Public Program, Chitta KI Gaharai

Public Program, Chitta KI Gaharai 1979-03-24

Location
Talk duration
53'
Category
Public Program
Spoken Language
English, Hindi

Current language: Hindi, list all talks in: Hindi

The post is also available in: English, French.

24 मार्च 1979

Public Program

Bordi (भारत)

Talk Language: English, Hindi | Transcript (Hindi) - Draft

Public program (Hindi). Bordi Shibir, Maharashtra, India. 24 March 1979.

[Hindi Transcript]

आप लोग सब सहजयोग में आये हैं। कुछ लोग पहले से आये हैं, बहुत सालों से और कोई लोग नये हैं। धीरे- धीरे सहजयोग में संख्या बढ़ने वाली है इसमें कोई शक नहीं है और सत्य जो है वो धीरे -धीरे ही प्रस्थापित होता है। सत्य की पकड़ धीरे-धीरे होती है। आपके यहाँ ऐसे लोग हैं जो आठ-आठ, नौ-नौ महिनों तक सहजयोग में आते रहे और उसके बाद पार हुए। सत्य को पाने के लिये हमारे अन्दर पहले तो गहराई होनी चाहिए। पर सबसे बड़ी चीज़ है हमारे अन्दर सफाई होनी चाहिए। अब अनेक गुरुओं के बीच में जाकर के हमारा चित्त जो है वो बुरी तरह से विक्षिप्त हो जाता है । दूसरा, आजकल के समाज में जो हम घुमते हैं और नानाविध उपकरणों के कारण हमारा जो चित्त बाहर की ओर हमेशा रहता है। बाह्य की चीजें हमें दिखाई देती हैं। इन सब चीज़ों से हम कुछ प्रभावित होते भी हैं। और कुछ ये भी बात है कि, हमारे दिमाग में भर दिया गया है कि ये चीज़ें बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। इस वजह से जो चीज़ें बिलकुल ही महत्वपूर्ण नहीं उधर हमारा चित्त पहले जाता है और जो चीज़ें बहत ही महत्वपूर्ण हैं वहाँ हमारा चित्त नहीं जाता है। इसलिये हम ऐसी चीज़ों को इकठ्ठा कर लेते हैं जो बिलकुल बेकार हैं। जिसको कि अंग्रेजी में जंक कहते हैं, मराठी में 'अडगळ' कहते हैं। इस तरह का हमारा चित्त जो है वो बेकार की चीज़़ों से बोझिल हो जाता है। उसका बोझा चित्त उठा नहीं पाता। थक जाते हैं हम! जब हम आपस में भी बातचीत करते हैं, ऐसे समाज में तो लोग एक दूसरे से ज़्यादा देर तक बात नहीं कर पाते क्योंकि उनका चित्त इतना बोझिल होता है कि वो थक जाते हैं, वो एक-दूसरे से बात करते वक्त भी, जब तक कोई किताब ना पढ़ें या कोई सिनेमा ना देखें या कोई तिसरी चीज़ ना हो तब तक वो दस मिनट भी साथ नहीं बैठ सकते। इस चित्त को जितना आप शुद्ध रखेंगे उतना ही आपको आनंद आयेगा। अब चित्त की शुद्धता रखते वक्त ये याद रखना है कि इसी चित्त से ही हमें परमात्मा को जानना है। एक बार परमात्मा को जानने के बाद बाकी जो कुछ जानना है वो बहुत कुछ सरल हो जाता है। क्योंकि आप किसी भी चीज़ को जब सूत्र से पकड़ते हैं तो वो बहुत दूर तक और सूक्ष्म आप पकड़ते हैं। इसलिये हमेशा अपने चित्त की ओर ध्यान रखें कि अपना चित्त कहाँ जाता है। जितना चित्त समाहित हो जाये, समर्पित हो जाये उतना ही वो चित्त शुद्ध होते जाता है। ये समझ लीजिए कि जितना आप गंगा में डूब जाये उतना ही आप पवित्र होते हैं। अब इस पर बहुत बड़ी चर्चा ये हो जाती है कि, 'माँ किस तरह से हम समर्पण करें अपने को?' इसका एक तरीका आप लोगों ने अभी देखा है जो हम लोगों ने आजमाया है। जैसे कि आप अभी देख चुके हैं कि एक स्त्री है, उसने अपने को गायत्री में समर्पित कर दिया था, या श्रीराम को मानती हैं। अपने देश में विशेष कर के ऐसा रिवाज है कि हम कोई न कोई कुलदैवत रखते हैं या कुलस्वामिनी होती है। उसको हम पूरी तरह से मानते हैं और अपनी जितनी भी चित्त प्रवृत्ती है उसमें स्थित कर देते हैं। एक तरह से हम अपने को इसमें समर्पित रखते हैं, लेकिन उस में समर्पण में हम कुछ पा नहीं पाते। उससे गहराई हमारे अन्दर बढ़ जाती है जरूर, लेकिन उस गहराई हम कुछ पकड़ नहीं पाते। इसी प्रकार समझे कि एक अगर कुंभ है या घड़ा है, उसमें गहराई बहुत है, लेकिन उसका मुँह गंगा

की ओर नहीं है दूसरी ओर है। लेकिन गहराई बनती जा रही है । लेकिन उस ओर से गंगा उसके अन्दर बहने वाली नहीं है। वो जो गहराई जिसके कारण बनी है उसको अगर गंगा की ओर मोड़ दीजिए तो उसमें गंगा फौरन भर आयेगी । अपने देश में इसका बड़ा भारी लाभ होता है। इसलिये आपने देखा कि, जिसने भी, समझ लीजिए श्रीराम को माना या किसी भी ऐसे दैवी अवतार को माना है और उसमें अपने को समर्पित कर लिया है, वो अगर इतना ही सवाल पूछ ले कि, 'क्या माताजी, आप वो शक्ति हैं, तो फौरन उसके अन्दर गंगा बहना शुरू हो जाएगी।' कितना आसान तरीका सहजयोग का है बताईये ! इससे दो लाभ हैं। एक तो ये है कि आज तक की जितनी आपकी तपस्या है वो व्यर्थ नहीं गयी और दूसरा लाभ ये भी हुआ है कि आपने हमें भी पहचान लिया अनायास। जब पहले बहुत से अवतार संसार में आये थे, तो उनके साथ जितने उपद्रव हुए हैं वो आप जानते ही हैं और किस कदर लोगों ने उनको सताया है, ये भी आप जानते हैं। अब इस अवतार में ये सोचा गया कि मनुष्य को किस तरह से पहचान कराई जाए? वो किस तरह से जाने कि ये अवतार हैं? क्योंकि मनुष्य बहुत ज़्यादा अहंकारी है। वो किसी को अवतार मानने में तैयार नहीं। जब अवतार कार्य खतम हो जाता है तब वो सोचता है, 'अरे, क्या गलती हो गयी?' क्योंकि वो जब मर जाता है तो उसे ज्ञात होता है। तब वो रोता है कि, 'अरे, ये मैंने क्या कर दिया ?' एक साहब थे यहाँ। उनका मैं ट्रिटमेंट करने गयी। बहुत बीमार रहते थे। तो वो मुझे बताने लगे, 'माँ, मुझे एक अजीब सा सपना आया कि मैं जब सो रहा था दूसरे कमरे में और मेरे घर वाले सब उसी कमरे में मेरे साथ थे। और आप एक दूसरे कमरे में थीं जहाँ आपकी पूजा हो रही थी, अर्चना हो रही थी।' ये जिनको सपना आया था, उनका नाम था माणिकलाल। 'और मैं उसमें शामिल नहीं हो पा रहा था। और मैं छटपटा रहा था। मैं उठ नहीं पा रहा था। जा नहीं पा रहा था और मेरे रिश्तेदार भी मुझी को देख रहे थे और आपको नहीं जान रहे थे। मैं चाह रहा था कि उनसे कहूँ कि जाओ, माँ की पूजा करो।' असल में वो अपनी स्थिति मृत्यू के बाद की देख रहे थे। अब उनकी मृत्यू भी हो चुकी थी। तब मैं उनसे क्या कहती कि, 'तुम अब मरने वाले हो! उस वक्त तो ऐसा लगेगा कि अभी तुम समर्पित हो जाओ।' ये मृत्यू के बाद की छटपटाहट वो देख रहे थे उस वक्त जब वो मर रहे थे तब और उन्होंने दो- तीन बार ये सपना बताया कि 'माँ, इस सपने का क्या अर्थ हो सकता है। मुझे बार-बार यही सपना आता है और जब भी मैं सोता हूँ मुझे ये लगता है कि छटपटाहट है कि माँ की पूजा हो रही है। सब लोग खूब जयघोष गा रहे हैं। और मैं बिलकुल उसमें अछूता रह गया हूँ। में उसमें शामिल नहीं हो पा रहा हूँ। और मैं छटपटा रहा हूँ और मेरे घर वाले भी उस में सब आये हैं। वो मेरे लिए रो रहे हैं। मेरे पीछे में बैठे हुए हैं। मेरी फोटो लगाए हुए हैं और आपकी ओर नहीं जा रहे हैं और मैं चाह रहा हूँ कि मैं ढकेलू उनको उधर !' ये स्वप्न उन्होंने अपनी बीवी -बच्चे उनके सबके सामने कहा था और अगर मैं अभी उनको समझाऊं तो भी उनके समझ में नहीं आने वाला। सो इस वजह से अपने देश में एक बड़ी भारी ये हमारे लिए सुविधा हो गई है इस देश में, और देश में नहीं क्योंकि हम किसी ना किसी दैवत को मानते जरूर हैं। अब हरे रामा हरे कृष्णा वाले भी अगर अपनी गगरी हमारे ओर कर दे और हमसे पूछे कि, 'क्या हरे रामा हरे कृष्णा आप ही हैं?' जिनको हम बजते रहे तो वो भी, उनका भी विशुद्धि चक्र साफ हो जाएगा। और उनके भी गले भर आएंगे । आपने ये सब बाते अनुभव की होंगी। कोई नयी बात मैं आपसे नहीं बता रही हूँ। आप लोग भी जब किसी को रियलाइझेशन दे तो पहले ही उनसे कह दीजिए कि आप देखिए कि क्या यह वही

शक्ती है, जिसको आज तक आप मानते रहे ? ये अपने देश में बहुत ज़्यादा सादगी होता है, विदेश में कम क्योंकि वहाँ तो वो किसी को भी नहीं मानते। अपने सिवा दुनिया में किसीको नहीं मानते अधिकतर लोग वहाँ पर। वहाँ की तो बात ही करना बेकार है। क्योंकि वहाँ तो इस कदर आदमी अलग-अलग हो गया है कि एक आदमी ये नहीं जानता कि अपना बाप अभी तक मरा है कि जिंदा है। ऐसे भी वहाँ मैंने बहुत से लोग देखे हैं। तो इन लोगों की बात ही छोड़ दीजिए। पर हमारे देश में ये बड़ा ही आसान है। जब हम किसी भी इन्सान से ये जान लें कि वो कौनसे भगवान को मानते हैं, तो मेहेज उससे अगर आप इतना कह दीजिये कि, 'क्या ये वही चीज़ है हमारे सामने या नहीं?' मतलब ये कि कोई भी जो सही गुरु हो उनकी बात कर रही हूँ मैं। कोई अगर सही अवतार हैं, उनकी बात कर रही हूैँ मैं। हर एक अजीब-सजीब लोगों की बात नहीं कर रही हूँ मैं। तो उसके उत्तर में उनको वाइब्रेशन्स आ जाएंगे। तीन मर्तबा में ही अब वाइब्रेशन्स आने चाहिए, लेकिन कुछ-कुछ लोग अजीब भी होते हैं। जैसे कि एक आयी थी देवीजी और कहने लगी कि मैं रेणुका देवी को मानती हूँ। अब रेणुका देवी का कोई अवतरण नहीं मानना चाहिए, खास कर के और इस तरह की विक्षिप्त भी बहुत सारी चीजें मान लेते हैं। तो जो साधारण तरीके से जिनको हम अवतार मानते हैं। उनको मानते होंगे उनके लिए आप गर इस तरह से पूछे कि क्या ये वही है तो ये कार्य एकदम हो जाएगा। और जब उनका चित्त ये जान जाएगा कि ये वही हैं। धीरे-धीरे दोनों में सामंजस्य होता जाएगा और बात उनकी समझ में आ जाएगी। इसमें कोई भी हिचकिचाने की या डरने की बात नहीं। आज तक एक मायने में आप जानते ही हैं कि हम कौन हैं? और जब भी ऐसे ही कोई आपसे सवाल पूछे तो हमने कह भी दिया खुले आम कि हम कौन हैं। हमें इसका ड़र नहीं लगता क्योंकि पूरे कॉन्फिडन्स से हमने हमेशा कहा है कि हाँ ये बात सही है अगर आप हमसे पूछे तो हमने कह दिया । कोई उसमें डरने की बात नहीं है। लेकिन हम तो सिर्फ इसलिये इस बात को समझ के कह रहे थे कि लोगों में इतना ज़्यादा अहंकार है कि उनसे ये बात जैसे ही पता हो जाती है वो बस डंडा लेकर मारने को दौड़ जाते हैं। उनके लिये सबसे बड़ी बात द:खदायी ये होती है कि संसार में कोई भगवान के अवतार में आया हुआ है। क्योंकि उनको लगता है कि सब हमारा जैसे छीन गया कुछ हो। सारा संसार उनको लगता है कि उनसे किसीने पूरी तरह से अपने हाथ में ले लिया और उनका अब कुछ नहीं रहा और वो खतम हो गये। क्योंकि वो अपने को अवतार समझ बैठे हैं। मुश्किल तो ये है इसलिये जैसे ही वो सुनते हैं कि ऐसी-ऐसी बात है तो उनकी शंकाए शुरू हो जाती है। लेकिन मरे हुए देवताओं को, जो कि हज़ार साल पहले मर चुके हैं। उन्हीं को वो पूजेंगे। उसमें उनको वो कोई भी नहीं कि जिसको पूजा है आज तक वही ये है कि नहीं देखो। है अहंकार, लेकिन अगर कहा जाए कि आप देखिये अब कश्मीर में गायत्री मंत्र का बहुत ज़्यादा प्रचार है। अब बहुत लोग गायत्री, जितने भी ब्राह्मण हैं वो गायत्री करते हैं और उन लोगों को सब को दुनिया भर की तकलीफे हैं। बहुत तकलीफे हैं। अब उनमें से कुछ तो ऐसे हैं कि वो कहते हैं कि हम तो गायत्री छोड़ ही नहीं सकते हैं। और कुछ लोग ऐसे हैं कि जो कहते हैं कि गायत्री से हमें कोई लाभ नहीं हुआ। माँ, हमने इतनी गायत्री करी कोई फायदा नहीं हुआ और दूषण देते हैं गायत्री को कि इतना हमने गायत्री करने से भी हमें कोई फायदा नहीं हुआ। हमें ये बीमारी , वो बीमारी है, ये तकलिफें हैं । उस वक्त अगर आप उनसे कहें कि, 'अच्छा, माँ से पूछो कि, माँ, क्या आप गायत्री देवी हैं?' तो पाँच मिनट के अन्दर वो पार हो जाते

हैं और बिलकुल सारी मशीन फिटफिट चलने लग जाती है। खट खट खट खट, याने ये सोचे कि कोई 'प्लग' आपने गलत लगा दिया है तो मशीन नहीं चलती। वही 'प्लग' ठीक लग गया तो मशीन खटखट चलने लग जाती है। इस तरह से आपको लोगों को समझाना पड़ता है। कोई सरल काम नहीं है अवतार लेना! बहुत ही कठिन कार्य है। और मुर्खों के बीच में जन्म लेना तो उससे भी कठिन है क्योंकि आपने कोई भी सूझबूझ की बात कही तो मनुष्य का एक और तरिका है कि उसका ब्रॅण्ड मार दो कोई भी। जैसे कि वो आपको कह देंगे कि आप जो हैं, आप डंडा मार देना किसी को भी और हो गया और आप बैठ गये। अब आप क्या करें? अगर आप उनसे कहिये कि आप बढ़िया आदमी हैं, आप गोबर खाते हैं तो कोई हर्ज नहीं है, आप खूब खाओ, तो आप बड़े अच्छे आदमी बन जाएंगे। लेकिन अगर आपने कहा कि ये गलत है। इसे नहीं करना चाहिए। हर एक गुरु ने कहा है। आज तक जो असली गुरु है उसने हमेशा कहा है। नकली गुरु क्यों कहने चले! उनको तो आपके पैसे से मतलब है। वो तो कहते कि जो भी करना है करो । हमारा पर्स हमको दे दो अपना। तो उनको तो ये प्रॉब्लेम है नहीं। ये तो बात तब खड़ी होती है जब सच्चा गुरु खड़ा होता है तो वो बताता है कि नहीं ये नहीं, ये गलत है, ये गलत है, ये नहीं करना है और ये करना है, ये सही है, ये गलत आदमी है, ये सही आदमी है। इसीका जो नीर-क्षीर विवेक जानता है वही तो ये सब बताएगा ना और वो जब बोलने लग जाता है तो आदमी ने अपने तरीके बना रखे हैं तो उसको ब्रॅण्ड मार दो कि ये है, वो वो है। वो फलाना है, वो ठिकाना है। हो गया काम खतम ! अब वो आदमी, ये तो हम इनके भले के लिये बता रहे हैं। अपने बाप के लिये भी आजकल बनाते हैं ब्रॅण्ड! अपने माँ के लिए भी बनाते हैं, अपने टीचर्स के लिये भी ब्रॅण्ड बनाते हैं। नाम दे दिया उनका। नामकरण, संस्करण कर दिया है उनका क्योंकि आपके समझ में ये बात ही नहीं आयी इसलिये आपने कह दिया। ये आजकल का मॉडर्न तरीका है। पुराने जमाने में उलटे लोग गुरुओं के पास बैठे रहते थे घंटो। ये सुनने के लिये कि वो हमें बताए कि हमारा क्या दोष है? कान पकड़ के गुरु के सामने बैठे रहते थे और अभी तक भी जो सच्चे गुरु लोग हैं जो सबके उल्लू सीधे करते थे और उनके तरिके इतने कठिन होते हैं कि उनका वर्णन ही नहीं कर सकते। मैंने आपसे बताया था कि एक साहब की कैसे टांगे तोड़ दी थी और वो गले में डाल कर भेजा था मेरे पास। इस तरह से एक आज्ञा चक्र निकालने के लिये किस तरह से उन्होंने आफत मचायी थी। लेकिन फिर एक बात तो गुरु की हुई कि वो मनुष्य ही हुआ फिर कोई अवतार हुआ। उसके पीछे तो पहले से ही डंडे लेकर लोग खडे रहते थे कि अवतार हुआ माने क्या ? उसके घर में ही भूत घूसा देंगे जैसे कि रामचंद्र के जमाने में मंथरा जैसे एक दासी की बात, एक दासी की बात उन्होंने सुन ली। कैसे? दासी की भी कोई बात सुनने की होती है ? कैकयी जैसी समझदार औरत ने एक दासी की बात सुन ली। उसके पीछे में श्रीराम को जंगल जाना पड़़ा। सीताजी को नंगे पाँव चलना पड़ा। कितनी दु:ख, कितनी विपत्ती, लेकिन वो भी एक कार्य था चलो हो गया। कृष्ण के जमाने में भी आप जानते हैं कि कृष्ण किसी को भी गीता नहीं बताते सिवाय एक अर्जुन के, ऐसे थोडे ही है कि पचासों को बिठाकर के बता रहा है वो। अगर कृष्ण किसीसे कहते कि, 'सर्व धर्माणाम् परित्यज्य, मामेकम् शरणं व्रज' तो उनको ब्रॅण्ड मार देते वो लोग एक। वो तो उनके मरने के बाद सब लोग गीता-वीता पढ़ रहे हैं। जैसे कि ईसामसीह ने कह दिया है कि, I am the light, I am the path' बस उसको एक ब्रॅण्ड मार देते हैं। इगोईस्टिकल या और कुछ भी कुछ कह देते हैं। প

तो अवतार कार्य ही कठिन कार्य है। इससे कठिन कार्य और कुछ भी नहीं हो सकता है। एक तो आप बहुत भगवान हैं। समझ लीजिए अगर आप भगवान हैं तो आप संसार में आए हैं तो मनुष्य के जैसे रहना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि मनुष्य की आदतें आपमें नहीं होती। मनुष्य को समझना तो उससे भी महाकठिन है। बहुत ही कठिन है। समझ लीजिए, कि आप इन्सान हैं। अब आप कुत्ते को कैसे समझेंगे? बताइये आप! आसान है क्या, नहीं। ये मैं एक आपसे पूछती हूँ। बहुत मुश्किल काम है। फिर आप किसी कीड़े को अगर समझे कि उसकी क्या आदत है कि वो कौन गन्दगी में रहता है। किधर घुसता है? क्या-क्या गंदगी करता है। आप में तो ऐसे घीन चढ़ती। इसलिये अवतार लेना कोई सरल बात नहीं है और कोई मनुष्य जो कहता है कि मैं अवतार ले रहा हूँ। उसको बड़ी कठिनाई उठानी पड़ती है। पर झूट-मूट का कहना कि, 'मैं अवतार हूँ', ये तो बहुत ही आसान तरीका है। इससे तो कोई और आसान तरीका है ही नहीं क्योंकि जिस आदमी को असली बिज़़निस करना पड़ता है उसको पता चलता है कि कितना मुश्किल है बिज़निस चलाना। अगर किसी को ऐसे ही फेक बिज़निस करना हो, समझ लीजिये कि आए और उन्होंने कह दिया कि, 'मेरा बड़ा भारी बिज्निसस है। मुझे इतना रूपया चाहिए।' उसके लिये गवरमेंट को बेवकूफ बनाया। प्राइम मिनिस्टर को बेवकूफ बनाया। उनसे रूपया लिया। दुसरे से रूपया लिया, रूपया लगा दिया। कहाँ लगाया? किसी से पूछा नहीं, फिर पैसे नहीं तो भाग गया अमेरिका। बहुत ही आसान चीज़ है। बेवकूफ बनाना तो बहुत ही आसान चीज़ है। पर असल में बिज़निस चलाना कितना कठिन है! नकल में भगवान बनना तो बहुत ही अच्छी चीज़ है और बहुत ही सरल चीज़ है। अच्छी माने सरल कि आप बन गये भगवान। हाँ भाई, आप बन गये भगवान। चलो, फिर क्या! हमको चाँदी की थाली चाहिये खाने को। नहाने के लिये सोने की बाल्टी चाहिये। बैठने के लिये हमें संगेमरमर, रहने के लिए हमें महल चाहिये। चलने के लिये हमको मर्सिडीज़ चाहिए। ठीक है। आपको सब सप्लाय करना पड़ेगा क्योंकि वो है भगवान और जो असल भगवान होयेगा वो तो ये सोचेगा कि, 'मैं इनके जैसे बन जाऊँ। सर्वसामान्य बन जाऊँ और वो दिन भूल जाऊँ कि जब वाकई में मैं महलों में रहता था और जब मैं हर तरह से ऐषोराम में हूँ। अन्दर से भी आनंद में हूँ, बाहर से भी आनंद में हूँ। वो सब चीज़ मैं भूल जाऊँ और यहाँ आकर के और मेहनत करूँ दो हाथों से, घूमू, धूल खाऊँ, लोगों की सेवा करूँ, उनको उठाऊँ, उनके बखेडे उठाऊँ, उनके अन्दर जागृति करूं, ' कृष्ण के लिये कितना कठिन था। आप देख सकते हैं कि मथुरा से बिचारे वृंदावन आये, कैसी हालत में आये! वहाँ किस तरह से ग्वाल-बाल कर के रहे। कितनी विपत्तियाँ उठायी। उनको मारने के लिये राक्षस आते थे। उन्होंने अपनी संहार शक्ति कैसी इस्तेमाल करी। किस तरह से उनको नाग, जो डोह में नाग रहता था, कालिया, उसको किस तरह से उन्होंने मर्दन किया। ये सब आप लोग जानते हैं उनका जीवन। राम का भी जीवन आप जानते हैं। ईसामसीह का जीवन आप जानते हैं। मोहम्मद साहब का भी जीवन आप जानते हैं। झोराष्टर का जीवन आप जानते हैं। कितनी उन लोगों को आफतें उठानी पड़ी और जीवन में कितने मुश्किल से उन्हें जीना पड़ा। कैसे-कैसे लोगों ने उनके साथ आफतें ढाईं! उनको किस तरह से परेशान किया। फर्क क्या है दोनों में, सबसे बड़ा फर्क ये है कि एक इन्सान जो कि झूठा है वो आराम उठाता है । सबको उल्लू बनाता है। अपनी जेबें भरता है और कोई मज़ाल नहीं, कोई उसके खिलाफ कुछ कहे और जो सच्चा होता है वो हमेशा सताया जाता है। तकलीफ दी जाती है। वो खुद भी अपने जीवन को रगड़ता है, चन्दन के जैसे। और तो भी उसकी बहुत

अंग-अंग से, प्रत्यंग से सुगंध आती है। झूठा आदमी जो होता है वो कहता है कि मैं तुम्हें ये दे दूँगा। ये तुम्हारा हो | जाएगा भला, अगर कोई जाये तो कहेगा कि, 'तुम्हारा करम है तो मैं क्या करूँ?' और आदमी इसको बड़ा संतोष में रहता है कि ये तो हमारे करम ही नहीं थे तो क्या करेंगे हमारे गुरु! सिर्फ एक चीज़ हमने नहीं की कि जरा रूपया कम दिया। कुछ श्रद्धा और हो जाए तो हो सकता है बन जाएगा काम। तो फिर 'श्रद्धा स्वरूपेन' कुछ ना कुछ उनके पास पहुँच जाता है मामला, झूठ चलता ही रहेगा, झूठ चलता ही रहेगा एक तरफ, जब तक वो आदमी बिलकुल बेवकूफ हो करके एकदम बरबाद नहीं हो जाए तब तक वो उस झूठ में चलता ही रहेगा। और सच, सच की मेहनत गहरी होती है, रुपये-पैसे से खतम नहीं होने वाली। रुपया-पैसा तो कोई चीज़ होती ही नहीं सच के सामने। सच में आपके हृदय की बात होती है। उसकी मेहनत असली होती है । उसके लिये मनुष्य तैयार नहीं है, ये तो बहुत ही आसान है। जैसे बाज़ार में जाते हैं वैसे आप खरीद रहे हैं, एक दो-चार, इसमें कौनसी कठिनाई है। जितना पैसा हो उसके हिसाब से आप जो भी चाहे खरीदते ही रहते हैं चीज़। वैसे ही आपने भी गुरु खरीद लिये तो क्या उसमें मुश्किल हुई। पर जब ये हुआ कि नहीं ये तो उलटे महाराज दिखते हैं। ये तो कहते हैं भाई, कि तुमको शराब छोड़नी पड़ेगी, तुमको सिगरेट छोड़नी पड़ेगी, तुमको तम्बाखू छोड़नी पड़ेगी , कायदे से तुमको रहना पड़ेगा। तुम अपनी बीवी को छोड़ के भाग नहीं सकते। अभी एक साहब आये थे दिल्ली में और मुझे बताने लग गये कि, 'साहब मेरा मेरी बीवी से पटता नहीं। मैं चाह रहा हूँ कि मैं एक दूसरी औरत से प्यार करता हूँ। मैंने कहा, 'साहब, मेरे पास ये सब बाते मत करें आप मेहरबानी से।' तो उनके लिये मैं 'फिर हो गयी दखियानुसी बुढ़िया औरत' फिर हो गया मेरे उपर ब्रॅण्ड मार दिया उन्होंने और वो अपने सत्कर्म में लग गये। सत्कर्म तो करो, करना बहुत ही कठिन काम है फिर सवाल ये आता है कि ये तो ठीक है कि आपने उनकी बात नहीं मानी और इसलिये आप नाराज़ हो गये। लेकिन जनाब आपने किसका भला किया है आजतक? आपने किसको लाभ पहुँचाया है आजतक? आपने किसकी आफ़तें उठाई है आजतक? अगर किसी भी गुरु के पास जाके पूछें तो वो आपको बता देंगे कि ये सच्चे हैं कि झूठे हैं, एक ही पाँइट पर कि वो आपकी चिन्ता करते हैं कि आपके पर्स की चिन्ता करते हैं। आपकी चिन्ता करते हैं कि आपकी और जो कुछ भी चीज़े हैं उनकी ओर उनकी नज़र है। इसीसे आदमी सच और झूठ को पहचान लेता है। अब सहजयोगियों के सामने बड़ा प्रश्न है, कि ये कहें कि नहीं कहें कि, 'माँ आदिशक्ती हैं।' अब ये तो हैं ही! इसमें कोई झूठ बात नहीं! चाहे बुरा मानो, चाहे भला मानो बात तो सही है। तो उलटे सवाल ऐसा पूछना चाहिये कि, 'साहब हमने अपने आँख से कुण्डलिनी को उठते देखा । उसका स्पंदन देखा और तो कोई तुमने देखा है क्या? पूछ लो कहीं देखा है!' हम भी जब कुण्डलिनी को उठाते हैं तो ऐसा ही स्पंदन होता है। जैसे माँ के चरणों में होता है। पर तुमने देखा है क्या कुण्डलिनी का स्पंदन ? हमने देखा अपनी आँखो से, हजारों का देखा है। माँ के पैर पे कुण्डलिनी उठके दौड़ती है और देवी महात्म्य में लिखा हुआ है। ललिता सहस्रनाम में लिखा हुआ है, कि माँ के ही चरणों में कुण्डलिनी चलती है और जो हजारें कृण्डलिनियों को उठाती है वो कोई ना कोई चीज़ हये बगैर तो होने ही नहीं वाला है काम। इस तरह की जब आप उनसे बात कहेंगे कि भाई, आखिर विश्वास नहीं करो तो कैसे नहीं करोगे?

अब एक और साहब, सरदार जी लोगों का किस्सा बताते हैं कि एक साहब गये कहीं, तो उन्होंने सूरज देखा और पूछा, 'भाई, ये सूरज है या चाँद है समझ में नहीं आता ?' तो उसे जवाब मिला कि, 'पता नहीं कि सूरज है या चाँद है।' तो दूसरे आये, उनसे भी पूछा, 'भाई ये सूरज है कि चाँद है बताओ।' हम दोनों में झगड़ा हो रहा है। तो उसने कहा कि, 'देखो भाई, मैं परदेसी हूँ मुझे पता नहीं। उसी प्रकार जिनकी खोपड़ी में ये घुस नहीं सकता उनको घुसाने के लिये आपको अब ये कहना चाहिये कि, 'अच्छा भाई, एक ही चीज़ करो तुम, हम तो समझ गये, अब हमसे तो उनको मना ही नहीं किया जा सकता क्योंकि हमने तो अपनी आँख से देखा, हमारे अन्दर भी घटित हुआ। अपनी आँखों से देखा है कुण्डलिनी को हजार बार उठते हुए। तो क्या अब इस सत्य को हम भूला दे। हम कैसे भुलायें इस बात को। अच्छा, अगर तुमको विश्वास नहीं होता तो तुम माताजी के फोटो पर ये सवाल पूछ लो। जो भी तुम्हारी बेटी होगी, उनको पूछ लो तुम। पूछ के देखो, कि हैं क्या माताजी आदिशक्ति? चलो, पूछ के तो देखो।' और ये व्यवस्था मैंने कर रखी है कि फोटो पे जवाब आएगा। देखिये क्या कमाल कर रखा है। अब फोटो भी जो चीज़ है वो भी एक प्रपोर्शन है। वो प्रपो्शन रखना पड़ता है। बॉडी का भी, सब चीज का रखना पड़ता है। अगर वो प्रपोर्शन ही नहीं रहेगा तो को- एफिशिअन्स नहीं जाने वाला है उसका। गधे लोगों को थोडी समझ में आता है । अब वो चाहे कि आपकी माँ हेमामालिनी जैसी हो, समझ लीजिये। लेकिन क्या उस हेमामालिनी से वाइब्रेशन्स आते हैं क्या! उसको ले के करेंगे क्या? उसका क्या आचार डालें? कितनी बेवकूफी की बातें लोग करते हैं। उसको सोचना चाहिये कि, सब चीज़ परमात्मा ने बहुत विशेष रूप से बनाई है और उसको बनाने में बहुत कुछ रचना करने में, बहुत चीज़ों का विचार करना पड़ता है। शरीर के अंग-प्रत्यंग, हर एक चीज़ बहुत ही कमाल से बनाया है। और फिर जिनको इस तरह से जब आप अचंभे में डाल देंगे तब उनके लिये आसान होगा कि सहजयोग का सत्य को पाना। अगर सीधे उंगली घी नहीं निकलता तो टेढ़ी उंगली से घी निकालना चाहिये । उनसे यही कहना चाहिये कि भाई हमने तो देखा अपने आँख से इसलिये निर्विवाद है। हमने तो देखा हमारे अन्दर और वाइब्रेशन्स भी आये और हम भी वाइब्रेशन्स दे रहे हैं। हम भी लोगों को ठीक कर रहे हैं, इसमें कोई शक नहीं । अब तुमको विश्वास नहीं होता तो तुम चलो, फोटो पर देखो। तुम अपनी तरफ से पूछो ना 'डंके की चोट पर' अगर बहुत ही बेकार आदमी हो तो दूसरी बात है। पर सर्वसाधारण अगर आदमी सरल हो तो हो जाता है। सर्वसाधारण आदमी अगर सरल हो और उसका हृदय सच्चा हो और उसने वाकई किसी की तपस्या की हो तो ये काम बिलकुल क्षण में घटित हो जाता है। ये आपने देखा हुआ है। इतना आसान है रिइलाइजेशन देना सहजयोग में। लेकिन इसके लिये जरुरी है कि आपमें वो दृढ़ता आनी चाहिये । आपमें विश्वास पक्के जमने चाहिये। जब तक वो विश्वास आपके अन्दर पक्का नहीं तो फिर आदमी फौरन पहचान लेगा कि ये डामाडौल है महाराज । ये बोल तो रहे हैं लेकिन इसमें अभी उतना कॉन्फिडन्स नहीं है। हमेशा जब आदमी बात करता है और वो ऑथोरिटी से जब बात करता है तो अंदेशा हमेशा रहता है कि लोग आपको ब्रॅण्ड मारेंगे, कि ये तो जैसे हमारे मराठी में कहते हैं कि, 'त्या बाईंच्या नादी लागला' और मराठी में हैं ऐसे-ऐसे शब्द, मराठी में ही नहीं हिन्दी में भी हैं। नहीं तो फिर कहेंगे कि, 'त्यांनी घोळ घातला' । दुनिया में कैसी-कैसी चीज़ें हैं ब्रॅण्डिंग के लिये| उस तरह से हर एक भाषा में, अंग्रेजी में भी है और हिन्दी में भी है । उनको भूलभूलैय्या में डाल दिया, इंग्लिश में भी है । अरे, उस चक्कर में तुम कहाँ आ ০

गये? सब तरह की चीजें हैं। लेकिन कहना कि भाई, आने की बात क्या है? इन आँखों से हमने कुण्डलिनी को उठते हुए देखा है तो क्या हम भूला दें? हमने कुण्डलिनी का चढ़ना देखा है और हमारे हाथ से वाइब्रेशन्स जा रहे हैं और हमसे लोग पार हो रहे हैं तो सब क्या भूला दें? कैसे भूलायें? ये तो बहुत मुश्किल काम है। पर ये कॉन्फिडन्स जब तक आपके अन्दर पूरी तरह से नहीं होता है तब तक आपका भी असर लोगों पे पड़ने वाला नहीं है। लेकिन हमारे यहाँ ऐसे लोग बहुत हैं। खास कर बम्बई में ऐसे लोग बहुत ज़्यादा हैं कि जो बहुत गहराई से इस बात को समझ गये हैं। यही तो मैं बम्बई वालों की विशेषता कहती हूँ कि यहाँ लोग थोड़े जरूर हैं, लेकिन एक -एक आदमी एक-एक से बढ़के हैं, ये विशेषता है बम्बई वालों की। यही दिल्ली में बहुत ज़्यादा लोग हैं लेकिन कॉन्फिडन्स से रहने वाले लोग वहाँ इतने ज़्यादा नहीं हैं। ये जरासा अन्तर है उसके लिये समझ लीजिए कि हमने मेहनत भी बहुत करी है। अब परमात्मा की कृपा से ऐसे ऐरे-गैरे, नथ्थू खैरे ज़्यादा आये नहीं हैं। अगर ऐरे-गैरे, नथ्थूखैरे इसमें आ जाते तो मुश्किल पड़ता। उनको कुछ दूर ही रखा गया है, लेकिन आपको भी इसका थोड़ा अन्दाज रहना चाहिये कि आपके सामने ऐरे-गैरे नथ्थू खैरे तो नहीं बैठे हुए हैं। आप बेकार के लोगों पे अपना टाइम बरबाद ना करें। माने ये कि, 'हा माझा भाऊ आहे', 'ये मेरा भाई है' लगे उसके पीछे। जब अपने भाई को आप जानते हैं कि वो शराब पीता है, बीवी को मारता है, जुआ खेलता है और हर तरह से इसने अपने को खराब कर के छोड़ा हुआ है। दूसरी बात ये कि इसने तुमको ठगाया है। तुम्हें तकलीफ दी है और दुनिया भर को तकलीफ देता है और झूठा आदमी है। सब सर्वगुणसंपन्न है । तो भी वो तुम्हारा भाई है तो उस पे तुम मेहनत कर रहे हो। तो तुम वाकई में पागल आदमी हो। आपको मेहनत करना चाहिये पहले ऐसे लोगों पर, कि जो आपसे थोड़ा मैल खाये। पहले भी मैंने कहा था कि हमेशा पहले जो सीधे -साधे शब्द हैं उनको ट्राई करिये और उसके बाद में आपको कठिन शब्दों को ट्राई करना चाहिये। पर अधिकतर लोगों का यही हो जाता है कि वो इसमें भी अपनी जो लौकिक रिश्तेदारी है उसको जोड़ते हैं कि, 'मेरा भाई, मेरा बाप, मेरी बीवी', 'मेरी बीवी' तो बहुत ज़्यादा! उसमें इतनी मुश्किले हो जाती हैं कि समझाते नहीं बनता कि किस तरह से ठीक करें। हालांकि ये बात सही है कि जब तक आपके घरवाले ठीक नहीं होंगे तब तक सहजयोग में उतरना जरा मुश्किल हो जाता है और पूरी फैमिली की फैमिली सहजयोग में आ जाये तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन आज सहजयोगियों के सामने जो प्रश्न खड़ा हुआ है अब वो ये है, उसको भी समझ लेना चाहिये कि आज तुम्हारे सामने कौनसे प्रश्न खडे हैं। आपके सामने सबसे बड़ा पहला तो प्रश्न ये है कि आप जमे हैं या नहीं? पहले जमना चाहिये। बगैर जमे सहजयोग नहीं चलता। पूरी तरह से सहजयोग में पहले जम जाओ । सहजयोग में जमने के बाद दूसरी चीज़ आपको ये करनी चाहिये कि आपको देखना चाहिये कि हम कितनों को और जमा सकते हैं? ये विचार हमेशा रखना चाहिए । आपका दीप पहले जलाया जाये, वो दीप पूरी तरह से ठीक हो जाए, स्थिर हो जाए उसको ठीक कर लिया जाए। अब इस दीप से आपको कितने दीप जलाने के हैं फिर उसका आप पता लगाते हैं। आप मन में सोचें कि साहब ये आदमी ठीक रहेगा, वो वहाँ था वो ठीक रहेगा। 'पाँचो-पच्चीसों पकड़ो, बुलाओ, एक ही डोर बंधाऊँ।' उसमें आप जानते हैं कि खूबी से काम लेना पड़ता है। अगर आप पहले जाके कह दीजिये कि वहाँ जाकर के 'जय माताजी, माताजी की जय हो' फिर तो हो गये दरवाजे बंद, बाहर खड़े कर के। उसमें खूबी से काम लेना चाहिये और ऐसा करना चाहिये कि जिससे आदमी पहले आपके पास पहुँच जाए। जब वो पहुँच गया, ज़्यादातर तो में

पहुँचवा ही देती हूँ। क्योंकि कोई बीमार पड़ गया, किसी की बीवी भाग गयी, किसी का कुछ हो गया। इस तरह के प्रकार होते रहते हैं, तो वो सीधा तुम्हारे पास आ जाते हैं। पर बेहरहाल जो भी हो जैसे ही ऐसी कोई घटना घटित हो जाये और आपके पास ऐसा कोई आदमी आ जाये तो बहुत ही अच्छा है। पर अगर आपको भी किसी आदमी को हथियाना है, तो सबसे बड़ी चीज़ जो कि किसी आदमी पर इम्प्रेशन डालती है वो आपका चरित्र, आपका बोलना, आपका करना-धरना सबकुछ इम्प्रेशन डालती है। हाँ अगर कोई बड़ा ही गया बीता हो तो वो तो उलटी ही चीजें देखेगा। आप अगर कुंकू लगा के जाएंगे तो कहेगा, 'कुंकू लगा के आया।' नहीं लगा कर गये तो कहेगा कि, 'लगा के नहीं आया ।' ऐसे लोगों की बात में नहीं कर रही हूँ जो कि बिल्कुल बेकार हैं। अब ये लोग कभी पार होने भी नहीं वाले, बहुत मुश्किल है इन लोगों को पार कराना। वो चाहे कोई भी हो, चाहे वो अपने को बहत बड़ा आदमी समझे, छोटा आदमी समझे, ये लोग पार होने ही नहीं वाले । तो उनसे तो झगड़ा लेनी की कोई बात ही नहीं है। पर जो सर्वसाधारण आप सोचते हैं कि जो आदमी इसमें आ सकता है, उससे जब आपको पेश आना है, उससे बातचीत करनी है, उससे कोई भी संबंध करना है तो उस वक्त आप बड़े खुबी से उसको पकड़े। पहली सबसे बड़ी चीज़ है कि आपका इम्प्रेशन उसपे कैसा पड़ता है, इस पर भी निर्भर रहेगा कि वो आदमी किस लेवल का है। जो आदमी किसी लेवल का होगा वो आपको देखते ही परख जाएगा कि ये आदमी कोई ऊँची किसम की चीज़़ है। लेकिन अगर वो उस लेवल का नहीं होगा तो वो आपको पहचान नहीं पाएगा। वो तो आपका शर्ट देखेगा । पैंट देखेगा, कोट देखेगा, ये देखेगा, वो देखेगा, अगर वो जरा भी लेवल का होगा तो..! मेहतानी की बात बताऊँ। हमारे नागपूर के ही एक साहब थे। वो, उनके घर में सब राधास्वामी के शिष्य थें। वो अकेले ही उनसे सबसे लड़ता रहता था। कहता था कि, 'तुम लोगों में तो कोई अन्तर ही नहीं आया। तुम क्या कर रहे हो इस गुरु-वुरु को लेकर के?' ना उस आदमी में कोई विशेषता हम पाते हैं। लेकिन जब उन्होंने मेहतानी को मिले तो वो कहने लगे कि, 'उनको देखते ही मैं समझ गया कि एक तो ये आदमी भी कुछ अलग है और दूसरी ये बोलते भी बड़े कॉन्फिडन्स से हैं तो उन्होंने कुछ पाया जरूर है। बगैर पाये आदमी ऐसा नहीं होता। ये पाये हुए आदमी हैं। तब मैंने फौरन अपने घर वालों से कहा कि, 'नहीं भाई , तुम लोग सब बकते हो। उनके जो गुरु असली हैं क्योंकि उन्होंने पाया है। अगर आप लोगों ने पाया हुआ है तो आपके बर्ताव से, आपके बातचीत से, आपके उठने-बैठने के ढ़ंग से हर एक चीज़ को लगना चाहिये, आपके कॉन्फिडन्स की वजह से भी लगना चाहिये कि इन्होंने पाया हुआ है। अगर उनको लगने लग जाये कि आपने पाया हुआ है तो धीरे-धीरे वो भी इस बात को पूछेंगे कि आपने कैसे पाया? कहाँ से पाया? किस तरह से आप इतने शांत रहते हैं? किस तरह से आपका स्वभाव इतना मीठा हो गया और ये जब तक आपके अन्दर ट्रान्सफोर्मेशन नहीं आ जाता, जब तक आपके अन्दर ये मिठास और ये आपके अन्दर बड़प्पन और ये सौंदर्य आपके अन्दर नहीं चमकता, तब तक आप किसी को इम्प्रेस नहीं कर सकते। अर्थात् मैं उन लोगों की बात नहीं कर रही हूँ जो छीछले हैं या जो सुपरफिशिअल हैं। पर साधारण, सर्वसाधारण लोग इस चीज़ को पहचान लेते हैं कि ये आदमी में ईश्वरी तत्व है। तो सबसे पहले आपको जमना पड़ेगा फिर ऐसे लोगों को पकड़ना पड़ेगा। उनकी पहचान ये है कि वो आपके तौर और तरिके से प्रभावित हो जाएं। अब जैसे बहुत से लोग हैं जो हाथ में चिमटा लेकर बैठते हैं। अधिकतर गुरु

जो असल वाले होते हैं वो जो आया उसको चार चिमटे मारते हैं पहले, तो भी वो चिपका रहा तो उसको बोलते हैं कि, 'जा बैठ उधर' उसको बिठाते थे| अब वो दशा तो है नहीं कि आप अगर गुरु हैं तो आपको तो अब लोगों को फँसाना है! जैसे क्राइस्ट ने कहा था कि, 'आओ, मैं तुमको सिखाऊँगा। किस तरह से इन्सान को पकड़ा जाए और तुम मछली पकड़ना छोड़ दो।' उसी प्रकार अब आप लोग सीखिये कि, किस तरह से इन्सान पकड़ना चाहिये और इस भवसागर से बचाना चाहिये। यही हमारे सामने सबसे बड़ा आज प्रश्न है। ये सबसे बड़ा प्रश्न सहजयोगियों के सामने है कि किस प्रकार आपको और लोगों को बचाना चाहिये और वो हर हालत में होना ही पड़ेगा । जितना भी हो सकता है, उसके लिये जो जो मेहनत करनी पड़े, जो-जो आफ़तें उठानी पड़े वो हमको करनी पड़ेगी और हमें लोगों को बचाना पड़ेगा और बहुत से लोगों को हमको सहजयोग में उतारना पड़ेगा। यही आज हमारे सामने प्रश्न है। और इसीको करना चाहिये। ये नहीं कि ये हमारे भाई की नौकरी नहीं लगती, हमारा फलाना काम नहीं होता, ये सब नहीं है। आज सबसे बड़ा काम ये है कि आप किनारे पे खड़े हैं और उन लोगों की ओर देखिये जो डूब रहे हैं और उनको बचाने की कोशिश करिये। ये सबसे बड़ा प्रश्न हमारे सामने है। अगर इस प्रश्न को हम हल नहीं कर सकते, तो हमारा पाना भी बेकार हो गया और सभी बेकार हो जाता है । आज आप यहाँ पर होली में प्रतिज्ञा करें अपने अन्दर, मन में और ये कहें कि हमारा लक्ष्य एक - एक आदमी को कम से कम एक -एक हजार आदमियों को बचाना है। कम से कम पूरी मेहनत करके कितने लोगों को आप बचा सकते हैं। उसके लिये कभी-कभी आपको बहुत झुकना भी पड़ेगा। बहुत सी परेशानियाँ भी उठानी पड़ेगी। बहुत सी तकलीफें भी उठानी पड़ेगी। लेकिन सब चीज़ को आप अपने सामने रख के संयत भाव से बहुत सूझ- बूझ से और लोगों को बचाने का प्रयत्न करना है। इसमें चिड़चिड़ाना, गुस्सा होना, नाराज़ होना, अपने पर भी झिलझिलाना, दूसरे पे झिलझिलाना, कोई भी चीज़़ में ऐसा सोच लेना कि हमने बहुत कर लिया या ऐसा सोच लेना कि हम कुछ नहीं कर पाते। दोनों एक ही है या दूसरों पे रौब झाड़ना, उनको डाँटना, फटकारना या दूसरों से डरना ये सब चीजें छोड़ कर के बड़े संयत भाव से और कॉन्फिडन्स के साथ आपको ये कार्य करना चाहिये कि किस तरह हम ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को बचा सकते हैं । अब जैसे एक राहरी में हम गये, वहाँ ये कहा गया कि, 'माताजी के पैर मत आओ' क्योंकि मेरे पैर एकदम सूज कर मैंने के एकदम वो हो गये थे। तो कहा कि, 'अब माताजी के पैर पर नहीं आने का' तो सबको बुरा लग गया। चलो, कहा, 'भाई यहाँ आओ।' अब क्या करें? थोडे और सूज जाएंगे, उतार लेंगे क्योंकि उस बात पर लोगों को नाराज कर के कैसे होगा। उसमें भी प्रेम ही था उनका लेकिन उस प्रेम में भी अगर वो समझे कि इससे माँ को तकलीफ होती है तो कोई बात नहीं फिर। पर चलो, कोई बात नहीं। किस तरह से भी मान जाए और इसको पा ले, एक बड़े हो करके। एक बड़े के नाते, एक ऊँचे स्थान पे बैठे हुए आदमी समझ कर के अब ये कार्य को करना चाहिये। ये बड़ी समझदारी की, सूझ-बूझ की और प्रगल्भता की बात है। ये प्रगल्भता, ये मैच्यूरिटी आपके अन्दर, सबके अन्दर आये और आप परमात्मा के प्रकाश से प्लावित हो और सबको अपना प्रकाश दें। ऐसा, ये मैं आपको आशीर्वाद देती हूँ।

Bordi (India)

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