Public Program, Introduction to Mooladhara Chakra

Public Program, Introduction to Mooladhara Chakra 1981-02-05

Location
Talk duration
48'
Category
Public Program
Spoken Language
English, Hindi

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5 फ़रवरी 1981

Public Program

New Delhi (भारत)

Talk Language: English, Hindi | Transcript (Hindi) - NEEDED

Public Program, India, Delhi, 05-02-1981

आज मैं सहज योग और कुंडलिनी जागृति के बारे में सामान्य रूप से बात करने जा रहीं हूँ। सहज, जैसा कि आप जानते हैं, का अर्थ है,'सह' साथ और 'जा'आपके साथ पैदा हुआ। लेकिन शायद लोगों को एहसास नहीं है सहज का वास्तव में क्या अर्थ है। यह स्वतःस्फूर्त है लेकिन क्या है स्वतःस्फूर्त?

स्वतःस्फूर्त वह नहीं है - मान लीजिए मैं कार में जा रहीं हूँ और अचानक कोई मिल जाए तो मैं कहूँ, 'मैं अनायास/सहज ही उस व्यक्ति से मिल गई।' सहज का अर्थ है, वह घटित होना जो कि एक जीवंत घटना है। यह एक जीवित वस्तु होनी चाहिए जो कि स्वतःस्फूर्त है; यह बहुत ही रहस्यमय शब्द है जिसे समझाया नहीं जा सकता और जो, इस बारे में बिना किसी ज्ञप्ति के घटित होता है, जो मनुष्य के लिए समझना संभव नहीं है, यही सहज है। सहज का अर्थ हो सकता है, यह बहुत सरल है, बहुत आसान है - यह है, इसे होना ही है। उदाहरण के लिए, ईश्वर ने हमें ये आँखें दीं हैं। ये अद्भुत आँखें जो मनुष्य को मिलीं हैं, ऐसा नहीं कि वे रंग देख सकतीं हैं वरन इसकी सराहना भी कर सकतीं हैं। भगवान ने उन्हें नाक दी है, जो इतनी अच्छी तरह से विकसित है कि यह गंदगी को महसूस कर सकती है - जानवर इसे महसूस नहीं कर सकते। आप एक मानव बन गए हैं, मैं एक मानव बन गईं हूँ, और हर कोई इंसान बन गया है - बन गया है - अनायास ही अमीबा की अवस्था से। क्या आप समझा सकते हैं कि यह कैसे घटित हुआ? आगे हम देख सकते हैं, प्रतिदिन हम बहुत सारी स्वतःस्फूर्त चीजें घटित होती देखते हैं। प्रतिदिन हम देखते हैं बहुत सारी चीज़ें स्वतःस्फूर्त घटित होते हुए। आज आप जंगल में जाएँ, आपको दिखाई देंगे जंगल में, बीहड़ में बहुत सारे फूल हैं, और कल आपको इन फूलों से उत्पन्न हुए ढेर सारे फल मिलेंगे। यह किसने किया है? सहजता से प्रकृति ने यह किया है। यह एक जीवंत घटना है - मृत वस्तु में ऐसा नहीं होगा। उदाहरण के लिए, अब हर वर्ष इस हॉल में मैं आती रहीं हूँ, बिल्कुल वैसा ही है। आकार/माप बिल्कुल वही है, सिवाय इसके कुछ लोगों ने कोई और रंग कर दिया है या कुछ उपांग लगाए हैं - बस इतना ही। मृत अपने आप विकसित नहीं हो सकता। उसमें कोई विकास नहीं होता। यह कोई स्वतःस्फूर्त वृद्धि नहीं है - यह आपके प्रयास का विकास है - कि सभी मृत चीज़ों के ऊपर और चीज़ें डालनी होतीं हैं उन्हें बड़ा दिखने के लिए। सभी जीवित चीजों में, जो कुछ भी जीवित परमेश्वर का जीवित कार्य रहा है, चमत्कारी रहा है, आप समझा नहीं सकते लेकिन हमने सब कुछ (अधिकार स्वरुप) मान लिया है। हमारे लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि हम आज एक फूल देखते हैं, कल एक फल। हम देखते हैं कि एक छोटा सा बीज बड़ा होकर एक विशाल बड़ा पेड़ हो गया और हम इस पर आश्चर्यचकित नहीं हैं - बिल्कुल नहीं - इसे हल्के में लिया जा रहा है। यह जीवित कार्य है। व्यवस्था देखें, प्रकृति की संपूर्ण व्यवस्था - ऐसे संतुलन में है, ऐसा संतुलन बनाए रखा है। यह एक के बाद एक विभिन्न प्रकार की ऋतुओं का निर्माण करता है। सूर्य एक रेखा से दूसरे की ओर बढ़ता है - यह ऋतुओं का निर्माण करता है। पेड़ पत्तों से लदे हुए होते हैं और अचानक बिना पत्तों के रह जाते हैं। सारे पत्ते अपने आप झड़ जाते हैं क्योंकि सूर्य अन्य कटिबंध रेखा की ओर जा रहा है। लेकिन पत्तों को तो ज़मीन पर गिरना ही है - क्यों? क्योंकि नाइट्रोजन का पोषण धरती माता में जाना है पेड़ द्वारा पुनः शोषित होने के लिए। आप देखें, ब्रह्माण्ड में इस सारे चक्र का निर्माण किया गया है। चीज़ें कैसे घटित हो रही हैं, हम कभी देखने की भी ज़हमत नहीं उठाते हैं। हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम का, हम पूरा फायदा उठा रहे हैं। अपनी सहजता से उन्होंने हमारा सृजन किया है और उन्होंने हमें इस तरह से बनाया है कि हम, हमारे चारों ओर, उनके सहज प्रेम का आनंद ले सकें। लेकिन हम ईश्वर को खोजने का प्रयास करते हैं, मृत वस्तुओं में खोजने का हम प्रयास करते हैं। अगर किसी के पास बड़ा घर है तो लोग सोचते हैं कि भगवान ने उसे आशीर्वादित किया है। अगर किसी को बड़ा पद मिल जाए, वे सोचते हैं, भगवान ने उस पर कृपा की है। लेकिन हमें कभी भी इन बातों का एहसास नहीं होता कि जो चीज़ें स्वतःस्फूर्त नहीं हैं, जो प्रयास के माध्यम से हैं, हासिल कर लिए हैं - जहाँ तक आनंद का संबंध है, इनका कोई महत्त्व नहीं है। आप किसी व्यक्ति को कुछ पैसे देते हैं जो पैसे का आदी नहीं है, आपको पता चलेगा तुरंत वह रेसकोर्स जाएगा या शराब पीना शुरू कर देगा - वह इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता। जब धन बहुत बढ़ जाए, आप देखिए क्या होता है। संपन्नता ऐसी समस्या पैदा करती है - आपने अब जान लिया है। आप इस बात से अवगत हैं कि सम्पन्नता ने पश्चिमी लोगों की सहजता को कैसे बर्बाद कर दिया है, अब उनका समाज कैसा घातक/निंदनीय हो गया है, वे कैसे दुखी हैं - प्यार नाम की चीज़ नहीं है। हमारे भीतर की यह सहजता हमारे अंदर की जीवंत शक्ति के माध्यम से कार्य करती है, मृत से नहीं। हमारे भीतर जो भी मर जाता है, उसे एक तरफ धकेल दिया जाता है। सहज योग उस जीवित कार्य की पराकाष्ठा है, जिससे आप मानव बन गये हो और अब समय आ गया है आपके लिए एक आत्म-साक्षात्कारी व्यक्तित्व बनने का - समय आ गया है। आज प्रेस कांफ्रेंस में कई लोगों ने मुझसे पूछा, "आपका उद्देश्य क्या है, आपका मिशन क्या है?" यह अति आश्चर्यजनक बात है। जैसा कि वे सभी राजनीतिक नेता से पूछते हैं, वे मुझसे पूछ रहे थे। समय आ गया है। आपके लिए समय आ गया है अपना आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने का। अब आप इसके लिए तैयार हैं। ये वो समय है, जब अराजकता अपने चरम स्तर पर है, जहाँ लोग समझते हैं कि ये धन, सत्ता की चाहत का लक्ष्य तथा अन्य भावनात्मक संपदा का कोई मूल्य नहीं है। जहाँ दबाव और तनाव इतना ज़्यादा है कि मनुष्य खोज रहा है। हर देश में मुझे हज़ारों, हज़ारों लोग मिलते हैं जो खोज रहे हैं। हमारे देश में भी ऐसे लोग हैं जो साधक हैं; वह अब एक विकासशील श्रेणी है - यह एक श्रेणी है। जैसे पुष्प वृक्ष पर एक श्रेणी है, वृक्ष के अन्य भागों से भिन्न उसी प्रकार साधक भी एक वर्ग है, जो संसार के अन्य भागों/वर्गों से भिन्न है। उसके पास जो कुछ भी है उससे वह संतुष्ट नहीं है तथा उसने वहाँ से देखना शुरू कर दिया है कि इससे परे कुछ होना चाहिए - यह इसका अंत नहीं है। केवल ऐसे लोगों का ही सहजयोग में स्वागत है। जो साधक नहीं हैं उनको इसमें जबरदस्ती शामिल नहीं कर सकते। यह एक सहज चीज़ है। अब, विभिन्न शास्त्रों में इसका वादा किया गया है कि यह तो होना ही है। नल पुराण जितना पुराना - मुझे नहीं पता आपने इसे पढ़ा है या नहीं, क्योंकि हम, आधुनिक लोग, इन सभी पुराणों को पढ़ते नहीं हैं , आप देखें - हम सोचते हैं कि हमारे पढ़ने के लिए यह सब बहुत प्राचीन है। ऐसा कहा गया था कि, 'जब कलयुग अपनी चरम सीमा पर इंसानों को सबसे ज्यादा परेशान करेगा, उस समय, वे लोग जो आज गिरी-कंदरों में ईश्वर को खोज रहे हैं, वे फिर से जन्म लेंगे और उन्हें आत्म-साक्षात्कार प्राप्त होगा।' आप चकित होंगे , कि इंग्लैंड में - जिसे हम किसी तरह से भी एक आध्यात्मिक समृद्ध देश नहीं सोचते हैं - कम से कम भारतीय तो ऐसा नहीं सोचते - उन्हें लगता है कि वे कम से कम, आध्यात्मिक रूप से बहुत समृद्ध हैं - मुझे आश्चर्य है कि क्या वे वास्तव में हैं! लेकिन अगर वे हैं, तो मुझे इस पर कोई आश्चर्य नहीं है क्योंकि आपके पास इतनी महान विरासत है। यदि आप इसे नहीं भूले हैं, तो आप अपना बोध प्राप्त करने के लिए सर्वोत्तम हैं। आप उसके लिए सबसे उपयुक्त हैं, आपके पीछे वह सुकृत है, आपके पास इसे पाने का इतना बड़ा अधिकार है - भारतीय साधक कितने हैं, यही बात देखनी पड़ेगी। [एक ओर - मराठी] अब, समस्या यह है [ASIDE - Let it be] जब आप साधक हैं, जब आप ईश्वर को खोज रहे हैं, इसे करने का तरीका कौन सा है, कैसे करना है? क्योंकि आपके माता-पिता ने आपको बताया था कि आप मुसलमान हैं या ईसाई या पारसी या एक सिख या कुछ और, आप बस वही बन जाते हो। लेकिन कोई भी रीति-रिवाज करके या ऐसी किसी भी चीज़ को करके जिसे आपके माता-पिता ने बताया है, आपको फिर भी लगता है कि कुछ और भी होना बाकी है। और वह क्या है जो लुप्त बिंदु है, उसे हमें अपने भीतर जानना होगा। आज मुझे ख़ुशी है कि हमने ऐसे महान कवि कबीर का इतना अच्छा गीत सुना, और वह, जैसा उन्होंने कहा है और जैसा सभी ने कहा है, ईसा मसीह ने कहा है, मोहम्मद साहब ने कहा है, उन सबने यही कहा है, कि आपके भीतर ही भगवान हैं, राम हैं, शिव हैं, पैगम्बर हैं या जिसे वे कहते हैं अल्लाह हैं - फिर उन्हें खोजो। अब हम गाना गाना शुरू करते हैं,"हमें खोजना चाहिए और बेहतर है आप खोजें, और हमें खोजना होगा।" गाना गाकर क्या आप उन्हें खोजेंगे? लोग मुझसे पूछते हैं, "माँ फिर कैसे खोजते हैं?" "हमें भगवान की तलाश कैसे करनी चाहिए, क्या कोई रास्ता और तरीका है?" आप इंसान कैसे बने?

सहजता से, बिना किसी प्रयास के। बात बस इतनी सी थी कि आपने अपने आप को प्रकृति के सुपुर्द कर दिया और प्रकृति ने आपको बनाया है। आप इसे प्रकृति कहें या ईश्वर - एक ही बात है। उसी प्रकार यह सर्वशक्तिमान ईश्वर का कार्य है, जिसने आपको बनाया है, आपको आपका अर्थ देने के लिए। यदि मैं ऐसा एक यंत्र बनातीं हूँ, व्यक्ति को यह बताना मेरा काम है कि उसके साथ क्या करे, इसे स्त्रोत से कैसे जोड़ा जाए और इसका उपयोग कैसे किया जाना है। उसी प्रकार यह सर्वशक्तिमान ईश्वर का कार्य है और वह जानते हैं इसे कैसे करना है। तो, कोई कह सकता है, "हमें इसके बारे में क्या करना चाहिए? उसे प्राप्त करने का क्या तरीका है?" हम फिर से प्रयास पर हैं। असल में क्या हमें जो करना है, वह है मध्य में रहना। आपको संयमित जीवन जीना चाहिए। आपको अति नहीं करनी चाहिए। यदि आप बहुत ज्यादा अति पर चले जाते हैं, तो आप अपना चित्त आत्मा से दूर ले जा रहे हैं। आपको मध्य में रहना होगा, आपको बिल्कुल सामान्य जीवन जीना होगा। जैसा कि कबीर ने बहुत स्पष्ट रूप से कहा है कि, 'मैं कहीं नहीं जाता हूँ।' वह शादीशुदा थे , वो मध्य में रहते थे। . अपनी आध्यात्मिकता की अभिव्यक्ति के लिए किसी अतिवादी या बाह्य वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना है। आप इसे अपने भीतर ही पाएँगे, स्वयं को मध्य में रखें। यह बिल्कुल व्यावहारिक है, यह सामान्य समझ है। ऐसी कार के बारे में सोचें जिसका गुरुत्व केंद्र अपने स्थान पर नहीं है लेकिन एक झुकाव पर चल रही है। एक ऐसी नाव के बारे में सोचें जो झुकी हुई हो। कुछ भी जो बहुत अधिक झुका हुआ हो, देता है असंतुलन। अतः जीवन को संतुलित बनाये रखने के लिए एक संयमित जीवन, मध्य में, बहुत ही सामान्य हो। - यही सबने कहा है क्योंकि [यही है जो/यह वही] है। मध्य में रहकर ही हमने अपना विकास हासिल कर लिया/किया है। यदि आप एक पेड़ देखते हैं, तो आप हमेशा पाएंगे कि पेड़ का रस मध्य से होकर ही गुज़रता है। सभी जीवंत कार्य मध्य/केंद्र में घटित होते हैं। यहाँ तक कि आपकी सामाजिक और आर्थिक गतिविधियाँ भी केंद्र में होतीं हैं। यहाँ तक कि हम दिल्ली को भी कहते हैं, केंद्रीय सरकार। इसलिए आपको अपना व्यवहार, अपनी रहन-सहन, अपनी शैलियाँ, अपनी सोच को भी मध्य में रखना होगा । अति पर मत जाओ - यह पहली बात है जो उन्होंने हमें बताई है। आज उन्होंने मुझसे एक सवाल पूछा कि, "माँ, आपने बहुत सारे कैंसर के मरीज़ ठीक किए हैं," - मैंने किए हैं, निःसंदेह। और कैंसर को आसानी से ठीक किया जा सकता है, कुण्डलिनी जागरण से कई बीमारियों को ठीक किया जा सकता है। "लेकिन कैंसर कैसे होता है?" - यही वह प्रश्न है जो उन्होंने मुझसे पूछा था। मैंने कहा, "अति पर जाने से।" अति पर जाने से ही सारी समस्याएँ आपमें जन्म लेतीं हैं । अपने धार्मिक कर्तव्यों में भी, आप चरम सीमा तक/अति पर चले जाते हैं। जब आप अति पर जाते हैं तो आप मध्य मार्ग से दूर चले जाते हैं। इस प्रकार आप बाईं या दाहिनी ओर फँस/पकड़ जाते हैं, जो कि यहाँ दिखाया गया है - मुझे नहीं पता कि आप सभी इसे देख पा रहें हैं या नहीं, जिसे देखना बहुत जरूरी है। सहज योग का वर्णन सभी संतों द्वारा किया गया है, खासकर आदि शंकराचार्य के इसके बारे में बहुत स्पष्ट रूप से बात करने के बाद। इससे पहले इसे एक पवित्र और एक गुप्त ज्ञान के रूप में रखा गया था। क्योंकि बहुत कम लोग थे जिन्हें आत्मसाक्षात्कार दिया जा सके। लेकिन आज, ऐसा नहीं है कि मैं बात कर रहीं हूँ केवल अर्जुन से या यहाँ-वहाँ कुछ लोगों से, या चयनित कुछ लोगों से लेकिन यह सभी लोगों के लिए खुला निमंत्रण है, इस सूक्ष्मतर ज्ञान की ओर अपनी आंखें खोलने का, इसके लिए, आपके स्व की वास्तविक शक्ति, जो आपके भीतर है। अब जब हम मानव बन गए हैं, हम विभिन्न चरणों से गुज़र चुके हैं। ये सभी चरण हमारे भीतर केंद्रों की भाँति निर्मित हैं। ये विभिन्न केंद्र हमारे भीतर स्थित हैं, कुछ, हमारी रीढ़ की हड्डी में, एक, रीढ़ की हड्डी से बाहर और उनमें से दो मस्तिष्क में हैं। ये केंद्र वहाँ स्थित हैं, जो कि हमारी उत्क्रांति के मील के पत्थर हैं। जब हम सिर्फ एक कार्बन परमाणु थे, हम पहले केंद्र पर थे। कार्बन - मुझे आश्चर्य है कि कितने लोग, जो रसायन विज्ञान के ज्ञाता हैं , कार्बन के सौंदर्य को जानते हैं। कार्बन पृथ्वी माता द्वारा बनाया गया है और यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें एक संतुलन है। कार्बन की 4 संयोजकताएँ हैं, प्लस या माइनस दोनो - मुझे मालूम है कि अगर आपको रसायन विज्ञान जानते हैं , आप कार्बन के बारे में अच्छे से जानते होंगे। तो, यह चार दे सकता है या चार ले सकता है - यह इतनी संतुलित चीज़ है - कार्बन बिल्कुल आवर्त सारणी के मध्य में है। कार्बन के बिना इस पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं हो सकता इसलिए कार्बन सबसे पहले बनाया गया। और जब हम कार्बन थे, हम अबोध थे, पूर्णतया अबोध लोग। अबोधिता सबसे पहले इस पृथ्वी पर बनाई गई और हमारे भीतर अबोधिता का प्रतिनिधित्व होता है, भौतिक स्तर पर या तत्व के स्तर पर, कार्बन के रूप में पहले केंद्र पर, जिसके बारे में मैं आपको कल बताऊँगी और क्या चीज़ें इस केंद्र में हैं, और जो कि एक बहुत ही महत्वपूर्ण केंद्र है। सौभाग्य से हमारे देश में यह केंद्र अत्यंत मज़बूत है। मूलतः हम निर्दोष लोग हैं - यह एक तथ्य है। आप सोच सकते हैं कि माँ हमारे अहंकार को संतुष्ट करने की कोशिश कर रहीं हैं। हम भोले हैं लेकिन हमने यहाँ आये अन्य लोगों के तरीके अपना लिए हैं। और हमने सोचा कि भौतिक विकास ही एकमात्र रास्ता है जिससे हमारा देश बेहतर हो सकता है और फिर हमने अनेक रास्ते और तरीके अपनाए, जिनसे हमारी मासूमियत खो गई या कम से कम दाँव पर है। यह अबोधिता हमारे भीतर है - यही हमारे उत्क्रांति की शुरुआत है। अब धीरे-धीरे विकसित होते हुए हमने अपने अंदर बहुत सारे गुण धारण कर लिए हैं, हमारे पास अन्य जानवरों की तुलना में और भी कुछ बहुत खास हैऔर वह चीज़ है अहंकार। सर्वप्रथम अगर आप बायीं तरफ देखें, दाईं से बाईं की ओर हमारे भीतर वह शक्ति है, जिसे आप कह सकते हैं इच्छा की शक्ति, जिसके द्वारा हम इच्छा करते हैं - इच्छा शक्ति। आप कुछ भी चाह सकते हैं - हम बहुत सी चीज़ें चाहते हैं, लेकिन हमें परिणाम प्राप्त करने के लिए ठोस कार्रवाई करनी होगी। अतः हमारे पास बाईं ओर दूसरी शक्ति है जो दाहिनी ओर जा रही है - क्रिया की शक्ति। बाएँ हाथ की ओर का चैनल जो इच्छा की शक्ति धारण करता है, इडा नाडी कहलाता है। और दाहिनी ओर वाला जो आप देखते हैं, जो वास्तव में बाईं ओर से शुरू होता है दाईं ओर जाता है, पिंगला नाड़ी कहलाता है। पहले वाले को चंद्र नाड़ी कहा जाता है दूसरे को सूर्य नाडी। पहला आपका 'मन' बनाता है - संस्कृत में 'मनस' कहना बेहतर है - आप समझते हैं मन क्या है - और दूसरा अहंकार निर्मित करता है। तो दूसरा जो अहंकार है, जो हमारे प्रयास के माध्यम से हमारे पास आया है, हमारी क्रिया के माध्यम से, एक तरह का हमारे सिर पर गुब्बारा है। और यही आज की समस्या है,जिसका सामना मनुष्य को करना पड़ता है, जिसके प्रति वे जागरूक नहीं हैं। पहली शक्ति मन की बहुत सरल है - आप कुछ इच्छा करते हैं। आप उसकी इच्छा और लालसा करते रहते हो - आप उसकी अभिलाषा और लालसा करते हो, इस प्रकार आप अपने आप को हानि पहुँचाते हो। आप खुद को नुकसान पहुँचाने लगते हैं जब आप इच्छा करना प्रारंभ करते हो, जब आप इच्छा की इस शक्ति का उपयोग प्रारम्भ करते हो। जब आप बहुत अधिक इच्छा करते हैं, तो आप इससे प्रभावित होते हैं। जब आप प्रभावित होते हैं आप हर तरह की समस्या, जैसे अवसाद तथा अन्य मानसिक समस्याओं में फँस जाते हो। मेरा मतलब है, लोग पागल हो सकते हैं और सभी जो मनोवैज्ञानिक समस्याएँ विकसित होती हैं जिसका वर्णन महान फ्रायड ने किया है। अब फ्रायड एक वैज्ञानिक होने के नाते, मैं कहूँगी , एक इंसान, वह एक अंधा आदमी था। इसलिए जो कुछ उसे मिला, उसने कहा, "यही बात है जो सत्य है," वह व्यक्ति जो किसी मानसिक परेशानी से पीड़ित हो, उसका कष्ट उसके प्रतिअहंकार/कुसंस्कारों के कारण है - यह एक तथ्य है लेकिन उसका सरोकार केवल पागल लोगों से ही था - सामान्य लोगों से उसका सरोकार नहीं पड़ा। यदि आप पागल लोगों से मिलते हैं, तो इसका मतलब यह कतई नहीं कि बाकी सारी दुनिया पागल है। पागल लोग इसलिए पागल होते हैं क्योंकि उनकी बहुत अधिक कंडीशनिंग होती है - सहमत हैं। लेकिन उसके लिए अन्य एक चरम सीमा हो सकती है, कि आपके बिल्कुल भी कोई संस्कार न हों, आप जो भी चाहें वो करें। भगवान का शुक्र है, वह भारत में कभी नहीं बसा। बहुत से लोगों ने यहाँ बसने की कोशिश की, वे नहीं बसे। किसी तरह इस देश का कुछ ढंग है/की कुछ प्रणाली है जिसके द्वारा यह सभी निरर्थक चीजों को दूर फेंकता है। इसलिए फ्रायड को इतना स्वीकार नहीं किया गया कुछ को छोड़कर, तथाकथित छद्म- बुद्धिजीवी, जो खुद को पश्चिमीकृत कहते हैं। लेकिन, पश्चिम में, लोग बहुत भोले हैं, उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया - उन्होंने फ्रायड को पूरी तरह स्वीकार कर लिया। तो सवाल यह है, 'क्या ग़लत है?' मान लीजिए, आप कुछ करते हैं, 'इसमें क्या ग़लत है?' वे यही प्रश्न पूछेंगे, 'इसमें क्या गलत है, उसमें क्या गलत है?" कुछ भी करने में, 'क्या ग़लत है?' वे समझ ही नहीं पाते क्या गलत है अगर भाई-बहन के बीच में कोई गलत रिश्ता है - क्या आप कल्पना कर सकते हैं? इसे भारतीय व्यक्ति समझ सकते हैं। यदि आप किसी भारतीय से कहिए, वह बस इस [अस्पष्ट] मूर्खता पर हँसेंगे। तो क्या हुआ है जब उन्होंने कहा, 'इसमें क्या गलत है और इसमें क्या गलत है?'

उन्होंने अपना दाहिना भाग विकसित करना शुरू कर दिया, उनका अहंकार पक्ष। इसलिए, यदि आप अपने संस्कारों की उपेक्षा करते हैं या यदि आप कोशिश करते हैं कि बिल्कुल भी कंडीशनिंग न हो, लोग अत्यधिक अहंकार-उन्मुख बन सकते हैं और सारा पश्चिम इस में/ओर खिंच गया है। वे इतने अहंकार-उन्मुख हैं कि आप उनसे बात नहीं कर सकते - वे वास्तव में भौंकते हैं, वे बात नहीं करते। केवल जब बात पैसों की हो, वे धीरे से बात करते हैं अन्यथा वे सिर्फ भौंकते हैं। वह इतने अहंकार-उन्मुख हैं आप कल्पना नहीं कर सकते! और आप आश्चर्यचकित होंगे कि हम सोचते हैं कि वे बहुत एकजुट हैं और वे - नहीं, वे हर समय लड़ते हैं। पति पत्नी से लड़ेगा, पत्नी बच्चों से लड़ेगी, बच्चे माता-पिता से लड़ेंगे माता-पिता, माता-पिता से लड़ेंगे - यह सब चल रहा है। वे हर समय लड़ते रहते हैं - झगड़ना और बहस करना। आप कोई भी चित्र या नाटक देखिए जो वे इन दिनों बनाते हैं - केवल पति-पत्नी के बीच झगड़ा है - आप ऊब जाते हो। संपूर्ण व्यवस्था इसी पर कार्य करती है कि एक दूसरे से कैसे लड़ना है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि वे युद्ध भी छेड़ देते हैं। इसलिए अब यह अहं-अभिमुखता दूसरी अति की ओर चली गई है। हमें अपने अहंकार को एक सीमा तक विकसित करना था, जब यह इस बिंदु तक पहुँच गया, जहाँ कुंडलिनी आसानी से छेदन कर सके क्योंकि पहले संस्कार (कंडीशनिंग) बहुत ज्यादा थे, इसलिए अहंकार विकसित हुआ और उन्हें मध्य में इस तरह से मिलना पड़ा। यदि आप संयमित जीवन जीते हैं तो आप अपने अहंकार व् प्रतिअहंकार को ठीक से विकसित करते हैं - आप मध्य में हैं। और परंपरागत रूप से, भगवान का शुक्र है, भारतीय बेहतर हैं - इसीलिए मैं कहतीं हूँ कि वे अबोध हैं लेकिन भारत में लोग हैं, मैंने देखे हैं, जो प्रभारी हैं कार्यों के, जो काफी पढ़े-लिखे, विद्वान, प्रोफेसर और ये और वो माने जाते हैं, वे भी वही बात कहते हैं, " इसमें गलत क्या है?" अब भारत में हम जानते हैं कि सु-संस्कार क्या हैं। सु-संस्कार - 'सु' जैसा एक शब्द है, जो कि मुझे पता नहीं अंग्रेजी भाषा में है या नहीं लेकिन 'सु' अच्छा होता है। हमारे अंदर अच्छे संस्कार होने चाहिए, अपने मन का अनुशासन होना चाहिए। भारतीय जीवन की अवधारणा चित्त निरोध है - आपको अपने चित्त को नियंत्रित रखना होगा। अपना ध्यान भटकने नहीं देना चाहिए, आपका ध्यान बाहर नहीं जाना चाहिए। बचपन से हम अपने बच्चों से पूछते हैं, "तुम्हारा ध्यान कहाँ है? कहाँ है तुम्हारा ध्यान?" कहाँ खोए हुए हो?" फिर, भारतीय व्यक्तित्व जानता है कि अपना ध्यान भटकाना नहीं है। उदाहरण के लिए, भारत में कोई भी किसी ग़लत चीज़ का घमंड/बखान करना नहीं करेगा, जैसे कि चोरी। क्या कोई इस पर घमंड करेगा? लेकिन मैंने अपनी आँखों से देखा है, आपको विश्वास नहीं होगा, कि वहाँ पेरिस में एक आदमी का प्रसारण था, आप देखें, जिसने एक बड़े बैंक में सेंधमारी की, उसने पूरे बैंक में सेंध लगा ली और यह व्यक्ति टीवी पर था और वह ऐसा दिखाने की कोशिश कर रहा था जैसे कि वह कोई बड़ा हीरो हो। उसने कहा, [अस्पष्ट]सर, मैंने ऐसे किया और वैसे किया" और वह यह सब मजिस्ट्रेट को समझा रहा था और मजिस्ट्रेट से बातचीत करते हुए, आप अपनी आँखों से वह घटित होते भी देख सकते थे क्योंकि टीवी उसकी ओर था। उन्होंने कहा, 'आप खिड़की से कैसे चले गए?" वह बस खिड़की के पास गया और बाहर कूदकर गायब हो गया। अब मुझे आश्चर्य हुआ कि वहाँ उसे एक नायक बनाया गया। लोग पहनते हैं, बच्चे उसकी तस्वीर पहनते हैं एक नायक के रूप में। क्या आप कल्पना कर सकते हैं, हम पहन रहे हैं हीरो के रूप में किसी की चीज़, जो कि एक जाना-माना ठग है? जिसने लोगों का पैसा हड़प लिया है, जिन्होंने अपनी मेहनत से कमाई कर के वहाँ रखा था? वहाँ यही हो रहा है। अब हम भी स्वयं को विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं। विकसित - आप देखें हम परिष्कृत होते जा रहे हैं। तो हम उनके रास्ते अपना सकते हैं और हो सकता है कि एक दिन हम भी उसी स्थिति में पहुँच जाएँ जहाँ वे पहचान और एहसास ही नहीं पा रहे हैं कि वे कहाँ चले गए हैं, वे कहाँ पहुँच गये हैं?

उस समय, मैं कहूँगी कि आपको अवश्य देखना चाहिए, कि आपके अंदर सु-संस्कार होने चाहिए और सु-संस्कार आपके पास आते हैं कबीर और नानक जैसे लोगों को सुनकर, तुकाराम और ज्ञानेश्वर जैसे लोगों को सुनकर लेकिन अतिवादी लोग नहीं, जो अतिशयता की कोई शिक्षा देते हैं। वे सभी विवाहित लोग थे, उन्होंने अत्यंत सरल जीवन जिया। ज्ञानेश्वर विवाहित नहीं थे - वह बहुत कम उम्र में मर गए थे। और हमारे पास जो सबसे बड़ी चीज़ है, वह आदि शंकराचार्य हैं, जिन्होंने कहा है, कि आप एक निश्चित अवस्था तक पहुँच जाते हैं, जहाँ आपको माँ की कृपा के अलावा किसी चीज़ की आवश्यकता नहीं रहती। कृपा माँ की है, बस तभी संभव है, यदि आप एक मर्यादित/संयमित व्यक्ति हैं। यदि आप अतिवादी हैं, तो आप उनसे दूर हैं और इसी तरह यह कार्यान्वित नहीं होता है। ईसा मसीह ने कहा है कि, "एक अमीर आदमी परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता है," क्योंकि वह एक अतिवादी है। उन्होंने कहा, "एक ऊँट पार हो सकता है सुई के छेद में से लेकिन एक अमीर आदमी परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।" उन्होंने ऐसा क्यों कहा? क्योंकि वो अति में चले जाते हैं। वे ग़लत तरह के लोगों के पास चले जायेंगे जहाँ वे गुरु खरीद सकते हैं, जब वे अपने पैसे का दिखावा कर सकते हैं या वे गुरु का एक संपर्क अधिकारी के रूप में उपयोग कर सकते हैं। या इस तरह की कोई चीज़, जो उन्हें अहं-अभिमुखीकरण देता है। उनमें से कुछ लोग ऐसे होंगे,निःसंदेह, जिन्हें धन की निरर्थकता का एहसास होगा और भगवान के पास आएंगे, मुझे ऐसा लगता है पश्चिम में आधुनिक पीढ़ी इस प्रकार की है - वहाँ संत पैदा हुए हैं। ये उसी देश में पैदा हुए संत हैं जो परमेश्वर को खोज रहे हैं, लेकिन हमने अपने सभी ठगों को यहाँ से निर्यात कर दिया है और हम उस धन का आनंद लेने का प्रयास भी कर रहे हैं जो वे हमारे गुरुओं पर लुटाते हैं। क्योंकि हम सोचते हैं कि हम विदेशी मुद्रा कमा रहे हैं लेकिन यह कमाई अधर्म की है। और जब तक हम इस पर रोक नहीं लगाते, हमारा देश कभी प्रगति नहीं कर सकता है। हमें इस मुद्दे पर ढील नहीं देनी। यह अन्य देशों की ठगी है। उन्होंने यह हमारे साथ किया, कोई बात नहीं लेकिन हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। अगर सारी दुनिया भी हमें धोखा देने की कोशिश करे, कोई बात नहीं, हमें धोखा नहीं देना चाहिए। और हम निश्चित रूप से जानते हैं कि यह है धोखा, फिर भी हम इस मुद्दे पर नरम हैं। क्योंकि हम सोचते हैं कि हम इसी तरह से विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकते हैं। ऐसी कमाई से आपको पता नहीं इस देश के साथ क्या हो सकता है। अब सहज योग में, जिसका वर्णन सभी महान संतों द्वारा किया गया है, आज उसका समय आ गया है महायोग बनने का। यह एक महायोग बनना ही है। ज्ञानेश्वर ने इसका वर्णन करते हुए कहा है, "एक दिन आएगा जब सहज महा बनेगा," का अर्थ है कि आपको सामूहिक बोध प्राप्त होगा। सामूहिक रूप से - हजारों लोग को बोध प्राप्त हो सकता है, जिसे मैंने गांवों में घटित होते हुए देखा है। कडूस गाँव में - एक जगह है सतारा के निकट कडूस नाम से , जहाँ लोग एकत्रित हुए- वे लगभग छः हजार थे, छह हजार से अधिक और वहाँ अखबार वाले भी थे और उन सभी को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ - अत्यंत आश्चर्य की बात है। उन सभी को बोध हुआ - यह सबसे आश्चर्य की बात है। यह हजारों की संख्या में होने वाला है, खासकर गांवों में क्योंकि शहर के लोग तो पश्चिमीकृत हैं। कठिन लोग, वे स्वयं को बहुत कुछ समझते हैं, अत्याधिक अहंकार। जब मैं यहाँ आई, तो मैंने पाया, पूरा का पूरा दिल्ली अहंकार से ग्रस्त है, जबरदस्त अहंकार, आज्ञा चक्र। मुझे लोगों को चैतन्य प्रवाहित करने के लिए कहना पड़ा उसको(अहंकार को) गिराने के लिए। मुझे नहीं पता कि इस तरह का मिथक कहाँ से कार्य कर रहा है। लेकिन हम जैसे हैं वैसे ही हमें खुद का सामना करना होगा, हमें कुण्डलिनी जागरण के माध्यम से स्वयं को सुधारना होगा। अब यह सहज योग एक स्वतः स्फूर्त विकास है, एक जीवंत विकास है। कुण्डलिनी स्वयं उठती है और ब्रह्मरंध्र का भेदन करती है, जैसा कि इन सभी लोगों द्वारा वर्णित है 'शून्य शिखर पर अनहद बाजी रे'। यह सब वर्णित है, मेरा मतलब है, मुझे आपको बताना नहीं होगा क्योंकि आप देखिए, आप यह सब चीज़ें पढ़ते नहीं, आप बस गाते हैं। उन्होंने जो कहा है कि मैं आज वही कर रहीं हूँ। मैं कबीर, ज्ञानेश्वर, नानक का कार्य कर रहीं हूँ और उन सभी नाथ पंथियों का जिन्होंने उपदेश दिया कि आपको अपना साक्षात्कार प्राप्त करना होगा - ईसा मसीह का, मोहम्मद का और इन सभी लोगों का, बुद्ध का, महावीर का। इन सभी लोगों के इस काम को आज अंजाम देना है - यही वह समय है जो आ गया है। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि इंग्लैंड जैसी जगह पर, जिसे मैंने कहा था कि आप बहुत आध्यात्मिक नहीं मानते हैं, लगभग सौ साल पहले, एक महान कवि का जन्म हुआ। मुझे कहना होगा कि वह महान थे, क्योंकि वह एक ऐसे पैगम्बर थे और उन्होंने कहा कि, ये महायोग का समय आने वाला है। सबसे उल्लेखनीय बात है, कि उन्होंने उस जगह का जिक्र भी किया है, जहाँ मैं रह रही थी। क्या बात है साहब? आप बैठ क्यों नहीं जाते, बाकी सब को परेशान क्यों कर रहे हैं? कृपया बैठ जाइए। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। आप देखिये, आप इस स्थान पर आकर परेशान नहीं कर सकते। यह आपकी कुंडलिनी का प्रश्न है। मैं आप लोगों की कुण्डलिनी को ऊपर उठाने का प्रयास कर रहीं हूँ और अचानक आपकी बातचीत। आप देखिए, ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह बहुत ही नाजुक काम है। यह ब्रह्मशक्ति है और मुझे इसे ब्रह्मनाड़ी के माध्यम से ले जाना है। मैं प्रयासरत हूँ। बात करते वक़्त केवल बातचीत नहीं है, मैं आपकी कुंडलिनी उठा रहीं हूँ और कृपया परेशान न करें। यदि आपको जाना है, आपको पहले जाना चाहिए। यह कोई सिनेमा नहीं है, यह कोई शो नहीं है - यह एक जीवंत कार्य है, इसलिए कृपया मेरी सहायता करें। कृपया एक दूसरे को परेशान न करें। यह बहुत गंभीर बात है और व्यक्ति को स्वयं का मूल्य समझना चाहिए कि मैं यहाँ आपको वह देने आईं हूँ जो आपके भीतर सबसे कीमती चीज़ है - आपकी आत्मा। इसलिए कृपया, ऐसे ही न चले जाएं क्योंकि आपका मनोरंजन नहीं हो रहा है या कुछ और। अपना ध्यान/चित्त लगाने का प्रयास करें। यह इतना कठिन विषय नहीं है जो मैं बता रहीं हूँ लेकिन आप यह समझने की कोशिश करें कि यह एक बहुत महत्वपूर्ण समय है। यदि आप यहाँ आये हैं तो बहुत बढ़िया मौका है, बेहतर होगा कि आप अपना बोध प्राप्त कर लें। एक माँ के रूप में, मुझे आपको बताना होगा कि यही वह चीज़ है जिसको आप खोज रहे थे। अब मैं विलियम ब्लेक के बारे में बात कर रही थी। सौ साल पहले उन्होंने इस महायोग के बारे में लिखा था। उन्होंने कहा कि, "परमेश्वर के लोग,... साधक," - मैं कह रहीं हूँ कि यह एक श्रेणी है - "साधक संत बनेंगे, वे बोध/साक्षात्कार प्राप्त करेंगे। लेकिन यह संत, इन संतों की एक विशेष खासियत होगी," और खासियत क्या है? कि वह दूसरों को संतों की रूप में रूपांतरित करेंगे। इस धरती पर बहुत से संतों को बनाया जाएगा। लेकिन सबसे आश्चर्य की बात यह है कि उन्होंने इसे इतने विवरण में लिखा है यहाँ तक कि उस स्थान का भी उल्लेख किया जहाँ मैं रहती थी। उन्होंने कहा, "सबसे पहले दीप सरे हिल्स पर जलेंगे," जहाँ मैं पहले रहती थी। और हमारे आश्रम के बारे में कि, "लेम्बेथवेल वह स्थान है जहाँ खंडहरों में नींव रखी जाएगी।” हमने एक ऐसी जगह खरीदी जो पूरी तरह से खंडहर थी। इतना तक उन्होंने कहा है और उन्होंने कहा है कि, "लंदन एक जेरूसलम होगा," इंग्लैंड एक जेरूसलम होगा, अर्थात् क्षेत्र, अर्थात् तीर्थ। कल्पना कीजिए सौ साल पहले एक अंग्रेज़ ने इसकी बारे में लिखा है। इसका मतलब यह है कि निःसंदेह उस देश में कुछ कार्य होने वाला है। लेकिन उस बात का क्या [कोई ध्वनि नहीं] सौ वर्षों पहले एक अंग्रेज ने लिखा था इस बारे में। इसका मतलब यह है कि निःसंदेह उस देश में कुछ कार्य होने वाला है। लेकिन हमारे इस महान देश का क्या जो कि योग भूमि है। आप इस योग भूमि में जन्मे हैं, क्या आप यह जानते हैं? ईश्वर/परमात्मा के प्रति आपकी जिम्मेदारी है। आप कहाँ, कहाँ बर्बाद कर रहे हो अपना चित्त? पूरी दुनिया आपकी ओर देख रही है मार्गदर्शन के लिए - आपकी रुचि नहीं है, आपको कोई चिंता नहीं है। अब, लोग कह सकते हैं, "माँ, यदि यह एक योग भूमि है, यह एक गरीब देश क्यों है?" बेहतर है कि यह देश गरीब है बनिस्बद विदेशों में इन बेवकूफ लोगों की तरह अमीर होने के। कृष्ण ने कहा है कि,'योगक्षेम वहामयम्'। पहले योग प्राप्त करो और उसके बाद क्षेम। उन्होंने 'क्षेम योग' नहीं कहा, उन्होंने कहा 'योगक्षेम'। सबसे पहले आपको योग प्राप्त करना होगा, आपको अपना बोध प्राप्त करना होगा, फिर क्षेम। उसी तरह से ही यह अच्छा लगता है, यह आपको गौरान्वित करता है। हिंदी में हम कह सकते हैं, 'राजता है'। अन्यथा यह अजीब है, यह हास्यास्पद है। आप ऐसे दिखते हैं जैसे कि आपके दो सींग निकल आए हों। आप किसी को संसद के सदस्य के रूप में चुनते हैं। तुरंत ही आपको पता चल जाता है वह अवश्य ही कुछ होगा - कैसी उसकी नाक है (घमंड), वह कैसे बात करता है, जिस तरह से वह हर किसी को पीछे करते हुए आगे बढ़ता है। आप उन्हें मंत्री बना दीजिए - हो गया - उसका चेहरा दोबारा कभी नहीं दिखेगा। शापित आदमी ही वहाँ जायेगा - ऐसा ही है। कोई बहुत अच्छा इंसान भी बर्बाद हो सकता है सत्ता प्राप्त होने से। धन से एक बहुत अच्छे इंसान को बर्बाद किया जा सकता है। आपने ऐसे लोगों को देखा होगा जिन्हें अचानक धन की प्राप्ति हो; वे अपने माता-पिता को भूल जाते हैं, वे अपने देश को भूल जाते हैं, वे सबको भूल जाते हैं। सभी प्रकार की भयानक चीजें पैसों के नाम पर की गईं। रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार सब कुछ किया गया क्योंकि हम आत्मसाक्षात्कारी नहीं हैं। यदि हम आत्मसाक्षात्कारी होंगे, तो हम ऐसा किसी भी कीमत पर नहीं करेंगे। आपके सभी प्रयास इस देश की ईमानदारी को सुधारने के, तब तक संभव नहीं है, जब तक आपको अपना आत्म-साक्षात्कार न प्राप्त हो। कुंडलिनी जागरण के माध्यम से, जिसके द्वारा परिवर्तन होता है और व्यक्ति अपना व्यक्तित्व विकसित करता है। फिर उसे ऐसा कोई प्रलोभन नहीं होता और उसका पूरा अस्तित्व बदल जाता है और वह 'समर्थ' हो जाता है। 'सम' 'अर्थ' - जो उसका अर्थ है वह वही बन जाता है। वह अब किसी भी गलत चीज़ से एकाकार नहीं होने वाला। उसको कोई परवाह नहीं है और फिर लक्ष्मी तत्व भी प्रबुद्ध होता है और उसकी भौतिक समस्याएँ भी हल हो जाती हैं - एक हद तक - बहुत अधिक लाभ नहीं; आप 'लाखोंपति' नहीं बनते क्योंकि यह मूर्खता और बेवकूफी है। लेकिन आप इतने समृद्ध हो जाते हैं कि आप अपने आप से बिल्कुल संतुष्ट हो जाते हो, अपने भौतिक अस्तित्व से और आपको और की चाहत नहीं रहती। सब कुछ पूरी तरह से बदल जाता है जब आप मेरे सामने बैठते हो या माँगते हो, तब आप अपना रूप बदलते हैं - यहाँ आप दे रहे हैं। प्रकाश की तरह, जब वह ज्योतित होता है वह क्या करता है? वह सिर्फ प्रकाश देता है। जब तक यह ज्योतित नहीं था, यह खोज रहा था। एक बार प्रकाशित हुआ, यह प्रकाश देता है। जैसा कि सभी महान संतों ने किया है। फर्क सिर्फ इतना है, कि ये संत इतनी ऊँचाई पर जन्मे थे, कि जब भी वे बात करते, किसी ने उनकी बात नहीं सुनी, किसी ने उन्हें नहीं पहचाना और सभी ने उन पर अत्याचार किया। जब उनका स्वर्गवास हो गया, अब हमारे पास बड़े-बड़े संगठन हैं, बड़े-बड़े धार्मिक पंथ और धार्मिक चीज़ें हैं, और बड़े-बड़े चर्च और मंदिर और जो कुछ हमने उनके नाम से बनाया है - जब उनकी मृत्यु हुई। जब वे जीवित थे, तो किसी को उनकी परवाह नहीं थी - किसी को नहीं। तो आज आपके लिए समय आ गया है अपने भीतर परम को प्राप्त करने का जिसके द्वारा आप वास्तविक और अवास्तविक का भेद जान लेंगे। इतना ही नहीं, बल्कि आपकी आत्मा की शक्तियाँ भी प्रकट होंगी जिसके द्वारा आप कर सकते हो अनेकों चमत्कार, जिनके बारे में मैं आपको हमारे होने वाले अन्य कार्यक्रमों में बाद में बताऊँगी। आशा है आप आते रहेंगे और इसके लिए अन्य लोगों को लाते रहेंगे। मैं हर बार आपकी कुंडलिनी उठाने और स्थापित करने का प्रयास करूँगी। साक्षातकार के बाद जब अंकुरण घटित होता है, जब बीज अंकुरित होता है, आपको सावधान रहना होगा। कम से कम सात दिन तक तो आपको इसके बारे में वास्तव में सावधान रहना होगा, ताकि आप दोबारा अपने झंझट में न पड़े। और उसके बाद अगर आप इसका सही से पालन करते हैं तो इसके लिए आपको शिक्षा की आवश्यकता होगी। प्रयास की पहले आवश्यकता नहीं है, बाद में आपको स्वयं को थोड़ा शिक्षित करना होगा, समझने के लिए चक्रों का क्या अर्थ है, कहाँ वे जाते हैं, कौन से बिंदु हैं जहाँ वह बाधित होते हैं, इससे कौन-कौन सी बीमारियाँ होती हैं, इससे क्या-क्या समस्याएँ होती हैं, कैसे उनसे छुटकारा पाया जा सकता है - यह सारा ज्ञान आपको होना चाहिए। आप देखें यहाँ अब हमारे पास ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और फ्रांस तथा अन्य स्थानों के बहुत सारे खूबसूरत लोग हैं - उन सभी को अपना साक्षात्कार प्राप्त हुआ है और उन्होंने इसे स्थापित किया है। बहुत से लोगों को आत्मबोध मिलता है। पिछली बार भी हमारे पास बहुत सारे लोग थे जिन्हें बोध प्राप्त हुआ था। उनमें से कुछ मुझे सड़क पर मिलते हैं। वे कहते हैं, "माँ, हम ठीक हैं लेकिन स्पन्द (चैतन्य) खो गए हैं।" हमें कद्र नहीं है - यह अमूल्य है, यह अनमोल है, आप इसकी कीमत नहीं चुका सकते। यह एक ऐसी चीज़ है जो आपको अवश्य जाननी चाहिए, आप भगवान के लिए भुगतान नहीं कर सकते। यह अपमान है। क्या आप अपनी माँ के प्यार की कीमत चुका सकते हैं? यह अपमान है और उन सभी का जिन्होंने पैसे लेकर बड़ी-बड़ी जगहें खड़ी कर लीं ईशवर के नाम पर। ठीक है, अगर आपको घर बनाना है तो आप बना सकते हैं - इसे आश्रम कहें, कुछ भी कहें लेकिन यह एक मृत चीज़ है। लेकिन आप अपने आत्मसाक्षात्कार के लिए पैसा नहीं दे सकते, आप भुगतान नहीं कर सकते अपने बोध के लिए। यह एक बात निश्चित है। अब आपके साथ क्या सब बातें घटित होती हैं, मैं आपको बताऊँगी कल से और मैं कुछ समय के लिए यहीं हूँ। कृपया, थोड़ा सा, अपना आत्म-सम्मान रखने का प्रयास करें। आप सामान्य व्यक्ति नहीं हैं इसलिए इस देश में पैदा हुए हैं। और आपको अपनी गहराइयों को प्राप्त करना है। जब आप इसकी गहनता में जाओगे तो अचानक आप पाओगे कि आपके भीतर ही आपके पुण्यों की महान शक्ति निहित है। जो आपने पिछले जन्मों में हासिल किए हैं । आपको बस उस बिंदु तक(गहराई तक) जाना है। पहले आत्मबोध और फिर अपनी गहराई आपने तलाशनी होगी। एक बार घुस गए इसमें, आप बस इसे प्राप्त करते हैं। आप वहाँ हैं और आप इसे अभिव्यक्त करना शुरू करते हैं। आप स्वयं गुरु बन जायेंगे, आप स्वयं ही सब कुछ जान जायेंगे - यह ही इस महायोग का वचन है। मुझे उम्मीद है कि मेरी इस मुलाकात में, दिल्ली के लोग इसे समझेंगे और अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करेंगे। यह बहुत महत्वपूर्ण है, समय बहुत महत्वपूर्ण है। मुझे लगता है कि समय कम बचा है, और लोगों को इसे महसूस करना होगा, यही अंतिम न्याय है जिसका वादा किया जा रहा है। केवल कुंडलिनी के माध्यम से ही आपका निर्णय किया जायेगा अन्यथा कोई रास्ता नहीं है। यह अंतिम निर्णय है और इसे छोड़ना नहीं है। समय कम हो रहा है - मैं सभी लोगों को बता रहीं हूँ कि कृपया सावधान रहें। अपने सभी दोस्तों को लाएँ, अपने सभी लोगों को बताएं, इसे प्राप्त करें और स्थापित हो जाएँ। और आत्मा की सुंदरता का आनंद लें और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करें, जो आपके अत्यंत प्यारे पिता हैं, जो आपको यह देना चाहते हैं। ईश्वर की कृपा आप सब पर बनी रहे!

कुण्डलिनी अपने आप जागृत हो जायेगी। उन लोगों पर विश्वास न करें जो कहते हैं की ऐसा नहीं किया जा सकता। निस्संदेह यह नहीं किया जा सकता, यह बहुत कठिन है, मैं इसे स्वीकार करतीं हूँ लेकिन हो सकता है मैं यह काम अच्छी तरह से जानतीं हूँ या शायद मेरे पास अधिकार हैं, शायद और कल कुण्डलिनी उठाने (जागृत करने) का अधिकार आपके पास भी होगा। आप सभी के पास होगा। आ रहा है, है ना? अब आप जा रहे थे? हाँ, अपने हाथ ऐसे रखो। कृपया दूसरों को परेशान मत करो, ठीक है। बस अपने हाथ रखो। अब मैं कहूँगी कि सामूहिकता के स्तर पर, मुझे लगता है, कि आपका दाहिना भाग अतिसक्रिय है इसलिए आपको इसे कम करना होगा। सबसे पहले, कुछ और करने से पहले, कृपया अपना बायाँ हाथ मेरी ओर रखें। बायाँ जम गया है लेकिन दायाँ है...बायाँ हाथ मेरी ओर रखें, ऐसे, केवल बायाँ। अब आप बाईं ओर से लें। दाहिना हाथ इस प्रकार ऊपर उठाएँ, सिर के ऊपर ले जाएँ और इसे इस तरफ डालें। इसे दूर फेंकें। दोबारा इसे करें - इसे फेंक दें। इसे फिर से करें - तीसरी बार और इसे फेंक दें। चौथी बार उतार कर फेंक दें। पाँच बार, छह बार और सातवीं बार। ठीक है। अब मेरी ओर अपने हाथ रखो। काफ़ी बेहतर है। देखिये। इसमें कोई प्रश्न नहीं है, इसमें कोई उत्तर नहीं है। जिसके साथ भी घटित होना है, होगा, जिसके साथ नहीं घटित होना है, नहीं होगा। कोई बहस नहीं हो सकती, कोई झगड़ा नहीं हो सकता, इसमें कोई चर्चा नहीं। ये परमात्मा की चीज़ है, ये जब होना होगा तब होगा, जिसको होना होगा उसको होगा। और कुछ के लिए यह आज होगा, कुछ के लिए यह कल होगा, कुछ के लिए यह परसों होगा। यह होना चाहिए, ये भगवान से माँगना चाहिए । आप इस बारे में लड़ नहीं सकते। इसमें किसी भी तरह का टकराव नहीं हो सकता, बात-चीत करने से कुछ हासिल नहीं होगा, कुछ भी करने से कुछ हासिल नहीं होगा। अनावश्यक रूप से समय बर्बाद करने का क्या मतलब है? यहाँ सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहाँ के लोगों को कुंडलिनी के बारे में पता ही नहीं है। इसलिए यह एक बड़ी समस्या बन जाती है कि आपको मूल से शुरू करना होता है। वरना महाराष्ट्र में तो हर कोई जानता है। वहाँ के लोग कुण्डलिनी के बारे में जानते हैं। वे चक्रों के बारे में जानते हैं, जानते हैं दत्तात्रेय कौन हैं। यहाँ के लोगों को कुछ भी पता नहीं है। यह बहुत कठिन कार्य है इसलिए आप लोगों को पहले साक्षात्कार प्राप्त करना चाहिए और फिर मैं आपको समझाऊँगी। मान लीजिए आप इस कमरे में आ गए हैं और यहाँ अंधेरा है। सबसे पहले लाइट जलाओ, फिर हम बात करेंगे। क्या यह ठीक है?

New Delhi (India)

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