Brahama Ka Gyan 1978-02-01
1 फ़रवरी 1978
Public Program
New Delhi (भारत)
Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft
ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK कुछ चक्रों के बारे में बता चुकी हूँ। और इसके आगे के चक्रों के बारे में भी आज बताऊंगी। जैसे कि पहले चक्र का नाम मैंने आपसे बताया मूलाधार चक्र है। जो नीचे स्थित यहाँ पर चार पंखुड़ियाँ वाला होता है। और इस चक्र से क्योंकि ये सूक्ष्म चक्र है और इसका जो जड़ अविभाव है, इसका जो ग्रोस एक्सप्रेशन है, उसे पेल्व्हिक प्लेक्सस कहते हैं। और इसमें श्रीगणेश के बहुत ही पवित्र चरण रहते हैं। और उससे ऊपर जो | त्रिकोणाकार यहाँ पर बना हुआ है, इसमें कुण्डलिनी का स्थान है और ये बड़ा भारी महत्वपूर्ण बिंदु मैंने आपसे बताया था की श्रीगणेश नीचे होते हैं और कुण्डलिनी उपर होती है। ये बहुत समझने की बात है। इसी चीज़ को ले कर के लोगों ने बड़ा उपद्व्याप किया हुआ है। कहना कि गणेश जी मूलाधार चक्र में होते हैं, जिसे सेक्स का संबंध से हैं। या तो बिल्कुल ही सेक्स से दूर हटा कर के और कहना कि सेक्स से दूर हट के और सारे ही कार्य करते रहना, ये परमात्मा है। इस तरह की दो विक्षिप्त चीज़ें चल पड़ती हैं । सेक्स का आपके उत्क्रांति (इवोल्यूशन) से कोई भी संबंध नहीं है। कोई भी संबंध नहीं । लेकिन सेक्स से भागने की भी सहजयोग में कोई भी जरूरत नहीं । एक जीवनयापन की वो भी एक चीज़ है। पर इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं जिसे लोग समझते हैं। और एक साक्षिस्वरूप, घर गृहस्थी में, स्त्री-पुरुष के प्रेम का एक साधन है। सिर्फ पति-पत्नी के बीच में ये संबंध होना चाहिये और किसी अन्य के प्रति पवित्रता ही धारण करनी चाहिये। उसके आगे स्वाधिष्ठान चक्र के बारे में मैंने बताया, कि स्वाधिष्ठान चक्र चारों ओर घूमता है, जो कि नाभि चक्र से निकलता है और कमल के डेठ के जैसे वो चारों तरफ़ घूमता है और इस भवसागर में, इस वॉइड में, वो हर तरह के नक्षत्र और हर एक चीज़ की स्थापना करता है। जिसे हम जड़ वस्तु कहते हैं। पृथ्वी तत्त्व तक उसका कार्य होता है। जब मनुष्य कोई भी इस तरह का रचना ( क्रियेशन) का कार्य करता है, तब वो इसी चक्र को इस्तेमाल करता है। इसमें ब्रह्मदेव और सरस्वती जी की शक्ति कार्य करती है। उस दिन मैंने ये नहीं बताया कि ब्रह्मदेव जी ने एक ही बार संसार में जन्म लिया । एक ही बार । उसकी कोई वजह थी। और आपको कहने पर आश्चर्य लगेगा, कि हज़रत अली जो थे, जो मोहम्मद साहब के दामाद थे, वही एक अवतरण संसार में ब्रह्मदेव का हुआ है। एक ही बार। ये भी बड़ी कमाल की चीज़ है। लोग मानेंगे ही नहीं इस बात को लेकिन आप लोग चैतन्य (वाइब्रेशन्स) में देखिये, तो आप समझ लेंगे कि मैं आपसे झूठ नहीं बता रही हूँ । इसलिये जिनको लिवर आदि की तकलीफ़ होती है या इस चक्र के कारण जो मधुमेह (डाइबेटिज) की तकलीफ़ हो जाती है, असंतुलन की वजह से जो मैंने आपसे बताया था, जो रजोगणी लोग होते हैं, उनको जो तकलीफ़ें हो जाती है, उन सब तकलीफ़ों का इलाज है हज़रत अली साहब का नाम लेना । इससे ही तकलीफ़ें दूर हो जाती है। बड़े आश्चर्य की बात है, पर सही है । मुसलमान इसको मान लेंगे तो आप नहीं मानेंगे और कृष्ण को आप मानियेगा तो मुसलमान नहीं मानेंगे। पार होना है दुनिया में। हालांकि ये सभी इसी एक ही शरीर, विराट में बसे रहते हैं।
Original Transcript : Hindi इनका सब आपस में रिश्ता है। क्योंकि हज़रत अली साहब दामाद थे मोहम्मद साहब के और मोहम्मद साहब जो है वो राजा जनक के अवतरण है। उनके जो बेटे थे, हसन और हसैन जिनको करबला में मार डाला था, वो लोग दूसरे तीसरे कोई नहीं हैं, लेकिन सीता जी के लड़के लव और कुश, जो आगे चल कर के अवतरण लेते हैं, जैसे मैंने आपसे पहले बताया था, श्री महावीर और बुद्ध के रूप में। अब ये मैं बात सही कह रही हूँ कि नहीं ये आप अपने सहजयोग के परीक्षण (एक्सपरिमेंट) से देखियेगा। एकदम से किसी बात को मना कर देना भी सहजयोग में बड़ी गलत बात हो जाती है। जब आप पार हुए हैं। आपने कभी वाइब्रेशन्स फील भी नहीं किये थे आपको मालूम भी नहीं था, चैतन्य क्या चीज़ है और ब्रह्म क्या चीज़ है और ब्रह्मज्ञान क्या है? यही ब्रह्म का ज्ञान है। आज तक ये ज्ञान संपूर्ण इसलिये नहीं बताया गया कि हर एक अवतरण अलग अलग जगह एक एक भाव (अँस्पेक्ट) को लेकर पैदा हुआ है। आज वो समय आ गया है कि संपूर्ण, समग्र, (इंटिग्रेटेड), पूरा ज्ञान आप लोगों को उद्घाटित किया जाये। ये सत्य है या नहीं ये सिर्फ आप आत्म साक्षात्कार (रियलाइजेशन) के बाद ही जान सकते हैं, उससे पहले नहीं। और इस देश में अभी भी हजारों ऐसे लोग हैं कि वो कहते हैं कि हम विश्वास ही नहीं कर सकते कि आत्म साक्षात्कार (रियलाइजेशन) भी होता है। वो सोचते हैं कि भगवान ने छोड़ दिया अब दुनिया ऐसे ही तबाह हो जायेगी। इस तरह से परमात्मा के ऊपर बड़ा भारी आरोपण है। जिसने ये सृष्टि बनायी उसको तो इसकी चिंता है ही। उसका कोई न कोई अर्थ तो निकलना चाहिये। उसकी अर्थ (मीनिंग) कुछ तो लगनी चाहिये। नहीं तो इस मेहनत का क्या मतलब हुआ? पर मनुष्य इतना अकलमंद होता है कि वो परमात्मा के बारे में पक्के दिमाग से यही कहता है कि, 'हाँ, ऐसे तो हो ही नहीं सकता। मुझे पूर्ण विश्वास है। आय बिलिव्ह ।' आप किस तरह से विश्वास करते हैं ? किस प्रकार आपने इसे जाना है ? इस मामले में वो एक अक्षर भी नहीं कहेंगे । ये आदमी का बड़ा भारी अहंकार है । सहजयोग में अगर आप हम्बल नहीं हो और अगर आप इस चीज़ को जानें की अभी तक जाना नहीं, अभी हें बहुत जानना है, हमें अभी पाना है। पाने के बाद भी आप एक एक चीज़ उद्धाटन बहुत अच्छी तरह से चैतन्य (वाइब्रेशन्स) से देखिये। जिस आदमी में गहराई नहीं होती वो बहत ऊपरी तरह से सहजयोग को देखता है और सहजयोग को आप ऊपरी दृष्टि से नहीं देखना। इसके बाद में आपको मैंने नाभि चक्र के बारे में भी बताया है। अभी संक्षिप्त में, आप जानते हैं कि नाभि चक्र में ही अपनी विकासपरक शक्तियाँ (इवोल्यूशनरी फोर्सेस) है। जिससे हमारी उत्क्रांति होती है। जिससे हम अमिबा से मनुष्य (ह्यूमन बीईंग) बन गये। जिससे हम देखते हैं रासायनिक विज्ञान (केमिस्ट्री) में, आवर्त-नियम (पिरिऑडिक लॉज) जो बने हुये हैं। वो सब इसी शक्ति धर्म की धारणा से होता है। हर एक वस्तु में उसकी उसकी धर्म की धारणा है। जैसे कार्बन की चार संयोजकता (वैलन्सीज) हैं। हाइड्रोजन की अपनी संयोजकता( वैलन्सीज), ऑक्सिजन की अपनी हैं। उसका पूरा चार्ट बना है। इतना सुन्दर चार्ट बनाया हुआ है कि कोई ये नहीं कह सकता की लॉ ऑफ चार्ट से बना। इतना सुन्दर वो बना हुआ है। उसका फिर से दुहराव (रिपिट) कैसे होता है? उसके कैसे से बने ह्ये है? बहुत देखने योग्य (काबील) चीज़ है। ये सारी धर्म की धारणा जो भी है, ये इस उत्क्रांति की वजह से होती है। माने इन्हीं अण् -रेणुओं के जो धर्म हैं, वो जब बदल जाते हैं, तभी धर्म में उत्क्रांति होती है। आप लोग भी तत्व (एलिमेंट्स) से बने हुये हैं। इन तत्वो (एलिमेंट्स) की धर्म की स्थिती जब बदल गयी, तभी आप धीरे धीरे उत्क्रांति को पहुँचते हुये, आज मानव बन गये। अब मानव से सिर्फ एक ही सीढ़ी और जाने से ही आप उस दशा में पहुँच जाईयेगा, जिसे हम कहते हैं कि आप पार हो गये।
Original Transcript : Hindi लेकिन पार होना क्या है? ये मैं इस लेक्चर के अन्त में बताऊंगी। तीसरा चक्र जिसे हम हृदय चक्र कहते हैं, इसके इस तरह तरफ़ में हृदय है, जहाँ शिव का स्थान, साक्षात् आत्मा स्वरूप जहाँ पे हमारे अन्दर सदाशिव, वैसे तो अपने माथे के ऊपर यहाँ रहते हैं। लेकिन इनको सदाशिव कहते हैं। लेकिन उनका पीठ होते हये भी, जैसे कि यहाँ दिल्ली का पीठ जो है, ये आपकी तख्त है, समझ लीजिये। लेकिन ये सब दूर ढूँढते रहते हैं। इसी प्रकार हालांकि पीठ ये है, लेकिन उनका चक्र जो है वो हृदय में कहना चाहिये या उसको कहना चाहिये, वहाँ उनका प्रतिबिंब है, जो आत्मास्वरूप वहाँ रहता है। ये आत्मा हर समय शरीर में से निकल के और बाहर की ओर आता है। और बहुत बार भटकता है, इधर -उधर देखता है और सारे बात की खबर रखता है। यही आत्मा जो है जिसे कृष्ण ने क्षेत्रज्ञ कहा है। यही जो है, जो क्षेत्र को जानने वाला, क्षेत्रज्ञ, आत्मास्वरूप अपने हृदय में बसता है। यही परमात्मा जिसे मनुष्य परमेश्वरी शक्ति से जानते हैं उसका द्योतक है। इसके बीचोबीच जो चक्र है उसे हृदय चक्र कहते हैं, जो कि कार्डियाक प्लेक्सस को चलाता है। ये हृदय चक्र में जगदंबा का स्थान है । दुर्गाजी का स्थान है । जिनको हमने एक हजार शब्दों में वर्णित किया है । लेकिन उन्होंने अनेक और भी जन्म लिये हैं। ये इस भवसागर में आती हैं और यहाँ पर जो जो भक्त परेशान रहते हैं, उनको आ कर के चेतना देती है। और उनके अन्दर शक्ति भरती है। अब इन्होंने अनेक बार इसलिये जन्म लिया, कि भक्तों की रक्षा करें और उसके अन्दर वो शक्ति दें, जिससे वो दुष्ट का नाश कर सके और दूसरों का पारिपत्य कर सके। उसे इस साइड में, यहाँ पर बनाया नहीं है लेकिन स्थान है यहाँ पर भी, जिसे की हम राइट साइड़ में कहते हैं, चक्र है। ये चक्र, आप देख रहे हैं कि रजोगुण पे, या जिसे कहते हैं पिंगला नाड़ी यहाँ पर इसकी मर्यादा बनी हुई है और यहाँ मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम का स्थान है। यहाँ से दस अवतरणों में से आठवा अवतरण यहाँ पर हुआ और उसके बाद वो एक तरफ़ हो गये। क्योंकि उनको ये भी भुला दिया गया था, कि वो अवतार है। वो पूर्णतया मनुष्य के रूप में संसार में रहे। क्योंकि मानव को ये बताना था कि एक आदर्श मनुष्य कहाँ तक पहुँच सकता है। किस हद तक पहुँच सकता है। इसलिये मैंने आपसे बताया था कि जिस मनुष्य के अपने पिता से संबंध ठीक नहीं हो, या अपने पत्नी से संबंध ठीक नहीं हो, या जो प्रजा ठीक न हो, राजा ठीक न हो, या जो अपने बेटों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करता हो, ऐसे आदमी का ये चक्र पकड़ता है। अगर ये किसी आदमी का चक्र पकड़ा हुआ है, तो उसको जान लेना चाहिये कि कहीं न कहीं उसके व्यवहार में मर्यादा नहीं रह चुकी। स्त्री का अपना स्थान होता है। बहुत से आदमिओं की गंदी आदत होती है, कि अपने स्त्री को अत्यंत बुरी तरह से और गन्दी दशा में रखते हैं और खुद बहुत अच्छी हालत में रहते हैं। क्योंकि वो सोचते हैं कि हम जैसा चाहे वैसा होगा। उनको बहुत सताते हैं,उनको बहुत पीड़ा देते हैं और बहुत से आदमी ऐसे होते हैं, कि जिनमें एक पत्नीव्रत नहीं रहता है। या तो आप विवाह ही ना करें और अगर आप विवाह करते हैं, जो भी कुछ विवाह के, उसके जो मंगल पद है उनके साथ आपको रहना चाहिये। जो आदमी विवाह कर के और उनका उल्लंघन करता है, उसको विवाह करने का कोई अधिकार नहीं और वो इसलिये शासित होता है। हम लोग इसको कुछ समझते ही नहीं हैं। आजकल ऐसी दुनिया हो गयी कि हम इस चीज़ को कुछ समझते ही नहीं हैं । हम सोचते हैं कि वाह, हम तो राजासाहब हो गये।
Original Transcript : Hindi और हमारी तो मेहतराणी घर में हैं। उसके साथ कैसा भी व्यवहार करें हमें तो कोई कुछ करेगा नहीं। ये बात नहीं। आपका ये चक्र पकड़ जाता है। और शारीरिक रूप से (फिजिकली) क्या होता है? शारीरिक रूप से (फिजीकली) जब ये चक्र पकड़ता है, तो आपको श्वास की बीमारी लगती है। आपकी साँस फूलने लग जाती है। अनायास आप चलते हैं तो आपको लगता है कि आपका साँस फूल रहा है। आप में बड़ा क्रोध आ सकता है। इसे क्रोध भी बहुत आ सकता है। और इससे आगे चल कर के आपको फेफड़ों का (लंग्ज) कैन्सर हो सकता है। और इस तरह की अनेक बीमारियाँ हो सकती है। ये जरूरी नहीं कि ये सारी चीजें आपको इसी चक्र की वजह से हो, अनेक चक्रों से भी हो सकती हैं। लेकिन एक बीमारी इससे हो सकती है इस तरह से। इसलिये जो इन्सान अपनी पत्नी का लक्ष्मी स्वरूप उसका मान-सम्मान घर में नहीं रखता है, उसमें अनेक तरह से वो पीड़ित होता है। उसके बच्चे उसकी इज्जत नहीं करेंगे। और अगर बच्चे ने उसकी इज्जत भी की तो भी व्यर्थ हो जायेंगे। क्योंकि माँ ये शक्तिस्वरूप होती है। अपने देश में माँ का बड़ा मान है। और जब मनुष्य ये समझ लेता है कि मेरे बच्चों की माँ है, तब उसे लक्ष्मी स्वरूप अगर न समझे तो उसने श्रीरामचंद्र जी को नाराज़ कर दिया है। इतना ही नहीं हनुमान जी को नाराज़ कर दिया। हनुमान जी की तो ये दशा थी कि उन्होंने श्रीरामचंद्र जी के विरोध में भी सीता जी का समर्थन किया था । तो ऐसे हनुमान जी से बहुत बच के रहना पड़ता है। हनुमान जी तो आप जानते ही हैं कि बड़े ही ....देवता है। वो अगर कभी नाराज़ हो गये तो वो सीधे नाराज़ नहीं होते हैं। उनके तरीके इतने गड़बड़ होते हैं, कि आप लोग बिल्कुल उनके चक्कर में मत आईयेगा। मैं आपको सच सच बताती हूँ कि वास्तविक मनुष्य समझ ही नहीं पाता है, कि हम अनायास ही कितने दु:ख बेकार ही में अपने को जोड़ते हैं। और लोग कहते हैं कि ये तो भगवान ने ही सब दु:ख भरा है। क्या भगवान ने कहा था, कि विवाह करो , विवाह वेदी पर पत्नी बनाओ। और उसके बारे में बेवकूफ़ियाँ करते घूमों । विवाह संस्था जरूर भगवान ने बनायी है। हर विवाह संस्था में वो खुद हाज़िर होते हैं, ये भी बात सही है। लेकिन विवाह के बंधन को हम उसको मंगल और शुभ, कल्याणकारी बनाते हैं कि आफ़त मचाए रखते हैं? खास कर के आज कल के जमाने में इतनी गन्दी प्रथा चल पड़ी है, कि जब भी मज़ाक करना है तो पत्नी का मज़ाक करते है। पत्नी ये बहुत बड़ी पूजनीय चीज़ है। ऐसा कहा जाता है, 'यत्र नार्य: पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः।' जहाँ पे स्त्री पूजनीय होती है, और पूजी जाती है, वहीं देवता का रमण होता है। आज कल जो इतने राक्षस यहाँ आ गये हैं इसका कारण यही है, कि यहाँ नारी जाति का बड़ा अपमान होता है। हालांकि मैं आपसे यह कहुँगी कि हिन्दुस्तान के स्त्री जैसी स्त्री आपको संसार में नहीं मिलेगी। हिन्दुस्तान के माँ जैसी माँ आपको संसार में नहीं मिलेगी। हम लंडन में रहते हैं। वहाँ पे देखा तो आश्चर्य होता है, कि वहाँ की माँयें हैं कि दाईयाँ भी उससे अच्छी अपने यहाँ इस लेती हैं। बच्चों के प्रति उनको कोई प्रेम नहीं, पति के प्रति उनको कोई प्रेम नहीं, जरा सी कोई गड़बड़ तरह की हो गयी तो डिवोर्स करने को तैय्यार हो जाते हैं। घर में कोई काम नहीं करती। आदमी को सुबह से शाम तक बिल्कुल उन्होंने मेहतर बना दिया है। आदमी की तो हालत ऐसी चौखटा दी है और कहते हैं कि हम भी पहले हिन्दुस्तानी औरतें जैसी थी, लेकिन हमने समझ लिया कि आदमी ऐसे नहीं ठीक होता तो उसके हम खोपड़ी पे चढ़ गये। औरत अगर बात करे, तो आदमी का कोई ठोर नहीं। इसलिये मेहरबानी से आप जरा सम्भल जायें ।
Original Transcript : Hindi इस पे है और आपका विचार करें, कि आप होंगे, बहुत बुद्धिमान होंगे, लेकिन स्त्री का आप स्त्री को बहुत दबाईयेगा तो जब वो स्वतंत्रता के नाम पे उठेगी, तो ऐसा आपको ठिकाना लगायेगी कि आप देख ही चुके हैं। एक तो लगा चुकी है आपको ठिकाना। वो उसी यूपी से पैदा हुई जहाँ सीता जी को घर से निकाला .....है। अगर था और अब देखिये जो आई ह्यी हैं। इस तरह के नमूने। इसलिये आप समझ लीजिये कि औरत की जो सहिष्णुता है, उसका जो प्रेम है, उसका महत्त्व करना चाहिये । क्योंकि प्रेम संसार में आखिरी है। जब औरत कठोर (क्रूएल )हो जाती है, तो सोच लीजिये वो मनुष्य से भी ज्यादा, इतनी भयंकर, नराधम हो जाती है, कि आप उससे मुकाबला नहीं कर सकते। इसलिये अपने यहाँ अपनी लड़कियों का आदर करना, अपनी पत्नी का आदर करना, ये बहुत जरूरी चीज़ है। उसके उपर का जो चक्र है, जिसे हम विशुद्धि चक्र कहते हैं। इसके बारे में भी मैंने आपसे बताया था, कि ये श्रीकृष्ण का चक्र है। इसमें राधा जी का वास है। जब श्रीकृष्ण जी संसार में आये, तब पहली मर्तबा मनुष्य की चेतना (अवेअरनेस) में, उसकी चेतना में, व्यवहार कौशल (डिप्लोमसी) आयी। उससे पहले व्यवहार कौशल (डिप्लोमसी) उसे मालूम नहीं थी । वो सीधे साधे, (स्ट्रेट फॉरवर्ड) चलता था। नाक की सीधे पे। उसके बाद कृष्ण ने कहा, ये टेढ़े लोग हैं। इनमें व्यवहार कौशल (डिप्लोमसी) भरनी चाहिये और व्यवहार कौशल (डिप्लोमसी) का मतलब ये होता है, कि जो शुद्ध और पवित्र व्यवहार कौशल (डिप्लोमसी) होती है, वो मनुष्य के लिये कल्याणकारी है। अत्यंत हितकारिणी होती है। जैसे आप जानते हैं कि उनको रणछोड़दास कहा जाता है। एक बार | एक राक्षस को ऐसा वरदान मिला था, कि उसको कोई नहीं मार सकता। ब्रह्मा विष्णु, महेश कोई भी उसको नहीं मार सकते थे और उसने कृष्ण की सारी सेना को मारना शुरू कर दिया। और कृष्ण जी भी वहाँ, उनके साथ समझ गये थे कि इसको तो कोई मार नहीं सकता। क्योंकि इसको वरदान मिला है। लेकिन इसका मारना जरूरी है, कि इन्होंने हाहाकार मचा दिया था। त्राहि त्राहि कर दी। अब क्या करें? क्योंकि इनको तो वरदान मिला हुआ है। तो इन्होंने ये सोचा, कि ठीक है, इनका इलाज किया जायें। तो एक ऋषि थे। बहुत तपस्वी ऋषि थे। और ये ऋषि लोगों के एक ये जरूर मिल जाती है, आशीर्वाद स्वरूप एक शक्ति, कि वो किसी को चाहे भस्म कर सकते हैं। इन ऋषि जी ने बड़ी तपस्या की थी और वो सो गये थे। वर्षों से सो गये थे । उनको ये वरदान था, कि जिस आदमी को पहली मर्तबा आप आँख खोल कर देखियेगा वो भस्म हो जायेगा । चाहे कोई भी हो। तो ये रणछोड़ कर के, रणछोड़दास जी भागते भागते और इस राक्षस को अपने साथ लेते हुए, राक्षस उनको फॉलो कर रहा था, उनकी गूफा में गये और जा कर के उनके उपर एक कपड़ा डाल दिया। अपनी जो शॉल थी उन पे बिछा दी। राक्षस ने सोचा, की ठीक है, यहीं कृष्ण सो रहा है। वो खूब चिल्लाने लगा, 'अच्छा, पकड़ में आ गये अब। कहाँ जाओगे? तुमको तो कोई बचा नहीं सकता। में तो वरदान में हूँ। अब चलो।' जैसे ही उसने कपड़ा खींचा, वैसे ही उठते ही उन्होंने उसे भस्म कर दिया । ये व्यवहार कौशल (डिप्लोमसी) है। लेकिन ये कल्याणकारी और हितकारिणी है । कृष्ण का संहार भी हितकारीणी है। लोग अहिंसा अहिंसा कहते रहते हैं। अहिंसा का कोई अर्थ ही नहीं समझता है। वो कहते हैं कि, जैन लोग खास कर के, कहते हैं कि कृष्ण बहुत खराब थे। वो तो परमात्मा हो ही नहीं सकते। और वो किसी काम के नहीं क्योंकि उन्होंने हिंसा की। अब अगर राक्षसों की हिंसा परमात्मा नहीं करेगा , तो क्या राक्षस को कहेंगे आओ, मुझे खाओ।
Original Transcript : Hindi भाई, तू सबको खाता रहे । राक्षस को ये कहना है! इनकी तो रक्षा नहीं करनी चाहिये ना ! या उनके लिये आप भेजिये बना बना कर के। सब लोगों के शरीर को काट काट कर के भेजिये, की 'हाँ भाई, तुम्हारा ये खाना है। हम भेज रहे हैं।' क्योंकि हम तो साधु-संन्यासी, सहजयोगी हैं। राक्षसों का तो हरण करना ही जरूरी है। उनके बगैर हरण के नहीं होता क्योंकि राक्षस वो जाति होती है, जिनके पास में आत्मा नहीं। जिसके अन्दर कुण्डलिनी नहीं । उनकी आँखें बिल्लिओं जैसी हैं। आपने बिल्लिओं की आँखें देखी होगी। कभी देखी है? बिल्ली की आँख एकदम झपक कर के एकदम बंद हो जाती है और अन्दर की तरफ़ मूड़ जाती है। ऐसे राक्षस आजकल बहुत है। कम से कम सोलह राक्षसों ने जन्म लिया है और छ: राक्षसनियों ने जन्म लिया । आप देखिये , इनकी आँखें आप जा के देखें तो पता चलेगा । कभी कभी तो वो अपनी आँखें उपर ही नहीं करते। ऐसे राक्षस कलयुग में इतने आ गये कि आपके खोपड़ियों में भी घूस गये हैं। मुझे तो ये लगता है, कि कृष्ण ने ये कहा था कि, भाई, 'परित्राणाय साधूनाम्। विनाशायच दुष्कृताम्।' लेकिन यहाँ तो मैं देखती हूँ कि कोई पूरा साधु ही नहीं है। किसी के सिर में एक योगी घुसा है, किसी के सिर में दूसरा भूत घुसा है, किसी के सिर में तीसरा भूत घुसा है । जिसको देखो कोई न कोई गुरू का भूत घुसा कर के यहाँ आता है। और अगर उससे मैं कहूँ कि, 'बेटे, तेरे अन्दर ये भूत घुसा है।' तो मुझे ही मारने को दौड़े। और इसी कारण संसार में कन्फ्यूजन है। और ये जो आज कलयुग बना हुआ है, इसी कारण कन्फ्यूजन और जब तक मनुष्य इस कन्फ्यूजन से निकल जाये तब तक इतना ज़्यादा पीड़ित हो जाता है कि उसकी कुण्डलिनी इस तरह से दुषित हो जाती है, इतनी उस पर चोटें हो जाती हैं, कि उन चोटों को ठीक करते करते हमारे तो हाथ टूट जाते हैं। अब कोई कहेगा कि, 'माँ, हम इतने आये, ये किया और आपने पार नहीं किया। हम तो मेहनत कितनी कर रहे हैं आप जानते हैं। हम तो पूरी मेहनत कर रहे हैं। अब अगर आप पार नहीं हो रहे हैं तो दोष तो ये है कि मैंने कहा, भाई, सेकंड हैण्ड कार हो तो वो भी ठीक हो जाती है। लेकिन एकदम ही खटारा आदमी आयें, तो कुछ तो मेहनत करनी पड़ेगी हमको। तो भी हम तैय्यार हैं। और तो भी आप चिपके ह्ये हैं। खटारा भी गाड़ी आ जाये और उसमें आप एक हाथी बिठा कर लाईये तो हम उसे क्या करें? कम से कम हाथी तो उतार दो। आपके गुरु ने आपको क्या दिया? ये सोचना चाहिये। अगर आप सोचते हैं कि आपको कुछ मिल गया है। तो भाई, मुझे माफ़ करिये। और अगर नहीं मिला तो आप फिर मेरी बात सुनिये। गुरु का नाम लिया तो लोगों के मस्तक एकदम गरम हो जाते हैं। अरे भाई, सोचो । मैं कोई तुमसे रुपया-पैसा नहीं माँग रही हूँ। मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिये। मैं सिर्फ चाहती हूँ कि अपनी संपदा को पाओ। और अगर वो संपदा नहीं मिल रही है , तो मैं तुमसे बता रही हूँ कि ये जिस आदमी, तुम जिसको भी तुमने अपना गुरु माना है ये गुरु के योग्य नहीं। क्यों माना तुमने ? उसका कारण अब मैं आपको आगे बताऊंगी। इसके लिये अगला जो चक्र है उसे देखिये । ये आपकी पेशानी है। ये पेशानी आपके ग्यारह रुद्रों से बनी है । इसमें एकादश रुद्र है। ये बहुत ही बड़ी चीज़ है। मनुष्य की पेशानी बड़ी जबरदस्त है, ग्यारह रुद्रों से माने ग्यारह बड़े भारी चक्र इसके अन्दर है। लेकिन इस ग्यारह चक्रों का बीचोबीच जो चक्र, दस चक्र चारों तरफ़ और बीच में जो चक्र है, ये चक्र देखिये सूर्य की तरह है। और ये सूर्य चक्र है। और इस चक्र में श्रीगणेश स्वयं अवतरित हुये हैं और संसार में आये हैं, जो कि क्राइस्ट हैं खुद। |
Original Transcript : Hindi क्राइस्ट जो हैं ये ब्रह्म है। ब्रह्म का स्वरूप इसीलिये उनका शरीर भी उन्होंने ब्रह्म स्वरूप ही रखा है। एक स्पेशल, समझ लीजिये एक जीव बनाया गया था। आप अगर देवी भागवत पढ़े, हालांकि आप लोग कभी पढ़ते नहीं हैं। मार्कडेय पुराण पढ़ें, उसमें सब में उनको बताया हुआ है। उनका नाम था महाविष्णु। इनके पिता स्वयं, साक्षात् श्रीकृष्ण, विराट है। जो बार बार ये फादर की बात करते हैं, वो श्रीकृष्ण थे। अब ईसाई सुनेंगे तो मुझे मारने को दौड़ेंगे। लेकिन इंग्लंड में ऐसा नहीं होता। अब वो समझ गये हैं। वो जो बार बार अपनी फादर की बात करते हैं, तरह से उनकी जो दोनों उंगलियाँ हैं, एक के विशुद्धि चक्र की उंगली है, एक नाभि चक्र की। नाभि में विष्णुजी हैं और विशुद्धि पर कृष्ण जी । उसके सिवाय और कुछ नहीं जानते। अपने पिता के सिवाय। और अगर आप देवी भागवत पढ़े, उसमें महाविष्णू का वर्णन पढ़े, बिल्कुल, तंतोतंत इससे मिलता है, कि श्रीकृष्ण ने स्वयं अपने से ऊँचे स्थान पे बिठाया है। और अपने बाद उनका जन्म किया है । और उनसे कहा है कि जो जो मुझे लोग अर्क देंगे, जो कुछ भी मैं पाऊंगा, उसका सोलहवा हिस्सा तुम्हे हमेशा मिलता रहेगा । और तुम सारे समस्त संसार के आधार स्वरूप हो और तुम साक्षात् ब्रह्म में ही रहोगे इसलिये तुम्हारा शरीर कभी नष्ट नहीं होगा। क्योंकि कृष्ण ने कहा था कि, 'नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावक: । ' ये जो आत्मा है और जो चैतन्य है ये किसी भी तरह से नहीं मिटता है। चाहे कुछ भी हो जाये। ये मिट नहीं सकता है। ये सिद्ध करने के लिये ही क्राइस्ट का जन्म संसार में हुआ। अब क्राइस्ट नाम पर भी आप ध्यान दे। ये भी नाम क्रिस्त है। और ये क्रिस्त शब्द जो है ये कृष्ण से आया। क्योंकि कृष्ण का बेटा था, इसलिये बाप का नाम चला रहा था, इसलिये उसका नाम क्रिस्त है। लेकिन उसका नाम जीसस भी जो है वो राधा जी का लड़का होने की वजह से, राधा जी ने सोचा, की आज तक यशोदा जी का कभी भी, कहीं नाम नहीं आया। इसलिये य शो दा, माने जीजस। जैसे कि हम कहते हैं, जसोदा। जेसू कहते हैं हमारे यहाँ। अगर जसोदा किसी का नाम होगा तो उसे जेसू कहते हैं और यशोदा को येसू कहते हैं। बहुत से लोग, जैसे मराठी में ईसामसीह को 'येशू' कहते हैं और जसोदा को 'जेसू' कहते हैं। अब ईसाई लोग इस बात को कभी नहीं मानने वाले और आप लोग भी बड़ा मुश्किल है क्योंकि क्योंकि यह सब एक ही बट्टे के हैं । ईसामसीह ने खुद अपने इसमें कहा हुआ है कि, डोज़ हू आर नॉट अगेन्स्ट मी आर वित मी, ' वो कौन लोग है, जो उनके साथ है? वो तो बेचारे तीन साल रहे दुनिया में समझ लीजिये। क्योंकि बारह साल की उमर में तो कश्मिर चले आये। उसके बाद वे वापस गये। तीन साल जीवित रहे। उसमें सब ने उनकी हालत खराब कर दी। तीन साल के अन्दर उनको क्रूसीफाइड कर दिया। वो पूरी बात कहाँ से कर पाते ? तो भी उन्होंने कहा कि 'आय विल अपीयर बिफोर यू लाइक टंग्ज ऑफ फ्लेम' । ये टंग्ज ऑफ फ्लेम हैं ये बिल्कुल कुण्डलिनी के अन्दर फ्लेम जैसे। कुण्डलिनी के जो चक्र हैं, वो टंग्ज ऑफ फ्लेम जैसे, ऐसे ऐसे जीवित, जैसे कोई फ्लेम छोड़ता है। खास कर सहस्रार बहुत सुन्दर है। सहस्रार में अनेक रंगों के फ्लेम हैं। और बीच की जो है, वो बिल्कुल ही स्पटित जैसी बिल्कुल ही ट्रान्सपरंट है। और बाहर से वो सब आरेंज, और निली इस तरह से होते होते, स्पटित कलर में आ जाती है। एकदम कमल के जैसे सहस्रार, इस तरह से है। उसमें एक हज़ार पंखुड़ियाँ हैं। अब डॉक्टर लोग कहते हैं कि नाइन हंड्रेड हमारी वो है और नाइन हंड्रेड एटी टू हमारी मोटर नव्व्हज हैं। ये बेकार के झगड़े करने से कोई फ़ायदा नहीं।
Original Transcript : Hindi उनको खुद सहस्रार को कभी देखना चाहिये। पर आप लोगों को कुछ भी नहीं दिखायी देगा। क्योंकि आपको मैंने बिल्कुल बीचोबीच , अति सूक्ष्म से निकाल कर के वहाँ पहुँचा दिया है। इसलिये आपने कुछ भी नहीं देखा। यही बुद्ध के साथ हुआ था। इसलिये बुद्धेश्वर पे विश्वास होता है। क्योंकि उनके पास माँ नहीं आयी थी बताने के लिये की बेटे ये माँ की वजह से हुआ। अकस्मात एक दिन वो थक के लेटे हुये थे तो सहजयोग से ही वो पार हुये। और कुण्डलिनी बिल्कुल अन्दर से गुजरते हुये बाहर चली गयी। जब आप किसी चीज़ के अन्दर से गुजरते हैं तो बाहर की कोई भी चीज़ नहीं दिखायी देती है। और इसलिये आपको कोई भी चीज़ दिखायी नहीं देती है। अगर कोई चीज़ दिखायी दें, तो सोचना की आप बाहर आ गये हैं। कोई चीज़ दिखायी नहीं देती अपने आप को। जब आप अन्दर से जायें तो सिवाय शांति के और निर्विचारिता के कोई भी चीज़ आपको नहीं दिखायी देगी। ये सहजयोग की पहचान है। ऐसे तो बहुत से लोग कहते हैं कि चलो, तुम्हारा घुमा देते हैं, आज्ञा चक्र। परसों किसी ने कहा था कि ये तीसरा नैन जो है, उसको, वो क्या होता है? यही आज्ञा चक्र है, जो कि हमारे बीचोबीच है, ऑप्टिक थॅलॅमस, जहाँ पर हमारी ऑप्टिक नव्व्हज, जो आँखों की नव्व्हज है, जहाँ बीच में मिलती हैं वहाँ अतिसूक्ष्मता है । और उसकी जो खिड़की है बाहर है, जहाँ मेरा सिन्दूर लगा हुआ है। ये उसकी खिड़की है। और जब आप उसको उल्टा घुमा देते हैं, तब शॉर्टसर्किट हो जाता है । वो भी मैं आपको बाद में बताने वाली हूँ। किस तरह से वो शॉर्टसर्किट होता है और आप चीज़ क्या देखते हैं? इस चक्र पे सब से बड़ा आयुध, जो कि नीचे में गणेश जी का स्वस्तिक था वही उपर में क्रॉस होता है। लेकिन क्राइस्ट का क्रूसिफिकेशन ये उसका मेसेज नहीं । उसका मेसेज उसका रसेरेकशन है। क्योंकि जिस तरह से कृष्ण ने कहा था, कि ये शरीर मर सकता है, लेकिन ब्रह्म तत्त्व नहीं मर सकता। जो ब्रह्म तत्त्व का शरीर था, वो सशरीर उठ कर के संसार से चले गये। ये प्रूफ है उनके फादर का। वचनों का। ये तत्त्व नष्ट नहीं होता। अब आपको आश्चर्य होगा कि यहाँ का मंत्र जो है, वो 'अल्लाह हो अकबर' है, विशुद्धि चक्र का । कान में उंगली डराल कर के आप 'अल्लाह हो अकबर' कहे, तो आपके सर्दी, जुकाम, अभी जो आप खाँस रहे थे ठीक हो जाते हैं। अगर आप पार हैं तो। 'अल्लाह हो अकबर' का मतलब है, अल्लाह जो है विराट है। अकबर माने विराट। और ये श्रीकृष्ण का वर्णन है। मोहम्मद साहब ने खुद ही श्रीकृष्ण का वर्णन इतने जोर से किया हुआ है। जहाँ जहाँ उन्होंने अल्लाह कहा, वहाँ श्रीकृष्ण की बात करी। जहाँ जहाँ क्राइस्ट ने फादर की बात करी, वो श्रीकृष्ण के बारे में है। लेकिन निराकार की बात इसलिये की, कि निराकार की बात किये बगैर लोग जो हैं बिल्कुल जड़ता में फँस गये, जिस देश में याने अपना ही देश समझ लीजिये। यहाँ पर की पहले साकार की बात की गयी। फूलों की बात की गयी। तो लोग कहने लगे, फूलों पर बैठ जाओ। शहद की किसी ने चर्चा ही नहीं की। मूर्तिपूजा हमें लग गयी| मूर्तिपूजा में भी अर्थ है। विग्रहों में भी अर्थ है । सब चीज़ में अर्थ है। क्योंकि मैंने आपसे बताया कि इन सब चक्रों पे देवता बैठे हये हैं। और सब में ही अर्थ है। लेकिन कौन सी मूर्ति सही है ? कौन सी झूठी मूर्ति है? इसका भी पता नहीं। ऐसी बहुत सी मूर्तियाँ होती है जिसके अन्दर भूत बैठे हैं। अधिकतर जो मूर्तियाँ यहाँ से ले कर गये थे, बस अपने घर में रखा, आपके घर में चोरी हो जायेगी। और अगर आपने उसको कहीं अपने बक्से में बंद कर दिया, तो बक्सा का बक्सा ही उड़ जायेगा।
Original Transcript : Hindi आप कर के देखिये। इस तरह की जो मूर्तियाँ देते हैं, वो भूत बिठा के देते हैं। जैसे तावीज़ दे दिया, गंडे दे दिये, अंगूठियाँ दे दी। इन सब में आप जान सकते हैं इतनी बुरी तरह की आत्मायें भरी रहती हैं, कि आप अगर पार हो जाये तो आप उठा के फेंक दे। इस तरह के फोटो भी होते हैं। एक बाबाजी जो यही देते हैं। उनका फोटो एक स्त्री के घर में था। उनके यहाँ वो मेहमान आये तो वो घर में आते ही मेरा तो सर फिर गया। हमारी वो शिष्या थी। कहा 'वो तुम्हारे यहाँ कहीं है क्या बाबाजी?' तो उन्होंने कहा, 'नहीं भाई, मेरे पास तो कुछ भी नहीं ।' उन्होंने बक्सा खोला, उसमें छोटा फोटो था। 'पहले फेको, नहीं तो तुम जाओ घर पे।' मेरा तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं । चालीस से पचास साल के अन्दर हार्ट अटैक आने चाहिये उनके यहाँ। ऐसा कोई आदमी आप बताईये जो उनका शिष्य हो, जो चालीस, पचास के बाद बचा है। कोई भी बताओ। खास कर के पत्नी उनकी शिष्या हो, तो हज़बंड को आना ही चाहिये। आप देख लीजिये सही बात है या नहीं। अगर लगे की मैं झूठ बोल रही हूँ, तो अनेक इसके मैं उदाहरण दे सकती हूँ। बड़े बड़े थे, विंग कमांडर थे, कौन थे ? वो मेरे पास आये उनको हार्ट अटैक आया। उनका नाम क्या है, मैं भूल गयी। हाँ, मेहरा साहब! मेहरा साहब, हमारे वो नंदा साहब थे, उनके ब्रदर इन लॉ। (बाबा कौन?) अरे भाई, एक ही तो है वो झबले वाले। क्यों नाम लेते हैं मेरे मुँह से। नाम बताऊँ उनका असली महिषासुर है। सत्य साईबाबा जिसको कहते हैं। वो असत्य है इसलिये अपने उपर वो लगाये हुये हैं। और वो जो लोग होते हैं वो इसमें भूल जाते हैं, कि उनको अंगूठी दे दी। अब एक रईस साहब मुझे मिले। किसी मिनिस्टर के यहाँ मैं खाना खाने गयी थी। वहाँ बताने लगे, 'देखिये, मुझे इतनी बड़ी अंगूठी दे दी।' एक-दो लाख की अंगूठी उनको दे दीं। एक तो रईस आदमी। मैंने कहा, 'अच्छा, आपको अंगूठी दे दी। आपको बज़ार में नहीं मिलती क्या अंगूठी ?' लेकिन ऐसे महामूर्खों के लिये पैदा हुये हैं। ऐसे जिनके पास ज्यादा पैसे हो गये जरूरत के लिये उनके लिये। सहजयोग में ऐसे रईस लोग कभी नहीं आयेंगे। न तो ऐसे रईस आयेंगे, न तो ऐसे सत्ताधारी आयेंगे। वो रजनीश के यहाँ नंगे हो के नाचेंगे। हमारे यहाँ के दो-चार मिनिस्टर, महाराष्ट्र के, नंगे हो के नाचे रजनीश के यहाँ । और उनके फोटो खींचे गये और फोटो बिक रहे अमेरिका में बड़े बड़े दामों में। क्या कहें? उसमें उनको हर्ज नहीं। और वहाँ ताँता लगा कर बैठेंगे सारे मिनिस्टर दुष्टों के यहाँ, राक्षसों के यहाँ। वहाँ जा के उनसे कहेंगे कि, 'बाबाजी, हमें बताईये।' और उनसे जा के क्या कहेंगे कि 'वो फलाना मिनिस्टर है। वो मेरी जगह आने वाला है। उसका कुछ कर्दन करो।' ये क्या परमात्मा का काम है? फिर उनके छूटभय्यै भी सारे घुमा करते हैं। एक हमारे नागपूर में है साहब। वो आपको घोड़े का नम्बर बता देंगे। अब बताओ, आपको भगवान को क्या पड़ी है? कौनसा घोड़े का नम्बर बताना है। और उनके यहाँ ताँता लगा रहता है। अच्छा, उन महाशय जी की ये पूर्वपीठिका है, कि हमारे शिपिंग कॉर्पोरेशन में एक साहब थे। हमारे हजबंड के डेप्युटी थे। बड़े शरीफ़ आदमी थे बेचारे । उनकी मृत्यु हो गयी। तो उनकी जो बहू थी, एक दिन आ के मेरे पास बहुत रोने लगी। मैंने कहा, 'क्यों? क्या हो गया भाई? क्यों रो रहे हैं?' तो कहने लगी, 'माताजी, क्या कहें ? मेरे जो पति है, उन्होंने सब हमारा घर-दार बेच दिया। सब कुछ दे दिया। और सब बेच कर के और वो कहीं चले गये। अब क्या करें?' तो मैंने कहा, 'बड़े दुष्ट हैं। कहाँ चले गये पता नहीं?
Original Transcript : Hindi ' उसके बाद उनकी माँ आयीं मेरे पास। रोने लगी। 'उसका पता लगाओ|' मैंने कहा, 'जिंदा है ये तो पता है, लेकिन पता नहीं कहाँ है?' उसके साल भर बाद आयी। मुझे बताने लगी, 'मिल गये, मिल गये। मैंने कहाँ, 'कहाँ?' कहीं नागपूर में वो है, उनका नाम गुलाब बाबा और वो यही महाशय है! मैं जब नागपूर गयी तो मैंने खबर भेजी, गुलाब बाबा से कहना, 'मैं आ रही हूँ।' तो वो एक साल तक वहाँ कहीं नज़र नहीं आयें। फिर दूसरे साल वहाँ हाज़िर हो गये। ये हालत है इनकी। दुनिया भर के चोर-उचक्के, जेलों से छूटे हुये, बड़े बड़े योगी बन के घूम रहे हैं। आप ही सोचिये, आप समझ लो जेल में बंद हो गये। और दुनिया को पता हो गया आपकी बदनामी हो गयी है। आप वहाँ से बाहर आयेंगे। अगर आप बड़े बुद्धिमान और चतुर हैं, ट्राइंग टू बी क्लेव्हर, तो आप क्या करियेगा? सोचेंगे, कि भाई, चलो कुछ चोगा पहन लें। और कहीं और जगह चलो, ऐसी जगह जहाँ खपत हो जाये। तो नॉर्थ का होगा साऊथ जायेगा, साऊथ का होगा नॉर्थ में आयेगा। चोगा पहन के घूम रहे हैं। उसके बाद देखा थोडे दिन में गले में हार पहने हये बाबाजी आ गये। अज़ीब से, कुछ हाथी पे घूम रहे हैं, कुछ घोड़े पे घूम रहे हैं। कुछ ऊँट पे घूम रहे हैं, कुछ गधे पे घूम रहे हैं । और ये गधे कहाँ मिलते हैं? शहरों में! यहाँ के लोग ज्यादा अकलमंद होते हैं। डाऊन टू अर्थ वो समझ लेते हैं कि हमारे ऊपर चढ़ावा करने के लिये आये हैं। ये गधे शहरों में रहते हैं और इन गधों के पास पैसा भी ज्यादा होता है। और कुछ गधे कुर्सिओं पर भी बैठे हैं। तो ये अच्छे गधे मिल जाते हैं। इन गरधों को बेवकूफ़ बनाना भी आसान है। वो सोचते हैं, जिनको ये समझ में नहीं आता है कि ये हमारे पास दो मिनिट के लिये कुर्सी आयी है, चार मिनिट का पैसा आया, उसके ऊपर नज़र रखने वाले आये हैं। और फिर अगर उनसे कहिये कि, 'देखो बेटा, ऐसा है, कि तुमको देखो स्मगलिंग छोड़ना पड़ेगा। अगर तुम्हे सहजयोग में आना है तो चलेगा नहीं। बेटा तुमको तम्बाकू छोड़नी पड़ेगी। बेटा तुमको शराब छोड़नी पड़ेगी। देखो , तुमको गन्दी चीज़़ है वो छोडनी पड़ेगी ।' माताजी बहुत ही खराब है। क्यों? क्योंकि हमसे वो नहीं कहती की जाओ, गुत्ते में बैठो। स्मगलिंग करो, बदमाशियाँ करो। जब जेल में जाओ, तो मैं तुमको टाटा करने आऊंगी। ऐसे ऐसे गुरु संसार में आयें। एक गुरु साहब और बसते हैं। सब को नाम देते हैं। और ऐसा लोगों पे पगड़ा डाला हुआ है। निर्बुद्ध लोग भी होते हैं। पैसे वाले निर्बुद्ध होते हैं। और कुर्सी वाले बेवकुफ़ होते हैं। तो उनको भी पकड़ लिया, इनको भी पकड़ लिया। और पैसे वालों से कहा, कि देखो, भाई तुम लंगर लगाओ। सेवा होनी चाहिये गुरुजी की। अब इतने बड़े बड़े जत्थे लगते हैं, सेवा होती है और लोग ये समझने लगते हैं, कि वाह भाई , वाह, गुरुजी ने तो कभी एक पैसा भी नहीं लगाया। अपना ही रुपया खर्चा कर रहे हैं और ये सेवा आ रही है, ये तो सेवा लंगर के लिये हो रही है। ऐसे भी गुरु होते हैं जो लंगर लगाते हैं। समझ लीजिये, कि हम बैठे है बीच में हम लंगर लगाये । जितना ब्लैक मार्केट का पैसा है ऐसा है। वो मुक्तानंदजी यही नमुना है। वो बम्बई का ब्लैक मार्केट का पैसा जाता है मुक्तानंदजी के पास । वहाँ सारे हिप्पी आते हैं, उनको गांजा वगैरा सब सप्लाय होता है वहाँ पर। आराम से गांजा पीते है। गांजा पीना अलाऊड है उनके आश्रम में। क्योंकि उनकी संस्कृति है। भाई - बहन साथ सोये कोई हज़्ज़ा नहीं। 'भला, उनकी संस्कृति है, हम क्या करें? हम तो उनकी संस्कृति को डिस्टर्ब नहीं कर सकते। ' अच्छा , तो आप किस चीज़ को डिस्टर्ब करियेगा? तो अब ये लोग हैं, कहते हैं कि 'हाँ, भाई तुम्हारे यहाँ बड़े साधु-संत आते हैं, सब गोरे चमड़े वाले साधु।'
Original Transcript : Hindi 'तो?' 'हम उसकी सेवा में लगते हैं।' तो ब्लॅक का पैसा वहाँ जा रहा है। ये उनको खाना लंगर लगाये हये हैं। और ये बीच में बाबाजी जो है! उनके पैर में जाते हैं तो एक भूत डाला उसके अन्दर। दुसरा भूत डाला उसके अन्दर। और इनका गांजा खूब बिकता है। अच्छा हिसाब किताब लगाया है। अब जा के देखिये, यही चीज़ है कि नहीं। ये आनंद मार्ग के बारे में १९७० में मैंने कहा था। मैं आपसे बताती हैँ। और ये दूसरे तरह के, किस्म के लोग। एक एक किस्म, किस्म आप सुनियेगा तो आप आश्चर्यचकित हो जायेंगे | अब ये आनंदमार्गियों ने दुसरी कमज़ोरी पकड़ी। इन्होंने ये कमज़ोरी पकड़ी कि दुनिया में लोगो में घृणा (हेट्रेड) बहुत होती है। इसको हेट कर, उसको हेट कर इसको परेशान कर, उसको परेशान कर समझदारी से कोई काम नहीं लेता। आपके अन्दर हेट्रेड है, ऐसे ही हम आपको बना देंगे ऐसे शक्तिशाली, कि आपके जो दुश्मन होंगे गर्दन कट जायेगी। ऐसी आपके अन्दर शक्ति बना देंगे बिल्कुल कि कुछ पूछिये नहीं। शुरूआत बड़ी धीमी होगी । उसके बाद ये करो, वो करो। अब इसमें तांत्रिकपन भी बहुत जबरदस्त है। अब आप भी तांत्रिक हो तो बता दें। तांत्रिकों का एक ही तरीका है, बहुत सीधा-सरल। वो ये है कि किसी तरह से अपने अन्दर बसे हुए सब देवताओं को नाराज़ कर देना। अगर आपने सब देवताओं को नाराज़ कर दिया, निर्विचार करो, गालियाँ दो, उल्टे उनके श्लोक बोलो। एकाध गुरु है, अब समझ लीजिये आपने हृदय पे शिव का स्थान दे दिया, अब कापालिक होगा वो हाथ में रूंडमुंड ले के बैठेंगे। और कहेगा शिव, शिव, शिव। अब शिवजी कहेंगे, तमाशा देखो इस आदमी का, बद्तमीज कहीं का। अगर कोई आदमी राजा का मुकुट पहन कर के और कहते है कि ये राजा, ये राजा, ये राजा। राजा क्या तो करेगा? उसे दो तमाचे लगा कर पागलखाने डालेगा । लेकिन भगवान लोग ऐसे नहीं होते। वो कहते हैं, 'गये ही है। छोडो!' वहाँ से उठ जाते हैं। अधिकतर वो उठ जाते हैं। कभी कभी दंडित (पनिश) भी करते हैं, कभी कभी उठ जाते हैं। जब उनका चित्त वहाँ से हट गया तो जो एरिया बच जाता है, जो एरिया छूट जाता है, उसमें वो गन्दगी शुरू कर देते हैं। और उसमें जब गन्दगी शुरू हो गयी, तब उनका अधिकार हो जाता है, सब को ला के वहीं फँसाते हैं। इसी प्रकार किसी को मंत्र दे दिया। किसी को दे दिया, ऐं, ऱ्हीं, किसी को ढीं, ढीं, कुछ भी मंत्र दे दिया । इस नाम के भूत होते हैं। वो भूत आपके अन्दर आये, काम करने लग गये। अब एक देवीजी कल आयी थीं | कहने लगी 'मैं तीन ही दिन गयी थी माताजी उनके इस में।' और उनका ये हाल। सारा बदन टूट रहा है, हालत खराब, ब्लॉकेड हो गया। मैंने कहा, 'तीन दिन में ये खा लिया तुमने वहाँ?' ये चीज़ है। समझ लेना चाहिये। ऐसा पुरानों में लिखा हुआ है, कि भगवान के नाम पर बड़े बड़े दुष्ट , राक्षस यहाँ आयेंगे और अपने को वो गुरु ही कहलायेंगे। क्या आ के वो रावण कहेगा कि 'मैं रावण हूँ!' वो ऐसा कहेगा तो पहले उसे जेल में बंद कर देंगे। बहत सी राक्षसनियाँ आरयीं। डिफरन्ट डिफरन्ट नेम में आये हैं। हिटलर ने जन्म | लिया है। इसने जन्म लिया है। उसने जन्म लिया है। हिटलर भी एक बड़ा भारी राक्षस है। उसने फिर से इस देश में जन्म लिया है। उनको सिद्धियाँ आनी है। सिद्धियाँ माने ये की ये जानते हैं कि किस तरह से चौंकटाना चाहिये। किस तरह से भूत भरना चाहिये। किस तरह से भूतविद्या करनी चाहिये। ये सारी ही भूतविद्या है। एक ही परमात्मा की चीज़ है, कि आप की शक्ति जागृत होनी चाहिये। और जब मैं कहती हूँ कि अपनी शक्ति जागृत करो , 'तो हो ही नहीं सकता, हमें तो विश्वास ही नहीं है।' ठीक है, ऐसे अकलमंदों के लिये ही आये हये हैं। 12
Original Transcript : Hindi तो एक तरह से मैं हमेशा कहती रहती हैँ, हमारे शिष्यों से भी यहाँ पर कि, बेटे, मेरा स्थान देहातों में हैं । मेरा स्थान इन शहरीयों में नहीं हैं। तुम लोग अब कहते हो तो दिल्ली में आ गये। अगले बार कह दे एक महिना आ जाओ। चलो, एक महिना रगड लगा लेंगे। लेकिन कितना भी रगडो तो भी यहाँ के जो बहुत बड़े अकलमंद लोग हैं उनकी खोपड़ी में कितना घुसेगा, ये तो मैं नहीं कह सकती। अब माँ तुम्हारी कृपा हो जायें। अरे भाई , मेरी तो कृपा हो ही रही है सारे संसार में। पर एक देहात में हजार आदमी हैं, उसमें सात सौ आदमी पार हो जाते हैं। एक दिल्ली में अगर इतने हजारों हैं, उसमें से आयेंगे बीस -पच्चीस, उसमें से दस पार होंगे और दो उसमें से गल जायेंगे, एक उसमें से भाग जायेगा। तब माँ ये सोचती कि सभी व्यर्थ हआ। तो आप लोगों से यही मेरी बिनती है, कि कम से कम जो पाया है उसको खोना नहीं। और इसको बिठाना है, रचाना है, अन्दर में इसका अनुभव लेना है। सच्चिदानंद | स्थिति क्या है? उसको पाना है। इसके उपर में सहस्रार का स्थान है। आज तक सहस्रार का खुलना बंद नहीं पड़ा था। ये सभी जगहों में मैं आयी हुई हूँ। मैंने अनेक बार जन्म लिये हैं। आप लोगों में से जो जानते हैं वो जानते हैं। लेकिन सहस्त्रार का खोलना नहीं बंद पड़ा था। कुछ नहीं, सिवाय रोने-धोने के, कुछ नहीं हो पाया। सब ऐसी ही जिंदगियाँ बिता दी। कुछ काम नहीं बना पाये। सहस्रार का खोलना इसी जन्म मे हुआ। वो भी लगातार, रोज रात में मैं मेहनत करती थी। सब के कुण्डलिनियों में घुस घुस कर के और पता लगाती थी कि इस मोटर में क्या खराबी हुई थी? उस मोटर में क्या खराबी? इसमें क्या खराबी, उसमें क्या खराबी? और अपनी गृहस्थी सम्भालते हुये, सहजयोग का अंतिम जो चरण है, जिसे कहना सहस्रार खोलना, ये हो गया। और इसलिये ५ मई को हम लोग सब 'सहस्त्रार डे' मनाते हैं। उस दिन जब सहस्रार खुला है, तब आप लोगो का भी सहस्रार खुला। इसका मतलब ये है कि संसार में जो सुपर कॉन्शसनेस है वो आ गयी। इसलिये आप सब को वाइब्रेशन्स आ रहे हैं। आप कहियेगा इतने साल पहले, वर्षों पहले क्यों नहीं? एकाध ही आता था, बड़ी मुश्किल से इतने बड़े चीज़ को पहुँचता पाता था। सुप्रा कॉन्शसनेस आने की जरूरत थी। परमात्मा का साम्राज्य आने की जरूरत थी। उसकी सेन्सिटिविटी संसार में फैलने की जरूरत थी। नहीं तो परमात्मा का ही विश्वास टूट जाता। नहीं तो संसार ही डूब जाता। और सत्ययुग की शुरूआत नहीं होती। सत्ययुग की शुरूआत हो गयी है। और सत्ययुग की निशानी है, कि किसी की भी लंदफंद चलने नहीं वाली । सत्ययुग की शुरूआत तब से हुई जब से संसार में कैन्सर का रोग आ गया। कोई भी गड़बड़ी चलने नहीं वाली। धर्म में खड़ा होना ही पड़ेगा । आप अगर धर्म में खड़े नहीं होंगे तो अतिशयता में जायेंगे| पहले आपने ऐसे बहुत से लोग सुने होंगे जिन्होंने जिंदगी भर एक पेग शराब पीते थे। अब ऐसा नहीं होता है। अब जो दस साल का लड़का हो, चाहे पन्द्रह साल का, वो जैसे ही शराब शुरू करता है, दो साल में अल्कोहोलिक हो जायेगा। हर एक चीज़ में गति आ गयी है और गति आने के कारण अब चल नहीं पायेगा। मनुष्य को धार्मिक होना पड़ेगा, अपने धर्म में जागना पड़ेगा। जो मनुष्य नहीं जागेगा, वो पारित होगा। वो नुकसान उठायेगा, शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक। हर तरह का नुकसान उठायेगा। और वो जानेगा, अपने सामने देखेगा, कि मुझे तकलीफ़ें हो रही हैं । ये वो समझेगा। यही आज का विशेष समय आया हुआ है। ट्रान्झिशन का समय कहिये या सत्ययुग में उतरने वाले। सत्ययुग में उतरने से पहले, पूरी तरह से उसको बिठाने से पहले, आपकी संवेदना बढ़नी चाहिये।
Original Transcript : Hindi आपकी जो ये देह्य यष्टि है, इसमें जो केंद्रीय नाड़ी तन्त्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टीम) है, इस केंद्रीय नाड़ी तन्त्र (सेंट्रल नवस सिस्टीम) में परमात्मा का प्रकाश आना चाहिये। अभी तक तो सिर्फ पॅरासिम्परथॅटिक में है और आपके हृदय में ही परमात्मा बसे हये हैं| लेकिन इसका प्रकाश आपके सें केंद्रीय नाड़ी तन्त्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टीम) में आ कर के चैतन्य स्वरूप जैसा कि वर्णन किया हुआ है। आप जब इसे पूरी तरह से अध्ययन करियेगा और जानियेगा तभी सत्ययुग आपके अन्दर बैठ सकता है। अभी तक कोई भी पुस्तक, कहीं पर भी ऐसा नहीं लिखा गया है, कि कौन सी उंगलियों में कौन से चक्र जाने जाते है। मैंने आप से कल बताया था, गगनगड़ के महाराज बहुत बड़े, माने हुये १०५ साल के हैं, वो भी नहीं जानते हैं कि ये चक्र सारे कैसे पकड़े जाते हैं। वो कहते हैं कि 'हम तो अन्दर के ही जानते हैं, अन्दर में जा जा कर। उंगलियों पे नहीं माँ मालूम।' ये तो बहुत ही कमाल हो गया, कि उंगलियों पे छोटे छोटे बच्चे भी तुमको बता रहे हैं कि कौन सा चक्र कहाँ पकड़ता है। 'इसका डिकोडिंग पूरा तुमने बता दिया। इन लोगों ने तुम्हारे साथ क्या किया? इन शहर में रहने वाले लोगों को, इन गाँव में रहने वाले लोगों को तुम क्यों पार करें? इनकी क्या विशेषता है? ये कौन बड़़े ऐसे अफ़लातून हैं? इनको कितने पॅटर्न पे तुमने पैदा किया ?' मैंने कहा, 'इनको गणेश के पॅटर्न पे पैदा किया। सहस्रार से इनको जन्म दिया।' तुम लोग तो अपने को बड़ा पराक्रमी समझते थे कि, 'हमने ये पाया, हमने वो पाया। हम ये, हम ठिकाने।' अब बैठो। यही बच्चे मेरे काम आयेंगे और यही दुनिया में दिखायेंगे, कि परमात्मा है। अब वो हमसे खुद ही बार बार वाद - विवाद करते हैं। उसके बाद कहते रहे कि, 'माँ, बारह साल तक तुम मेहनत करना, फिर मैं आऊंगा। मुझे तो इन लोगों ने तोड़ताड़ दिया। मेरी बुरी हालत कर दी।' आज इस तरह के भी गुरु होते हैं। उन्होंने मुझ से कहा था, 'इतनी बात जरूर है, तुम्हें कोई सताये तो मेरे पास भेज देना।' एक आदमी मुझे बेकार ही में परेशान करता था, तो मैंने कहा, 'जाओ, तुम्हें महाराज ने बुलाया है।' मुझे क्या पता कि ऐसा विअर्ड है ये। ये गये। उसके बाद दस दिन बाद आयें, तो दोनों तंगड़ियाँ गर्दन में लटका के। कोई ये चला रहा है। मेरी तो आँख में आँसू आ गये। मैंने कहा, ये क्या दुर्दशा हो गयी ? कहने लगे, 'माँ, बचाओ, बचाओ!' मैंने कहा, 'हुआ क्या भाई? तो महाराज के पास गये थे। उस वक्त बड़ी शान कर रहे थे, महाराज के पास जा रहा हूँ। तुम कहने लगे, 'मैं उनकी गुफा में सो रहा था। तो रात में उनके बाघ ने मुझे नीचे धकेल दिया।' तो मैंने कहा, 'तुमने उनसे बात क्या करी?' 'माँ, यही गलती हो गयी, मैंने जरा तुम्हारी बदनामी कर दी। तुम्हारे लिये बुरा कहा।' 'तो क्या बोले?' 'कहने लगे, 'अच्छा देखता हूँ तुम्हारी माँ को। तब तो इतना ही बोले। उसके बाद में उसने मुझे बाघ ने नीचे धकेल दिया। तीन दिन तक मेरे हाथ -पैर टूटे, पड़े रहे वहीं मैं ट्टी, पेशाब। हालत खराब मेरी। खाने को नहीं, कुछ नहीं। तीन दिन के बाद दो-चार रोटियाँ ऊपर लटका कर कहते हैं खाओ। उसके बाद दो-तीन दिन मुझे वहीं सड़ाया। उसके बाद उनके लोग मुझे ऊपर उठा कर लाये। फिर मेरे घर वालों को खबर दी। कहने लगे, इसको ले जाओ। इसकी तंगड़ियाँ गले में ड्राल कर, मराठी में कहते हैं 'तंगड्या गळ्यात घालून', माँ के पास ले जाओ। वही ठीक करेगी। वो बड़ी क्षमा करने वाली है। मैं नहीं करने वाला हूँ। और अगर फिर से तुमने कहा है, तो तंगड़ियाँ पूरी निकाल के रख दंगा।' उसने कान पकड़े और उसने कहा कि, 'माँ, मुझे उसके पास फिर से मत भेजना।' जो भी है ठीक है। फिर उनकी तंगड़ियाँ ठीक करी। अभी ठीक हैं वो। चल रहे हैं। ऐसे होते हैं। 14
Original Transcript : Hindi इन गुरुओं के भी एक-एक तरीके हैं। मैंने उनसे कहा कि, 'भाई, तुम पार क्यों नहीं करते ?' कहने लगे, 'बस हो गया पार वार करना। एक को पार किया था । पच्चीस साल मेहनत की, तब पार हुए। सोचिये क्या?' कहने लगे, 'पूछिये यहाँ पर। जब से मैं मेंढ़क था तब से मैंने मेहनत करी है और हजारों साल बाद अभी मैं पार हुआ। मुझे चैतन्य (वाइब्रेशन्स) आये। और इस दुष्ट को मैंने पच्चीस साल के अन्दर चैतन्य (वाइब्रेशन्स) दे दिये। उसका नाम क्या? तो अण्णा महाराज।' मैंने कहा, अच्छा, देखेंगे अण्णा महाराज क्या है?' कहने लगे, 'काम से गये। वो अगर मुझे मिल जाये तो पीट के रख दूँगा।' वो अण्णा महाराज कहीं आये थे, तो मैंने कहा था कि, 'वो आयेंगे तो मुझे बुलाना।' तो उनसे कहा कि, 'माताजी आ रही हैं।' मैं गयी। मेरे सामने बैठ के सिगरेट पी रहे हैं और वो अपने हैद्राबादी भाषा में चार-पाँच औरतों के साथ क्या रे, म..रे, तू रे, चल रहा था। खूब अपने आराम से बैठे हये हैं। तो मैं गयी। मैंने कहा कि, 'आप कैसे हैं?' कहने लगे, 'हमारे गुरुजी जो हैं, वो अपनी तकिया छोड़ के आ गये बम्बई में आपसे मिलने। मैंने कहा, 'क्यों न आयें? मैं उनकी माँ हूँ तो आते हैं मुझ से मिलने। तुम्हें कोई आपत्ति (ऑब्जेक्शन) है?' कहने लगे, 'उनको छोड़ना नहीं चाहिये। वो ऐसा करते हैं, वो वैसा करते हैं । वो काम से गये, ये और वो।' मैंने कहा, 'अच्छा!' तब मेरा तरीका देखो। उन्होंने तो तंगड़ियाँ तोड़ी। तो मैंने कहा, 'अच्छा, बेटे अब तो मैं जा रही हूँ।' मैंने उनको कुंकू लगाये। उसके बाद मैंने कहा, 'अच्छा मैं जा रही हूँ, तू मुझे कुंकू लगा।' जैसे ही उन्होंने आज्ञा चक्र पे मेरे रखा तो मैंने खींच लिया अन्दर। धकधक उनका जो हाथ होने लगा ना, 'माँ, माँ, बचाओ, बचाओ। छोड़ो।' मैंने कहा, 'पहले तुम कहो, कि अपने गुरु की निंदा नहीं करो ।' 'नहीं मैं कुछ निंदा नहीं करूंगा। मुझे छोड़ दो।' और मैंने कहा, 'दुसरा है, सिगरेट छोड़ना। 'हाँ, छोड़ दो, छोड़ दो।' मैंने कहा, 'सिगरेट छोड़ो। तीसरा है, औरतों का संग छोड़ कर जा के जंगल में बैठो।' जब उसने तीनों चीजें प्रॉमिस की तब उसका हाथ छोड़ा। नहीं तो इसी आज्ञा चक्र से ही उसको पूरा अन्दर सक कर लिया और उसकी उँगली वो हटा नहीं सकता था। ऐसी ऐसी हो रही थी । पाँच मिनिट के अन्दर सब लोगों ने तमाशा देखा। उसके बाद वो उठ के चले गये अण्णा महाराज और अब जंगलों में बैठते हैं। पर उन्होंने बड़े ढंग किये। उसके बाद पता चला कि उन्होंने कितने लोगों से अंगूठियाँ बनवा कर, सव्वा सव्वा तोले की तुम मुझे अंगूठियाँ दे दो, तुम्हारा संकट दूर हो जायेगा। महाराज जी क्या। तुम्हारी जितनी श्रद्धा हो, उतनी ही दे दो। 'सव्वा तोला बहुत होता है।' अच्छा चलो, आधे ही तोले की दे दो। जितनी तुम्हारी श्रद्धा है। जितनी तुम्हारी आफ़तें हैं, उतनी ही दे दो| ऐसा कर कर के उन्होंने हजारों तोले का अपने पास इकठ्ठा किया है। परमात्मा की कृपा से उनके यहाँ चोरी हो गयी और सब उनका सोना भी चोरी हो गया। तो उन्होंने कहा, 'ये तो माताजी का काम है।' मैंने कहा, 'मेरा ........ पर वो सोना मेरे पास तो आया नहीं। फिर क्या करें? जब सीधे हाथों घी नहीं निकलता, तो कृष्ण की व्यवहार-कुशलता (डिप्लोमसी) करनी पड़ती है । ये सहस्रार का स्थान हुआ। सहस्रार के बीचोबीच से जब कुण्डलिनी निकल के और इस ब्रह्मरंध्र को भेद देती है, तभी आप अति चेतन (सुपर कॉन्शसनेस) पे जाते हैं। अब मैं आपसे बताऊंगी, कि जैसे मैंने पहले भी कहा था, कि लेफ्ट हैण्ड साइड़ में सबकॉन्शस है और कलेक्टिव सबकॉन्शस है। और राइट हैण्ड साइड़ में आपकी सुप्राकॉन्शस है जिसको प्री-कॉन्शस माइंड कहते हैं और इधर में कलेक्टिव सुप्राकॉन्शस है। नीचे में आपके हेल है और ऊपर में आपके सूपर कॉन्शस है। तो क्या होता है कि जब आप बहुत ज्यादा सुपर जाते हैं और आप कहते हैं कि बिल्कुल बड़े भारी हम संन्यासी हैं और बड़े हम नन है और फलाने, ठिकाने तो आप इस साइड़ में निकल जाते हैं। 15
Original Transcript : Hindi तो पराचेतना (सुप्राकॉन्शस) से आपके अन्दर भूत आ जाता है। और जो ये लोग बहुत गतिशील (डाइनॅमिक) भूत भरते हैं आपके अन्दर में, थोड़े देर ट्रान्स में ले जा कर के, उन भूतों से आप थोड़ी देर बहुत गतिशील (डाइनॅमिक) हो जाते हैं और वो गतिशील (डाइनॅमिक) होने के बाद में, थोड़े दिन में आप देखते हैं कि आप रॅकलिंग करना शुरू कर देते हैं। सारा आपका दर्द होने लगता है। रात में आपको नींद नहीं आती। आफ़त हो जाती है। सारे पराचेतना (सुप्राकॉन्शस) में जितने भी मरे हुये भूत हैं, अब पराचेतना (सुप्राकॉन्शस) में मरे हुये भूत वो होते हैं, जो बहत ही महत्त्वाकांक्षी(अॅम्बिशस) होते हैं। अब उनमें से एक पाँडेचरी वाला भी यही है। पाँडेचरी वाले ठीक चल रहे थे। जब तक उनकी नमूना कुण्डलिनी उठ कर के आज्ञा चक्र तक पहुँची तब तक ठीक थे। आज्ञा चक्र पे जाते ही ये देवी जी वहाँ पहुँच गयी। चलो, कल्याण होगा आपका। उनकी कुण्डलिनी उतर के धडाम् से गिर गयी। उनकी कुण्डलिनी नीचे गिर गयी, दोनों साइड़ के जो भूत थे वो उनके अन्दर घुस आये। अब ये मुझे आप बताईये, कि पाँडेचरी का एक भी आदमी आपने सेन्सिबल देखा है? नम्बर लड़ाकू, नम्बर झगड़ालू, सब से ज़्यादा गुस्से वाला होता है और अपने को सबसे ज्यादा विद्वान समझता है। और उनसे अगर बातें करिये तो इतनी बड़ी बड़ी बातें करेंगे। आप उनसे कहिये कि, 'तुम पार (रियलाइज्ड) हो।' तो कहेंगे, 'हाँ, हम तो पार (रियलाइज्ड) हैं।' फिर क्या? मेरे सामने तो थरथर काँपते हैं। गर्दन यूं, यूं हिलती है। तो मुझे कहने लगे कि माँ, ये तो शक्ति की वजह से होता है| मैंने कहा, पड़ोस में ये जो लोग हैं उनका भी होता है। उनसे पूछो, तुम कहाँ से आयें? पता हुआ वो पागलखाने से आये। इस प्रकार इतना ज्यादा अंधकार है, इतना अंधकार है कि मैं आपसे क्या बताऊँ ? इनसे छूटे आप, तो आप वृंदावन चलिये। वहाँ सारे कंस के अनुचरण वहाँ पर बैठे हुये हैं पांडे जी बन कर के, दूबे जी और चौबे जी बन कर के, इतने बड़े पेट लिये बैठे । उनकी पेटपूजा दे दो या उनको एक गय्या (काऊ) दे दो नहीं हुआ आपकी श्रद्धा से तो दो-चार जूते ही दे दो उनको तो अच्छा रहेगा। एक भी इस में का आदमी मैंने सही नहीं देखा। मैं सब दूर जा के आयी आपके लिये| हैं। । वो वो बोलने लगे कि, 'हम तो राधा जी की साड़ी आपके लिये लाये।' मैंने कहा, 'अच्छा, आपको क्या तकलीफ़ हैं?' 'मुझे रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) है। हम तो हित वाले हैं। हम तो वृंदावन में राधा जी की बहुत सेवा करते हैं।' मैंने कहा, 'तुम्हें रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) हुआ ही कैसे ?' 'वो तो हमारे खानदान में ही हो रहा है।' मैंने कहा, 'ठीक है।' 'और सब हमारे खानदान में ही ३२, ३२ साल में मर जाते हैं।' मैंने कहा, 'ठीक है। 'राधा जी की सेवा करने से अगर आप ३२, ३२ साल में मर जाते हैं, तो आप किस तरह की सेवा कर रहे हैं भगवान की? और उन्हीं की वजह से रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) सब का मैं उतार रही हूँ। और आपका रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) बढ़ रहा है।' ये एक दूसरे नमूने अपने देश में और है। जो गली गली, हर जगह बैठे हैं। यहाँ पर ठीक है, हनुमान जी जागरूक हैं। इसमें कोई शंका नहीं। जागरूक थे, अब देखा नहीं जा के क्या हाल है? वहाँ से गायब भी हो गये होंगे। क्योंकि चित्त हट जाता है। हमारा खुद ये हाल है। हमारे फोटोग्राफ़ देखते हैं जिन्होंने चित्त हटाया फोटो गायब। फोटोग्राफ़ एकदम काला सा पड़ जाता है। क्योंकि वहाँ से चित्त हट गया हमारा। कुछ व्यभिचार हो रहा है। हमारा फोटो रखा है वहाँ। बुरी बातें हो रही हैं। हमारा चित्त हट जाता है। हमारा खुद ही चित्त हट जाता है। कोई ऐसा आदमी आता है तो चित्त हट जाता है। यही एक खराबी है देवताओं में। किनका चित्त हट जाता है। गणेश जी का अगर चित्त हट गया, तो गये। | फिर तो नुकसान ही नुकसान। गणेश जी बहुत ही .... तो और फिर दूसरे हनुमान जी। तिसरे भैरवनाथ जी हैं। इन तीन आदमियों से बहुत बचाना पड़ता है।
Original Transcript : Hindi तो यही भैरवनाथ जी जो हैं, इन्हीं को बाइबल में सेंट माइकेल कहते हैं। और जो हनुमान जी हैं उनको गॅब्रियल कहते हैं। ये दोनों एक ही जीव है और जो यहाँ पर इन दोनों चक्रों पे हमारा, इन दोनों नाड़ियों पे, इड़ा और पिंगला नाड़ी पर हमारा संरक्षण करते हैं। इधर तो भैरवनाथ जी हैं और इधर में हनुमान जी। पर उनकी भी एक हद होती है। हद से ज्यादा अगर आप बेकार हो गये, तो कहते हैं कि जाओ सीधे | जैसे शिवजी यहाँ बैठे ह्ये हैं। शिवजी दुनिया भर का जितना मादक पदार्थ हैं उसे खाते रहते हैं। इसलिये खाते हैं कि वही है जो उसको मार सकते हैं। उसको खा सकते हैं। उसको व्यय (कंझ्यूम )कर सकते हैं। उसको खत्म कर सकते हैं। जैसे देवी हैं वो राक्षसों को खाती रहती हैं। अब देवी को कोई अगर कहें कि तुम वेजिटेरियन क्यों नहीं है? तो इसमें तो छल (हेपाक्रीसी) हुई। उसको रक्तबीज का सारा गन्दा रक्त पीना पड़ा है और उसको एक-एक राक्षसों को खाना पड़ा है। वो वेजिटेरियन कैसे हो सकती है ? सीधा हिसाब लगाना चाहिये। कोई अगर बहुत ही बड़ा वेजिटेरियन होता तो मैं कहती उसको कि कम से कम गोश्त ला कर उसको छू लो। आतिशयता (एक्स्ट्रिम) पे मत जाओ| इतने अगर तुम दूध के बने हुये हो तो तुम देवी जी के साथ नहीं खड़े हो सकते। ये सोचना चाहिये कि देवी जो हज़ारों को उसको मारना पड़ा। करोड़ों राक्षसों का वध करना पड़ा। वो देवी अतिसौम्या है। अपने बच्चों के लिये अति क्रौर्या भी है। इतनी क्रूरता से मारा है। अगर नहीं मारती तो उसके बच्चे कैसे बचते ? लेकिन हिन्दू धर्म में पता नहीं कहाँ से वेजिटेरिइज्म आ गया ? अगर आप शक्ति को मानते हैं, देवी को मानते हैं तो वेजिटेरिइज्म का कौनसा सवाल आ गया ? हाँ, इसका मतलब ये नहीं कि आप घोड़े, बैल, भैंस खाईये। ये मेरा मतलब नहीं कि गाय खाना। पर ये छोटे छोटे जानवर जो होते हैं और ये जो सब लोग खाते हैं, अब इस से ये की मोहम्मद साहब काम से गये। ईसाई लोग काम से गये। सारे क्षत्रिय काम से गये। रामचंद्र | जी गये, कृष्ण गये। सब लोग काम से गये। सिवाय बचे कौन दो-चार रावण जिनके शरीर में टी. बी की बीमारी है इनको कौन रियलाइजेशन देगा ? ये नहीं मैं कहती कि आप लोग गोश्त खाना शुरू कर दें। ये मेरा मतलब नहीं। आपको पसन्द नहीं। मत खाओ। लेकिन उसका संबंध आपके अभ्यास से या आपके रियलाइजेशन से नहीं होता है। इस चीज़ से होता है कि आप का चित्त कितना खाने में है। लेकिन शराब हर हालत, एक बूँद भी शराब खिलाफ है। मुझे कहिये तो मैं दस रक्तबीज को खा लूँ। लेकिन शराब इतना भी नहीं पी सकती। लेकिन गलती से किसी ने इतनी सी मुझे शराब पिला दी और मुझे खून की उलटियाँ हो गयी। इतनी सारी। मेरे हज़बंड तो उस दिन से कान पकड़े कि 'बाबा, गलती से भी मेरी बीबी को मत दे दो।' मेरे तो पेट में दर्द है। मैं किसी से कुछ नहीं कहती। मेरा पेट ही। आपने देखा कल में भाग के उधर गयी थी। यहाँ पर कोई बड़ा गन्दा आदमी आ गया था। उसके कारण मेरे पेट में धर्म दौड़ा। मैंने कहा, चलो, इसको निकालो, नर्क में डालो उधर। मेरे पेट में दर्द है। जरा सा कुछ हो ऐसा देखती हूँ। कोई अगर नंगी औरत हैं या ये कॅब्रे डान्स। मुझे तो इससे कोई ये नहीं । लेकिन कहीं जाओ तो जबरदस्ती.... हम लोगों की लाइफ ऐसी है सरकारी। उसमें सरकारी नौकरों को जरूरी कॅब्रे डान्स देखना चाहिये नहीं तो उसकी नौकरी नहीं चलती। उसकी बीबी पे एक आफ़त। चुपचाप बैठे रहिये। मुझे तो वहीं भदाक् से उल्टी हो जाती है । मैं करूं क्या ? मैं तो कुछ नहीं कहती। कहीं ऐसा गन्दा देखती हैँ तो अपने आप ही। ये तो धर्म जो है पेट में ही होता है। 17
Original Transcript : Hindi रियलाइजेशन में मनुष्य किस तरह से उठता है, और कहाँ तक पहुँचता है, ये मैंने आज बताया । कल आपको मैं ये बताऊंगी कि मन कि स्थिति में आप रियलाइजेशन में कैसे कैसे उठते हैं? और कैसे कैसे निर्विकल्पता आप में स्थापित होती है और उसके लक्षण क्या होते हैं? आज को जो भी लेक्चर हुआ है, वो इन्होंने लिख तो लिया। हो सकता है इसके टेप सब बना के यहाँ के लिये दे जायें। लेकिन ये जरूरी है, थोडी आर्ता होनी चाहिये । थोडी श्रद्धा अपने प्रति होनी चाहिये। थोडा इसमें गहरा उतरना चाहिये। दिल्ली में जो लोग गहरे उतरे हैं वो बहत ही गहरे उतरे हैं। इसमें कोई शक नहीं। और जो नहीं सो नहीं। वहीं के वहीं। हर साल में देखती हूँ, वहीं के वहीं खड़े हैं। और जब दस लोग मेरे नाम से इकट्ठे होते हैं, वहीं शक्ति का संचार होगा। और घर में बैठे माताजी, मैं पूजा कर लेता हूँ। कुछ नहीं होने वाला। उसके थोड़े दिन में मुझे गठिया हो गयी। मेरा फलाना हो गया। अगली (नेक्स्ट) टाइम आये तो मेरा ऐसा हाल हो गया। ये मैं सुनने वाली नहीं। आप स्वयं ठीक हो जाईये । आपकी तबियत ठीक कर लीजिये। उसके बाद दुनिया की तबियत ठीक कर लें। आशा है आज भी बहुत से लोग पार हो जायेंगे। कल भी बहत से लोग पार हो गये थे। न जाने इन में से कितने लोग आये। और बहुत से लोग आज आये हैं। लेकिन इनमें से कौन असल में है और कौन नकल में, सबको पहले ही पहचान गयी। एक दिन एक साहब आये थे। मैंने उनको पहले ही बुला के कह दिया, कि भाई, तुम चले जाओ | तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है। वो माने नहीं। उसके बाद यहाँ तूफान बन के कूदे और चले गये। वो अपने को बहुत ही अकलमंद समझते हैं। सब से कहने लगे कि कुण्डलिनी में आदमी को नाचना चाहिये, कूदना चाहिये, ये होना चाहिये, वो होना चाहिये। तो मैंने उनसे कहा भाई, इनको नाचने दोना , कूदने दोना । इनको किसने मना किया है । लेकिन वो अपना शामियाना लगवायें, अपना प्लॅटफॉर्म बनायें वहाँ करें। यहाँ आ कर के क्यों करें? यहाँ नाचने- कूदने को किसने बुलाया है? यहाँ से कम से कम हमारा ही राज रहने दो। ये अच्छा है, हम तो यहाँ शामियाना लगवायें। अॅडवर्टायजमेंट करें और वो आ कर हमारी कुर्सी पर कूदे। ये कौन सा हिसाब किताब है। आपको जाना अपने रस्ते जाईये। हम तो आपसे कहने नहीं आये कि आप आईये| आप खुद ही अपनी खुशी से आये। अपनी खुशी से गये। हमें छुट्टी करिये। और अगर हम सोचते हैं कि हम बहुत ही बुरा कर्म कर रहे हैं, कि लोगों को हम गंदी बातें सिखा रहे हैं तो आप हमारे बारे में पेपर में दे दीजिये। हमें कोई ऑब्जेक्शन नहीं। और उसने लिख भी दिया, की माताजी ये ये सब कहती हैं। उसके बाद अगर कोई कहेगा कि हम गन्दी बातें सिखा रहे थे। तो ठीक है। अब थोड़ी देर हम लोग जरा ध्यान में जायें। और थोड़ा रियलाइजेशन करें। किंतु मैं चाहूंगी कि जो लोग पहले पार हो चुके हैं वो जरा पीछे जायें। और बाकियों को चान्स दें। और जो पार हो चुके हैं वो भी सीखें कि किस तरह से आदमी दूसरों को पार कर सकता है। बहुत जरूरी है ये कि जब तक आपने पायी हुई संपदा को आप इस्तेमाल नहीं करियेगा तो आप कभी समझ नहीं पाईयेगा कि ये चीज़ क्या है ! 18