Chitt apni aur rakhiye

Chitt apni aur rakhiye 1975-03-05

Location
Talk duration
46'
Category
Public Program
Spoken Language
Hindi

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5 मार्च 1975

Public Program

मुंबई (भारत)

Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft

अभी कल मैंने आपसे बताया था कि सहजयोग में जब आप पार हो जाते हैं, तो क्या चीज़ हो जाती है। किस तरह से आप गुणातीत में उतरते हैं और गुणातीत में उतर के आप किस तरह से अपनी चेतना में चैतन्य लहरियों को देखते हैं। और उनके द्वारा दूसरों का उद्धार करते हैं, ये गुणातीत का आशीर्वाद है, ये कलियुग का भी बड़ा भारी आशीर्वाद है। और इसकी भविष्यवाणी पहले बहुत बार हो चुकी है, कि कलियुग में जब बहुत से लोग परमात्मा को खोजते हुए जंगलों में, कंदरों में और बड़ी-बड़ी कठिन तपस्या में संन्यस्त भाव से वहाँ तपाचरण कर रहे थें। उनकी भक्ति का फल, उनके पाचारण का फल कलियुग में होने वाला है। जहाँ पर कि सहज में ही कुण्डलिनी की जागृति हो कर के और सामूहिक उद्धार होगा, कल्याण होगा, मंगल होगा, लोग पार होंगे। सो तो सहजयोग की बात सही है और जिसके बारे में कहा है, वो भी सही बात है, क्योंकि सहज जो है वही एक तरीका प्रकृति का है। प्रकृति का अपना तरीका कोई सा भी असहज नहीं है। सब चीज़ सहज होती है, जैसे अपना श्वास लेना। हर तरह का काम जो प्रकृति करती है, जीवंत कार्य, वो सारा ही सहज होता है। लेकिन सहजयोग में एक सहज होने के नाते कुछ प्रशन भी खड़े हो जाते हैं। या जिसको कहना चाहिये कि मनुष्य इतना असहज है। मनुष्य ने अपने को इतना ज्यादा कॉम्प्लिकेटेड (complicated) कर दिया है। मनुष्य ने अपने को इस कदर घेरे में डाल दिया है और इतना अपने को गलत चीज़ों से एकाकार मान लिया है, कि मनुष्य के लिये सहज होना ही कठिन बात है और ये सहजयोग की पहली कठिनाई है। पहली कठिनाई सहजयोग की ये है। जैसे कि मनुष्य के मामले में, मन में ये विचार है, अपने देश में विशेषकर, कि जब तक आप संन्यास नहीं लेंगे तब तक आप परमात्मा का नाम ले भी नहीं सकते। बाह्य की बात है अब संन्यास लेना बिल्कुल बाह्य की बात है, बिल्कुल ही अधार्मिक बात है। उसका अन्दर के संन्यास से कोई मतलब ही नहीं बनता। अन्दर की साधुता जो है वो और चीज़ है और बाहर का दिखावा बिल्कुल और चीज़ है। बहुत से लोग अन्दर से साधू होते हैं, बाहर से गृहस्थी में होते हैं।

राजा जनक जैसे एक ही हो गये थे, उस जमाने में। लेकिन आज वैसे अनेक हो सकते हैं। लेकिन जब ये बात हम कहते हैं तो फिर गृहस्थ ही सामान्य लोग हैं और गृहस्थी लोग इसके अधिकारी हो गये। लेकिन गृहस्थ कितने कॉम्प्लिकेटेड हैं, वो भी एक अजीब सी चीज़ है। क्योंकि गृहस्थी के लोग जब मेरे पास आते हैं अधिकतर, अभी जैसे यहाँ पे अधिकतर औरतें रो रही थी, वही बात है कि ‘हमारे बेटे का ठीक कर दो’। हमारी बीबी ऐसी खराब हो गयी, हमारा लड़का ऐसा खराब हो गया, हमारे घर में पैसा नहीं। हमारे घर में लोग, बच्चे बीमार रहते हैं। कभी कछ है, कभी कुछ। गृहस्थों की जो प्रॉब्लेम्स हैं बहुत छोटी-छोटी हैं, बहुत ही छोटी-छोटी। इसलिये गृहस्थ की वृत्ति ही बहुत छोटी है, उसमें विशालता नहीं है। उसको अपना अगर बच्चा बीमार है तो बहुत बड़ी बात लगेगी। दूसरे का बच्चा बीमार है तो कोई नहीं लगेगा। जैसे अपना बच्चा बीमार है, और अगर पड़ोसी ने रेडिओ चला दिया तो बहुत बुरा लगेगा। लेकिन दूसरे का बच्चा अगर बीमार है और अपने यहाँ रेडिओ बज रहा होगा और पड़ोसी आ के कहे कि, ‘मेरा बच्चा नहीं सोता है,रेडिओ बंद कर लो।’ तो कहेंगे कि अच्छा, दरवाजा बंद कर लो । हमारा रेडिओ नहीं बंद हो सकता। यही बात है कि सहजयोग में हमने सामान्य लोगों को लिया हआ है और गृहस्थी के लोगों को लिया। गृहस्थी के प्रश्नों की वजह से ही सहजयोग धीरे-धीरे, धीरे-धीरे, चार कदम आगे चलता है तो तीन कदम पीछे आता है। पाँच कदम आगे बढ़ता है तो फिर दो कदम पीछे आता है। एक आदमी सहजयोग में समझ लीजिये पूरी तरह से पार हो जाये ....(अस्पष्ट)। पुरूष क्या पार हो गया, वो आधा-अधूरा ही है। अभी लटकता हुआ वहाँ चिपक रहा है। उसकी बीबी उसको खीचेगी, ‘अरे इसमें क्या रखा है?’ क्योंकि उसके दिमाग में ये बात आयेगी नहीं कि, ‘मैं क्यों नहीं पार हूँ? ये कौन होते हैं पार होने वाले?’ मन में ऐसी दुष्टता है एक तरह की। तो उसको लगेगा कि, ‘मेरा पति हो गया मैं क्यों नहीं हूँ?’ तो उसको सिखायेगी ‘तुम में क्या रखा है? है न बात सही कहोगे कि, मैंने कैसे जाना, माँ सब कुछ जानती है। केवल कहेगी कि इनमें क्या पड़ने की जरूरत है। इसमें ये गड़बड़ है, उसमें ये घपला है। अब वो पति है, वो सोचता है कि ये तो मेरी बीबी है। माने ‘इससे मेरा विशेष संबंध है ही। पूर्वजन्म का तो कोई संबंध होगा ही। जन्मजन्मांतर का कुछ संबंध है ही। तो जब तक मेरी पत्नी इस चीज़ को नहीं मानती तो मैं इसको कैसे मानूं?’ पैसे बचाये, वो चाहे दूसरी औरत के साथ दौड़े, कोई हर्जा नहीं, वो ही अच्छा है! वो चाहे अपना पैसा किसी और औरत पे खर्च करें तो उसमें उसको हर्ज नहीं। और जो भी करना चाहे वो कर सकता है, लेकिन सहजयोग में जब आता है तो वो अपनी पत्नी से बड़ा पक्का हो जाता है, ये बात मैंने देखी है। क्योंकि सहजयोग आपको प्रेम सिखाता है। तो प्रेम सिखाने की वजह से वो अपने बीबी के प्रति भी करूणामय हो जाता है। और बीबी के लिये भी सोचने लगता है। और बीबी जो है वो उल्टा पढ़ाती है पट्टी। उसका यूँ ही चलता है डांवाडौल- डांवाडौल। जिनके सारे हैं वो लोग हैं गृहस्थी वो सब डांवाडौल होते हैं। ये बड़ी भारी सहजयोग की विपदा है।

बार-बार चित्त जो है छोटी चीज़़ में उलझ जाता है, बहुत छोटी चीज़ में। तुम क्यों नहीं आये? वो मेरे पति का वो ऐसा था। उनकी बहन के फलाने के फलाने का ढिकाने का शादी ब्याह हुआ, उसमे तो जाना ही है। फिर क्या? ठीक है जाओ। ये नहीं कि संसार के कोई कार्य छोड़िएगा, लेकिन जो अपने अन्दर की शक्तियाँ हैं ये, जिसके सहारे हमें उठने का है, जो परम का कर्तव्य है, उसको महत्त्वपूर्ण और सब से ज्यादा जब तक आप महत्त्वपूर्ण और वही सब कुछ नहीं मानियेगा। तब तक आप का गृहस्थ सीधे ही नहीं होने वाला। आप का कुछ भी नहीं ठीक होने वाला। उसमें चाहे पत्नी रुकावट डाले। आप उसकी बात मत सुनो। कोई भी रुकावट डाले आप उसको वो बात समझाईये। उसको कहिये, कि ये गलत बात है।

अब देखिये सहजयोग में आपने जाना है, कि नाभि चक्र का वह स्थान है, जहाँ पे कि लक्ष्मी जी का वास है। अगर आपकी पत्नी पर, अगर उनकी नाभि खराब होगी आप कितनी भी कोशिश करेंगे आपके घर में कभी पैसा रुक नहीं सकता। आपका पैसा सब बहेगा .....(अस्पष्ट)। लेकिन अगर आपकी पत्नी की नाभि ठीक हो के अगर वो भी पार हो जाये, आप भी पार हो जाये, तो आप में संतोष आ जायेगा। घर में लक्ष्मी जी का राज्य आ जायेगा। लक्ष्मी जी का राज्य मतलब बहुत पैसा आना ही नहीं होता। उसका संतोष, उसका आनंद, उसकी शोभा, उसका यश, उसका दान, उसका भय। जैसे कोई बड़े घर की लड़की आयी आपके यहाँ ब्याह हो के, बड़े घर की आयी। तो आपने देखा कि साब ये तो अजीब है, समझ में नहीं आता। ‘सबेरे चार बजे उठ कर के ये अपना घर नहीं साफ़ करती, कमरा नहीं साफ़ करती। सब ठीक तरह से नहीं रखती।’ वो बड़े घर की लड़की है। उसके यहाँ बहुत सारे नौकर चाकर हैं। तो उसको तुमने कहा कि, ‘ये कैसे तुम्हारा तरीका है, समझ में नहीं आता। तुम सबेरे देर से उठी। आराम से अपना चाय पी रही है, ये कर रही है, वो कर रही है। दिखने में तो हमको ऐसा लगा कि बिल्कुल बेकार की लड़की ले कर आ गये।’ भाई, लेकिन वो तो आपकी बहू आयी है। आपने कोई नौकरानी तो नहीं लानी थी, वो तो आपकी बहू आयी। लेकिन आपने छोटे घर की लड़की लायी। वो सबेरे चार बजे उठेगी, बिस्तर-विस्तर सब ठीक कर देगी, सब ठीक-ठाक कर के रख देगी। लेकिन आपके घर में अगर कभी कोई नौकर आ जाये, तो आप देखियेगा कि, जो बड़े घर की लड़की होगी, वो उसको दिल खोल कर के एक अपनी चीज़ उठा के दे देगी। अपनी सास होगी, उसने अगर कह दिया लेकिन कहेगी, ‘लीजिये, लीजिये आप लीजिये।’ वही छोटे घर की लड़की आयेगी, वो नौकरानी जैसे रहेगी। वो आपसे कहेगी, ‘छोटा घर बड़ा घर पैसों से नहीं होता।’ मेरा मतलब तबियत से है। इसको कभी गड़बड़ नहीं करनी चाहिये, तबियत की बात है। तबियत जो पैसे से नहीं होती।

तबियत राजापना जिसे कहते हैं। और जो छोटे घर की लड़की आयेगी जिनके घर में दासत्व का स्वभाव है, बहुत से रहीस भी दासत्व में रहते हैं। वो आयेगी तो वो क्या कहेगी? वो कहेगी, अरे इसको देने की क्या जरूरत है?’ अपनी सास की चीज़ें छुपायेगी। अपने बच्चों का खाना छुपा के रखेगी। कोई आयेगा तो उसको खाने को नहीं देगी, इतना गिनके देगी। ये अन्तर है ये बड़ा भारी अन्तर पड़ जाता है। यही गृहस्थी की बात है। जब गृहस्थी आते हैं घर में, तो उनके तरीके वो भी कभी-कभी छोटे घर की लड़की जैसे हो जाते हैं। गृहस्थी में बड़प्पन आ गया तो अहाहा, सोने पे सुहागा! बड़े तबियत का आदमी आ जाये, कि साहब कुछ भी हो जाये, दुनिया की चीज़ हो जाये, मैं तो सहजयोग में बैठा हूँ और सहजयोग में बैठूंगा। तो उसके घर में लक्ष्मी तो आ ही जायेगी। उसका तो सवाल ही नहीं उठता ... (अस्पष्ट) उसका तो सारा घर ठीक हो जायेगा उसके सारे बाल बच्चे ठीक हो जाएँगे ... (अस्पष्ट) क्योंकि साक्षात् परमात्मा ही उसके अन्दर विचरेंगे। साक्षात् आदिशक्ति की सारी शक्तियाँ ही उसमें से चलेंगी। उसका कोई अन्दाज है, उसका कोई तरीका है। ... (अस्पष्ट) लेकिन क्षुद्रता जो है वो गृहस्थी में बहुत पनपती है, बहुत पनपती है। ऑफिस में काफ़ी होता जाता है, वो आदमी ऊपर चला गया। ये आदमी नीचे आ गया। ये हो गया, वो हो गया। इसने कुछ ऊपर चीज़ कर लिया, उसने बिज़नेस में मेरा इतना पैसा मार लिया। उसने ये कर लिया, वो कर लिया। औरतों के मामलें और भी सत्यानाश। ......मराठी (अस्पष्ट) बस वही क्षुद्र-क्षुद्र बातें करती रहेगी। उसी में आदमी कटता रहेगा, मरता रहेगा पिस्ता रहेगा। उसी में अपनी सारी शक्ति ख़तम नष्ट करेगा। ऐसा एकाध योगी आ जाये समझ लीजिये तो संन्यासी पक्का! और प्रेम से भर के कह दिया कि, ‘माँ, मुझे पार कर दो। तो वो पार क्या होता है, कि बिलकुल चमकता है। ... अस्पष्ट) बोले नहीं बनता ऐसे आदमी का, उसके चक्कर नहीं रहते उसके सारे चक्कर ख़तम हो चुके, ये फर्क है।

इसका मतलब मैं तुमसे ये नहीं कह रही हूँ कि तुम लोग संन्यास लो, कभी भी नहीं। लेकिन फर्क बता रही हूँ कि गृहस्थी के लोग जो हैं वो छोटी तबियत के होते हैं। बहुत छोटी तबियत होती है, बहुत ही छोटी तबियत। रात-दिन अपने बाल-बच्चे, घर-द्वार, ये वो, कीड़े- मकौड़े। लेकिन काम तो इन्हीं में करना है। इसी काम तो काम तो गृहस्थी में ही उठाना है। उसी में सहजयोग पनपने वाला है, उसी में फूल खिलने वाले हैं। इसी कीचड़ में कमल आने वाले हैं। लेकिन गृहस्थी में एक आदमी खड़ा हो जाये, फौरन कहेगा, ‘नहीं साहब, मैं तो पार हूँ।’ मैंने सहजयोग के बारे में सिर्फ मेरे अन्दर में पाया है। मैंने इसको पूरी तरह से जाना है। इसमें मुझे उठने का है तो कोई गृहस्थी (अस्पष्ट) वगैरा सब दब (अस्पष्ट) जाते हैं। जैसे कि कमल है, खिल जायें एकदम से। एकदम से पनप जायें, ऊपर में आ जायें। पर सारा कुछ कीचड़ इतना खींचा है, सब गिर जाता है पानी भी उसपे नहीं चढ़ता। ......मराठी (अस्पष्ट) अब गृहस्थी को ये सोचना चाहिये कि हमें किस तरह से अपनी क्षुद्रता को कम करना चाहिये। गृहस्थी को ये विचार करना चाहिये कि हमारे अन्दर क्षुद्रता जो है उसको हमें कैसे ठीक करना चाहिये, जो पार हो गए। जो पार नहीं हो उनसे तो अभी यही कहना है कि भैय्या, पहले पार हो जाओ। क्योंकि हाथ में जब तक झाड़ू नहीं आयेगा, तब तक आप सफ़ाई क्या करेंगे! जब तक आप अपने को मशिन से अलग नहीं करेंगे तब आप सफ़ाई कैसे करेंगे? जब आप अपने को नहीं जानेंगे तब आप दूसरों को कैसे जानेंगे? बहुत सी मांएं आती हैं कि ‘मेरे बच्चे को ठीक कर दो।’ जब मैं माँ को देखती हूँ वही भूत बनी बैठी है। वही खुद भूत है तो बच्चों को कैसे ठीक करें भाई, तुम तो ठीक हो पहले। तो पहले सहजयोग में आके सब लोगों को चाहिये कि वो पूरी तरह से पार हो जायें। अपने कोई से भी चक्र पकड़ने नहीं देने चाहिए, अपने चक्र साफ़ रखें। जब वो एक स्थिती आ जायेगी फिर वो दूसरों पे जायें। अपने बीबी, बच्चे, किसी को सुनने की जरूरत नहीं। कोई इसमें आपको सलाह दे तो आपको कभी नहीं सुनना चाहिये। ये आपकी विकनेस है और ये विकनेस बहुत मात खायेगी। मैंने ऐसे बहुत से सहजयोगी देखे हैं कि वो दूसरी औरतों पे निगाह रखेंगे, लेकिन सहजयोग के मामले में अपने बीबी के गुलाम! ऐसे लोग बहुत आगे नहीं जायेंगे। न उनको सहजयोग से कोई फ़ायदा है। न कुछ उनकी मैं मदद कर सकती हूँ। लेकिन जिन लोगों ने अपना सहजयोग पूरी तरह से अंदर बना लिया है, पक्के तैयार हो गये हैं। जिनका घड़ा बिल्कुल तैयार हो गया है, उसी घड़े में से ये जो लक्ष्मी है, ये जो गृहस्थ की लक्ष्मी है ये बहने वाली है। ऐसे आदमी का गृहस्थ जरूर ठीक हो जायेगा। इस मामले में जबरदस्ती भी करना पड़े तो कोई हर्ज नहीं। इस मामले में आपको साफ़-साफ़ भी कहना पड़े कि, ‘नहीं, ये गलत बात है मैं नहीं करने वाली। इस रस्ते पे मैं नहीं जाने वाला हूँ। उसमें थोड़ा सा बुरा लग जाये तो भी हर्ज नहीं। धीरे-धीरे, धीरे-धीरे धर्म की स्थापना हो सकती है । जब घर के अन्दर धर्म की स्थापना हो जायेगी, जब आपके अन्दर में वो शूरत्व आ जायेगा, जब वो पुरुषार्थ आपके अन्दर आ जायेगा, उस चीज़ को आप पूरी तरह से पकड़ लेंगे तब दूसरा आदमी भी पिघलना शुरू हो जायेगा। फिर उसके पिघलने से आप उसका नुकसान कभी नहीं कर सकते हैं। आप उसका कितना भी बुरा सोचें आप उसका नुकसान नहीं कर सकते हैं। उसका उद्धार होगा, वो भी सन्मार्ग में आयेगा, वो भी पार हो जायेगा। उसका भी मंगलमय होगा। लेकिन अधिकतर आप देखियेगा, पार होने के बाद, मेरी माँ ऐसी खराब है, मेरा बाप ऐसा खराब है। मेरी फलानी ऐसी है, वो डिकाणी ऐसी है। जैसे घर में ही दो आदमी हैं, मियाँ-बीबी हैं। ऐसे हमारे यहाँ बहुत से लोग हैं जिनके पति सहजयोग में काफ़ी उपर उठ गये और बीबी जो है वो सत्य साईबाबा की शिष्य। उसको सत्य नहीं, असत्य कहना चाहिये, पता नहीं क्या कहना चाहिये। वो ये बाधाओ के पीछे भाग रही है, उसके पीछे भाग रही है, ये मिरेकल के पीछे भाग रही है। ये कर रही है, वो कर रही है। दूसरी कोई है, वो जा रही है। जहाँ औरतें वो नाचती हैं, जहाँ पर वो, ‘घागरी फुंकणे’ बोलते हैं। ये होता है, वो होता है वहाँ वो जाती हैं।

......मराठी जाता ना तुम्ही तिथे? गेला होतात ना? गेला होतात की नाही? गेला असाल नक्की ! म्हणूनच हे. हे सगळं तिथून आलं आहे तुम्हाला. तुम्ही मगाशी म्हणालात ना मी कुठे नव्हते गेले? मग ठेवा हात तिथे. जनरलच बोलते मी. असा हात ठेवा. जिथे घागरी फुंकल्या जातात, तिथे जायचं नाही. ते भूतांचं आहे सगळं काम. भुतं आहेत भूतं ! त्या | बायकांच्या अंगात देवी आल्यात काय! देवीला अक्कल आहे की नाही, घाणेरड्या बायकांच्यामध्ये यायला ! (मराठी).

हमारे महाराष्ट्र में बहुत है ये सब।

(मराठी). इथून तिथून अशा लोकांना खेटराने ठीक करणार आहे मी. तुम्ही कोणी गेलात ना तर बघा! आणि मग घरात हे होतं आणि ते होतं. सगळ्यांना मिरच्यांच्या धुऱ्या द्या.(मराठी)

सब मंदिर में जा कर के, पाँव छुआ के, तुम लोग जा के सब लोग। मंदिरों में मिरचों की धूनी लगा के आओ सब लोग, भागेंगे वहाँ से सब बड़वे और ये सब ‘घागरी फुंकणे’ वाले भूत। ये गृहस्थी में हो जाता है, कि मनुष्य जो है गृहस्थी के चक्कर में, अपना जो मूल कार्य है उसे भूल जाता है। इसलिये गृहस्थ को पार कराने में तो आसानी हो जाती है लेकिन उसको स्थिर कराने में बड़ी मुश्किल हो जाती है। क्योंकि वो आपस में सलाह मशवरा करता है। अब अगर कोई संत हो तो वो संत से सलाह मशवरा करेगा। कल कोई संत हो तो वो संत ही से सलाह मशवरा करे और अगर कोई असंत हो तो उसे संत लोग क्यों मशवरा करें? उससे क्यों बात करें? उससे क्यों पूछे वो, ‘कौन होते हैं वो बोलने वाले कौन? अपनी संतता पूरी करने के बाद, फिर आप दूसरों से पूछ सकते हैं, दूसरों से कह सकते हैं। इसलिये आपको जानना चाहिये कि सहजयोग का कार्य सर्वसाधारण, सामान्य गृहस्थी में होने वाला है, गृहस्थ में होने वाला है। पर उसमें सिर्फ एक चीज़ का विचार रखें , कि गृहस्थ को ये जानना चाहिये, कि गृहस्थ एक बड़ी भारी रुकावट भी है, बड़ी भारी बाधा भी है और बड़ा भारी माया, मोह और जंजाल है। इसका मतलब संन्यास लेना नहीं है, उससे भागना नहीं है। इसका मतलब उससे मुँह मोड़ना नहीं है। लेकिन उसे उस गृहस्थी में ही ले कर के अपना चिराग जलाना है। उस अंधियारे को ही रोशन करना है। जब हमारा चिराग वहाँ पर उठेगा तो वही गृहस्थी ऐसी चमक उठेगी कि लोग कहेंगे कि ‘अहाहा! ये एक खानदान हुआ। एक ये घर हुआ, ये ऐसे लोग हुये कि सारा ही घर धर्म में पड़ा है। उनके बाल-बच्चे, उनके सब कुछ!’ सहजयोग के वैसे भी और भी बहत से इम्पेडिमेंटस (impediments) हैं बाधायें हैं। उसमें से ये है कि सहज में ही सब होता है। एकदम फटाक सब कुछ हो जाता है। जैसे एकदम से आपको हाथ ले जा के चंद्रमा पे बिठा दिया। आपको समझ में नहीं आया ये क्या है? आप अगर चंद्रमा पे पहुँच गये तो आप जानिये कि चंद्रमा हैं या क्या हैं? पूछिये, देखिये।

सहजयोग में पहुँचने के बाद जब तक आप उसे देखेंगे नहीं, पहुँचेंगे नहीं, उसको जानेंगे नहीं, तब तक आप मान ही नहीं सकते कि आपने कुछ पाया हुआ है। इसलिये पार होने के बाद तो जरूरी है कि आपको मेडिटेशन में आना चाहिये। क्योंकि पार होने के बाद ही सब सीखने का है और जानने का है, ये क्या? ये क्या हुआ? ये क्या है? हम कौन हैं? ये कहाँ आ गये? ये हाथ से बहने वाली चीज़ क्या है? इससे क्या-क्या हो सकता है? ये कैसे हमने पा लिया? इसका सारा ही ज्ञान पार होने ही के बाद बताया जा सकता है। क्योंकि उससे पहले बताया हुआ जो कुछ भी ज्ञान है, वो सारा हवाई है, वो किताबों में लिखा हुआ है। ऐसा तो बहुतों लिख लिया, उससे कोई फायदा नहीं। बाद में इसका एक्स्पिरिमेंट आप करें। यहाँ पर कुछ लोग हैं, उन्होंने फूलों पे किया। फूलों को वाइब्रेशन्स दिये। तो गुलाब के फूल भी इतने इतने-इतने (छोटे) आते थे, अब बड़े-बड़े आने लग गये। उसमें बहुत सुगंध आने लग गयी, उसका रंग बहुत खूबसूरत हो गया है। इन चैतन्य लहरियों का आप एक्स्पिरिमेंट मनुष्यों पे तो बहुत अच्छे से कर सकते हैं। कोई अगर पागल लोग हो तो वो ठीक हो जाते हैं। किसी की अगर कोई बीमारियाँ हों, कैन्सर की बीमारी, सिर्फ सहजयोग से ही ठीक होएगी और किसी से हो ही नहीं सकती। मैं बार-बार कह रही हूँ, कोई माने या न माने। इसका इलाज सिर्फ सहजयोग करें। इसका उपयोग, घर के खाने में, पीने में, उठने में, बैठने में, बोलने में, व्यवहार में, सोचने में, पढ़ने में, लिखने में, पॉलिटिक्स में, हर एक चीज़ में आप कर सकते हैं। इतनी बड़ी भारी चीज़ है। प्रेम का जो सत्य स्वरूप है वो ये है, इसकी शक्ति का वर्णन ही नहीं किया जा सकता है। ये कितनी शक्तिशाली चीज़ है। अभी मैं दिल्ली गयी थी, मैंने किसी से बताया नहीं था। क्योंकि मैं अपने पति के साथ थीं, पटना गयी थी। पटना से जिस दिन लौट के आयीं, तो वहाँ जितने भी सहजयोगी हैं सबके हाथ एकदम ठण्डे होने लगे और जोर के वाइब्रेशन्स आने लगे, मैंने किसी से बताया नहीं। तो उन्होंने मेरे भाई के यहाँ फ़ोन किया कि, ‘माताजी आ गयीं क्या? कि हम लोग इतने ठण्डे क्यों हो रहे हैं? तो भाई ने कहा, ‘आयी तो हैं, लेकिन वो अभी जरा मिलेंगी नहीं।’ तो कुछ तो दौड़े-दौड़े चले आयें। एकदम फौरन पता चलता है कि माताजी आ गयी हैं। आज हम रास्ते से जा रहे थे, एक आदमी सामने से जा रहा था। उसको ऐसा लगा कि पीछे से उसको कोई खींच रहा है। मूड़ के देखा तो मोटर में बैठी हुई। कहने लगा कि, ‘माताजी, मैंने देखा कि आप आयीं हैं। मुझे लगा कि कोई है, खींच रहा है।

कितनी सुन्दर चीज़ आपको मिली, इसका प्रयोग हर जगह आप कर सकते हैं। इतनी अद्भूत शक्ति! लेकिन आप अभी भी उसी तीन डायमेंशन के दायरे में ही घूम रहे हैं। उसी में आप घूमना चाहते हैं, बीबी, बच्चे, ये, वो, घर–द्वार, पॉलिटिक्स, पोजीशन। बहुत से बड़े-बड़े लोगों को पार कराया मैंने, बहुत से बड़े-बड़े लोग हैं। जिनको कि आप कहिये कि मिनिस्टर हैं और क्या-क्या उनके बड़े-बड़े नाम होते हैं। सेक्रेटरीस हैं, ये हैं, वो हैं। उनकी प्रायॉरिटीस जो है, उनका जो मूल्य है, मूल्यांकन है, बदलता है। उनके लिये एक फाइल बहुत महत्त्वपूर्ण है, बनिस्पत इसके कि सहजयोग के सिवाय .....(अस्पष्ट)। जब मैं दिल्ली गयी तो, माताजी, वाइब्रेशन्स चले गये। भाई, तुमने किया क्या? हम तो अपनी नौकरी कर रहे हैं भगवान के कृपा से। ....(अस्पष्ट) मेडिटेशन किया? वो प्रायॉरिटी तुम्हारी बदलनी चाहिये। आप मेडिटेशन करिये, आपका काम ऐसा होता है, ऐसा। डायनॅमिक काम होगा, और कोई टेंशन आप पे नहीं आता है। आप हमेशा फूले-फले रहते हैं, खुश रहते हैं। लेकिन प्रायॉरिटी वही रहेगी, अगर मिनिस्टर को मिलना है वो ज्यादा इंपॉर्टंट है। माताजी है, उनको मिलने की क्या जरूरत है? हाँ, अगर घर में कोई बीमार हो जाये या कैन्सर हो जाये, तो मिनिस्टर को छोड़ के माताजी के पास आयेंगे। दुःख में ही माताजी याद आती हैं हर दिन। मिनिस्टर तो नहीं ठीक कर सकते। चलो, माताजी के पास चलो। इसलिये गृहस्थिओं पे जब दु:ख पड़ता है, तभी वो परमात्मा की ओर झुकते हैं और तभी उस तरफ बढ़ते हैं। पर जैसे ही दुःख खत्म हो जाता है, फिर क्या! ऐसे-ऐसे प्रगती कैसे होगी? आप उस चीज़ को कैसे जानेंगे? जिसका का सारा कि सारा का सारा भंडार मैं आप के सामने खुला करना चाहती हूँ। उस संपूर्ण ज्ञान और उस संपूर्ण प्रेम और उस संपूर्ण शक्तिशाली आनंद को आप कैसे जानियेगा? जब तक आप ये सब फालतू की चीज़ छोड़ कर के उस की ओर अग्रेसर नहीं होगे। करना तो वो चाहेंगे लेकिन आप को लेना भी आना चाहिये। उसका खर्च करना भी आना चाहिये और फिर उसका मज़ा भी उठाने आना चाहिये। नहीं तो किसी निठल्लू लड़के को बाप ने बहुत सारी प्रॉपर्टी दे दी, वो क्या? ....(अस्पष्ट)।

कल का ध्यान का प्रयोग विशेष रूप से सक्सेसफुल हुआ, ....(अस्पष्ट) उसी तरह से आज भी फिर करेंगे। और जो लोग पार हो गये हैं, नये-नये पार हैं जिनको पार के बारे में मालूम नहीं, उनके लिये फिर से एक क्लास होगा। इधर एक और इधर लेडिज के लिये एक। दो क्लास होने चाहिये। उनसे आप लोग बातचीत करिये। इसमें ये जान लेना चाहिये कि कुछ लोगों को इसमें प्रगति काफ़ी हो चुकी है, बिल्कुल शंका नहीं। और उनसे अगर आपको सीखना पड़े तो उसमें बुरा मानने की कौन सी बात है, वो आप से बड़े भाई है। चाहे उमर में आप बड़े हो, उसमें जेलसी की कोई बात नहीं है। आप भी उनके जैसा हो जाईये, आप भी उसको जान लीजिये। उसमें गहनता में आ जाईये, आप भी वो बात समझ लीजिये। किसी को भी इसमें बुरा मानने की कोई बात नहीं है। इसमें भावुकता की कोई बात नहीं है। जो फैक्ट (fact) है वो फैक्ट है। आप में से भी बहुत से लोग इस लेवल पे आ में सकते हैं। और उँचे उठ सकते हैं,और इससे भी उँचे लेवल पे आपको चढ़ना है। इससे भी ऊँचा चढ़ने का है, उसका तो कोई प्रश्न ही नहीं है। अब आज मैं जरूर चाहूँगी कि आप को कोई प्रश्न हो तो पूछिये। लेकिन रियलाइज्ड आदमी पूछे, अनरियलाइज्ड नहीं।

(मराठी)....

प्रश्न: (अस्पष्ट)

श्री माताजी: अपने अन्दर में मैंने आपसे कहा था न कि तीन नाड़ियाँ हैं। इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना। अपना काम तो सुषुम्ना नाड़ी से चलता है। अब इड़ा और पिंगला नाड़़ियाँ दो इस तरह से हैं और बीच में से सुषुम्ना की नाड़ी बनायी हुयी है। अब समझ लीजिये कि अगर आपके इस साइड में कुछ खराबी हो, या किसी तरह की बाधा आ जाये, तो ये चीज़ बंद हो जाती है। तो इस तरह से आप से चलता नहीं। और अगर इधर की हो जाती है, तो इधर बंद हो जाता है। इसलिये इधर से भी नहीं चलता है । इडा और पिंगला नाड़ी दोनों अपने हाथ में जानी जाती हैं। इसलिये ये राइट साइड से बंद हो जाने का मतलब ये है, कि राइट साइड् की जो नाड़ी है, राइट साइड् पे जो आपका प्रवाह है, वो प्रवाह आपका रुक गया है। क्योंकि आपकी जो राइट साइड़ की नाड़ी है उसमें कुछ गड़बड़ है। अब समझ लीजिये, कि अधिकतर इसमें आपको समझना चाहिए कि राइट साइड़ में जिसकी नाड़ी बंद हो जाती है, उसकी इड़ा नाड़ी पकड़ी है। अब इड़ा नाड़ी पकड़ी हुई है इसका मतलब क्या? उसने या तो कोई योग किया होगा।

श्री माताजी: क्या है योग आपका? आपकी कौन से पकड़ी है? लेफ्ट (left) है? अच्छा योगसाधना जिसने करी हो, सूर्य का तप किया हो, गायत्री का मंत्र किया हो, आदि वगैरा जो प्रकार किये हो, उसका राइट हैंड कमजोर हो जायेगा। याने उसमें से बाधा आयेगी। अच्छा, जिसमें भूत बाधा जिस पर हुई है। माने ये सब, मैंने आपसे कल ही कहा, कि ये जो गुरु लोग हैं, भूत हैं, अधिकतर। जो असली गुरु हैं वो तो मैंने देखे नहीं, बहुत ही कम हैं। समय वो तो जंगलों में ही हैं। अधिकतर गुरु लोग जो पैसा वैसा खाते हैं, वैसे भी अनाधिकार चेष्टा जो करते हैं, ऐसे सभी गुरु अधिकतर भूत ही हैं। उनके कारण आपके लेफ्ट हैंड साइड़ में हो सकता है। आप पे कोई करनी कर सकता है। आप के ऊपर में कोई भूतबाधा हो सकती है, वो भी आप स्मशान के पास गये हो। कभी कोई डर गया हो या फिर कोई पागल आदमी हो, सब जो कुछ भी साइकिक याने मेंटली, इमोशनल प्रॉब्लेम है। इमोशनल प्रॉब्लेम है, वो आपको जो है लेफ्ट हैंड पे पता चलेगा। और जो मेंटल प्रॉब्लेम हैं वो राइट हैंड पे पता चलेगा। अब मेंटल का इतना क्लिअर नहीं होता है, लेकिन इमोशनल आप समझ लीजिये और एक समझ लीजिये कि जिसे आप कह सकते हैं इगो। एक से इगो होता है और एक से सुपर इगो होता है। इससे इगो होता है और इससे सुपर इगो होता है। इगो जो है वो अतिकर्मी होता है, बहुत मेहनत करने वाले लोग होते हैं। जो रात दिन काम, मेरे सर पे ये काम है। मुझे ये जिम्मेदारी है, मुझे ये करने का है। मैं इस जगह का फलाना सेक्रेटरी हूँ।’ इस तरह का जो लोग सोचते हैं, उन लोगों की ये साइड़ पकड़ जाती है। जो लोग लिथॅर्जिक हैं, लेकिन भूतबाधा आदि में फँस गये हैं, कहीं उनको भय हो गया , कहीं कुछ हो गया। जिनको इमोशनल प्रॉब्लेम हैं, जिनका सुपर इगो गडबड़ में हैं, उनका ये साइड़ बंद हो गया। इस तरह से दोनों साइड़ चलते हैं। आप में जो दोष है, वो आपको समझ लेना चाहिये। आप अगर है किसी वजह से हो सकता है कि आपने गुरुजी की सेवा करी होगी और उन्होंने आपको सेवा का फलस्वरूप आपकी ये कुण्डलिनी की एक शक्ति ही खत्म कर दी होगी। हो सकता है! अधिकतर यही होता है। उनका इलाज बहुत ही गंदा है लेकिन है। ये तो आप जानते हैं। वो क्या बताऊँ मैं आपको! वो आप जानते हैं कि कुरान ए शरीक पे इसका इलाज लिखा हुआ है, कि ऐसे आदमी का नाम ले कर के और उस पे बंधन डाल के पॅराबोलिक और उसको जूते मारना चाहिये। और वो इलाज सब से अच्छा है, हमने देखा है। नींबू, उससे भी बेस्ट है। और उसको जितने आप जूते मारेंगे, १०८ कम से कम मारना चाहिये। ऐसे, अपना बच्चा है, समझ लीजिये, लड़का है, बदमाश है, शराब पीता है, सताता है, उसको आपको अगर ठीक कराना है, तो पार पहले हो जाओ। खुद पार होना पड़ेगा तब होगा। उसका नाम लिख कर के उसको जूते मारो, वो ठीक हो जायेगा। इस तरह की चीज़ों से आप बहुतों को ठीक कर सकते है। उस लड़के की तंदुरस्ती भी ठीक हो जायेगी, उसका मन ठीक हो जायेगा, उसकी बुद्धि ठीक हो जायेगी। क्योंकि आप जूते मारिये, चाहे उसको तलवार मारिये, चाहे उसको कुछ भी करिये, उसका उद्धार ही होने वाला है। पर आप सही हो जाईये। इसी कारण कभी-कभी आपके वाइब्रेशन्स कम हो जाते हैं, घट जाते हैं। शंका आ गई, अब बहुत से लोग पार हो जाते हैं। उसकी शंका ये कि कैसे हो सकता है? ऐसे आसानी से कैसे हो सकता है? ऐसे क्यों हो गया? बस वाइब्रेशन्स बंद। आपके मन में कोई अधर्म की भावना आयेगी तो भी बंद हो जायेगा। आपने किसी गलत आदमी के घर में खाना खा लिया, तो भी वाइब्रेशन्स बंद हो सकते हैं। उसकी वजह ये है कि उस आदमी ने, एक आदमी है समझ लीजिये, बहुत ही खराब है। उसने किसी का मर्डर किया और आपको खुश करने के लिये आपको खाना खिला रहा है। आपने उसका खाना खा लिया, आपके नाभि चक्र में उसके खराब वाइब्रेशन्स हैं, वहाँ के जो देवता हैं, विष्णु जी वो सो जाते हैं। वहाँ के जो देवता हैं वो लोग लुप्त हो जाते हैं, गुप्त हो जाते हैं। वो शांत हैं, अब उनके वो नहीं हुए तो वाइब्रेशन्स कहाँ से आयेंगे। उन्हीं के थ्रू वाइब्रेशन्स चलते हैं। इस वजह से जिसकी नाभि अभी पकड़ जाये उसके लिये अच्छा ये है कि जब पानी आप हाथ में लें तो उसको जरा सा वाइब्रेट कर के माथे में लगा कर उसे पिये। खाना खाने से पहले, खाने के उपर भी एक आप उसको सरक्क्युलर ऐसे तीन मर्तबा उसकी प्रदक्षिणा कर लें। उसको भी आप वाइब्रेशन्स खाने को दें। पानी को भी आप हाथ डाल कर के उसमें वाइब्रेशन्स दें, वो पानी पियें। अधिकतर चीज़ों को वाइब्रेशन्स दे कर के आप करें। आपको किसी से बात करना है अब वो आदमी ठीक नहीं है, आपको मालूम है। उसको घर ही से वाइब्रेशन्स दे के उसके पास जायें। वो अगर बात कर रहा है ऐसी-वैसी तो उसको वाइब्रेशन्स दे दें। वो कोई अगर परमात्मा के विरोध में भी बात कर रहा है तो भी उसको वाइब्रेशन्स देते रहें। ऐसे-ऐसे करने से उस पे प्रेम का बंधन पड़ जायेगा। वो आदमी खुद, उसका जो है वो ठीक हो जायेगा, मामला। उसके सहस्रार पे वाइब्रेशन्स आयेंगे और उसके कारण आप उसको ठीक करेंगे। ऐसे हजारों ने अपने अपने बाल-बच्चों को ठीक किया आप तो जानते ही हैं। कितनों ने अपने घर वालों को ठीक किया है, बीबीओं को ठीक किया है, बच्चों को ठीक किया है। धीरे-धीरे वो खुद ही सन्मार्ग पे आ जायेंगे और उनकी भी जिंदगी सुधर जायेंगी। और कोई प्रश्न हो तो पूछिये।

प्रश्न : ....(अस्पष्ट)

श्री माताजी: सर में, आपको एक तो सर में, यहाँ सहस्रार में आपको पहले (throbbing) थ्रॉबिंग पता चलेगी। माने, जो हृदय में प्राण है, जो प्राणशक्ति है, वो उठ कर के उपर में आती है और आपके लिंबिक एरिया में जा कर के यहाँ मारती है। यही योग की साधना होती है। जिस वक्त में वो प्राणशक्ति आपके चेतना शक्ति से एकाकार हो जाती है, तब वो शांत हो जाती है। उसी वक्त में आपके अन्दर से वाइब्रेशन्स निकलना शुरू हो जाते हैं। माने जो तीसरी शक्ति है, जो स्थिति की है, जो शिवजी की है, वो बहना शुरू हो जाती है, जो कि वाइब्रेशन्स होते हैं। और जब आप कह रहे हैं कि सर से आपके वाइब्रेशन्स जा रहे हैं, तब आपको जान लेना चाहिये कि सर से वाइब्रेशन्स जा रहे हैं या आपके अन्दर थ्रॉबिंग हो रहा है। वो थ्रॉबिंग है वो चीज़ ठीक नहीं है। अगर आपके अन्दर शथ्रॉबिंग हो रहा है, तभी आपका सहस्रार चल रहा है। उसको शांत कर लेना चाहिये। उसको कहे कि आप शांत करें। आप सीधा हाथ फोटो पे रखें और एक हाथ अपने सर पे रखें, यूँ। या मेरी ओर भी आप कर सकते हैं, वही चीज़ है। यहाँ जिस जगह में हमारा तालु होता है जिसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं। वहाँ पर आप लेफ्ट हैंड रखें और राइट हैंड हमारी ओर रखें। अब हर एक चक्र पे आपको देख लेना चाहिए। आप फोटो पे अगर थोड़ी देर हाथ रखें, तो आपको पता हो जायेगा कि कोई न कोई आपकी उंगली जलना शुरू हो जायेगी, अगर आपके चक्र में बाधा है तो। नहीं तो आपके अन्दर पूरे वाइब्रेशन्स आयेंगे। आपको फौरन पता हो जायेगा कि कौनसी उंगली में, कहाँ पर हमें जलन हो रही है। अब अगर यहाँ जलन हो रही है तो समझ लीजिये कि आज्ञा चक्र में, यहाँ हो गयी तो नाभि चक्र में है। इसके बारे में आप सब से यहाँ पर जानकारी कर लीजियेगा कि कौनसी कहाँ होती है। उसी के अनुसार फिर आप अपने हाथ रख लीजियेगा वहाँ पर जहाँ पर आपको बाधा है। सिर्फ हृदय चक्र के बारे में ऐसा है कि लेफ्ट हैंड जो है वो फोटो की ओर होना चाहिये, राइट हैंड हृदय पे होना चाहिये और बाकि जो कुछ भी बाधा, बाकी की है उस में राइट हैंड फोटो पे होना चाहिये और लेफ्ट हैंड वहाँ होना चाहिये जहाँ आपको बाधा है और सब को आपको क्लॉक वाइज घुमाना चाहिये। इस तरह से करने से आपके चक्र ठीक हो जायेंगे। लेकिन कल भी मैंने आप से बताया था फिर आज भी बता रही हूँ आप से। कि सब से अच्छा तरीका, सब से बढ़िया तरीका, अपने सब चक्रों को हमेशा शुद्ध रखने का है, निर्विचारिता में रहना। जब भी आपको मौका मिले आप विचारों की ओर देख के, आप निर्विचारिता में चले जायेंगे। ये आपका फर्क होगा, उसमें जितनी आपकी स्थिति उँची-उँची उठती जायेगी। वैसे-वैसे ही ये ये सब आपके चक्र जो हैं अपने साफ़ होते जायेंगे। जितना भी हो सके आप निर्विचारिता में रहें। ये बहुत बड़ी चीज़ है। और सारे संसार के जो कार्य और हर चीज़ की जो उलझन और हर चीज़ का प्रॉब्लेम जो आपका दिमाग उलझाता है। जो आपके अटेंशन को खींचता है, उसको कहना चाहिये की नहीं, ये तो माया है, ये तो माया है। एक बार कह दिया कि, ‘ये माया है, ये सब माया है और हम अन्दर खड़े हुये हैं, देख रहे हैं।’ तो धीरे धीरे वो चीज़ माया जो है वो खुलती जायेगी, छुपती जायेगी और सत्य आपके सामने प्रकाशित हो जायेगा। चित्त अपनी ओर रखें, दूसरों की ओर नहीं। मैं देखती हूँ कि जब मैं भाषण दे रही हूँ तब भी सब की आँखें घूम रही हैं। कोई आदमी आया, उसको जरूरी देखना है? आँख का घूमना बंद करना पड़ेगा। जिस आदमी की आँख बहुत घूमती है, उसको पार कराना बड़ा मुश्किल होता है। और मैंने थाना में ये कहा था लोगों से, अभी अंबरनाथ, कि आज कल जो लोगों की आदत पड़ गयी है कि हर औरत जायें उसको देखें, हर आदमी जायें उसको देखें। आँख उठा के देखिये, ये बहुत बुरी आदत है। इससे आँखों में आज्ञा चक्र पे भूत बैठ जाते हैं। और जो ये फ्लरटिंग है, फ्लर्टिंग जिसे कहते हैं, ये एक भूत का प्रकार है। ये बिल्कुल भूत का प्रकार है और जिस आदमी में ये आदत आ जाती है, उसके लिये पार होना बहुत मुश्किल है। फिर वो एक आदमी दूसरे को देखता है। उस तरह का आदमी तुमको भी, जैसे इनको हमने देखा कि इनमें वो आदत आ जायेगी। जब दुसरे आदमी को देखें, उनमें ये आदत आ जायेगी। और ये बढ़ते ही जाता है और ये भूत इस तरह के जो अतृप्त जीव होते हैं, वो ऐसे लोगों के अन्दर आ जाते हैं। और ये जिस तरह से अतृप्त हैं। और हर एक आदमी में आ कर के वो अपना कार्य करते हैं। और ऐसे आदमियों का आज्ञा चक्र इतना खराब कभी-कभी हो जाता है, कि उसका बुद्धि में भ्रम हो जाता है और बुढ़ापे में उनकी बहुत मेमरी वगैरा क्षीण हो जाती है। इसलिये आँख का स्टेडी (स्थिर) होना बहत जरूरी है। आँख को आपको स्टेडी करना चाहिये। आँख को अगर आपने स्टेडी कर लिया, स्टेडी ही रखें। हर एक चीज़ पे आँख घुमाने की कोई जरूरत नहीं है। जब तक आपको कोई लिखना ना हो, कुछ न करना हो, आप निर्विचारिता में ही देखते रहें। किसी की ओर घूर के भी देखने की जरूरत नहीं। आप अपनी ही ओर देखते रहें। स्थिर आँख करना बहुत जरूरी है। उसी तरह से मैंने बताया था कि जिव्हा का भी स्थिर करना बहुत जरूरी है। जैसे ये कि लोगों की आदत है कि बहुत बोलेंगे या चुप रहेंगे, बीच में चलना चाहिये। जब बोलना है तब जरूरी बोलना है। जब नहीं बोलना है तब चुप रहिये। बड़बड़ करना, बकवास करना ये भी एक भूत का ही लक्षण है। मेरा तो सर पक जाता है, अगर कोई बड़बड़ा आदमी सामने आ जाये। और कोई अगर बिल्कुल ही नहीं बोलता है, तो वो भी एक भूत का लक्षण है। आप देखते हैं कि बहुत से पागल लोग दो तरह के हैं, एक तो बकते बहुत हैं या तो एकदम चूप हो जाते है। ये सब पागलपन की निशानियाँ हैं। सहजयोगी को चाहिये कि अपनी जिव्हा पे पूरा कंट्रोल कर ले, वो कर सकते हैं। उसी तरह से दूसरी चीज़ है खाने की। जिस आदमी को खाने की बहुत लालसा होती है, बहुत खाता है, वो भी भूत है और जो नहीं खाता है, वो भी भूत है। मैंने पहले ही बताया था आपसे। तो इसलिये जिसको रसस्वाद बहुत है, वो भी एक अच्छी चीज़ नहीं है। कि साहब उनको ये पसन्द है, उनको ये पसन्द नहीं है। ये जिसने ज्यादा शुरू कर दिया वो गया जीभ ....(अस्पष्ट)। इसका मतलब ये भी नहीं की जबरदस्ती जीभ को कुछ खिलायें, मिल गया तो खा लिया नहीं तो नहीं खाया। किसी की गुलामी थोड़े ही करनी है। चाहे वो जीभ हो, चाहे आँख हो। चाहे कोई सा भी अपना इंद्रिय हो। किसी की भी हमें गुलामी नहीं करनी चाहिये। होंगे, अपने जगह बैठे रहो। जब जरूरत होगी तब इस्तेमाल कर लेगे, नहीं तो बैठे रहो। जैसे कि हमें बाहर जाना होता है। तब हम कहते हैं कोचवान से कि, ‘भाई , चलो, ले आओ सामने मोटर।’ ये थोड़ी है कि मोटर को कहे, बताओ, चलते हो कि नहीं चलते हो। इसलिये ये सारे आपके वाहन हैं। इनपे भी आप पूरी तरह से अधिकार जमा सकते हैं अगर सहजयोग में आपकी बैठक हो जाये। तो सब पे अपनी बैठक जमा सकते हैं। लेकिन सब का फिर सूत्र वही आता है कि निर्विचारिता। फिर सूत्र वही आता है निर्विचारिता में। निर्विचारिता में अग्रसर रहे और अगर आपके चक्र अगर पकड़ रहे हैं तो निर्विचार हो भी नहीं सकते। जैसे ही चक्र छूटेंगे आप निर्विचार हो जायेंगे। बिल्कुल सायमल्टेनिअस ( simultaneous) चीज़ है। निर्विचारिता में रहना यही इसका सूत्र है। और जहाँ तक हो सके निर्विचार रहें, निर्विचारिता में। क्योंकि विचारों से ही सब इंद्रिय भी आपके प्रति संवेदनशील हैं। सभी चीज़ आपको संवेदना विचारों से ही देते हैं। अगर विचार ही न आये तो आप अपने में समायेंगे पूरी तरह से। इसका मतलब बेहोशी से नहीं है, निर्विचार रहें। पूर्णतया निर्विचार रहें, अन्दर देखते रहें। निर्विचार रहें, उसी में आपकी प्रगति सब से अधिक से अधिक हो सकती है।

सब से आखिर में मैंने आपसे पहले अनेक बार बताया है, कि सहजयोग कलयुग में जो आज पनपने वाला है, जिस दशा में इवोल्यूशन की स्थिति आ गयी है। उसमें विराट का स्वरूप पूर्णतया खुलने वाला है। और इसलिये आप सब उसी विराट के अंग-प्रत्यंग हैं। और आप अगर अपने घर में बैठ कर के कहे, तो आप नहीं ज्यादा आगे बढ़ सकते। आपको बार-बार इसी सम्मेलन में आना होगा। साथ आना पड़ेगा, इसी ऑर्गनाइझेशन में आना पड़ेगा। ये ऑर्गनाइझेशन मैंने बनाया है, किसी और ने बनाया हुआ नहीं। इसके विरोध में जाने की कोई जरूरत नहीं। इसमें जो गलत लोग होंगे वो अपने आप गिर जायेंगे। उनको अपने आप जाना पड़ेगा, वो यहाँ टिकेंगे नहीं। ऑर्गनाइझेशन के विरोध में अगर कोई बात करता है या ऑर्गनाइझेशन के खिलाफ़त में कोई बात करता है तो गलत बात है। दूसरी बात ये है कि कोई लोग आप से अग्रेसर हैं, उनको जरूरी अग्रगण्य मानना पड़ेगा। जब तक आप उनको अग्रगण्य नहीं मानेंगे, आप भी अग्रगण्य नहीं होंगे। अगर आप एक अफ़सर आपका एक बड़ा अफ़सर है, जब तक आप उसको अफ़सर नहीं मानेंगे आपको भी कोई मानने वाला नहीं। और उस तक पहुँचने के लिये आपको उसको मानना पड़ेगा। आपको उस तक पहुँचने के लिये उसके मार्ग पर चलना चाहिए। नहीं तो आप उस पोजीशन में कभी नहीं जा पाइगे, उनसे जेलसी करना नहीं चाहिये। उनको मानना चाहिये जो आपसे उँचे उठ गये हैं, उँचे उठ गये हैं। उनकी बात को मानना चाहिये क्योंकि सहजयोग साधना और ऑर्गनाइझेशन भी दो चीजें हो सकती हैं। पर सहजयोग में जो लोग आगे पहुँच गये हैं, वो लोग पढ़े लिखे हों, चाहे नहीं हों। उनकी कोई पोजिशन हो या नहीं हो। वो किसी दशा में हों या नहीं हो। लेकिन सहजयोग में अगर वो फूले हुए उपर में हैं, तो उनको मानना ही पड़ेगा। इसकी सिनिऑरिटी अपनी बनती है, कोई गर्वन्मेंट की बनायी हुई सिनिऑरिटी नहीं चलती। कोई रिकमंडेशन से नहीं चलती है। क्योंकि आप बहुत बड़े अपने को समझ के नहीं चल सकते, उसकी बात माननी पड़ेगी। उनकी जेलसी नहीं करनी पड़ेगी, क्योंकि ये गलत तरीके हैं। मैंने बहतों को देखा है कि ऐसे गलत रास्ते से या गलत बातें बहुत से बोलते हैं। और इसलिये उनकी प्रगति होती ही नहीं है, बिल्कुल नहीं होती। जहाँ के तहाँ जमे बैठे हैं। आपस में चार गुट बना कर के ऐसी ही बकवास करते हैं। और ये सोचते नहीं कि आदमी क्यों इतना नज़दीक है और क्यों दूसरा आदमी पीछे हट गया। अपनी प्रगति करो, अपने को बढ़ाओ, और नज़दीक आते जाओ। पास आते जाओ, शक्ति के बिल्कुल नज़दीक आ कर के शक्ति में एकाकार हो जाओ, ये संभव है। ये हो सकता है, गृहस्थी में ही हो सकता है। इस गृहस्थी को ही मेरा अनेक बार नमस्कार है। और आपको आश्चर्य होगा कि हर समय जब भी आदिशक्ति का अवतरण इस संसार में हुआ था, तो वो कोई संन्यासिनी के रूप में नहीं आयी थीं। उसने अपनी गृहस्थी बचा कर के, बना कर के संसार में कार्य किया। आज ध्यान में अभी वाइब्रेशन्स बहुत जोरों में हैं। मैं और नहीं बोलूंगी आप वाइब्रेशन्स से ही जानिये। उसमें भाषा नहीं होती, रूप होता है। अपने आप बहता है छोटे बच्चे भी समझते हैं। कोई सी भी भाषा मैं बोलूँ, चाहे अंग्रेजी, मराठी, हिन्दी में। ये प्रेम जो बह रहा है उसको जानो, इसको जानना है। इसको जो जान लेता है वही सब कुछ पा सकता है।

Mumbai (India)

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