Shivaji School, Vishesh goshti sathi vel aali aahe 1982-02-03
3 फ़रवरी 1982
Public Program
Rahuri (भारत)
Talk Language: Marathi | Translation (Marathi to Hindi) - Draft
Shivaji School, Vishesh goshti sathi vel aali aahe
[Marathi to Hindi Translation]
HINDI TRANSLATION (Marathi Talk) परमात्मा की बहुत सारी कृपायें हम पर होती हैं। मनुष्य पर भी उसकी अनेक कृपायें होती हैं। परमात्मा की आशीर्वाद से ही उसे अनेक उत्तम चीजें और उत्तम जीवन प्राप्त होता है। पर मनुष्य तो उसे हर क्षण भूल जाता है। साक्षात् परमात्माने यह पृथ्वी हमारे लिये बनायी है और पृथ्वी निर्माण कर के उसमें विशेष रूप से एक स्थान बनाया है। इसी कारण से वह सूर्य के ज़्यादा समीप नहीं और चंद्रमा से जितनी दर पृथ्वी ने होना चाहिये उतनी ही दूरी पर वह है। और उस पृथ्वी पर जीवजंतुओं का निर्माण कर आज वह सुंदर कार्य मनुष्य के रूप में फलित हो गया है। अर्थात् अब आप मानव बन गये हैं। और अब मानव अवस्था में आने पर हमें परमात्मा का विस्मरण होना यह ठीक नहीं है। जिस परमात्मा ने हमें इतना ऐश्वर्य, सुख और शांति दी है, उस परमात्मा को लोग बहुत ही शीघ्र भूल जाते हैं। पर जिन लागों को परमात्मा ने इतना आराम नहीं दिया, जो अभी भी दरिद्रता में हैं, दःख में हैं, बीमार हैं, पीड़ा में हैं, वो लोग परमात्मा का स्मरण करते रहते हैं। पर जिन लोगों को परमात्मा ने दिया है, वे परमात्मा को पूरी तरह भूल जाते हैं। यह बहुत आश्चर्य की बात है। और जिन्हें नहीं दिया वे तो परमात्मा की याद करते रहते हैं। फिर याद करने के बाद, उन्हें भी आशीर्वाद मिलने के बाद वे लोग भी भूल जाएंगे। मनुष्य का मस्तक इतना विचित्र है कि कुछ भी दी हुई बात को वह ठीक से झेल नहीं सकता, सम्हाल नहीं सकता। इसलिये हमने यह समझ लेना चाहिए कि अगर सुबह से ले कर शाम तक परमात्मा ने आपको कितने प्रकारों से आशीर्वादित किया है, यह अगर हम गिनने लगे तो आश्चर्य हो जाएगा हमें! आज ही मेरे पास पूना से बहुत सारे अमीर लोग आये। उनके परिवार में कितनी सारी बीमारियाँ हैं, उन लोगों को कितनी सारी परेशानियाँ हैं, कितनी मानसिक पीड़ायें हैं। किसी का लड़का शराब पीता है, तो किसी का पति दारु पीता है, तो किसी की पत्नी बिगड़ गयी है। इस प्रकार से सबको कितनी सारी समस्यायें हैं। किसी को पिता का प्रेम नहीं मिला, तो किसी को लड़के का बर्ताव पसंद नहीं है । इस प्रकार से उनकी बहुत सारी समस्यायें, सवाल हैं । और आज हमें ये समस्यायें नहीं हैं, पर कल अगर आपके पास ज्यादा पैसा या अधिक सत्ता आ गयी तो ये समस्यायें आपके भी सामने खड़ी हो जाएगी। पर अगर आपने पूरी तरह ध्यान में रखा कि परमात्मा ने यह सब हमें क्यों दिया है, तो फिर वैसा होने वाला नहीं है। परमात्मा ने पहले ही आपके खाने पीने की व्यवस्था की है। पुराने जमाने में अगर लोगों ने बहुत कुछ खाना चाहा, तो भी उन्हें चार जानवरों को मारे बगैर वे खा नहीं सकते थे। जंगल में जाना पड़ता था। एक ही जगह पर रहना पड़ता था। कितने सारे लोगों के पास आश्रय के लिये छत भी नहीं रहती थी। और फिर वहाँ साप, बिच्छु, शेर जैसे डरावने जानवर भी होते थे। उनसे भय रहता था। उन सब का अभी निवारण हो गया है और हम एक सुव्यवस्थित स्थान पर रहते हैं। इसके साथ-साथ परमात्मा ने इन सब चीज़ों का हमें वरदान दिया है। टेलिफोन दिया है और मैंने कितने सारे लोगों के पास देखा है कि सुनने के लिये रेडिओ भी | है। पर यह सब हमें मिलने पर भी हमें परमात्मा का विस्मरण हो रहा है। परमात्मा ने हमें यह सब क्यों दिया ? जिसे
Hindi Translation (Marathi Talk) देखो वह घड़ी लगा कर घूमता है और कहता है कि समय नहीं है अब , बहुत देर हो गयी, बहुत देर हो गयी। किसी के पास समय नहीं है। अभी कुछ दिन पहले मैं ब्राह्मणी गयी थी। बहुत सारी स्त्रियाँ देर से आयी और कहने लगी, 'माताजी, हम काम पर गयी थी , इसलिये हमें देर हो गयी , इसलिये हम समय पर आ नहीं पाईं। हमें अभी दर्शन दीजिये इ.इ.।' तो मैंने कहा, 'अगर एक दिन काम पर नहीं जाती तो क्या हो जाता? हम तो लंदन से आये हैं। अगर एक दिन आप नहीं जाती, तो दो पैसे कम मिलते तो क्या हर्ज हैं? एक दिन माताजी हम से मिलने इतनी दूर से आईं, तो हम जरूर उनसे मिलने जाती। और समझ लीजिये कि अगर हम यहाँ से निकल जाते तो आपकी और हमारी मुलाकात ही नहीं होती। पर महत्त्व किस बात का है? कि हमारे दो पैसे नहीं गँवाने चाहिये । इसका अधिक महत्त्व है। अगर कल बीमार हो गये, तब तो यहाँ से लंदन का टिकट लेकर वहाँ आयेंगी कि हमारे बेटे को ठीक कीजिये। पर आज हम आपके द्वार पर आये हैं, तो आपके पास समय नहीं। तो आपको परमात्मा ने यह सब क्यों दिया? यह आपका लगातार घड़ी में देखना चलता है कि आज समय नहीं, कल भी नहीं था और आने वाले कल को भी समय नहीं रहेगा , तो फिर हाथ में घड़ी क्यों बाँधते हैं? अगर आपके पास समय ही नहीं रहता, तो घड़ी बाँधने पर भी क्या उपयोग है? तो समय के लिये मनुष्य को जो परेशानी रहती है, वह केवल एक ही कारण से है। मनुष्य यह नहीं जानता कि हम समय की खोज किसलिये कर रहे थे। कौन सा समय आपको पकड़ना है? किस समय के लिये यह सब मेहनत और हड़बड़ाहट चल रही है? किसलिये समय चाहिये? यहाँ से वहाँ फालतु गँवाने के लिये या इधर से शराब की दुकान में गये या कुछ गंदी हरकते, गंदे काम किये, किसी के गले काट दिये, किसी का खून किया , ऐसी सब गंदी चीज़ें करने के लिये समय मिलना है। यह समय तो किसी विशेष बात के लिये आया है। हमारे भारत में या कहीं बाहर भी, कभी भी लोगों ने घड़ी लगा कर समय नहीं देखा था। अब यह नया सूत्र क्यों निकला है? क्यों? किसलिये हमें घड़ी के कारण लगातार लगता रहता है, कि समय चल गया। यह समय बीता, वह समय गया, ऐसा इसलिये लगता है कि अब मनुष्य को मनन करने का लिये समय देना चाहिये। अपने खुद के बारे में मनुष्य को समझना चाहिये समय आ गया है। उसने अपने स्वयं के कि 'मैं कौन हूँ?' मैं इस दुनिया में किसलिये आया हूँ? अगर मनुष्य को समय मिला तो वह सिरफिरे के समान दूसरे ही विचार करता है। पर समय प्राप्त करने का यह जो शौक हमें लगा है वह इसीलिये है कि उन्होंने यह सोचना चाहिये कि मुझे क्या करना है? में किसलिये इस दुनिया में आया हूँ? परमात्मा ने मुझे इस दुनिया में किसलिये लाया? इतनी सारी योनियों से मुझे निकाल कर मनुष्य की अवस्था में क्यों लाया है? मेरे जीवन का अर्थ क्या है? यह इस प्रकार का विचार करने के लिये हमारी यह सब मेहनत चल रही है, कि हमें समय को बचाना है। पर वैसा नहीं होता। वैसा बिल्कुल ही नहीं होता। अगर आप में से किसी से कहा, 'मुझे आज ही मुंबई जाना है, आज ही जाना चाहिये!' 'क्यों' तो 'मुझे जुआ खेलना है।' मनुष्य जो कुछ भी करता है वह बिल्कुल विपरीत ही करता है। उसको जो कुछ करना है, उसके विपरीत ही करते रहता है। सीधी बातें उसकी समझ में ही नहीं आती कि भैय्या, किसलिये इतना समय बचा रहे हो? किसलिये इतना समय बचा रहा है? अरे, तेरी तो पूरी जिंदगी ही व्यर्थ गयी। कभी तेरी समझ में भी आया कि इस संसार में तू किसलिये आया है? अब, आप इस संसार में किसलिये आये हो? तो परमात्मा को जानने के लिये ! ০
Hindi Translation (Marathi Talk) परमात्मा ने यह सारी सृष्टि बनायी, आपको सब कुछ दिया, आखरी में इसलिये कि आप सुजान बन जायें, आपमें धर्म आ जाये। और फिर आप उस धार्मिक स्थिति में परमात्मा से एकरूप, एकात्म हो जाये केवल इसी (मनुष्य) जीव का और आत्मा का संबंध होता है। परमात्मा ने यह सब रचना इसीलिये की है कि आपने उस परम पिता परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश करना है। और बहुत आतुर, व्याकुल हो कर परमेश्वर प्रतीक्षा कर रहे हैं कि ये लोग कब मेरी तरफ आएंगे। पर आपको पैसा मिल गया, तो आप इधर बहक गये। सत्ता मिल गयी, तो उसमें बहक गये, या तो फिर आपके बाल-बच्चों में आपका कहीं न कहीं चित्त गया है और आप के पास इतना भी समय नहीं कि दो मिनट के लिये परमेश्वर के संबंध में विचार करेंगे । पश्चिम के देशों ने यहीं सब प्रकार किये। रात - दिन मेहनत की, यह करो, वह करो , पैसा इकठ्ठा करो, जो जो कुछ उन्हें करना था, वह किया। पर अंत में क्या हुआ? उनके बच्चों ने अपने माँ-बाप का घर छोड़ दिया। 'हमें यह पैसा सिर पर रख कर घूमना नहीं, आप सम्हालिये' ऐसा कह कर वे चल पड़े अपने- अपने रास्ते पर! और वे कहाँ जा कर पहुँचे, तो जहाँ कि उन्होंने गांजा, चरस आदि त शुरु किया । अब अगर आप को उसी रास्ते से जाना है तो जाईये। उसके लिये आपको कोई मना नहीं कर सकता क्योंकि आप स्वतंत्र हैं। अगर आपने कहा, कि हमें नर्क में जाना है तो जाईये। सीधे नर्क तरह- तरह की चीजें लेना में जा सकते हैं। पर अगर आपने समझ लिया कि मैं कौन हूँ? इस दुनिया में किसलिये आया हूँ? मुझे क्या करना है? मेरी क्या स्थिति है और वस्तुस्थिति, वास्तव क्या है? अगर यह बात आपकी समझ में आयी तब तो आप अधोगति में न जाते हुए सहजयोग में आएंगे। उसकी भी एक शाखा है, अपने उस छोटे से मार्ग से ही उस शाखा का आश्रय ले कर आप अपनी आत्मा तक पहुँच सकते हैं। आत्मा जानती है कि आपका रास्ता किधर है, आप कहाँ जा रहे हैं। पर अभी तक आपके चित्त में वह आत्मा आयी ही नहीं। अगर आपके चित्त में वह आत्मा आ गयी, चित्त में अर्थात्, अब आपका चित्त मेरी तरफ है, आपका ध्यान मेरी ओर है। आप देख रहे हैं कि मैं खड़ी हूँ, मेरा बोलना आप सुनते हैं, सब कुछ आप जानते हैं कि माताजी हमारे सामने बोल रही है । पर अगर मैंने कहा कि अब आपका चित्त परमात्मा में लगाईये तो, 'कैसे लगाना है माताजी ? बहुत मुश्किल काम दिखता है! ऐसे कैसे ले जाना है? अंदर में चित्त किस तरह, कैसे ले जाना है?' क्योंकि हमारा चित्त तो बाहर ही फैला हआ है। जो बाहर जाता है वही चित्त है, तो फिर उसे अन्दर कैसे ले जाएंगे? आत्मा अगर हमारे हृदय में है तो हम हृदय की तरफ चित्त कैसे ले जाएंगे? इसीलिये परमेश्वर ने एक युक्ति की योजना की है। आपमें ही कुण्डलिनी नाम की शक्ति है, जो आपको अंकुरित करती है, ऐसी शक्ति को ईश्वर ने त्रिकोणाकृती अस्थि में रख दिया है। जब यह कुण्डलिनी शक्ति आपमें तो हम जागृत होती है तब एक घटना घटती है। मान लीजिये, कि हम यहाँ खड़े हैं और ऊपर से कुछ गिर गया, सबका ध्यान उसी ओर जाएगा ना? और हमारा चित्त तो इतना चलायमान है कि एक आदमी इधर से उधर गया तो भी हमारा ध्यान उसी ओर जाता है। तो जब ऐसी घटना अन्दर में घटती है तो चित्त अन्दर आकर्षित होता है और चलविचल होने वाला यह जो मन है वह भी अन्दर खींचा जाता है। वह जब अन्दर में खींचा जाता है तो हमें चित्त अन्दर नहीं ले जाना पड़ता। हमें ऐसा लगता है कि अपने आप ही कुछ हो गया है और हमारा चित्त अन्दर जा रहा है। तब यह कुण्डलिनी जागृत हो कर छ: चक्रों में से निकल कर सूक्ष्म चक्रों से निकल कर ब्रह्मरंध्र का भेद करती है। जब वह कुण्डलिनी ब्रह्मरंध्र का भेद करती है यहाँ, तब आपका परमात्मा से कनेक्शन हो जाता है, जैसे 'मेन' से 9.
Hindi Translation (Marathi Talk) इस मशीन का कनेक्शन हआ है। मतलब मान लीजिये कि वह यही कुण्डलिनी है। पर इस चीज़ का कोई भी अर्थ नहीं होगा अगर उसका कनेक्शन नहीं हुआ तो! किसी भी मानव का कोई भी अर्थ नहीं जब तक उसका तादात्म्य परमात्मा से नहीं हुआ है। यह होना ही चाहिये। घटित होना ही चाहिये। अगर यह नहीं हुआ तो इस मनुष्य के जीवन | का कोई भी अर्थ नहीं। निरर्थक है वह! वह जन्म लेता है, या मर जाता है, कुछ भी फर्क नहीं। जानवरों का तो भी कुछ अर्थ है क्योंकि उन्हें मानव बनना है। जानवर आते हैं और मर जाते हैं क्योंकि बाद में उन्हें मानव बनना है। पर अगर मनुष्य को देवत्व का ग्रहण नहीं करना है और अगर उसे आत्मा से संबंध नहीं प्रस्थापित करना है, तो वह गया काम से! क्योंकि अब वह आगे जा कर क्या करेगा? इसलिये आपने अपनी आत्मा को पहचानना, जानना चाहिये और आत्मा में लीन होना चाहिये। पर यह होगा कैसे ? फिर से 'माताजी कैसे बनेंगे?' मैं फिर से कहती हैं कि आप में कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है। तो यह कैसी जागृत होती है ? जैसे कि एक बीज को धरती माता की उदर में डाल दिया तो वह कैसे अपने आप अंकुरित होता है वैसे ही अपने आप यह कुंडलिनी आप में जागृत हो जाती है। पर उसे जागृत करने के लिये किसी अधिकारी पुरुष/व्यक्ति की आवश्यकता होती है। और यह अधिकार परमेश्वर से, परमात्मा के प्रेम से आना चाहिये । पेट भरने वाले लोगों से यह काम नहीं हो सकता। खाली निंदा या विवाद करने वाले लोग इस काम को नहीं कर पाएंगे। यह एक शक्ति है। जिस व्यक्ति में यह शक्ति रहती है, उस शक्ति से ही आपकी कुण्डलिनी जागृत होती है। मतलब जैसे एक दीप जल रहा है तो वही दीप दूसरे दीप को जला सकता है। जब मनुष्य स्वयं को ऐसा समझते हैं कि हम कोई बहुत बड़े लोग हैं। हम बड़े साइंटिस्ट हैं, फलाने हैं, ढिकाने हैं, तो वे केवल मानव की स्थिति में ही है। परमेश्वर को उनका कोई भी उपयोग नहीं होता। जब आप का संबंध आत्मा से होता है तो आप के अन्दर से यह ब्रह्मशक्ति बह कर आती है । यह ब्रह्मशक्ति चारों ओर फैली है। वह वातावरण में सभी जगह होती है, उसी के कारण फूलों के फल बन जाते हैं। उसी से बीज अंकुरित होता है। उसी के कारण सब जीवंत क्रियायें होती हैं। आपका जन्म भी उसी कारण से हुआ है। उस शक्ति का अनुभव आपको हाथों में होता है। मैं फिर से कह रही हूँ। आपको जैसे गर्मी और ठंडी का एहसास होता है, उसी प्रकार आपको इन चैतन्य लहरों का बोध होता है और आपके हाथों में ऐसी ठण्डी ठण्डी लहरें आती हैं। यह पहचान बहुत वर्ष पहले मार्कडेय स्वामी ने बतायी। उनके बाद आदि शंकराचार्य ने बतायी, उनके बाद मोहम्मद साब ने बतायी, सबने बतायी है। फिर भी जब तक आपको यह पहचान या अनुभूति नहीं होती, तब तक मेरे लेक्चर का कोई अर्थ ही नहीं । तो यह घटित होना चाहिये। आपकी जागृति होनी चाहिये। और आप सबको यह मिलना चाहिये, यही मेरी एक परम इच्छा है। इसीलिये इतनी दूरी से आपके लिये मैं आयी हूँ। उसे प्राप्त कीजिये । जो कुछ आपका है वह आपके पास ही है, आपके समीप ही है। और आपको वह केवल देना है । वह सब आप बड़ी सहजता से ग्रहण कर उसमें फिर से वृद्धि कीजिये । क्योंकि अंकुरित होते समय अंकुर बड़ी सहजता से बाहर निकलता है। पर बाद में उस छोटे से पौधे का बहुत ध्यान रखना पड़ता है। इसलिये आपको भी अपने पर बहुत ध्यान रखना पडेगा। इसलिये पार होने पर भी भले ही बहुत अच्छा लगेगा, तो भी आप यहाँ के सेंटर पर जाईये और इसके बारे में पूरी जानकारी लेकर उसके अनुसार आचरण कर के अपने वृक्षों को बढ़ने दीजिये। इससे शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक स्थिति अच्छी होती है । सबसे मुख्य बात यह होती है कि उसकी धार्मिक प्रवृत्ति ठीक होती है। उसे समझता है कि यह झूठा है या सच्चा है, यह गुरु बुरा है या अच्छा, यह उसे समझ में जाता है। 10
Hindi Translation (Marathi Talk) अभी तीन-चार वर्ष पहले मैं उसळवाडी गयी थी। तब मुझे वहाँ बहुत अच्छा लगा और वाइब्रेशन्स याने ठंडी लहरें भी आयी। तो मैंने पूछा कि यहाँ ठंडी लहरें कैसी आ रही है ? उन्होंने बताया कि, 'यहाँ एक स्थान है म्हसोबा का!' मैंने जा कर देखा , कहा, 'यह तो बिल्कुल जागृत स्थान है । यहाँ से कितनी सारी ठंडी ठंडी लहरें आ रही हैं। पर अगर आप पार नहीं हये होंगे तो आपके लिये यह पत्थर क्या है और वह पत्थर क्या है। पत्थरों में जो कुछ फर्क है वह समझने वाला है क्या? तो इसलिये यह एहसास आपमें होना चाहिये। इस बोध के होते ही आपमें आनंद का साम्राज्य आ जाता है और परमात्मा की शक्तियाँ धीरे-धीरे जानने लग जाते हैं। तो आज यह ऐसा दिन आया है कि आपने परमात्मा की शक्ति प्राप्त करनी चाहिये और मेरा भी राहरी पर विशेष प्रेम है। इसलिये मैं बहुत बार आती हूँ। कृपया आप अब अपनी कुण्डलिनी जागृत कर लीजिये और उसके बाद दूसरे लोगों की कुण्डलिनी भी ऐसी ही जागृत कर लीजिये। 11