसने अपनी शक्तियों के माध्यम से, सारा ब्रह्मांड, सभी तत्वों के माध्यम से बनाया; फिर यह पृथ्वी। और इस पृथ्वी पर जीवन का चक्र शुरू हुआ। ये सभी चक्र हमारे भीतर हैं।

अब सबसे पहले, लगभग दो हजार साल पहले, ईसा-मसीह का सबसे बड़ा अवतार आया था। वह ईश्वर का पुत्र था, निर्दोष था। और वह इस पृथ्वी पर आया। इस बिंदु पर जहां आप इस लाल निशान को देखते हैं, भीतर, मस्तिष्क में। पिट्यूटरी और पीनियल के बीच एक बहुत ही सूक्ष्म केंद्र है, वह वहां आये थे: हमें उत्थान देने के लिए, हमें शाश्वत जीवन का ज्ञान देने के लिए, यह ज्ञान देने के लिए कि जो कुछ तुम इस पृथ्वी पर देखते हो वह स्थायी चीज नहीं है, कुछ और भी है परे। और उसके पुनरुत्थान द्वारा उसने हमें दिखाया कि कैसे हम सभी का पुनरुत्थान किया जा सकता है।

यह लिम्बिक क्षेत्र में द्वार था, जिसे हम सहस्रार कहते हैं, क्योंकि इसमें एक हजार पंखुड़ियां हैं। अब इन पंखुड़ियों, जैसा कि वे इस कमल की तरह दिखते हैं, यह वास्तव में हमारे भीतर ऐसा ही है, लेकिन एक सुप्तावस्था में है।

आप एक मोमबत्ती देखते हैं। अब जब यह बाती होती है, तो आप बाती के इस रूप को नहीं देखते हैं। केवल जब यह जलाई जाती है तभी आप उसे उस प्रकाशित रूप में देखते हैं। अब जब आप एक हजार को इस तरह रखते हैं तो वे सभी मिलकर एक साथ कमल की तरह दिखते हैं। लेकिन जब यह प्रबुद्ध नहीं होता है, तो आप केवल कहते हैं कि एक हजार तंत्रिकाएं हैं लेकिन जब ये नसें प्रबुद्ध हो जाती है, तो आप उस प्रकाश को देख सकते हैं जो विभिन्न रंगों में है।

इसलिए आज हम यह जानने के लिए यहाँ हैं कि, हमारे भीतर, ये सभी अवतार मौजूद हैं, और उस शक्ति को जानने के लिए जो वास्तव में सामने आयी, वास्तव में प्रकट हुई - जो मानवों की तरह रहते थे, और गुरुओं की तरह काम करते थे - वह शक्ति जो इस क्षेत्र में मौजूद थी , जिसने हमारे भीतर धर्म का निर्माण किया।

धर्म जैसा कि हम समझते हैं, संगठित धर्म, धर्म वैसा नहीं है। लेकिन धर्म का अर्थ है आपकी पोषक शक्ति। आप एक इंसान हैं क्योंकि आपके भीतर दस पोषक शक्तियां हैं। इसलिए वे अवतार हमें बनाए रखने और हमें इन दस शक्तियों के बारे में पूर्ण ज्ञान देने और एक इंसान के रूप में हमें धर्म में स्थापित करने के लिए आए।

इसलिए इन गुरुओं ने, जो उस क्षेत्र में रहते थे, पोषण को कार्यान्वित किया और हमारी मदद की। और यह हमें प्राप्त उच्चतम शक्तियों में से एक है, जो हमारे ही भीतर रहती है। और उन्होंने जो कुछ भी कहा है उसका बहुत बड़ा अर्थ है।

वास्तव में हमें कहना चाहिए कि दस मुख्य गुरु हैं, लेकिन कई अन्य गुरु हैं। और इन दस गुरुओं को राजा जनक, फिर मूसा, अब्राहम के रूप में वर्णित किया जा सकता है, और आधुनिक समय में आप मोहम्मद साहब और यहां तक ​​कि कह सकते हैं शिरडी में शिरडी साईनाथ तक, थोड़े समय के लिए शक्ति प्रकट हुई और फिर वे गायब हो गए। कोई नहीं जानता कि वह वहाँ कैसे आये, वह वहाँ रहते थे और उसकी मृत्यु हो गई। यदि आप नानक को जानते हैं, तो वह भी वही शक्ति थे, वही आदि गुरु, जो इस भूमि पर पैदा हुए थे।

अब यह समय लोगों के बारे में व्यक्तिगत रूप से बताने का नहीं है, लेकिन मुझे लगता है कि एक दिन मैं केवल गुरुओं के विषय पर आपसे बात करूंगी।

तो स्वयं इन गुरुओं ने शुरूआत आदि गुरु जिन्हें दत्तात्रेय कहा जाता था के मार्गदर्शन में की। और यह दत्तात्रेय वह है जो अपनी अबोधिता में इन सभी शक्तियों को अपने में समावेश कर बने है: अस्तित्व, विकासवादी और रचनात्मक शक्ति।

मुझे पता नहीं, यदि आप इसे समझते हैं या नहीं, लेकिन उनके बारे में एक कहानी है, कि तीन देवता हैं जो इन तीनों शक्तियों से सम्बंधित हैं। बायाँ हिस्सा शिव की शक्ति है, तो दायें वाली ब्रह्मदेव की शक्ति है और मध्य वाली विष्णु की शक्ति है। तो वे बताते हैं कि इन तीनों देवताओं को लगा कि दत्तात्रेय की पत्नी एक महान, समर्पित महिला थीं। और वह यदि उसे लगे तो, अपनी शक्तियों के कारण किसी को भी श्राप दे सकती है। इसलिए वे उसका परीक्षा लेना चाहते थे और यह जानना चाहते थे कि वह कितनी समर्पित पत्नी थी, इसलिए वे उसके पास गए और उन्होंने उससे कहा: "हम कुछ भिक्षा चाहते हैं।" और भारत में, आपके घर पर आने वाले किसी अतिथि को देने में सक्षम होना एक महान गौरव माना जाता है। और तीन संत, वे संत के कपड़े पहने थे, वे दरवाजे पर आए। इसलिए जब उन्होंने भिक्षा मांगी, तो उसने कहा, "ठीक है, मैं तुम्हें कुछ भिक्षा दूंगी।"

उन्होंने कहा, "नहीं, हम घर के अंदर आएंगे, और आपको पूरी तरह से नग्न हो कर हमें भिक्षा देनी होगी।" चूँकि एक अन्य व्यक्ति के सामने नग्न होने पर, आप एक सती के रूप में, एक समर्पित पत्नी के रूप में प्राप्त अपनी सभी शक्तियों को खो देते हैं। वह बोली, "ठीक है, अगर आप ऐसा कहते हैं, तो मैं करूंगी।" और वो अपने कपड़े निकालने लगी। जैसे ही उसने अपने कपड़ों को छुआ, वे लोग छोटे बच्चे बन गए, बिल्कुल छोटे बच्चे, और उसने अपने कपड़े निकाले और उन्हें भिक्षा दी। तो इन तीन छोटे बच्चों को मिला कर दत्तात्रेय को बनाया, गुरु है, एक बच्चे की तरह निर्दोष है, एक बच्चे की तरह निर्दोष है, जिसे सेक्स की कोई संवेदना नहीं है।

तो हम एक निष्कर्ष पर आते हैं कि, एक गुरु जो महिलाओं में रुचि रखता है, एक गुरु जो सेक्स में रुचि रखता है, वह गुरु नहीं है बल्कि गुरु विरोधी है।

दत्तात्रेय इन तीनों शक्तियों की निर्दोषता है और यह गुरु वह थे जिन्होंने बाद में गुरुओं की एक बड़ी परंपरा बनायी। उसी परंपरा में हमारे देश में और विशेष रूप से बॉम्बे के पास के क्षेत्र में कई गुरु थे, जिसे महारष्ट्र कहा जाता है। वे नाथ के रूप में आए, उन्हें नाथ कहा जाता था।

तो पहले थे आदि नाथ, फिर दत्तात्रेय, फिर मच्छिंद्रनाथ, फिर गोरखनाथ, जैसे इन गुरुओं की परंपरा चली। लेकिन उनका सारा ज्ञान एक सुरक्षित रहस्य के रूप में रखा गया था, यह एक गुप्त विद्या थी, बिल्कुल संरक्षित रहस्य है, कुंडलिनी के बारे में एक गुप्त ज्ञान है। उन्होंने इसके बारे में कभी बात नहीं की; उन्होंने इसके बारे में कभी नहीं बताया, क्योंकि उन्होंने सोचा था कि, "अभी बस हम इस पर पूरी तरह से प्रयोग करेंगे और फिर हम इसके बारे में लोगों को कुछ विचार देंगे।" लेकिन जैसा कि आप देखते हैं कि हर जगह ऐसा होता है, यहां तक ​​कि हमारे साथ भी कभी-कभी ऐसा होता है कि हमें ऐसे लोग मिलते हैं, जिन्हें बोध नहीं होता है या वे आधे-पके हुए होते हैं और वे बहुत अधिक उत्थान नहीं कर पाते हैं। तब उन्हें बहुत गुस्सा आता है या कभी-कभी वे इस आधे-अधूरे ज्ञान को ले लेते हैं और उस पर काम करना शुरू कर देते हैं और वे इस तरफ या उस तरफ बिल्कुल गलत चले जाते हैं।

उन दिनों में भी ऐसे सभी भयानक गुरु आए थे, लेकिन वे बेअसर रहे क्योंकि लोग आध्यात्मिक रूप से बहुत संवेदनशील थे। आजकल के लोग नहीं हैं। वे बहुत अनाड़ी हैं। उनकी कोई संवेदनशीलता नहीं है। चेहरे से आप जान सकते हैं कि कोई व्यक्ति ऐसा है और कैसा है, लेकिन उनके पास कोई संवेदनशीलता नहीं बची है। वे मुखौटों के बहुत ज्यादा अभ्यस्त हैं। मैंने पूछा, "आज लोग समझ क्यों नहीं पा रहे हैं और उनके चेहरे पर हमेशा mask मुखौटा क्यों होता है? उनमें से कुछ भी अभिव्यक्त क्यों नहीं होता है, ऐसा क्या है? तो किसी ने मुझे एक बहुत ही दिलचस्प जवाब दिया: चूँकि वे समाचार देखते हैं और वे देखते हैं कि समाचार कर्ता इसे पढ़ रहा है और उसके चेहरे पर बहुत रोशनी पड़ रही होती है, इसलिए उसे समाचारों से निर्लिप्त रहना पड़ता है, वह कोई भी भाव या अन्य कुछ भी नहीं दिखा सकता है। जब उन्हें कुछ समाचारों का वर्णन करना होता है, तो उन्हें बिल्कुल निर्लिप्त दिखना पड़ता है। तो उसका चेहरा एक मुखौटा की तरह है और इसीलिए ऐसा होता है।

जो भी हो, जहां तक ​​आध्यात्मिकता का संबंध है, हम वास्तव में अनाड़ी बन गए हैं और लोग इसका लाभ उठाते हैं: इस अनाड़ी व्यवहार या दूसरों के भोलेपन का पूर्ण फायदा लेते हैं। लेकिन इसके लिए आपको किताबों के पास जाने की आवश्यकता नहीं होगी, आपको इसके लिए किसी भी गुरु के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी| यह जिस समाज में आप रहते हैं, उसी की बात है | प्राकृतिक समाजों में, कृत्रिम रूप से थोपे हुए विचारों वाले या भौतिकतावादी वातावरण में पले-बढ़े समाज की तुलना में आध्यात्मिकता के लिए बहुत अधिक संवेदनशीलता है। वे आध्यात्मिकता के प्रति अपनी संवेदनशीलता खो देते हैं जो अनायास है, जो सहज है; चूँकि हम अपनी सहजता खो देते हैं, हम उस स्वाभाविकता-को खो देते हैं, जिसे हम 'सहज' कहते हैं, जिसका अर्थ है 'सहज ज्ञान' - यह जानने के लिए कि कौन वास्तविक व्यक्ति है और कौन असत्य है।

तो इस शक्ति ने स्वयं को धीरे-धीरे गुफाओं में प्रकट होना शुरू कर दिया, बहुत ही गुप्त गुफाओं में जहां केवल एक या दो को वहां जाने के लिए अनुमति दी गयी थी। और पहले उन्हें बहुत बुरी तरह से परखा जाता। मेरा मतलब है कि जिस तरह से उनका परीक्षण किया गया कुछ तो भाग जाते थे! इसलिए सालों तक उन्हें एक शिष्य भी नहीं मिलता जो इस प्रशिक्षण में आने में सक्षम होता था। और लंबे समय में अगर उन्हें एक मिल भी गया, तो वे उस पर काम करेंगे और फिर वह बोध के बिना भी मर सकते थे। तब फिर से उसका पुनर्जन्म होगा, फिर से वह मरेगा, इस प्रकार कि यह युगों तक चलेगा तब तक उन्होंने पाया कि सत्य आपके ही भीतर है, जब तक की वे खुद को पूरी तरह से निर्मल नहीं कर लेते और वे उच्चतर अस्तित्व (स्व) के साथ एकाकार नहीं हो जाते ।

लेकिन यह इतना कम हासिल हुआ कि आप हैरान रह जाएंगे कि धर्म की झेन प्रणाली बिलकुल वही प्रणाली है जो कि, अवधूत की है, जिसे हम नाथ शैली कहते हैं, वही शैली है। और वे कहते हैं कि केवल पैंसठ कश्यप हुए हैं, वे उन्हें कश्यप कहते हैं। पैंसठ, जरा कल्पना करो! छह सदियों में पैंसठ! इसलिए मुझे लगता है कि यह हर सदी में 11 या उतना ही कुछ होगा !

इसलिए ये ही मात्र ऐसे लोग थे जिन्हें बोध हुआ। और यह एक बहुत ही कठिन प्रक्रिया थी क्योंकि वे इस कुंडलिनी को एक बिंदु तक चढ़ा देते थे और यह गिर जाती थी। फिर वे उसे उठाते, फिर बारबार साफ करते और फिर से उसे आगे बढ़ाते। यह कुछ ऐसा होगा जैसे कि एक ऐसी कार को धक्का देना जो चालू नहीं होती है: आप इसे धक्का देते हैं, यह वापस आती है, फिर से आगे बढ़ती है, यह बंद हो जाती है। फिर आप इसे साफ करते हैं और इसे गैरेज में ले जाते हैं, आप देखते हैं कि यह ठीक नहीं है। फिर आप इसे फिर से वापस लेते हैं, इसे धोते हैं, इसे साफ करते हैं, फिर से इसके नीचे आते हैं और इसे फिर से, मशीनरी को फिर से साफ करने की कोशिश करते हैं, यह बिगड़ जाती है। इसी तरह यह चलता जाता है और आप इतने तंग आ जाते हैं कि आप सोचते हैं, "बेहतर है कि इसे पूरी तरह से ठीक होने के लिए कारखाने में वापस जाने दें।" तब उन्होंने इसे फिर से बनाया, इसे वापस रखा और इस तरह यह आगे बढ़ा, इस विकास की गति, बहुत, बहुत धीरे-धीरे।

और उनके इस क्रमिक आंदोलन में ... क्योंकि अगर आप धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं तो आपको कई चीजें दिखाई देती हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप अब एक बैलगाड़ी पर जा रहे हैं - आप लोगों के पास कोई बैलगाड़ी नहीं है, हमारे पास अब भी बैलगाड़ी है। अगर आपको गांवों में जाना है, तो आपको बैलगाड़ी से जाना होगा। और एक बैलगाड़ी की गति शायद दो मील प्रति घंटे या शायद कभी-कभी कम भी होती है, आप देखिये, यह बैल की इच्छा पर निर्भर करता है। यदि वे बीच में बैठ जाते हैं, तो आप नीचे उतर सकते हैं, अपना खाना पका सकते हैं और अपना भोजन बहुत अच्छी तरह से कर सकते हैं, फिर बैलगाड़ी में बैठकर फिर से चलना शुरू कर सकते हैं। यह एक बहुत, बहुत धीमी गति की यात्रा हो सकती है। और फिर जब आप रुकते हैं, तो आप इस थमने से इतने ऊब जाते हैं कि आप बैलगाड़ी से बाहर निकल जाते हैं, इधर-उधर जाते और चीजें देखते। और इस तरह वे चीजों को देखने लगे और उन्होंने उनका वर्णन किया, और बेचारे कभी-कभी इससे इतने परेशान हो जाते थे कि वे नोटंकी (कर्मकाण्ड) करने लगते थे और उनके कर्मकाण्ड ही आजकल 'राजयोग' कहलाते हैं। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि ये कर्मकाण्ड निराशा की उपज और उपलब्ध समय के कारण थे।

लेकिन अब, आज, हालत अलग है क्योंकि मैं कहती हूँ कि, खिलने का समय (बहार का समय )आ गया है। समय आ गया है कि विकास को, जनता जनार्दन का होना चाहिए, साधारण लोगों का होना होगा।

दरअसल यह जन उत्थान बहुत पहले शुरू हो चुका है जैसा कि मैंने कहा, छठी शताब्दी से जब आदि शंकराचार्य ने इसके बारे में लिखना शुरू किया था। ये वही थे जिन्होंने इसकी घोषणा की, जिन्होंने कहा कि यह हमें प्राप्त वह शक्ति जिसे हमें कार्यान्वित करना होगा।

अब लोग आदि शंकराचार्य के बारे में बात करते हैं परन्तु कुंडलिनी के बारे में एक भी शब्द नहीं कहते। ऐसे ज्ञान को आप क्या कहते हैं? आप देखिये कि यही आधार है, शंकराचार्य का आधार कुंडलिनी है, और स्थायी भाव का अर्थ वह भावना है जो इसे पुष्ट करती है - गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण है। लेकिन गुरु को एक वास्तविक गुरु होना चाहिए, ना की पैसा बनाने वाले या औरतखोर वगैरह हैं और ऐसे गालियाँ देते हैं, जो कि गुरु के लिए कभी भी मान्य नहीं हैं। वह इन चीजों से बिल्कुल दूर रहता है। ऐसी सभी चीजें अपराधियों के लिए होती हैं। या मेरे पास कोई उचित शब्द नहीं है, लेकिन आप ऐसे लोगों को भयानक कह सकते हैं। यह सब गुरुओं के लिए यथेष्ट नहीं है, जो सबसे अच्छे फूल हैं, जो भगवान द्वारा बनाए गए सबसे अच्छे लोग हैं; जो इन सभी चीजों में सबसे ऊपर हैं। वे आयोजित नहीं करते हैं, वे कुछ भी नहीं करते हैं, वे बस बैठते हैं और देखते हैं और वे बस आपको परमेश्वर के साथ एक होने की शक्ति प्रदान करते हैं। बस यही उनका काम है |वे हवाई जहाज और कैडिलैक खरीदने में व्यस्त नहीं हैं और कुछ के पास , मुझे बताया गया, रोल्स रॉयस। वे इसके साथ व्यस्त नहीं हैं।

इन गुरुओं ने पहले संन्यास लिया क्योंकि यह बहुत गहन कार्य था, बहुत गहन कार्य की आवश्यकता थी । शुरुआती समय में उन्होंने पूर्ण एकांत को अपना घर बनाया और उनके बच्चे नहीं थे, उनकी पत्नियां नहीं थीं, कुछ भी नहीं। वे बस खोज के लिए खुद को समर्पित करेंगे। यह बहुत पुरानी बारह हजार साल पहले की बात आपको बता रही हूं, लेकिन लगभग आठ हजार साल पहले और राम के समय में, सभी गुरु व्यावहारिक रूप से विवाहित थे। अधिकांश गुरु विवाहित थे। आठ हजार साल पहले की कल्पना करें, आधुनिक समझ में लोग ऐसे पुजारी की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं जो विवाहित हो| उन्होंने जाना कि शादी के बिना संतुलन स्थापित नहीं होता है। आपको एक बहुत ही समझदार विवाहित जीवन जीना चाहिए, और उन्होंने शादी की, और उनके बच्चे और पत्नी थे और वे परिवार सहित छोटे बच्चों की देखभाल करते हुए जंगल में रहते थे। और जब बच्चे वहाँ गुरुकुल में आ गए, तब भी दादा-दादी उनके साथ आए क्योंकि हमें प्राप्त चार आश्रमों के अनुसार, पचास साल की उम्र के बाद के दादा-दादी को आश्रम के पास पोते-पोतियों के साथ रहने के लिए जंगल जाना पड़ता था। और उन्हें बच्चों की देखभाल करना होगी और विवाहित जीवन को भूलना होगा। उन्हें उस समय इसे खत्म करना होगा। पचास साल की उम्र में एक दादा के रूप में प्रमोशन होता है और वह बच्चों की देखभाल करता है। वह अपने विवाहित जीवन की इतनी परवाह नहीं करता है, क्योंकि पति-पत्नी पच्चीस से पचास वर्ष की आयु तक अपने विवाहित जीवन की सुंदरता और समझ की परिणति तक पहुंच जाते हैं।

इसलिए हमारे पास एक विभाजन है कि पच्चीस साल तक शिक्षा प्रणाली है तो पच्चीस साल का जीवन विवाहित जीवन है और पच्चीस साल का जीवन वह जीवन है, जहां, वानप्रस्थ आश्रम कहलाता है, जहां उन्हें अपने पोते-पोतियों के साथ दादा-दादी की तरह रहना था, उन्हें प्यार देंना और उनकी देखभाल करना और यदि वे आत्मसाक्षात्कारी ना हों तथा बोध प्राप्ति चाहते हों तो इस कार्य को कार्यान्वित करना।

तो इस प्रणाली में यह पूरी तरह से सही था क्योंकि बाद में उस उम्र के बाद पति और पत्नी की मृत्यु हो गई, इसलिए वे संन्यास ले लिए, इसका मतलब है कि उन्होंने बस खुद को उदासीन कर लिया और ऊँचे उठ गए। तो जीवन व्यवस्था ऐसी थी कि आपको अपने जीवनकाल में ईश्वर को प्राप्त करना था, आपको इसके लिए काम करना था और उन सभी को इसके लिए कामना करनी थी और उन्होंने इसके लिए काम किया। संपूर्ण जीवन पद्धति का उसी तरह निर्माण किया गया था। बेशक बहुत कम लोगों को बोध हुआ लेकिन उन्होंने बहुत ही धार्मिक जीवन व्यतीत किया ताकि वे इसे अगले जन्म के लिए बनाए रखें और फिर से अगली बार पैदा हो कर के, उन्होंने इसे वहीं से आजमाया जहाँ से वे छोड़ गए थे, उस तरह से फिर से वे और ऊपर गए। यह उस समाज की प्रणाली थी, जो निश्चित रूप से, अब बहुत अधिक पश्चिमी उन्मुख हो गया है और उन्हें लगता है कि आप लोग जीवन में बहुत अधिक सफल हैं इसलिए वे आपके पीछे भाग रहे हैं और आपके जैसा बनने की कोशिश करते हैं।

लेकिन यह इस प्रकार था। लेकिन आज हम देख सकते हैं कि वैसी स्थिति नहीं है, हम बहुत अलग स्थिति में हैं। यह जैसा की वे कहते हैं, एक घोर कलयुग है जहां धार्मिकता का कोई स्थान नहीं है। अगर आप धार्मिकता की बात करेंगे तो लोग भाग जाएंगे। जैसे की आज, आप देखिये, वे किसी विश्वविद्यालय के लिए एक विज्ञापन डालना चाहते थे, और जो महिला वहां पदस्थ थी, वह बता रही थी, "नहीं, नहीं, नहीं, आत्म-साक्षात्कार नहीं है।"

फिर मैंने कहा, "मुझे क्या करना चाहिए?"

उसने कहा, "कुछ मजेदार रखो , देखिये ।"

“सब ठीक है, मजेदार। फिर और क्या?"

"आप ईश्वर की बात नहीं करें, धार्मिकता की नहीं, नहीं।"

फिर मुझे क्या कहना चाहिए कि मैंने सोचा था कि आप आनंद ले सकते हैं और डिस्कोथेक में आ सकते हैं या ऐसा कुछ ? क्या इस तरह से हम उन्हें आकर्षित करने जा रहे हैं? और फिर अन्य सभी व्यक्ति तंग आ गये, उन्होंने कहा, “माँ, हम उनके चरणों में नहीं गिरेंगे। हमें वास्तव में समझदार लोगों की आवश्यकता है, जो लोग अपनी कीमत समझते हैं, जो कुछ ऊँचा हासिल करना चाहते हैं; वे थोड़े लोग हो सकते हैं लेकिन हम इन तुच्छ लोगों के साथ आयोजन नहीं कर सकते। हम इन तुच्छ लोगों के बारे में कुछ नहीं कर सकते। उन्हें जीवन में एक या दो झटके लगने दें। तब वे हमारे पास आएंगे। ” लेकिन आप देखिए, एक माँ के लिए ऐसा सोचना मुश्किल है कि “उन्हें झटका लगने दो। उन्हें बिजली में अपना हाथ डालने दें ताकि उन्हें झटका लगे और अगली बार वे ऐसा न करें। "

आप देखिए, एक माँ के लिए ऐसी स्थिति को स्वीकार करना मुश्किल है।

लेकिन ऐसा है, क्योंकि हमारे पास एक और सज्जन व्यक्ति थे जो एक हिप्पी थे। वह मेरे पास आया और मैंने उसे बोध दिलाने की कोशिश की। फिर में वापस चली गयी और उसने अपनी ड्रग्स शुरू कर दी और वह उसमें बहक गया। फिर बहुत गंभीरता से उसने ऐसा किया। उन्होंने यह इतना अच्छी तरह से किया कि डॉक्टरों ने घोषणा की कि वह चौबीस घंटे के भीतर मरने वाला हैं, आप देखिए उन्होंने पूरा काम बहुत अच्छी तरह से किया। उस ने सभी नशे किये, देखिये, यह इतना था कि,आप एक केमिस्ट की दुकान खोल सकते थे, और उसके पास ऐसी चीजों के ढेर थे। और फिर वह लीवर का सिरोसिस लेकर मेरे पास आया। जिगर, आप देखते हैं, जिगर को सिरोसिस हो रहा था। भगवान का शुक्र है, मेरे पति घर पर नहीं थे, इसलिए मैंने कहा, "ठीक है, अंदर जाओ," और वह तब भी था जब अगले दिन मेरे पति आये थे| उन्होंने उसे बिल्कुल भयानक हालत में पाया। उन्होंने कहा, "अब, अगर आपका इस युवा सज्जन से कोई लेना-देना है, अगर वह यहां मर जाता है, तो पुलिस वास्तव में आपको गिरफ्तार कर लेगी, और आप हत्या के लिए गिरफ्तार होंगी ।" अब आप कृपया उसमें मत जाओ। "

लेकिन हमने उसका इलाज किया और आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे, आठ दिनों के भीतर वह बिलकुल ठीक हो गया और वह आज इतना महान योगी है। अब वह ऑस्ट्रेलिया में है; मैं हमेशा उसे याद करती हूं। और आप जानते हैं, वह भौतिकी का प्रोफेसर था और वह बहुत ही विद्वान व्यक्ति था, लेकिन उसने यह सारी मुर्खता सिर्फ एक कूद में सीधे नरक में जाने के लिए बनाई थी, आप देखिए, और शुरुआत में उसे समझाना बहुत मुश्किल था। लेकिन देखिये, बाद में, उसने मुझे जो बताया वह सबसे ज्यादा चौंकाने वाला था क्योंकि उसने मुझसे कहा था, "माँ, हम में से अधिकांश को ऐसा ही होना चाहिए, अन्यथा हम आपके पास नहीं आएंगे।" अब मेरे लिए यह समझना बहुत अधिक मुश्किल है कि, जो कोई भी खोजी हैं उन पर इतनी विपदा होना चाहिए |

अब आप आश्चर्यचकित होंगे कि उस समय के जो साधक थे, वे आज पूर्व की तुलना में पश्चिम में अधिक पैदा हुए हैं। आप वास्तविक साधक हैं। शायद आपने कभी खुद का मूल्यांकन नहीं किया है, और आपने खोजी की उस संवेदनशीलता को खो दिया है।

यह एक बात सच है क्योंकि जिस तरह से आप ‘गुरु की-ख़रीददारी’ कर रहे हैं, कोई भी यह समझ सकता है कि यह कैसे संभव हो सकता है कि आप बिना सोचे-समझे यहां से वहां जा रहे हैं। लेकिन, देखिये, में कहूंगी चूँकि आप खोज रहे थे, आप चाह रहे थे, आप किसी पर भी झपट पड़े, फिर आप एक दूसरे के पास गए, फिर तीसरे पर कूद गए, बस वह अहसास पाने के लिए, जो आप चाह रहे थे। ।

और यह एक से दूसरे में कूदना वास्तव में बहुत, बहुत गलत हुआ है क्योंकि इसके द्वारा आप निश्चित रूप से अपनी कुंडलिनी को अस्त-व्यस्त कर चुके हैं। इन लोगों के बारे में सबसे खतरनाक बात यह है कि उन्होंने आपकी कुंडलिनी के मार्ग को विचलित कर दिया, जिसे आप जानेंगे ; जब आपको आत्मसाक्षात्कार होगा, आपको पता चल जाएगा। ये सभी गुरु, आपको कैंसर जैसी बीमारियों देने के अलावा आपके चक्रों को नष्ट करने वाले, आपकी कुंडलिनी को नष्ट करने वाले हैं। मैंने आपके चक्रों में बड़े छेद देखे हैं। मैंने कुंडलिनी में जले हुए भाग देखे हैं। मैंने लोगों के निजी अंगो की भयानक विकृतियों और अंग-भंग को देखा है क्योंकि आप इसे चक्र पर देख सकते हैं, यह निचला अंतिम चक्र, जो आपके निजी अंगो के साथ काम कर रहा है, आप देखते हैं, कि उन्होंने वास्तव में आपको पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है, इस हद तक यह मुझे अपूरणीय लगता है, लेकिन फिर भी, हम इसे कार्यान्वित करने और इसे पूरा करने के लिए अपने स्तर पर पूरी कोशिश करेंगे।

मैं आपसे केवल खुलेपन और थोड़े तनावमुक्त रहने का अनुरोध करूंगी। जैसे किसी का सात बजे का किसी भेंट का समय निश्चित किया हुआ है, इसलिए वह मेरे कार्यक्रम में छह से सात - भाग लेने आता है, माताजी का व्याख्यान। सात से आठ, तीसरा व्याख्यान। आठ से नौ, एक और व्याख्यान। ऐसा व्यक्ति सहज योग के लिए अच्छा नहीं है।

आपको खुद के साथ धैर्य रखना होगा और सहज योग के साथ धैर्य भी रखना होगा क्योंकि कुछ संत लोग जो जंगलों से हैं और जो सार्वजनिक खुले में नहीं हैं, जो लंदन या अमेरिका नहीं आते हैं, इन लोगों ने कितने ही सहज योगियों को कहा है कि, “हम नहीं जानते कि माताजी आपको ये वायब्रेशन क्यों दे रही हैं। आपने इसकी पात्रता के लिए किया ही क्या है ?" सभी प्रकार के प्रश्न और वे काफी ईर्ष्यालु हैं और वे यह भी नहीं समझ पाते हैं कि ये सहज योगी कुंडलिनी को इतनी आसानी से कैसे उठा सकते हैं।

तो कोई कह सकता है कि यह हो रहा है और यह वहां है, आप सभी को यह पाना चाहिए क्योंकि आप साधक हैं और यह आशीर्वाद दिया जाना था, पुराणों में भी वादा किया गया है, यह कहा गया है कि वे संत जो पहाड़ियों और कंदराओं में परमात्मा को खोज कर रहे हैं उनको कलियुग में, इस समय, आधुनिक काल में आशीर्वाद दिया जाएगा और वे साधारण गृहस्थों के रूप में जन्म लेंगे और उन्हें अंततः सत्य मिलेगा, यह एक सच्चाई है। आपको इसे देखना ही होगा। और कोई फायदा नहीं, मुझे बताया गया कि कुछ लोग जासूसी के लिए यहां आ रहे हैं। मैं कहती हूं, "वे क्या जासूसी कर रहे हैं?" आप देखिए, यह आपके भले के लिए है। इस चीज में जासूसी करने के लिए क्या है? यह सब बहुत खुला है। यह आपकी भलाई के लिए है, आपकी बेहतरी के लिए है, आपके अपने जीवन के लिए है।

किसके लिए जासूसी कर रहे हो? वे आपको क्या देने जा रहे हैं, पागलपन? वे आपके सारे पैसे छीन लेंगे। एक माँ के रूप में मुझे आपको बताना चाहिए, आपको सावधान रहना होगा। वे आपको जासूसी के लिए कुछ पैसे दे सकते हैं लेकिन उस थोड़े से पैसे को पाने के लिए, आपकी आत्मा को खो कर सभी झूठे वादों का क्या फायदा। सबसे अच्छी बात यह है कि इसे अपने भीतर, अपनी शक्तियों के साथ प्राप्त करें और स्वयं को जानें और जानें कि आपका स्वार्थ क्या है और इन सभी निरर्थक चीजों जैसे कि धर्मयुद्ध और जो कुछ इसे आप कहते हैं, उसके लिए खुद को बर्बाद नहीं करना चाहिए।

लोगों ने बाइबल में, कुरान में, वेदों में, जो भी ज्ञान था उसका दुरुपयोग दूसरों का शोषण करने के लिए किया है, यह बहुत दुखद है लेकिन इंसान ऐसे ही है, वह वास्तव में ऐसा ही है। इसलिए हमें बहुत, बहुत सावधान रहना होगा और हमें यह समझना होगा कि हमारे पास अपनी शक्ति होनी चाहिए।

अगर मैं बहुत शक्तिशाली हूं तो क्या उपयोग है? क्या फायदा? यदि सूरज बहुत शक्तिशाली है, तो क्या फायदा है जहाँ तक और जब तक यह हमारे लिए कुछ अच्छा नहीं करता है? माना कि, मेरे पास यह सब चलाने के लिए शक्ति है, तो क्या उपयोग है? आपके पास अपनी शक्तियाँ होनी चाहिए। आपको अपनी शक्तियों को महसूस करना चाहिए। आपको अपनी शक्तियों का उपयोग करने में सक्षम होना चाहिए। यही आप को मांगना चाहिए। सहज योग का यही मुख्य विषय-वस्तु है: यह आपकी खुद की शक्ति है जो प्रकट होने लगती है।

इसलिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद। मुझे आशा है कि व्याख्यान आपके लिए बहुत बड़ा नहीं था। लेकिन आज मैं सिर्फ यह सोच रही थी कि आज मैं आपको इस गुरु वंश के बारे में बताऊंगी क्योंकि इस पथ पर दर्जनों से गुरु हैं। आपको पता होना चाहिए कि असली गुरु क्या है। और वे कैसे आए और उनका काम क्या था।

एक और बात मैं आपको बताना चाहूंगी कि [खराब ऑडियो ५१:२६] यहां दो और छोटे चक्र हैं, एक सूर्य से सम्बंधित है, सूर्य केंद्र और दूसरा बाईं ओर चंद्रमा केंद्र के रूप में है। और ये दो शासित हैं या, हम कह सकते हैं, दो महान लोगों द्वारा प्रदत्त है जो शिष्य तत्व हैं। और शिष्य तत्व पहले, श्री राम और श्री सीता से लव और कुश के रूप में पैदा हुए थे। और फिर उन्होंने कई बार शिष्य के रूप में अवतार लिया| हम कह सकते हैं, उनमे से एक हैं शंकराचार्य ,दुसरे हैं कबीर इस प्रकार|

तब हम कह सकते हैं, जैसे बाद में, शंकराचार्य से पहले, वे बुद्ध और महावीर के रूप में आए थे। फिर शंकराचार्य और फिर मैंने आपको बताया, हसन और हुसैन का आगमन हुआ, जो पैगंबर के पोते थे। इसलिए ये अवतार लेते रहे हैं और वे एक तरफ से दूसरी तरफ जाते रहे हैं और लोगों से कहते रहे हैं कि "यह चरम है, इसे छोड़ दो, यह चरम है, इसे छोड़ दो। मध्य में आओ और मध्य में रहो। ” यही उनका काम रहा है और वे ही हैं जो आपको जागरूकता प्रदान करते हैं ताकि आप आदर्श शिष्य बन जाये।

और यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु है क्योंकि यह काफी बार आता है जिसे कि हम समझ नहीं पाते: जैसे पैगंबर मोहम्मद ने कहा कि "मैं आखिरी पैगंबर हूं।" ठीक है, उन्होंने कहा कि वह अंतिम नबी थे। मान लीजिए कि मैं कहती हूं, मैं यहां आने वाली आखिरी व्यक्ति हूं। ठीक है, मैं आपको डराने के लिए कहूंगी कि बेहतर हो आप इसे तरीके से अपना लें अन्यथा यह आखिरी बार है जब मैं आपको बता रही हूं। लेकिन ऐसा कभी नहीं है क्योंकि देखिये, जब वह मर गये तो उन्हें पता चला कि, ये लापरवाह लोग हैं। "मैंने उन्हें इस तरह ऐसा नहीं बताया था, तो मेरे साथ वे क्या कर रहे हैं?" इसलिए उन्होंने कहा, " बेहतर तरीका है कि,मैं फिर से जा रहा हूं," और वह नानक के रूप में आए और उन्होंने उन्हें बताया कि "हिंदू और मुसलमान समान हैं एक ही धर्म का पालन करते हुए समान व्यक्ति हैं, आपस में क्यों लड़ रहे हैं?" वह उस एकता के लिए आये थे।

फिर नानक के रूप में वह आया; इसलिए नानक की व्यवस्था में भी सिख धर्म आया और उन्होंने एक योद्धा वर्ग और यह और वह शुरू किया। मेरा मतलब है कि कल्पना करें कि, मुसलमानों और हिंदुओं के बीच युद्ध होने से सिख धर्म समाप्त हो गया।

तो फिर वह उन्हें शिक्षा देने के लिए शिरडी साईं नाथ के रूप में आया। अब यह बहुत महत्वपूर्ण बात नहीं है जैसे कि, मोहम्मद साहब ने कहा, "मैं आखिरी हूँ।" माना कि, वह अंतिम है, ठीक है, यहां तक ​​कि स्थिति ले लो। उसके लिए आप कौन हैं? तुम कैसे संबंधित हो? किस माध्यम से? आपका अधिकार क्या है? आप उसे अपने लिए कैसे हथिया लेते हैं? क्योंकि आप कहते हैं कि आप मुसलमान हैं। तो क्या? आप मुसलमान कैसे बने? क्या आपको खुदा से अपना प्रमाणपत्र मिला?

जैसे ईसाई हैं, आप देखिए। वे कहते हैं, "हम ईसाई हैं।" वे कैसे है? उनका बपतिस्मा लिया जाता है। कैसे? वे चर्च जाते हैं, कोई हाथ रखता है। वह कौन है? क्या वह भगवान द्वारा अधिकृत है? क्या वह वास्तव में आपकी फॉन्टानेल हड्डी भेद देता है? क्या वह वास्तव में आपको आशीर्वाद देता है? वह सिर्फ भगवान को अपने लिए हथिया रहा है। वे कैसे ईश्वर से संबंधित हैं? मैं नहीं समझ पाती वे ईसा-मसीह के नजदीक भी कहीं नहीं हैं, मैं इसे स्पष्ट रूप से देख सकती हूं। अगर वे होते तो कुछ और कर रहे होते। उन्होंने लोगों को आत्मसाक्षात्कार दिलाया होता और उन्हें दूसरा जन्म दिया होता जैसा कि, ईसा- मसीह ने बार-बार कहा था कि "आपको फिर से जन्म लेना है।" मैं शाश्वत जीवन की बात कर रही हूं, न कि चर्चों के आयोजन और इतना मुनाफा कमाने का यह जीवन कि, लंदन का आधा हिस्सा चर्च का होना चाहिए।

ऐसा ही हिंदुओं के साथ भी, एक और तरह के मूर्ख लोग। किसी को लगता है कि उन्होंने इसे व्यवस्थित ढंग से नहीं किया है इसलिए यह आगे नहीं बढ़ सकता है। यहां तक ​​कि शंकराचार्य में से एक है, वह पैसा इकट्ठा करने की कोशिश कर रहा है।

मैंने कहा, " यह व्यक्ति, वह किस लिए पैसा इकट्ठा कर रहा है, ?"

उन्होंने कहा, “ओह, नहीं। वह चाहता है, अब वह कोशिश कर रहा है, आप देखिए, एक तरह से, अपने पोप के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। ” इसलिए वह शुरूआत करना चाहता है, वह सोने का एक छत्र, सभी कीमती पत्थरों से जड़ा हुआ रखना चाहता है। वह एक बौना सा व्यक्ति है। मुझे नहीं पता कि वह अपने चारों ओर उस बड़ी छतरी के साथ कैसा दिखने वाला है।

ऐसे सभी लोग दावे करते हैं। यह एक ऐसा घोटाला है। आपको क्या अधिकार मिला है? यह कुछ ऐसा है जिसे मैं नहीं समझ पाती हूँ । हर कोई धार्मिक कॉलेज में जाता है। वह कॉलेज में ईश्वर को कैसे सीख सकता है? क्राइस्ट किस कॉलेज गए थे? मेरा मतलब उन सभी बातों से है, जब आपके सामने ईसा-मसीह है तो आप आकलन उनके मानकों के अनुसार क्यों नहीं करते? क्राइस्ट किस कॉलेज में गए? कौन सा थियोलोजिकल कॉलेज? अगर वह था, अगर उन्हें वहीं आना पड़ता, तो लोग कहेंगे कि वह किसी काम का नहीं है। वे उसे फिर से जेल में डाल सकते हैं। और अमेरिका में तो यकीन है, क्योंकि अगर आप अमेरिका में किसी का इलाज करते हैं तो आप जेल में जाते हैं। यह ऐसा है।

इसलिए यह पूरा घोटाला किया गया है। इस जागरूकता के द्वारा, आपके द्वारा महसूस की गई वाइब्रेटरी जागरूकता से, आपको पता चल जाएगा कि आप के साथ गड़बड़ नहीं की जा सकती हैं, जिसके द्वारा आप वह बन जाते हैं।

एक बार जब आप वह बन जाते हैं, तो आप इसे महसूस कर सकते हैं, जो चैतन्य आप में बह रहे हैं, आप अपने हृदय से उन स्पंदनों को उत्सर्जित होते हुए महसूस कर सकते हैं क्योंकि आत्मा जागृत है और यह आप महसूस कर सकते हैं और आप उस स्पंदनात्मक जागरूकता को प्राप्त करते हैं जिसके माध्यम से , जैसा की आप हाथों पर देखते हैं, आप अपने चक्र महसूस कर सकते हैं|

वह आत्मबोध है: अपने बारे में जानना और दूसरों के बारे में भी जानना। यह सिर्फ एक सेकंड में, एक सेकंड के भी विभाजन में हो सकता है। कुछ लोगों के साथ समय लगता है, कोई बात नहीं है। मेरे पास धैर्य है, आप भी धैर्य रखें । मैं यहाँ केवल इस कार्य के लिए हूँ और मैं यहाँ वर्षों रहने वाली हूँ। अब मुझे उम्मीद है कि कम से कम कुछ वर्षों के लिए और हम इसे कार्यान्वित करने जा रहे हैं।

इसलिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद। अब यदि आपको कोई प्रश्न पूछना है, तो कृपया मुझसे थोड़े समय के लिए पूछें क्योंकि तब हमें कार्यशाला में जाना चाहिए।

श्री माताजी: हां ... थोड़ा जोर से।

प्रश्न: [INAUDIBLE]

श्री माताजी: आने वाला अवतार कल्कि है, जैसा कि वे इसे कहते हैं, कल्कि वह है जिसका अर्थ है निष्कलंक , जिसका अर्थ है कि जो निर्दोष है, उस व्यक्ति पर कोई दोष नहीं है, आप उस पर दोष नहीं लगा सकते। यदि आप ऐसा करने की कोशिश करते हैं, तो आप नष्ट हो जाएंगे। लेकिन यह एक आखिरी छंटनी करने के लिए आने वाला है। आपके पास यह समझाने के लिए कोई भी नहीं होगा, आपको यह बताने के लिए कि, "अपना बोध प्राप्त करें," ऐसा कोई भी नहीं। आप देखिए, वह बस पूरी फसल कटने के बाद हमारे पास आएगा, फिर उसकी आखिरी कटिंग। वह बस उसी के लिए आ रहा है; वह आपसे बात करने वाला नहीं है; वह तुम्हारी सुनने वाला नहीं है, कुछ करने वाला नहीं है।

इस से उस तक का समय कम है, इसलिए आप बेहतर तरीके से अपने आप को व्यवस्थित आकार में बना लें और अभी उसके आने की मांग करें क्योंकि यह बहुत जल्दबाजी होगी। बस अब आप सभी को नाव में सही तरीके से बैठने की अनुमति दें, हमें पार हो जाने दें और फिर उसे आने दें, क्योंकि वह ग्यारह शक्तियों के साथ आ रहा है, जिसे एकादश रुद्र के रूप में जाना जाता है। वे सभी यहां आदि पुरुष के सिर में रखे गए हैं और वह इन सभी को इतने जबरदस्त तरीके से अभिव्यक्त करेगा कि आपको पता नहीं चलेगा कि लोग कैसे नष्ट हो जाएंगे, और विनाश सबसे खराब प्रकार का होगा जो भी आपने कभी देखा हो इसलिए परिपक्व होने की कोशिश करो; फल बनो और परमेश्वर के राज्य में रहो। ठीक है। धन्यवाद।

हाँ, मेरे बच्चे ?

प्रश्न: आपका गुरु कौन है?

श्री माताजी: कोई नहीं। मेरा कोई गुरु नहीं है, मैं एक माँ हूँ मुझे किसी भी गुरु की आवश्यकता नहीं है और मैं युगों से अब ऐसी ही हूं। मैं बहुत प्राचीन हूँ।

प्रश्न: [INAUDIBLE]

श्री माताजी: यह मेरा अपना है। मेरे पास कोई गुरु नहीं है, न ही कभी मेरे पास था, लेकिन मेरे पास गुरु है, मैं उसे दत्तात्रेय के रूप में कहती हूं, यदि ऐसा है, लेकिन वह भी मेरे भीतर है। मेरे पेट में गुरु है। आप यह प्रश्न पूछते हैं, "माँ, क्या आपका कोई गुरु है?" बस अपने हाथ में यह सवाल पूछें, और आप इसे जान जाएंगे। मुझे जानना इतना आसान नहीं है क्योंकि मैं बहुत मायावी, बेहद मायावी व्यक्ति हूँ जिसके बारे में आप सोच सकते हैं, आप देखिये। इसलिए बस अब आप सिर्फ अपने आप को जानिए। ठीक है? जब आपके पास वैसी जागरूकता होगी, तो आप मुझे जान जाएंगे। ठीक है?

प्रश्न: [INAUDIBLE]

श्री माताजी: क्योंकि आपके पास मुझे जानने के लिए वे आँखें नहीं हैं। अच्छा सवाल भी। ईसा मसीह के गुरु कौन थे? कौन था? उनकी अपनी माँ।

तो, क्या कोई और प्रश्न?

प्रश्न: [INAUDIBLE]

श्री माताजी: सही है। बिल्कुल यही ... बहुत सही, हाँ। नहीं, हाँ। तो इसमें आपका क्या सवाल है? ठीक है, मैं आपको एक बात बताऊंगी कि, आप देखिये, यदि आप इन मंदिरों और स्थानों पर जाते हैं, जहां आपको लगता है कि वे गलत काम कर रहे हैं या नहीं। अब जैसा कि मैंने आपसे पहले भी कहा है कि एक ऐसा व्यक्ति जो ईश्वर का प्रतिनिधित्व करता है या यह कहता है कि वह ईश्वर है या उसके पास ईश्वर की शक्ति है, उसे केवल एक ही काम करना चाहिए, वह यह है कि वह आपको ईश्वर से जोड़ने में सक्षम होना चाहिए, यह सब, बाकी चीजें बिल्कुल बेकार हैं। अगर वह आपको भगवान से नहीं जोड़ सकता है तो वह बिल्कुल बेकार व्यक्ति है।

उदाहरण के लिए हमें एक व्यक्ति मिलता है जो कहता है कि वह महारानी का सचिव है, महामहिम महारानी का, तो वह हमारे लिए कम से कम एक उनसे मुलाकात का नियुक्त समय लाने में सक्षम होना चाहिए अन्यथा हम कैसे मानें कि उसके पास कोई अधिकार है? अब यदि आप कहते हैं कि लोग चीजों पर विश्वास करते हैं और यह कि [INAUDIBLE] अब, आप देखते हैं, किसी चीज पर विश्वास ने आप को कहीं नहीं पहुंचाया है, देखिये कि यह अंधापन है, इसके विपरीत इस तरह के अंधापन के कारण पूरा शोषण हुआ है। आपने हमारे देश में या कहीं भी देखा है, आप पूरी तरह से शोषित हैं। आपको यह महसूस नहीं होता है कि इन संगठनों द्वारा आपका कितना शोषण किया जाता है जो दावा करते हैं और दावा करते हैं कि भगवान उनके साथ हैं या वे भगवान की सेवा कर रहे हैं। उन्हें केवल एक चीज करना चाहिए कि, आप को परमात्मा से जोड़ने के तौर-तरीकों का पता लगायें। अगर वे ऐसा नहीं कर सकते हैं तो व्यक्ति को जानना चाहिए कि उन लोगों के साथ कुछ गड़बड़ है। उन के पास किसी प्रकार का कोई अधिकार नहीं है।

प्रश्न या टिप्पणी: [INAUDIBLE]

श्री माताजी: आयोजित कर सकते हैं? नहीं, कदापि नहीं। वे नहीं कर सकते। यह एक बच्चे का खेल चल रहा है? वे नहीं कर सकते। आप देखिए, आप ईश्वर को आयोजित नहीं कर सकते, आपके पास अधिकार होना चाहिए, कम से कम आपको एक आत्मसाक्षात्कारी होना चाहिए, भगवान के साथ जुड़ा हुआ। जैसे, माना कि,यह माइक मुख्य बिजली के साथ जुड़ा हुआ नहीं है, ठीक। आप क्या इसे व्यवस्थित कर सकते हैं? बेहतर तरीका होगा की आप इसे वहाँ जोड़ दें , क्या ऐसा नहीं है? अन्यथा आप इसका उपयोग नहीं कर सकते। आप और क्या कर सकते हैं?

मान लें कि यह मुख्य बिजली के साथ जुड़ा नहीं है, यह काम नहीं कर रहा है, यह सब सरल है। आप सब कुछ करने की कोशिश करते हैं, आप संगठित होते हैं, आप एक समिति का आयोजन करते हैं, कई लोगों को इसकी योजना बनाने के लिए लाते हैं, पर यह तब तक काम नहीं करता है, जब तक कि आप इसे मुख्य बिजली से नहीं जोड़ देते हैं। तथाकथित, तथाकथित बपतिस्मा व्यर्थ है, लेकिन असली बपतिस्मा वहाँ है, कुंडलिनी चढ़ जाती है, आपको आश्चर्य होगा कि यह तालू भाग बिल्कुल नरम हो जाता है, बिल्कुल एक बच्चे की तरह। वास्तविक अनुभूति जरूरी है, अगर वे इसे वास्तव में महसूस नहीं कर सकते, तो वे क्या कर रहे हैं? यह ऐसा है, जैसे आप देखते हैं, आप लोगों को निमंत्रण भेजते हैं, "कृपया आओ और हमारे साथ रात्रि भोज करो और हमारे साथ करो और हमने बहुत अच्छा रात्रिभोज और सब कुछ आयोजित किया है," तुम वहां जाते हो वहाँ तुम एक मेज को बहुत अच्छी तरह से बिछा पाते हो और सब कुछ वहाँ है, वे कहते हैं कि आप कुर्सी पर बैठिये और वह सब, और फिर वे कहेंगे "क्या आप खाएंगे?" और कोई रात्रि भोज नहीं है, कुछ भी नहीं, क्या मतलब है? वे कहते हैं, "यह बहुत स्वादिष्ट रात्री भोज है।" हर कोई एक दूसरे को देखता है, "हाँ, होना चाहिए।" आप देखते हैं, एक व्यक्ति सोचता है कि "शायद हम अंधे हैं, आप जानते हैं, शायद हम थोड़ा मूर्ख हैं, हम ऐसा नहीं कर सकते।" तुम देखो, तो ये तो ऐसा ही होगा, आप देखिये।

Caxton Hall, London (England)

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