Public Program

Public Program 1996-02-23

Location
Talk duration
69'
Category
Public Program
Spoken Languages
Hindi
Audio
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Current language: Hindi. Talks available in: Hindi

The talk is also available in: English

23 फ़रवरी 1996

Public Program

मुंबई (भारत)

Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft

जब हम कुछ एहसास ही नहीं कर सकते , जब उसका अनुभव नहीं ले सकते तो हम कैसे कह सकते हैं कि हम ये हैं और हम वो हैं और हम ये । सबसे पहले अपने को जानना ज़रूर है । क़ुरान में तक मोहम्मद साहब ने लिखा , क़ुरान में बहुत सी बातें उन्होंने लिखी ये हाथ है मेरी ये पैर है ये शरीर है , ये मेरा है लेकिन मेरा कौन है वो मैं ? उस मैं को जानना ज़रूरी है और और उसके लिए कोई जप - तप करने की ज़रूरत नहीं । कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं । आप ही के अंदर इस कुंडलिनी शक्ति जागृत हो करके आपको जब उस परमचैतान्य से एकाकारिता दिला देगी तब आप स्वयं जान जाएँगे उस प्रकाश में आत्मा के कि आप कौन हैं ? सो अपने बारे में आप जान जाएँगे । आपके शरीर के बारे में - आपके जो प्रश्न हैं शरीर के,वो भी आप ठीक कर सकते हैं । कितने ही शारीरिक प्रश्न सहज योग से ठीक हुए , इसमें कोई शंका नहीं । ब्लड कैंसर ठीक हुए , कैंसर ठीक हुए और एड्स तक ठीक हुए । पर एड्स के लोग इस कदर ज़बरदस्त और इतने अहंकारी होते हैं कि बड़ा मुश्किल है उनसे ये बताना कि तुमको थोड़ा नम्र होना चाहिए , बहुत ही कठिन बात है । लेकिन इस तरह की अनेक बीमारियाँ आज सहज से ठीक हो रही हैं । उसमें आपको पैसा देना नहीं , कोई जाके अस्पताल में कोई तरह की जैसे डायग्नोसिस के लिए जान ले लेते हैं वैसे कोई काम करने का नहीं आपको उँगलियों से पता चल सकता है कि आपको क्या बीमारी है , आप ख़ुद ही जानियेगा कि आपको क्या बीमारी है ।इस बीमारी का इलाज बहुत आसान है । बड़े मुश्किल से इतने दिनों बाद वाशी में हमने एक क्यूरेटिव सेंटर बना दिया है । वहाँ जा करके आप अपनी बीमारियाँ भी ठीक कर सकते हैं । पर बीमारी ठीक करना किस लिये ? किस लिये अच्छे शरीर चाहिए ? हमारे पास तो पहलवान आते हैं, कहते माँ हमें आप शांति दीजिये। हमें अब बहुत हो गया , हमारे शरीर तो अब बहुत अच्छे हैं। लेकिन अब हमें शांति चाहिए ।ये शांति आपको सिर्फ़ अपने को जानने के बाद हो जाएगी की आप समझेंगे कि जब आप समझेंगे के आप कितने गौरवशाली हैं, आप कितने वैभवशाली हैं, और आप कितने शक्तिशाली हैं । उस वक़्त ये शांति आपके अंदर प्रस्थापित होगी और जो बेकार के विचार जो आपको रात दिन तंग करते हैं और तकलीफ़ देते हैं वो सब ख़त्म हो जाएँगे । ये जो शांति आपको प्राप्त होनी है इस शांति की बड़ी आवश्यकता है । उस शांति के बाद अनेक और चीज़ें आपको समझ में आती हैं के आपमें कितनी सज्जनशीलता है, क्रिएटिविटी है। ऐसे ऐसे लोग जिन्होंने कभी भी कोई कविता नहीं लिखी , कभी भी उनके समझ में ही नहीं आया कि काव्य क्या होता है , वो एकदम बड़े बड़े कवि हो गये , बड़े बड़े वक्ता हो गये , ऑरेटर्स हो गये , बड़े बड़े म्यूज़िशियंस हो गये । ना जाने कहाँ से कहाँ लोग पहुँच गये हैं सहज में आकर । एक बात नहीं कि एक दो हुए हैं , अनेक , अनेक ऐसे हो गये । लेकिन मुश्किल ये है कि उसमें खोजने वाले जो हैं वो असली लोग होना चाहिए । जैसे मराठी में कहा है कि चाला पायिजे ज्याती छे ।

जो लोग वास्तविक में सत्य पे खड़े हैं और चाहते हैं कि हम केवल सत्य को प्राप्त करें - केवल सत्य ऐसा सत्य नहीं की मैंने कुछ कहा कि आपने ये कुछ कहा - केवल सत्य । माने ये सब लोग जब इसे प्राप्त करते हैं तो एक ही बात करते हैं - एक ही बात कहते । जैसे आप छोटे दस बच्चों को बैठा दीजिये , उनकी आखें बांध दीजिये और उनसे पूछिए कि ये जो आदमी सामने है इसको क्या बीमारी है ? तो वो सब एक उँगली उठायेंगे या दो उँगलियाँ उठायेंगे सब एक जैसे । क्योंकि सबको वही चीज़ महसूस होगी , वही अनुभव होगा जो सत्य है । एकाद आदमी आपके आज कल तो बहुत निकल आये हैं, जहां देखो वहीं उनके इश्तहार लगे हुए हैं बाबाजी लोग । बाबाजी भी हैं और बहुत से बीबीजी भी हैं । सब दूर दुकाने खोल रखे हैं । ज़्यादा दूर जाने की ज़रूरत नहीं अगर किसी ने दूकान खोल ली तभी समझ लेना चाहिए कि महा चोर है। लेकिन अगर आपको पता लगाना है तो सहज योग से आप पता लगा सकते हैं अपने हाथ इस तरह करके कि ये जो आदमी अपने को बड़ा भारी साधु संत कहता है ये है या नहीं ? एकदम आपको उँगलियों पर पता चल जाएगा कि इस आदमी के कौन से चक्र पकड़ रहे हैं ।और ये कितना झूठा आदमी है । बहुत से लोग तो जेल से छूटके आते हैं - उधर यू पी में जेल से छूटे तो गेरुआ वस्त्र पहनके यहाँ आयेंगे और यहाँ से छूटेंगे तो उधर चले जाएँगे । इतना बड़ा देश है किसी को क्या पता । और सब बाबाजी बनके घूमते हैं ।और ऐसे बाबाजी के पीछे अनेक लोग लगे हुए हैं । लोगों को लगता है अब अपने पास पैसा है चलो बाबाजी के पास चलें और कुछ उनसे प्राप्त करें । आप पैसे से कैसे ख़रीद सकते हैं - भगवान को क्या पैसा समझ में आता है क्या ?

आप ही सोचिए अक्ल काल का - कोई आदमी आपसे पैसा माँगता है चलो भई पैसों से ही मिल जाये तो क्या है । यह चीज़ पैसों से नहीं से नहीं मिल सकती । ये पैसों से परे अपने अंदर बसी हुई आप ही कि अपनी शक्ति से प्राप्त हो सकता है और इसको प्राप्त करना आपके लिए बहुत आसान है। ये आपकी अपनी शक्ति है । इसके लिए कहीं उधार माँगने कि ज़रूरत नहीं । कुछ उसके लिए कोई आपको सर्टिफिकेट लेने कि ज़रूरत नहीं । आप ही स्वयं इसको प्राप्त करके और आप ही जानियेगा की आपने इसे प्राप्त किया ।

एक संस्कृत में कहा है - न हि कस्तूरिकामोद: शपथेन विभाव्यते॥

माने जब कस्तूरी सामने रखी जाये तो थोड़ी क़सम खानी पड़ती कि ये कस्तूरी है । उसका तो सुगंध आता ही है । इसी प्रकार जब आप आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करते हैं आपके अंदर ख़ुद ही इसकी जाग्रति होती है , आप जानते हैं आपने आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करा । किसी और के सर्टिफिकेट कि कोई ज़रूरत नहीं । पर इसके जो प्राप्त करने के बाद जो कुछ आपको लाभ होता है वो अनगिनत है अनगिनत है । जैसे कि मैंने कहा कि पहले तो शारीरिक लाभ फिर मानसिक - मनुष्य शांत हो जाता है ।अब शांति के लिए ना जाने लोग दुनिया में कितने बातें करते हैं । शांति होनी चाहिए , शांति .. अरे भई कैसे होगी शांति । जब तक आप स्वयं अंदर से शांत नहीं होंगे शांति कैसे हो सकती है । जो मनुष्य कहते हैं कि हम शांति करने आये हैं , शांति का पाठ कर रहे हैं , ख़ुद उनमें शांति नहीं । ऐसे लोगों के पास शांति देने का या शांति के लिए कोई इनाम लेने का कोई अधिकार नहीं ।

अब हमें जानना चाहिए कि शारीरिक मानसिक बौद्धिक , हर तरह के हमारे प्रश्न सब ठीक हो जाते हैं । तो किसी ने हमसे ये पूछा कि माँ आपका जो आर्थिक प्रश्न है वो भी ठीक हो जाएगा ? मैंने कहा , क्यों नहीं ।आर्थिक प्रश्न भी ठीक होता । आर्थिक प्रश्न का सबसे बड़ी चीज़ है समाधान ।आपको आज एक समझ लीजिए आपको चाहिए हो चलो मैं मोटर ख़रीद लूँ । मोटर ख़रीद ली , समाधान नहीं । उसके बाद फ़ॉवरन मुझे घर ख़रीदना है । घर ख़रीद लिया तो भी समाधान नहीं । समाधान आपको मिलना ही नहीं है क्योंकि जैसे कि अर्थशास्त्र में लिखा है , इकोनॉमिक्स में लिखा है कि मानुष की जो इच्छाइएँ हैं वो सामान्य तरह से सर्वसाधारण कभी तृप्त नहीं होतीं । आज एक है तो दूसरी , दूसरी है तो तीसरी , तीसरी है तो चौथी । लेकिन इसके बाद समाधान आता है । समाधान माने की ये आज मैंने सोचा चलो आज सबसे मिल लें । देखा कि सामने से चले आ रहे हैं । जिससे मिलना है वो सामने ही चले आ रहे हैं ।अरे भाई मैंने तो सोचा था कि आप दिल्ली में हैं - नहीं नहीं , मैं तो कल ही यहाँ आया था और आपसे मिलने चला आया ।कोई सी भी चीज़ आपकी ज़रा सी भी इच्छा हो वो फ़ोरन आपके साक्षात हो जाएगा । ये कमाल है ।इसी को चमत्कार लोग कहते हैं , मैं इसे चमत्कार नहीं मानती हूँ , जो चारों तरफ़ फैली हुई ये शक्ति है , ये इतनी शक्ति शाली , इतनी सूझ बूझ वाली , इतनी प्यार करने वाली शक्ति है , कि ये सब चीज़ का इंतज़ाम पूरा करती है ।

इस शक्ति के कारण आप पूरी तरह से अभय आपके अंदर है । कोई आपको छू नहीं सकता। कोई आपको सता नहीं सकता , जो सताएगा वही - उसी की मात होगी। आपको आश्चर्य होगा कि पल पल आपको नज़र आएगा किस तरह से ये शक्ति आपके साथ कार्य कर रही है । मैं आपसे झूठ नहीं बोल रही । ये बिलकुल सच बात है कि इस शक्ति में उतरना बहुत ही आवश्यक है । क्योंकि अगर ये आप ही की है जब आप ही को इसे प्राप्त करना है तो फिर आप मना क्यों करते है ? तब आपमें इतनी सूझ बूझ क्यों नहीं , तब आपमें इतनी समझ क्यों नहीं कि जो हमारा है उसे हम क्यों ना प्राप्त करें ? जो हमारी संपत्ति है हम उसे क्यों ना प्राप्त करें ?

दूसरी बात जो होती है वो ये कि आपका चित एकदम शांत हो जाता है ।और उस चित्त में प्रकाश आ जाता है । उस प्रकाश में आप देखते हैं कि आपके लिए क्या ठीक है और क्या बुरा है । बहुत सी आदतें मनुष्य लगा लेता है। ऐसी आदतें जिससे छुटकारा नहीं पा सकता । बड़ी कोशिश करता है और वे सब नाश करने वाली आदतें होती हैं । बहुत कोशिश करता है के मैं इससे छुटकारा पा लूँ उसका नहीं छुटकारा । उसका कारण यही है कि मनुष्य अभी भी एक बंदी स्थिति में है । अभी भी वो बंदी है । लेकिन जब वो इस चीज़ को प्राप्त करता है तो इस प्रकाश में सब चीज़ छूट जाती है ।जैसे कि आपके हाथ में साँप है और आप छोड़ना नहीं चाहते अंधेरे में , सोचते हैं ये रस्सी है । पर जैसे थोड़ा सा प्रकाश आता है अपने आप वो चीज़ छूट जाती है । इस तरह की एक बड़ी कमाल कि व्यक्ति आप के अंदर जागृत होती है जो इतनी शक्तिशाली होती है कि कोई भी तरह कि नश्वंत आदतें , नश्वंत बातचीत सब छोड़ देता है । एक नया स्वरूप आपके अंदर से जागृत होता है । जैसे कमल का फूल जो कीचड़ों में उगता है और सुरभित कर देता है सारे उस जगह को । इसी प्रकार आपका व्यक्तित्व हो जाता है । ये आपके अंदर सब निहित है । आपके अंदर सब ये चीज़ें हैं ।इसको प्राप्त करने के लिए आपके अंदर सिर्फ़ शुद्ध इच्छा चाहिए । जब आप ये शुद्ध इच्छा करें कि हमें भी यही चीज़ प्राप्त करनी है जो हमारे अंदर अपनी है, उसे हमें प्राप्त करना है तो ये सब घटित होता है । ये चित्त इतना आलोकित हो जाता है कि जहां आपका चित्त जाएगा वहाँ कार्यान्वित होता है ।जहाँ आप देखेंगे वहीं वो होगा । जैसे आप टेलीविज़न देख रहे हैं , समझ लीजिए , टेलीविज़न में कोई व्यक्ति कुछ कह रहा है , वो कह रहा है पर उसका कहना कोई असर नहीं रखता । उसका कोई परिणाम नहीं होता । आप देख रहे हैं । लेकिन अगर आपका चित्त कहीं जाये तो वो जहाँ जाएगा वहा कार्यान्वित होगा , वहा कार्य करेगा । और आप आश्चर्य करेंगे कैसे हो गया ? इतनी जल्दी कैसे घटित हो गया ? क्योंकि ये जो सर्व में बसी हुई , अणु परमाणु में बसी हुई ये जो शक्ति है , ये सब सोचती है , समझती है और सबसे बड़ी बात है कि ये आपको प्यार करती है ।

ये प्रेम की शक्ति है ।और ये प्रेम की शक्ति आपके अंदर जागृत होते ही आप अनुकंपा से भर जाते हैं । इसकी बात अनेकों ने की कि आपके अंदर अनुकंपा लाएँ लेकिन ऐसे कहने से किसी के अंदर अनुकंपा नहीं आती । कुछ भी कहने से नहीं आती । उल्टे मैंने देखा है कि बहुत से लोग जो बहुत ज़्यादा तप जप करते हैं और बहुत ज़्यादा धार्मिक बनते है बड़े ग़ुस्सेल होते हैं । उनमें बड़ा क्रोध होता है ।उनसे दूर ही रहना चाहिए । क्योंकि वो जो हर रहे हैं उनमें शक्ति अभी ऊपर से आयी नहीं । जैसे समझ लीजिए कि टेलीफोन है और उसे हम घुमा रहे हैं खूब । वो टेलीफोन ही ख़राब हो जाएगा , अगर उसका कनेक्शन ही नहीं तो हम टेलिफ़ोन किसे कर रहे हैं । इसी प्रकार हमारे सारे ही कार्यों में कोई मतलब नहीं रह जाता । जैसे कि ये एक इंस्ट्रूमेंट है और इसका संबंध अगर मेंस से नहीं हो तो इसका कोई उपयोग नहीं , इसका कोई अर्थ नहीं ।इसी प्रकार हमारे भी जीवन का कोई अर्थ नहीं । जब हमारे जीवन का कोई अर्थ ही नहीं निकलता है तो हिम चाहे जो कर लें ।

इस देश में कम से कम हम लोग परम्परागत धार्मिक हैं । इस देश में हम समझते भी हैं कि हमें आत्मसाक्षात्कार पाना जरूरी है । हमारे अंदर बहुत सी बातें ऐसी है जो हमें एक मार्ग में , एक सूत्र में बंधती हैं। लेकिन और देशों में जाइए तो अजीब अजीब लोग काम करते हैं जिससे कि ऐसा लगता है कि इनको मालूम नहीं ये कौन हैं । जैसे बाल सब काट लेंगे , कहीं यहाँ से तुर्रे निकाल लेंगे , कहीं कुछ अजीब से कपड़े पहन लेंगे , कुछ समझ में ही नहीं आता , औरतें आदमी जैसे कपड़े पहनेंगे , आदमी औरतों जैसे कपड़े पहनेंगे , वो सोचते हैं ये सब करने से वो कोई विशेष हो जायेंगे। उससे कोई विशेष क्या होना है ? ये तो सिर्फ़ पागलपन है ।और वो भी ऐसा पागलपन कि अब क्या करें और कैसे अपने को स्थापित करें कि हम कोई चीज़ हैं।

यहाँ तक है कि जो देश बहुत समृद्ध हैं , ऐसे देश जो कि हम कहते हैं कि स्वीडन है , स्विट्जरलैंड है, और इस तरह के जो देश हैं वहाँ के जो जवान लोग हैं , जवान क्या चालीस चालीस साल के तक लोग , वहाँ पर आत्महत्या कर रहे हैं । इतना पैसा है , सब कुछ है , आप आत्महत्या क्यों कर रहे हैं ? वहाँ से लोग आते हैं कभी कभी लंदन में मुझे मिलने, तो मुझे कहने लगे माँ ये बताओ कि हमारा मन करता है हम आत्महत्या कर लें। मैंने कहा क्यों ? कहने लगे जीना किस चीज़ के लिए । हमें क्या करना है , जी करके क्या करना है । ये तो सब ही लोग इस तरह से जी रहे हैं , हम ऐसे जीना नहीं चाहते । हमारा क्या महत्व है । हमारी क्या ज़रूरत है । इस से अच्छा है हम मार जाना चाहते हैं । जहाँ की ये चरम सीमा पर पहुँच गया है , ऐश्वर्य, जहाँ लोग सोचते हैं हमारे पास बहुत कुछ आ गया , अब हमें नहीं चाहिए , बहुत हो गया । तभी ये तत्व हमारे अंदर जागृत होता है जहाँ हम खोजते हैं ।और खोजने का जब तत्व शुरू हो गया उसे हम कहते हैं की यही अब साधक हो गए । ऐसे बाहर बहुत ज़्यादा साधक हैं । इसमें कोई शक नहीं पर यहाँ से आपने बहुत सारे गुरुओं को एक्सपोर्ट कर दिया है - उनको खा रहे हैं, पी रहे हैं, उनको बेवकूफ बना रहे हैं । लेकिन आप हिंदुस्तानी हैं।आप को सोचना चाहिए कि हिंदुस्तान वास्तव में एक महान योग भूमि है । हाँ हमारे यहाँ देश द्रोही बहुत हैं, हमारे यहाँ ख़राबियाँ बहुत हैं ,लेकिन बहुत कहने पर भी अगर देखा जाये तो फ़ीसदी , परसेंटेज उसका बहुत कम है । और ये लोग सब ठिकाने लग जाएँगे । इसकी जो महत्ता वो ये सोचनी चाहिए कि इस देश में बड़े बड़े संत साधु हो गए । और वो जो कह गए हैं वो सिद्ध करने कि लिए आप आये हैं । आप आज जो इस संसार में आए हुए हैं आपको वो चीज़ सब प्राप्त होने वाली है जो जो आपको अभिवचन दिया गया है ,आपके ऊपर ये ज़िम्मेदारी है । देश द्रोहियों को भूल जाइए । ग़लत लोगों को भूल जाइए । दुष्टों को भूल जाइए । उनका कोई इलाज नहीं । नामदेव ने कहा है कि जो दुष्ट होता है वो दुष्ट ही रहता है । उससे दूर ही रहना चाहिए । कहा कि जैसे मक्खी है , मक्खी अगर किसी खाने पर बैठ जाए तो उल्टियाँ करो और कहीं गलती से मक्खी खा ली वो मर भी जाएगी तो भी आपको मार डालेगी । इसी तरह से दुष्ट लोग होते हैं उनसे मेरा मतलब नहीं । मेरा मतलब उन लोगों से है कि जो सर्व साधारण समाज में अछे लोग हैं और जो समझ नहीं पाते कि वो ज़िंदगी में क्यों आये हैं ।

बहुत से लोग इस लिए भी ख़राब हो जाते हैं क्यों कि उनको कोई सहारा नहीं रहता ।अपना ही सहारा हमें खोजना है । हमें किसी गुरु के पास जाने की ज़रूरत नहीं , कुछ नहीं । आप ही अपने गुरु होने वाले हैं ।आप ही को अपना मार्ग दर्शन मिलने वाला है और उस मार्ग दर्शन में चलते चलते आप समझ जाएँगे कि आप है क्या , आप कोई कम चीज़ नहीं । विशेषता एक मानव स्वरूप हैं और आप पैदा हुए हैं इस भारत भूमि पर जो एक महान योग भूमी है । मेरा विश्वास करिए , कि महान योग भूमी है ये। इसके ज़र्रे ज़र्रे में चैतन्य भरा हुआ है । इसके कण कण में चैतन्य भरा हुआ है । और जब आप जागृत हो जाएँगे तो समझ जाएँगे कि आप आज जिस पृथ्वी पर आप बैठे हैं ये पृथ्वी कितनी महान है । और इस महानता के जो आप जो इसमें नागरिक हो गए हैं इसका कारण आपने भी बहुत पुण्य कर्म किए हैं नहीं तो यहाँ जन्म होना आसान नहीं ।

उसी वक्त परीक्षा के लिए भी बहुत से दुष्ट लोग भी पैदा होते हैं । कोई हर्ज नहीं जितने भी दुष्ट आ जायें , जब आप जागृत हो जाएँगे तो उनकी दुष्टता ही सामने नज़र आ जाएगी । वही दुनिया के सामने गिर जाएँगे । ये बड़ी बड़ी बातें नहीं हैं ये असलियत है और ये सब कुछ आपके अंदर है । आप कहेंगे कि माँ आप तो बड़ी अजब बातें कर रही हैं । सारी दुनिया ही अजब हो जाती है जब आप एक बार आत्मा दर्शन पा लेते हैं । सारे संतों को आप समझ लेंगे । सारी जो जो बड़ी बड़ी बातें आपने सुनी हैं और देखी हैं और पढ़ी हैं वो सारे नज़र आने लग जाएँगे । अभी तक तो आप सिर्फ़ शब्दों के जालों में फसे हुए थे । एक तरह का ऐसा व्यक्तित्व आपका बन जाएगा की दुनिया देख कर के हैरान होगी कि अरे ये तो कल का वो और आज इसको क्या हो गया । ये जो अनुकंपा है इसका आज तक किसी ने उपयोग ही नहीं किया ।इस शक्ति को किसी ने इस्तेमाल ही नहीं किया आज तक प्रेम की शक्ति किसी ने इस्तेमाल नहीं करी । कुछ ना कुछ भेद करने की शक्ति , कि चलो कुछ नहीं तो तुम ये अलग हो , तुम अलग हो, तुम इनसे लड़ो , तुम उनसे लड़ो । पर प्रेम की शक्ति में सबसे बड़ी बात ये है कि आप सब एक जुट एक साथ बन जाते हैं ।

आज आप जानते हैं कि सहज योग पैंसठ देशों में बहुत ज़ोरो में चल रहा है और पता नहीं ये तो लोग कह रहे हैं इससे बहुत ज़्यादा देश हैं । लेकिन जो बहुत ज़ोरो में सहज योग चल रहा है , पैंसठ देश हैं । और इन पैंसठ देश के हरेक सहज योगी आपके अपने नज़दीकी हैं । जैसे ज्ञानदेव ने कहा है “ थेची सोयरी कोत “ वही आपके रिश्तेदार हो जाएँगे और आप हैरान हो जाएँगे कि कहाँ से सब जुट गए मेरे । ये सब मेरे रिश्तेदार कहाँ से जुट गए । जो असली रिश्तेदार हैं । वो आपके प्रॉपर्टी से मतलब नहीं , आपके पर्स से मतलब नहीं । सिर्फ़ आपके प्यार से मतलब है । इस प्यार कि दुनिया में उतरना ही बहुत ज़रूरी है । जब तक इस प्यार की दुनिया को नहीं जानिएगा आप अपना भी महत्व नहीं समझ सकते कि आप कितने महान हैं । इस प्यार की जो शक्ति है उस से आप सारे संसार को समेट सकते हैं । क्योंकि आपके अंदर एक नई चेतना जागृत होती है। और उस चेतना को हम सामूहिक चेतना कहते हैं - कलेक्टिव कॉन्ससियसनेस्स जिससे कि आप दूसरों को महसूस कर सकते हैं । जैसे कि कोई आदमी आपके सामने आ जाए , वो तबीयत जैसे अभी एक महाशय आए थे , फ़ोरन मैं समझ गई इनको क्या तकलीफ़ है । पर वो मचलने लग गए , आफत करने लग गए , नाटक करने की कोई ज़रूरत नहीं । मैं समझ गई इनको क्या तकलीफ़ है ? और वो तकलीफ़ ठीक हो सकती है यहाँ मचलने से नहीं , सहज योग करने से । सहज योग करें तो उनकी तकलीफ़ें सारी दूर हो जाएँगी । लेकिन वो यहाँ नाटक करने आये थे , करने दें । उससे कोई फ़ायदा नहीं होने वाला । फ़ायदा होगा जब आपकी कुंडलिनी जागृत हो करके आपको इस परम शक्ति से एककारिता दे । मेरी बात चीत भाषण से भी फ़रक नहीं पड़ने वाला । फ़रक पड़ेगा सिर्फ़ इस घटना से । इसको ऐक्चुअलाइज़ेशन कहिये । इसका साक्षात होना चाहिए । जब इसका साक्षात होगा तभी आपको अपना भी साक्षात होगा और आप समझ लेंगे कि आपको मैं जो बात बता रही हूँ वो एकदम बिल्कुल सत्य है ।

इसपर ये जान लेना चाहिए कि ये सब होने के बाद आप परमात्मा के साम्राज्य में आते हैं । परमात्मा का साम्राज्य पूरी तरह से आलोकित है । और उसका कार्य इतना सुंदर और इतना मजेदार होगा जिस तरह से नाटक खेलते है । उस तरह से उनके साम्राज्य में ये परम चैतन्य जो है ये कार्यान्वित होता है । इससे बड़कर होशियार , इससे बड़कर प्रेममय और इससे बड़के एफ्फिसिएंट जिसको कहना चाहिए और कोई भी शक्ति नहीं ।

इसके बारे में जितना भी बताऊँ उतना कम है । पर मैं कहूँगी की आप इसका अनुभव करें । इसका अनुभव आपको मिलना चाहिए जिसके आप हकदार हैं । इसे आप प्राप्त करें । कोई मुश्किल नहीं है ।अब देखिए बंबई शहर में आज सालों से मैं यहाँ मेहनत कर रही हूँ , काम कर रही हूँ । पर यहाँ के लोग अभी भी उनका चित्त जो है उस ओर नहीं है जहाँ इसे खोजना चाहिए । उनका चित्त और जगह है । इसलिय चल विचल रहे थे। पर जहाँ जहाँ इसमें चित्त लोगों का लगा हुआ है और जिन्होंने सोचा है की इसको प्राप्त करना ही पहली बात है और उसके बाद देखा जाएगा बाद में , वो लोग बहुत गहरे उतरते हैं और उनको अनेक लाभ हुए हैं अनेक लाभ हुए हैं और ये लाभ से भी बढ़के सबसे बड़ा लाभ ये है की आप आनंद के सागर में डूब जाते हैं ।

हिंदुस्तान में तो इतना नहीं फिर बाहर आप रास्ते पर चलिए तो लगता है ये लोग किसी श्मशान भूमि से लौट रहे हैं । ऐसी शक्लें गिरी हुई हैं ऐसे दुखी लोग कभी मैंने उनको हंसते देखा नहीं । ये जो दिमाग में बात बैठी हुई है कि हम बड़े दुखी हैं ,और हमारे अंदर बहुत सारी विनाशकारी शक्तियां कार्यान्वित हैं , ऐसे दिमागी जमा खर्च से ही ये लोग दुखी हैं । पर ऐसी कोई बात नहीं है । ये सब समझते ही नहीं कि हमारे अंदर छिपी हुई अनंत की शक्ति जो है उससे न ही की हम खुश हो जाएँगे पर आनंद के सागर में डूब जाएँगे । आनंद अकेला अपने जगह एकमेव है उसमें सुख और दुख जैसी चीज़ नहीं । सिर्फ़ आनंद । और आनंद में आप मग्न हो जाते हैं । आनंद में आप मस्त हो जाते हैं । इसलिए कोई सी भी तरह दिखनेवाली विपत्ति जिसे लोग बहुत बड़ी विपत्ति समझते हैं कुछ भी नहीं , चुटकी से ठीक हो सकती है । ये सारी शक्तियां आपके अंदर हैं और ये शक्तियों को आप प्राप्त कर सकते हैं , उसके लिए कोई मेहनत करने की ज़रूरत नहीं , उपवास तपवास करने की ज़रूरत नहीं , कुछ करने की ज़रूरत नहीं ।

पिछली मर्तबा भी यहाँ प्रोग्राम हुआ था बहुत से लोग आये थे और बहुतों ने इसे प्राप्त किया । प्राप्त करने के बाद भी मैं कहती हूँ इस बार पहली मर्तबा मैंने देखा कि बंबई के अख़बारों ने कुछ तो अच्छा लिखा । नहीं तो वो तो हमेशा उल्टा सीधा लिखते थे । पहली मर्तबा अख़बारों के भी दिमाग़ खुले , उन्होंने लिखा कि बहुत लोगों ने हाथ ऊपर किए और बहुत लोगों को ये अनुभूति हुई । इसके बाद बहुत से लोग आये भी और अब भी हम लोग एक पूरी तरह की व्यवस्था किए हुए हैं कि ये होने के बाद भी जैसे कोई चीज़ अंकुरित हो गई तो इसको आगे बढ़ाने के लिए भी हमारे पास यहां सेंटर्स हैं । ये ऐसा नहीं कि इंट्रोडक्शन लेक्चर हो गया , उसके बाद आपको पैसे देना है , बिल्कुल पैसे से कोई मतलब नहीं । आप जाइए और अपने को एक वृक्ष के समान वृद्धिगत करिए , बढ़ाइए । ये बहुत आसान चीज़ है । उसके लिए पैसा कोड़ी देने की कोई बात ही नहीं है । हाँ , यहाँ पर है जैसे ये इलेक्ट्रिसिटी को पैसा दिया गया होगा ,या कुछ और चीज़ों को दिया , वो दूसरी बात है । पर आपका आत्मसाक्षात्कार और आपका आत्मोत्सन , अपने आत्मा के जो प्रकाश है , उसको अपनी चेतना में बढ़ाने के लिए आपको कोई पैसा देने की ज़रूरत नहीं । वो तो अपने आप ही बड़ता है । इसी लिए अत्यंत शुद्ध जो आपके अंदर चीज़ है वो है आपकी आत्मा ,जिसे आप प्राप्त करें । आज तक वो एक साक्षी स्वरूप होकर ही बैठे हुए थे , देख रहे थे , अब वो आपके चित में आ जायें । और उसको आते ही आपकी उत्क्रांति की जो स्थिति आज मानुष की है वो अति मानव की अतिथि में पहुँच जाएगी । ये बिल्कुल झूठ बात नहीं है , और ये होने का समय आ गया है । इसमें हो सकता है कि अगर कोई आपको बीमारी हो या कोई आपके दिमाग में और फ़ितूर हो या कोई गुरु ने आपकी थोड़ी कुंडलिनी ख़राब की हो तो हो सकता है कि आज ही जागृति ना हो । कोई हर्ज नहीं ।पर आजतक मैंने देखा नहीं कि सहज योग में कोई आया हो और वो कहता हो कि नहीं हुई कुछ । एक दो बार आपको आना पड़ेगा सेंटर्स पे , और सेंटर्स भी हमारे सीधे सादे हैं । क्योंकि हमने कोई पैसे तो लिए नहीं हैं । किसी सीधे सादे जगह कोई स्कूल्स में या कहीं जैसे भी सेंटर्स बने है , आप कृपया पधारिए । और पधारके इसे प्राप्त करें ,अपने आत्मसाक्षात्कार का पूरी तरह से मान रखना , ये आप को आपके लिए बाध्य है बंद्य है ।

ये अगर आपने मान नहीं रखा अपना तो कौन आपका मान रखेगा । जिसने अपने आत्मा ही का मान नहीं रखा उसका कैसे मान हो सकता है । पर गर आपने अपने आत्मसाक्षात्कार को मान्यता दी और नम्रता पूर्वक इसे स्वीकार्य किया तो ये चीज़ ज़रूर घटित होयेगी और घटित होकर के आप स्वयं को पाइयेगा हम कहाँ से कहाँ पहुँच गए है ।

अब ये कहना है के किस तरीक़े से आपको बुलाया जाए , किस तरह से आपको पाचारण किया गया है , आमंत्रण दिया जाए , ये तो मुझे समझ नहीं आता । जैसे के कुछ कुछ शहर हैं ऐसे कि जहाँ बगैर बुलाये ही हज़ारों लोग आ जाते हैं । बगैर कुछ कये ही सहज योग में आ गए । लखनऊ जैसे शहर में जहाँ लोग खाना पीना मौज करना ही जानते हैं , वहाँ हज़ारों लोग सहज योगी हो गए । ३० आईएएस ऑफिसर , एक ही बार मैं गई , सहज योगी हो गए । यहाँ कोई आईएएस ऑफिसर आयेगा क्या ? मुश्किल काम है । ऐसे ही करेला नीम चड़ा । बंबई शहर की हवा ही कुछ ख़राब है । और इस ख़राब हवा में कोई सी भी चीज़ होती है तो बड़ी मुश्किल से होती है । पर तो भी आप समझ लीजिये कि आप इस बम्बई शहर के रहने वाले नहीं है । आप उस शहर के रहने वाले हैं जहाँ हर समय आनंद की वर्षा होती है । बस , वहाँ आपका स्वागत है , आपलोग आयिये,और इसे प्राप्त करें । आप सबको मेरा अनंत आशीर्वाद ।

अब कुण्डलिनी के जागरण का कार्य - ज़्यादा से ज़्यादा दस मिनट लगते हैं , उससे ज़्यादा नहीं । लेकिन हमारे यहाँ लोग घड़ी ज़्यादा देखते हैं । इस वक्त घड़ी न देखें,और जिनको नहीं लेना हो , वो कृपया चले जाएँ क्योंकि इसमें ज़बरदस्ती नहीं हो सकती । जिनको प्राप्त करना है ( वीडियो में ब्रेक ) हमें जागृत कर दो तो कभी नहीं , आपकी कुंडलिनी स्वयं ही ऐसे उद्दाम इंसान की कुण्डलिनी कभी नहीं खड़ी होती । इसलिए नम्रता पूर्वक इस चीज़ को प्राप्त करें ।और जैसे ही आपने नम्रता पूर्वक इस चीज़ को मांगा है , आपकी अपनी ही शक्ति आपको मिल जाएगी । इसका , इसका डिसकशन या इसके बारे में विचार करने से कुछ नहीं होगा । क्योंकि हमने तो विचारों से परे जाना है । इस वक्त विचार करने से ठीक नहीं है ।आपको ये भी नहीं के आप विचारों को रोकिए , कुछ भी नहीं मैं कह रही । पर अपने आप आपके विचार रुक जाएँगे । इसलिए कृपया सिर्फ़ मन में ये इच्छा रखें कि ये हमारे साथ ये घटित होना है और हम चाहते हैं , शुद्ध इच्छा हमको यही है के हम अपने आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करें ।

जरा आगे आ जाइये तो ये लोग भी बैठ जाएँगे ।

देखिए भारत वर्ष की कमाल ये है कि हिंदुस्तान में १० मिनट में जागृति होती है ।और परदेस में तो मेरे हाथ टूट जाते हैं । घंटों जागृति नहीं होती पर जब होती है तो जमते अच्छे हैं । क्यूंकि अपने देश में कोई चीज़ अगर सस्ती मिल जाए , आसानी से मिल जाय तो उसकी कोई कदर नहीं । अगर हम कहीं पहाड़ पर जाकर बैठें और आपको चढ़कर आना पड़े और वहाँ आप परेशान हो करके कमसेकम दो घंटे परेशान रहें तब कहीं आप सोचेंगे हा भाई इतना पहाड़ चढ़कर आए , कमसेकम कुछ हो । लेकिन बात ये है आजकल का ज़माना जो है ये बहुत समय नहीं देता है इसलिए ये सहज में ही जल्दी घटना होने वाली है । इसकी ज़रूरत है । इतना ही नहीं परमचैतन्य स्वयं चाहते हैं कि आप लोग जल्दी से जल्दी सब लोग पार हो जायें । ये एक परमात्मा की इच्छा ही है जिसके कारण ये कार्य इतनी जल्दी हो रहा है और इतना सुगम है पर तो भी अपनी पूरी इज़्ज़त करना , अपने आत्मसाक्षात्कार का मान रखना , ये बहुत ज़रूरी है ।

अगर किसी को अभी नहीं हुआ तो भी हमारे यहाँ सेंटर्स हैं , उसके बारे में आपको बतायेंगे , वो कृपया लिख लीजिये , और आप देखेंगे कि इसके बाद आपको बड़ा अच्छा लगेगा । आप शांत हो ही जाएँगे और हल्कापन आ जाएगा । उसके बाद भी इन्होंने एक संगीत रखा है बहुत अच्छा । ऐसे ही एक सहज योगिनी हैं , जैस आप अभी औरो को भी सुने उसी प्रकार उसने सहज योग में बहुत कुछ पाया है ।उनका गान होगा , आप देखेंगे कि वो गान , आपको बहुत अंदर से आनंद दाई अलहद दायी है ।

अब आपको मैंने कहा है पहले ही कि एक दो उसमें शर्तें हैं । पहले तो शर्त ऐसी है कि आप अपने बारे में कोई भी न्यून बात ना सुनें । माने , आपको कोई लोग कहें आप पापी है, आप पूर्वजन्म ये कर्म करे , ये भोगों , ऐसी कोई बात नहीं । जब आप हमारे सामने आज बैठे हुए हैं तो आप हमारे बच्चे हैं और आप पूर्णतया शुद्ध हैं । ये धरना हृदय में होनी चाहिए कि न तो आप पापी हैं , न ही आपमे कोई न्यूनत्व है । आप दोषी नहीं । बिल्कुल भी दोषी नहीं । जो लोग समझते हैं कि हम दोषी हैं और हमने गलती की , हमें कैसे होगा ,इस तरह की भावना लेते हैं उनका ये चक्र यहाँ पकड़ जाता है । और इस चक्र के पकड़ने के कारण आपको अनेक बीमारियां हो सकती हैं जैसे स्पांडिलाइटिस है , एंजिना है , और शरीर के जितने भी ऑर्गन्स हैं वो भी बिल्कुल आलसी हो जाते हैं , लेथार्जिक हो जाते हैं । इसलिए ऐसी चीज़ जो कि हो चुकी , गलती हो गई होगी उसको आज लेकर बैठने की क्या ज़रूरत है । इस तरह की मिथ्या चीज़ को लेकर के आप अपने को दुख करते रहें तो मेहरबानी से ऐप अपने को माफ कर दीजिये । अपने प्रति एक प्रसन्न चित होना चाहिए । अपने प्रति एक आदर । मैंने आप से पहले ही बताया है कि मैं आपका आदर करती हूँ , मैं आपसे प्रेम करती हूँ ,इसी प्रकार आपको भी अपने साथ आदर का ही भाव रखना चाहिए । और उसी तरह से प्रेम का भाव । तो प्रसन्न चित होकर बैठें ।

दूसरी बात जो कहने की है वो ये कि जैसे आप अपने को छमा करते हैं आप दुनिया भर को छमा कर दें । क्योंकि आप दूसरों को छमा करिए न करिए आप करते कुछ नहीं , वैसे देखा जाए । लेकिन हम इस मामले में कुछ विचार ही नहीं करते कि क्यों हम किसीको माफ नहीं करते । जब हम दूसरों को माफ नहीं करते हैं ,तो हम अपने को छलते रहते हैं । और जिसको माफ करना होता है वो तो आराम से बैठा हुआ है । इसलिए सबको एक साथ माफ कर देना है , ना उनके बारे में सोचना है । क्योंकि उनके बारे में सोचना भी एक बड़ा भारी सरदर्द है । इसलिए कृपया सबको एक साथ आप छमा कर दें । सबको एक साथ आप छमा कर दें । जब आप सबको एक साथ आप छमा कर देंगे आपको आश्चर्य होगा के आपको , बहुत अंदर से हल्कापन आयेगा । बेकार का भोजा आप ढो रहे हैं । इसलिए सब दुनिया को आप एकसाथ छमा कर दें । उससे बड़ा फायदा होगा । उससे ये जो चक्र आपका आज्ञा चक्र है , ये इस तरह से बंधा हुआ । बिल्कुल संकीर्ण है , इसके अंदर से कुंडलिनी जा ही नहीं सकती । लेकिन माफ करते ही ये खुल जाता है । और खुलते ही साथ इसमें से कुंडलिनी आसानी से चढ़ जाएगी ।

इन दो चक्रों के कारण बहुत बार जागृति नहीं होती इसलिए मैंने आपको विनती की है कि आप अपने को छमा करके ये चक्र खोल दें और छमा करके ये चक्र खोल दें । थोड़ा सा भी खुल जाए ठीक है । फिर कुंडलिनी ख़ुद ही इसे खोल देगी । नहीं तो उसको लड़ना पड़ेगा , उसको आ करके धक्के देने पड़ेंगे । इसलिए उसका कार्य सरल होने के लिए , सहज होने के लिए आप इतनी दो चीज़ें करिए कि आप अपने को माफ करिए और दूसरों को माफ कर दीजिये । मन से , हृदय से ।

तीसरी बात है कि बेहतर है आप अपने चप्पल जूते उतार दें और ज़मीन पर क्योंकि इस ज़मीन की महती मैंने बताई है पैर रखें कि जो लोग ज़मीन पर बैठे ठीक है पर चप्पल जूते उतार लें तो अच्छा है ।

अब मैंने कहा था की इन पाँच उँगलियाँ , ६ और ७ चक्र हैं और यहाँ पर ६ और ७ चक्र हैं , सिम्पथेटिक नर्वस एंडिंग्स हैं । तो दोनों हाथ इस तरह आप मेरे और करिए । दोनों हाथ ।

बहुत से लोग कहते हैं कि मेस्मेरिज्म है। मेस्मेरिज्म से आदमी अगर इतना अच्छा हो जाता तो कोई बुरी बात नहीं । किंतु मेस्मेरिज्म में लोग आखों में आंख डाल करके करते हैं । मैं तो आंख बंद कर लेती हूँ और आप भी आँख बंद करेंगे । दोनों हाथ मेरी ओर । अब सर को थोड़ा नीचे झुका करके लेफ्ट हैंड मेरी और करें और सर के तालू भाग जो है उसको मराठी में तालूमंतर और दूसरा ये कि इसको फोन्टेनेल जो कि हमारे बचपन में एक बहुत स्निग्ध सी हड्डी थी , उसके ऊपर उसके ऊपर , छूते हुए नहीं, राइट हैंड रखें । सर झुका लें और देखें कि इसमें से , इस ब्रह्मरन्द्र में से ठंडी या गर्म हवा आ रही है क्या । शंका नहीं करना । इस वक़्त देखिए एक पत्ती नहीं हिल रही कहीं । लेकिन अगर आपके सर से आ रही है ।अब मेरे और राइट हैंड । और सर को झुका लें और लेफ्ट हैंड से देखें कि इस तालू भाग से जिसे की फ़ोंटेनेल बोन एरिया अंग्रेज़ी में कहते हैं और अध्यात्म में ब्रह्मरांद्र कहते हैं , देखिए कि ठंडी या गर्म हवा आ रही है क्या । इसे आदि शंकराचार्य ने वर्णन किया है - सलीलम सलीलम, ठंडी ठंडी । अब फिर से लेफ्ट हैंड मेरी और करें ।और राइट हैंड फिर से तालू में रखें । कभी आगे होता है , कभी पीछे होता है । किसी किसी को बहोत ज्यादा आती है तो दूर तक आती है , जेट के जैसे । कहीं पर से भी ठंडी या गर्म हवा - लहरियों जैसी , चैतन्य लाहिरियाँ निकलती हुईं अपने ही तालू से नज़र आ रही है । अब दोनों हाथ मेरी ओर फिर से करें और अगर इसमें से गर्म हवा आ रही थी , इसका मतलब ये है कि आपने माफ नहीं किया अपने को या दूसरों को आपने माफ नहीं किया । इस वक्त आप मन से कहो कि मैंने सबको माफ कर दिया । मन से । अब देखिए हाथ में ठंडी या गर्म हवा आ रही है । अब आप मेरी और देखिए और निर्विचार हो जाइये । विचार मत करिए । आप कर सकते हैं । गर आप शंका न करें । प्रयत्न करें निर्विचार होने का । अब दोनों हाथ आकाश कि ओर करें और सर पीछे करें । और एक प्रश्न पूछें तीन बार ,सर पीछे करके आकाश कि और देखें- आप मुझे माँ कहिए या श्री माताजी कहिए - श्री माताजी ये परमचैतन्य है ? ऐसे तीन बार प्रश्न कीजिए । अब ठंडी ठंडी हवा अगर आने लग गई तो तीन बार कहिए कि यही परमचैतन्य है । तीन बार कहिए । अब हाथ नीचे करें । अब फिरसे मेरी और दोनों हाथ करके और निर्विचार होइए । किसी किसी को नीचे से ठंडी हवा आयेगी । उसको उठाके और ऊपर ले आयें । अब जिन लोगों के हाथ में , उँगलियों में , तलुए में , या ब्रह्मरंद्र से ठंडी या गर्म हवा आई हो , वो लोग सब हाथ ऊपर कर लें । दोनों हाथ । सारे बंबई के जितने लोग आज यहाँ हैं और बाहर से आये हैं , सबको मेरा नमस्कार । अब आपका संतों जैसा जीवन शुरू । कोई चीज़ छोड़ने की नहीं क्योंकि कुछ आपने पकड़ा ही नहीं है , ऐसी दशा हो जाएगी । मेरा आप सबको अनंत आशीर्वाद । पर अबी बीज अंकुरित हुआ , इसके वृक्ष होने चाहिए । अगर आप लोग जितने यहाँ हैं , गर एक वृक्ष के रूप में हो जायें तो एक एक आदमी न जाने कितने दीप जला सकता है । और इसी से सारा विश्व बदल सकता है । मैं सारे विश्व के परिवर्तन कि बात कर रही हूँ । आशा है आप लोग इसमें सहकार्य देंगे और अपनी तो उन्नति करियेगा पर इसके साथ और भी लोगों की , और देशों की भी उन्नति करिएगा । आपको पता नहीं है कि सारे विश्व में लोग आपको सबसे ऊंचे लोग समझते हैं । अध्यात्म में । और वो ख़ुद ही यहाँ आपके चरणों में आयेंगे , समझेंगे कि ये भारतीय हैं । जबतक हमने आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त नहीं किया , हम भारतीय नहीं । भारतीय होने की सबसे बड़ी बात है कि आत्मसाक्षात्कार की इच्छा और आजके ज़माने में इसे प्राप्त करना । सबको मेरा अनंत आशीर्वाद है ।

जैसे मैंने कहा था थोड़ी देर अच्छा , बहुत बढ़िया म्यूजिक होगा , एक सहज योगिनी आई हुई हैं , आप उनका गाना सुनिए ,छोटी सी उमर से मैं उनको सुन रही , २०-२२ साल से , अभी भी बहुत छोटी उम्र है । लेकिन जिस तरह ये गाती हैं , वो लगता है इनके अंदर देवी शक्ति का संचार हो गया है । आप ज़रूर देखिए चमत्कार है। पिछली मर्तबा आपने चमत्कार देखा कि रूमानिया के लोग आए थे उन्होंने कितनी बढ़िया कव्वाली गाई थी । सब लोग एकदम रुक कर सोचने लगे ये कैसे हुआ । दूसरा चमत्कार आपको देखना है । उससे पहले भी आपने देखा है कि जो यहाँ पर गाना गाया गया कितना अद्भुत था ।

Mumbai (India)

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