Public Program Day 2, Atma Kya Hai

Public Program Day 2, Atma Kya Hai 1991-03-03

Location
Talk duration
76'
Category
Public Program
Spoken Language
Hindi

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3 मार्च 1991

Public Program

New Delhi (भारत)

Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft

Atma Kya Hai Date 3rd March 1991 : Place New Delhi Public Program Type : Speech Language Hindi

[Original transcript, scanned from Hindi Chaitanya Lahari]

सत्य को खोजने बाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार । डाक्टर साहब ने अभी आपको सभी चक्रों के बारे में बता दिया है । उसी प्रकार कल मैने आपको तीन नाड़ियों के बारे में बताया था ये थी ईड़ा, पिंगला और सुष्म्ना नाड़ी । ये सब नाड़ियां, ये सारी व्यवस्था, परमात्मा ने हमारे अन्दर कर रखी है । इस उत्क्रान्ति के कार्य में, जबकि हमारा विकास हुआ है, तब धीरे - धीरे एक अन्दर प्रस्फुटित हुआ । किन्तु सारी योजना करने के बाद, पूरी तरह से इसकी व्यवस्था करने के बाद भी एक प्रश्न था कि हमारे अन्दर ये जो परमेश्वरी यंत्र बनाया हुआ है इसको किस तरह उस परमेश्वरी तत्व से जोड़ा जाय । मैने आपको कल बताया था चारों तरफ ब्रहुम चैतन्य रूप ये परमात्मा का प्रेम, उनकी शुद्ध इच्छा कार्य कर रही है । लेकिन ये ब्रहम चैतन्य अभी तक कृत नहीं था इसलिए जब कलयुग घोर स्थिति में पहुंच गया तो उसी के साथ-साथ एक नया युग शुरू हुआ है जिसे हम कृतयुग कहते हैं और एक चक्र हमारे रा युग आ सकता है । है । इसी कारण सहजयोग में हजारों लोग पार होने लगे हैं अर्थात् सहस्रार का खोलना बहुत जरूरी था । इस कृतयु ग के बाद ही सत्य इस कृतयु ग मैं ये ब्रहृम चैतन्य कार्यान्वित हो गया जब से सहस्रार खुला है, कृतयुग शुरू हो गया है । अब इस कृत्यु ग का अनुभव आपको साक्षात्कार के बाद आये गा । हर पल आये गा । आपको आश्चर्य होगा कि ब्रहृम चैतन्य का कार्य कितना सुन्दर, अनुपम और ईमानदारी का है । इसमें कही कोई गलती० नही, इसमें इतना प्रावीण्य है, इतना कुशल है कि आश्चर्य होता है कि ये किस तरह कार्य करता है। । तो अब आपका एक कार्य है कि आपका संबंध उस ब्रहम चैतन्य से हो जाये, उसके लिए आपके अन्दर ये कुण्डलिनी शक्ति साढ़े तीन वलयों में बैठी हुई है । वलय को कुण्डल कहा है । इसीलिए इस शक्ति को कुण्डलिनी कहते हैं । ये शक्ति आदि- शक्ति का प्रतिविम्ब है और आत्मा परमात्मा का प्रतिविम्ब है । आपसे कल बताया था कि आदिशक्ति परमात्मा की शुद्ध इच्छा है और वो इच्छा ये मैं है, सब उनके सामाज्य में आयें और आनंद का उपभोग करें । यही उनकी एक शुद्ध इच्छा है । जिसे बक्त कुण्डलिनी उठ करके और इन छः चक्रों को भेदती हुई ब्रहम -रन्ध सर्वव्यापी ब्रहृमचैतन्य से एकाकारिता प्राप्त करती है उस वक्त क्या चाहिए । सबसे पहले जैसे आप लोगों में से बहुत लोगों को ठंडी ठंडी हवा जो आपको महसूस हुई, जिसका बोध हुआ, यही ब्रहुमचैतन्य है । कुण्डलिनी जब ऊपर चली आई तो बहां से भी आपको ठंडी है कि सब जो कुछ जो इंसान के स्वरूप मानव के स्वरूप में इस संसार को भेदती है और उस क्या घटित होता है वह जान लेना उंडी हवा सी लगती है, ये ठंडी यह तो बाहुय की चीज हुई जिससे कि आप जान लें कि आप पा गए हैं । इसे हम आत्मसाक्षात्कार कहते हैं । उसकी शुल्आत हो गई किन्तु ठंडी हुवा का एहसासे हुआ ।

आत्मा क्या है ये जान लेना चाहिए । मैने कहा है कि आत्मा आपके हृदय में प्रतिबिम्बित होती हैं । आत्मा सिर्फ एक प्रतिविम्ब मात्र हमारे सारे कार्य को देखने वाला एक दृष्टा है । अभी तक उससे हमारा कोई संबंध नहीं । न बह देखता है और न ही उसका प्रकाश हमारे चित्त में है । हमारा चित्त अब भी अंधकार में ही है । तो इस आत्मा का स्वभाव क्या ? वह जान लेना चाहिए । बो जानते ही आप जान जाये गे कि इस आत्मसाक्षात्कार से आप क्या प्राप्त करते हैं पहले तो जब कुण्डेलिनी इन चक्रों में से गुजरती है तो आपको अनेक प्रकार की नई नई उपलब्धि होती है, जैसे शायद डॉक्टर साहब आपने बताया होगा कि क्या-क्या उपलब्धियों होती हैं । लेकिन जब आत्मा का प्रकाश आपके चित्त में आ जाता है तब आप आत्मा का इस स्वरूप में जो कार्य है उसे प्राप्त करते हैं । और उसका सबसे बड़ा कार्य यह है कि उसके प्रकाश में आप केवल सत्य को जानते हैं । मैं कहूं सत्य को नहीं 'केवल सत्य को । इसका फर्क 'केवल जितनी आँखे उतना देखना होता है । किन्तु समझे आप ? जितने मुँह उतनी बात होती है । सत्य ' यह होता है कि जब इसे आप प्राप्त कर लें तो सब लोग एक ही चीज को जानते हैं और उसमें दूसरी शक्ति है कि ये केवल ज्ञान को देखती है जैसे कि समझ लीजिए कोई आदमी कहे गा कि ठीक है आप केसे जानिये गा कि ये असली ये एक फोटो है या एक मूर्ति है या एक साधु हैं ये असली है । हैं। कि नकली है ? इस तरह से आप इसे जान सकते हैं कोई अगर कहता है कि ये असली है, कोई कहता है नकली है, उसकी कोइ पहचान नहीं, उसका कोई ज्ञान नही, तो फिर वो जानने के लिए कोई मार्ग भी नही । एक ही मार्ग है कि 'केबल ज्ञान स्वरूप" जो आत्मा है उसके प्रकाश में हर चीज को देखना चाहिए । उस वक्त आप उस आदमी की ओर या उस फोटो की ओर या उस मूर्ति की ओर हाथ करके दोनों हाथ पूछे - आत्म साक्षात्कार के बाद, कि क्या ये सत्य है ? ये गुरू सत्य है ? इतना ही पूछना है बस । ऐसे पूछते ही आपके हाथ में उस सत्य के दर्शन हो जाये गे । आप जान जाये गे अगर बो सत्य है तो आपके हाथ में ठंडी - ठंडी हवा चल पड़े गी । जैसे कल यहाँ पर शिर्डी के श्री साईनाथ के बारे में किसी ने पूछा कि माँ शिर्डी के साईनाथ क्या सच्चे थे ? मैने कहा हाथ करो मेरी ओर, एक दम उनके ठंडी हवा बहने लगी । ये कुछ बातें शास्त्रों में भी लिखी गई हैं । ये जो हाथ में जोर - जोर से ठंडी - कहा है कि परमात्मा है । आजकल तो ऐसे भी लोग हो गये हैं जो क हते हैं कि परमात्मा नही है । ये कहना तो बड़ी अशास्त्रीय और अविज्ञानिक बात है कि परमात्मा नहीं है । आपने खोजा है ? आपने जाना है ? बगैर देखे ही आप कह रहे हैं कि परमात्मा नहीं है । जानने के बाद आप कहैं तब तो कोई कि परमात्मा है ? एकदम आपके हाथ में ठं-डक सी चलेगी । बात भी है । लेकिन अगर आप पूर्छ यदि आप सहजयोग में काफी उतरे हों तो ऐसे लगेगा जैसे ऊपर से नीचे तक गंगा बह रही है । एकदम से आदमी शांत हो जाए गा । सो पूरी तरह से जिसे हम केवल ज्ञान कहते हैं वह आप प्राप्त करेंगे । शुरूआत में जब तक पूरी तरह से आप नाव में नहीं बैठे तो हो सक ता है कि डगम ग हो, लेकिन जब - छोटे बच्चे भी बता सकते हैं कि आप पूरी तर ह से उसमें जम जाते हैं तो आश्चर्य होता है कि छोटे ये साहब कैसे हैं ? अभी एक बच्चे ने (अंग्रेज बच्चे ने) फोन उठाया और मुझसे कहा 'मां वह योगी नहीं है, वह आपसे बात करना चाहता है ये कैसे जाना ? ये चैतन्य जो है उसका आपको बोध होता है।

कल मैने आपको बताया कि बोध होने का मतलब होता है कि केन्द्रीय स्नायु तंत्र पे, अपनी हैं । ये कहने से नहीं कि ये ऐसा है, वैसा है । जैसे आप अब देख सकते मेज्जा संस्था पर आप जानते कि यहाँ एक सफेद चद्दर बिछी हुई है, सब लोग देख सकते हैं कि यहां एक सफेद चद्दर बिछी है, उसी प्रकार आप जानते हैं अपने सेन्ट्रल नरवेस सिस्टम पे कि सत्य क्या है और असल्य क्या है । हुई फिर बताने की जरुरत नहीं, कहने की जरूरत नहीं सो सत्य को जानना है । बुद्धि से नहीं हो सकता | अगर बुद्धि से होता तो इने झगड़े क्यों खड़े होते ? कहीं साम्यवाद है, कही पूंजीवाद, कही प्रजातंत्र है कही राक्षस राज्य ( । ये सारे वाद झूठे है, किसी मैं भी सत्य नहीं क्योंकि ये सिर्फ हर एक डैम्नोक्रेसी) की अपनी धारणा है और उस धारणा को सत्य मानकर लोग उससे चिपक गए । जैसे हमारी बात लीजिए, आप सब ये कहंगे कि हमारे पास जब सब शक्तियां हैं तो हम तो बड़े भारी (कैपिटलिस्ट) पूंजीवादी हैं, सारी शक्तियां हमारे पास हों तो हम तो बहुत बड़े केपटलिस्ट है ही परन्तु बहुत ही बड़े कम्युनिस्ट भी है क्योंकि वो शक्तियां सबको दिए बगैर हमें चैन नहीं । इस उमर में भी हर तीसरे दिन सफर करते रहते हैं । चैन ही नही । जब तक दिया नहीं अच्छा ही नही लगता । देने की शक्ति कम्युनिज्म से नहीं आती और पाने की शक्ति कैपिटलिज्म से नहीं आती । तो हर चीज में जो सत्य का अंश है उसे जानने कोन दुनियां कौन सी धारणाएं सत्य है कौन सी झूठ है । कोन सा । कौन से शास्त्र में कौन सा सच लिखा गया है और कौन का एक ही तरीका है कि इस आत्मा को प्राप्त करो । तब आप समझ जायेंगे कि कोन में आज तक हुए जो कि आत्मसाक्षात्कारी थे । हिस्सा धर्म का ठीक है और कौन सा झूठ है। सा झूठ । कौन सी बात इसमें असलियत है ओर बाकी नकलियत । जिसे कहते हैं पर्दाफांश कर देना । ये सिर्फ आत्मा के प्रकाश में ही घटित हो सकता है और दूसरी बात कि आपका जो चित्त है, आपका चित्त जिसे ध्यान (अटेन्शन) कहते हैं, ये इस प्रकाश से जब प्लावित होता है, इसका पोषण होता है, जब इस प्रकाश से भर जाता है तब जहां भी चित्त घुमाइये जहां भी नजर करिए एक कटाक्ष-मात्र से भी आप से कार्य कर सकते हैं । और यहां बेठे - बैठे कही भी दुनियां में जो चीज हो गई है, जो बहुत लोग हो गए हैं और जो लोग हैं, किसी के बारे में भी आप जान सकते हैं । ऐसा ये कम्यूनिके शन है बहुत ही कुशल । आजकल के जैसे नहीं कि टैलीफोन ही नहीं लगते । यहां बैठे सकते हैं कि किस आदमी में क्या बात है, कौन सा चक्र उसका पकड़ा है । व्यक्ति की बुराई तो बाहृय चीज है, लक्षण है, अेंदरूनी चीज ये है कि उसके कौन से चक्र पकड़े हैं यहां बैठे उसके चक्र ठीक कर सकते हैं । लेकिन ये कम्यूनिकेशन पूर्णत्या दृढ़ हो जाना चाहिए । एक चित्तमात्र बैठे आप जान बैठे ही आप से आप इतना कार्य कर सकते हैं । और आपका चित्त जो है वह एकाग्रता से सब देखता ही रहता है । बस देखता है । मैने आपको कल कहा था कि किसी चीज को देखते हुए सोचने की कोई बात नहीं । देखते बनता है, कितने प्रेम से यह सजाया है, यह भी सोचने की बात है या किस कलाकर ने अपनी कला का आनंद यहां भरा है, यह भी सोचने की बात है ? वह जो कुछ सम्पूर्ण में सोचने की बात वह जो कुछ सम्पूर्ण में उसने यहां दिया है वो सारे का सारा चैतन्य बनकर के झरने लगजाता है और बस आनंद के सागर में मनुष्य डोलायमान रहता है । जिसे हम शुरूवात में क हते हैं कि निर्विचार समाधि प्राप्त हुई । औ/

हठ योग में जिन लोगों ने सिर्फ व्यायाम करना जाना है उन्हें जानना चाहिए कि व्यायाम एक बहुत थोड़ी सी चीज है । पातांजली का अंगर आप पातांजल शास्त्र पढ़े तो उसमें समाधि की ही बात की है, पहल निर्विचार, फिर सदिकल्प, फिर निर्विकल्प समाधि । इस तरह से उन्होंने इसकी तीन दशायें ) समाधि का अंग्रेजी में अर्थ हो सकता है (अवेयरनैस दिखाई है, वही आपको सहजयोग में प्राप्त होगी। चेतना, कि आपमे एक नया आयाम, एक नया डायमेन्शन आ जाता है जहां आप बुद्धि से परे उठकर के हर चीन को समझने लग जाते हैं । सहजयोग में आपने सुना होगा कि बहुत से (स्यूजिशपन्स) संगीतकार हैं, वहुत से (आर्टिस्ट) कलाकार हैं (जो बड़े मशहूर आजकल हो गए हैं) वो सहजयोग में आते ही बहुत बड़े आर्टिस्ट हो गए पहले कुछ भी नही थे कि जिस भी चीज को देखता है उसका पूरा का पूरा हिसाब । । उसकी वजह यह है कि उनका चित्त इतना सकाग्र हो गया है - किताब उसका पूरा चित्त ही मानों उसके मनस्पटल पर छा जाता है । बहुत से बच्चे ऐसे होते हैं जो स्कूलों में पढ़ने में बहुत कमजोर होते हैं, सहजयोग में आ के अब्वल आने लग जाते हैं । यहां तो रिकार्ड है कि एक लड़का 23 साल के अंदर सी. ए. हो गया । अभी तक कोई नही हुआ ।। सब चीज के रिकार्डज है । इंजीनियर्स जो कभी इतनी उम में नहीं हुए थे वे हो गए । स्वभाव में से सहजयोगी बच्चे पढ़ने लिखने में बहुत तेज़ हो जाते हैं उनके अदब आ जाता है, अपनी संस्कृति की जो विशेषता है कि हमें अदब करना चाहिए । सुबह पृथ्वी तत्व को हम नमस्कार करते हैं कि तुझे हम पैर से छुएं गे, क्षमा करना । यह जो अदब है पहले सिखाया जाता था, बताया जाता था, देखा जाता था । अपने आप ही मनुष्य नम हो जाता है । उसमें एक जिन बातों के बारे में धार्मिक पुस्तकों अदब आ जाता है और उस नमता में बड़ा मजा आता है । जिन में लिखा गया है वह सारे ही तत्व हमारे अंदर जागृत हो जाते हैं । ऐसे - ऐसे लोग जो मशहूर गुस्सेल थे, गुस्सैल तो क्या कहना चाहिए बहुत ही ज्यादा उपद्रवी लोग थे, जो हाथ में हमेशा तलवार बंदूक लेकर घूमते थे, वो भी हमारे इतने प्यारे बेटे हो गये कि लोगों को समझ ही नहीं आता कि इनको क्या हो गया है । ऐसे बदल कैसे गये ? ये इतने सुन्दर कैसे हो गए ? तो अपने अंदर का जितना भी गौरव है जितनी भी विशेषताएं हैं जितना भी प्यार है, वो सारा ही एकदम उमड़ पड़ता है और मनुष्य शांति मैं स्थापित हो जाता है । जैसे एक चक्का है, चक्र है, पहिया है वह धूमता है लेकिन उसका जो मध्य है जो धुरी है वह शांत रहता है । आप चक्के की उस परिधि से निकलकर के मध्य में आ जाते हैं । ये आत्मा आप ही के अन्दर बसा हुआ आपका अपना है और कुण्डलिनी भी आपकी आपनी शक्ति है । आत्मा के प्रकाश में जो सबसे बड़ी चीज देखनी है वह है आनंद । ओर दुख नहीं होता । एकमेव चीज निरानंद, सब निराआनंद ओर उस निरामंद को आप अपने आप ही प्राप्त कर आनंद मैं सुख लेते हैं । जैसे कि सब कुछ ड्रामा चल रहा है चारों तरफ़ और फिर भी आप उसमें उलझ जाते हैं । गर कोई लड़ रहा हो तो आप उसके साथ लड़ने लग जाते हैं । यदि कोई रो रहा हो तो आप उसके साथ रोने लग जाते हैं । लेकिन जब ड्रमा खत्म हो जाता है तो आपको पता चलता है कि ये तो खत्म हो गया, अरे ये तो ड्रामा था । उसी प्रकार भव सागर पार करके दुनियां के झमेले की ओर आप देखते हैं कि

क्योकि विशा्द चक्र श्री कृष्ण का बात आप समझ सकते हैं ये तो सारा खल है, य लीला है । । आदि रओं के बताय लारे थम आपके अन्द सकता । इर से नही, बहुत से लोग डर ने अच्छे होते हैं, क्योंकि वे अच्छाई का मजा उठाने लग जाते हैं अच्छे होने का नजा उठाने लगते हैं । मैन तो अंति कंजूस लागों को दानत्व में मशहूर होते देखा है । फिर सहजयागी गलत काम नहीं कर ग र जागृत हो जाते हैं । आपनी प्रिम का वह सारा कार्य मे । सार विश्व को ।े उनक अदर छुपा ढुआ जाता उभर आया बाहर । हिए । प्रम चा परमात्मा का प्रेम निर्वाज्य है, अलिप्त है । जैसे कि एक पेड़ में उसके अंदर का तत्व तत्य, संव कुछ कता है । पेड़ की हर शाखा, पत्ते फूल सबको देता है । फिर भी किसी एक चीज में अटक नहीं जाता है । मान लीजिए कि उसे एक फूल पसंद आ जाय, यदि बह तत्व वही अटक जाय तो पेड़ तो मर जाये गा और फूल भी मर जाये गा । प्रेम । मन बेटा, मेरी क्रेटी, मेरा घर, वे ममत्व है । अंत में वही बेटा, बेटी और घर इतना सताते हैं कि अरे बाप रे मेना तो किसी चाज में अटकाव करना ही का मारना है हो तो अच्छा है। तो सब को अनुभव है । इस अनुभव से वाप । अगले जन्म तो बाबा एक बच्चा त । ये जो आपने ज्ञान प्राप्त किया वह वड़ा दुःखदायी लगा होगा लेते हैं कि किसी से भी लगाव करने की कोई जलूरत नहीं लेकिन किसी नें अटकने की कोई जरूरत नहीं । आत्मसाक्षआत्कार से सहज में ही आप जान । जिसके साथ जों करना है वह करना है । त्वतः ही आपके व्यक्तित्व में बह बात आ जाय गी । परदेश में आप जानते हैं कि बहुत से लोग ड्ग्स लेते हैं । यहां भी किसी चीज को मना नही करती मैं । शुरु हो गया है । यहाँ पर लोगों में जरा ढोंग है । वजह वे वड़ी -बड़ी बातें हम जानते हैं हमार तामने रम रहे, कृष्ण रहे, नानक रहे, कबोर रहे, तुवासम, सब बड़े सोचते हैं कि चला कम से कम उन बड़े - भी अच्छे हैं । श्री राम की ओर बीबी को रोज नारेंगे । कोई, - कोई लोग तो ऐसे मने तुना है थोड़ा वहुत । पर बहां के लोगों में बड़ी ईमानदारी है । वे ढोंगी नहीं है लक्ष्मण । तो हम लाग यह बड़े लीग इस देश में आय दिखावा तो हुम कर सकते हैं कि म बुड़े आदर्शों का मेदिर मे मूर्ति रखेंगे है कि सुबह से शाम तक सो झूछ न बोलें तो वे हिन्दुस्तानी हो ही नही सकते। हिन्दुस्तानी की पहचान यह है कि झूठ वोलना चाहिए सोचिए - ये तब चीजें हमारे अंदर इसलिए समा गई कि हम ढाँग करते है । हर आदमी अपने को आदर्श चताने की कोशिश करता है । अपने अंदर उसने कभी देखा ही नहीं । ये देखा ही नहीं कि मैं क्या हूं ? मैं क्यों जुठ बोलता हूं ? क्या जरूरत है मुझे झूठ बोलने की ? सलड ठीक है आप नमाता रखें, बोलें ही मत, लेकि न हमारे सामने इतने बड़े -बड़े आदर्श व्यक्तियों की जीवानियां है कि उनको देखकर हमें लगता है कि इनके सामने हम इतने बुरे लगेंगे । इसलिए दिखावा करना अच्छा है । चाहे फिर वह धार्मिक हो, चाहे नास्तिक हो, चाहे बह मेंदिरों में जाए चाहे मस्जिदों में, चाहे बो भगवान को कुछ भी कह दें । झूठ बोलते थे ? वे क्यों नहीं दुष्टता करते थे ? उन्होंने ऐसे संघ क्यों नहीं बनाये जो सबकी मार पीट करें ? उनमें कौन सी ऐसी शक्ति थी कि उनको इतना सताया, इतना तंग किया तो भी वे शांति पूर्वक अपने में ही आनंद विभोर रहते थे ? तो इसमें भी हमारा दोष नहीं । गर हमने ढोंग किए है तो उनमें कम से बह क्यों नहीं अपने ये जो साधु संत हो गए हैं उनकी क्या विशेषता थी ? ट

म एक वात ता अच्छी है कि कृम आवर्शा को विशेष मानते हैं । गर आपने ढांग करने छोड़ दिए ऐसी नंदी गंस्कृति है कि इनसे कुछ सीखने का हमारे लिए है ही नही, कुछ भी सीखने का नही लेकिन ये इंगि छोड़ना पड़े गा अपनी सांस्कृति में कुछ चीजें अत्पन्त युन्दर है।। परदेशी कोई आदर्श नहीं हुए इसलिए ढगि नही है । इसलिए राहजयोग में आए औरपार हो गाए ट से । गहनता में उतर जाते हैं । एक रात में लोगों ने ड्रग्स छोड़ थे प्रीग्राम में । ं । लेकिन क तो मवत हो जाये गे, विदेशां में में देखती हूं कहां तो कोई संम्कृति ही नहीं है । शराब छोड़ दी एक रात में दी जिसके नशे में वेहोशी की होलत में आवे हिन्दुस्तान में नहीं छूटती गल्दी से । योड़ा टाइम लग जाता है । कुछ लोगों की आदत छूट भी जाती है नही रही थी वो आकर कहने लगे मां । उने छूट एक साहव सहजयोग में अकर भी तम्बाकू खाते थे पता नहीं क्यों जब में आपके फोटों के साम ने घ्यान करने केठता हूं तो मेरा मुंह ऐसा फूलने लग जाता है | । कही हनुमान जी तो नहीं हो रहा हूं १ मने कहा कि कोई विशुक्धि का ही कष्ट है कहने लगे हां चिशुद्धि मेरी वहुत दुःखती है । मैने कहा देखिये में सच वात बताऊँ ? । आप तम्बाकू कहने लगे हां खाते हैं तो आप हनुगान जी जैसे हो ही जायगे । तम्बाकू खाना आप छोड़ दीजिए खट से । उनके दिमाग । साल भर तक मैं आया माँ ने कैसे जाना । उस दिन से तम्बाकू छूट गया । फिर भी साल भर लगा वह हनुगान जी बनते रहे । तव लगा कि सव ठीक हो गा । तो सहजयोग में यह भी इलाज है । गर आप ढंगी पना करेंगे तो चार तरफ फैला हुआ परग चेतन्य उसका भी इलान कर लेगा । बहुत बड़ी सजा , थोड़ी सी । एक और साहव राहजयोग में अये दो साल रहे तो भी सिगरेट पीते थे । कहने लगे नही देगा कभी पीते हैं । मैने कभी किसी से नहींी कहा कि सिगरेट मत पियो, शराब मत पिओ, नहीं तो कभी आधे लोग ऐसे ही उठ जाये गे । सहजयोग के बाद देखेंगे । तो एक दिन वो गाड़ी चला रहे थे । उनके साथ छ: और लड़के पर के गाड़ी मे जा रहे थे । अव सात आदमी गाड़ी में, कहीं जाकर के एक्सीडट हो गया । सारी गाड़ी टूट गयी, सब कुछ हो गया, सब लड़कों को चोट आई, लेकिन इन महाशय को सिर्फ. विशुद्धि की अंगुली पर चोट आई । जब आप सिगरेट पीते हैं तो दारी विशुद्धि पकड़ती है । तब आये लेकर मेरे पास अंगुली । कहने लगे मां आज से सिगरेट छूट गई । आदि शक्ति की ये जो शक्त्यिों है ये छोटे तरीकों से आपको यो ठीक करती है । और आप स्वयं ही जानते हैं जैसे दिल्ली में जब में शुरू में आती थी तो लोग कहते मां मैरा तो आज्ञा प्रेम से भरी हैं । ऐसे छोटे कि मेरा ये चक़ पकड़ा है । पकड़ गया गाने ये कि मैं वड़। अहकारी हूँ, मेरे अंदर अंहकार है । मो इसे ठीक करो । लेकिन आप ही बताइये अगर आपने किसी से कहा कि तुमग अंहकारी हो, सददाग हुसैन से भी कहिए, तो मारने को दोड़े गा । वो मानेगा थोड़़े ही, कोई नहीं मानेगा कि मेअहकारी हूं । पर राक्षात्कार के बाद आप स्वयं कहते हैं माँ मं वड़़ा अहकारी हूं । ऐसा नहीं, अव सारी ही भाषा चक्र| की शुरू हो गयी। चक्रों की ही बात होती है कि मां गेरा आज्ञा पकड़ा है ठीक करो । इस अकार गनुप्य की भाष। ही बदल जाती है । आपे एक जोर दूरारे को जानने लगते हैं किइनका क्या पकड़ा] है ? एकसाहब सहजयोग के बाद भी वहुत जोर से डांटते थे लड़ाई करते और वाकी सहजयोगी देखते थे । खासकर दिल्ली से कुछ लोग पहुंचे थे उधर गहाराष्ट्र में । महाराष्ट्र के लोग जरा दञ्य है । दिल्ली वाले सोचते हैं कि हम राजधानी में रहते हैं सो उन्होंने झाडना शुरू कर दिया, ते चुपचाप सब खड़े रहे। तो मैने कहा कि तुम लीगों से कुछ कहा क्यों

पकड़ी हुई थी तो बो करते क्या ? राइट विशुद्धि नहीं ? कहने लगे माँ क्या कहै इनकी दायी विशुद्धि पकड़ी थी तो उनको तो बोलना ही था । हम उनसे बोलकर क्यों अपनी राइट विशुद्धि खराब करते । बोलने दीजिए हर्ज क्या है । है बो मनुष्य के ऊपर है । और जैसे तो स्थित प्रज्ञ की जा परि भाषा आपको गीता में वत्ताई कि विशुद्धि चक्र मैं बताया कि आपसी प्रेम आये । भी सहजयोगी बन कर जब यहां आते हैं और महाराष्ट्र के देहातों में घूमते हैं, उनकी झोपड़ी में बैठ कर के खूब आनंद से गाना गाते हैं मराठी और हिन्दी में बहुत से मुसलमान सहजयोग में आ गए हैं । आपको आश्चर्य होगा । और सब गणेश जी की स्तुति करते हैं । और जो कट्टर हिन्दू थे वो भी अल्लाह हो अक बर करके अपनी विशुद्धि को ठीक करते है । तो आपको सहजयोग में मुसलमान भी होना पड़े गा और सिख भी होना पड़ेगा, इसाई भी होना पड़े गा । असलियत में, नकलियत में नहीं । बाकी सब नकलियत में एक जमाने में भारत को गुलाम रखने वाले धर्मडी अंग्रेज ं । सब धर्मों में इसका मजा सब धर्मों का जो मजा है उठाइये । ये क्या बेवकूफी है, लड़ रहे हैं बैठे हैं । है कि ऊंची ऊंची बातें कही हैं । इतनी कुछ हमारी व्यवस्था कर गए उसका मजा उठना चाहिए । दूसरे का भय, एक साँप भी दूसरे सॉँप से नहीं डरता, कोई जानवर भी है । पर इंसान एक दूसरे से बहुत डरता है । और जितना देश अंधकार वश आपस में लड़ रहे हो । मैंने सुना नहीं जो एक दूसरे से डरता प्रक्ल होगा जैसे अमेरिका । अमेरिका में एक अमेरिकन दसरे से डरता है । जितना वो डरता है वो हम लोग नही डरेंगे । इसकी वजह यह है कि व्यक्तिगत 'रूप से सबने अपनी - अपनी प्रगति कर ली है । है लेकिन आत्मसाक्षात्कार के बाद सामूहिकता में वह पनपता प्रत्यं ग हो गये व्यक्तिगत प्रगति में मनुष्य अकेला छूट जाता है । जैसे कि आप एक ही विराट के अंग प्रत्यंग हो गये एक ही अकबर के आप अंग - । सारा संसार आपका मित्र है, एक हाथ को तकलीफ हुई तो दूसरा हाथ फौरन मदद को आ जाता है। | प सारा संसार आपकी मदद करने वाला है । ये सब कुछ केवल सहजयोग से हो सकता है । इस उत्थान को आप प्राप्त करें और उसमें जमम और अपने यही आत्मिक आनंद है जिसे आत्मानंद कहते हैं । उसे प्राप्त करना उत्थान का समय आ गया है । आत्मसाक्षात्कार में पूर्णतया जिये । है, उस सुख को उठाना है । सब कुछ आपके लिए तैयार है । पूरा इंतजाम है सिर्फ आपकी मनकी तैयारी हो तो ये कार्यपूर्णतया हो सकता है । सहजयोग में आने के बाद यह जान लेना चाहिए कि अभी भी अंदर चक्रों में कुछ न कुछ दोष है। उसको पूरी तरह पहले स्वच्छ करना है और ठीक से रखना है । किस तरह से करना चाहिए यह आपको सीखना चाहिए । गर आपको अपनी जरा भी इज़्जत है जरा भी अपना ख्याल है, जरा भी अपने साक्षात्कार को आप विशेष चीज मानते है तभी आप इसे पा सकते हैं । चाहिए विशेषाजैसे आप विशेष है तभी तो आप यहां आए आलतू फालतू लोगों का यह काम नही इसको हैं । लेकिन आपने अपनी विशेषता जानी नहीं । इसे पूरी तरह से जान लें, ये बड़ा भारी काम है । सारे संसार में हो रहा है । हमारे पति भी आप जानते हैं यूनाइटेड नेशन्स में सेक्रेटरी जनरल रहे, और.

देशों में काम किया वह कहते है कि सहजयोग बास्तविक यूनाइटेड नेशन्स है । हजारों आदमी इकटूठे हो जाते हैं । हर दिसम्बर में हम लोगों का मेला लगता है । आठ रहते हैं । इस मर्तबा 56 देशों से लोग आए थे । कोई झगड़ा नहीं कुछ नहीं सब आपस मैं प्रेम से थे । कोई झगड़ा नहीं बच्चों का, स्त्रियों का, पुरूषों का कोई झगड़ा नहीं। और इतनी शुद्ध ता । अपने पति के साथ विदेश में रहते हुए मैं देखती हूं कि आदमी किसी औरत के पीछे भाग रहा है औरत उस आदमी दस दिन हम लोग गणपतिपुले में रही है। के पीछे भाग । मुझे समझ नहीं आता । ये सब पागलपन छूट जाता है। मनुष्य एकदम शुद्धस्वरूप हो जाता है । जैसा हमारा नाम निर्मल ऐसे आप सब निर्मल हो जाइये । ये सब व्याधियों और लालच इनसे आप सब छूट जाते हैं । इनसे एक दम फारिक हो जाते है । मैं आपको कोई बड़े - बड़े आश्वासन नहीं दे रही । जो आप है इसे आप प्राप्त करें । लेकिन इसमें सामूहिकता से कार्य होना है । गर आप कहे कि मैं घर में अकेला पूजा करता नही होने वाला । इससे आप की गहनता कढ़े गी लेकि न वह रूक जायेगी क्योंकि जब तक पेड़ फैलेगा नही हं तो इससे कुछ तब तक गहनता आयेगी नहीं और अगर आप सिर्फ फैलते ही गये और गहनता नही जोड़ी तो भी आप में असंतुलन आ जाये गा । इसलिए जो संतुलन धर्म का है वह आपके अंदर जागृत होने के लिए है । आपको सामूहिकता में आना है । सामूहिकता में ही यह कार्य हो सकता है । कल भी एक साहब ने बताया यो मैं घर में सब करता ही हूं, मैं आपको मानता हूँ तो भी मुझे बीमारी आ गई । कुछ नहीं होगा । आपको सबकी माननी होगी । जैसे एक नाखून टूट जाये फिर उसकी कौन परवाह मने कहा मुझे मानने से करता है । सहजयोग का आज का तरीका सामूहिकता का है । एक देश ही नहीं सारे संसार के देश इसमें छोटी बातों को हमें बुद्धि से नहीं छोड़ना सहजयोग से छूट जायेगी । । नहीं तो आप तो जानते हैं कि हम लोगों के दिमाग कैसे है ? छोटे संकीर्ण दिमाग हमारे बन गए भय के कारण, अज्ञान के कारण प्रकाश में हम जानते हैं कि हम सब एक हैं । तो सारा ही सहजयोग का कार्य प्रेम का है । इस प्रेम की शक्ति को हम आज तक कभी भी उपयोग में नही लाये । सिर्फ द्वेष की शक्ति को इस्तेमाल करते रहे । लोग समझते हैं कि द्वेष की शक्ति बड़ी शक्तिशाली होती है । । कोई एक ग्रुप बना लिया, उससे द्वेष करो । लेकिन प्रेम की शक्ति मानसिक नहीं है, परमात्मा की शक्ति है । और वह समर्थ परमात्मा है । इसकी शक्ति को प्राप्त करने के बाद कौन सी ऐसी दुनिया में शक्ति है जो इसे झुका सकती है ? सारी दुनियां आज आपके भारतवर्ष मैं आपके चरणों में आ सकती है क्योंकि इसका वरोहर बंधे हुए हैं हमारी छोटी कुण्डलिनी के जागरण से छूट, जाये गी छोटे कोई न कोई बहाना बनाकर उससे द्विष करो आपका है । आपके पास संस्कृति का इतना बड़ा दान है । बहुत बड़ी सम्पदा है आपके पास । और ये भारत वर्ष साक्षात् योगभूमि है । एक बार हम प्लेन से आ रहे थे । मैने पति से कहा कि आ गए हम

हिन्दुस्तान में । कहने लगे कैसे ? मने कहा देखो चारों तरफ चेतन्य है । चैतन्य कैसे चमक रहा है ? उन्होंने पायलट से जाकर पूछा । उसने कहा अभी एक भारतवर्ष है । इस परथ्वी को आप क्या समझते हैं जिस पर आप बैठे हैं ? यहां हजारों साधू संतों ने अपना खून सीचा है । इस पवित्र भूमि पर रह करके आप बहुत आसानी से इस पवित्रता को पा सकते हैं । लेकिन जो कुछ गंद गी इधर चाहिए । अपने आप से सब चीज धीरे - धीरे जाती है । अब सहयोग दिल्ली में बहुत फैल गया है । और जब में यहां पहले - मिनट पहले हम आए हैं ये ऐसा अपना इसके लिए गहनता उधर इकट्ठी हो गयी है वह छूट जानी चाहिए । पहले आई थी मारे डर के मेरा सारा बदन संकुचा गया कि मै कैसे लोगों को सहजयोग समझाउंगी । ओरतें तो फेशन की बात कर रही थी और आदमी नोकरी की बात कर रहे थे । मैने कहा इनके बीच में मैं कहां चलूं और क्या बात कू ? अब देखिए बदल गया जमाना । अब लोग कुम आत्मा की बात कर रहे हैं, प्यार की बात कर रहे हैं । सत्य युग आने में देर नही । सब आप ही पर निर्भर है । इसलिए आपसे विनती है कि अगर आपको आत्म साक्षात्कार हो भी जाए तो भी इसको सम ग्रता में उत्तरना है । समग्र होना है आखिरी चीज नही समझना । अभी आपको सम्पूर्ण में उतरना है। । पूर्ण को प्राप्त करना है और उस पूर्णत्व को प्राप्त करने के लिए आपको थोड़ा सा समय देना है यहां पर बहुत अच्छे सहजयोगी लोग हैं उनसे करके आप चल सकते हैं । आप जानते हैं कि दरबाजा खुला है, पागल भी अंदर आ ही जाते हैं । हर तरह के लोग आ जाते हैं । बहुत से लोग उनको ही देख के भाग जाते हैं । गर वो पागल हैं आप तो पागल नहीं । यहां तो सबके लिए दरवाजा पूछ से लड़ाके अंदर आ जाते हैं, वहुत से गुस्सैल आ जाते हैं । हर तरह के लोग अंदर आ खुला है बहुत जाते है आने दीजिए लेकिन आप उनको देखकर भाग मत जाइए ओर बैठकर कोशिश कीजिए कि हम पूरी तरह से इसे ज्ञान को प्राप्त करें और आज का जो महान युग धर्म है,इस परिवर्तन का महानकार्य जो कि इतिहास में एक विशेष स्थान रखता है, वह अपने आने वाली पीढ़ी के लिए कितना आनंददायी है । यह सोचकर आप लोग सब एकाग्रता से पूर्णतया सहजयोग में उतरें । अपने प्रति एक श्रद्धा रखते हुए, अपने प्रति एक विश्वास रखते हुए कि मै मानव हूं और मैं अतिमानव हो सकता हूं, इस दृढ़ भावना से आप अपना आत्म साक्षात्कार माँगे और यह कार्य हो सकता है। इस तरह से हमारे पर पूर्ण अघिकार रखते हुए आप इसे प्राप्त हो । आप सबको अनन्त आशीर्वाद ।

New Delhi (India)

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