Shri Ganesha & Mooladhara Chakra 1979-01-16
16 जनवरी 1979
Public Program
Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)
Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft
Shri Ganesha Aur Mooladhar Chakra, Public program, "Shri Ganesha, Mooladhara Chakra" (Hindi). Bharat Vidya Bhavan, Mumbai, Maharashtra, India. 16 January 1979.
ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK भाषण सुनने से पहले ही मैं आपको बताती हूँ, कि इस तरह से हाथ रखिये और आराम से बैठिये। और चित्त हमारी ओर रखिये। इधर-उधर नहीं, कि जरा कोई आ गया, कोई गया। इधर-उधर चित्त नहीं डालना। क्योंकि दूसरों को तो हम हर समय देखते ही रहते है, कभी अपने को भी देखने का समय होना चाहिये। कल मैंने आपसे इन चक्रों के बारे में बताया था। आज मैं आपको सब से नीचे जो चक्र है जिसको गणेश चक्र कहते हैं, उसके बारे में बताऊंगी। हम लोग गणेश जी को मानते हैं, गणेश जी की पूजा भी करते हैं । और ये भी जानते हैं कि अपने महाराष्ट्र में अष्टविनायक हैं, आठ गणेश , पृथ्वी तत्त्व में से निकल आये हैं। लेकिन इस के बारे में हम बहुत ही कम जानते हैं। और इसलिये करते हैं सब कुछ क्योंकि हमारे बड़ों ने बता रखा है। इन धर्मांधता को देख कर के ही लोगों ने ये शुरू किया, कि ऐसे, भगवान, जिनको की हम देख नहीं सकते, कुछ सभी अंधेपन से हो रहा है। तो बेहतर ये है कि इस तरह से भगवान वरगैरा न मानने से ..... हम लोग अपने ही ऊपर विश्वास रख के काम करें। अब गणेश इतनी बड़ी चीज़ है, इसके बारे में मैं अब बताऊंगी। गणेश एक प्रिंसीपल हैं, एक तत्त्व है। ये कोई भगवान आदि नहीं। ये एक तत्त्व है, जो परमात्मा का तत्त्व है। वो पवित्रता का तत्त्व है। परमात्मा ने ये सारी ही सृष्टि बनाने से पहले ये गणेश जी बनाये । माने पहले पवित्रता इस संसार में बनायी । कितना भी मनुष्य गिर जाये, कितनी भी हालत उसकी खराब हो जाये, वो कितना भी परमात्मा के आविष्कार करे, तो भी वो मन ही मन ये जानता ही है, हर समय उसे पहचानता है, कि मैं कोई न कोई गलत काम कर रहा हूँ। ये क्यों होता है? मनुष्य किस तरह से जानता है, कि मैं ये गलत काम कर रहा हूँ। कौन सा इसके अन्दर ऐसा तत्त्व छिपा हुआ है, जिसके कारण वो जानते ही रहता है हर समय कि ये मैं ठीक काम नहीं कर रहा हूँ। कोई आदमी है किसी की लड़की पे खराब निगाह रखे या किसी की पत्नी को बुरी निगाह से देखे या अपनी पत्नी को धोखा दे । या कोई पत्नी अपने पति को धोखा दे। या कोई लड़का, लड़की अपने माँ-बाप को धोखा दे। वो चाहे चोरी-छिपे कर दे या खुले आम भी कर दे लेकिन मन ही मन उसके ये खाते रहता है, अन्दर हमेशा उसको ये चीज़ खाती रहती है, कि मैं ये गलत काम कर रहा हूँ। ये हमारे अन्दर इसलिये होता है क्योंकि हमारे यहाँ अन्दर गणेश का तत्त्व है क्योंकि यहाँ नीचे में सबसे नीचे में जो चार ऐसा चौकोन बना हुआ है, ये गणेश हैं। पृथ्वी तत्त्व में जो ५१ वे एलिमेंट्स हैं, उसमें जो कार्बन है वो | गणेश तत्त्व हैं। जब तक कार्बन किसी भी परमाणु में, मॉलिक्यूल में नहीं आता है, तब तक जीवजंतु पैदा नहीं हो सकते। याने जीवन का प्रथम तत्त्व गणेश तत्त्व है। पवित्रता ये जीवन का प्रथम तत्त्व है। किसी भी जीव का जन्म अगर अपवित्रता से हो जाये और ऐसी हालात में हो जाये जो पवित्रता संसार से उठी हयी है तो उसके मन के अन्दर में अनेक कुसंस्कार आ जाते हैं। और वो कुसंस्कार बनते बनते ये एक ... अॅनिमल ... का इन्सान बनता है। जैसे की हम आपसे कहेंगे कि पाश्चिमात्य देशों में, वेस्टर्न कंट्रीज में, वहाँ की सोसाइटी टूट गयी है, गृहव्यवस्थायें 2
Original Transcript : Hindi टूट गयी है और ऐसे में पवित्रता का भाग टूट गया है । यहाँ पर अधर्म से रहने ही को बड़ा भारी कर्तव्य समझते हैं। वो सोचते हैं कि हम अधर्म से रह के दिखाया दिया तो राजे-महाराज बन गये। आप लोगों को ये बातें समझ में ही नहीं आयेंगी। क्योंकि आप इस से परे हैं। इन लोगों ने अपने गणेश तत्त्व को तोड़ दिया। अपनी अन्दर की पवित्रता को किसी तरह से खत्म कर दो। तो फिर आप चाहे जैसा भी चल सकते हैं। उसे तोड़ने का काम किसी को करना पड़ता है। ये जो गणेश तत्त्व हमारे अन्दर में है, ये जहाँ पर है, जिस जगह में है वहीं पे उनका प्रादुर्भाव होता है उसे कहते हैं पेल्विक प्लेक्सेस। जिसके कारण हमारे अन्दर चार तरह के सब प्लेक्सेस होते हैं। उस से एक से तो जनन क्रिया होती है। एक से सेक्स की क्रिया होती है। एक से जो लघुशंकायें आदि होती है, इस प्रकार से जो विसर्जन क्रियायें हैं वो होती है। और ये तत्त्व ऐसा हैं, ये गणेश जी से सुशोभित है । गणेश जी का प्रिंसीपल है । गणेश जी एक बालक, एक इनोसन्ट बालक है, माने इम्बॉडिमेंट ऑफ इनोसन्स जिसे कहते हैं। पवित्रता का साकार स्वरूप गणेश है। साकार स्वरूप तत्त्व हमारे अन्दर में जब जागृत होता है, तब हम अपवित्रता कर ही नहीं सकते। उधर हमारी नज़र ही नहीं जा सकती। लेकिन उसको अगर खत्म किया जाये , तो हम हर तरह की अपवित्रता करते हैं। जैसे कि आज हमें कुछ पत्रकारों ने कुछ सवाल पूछा, बिल्कुल सही सवाल था, कि, 'परदेस से इतने लोग यहाँ पर आ कर के और ये सेक्स के बारे में इतना क्यों पूछते हैं, गुरूओं के पास जा के? जो गुरु सेक्स की बातें सिखाते हैं, इनके पास जा कर के ये क्या सीखें ?' वो कुछ सीखते नहीं है। इनको सिखाने की कोई जरूरत नहीं। ये गुरुओं के नाना हैं। इनसे हज़ार गुना जानते हैं। ये क्यों आते हैं इनके पास में। इसकी वजह ये है, कि ये अपने गणेश तत्त्व को तुड़वाना चाहते हैं। ये चाहते हैं कि अगर कुछ पवित्रता का तत्त्व हमारे अन्दर बचा रह जाये, तो हमारा मन अन्दर से तृप्त नहीं होगा। किसी तरह से जब तक ये गणेश तत्त्व हमारा पूरी तरह से टूट नहीं जायेगा, हम जी नहीं सकेंगे। संघर्ष बना रहेगा हर समय। हम अपने साथ हमेशा लड़ते रहेंगे। झगड़ा बना रहेगा। क्योंकि हमारे अन्दर में पवित्रता जो है, वो हमें खींचेगी और हम उससे भाग नहीं पायेंगे । इसलिये इनको गुरु चाहिये। इसलिये इनको गुरु चाहिये, कि इस गणेश को ये तोड़े। और ये गुरु लोग भी ऐसा करते हैं, कि अपनी जो जगहें हैं, जिसे हम पवित्र जगहों की तरह मानते हैं, उसी को खराब करते हैं। उनको खराब कर के और गणेश तत्त्व को तोड़ते हैं। गणेश तत्त्व | को तोड़ते ही पवित्रता का आपके अन्दर से गंध भी चला गया, फिर आप चाहें जो भी धंधे करिये । इसके लिये पैसे देते हैं। काफ़ी पैसे देते हैं। इतने पैसे देते हैं, कि गुरु लोग आज मालोमाल हो गये। जिनके पास रहने को घर नहीं था, उनके पास हवेलियाँ हैं। इस में परमात्मा का क्या दोष है? इस में परमात्मा की क्या गलती है? इसने तो आपके लिये सबसे बड़ी एक कीमती चीज़ दे दी हैं, पवित्रता। इसका मज़ा उठाना चाहिये। आप अपनी पवित्रता का अभी तक मज़ा ही नहीं उठा पाये। अरे, अपनी अगर साड़ी सफ़ेद, सुन्दर हो और उसपे दाग न हो तो इन्सान कितना उसको मज़े से पहेनता है और दूसरे भी उसे देख कर खुश होते हैं। लेकिन किसी मनुष्य का जीवन अगर अत्यंत निर्मल है, और उसके जीवन से सिर्फ निर्मलता ही बहती हो, ऐसे मनुष्य का जीवन कितना सुखमय होगा। ये समझने की और सोचने की बात है। अब समाज में समझ लीजिये कोई माँ-बहने ही नहीं बचीं। तो आप तो कहीं खड़े होने लायक नहीं रहिये। 3
Original Transcript : Hindi इसलिये इन देशों में जब ये चीजें टूटने लग जाती हैं, जब ये अपनी पवित्रता से ही झगड़ा करते हैं और इसी से जब ये मूठभेड़ करते हैं उस वक्त उस से बचने के लिये आपको और कोई इंतजाम जोड़ना चाहिये। क्योंकि अजीब सा लगता है हर समय अपने को देखते हये शीशे में। करे क्या ? आदमी घबराने लगता है, कि हे भगवान, मैं कहाँ अपवित्रता के जंजाल में फँसा जा रहा हूँ! जैसे कि कोई मगर खा रहा है। कोई भी आदमी कितना भी दुष्ट हो, अगर जागृत अवस्था में है, तो उसके लिये बड़ा मुश्किल होता है पवित्र होना। तो अब कैसे करें? तो वो सोचता है, कि चलो, थोड़ी शराब ही पी लें। जिससे बच जायेंगे। गम गलत करने के लिये। कहता है कि थोड़ी शराब पी लो तो वो अपने से बच जायेंगे| ये नहीं देखना पड़ेगा कि हमने अपवित्रता की। कोई न कोई अपने से भागने की कोशिश करता है। अगर नहीं भागा तो उसे टेंशन आ जाता है। हमारे बापदादाओं को कभी टेंशन नहीं आता था। अभी भी बूढ़े लोगों को कहे कि हम को टेंशन आया। तो कहते हैं कि, 'क्या हो गया। तुम घड़ा उठा के पानी भरने गयी थी क्या?' उन लोगों की समझ में नहीं आता है ये मॉडर्न ..... कि टेंशन आ गया टेंशन क्यों आयेगा भाई? क्योंकि आप अपनी जो असलियत है, उससे जब भागते हैं तब आपको टेंशन आना ही है। अगर आप अपनी असलियत पे खड़े हये हैं तो आपको टेंशन क्यों आयेगा? समझ लीजिये, एक ट्रक कार पार्क की जगह एक साइड़ में खड़ी हो जाये। तो उसको टेंशन आयेगा कि नहीं आयेगा ? कि कब .... ..। अगर मनुष्य अपनी इन ... कोई टेंशन आने की बात नहीं। पे ठीक से खड़ा रहें, वो पवित्रता के जो... परमात्मा ने हमें दिये हैं, तो उसको अब गौर से देखिये कि कुण्डलिनी के नीचे में गणेश जी का स्थान बनाया हुआ है। क्यों किया ? एक बच्चे को कुण्डलिनी के नीचे बिठा दिया भगवान ने। क्योंकि बच्चे को सेक्स माने क्या मालूम ही नहीं और माँ के बड़े प्यारे हैं गणेश| उनको माँ के सिवाय शिवजी भी नहीं मालूम, कोई नहीं मालूम। पवित्रता को माँ के सिवाय कुछ मालूम ही नहीं है। पवित्रता की अपनी ही एक शक्ति है। जो अपनी माँ को जानता है। उस बेटे को वहाँ पे बिठा दिया है, कि तू अपनी माँ की रक्षा कर। आपकी जो माँ है, वो कुण्डलिनी हैं। और उसके नीचे में अपना जो बालपन है, आपका जो भोलापन है, आपकी जो पवित्रता है, उसको बिठा दिया भगवान ने, कि इसकी रक्षा करो, इस माँ की। जो लोग कुण्डलिनी सेक्स पे उठाते हैं, वो माँ पर सेक्स करेंगे । आप इस चीज़ को मानेंगे। हिन्दुस्तानी लोगों को मैं पूछती हूँ, कोई भी इस चीज़ को मान जायें तो। पर गुरुओं के पास जा के यही धंधे करते हैं, सुबह शाम तक। ऐसे अनेक आज निकल आये हैं, गंदे लोग। ये सब पुराने तांत्रिक हैं, फिर से जनम लिये हये राक्षस। जिस तरह की गंदी बातें संसार में कर रहे हैं, ये तो गाली होती हैं अपने देश में, इस तरह की गंदी बात सोचना भी । इस गणेश तत्त्व को, इस पवित्रता के रिश्ते को हिन्दुस्तान में अभी तक इतना धक्का नहीं बैठा है। हम सब अपनी माँ को समझते हैं। शास्त्री जी, जिनकी उमर ६५ साल की थी, हमें याद है, सबेरे उठ कर के अपनी माँ के पास लेट जाते थे थोड़ी देर के लिये। और इसके बाद वो उठ कर के फिर अपना सब काम करते थे। जब उनकी अचानक मृत्यु हो गयी, तो उनकी माँ को कुछ समझ में नहीं आया, उनका ब्रेन एकदम ब्लँक हो गया। वो कहने लगी, 'ऐसे तो हो ही नहीं सकता। आज भी तो सबेरे मेरे पास आ के लेटे थे ।' वहाँ तो कोई १२ साल के बेटे को भी लिटाने को माँ तैय्यार नहीं। कोई विश्वास करेगा इस बात को। कोई भी माँ अपने १२ साल के बच्चे को अपने पास 4
Original Transcript : Hindi नहीं लिटाती है। ये वो पाश्चिमात्य देश है, जिनको तुम लोग फॉलो कर रहे हो। अपनी लड़किओं को पैंट-शर्ट पहना पहना कर घुमाते हो। कुछ शर्म करो। उस देश के लोग कितने बदमाश हैं। उनके जैसे होने का है क्या तुम लोगों को? १२ साल के लड़के को कोई माँ अपने पास सुलाने के लिये तैय्यार नहीं। कहती है कि इससे वो .... हो जायेगी। तुम लोग समझ सकते हो इन लोगों को क्या? इसलिये साहब, भगवान ने मुझे उस लंडन में भेजा देखने के लिये, कि किधर भाग रहे हो तुम लोग। हमको अॅडवान्समेंट नहीं चाहिये हम लोगों को इस देश में। अगर मैं न वहाँ जाती, तो न उसे समझती, न उसे देखती। तुम को विश्वास नहीं होगा, हर एक आदमी में वो भावना है, हर एक आदमी में। हर एक माँ में ये भावना है। कोई सोच सकता है ये बात। यहाँ पर माँयें भी बैठी हैं, बेटे भी बैठे हैं। इतने घृणित है ये लोग। इनसे कुछ भी नहीं सीखने का हम लोगों को। और वो क्योंकि उनकी अन्दर से आत्मायें खत्म हो रही हैं, तो वो यहाँ पर आ रहे हैं पूरी तरह से खत्म करने के लिये। अपने गुरु लोग उनको या तो कुछ भूत लगा देते हैं, मेस्मराइज करा देते हैं, कुछ लोग उनका गणेश तत्त्व जो है उसे तोड़़ देते हैं । आज तक कोई भी ऐसा संसार में गुरु हुआ है, जिसने कहा, कि पवित्रता ही संसार की सब से ऊँची चीज़ है । किसी ने भी कहा है? ये नये निकल आयें कहीं पे, उनको पूछना चाहिये, कि भाई, तुम कहाँ के रहने वाले हो ? ये राक्षस हैं राक्षस। रावण ने भी इस बात को स्वीकार किया था, कि सीता जी को हाथ नहीं लगाना चाहिये। वो तक पवित्रता से ड्रता था। ये उनसे भी एक स्तर ऊपर है। ये गणेश तत्त्व जो है, जो परमात्मा ने आपको दिया हुआ है, कि आप कुण्डलिनी की रक्षा करें, जो कि आपकी माँ, हर एक की अलग अलग है। ये बैठी हयी है, कि जिस दिन आपका पुनर्जन्म होने का है, जिस दिन आपको रियलाइजेशन मिलने का है, तब स्वयं उठ कर के वो आपको पार करायेगी । इस गणेश तत्त्व को पाने के लिये ब्रह्मा, विष्णु भी हार गये और ...... ये कहा जाता है। गणेश को सब से ऊँचे भगवान और सब से पहले माने जाते हैं। क्योंकि वो अत्यंत पवित्र हैं। बाल्य स्वरूप सब से पवित्र जो है वही श्री गणेश हैं। और दत्तात्रेय भी जब बनाये गये थें, आप तो जानते हैं, गुरु तत्त्व जो दत्तात्रेय जी का है, वो भी जब बनाया गया तो उनको भी बिल्कुल छोटा सा बालक बनाया था। छोटे से बालक में ही वो भोलापन, वो पवित्रता होती है, जहाँ वो ये अन्तर नहीं देखता है, कि स्त्री-पुरुष क्या है! उसे मालूम ही नहीं, कि अपवित्रता क्या है? या पाप क्या है? तो करने का दूर ही रहा। ऐसी सुन्दर पवित्रता परमात्मा ने आपको दी है। लेकिन हम उसका जरासा शुकर भी नहीं मानते हैं, कि उसने हमें ये पवित्रता दी, जिसके कारण हम अभी तक पवित्र बनें। इस पृथ्वी की सब से सुन्दर भूमि भारत वर्ष। इसके हर एक कण में गणेश बसा है। इस के सुगन्ध से हमारे अन्दर ये श्रीगणेश तत्त्व बना हुआ है। इसको साफ़ रखना, इसकी व्यवस्था रखना। ये हमारे व्यवहार पे है। जो बदुचलन हो जाते हैं, जिनकी आँखें इधर उधर घूमने लग जाती है, उनका ये चक्र खराब जाता है। और इस चक्र के | कारण अनेक रोग निर्माण हो सकते हैं। और भी जो रोग होते हैं, जैसे कि किसी को कब्जियत हो जायें, किसी को | और तकलीफ़ें हो जाये । जो भी इस चक्र से होती है, जरूरी नहीं की वो आदमी अपवित्र हो । पर और कारणों की वजह से भी, जैसे इसके सात चक्र हैं न! उस में से एक पवित्रता के लिये हैं। किसी और भी कारणों की वजह से ये बीमारियाँ हो जाती है। 5
Original Transcript : Hindi तो अब कुण्डलिनी तो बीच में बैठी है। गणेश तक तो आप पहुँच नहीं सकते। तो कुण्डलिनी कैसे उठेगी ? | जब आप अभी मेरी तरफ़ ऐसे हाथ कर के बैठे हैं, तो आप के हाथ में जो पाँच उँगलियाँ हैं ये पंच तत्त्व हैं। इस में से कुण्डलिनी के पास खबर जाती है, संदेश जाता है, कि 'हाँ, अब आ गये, जिनको मालूम है कुण्डलिनी क्या है? जो हमें पहचानती है। आपकी कुण्डलिनी हमें पहचानती है। जैसे खबर पहुँची, वैसे फुदकने लग गयी| पर पहले खबर जाती है, गणेश को। वो माँ से कहता है, 'ठीक है, अब उठ खड़ी हो जाओ, चलो।' हैरानी की बात है अपने देश में जितनी जल्दी कुण्डलिनी उठती है, और देशों में नहीं उठती। मेरे हाथ ट्ूट जाते हैं। मैं तो तंग आ गयी। साहब को बोलती हूँ, 'कब जायेंगे अपने देश में ?' मेरे तो हाथ टूट गये हैं। तो भी तीन सौ आदमी पार हो गये यहाँ पर। उनको अकल आ गयी और उन्होंने अपना जीवन बदला है। और वो भी संत-साधु ही हैं बेचारे । क्योंकि गलतफहमी वो पड़ गये। और इन दुष्टों ने जा कर उनको गलत सलत कहा, इसलिये गलत काम कर रहे थे। अपने देश की जो पवित्रता है, उसे बना के रखना चाहिये। यही अपने देश की सब से बड़ी शक्ति है, कि हम लोग पवित्रता में विश्वास करते हैं । खाने- पीने की शक्ति कुछ नहीं होती है। हिटलर सारी इस दुनिया में छा गया, | लेकिन हिन्दुस्तान में नहीं आ सका वो। हमारे यहाँ अंग्रेज इतने दिन राज कर के भाग गये। कोई हमारी पवित्रता नहीं छीन पाया। अब अंग्रेजी बनने जा रहे हो। कुछ शरम करो। ये तो ऐसा ही हुआ, कि बुलबुल कहें कि, 'मैं उल्लू क्यों नहीं हूँ?' कहाँ वो और कहाँ आप! इनसे कुछ सीखने का नहीं है। वो तो मैं कहती हैँ कभी कभी, की दुम कटे गधे है सारे। कुछ अकल नहीं है इनके अन्दर में। कोई विज्ड़म नहीं है। कोई सुबुद्धि नहीं है। बात को समझने के लिये कि पवित्रता के बगैर संसार में और क्या चीज़ महत्त्वपूर्ण है। अब अपने देश में ये हालत है, कि हमारे उमर के लोगों में, जब कि हम अंग्रेजों के नीचे थे तो डट के हमने सोचा कि हमारी भारतीय संस्कृति क्या है, हमारी शक्ति क्या है? सारे हिन्दू, मुसलमान, पारसी सब, इसमें जूट गये। गांधी जी का भी नेतृत्व था। हमारी देश क्या चीज़ है? हमारे देश की संपदा क्या है? इसकी शक्ति क्या है, इसको खोजो| जैसे ही स्वतंत्र क्या हो गये, खोपड़ी ही खराब हो गयी हम लोगों की। अभी किसी से कोई चीज़ आप, अगर संस्कृत में बोलना ही शुरू कर दिया, तो गये हम। किसी ने बताना ही शुरू कर दिया, कि हमारी संपदा क्या है तो गये काम से। अब कितने बड़े बड़े जनसंघ वाले मिलते हैं, उनको मैं पूछती हूँ कि, 'कुछ मालूम हैं तुमको? तुमने आदि शंकराचार्य पढ़ा ?' 'नहीं।' 'किस को पढ़ा तुमने ?' रजनीश को पढ़ के जनसंघ बन जाने से कोई जनसंघी हो गया? अपनी जनता कौन है ? अपनी शक्ति क्या है? हमारा क्या है? वो कोई भी नहीं जानता। ये अपनी माँ को ही नहीं जानता है। ये कहाँ के योगी? उनमें कहाँ से प्यार आयेगा ? उनमें कहाँ से दुलार आयेगा? अरे, ये तो ऐसी भूमि है यहाँ से सोना उगला जा सकता है। ये वो भूमि है यहाँ से सारे संसार का नेतृत्व होने वाला है। सारा संसार आपके चरण छू सकता है। लेकिन आप अपने देश के बारे में अपने संपदा के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं। बहुत से लोग मुझे बोलते हैं, 'कुण्डलिनी क्या होती है? ये कुंडली और कुण्डलिनी एक ही है क्या माँ?' और ये जो फॉरेन के लोग हैं इन्होंने सब पढ़ के रखा हुआ है। हाँ, ये बात जरूर है। वो लोग हमारे, उनसे बात करने में मुश्किल कुछ भी नहीं। सब पढ़ के रखा हुआ है। उस कगार पे जा के पहँच गये, जहाँ जा के जाना, कि ये चीज़ जो 6
Original Transcript : Hindi हम आज तक करते रहे और जिस जड़वाद में हम बैठे रहे और सोचा की इस जड़वाद से ही हम बड़े भारी संपन्नवाद हो जायेंगे| तो कुछ नहीं। हम लोग बड़े दुःखी, महा द:खी हैं। एक आदमी वहाँ पर अगर मिल जाये, जिसकी आँख न फड़कती हो, जिसका सर न धड़कता हो, जिसके हाथ न थरथराते हो, तो मुश्किल है। कोई होगा तो खोपड़ी पे चढ़ा हुआ और दूसरा है तो बैठा हुआ, कोई बीच का आदमी मिलना मुश्किल। आपस में बात करते हैं तो लगता है भोंकते हैं। कभी समझ में नहीं आता भौंकते रहे, क्या हुआ भाई? कभी ठंडे दिमाग बात नहीं करता। उनका दिमाग इतना खराब हो गया है, कि पैसे के लिये वो इस कदर परेशान रहते हैं कि एक ..... माने एक पाई अपने जैसा होता है। अगर रोटी का दाम बढ़ गया, तो सब की हालत खराब । क्योंकि उनकी औरतों को रोटी बनानी नहीं आती। सारी गवन्मेंट हिल जायेगी। एक एक पैसा ऐसा जोड़ेंगे, ऐसे कंजूस। अमेरिकन लोग इतने कंजूस होते हैं, आपको आश्चर्य होगा , इतने पैसे वाले होते हये, पर कभी कोई एक रुपया भी खर्च नहीं करेगा । अगर आप पियेंगे तो दूसरी बात। उसके लिये है पैसे। फालतू के धंधे के लिये पैसे हैं। पर इतने कंजूस लोग, एक एक पैसा जोड़ने वाले। घर में कभी जाओ तो पानी तक नहीं पूछने वाले। चाय-पानी तो उनको समझ ही नहीं आता । आप उनसे कहो, चाय पिओ तो घबराते हैं। ये कोई जहर तो नहीं दे रहे हैं हमको। आपको मैं बिल्कुल अन्दर की बात बता रही | हूँ। बड़े बड़े लॉर्ड को हमने देख लिया। एक बहत्तर साल की औरत गिर गयी घोड़े पर से। मैं तो बोली बुढ़िया को, 'घोड़े पे चढ़ने की क्या जरूरत है? बहत्तर साल की हो के घोड़े पे चढ़ेगी क्या?' उसका आदमी कहने लगा, 'हम बुढ्ढे थोड़ी हो गये। क्या हुआ पड़े तो?' मैंने कहा, 'तुम भी चढ़ के गिरो।' वो पचहत्तर साल के हैं। वहाँ के जवान लोग हैं, बुढ्ढों को ठिकाने लगाये हये हैं। उनकी परवाह नहीं करते। उनको देखते नहीं । उनसे कोई मतलब नहीं । अपने यहाँ भी नमूना बन रहा है वैसे। बच्चों को रात-दिन मारा-पीटा करते हैं और मार डालते हैं बच्चों को। सीधे मार डालते हैं। माँ बोलती है कि मार डाला। क्या वायलंट है वहाँ । आपको बताया तो आश्चर्य होगा। हमारे यहाँ तो कोई सोच भी नहीं सकता। एक-एक तरीके निकालते हैं लोगों को मारने के लिये। वहाँ तो बैंक की भी चोरी करते हैं। उसका भी उन्होंने तरीका अच्छा बनाया था। शास्त्र बनाया था सब के साथ। हर एक चीज़ के शास्त्र, हर एक वायलन्स के शास्त्र बनाते हैं। एक बैंक चोरी करने वाला आदमी टीवी पर हम देख ही रहे थे । देखते देखते उसने ये कहा, मैजिस्ट्रेट थे, 'देखिये मैं खिड़की में से कूद गया था ।' 'कैसे?' 'खिड़की खोली और कूद गया।' टीवी पे दिखायी दिया। और वो ऐसा बोल रहा था कि कहाँ का हिरो होगा। बेशरम जैसे। कहाँ मैं घुसा, कहाँ से मैं बैंक फोड़ी। अभी हाइजैकिंग करते हैं लोग। वो सोचते कि वो बड़े भारी राणा प्रताप हो गये हायइजैकिंग में । कहाँ अपने राणा प्रताप और कहाँ ये रद्दी, मवाली लोग। कम से कम अपने देश में मवाली को कोई हिरो नहीं समझता। हाँ, उन्हीं के फोटो छपेंगे। आपको मैं इसलिये कहानी बता रही हैँ, कि आप समझ लें, कि आपके पास क्या चीज़ है । इसको खोने के बाद आपको नहीं मिल सकती है। ये चीज़ ऐसी है, जिस दिन ये खो जायेगी आपको नहीं मिलेगी । इसलिये आप जब अपना अॅडवान्समेंट कर रहे हैं न, औरते पैंट पहनें और आदमी साड़ियाँ, वो जरा कम ही करो। जरा ठहर के देखो, कहाँ हैं वो लोग ? कौनसे गट्ढे में जा के गिरे हैं। और इसी गढ्ढे में सीधे जा के गिरने की कोई जरूरत नहीं । इनका गणेश तत्त्व टूट गया है। इनके पास में न गणेश नाम की चीज़़ रह गयी। पवित्रता नाम की चीज़़ नहीं। और जो हिन्दुस्तानी यहाँ से जाते हैं, तो नया मुसलमान ज्यादा प्याज खाता हैं। ये इनसे भी बढ़ गये। और जब वो यहाँ आते 7
Original Transcript : Hindi हैं तो हमें अकल सिखाते हैं। मैं तो देख के खुद ही हैरान हूँ। क्या यही पढ़े लिखे हैं। अगर पढ़ लिखने से मनुष्य इतना महामूर्ख, अपवित्र हो सकता है, तो अच्छा है कि इतना ना पढ़ें। इस गणेश तत्त्व को जिसने बचाया नहीं उसकी कुण्डलिनी कभी नहीं ..... होने वाली। लोग कहते हैं कि 'हर एक की होती है।' मैंने कहा, 'कैसे करूँ?' क्योंकि अगर आपके अन्दर पवित्रता नहीं है, तो मेरे आगे आप हाथ कर के बैठे है तो कोई संदेसा लेने वाला है यहाँ ? सोये पड़े हैं गणेश जी। वो निद्रावस्था में हैं। उनको मैं कैसे जगाऊँ ? हालांकि हिन्दुस्तानिओं में ऐसे मुझे कम ही मिले। कोई और वजह से हो जाता है। पर ये कम से कम नहीं होता है। माँ-बहन का, सब का ख्याल है। पर वहाँ ऐसा ही है, तमाशे वाला। लड़कियाँ भी ऐसी, लड़के भी वैसे। अब आज के ये लड़के बड़े हिरो बन के घूम रहे हैं, वो कल वही नमूने हो जायेंगे। आपके शिक्षा प्रणाली में कोई भी चीज़ ऐसी नहीं कि उनमें सिखाया जायें कि पवित्रता रखनी चाहिये अपने अन्दर| हर एक चीज़ की अपने यहाँ सभ्यता बतायी गयी। सबेरे उठते वक्त हमें परमात्मा को याद करना चाहिये कि, 'प्रभू, हमारी पवित्रता बनाये रख।' हर कदम कदम पर देखना चाहिये कि हम अपने को बचाते चले। कबीर ने कहा है कि, 'बास कबीर जतन पे ओढी, जैसी थी तैसी रखदिनी चदरियाँ।' और ये तो बहुत ही आसान है। मुश्किल वो है निभाना। मैंने आपसे कल ही बताया, की शराब ही पीना है आपको, तो मुश्किल है । जेब से पैसा निकालो पहले । बस, शराबी ढूँढो, पहले शराब की दुकान ढूँढो । आपको ये नहीं मालूम होगा कि कौनसी शराब क्या है, तो बेवकूफ़ बनेंगे जा के। कौन सा भी पापकर्म करना मुश्किल है, कि पवित्र रहना मुश्किल है। किसी का मर्डर करना है, समझ लीजिये। तो उसके लिये पहले चाकू, छूरी लाओ, ये लाओ , वो लाओ। कुछ बंदूक वगैरा का इंतजाम करो। कोई जाओ, देखो वो जगह क्या बनती है। ये करो , वो करो। और कर के फिर फायदा क्या? फिर जेल में जाओ। भाई, एक सीधी चीज़ मनुष्य नहीं सोचता है। कौन सा पापकर्म आसान है? ये मुझे बताईये। लेकिन सभी कठिन काम माने इधर से ही खाना खाना चाहिये क्या? लेकिन वहाँ के लोगों को आनन्द आता है पापकर्म करने में। अभी आपने सुना होगा विएना में बहुत से लोगों ने अपने को मारा। ये दूसरा नमूना होता है। या तो इन्सान दूसरे को मारता है या अपने को मारता है। जब आपके अन्दर में हिंसक प्रवृत्ती आ गयी, आप अगर दूसरों को नहीं मार सकते तो अपने ही को मारें। अपने को मारने का तरीका है, शराब पिओ, सिगरेट पिओ और क्या क्या चीजें करो। अपने ही को मारो। कैन्सर बनाओ कैन्सर है। कहने लगे, कैन्सर हो गया, तो क्या हो गया ? ठीक है। आ बैल मुझे मार! खींचते चले जा रहे हैं। बेकार ही में आफ़त मोल लेने की जरूरत | क्या है? ये कड़वाहट कौन सी बड़ी चीज़ समझ के बैठे हैं। उसके लिये भी आपको आश्चर्य होगा , कि ये लोग दरिद्री हैं। हम लोग दरिद्री नहीं है। इसलिये मैं आप से बताती हूँ, कि सिवाय प्लॅस्टिक के अपने पास में क्या है? अरे, एक पीतल का इतना सा बर्तन होगा तो दस मर्तबा उसे चमका कर दिखायेंगे। मैंने कहा, 'हम लोग तो पीतल में खाना खाते हैं, हमें ये क्या दिखा रहे हैं।' कहने लगे, 'अच्छा, आप लोग बड़े रईस हैं।' और हम लोग सोचते हैं, स्टेनलेस स्टील में खाना माने बड़े रईसी के लक्षण है। वो लोग पूछते हैं कि, 'आप इतने रईस होते हुये भी आप स्टेनलेस स्टील में क्यों खाना खाते हैं? जब कॉटन की साड़ी और सिल्क की साड़ी आपके पास है तो आप नाइलॉन क्यों पहनते हैं?' उनकी समझ 8.
Original Transcript : Hindi ही में नहीं आता है, कि ये लोग इतने बेवकूफ़ कैसे है ! ये तो दरिद्रता के लक्षण है। वहाँ तो दरिद्री से महादरिद्री होगा वही नाइलॉन पहनेगा। कुछ न कुछ उसमें कॉटन मिला रहे, तो अच्छा है। अपने देश में मैं लोगों को कहती हूँ तो उनको विश्वास नहीं होता। उस देश में ये जहाँ ये चीजें बहत हो गयी वो इतने ऊब गये हैं, कि वो कहते हैं कि, इन सब आर्टिफिशिअल चीज़ों में रखा क्या है? उससे अच्छा है, एक नॅचरल चीज़ हो। उसी को ले लो। आज यहाँ जितनी भी औरतें बैठी हैं, उनके पास इतना इतना सोना तो जरूर होगा। इनके पास, किसी के पास सोना वगैरा तो होता ही नहीं बेचारों के पास । ऐसे लोग होते हैं कि इतने इतने से सोने के लिये भी तरस जाते हैं। हम लोग दरिद्री कहाँ हैं? हम लोगों के पास दो कॉटन की साड़ियाँ हो उन के यहाँ तो बड़े रईसों के पास भी नहीं होगीं दो कॉटन के कपड़े। और कॉटन का दाम वहाँ इतना है, आप विश्वास नहीं करेंगे कि जो वॉइल यहाँ पहनते हैं, इसका दाम मैंने वहाँ पर देखा है, एक गज का करीबन ढ़ाई सौ रुपया । लेकिन हमें अपनी चीज़ों की कीमत ही नहीं । क्योंकि हम अपने को जानते नहीं। हम अपने को पहचानते नहीं है। हमारा जो कुछ था बहुत खो गया है। अंग्रेजों की वजह से। और अब ये जो अंग्रेज आये हये हैं यहाँ, ये और भी रुपया ड्ूबोये। इसका मतलब कोई हिंदू या मुसलमान धर्म से नहीं है। ये हमारी देश की संस्कृति है, वो सब के लिये है। सब लोग माँ-बहन को जानते हैं। एक दिन हमने एक जहाज लैंड किया था, उसका नाम था विष्णुमंगल। तो किसी अंग्रेज ने हमसे मंगल का क्या मतलब ? तो सब लोग सर खुजाने लग गये, कि मंगल का क्या अर्थ होता है अंग्रेजी में। उन लोगों पूछा कि के लिये तो कोई मंगल-अमंगल है ही नहीं। उन लोगों में भोलापन किस चीज़ से खाते हैं मालूम ही नहीं । आप एकदम भोले हो उनके आगे। बेवकूफ़ बना के पैसा कैसे बनाना ये उनको आता है। पैसा बना के उनके बच्चे आज भूत बन के घूम रहे हैं। वो इधर भी आते हैं। कुछ काशी में जा के बैठे हैं। आपको भी अपने बच्चे भूत बनाने हैं तो उनके पीछे लगो। ये जो गणेश का तत्त्व है ये हमारे अन्दर परमात्मा ने स्थित किया है । विशेष रूप से भारतीय लोगों को दिया गया है। अगर आप लोग भी इसे नहीं बता पाईयेगा तो संसार से उठ जाईयेगा । ये जिम्मेदारी भारतीयों पर है कि पवित्रता को बचाये रखें। और इसके शान और उसके गौरव को बढ़ायें । अपने को पवित्र रखने में एक बहुत बड़ी संपदा हमारे पास है ऐसा समझ लीजिये। बहुतों ने कहा, 'माँ, गणेश तत्त्व को किस तरह से हमारे अन्दर बसाया जाता है?' अभी आप लोग तो, अधिकतर तो, हम से बहत छोटे है उमर में। लेकिन जब हम छोटे थे तो हमारे माता-पिता बताते थे , लड़कों और लड़कियों को अपनी आँख पृथ्वी पर रखनी है। हमेशा आँख नीचे कर के चलें। लक्ष्मण जी से रामचंद्र जी ने पूछा कि, 'तुम अपने भाभी का कुछ वर्णन दे सकते हो?' तो कहने लगे कि, 'नहीं, हमने तो सिर्फ उनके चरण ही देखे हैं। उनके चरण का हम वर्णन दे सकते हैं। और उनके चरण के जो जेवर थे वो हम पहचान सकते हैं। इससे उपर हमने आँख नहीं की।' क्योंकि पृथ्वी तत्त्व से ही ये तत्त्व बना हुआ है। पृथ्वी ने ही ये गणेश का तत्त्व अपने अन्दर दिया हुआ है। क्योंकि हमारे अन्दर सारे एलिमेंट्स भी हैं। तो हमारे अन्दर पृथ्वी का तत्त्व जितना भी शरीर में है, वो सारा इसी से चलायमान है। इसलिये जब ये तत्त्व खराब हो जाता है, या दूषित हो जाता है, जब गलत काम करने से मनुष्य गलत रस्ते पे चला जाता है, तब आप देखते हैं, जो जो बीमारियाँ अधिकतर हमें होती हैं, वो हमारे अन्दर फोड़े बन के निकलती हैं। क्योंकि हमारा पृथ्वी तत्त्व खराब हो जाता है। 9
Original Transcript : Hindi इसलिये कहते हैं कि पृथ्वी पर चलना चाहिये। नंगे पाँव चलना चाहिये। इस से पृथ्वी तत्त्व जो है, हमेशा अपने अन्दर की जो बुराईयाँ हैं, उसे निकालते हैं । मैं क्वाललंपूर गयी थी। वहाँ के जो एक टीचर साहब है, उनके घर में प्रोग्राम हुआ था। वहाँ हज़ारों आदमी आये, और अधिकतर बीमार लोग थे। मैंने सोचा, मेरे ....... यहाँ कोई सहजयोग भी नहीं, इतने बीमार आ गये। | इनको ठीक कैसे करूँ? उनके यहाँ बहुत अच्छा एक गार्डन था। मैंने कहा, इस गार्डन में सब के साथ आप बैठ जाओ, जमीन पर। और मैंने पृथ्वी तत्त्व को जागृति दी। मैंने कहा, खींच ले इनका दर्द। खटाखट्। एक सरदारजी थे। उनके लड़के को पोलिओ की बीमारी थी। वो उठ के चलने लग गया। इस तरह से पृथ्वी तत्त्व का बड़ा ही महत्त्व है। लेकिन इधर आप पवित्र हैं तभी तो माँ पृथ्वी को कह सकते हैं कि चल खींच। सीता जी ही कह सकती हैं कि, 'मुझे अपने पेट में ले ले।' क्या आदमी कह सकते हैं क्या? उन्ही के लिये पृथ्वी तत्त्व खुलता है, अपने अन्दर समा ने का है। इसलिये ये पृथ्वी तत्त्व से निकले ह्ये ये गणेश तत्त्व जो है यही असली गणेश है। इसमें झूठ कुछ नहीं है। लेकिन इन की मूर्तियाँ बना बना कर के घरों में लोग जो बेचते हैं वो सब गंदी मूर्तियाँ हैं। खरीदी हुयी मूर्ति को कभी भी पूजना नहीं चाहिये। मैं सही बात बताती हूँ, कड़वी लगती है लोगों को। जो बनाता है, उसकी भावना ये है कि उसको बेचने का है। ऐसे भगवान को बेचने वाला क्या मूर्ति बनाने का अधिकारी हो सकता है? समझना चाहिये। बड़ा सिम्बॉलिक, गणेश जी की सवारी चूहा है। देखिये, ये भी एक कमाल की चीज़ है। अपने यहाँ बड़ा ही प्रतीक रूप है। कितनी बड़ी बात है। चूहे की सवारी है। मानो कितनी नम्रता होनी चाहिये । क्योंकि सब से बड़े देवता है, वो चूहे पे घूमते हैं। अपने यहाँ दो पैसे नहीं मिल गये तो बड़ी गाड़ी खरीदनी चाहिये । | सब के सामने भौ भौं कर के घूमना चाहिये। दिखाना है, कि हम बड़े आदमी चले आये। चाहे वो ब्लैक का ही पैसा | हो, चाहे वो किसी से मारा हो या ऐसे गुरु बन कर के किसी से लूटा हुआ हो। सब दुनिया को दिखा देना है । गणेश जी सारे ही विज्डम, सारे ही सुबुद्धि के अधिष्ठाता है। उन्होंने अपना चूहा ही लिया। सब से सादा उनका वाहन है। ये बड़ी भारी बात है। कितनी नम्रता होनी चाहिये। जिस आदमी में सुबुद्धि होती है, उसकी समझ में आता है कि इन बाह्य उपकरणों से आप किस को यहाँ इम्प्रेशन दे रहे हैं। आपके पास मोटर होगी तो होगी। हमारे किस काम की! बाह्य के कपड़े पहनना, बाह्य के लोगों को दिखाना, ये कोई पवित्रता के लक्षण नहीं। ज्यादातर आप देखेंगे, कि सिनेमा अॅक्ट्रेसेस होती है, सफ़ेद साड़ियाँ पहन के घूमेंगी। ऊपरे पवित्रता के लक्षण ले के घूमने से कोई पवित्र नहीं होता। पवित्रता अन्दर की चीज़ है। मनुष्य के लिये उसकी पवित्रता उसके साथ है । किसी और के लिये नहीं है। जो पवित्र है वो अन्दर है। बाह्य में नहीं है। शो बाजी में नहीं है। ...... पहन के और बहुतों ने लूटा है संसार में। ...... बन गये और इसको लूट, उसको खसोट । पवित्रता हमारी अपनी चीज़ है। अपनी प्रायवेट चीज़। उसके बारे में बोलने की भी जरूरत नहीं । वो प्रगटित होती है। आपके मुख से ही उसका तेज़ दिखायी देता है। कोई औरत पवित्र होती है, फौरन दिखायी देती है, कि ये औरत पवित्र है। और आदमी भी उसको ड्रते हैं, उससे ही रहते हैं। रावण जैसा आदमी डर गया। पर अपने देश | दूर में आदमी लोग ये नहीं समझते कि उनको भी पवित्र रहना बहुत जरूरी है । वो कहते हैं कि, पवित्रता का ठेका सिर्फ औरतों नें लिया है। ये जिस दिन आदमी को समझ में आ जायेगा उसी दिन हमारी समाज व्यवस्था में संतुलन आ 10
Original Transcript : Hindi जायेगा। नहीं तो इंग्लंड की औरतों को देख लो , सब को ठिकाने लगा दिया। सब आदमियों का अच्छा हाल बनाया हुआ है। .....बन के घर में रात-दिन मेहनत करते रहते हैं। औरतें उनके सर पे बैठी रहती हैं। इसलिये अपने घर में जो स्त्री है उसके पवित्रता की रक्षा करना, उसके पवित्रता की दाद देना और स्वयं भी पवित्र बन के उसके पवित्रता को चार चाँद लगाना हर एक पुरुष का कर्तव्य है। अगर दस औरतें पवित्र हैं और इनके पति पवित्र नहीं हैं तो दस में से पाँच तो जरूर खराब हो जायेंगी। ये सोच कर के कि हमारे पति अगर सीधे रास्ते नहीं चल रहे हैं क्यों ठीक बने रहे हैं। और अगर आप पवित्र हैं तो आप किसी को देते नहीं है। आप खुद ही पाते हैं। एक तो हम पवित्र इन्सान अपनी एक तेजस्विता ले कर रहता है। एक उसकी शान होती है। शास्त्री जी का आपके सामने उदाहरण है। थोड़े दिन ही वो इस संसार में रहे। लेकिन आज भी उनके नाम को सुनते ही लोग रोने लग जाते हैं। उनके मरने के बाद भी किसी ने उनके खिलाफ़ किताबें नहीं निकाली, कि इस औरत के पीछे भागते थे, वो करते थे। ये ओछेपन की बातें हम जब अपनी जिंदगी में कर रहे हैं तो जिंदगी के बाद तो निकालेंगे ही। ऐसे आदमी का कोई मान भी नहीं करता । जबानी जमाखर्चा। आप देख लीजिये किसी को भी । अगर आपने कोई ऐसा काम कर के रखा है, आपके सामने , 'हाँ, कैसे हैं आप ? आप बड़े नेताजी, ये , वो।' पीठ पीछे कहेंगे, 'अरे, बहुत बदमाश आदमी है। छोड़ो। अपने बीवी बच्चों को ले जाने लायक नहीं । उसको क्यो घर में बुलाया? क्लब में बुलाते उनको।' ऐसे लोग कहते हैं न! आप लोग भी कहते हैं कि नहीं? तो फिर अपने जीवन में भी इनकी तरह का होना चाहिये, कि लोग कहें कि 'आदमी ऐसा है कि सबेरे देख लेंगे तो अहाहा ! ये कहाँ से देवता चले आये।' लेकिन आप सोचते हैं कि दूसरा ऐसा हो। मैं कहूँगी कि, आप ऐसा होईये। हर एक आदमी ऐसा हो सकता है। अगर हाँ, उसकी कुण्डलिनी जागृत हो जाये और वो पार हो कर के अपने को स्थित कर ले । कितना शक्तिशाली अगर हमारा देश हो जाये जिस दिन हम लोग अपने को पूरी तरह बदल कर पवित्रता की धूरी पे खड़े हो जायें। कौनसी भी आप शाही लाव, नौकरशाही लाव, घोड़ाशाही लाव, गाड़ीशाही लाव इससे कुछ अन्तर अपने देश में नहीं आने वाला। हुकुमशाही लाव और क्या शाहियाँ हैं। इससे कुछ ठीक नहीं होने वाला। जब तक मनुष्य अपनी पवित्रता पे खड़ा नहीं होगा तब तक वो स्वतंत्र नहीं हो सकता। पवित्रता आपको स्वतंत्रता देती है। नहीं तो आप बंधन में फँसे हैं अपवित्रता के। कभी आपने देखा है, कि अपवित्रता आपको किस तरह से जकड़ लेती है ? गरीबी आपको किस तरह से चारो तरफ़ से पकड़ लेती है? आप कहीं चल भी नहीं सकते। जब तक आपके अन्दर ये सुन्दर चीज़ पूरी तरह से प्रकाशित नहीं होती, आपके अन्दर वो सुगन्ध जब तक नहीं फैलती। तब तक आपके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं। और वो इतनी सरल है। इसके लिये कोई पैसा खर्चा करने की कोई जरूरत नहीं। कहीं जाने की कोई जरूरत नहीं। किसी से माँगने की जरूरत नहीं है। ये तो मुफ्त में ही आपके अन्दर है ही। आपको इसे पाना है और जानना है। फिर जब आप ठीक होंगे, आपके बच्चे भी ठीक होंगे। बहुत से लोग मुझे ऐसा भी कहते हैं, कि माँ, हिन्दुस्तान में ऐसी ऐसी खराबी आ गयी। क्योंकि सिनेमा बहुत खराब है। सिनेमा आप भी देखते हैं। वो सिनेमा चल ही नहीं सकता, जो फॅमिला वाला नहीं है। तो फॅमिली वाले सिनेमा में जो खराबियाँ हैं उसको निकालिये। जिससे आपके बच्चे खराब हो जाते हैं । इसके लिये मना ही कर लीजिये। नहीं, ये चीज़ नहीं चाहिये हमको उसमें । अपना देश फॅमिली से चलता है। अगर कोई अकलमंद हो तो वो 11
Original Transcript : Hindi फॅमिली वाला पिक्चर बनाता है, जिसमें सब फॅमिली आ सके। एक एक आदमी आयेगा तो किस के पिक्चर में आयेगा ? चोरी छिपे आयेंगे तो किस में आयेंगे? खुले आम जा सके वही अपने देश में चलेगा । दूसरे देशों की बात और है। अपने ही अन्दर अपने को देख कर के मनुष्य को अपनी पवित्रता बनानी चाहिये और इसका पूजन करना चाहिये। हम जब गणेश का पूजन करते हैं, तो यही सोचना चाहिये कि, 'हे गणेश हमारे अन्दर भी तुम जागृत हो जाओ, पूरी तरह से।' ऐसा करने से ही, इस तरह से ही आप देखियेगा, कि आपका पूरा जीवन ही बदल सकता है। सहजयोग में जब कुण्डलिनी जागृत हो जाती है, तो पहले जागृत होता है, वो है गणेश | उनके जागे बगैर कुण्डलिनी नहीं जागती। अगर किसी आदमी में पवित्रता का अंश मात्र नहीं है, ऐसे तो कोई होते नहीं, राक्षस ही होते हैं ऐसे अधिकतर। ऐसा तो कोई होता ही नहीं जिसमें अंशमात्र भी बचा न हो। पर अगर ऐसा कोई हो, तो उसमें कुण्डलिनी जागरण का कोई भी इंतजाम नहीं होता। जो लोग ऐसे गुरुओं के पास जा के आते हैं , जिनके गणेश तत्त्व टूट गये हैं, वो भी मुश्किल से पार होते हैं। तकलीफ़ होती है बहुत । पर इनको भी ... देते हैं। पर हो जाते हैं। ये पहला तत्त्व अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। उसको नमस्कार कर के आपको ध्यान में जाना चाहिये। और पार होने के बाद भी इस तत्त्व को सब से ज्यादा सम्भालना चाहिये। उसे किसी से कहना नहीं चाहिये कि अपने अन्दर सम्भालने का है। जैसे सब से बड़ी पूँजी संसार में, सब से बड़ा हीरा आपके पास है, उस तरह से इसको जपना है। मैं कोई नयी बात नहीं बता रही हूँ। और पुरानी बात आज कल लोगों को भाती नहीं है। लेकिन जो असली बात है, हमेशा ही नयी रहती है। क्योंकि झूठी बात खड़ी हो कर मिट जाती है और असली बात हमेशा ही बनी रहती है । वो इसलिये उसे अविनाशी सत्य कहा जाता है। आज एक ही चक्र पे मैं बोली हूँ। इसके अलावा अभी आप लोगों को सब को पार कराना है और आप लोग सब बहुत चाहते हैं। गणेश की वंदना कर के हम लोग ध्यान करेंगे। लेकिन पहले आपको कोई सवाल पूछना है, तो पूछिये। सवाल : (अस्पष्ट) श्रीमाताजी : हाँ, वो तो करना होता है। इसके विधि में बहुत फर्क है, जैसे कि आज तक आप लोग करते आये हैं, वैसा नहीं है। माने पार होने के बाद आप ये समझ सकते हैं, कि आप का कौनसा चक्र पकड़ा है। क्योंकि आपकी उँगलियों में जलन होना शुरू होता है कि जहाँ जहाँ चक्र पकड़ा है। ये चक्र कौन से हैं? कौन से सिम्पथैटिक चक्र है? जैसे गणेश तत्त्व यहाँ पर हैं, ये गणेश जी का चक्र यहाँ पर होता है। पर इसमें पकड़ हो जाये, लेफ्ट में पकड़ हो जाये या राइट में पकड़ हो जाये तो उससे क्या क्या दोष होते हैं? फिर उसको किस तरह से ठीक करना चाहिये। आप अगर समझ लीजिये आपका गणेश तत्त्व पकड़ा है, तो आपको गणेश जी की आराधना कर के और अपने गणेश तत्त्व को ठीक करना चाहिये। पर अगर आपका दूसरा चक्र पकड़ा है, तो फिर इसको आपकी आराधना करनी चाहिये और इसको ठीक करना चाहिये। पर गणेश तत्त्व को ठीक करने के लिये जरूरी नहीं, कि आप गणेश जी की ही आराधना करें। अगर आप गणेश जी की तरफ़ से ठीक है और अगर गणेश जी नहीं करना चाहें तो फिर पवित्रता भी करें तो भी होगा। पवित्रता और गणेश जी में कोई अन्तर नहीं। 12