
Chakro Per Upasthit Devata 1979-01-17
17 जनवरी 1979
Public Program
Bharatiya Vidya Bhavan, मुंबई (भारत)
Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Reviewed | Translation (English to Hindi) - Draft
(एक आदमी से बातचीत)
‘आ रहे हैं अब? नहीं आ रहे है न? सिगरेट पीते थे आप क्या?’
‘कभी नहीं! ‘कभी नहीं पीते थे ? या मंत्र कोई बोले होंगे?’
‘पहले बोलता था अब विशेष नहीं।
‘वहीं तो है न ! आप देखिये, आप मंत्र बोलते थे, आपका विशुद्धि चक्र पकड़ा है। विशुद्धि चक्र से आपको अभी मैं दिखाऊँगी, आपको अभी मैं बताऊँगी। ये देखो, ये दो नसें यहाँ चलती हैं, विशुद्धि चक्र में ही ये विशेषता है और किसी चक्र में नहीं। ये दोनों नसें यहाँ से चलती हैं। नाड़ियाँ हैं ये दोनों। इसलिये जब आप मेरी ओर हाथ करते हैं तो हाथ से जाता है। हाथ में ही दो नाड़ियाँ हैं । तो ये नाड़ियाँ गायब हो गयी। आपको जिस आदमी में विशुद्धि चक्र अगर पकड़ा होगा तो आपको फील ही नहीं होगा हाथ में। बहुत लोगों की ये हो जाती है गति, कि वो बहुत पहुँच जाते हैं, उनको अन्दर से सब महसूस भी होता है, शरीर में महसूस होता है, हाथ में महसूस ही नहीं होता। अन्दर महसूस होता है। यहाँ है अभी कुण्डलिनी, यहाँ है, सर में है, ये सब महसूस होगा, पर हाथ में होता ही नहीं। ‘माताजी, गहन शांति जब होती है तब कैसे मालूम हो कि कुण्डलिनी कहाँ पर है? आप जब दूसरों की ओर हाथ करेंगे ना तब आपको खुद ही अन्दर पता चल जायेगा। आपको अपने में भी पता चल जायेगा। अभी वो किस तरह से उसको एस्टॅब्लिश करना है वो मैं पहले बताती हूँ। उसको कोई बहुत ज्यादा जानना नहीं होता है। अन्दर से ही जाना जाता है। जैसे आपको कैसे मालूम कि ये चीज़ गरम है कि ठंडी है? बोलिये। ये तो आपके अन्दर मालूम ही है, ये आपकी चेतना में है न! इसी प्रकार कुण्डलिनी का ज्ञान भी आपकी चेतना में आ जाता है। आप कहते है, देखो माँ, यहाँ है कुण्डलिनी । छोटे छोटे बच्चे जब पार हो जाते हैं, वो तक बताते हैं, माँ, यहाँ है, यहाँ है, यहाँ है। महसूस होता है। यही हैं फडके साहब जिनके बारे में बताया था। ऐसे हमारे पास बहुत से लोग हैं। सर्वसाधारण लोग हैं। सर्वसाधारण लोगों में ही सहजयोग होने वाला है। ये बहुत ज्यादा जो रईस लोग हैं, देखा नहीं उनको। पाँच मिनिट इधर हैं, पार हुए हैं। उनके माँ को ठीक कर दिया, उनके पिताजी को ठीक कर दिया, फलाना ठीक कर दिया। पाँच मिनिट बैठेंगे फिर चले। उनको टाइम नहीं। प्रोग्रॅम में कभी नहीं आयेंगे । पूरा साल नहीं आयेंगे। उसके बाद जब मैं आऊँगी, तो माँ, इधर पकड़ गया, इधर पकड़ गया, इधर पकड़ गया। फलाना हो गया, ठिकाना हो गया। पूरा साल कभी प्रोग्रॅम में नहीं आयेंगे। ये गड़बड़ हो गया, वो गड़बड़ हो गया। जैसे एक हफ्ते में एक बार अपने लिये टाइम निकाल कर के जैसे हम इबादत करते हैं। क्रिश्चियन लोग हैं, चर्च में जायेंगे। वो सिद्धिविनायक पे जाके घंटो मंगलवार को खड़े रहेंगे। ऐसे ही अपने लिए एक दिन जरूर आपको हफ्ते में निकालना चाहिये। और उसका पता लगाना चाहिये, कि कहाँ पर क्या है? क्या कौनसी, कहाँ प्रोग्राम हो रहा है? वहाँ जाओ। जहाँ सब लोग मिल कर हमें याद करेंगे, वही हम आयेंगे। अकेले बैठने से नहीं , कि मैं घर में बैठ के करूँ। फिर ये तकलीफ़ हो गयी, फिर ये प्रॉब्लेम हो गया हमको । जो लोग वहाँ जाते हैं उनको कोई प्रॉब्लेम नहीं । सब प्रॉब्लेम हल होते हैं। प्रॉब्लेम होते हैं, इसलिये तो वहाँ जाने का है । क्योंकि वो जगह प्रॉब्लेम सॉल्व करने की है। आपको कोई भी प्रॉब्लेम हो आप वहाँ जा कर के प्रॉब्लेम बोल दो, आपका प्रॉब्लेम सॉल्व हो जायेगा। लेकिन आप गये ही नहीं, जहां पर प्रॉब्लेम सॉल्व होता है, उसका में इलाज कैसे करूँ? समझ लीजिये, इन्कम टॅक्स में जा करके इन्कम टॅक्स का समझ लो प्रॉब्लेम सॉल्व होता है, तो आप घर में बैठ के कैसे कर रहे हैं? सो, प्रोग्राम में आते ही नहीं लोग। एक दिन क्या मुश्किल है, अपने लिये निकालने के लिये ! फिर मेरे पास इतनी लंबी लंबी चिठ्ठियाँ आती हैं, ये प्रॉब्लेम हो गया, वो प्रॉब्लेम हो गया। हमारे पति को ये बीमारी हो गयी, हमें ये बीमारी हो गयी। ऐसा हो गया, वैसा हो गया। ये श्रीवास्तव को पूछो, उसका ऐसा ही था। अभी ठीक है जरा । इसलिये प्रोग्राम में जाना चाहिये अपने को एक दिन। वहाँ जाने से आप मेरे पे कोई उपकार नहीं कर रहे हैं आप अपने लिये जा रहे हैं। अपने लिये कर रहे हैं। अभी कोई पर्मनन्ट जगह हुई नहीं है, लेकिन जहाँ भी होती है, हमको तो एक टेरेस मिला था, उसी पे करते थे। अब गवर्नमेंट कह रही है, कि उसको तोड़ ड़ालने का। चलो भाई, दूसरा टेरेस मिल जायेगा। उसपे करेंगे। जहाँ भी मिल जाये। अभी जगह नहीं हुई है सहजयोग की पक्की। हो जायेगी वो भी। मैंने कल बताया नां, कि होती ही नहीं है। क्योंकि कोई हमको ब्लॅक मनी नहीं देने का। पैसे हम देंगे, लेकिन ब्लॅक मनी नहीं देंगे। इसलिए प्रॉब्लम है, हो जायेगा । लेकिन आप लोग तो वहाँ जाया करो, जहाँ आप जायेंगे वहाँ मेरा चित्त रहेगा। इसमें अहंकार बड़ा नुकसान करता है, सब से बड़ा अहंकार है। और आलसीपना। एक तो या तो आलसीपना होगा या अहंकार। जिसको अहंकार है, अरे, क्या जाने का ? उसके यहाँ आने से मेरे लिये सरदर्द हो जाता है। जब मैं लंडन से आती हूँ तो देखती हूँ कि सब लोगों की हालत खराब! अभी भी सब लोग यही कहते हैं, जो हमेशा जाते हैं कि, माँ, पूरा साल ये लोग नहीं आयेंगे । और अंत में जैसे आप पहुँच जायेंगी, तो ये खराबी है, वो खराबी है , ले के बैठ जायेंगे। घर में ध्यान-व्यान करने से इतना नहीं फायदा होने वाला, जितना सामूहिक है। क्योंकि आज मैं बताऊंगी क्यों सामूहिक ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। अच्छा! अभी भी मेरा फोटोग्राफ ले लेना यहाँ से।आज आहे का , मिळणार आहे का फोटो ? आहे ना, भरपूर आहेत? अभी ये फोटोग्राफ सब लोग ले लें। क्योंकि फिर मिलते नहीं हैं। किती आहेत, आहेत भरपूर? हा है l सब लोग एक एक फोटोग्राफ ले कर के उसको कायदे से मढ़ के घर में रखना चाहिये । कायदे की जगह रखो। ये नहीं कि इधर रख दिया, उधर रख दिया। इस से नाराज़ हो जाते हैं । फोटो के अन्दर में देवता लोग हैं। अभी बताती हूँ कौन से कौन से देवता हैं! सारे देवता हैं। और फोटो से भी वाइब्रेशन्स आते हैं। आप इधर-उधर फोटो को रखेंगे तो अच्छा नहीं । उसका अपना प्रोटोकॉल है। उसकी अपनी प्रतिष्ठा है । किसी भी मूर्ति से ज्यादा फोटो महत्त्वपूर्ण है, इसलिये कि अभी तक किसी भी इंकार्नेशन का या अवतरण का आज तक तो फोटो हुआ नहीं है न। उसमें कुछ न कुछ दोष आ ही गया है, इसलिये फोटो को बहुत सम्भाल के रखना है और उसके अलावा उसकी जैसे आप हिन्दू हो, मुसलमान हो, जैसे भी हो, उसका थोड़ा पूजा अर्चन करना चाहिये। उसके आगे हाथ रखना चाहिये, जब उससे पूरा हम काम ले रहे हैं। फोटो से हम अपना कैन्सर भी ठीक करेंगे, सब ठीक करेंगे। और फोटो को है कि कोई एक बार पोछेगा भी नहीं । उस पर धूल पड़ी हुई है। ये कौन सा तरीका है भाई! जिस बैंक से सारा पैसा लेने का है, उसका कुछ तो ख्याल करना चाहिये। नहीं तो छोड़ दो फिर बात को। नहीं करना है, तो मत करो । लेकिन करना है, तो उसको समझदारी से। आप हिन्दुस्तानी आदमी हैं, आपको मालूम है, कि हमारे यहाँ किस तरह से हम हर एक चीज़ का व्यवहार करते हैं। कैसे हर एक चीज़ की इज्जत करते हैं। रिस्पेक्ट करते हैं। अगर अंग्रेज हो तो मेरी समझ में भी आवे । और उन पे इतने देवता लोग नाराज भी नहीं होते, मैंने देखा है, अंग्रेज लोगों पे, उनको तो इतनी अकल ही नहीं थी। मेरी तरफ़ पैर भी ऐसा कर के बैठते हैं, तो भी नहीं नाराज होते हैं। मैंने देखा है। देवता लोग खूब सोचते हैं पर हिन्दुस्तानी बैठ जाये तो फटाक् से आता है पैर। तो इसलिये समझ के फोटो को रख लिया । फोटो के आगे दोनों हाथ रखने से वाइब्रेशन्स आने लगते हैं । और ये जो हमारे अन्दर जितनी भी बाधायें हैं, जितनी भी तकलीफ़ें हैं, जिसके कारण हमारे वाइब्रेशन्स रूकते हैं ये पंचमहातत्त्व से आते हैं। पंचतत्त्वों में से आते हैं। पंचतत्त्व माने आप तो जानते हैं न! पृथ्वी तत्त्व है, तेज है, आप है, आदि... । अच्छा अभी जो कुछ भी आपमें बाधा है, वो उसी तत्त्व में विलीन हो जाता है। तो आप अगर पानी का तत्त्व लें, बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। पानी के तत्त्व में थोड़ा नमक डाल दिया। तो जैसे आपने समुद्र को ही अपना लिया है। समुद्र जो है गुरुस्वरूप होता है। और उसको नमस्कार कर के, उसमें दोनों पैर डाल के और दोनों हाथ ऐसे करने से, आपको आश्चर्य होगा वो सारा का सारा खींच लेगा । फोटो के सामने एक दीप जलाईये। दीप से आपका प्रकाश है, माने तेज तत्त्व है। तेज तत्त्व जो है, उसको खींच लेता है। अग्नि से भी होता है, हर एक चीज़ से होता है। इसके अनेक उपाय हैं। हम लोगों ने सहजयोग में पता निकाले हैं, कि किस तरह से इसको, जो कुछ भी हमारे में जड़ता आ गई है, जो इम्बैलेंसेस आ गए हैं, असंतुलन आ गया है हमारे पंचतत्त्व में, उसको किस तरह से संतुलन में लाना है? जैसे संतुलन आ जाता है, वैसे ही हमारी सब बीमारियाँ दूर हो जाती हैं। बहुत सीधा हिसाब है। आपके यहाँ फोटोग्राफ है। उसको आप रखिये। दोनों हाथ उसकी ओर करिये। जब तक उसमें से आपको ठंडी हवा नहीं आती, कोई संतोष नहीं आपको। जब आपके अन्दर ठंडी हवा आने लग जाये धीरे धीरे, तब सोचना चाहिये कि, हाँ भाई, अभी मैं ठीक हूँ। ऐसा पड़ताला लेना चाहिये । समझ लीजिये आपको वाइब्रेशन्स नहीं आ रहे हैं, तो देखना चाहिये कि क्यों नहीं आ रहे हैं? अभी आपके हाथ में चमक आयेगी । ये उँगली चमक रही है, कि ये उँगली चमक रही है, कि ये उँगली चमक रही है। इन उँगलियों से आपको पता हो जायेगा, अगर आपने किताब ली हो, तो इस पे (उँगलियों पे) चक्र होते हैं। इससे पता होगा कि कौनसा चक्र आपका पकड़ा है। उस देवता का आपको नाम लेना पड़ेगा। और वाइब्रेशंस जो हैं फिर से लेने से उसका नाम लेने से आपको आश्चर्य होगा कि वो खुल गया, वो उँगली खुल गयी। सारे वाइब्रेशन्स आना शुरू हो गये। इस तरह से उसकी पूरी स्टडी होनी चाहिये। इसको समझ लेना चाहिये पार होने के बाद। लेकिन अगर आप प्रोग्राम ही में नहीं आयेंगे , तो कैसे होगा ? दो चीज़, एक तो कि आप हमेशा एक दिन रखिये । पार्टी में जाने को टाइम है, दोस्तों के यहाँ जाने को टाइम है, घूमने को टाइम है, सिनेमा को टाइम है। सब चीज़ को टाइम है। अपने लिये एक दिन भी नहीं। फिर माताजी के लिये भी तो सरदर्द होता है। जब आती हूँ वहाँ से लौट के तो देखती हूँ कि अरे बापरे! ये बम्बई वाले तो भगवान बचायें। पर अभी मैं जाऊँगी राहुरी में, व्हिलेज में सब लोग सबेरे चार बजे उठ कर के रोज, नियमित ध्यान करते हैं।
वो लोग रोज शाम को सहजयोग सेंटर में मिलते हैं। बोलते हैं, कि अभी शराब के गुत्ते में जाने का नहीं । क्या मजा आता है आपस में! असली दोस्ती तो सहजयोगियों की होती है और किसकी दोस्ती होगी? असली दोस्ती होती है। जान से जान लोग दे देते हैं । बड़ा मजा आता है आपस में। जब सभी लोग पार हो गए, तो फिर वो बात ही और चलती है। फिर किसी का अच्छा ही नहीं लगता। लगता है ये क्या छोटे बच्चों जैसे, मूर्खों जैसे बातें करते हैं। सो, ये क्या करना है? इसकी प्रक्रिया क्या है? किस तरह से करना है? इसकी किताब भी है, उसको भी आप ले लीजिये। देखिये और उसमें से कुछ नहीं समझ आया तो प्रोग्राम में आना । वहाँ लोग रहते हैं, उनसे पूछिये। काफ़ी लोग हैं पार हुये । आपकी कुछ प्रगति हो जायेगी, जब आप कुछ स्थिर हो जायेंगे, तब आपको और भी चीज़ों में एक्स्पोज किया जायेगा। इससे और भी स्थिरता बनती जायेगी, लेकिन अगर आप डगमग हैं, अभी आपको अश्रद्धा है। अश्रद्धा रहेगी तो कोई आपको कुछ नहीं बताने वाला। फिर इसके बाद में और भी इसके हायर स्टेट्स है, उसमें आप उतर सकते हैं। जैसे पूजा क्या चीज़ है? ये वगैरा। फिर पूजा में सब लोग नहीं आते। क्योंकि हम सबको बुलाते नहीं है। वो दशा नहीं है न! श्रद्धा होनी चाहिये। श्रद्धा के बगैर कुछ नहीं होने वाला। अभी जब तक पार नहीं है, तब तक भगवान माफ़ कर देता है। पार होने के बाद भी, हाथ से वाइब्रेशन्स आये तो भी, चार आदमी आपके हाथ से पार हुये तो भी, और आपकी बीमारी ठीक हो गयी तो भी आपको श्रद्धा ही नहीं । तो फिर भगवान क्या कहता है! ऐसे अश्रद्धा लोगों को भगवान क्या देगा? आपको परमात्मा को कुछ नहीं देने का, पैसा-वैसा तो आप दे नहीं सकते ना! कुछ नहीं दे सकते। सिर्फ श्रद्धा तो देना चाहिये। श्रद्धा का मतलब है, अनुभव के बाद विश्वास रखना। अंधविश्वास नहीं। देखिये, जब आपने देख भी लिया, सब जान भी लिया, उसके बाद भी आप नहीं विश्वास करते हैं, तो फिर परमात्मा को आपकी परवाह नहीं। सब जानने के बाद, देखने के बाद, सब होने के बाद भी लोग ऐसा करते हैं। उसी से फिर रावण तैयार हुए हैं, रावण कैसे तैयार हुए हैं? रावण तो पार हो गया था, ब्राह्मण था। पार होने बाद भी उसने फिर अश्रद्धा करी, अश्रद्धा कर के गलत काम शुरू कर दिये, फिर उसका देखिये क्या हाल हो गया! श्रद्धा का मतलब ही क्या होता है? बहुत से लोग कहते हैं कि, ‘माँ, हमसे सब होता है, पर हम सरेंडर नहीं कर सकते। ‘ अरे, क्या नहीं सरेंडर कर सकते? तुम्हारा हम क्या ले रहे हैं? क्या है आपके पास देने के लिए जो हम ले रहे हैं, जो सरेंडर नहीं कर रहे हैं। बताओ तो सही। तुम्हारा अहंकार ही तो है नं ! थोड़े ही कह रहे हैं कि तुम्हारा विज्डम सरेंडर करो । हम तो तुमको विज्ड़म दे रहे हैं। अगर अहंकार नहीं सरेंडर करोगे , तो तुम्हारे अन्दर विज्ड़म नहीं आयेगा । बेवकूफ़ बन जाओ। स्टुपिड। यही तो पाश्चिमात्य देशों में हुआ, कि अहंकार पे ही स्थित हैं वो लोग, इगो ओरिएंटेड हैं। तो स्टुपिड हो गये। अपने यहाँ दिखाया था नारद जी का। बड़ा अच्छा वर्णन किया है वाल्मिकी जी ने। एक बार वो बहोत अहंकार कर के गये थे, तो मायापुरी में जा कर उनका सारा अहंकार टूट गया लेकिन वो बड़े बेवकूफ़ बन गये। जिस आदमी में अहंकार होता है, वो बड़ा ही बेवकूफ़ होता है। उस अहंकार को अच्छा ही है, कि समर्पित कर दें । अहंकारी मनुष्य महामूर्ख ही होता है। लोग सब हँसते हैं उस पर। उसको नहीं समझ में आता है। ऊपर से भी जो नम्रता बहोत लोग लाद लेते हैं, बिजनेस वाले हुए, सरकारी नौकर हुए, ऊपर से बहुत अच्छे से बात करते हैं। कोई असली नम्रता नहीं। असली नम्रता तो सिर्फ विज्डम से आती है, सुबुद्धि से आती है। सो सुबुद्धि का जागरण होने से ही, सुबुद्धि के आशीर्वाद से ही मनुष्य उस जगह स्थित होता है, जहाँ वो है। ये तो मैंने बता दिया, कि आपके वाइब्रेशन्स अगर खो जायें , तो क्या करना चाहिये? किस तरह से रहना चाहिये? अब आप लोग फोटो भी ले लीजिये और फिर से मैं कहती हूँ कि हर हफ्ते जहाँ भी प्रोग्राम हो वहाँ आना चाहिये। अब हम यहाँ जितने दिन भी हैं, अब बोरिवली में प्रोग्राम हैं, या कहीं भी प्रोग्राम हैं, जितना बन पड़े वहाँ आईये। वैसे हम रहते भी यहीं पास में नीलाम्बर में हैं । सवेरे के टाइम वहाँ भी आईये। सीखने की कोशिश करिये। जानिये और देखिये क्या चीज़ है! ये तो है नहीं कि बज़ार में गये, और भाई हमने पाँच पैसा दिया, चलो हमको चावल डाल दो। ये नहीं है। ये दुकानदारी नहीं है। सब लोग दुकानदारी की अॅटिट्यूड से आते हैं। कि अब तो दुकान में आ गये, हमको क्यों नहीं हो रहा? नहीं हो रहा तो नहीं हो रहा। मैं क्या करूँ? इसका अॅटिट्यूड उल्टा है। आप समझे न! इसका अॅटिट्यूड उल्टा है। ‘नहीं हो रहा है, क्या बात है? पता नहीं!’ ऐसा कहना है। आपका कोई दोष है, इसलिये नहीं हो रहा है। आपका अधिकार होना चाहिये घटित होने के लिये। और आपका अधिकार नहीं है, तो क्या बातसे नहीं है वो देखना चाहिए, कि ‘क्या बात है माँ? कौन सी कमी रह गयी मेरे अन्दर ?’ उल्टी बात है, मेरा नहीं हो रहा, मेरा नहीं हो रहा। तुम्हारा नहीं हो रहा है, तो क्या किया जायें ? आपका अधिकार होगा तो होना ही होगा। अरे ऐसा ही है, जैसे कि तुम बैंक में जाते हो, तुम्हारा अगर वहाँ कुछ पैसा जमा नहीं होगा तो कह देगा कि मेरा चेक ही कैश नहीं हो रहा। अरे पैसा ही जमा नहीं तो मैं क्या करूँ? हम तो बैंक में बैठे हैं। पर तुम्हारा पैसा भी तो कुछ उधर जमा होना चाहिये। उधर पैसा ही जमा नहीं है, तो अभी तक ओवरड्राफ्ट ही चल रहा है। तो फिर थोडी देर में रुक जाता है ओवरड्राफ्ट। अब इससे ज्यादा नहीं दे सकते। ये दुकान नहीं है, बैंक है। अच्छा! अब उल्टा अॅटिट्यूड समझ लो। अधिकतर गुरुओं के पास में दूसरी बात है। क्योंकि वो तो अपनी झोली भरते हैं । उनको तो मतलब नहीं है कि भाई, आपका क्या हाल है? अब समझ लो कि कोई अगर आ गया मेरे पास, अभी ये भाई साहब ही है कि, ‘माँ मेरा क्यों रुक गया ?’ ‘बेटे, तू सिगरेट पीता है?’ ‘नहीं।’ तू मंत्र बोलता है? ठीक है मंत्र बंद कर।’ ‘नहीं, मैं मंत्र नहीं बंद कर सकता।’ ‘ तो भैय्या मैं क्या करूँ? इलाज तुमने पूछा तो बता दिया।’ अॅटिट्यूड का फर्क होना चाहिये । सोचना चाहिये, कि हम क्या माँग रहे हैं? या क्या दे रहे हैं? गुरु लोगों का क्या है! कुछ भी करो। सिगरेट पीते हो? तो हम तुमको और भी बढ़िया सिगरेट ला देंगे फॉरेन से। उनके शिष्य लोग फॉरेन से शराब लेके आते हैं। बढ़िया वाली। फॉरेन की शराब। कोई-कोई गुरुओं के यहाँ तो फॉरेन की शराब मिलती है। और गांजा चाहिये तो गांजा ले लो। जो चाहिये वो करो। खुद भी पाँच-पाँच, छ:-छ: एअर होस्टेसेस को रखे रहते हैं और तुम लोग भी रख लो। कोई हर्ज नहीं। ‘शराब पीना है ? पिओ । कुछ भी करो। हम तुमको कुछ नहीं बोलने वाले। हम ऐसे नहीं है, तुमको सताने वाले । तुमको जो करना है, करो । बहुत अच्छे आदमी हो तुम। बस तुम्हारी पर्स मेरे को इधर दे दो | और तुम्हारे बीवी-बच्चों को भी मेरे पास दे दो। बस काम खत्म। तुम काहे को परेशान हो रहे हो? मैं सब पैसा रख लेता हूँ। तुम्हारे बीवी-बच्चे भी सम्भालता हूँ।’पर तुम गए क्यूं नही?ऐसे गुरु लोग बड़े जल्दी पनपते हैं। माँ तो बोलती नहीं बेटे, अन्दर से पूरा अन्तर आना चाहिये। चेंज होना पड़ेगा। अन्दर से तुम जो हो, होना पड़ेगा। तुम्हारी जो सम्पदा है, वो तुमको मिलनी ही चाहिये । जो कुछ तुम्हारा अपना धन है, उसको पाना चाहिये।’ माँ तो यही कहेगी। आर्टिफिशिअल चीज़़ पे मत रहो। असलियत को पाओ। सत्य पे उतरो। और सत्य पे उतरने से बढ़ के और कोई तुम्हारी सत्ता है ही नहीं। और इसी सत्ता पे रहो। इसका आनंद उठाओ। यही तो बात माँ कहेगी। वो बात नहीं अच्छी लगती लोगों को! यहाँ कोई आप लोगों से वोट थोड़ी ही लेना है मेरे को, कि चार दिन तुम लोगों को खुश करती रहूँ। लेकिन अन्त में तो मैं तुमको खुश ही कर देती हूँ। क्योंकि तुम जब अपना धन पा लेते हो ना, तो कहते की, ‘धन्य माँ, तुमने हमको ये चीज़ दे दी है, जिसको हम खोज रहे थे।’ अरे, बहुत से लोग मुझे गालियाँ भी देते हैं। तुम्हें नहीं मालूम। बहुत सताते भी हैं। बहुत से लोग सताते हैं। उनसे बोलो ना, ‘ये नहीं करो ।’ हो गया। कलियुग है ना! कलियुग में माँ को कौन मानता है। बहुत से लोग बोलते हैं, कि माँ, आप बहुत सीधे हैं। सब लोग आते हैं, ऐसा ही आपका अॅडवान्टेज उठाते हैं। मैंने कहा, उठाने दो क्या है? कौन सा मेरा अॅडवान्टेज उठा रहे हैं? ये तो मैं करुणा में सारा कार्य कर रही हूँ। अब करुणा को तुम जानों और समझो उसे । तुम्हारा लाभ है। करूणा की नदी बह रही है, उसमें अगर डूबना है तो आ जाओ अन्दर। नहीं डूबना है तो अपने रास्ते जाओ। पर माँ थोडी सी और भी आगे बढ़ती है। बोलती है, बेटा , आ जाओ, आ जाओ। किसी तरह, दादा-पूता कर के उसको बुला लेती है। पर लोगों को बड़ी जल्दी बुरा लगता है न! बहुत जल्दी फील हो जाता है। कोई बात बोलो, एकदम गुस्सा हो जायेंगे। अभी तुम अगर परफेक्ट होते तो मेरे पास आने की जरूरत क्या थी? सीधा हिसाब है। कुछ न कुछ दोष तो है न! उसको समझा के प्यार से ही मैं हटाती हूँ। कोई तुमको डंडा ले के मारती थोडी ही न हूँ। जैसे और गुरु हैं, असली वाले जो होते हैं वो चिमटा ले के बैठते हैं । पहले दस चिमटे लगायेंगे। जो दस चिमटे खायेगा उसको बोलेंगे, चल आगे चल। उसको उल्टा टांगेंगे। कुँए के ऊपर, दस दिन। उसके आगे फिर उधर दस दिन रहा। फिर आगे उसको ले जाकर कहेंगे कि चल, यहाँ रात में सो। उधर तीन चार साँप छोड़ देंगे। ऐसा तो नहीं करती। शहर में, तुम्हारे घर में जैसे हो वैसे ही गृहस्थी में रह कर ही सहजयोग होता है। कहीं नहीं कहती हूँ, कि जंगल जा के बैठो कि घर छोडो, की बीवी बच्चे छोड़ो। कुछ नहीं कहती हूँ। जैसे जहाँ हो वही पाने का है। तुम्हारे अन्दर ही है। कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं। कोई सन्यास लेने की जरूरत नहीं। कुछ करने की जरूरत नहीं । सिर्फ अपने दोषों की तरफ देखना है और उनको साफ कर लेना है। अपने को पवित्र बनाना है और उसकी शक्ति भी मैं तुमको दे देती हूँ। अब थोडा कुण्डलिनी के बारे में बताती हूँ। और उसके बाद में आप लोग थोडे सवाल पूछना और उसके बाद पार हो जाओ। ये मेन चीज़ है। वाइब्रेशन हमेशा चलते रहना चाहिये। अगर वाइब्रेशन नहीं चले तो संतोष नहीं करना। कोई न कोई दोष हमारे अन्दर आ गया है। कोई कहाँ गया, कोई कहाँ गया। कोई कहाँ चिपक गया। कोई कैसे मिल गया। बारीक सारी चीज़ें पकड़ जाती हैं। लेकिन इसका एक इलाज मैंने जरूर देखा है, कि आदमी का चित्त अपने ऊपर न रहते हुये, अगर दूसरे सहजयोगियों के प्रति रहे कि मैं इसको कैसे पार करूँ? उसको कैसे पार करूँ? किस तरह से मैं उनको ये करूँ? तो बड़ा आश्चर्य होता है कि उस वक्त में परमात्मा की शक्ति बड़े जोरो में दौड़ने लगती है। ये एक बात जरूर है। इसका यही एक सिक्रेट है। किसी आदमी को प्रोग्रेस करना है तो वो अपना हाथ बढ़ा कर के, चलो भाई, तुमको पार करा देता हूँ। जो आदमी अपने ही बैठे हैं, भाई मेरा फलाना है , मेरा इधर पकड़ा है, मेरा इधर पकड़ा है, मेरा इधर पकड़ा। उनका नहीं होने वाला। वो खास काम नहीं कर रहे। जो आदमी हाथ अपना बढ़ा के दूसरों को उठायेगा, सँवारेगा, उसके लिये होगा।
अभी देखो, जीवन में भी ऐसा ही है। हमारा हृदय है, कितना महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि सारे शरीर में उसकी शक्ति दौड़ती है। अभी एक सेल है, ये नाखून है, इसको हम काँट के फेंक देते हैं। क्योंकि यहाँ तक ही यहाँ तक बैठा हुआ है। वो खत्म होने वाला है। और हृदय के जो सेल्स है उसको बड़ा प्रिझर्व किया जाता है । क्योंकि उसकी शक्ति से ही अपना सारा ही रुधिराभिसरण होता है, सारा सर्क्युलेशन चलता है। उसी प्रकार आप क्या चीज़ हैं, वो परमात्मा देखता है। ये नहीं की आप मिनिस्टर हैं कि क्या है। पर आप सहजयोग में कितने कार्यान्वित हैं, वो क्यों? और कैसे? ये आपको जब विशुद्धि चक्र बताऊंगी तब समझ में आयेगा। अब मैं जरा शॉर्ट में सब बता रही हूँ। क्योंकि ज्यादा बताने में क्या है, कितने चक्र हैं, आप जानते हैं। इसका कोई बहुत जल्दी नहीं हो सकता काम। आता कुणी इकडे या म्हणजे काय दाखवायला वगैरे.तो कल तो पहले चक्र पे ही बताया। क्योंकि बड़ा महत्त्वपूर्ण चक्र है। इसलिये मैंने बताया। क्योंकि मूलाधार चक्र है। इसको मूलाधार चक्र कहना चाहिये। और कुण्डलिनी जो है, मूलाधार में है। दोनों का अन्तर समझ लो, कि कुण्डलिनी जो है वो मूलाधार में है और गणेश जी जो है, मूलाधार चक्र में है। क्योंकि मूलाधार चक्र से सेक्स चलता है। इसका मतलब सेक्स का और कुण्डलिनी का संबंध नहीं बनता। कुण्डलिनी जो उठती है वो सेक्स के पॉइंट से उपर उठती है। ये पॉइंट है। समझ गये। वो नीचे में है ना! मूलाधार चक्र जो है, वो नीचे में है। कुण्डलिनी ऊपर है। तो गणेश जी को जब खबर आती है, कि हाँ, आ गयी माँ! वो पहचानता है न मुझे। तो वैसे ही वो अपने कुण्डलिनी को बता देता है, कि भाई, वो आ गये। एकदम खड़ी हो जाती है कुण्डलिनी। अब गणेश जी का एक कार्य, सेक्स में थोड़ा सा पार्ट है उसका। लेकिन जब तुम लोग मेरे सामने हाथ कर के बैठते हो तो छोटे बच्चे हो जाते हो। फिर वो सवाल ही नहीं उठने वाला। हो ही नहीं सकता। क्योंकि गणेश जी का चित्त इधर जाता है, कि कुण्डलिनी को इन्फॉर्म करना है। वो भावना आ ही नहीं सकती। मतलब कोई राक्षस ही हो तो पता नहीं, पर तो भी राक्षसों को भी नहीं आती। उस वक्त सब बच्चे बन जाते हैं। अबोधिता आ जाती है। इनोसन्स आ जाता है। जब इंग्लंड जैसे, और अमेरिका जैसे देशों में भी होता है, तो फिर तुम लोगों को क्या कहें। तुम लोग तो अपनी माँ को पहचानते हो ना ! तो पहला चक्र है, मूलाधार चक्र और उसके ऊपर उसको मूलाधार कहते हैं, उसको कोई कोई कूलकुण्डा भी कहते हैं। कुल कुण्ड, कुल आप जानते हैं न! अपना कुल क्या है? उसका कुण्ड। आपके कुल का कुण्ड वो होता है। कुल माने आपने अभी तक जितने भी जनम लिये, अनेक अनेक जनम लिये वो सारे उस कुण्ड में स्थित होते है । जो कुण्डलिनी यहाँ बैठी होती है। और दूसरा कुण्डल का अर्थ होता है, वलय, इसलिये क्योंकि साढ़े तीन वलय में कुण्डलिनी होती है। इसलिये उसको कुण्डलिनी कहते हैं। अब ये जब उठती है, तब सब के सब पूरी नहीं उठती है। ये अनेक धागों से बनी है समझ लीजिये। लपेटी हुई, अनेक धागों से बनी इस तरह की होती है। और उसके कुछ-कुछ धागे उठते हैं। और जब वो उठते हैं, तो धीरे-धीरे, खुलते खुलते खुलते खुलते वो कुण्डलिनी ये सब चक्रों को छेदती हुई, छः ही चक्रों को छेदती है, साँतवा चक्र नीचे में, मूलाधार चक्र है। षट्चक्र भेदन बोलते हैं। सात चक्र का भेदन कहीं नहीं संस्कृत में लिखा हुआ। उसका मतलब ये है कि मूलाधार चक्र नीचे में है। छ: चक्र को भेदती हुई ऊपर जाती है। अब कोई चक्र में समझ लीजिये रूकावट है। आपको मैंने, वहाँ जो लोग आये थे पहले दिन उनको बताया था, कि उसके ऊपर चक्र को स्वाधिष्ठान चक्र माना जाता है।
पर स्वाधिष्ठान चक्र तो घूमते रहता है। कभी नीचे होता है, कभी ऊपर होता है, कभी साइड में होता है। अब ये जो स्वाधिष्ठान चक्र है, इसमें कुण्डलिनी जब घुसती है अगर स्वाधिष्ठान चक्र में खराबी हो। माने फिजीकल साइड में आप सोचें, लिवर। तो आपका स्प्लीन, ऊपर का हिस्सा लीवर का खास कर के, स्प्लीन हो गया और पँक्रियाज हो गया, किडनी और यूट्रस भी ये सब इससे सप्लाय होता है। और आपके ब्रेन में भी, जो मेद होता है, फैट होता है उसको कन्व्हर्ट कर के, उसको बदल के उस फैट को ब्रेन के लायक बनाता है। ब्रेन सेल्स बना देता है। वो बदल के ब्रेन सेल्स बन जाते हैं। मस्तिष्क सेल्स। तो ये भी एक कार्य उसका होता है। अब समझ लीजिये कि आप एक बहुत सोचने-समझने वाले, प्लॅनिंग वाले आदमी हैं, तो पहले कुण्डलिनी की यही पे रुकावट हो गयी, पहली। स्वाधिष्ठान चक्र काम से गया। अब इसमें दो साइड़ हैं, राइट अँड लेफ्ट। राइट में तो फिजिकल साइड हो गयी और लेफ्ट में इमोशनल हो गयी। अब इमोशनल में कौन सी है ? मतलब ये क्रियेटिविटी का चक्र है। अगर आप आर्टिस्ट हैं, म्यूजिशियन हैं, आपने बहुत म्यूजिक का अभ्यास किया है । तो भी आपने उस चक्र को बहुत एक्झॉस्ट कर दिया। उसका बहुत इस्तमाल कर दिया। उसका उपयोग कर दिया। तो भी उसमें फिर कुण्डलिनी जा के जरा रुक जायेगी, अगर सप्लाय करे तो। लेफ्ट साइड़ में क्या होता है? अब राइट साइड में तो ये है कि आपने इस्तमाल किया, ये किया , वो किया। लेफ्ट साइड़ में समझ लीजिये, कि आप किसी स्पिरिच्युअलिस्ट के यहाँ गये, साइकॉलॉजिस्ट के यहाँ गये, ये भी क्रियेटिविटी है माइंड की। अनधिकार चेष्टा है। किसी साइकॉलॉजिस्ट को अधिकार नहीं है, कि आपके मन से खेलें। कोई अधिकार नहीं। या आप किसी हिप्नॉटिस्ट के पास गये। और ऐसे गलत गलत लोगों के पास जा कर उन्होंने आपके मन में हिप्नॉसिस किया या कोई ऐसी चीज़ करी तो उसका लेफ्ट स्वाधिष्ठान पकड़ता है। जितने भी साइकॉलॉजिस्ट मैंने देखे उन सब का लेफ्ट स्वाधिष्ठान पकड़ता है। क्योंकि वो मन से साइकि का खेल हैं न ! साइकी को इस्तमाल करते हैं अपने क्रियेटिविटी के लिये। जो बॉडी को इस्तमाल करते हैं क्रियेटिविटी के लिये, उनका राइट साइड़ पकड़ता है। जो अपने मन को या इमोशन्स को या अपने भावनाओं को इस्तमाल करते हैं, उनका लेफ्ट साइड़ पकड़ता है। एक जनरल बात बता रही हूँ। बारीक बारीक तुम्हारी समझ में आ जायेगा। अभी ऊपर आये नाभि चक्र में, नाभि के चारो तरफ में आपका, जिसको भवसागर मैं कहती हूँ, ये बना हआ है। पेट। धर्म पेट में होता है। माने आप इन्सान हैं, ये आपका धर्म है। जानवर है, उसकी दुम होती है। इन्सान है, उसके कुछ गुण होते हैं। उसका सस्टेनन्स माने उसकी धारणा शक्ति।
जिसपे धारित है, आप मनुष्य है कि राक्षस हैं? कि मनुष्य के रूप में आप जानवर हैं? कि भूत हैं आप? दिखने को तो मनुष्य ही दिखायी दे रहे हैं। लेकिन शायद आप भूत ही हो। तो उसकी धारणा शक्ति जो होती है, वो दस होनी चाहिये। उसकी अगर दस धारणा शक्ति नहीं होगी तो वो मनुष्य से च्यूत हो जाता है। माने जैसे पागल खाने के लोग होते हैं, भूत जैसे चलते हैं। दिखने को तो मनुष्य लगते हैं, पर अगर आप गये तो आपकी खोपड़ी पकड़ लेंगे। आपकी समझ में नहीं आयेगा, कि क्या बात हो गयी | हम आये, और हमको पकड़ क्यूं लिया इसने। शराबी आदमी भी अपने धर्म से च्युत होता है। कोई शराबी आदमी इधर से आये तो उधर से भागो। उससे ऑर्गुमेंट क्या करोगे! एक साहब मज़ाक बताते हैं। एक मिनिस्टर साहब के यहाँ कोई गये बेचारे देहाती लोग। तो देखा कि एक आदमी वहाँ पर बहुत ही ज्यादा शान मार रहा है वहां पे।
सब पे रोब झाड़ रहा है। तो उन्होंने पूछा, ‘साहब, क्या बात है? आपकी तबियत ठीक है?’ कहने लगे, ‘तुम जानते नहीं, मैं पी.ए. हूँ।’ उन्होंने कहा, ‘नहीं पता था साहब। माफ करिये। कल आयेंगे हम लोग। ‘ उनको क्या पता कि पी.ए. का मतलब क्या होता है। उन्होंने सोचा, कि ये पिये हुये हैं। इसलिये ऐसा कर रहा है। तो पिये हुये आदमी का मतलब क्या होता है? वो धर्म से च्युत हो जाता है। जब पीता है, तब उसकी चेतना कुछ न कुछ तो खराब हो ही जाती है। बोलते हैं, कि क्या हर्ज़ है, एक पी लो। पहले लंडन में लोग एक ही पीते थे। आपको मालूम है हम लोग इंग्लिश लोगों को कहते थे, कि इंग्लिश लोगों को क्या है कि इतना इतना पीते है। अभी जा के वहाँ देखो! बड़े बड़े रस्ते पे पड़े रहते हैं वहाँ पर। वो शुरूआत होती है एक से। फिर बच्चे दस से करते हैं। फिर उनके बच्चे सौ में जाते हैं। जो चीज़ अपने को करनी की नहीं, जिस गली में जाने का नहीं, उसको क्यों करना है? तो धर्म से च्युत होने का ये मतलब होता है, कि आपके अन्दर जो मानव धर्म है, जो मानवता को आप के धारणा करता है, सस्टेन करता है उसको आप डिस्टर्ब कर रहे हैं। उसमें एक बड़ा भारी धर्म है, सर्व धर्म समानत्व ! ये भी बड़ा भारी धर्म है। जैसे कोई बड़े फनेटिक्स होते हैं, उनकी नाभि पकड़ जाती है। फनेटिसिजम जिसको बोलते है न! जो हम हिंदू साहब, एक हम आये हैं, हम मुसलमान, एक फलाने आये, हम फलाने। गये आप काम से। पेट का कैन्सर हो जायेगा ऐसे लोगों को। सच्ची बात बताती हूँ। बुरा नहीं मानो। आप हिंदू कहाँ से हो गये? आप अगर वहां अफ्रिका में पैदा होते तो आप भी वैसे ही घुमा करते, जैसे वहाँ लोग घूमते हैं। और कहीं जंगलों में पैदा होते तो पेड़ पे रहते रहते। अब इधर पैदा हो गये हो तो बड़े हो गये हो हिंदू के। और हिंदुओं को तो, पहली बात ये है, कि सर्व धर्म समानत्व तो उनके जीवन में ही पहले आना चाहिये। क्योंकि उनको तो पता है, कि सब के अन्दर एक ही आत्मा का वास है। जब सब के अन्दर एक ही आत्मा का वास है, तो कौन हो गये आप हिंदू और कौन हो गये मुसलमान! सब से बड़े फनेटिक तो क्रिस्चियन लोग होते हैं। बाप रे बाप! आश्चर्य होगा, वो तो इधर से उधर टस से मस नहीं होंगे। उनका नाभि चक्र बड़े जोर से पकड़ता है। दूसरे होते हैं जैनी। उनका भी नाभि चक्र बड़े जोर से पकड़ता है। आप में कोई जैनी हो तो बुरा नहीं मानना। बाकी दूसरों का दूसरा चक्र पकड़ता है। पर नाभि चक्र जैनियों का बहुत पकड़ता है। ये नहीं खाने का, वो नहीं खाने का, लहसून नहीं खाने का, कांदा नहीं खाने का, फलाना नहीं करने का, ठिकाना नहीं करने का रात – दिन यही चिंता रहती है। दूसरे होते हैं जो बहुत खदाड़े होते है। खाते ही रहते हैं। पारसी लोग। पारसी लोगों का जीवन सारा खाने में ही जाता है। बुरा नहीं मानना। उनको ये सब चलता है। उनसे भी बढ़ के होते हैं, जपानी लोग। वो हर तरह की चीज़ खाते हैं। खाना कमती करो, कहो तो भी भूखे मरेंगे। कोई पारसी को मैं बोली, खाना कम करो, तो एकदम भूखे मरने लगे। जैनी को मैं बोली, कि इतना मत करो, ऐसा नहीं करो। तो उसने गैय्या का गोश्त खा, फलाने का गोश्त खा, सारे दुनिया के गोश्त खा लिये। मैंने कहा, अरे बाबा, ऐसा थोड़ी मैं बोली थी । मतलब बीच में आओ । हर समय खाने की बात सोचना ही ठीक नहीं बात है। अभी क्या खायेंगे, सबेरे क्या खायेंगे, शाम को क्या खायेंगे ये, हमारे कायस्थ लोग तो पक्के! हमारे श्रीवास्तव कायस्थ, इतने खाने के होते हैं, कि बस, उनको खाना ही खाना। सुबह से शाम तक उनकी औरत लोग इसी में ही लगी रहती है। बड़े खदेड़ू लोग होते हैं। बहुत मुश्किल काम है कायस्थ के घर में रहना। बहुत ही खाने का होता है। ये नहीं अच्छा, उसमें ये नहीं। क्यों ? है न बात! औरत की जिंदगी इसी में चलती है।
वो तो पारसी से भी बढ़ के होते हैं श्रीवास्तव लोग। कुछ कम नहीं होते। फिर हमारे महाराष्ट्रियन लोग । त्यांना फार पाहिजे | चमचमीत! मग आज काय बेत आहे? म्हणजे बेत फक्त खाण्याचेच असतात बरं का !(मराठी में)। मतलब किसी ने कहा, कि आज क्या इरादा है? तो मतलब ये नहीं और कोई इरादा। वो खाने का मतलब है। बेत और इरादा ये दोनों चीज़ एक ही है। अब उसका मतलब खाना। आप सोचिये, कि आज काय बेत आहे? तो वो बोलेंगे कि, खाने को आज ये बना रहे है, फलां , ढिकाना। फिर कंजूस आदमी। मख्खीचूस। ‘दोन फळे खाल्ली मी, झालं!’ म्हणजे दोन पेरू आणायचे आणि आठ जणांनी वाटून खायचे. नाभि चक्र धरणार. कंजूस आदमी। कंजूसों का ये होता है, कि जब कोई घर में आये तो छिपा के रख देंगे। कोई नहीं खायेगा। तो क्या होता है, कि इसका बैलन्स भी आदमी के नेचर में आता है। आप देखिये। कोई आदमी शराब पीता है, तो वो जनरस होता है। ऐसा इसका बैलन्स थोड़ा थोड़ा आता है। जैसे कोई शराबी आदमी होएगा तो वो जरूर। कोई आदमी खदेडू होगा, खाने वाला, तो चार आदमिओं को खिला के खायेगा। पर ये कंजूस का तो कोई इलाज ही नहीं है। इसका इलाज बहुत मुश्किल है, कंजूस का। कंजूस आदमी को बोलना भी मुश्किल, कि तुम कंजूस हो, अपनी कंजूसियत छोड़ो । वो छूटता नहीं है । बोलने से भी नहीं छूटता है, इसलिए बोलते हैं न, मख्खीचूस होते हैं घर के। मतलब बहुत ही वो चीज़ होती है। फिर उनका पेट छूटने लगता है, आगे की तरफ। कंजूसों का बहुत ही बुरा हाल होता है। क्योंकि मतलब ये कि आप ये नहीं सोचते है कि कंजूसपना करने से कुण्डलिनी जागृत नहीं होती। सोचो, अगर आप कंजूस हैं तो कुण्डलिनी नहीं जगने वाली। और इतना सर दर्द होता है मेरे को कंजूस लोगों से, कि मेरी समझ में नहीं आता। कंजूसपना करना, कोई जरूरत है ही नहीं इसकी। आप एक हाथ से दो, दस हाथ से मिलेगा तुम को। दानी होना चाहिये आदमी को। जो आदमी खाता-पीता रहता है, वो कम से कम दानी होता है। पर जो खाता ही नहीं, घी की बॉटल रख दी, उसको सूँघता ही है सिर्फ। ऐसे भी होते हैं अपने देश में कंजूस लोग। वो क्या दूसरों को देगा। उसके घर में तो जी निकलता है, आदमी का, कि बाबा, कब भागते है, इसके घर में पानी पी लो तो इसको आफ़त आ जायेगी । एक ग्लास पानी देने को इसका जी ख़राब होता है। काय हो, आहे नां असं? तो कंजूस लोग, उनको नहीं होता है। उनको नहीं होता है और ये चीज़ बड़ी सीरियस बीमारी है, कंजूसपना। कंजूसपना, एक बीमारी है। सिकनेस l जैसे ज्यादा खाना है, वैसे कंजूसपना। ये भी बड़ी भारी बीमारी है, जिसको बीमारी लग जाये उससे दूर भागो। नहीं तो आप जाओगे तो आप को भी बना देंगे। वो बड़े जोर से लगती है। किसी कंजूस के घर में पैर पड़े, तो सारा घर कंजूस हो जायेगा। हाँ, हमने देखा है। अच्छे बड़े लोग खराब हो जाते हैं। क्योंकि वो अपनी अकल बहुत लगाते हैं हर चीज़ में। बोलते हैं कि ये इकोनॉमिक नहीं है। खत्म काम। बड़ा भारी इंग्लिश नाम दे दिया इकोनॉमिक। इकोनॉमिकल नहीं है। दूसरा आदमी बोलता है, ‘हाँ भाई, इकोनॉमिकल नहीं है। ठीक बात है। ये बड़े भारी कोई इकोनॉमिक के प्रोफेसर बोल रहे हैं। चलो भाई । इसमें से दो रोटी बचा ही लो।’ खाना, पीना, आराम से आदमी को रहना चाहिये। जब अपनी बात आयी तो कम खाना चाहिये। दूसरे की बात आये तो ‘खाओ’। ऐसी तबियत जिस आदमी की है, उसका नाभि चक्र नहीं पकड़ सकता। जो आयेगा, ‘ले बेटा, खा! तू खा, तू खा। ये ले, तूने ये नहीं खाया। वो खा।’ अन्नपूर्णा का ही स्थान होना चाहिये। जैसे लक्ष्मी जी का स्थान अपने यहाँ माना जाता है, जिसकी कि हमारी नाभि में स्थापना करनी चाहिये। लक्ष्मी जी के बारे में उस दिन बताया था न मैंने यहाँ! कोई लोग थे, अभी उसमें से कम लोग आये हैं। ये लक्ष्मी जी जैसी बनायी हुई हैं। एक हाथ में उनके दान है और एक हाथ में आश्रय है। जिसके पास लक्ष्मी है, उसमें दान होना चाहिये और आश्रय होना चाहिये। जो लोग कंजूस आदमी होते हैं, जिनसे दान नहीं होता, उन लोगों से कभी भी लक्ष्मी का स्थान नहीं बन सकता। पैसे वाले है, लेकिन वो लक्ष्मीपति नहीं। उनके पास आश्रय होना चाहिये। हाथ में दो कमल हैं उनके। कमल है, कमल का मतलब होता है, कोजीनेस। उसके अन्दर, जिसके घर जाओ, तो बैठने के लिये आराम से। उसका हृदय जो है, कमल के जैसा है। की वो भुँगे को भी, इतने काँटे होते है भुँगे में, उसको भी स्थान देता है अपने अन्दर में। कोई भी आयेगा, आ बेटा, बैठो। उसको फैला दिया, बिठा दिया आराम से। नहीं तो किसी किसी के घर में जाओ, तो दरवाजा भी नहीं खोलते । बाहर ही खड़े रहो । बड़े बड़े रईसों के यहाँ ज्यादा होता है। फाटक से ही वो चिल्लाना शुरू कर देंगे , कौन हो तुम? भागो इधर से। ऐसे आदमी लक्ष्मीपती नहीं । लक्ष्मीपती का घर सारा खुला होना चाहिये। चार आदमी आये, बैठ जाओ भाई! कहाँ से आये? कुछ खाया, पिया की ऐसे ही चले आये। खाने, पीने को जो भी होगा घर में उसके सामने रख दिया। वो असली लक्ष्मीपती है। नहीं तो वो लक्ष्मीपती नहीं, जैसे लंडन में लोग हैं। रोज घर की सफ़ाई करेंगे, पीतल का पॉलिश करेंगे, फलां करेंगे। घर में एक चूहा भी नहीं आता उनके। चूहा ही नहीं आने वाला, इतने कंजूस! उनके घर कौन जाए! इतने दरवाजे में से देखेंगे, कौन आ रहा है। फिर उसके बाद दरवाजा बंद। ठंड में लोग बाहर बैठे रहेंगे और दरवाजा बंद। और बोलते हैं हम अंग्रेज हैं। इतने दरिद्री लोग हैं। बड़े ही दरिद्री लोग हैं। हम लोग बहोत उससे दिल के बड़े लोग हैं। हिन्दुस्तान में ऐसा नहीं। किसी भी देहात में जाओ , कहीं भी जाओ, गरीब भी होगा, तो भी वो, ‘माँ, आओ बैठो। एक थोड़ा सा कुछ, इतना सा दूध ही पी लो। मेरी तबियत खुश हो जायेगी।’ कोई भी घर की औरत होगी, बाहर आयेगी , ‘बेटे, तू कहाँ से आया ? चल ले थोड़ा दूध पी ले।’ इनकी तो माँ बोलेगी, ‘तू न्यूज पेपर बेच के पैसा ला, तो मैं तुझे खाने को देती।’ तेरह साल का बच्चा चला न्यूजपेपर बेचने। औरते, लड़कियाँ, तेरह तेरह साल की, न्यूज पेपर बेचती हैं सबेरे उठ के। सोचो। जब वो पैसा लाती है तो माँ उन्हें खाने को देती है। ये तो वहाँ का तमाशा है। और अपने यहाँ बच्चा कितना भी घोड़ा हो जायें, तो भी माँ बोलती है, चल बेटा, तूने कुछ खाया ही नहीं है। अपने यहाँ उलटा हाल है। तो भी ये अच्छा है उससे। ज्यादा खाने वाले उनसे अच्छे हैं जो कंजूस हैं। तो लक्ष्मीपति उसी को कहना चाहिये जो साक्षात् माँ स्वरूप है। लक्ष्मी तो माँ है और एक कमल के ऊपर में खड़ी है देखो। उनका हल्कापन। कहीं भी खड़े रहे। जो आदमी लक्ष्मीपति है, वो बहुत ही हम्बल होना चाहिये । पता ही नहीं चलना चाहिये की इस आदमी के पास इतना है। अभी भी अपने बम्बई शहर में मैं आपको बता सकती हूँ, मैंने बहुत से ऐसे लोग भी देखे हैं, पुराने जमाने के, लाखोपति हैं, पर एकदम सादगी से रहते हैं। लाखोपति हैं । उनकी औरतें भी बहोत साधे कपड़े पहनती हैं। शर्म आती है पहले के लोगों को कहने में, कि हमारे पास पैसा है। हमारा मकान है। पहले कहते थे न अपने यहाँ कि हमारे गरीबखाने में आईये। इस तरह की लक्ष्मी होने से ही हमारा नाभि चक्र ठीक होता है। हृदय इस आदमी का हमेशा गुलाबी बना रहे, क्योंकि लक्ष्मी जी हमेशा गुलाबी साड़ी पहनती हैं। वही सुशोभित होता है। नहीं तो क्या फटे कपड़े पहने हुए हैं, बुरा हाल बना हुआ है। और कंजूसी कर रहे हैं। ये कोई लक्ष्मीपती नहीं हो सकता। ये तो हमेशा के दरिद्री हैं। बादशाहत क्या हुयी ? बादशाहत माने कहीं भी बैठो तो बादशाह है। उसको बादशाही कहना चाहिये। ऐसे लोगों का नाभि चक्र हमेशा खुला रहता है, जो बादशाह आदमी होते हैं। अब बादशाहत का ऐसा है, कि हमारे यहाँ तामझाम बहुत होती है, लेकिन तबियत की बादशाहत नहीं होती माने । जो तबियत से बादशाह होता है, वो आदमी गरीब हो, चाहे अमीर हो, बादशाह होता है। वो कहीं भी बैठे उसको कोई कमी नहीं । अब इसका दूसरा उदाहरण। जैसे कि कोई आये, मेरा बाथरूम अच्छा होना चाहिये, मेरे को सोने को अच्छा होना चाहिये। मेरे को खाने को अच्छा होना चाहिये। नहीं तो ढुमका होना चाहिए। आपने क्या किया ? आपके ऊपर ये जड़ता जो है, वो खोपड़ी पे बैठ गयी। ये जड़ है न सारा। आपको बैठने को अच्छी जगह होनी चाहिये। बैठने को कुर्सी चाहिये। नीचे नहीं बैठ सकते। कुर्सी आपके खोपड़ी पे बैठ गयी। कुर्सी ले के घूमो अब। जमीन पे तो बैठ नहीं सकते । अब कुर्सी लगा लो, अपने साथ चिपका लो। जड़ता आप के खोपड़ी पे बैठ गयी। लक्ष्मी जी कहाँ से आप से प्रसन्न होगी। आप तो जड़ हो गये। आपको ये सफ़ाई चाहिये, वो चाहिये, वो चाहिये। बादशाह क्या होता है? आप उसको जंगल में छोड़ दो तो बादशाह जैसे बैठा है। उसको हर जगह जो है, बादशाहत दिखायी देती है। उतनी दशा नहीं भी हो तो भी बहुत ज्यादा जो पर्टिक्युलर है, कि मै तो घी का ही खाना खाता हूँ। तो गया वो। और मैं तो फर्स्ट क्लास से ही चलता हूँ । तो गया वो। कुछ भी मैं करता हूँ, उसकी शान दिखाने वाला आदमी, लक्ष्मीपति नहीं हो सकता। लक्ष्मीपति का मतलब है शानदार आदमी। उसको बोलने में भी शर्म आती है, कि कैसे मैं बोलूं इस बात को ? ये अच्छा नहीं लगता । लज्जा सी लगती है। किसी के घर में अगर कुछ कमी है भी तो चुपचाप बैठ जाये। वही बादशाह है। नहीं तो मेरे को ऐसा हार क्यों लाये? मेरे को ये लाओ, वो लाओ, मेरे को ये चाहिये। हर समय जिसको भूख लगी हुयी है। चीज़ों की भी, सामान की भी ये मटेरियलिजम जिसे कहते हैं, दस साड़ी है तो भी ग्यारहवी साड़ी चाहिये । उसने अच्छे कपड़े पहने तो मला पाहिजे (मुझे चाहिये)। जरा सा फटा कपड़ा रहे तो शर्म लगे उसकी। अच्छा कपड़ा पहनने को चाहिये, बड़ा सजने को चाहिये। ये चाहिये। सजना चीज़ दूसरी है। राजना चीज़ दूसरी है। इस तरह भिखारी जैसे कपड़े चाहिये। नहीं तो फलाना चाहिये। माने ये की मटेरियलिजम जिसको कहते हैं, जड़वाद जिसको कहते हैं। इससे कभी भी लक्ष्मी जी आपसे प्रसन्न नहीं होती। मनुष्य जड़ता में जो फँसा हुआ है, उससे लक्ष्मी जी प्रसन्न नहीं है। ठीक है, साधारण आप अच्छे से कपड़े पहनिये। है जब राजघराने में रहना हो तो, सीताजी राजघराने में भी रही, जब जंगल में जाना था तो नंगे पैर घूमती रही। कहीं भी वो रोयी है क्या इस बात को ले के कि मैं नंगे पैर चल रही हूँ, मैं राजा की रानी थी। बहुत से लोग ऐसी बातें करते हैं, कि हम जब पाकिस्तान में थे तो हमारे पास कितना पैसा था। अभी इधर आये तो हम ऐसे हो गये। तुम वैसे ही थे। कुछ फर्क नहीं हुआ है तुम्हारे अन्दर में। जिस तरह की तुम बात कर रहे हो तो कोई इसमें संस्कृति भी नहीं । अपने पैसों के बारे में बात करना, उसके बारे में बताना, या सोचना या मेरे को आज ये लेना है, कल वो लेना है। उसके लिये पैसा इकठ्ठा करना। लोगों का ये है कि अभी कल कोई चीज़ खरीदना हो तो आज से पैसा इकठ्ठा करना शुरू कर देंगे। सारा समय पैसे में लपेटना अपने को, हर समय। ये सब जड़ता की निशानी है, और आपका नाभि चक्र पकड़ता है। बोलो किसका-किसका नाभि चक्र पकड़ता है। ठीक है, कोई मिल गया तो ठीक है, नहीं मिला तो ठीक है। उससे कोई आप गरीब नहीं होते। गरीब होते हैं अपनी तबियत से। अब वैसे भी सोचो, जब आप कोई चीज़ को ले लेते हो, तो दूसरी चीज़ को सोचते हो की नहीं सोचते हो। इकोनॉमिक्स में लिखा है, कि ‘इन जनरल इट इज नॉट सेशीएबल’ ये जो है हाव, या जिसको हवस है, ये कभी खत्म होती है। आज ये लिया तो कल वो चाहिये, कल वो लिया तो ये चाहिये। वो लिया तो वो चाहिये। इसका इलाज क्या ? संतोष ! बीच में संतोष में बैठो। संतोष इलाज है नाभि का। नाभि का इलाज है संतोष और समाधान। जैसे ही संतोष और समाधान आ जाता है तो ये जो भवसागर की लहरें हैं ये सीधे चलने लग जाती हैं। और ये भवसागर सारा धर्म है।
सो, दूसरा जो चक्र है, उसके अन्दर में ब्रह्मदेव और सरस्वती हैं। तो तीसरे चक्र में विष्णु जी और लक्ष्मी जी हैं। लक्ष्मी नारायण हैं। नारायण तत्त्व जो है वही इवोल्यूशन हमको देता है। उसी से हमारे अन्दर इवोल्यूशन होता है। इसलिये जहाँ अॅफलूअन्स सुबत्ता बहोत आ जाती है, पैसा बहुत आ जाता है, वहाँ लोग सोचने भी लगते हैं, कि इसके आगे कहाँ जाने का है? इसलिये वहाँ इवोल्यूशन होता है ज्यादा । जब चीज़ भर जाती है, जब कोई मछली ने ये सोचा की मेरा पेट पूरी तरह से भर गया, तो फिर वो जमीन पे आने लग गयी, तो फिर वो कछुआ हो गयी। फिर कछुये को लगा कि भाई, मेरा हो गया अभी काम। अभी मुझे आगे को देखने का है। जब उससे तृप्ती हो गयी, तो वो आगे को गया तो उसका इवोल्यूशन हुआ और उसके चार पैर खड़े हो गये। वो जानवर हो गया | रेप्टाइल से वो मॅमल हो गया। उसे जानवर से आगे उसको जब जाने का था तो उसने कहा, कि चलो, भाई अब घास वास खा ली , सब कुछ हो गया। अभी आगे को देखने का, तो फिर वो चिंपांझी हो गया। चिंपांझी से आगे उसने सोचा की इससे तो होता नहीं। और भी ठीक से खड़े हो के देखो, है क्या दुनिया चारों तरफ! ये जब उसने चीज़ सोची, तब वो जा कर के मानव हो गया। तो जो भूख है, जो भूख है वही नाभि चक्र की खींच है। अमीबा भूख से ही मछली बनता है। मछली भूख से ही कछुआ बनती है और मनुष्य भी एक ऐसी भूख है, जिससे अतिमानव बनता है। जिसे हम अध्यात्म की भूख या आत्मा की भूख कहते हैं। ये भूख ही है, जिसे सीकिंग अंग्रेजी में शब्द है। खोज, खोज का रूप बदलते जाता है। जैसे बीज में से पहले पत्ती निकले, पत्ती में से फूल निकले, फूल से सुगंध निकले। उसी तरह एक से दूसरी चीज़ निकलती जाती है। अब जब मनुष्य स्थिति में जा कर के अगर आपको आत्मा की खोज नहीं है, तो आप किसी काम के नहीं। आत्मा की खोज करना मनुष्य का धर्म है। और वो भी यहीं नाभि चक्र में ही होता है। अब जब आत्मा की खोज में मनुष्य आ गया,और उसको अगर खोज जड़ता की है और मॅटर की है तो वो आत्मा को कैसे खोजेगा? समझ में आ गयी बात ! तो जो दशावतार अपने यहाँ बताये हुये है, उसमें से आठ अवतार,सात अवतार अपने पेट ही में होते हैं। सात अवतार कम से कम। आठवां अवतार राम का बताया गया। अवतार भी क्या है, लीडर्स हैं हमारे। पेट में जो ये दस गुरु हैं, मुख्य गुरु, जैसे जोरास्टर आदि मैंने आपसे बताये थे, नानक, जनक, जो दत्तात्रेय का अवतरण हैं, जो कि प्रायमॉर्डियल मास्टर का, वो पेट में होते हैं। वो हमारे धर्म को जमाते हैं। अब इवोल्यूशन मनुष्य का हो गया तो उसके सामने पहले एक सब से बढ़िया राजा लाने की जरूरत थी, दिखाने के लिये, कि सब से आयडियल राजा कौन है? तो राम का अवतरण आया। ये लीडर थे। अवतरण क्या होते हैं? लीडर्स होते हैं। क्योंकि बगैर लीडर के इवोल्यूशन नहीं हो सकता है। और ये लीडर परमात्मा के अंश होते हैं, इसलिये उनको अवतार कहा जाता है। तो राम का अवतरण हो गया। राम संसार में आये, बताने के लिये, कि एक आयडियल राजा कैसे होना चाहिये। राजकारण कैसे होना चाहिये। आठ हजार वर्ष पहले ये हमारे चेतना में बात आयी। आठ हजार वर्ष पहले । जब इंग्लंड में शायद वहां पे सूअर रहते होंगे। अमेरिका में तो पता नहीं, मगरमच्छ ही रहते होंगे। याने यहाँ तक, हमारे यहाँ जो गजेंद्रमोक्ष लिखा गया, आप लोगों ने पढ़ा होगा, गजेंद्र का मोक्ष हुआ था, तो जो पहले जानवर थे अपने यहाँ, बहुत बड़े बड़े जानवर थे, जो की मैनमोथ वगैरा,उन जानवरों में से सिर्फ एक हाथी बचाया गया था। वो हाथी का जो बचाना था इवोल्यूशन में, क्योंकि विष्णु शक्ति से होता है ये कार्य, इसलिये वो गजेंद्रमोक्ष की अपने यहाँ कहानी है। उनमें से हाथी बच गया। हर एक जो जो स्तर पे इवोल्यूशन होता है, उसमें से कुछ लोग तो बचते ही जाते हैं । जैसे मछलियाँ भी आज कल है ही, हाथी भी आजकल है ही। इसी प्रकार धीरे धीरे इवोल्यूशन होते रहा। सात इवोल्यूशन तक हम लोग कह सकते हैं, कि पहला इवोल्यूशन परमात्मा का जब मनुष्य के रूप में होने का हुआ तो वामन स्वरूप हुआ | छोटा आदमी बन के, वामन बन के आये थे। उन्होंने पहले ये दिखाया कि मनुष्य जो है वो तीनों लोक को जीत सकता है। मतलब ये था, कि मनुष्य जो है वो पाँचों तत्त्वों को जीत सकता है। ये वामन स्वरूप हुआ l उसके बाद में परशुराम का जो अवतरण हुआ है, उसमें उन्होंने ये दिखाया, कि मनुष्य अपने क्रोध से या अपने बल से जानवर आदि जो कुछ भी नेचर के जो, नॅचरल जो हमारे ऊपर में प्रॉब्लेम्स हैं उसको जीत सकता है। इसलिये परशुराम का अवतरण हुआ।
उसके बाद राम का अवतरण तब हुआ कि जब ये दिखाना था कि मनुष्य अपने अन्दर ऐसी स्थिति कर सकता है, कि राजकारण में वो अपने को दूसरों का लीडर बना सकता है और सब को परमात्मा के रास्ते में ले जा सकता है। जिसको कि फिलॉसॉफर किंग कह करके लोगों ने बताया हुआ है, वो अपने यहाँ श्रीराम का उदाहरण है। अभी बोलो अपने यहाँ के कितने राजकर्ताओं से पूछो, कि राम का उदाहरण लो। जिन्होंने सीता जी को छोड़ दिया। अपने घरवालों का त्याग करना ही चाहिए, अगर आपको राजकारण में आना है तो। अगर वो अपने से चिपक गये तो हुआ कल्याण देश का भी और आपका भी। जिसने इस मख्खी को पहचान लिया है वो बड़ा भारी राजकारणी है। वही राजकारण कर सकता है। इसलिये श्रीराम का अवतरण संसार में हुआ। लेकिन वो अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे। और इतना ही नहीं, बड़े भारी पितास्वरूप वो हैं। अब अगर समझ लीजिये, आपने हाथ में मै ऐसे कहूँ, कि हाथ रखो बेटे, अगर आपकी ये पकड़ आ जाये। राइट हार्ट, जिस पे राम का अवतरण है, तो आपसे या तो आप अपने पिता से नाराज हैं, और या तो आपके पिता में बीमारी है कोई या तो उनको हार्ट का ट्रबल हैIआप के पिता को, या अगर आप पिता हैं तो आप अपने बच्चे से ठीक नहीं। देखिये कितनी कमाल है! आप ऐसे ही बैठे हुए हैं। किसी के बारे में सोचे, और ये चीज़ की अगर पकड़ आ रही है, तो इसका मतलब ये है, कि आपका पिता का जो तत्त्व है वो गड़बड़ है। अब वो बराबर कहाँ पर है ये इसको देखना चाहिये। उससे बराबर अंदाज पड़ जाता है । यहाँ है तो आपके पिता स्वयं हो सकते हैं। या आपके पिता के पिता भी हो सकते हैं। और अगर यहाँ है तो आपका पिता का तत्त्व जरा खराब है । माने ये कि आप परेशान है अपने पिता के लिये या तो आप अपने बच्चों से ठीक से व्यवहार नहीं कर रहे हैं। इस प्रकार आपको हर एक चक्र पे पता चलता है। राम का चक्र जो है, हृदय में राइट साइड् पे है।
अब राम तत्त्व के साथ हनुमान का भी तत्त्व है। हनुमान का तत्त्व जो है उसी से हम विचार करते हैं, उसी से हम फ्यूचर का सोचते हैं। वो बड़ा जबरदस्त तत्त्व है। जब सहजयोग में आप पार हो जाते हैं, आपको कोई भी काम कराना हो खड़ा हनुमान, देख तू कर दे। अब तो आपका कनेक्शन हो गया है न! हो जाता है, कोई सा भी काम, कठिन से कठिन। लेकिन पहले आपको अधिकारी होना चाहिये। आप अधिकारी नहीं है तो वो कुछ थोड़ी सुनेंगे, लेकिन अगर आप अधिकारी हो जायें, कह दिया चलो हनुमानजी बस फिर काम खत्म। बस कहने की बात, वो दौड़ गये। वो तो बड़े तुरंत दौड़ते हैं। पर आपका अगर रामचंद्र जी का ही चक्र खराब है, कुछ नहीं बनने वाला काम। हम तो बैठे बैठे लंडन में ही काम करते रहते थे हनुमानजी सुबह शाम तक दौड़ते हैं, इधर में भैरवनाथ जी दौड़ते रहते हैं। आपके अन्दर भी सब हैं। आपकी वो भी मदद कर सकते हैं। हनुमान जी को अंग्रेजी में, मतलब क्रिश्चियनिटी में उनको गॅब्रिएल कहते हैं, सेंट गॅब्रिएल और भैरवनाथ को कहते है सेंट माइकल। एक ही है। बिल्कुल एक है। दो अन्तर नहीं। नाम अलग हैं।
उसके बाद बीच का हृदय चक्र, यहाँ पर जो हृदय चक्र है, बीचोबीच। ये दूसरी तरह का है, कि हृदय में शिवजी का स्थान है और हृदय से शिवजी को छोड़ के शिबानी माँ का स्वरूप धारण कर के जगदंबा बन के भवसागर के ऊपर में स्थित हो जाती है। कि उसके जब भक्तजन डूब रहे होते हैं, हर एक धर्म में भक्तों को सताया जाता है, तो वो माँ बन कर के,जगदंबा बन के और उनकी रक्षा करती है। ये रक्षा का तत्त्व है। अगर किसी आदमी को सेन्स ऑफ इनसिक्यूरिटी है। इस तत्व को हम मॉडर्न तक ला के बता सकते हैं । अगर वो सिक्यूरिटी की सेन्स नहीं है उसको तो उसका ये चक्र पकड़ता है। इससे श्वास जो है जोर से चलता है। जब ब्रेस्ट कैन्सर होता है किसी औरत को तो उसका कारण यही चक्र पकड़ता है। अगर किसी औरत का आदमी अगर फ्लर्ट है, बदमाश है, और वो किसी से कह नहीं सकती तो उसका ये चक्र पकड़ता है। राम का चक्र भी, अगर वो अपने पति से कोई पति अगर अपनी पत्नी से ठीक से व्यवहार नहीं करता है, उसको गृहलक्ष्मी का स्थान नहीं देता है, और उसको ठगाता है, तो भी उसका राइट साइड पकड़ सकता है। उसी प्रकार अगर कोई स्त्री को ये दुविधा हो जाये, तो उसका ये बीच का पकड़ सकता है। आपको अगर सेन्स ऑफ इनसिक्यूरिटी हो जाये या आपमें कोई भूतबाधा हो जाये, कोई तकलीफ़ हो जाये तो ये बीच का चक्र पकड़ता है आपका l उससे श्वास बहुत जोर से चलता है। अॅलर्जी इसी से होती है। लीवर और इसका कॉम्बिनेशन हो जाये, लीवर का मतलब स्वाधिष्ठान चक्र और इसका अगर कॉम्बिनेशन हो जाये तो अॅलर्जी शुरू हो जाती है । लोग बोलते हैं कि, अॅलर्जी ठीक नहीं होती, सहजयोग में एकदम ठीक हो जाती है। ब्रेस्ट कैन्सर एकदम ठीक हो सकता है सहज में, एकदम १००%।
उसके बाद में ऊपर में चक्र जो है, मैंने कहा, जगदंबा का है, श्री सीता-राम का चक्र है राइट साइड में और लेफ्ट साइड में हार्ट में शिवजी का तत्त्व है। शिव तत्त्व है। अब जानना शिव तत्त्व को है और कुण्डलिनी जो है वो आपके अन्दर चित्त को खींचती है। और आपके चित्त को जब यहाँ पहुँचा देती है, तो ये सदाशिवजी यहाँ बैठे हुए हैं । यहाँ सदाशिव का स्थान है, जो कि हमारा एक्झिस्टन्स है, और उसका हृदय में प्रतिबिंब है आत्मा स्वरूप। जैसी ही वो यहाँ जागृत हो जाती है हृदय में भी प्रकाश पड़ जाता है और आत्मा का स्वरूप जो है वो अपने हाथ पे बहने लगता है। ये आत्मा का स्पंदन है। जो आपके हृदय का स्पंदन है वो आपके हाथ से बहना शुरू हो जाता है। ये रियलाइजेशन है। हवाई बातचीत नहीं है बिल्कुल आप देखेंगे । खुद आप मेहनत कर के देखेंगे, बिल्कुल साइंटिफिक चीज़ है।
लेकिन तुम लोग सीख लो, नहीं तो ये अंग्रेज तुम्हें आ के सिखायेंगे, मैं बता रही हूँ। ये तुम से बड़े होशियार लोग हैं। ये तो जम जाते हैं सहजयोग पे। रात-दिन की मेहनत कर के इन लोगों ने ऐसा पकड़ लिया। जिसे तुम लोग बात करोगे तो हैरान हो जाओगे, कि अरे बाप रे रे बापरे , ये लोग कहाँ से कहाँ पहुँच गये। सारे तुम्हारे अवतार ववतार सब पढ़ वढ़ के इन्होंने अपने ठिकाने लगा लिये हैं। कोई भी इनको परम्यूटेशन और कॉम्बिनेशन बताओ बोलते हैं, हाँ इसमें ये मंत्र लगाओ, ये करो, वो करो, ये ठीक करो। हो सकता है कि, पुराने हिन्दुस्तानी उधर पैदा हुये हैं और उधर जो इधर राज करते थे आ कर के आज राज कर रहे हैं। क्योंकि इनकी जो एक तरह की खोज है, उसमें इतनी गहराई और बुलंदी है, कि मैं आश्चर्य में रह जाती हूँ। अभी अपने हिन्दुस्तान में इतने लोग बिजी होते हैं, कि उनको टाइम नहीं। इनको पूछो, कि रात दिन लगे रहते हैं। सबेरे चार बजे उठेंगे। नहा,धो के बैठेंगे ध्यान को। और एक एक चीज़ पे उतरेंगे। हालांकि उनके पास वो चीज़ नहीं है, जिसे पवित्रता कहते हैं, जो तुम्हारे पास है। वो खो चुके हैं। उसको भी जमा लेते हैं। पाने का है ना! सब चीज़ जमा लेते हैं। कल ये लोग तुम से ऊँचे हो जायेंगे, और तुम लोग रह जाओगे यहाँ पर। मैं बता रही हूँ। यहाँ के जितने जवान लड़के हैं उनसे मैं बता रही हैूँ, कि इस पे बैठो और इसका साइन्स पूरी तरह से स्टडी कर के और अपने अन्दर ले लो। नहीं तो तुम उल्लुओं जैसे घूमोगे और फिर ये लोग दूसरा राज तुम्हारे करेंगे। तुम्हारी ही संस्कृति तुम्हारी खोपड़ी पर डालेंगे ये । अभी हमारे साथ आये हैं दो-तीन। तो मैने उनसे कहा, कि तुमको क्या हिन्दुस्तानी लड़की से शादी करना है?’ कहने लगे, ‘हाँ, हिन्दुस्तानी हो तो। पर वो अंग्रेज हो गयी तो हमको नहीं चाहिये। बाल कटी लड़की नहीं चाहिये हमको। देखो, उनको अच्छी नहीं लगती, कोई बाल कटी हुयी लड़की। आके कहने लगे, ये क्या अंग्रेजियत कर के घूम रहे हैं। हम को नहीं अच्छी लगती ये लड़की। जो हिन्दुस्तानी है उसको कहेंगे बड़ी ब्यूटिफूल है । अपनी दृष्टि से तो वो बिल्कुल ही पिछवाड़ी औरत है। उनके लिये वही ब्यूटिफूल है।
तो अब आपको मैंने हृदय चक्र के बारे में बताया। हृदय के बारे में बताया। और यहाँ दुर्गा जी का एक हज़ार बार का कहते हैं कि अवतरण हुआ है, पर उसके अनेक बार हुआ है, पर मुख्य एक हज़ार है। तो इसके लिये आप दुर्गा पढ़ें, दुर्गा सहस्रनाम पढ़े तो आप उनके नाम सब जान जानेंगे। ये चक्र जिसका पकड़ा हो, दुर्गा जी का नाम ले उसका छूट जायेगा। पर पार होना चाहिये। बगैर पार हुए नहीं। पेट खराब हुआ है आपका, जोरास्टर का नाम लें। नानक का नाम लें। अपने सब से लेटेस्ट अपने शिर्डी के साईंबाबा हैं, उनका नाम लें। वो दूसरे वाले का नहीं बोल रही हूँ। उसका तो नाम भी नहीं लेना चाहिये। असली शिर्डी साईंबाबा ये लास्ट अवतार है उनके दत्तात्रेय के। उनका नाम लेने से भी पेट ठीक हो जायेगा। उसी प्रकार जो कुछ भी यहाँ विकार हो वो ठीक हो जायेगा । अब हृदय में शिवजी का स्थान है। ये बहुत ही महत्त्वपूर्ण चीज़ है। इसे समझ लेना चाहिये। शिवजी अगर गुस्सा हो गये तो भगवान न बचायें। क्योंकि वही आखरी चीज़ है, अगर हृदय तुम्हारा बंद हो गया तो मैं क्या बात करूंगी। और भोला जीव है वो। भोले शंकर। वो बात बात में गुस्सा हो जाते हैं। और बात बात में खुश भी हो जाते हैं। खुश हो गये तो तुमको अपनी पत्नी भी दे देते हैं न, जैसे दिया था रावण को | याद है न! बहोत भोले जीव है वो। कितनों को तो वरदान दे चुके हैं, कितनों का उन्होंने उद्धार किया हुआ है। शिव तत्त्व जो है, एक्झिस्टन्स का अपना तत्त्व है। जब आप इस से दूर हट जाते हैं, जब आप बहुत ज्यादा विचार करते हैं, प्लॅनिंग करते हैं, परमात्मा को भूल जाते हैं, तब शिव तत्त्व पकड़ता है। तभी हार्ट अटैक्स आते हैं। जो इगो ओरिएंटेड आदमी होता है, जो इगो से काम करता है, माने जो बहुत विचार करता है न, राइट साइड की नाड़ी से, उसका इगो डेवलप हो जाता है। ऐसा l जिसका इगो ज्यादा डेवलप हो गया उसी को हार्ट अटॅक आयेगा। इसलिये हार्ट अटॅक वाले आदमी पे रहम करने की जरूरत नहीं । उसको कहना चाहिये कि तू दूसरों पे रहम कर।
किसी को हार्ट अटॅक आता है तो उसको बोलना चाहिये अब तू दूसरों पे रहम कर। तेरा जो शिव तत्त्व है वो गुस्सा हो गया। मतलब जबरदस्त जीव होता है वो। वो दूसरे को दबोचता है, अॅग्रेसर होता है वो। उसे ये कहना चाहिये, कि जरा सा थोडा सा बैठ के अपने बीवी बच्चों को प्यार कर, थोड़ी देर उनसे बात कर। रात-दिन दफ्तर दफ्तर दफ्तर जो आदमी करता है, उसका हार्ट अटॅक आता है। मतलब इम्बॅलन्स भी है, दो तरह का। एक होता है, कि अपने सोचने विचारने से जो इम्बॅलन्स आता है। एक गुजराती लेडी थी। वो वाइस चांसलर सहाब थे गुजरात के, उनकी वाइफ, उसको हृदय चक्र पकड़ा। हृदय पकड़ा, मैंने बोली भाई ‘तुम क्या प्लॅनिंग करती हो? तुम तो हाऊस वाइफ हो।’ कहने लगी, ‘सबेरे से पापड़ क्या बनाने के, आचार क्या बनाने के आज कौन खाने को आयेगा ? किसको नौकर पे बिगड़े, इस पे बिगड़े। पती पे बिगड़े। इधर कायको रखा ? उधर बैठ। उधर चल, हो गया l हार्ट अटॅक आनेका। ऐसी औरत को हार्ट अटॅक आयेगा । हार्ट अटॅक नहीं आयेगा तो स्ट्रोक।
पॅरॅलिसिस जिस आदमी को आता है वो भी इसी वजह से आता है। उस आदमी के साथ दया करने की जरूरत नहीं। उसको कहना तू दया कर। परमात्मा से दया की भीख माँग। कान पकड़, परमात्मा की क्षमा माँग। उसपे अपने यहाँ बहुत अच्छा श्लोक है, आप जानते हैं गणेश जी का। जिसमें उनसे क्षमायाचना होती है, क्योंकि वो करुणानिधि हैं। क्योंकि वो दया के सागर हैं। उनसे कहना चाहिये, कुछ भी मैंने गलती से किया हो तो भैया माफ़ कर। उनसे हाथ जोड़ के माफ़ी माँगते हैं। तो माफ़ कर देते हैं। तो जिस आदमी को हार्ट अटॅक आता है, स्ट्रोक आता है, तो जान लेना चाहिये, कि बड़ा अॅग्रेसिव आदमी है। तो नेचर ने कहा, चल, तेरेको खत्म ही कर देता हूँ। अब जरा सा लंगापंगा हो जायेगा। जब हाथ ऐसे हो जायेंगे। मुँह टेढ़ा हो जायेगा। अब क्या जबरदस्ती करेगा । बोल ही नहीं सकता ठीक से। दो तरह का अॅग्रेशन होता है, एक होते हैं, जो बोलते ज्यादा हैं। एक होते हैं नहीं बोल के हर समय गुस्सा नाक पे चढ़ा होता है। दफ़्तर में आयें तो शुरू। धम धम धम दफ्तर से आए तो शुरू। सब लोग बोलते हैं, कि कोई बाघ है कि शेर है! बोलना नही ,बोलेंगे नहीं, बस गुस्से से देखेंगे ऐसा ऐसा करके। सब करुणानिधि, दया निधि ,परमेश्वर, शिव तत्त्व जो है वो गुस्सा हो जाता हैं। ऐसे लोगों को हार्ट अटॅक आते हैं।
दूसरे लोग जो होते हैं, उनका इम्बॅलन्स ऐसा आता है, कि जो इमोशनल होते हैं बहुत अपने हृदय से, मतलब ये कि कविता लिखो, हर समय रो और बड़े रोमियो-ज्यूलिएट बन के घूमो और दुनियाभर की चीज़ें जो हम हृदय से करते रहते हैं। ऐसे लोगों की खोपड़ी खराब हो जाती है । या सेक्स में ज्यादा पड़ना। इसलिये रजनीश के शिष्य ज्यादा तर पागल हो जाते हैं। ये लोग ऐसे होते हैं, जो दूसरों से अॅग्रेशन लेते हैं। ये क्लबी हैं। अगर कोई अॅग्रेसिव गुरु हो, जबरदस्त हो, तो उसके शिष्य वही होंगे कि हाँ, भाई बड़े अच्छे है। तुम हमको जूते मारो, बहुत अच्छा। और हम को नचाओ, बहुत अच्छा। हमारे कपड़े भी ले लो, बहुत अच्छा। ये ऐसा क्लब होते हैं। एक अॅग्रेसिव आता है, तो उसके आगे ऐसे ही लोग आते हैं, कि जो, भाई, ठीक है। तुम जो भी अॅग्रेशन हम पे करते हो, लेते हो, हम गुरु की सेवा कर रहे हैं, उसके हम जूते खा रहे हैं। हम उसके घर झाड़ रहे हैं, अपने बालों से। ऐसे जो लोग होते हैं उनकी खोपड़ी खराब हो जाती है। वो बॅलन्स खोपड़ी से आता है। देखिये बुद्धि से हम सोचते हैं। बुद्धि का काम तो सोचने का होता है, पर हृदय से काम करने से ब्रेन काम कर जाता है। जो लोग पागल होते हैं, उनपे दया करो। जिनका दिमाग खराब हो जाता है, बूढ़े लोग हैं ज्यादा तर, जो बुढ्ढे हो जाते हैं न वो पगला जाते हैं। वो पगला जाते हैंl क्योंकि वो सोचते हैं, कि हमारा अनादर हो रहा है। हमें कोई मानता नही है। किसी आदमी का बहुत अनादर हुआ हो, उसे अगर बहुत सहना करना पड़े तो वो पगला जाता है। क्योंकि वो रिसीड कर जाता है अपने अन्दर में। ये एस्केप है, कहना चाहिये। ये भागना है। एक तो है, के दूसरे पे हावी होना और दूसरा है कि उससे भागना। इस तरह की दो चीजें चलती हैं। इससे अच्छा आप बीच में रहो। ना तो किसी पे आप अॅग्रेस करो ,ना तो किसी पे आप आक्रमण करो और ना ही किसी का आप आक्रमण लो। आप बीच में खड़े हैं, बोलो क्या करने का ? बीच का मार्ग प्रेम का होता है। अगर माँ बच्चे को दो थप्पड भी मारती है, तो प्रेम से मारती है। प्रेम का मार्ग जो है, वो बीच में होता है। इसलिये बीच का तत्त्व है प्रेम का और जगदंबा से मिला है तो माँ के प्रेम से हम प्रभु के प्रेम को समझ सकते हैं। हमारी एक माँ ही है, पार्थिव शरीर है उसका, सब पार्थिव है तो भी उसका प्रेम कैसा है! जब बुड्ढे भी हो जाते हैं तो भी माँ की याद नहीं छूटती है। कि माँ होती, तो देखो, आज ऐसा नहीं करती मेरी माँ। अब कभी कभी एकाध माँ खराब भी निकल जाती है, पर अधिकतर बच्चे ही खराब हो जाते हैं । माँ का रिश्ता खराब नहीं होता। जो बच्चे अपनी माँ को नहीं मानते हैं, उनको सताते हैं, उनका भी ये चक्र पकड़ता है। बुढ़ापे में माँ बाप को सताते हैं, उनका भी ये चक्र पकड़ता है। अपने माँ के प्रति श्रद्धा रखना, बाप के प्रति, पहले माँ के प्रति, क्योंकि बाप तो अपने से श्रद्धा करा ही लेता है। नहीं तो दो झापड़ मारेगा वो। वो तो नहीं छोड़ने वाला। बाप को कोई जवाब नहीं देता। माँ को तपड़ तपड़ जवाब देते हैं, क्योंकि वो बेचारी माँ है। लेकिन जो अपनी माँ का मान करता है, वो असली सहजयोगी है। ऐसा मेरे साथ भी करते हैं न! मेरे को बहुत सताते हैं। क्योंकि मैं किसी को मारती-पीटती नहीं हूँ। इसलिए मेरे को सताते रहते हैं, लेकिन मैं मज़ा देखती हूँ, कितनी देर सताओगे तुम। तुमको ठीक करना ही पड़ेगा । फिर, पकड़ गया माँ मेरा सर। आये, मैंने कहा, अच्छा, अभी पकड़ गया क्या। अभी ठंडे बैठो जरा। बहुत ऑर्ग्युमेंट कर रहे थे मेरे साथ।
उसके बाद में हृदय का चक्र में मैंने बताया। हृदय में मैंने कहा कि शिवजी का तत्त्व है। और उससे ऊपर का जो चक्र है ये बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इसको विशुद्धि चक्र कहते हैं, जो कंठ में यहाँ पीछे में होता है। जब की मनुष्य ने अपनी गर्दन उठा ली, तब ये चक्र स्थित हुआ है। ये श्रीकृष्ण का चक्र है। राधा-कृष्ण का। ये विराट का चक्र है। ये विराट है। पूरा के पूरा विराट बना है। इस सारे विराट में आप छोटे छोटे एक एक एक एक सेल्स हैं। लेकिन अभी तक आपको अंदाज नहीं है, कि आप एक छोटे सेल हैं, और वो बड़ा सेल है। जिस वक्त आप पार हो जाते हैं, तब आपका कनेक्शन उस से जुड़ जाता है। आप भी विराट हो जाते हैं। ये विराट का चक्र बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इसकी दो साइड है, लेफ्ट और राइट साइड । राइट साइड में राजसिक, माने जिसको हम कह सकते हैं, कि राइट साइड जिसकी पकड़ती है, उसे रुक्मिणी जी और श्रीकृष्ण का ध्यान करना चाहिये । और जिसकी लेफ्ट साइड पकड़ती है , उसको विष्णुमाया का करना चाहिये। माने ये कि जो राजकारण में लोग झूठ बोलते हैं, उनका राइट साइड बहुत ज्यादा पकड़ेगा। और लेफ्ट जिसका पकड़ता है, उसको ये की उसको माँ-बहन की अकल नहीं होती। लेफ्ट विशुद्धि वाले को। माँ कौन? बहन कौन? उसको अकल नहीं होती है। उसका ये पकड़ता है। हर एक औरत को जरूरी देखना चाहिए, गया उसकाl लेफ्ट विशुद्धि जरूर पकड़ेगा। या जो आदमी अपने को बहोत गिल्टी महसूस करता है, ‘अरे मैंने तो ये भी दोष कर दिया। हर समय रोते रहना, उसका भी पकड़ता है। ‘मैं बड़ा दोषी हूँ।’ उसका भी पकड़ता है। ऐसी अनेक चीज़ें हैं। और फिजीकल इसमें, जिसको जुकाम हो जाये, सर्दी हो जाये, उसका राइट साइड पकड़ता है। इसी से ब्राँकायटिस वगैरा जो चीजे है उसकी बीमारियाँ चलती हैं। या मंत्रों का उच्चार करने से ये चक्र हमेशा पकड़ता है। जैसे हरे रामा हरे कृष्णा वाले उनको कैन्सर ऑफ द थ्रोट लिखा हुआ है। तभी आयेंगे मेरे पास, आते हैं। उसको कैन्सर ऑफ द थ्रोट होता है । गलत अनधिकार मंत्र बोलने से, कैन्सर ऑफ द थ्रोट होता है।
उससे ऊपर का जो चक्र है, कृष्ण के चक्र के बारे में जितना कहो सो कम है। इसकी सोलह सब प्लेक्सेस हैं। और जो सोलह हजार उनकी बीवियाँ थीं वो उनकी सोलह हजार नाड़ियाँ थीं, जिन्होंने जन्म लिया था संसार में । बहुत बड़ी चीज़ है। कृष्ण को बताने के लिये एक बार पूरा लेक्चर दूंगी। फिर बताऊंगी कृष्ण के बारे में। विष्णु का कृष्ण रूप जब यहाँ हो जाता है, तब आपका विराट का सम्बन्ध हो जाता है l इसलिये हम जब तक ऐसे हाथ नहीं करते, आप पार नहीं हो सकते हैं। अब संबंध विराट से हो रहा है आप से नहीं। क्योंकि यहाँ पर वही चक्र संबंधित होता है। और जब आप दूसरों पे हाथ चलाते हैं, तब विराट खुश होते हैं। दूसरों का भी संबंध विराट से होता है। हाथों से ही होता है।
उसके बाद ये चक्र है, बहुत महत्त्वपूर्ण है। जो कि इगो और सुपर इगो दोनों को ही कंट्रोल करता है। हालांकि इगो और सुपर इगो दोनों यहीं से, विशुद्धि से ही शुरू होते हैं, पर कंट्रोल किया जाता है आज्ञा चक्र से। बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। ये हमारे अन्दर सूर्य तत्व है। या कहना चाहिये कि ये हमारे अन्दर में तेज तत्त्व है। तेजस्विता इससे आती है। इसलिये माथा हमेशा खुला रखना चाहिये। आदमी का माथा हमेशा खुला रहना चाहिये। आजकल फँशन चली है कि, ये बंद करो। ये सब मूर्खपणा की निशानी तो नहीं है, लेकिन ये भूतपना की निशानी है। भूत लोगों के ऐसे ही बाल होते हैं आपने देखा होगा कभी भूत का चित्र कोई बनावे, तो ऐसे ही बाल होते है। भूत बन के घूमने से भूत ही आयेंगे। अरे भाई, भूत को भी,भूत भूत में ही तो बैठेगा। आज्ञा चक्र की जो पकड़ होती है, वो इस तरह के लोगों से आती है जो बालों का झुपका बना कर घूमते हैं। बाल हमेशा साफ़ रखने चाहिये। माथा हमेशा खुला रखना चाहिये। और ये माथा बड़ी भारी चीज़ है। इतनी बड़ी चीज़ है, इसको सब के सामने झुकाना नहीं चाहिये। बहुत से लोग जाते हैं और माथा झुकाते हैं, किसी भी गुरु के सामने। इस निशानी को किसी के सामने नहीं झुकाना चाहिये । जब तक तुम कुछ उससे पा न लो कभी नहीं झुकाना चाहिये। इसलिये मैं कहती हूँ कि पार हो जाओ फिर मेरे पैर पे आओ | इस से झगड़ा नहीं। लेकिन तुम लोगों को शौक है पैर पे आने का तो मैं क्या करूँ? माथा उसी के वहाँ झुकना चाहिये जहाँ परमात्मा का वास है। नही तो कहीं भी माथा नहीं झुकाना चाहिये। सब ने यही बताया है। हम को तो देखो, कोई भी आया उसीके चरण में। सिवाय अपने माँ-बाप और बड़े बुजुर्गों के सब के सामने माथा झुकाने की जरूरत नहीं।
लेकिन ये गुरुघंटालों की वजह से तो समझ में नहीं आता कहाँ कहाँ लोग माथा झुकाते चलते हैं। और अगर ये पकड़ गया ना चक्र तो बहुत मुश्किल से ठीक होता है आज्ञा चक्र। क्योंकि इस पे विराजते हैं महाविष्णु, जो कि कृष्ण के पुत्र हैं और जिन्होंने संसार में अवतार लिया है, उनका नाम है जीजस क्राइस्ट | जो क्रॉस है, वो यही क्रॉस है। इसको उन्होंने लाँघ दिया। वो संसार में आ कर के उन्होंने कृष्ण की बात सिद्ध कर दी, नैनं छिन्दंति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: । कृष्ण ने कहा, कि ये जो आत्मस्वरूप है ये किसी भी चीज़ से नष्ट नहीं होता है। उसकी सिद्धता ईसामसीह ने अपने जिंदगी में पुनरुत्थान कर के, रिसरेक्शन कर के सिद्ध कर दी । ईसामसीह ये ईसाईओं का नहीं है, अपना है, सबका ही है। किसी ने ठेका नहीं ले रखा और इसका मंत्र जो है, जो लॉर्डस् प्रेयर है। ये इसका मंत्र है। और आज्ञा चक्र को ही ज्यादा तर लोग छूते हैं। ये दुष्ट लोग जितने भी है, ‘ईसामसीह को पहले खत्म करो ।’ क्योंकि उससे बढ़ कर कोई भी जाज्वल्य देवता आज तक संसार में नहीं हुआ। क्योंकि ये गणेश जी का तत्त्व है। गणेश गणेश साक्षात्। पीछे में गणेश है तो सामने में ये हैं। एक ही रुपये के दो हिस्से है, गणेश का स्वरूप है। क्योंकि गणेश से बढ़ कर तो कोई देवता है ही नहीं। तो सब लोग इसी को पहले खराब करते हैं । चलो आज्ञा पे ही हाथ लगाओ। जिसको देखो वो गणेश को छूता है। किसी को भी अपने आज्ञा पे हाथ मत लगाने देना। जब तक पार नहीं हो जाओगे तुम समझोगे नहीं। बड़ी टेरिबल चीज़ है। ये आज्ञा चक्र यहाँ पर है। इसकी माँ जो थी, जिसको हम मैरी कहते हैं। ये राधा जी है। ये है कि नहीं है, इसकी पहचान ये है, कि तुम जो पार हो गए हो पूछो, माँ कह रही हैं कि, सच है कि नहीं है। देखो वाइब्रेशन्स कितने आ रहे हैं । मैं एक एक चीज़ सत्य कहती हैँ। उसी से तो वाइब्रेशन्स आ रहे हैं। सत्य के वाइब्रेशन्स तुम्हें दे रहे हैं। राधा जी स्वयं ही थी वो। लेकिन वो उस वक्त कुछ बोली नहीं। ईसामसीह ने भी अपने माँ के लिये कुछ नहीं कहा। उसको होली घोस्ट कहते थे। आदिशक्ति थी। आदिशक्ति और होली घोस्ट दोनों एक चीज़ है । पर उन्होंने नहीं कहा, कि मेरी माँ होली घोस्ट हैं। नहीं तो उसी को क्रूस पे चढ़ा देते। तो फिर कोई वो चुप रहने वाला था। वो ले कर के मारता सबको। बहुत शक्तिशाली है वो और उसी का अब अवतरण आने वाला है। जो कि यहाँ पर और यहाँ पर बुद्ध और महावीर हैं, हमारे माथे में, यहाँ पर बैठे हुये है। बुद्ध और महावीर ये कोई नहीं दूसरे हैं, लव और कुश जिसको आप कहते हैं, इनका नाम लव और कुश हैं। वही अनेक बार अपने संसार में जन्म लेते हैं| वही बुद्ध और महावीर के नाम से संसार में आये। वो भी अवतरण ही एक है समझ लीजिये। मनुष्य से अवतरण होने वाले एक विशेष जीव हैं। उन्होंने आ कर संसार में अहिंसा का प्रचार किया। पर इस तरह का अहिंसा नहीं जैसे जैन लोग करते हैं, कि खटमल को पालो, मच्छर को पालो। तो फिर उन्होंने कहा, अब फिर से जन्म लो बाबा। इन्होंने क्या तमाशा कर दिया, तो फिर उन्होंने जन्म लिया हसन और हुसैन के नाम से। उनकी माँ जो थी वही सीता जी थी, वही जानकी थी, वही राधा थी। उसको फातिमा भी कहते हैं और उनका स्थान यहां लेफ्ट नाभि में होता है। हज़रत अली भी एक बहुत बड़ी हस्ती हैं। उनका नाम लिये बगैर लेफ्ट नाभि नहीं खुलती। हज़रत अली। एक ही अवतरण है ब्रह्मदेव का वो है हज़रत अली।
अभी काहे का झगड़ा ले कर बैठे हो। तेहरान में ये लोग बड़ी बात कर रहे हैं न! जिसकी बात कर रहे हैं उसकी ही मैं बात कर रही हूँ। पर इन गधों को कुछ मालूम है किस की बात कर रहे हैं। कितनी प्रचंड शक्ति थी वो। तो किस चीज़ को ले के झगड़ा कर रहे हो । और आपस ही में उनके झगड़े हैं। इस शक्ति के बाद, ये महालक्ष्मी की शक्ति है। मैरी का रूप महालक्ष्मी का है । और उस शक्ति के सहारे ही ईसामसीह संसार में आये। उसके बाद ईसामसीह को जब इन लोगोंने क्रूस पे चढ़ा दिया, उसके बाद उनका पुनरुत्थान हुआ। उसके बाद वो अपने हिन्दुस्तान में, कश्मीर में आ के रहे और उनकी माँ भी वहाँ आ के रही, और वही उनकी मृत्यु हुई है, और वही वो रहे lअब इसको ले के पचासो झगड़े हैं। पर किसी को असलियत का पता नहीं।
उसके बाद अब आखरी विष्णु जी का अवतरण जिसको माना जाता है, कल्कि अवतरण माना जाता है। वो आने वाला है। उसके पहले ही मैं आयी हूँ जरा सम्भालने के लिये सब । क्योंकि वो तो आ रहा है, ग्यारह रुद्र ले के। रुद्र माने डिस्ट्रक्टिव पॉवर। विनाशकारी शक्ति, विध्वंसकारी शक्ति। ग्यारह। एक नहीं दो नहीं। ग्यारह विध्वंसकारी शक्ति ले कर के वो आयेगा संसार में । कल्कि स्वरूप । आने वाले हैं । उसमें कोई शंका नहीं। उससे पहले मैं आयी हूँ क्योंकि पहले तुम को पार तो करा ही दूं। धर्म के बारे में बिल्कुल कन्व्हिन्स करा ही दो। पूरी तरह से परमात्मा की पहचान करा ही दो। जितने बच सकते हैं बचा ही लो, भवसागर से। क्योंकि बेटे तो अपने ही हैं न! परमात्मा ने जब तुमको बनाया तो वो क्या तुम्हें मिटाने के लिये थोड़े ही बनाया है, कि तुम्हारा नाश करने को नहीं बनाया है । अपने प्रेम में बनाया है। इसलिये मैं संसार में आयी हूँ, कि तुम लोगों को इनके बारे में सब बताऊँ। और ये चीज़ हो जाये, और उसके बाद कल्कि आने वाले हैं। इसलिये मैं कहती हूं कि तुमको पाचारण है। तुम्हारा स्वागत है। परमेश्वर के राज्य में आओ वहाँ स्थित हो जाओ । क्योंकि कल्कि आने वाला है। वो आयेगा, उससे कोई आर्ग्युमेंट नहीं चलनेवाला l वो आपकी कुण्डलिनी नहीं उठाने वाला। वो जाज्वल्य है। इसलिये आप लोग अपना अपना ठीक कर लो मामला। हम पूरी मेहनत करने को तैय्यार हैं। ईसामसीह ने कहा है, कि मेरे खिलाफ़ आपने कुछ कहा तो चलेगा। लेकिन आदिशक्ति के खिलाफ़, होली स्पिरिट के खिलाफ़ तुमने अगर कुछ कहा है, तो कोई माफ़ी नहीं होने वाली। इसलिये सम्भल के रहो। वो जब आये, उन्होंने कहा, कि मैं भगवान का बेटा हूँ। तो लोगों ने उनको क्रूस पे चढ़ा दिया। कोई पूछता है मुझसे, माँ, आप क्या है? इतना ये कैसे होता है? एकदम से कुण्डलिनी कैसे चढ़ जाती है? जिनको मालूम है, उनको मालूम है। मैं उनसे कहती, मेरे से मत पूछो, तुम अपना जानो। पेपर वेपर में कुछ मत लिखो इस मामले में। अपने आप से जानो। क्योंकि मैं कहूं, मैं कुछ हूं और तुमने उसमें बदतमीजी कर दी या कोई गलत बात कह दी तो पकड़े जाओगे। तब मेरे को नहीं कहने का। पहले समझ लो बात। श्रद्धापूर्वक इसे पालो। उसके बाद जो होना है देखा जायेगा।
सारे सात चक्रों का जो वर्णन बताया तुम को, सर्वसाधारण तरीके से की कितना बड़ा विस्तार है। इसको गहराई से बाद में बताती रहूँगी हमेशा। अभी तो हूँ ही यहाँ पर। लेकिन आप आना और उसको पाना। अभी तक जो भी धर्म की व्याख्या हुई है और अधर्म की व्याख्या हुयी है, उसका पड़ताला लो। उसको जानो। अॅक्च्युअलाइजेशन है। इसमें कोई भी बात मैंने ऐसी नहीं बतायी जिसको मैं सिद्ध कर के नहीं बताऊँगी। हर एक चीज़ सिद्ध कर के आपको मैं बता सकती हूँ। और आप देख सकते हैं, कि मैंने एक भी बात झूठ नहीं बतायी है। इतना ही नहीं, मैने परम सत्य बताया है। और ऐसी ऐसी गुह्य से गुह्यतर बातें, गुप्त से गुप्ततर बातें बतायी हैं, जो कभी बतायी नहीं जाती थीं और सब बताऊँगी, हर एक बात। पर थोड़ा अपना तबका बढ़ाते जाओ । और धीरे धीरे इसमें समाविष्ट हो जाये तो आप लोग खुद ही हजारों लोगों को ठीक कर सकते हैं। पार कर सकते हैं। कहाँ से कहाँ पहुँचा सकते हैं। पर हमेशा यही कहो कि, माँ, हमें सत्य ही दो। क्योंकि एक और भी रूप हमारा है, जिसको कि माया कहते हैं। क्योंकि आदिमाया भी वही है, और महामाया भी वही है, तो फिर मैं चक्कर में घुमाती हूँ। तुम अगर चक्कर में घूमना चाहो, तो बहुत मायावी होती है। फिर आते हैं घूमघाम के, कि माँ, बड़ी माया हो गयी। समझ गये, ये गलत हो गया, वो गलत हो गया। इसलिये चक्कर में मत आना मेरे। मेरे चक्कर बड़े खराब हैं। मै सौ बार कहती हूँ कि मेरे चक्कर में मत आना। तो भी आ जाते हैं। और मैं चक्कर में घुमा देती हैूँ। इसलिये सम्भल के रहो। मेरे प्रेम को समझो और उसको वरण करो । उसको स्वीकार्य करो । तो ठीक है। लेकिन तुम गड़बड़ी करने पे आओगे, तो सारे के सारे बैठे हुए हैं। ऐसा तुम्हे ठिकाना लगा देंगे कि कुछ पूछो नहीं। इसलिये मैं तुम से कहती हूँ, कि खिलवाड़ की बात नहीं। सुक्ष्म चीज़ है lसूक्ष्म को, सूक्ष्म से ही पाया जाता है। इसलिए वैसे तो मैं तुमको हँसाती ही रहती हूँ। हँसी खेल में कितना बड़ा विषय तुम को बता दिया। इसको कोई गंभीर नहीं बना दिया। लेकिन ये समझ लेना चाहिये, ये बड़ी सूक्ष्म चीज़ है और अत्यंत श्रद्धा और प्रेम की चीज़़ है । इसका खिलवाड़ नहीं हो सकता। लेकिन है बड़ी विनोद और बड़े आनन्द की चीज़। बड़ा मज़ा आता है । ये बात दूसरी है। एक ऐसा समाज, एक ऐसी नयी दुनिया हमारे अन्दर आ जाती है, कि जिसके कारण हम एक दूसरे को समझने लगते हैं । प्यार करने लगते हैं । विराट में एक हो जाते हैं। तब कहना नहीं पड़ता है, कि हम सब भाई-बहन हैं। मालूम ही होता, है ही। एक बड़ा ही प्रेम का वातावरण आपस में। आप लंडन में आओ, तो वहाँ के लोग आपके लिये, अमेरिका में आओ, तो वहाँ के लोग आपके भाई-बहन, बिल्कुल भाई-बहन से भी ज्यादा जान देने के लिये तैय्यार हैं। वैसे आप हज़ारों को जोड़ लो। किसी काम का कोई नहीं होता। सब पैसे के, किसी चीज़ पे लगे होते हैं। इसमें सिर्फ प्यार के होते हैं आपके। सब समाज, सब धर्म, सब चीज़ की एकाग्रता ही सहजयोग आज का है। सब को समग्र करना है। समग्र माने एक ही डोर में सब को डाल देना है। कबीर ने कहा हैं, “पाँचों, पच्चीसों, पकड़ बुलाऊंगा”। देखिये, भाषा थी! देखिये शान! कितनी शान से बोलता है, रोता नहीं है । कब मिलोगे भगवान, वगैरा कुछ नहीं। शान से बोलता है, “पाँचों, पच्चीसों, पकड़ बुलाऊंगा, एक ही डोर बंधाऊँगा”। ये कबीर की शान है। कबीर को पढ़ो, खलील जिब्रान को पढ़ो, नानक को पढ़ो, तो हम को समझोगे । रजनीश को पढ़ने से मेरेको नहीं समझ सकते तुम, इसमें इतिहास, सारा इतिहास मैंने अभी तुमसे बताया। हज़ारों वर्षों का इतिहास मैंने तुम्हें बताया हुआ है। ये लोग तो कहीं से पैदा हो कर के,अपनी नयी नयी प्रणाली ले के आये। इनमें कुछ ऐतिहासिक बात नहीं है। इसका संबंध किसी भी धर्मशास्त्र या किसी भी धर्मगुरुओं से नहीं है। ये अपने ही अपने बने हुये हैं। कोई कोई उठाएं हुए l आये हैं और मिट जायेंगे| कुछ उगते हैं फिर खत्म हो जायेंगे। ये चलने वाले लोग नहीं । इनके चक्करों से बचो। अभी कुछ प्रश्न हो तो थोड़ी देर पूछो। फिर पार वार भी होने का है। अगर प्रश्न हो तो। बेकार टाइम मत बर्बाद करना।
प्रश्न –माँ स्थिर कैसे होना चाहिए?
श्री माताजी– स्थिर होने के लिये मैंने पहले ही बताया था, लेक्चर के पहले ही कि उसकी विधियाँ हैं । एक तो हमारा फोटो है। इसको आपको इस्तमाल करना पड़ता है। किस तरह से करना है, क्या करना है, वो फोटो में लिखा हुआ है।
और उसके सब से बड़ी चीज़ है, फोटो से भी वाइब्रेशन्स आ रहे हैं, जैसे मेरे से आ रहे हैं। आप फोटो की ओर हाथ करो। आपके हाथ में बराबर ये पता हो जायेगा कि कौन सा चक्र पकड़ा हुआ है। उस चक्र को आप जान लो। उसका मंत्र क्या है, उसे आप जान लो। और वो मंत्र कहने से आपका चक्र खुल जायेगा। लेकिन सब से इसका अच्छा तरीकl एक ही है कि आप विराट में आओ। माने कलेक्टिविटी में आओ | जहाँ सब लोग सहजयोगी आते हैं, वहाँ अगर दस सहजयोगी और आये तो उन दस सहजयोगियों का वहाँ पर पहुँचना होगा बाकि जो घर में घंटियाँ बजा रहे हैं मेरे सामने उनको मैं नहीं पूछती। थोड़ा बहुत चलता है उन्नीस-बीस। घर में मैंने कोई आरती भी करी माँ, तेरेको मैने टीका भी लगाया, रोज घंटी भी बजायी । वो मेरे कान में नहीं जाती। और माँगने का है, तो परम माँगो। माँ मेरेको नौकरी नहीं, मेरेको फलाना नहीं। ठिकाना नहींl जहाँ तुमने चित्त डाला उधर मेरा चित्त नहीं जाता। हमको तो परम दो। फिर योगक्षेमं वहाम्यहम् । तुम्हारा क्षेम तो, पहली चीज़ देखने का है ही मेरे को। वो तो ऑटोमॅटिकली होता है। पर पहले योग माँगो, तो क्षेम मिलेगा । नहीं तो सुबह-शाम, मेरा पति मेरे से लड़ता है, मेरी पत्नी मेरे से लड़ती है । मेरा ठिकाना, ढिकाना, छोड़ो सब । पहले परम पा लो। ऊँचे उठ जाओ। फिर परमात्मा के आशीर्वाद से सब ठीक हो जायेगा। ये ऐसा नहीं है, कि एक मिनट में मैंने बोला चल, कुण्डलिनी चढ़ गयी| पार हो गये। नहीं। कुण्डलिनी चढ़ती जरूर है, पहली मर्तबा। बहुतों को चढ़ गयी। एक अभी आयी थीं एक लड़की। बोली कि, “दो बार माँ मेरे अच्छे से आया दो दिन।’
ठीक है। वो हमारी वजह से कुण्डलिनी चढ़ गयी, पर अब तुम्हारी वजह से इधर उधर घूम रही है। तुम्हारी वजह साफ़ करो। हमने तो तुमको दिखा दिया कुण्डलिनी चढ़ती है कि नहीं चढ़ती है । चढ़ गयी, वाइब्रेशन्स आ गये। फिर वो कहाँ लपट गयी? क्यों लपट गयी? इसका पता लगाना चाहिये। शरणागती होनी चाहिये। शरणागती का मतलब है कि सागर में बूँद मिल जाना चाहिये। बहुत अच्छे से होता है। और प्रश्न पूछो।
सवाल ~...माताजी फोटो है देवी-देवताओं की उनको निकालना चाहिये?
श्रीमाताजी – ना, ना ना ना, पर देख लो फोटो भी तो लोग बेचते हैं। बिकी हुई फोटो हो तो उसको निकाल ही डालो। क्या करने का किसी ने बेचा हो तो! किसी की बनायी हुई हो तो ठीक होती है। ऐसी बिकी हुई फोटो में तो मैं देखती हूँ कि सब गंदे गंदे वाइब्रेशन्स आते हैं। दो-दो पैसे में बेचते हैं भगवान को, क्या बतायें ! उसकी कोई श्रद्धा नहीं, कुछ नहीं।
सवाल ~ दूसरी जो किताबें हैं जिनमे जो फोटो हैं, उन्हें घर से निकलना चाहिए
श्रीमाताजी – ऐसी फालतू किताबें सब फेको। वही तो सब खोपड़ी में घुसी हुई हैं। किताबें तो उठा कर पहले ही समुंदर में डाल दो। हाँ, लेकिन कुछ कुछ किताबें नहीं डालना जैसे कुरान हो तो। गीता हो तो। बाईबल हो तो। गीता भी लिखा किसने? एक पखंडानंद जी ने। बाईबल लिखा किसने ? भोंदू जी ने। तो मैं क्या करूँ? छोड़ों,उसके वाइब्रेशन्स तो आते ही हैं ना खराब। हम तो भैय्या ये कहते हैं कि तुम वाइब्रेशन्स देखो। वैसे तो जो आदमी मस्त है उसको क्या! कुछ भी किताबें रखी रहो, कुछ रखो, उसको कुछ नहीं होता। पर आप अगर पकड़ रहे हैं तो फेंकिये। कायकों रखना गोबर घर में? बहोत सी किताबें गोबर के बराबर हैं । वो सड़ती हैं । उसमें से गंदे वाइब्रेशन्स आते हैं। सब से बड़ी किताब मनुष्य है। मनुष्य को पढ़ो। देखो, कहाँ क्या पकड़ है? कहाँ क्या गया? सब से बड़ी किताब तो आप ही है। देखो, जानो। पढ़ी पढ़ी पंडित मूरख भयो । कबीर ने कहा है। इसलिये कहा होगा। हं, पुढे, इकडे काही, हो हो बोला. ( मराठी में)
सवाल ~ एकन्दरीत पाहता हा जो सगळा संसारl चा गाडा चाललाय , ते कोण चlलवतं ?
श्री माताजी ~ हं ते काय?
सवाल ~ ते कोण चlलवतं
श्री माताजी ~ परमेश्वर!
सवाल ~ त्याचा उपयोग काय?
श्री माताजी ~ या गlडयाचा ? त्यांची मर्जी. त्यांचा खेळ आहे.
सवाल ~ सगळे जण मोक्षाला जाणार हे खरे आहे का?
श्री माताजी ~ ऑं
सवाल ~ सगळे जण मोक्षाला जाणार हे खरे आहे का
श्री माताजी ~ . सगळे नाही जाणार. थोडे जातील. सगळे नाही जाणार .सगळ्यांची हजामत होणार आहे.
सवाल – कुठे जाणार आहेत?
श्री माताजी – नरकात. स्ट्रेट फॉरवर्ड मार्च.
सवाल ~ नरकातून पुन्हा कlही मार्ग जातो का ?
श्री माताजी ~ काय
सवाल ~ नरकातून पुनः स्वर्गाकडे काही मार्ग जातो का?
श्रीमाताजी ~ आता काय होणार आहे. पुढचा कशाला विचार करता. परत तुमचं स्वाधिष्ठान धरेल. सध्या तुम्ही माझ्यासमोर बसले आहात ना ! हे सत्य आहे. पुढचं काय होईल ते सोडा. त्याचा ऊहापोह नको. आता कोण नरकात जाणार वगैरे वगैरे.
सवाल ~ मी वाचलंय त्याच्याबद्दल.
श्रीमlताजी ~ अँ
सवाल ~ मी वाचलंय.
श्री माताजी ~ ते सोडा हो. जे वाचलं ते जरा विसरा. वाचून काही उपयोग नाही. आता तुम्ही एक वाचलं. दूसऱ्यlने दूसरं वाचलं. म्हणजे फालतू होणार. वाचलेलं सांगता का की स्वत:चं काही सांगून राहिले?
पढ़ा हुआ बोल रहे हो, कि अपना ही कुछ बोल रहे हो ? अपना? इट्स यूअर ओन प्रॉब्लेम देन .
सवाल— मराठी मधे बोलतो.
श्री माताजी ~ काय
सहज ~ मराठी मधे बोलतो.
श्री माताजी ~ हो बोला.
सवाल – सुषुम्ना नाडीमध्ये पाच चक्र एकत्र गेलेले आहेत. ईडा , पिंगला इकडे आहेत. कुंडलिनी शक्ती आणि मणिपूर चक्र हे आहे. मग भवसागर कुठे आहे, ते दाखवलं नाही. ते कळत नाही.
श्री माताजी –हो. तिथे एक जागा आहे.
वहाँ पे जगह है बीच में। बराबर पॉइंट पकड़ा है। इसलिये कुण्डलिनी है। हिंदी में बोल रही हूँ l काय हो तुम्हाला मराठी येत नाही का? बिल्कुल नहीं आता मराठी? घ्या शिकून घ्या. तुम्हाला येतं की नाही मराठी, मग हिंदी मे कायको? थोड़ा-थोड़ा मराठी भी आना ही चाहिये । अभी मराठी देश में रहते हो, थोड़ा सीखने में कुछ नहीं। हिंदी वाले कभी नहीं सीखने वाले किसी की भाषा । ये भी तो जबरदस्ती है। एक तो सीखो दुसरे की भाषा। अंग्रेज जैसे सब लोग इंग्लिश सीखे हैं। अभी इधर मराठी रहे हैं, मराठी पानी पी रहे हैं, थोड़ा मराठी बोलना सीखो । कोई हर्जा नहीं। थोड़ा सा मराठी भी आना चाहिये। मराठी इसलिये सीखना चाहिये, सहजयोगियों को मदद इसलिये होती है, कि कुण्डलिनी पे जितनी सुंदर किताबें हैं, मराठी में ही है l आश्चर्य है l
(मराठी में) म्हणजे मराठी लोकांनी लगेच विशेष समजू नये. लगेच मराठ्यांची वर नको व्हायला ! बघितली मराठेशाही।
मराठी भाषा में बहुत ही सुंदर बातें हैं। क्योंकि ज्ञानेश्वरी जी हैं और इस पर बहुत ही काम किया गया है, महाराष्ट्र में। इसलिए मैंने महाराष्ट्र में जन्म लिया | लेकिन, इसका मतलब नहीं कि कीचड़ में कमल खिलता है तो कीचड़ कोई बड़ी चीज़ हो जाये। बाकि कीचड़ ही होता है अधिकतर। तो यहाँ बड़े बड़े जीव हो गये। जैसे कि नाथपंथीयों ने बहुत काम किये हैं इधर में और शिर्डी के साईनाथ भी महाराष्ट्र में ही पैदा हुये हैं। महाराष्ट्र के लोगों में कुछ कुछ अच्छे गुण भी हैं, दुर्गुण भी कुछ बहुत जरूरत से ज्यादा भी हैं। (मराठी में) तर तसं काही नाही. पण मराठी भाषा शिकलेली बरी. कारण मराठी भाषेमध्ये ग्रंथ फार सुंदर. किंवा संस्कृत तो सीख नहीं सकते । मराठी ही सीख लो। क्योंकि संस्कृत भाषा कठिन जाती है, मराठी में वाकई बहुत अच्छे हैं। इस में षट्चक्र भेदन वगैरा पे बहुत अच्छा लिखा है। अब तो ट्रान्सलेशन हो गये हैं बहुत सी हिंदी किताबों के ट्रान्सलेशन्स है। अभी सौंदर्य लहरी वगैरा जो किताबें हैं, इसका ट्रान्सलेशन मराठी में बहुत अच्छा आपको मिलेगा। क्योंकि इस पर लोगों ने बड़ा ही यहाँ पर ध्यान दिया है। संस्कृत में, क्योंकि संस्कृत भाषा और मराठी भाषा बहुत ही नजदीक रही। प्राकृत भाषा होने से पहले ही मराठी भाषा बन गयी थी। इसलिये भी शायद हो सकता है, कि मराठी में बहुत कुछ लिखा हुआ है। इसलिये थोड़ा बहुत मराठी सीख लेना कोई बुरी बात नहीं है और मेरे लिये भी मराठी भाषा में बोलना इसलिये आसान जाता है, क्योंकि इसमें शब्द है। शब्द है मराठी में, हिंदी में नहीं हैं इतने। लेकिन हिंदी भाषा तो जरूरी आना चाहिये, हर एक मराठी को। चाहे हिंदी सीखे, चाहे नहीं सीखे हिंदीवाले। लेकिन मराठी को तो हिंदी मास्टर कर लेनी चाहिये। हिंदी वाले नहीं इतनी अच्छी हिंदी बोलते जितने मराठी बोलते हैं, अगर कोशिश करे तो। क्योंकि बेस संकृत का नहीं होता है। हं, तो हिंदी में क्या बोलना था? (मराठी में) काय प्रश्न होता ? हो, सुषुम्ना पे। बीच में जो जगह बनी है, यही भवसागर है। इसको तरने के लिये ही, इसमें ब्रिज डालने ही के लिये कुण्डलिनी चाहिये । ये जो गॅप है नां , यही कुण्डलिनी जो होती है, ब्रिज कर देती है। पहले आपके हाथ में मेरे वाइब्रेशन्स जाते हैं और ब्रिज बन जाता है और उसमें से कुण्डलिनी जैसे कोई ट्रेन नहीं चली जाती, ऐसे ऊपर में चली जाती है। बरोबर आहे. प्रश्न बरोबर आहे. याला पुष्कळसे लोक वॉइड म्हणतात. वॉईड.और कुछ प्रश्न हो तो पूछो।
सवाल ~ पंचमहाभूत जे बनलेलं आहे, त्याच्यामध्ये जी रचना आहे ती ओळखायची कशी?
श्रीमाताजी - कशाची ?
सवाल – पंचमहाभूतांची .सांगत नाहीत जरा
श्री माताजी ~ पंचमहाभूतांचं काय ?
सवाल ~ हे शरीर पंचमहाभूतांचं बनलेलं आहे असं म्हणतात. तर ते सांगत नाहीत जरा, अग्नी, आप तत्व
श्रीमाताजी. ~ सगळं या चक्रांचं? प्रत्येक चक्र एकेका ह्याचे बनलेले आहे. आणि त्याचा मी सबंध एक चार्ट बनवून दिलेला आहे. तो तुम्ही स्टडी करा. बारीक बारीक फार आहे, की कोणतं चक्र कसं जसं पृथ्वी तत्त्वापासून
सवाल ~ ते माहितीय, याचा स्टडी केलाय मी.
श्री माताजी ~ मग झालं, मग काय पाहिजे? बरोबर आहे ते.
सवाल. ~ अग्नी तत्त्व, पृथ्वी तत्त्व, आप तत्व, ही तत्त्व कुठल्या चक्रावर आहेत?
श्रीमाताजी – ही सगळी वेगवेगळ्या चक्रावरती आहेत. ते तत्त्व जे आहेत त्याने ह्यांचं शरीर धारणा झालेली आहे. ह्या चक्रांची शरीर धारणा एकेका तत्वा मुळे झालेली आहे. त्याचा सबंध चार्ट आहे .तुम्ही इथून घ्या आणि तो सगळा स्टडी करून टाका.
सवाल ~ वेगळं आहे का? त्याला पुस्तके आहेत का, गणपतीची आहेत.
श्री माताजी ~ असेल, असणार.
दुसरा सहजी ~ हो आहे आहे.
श्री माताजी ~ आहे चार्ट आहे. याची चांगली स्टडी करून टाका तुम्ही. तुम्ही जे म्हणाल ते आमच्याजवळ आहे लिहिलेलं बरंच आहे. फक्त मी पुस्तक अजून लिहिलेलं नाही.
सवाल – लिहिणार आहात का?
श्रीमाताजी – अहो, मी तुमची पुस्तकं लिहित आहे.
सवाल ~ ते मलाच समजून घ्यायचे आहे
श्री माताजी ~ असं का, बरं
दुसरा सहजी. ~ सगळे विचारतात सहजी
श्री माताजी ~ अँ
दुसरा सहजी ~ सगळे विचारतात सहजी.
श्री माताजी ~ ती स्थिती तुमची आली तर लिहिन पुष्कळांच्या डोक्यावरून जाईल बहुतेक.
सहजी ~. माताजी, कहा जाने का?
श्री माताजी ~ अँ