Sharirik bimariya Vibration se thik ho sakti hai

Sharirik bimariya Vibration se thik ho sakti hai 1975-02-16

Location
Talk duration
55'
Category
Public Program
Spoken Language
Hindi

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16 फ़रवरी 1975

Bimariya Chaitanya Se Thik Ho Sakti Hai

Public Program

Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)

Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft

आज के लिये एक माँ के स्वरूप से मैं इस .... आयी हूँ, जिसका नाम बहुत अदुभुत है। पर हो सकता है, कि आपको विश्वास ही न हो, कि एक साधारण स्त्री, आप ही के जैसी, घर गृहस्थी में रहने वाली इस तरह की..... में कैसे आयी ? उस ... का नाम है सहज मोक्ष। पहले कि हम ये जानें कि सहज क्या चीज़ है, ये जान लेना चाहिये की मोक्ष क्या है? सॅल्वेशन किसे कहते हैं? हम इस संसार में किसलिये आये? मनुष्य की उत्पत्ति क्यों हुई ? मनुष्य विशेष रूप में क्यों बनाया गया?

परमेश्वर ने एक विशेष कलाकृति से इस सुंदर जीव को क्यों इतनी सारी शक्तियाँ दी ? ये समझने के बाद ही आप जान पायेंगे कि आपका सारा अस्तित्व, आपका पूरा एक्सिसटेन्स ही आपको अत्यंत आनंद में डुबोने के लिये हुआ है।

उसके लिये परमात्मा ने बड़ी मेहनत की। अब आप में ऐसे भी लोग हो सकते हैं, कि जो ये कहेंगे कि माताजी, परमात्मा कहाँ है ? हमको उनसे मिलवाएँ .... पहली सीढ़ी से ही शुरू करना पडता है। परमात्मा है या नहीं ये बात बहुत आसानी से समझ आती है, अगर आप साइन्स टीचर है। साइन्स में ही अब सिद्धता हो गयी हैं, कि परमात्मा हैं। आप किसी केमिस्ट्री वाले आदमी से जाकर पूछिये कि दुनिया भर के जितने भी एलिमेंट्स हैं, उनको किस प्रकार व्यवस्थित रूप से परमात्मा ने एक के बाद एक बनाया है। और उनको आठ बंडलों में कितनी व्यवस्थित रूप से बाँट दिया , ये कोई चीज़ बगैर सोचे समझे, किसी प्लॅनिंग से हो सकती है ? आप अगर किसी फिजीसीस्ट .... के पास जाये और उनसे ये कहे तो कि क्या ये जो पृथ्वी है, इस पृथ्वी की इतनी जोर से गति को घूमने वाली उस चीज़ को किस जीव ने ऐसा बना दिया है, कि उस पर आज भी लोग आराम से बैठे हैं। इस पृथ्वी पर कहीं भी कोई जरा ज्यादा mass हो जाये, होता तो ये पृथ्वी डाँवाडौल हो सकती है। पूरी तरह से डाँवाडौल हो सकती है। इसका सारा चालन, कितनी उसकी व्यवस्था से, सूर्य से हमारा अंतर का रखना, पूरी ही व्यवस्था कितनी कमाल की है, कि किसी न किसी को कोई न कोई जरूर जादगर है। फिर आप अपनी ही ओर देख सकते हैं, कि इस हृदय की चालना करने वाले, इस हृदय को चलाने वाले कौन हैं? इसका ... नाम, प्रकृति नाम दीजिये, नेचर नाम दीजिये, उसको आप परमात्मा कहे, अपनी भाषा में उसे चाहे कुछ भी कहे लेकिन आप साइकोलॉजिस्ट कि तरह लग गये कि अपने यहाँ अन्दर में कोई ऐसा विश्वव्यापी आत्मा है, जिसको वो अनकॉन्शस, यूनिवर्सल अनकॉन्शस कहते हैं। ये जो कुछ अजीब सी बातें हमारे लिये करता है, हम में संतुलन लाता है, हमें सम्भालता है, हमें स्वप्न में आ कर बताता है, जो भी इस बात को कहे। जिस कगार पे आज मनुष्यता पहुँच गयी है, वो इतना जरूर समझ लें, कि कुछ न कुछ खाई है। जब जब तक खाई दिखायी नहीं दी थी, खाई तक ले जाना जरूरी होता है। उस सृष्टि में, उस प्रकृति में, उस परमात्मा की शक्ति में ये सारी सृष्टि बड़ी सुंदरता से....। उसने तीन शक्तियों को उपयोग में लाया। एक शक्ति से वो स्थित है, जिससे वो अपनी शक्ति की चालना, अपने शक्ति का कार्यक्रम, उसका खेल है, और नहीं पसंद आता है, तो संहार भी करता है। ऐसी बहुत सी रचनायें हुई और

खत्म भी हुई। दूसरी शक्ति ये देखने की, विटनेसिंग, साक्षि स्वरूपत्व की। जिसको की बहुत से लोग डिस्टॉईंग शक्ति कहते हैं। और दूसरी शक्ति जो कि सृजन करती है। बड़े बड़े ग्रह, तारे, चंद्र, सूर्य तारकाओं की मालायें , पृथ्वी जैसी सुंदर चीज़, इस सृजन शक्ति को , क्रियेटिव शक्ति जिसे आप कह सकते हैं, इसको भी परमात्मा ही कहें ।

एक सल्फर डाइ ऑक्साइड का आप अगर छोटा सा परमाणु, मॉलेक्यूल ले लें, तो उसमें आप आश्चर्यचकित होंगे, कि एक सल्फर के अन्दर से कैसा अनुकंपन, वाइब्रेशन आ रहा है! हालांकि वो...बिजली .. जैसा इलेक्ट्रो मॅग्नेट है। लेकिन उसको कौन वहाँ चला रहा है? कोई भी एक छोटे से परमाणु में उस चीज़ को कौन चला रहा है? उस अणु- रेणु में कौन कंपित है? अगर मैं यहाँ बोलू नहीं, तो आपके पास कोई आवाज नहीं आने वाली। उस छोटे से अणु- परमाणु में वही शक्ति काम कर रही हैं, जिससे सारी सृष्टि कंपित ...... है और वो सोचती है, समझती है और सब चीज़ से अनुशासित है। आप चाहे विश्वास करें या न करें । तीसरी शक्ति परमात्मा ने जो इस्तमाल की इसे बहुत ही खूबी से काम में लाया हुआ है। वो उत्क्रांति की शक्ति है, रेवोल्यूशन की शक्ति है। जिस शक्ति के कारण धीरे-धीरे मनुष्य इस दशा में आ गया, इस चेतनामय दशा में आ गया। सल्फर डाइ ऑक्साइड में जो शक्ति स्थित है, वो नहीं जानती, कि मेरे अन्दर कोई शक्ति भी स्थित है। उनको ये भी नहीं पता, कि उसके अन्दर जो चल रहा है वो मैं कहाँ खड़ा हूँ? मेरी क्या अॅटोमिक स्थिति है? वो कुछ नहीं जानती। मैं बस स्थित हूँ। यहाँ कहाँ जमे ह्ुये, पूरी तरह अनुशासित है। उसके बाद उनकी तीसरी शक्ति है, उसी में जीवन का स्पंदन शुरू हुआ।

उसी शक्ति की वजह से जीवन का स्पंदन शुरू होने के बाद मनुष्य में उत्क्रांति याने इवोल्यूशन होना शुरू हुआ। मैं कहँगी, कि पहले तो प्राणिमात्र में ही हुआ। उससे भी पहले आप जैसे जानते हैं, वनस्पति में हुआ और आज मनुष्य में उस उत्क्रांति की आखरी दशा आ गयी। आप अगर किसी बंदर का सर देखें यहाँ से आधा कटा हुआ लगता है। ये सर हमारा बढ़ने की जरूरत थी, जो आगे का है, जिससे हम सोचते हैं। प्लॅनिंग करते हैं। जिससे हम अपना अहंकार चलाते हैं। ये भी परमात्मा ने दी हुई चीज़ है। इसे झँझने की कोई जरूरत नहीं। इससे घबराने की कोई जरूरत नहीं। ये हिस्सा भी हमारा इतना आगे आना चाहिये था। हमारे शरीर का जीवंत यंत्र भी इतना पूरा तैय्यार होना था। इसलिये ये कार्य हुआ। आज वो दिन आ गया है, आज वो समय आ गया है, कि आप तैय्यार हैं। इसका वर्णन हमारे किताबों में, ग्रंथशास्त्रों में बड़े बड़े ऋषि-मुनियों ने और भी धर्मों में, हर एक में किया गया है। इसका पढ़ना बहुतो को हुआ नहीं, बहुतों ने इसे समझा नहीं, जाना नहीं, लेकिन उसका साक्षात् होने की आज घड़ी आ गयी। इस प्रकार हमारे अन्दर जो थ्री डाइमेशन आज तक थे। तीन आयाम पर जो हम चल रहे थे, उस तीन आयाम से अब चौथे आयाम में उतरने का समय आ गया है और उस चौथे आयाम की बात बहुत दिनों से चल रही है।

इतना ही नहीं, उसकी बात चल रही है, उसका इशारा भी हमारे दिमाग में है। ये हम लोग अब समझ रहे हैं, कि हम से भी परे कोई जरूर ऐसी शक्ति है, जो हमें चलाती है। इसकी ये नयी खोज है । सारे साइंटिस्ट जो हैं अपनी अपनी जगह बैठे गये और हैरान हो गये, कि आज तक जिस चीज़ को हम इतना समान ..... समझ बैठे थे वो बात सही से ये नहीं। ये कुछ और ही कह रहा है। इस सब शक्ति का सूत्र वही चौथा आयाम है, फोर्थ डाइमेंशन। जिस सूत्र सारी ही शक्तियाँ चलती है, जो ये तीन शक्तियों से परे है। त्रिगुणों से परे, विचारों से परे, अपने अन्दर बह रहा है, उस सूत्र से एकाकार होना, उससे आयडेंटिफाई होना, यही मोक्ष है। यही मोक्ष का रास्ता है। जहाँ आप निर्विचार में जाग जाते हैं, सोते नहीं। ट्रान्स की बात मैं नही कर रही हूँ। वो तो एक मायावी खेल है, जिसके बारे में मैं बाद में आपको बताऊंगी।

मैं तो आपके खोज में जागती हुई, को जानने की बात कर रही हूँ। क्योंकि जानवरों का जो भी आज तक इवोल्यूशन हुआ है, उत्क्रांति हुई है, जब वो इन्सान बने हैं, तो उन्हें कोई होश नहीं था । वो अपने होश में उन्होंने कोई उत्क्रांति नहीं पायी। क्योंकि वो अनुशासित है। लेकिन मनुष्य स्वतंत्र हो गया। | स्वतंत्र होने के बाद, स्वतंत्रता के बाद उसने अपना रास्ता खोजा और अपने इस हिस्से को बढ़ाया है, जहाँ से सोचा जाता है, प्लॅनिंग किया जाता है। आगे की बाद देखिये। जब संपूर्णता से ये यंत्र तैय्यार हुआ, तभी ये प्रकाश जागृत होने वाला है। जैसे कि आपने दीप सँजो के रख दिया। उसमें बात लगा दी, तेल डाल दिया है। तीनों डाइमेंशन तैय्यार है, अब सिर्फ उसमें बात डालने की बात है। उसको किसी तरह से दीप जलाने की बात है। एक जगा हुआ दीप इसे जगा सकता है। लेकिन बगैर जलाया दीप हुआ उसको जगा नहीं सकता और सहज में ही जगा सकता है। मोक्ष का मतलब सीधा सीधा ये है, कि जिस सूत्र के द्वारा, जिस शक्ति के द्वारा ये सारी सृष्टि का रचनात्मक कार्य हुआ और जिसके द्वारा हम भी तैय्यार ह्ये, उस शक्ति में डूब जाना, उस शक्ति में एकाकार होना, उसी वक्त ये शक्तियाँ अपने अन्दर से धकधक बहने लग जाती है।

जैसे कि फूलों के अन्दर से प्रकाश होता है। लेकिन इस सोच- विचार में और इस .... में मनुष्य बड़ी गलतियाँ करता है। मैं और गलतियों की बात नहीं कर रही हूँ, जो अनैतिक हैं। लेकिन धार्मिकता में भी बड़ी गलतियाँ हो गयी| बहत गलतियाँ हो गयी है। सभी माफ़ हो सकती है, क्योंकि अज्ञान में बालक कुछ भी कर दे। किंतु प्रेम ऐसी परम शक्ति है कि वो सभी गलतियों को माफ़ कर दें ।

उस परम चीज़ को दान..... इसी प्रेम की शक्ति ने ही सारा संसार रचा है। उसी प्रेम ने आपको बनाया है। और आज आप ही के अन्दर बसा हुआ प्रेम जाग उठता है। इससे सारा संसार प्रेममय हो सकता है। | भारत भूमि एक बहुत बड़ी योगभूमि है। उसे आप आज नहीं जानते हैं। क्योंकि आप के अन्दर वो अभी पहचान नहीं आयी। जब आपके अन्दर से वो चीज़ धड़्धड़ बहने लग जायेगी तब आप जान सरकेंगे कि इस धरती पे ये जो धकधकती राशि है, ये किसी भी देश में कहीं भी नहीं आती। जैसे कीचड़ में कमल खिले हो ऐसे ही हमारे यहाँ बड़े बड़े योग हो गये। कीचड़ बढ़ रहा है, कमल कम हो रहे हैं । कमल की सुगंध कब इतनी होगी, कि जब वो कीचड़ की सुगंध को मार दें।

अगर आपकी तैय्यारी हैं, तो आप के लिये कमल खिलने का समय आ गया। उसके लिये आपको क्या करना चाहिये? कैसे होगा ? क्या करें? इसलिये भी उसकी बात है, कि सहज, स ह ज, सह माने विथ, साथ, ज माने जन्मा हुआ, बॉर्न। आप ही के साथ जो पैदा है, उसके लिए क्या करने का है ? आप ही के साथ आपकी आँख है। आप ही के साथ आपकी नाक है। आप ही के साथ ये सारा शरीर है।..... इसके साथ क्या करने का है? उसी तरह से आपके साथ ये आपका अहंकार पैदा हुआ है। आपका जन्म आप ही के साथ आप ही के अन्दर में व्यवस्थित रूप से संजो कर, सजा कर रखा गया है, जो कि आपकी स्वयं माँ है । वो बारबार आपके साथ जन्म लेती रही , अनेकों बार उसने आपके साथ जन्म लिया है । और वो लालायित है, कि मैं अपने बच्चे को फिर से एक बार दूसरा जन्म दे दें, कि जिससे वो उस महान आनंद को प्राप्त करें। जैसे कि मेरे सामने एक मशिन है आज । आप जानते हैं, इसको पहले खुब अच्छे से तैय्यार किया गया और तब मेरे सामने लाया गया है और तब इसमें से मेरी आवाज आपके पास आ रही है। लेकिन प्रश्न ये है, कि हम लोग सहज नहीं। मनुष्य के लिये सहज होना अत्यंत कठिन होता है। कुत्ते, बिल्लिओं के लिये, पेड़ों के लिये बिल्कुल ही नहीं कठिन होता। एक बात छोटी सी सोचिये, कि जिस दिन आप पैदा हये, उस दिन आप एक सिर्फ इन्सान के रूप में पैदा हुये। चाहे आप हिन्दुस्तान में पैदा होते, चाहे आप इंग्लंड में पैदा होते, चाहे अमेरिका में होते, चाहे जपान में होते, चाहे चायना में होते।परमात्मा ने तो ये सब इंग्लंड, अमेरिका नहीं बनाया, न चायना बनाया, न हिन्दुस्तान बनाया। लेकिन जैसे ही आप पैदा हो गये वैसे ही आप ने सोच लिया, कि आप एक हिन्दुस्तानी हैं। दूसरी बात उस के सोच में आ गयी कि आपके लिये माँ-बाप हैं। तीसरा विचार शुरू हुआ कि आपके घर वाले हैं। ये गाँव आपका है। ये बम्बई शहर हमारा है। उसके बाद शुरु हुआ, कि हमारा ये नाम है। ये हमारा काम है।

ये हमारा ओहदा है। ये सब मिस आइडेंटिफिकेशन्स ऑफ लाइफ है। सब मिथ्या है। सब मिथ्या को हम कितना अपना समझ लेते हैं। उसके लिये जूझते हैं, दुनिया से लड़ते हैं। आफ़त मचाते हैं। लेकिन जो कुछ भी मिथ्या है, वो मिथ्या ही है, मिथ्या रहेगा और मिथ्या है। जो सत्य है ये वो एक ही है, कि आप मनुष्य हैं। और मनुष्य से ही आप अति मनुष्य हो सकते हैं। आप सुपर मैन हो सकते हैं। जिसमें कि आप उस दशा में पहुँच जायेंगे जहाँ से आप देखेंगे, कि ये खेल क्या चल रहा है? परमात्मा की अपनी ही ये शक्ति आपके अन्दर से इसलिये बहेगी, कि आप जानेंगे कि इसकी शक्ति क्या होती है? इनके करामात क्या होते है ? वो काम कैसे करता है? इसके लिये मैं कोई आपको पढ़ा-लिखा नहीं सकती। मंत्र वगैरा कुछ नहीं हो सकता। किसी भी चीज़ से ये चीज़ हो ही नहीं सकती। बड़े बड़े पंडित लोग आते है मेरे पास। मैं तो उनकी विद्वत्ता देख के सोचती हँ कि मैं तो महामूर्ख ही हूँ। लेकिन उनको मैं पूछती हूँ कि, ‘क्या आपने उस आनन्द को पाया, उस परम सुख को आपने पाया, जिसकी चर्चा आप कर रहे हैं?’ कहने लगे, ‘माताजी, वो बहुत कठिन काम है। हमारे बस का नहीं है । उसके लिये ये करना होगा , उसके लिये वो करना होगा। हमारी शुद्धि करनी पड़ेगी।’ काहे की शुद्धि कर रहे हैं? हम तो माँ हैं। हम तो पहले शुद्ध हैं। कोई इस बात को नहीं माने सकता। विद्वानों को कोई माँ नहीं होती। कुछ नहीं होता। वो सब से बड़े हैं।

इतने पढ़े-लिखे हो जाते हैं, कि उनकी कोई माँ भी नहीं होती। ऐसा पढ़ा-लिखा आदमी सहजयोग के काम नहीं आता। एक तरह का विचित्र अहंकार दिमाग में आ जाता है। मैं ये नहीं कह रही हूँ, कि मनुष्य में अहंकार नहीं होता है। अहंकार तो होता है और प्रति अहंकार भी होता है। इगो भी होता है और सुपर इगो भी होता है। उस पर मैं कल आपसे बातचीत करने वाली हूँ। लेकिन उसका जो विद्रप रूप सामने आता है, उसके जो उलझनें हमारे सामने आती हैं, ये इस तरह से हमें जकड़ी रहती हैं, कि मनुष्य उसे छोड़ने के लिये तैय्यार नहीं । उदाहरण के लिये जैसे मैं अमेरिका गयी थी। अब देखिये विद्वानों की बात को। आपको आश्चर्य होगा विद्वान लोग ऐसी बात करते हैं! मुझ से कहने लगे, ‘माताजी, ये जो आप कर रही हैं, उसको कोई रुपया चार्ज करनाचाहिये। कुछ फीस लगानी चाहिये।

वो फलां आये थे, वो २७५ डॉलर लेते हैं और आप मुफ़्त में बाँट रही हैं। तो लोगों को इसकी कोई कीमत नहीं। जो उनको डंडे मार के भेजा उसी की है।’ मैंने कहा, क्या महामूर्ख है। कैसी बात करता है? मैंने कहा, ‘भाई, तुम मेरे प्यार की जो कीमत लगाना चाहते हो लगाओ | अब जब तुम अपने माँ के प्यार की कीमत चढ़ाने के लिये बैठ गये हैं। माने इस महामूर्खता को क्या कहा जाये, कि वो परमात्मा को भी सोचते हैं, पैसे के तमाशे।

मनुष्य इतना अहंकारी पैसों से हो गया है, कि वो सोचता है, कि परमात्मा को भी वो कमा सकता है। वही हाल हमारे मंदिरों में हो गया है, मस्जिदों में हो गया है, चर्चो में हो गया है। जहाँ जाओ वहीं धर्म की दशा हो गयी है। इसमें कौन सा ज्ञान है? इसमें कौन सी विद्वत्ता है मुझे बताईये आप? आप मंदिरों में कहते हैं कि चलो भाई, मेरा १०१ रूपये चढ़ावा ले लो और मुझे मुक्ति दो। अब पैसों से परमिट खरीद रहे हो आप! ‘मैं तो बड़ा दानी आदमी हूँ माताजी। मैंने तो उस मंदिर में इतना रुपया दिया ।’ और पता ये हुआ कि उसमें जो पुजारी साहब थे, मैंने देखा, वो महाराक्षस थे। मथुरा में जहाँ कृष्ण बसे। उन्होंने सारी अपनी लीलायें की। आपको आश्चर्य होगा मैं मथुरा में गयी तो देख के दंग रह गयी, कि वहाँ के जो पुजारी लोग हैं वो .......(अस्पष्ट) औरों का तो मैं नहीं कह सकती। सभी वही अनुचर हैं जो कंस के अनुचर थे और राक्षस थे। और आज सबको लूट रहे हैं। कोई भी धार्मिक आदमी पैसे की लूट नहीं पाता। दूसरे के पैसों पे रहने की उसकी आदत नहीं होती। उसकी दानत ही ऐसे नहीं होती कि उसे कोई खरीद ही नहीं सकता। उसको खरीदने वाला नहीं हो सकता। उसको जो खरीद रहे हैं वो क्या धार्मिक होगा ! मनुष्य की बुद्धि इतनी बेवकूफ़ हैं कि वो धर्म को खोजना चाहती है। कितनी असहज बात है। इंपॉसिबिलिटी की बात है।

आप इंपॉसिबिलिटी की बातें करते हैं कहना कठिन है। जरूरी कठिन है। कितनी असहज कल्पना हैं कि आप परमात्मा को पैसे दे कर खरीद रहे हो। लेकिन आज देखती हैँ, मैं जब से पैदा हुई हूँ, मैं देखती हूँ कि धर्म के नाम पर सिर्फ वही धंधा चला है। कोई भाषण दे के पैसा कमाता है, कोई कुछ कर के पैसा कमाता है। सब मोटरे खरीद रहे हैं। घर खरीद रहे हैं। मकानात खरीद रहे हैं। परमात्मा के भक्तों के पैसे से मोटरें खरीदना ।

और आप लोग भी क्या ? आप लोग तो इसे मानते हैं, तभी इन लोगों को इतना बड़ा बड़ा बना के रखा है। ये आप का भी एक बड़ा भारी दोष है। इन लोगों की मान्यता आपको बहुत ज़्यादा है। क्योंकि आपका एक अहंकार भी उसमें होता है कि चलो दो रुपये मैं हमने भगवान को खरीद लिया। वो भी आप की कमजोरियाँ खूब जानते हैं। पैसे से आप परमात्मा को नहीं खरीद सकते। ये बड़ी ही असहज बात है। जो जीवंत चीज़ है उसको आप खरीद नहीं सकते। प्यार को खरीदने की बात करना प्यार का बड़ा अपमान है और महा पाप है। और इन लोगों को भी ज्ञान देना चाहिये कि परमात्मा की अथॉरिटी बगैर लिये बगैर जो आदमी धर्म की बातें करता है, और गुरु बन के बैठता है, वो महापाप करता है। परमात्मा से . और उसके लिये बहुत बड़ी सजा | पैसे कमा लेंगे यहाँ आप। रूपया कमा लेंगे यहाँ आप। लेकिन परमात्मा के साम्राज्य में ऐसे आदमी को माफ़ी नहीं मिलेगी। ये समझ लेना चाहिये। इस तरह की बात न सोचना चाहिये न करना चाहिये। ये कोई सोशिओ- इकॉनिमिक अॅक्टिविटी नहीं है। सब ने धंधा बना लिया है। धर्म का आप धंधा नहीं बना सकते। अभी मैं आप से कह रही हूँ लेकिन अभी जाते जाते मंदिर दिखायी देंगे तो आप दो रुपये वहाँ चढ़ा के जाएंगे। ये मनुष्य की असहजता है। इसका मतलब ये नहीं कि मंदिरों में परमात्मा नहीं लेकिन वहाँ बैठ कर भुगत रहे हैं कि हे राम! मुझे इसलिये यहाँ बिठा दिया है और सामने मेरे एक राक्षस बैठा हुआ सब से पैसे नोच रहा है।

मेरे भक्तों से नोच रहा है। वो रो रही है ये माँ घर मैं , ये कल्कि कहाँ दिखा दिया। इसका ठिकाना करो। असहज, सारी ही बातें असहज में आयी। दूसरा तरीका ये है कि आप अपनी शुद्धि करा रहे हैं। पहले तो शुद्धि होती, पैसे दे दे कर के बहुत से लोग शुद्धि करते। लेकिन यह पैसे से नहीं, मन से अपनी शुद्धि कराना। जो करने वाला है, वही तो गड़बड़ है। जो करने वाला है, वही तो गड़बड़ है। उससे अब आप क्या करा रहे हैं। जैसे कि आपने यह तय कर लिया कि हमें शुद्धि करानी है, आप समझ लें आपकी शुद्धि नहीं हो सकती। क्योंकि शुद्धि जिस वजह से होती है, जो ढोता है, जो उसको स्वच्छ करता है, वो पानी ही आपके पास नहीं है। वो वाइब्रेशन्स ही आपके पास नहीं है, जिससे आप शुद्धि करा रहे हैं। मैं शुद्धि के तो बिल्कुल विरोध में नहीं हूँ।

लेकिन बेवकूफ़ी के विरोध में हूँ, कि आप अपने हाथ यूँ अगर घुमाये तो शुद्धि नहीं होगी। आपके लिये वो पानी चाहिये की जिससे आप अपनी शुद्धि करें । उसके लिये कम से कम ये वाइब्रेशन्स आपके अन्दर आना चाहिये नहीं तो आप अपनी शुद्धि कर ही नहीं सकते। वो साबून आपके पास आना चाहिये जिससे आप अपनी शुद्धि करें । हवायी शुद्धि नहीं होती है उसमें बड़ा अहंकार आता है। कोई सोचे मैं बड़ा शुद्ध मन हैूँ। शुद्धि कराने के लिये आत्मसाक्षात्कार पहले होना चाहिये। जैसे मंत्रवाद है। मैं मंत्र के विरोध में नहीं हूँ। कभी रहँगी भी नहीं। लेकिन समझ लेना चाहिये, कि हम लोग किसी को टेलिफोन कर रहे हैं, तो उसमें कम से कम कनेक्शन तो जुड़ जायें। नहीं तो किस को टेलिफोन कर रहे जुड़ हो? अपना टेलिफोन खराब कर रहे हो। भगवान के मामले में हम तो ये सोचते हैं, कि हम जो भी कहें वो ठीक है और जैसा भी करें वो ठीक है।

वही मनुष्य की असहज भावना है, कि परमात्मा के बारे में अपनी कल्पनायें बना के रखना ये मनुष्य की महामूर्खता है। क्योंकि वो जैसा है वैसा है। उसको आपको देखना है, जानना है, तब उसके बारे में आप सोचिये। आपने अपने मन से ही सोच लिया, कि ऐसा भगवान हैं। ये भगवान है। मेरा लॉटरी का विचार नहीं था, भगवान ने मेरे पर बड़ी कृपा कर दी।

अरे, उनको कोई धंधा है या नहीं, कि तुम्हें लॉटरी का टिकट देने के लिये भगवान बैठा है। परमात्मा जैसा है वैसा है। जो आपको देना है, वही देगा। आप के कहने से नहीं देने वाला। कल अगर कोई बच्चा मुझ से आ के कहे, कि माँ, मुझे जहर दो। तो क्या मैं उसको जहर दूँगी? वो अगर कहे कि, ‘माँ, मुझे किसी तरह से मेहनत कर के ऐसी चीज़ ला दो जो मेरा एक मनोरंजन मात्र हो जाये किसी तरह और बाद में मेरी खोपड़ी फूट जायें।

क्या ऐसी चीज़ मैं उसे दूँगी? हम अपने बच्चों को वही चीज़ देते हैं जो असलियत होती है, जो अॅबसल्यूट होती है। वही देना चाहिये, जो माँ-बाप ऐसी चीज़ नहीं देते , गलती कर रहे हैं। वो माँ-बाप नहीं, गलत माँ-बाप हैं। परमात्मा से भी जो माँगना है वो परम ही माँगिये। और कोई चीज़ माँगने की नहीं है। उसके पास परम नहीं है । | ये क्या माया और छलकपट, ये उससे माँग रहे हैं आप? इस चक्कर में आप दौड़ रहे हैं।

उससे सिर्फ आपके अन्दर से भय, आशंकायें और आफ़तें मची हयी हैं । जिसमें आपके सर में सारे टेंशन भरे हये हैं और आप परेशान हैं। ये भी कोई माँगने की चीज़ है! अगर राजा के पास जाईये तो बादशाहत माँगिये। कोई भिखारी के पास जा रहे हैं क्या ? लेकिन मनुष्य है असहज। वो असहज है । जो लोग इस तरह की चीज़ें उनको करामात कर के देते हैं, उसको बहुत अस्पष्ट)।

मैं पूछती हूँ उन देशों की ओर देखिये, जिन्होंने सब कुछ पा लिया, मटैरियलिज्म में । जिन देशों में सब कुछ मिल गया है जहाँ नौकरानियाँ आदि मोटरों में घूमती हैं। इन देशों के अन्दर जा कर आपको देखना होगा , क्या वो देश खुश है? वहाँ इतनी आत्महत्यायें क्यों होती है? सब बच्चों ने घर द्वार क्यों छोड़ दिये? घर के लोग क्यों भागे हुये हैं? क्या बात है? किस कारण ऐसा हो रहा है? सोचना चाहिये। क्या हम भी उसी धार में जाने वाले हैं? उसी चूल्हे में अपने को जलाने वाले हैं? क्या हम भी उस खाई में उतरने वाले हैं? क्या उसी रस्ते से इस योगभूमि के भी वासी गुजरने वाले हैं?

उसी दशा में से भी निकल कर के हमारे बच्चे हिप्पी हो कर के और गांजा पीते हुये दौड़ेंगे तब हम लोग जागने वाले हैं और तब हम समझने वाले हैं कि रास्ते को शॉर्ट .(अस्पष्ट) करो। गलत बात है। सुख, समाधान, आनंद हमारे अन्दर है। कल इसका मैं कोई आपको आदेश नहीं देती। इसके लिये कोई मैं आपको शिक्षा नहीं देती। इसके लिये कोई मैं आपको नियम वगैरा नहीं दे सकती। उसको कोई पढ़ा नहीं सकता।

जो एक बीज अपने आप से उग आता है, उसी तरह से आप ही के अन्दर बसा हुआ आप ही का बीज अपने आप उग जाता है। मैं तो केवल थोडासा प्यार का पानी उसमें डाल देँ। और जब आप का बीज जग जाएगा, तो आप भी प्यार का पानी दूसरे में डाल सकते हैं। जब एक दीप जल जाएगा वो दूसरा दीप जलाएगा। सहज में ही जीवन की परती है

मनुष्य की कृत्रिमता से कोई जिंदगी नहीं बन सकती, कोई लाइफ नहीं बन सकती। लेकिन इस चीज़ को आप बुद्धि से जान लीजिये, और समझ लीजिये, तो ही ये चीज़ अन्दर साक्षात् में, तो ही सत्य दूर से ही दिखायी देता है। सत्य हमारे साथ में एकाकार नहीं होता। आयडेंटिफाइड नहीं होता है। सत्य को तो हम खूब जानते हैं कि किताबों में देखते हैं, पढ़ते हैं। लेकिन सत्य हमारे साथ आयडेंटिफाइड नहीं होता। सत्य जो है हम से दूर ही रहता है। सत्य को हम देखते हैं। उसका दर्शनमात्र होते रहता है। और ऐसा लगता है, कि कोई छलता है। समझ में नहीं आता। माना की सत्य यही है। लेकिन सत्य से हम एकाकार नहीं हो पाते। उससे तादात्म्य नहीं हो पाते। क्या वजह है? जानबूझ कर के ही कोई बँधे हैं। वो कल बताऊँगी मैं। वजह क्या है? वो तो कल बताने वाली हूँ।

लेकिन आज तो मुझे यही बताने दीजिये, कि इसकी पार्श्वभूमी क्या है? ये चीज़ सहज में होती है, कुछ करने से होती नहीं। अपने आप से होती है। और यही होने वाली है। ये नया डाइमेंशन खुलने ही वाला है। और वो क्योंकि आपके होश में होने वाला है इसलिये किसी को इसके बारे में कहने का नहीं है। मुझे आपको गुरु-उरु नहीं मानना चाहिये मेहरबानी कर के। मैं तो माँ हूँ। माँ तो बच्चे के चरण ही धोती है। उसको नहलाती है। उसको प्यार करती है। वो गुरु सिर्फ देती ही रहती है। कुछ चाहती नहीं। कुछ माँगती नहीं। वो तो सिर्फ प्रेम ही करती है। उसको चाहे मारो, पीटो, उसकी चाहे दुर्दशा करो। लेकिन वो प्रेम में ही रहती है। जब आपको ताड़ना देती है वो भी प्रेम में ही देती है। सभी कुछ प्रेम ही में हो रहा है। फिर आप क्या कर सकते हैं ? आप सिर्फ कार्य करें, अन्दर से कार्य करें। जो भी शांत स्वरूप हो। आपको कुछ कहना नहीं होगा मुझे। कुछ करना नहीं होगा मुझे। अपने आप, जैसे के सूर्य की किरण अपने आप इस सहृष्टि अपना जाल फैला कर के आपको जीवनदान देते है। उसी प्रकार ये प्रेम भी फैल | कर आपके अन्दर घुस जायें। आपके अन्दर जा कर के वो कार्य करें। कुछ करने का नहीं। वही सहज है और यही मोक्ष है। आप लोगों को इतनी तादाद में देख कर बड़ी खुशी होती है। इस देश में इतनी परेशानियाँ रहते हुये भी मनुष्य शांति की खोज में, आनंद की खोज, सब कुछ पाने पर पहुँचना चाहता है। गलत ठिकाने नहीं जाता है। ये बड़ी भारी बात, ये पूर्वजन्म के संचित है जो आज आप यहाँ पर हैं। इसके लिये मैं आपको एक छोटी सी कहानी बताऊँगी। एक बार नल ने कलि को पकड़ लिया था। नल को आप जानते हैं, राजा नल। हिंदुस्तान में तो इतना एक्सप्लनेशन नहीं करना पड़ता है। सब जानते हैं । कलि को पकड़ लिया था और कलि से कहा, आओ, मैं तुम्हारी गर्दन ऐसी मरोड़ देता हूँ, की फिर से तुम जीवित नहीं हो। तुमने मेरे साथ बड़ा छल किया । कलि ने सोचा अब तो कोई बचाव है नहीं। तो उन्होंने कहा कि, ‘अच्छा भाई तुम मुझे मार डालो। कोई हर्ज नहीं । लेकिन तुम मेरी महिमा सुनो। तुम कलियुग की महिमा सुनो। तब तुम मुझे नहीं मारोगे।’ ‘क्या महिमा है? अच्छा, बताओ।’ ये महिमा है, कि कलियुग में ही इन पहाड़ों में, कंदरों में घूमने वाले ऋषि-मुनी सोचते हुये, त्राहि, त्राहि करते हुये भटक रहे हैं। |

वो कलियुग में ही एक सर्वसाधारण, सामान्य जन बन कर के गृहस्थी में आएंगे, संत बन कर के और वो पार होने वाले हैं। इसी युग में जहाँ हाहाकार पूरी तरह से हो जाएगा। अधर्म पूरी तरह से पनप जाएगा। तब इन्हीं लोगों के हृदय से धर्म जागेगा और सारे अधर्म को नष्ट करेगा । यही कलियुग की महिमा है। और अगर तुम चाहो तो मुझे खत्म कर दो। लेकिन इन सब का .....।’ और यही बात साक्षात् है। वो समय आ गया है, कि इसी कलियुग में ही कार्य होने वाला है। कैन्सर जैसी बीमारी।

मैं आज भी दावे के साथ कह सकती हैँ, पहले भी कहा है। सिवाय सहजयोग के किसी भी चीज़़ से ठीक नहीं हो सकती। शारीरिक बीमारियाँ इन वाइब्रेशन्स से ठीक हो सकती है अधिकतर। लेकिन बीमारियों में इंटरेस्ट नहीं लेना चाहिये। पहले डॉक्टर तैय्यार करने होगे। पहले डॉक्टर तैय्यार हो जायें । एक हजार ऐसे डॉक्टर तैय्यार हो जायें। वक्त बहुत है। उसके लिये आपको डॉक्टरी पास करना नहीं होगा। क्योंकि यहाँ पर ऐसे हाथ करना है, ऐसे हाथ करना है। वाइब्रेशन्स आ गये, बस हाथ घुमा देना है काम खत्म। इशारे के पाते ही सारी प्रकृति जब आपके अन्दर से बहने लगेगी। आपको आश्चर्य होगा , कोई सहज में ही आपके कार्य को कर सकता है। बहुत ही सहज में, अपने ऊपर आश्चर्य होगा। बहुत से लोग कहते हैं, ‘माताजी, हम तो बड़े पापी है। हमें कैसे हो सकता है?’ मैंने कहा, मेरे सामने ऐसे नहीं कहो ।

कोई बच्चा अपनी माँ से जा के कहे कि, ‘माँ, बहत पापी हैँ मैं।’ माँ को क्या बहुत खुशी होगी? ऐसे मेरे आगे नहीं करो। ऐसा कौन सा तुम्हारा पाप है जो मैं नहीं खा सकती ? ऐसा कौन सी तुम्हारी गंदी बात है जो मैं शोषण नहीं कर सकती ? ऐसा कौन सी दुर्घटना है जो मेरे केस में नहीं आ सकती? सभी चीज़ को धमा सकती है। माँ की शक्ति ऐसी प्रचंड होती है। उसको न ललकारो! किसी के अन्दर द्वेष होता है। क्योंकि जब आप दौड़ पड़ते हैं, जब आपका वो रास्ता शुरू हो जाता है तब मेहनत करनी पड़ती है। बहुत से लोग तो बगैर मेहनत कर के ही स्टेडी हो जाते हैं जैसे हमारे यहाँ एक आये हुये हैं, अमेरिका से, उन्होंने बहत कार्य किया। एक ही बार में सहजयोग का पाया । लेकिन से लोग डाँवाडौल डाँवाडौल होते हैं। खास कर बच्चे। बच्चे बड़े सहज होते हैं। जब पाने जाते हैं उनको बहुत कभी नहीं प्रॉब्लेम होता है । उसमें जमे रहते हैं । लेकिन बहत से लोग ऐसे होते हैं, जो पार हो जाते हैं लेकिन फिर पकड़ते हैं, फिर पार हो जाते हैं। फिर पकड़ते हैं, फिर पार हो जाते हैं। अभी एक मुझे नागपंथी बाबा मिले थे। आप ही के साथ उन्होंने चरण छुये थे। कहने लगे, ‘माताजी, मेरा आज्ञा चक्र और विशुद्धि अभी पकड़ा हुआ है।’ उन्होंने कह दिया। कहने लगे, ‘बड़ी मेहनत से मैंने कुण्डलिनी चढ़ाई । बड़ी मेहनत की।’ ’एक साधू ने तो मुझे कहा, इनलोगों को सब को बताया कि, ‘एक्कीस हजार तपस्या के बाद मुझे वाइब्रेशन्स छूटे हैं। माताजी ने बड़े प्यार से तुम लोगों को दे ही दिया। पता नहीं तुमने पूर्वजन्म में क्या पुण्य किया था! मैंने तो लकड़ी काटी इतने साल। जंगलों में रहा। किसी से दुनिया में मिला नहीं। उसमें जमे रहते हैं । लेकिन बहत से लोग ऐसे होते हैं, जो पार हो जाते हैं लेकिन फिर पकड़ते हैं, फिर पार हो जाते हैं। फिर पकड़ते हैं, फिर पार हो जाते हैं। अभी एक मुझे नागपंथी बाबा मिले थे। आप ही के साथ उन्होंने चरण छुये थे। कहने लगे, ‘माताजी, मेरा आज्ञा चक्र और विशुद्धि अभी पकड़ा हुआ है।’ उन्होंने कह दिया। कहने लगे, ‘बड़ी मेहनत से मैंने कुण्डलिनी चढ़ाई । बड़ी मेहनत की।’ ’एक साधू ने तो मुझे कहा, इनलोगों को सब को बताया कि, ‘एक्कीस हजार तपस्या के बाद मुझे वाइब्रेशन्स छूटे हैं। माताजी ने बड़े प्यार से तुम लोगों को दे ही दिया। पता नहीं तुमने पूर्वजन्म में क्या पुण्य किया था! मैंने तो लकड़ी काटी इतने साल। जंगलों में रहा। किसी से दुनिया में मिला नहीं।

तब कहीं जा कर, एक्कीस हजार वर्ष मेहनत करने के बाद, जन्मजन्मांतर के बाद में मेरे वाइब्रेशन्स टूटे हैं। और तुम लोग मुफ्त में पा लिये हो। और आज माँ तुम्हारे हाथ-पैर धोती रहती है।’ यहीं काम करते, जंगल में जाने को किसने कहा ? घर में रहते। शादी – ब्याह करते। बच्चे होते ठीक होता। कोई माँ को अच्छा लगता है बच्चे संन्यासी हो। अपनी जान माँगने की क्या जरूरत है? शांति से रहो, आराम से रहो, खाओ, पिओ, मौज करो। अब मौज करो, कहने के साथ शुरू हो जाता है दुसरा धंधा। मेरी समझ में नहीं आता । मैंने अगर कह दिया मौज करो, तो चले शराबखाने। सब से तो कमाल ये लगता है, जो लोग शराब को मना कर गये, उन्हीं के शिष्य पक्के शराबी है। जो चीज़ जो कह गया उससे बराबर अपोझिट हो रहा है। अभी मैं तेहरान में गयी थी। वहाँ देखा, मैंने कहा कि, मोहम्मद साहब तो कह गये थे कि शराब मत पिओ।

तो वहाँ तो शराब पे उमर खय्याम ने कवितायें लिखी। उसके कैसेट बनाते हैं उमर खय्याम के। पहले तो उसे जूते मारो। उसने शराब के मंदिर बनाये। तुम्हारे जमीन पर मोहम्मद साहब जैसी हस्ती हो गयी। कुछ अकल करो , कुछ समझो। हिंदुओं को एक बात बतायी, कि सब के अन्दर एक ही परमात्मा रहता है, तुम्हारा बार बार जन्म होता है। तुम कभी महार भी हो सकते हो, कभी ब्राह्मण भी हो सकते हो।

कभी मुसलमान हो सकते हो। वो इतने कट्टर हो गये। पुणे में गयी थीं। वहाँ एक साहब कहने लगे, आप ब्राह्मण नहीं। आप धर्म पे कैसे कह रहे हैं? मैंने कहा, ब्राह्मण है, सामने आओ। सामने आये तो यूँ यूँ हालत। मैंने कहा, ‘ये क्या? अपना ब्राह्मणत्व सम्भालिये। ये क्या हो रहा है? थरथर थरथर क्यों कॉप रहे हैं?’ कहने लगे, ‘आप शक्ति है इसलिये कॉँप रहे हैं।’ 'मैंने कहा, ‘ये पागल आदमी काँप रहा है, तुम भी काँप रहे हो । दोनों एक हो।’ बाकी के क्यों नहीं काँप रहे हैं? ब्राह्मणत्व तब होता तुम है, मुसलमान तब होता है, ईसाई तब होता है, जब वो जाग जाता है। जब उसका पुनर्जन्म हो जाता है । उससे पहले के ये सब बँड कौन लगा रहा है! किसने अधिकार दिया? किसने बताया? उसका ब्रँड लगा लगा घूम रहा है हम फलाने, हम ठिकाने। ये सब भगवान के आगे नहीं चलती है नोटें। इधर उधर चला लेते हो। भगवान के पास में तो असली वाली नोट चलेगी। नकली वहाँ चलता ही नहीं है । किसी भी तरह से कुछ भी घपला करो। इसलिये जो भी | नोटें लगायें हम फलाने हैं, हम ठिकाने हैं हम तमके हैं, ये वहाँ चलने वाला नहीं। और जो लोग ऐसी फालतू चीज़ों पे विश्वास करते हैं और कट्टरता रखते हैं, वो सहजयोग के योग्य नहीं । अपने ही धर्म का आप अपमान कर रहे हो । मुसलमान अपने धर्म का अपमान कर रहे हैं, ईसाई लोगों को ईसा ने बता दिया था, एक चीज़ को कह गये थे, कि भूतों को मत मानना। भूत जो होते हैं खराब होते हैं। स्पिरीट को बिल्कुल मत छूना, परमात्मा के विरोध में, उनसे ज्यादा और किसी ने खुलेआम नहीं कहा है। वहाँ गुरु नानक ने भी कहा था। लेकिन जितने भूत वहाँ बचे ह्ये हैं, उसका वर्णन ही मैं आपको नहीं कर सकती। प्लँचेट वो करते हैं, फलाना वो करते हैं, उसके अलावा जो कमी थी, इधर से गये हैं बहुत सारे। वो सब उनको लपेट रहे हैं, समेट रहे हैं। किसी किसी ने तो पैंतीस पैंतीस रोल्स रॉइस खरीद ली। एक धंधा निकाला उन्होंने ।

इस तरह की चीज़ें हैं । जिस चीज़ को कहा गया वही चीज़ उसके भी उल्टे, जो धर्म के साथ कहा है वो धर्म नहीं है। धर्म को पूरी तरह से बताना है। और खास कर हिंदू धर्म जैसे ऊँचे धर्म को। जिसको की ऋषि मुनियों ने न जाने कितना ही पता लगाया है। कितनी चीजें पता लगायी। आश्चर्य लगता है, कि ये मानव, इसने कितना जाना! ये जानकारी कैसे जानी? मैं जब देवी महात्म्य को पढ़ती हूँ तो मैं सोचती हूँ, कि मार्कडेय स्वामी क्या माइक्रोस्कोप ले कर बैठे थे। इतना बारीक उन्होंने कैसे जाना? आदि शंकराचार्य को जब पढ़ती हूँ तो दंग रह जाती हूँ।

कैसे उन्होंने एक-एक छोटी बात को जाना, हूँ का मतलब क्या है? हाँ का मतलब क्या है? हीम का मतलब क्या है? इसका पता लगाया। एकदम शरणागत। बहुत मुश्किल काम है। बहुत मुश्किल काम है। पता नहीं कैसे ये पता लगाया? इतने बड़े धर्म की अगर स्थापना हयी है, वो एक आदमी पर नहीं हुई। कट्टरता का तो सवाल ही नहीं उठता। ये होना ही नहीं चाहिये। और जो इन लोगों ने पता लगाये हये हैं, वो सब सच्चे हैं। लेकिन उनके रटने से या उसके कहने से उस सत्य का आपको दर्शन नहीं हो सकता। जब तक आप सत्य के अन्दर साक्षात् न करे, आप स्वयं सत्यस्वरूप ना हो। सत्य के खोज में बहुत लोग घूमते हैं। लेकिन असल में असत्य में ही पड़ जाते हैं। इस वजह से की असहज होता है। सहजता तब होती है जब दुनिया में सत्य ही पाएंगे।

सत्य के बगैर हम और किसी चीज़ को नहीं मानेंगे। यहाँ तक कि मुझे भी मानने की कोई जरूरत नहीं । माने मेरा कोई इन्कार भी नहीं करना चाहिये आपको | लेकिन मुझे कोई मानने की भी जरूरत नहीं अँधे आँख से कि, ‘हाँ माँ, ठीक है, ठीक है।’ नहीं । जब आपके अन्दर साक्षात् होगा तो आप स्वयं जान जाईयेगा कि मैं आपको कोई बात झूठ नहीं बताती हूँ । मुझे आप से कोई छलकपट नहीं करना है। मुझे आप से कुछ लेना नहीं। सिवाय इसके कि आप इस कल्याण को पा ले। उस परम गति को पा लें। उसके बारे में बहुत बार बहुत बार आशीर्वचन होगा। आपके बँक में अकाऊंट है, उसको मैं कॅश करना चाहती हूँ। मैं तो सिर्फ एक कॅशिअर मात्र हूँ। लेकिन जिसका कुछ भी अकाऊंट नहीं होगा, उसका क्या किया जाये ? थोडा बहुत तो होना चाहिये। ओवरड्राफ्ट नहीं हो सकता। लेकिन थोडा बहुत अकाऊंट परमात्मा के पास भी होना चाहिये। जैसे बहुत से लोग मेरे पास आते हैं, माताजी, वो तो ठीक हो गये। हम नहीं ठीक हुये। सोचने की बात है। अगर माँ का प्यार सभी के लिये ठीक है तो ठीक करना है। एक माँ के सभी बच्चे एक जैसे होते नहीं। और परमात्मा तो पुरुष है, वो तो बाप है, वो तो आपको पता है भाई, क्या करें? वो भी जानता है कि आप अगर दुष्ट हैं, कल अगर हिटलर कहें कि साहब, मेरे लिये आप राज्य दे दीजिये। तो उसको कौन राज्य देगा ? उसको तो कुछ सजा हुई नहीं। बहुत सजा होनी चाहिये। पुरुष को ये भी नहीं समझ लेना चाहिये कि हम अगर सहज में हैं, हम अगर परमात्मा के चरणों में हैं, तब तो परमात्मा हम से बहुत खुश हैं। और इस मामले में आप कुछ ढोंग नहीं कर सकते। आपके वो सब जानता है। उसको आवाज आती है, वो सब जानता है। हर एक चीज़ जानते है। वो तो वो क्या, में ये जो बसी हुई छोटी सी कुण्डलिनी है, जो आपके अन्दर वो शक्ति बसी हुई है, वही टेपरेकॉर्डर जैसे उसके अन्दर सारी चीज़ होती है। और वही टेपरेकॉर्डर जो है, उसका जो टेप है, वो टेप जानती है कि कब आप पार अन्दर हो सकते हैं। वो तभी उठेगी, वो तभी चलेगी जिस वक्त में आप ऐसे आदमी से साक्षात् करेंगे, जिसके पास धर्म की ऑथॉरिटी है। बाकि के कुण्डलिनी के खेल करते हैं, बहुत तमाशा करते हैं। ये कुण्डलिनी की जागृति नहीं करते हैं, ये तो गणेश जी का उसमें अपमान करते हैं बहत बड़ा। वो तो द्वारे रखते थे, उन सब गधों को जानते हैं, अगर आप होते तो आपकी कुण्डलिनी जागृत करेंगे तो मारे तमाशे बन जाएंगे । वो ऐसी किताबें लिखते हैं, कि उसमें हाथ जलता है। इसमें होता है। आपको किस ने कहा था, कुण्डलिनी को हाथ लगाने को? आप होते कौन हैं? आप की माँ अन्दर बैठी हुई है, उसके द्वाररक्षक श्री गणेश बैठे हये हैं। वो चिर के बालक हैं। उनको मालुम हैं, कि उनकी माँ लज्जा से ढकी हुई है। उसकी इज्जत, उसकी अब्रू सम्भालना उसका कर्तव्य है। आप जब गलत रास्ते से उन पर अपना अधिकार जमाना चाहते हैं। वो तो कुछ भी नहीं करती है। लेकिन उनका जो लड़का है न, वो बड़ा दुष्ट है। सुनता नहीं। उसको कितना भी समझाओ, सुनेगा नहीं। ऐसा बिगड़ जाता है, कि आपकी आहट हो जाती है। एक साहब अभी दिल्ली में मेरे पास आयें। कहने लगे, ‘कुण्डलिनी जागृत हुई, गर्मी के मारे हालत खराब।’ मैंने कहा, कुण्डलिनी तो इतनी ठंडी है, कि उसका टेंपरेचर – २ डिग्री है। जैसे रूठ गयी हो। वो एकदम ठंडी चीज़ है । ठंडे वाइब्रेशन्स आते हैं उसमें से। वो जो गर्मी हुई ना, आपकी अकल मारी गयी थी। कल मैं कुण्डलिनी जब उठती है किस तरह से उठती है? कुण्डलिनी चीज़ क्या है? उससे घबराने की कोई चीज़ नहीं। आपकी माँ ही है। आपके अन्दर कहाँ बैठी हुई है ? मेडिकली इसे क्या कहते हैं ? साइंटिफिकली क्या कहते हैं? साइकोलॉजी में क्या कहते हैं? ये सब आपको समझायेंगे और इसके अलावा ये भी मैं समझाऊँगी की इसके जागरण के वक्त में क्या क्या होता है? आप में कौन से चेंज आ जाते हैं? आपके माइंड की कौनसी दशा हो जाती है? इस पर मैं आपको विवेचन करूँगी। कल भी आप आईयेगा और परसो भी आईये। तीन दिन जरूर आना | होगा । एक दिन में लोग सोचते हैं कि जैसे चलो वहाँ पानी पी के आ गये तो चलो माताजी का भाषण सुन के आये। आप लोग थोड़ा समय निकालिए;आज कल हम घड़ियाँ बाँधते हैं समय बचाने के लिये। सिर्फ एक चीज़ के लिये हम समय बचा रहे हैं अगर आप ये सोचिये कि अपनी उत्क्रांति के लिये, अपने अॅसेंट के लिये, अपने जंग के लिये और किसी चीज़ के लिये हम समय नहीं बचा रहे हैं। न हम समय बचाने के लिये सिनेमा में जाएंगे।

मैं सिनेमा के विरोध में नहीं हूँ। लेकिन समय अगर बच रहा हैं आपका कहीं भी तो वो अपनी उत्क्रांति में देना है। तीन दिन का आप लोग जरूर समय दो। और बड़ी तादाद में कल आयें और इसको पायें। पाने की चीज़ ये है। बहुत आसानी से यह हो सकता है। अभी इसके बाद में हम थोड़ा सा इसका प्रॅक्टिकल आपको दिखाने की कोशिश करेंगे । जो आपको मिलेगा आपके अन्दर। बहुतों को हो भी गया था। एक क्षण में हो जाता। एक क्षण में आदमी पार हो जाता है। जैसे उसकी तो तैय्यारी अगर हो, समझ लीजिये, आपको अगर कोई फिजिकल एलिमेंट है, आपको कोई शारीरिक व्यथा है, कुण्डलिनी रुकती है। ‘आप इसे ठीक करो, फिर मैं उठूँगी।’ तो मैं ठीक भी कर देती हूँ। और इसी सिलसिले में आप ठीक भी हो जाते हैं। लेकिन ठीक करना कोई मेरा कर्तव्य नहीं। वो तो कुण्डलिनी करती है। वो करवाती है ।लेकिन जो आदमी कभी ध्यान में भी न आये, जिसको परमात्मा के प्रती कोई रुची भी न हो, वो आये मेरे पास, माताजी, मैं आपके पास, जैसे मराठी में कहते हैं ‘मुद्दामहून आलो,’ मैं जानबूझ के आया हूँ। मैंने पूछा, ‘क्यों आये?’ मैंने सोचा भागते हुये कोई मेरा बेटा चला आ रहा है क्या? कहने लगे, ‘मेरे मामा के, दादा के, फलाने के, ठिकाने के उसको कैन्सर हो गया है। माताजी, उसको ठीक कर दो।’’मैंने कहा, भाई ये मेरे समझ में नहीं आता। ये भी कोई मुफ्तखोरी की हद हो गयी। जो लोग सहजयोगी हैं, जो पार हो गये हैं, उनको वरदान हैं। उनको शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तीनों चीज़ों का वरदान है। उतना ही नहीं लेकिन सांसारिक जीवनदान है। जितने भी लोग पार होते हैं। जो भी लोग पाते हैं। सहज से लोग पिछली मर्तबा भी पार हुये हैं। आप में कुछ बैठे हैं। वो कभी भी सामूहिक तरीके से आते नहीं। इसलिये आपको जान लेना चाहिये, कि ये जो उत्क्रांति हो रही है। ये सामूहिक हैं। ये विराट ही संपूर्ण चीज़ हैं। एक अकेला बैठ के करने वाली तो हिमालय पे करनी होगी। लेकिन कलियुग में संपूर्ण विराट का शरीर जागृत होना पड़ेगा। एक इंडिजिविजूअल की ये बात नहीं है। ये जब आप ध्यान में आएंगे, आप समझ लेंगे कि क्यों माताजी ऐसा कह रही विराट इन्वॉल्व है। पूरा समाज के समाज इन्वॉल्व होना पड़ेगा। पूरा हैं। क्योंकि किसी का एक चक्र ज्यादा बढ़ता हैं, तो किसी का कम बढ़ता, तो किसी का कुछ होता है। वो आपस में चेकिंग करनी पड़ेगी। आपस में लेन-देन करना पड़ेगा। आपस में बाँटना पड़ेगा। अपनी अपनी शक्तियाँ लेनी – देनी | पड़ेगी। तभी काम बन जाएगा। उसके बगैर ये चीज़ तैय्यार नहीं होने वाली। ऐसे तो बहुतों को दिया है मैंने। बहुत मिनिस्टर्स को दिया है, बहुत से बड़े बड़े पदाधिकारियों को दिया है। राजाओं – महाराजाओं, और पता नहीं कौन कौन विद्वानों को, रँग्लरों को और किस किस का नाम लँ। बहुतों को दिया है। लेकिन सब अपने घर में बैठे हुये माताजी ने हमें बड़ा आनन्द दिया। फिर जब कभी मिलते हैं तो , ‘माताजी, मेरे वाइब्रेशन्स तो चले गये| क्या से हुआ?’ ‘अरे भाई, तुम्हारे तो तीन चक्र पकड़े गये हैं। वाइब्रेशन्स तो चले जाएंगे। तुम को आना चाहिये ध्यान में।’ ‘माताजी, मेरे पास टाइम नहीं है ना ! मैं बहुत बड़ा आदमी हूँ।’ इतने आप बड़े हो गये, कि आपके लिये टाइम नहीं, तो बेकार है आपका। ऐसे लोग, जैसे वो चिंपाझीं वगैरा हो गये थे न, ऐसे हो जाएंगे | जो अपने को अतिशय बड़ा समझते हैं। पैसे की हवस। ओहोदे की हवस में। पोजिशन की हवस में। सत्ता के, प्रतिष्ठा के हवस में जो लोग | अपना समय बर्बाद कर रहे हैं, उनका कुछ भला नहीं होने वाला। खास सहजयोग में। सहजयोग में उन्हीं का भला होगा जो थोड़ा सा समय अपने लिये भी निकाल सकते हैं। अपने लिये भी चल सकते हैं, उन्हीं का भला होगा। ये आपके खुद चॉइस की बात है। ये आप अपने फ्रीडम की बात है। आपके अपने सोचने की बात है। इसमें कोई फोर्स नहीं कर सकता है। अगर आपकी इच्छा नहीं होगी, अगर आपका दिल नहीं होगा, आप की स्वतंत्रता में आपने इसे स्वीकार ही नहीं किया हो तो आपको राजा कैसे बनाया जायें ? कोई जबरदस्ती ठेल-ठाल के थोड़ी बिठाया जाएगा। आपकी स्वयं तैय्यारी होनी चाहिये, इच्छा होनी चाहिये, और पूर्ण स्वतंत्रता से होनी चाहिये। इसलिये नहीं की मैं कह रही हूँ। बिल्कुल भी नहीं । क्योंकि आप अन्दर से आंतरिक महसूस कर रहे हैं। इसलिये होगा। मैं कौन होती हूँ कहने वाली आपके लिये आज। अभी तो कुछ नहीं। जब आपकी हो जाऊँगी तब बात दूसरी है। जब आपका समर्पण हो जाएगा, जब हम से रिश्ता हो जाएगा लेकिन अभी तो नहीं। तब तक आप अपने में पूर्णतया स्वतंत्र हैं। आप चाइस करें। सोचें और इसको पा लें।

Bharatiya Vidya Bhavan, Mumbai (India)

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