Public Program Day 2: Utkranti Ki Sanstha

Public Program Day 2: Utkranti Ki Sanstha 1979-01-15

Location
Talk duration
67'
Category
Public Program
Spoken Language
Hindi, Marathi

Current language: Hindi, list all talks in: Hindi

The post is also available in: English.

15 जनवरी 1979

Public Program

Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Talk Language: Hindi, Marathi | Transcript (Hindi) - Draft

Public Program Day 2, Birla Krida Kendra, Mumbai (Hindi), 15 January 1979.

ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK मैंने कहा था, कि कुण्डलिनी के बारे में विशद रूप से आपको बताऊँगी। इसलिये आज आपसे मैं कुण्डलिनी के बारे में बताने वाली हूँ। पर मुश्किल है आप सब को ये चार्ट दिखायी नहीं दे रहा होगा। क्या सब को दिखायी दे रहा है ये चार्ट? इसमें जो कुछ भी दिखायी दे रहा है वो आपको इन पार्थिव आँखो से नहीं दिखायी देता। इसलिये सूक्ष्म आँखें चाहिये जो आपके पास नहीं हैं। बहरहाल ये आप के अन्दर है या नहीं आदि सब बातें हम बाद में आपको बतायेंगे। इसे किस तरह जानना चाहिए? लेकिन इस वक्त अगर मैं आपको इसके बारे में बताना चाहती हूँ तो एक साइंटिस्ट के जैसे खुले दिमाग से बैठिये। पहले ही आपने अनेक किताबें कुण्डलिनी के बारे में पढ़ी हुई हैं। योग के बारे में पढ़ी हुई हैं। लेकिन सत्य क्या है उसे जान लेना चाहिए। किताबों से सत्य नहीं जाना जा सकता। कोई कहीं कहता है, कोई कहीं कहता है, कोई कहीं बताता है। लेकिन आप अगर साइंटिस्ट है तो अपना दिमाग को थोड़ा खाली कर के मैं जो बात बता रही हूँ, उसे देखने की कोशिश करें। जिस तरह से कोई भी साइंटिस्ट अपना कोई हाइपोथिसिस आपके सामने रखता है, कोई ऐसी कल्पना कर के रखता है, कि ऐसी ऐसी बात हो सकती हैं, उसको वो फिर अन्वेषण कर के और सिद्ध करता है, प्रयोग कर के, एक्सपिरिमेंट के साथ ये सिद्ध कर देता है, कि वो जो कह रहा है वो बात सिद्ध है। उसके बाद वो चीज़ एक कायदा हो जाती है, लॉ हो जाती है। इसी प्रकार जब मैं आप से कुण्डलिनी के बारे में बताऊँगी, तो आप लोग ये मत सोचें के आपने फलानी किताब पढ़ी है, इसलिये माताजी ऐसी बात क्यों कर रही हैं। किसी किताब को पढ़ कर के आप उस किताब के लेखक तो नहीं हो गये! पर लोग मुझ से ऐसा झगड़ा करते हैं, मानो वो उस किताब के लेखक ही नहीं, किंतु वो सब कुछ उस कुण्डलिनी के बारे में जानते हैं जो कुछ उन्होंने पढ़ा होगा। कृपया आप अपने दिमाग को थोड़ा खुला रखिये । और मैं जो कुछ आपको कुण्डलिनी के बारे में बता रही हूँ उसकी ओर इस तरह से नजर करें, कि शायद ये बात भी सही हो, इसे सुन लेना है। जब कि हम एक अमिबा थे और वहाँ से जब हम एक इन्सान के रूप में, मनुष्य के रूप में संसार में विचरण कर रहे हैं, तब हमारे अन्दर अनेक परिवर्तन आते गये। ये हमारे अन्दर जो कुछ भी हुआ है, वो हमारे अन्दर की उत्क्रान्ति की शक्ति से हुआ है। इवोल्यूशनरी पावर। ये हमारे अन्दर उत्क्रान्ति की शक्ति किस तरह से स्थित है, कोई डॉक्टर नहीं बता सकता। लेकिन अपने शास्त्र में इसके बारे में पूरा विवेचन है, सिर्फ संस्कृत भाषा में होने की वजह से सब अलग अलग हैं। ये जो यहाँ..... (अस्पष्ट) दूसरा है, मार्ग दिखाया गया है, जिसे कि चॅनल कहना चाहिये, उसे नाड़ी कहते हैं संस्कृत भाषा में, उस में से जो लेफ्ट साइड़ में हृदय के पास जो नाड़ी है, इसे इड़ा नाड़ी कहते हैं। जो बीच में है उसे सुषुम्ना कहते हैं और जो राइट साइड़ में है उसे पिंगला नाड़ी कहते हैं। इस प्रकार तीन नाड़ियाँ हमारे अन्दर दौड़ती हैं, जो कि गुप्त हैं। अंडर करंट हैं। और बीच में हमारे अन्दर लेफ्ट और राइट सिम्परथॅटिक नर्वस सिस्टीम और बीच में पॅरासिम्पथॅटिक नव्वस सिस्टीम नाम की व्यवस्था हो जाती है। ये तीनों ही 2

Original Transcript : Hindi संस्थायें ऑटोनॉमस के नाम से जानी जाती है। ऑटोनॉमस नर्वस सिस्टीम। डॉक्टरों से पूछो, ऑटो का जो मतलब होता है स्वयंचालित और ये स्वयं कौन है ? कोई डॉक्टर नहीं बता सकते, कि ये स्वयं कौन है? थोडा बहुत... | इसके मामले में हम नहीं बता सकते , इसके आगे हम नहीं जा सकते| हाँ, ये जानते हैं, इस तरह की संस्थायें हमारे अन्दर कार्यान्वित हैं। ये इस प्रकार हैं। कैसे काम करती हैं, इस मामले में हम ज्यादा नहीं बता सकते। | ये बीच में सुषुम्ना नाम की संस्था हैं, वही वो इवोल्यूशनरी, उत्क्रांति वाली संस्था है । उसमें कौन सी शक्तियाँ दौड़ती हैं? उसमें से जो पहली इड़ा हैं, इसमें महाकाली की शक्ति दौड़ती हैं । महाकाली की शक्ति से हमारा जो कुछ गत है, पूर्व है, पास्ट है, वो सब संचलित होता है। जैसे मैं आज इस वक्त लेक्चर दे रही हूँ। आप मेरी बात सुन रहे हैं। जो भी मेरी बात सुन रहे हैं, जो भी आपको हो रहा है, जो भी आपको इसमें से संचित करना है, सब कुछ इस नाड़ी संस्था से होता है। और जो उस साइड़ में नाड़ी है, राइट साइड़ में, उससे हम जो कुछ भी आगे का है, फ्यूचर है, जो कुछ भी हम प्लॅनिंग करते हैं, जो भी हमारे शारीरिक होते रहते हैं, उसकी शक्ति जिसे की महासरस्वती कहते हैं, वो प्रवाहित होती है। लेफ्ट वाली नाड़ी में हमारा अस्तित्व है। उसी के कारण हमारा अस्तित्व है, इसलिये इस नाड़ी को यही कहा जाता है, कि इसी से हमारा विध्वंस भी हो सकता है। जिस नाड़ी से हमारा अस्तित्व है, उसी से हमारा विध्वंस भी हो सकता है। हम खत्म भी हो सकते हैं। उसका कारण ये है, कि जिस सूर्य के कारण आज हम प्रकाशित हैं, जैसे ही वो मिट जाता हैं, उसी के कारण अँधेरा भी छा जाता है। बीच की जो नाड़ी है, जिसे की सुषुम्ना नाड़ी कहते हैं, इसी में हमारी उत्क्रांति याने इवोल्यूशन की शक्ति प्रवाहित होती है । इस शक्ति को महालक्ष्मी शक्ति कहते हैं। ये तीनों शक्तियाँ एक सदाशिव की तीन शक्तियाँ होती हैं । एक ही परमेश्वर की तीन शक्तियाँ हो सकती हैं। बहुत लोग कहते हैं, कि भगवान तो एक ही हैं। आप भी एक हैं, लेकिन आप की नाक है, आँख हैं, कान हैं, आपके अन्दर अनेक शक्ति विचरण करती हैं। आप लेखक हैं। उसके अलावा आप गायक भी हो सकते हैं। आप पिता हैं, आप भाई हैं, आप किसी के बेटे भी हो सकते हैं। उसी प्रकार एक परमात्मा भी अनेक शक्तियों से युक्त हैं, उसमें से उसकी जो मुख्यत: तीन शक्तियाँ हैं, वो इस प्रकार हैं। जो पहली हैं, वो हमारे अस्तित्व को देती है। जो दूसरी हैं, वो हमारे अन्दर कोई भी कार्य करने की प्रवृत्ति या जिसे कहना चाहिए कि क्रियेटिव पावर वो देती हैं। और जो दूसरी शक्ति हैं, उसे हम उत्क्रांति या इवोल्यूशन कहते हैं, पहले अमिबा थे, उससे इन्सान बन गये। जहाँ तक हम बन पाये, जो कुछ भी हम बन गये, अब हम मानव हैं। मानव की एक अपनी चेतना है। उस चेतना पर वो खड़ा है। उसमें वो परमात्मा को नहीं जानता पर ये जानता है कि उसके (परमात्मा) अन्दर कोई न कोई ऐसा अदृश्य रूप छिपा हुआ है, जो हर एक चीज़ को जानता है। इसी हक पर मानव है, इस जगह इसी हक पर वो है जहाँ कि वो जानता है, कि कोई न कोई मेरे पीछे देख रहा है, द्रष्टा बन कर के, जिसे में नहीं जानता, लेकिन वो मुझे जानता हैं। वो मेरी हर एक चीज़ को देखते रहता है। इतनी ही मानव की चेतना आज है। और अब उसे क्या होना है? उसे कहाँ पहुँचना है? इसमें इसके बारे में साइन्स में भी काफ़ी .(अस्पष्ट)। जैसे कि साइकोलॉजी का विषय है, जिसमें यूंग नाम के बड़े साइकोलॉजिस्ट हो गये, जिसको फ्राइड ने शिक्षा दी थी। पर उन्होंने बाद में फ्राइड की सारी थिअरीओं को बिल्कुल ही नाकारा। उस यूंग ने ये बताया कि हमारे अन्दर कोई न कोई ऐसी शक्ति है, जिसके कारण हमारे अन्दर सन्तुलन बनते रहता हैं। जैसे कि कोई एक 3

Original Transcript : Hindi था। उसको ऐसे सपने अनेक बार आते थें कि वो बेटे के सामने अनेक बार झुक जाता था। और बेटे के सामने वंदना करता था। तो उसने जा कर के साइकोलॉजिस्ट से पूछा, कि इसकी क्या वजह हो सकती है? तो उसने कहा, कि तुम्हारे लड़के से तुम्हारा क्या रिश्ता हैं? उसने बताया, कि मेरा उससे रिश्ता बड़ा खराब हैं। मैंने दूसरी पत्नी कर ली हैं, उसे तकलीफ़ होती है। उसने कहा, इसलिये अन्दर से ये शक्ति तुम्हें बता रही है, स्वप्न में आ कर ये शक्ति तुम्हें बता रही हैं, कि देखो, ये लड़का जो है राजा है, उसके सामने झुका करो। उसी प्रकार उन्होंने अनेक स्वप्न ले कर के ये प्रस्थापित किया , कि हमारे अन्दर एक शक्ति है, जो अचेतन में बैठी हुई है। सबकॉन्शस। लेकिन वो सर्वव्यापी शक्ति है। लेकिन कुछ तो उनको मिल गयी बात कि ऐसी कोई सर्वव्यापी शक्ति है, जो सोचती है, समझती है और हमारे अन्दर सन्तुलन देती हैं, और हमें सही रास्ते पर चलना सिखाती है। यूनिवर्सल अनकॉन्शस वाली बात। लेकिन देखती ही मनुष्य का दिमाग कितना घूमता है। अगर आप फ्राइड को पढ़े, उसके बाद यूंग को | पढ़े, तो आप फ्राइड को समुंदर में फेंक देंगे कि ये बहुत ही एकांगी, बिल्कुल बेकार चीज़ है। लेकिन आश्चर्य की बात हैं, कि जितने भी पाश्चिमात्य देश हैं, वेस्टर्न लोग हैं, इन्होंने फ्राइड को माना, यूंग को बिल्कुल नहीं माना। सारे लंडन शहर में सिर्फ २५% यूंग के लोग हैं और हजारों फ्राइड के चेले वहाँ बैठे ह्ये हैं। और हजारों लोग उसके रास्ते पर चल रहे हैं। हालांकि आपस में जब कुछ भी वादविवाद करे तो कह नहीं सकते कि वो क्यों फ्राइड के पीछे पड़ गये? ये मनुष्य का दिमाग इतना उल्टा बैठ गया है, कि जो असत्य है उसे वो पहले करता है और जो सत्य है उसे खो देता है। वो ये नहीं जानता की सत्य ही सारे सुख का साधन है और सत्य से ही आपका आनन्द प्रस्थापित हो सकता है। और किसी भी झूठे चीज़ के पीछे लगने से अंत में आपका अत्यंत नुकसान होता है। इतना ही नहीं आपका जो अंतिम लक्ष्य है, जिसके कारण आपकी उत्क्रांति होने वाली है, जिसके कारण आपको आत्मसाक्षात्कार होने वाला है, वो चीज़ आप से वंचित हो जाएगी। आप उससे हट जाएंगे। ये जो बीच में सुषुम्ना नाड़ी है, उसके बारे में आज में आपको बताने वाली हूँ। इस सुषुम्ना नाड़ी के बराबर नीचे में आप देखिये, त्रिकोणाकार अस्थि, जो हमारे रीढ़ के हड्डी में है, उसमें कुण्डलिनी स्थित है। ये एक शक्ति हमारे अन्दर है, जो कि सारे बच्चे की (अस्पष्ट) बची हुई शक्ति अन्दर है, इसलिये उसे रेसिङ्यूअल कॉन्शस कहते हैं, ये बची हुई शक्ति इसमें आ कर के साढ़े तीन घेरे में बैठी है। अब वो क्यों साढ़े तीन हैं? ये भी एक बड़ा भारी गणित है। पर आप अपने ऑटोमॅटिक वॉच को देखें, तो उसमें भी साढे तीन वलय में ऑटोमॅटिक वॉच बिठाया गया। जो कि हमेशा चलते हैं। ये जो शक्ति यहाँ स्थित हैं, इसमें हमारा जो कुछ गत है, जो गलतियाँ हमने की, जो पुण्य हमने जोड़े। जिस जिस रास्ते से हम गुज़रते गये और उसके जितने भी मूल्यवान और जितने ही हानिकारक अनुभव हये हैं सब इसके अन्दर टेपरेकॉर्ड की जैसे रेकॉर्ड हैं। ये शक्ति सुप्तावस्था में रहती है। अब अगर मैं ये कहूँ कि ये शक्ति त्रिकोणाकार में रहती है, तो आप किसी की किताब को लीजिये, तो कोई कहता है पेट | में रहती है, कोई कहता है सिर में रहती है। कल जो यहाँ पर लोग आये थे, उनमें से कुछ लोगों ने देखा होगा, कि ये कुण्डलिनी यहाँ स्पंदित होती है, त्रिकोणाकार अस्थि में । कुछ लोग मेरे पैर पे आये थे, उनकी ये त्रिकोणाकार अस्थि स्पंदित होने लग गयी। जैसे कि कोई महा..... आ गया हो। अनेक लोग इस तरह देख चुके हैं। लंडन में भी बहुत लोगों ने देखा है। उसके फोटोग्राफ्स लिये हैं। फिल्म भी ली है। बहतों ने इस चीज़ को देखा है कि यहाँ पर इस त्रिकोणाकार अस्थि में स्पंदन होता है। सब में नहीं होता। 4

Original Transcript : Hindi ये समझ लीजिये कि आप बहुत ही बढ़िया इन्सान हैं, कल एक यहाँ आये थे।..... के रहने वाले। वो खट् से पार हो गये। एक क्षण। उसका स्पंदन होना आदि वगैरा सब खत्म हो जाता है। इतनी ..... गति करती हैं, कि वो दिखायी ही नहीं देता कि कहाँ वो स्पंदित हुआ, कहाँ चला गया। पर ऐसे बहुत दुर्मिळ लोग होते हैं। अधिकतर लोगों का स्पंदन दिखायी देता है। विशेषतः जिन लोगों का नाभि चक्र, आप देख रहे हैं, ये पकड़ा हुआ होता है। उस वक्त कुण्डलिनी धक्का मारती है और आपको दिखायी देती है, कि कुण्डलिनी त्रिकोणाकार अस्थि में स्पंदित हो रही है। वैसे ही अगर आप बुद्धि लगाये, तो इतनी महत्त्वपूर्ण चीज़ है, ये क्या पेट में रखी जाएगी जहाँ बार बार धक्के पड़ते हैं । ऐसे ही जगह रीढ़ की हड्डी में रखी जाएगी जहाँ वो सुरक्षित रहें और इसके बाद कोई भी ऐसा उसमें से तंतुमय निकलता है, उसके कारण वो सुरक्षित है । और वो चीज़ हमारे यहाँ त्रिकोणाकार अस्थि पर है । दूसरी बात ऐसी भी सोचनी चाहिए, कि त्रिकोणाकार अस्थि हमारे अन्दर क्यों बनायी? साइन्स में कोई ये नहीं पूछता, कि ये क्यों है? पृथ्वी के अन्दर में ऐसी शक्ति क्यों है जो हमें आकर्षित करती है? ये सवाल साइन्स में पूछने का अधिकार नहीं है। कार्बन के चार कवेलस्ली हैं, क्यों हैं? हाइड्रोजन के दो वेलस्ली क्यों हैं? इसका उत्तर सिर्फ सहजयोग में दे सकते हैं हम। साइंटिस्ट कोई वो कहेंगे हैं तो हैं। वही हम बतायेंगे। जो कुछ विदित हैं, वो बता रहे हैं, लेकिन जो विदित नहीं है वो नहीं बता रहे। किसी चीज़ को आप कारण नहीं बता रहे हैं। उसका कारण ये है, कि इसका कारण सूक्ष्म है, और सूक्ष्म में एक इन्सान की जो चेतना है उससे ऊपर उठता है। इस इन्सान की जो चेतना है वो इतनी सूक्ष्म नहीं हुई, कि जो सूक्ष्म को पकड़ लें जिसका कारण है। मनुष्य को थोड़ा सा और सूक्ष्म होना है। जैसे कि, आप माइक्रोस्कोप से देखने वाली किसी चीज़़ को देखते हैं, तो वो माइक्रोस्कोप के बगैर आप नहीं देख सकते। देखने को तो सब ऐसी ही चीज़ दिखायी देती है। आपकी आँख को वो सूक्ष्मदर्शक यंत्र का इस्तमाल करना पड़ता है, कोई उपयोग में लाना पड़ता है, जहाँ से उसको देख सके। उसी प्रकार हमारे चेतना की जब तक वो सूक्ष्मता नहीं आती तब तक आप उस सूक्ष्म को जान नहीं सकते। इसलिये पहले आपको पार होना होगा। ये जो त्रिकोणाकार अस्थि में कुण्डलिनी बैठी हुई है, ये स्वयं आपकी माँ है। हर इन्सान की कुण्डलिनी अलग होती है। वो सिर्फ उसी इन्सान की कुण्डलिनी होती है। वो हर समय उसके साथ रहती है। चाहे वो मृत्यु पर हो, चाहे वो मरा हुआ हो, चाहे वो जिंदा हो। सिर्फ उसके स्थान बदलते हैं। ये कुण्डलिनी आप जब से अमिबा थे तब से जिस जिस रूप में रहती रही, रहती रही, आज इस रूप में आपके अन्दर आ कर स्थित हुई है और ये वहाँ बैठी हुई इंतजार कर रही है कि इसका अधिकारी उसके सामने आये तो ये उठ कर के आपका पुनर्जन्म करें। यही कुण्डलिनी आपको पुनर्जन्म देती है, जिसके लिये कहा जाता है आप द्विज हैं, आपका जन्म दो बार हो गया है। पहले आप अंडे थे। अंडे से आप मुर्गी जैसे हो जाते हैं। ऐसा कहा जाता है, पक्षी को द्विज कहा जाता है। जो दो बार | जन्म लेता है वो द्विज है। वही ब्राह्मण होगा, जिसने ब्रह्म को जान लिया। ब्रह्म उस सूक्ष्म शक्ति का नाम है, जिसकी मैं बात कर रही हूं। वो ब्राह्मण है। जन्म से कोई ब्राह्मण हो ही नहीं सकता। कोई सोचता है, कि जन्म से कि वो ब्राह्मण हैं तो वो गलतफहमी में है। किसी ने से यहाँ तक कहा , मैंने गीता वरगैरा पढ़ी नहीं है, लेकिन किसी ने कहा, गीता में मुझ 5

Original Transcript : Hindi लिखा है माताजी, कि क्या जन्म से ही ब्राह्मण होते हैं? मैंने कहा कैसे हो सकता है? जिसने लिखा कौन था ? व्यास। किस का लड़का था ? उसकी माँ कौन थी? उनकी तो शादी भी नहीं हुई थी। उसमें ऐसा लिख दिया, तो औरों का क्या कहना! व्यास कभी ऐसा लिख ही नहीं सकते। क्योंकि वो बहुत बड़े इन्सान थे। वो झूठ बात क्यों लिखेगा? इस तरह बहुत से लोग सोचते थे कि हम ब्राह्मण हो गये। अति उच्च हो गये। जिसने ब्रह्म को जाना वही ब्राह्मण हो गया। और जो ब्रह्म की ओर नजर करता है, वही इस योग्य होता है, जिसे पूजा जाये और बड़ा किया जाये। उसी को लोग संत कह कर पुकारते हैं। फिर वो साईंनाथ हो, जिसने की मुसलमान के घर में जन्म लिया चाहे | ईसामसीह हो, जिसने ज्यू के घर जन्म लिया था और चाहे जोरास्टर हो जो इरान में पैदा हुआ था। इस तरह की फालतू की जाति-पाति की कल्पना बना कर के हमने देश का इतना नाश कर के रखा हुआ है। जो राज्यकर्ता हैं, वो ब्राह्मण कैसे हो सकता है? जो राज्यकर्ता हैं, वो क्षत्रिय हैं। क्योंकि वो अभी भी सत्ता में खोज रहा है। जो सत्ता में | खोजता है वो क्षत्रिय। वो ब्राह्मण नहीं। जो ब्रह्म को खोजता है वो ब्राह्मण है और जो सत्ता में खोजता है वो क्षत्रिय है। जो पैसों में खोजता है वो वैश्य है। और जो किसी में नहीं खोजता, बस सेवा करता है और किसी तरह से पेट भरता है, वो शूद्र है। जिनको आज हम शूद्र समझ रहे हैं, वो ब्राह्मण से भी ऊँचे महाब्राह्मण कहना चाहिए उनको। और जिनको हम ब्राह्मण कर के बहुत बड़ा अधिकार दे कर के मंदिरों में सब को भ्रष्टता में डाल रहे हैं, इन सबको मंदिरों से बाहर आना चाहिए। जो दूसरों से पैसा ले कर अपना पेट भरते हैं, वो कभी ब्राह्मण नहीं हो सकते। जो ब्रह्म को..... वो कभी भी दूसरों के पैसे को देखता भी नहीं । उसमें सादगी होती है। वो ब्रह्म कर्म में इतना लीन रहता है, (अस्पष्ट)। आज तक कभी आपने सुना है कि गुरु नानक ने किसी से रुपया-पैसा ले कर अपना पेट भरा है। इस तरह से जो दरिद्री लोग होते हैं, इनको ब्राह्मण कहना साक्षात् ब्रह्मतत्त्व का अपमान है। और आप लोग भी इसका कारण होते हैं। क्योंकि आपने भी सत्य को देखा नहीं । वहाँ वो पंढरपूर में वो बडवे लोग। वो तो राक्षसों के अवतरण हैं। इतना ही नहीं, मैं गोकुळ वृंदावन में गयी थी । मैंने सोचा सारे कंस के अनुचर वहाँ पर आ कर के धर्म के नाम पे पैसा कमा रहे हैं। ब्राह्मण जो होता है वो अपने ब्रह्मतत्त्व को खोजता है और वो सुषुम्ना नाड़ी पे सात्विक होता है। सात्विकता का मतलब भी बड़ा गलत समझा गया है। जो मैं बताना चाहती हूँ। बहुत से लोग आज कल ये भी अर्थ लगाते हैं, कि कोई अगर सात्विक हो जायें तो उसे डंडों से मारिये। उसको चुप रहना चाहिये। हम लोग भी आज तक यही करते आये हैं। कोई भी आदमी जो आपको सत्य बताने के लिये खड़ा हुआ हो, उसे डंडों से मारा और जिसने असत्य बताया, आपको भडकाया, आपको गलत रास्ते पे चलाया, उसकी आपने झोली भर दी। उसके महल खड़े किये हैं। उसके पास कॅडलॅक की गाड़ियाँ और फलानी गाड़ियाँ रहती हैं। और जो आदमी सत्य बोलता है, उसके लिये आपके पास समय नहीं । अगर टाइम है, तो उसको मार डालो। उसको जहर दो। नहीं तो उसको सूली पर टॉगो। उसका बूरा हाल कर दो। उसकी सारी किताबें उठा कर के नदी में फेंक दो। ये हमने ब्राह्मणों का हाल कर के रखा था। और रखा है। और आज भी हम उसी दशा में हैं। आज भी हम यही करते आ रहे हैं। इस चीज़ से अगर छूटे तो धर्मान्धता को लेकर छूटे, तो हम जब दूसरी साइड़ में जाते हैं, यहीं आप देख लीजिये, कि ये जो लेफ्ट साइड़ हैं, इससे आदमी की धर्मान्धता बनती है। जो राइट साइड़ में आता है तो, छोड़ो सब चीज़ को भगवान नहीं, कुछ नहीं, सब कुछ छोड़ कर .......। 6

Original Transcript : Hindi लेफ्ट साइड़ से आदमी अपनी इमोशन्स को बनाता है। अपनी भावना को बनाता है। अपने देश में लोग अधिक भावनात्मक हैं। अपना बेटा, अपना घर, अपनी पत्नी, ये सब जाल है। कुटुंब व्यवस्था ठीक, लेकिन राजकीय व्यवस्था...। परदेस में राजकीय व्यवस्था अच्छी है। इकोनॉमिक व्यवस्था अच्छी है। लेकिन कुटुंब व्यवस्था एकदम खराब। उनकी राइट साइड़ लगी हुई है और हमारी लेफ्ट साइड़। इन दोनों के बीचोबीच जो सुषुम्ना नाडी हैं, उसे पाने का है। लेकिन उसमें पाना बहुत मुश्किल है। उसमें चलना बहुत मुश्किल है । क्योंकि आप देख रहे हैं, वो बीच में कटी हुई है। जैसे कि, तीन संस्था हैं । एक लेफ्ट में, एक राइट में और एक बीच में है, अधुरी। यही अधूरापन है, जिसे मैं कह रही थी। इस अधूरेपन को पूरे करे बगैर आपको आत्मा के दर्शन नहीं हो सकते। अब इसे हमारे साइंटिफिक लँग्वेज में, मैंने आपसे कहा था, कि लेफ्ट और राइट सिम्पथॅटिक नर्वस सिस्टीम कहते हैं। इसे नहीं कहते, ये तो अन्दर करंट है, लेकिन इससे जो बाहर मॅनिफेस्टेड है, उसे कहते हैं और बीच वाली को पॅरासिम्पर्थॅटिक नर्वस सिस्टीम कहते हैं । ये एक जो बीच की संस्था है ये, जो भी आपकी शक्ति है, वो आपके अन्दर संचित शक्ति है। अगर आपके अन्दर .......शक्ति है, और चूंकि लिमिटेड शक्ति है, वो अनलिमिटेड नहीं, लेकिन बिल्कुल सीमित है, असीम नहीं है, उसी सीमित शक्ति को इस्तेमाल करते हैं। जैसे समझ लीजिये मेरे हाथ में दिखा रहा है यहाँ से इस प्रकार आप देखिये तो बीच में जो ..... हो रहा है, ये एक चक्र है, सेंटर है। अब इस तरह से लेफ्ट साइड और इस तरह से राइट साइड की शक्ति आ रही है और ये जो बीच में सेंटर है, इसमें से सुषुम्ना नाड़ी जाती है। इसके बीचोबीच इस प्रकार यहाँ, हमारे अन्दर सात मंजिल बने होते हैं। हम लोगों ने अभी तक जो मंजिल तय की है, वो सारे इसमें बने हैं। ये कृण्डलिनी शक्ति बीच में है इसको इन्ही मंजिलों से गुजर के जाना है। इन मंजिलों को चक्र कहा जाता है। हर एक मंजिल पर एक एक चक्र है। जब इनको चक्र कहते हैं तो लोगों को लगता है, माँ क्या कह रही है? पर इसी को अगर कहूँ, कि इन्हीं चक्रों से हमारे अन्दर प्लेक्ससेस बनते हैं, मैं जिनके नाम डॉक्टर लोग जानते हैं, और इसके बारे में हमारी किताब में विस्तृत रूप से बताया गया है, इनके क्या नाम है? और वो क्या क्या कार्य करते हैं! अब ये जो बीच की शक्ति है, ये हमारे अन्दर कितनी प्रस्थापित हुई है, उसे पहले देखना चाहिये और आगे क्या होने वाली है उसे भी देखना है। जब हम जानवर से मनुष्य हये तो आखरी चीज़ हमने की, कि गर्दन उठा ली। बीचोबीच आ गये। पृथ्वी से हमनी अपनी गर्दन ऊपर उठा ली। और बीचोबीच अपनी गर्दन को ले लिया। इस दशा | में हम जानवर से मनुष्य की दशा में आ गये, बाहर से। लेकिन अन्दर से, हमारे अन्दर कितनी बातें आयी हैं इसका अन्दाजा आप नहीं लगा सकते। सब से तो पहली चीज़ हमारे अन्दर ये आयी, कि हमने ये जाना, कि मनुष्य के अन्दर कोई न कोई ऐसी शक्ति है, जो उसको सस्टेन करती है। जो उसको पालती है, पोसती है और इसके कारण मनुष्य, मनुष्य कहलाता है। जैसे कि सोना है। वो इसलिये सोना कहलाता है, कि वो खराब नहीं होता। उसी प्रकार मनुष्य वो होता है, जिसके अन्दर ये धर्म, दस धर्म जो बनाये गये हैं, वो स्थित हैं । जिस मनुष्य के अन्दर ये दस धर्म स्थित नहीं होते वो अधूरा है । जानवर कभी नहीं सोचता कि उसका क्या धर्म है। बिच्छू कभी नहीं सोचता कि उसका क्या धर्म है! हम 7

Original Transcript : Hindi उसके बारे में सोच सकते हैं और समझ सकते हैं, कि हमारा धर्म क्या है। ये जो बीच में जगह छूटी हुई है, इसको लाँघने के लिये, कुण्डलिनी को ऊपर चढ़ने के लिये, हमें ये दस धर्म संतुलन में रखने चाहिए। इन धर्मों को हमें ऐसा रखना चाहिए, कि जब ये कुण्डलिनी चढ़े, उसमें रुकावट न आये। हम से तो कुण्डलिनी के चढ़ने से ही आप पार होंगे। लेकिन ये जो दस धर्म हमारे अन्दर में बताये गये हैं, इनको हमें संतुलन में रखना चाहिए। अब बहुतों ने बता दिया। अब मैं नया नहीं बता रही हूँ। जो भी सद्गुरु आये, सद्गुरु मैं कह रही हूँ, गुरुघंटाल नहीं। जो सद्गुरु आये हैं, सबने, इन में अनेकों ने कहा, मोझेस, सॉक्रेटिस यहाँ तक की आप देखें राजा जनक, उसके बाद में मोहम्मद साहब, नानक साहब, जोरास्ट्रर, इन सब ने यही बात कही, कि अपने धर्म को संतुलन में रखो। उसमें से एक चीज़ जिसको ले कर के हमने बड़ा राजकीय वितंडवाद बना दिया है, वो ये है कि शराब नहीं पीनी। अब जो आदमी शराब पी कर के यहाँ कुण्डलिनी जागरण करने आये उसकी नहीं उठती कुण्डलिनी। फिर वो मुझे मारने दौड़ता है। माताजी, कुछ भी कर के मेरी कुण्डलिनी जागृत होनी चाहिए। चाहे मुँह से उसके शराब की बास आती होगी। लेकिन ये तो बिल्कुल डंडा ले थें, जिन्होंने कहा, कि शराब नहीं पीनी चाहिए । क्यों कहा? क्योंकि शराब आपकी चेतना के विरोध में जाती है कर मेरे सामने बैठता है। कहता है, नहीं, होनी चाहिए । अब ये सब बेवकूफ़ शराब हमारे लिये क्यों बनायीं? पालिश करने के लिये| पालिश है वो, सादा पालिश है। शराब माने पालिश है। फर्मेंटेशन के लिये जो बनाया जाता है वो पालिश है। और उस पालिश को पीने के लिये परमात्मा ने नहीं बनाया। लेकिन किसी मूर्ख के हाथ लग गयी। उसने पिया उसका नशा चढ़ गया , तो शराब पीने लगे। जब आपकी कुण्डलिनी जागृत हो कर के नाभि चक्र को भेदती है, तो साइंटिफिकली बतायें शराब में क्या है? बड़ा मुश्किल है। जिस वक्त आप शराब पीते हैं, और शराब जब अपने शरीर में जाती है, ये शरीर में जाने से हमारे शरीर में जो हाइड्रोजन और ऑक्सिजन, ओएच, आयन्नस् हमारे पानी में । मुझे कहना नहीं पड़ता। अपने आप। अब होते हैं, उसकी प्रकृति बदल जाती है। उसका डाइग्राम बदल जाता है। उसके बदलने की वजह से हमारे शरीर में जहाँ पर भी शराब का असर, खास कर लीवर खराब हो जाता है। लीवर में जब शराब पहुँचती है, तो वहाँ का माहौल बदल जाता है। वहाँ का वातावरण बदल जाता है। वहाँ के ओएच का, हाइड्रोजन, ऑक्सिजन का आयर्न पानी के अन्दर होता है वो इस तरह से बदल जाता है, कि जितनी भी लीवर की गर्मी होती है, उसे वो नहीं ले पाता और लीवर में गर्मी बढ़ती जाती है और वो पानी में नहीं बहती। शराबी आदमी को कभी टेंपरेचर नहीं होता। उसके लीवर में गर्मी हो जाती है। हम अगर हाथ रखते हैं तो हाथ जलता है। उसके लीवर पर हाथ रखने से। पर उसे नहीं पता चलता। क्योंकि उसके शरीर में गर्मी नहीं आती। गर्मी वहीं एकत्रित उस ऑर्गन में होने लग जाती है। कैन्सर पेशंट का भी ऐसा ही होता है। कॅन्सर में भी यही एक आयर्न जो है, वो इस तरह से अपने को बदल देता है, वो अपनी गर्मी को अपने अन्दर से वहन नहीं करता इसलिये खून में गर्मी नहीं आती। इसलिये आप को टेंपरेचर नहीं आता। कैन्सर पेशंट को कभी भी बुखार नहीं आता। सर्दी वरगैरा से होगा, पर कैन्सर से नहीं आता । आप समझ लीजिये कि शराब कितनी खतरनाक चीज़ है। अब जब ये चीज़़ आपके अन्दर प्रस्फुटित होती है, तो आपका जो ऑँर्गन जिसमें ग्मी तक हो जाती है, वो इस कदर खत्म हो जाता है, कि आपका सब कार्य तो खत्म हो ही जाता है। उस ऑर्गन का सारा कार्य खत्म हो ही जाता है। लेकिन थोडे दिन में आप भी जलने लग जाते हैं और 8.

Original Transcript : Hindi आप खत्म हो जाते हैं । लेकिन आपको उसकी गर्मी महसूस नहीं होती इसलिये आप पीते ही रहते हैं। उसकी कोई तकलीफ़ नहीं होती और उसका मजा आता रहता है। तो आप उसी चक्कर में घूमते रहते हैं, और इसी कारण ये चीज़ बनती जाती है, बनती जाती है। अंत में जा कर हालत बहुत खराब हो जाती है, तब पता हुआ, कि किसी रास्ते के किनारे पड़े हये हैं बड़े भारी साहब ! कोई नेता साहब थे, वो . (अस्पष्ट) नाली के अन्दर। लोग कहते हैं, चलो, शराबी था, मर गया। खत्म करो । पर तो भी थोडी ली तो चलेगा का क्या माताजी? पर सहजयोग का इलाज और है। जब कुण्डलिनी छेद कर के ऊपर चली जाती है, तो पी नहीं सकते आप। मुश्किल काम है। पी होगी तो उल्टी होगी, उसी वक्त। चक्कर आएंगे तुम्हे। अपने आप छूट जाएगा। पर ये नहीं मैं जबरदस्ती तुमने पीना शुरू किया, तो तुम्हारे वाइब्रेशन्स छूट जाएंगे । उसके बाद यहाँ आ कर मेरी जान खाएंगे, इतने दिन से सहजयोग कर रहा हूँ, फिर कैसे वाइब्रेशन्स छूट गये। जब तुम्हें किसी चीज़़ को मना किया है , तो उसे और भी जबरदस्ती करना चाहिए ये भी मनुष्य का काम है। कहा, नहीं पिओ। अरे, उससे ये हो जाता है। तो उसे करना ही चाहिए। मुसलमान लोग इतनी शराब पीते हैं। जब कि मोहम्मद साहब उसे मना कर गये थे लंडन में। उनके मुकाबले अपने सीख भाई बैठ सकते हैं। गुरु नानक साहब उसको मना कर गये । ये लोग इतनी शराब पीते हैं, उनके आगे तो अंग्रेज भी साष्टांग है। उधर ...... की हम घमेला नहीं पहनेंगे। क्यों? हम बाइक पे जाते हैं, तो हम घमेला नहीं पहनेंगे। उसके लिये जुलूस निकाले, फलाने किये। कहने लगे, माताजी, इनका क्या इलाज है? मैंने कहा, उनको जरा पूछो तुम्हारे इसमें क्या मना है? किस चीज़ को मना किया है? हर तरह की किसी भी मादक चीज़ को पूरी तरह से जहाँ मनाई की है, वहाँ वो घमेले नहीं पहनने से क्या आप सीख हो जाएंगे? वो लोग पीते हैं जहाँ उस चीज़ की मनाई हो। मुसलमानों को बूरी तरह से मना किया गया है। हयूज को जो कि मोजेस ... शुरू किया था, उसने भी मना किया था। अपने हिन्दुओं को तो जो भी करो फ्रीडम है। मुझे एक साहब कहने लगे, सोमरस पीते थे देवता। मैंने कहा, क्या वो राक्षस थे ? जो शराब पीते थे। उसका नाम मदिरा है, सोमरस नहीं। किसने बताया की सोमरस का मतलब शराब है? सोम का मतलब होता है, चंद्रमा और चंद्रमा यही चंद्र नाड़ी को कहते हैं, जो लेफ्ट साइड़ में है और इसका रस क्या है, यही जो आपके हाथ से बह रहा है। उसका नाम सोमरस हो गया। देवताओं को ही पीने का था। जो देवता हो गये, माने जो पार हो गये उन्हीं को ये सोमरस पहले पीने की व्यवस्था की और जो अश्विनीकुमार जो वैद्य थे , उनके लिये तक मनाई थी, कि तुम नहीं पिओ। क्योंकि तुम वैद्य हो । तुम अपनी दवाईयाँ बेचते हो तुम्हें नहीं पीना है। उसका अर्थ उन्होंने ये लगाया कि पहले देवता लोग शराब पीते थे। देवता लोग हमारे जैसे सामान्य नहीं हैं । वो लोग अत्यंत विशेष व्यक्तियाँ हैं, जो इन चक्रों में स्थित हैं। मनुष्य अपने दिमाग से ही देवता भी बना लेते हैं और उनको भी अपने जैसा बना लेते हैं। कम से कम हिन्दुस्तान में इतना ज्यादा नहीं किया है। किया था सब कुछ। लेकिन चला नहीं। किसी ने माना नहीं। पर भगवान को देखिये, उन्होंने सब के नमूने बना कर रखे हैं। उन्होंने सोचा, देवता ही बना दो। तो हमारा जो सारा कारोबार है, आराम से चलते रहेगा । हम कहते हैं, देवता है ठीक है। देवताओं ने ये धंधे करे हैं। इसलिये मैं कहती हूैं कि ये भारत भूमि एक योगभूमि है। कितना भी आदमी गधा बन जायें, लेकिन इसकी धूरी नहीं बिगड़ती । आदमी ये समझ के रहता है कि ये मूर्खता है, हालांकि मैं मूर्खता की बात कर रहा हूँ। पर ये मूर्खता है। पर परदेस में लोग 9

Original Transcript : Hindi मुर्खता करते हैं, और सोचते हैं, कि बहुत ही उन्होंने अकल की बात की। कहो, तो समझ में नहीं आता, कि उन्हें कैसे बताना चाहिए? जिसे मूर्खता हम लोग समझते हैं, खास कर जाते हैं, यहाँ से जो अंग्रेज बनने जाते हैं, थोड़ा बहुत करते हैं, लेकिन वो जानते हैं कि ये मूर्खता है | ये जो हमारे अन्दर दस धर्म बताये हैं, उसके बारे में मैं अधिक नहीं बताऊंगी। लेकिन बाइबल में इसे टेन कमांडमेंट्स कहते हैं। अपने यहाँ गांधी जी ने जो व्रत बताये हैं, उसमें से एक व्रत उन्होंने कहा स्वदेसी। स्वदेसी पहनने की बहुत जरूरत थी। स्वदेस में जो बनता है उसको पहनना। इसलिये वो ग्यारह व्रत उन्होंने बनाये हैं। वही दस व्रत हैं। वही अनेक बार बतायें हैं। कोई भी कठिन नहीं है। सब आसान है। शराब पीना है, तो कोई इझी काम थोडे ना है। हम जब यहाँ बम्बई में रहते थे तो हमने साहब से मना किया था कि घर में चाहे कोई आये, शराब देना ही नहीं। हमारे बस का नहीं। हमारी हालत खराब हो जाती है शराब की वजह से। आपको आश्चर्य होगा, कि शराब के सिर्फ वो जो टम्बलर आते हैं, वही कोई एक हजार पाऊंड के खरीदने पड़े। कोई शराब पी ले तो कोई ऐसा खींचता है हाथ, तो कोई ऐसा खींचता है हाथ । शेकहँड करना मुश्किल। जो सब से कठिन चीज़ है उसको हम लोग सोचते हैं, कि बहुत ही आसान है। पिओ ही नहीं तो सारी प्रॉब्लेम खत्म। क्या मिलता है? पी कर के क्या मिलता है, मेरी आज तक समझ में नहीं आया। किसी दिन में उधर बैठती हूँ, आप लोग यहाँ आ कर के मुझे समझाईयेगा| इसी प्रकार सिगरेट के लिये मना है। तम्बाकू क्या है? इनसेक्टिसाइड है। इनसेक्ट को मारने की दवाई। वो इनसेक्टिसाइड। आपको आश्चर्य होगा , 'हम तो परदेस बेचते हैं, अपने देशवासियों को नहीं बेचते। हम तो पीते नहीं हैं।' मैंने कहा, 'ये पाप नहीं है क्या। में मैंने कहा कि, 'यहाँ तम्बाकू क्यों लगा के रखी है?' कहते हैं, परदेस भेजते हो तो कोई पाप नहीं है ?' कहने लगे, हमारे भाई - बहन को तो नहीं पिलाते। बाहर भेज रहे हैं।' मैंने कहा, 'देखो, ये बंद करो, नहीं तो ये समुंदर आ के खा जाएगा तुम लोगों को।' समुंदर जो है वही वो गुरु तत्त्व है, वही धर्म सिखाने वाला गुरु है। जो ये चीजें करेक्ट करते रहता है। मैंने कहा, समुद्र के किनारे रहना है तो सम्भल के रहना है। अगर ये बिगड़ गया तो तुम्हारी सारी जमीनें खत्म हो जाएगी। वहाँ दो ही चीज़ मैंने देखी । एक तो देखा कि, बुरी तरह से वहाँ ये तम्बाकू के पेड़ लगाये हुये हैं हर जगह और उसके किनारे कुछ आदिवासी लोग बैठे हये थे और वो खूब काली विद्या और दुनियाभर की विद्यायें करते बैठे हैं। दो तरह के लोग थे। एक तो खूब तम्बाकू लगाये थे और एक जो हैं वो एक अरीब तरह का खेल कर रहे थे। मैंने कहा कितना अंधेर है। मैंने उनसे कहा हुए था, देखिये, ये खत्म करो । उन्होंने उसे बड़ा बुरा माना। उसके बाद में चली आयी तो मुझे चिठ्ठी भी नहीं लिखी । बहुत गुस्सा हो गये। लेकिन दूसरे साल समुद्र की बाढ़ आयी। जहाँ जहाँ इन्होंने तम्बाकू लगायी थीं । वो सारी जमीन ही खारी कर ड़ाली। कोई इनसेक्टिसाइड को स्मोक करे, उसका धुआँ ले अन्दर तो क्या होता है? ये स्थान जो विशुद्धि का है, आप देखिये बहत कम लोग खाँस रहे हैं, कल बहुत खाँस रहे थे। ये जो विशुद्धि का स्थान है, जहाँ श्रीकृष्ण साक्षात् विराजते हैं । जहाँ हमने गर्दन उठायीं तब हमने जाना, कि हम कोई बड़े भारी विराट के अंगप्रत्यंग हैं। इस जगह, इस विशुद्धि चक्र पे जब हम स्मोक करते हैं, तो विशुद्धि चक्र में ये जो धुआँ जाता है, वो श्रीकृष्ण को मंजूर नहीं। इसलिये वो वहाँ सो जाते हैं। इसके साथ में सोलह हजार नाड़ियाँ बनी हुयी हैं। 10

Original Transcript : Hindi जिसकी ... सोलह सब प्लेक्ससेस हैं। जिसे कान, नाक, थ्रोट, माऊथ, टीथ, कपाल, आँख का बाहर का हिस्सा ये सब कुछ उससे चलता है। अब आपने एक-दो पैसे की सिगरेट पी, उससे वहाँ श्रीकृष्ण नाराज हुये और आपका सारा ही चेहरा बदल दिया। सारी ही मुँह की रौनक बदल दी। सारा मुँह का तेज़ उतर गया। आँखें धुँधला गयीं। सब तरह की तकलीफें उस दो पैसे के सिगरेट से हो सकती है। इतना ही नहीं एक पूरी तरह चीज़ वहाँ जम सकती है, जिसका नाम कैन्सर है। एक तरह से कैन्सर के आने से अच्छा ये हुआ, कि लोग जागृत हो गये । सहजयोग में कुण्डलिनी जब इस चक्र को छेदती है, उसके बाद आप स्मोक नहीं कर सकते। मुझे कुछ कहना नहीं पड़ता है। एक साहब सिंगापूर में बहुत स्मोक करते थे। मुसलमान थे वो। वो जब मेरे पास आयें और जब पार हो गये तो उनके पास एक बड़ी गुगुल का, (अस्पष्ट) एक तरह का इसेन्स होता है, उसकी खुशबू आने लगी। बहुत खुशबू आयी। सारे कमरे में खुशबू आने लगी। उसके बाद वो जब भी सिगरेट मूँह में लगाये तो उन्हें खुशबू आने लग गयी। उनकी सिगरेट छूट गयी। उसके बाद उनकी बीवी, जो सहजयोग के विरोध में थी , वो भी सहजयोग में आ गयी। उसमें सिर्फ इतना ही है, कि जब कुण्डलिनी जागृत हो जाती है और हमें प्रकाशित करती है तो श्रीकृष्ण जागृत हो जाते हैं। फिर उसके बाद अगर कोई सिगरेट पीने की कोशिश करें तो वो अपना अस्त्र चलाते हैं। और आप भी अपने को देख कर के समझते हैं, कि वाह मियाँ, अब आपका क्या हाल होगा ? मैंने आपको अभी बताया है, कि ये जो नाभि चक्र हैं, ये आपको सस्टेनन्स देता है। उत्क्रांति की शक्ति देता है । और इसमें श्री विष्णु जी का स्थान हैं। श्री विष्णु जो हैं, वो हमारे अन्दर सस्टेनर होते हैं। विष्णु जी कोई हिंदूओं, मुसलमानों के भगवान नहीं, वो परमात्मा का वो स्वरूप है, जिसके कारण हमारे अन्दर उत्क्रान्ति होती है, और उनका स्थान यहाँ पर नाभि चक्र पर होता है। विष्णु जी की बात मैं कर रही हूँ, उसी के साथ साथ मैंने मोहम्मद साहब की भी बात करी, जो साक्षात् दत्तात्रेय के अवतरण थे। और दत्तात्रेय अनेक बार गुरु स्वरूप इस संसार में उतर के आये हये हैं, जिसके मैंने नाम बताये थे। जो इस भवसागर में, इस विराट के भवसागर में बसे रहते हैं। वो हमारे धर्म को बचाते हैं। वो हमारे धर्म की रक्षा करते हैं। अब धर्म का अर्थ हिंदू, मुसलमान ये नहीं है। इसका मतलब है हमारे सस्टेनन्स पावर की वो रक्षा करते हैं जो हमारे अन्दर स्थापित है। वो सब एक ही चीज़ हैं। जो मोहम्मद हैं, वही नानक हैं। दो चीज़ नहीं हैं। नानक साहब ने एक बार कह ही दिया इस बात को। एक बार नानक साहब लेटे हये थे। हम लोग ये भी भूल गये हैं शायद कि नानक साहब इस संसार में इसलिये आये थे, कि हिंदू- मुस्लिम युनिटी हो। मतलब जब मोहम्मद साहब इस संसार से चले गये, तो उन्होंने देखा , कि ये बेवकूफ़ आपस में लड़ रहे हैं। इसलिये वो संसार में आये लोगों को समझाने के लिये कि मुसलमान भी वही है और तुम भी वही हो। तुम एक हो। उस वक्त जब वो लेटे हये थे , तो कहा, अच्छा, चलो, मैं पैर हटा लेता हूँ। जब दूसरी तरफ़ किया, तो ये भी तो काबा की तरफ़ ही तो हो रहे हैं। तो किसी ने कहा कि आपके पैर तो काबा की तरफ़ हो रहे हैं। तो उन्होंने इसका मतलब जिधर आप पैर कर रहे हैं उधर ही काबा हो रहा है। इसका मतलब क्या हो गया? इसका मतलब ये है, काबा जिसके पैर में पड़ा है, वही नानक साहब हैं। ये सब बातें हम भूल गये। अखंडता करते करते हम ये भूल ही गये, कि वो क्या कह गये उसको । मैंने तो तेहरान में उनसे पूछा, कि आप में से कितने मुसलमान हैं, खड़े हो जाओ। मैं देखती हूँ। लंडन में पूछा, कि आप में से कितने मुसलमान हैं, खड़े हो जाओ। सब ऐसे ऐसे देखते हैं। पाँच मर्तबा नमाज़ पढ़ते हो और छठी मर्तबा शराब पीते हो । 11

Original Transcript : Hindi ये जो उन गुरुओं ने दी हुई शक्ति धारणा करती है हमारे अन्दर वो हमारे पेट के अन्दर स्थित है। इसलिये कहा जाता है, कि बेटे सोच के खाओ। जहाँ भी जाते हो, देख के खाओ | किस तरह से, किस विचार से ये खाना बनाया गया है, किसने बनाया है, किस प्रेम से बनाया है या नहीं बनाया है? उसका विचार करो। लेकिन इसका विचार हम नहीं करते है , कि प्रेम से बनाया है या प्रेम से बनाया है| आप ये विचार करते हैं , कि ये हमारे जाति वाले ने बनाया हैं, कि पर जाति वाले ने बनाया है ? उसके लिये उदाहरण रामचंद्र जी का है आपके सामने । इन्होंने शबरी के बेर खाये । शबरी एक बुद्ढी, भिल्ल औरत। आप ही सोचिये, आप में से कितने उसके झूठे बेर खा सकते हैं? कितने भी प्रेम से वो देंगे तो आप चुपके से उसे फेंक देंगे। इतना ही नहीं, उन्होंने खुद खाये और सीताजी से कहा, ना ना, तो तुम्हें दूँगा ही नहीं। ऐसा तो मैंने खाया ही नहीं। लक्ष्मण जी गुस्सा कर रहे थें । कहने लगे, 'लक्ष्मण, तुम जरा मैं थोड़ा खा लो। गुस्सा कम हो जाएगा।' जिसने भिल्ली के बेर खाये, वो राम कहाँ गये? सुबह-शाम 'राम, राम' करते हैं। और जाती-पाती का विचार कर के खाना नहीं खाते। और किस चीज़ का विचार कर के हम खाते हैं? उसे अगर सोचा जायें तो हमें ये देखने में आता है, कि हम प्रेम धर्म का विचार नहीं करते। धर्म सिर्फ प्रेम का ही है। अगर आप के पेट में प्रेम नहीं है, तो आप में कोई भी धर्म नहीं। सब से बड़ा धर्म प्रेम का है, जिसको की बड़े बड़े गुरुओं ने अपने अन्दर बसाया और जब कुण्डलिनी आपके नाभि चक्र में से गुजरती है, तो आपके अन्दर वो प्रेम आलोकित हो जाता है, और आप दसरों के प्रति प्रेम से देखते हैं । देखिये हमारे रोजमर्रा के व्यवहार में भी, माँ क्या करती है? उसे यही चिंता रहती है, कि मेरे बच्चे ने खाना नहीं खाया मैं कैसे खाना खाऊँ ? मेरा पेट .... रहा है। अभी तक खाया नहीं। सुबह से गया है, पता नहीं कहाँ रह गया। खाना नहीं खाओगे जब तक वो नहीं आयेगा। ये मुनष्य का प्रेम है। कोई परेशान होता है, उसका खाना भी छूटता है। इसलिये धर्म में प्रेम का खाना खाईये । जो मनुष्य आपको प्रेम से खाना दें, उसे स्वीकार करो। और प्रेम शक्ति ही सब से बड़ी सस्टेनन्स पॉवर हमारे अन्दर परमात्मा ने दी। जितनी प्रेम की शक्ति मनुष्य के अन्दर में है, उतनी किसी भी जानवर में नहीं है। इस प्रेममय शक्ति को हम जागृत न कर के अपने को किस तरह से हर समय बर्बाद करते रहते हैं। इसका अगर विचार हमारी समझ में आएगा कि अगर कुण्डलिनी नहीं उठ रही है, हमारे अन्दर फेनेटिसिझम होने का कारण एक ही धर्म को बहुत बड़ा रख के तो कुण्डलिनी नहीं उठती। मैं क्या करूँ? अगर आप फेनेटिक है तो आपकी कुण्डलिनी नहीं उठेगी आपका नाभि चक्र पकड़ेगा। अगर आप खाने के मामले में | फालतू की बातें सोचते हैं, और प्रेम की बात नहीं सोचते तो आपकी कुण्डलिनी नहीं उठती । अब एक और चक्र के बारे में बता कर के मैं फिर बाद में और चक्रों के बारे में कल बताऊँगी। जिसे स्वाधिष्ठान चक्र कहते हैं। जिससे हम विचार करते हैं। आगे का प्लॅनिंग करते हैं और सोचते हैं। एक स्वाधिष्ठान चक्र घूम कर के हर एक चीज़ को सृजन करता है और क्रिएट करता है। अब ये चक्र हमारे लिए बहुत जरूरी है। क्योंकि हम प्लॅनिंग करते हैं। हर एक चीज़ का सुबह-श्याम हम प्लॅनिंग ही करते हैं। माने फ्यूचर में जाने की बात। ये तो ऐसा ही हुआ कि रास्ता देखा ही नहीं है, पहले से अपनी अपनी स्टिअरिंग व्हील मोड के रख दी। पहले रास्ता तो देखो, कैसे आ रहा है? जहाँ मुड़ेगा वहाँ चलो। पहले से प्लॅनिंग करने वाले लोग हमेशा डाइबेटिस से बीमार हो जाते हैं। हम लोग डाइबेटिस ठीक करते हैं। एकदम १००% ठीक हो सकता है। क्योंकि जो आदमी , एक चक्र का 12

Original Transcript : Hindi इस्तमाल एक ही चीज़ के लिये बहुत ज्यादा करता है उसमें इम्बॅलन्स आ जाता है। उसकी जो लेफ्ट साइड़ है, वीक हो जाती है। लेफ्ट साइड़ में हमारे पैंक्रियाज हैं, स्प्लीन है, किडनीज हैं । यहाँ तक की बहत ज्यादा प्लॅनिंग करता है उसे डाइबेटिस हो सकता है। स्प्लीन की बीमारी हो सकती है। और उसको किडनी की बीमारी हो सकती है। उसको यूट्स की बीमारी हो सकती है। क्योंकि यही चक्र है जो कि हमारे पेट का जो मेद है, फॅट है, उसको सप्लाय करता है हमारे ब्रेन के लिये, कि हम इसे इस्तमाल करें। हमारी सोच, थिंकिंग और प्लॅनिंग के लिये। अब आप कहेंगे कि, क्या माँ प्लॅनिंग नहीं करना चाहिये? मैंने कहा, बिल्कुल भी नहीं। मैं तो कहती हैँ बिल्कुल प्लॅनिंग मत करो । क्योंकि प्लॅन करने वाला तीसरा है। तुम जितना प्लॅन करोगे उतना ही वो खींचेगा । मॅन प्रपोजेस अँड गॉड डिस्पोजेस। बहुत सालों से याद करते आ रहे हैं। संकल्प, विकल्प करोति । लेकिन इसे विश्वास नहीं होता माँ की बात पर, कि माँ कह रही है प्लॅन मत करो । पहले परमात्मा को जान लो, फिर उसके प्लॅन को भी जान लोगे। एक उदाहरण बताते हैं। लंडन में एक मुसलमान थे अल्जेरिया के, जमैल नाम था उनका। वो लंडन आये थे। बहुत बेचारे परेशान। स्कॉलरशिप के लिये गये थे युनिवर्सिटी में। उनको नहीं मिली स्कॉलरशिप। वो आये और कहने लगे, 'माँ, मैं जा रहा हूँ। अब मुझे आपको छोड़ के जाना पड़ेगा। मैं जा रहा हूँ अल्जेरिया।' उन्होंने सात सौ मुसलमानों को अल्जेरिया में पार किया हुआ है। तो मैंने कहा, 'क्यूँ? क्या बात है?' कहने लगे, 'मुझे स्कॉलरशिप नहीं मिली। मैं जा रहा हूँ।' मैंने कहा, 'कब जा रहे हो ?' कहा, 'गुरुवार को।' मैंने कहा, 'रुक जाओ। मंगलवार को चले जाओ।' उन्होंने सोचा, अब माँ ने कहा है, तो रुकना है। तो कहा, 'हाँ, में सब कॅन्सल करता हूँ। मंगलवार को जाऊँगा।' और सोमवार को उनको मिल गयी स्कॉलरशिप। दुसरे साहब एक हैं। ललित .... । आने वाले हैं, आप उनसे पूछियेगा । उनको बड़ी पैसों की दिक्कत हो गयी थी पहले। उनको बड़ी अच्छी नौकरी मिल गयी लेकिन उसके लिये उनको सौदी अरेबिया जाना था। उन्होंने आ के कहा, 'माँ, नौकरी तो मिल गयी। लेकिन फौजी, आर्मी में जाने का मन नहीं कर रहा है। आप यहाँ हैं, मैं आपकी सेवा में रहना चाहता हूँ। सौदी अरेबिया में नहीं जाना चाहता।' तो मैंने कहा, 'अच्छा बेटे, जैसा तुम्हारा मन हो।' दो दिन बाद आ कर कहा, वो तो कॉन्ट्रॅक्ट ही कॅन्सल हो गया। वो नौकरी चली गयी। हमने कहा, 'चलो, ठीक है। भगवान की इच्छा!' जैसे राखहूँ, वैसे ही रहूँ। उसके बाद आ कर के कहा, 'कमाल है! यहीं पे मुझे इससे भी बड़ी नौकरी मिल गयी, लंडन में।' पर इस का मतलब ये नहीं कि जिसकी आप इच्छा करते हैं, परमात्मा की भी वही इच्छा करते हैं। उसकी इच्छा के अनुसार चलना आना चाहिए। (अस्पष्ट) बाहर आ कर फिर प्लॅनिंग शुरू। अपने यहाँ का सारा प्लॅनिंग जो चल पाया, उसका कारण ये है। परमात्मा का प्लॅन पहले समझ लीजिये फिर आप प्लॅनिंग करिये। पहले आप आत्मसाक्षात्कार ले लीजिये, पहले ये सोच लीजिये, कि उसका क्या प्लॅन है। क्योंकि वो तो डाइनॅमिक चीज़ हैं न! इतना बड़ा प्रचंड कोई ऊपर से सारा प्लॅन कर रहा है, और आप यहाँ छुटपुटे क्या प्लॅन कर रहे हैं! आपकी हस्ती ही क्या, कि किसी चीज़़ की आप प्लॅनिंग करें! आप ये जानते हैं, सूरज की आज क्या दशा हो गयी? बहुत बार वेदर फोरकास्ट लंडन में आता है। हमें अगर जाना है तो कभी भी सूरज नहीं छिपता। आता ही है बाहर। हमारे सब लड़कों ने देखा है। सारे ग्रहगोल, सब कुछ आपके हाथ में घूम सकते हैं। पर आप जानते हैं कि प्लॅनिंग क्या है उसकी ? आप घर से निकले। रास्ते में मोटर फेल हो गयी । सारा प्लॅनिंग फेल हो गया। आप बैठे रहते हो। और प्रॅक्टिकल भी नहीं होता। जैसे कि आपने प्लॅन किया, कि सबेरे उठ कर के मैं ये ट्रेन 13

Original Transcript : Hindi लँगा। वहाँ से मैं वहाँ पहुँचूंगा। उनसे मिलूंगा। फिर उसके बाद वहाँ जाऊँगा । फिर उससे वहाँ मिलँगा। ... नहीं तो बरसात हो कर के आपके सारे कपड़े भीग जाएंगे। आपको घर जाना पड़ेगा। फिर किसी तरह से आप उस आदमी के पास पहुँचे, उस आदमी से सब गड़बड़ मामला हो जायेगा। क्योंकि आप देर से पहुँचे होंगे । क्योंकि वो भी प्लॅनिंग कमिशन वाला होगा। वो भी सोचेगा, मेरा सारा प्लॅन चौपट हो गया। और आप बड़े दुःखी की मेरा सारा प्लॅन ही चौपट हो गया। जो आदमी फ्यूचर की सोचते रहता है वो कभी आनंदी और सुखी नहीं हो सकता। क्योंकि आज यहाँ पर आनन्द बँट रहा है, और आप आगे की क्या सोच रहे हैं? हर समय आगे की। अरे भाई, मुझ से मिलने आये हो, बात करो और आप आगे की सोच रहे हो । मुझसे मिलने आये हो या आगे की सोच रहे हो ? आदमी हमेशा एक टाँग पर दौड़ ही रहा है। उससे आप के आनन्द की बात करेंगे। चाहे फ्यूचर हो, चाहे पास्ट हो, चाहे प्रेझेंट हो। एक परमात्मा के सिवाय एक पत्ता भी संसार में हिल नहीं सकता। फर्क इतना ही है, कि जब आप प्रेझेंट में खड़े थे, तो परमात्मा के चरणों में हो जाओ। जब आप प्रेझेंट में होते हैं, तो उस महान सागर में आप एक बिंदु बन के दौड़ते रहते हैं। और आपको प्लॅनिंग की जरूरत नहीं। उसके प्लॅन में आप दौड़ते रहते हैं। और उस आनन्द को लूटते रहते हैं जो आपके अन्दर से बहता है। प्लॅनिंग करने में दिमाग खराब करने वाले लोग बहुत ही हो जाते हैं। इतने ...... हो जाते हैं, कि बगैर शराब पिये उनकी ... जाती ही नहीं। इतना प्लॅनिंग कर कर के भी क्या किया? शराब के गुत्ते खोले। सुसाइड के इन्तजामात किये। बहुत से लोग मुझे कहते हैं, कि लंडन में ऊँचे ऊँचे घर बन रहे हैं। मैंने कहा, क्यों ? मैं कहती हैँ, इनको सुबह शाम अपने मरने की पड़ी है। कैसे मरें? मरने की कोई व्यवस्था करनी चाहिए। सारा प्लॅनिंग इसलिये कि मरना कैसे ? क्योंकि जीने का प्लॅनिंग वो बनाता है और तुम लोग रात-दिन अपने मरने का प्लॅनिंग बनाते हो। लेकिन कहने से नहीं होगा कि तुम भगवान पे छोड़ो। उन्होंने कहा कि, कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन| कर्म करते रहो , परमात्मा पे छोड़ो। उन्होंने लोगों को समझा दिया। उनको मालूम था, कि सीधे रास्ते आप चलने वाले नहीं। अगर सीधी सीधी बात बता दें, कि प्लॅनिंग वरगैरा छोड़ो और पार हो जाओ, उसके बाद ही आपके हाथ से जो कर्म होता है, वो बहता है। अकर्म में आप वही जाते हो। क्योंकि आप एक हॉलो पर्सनॅलिटी है। आपके अन्दर से जो भी काम होता है, आप कहते हैं, हो रहा है, ये जा रहा है, ये बन रहा है। आप ये नहीं कहते, कि मैं कर रहा हूँ, मेरे हाथ से हो रहा है। वो दशा आनी चाहिए, जिसके लिये उन्होंने दूसरे चॅप्टर में बता दिया था। लेकिन फिर लोगों ने कहा, सिर्फ कर्मयोग बताया था, हाँ, हाँ। कर्म जरूर करो। लेकिन फल मत रखो। ये हो ही नहीं सकता है। अॅबसर्ड बात कर कर के बेवकूफ़ बनाया है। क्योंकि बेवकूफ़ बनाये बगैर आप लोग ठिकाने नहीं आते। जब बात देवताओं की कोई नहीं सुनता तो क्या करें? जब अर्जुन को देखा कि इतना मिडिओकर है, तो उन्होंने उल्टी बात को समझा कर के उसको सीधा करने की कोशिश की। जैसे की सामने में आपका घोड़ा है, तो ठीक है आप गाड़ी को हाँको । पर घोड़ा तो पीछे में हैं तो कहते हैं, कि घोड़ा आगे लाओ। तो अर्जुन पूछता है कि, तुम तो मुझ से कह रहे हो कि स्वयं को पा लो । जान लो। और फिर मुझे युद्ध पे जाने को कह रहे हैं। पर वो समझ गये। उन्होंने कहा, ठीक है, ठीक है। तुम दोनों को पीछे ही रहने दो। मारते रहो इनको। लेकिन चित्त घोड़े पे रखो। हो ही नहीं सकता। बहुत से लोग आ के कहते हैं, 'माँ, हम तो सिर्फ कर्म करते हैं और फल भगवान को देते हैं।' मैंने कहा, 'बेटे, क्या तुम .....। क्योंकि अभी तो तुम इगो से ही काम कर रहे हो। जब तक तुम पार नहीं होगे, जब तक कुण्डलिनी छेद कर के ऊपर नहीं जाएगी, तब तक 14

Original Transcript : Hindi तुम्हारा इगो हटेगा ही नहीं। तुम्हारा चित्त इगो से ही परिवर्तित होगा। और इसलिये अगर तुम गलतफ़हमी में हो तो | ये गलत है।' कोई भी आदमी गलतफ़हमी में न रहें। कृष्ण ने कहा है, अतिक्मी जो है बेकार है। बहुत ज्यादा मार-धाड़ करने वाले लोग पार नहीं हो सकते। और बहुत ज्यादा आलसी भी पार नहीं हो सकते। एक लेफ्ट साइड़ में, एक राइट साइड़ में। बीचोबीच आने की जरूरत है। जहाँ लोग पार हो जाते हैं, उस पर ही हर हालत में लोग पार हो जाते हैं। लेकिन उसको मेंटेन करने के लिये आप को अपने को बॅलन्स करना पड़ता है। वो किस प्रकार बॅलन्स होता है और किस तरह उसको साधना चाहिए, इसके बारे में मैं आपको कल और परसो भारतीय विद्याभवन में बताऊंगी। आज मैंने जो भी जितना बताना है उतना विशद रूप से बताया है और जो भी मैंने बात बतायी है, उस बात का पड़ताला आप ले सकते हैं। आप खुद देख सकते हैं। जो मैंने बात बताई वो सही या नहीं वो सोलह आने सही या नहीं। इसको बताने से मेरा कोई लाभ नहीं होने वाला। सिर्फ आप के लाभ के लिये और आपकी साक्षात्कार के लिये बात बतायी गयी कि कभी कभी कुण्डलिनी ऊपर न चढ़े तो कोई घबराने की बात नहीं । कोई न कोई दोष, किसी न किसी प्रकार का आपके अन्दर हो गया होगा उसको हटाने की कोशिश की जायेगी। आप पार हो जाओगे। आप इस तरह से हाथ मेरी ओर करें। जिसको जाना है वो जायें । जिनको पार होना है वो बैठें। 15

Birla Kreeda Kendra, Mumbai (India)

Loading map...