Seminar Day 1

Seminar Day 1 1975-02-13

Location
Talk duration
32'
Category
Public Program
Spoken Language
Hindi

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13 फ़रवरी 1975

Public Program

मुंबई (भारत)

Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft

स्वागतम! यह धर्म की जागरणा जिसे हम कुंडलिनी के नाम से जानते हैं वो किसी भी अभ्यास से, किसी भी प्रयत्न से, पैसे से, मेहनत से, प्रभाव से ऐसे किसी भी बाह्य कारणों के कारण नहीं होगी। हर एक धर्म में अपने अपने अलग अलग तरीके से कुंडलिनी जागरण के प्रकार बनाई गए हैं। जैसे मुसलमानों की नमाज़् जो है, ये पूरी कुंडलिनी जागृती की ही एक व्यवस्था है।

पूरी तरह से, इस तरह से हाथ रखना, नीचे झुक जाना, फिर सर के बल खड़े होना, कान को पकड़ लेना, कान में उंगलीयां डालना, आदी सब कुंडलिनी के जागरण की ही एक व्यवस्था है; लेकिन सब मेकेनिकल है, आर्टिफ़िशियल है, जैसे की हर एक पुर्जा मेकींग का शक्ति के बगेर नहीं चल सकता है, इसी तरह से हमारे अंदर की जो शुप्त चेतना है, इसे हम कुंडलिनी के नाम से जानते हैं, ये भी जागूत नहीं हो सकती है, किसी भी मनुष्य के प्रयत्न से या किसी भी किसी आर्टिफिश्यल साधन से। इसी प्रकार इसाईयो की जो प्रार्थना है, इसमैं भी कुंडलिनी के जागरण की व्यवस्था है, कि शुरुआत से ही जिस वक्त बच्चे को दीक्षा देते हैं, उसे बाक्षाई कहते हैं।

इसामसीह के पहले धर्म की, जब लोगों को दीक्षा देते थे, तो उनको नदी के अंदर ही डुबो देते थे, और आप अभी जानते हैं कि रियलाजेशन के बाद भी नदी में जाने से आप लोग कितना आराम पाते हैं। लेकिन उनको डुबोने वाले कोई रियलाईज सोल नहीं थे, उनको धर्म बताने वाले कुछ पहुंचे हुए लोग नहीं थे, वो भी ऐसे आर्टिफिश्यल सब काम करते हैं, लाये कुछ को डुबो दिया, रख दिया, सोचते थे कि हो गया बड़े भारी उसमें, उन्होंने धर्मीक कार्य कर दिया और दीक्षा दे दी। उन्होंने भी जो कमिलियन करके क्रिश्चयन होता है, जिसमें कि वो शराब, हालांकि वो शराब नहीं होती, द्राक्ष रस होना चाहिए, उसको वो शराब बना दिया।

और बोती, दो चीज़े वो सबको देते हैं, कि आप खाईए। यह आप जानते हैं, कि हम लोग भी नाभी चक्र को खोलने के लिए आपको पानी देते हैं, और कुछ खाने की सलाह देते हैं। यह भी नाभी चक्र को खुलवाने की व्यवस्था है। और अपने हिंदु धर्म में तो सदियों से कुंडलिनी जागुर्ती के ही सारे विकल्प बना गए थे, किन्तु उनका सबसे सुंदर स्वरूप कृष्ण के अवतरण मैं ही हमको दिखाई दिया। जैसे कि कृष्ण का मक्खन चुराना और सब को अपने साथ बांध लेना, उनका मतलब यह था, कि उनकी नाभी चक्र से सब लोग बंध गए, तो वो भी सबका नाभी चक्र साफ कर देंगे।

राधा जी का जमना में जाकर पानी भरना, इसका मतलब यह था, कि जमना जी का जल वाईब्रेट हो जाए, और जब वो अपने सर पे गागर रखें, तो कृष्ण जी उसको पीछे से मारेंगे, तो वो जो पानी उनके पीठ पे से गिरेगा, तो फिर से वो जो पानी डबल वाईब्रेट हो कर के कुंडिलिनी से जमीन पर जाएगा, तो वो सारी धर्ती मैं वाईब्रेट हो जाएगी, कितना बड़ा हिसाफ किताब बनाया हुआ था; वो राधा जी के ही बसका था, सबसे बसका नहीं था। और फिर गोपीयों का पनघट पे जाना, इसका महत्व बहुत है हमारे यहाँ। कृष्ण जी के अवतार में, ऐसी ऐसी क्या बाती थी, इसलिए पचासो काम गोपीयां करती थी, उनका पनघट से पानी लाना भी बहुत विशेष माना जाता था। इसका प्रतीक यह है, कि जमना जी के पानी में राधा जी अपने पाँव डाल के बैठ जाती थी, उससे वहाँ का पानी वाईब्रेट हो जाता था, और वो अपने घड़ों में भर-भर के गोपीयां अपने घरों मैं ले जाती थीं जिससे की उनके नाभि चक्र आदि खुल जाते थे। रास लीला भी सीधे सीधे और कुछ नहीं था, सहजयोग है। आपने देखा है की मैं कभी कभी कहती हूँ की सब लोग हाथ पकड़ कर बैठें। यह बेचैनी की चीज नहीं है, हमारे सहजयोग मैं बहुत से लोग बड़ी बेचैनीतम हो जाते हैँ, बेचैनी से भी कुछ करने लग जाते हैँ; यह बिल्कुल बेचैनी की चीज नहीं है। बहुत ध्यान पूर्वक हरेक ऐक्शन को आपको समझ लेना चाहिए कि इसका अर्थ क्या है और और जो करने से आप नाभि चक्र को आप आराम दे रहे हैं। हमारे शरीर मैं जितने भी चक्र हैं, उन सभी चक्रों मैं हमारी शक्तियां निहित हैं। और जब हम उनको उपयोग मैं लाते हैँ तो वो चक्र कमजोर हो जाते हैं, निहित ये शक्तियां चली जाती हैं। एक ही नाड़ी ऐसी है, सुषमना नाड़ी, कि जिसके अंदर की शक्ति कुंडिलिनी बनकर खिच जाती है और उसको हम उपयोग मैं नहीं ला सकते; हरेक चक्रपर बैठे हुए इष्ट देव, इष्ट देवियाँ जो, जब हम अपने चक्रों मैं से उस शक्ति को खर्च करते हैं और खत्म करते जाते हैं तो एक दशा ऐसी आती है कि वहाँ की शक्ति पूरी तरह से खत्म हो जाती है, और तब वो जो देव हैं वहाँ पर वो शुप्त हो जाते हैं, सो जाते हैं, विलुप्त हो जाते हैं या क्रुद्ध हो जाते हैं। ऐसी दशा मैं ही वहाँ पर कैंसर जैसी बीमारियाँ शुरू हो जाती हैं। किसी भी चक्र को अच्छे से उपयोग में लाने के लिए ही ये चक्र, आस पास की जगह अपने चक्र से पल्लवित करता है; इससे जो सारे शरीर की पिंडलियाँ हैं वह इससे पीड़ित हो जाती हैं। लेकिन हम को तो इस्तेमाल करना ही पड़ता है इस शक्ति को, और हर हालत उस शक्ति का उपयोग होना ही पड़ता है। इसलिए धर्म जैसे मामले में जब हम इसे इस्तेमाल करने लगते हैं तो हमारे धर्म की शक्ति भी समाप्त, खर्च हो जाती है। इसी प्रकार किसी भी चक्र से हमारी शक्तियां खत्म हो जाती हैं; जैसे कि मंत्र का जप करना, मंत्र का जप करने से, जैसे कि ये वाणी होती है, जिसे की हमें कहना चाहिए की वहाँ से आवाज निकलती है, और जब हम एक साथ जब हम मंत्र को बोलते रहते हैँ तो हमारे यहाँ की शक्ति बहुत ही क्षीण हो जाती है, और आपको आश्चर्य होगा कि यह कृष्ण का जो स्थान है, जिसे हम विशुद्धि कहते हैं, और जो लोग राधा कृष्ण का नाम सुबह से शाम रटते रहते हैं, उन्हीं का खराब होता है। बड़ा ही आश्चर्य है कि नाम तो आप लोग राधा कृष्ण का लेते हैं और आपका विशुद्धि चक्र खराब है। बहुत से लोग शिव जी का नाम लेकर जपते रहते हैँ, और मैंने अभी तक, आज तक तो ऐसा देखा नहीं कि जो लोग रियलाइजेशन से पहले शिव जी का नाम लेते हों और उनका हृदय चक्र ना पकड़ा हो। इससे ये मालूम पड़ता है कि इस प्रकार आपका विशुद्धि चक्र भी पकड़ा जाएगा और आपका हृदय चक्र भी। इसी प्रकार हर तरह की गलती हमसे होती रहती है क्योंकि अन्यथा कोई चीज कोई थोपता है तो (अस्पष्ट: 10.58-11.54) और हमारी शक्तियां खींच रहीं हैं, और कभी कभी ऐसी खींच जाती है की (अस्पष्ट: 12.0-12.38) और कौन सा दरवाजा बंद कर दिया है, और दरवाजा जब पीछे से खुलेगा (अस्पष्ट: 12.42-13.47) यही हाल प्राणायाम आदि सभी प्रयत्नों का है। जो लोग हठ योग करते हैं, या जो लोग कहते हैं कि हम हठ योग कर रहे हैं; सब लोग हठ योग नहीं कर सकते। क्योंकि हठ योग का मतलब होता है ‘ह’ और ‘ठ’ दो नाड़ियाँ। ‘ह’ नाड़ी होती है जिसको हम इड़ा नाड़ी कहते हैं, उसका का तो वो लोग करते हैं की पूरे नाड़ी पर जो प्रयत्न करना है वो करते हैं पर ‘ठ’ नाड़ी पर उतरना बहुत कठिन होता है। ‘ठ’ नाड़ी जो है वो चंद्र नाड़ी और चंद्र नाड़ी पर उतरने का मतलब होता है कि आप अपने मन से परे उतर सकते हैं। जो लोग कुछ जो चंद्र नाड़ी पर उतरते हैं वो तो भूतो की विद्या सीख लेते हैं, और जो इड़ा नाड़ी पर चलते हैं वो अहंकारी राक्षस हो जाते हैं। या अहंकारी बड़े भारी ऋषि हो जाते हैं, जिनको आप तेजस्वी कहिए लेकिन वो किसी का कल्याण या पुण्य नहीं कर सकते। वो किसी का उद्धार नहीं कर सकते, किसी को श्राप दे सकते हैं। इसलिए धर्म के मामले मैं भी बहुत से गल्तियाँ हो गईं। होती रहतीं हैं, और इस वजह से जो आदमी हमें बाहर से बारीक मालूम पड़ता है वो पार नहीं होता, और जो आदमी अबारिक लगता है वो खट से पार हो जाता है। सत्य चीज क्या है, बोलेंगे की एक तो आंतरिकता कम है या इच्छा कम है; दोनों मैं फर्क क्या है इसको समझ लेना चाहिए। एक आदमी का चित्त तो पूरी तरह उलझा हुआ है और दूसरे का चित्त जरा हल्का है। अब एक आदमी का ये चित है कि शनिश्चर का मैं उपवास करूँगा, अब अगर शनिश्चर को उसका उपवास नहीं हुआ तो इसको कम से कम सारे हफ्ते नींद नहीं आएगी; ऐसा आदमी कभी नहीं पार होगा, आप शनिश्चर को उपवास रखें और चाहे आप रविवार को करें, भगवान को क्या! वो तो आपको क्या उपवास करने के लिए पैदा किया है क्या; लेकिन आपको खाने के लिए भी नहीं पैदा किया। जिस आदमी का चित्त तो खाने के ओर इस लिए है कि उपवास करना है और नहीं तो उसे खाते ही रहना है रात दिन खाने के बारे मैं ही सोचना है; दोनों का चित गया बीता है। फिर बहुत से लोगों का ऐसा भी है कि सवेरे चार बजे उठना ही चाहिए, चाहे दुनिया इधर से उधर हो जाए और जिस दिन वो चार बजे नहीं उठा तो पाँच बजे से सबका सर पर उठा होना छुप कर देखें; अरे भई उठेंगे तब उठेंगे जब मज़ा आएगा तब उठेंगे नहीं तो नहीं उठेंगे। किसी भी चीज़ का संकल्प इस तरह का बुद्धी जैसा कर लेने से अपना चित्त जो है वो (अस्पष्ट: आखड़ी) में जैसा उसमें चिपक जाता है। किसी को तो यह है, किसी को यह है कि आलसी जैसा पड़ा रहता है वो आदमी, प्रमाद में; उसका भी चित्त इस लिए है कि आलस में कब सोने को मिले और आराम से कब सोएँ। सारा चिंतन सोने में ही पड़ा हुआ है फिर सोने का पलंग ऐसा होना चाहिए, उसके लिए यह इतिज़ाम होना चाहिए, मुझे यह कमफ़र्ट चाहिए, मुझे वो कमफ़र्ट चाहिए; मुझे ऐसा ही कपड़ा चाहिए, अगर उसको वैसा कपड़ा नहीं मिला, तो वह पहनेगा ही नहीं, वैसे ही बैठा रहेगा। एक दिन अगर उसका सूट प्रेस नहीं हुआ, तो वो सारा घर सर् पे उठा लेगा, लेकिन उसका सूट पहले प्रेस होना हैं। उसकी अगर साड़ी जरा मैच नहीं हुई, तो वो गई काम से; कि उसका शरीर मैच हुआ नहीं हुआ उसका सारे संसार मे मेचिंग हुआ या नहीं, उसकी कुछ हर्मनी इसके अंदर है या नहीं, यह नहीं; बड़ी महत्वपूर्ण हुआ कि साड़ी मैच नहीं हुआ। फिर सास से लेकर ससुर से लेकर, ऊपर से लेकर नीचे तक सब का ठिकाना हो जाएगा। यही है चित्त की पकड़, चित्त जब किसी भी चीज को इतना महत्वपूर्ण समझ लेता है, तो वो कभी पार नहीं हो सकता है। चित्त जब भी आदमी का किसी भी चीज में चिपकता है, तो ऐसी पकड़ ले लेता है, कि सब दुनिया से वो गया। और उसे कोई कह नहीं सकता है, कि तुम क्या चक्रंपना कर रहे हो, और ये फिर मेनिया हो जाता है, पागलपन, दिमाग में एक कीड़ा घुस जाता है और उस कीड़े वाले से आप कहो कि तुम्हारे दिमाग में कीड़ा घुस गया है, तो वो कभी मानेगा नहीं; पर सहजयोग में अगर पार नहीं हुआ, तो वो कहेंगे साहब मैं क्यों नहीं पार हुआ। अरे तुम्हारे दिमाग में कीड़ा घुसा हुआ है, इसको हम लोग कह सकते हैं कि झक्कीपन लेकिन वो झक्कीपन कभी-कभी इतना बढ़ जाता है कि इसके हद हो जाती है जैसे किसी-किसी को सफाई का झक्कीपन है, अगर मराठी हो तो खासकर। मराठी मैं (अस्पष्ट: उर्टे खाल सकते हैं माराटी सकते हैं सफ़ाई हो जाएगे), कि उसमें आदमी की हजामत हो जाए, करते करते घर के अंदर सब का ठिकाना हो जाए (मराठी: अस्पष्ट) इस तरह का पागलपन, कभी-कभी आपको आश्चर्य होता है, आपने सुना होगा, कि मेरे पास कुछ लोग ट्रीटमेंनट के लिए लोग आते हैं, अभी अभी एक ये भी आयी थी, मैंने पुछा, इसको क्या बिमारी है, कहने लगे ये बहुत बार हाथ धोती है, बाथरूम जाती है, तो घंटों बैठे रहती है, अपने बाल नोचती है, उसको अच्छा नहीं लगता, कहती है, कि यहाँ (अस्पष्ट) एक पागलपन और वहीं दूसरा यह है कि एकदम गंदगी डाल दी। कुछ नहीं अगर बदन मैं सब खुजली होजाए, कुछ हो जाए, फिर क्या मलेरिया हो जाए- खुजली हो जाए, चाहे कुछ भी हो! एक एक्सट्रीम चीज है, एक अतिषयता है, एक अत्यंत अतिषयता मैं हैं । इसी से आपका चित्त जो है, ये उथल पुथल मैं रहता है, उधर जाता है, उधर से निकलता है इधर आता है। एक जैसे शराब का नशा होता है, ऐसे अतिषयता का भी नशा होता है, आदमी के समझ में नहीं आता है, वो धीरे धीरे अतिषयता में उतरता जाता है, और वो फिर कहता है कि मेरा जन्म सिद्ध हक है, कि मैं अतिषय ही रहूँगा, और सारी दुनिया उसके लिए कहती रहती है, कि बाबा इनको ठंडा रखो, बाबा इनको भगवान बचाये रखे, बाबा इनको किसी तरह से ठीक करो। अतिषयता मैं उतरना सहजयोग का मार्ग नहीं है। सहजयोग का मार्ग मध्यम मैं है। अब कोई पैसा कमाने पे लगे, तो पागल जैसे पैसा ही कमाने पे लग गए। यह एक दुसरा पागल पन है, उनको संतोष ही नहीं आया, वो कमाई ही रहे हैं जिन्दगी भर, कोई पोजिशन के पीछे लगे, तो वो पोजिशन के पीछे ही भाग रहे हैं, उनको संतोष ही नहीं आया। दूसरी साइड यह है, कि भी (अस्पष्ट खिरोने) कि उन्होंने भिखारीपना पे भी एक कविता लिख डाली;

तो जो झोंपड़ पट्टी में रहते हैं, और जो महलों में रहते हैं, उनके लिए यह सहजयोग नहीं है; जो एक महल मैं रहकर के भी दस महल बनवाना चाहते हैं, उनके लिए यह सहजयोग नहीं है। सहजयोग उस आदमी के और इंसान के लिए है, जिसके मन में संतोष है। वो यह सोचता है, कि बहुत हो गया, कमाना भी बहुत हो गया, और पाना भी बहुत हो गया, थोड़ा बहुत और खाने पीने की चीजों के लिए हो जाए, इंतरजाम हो जाए, इसके बीचों बीच चलता है, संतोष मैं है।

महलों में रहने वाले जिस आदमी में संतोष हो जाए, वो सहजयोग के लिए पीछ है, झपड़ पट्टी में रहने वाले जिस आदमी के अंदर मैं संतोष आ जाये वो सहजयोग के लिए पीछ हैं। संतोष एक मध्यम मार्ग है, और जब मनुष्य संतोष में रहता है तब उसके चक्र ज्यादा नहीं खुलते हैं उसपे ज्यादा प्रेशर नहीं पड़ता है; कर्तव्य की भी बहुत सी कल्पनाएँ हमारे दिमाग में बैठी हैं, उसकी अतिषयता कर देना सहजयोग के विरोध में पड़ता है अतिकर्मी सहजयोग में नहीं लगता है। मतलब जो है सो है यह बात आप से साफ बतानी चाहिए; मैं किसी भी चीज के विरोध में नहीं हूँ, जिनको पागलों जैसे पैसा कमाना है वो कमाएं और जिनको भीख माँगनी है, भीख माँगे। किसी को उनको reform करने का तो है नहीं पर जो लोग सहजयोग में आना चाहते हैं उनको यह समझ लेना चाहिए कि थोड़ा बहुत संतोष जरूर करने का होगा। दूसरी चीज है कि वो लोग बहुत ज़्यादा विंडिक्टिव हैं, जैसे मराठी मैं जरा अच्छे से आता है मुझे बताना, क्योंकि ज्यादा से देखा हुआ है, इसलिए। (मराठी: ज़्याके माराची में मुझे ज़्यादा अच्छी चाहता पताना जोकि बांदागां को देखा हुआ है इसलिए कि मला के सालो तक प्रेम होई मला पतक तक प्रेम होई जो आलो की जेल है तुम्ही किसनो) का मतलब यहाँ यह हो गया कि मुझे यह पसंद ही नहीं है, आप हैं कौन, कहां के तोप खाने हो गये; मुझे यह पसंद नहीं है, मुझे वो पसंद नहीं है यह जिसकी भाषा होती है वोह सहजयोग के लिए किसी काम का नहीं है। और जो आदमी विंडिक्टिव होता है अब किसी ने आपके साथ ज्यादती करी गया, चूल्हे में गया मेरे पास टाइम कहा ऐसे भिखारी से बात करने की, मुझे टाइम कहा, जो रईसों से बात करने की, मेरे पास टाइम कहाँ है ऐसे फाल्तू लोगों से बात करने की। यह जब आ गया, तभी सहजयोग बनता है; क्योंकि सहजयोग यह उत्क्रांती का मार्ग है, जो बीचों बीच का है। यह लोग जो हैं एक क्रीज पर, मैंने आपसे पहले बताया है मिसिंग लिंक होयेगे जब आप उत्क्रांती के राज्य में रहेंगे तब इनको मिसिंग लिंक लोग कहैंगे, जो एक क्रीज पर रहेंगे; इसलिए इसका इलाज, मनुष्य में क्षमा आएँगी। पहले तो संतोष आना चाहिए और दूसरा अगर आप किसी को क्षमा कर दें तो आपकी आधी एनर्जी बढ़ जाएगी। समझ लीजिए आपने मुझे गाली दी अब मैं दैखूं के कैसे मैं कौन की गाली दू; अब मुझे गाली आती नहीं थू तो मैं गई अपने दोस्त के पास कि मैंने सुना कि तुम बताओ उसने मुझे गाली दी तो मुझे तुम बताओ उसको मैं कौन सी गाली दूँ। अब उससे मैं सोचे जा रही हूँ मैंने इधर दौड़ी उधर दौड़ी; किसी नहीं मुझे गाली दी मैंने कहा अच्छा माफ कर दो, खतम काम। वही एक चैप्टर खतम, आगे कुछ करने का नहीं और जैसे ही आपने माफ कर दिया उधर वो आदमी जो वो भी बदल जायेगा। इससे बढ़के कोई बड़ा भारी जतन नहीं है, इससे बढ़के कोई अस्त्र नहीं है; इस पर आप क्षमा करना जाने, जिस दिन आप इस मंत्र को जान लेंगे ‘क्षमा’ उसी दिन आपकी कुंडिलिनी जो है वो सहसत्रार पार कर जाएगी। इसी तरह आज्ञा चक्र पे तो जहाँ पर की कुंडिलिनी का छेदन बहुत मुश्किल है, इस जगह अगर कुंडिलिनी रुकती है, आपके अगर आज्ञा चक्र में कुछ खराबिया पड़ती हैं तो पहली चीज़ है कि क्षमा करना सीखना चाहिए। दिमाग में विचार किसी के विरोध में आया तो आप कहना की खबरदार क्षमा, कोई भी आया उसको एक टिकट पकड़वा दिजे क्षमा। चलिया अब आप आईये दूसरे आपने मुझे मारा था परसों क्षमा! चलिये, निकलिए; तीसरा लीजिए आप आये आपने मुझे गाली बकी थी क्षमा! चलिये। चौथे आए उन्होंने आपको आपकी इज्जत उतारी थी क्षमा! आज्ञा चक्र पे जो आदमी क्षमा नहीं कर सकता, उसका आज्ञा चक्र बहुत मिश्किल से ठीक हो पाता है। यह नहीं, यह बताने के लिए माता जी कि मैंने सब की क्षमा कर दिया; आप अपने ही लिए, यह अपने ही मन में, अपने के ही शुद्ध भाव से कहें कि मैंने क्षमा किया क्योंकि क्षमा नहीं करने का मतलब है कि अपकी सारी एनरजी लग गई आपकी इसी चीज़ में कि उसको मारो, उसको ठीक करो उसको ये करो, उसको ठिकाने लगाओ, उसको चार गालियां दो, तो उसने चार दी तो आपने दस गालियां दी, कि इस डरसे चार महीने जाओ, उधर से चार महीने जाओ; क्षमा का नाम लेकर ये आपके सब के आज्ञा चक्र पे फरक पड़ेगा। इतनी बड़ी चीज़ है आपकी क्षमा। और तीसरी चीज़, सहजीयोगी के लिए बहुत अच्छा आवश्यक है कि उनके हृदय में प्रेम होना चाहिए। हृदय साफ होना चाहिए, हृदय की सफाई होना चाहिए; जो लोग छल कपट करते हैं, इधर से उधर लगाते हैं, झूठ बात बोलते हैं कभी इससे कहते हैं, उससे कहते हैं, पीठ पीछे बुराई करते हैं ऐसे लोग कभी भी पार नहीं होते। पार होने पर भी उनका ऐसे ही उधर चलता है, बार बार पकड़ेंगे, ये करेंगे, वो करेंगे। जो लोग इधर से उधर लगाते फिरते हैं उनका हृदय चक्र पकड़ता है और आज्ञा चक्र भी उसके साथ पकड़ेगा जरूर क्योंकि उसमें भी क्षमा का भाव कम होता है। ऐसे आदमियों को परमात्मा बहुत मुश्किल से क्षमा करता है जो छल, कपट, दंभ, धोड, झूठ बगैर रियलाजेंशन के ही, किसी के बगैर ही जो आदमी धर्म पे प्रवचन देता है वह बहुत बड़ा गुनाह करता है, उसको भगवान कभी भी माफ़ नहीं करता है। रियलाजेंशन के बगैर जो धर्म के नाम पर कोई भी कार्य करता है बहुत बड़ा गुनाहगार परमात्मा के दृष्टि में होता है और इसलिए इसको परमात्मा माफ़ नहीं करता है। जो समाज में, मंदिर में, मस्जिदों में बैठ कर के और धर्म के नाम पर पैसा कमाता है उससे बढ़के और अधर्मी और नीच कोई नहीं होता है। मैंने आपको बताया कि मथुरा में मैं गई थी तो मैंने यह देखा कि जितने भी कंस के सेनापती आदी थे और उसके जितने राक्षस थे, सब ने ही कलयुग में जन्म ले करके वहाँ पंडा गिरी की हूई है। ऐसा ही हरेक धर्म में है। सारे राक्षसों ने धर्म ही का पेहरावा पहन लिया पर उनका गुनाह अक्षम्य है; परमात्मा के दरबार में खड़े हो करके और आप परमात्मा से छल कपट करने की हिम्मत कर रहें है, इससे बढ़के महामूर्खता और कोई नहीं। और सारी ही चीजों का, सभी चीजों का ‘सत्य’ मार्ग है, जो मनुष्य के अंदर गुण होना चाहिए वो है पवित्रता। innocence कहिए आप, पावित्र, अपने को पवित्र रखना। किसी की बुराई नहीं सुनना, किसी की बुराई ना करना, अपने मन मैं कोई अपवित्र भावना ना आने देना, यही सत्य जो है वो सहजयोग के बाद फलीभूत होता है। इसीलिए छोटे छोटे बच्चे बहुत जल्दी पार हो जाते हैँ, और इसको पा लेते हैं। सारे चीजों का सत्य श्री गणेश के चरणों से बहता है, जिसको हम पवित्रता के नाम से जानते हैं। जिसके कारण सारी सृष्टि की रचना हुई है और जिसके कारण सृष्टि का संहार भी हो जाएगा; और जिसके कारण सारी सृष्टि मैं सृजन हो कर के एक नया मानव भी तैयार हो सकता है, जिसे सहजयोग स्थापित करना है। इसलिए जिस आदमी के अंदर पवित्रता का कोई संस्कार ना हो वो मनुष्य नहीं!

Mumbai (India)

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