Public Program, Satya aatma ke prakash men hi jana ja sakta hai 1989-03-12
12 मार्च 1989
Public Program
Noida (भारत)
Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft
Sarvajanik Karyakram 12th March 1989 Date : Noida Place Public Program Type Speech Language Hindi
सत्य को खोजने वाले सभी साधकों को हमारा प्रणाम ! सब से पहले तो बड़ी दुःख की बात है, कि इतनी देर से आना हुआ और एरोप्लेन ने इतनी देरी कर दी और आप लोग इतनी उत्कंठा से और इतनी सबूरी के साथ सब लोग यहाँ बैठे हये हैं। और हम, असहाय माँ, जो सोच रही थी कि किस तरह से वहाँ पहुँच जायें? आप लोगों को देख कर ऐसा लगता है, कि ये दुनिया बदलने के दिन आ ही गये हैं। आपकी उत्कंठा बिल्कुल जाहीर है। और आपकी इच्छा यही है, कि हम सत्य को प्राप्त करें। सत्य के बारे में एक बात कहनी है, कि सत्य जैसा है वैसा ही है। अगर हम चाहें कि उसे हम बदल दें, तो उसे | बदल नहीं सकते। और अगर हम चाहे कि अपने बुद्धि या मन से कोई एक धारणा बना कर उसे सत्य कहें, तो वो सत्य नहीं हो सकता। तो सत्य क्या है? सत्य एक है कि हम सब आत्मा है। हम आत्मास्वरूप है। इतनी यहाँ सुंदरता से आरास की हुई है और इतने दीप जलायें हैं, जिन्होंने प्रकाश दिया है। जिससे हम एकद्सरे को देख रहे हैं और जान रहे हैं। पर अगर यहाँ अज्ञान का अंधेरा हों, अंधियारा छाया हुआ हो और हम उस अज्ञान में खोये हये हैं, तो एक ही बात जाननी चाहिये, कि हम सब प्रकाशमय हो सकते हैं और हमारे अन्दर भी दीप जल सकता है। और ये दीप हम बहुत आसानी से प्रज्वलित कर सकते हैं, जला सकते हैं और उसका उजारा सारे संसार में फैला सकते हैं। आज तक परमात्मा के नाम पर बड़ी मेहनत की गयी। परमात्मा के विश्वास पर ही हम लोग लूटे गये हैं। ये बात और किसी देश में नहीं है । जो हमारे देश में हैं, कि कितनी भी विपत्तियाँ आयें, कितनी भी तकलीफ हयी तो भी हम सोचते रहें कि एक दिन ऐसा आयेगा, कि परमात्मा हमें जरूर रास्ता दिखायेगा और हम उस सुवर्णदिन की राह देखते रहें, जहाँ हम अपने मोक्ष को प्राप्त करें। हमें सिर्फ अपने अज्ञान से मोक्ष मिलना है । और ये अज्ञान हमारे अन्दर तरह तरह की चीज़ों से आ बसा है। जैसे कि बचपन से कोई बात बतायी जाती है, चार लोगों से सुनते हैं, या हम किसी एक घर में पैदा हो गये तो उस घर की बातें जो चल पड़ी वही हमारे लिये विशेष हो जाती है। और वो हर जगह अलग अलग रूप ले कर के ऐसी कुछ विचित्र हो जाती है, कि हमारे बच्चे पूछते हैं, कि ये सब करने से क्या फायदा हुआ? आप इतना कुछ करते हैं लेकिन आप में तो कोई अन्तर (फर्क) नहीं हुआ। कोई आदमी अगर हिन्दू हो, चाहे मुसलमान हो, चाहे ईसाई हो, चाहे सीख हो , हर जाति का, हर धर्म का आदमी हर प्रकार का पाप कर सकता है। हर तरह का गुनाह कर सकता है। ये कह के कि अगर हम लोग धार्मिक हैं और हमारे अन्दर अगर धर्म हैं, तो हम से गुनाह कैसे होता है? लेकिन हम देखते हैं, कि जो बड़े बड़े संत साधू हो गये, जिनके हमारे सामने इतने उदाहरण हैं, वो लोग कभी गलत काम नहीं करते और वो गलत लोगों के सामने कभी झुकते भी नहीं। आप यहाँ के अवलिया निजामुद्दीन साहब के बारे में जानते हैं। शाह ने कहा था, 'अगर तू मेरे सामने झूकेगा ন
नहीं तो मेरी तेरी गर्दन उडा दूंगा।' वो झूके नहीं। कहा कि, 'मैं एक परमात्मा के सामने झूकता हूँ।' उसके बाद आप जानते हैं कि उसी शाह की ही गर्दन उड़ गयी । तो इस तरह के साधू-संत, इतने हिम्मत के साथ और इतनी सूझबुझ के साथ किसी बात को कहते थें, उनकी कौनसी अहमियत थी ? उनमें कौन सी खास बात थी ? जो वो हम लोगों से इतने परे हैं। उपर एक ऐसी दशा में थे, जहाँ उनकी कोई भी ऐसी चीज़ प्रतित ही नहीं होती थी, जो सत्य को खोल कर अपना लें। जो अटूट अपने विश्वासों पर पूरी तरह से खड़े थे। क्योंकि उनके विश्वास अंधे नहीं थे। जिस विश्वास से वो जानते थे कि ये बात सत्य है, और आज जब की हम अपने आत्मा को खोज रहे हैं, तो उसके प्रकाश में हम ये जान जायेंगे, कि जो सत्य है वो आत्मा के प्रकाश में ही जाना जा सकता है। हर एक धर्म, संसार का हर एक धर्म, आप अगर एक थोड़ा सा जान लें, तो समझ लेंगे कि त्त्वों में हर एक धर्म एक है। और हर एक धर्म में एक ही बात बतायी गयी हैं, कि हमें नश्वर चीज़ों को छोड़ कर के, जो चिरंजीव, जो अंनत की चीज़ हैं उसे लेना चाहिये। हम लोग बहुत बार सांसारिक चीज़ों में इस तरह से अटक जाते हैं, कि इस चीज़ को भूल जाते हैं, कि जो नश्वर चीज़ें हैं, जहाँ तक हैं वहाँ तक ठीक है, लेकिन उस में अतिशयता करने से हमारा सर्वनाश हो जाता है। वो ही स्वयं नाशमय हैं, अंत में हमारा ही नाश हो जाता है। लेकिन इन सब को जानने के लिये हमारे अन्दर ज्ञान होना चाहिये। ज्ञान का मतलब ये नहीं कि पढ़ना लिखना। बहुत से लोग हैं, मुझे ये बताते हैं कि हम तो रोज शिवलीलामृत पढ़ते हैं और हम रोज एक उसका अध्याय रटते हैं। लेकिन आप के अन्दर उससे कोई परिवर्तन हुआ? क्या आप शिवलीलामृत पढ़ने के बाद ऐसा कह सकते हैं, कि इसके बाद आप कोई गुनाह नहीं करेंगे। या आप कुराण पढ़ने के बाद ऐसा कह सकते हैं, कि इसके बाद हम कोई गुनाह नहीं करेंगे। क्या ग्रंथसाहब पढ़ने के बाद आप ऐसा कह सकते हैं, कि हम कोई गुनाह नहीं करेंगे । तो इन महान किताबों में जो लिखा है वो एक लिखी हयी चीज़ हो गयी | वो हमारे अन्दर में है। जो कुछ भी है वो बाहर है और उस पे अगर हम सोच लें, कि इनको पढ़ने मात्र से ही हम ठीक हो जायेंगे, तो ये हमारी गलत धारणा है। सिर्फ ये जान लेना चाहिये, इसका बोध होना है। याने अपने नसों में आपको जानना चाहिये। चारों तरफ फैली हयी ये परमात्मा की शक्ति है। ऐसा कहा जाता है कि देखने में क्या हऱ् है! अगर आप सायन्स वाले हैं तो इसे आप देखिये, कि ये कौनसी शक्ति है, जिसे आप प्राप्त कर सकते हैं ? ये जो शक्ति हमारे अन्दर हैं, ये शक्ति जिसे की हम उसे जानते हैं, वो भी अगर हम कहें, कि आपके अन्दर सुप्तावस्था में हैं, तो क्या हर्ज है कि हम इसको पूरी तरह से प्राप्त कर लें। क्योंकि ये अगर हमारी ही शक्ति हैं और इससे हमें ही बोध होने वाला है और इसमें हम ही बहत उंचे उठ जाने वाले हैं, तो फिर क्यों न हम इस चीज़ को पूरी तरह से अपना ले और इस पे पूरी बात कर के जानें कि ये चीज़ हैं क्या? आपको पहले ही बताया गया था, डॉक्टर साहब कह रहे थें , कि हमारे अन्दर कुण्डलिनी नाम की शक्ति है। हमारे अन्दर चक्र हैं और कुण्डलिनी जागरण होती है, उससे हमारा ब्रह्मरंध्र जो है, ये तालू भाग है, वो खूल जाता है और उसमें से ठंडी ठंडी हवा आने लगती है और चारों तरफ भी ठंडी ठंडी हवा आती है। पर इसका क्या प्रमाण? ये जो ठंडी ठंडी हवा है, यही वो चीज़ है, जिसे परम चैतन्य कहते हैं। एक दिन ऐसा हुआ था कि हमारा एक लेक्चर था। उन लोगों ने आ के बताया कि, 'हम आपको मानते नहीं
क्योंकि आप ब्राह्मण नहीं। हम तो कुछ देंगे नहीं। सब लोगों ने कहा कि, 'ठीक है हम लोगों ने लिख कर तो पेपर में दे दिया। अगर आप मानते नहीं है तो ठीक है हम ऐसा करते हैं, कॅन्सल तो कर देंगे लेकिन हम आपका नाम दे देंगे कि इन्होंने ऐसा ऐसा मना कर दिया।' कहने लगे, 'नहीं ऐसा नहीं । ठीक है, वहाँ पर प्रोग्राम हो ।' अब इन्होंने मुझे आगे की कोई बात नहीं बतायी। न जानें कैसे बोलते बोलते मैंने कहा, कि जो सोचते हैं, 'जिन्होंने ब्रह्मत्त्व को जाना है वो हमारे सामने आ जायें।' तो आठ-दस आदमी आ के खड़े रहे वहाँ। मैंने कहा, 'बैठ जाईये, बैठ जाईये।' बैठने के बाद मैंने कहा, मेरी ओर हाथ करें। तो इनके हाथ लगें थरथराने। तो मैंने कहा, देखिये, जरा आपके हाथ थरथरा रहे हैं। कहने लगे, 'भाई , रोकिये, रोकिये। माँ, हम मान गये आप शक्ति हैं। इसलिये हमारे हाथ थराथरा रहे हैं।' मैंने कहा, 'ये बात नहीं। औरों के नहीं थरथरा रहे हैं।' कहने लगे, 'इन लोगों के देखिये कैसे थरथरा रहे हैं!' मैंने कहा, 'जा के पूछिये, ये लोग कौन हैं ?' तो उन लोगों ने बताया, 'हम तो ठाणे के पागलखाने से आये हैं। क्योंकि ठाणे का एक पागल ठीक हो गया है। तो डॉक्टर हमें वहाँ से ले आयें हैं । हम तो सर्टिफाइड पागल हैं। तब उनके दिमाग में बात आयीं, कि ये सर्टिफाइड पागल के भी हाथ हिल रहे हैं और हमारे भी हाथ हिल रहे हैं। तो कोई न कोई बात ऐसी है। तब फिर कहने लगे, माँ, ये चीज़ क्या है?' मैंने कहा, 'बेटे, ये परम चैतन्य है। ये तुम्हें भी हिला रहा है, उन्हें भी हिला रहा है। लेकिन तुम इसे प्राप्त करो । जब तुम ब्रह्म को जानोगे, तभी सोचना की तुम द्विज हो गये। माने तुम्हारा फिर से जन्म हुआ।' झुठमुठ के अपने सिर पे लेबल लगा लिये थे। आप कुछ नहीं है। उससे कुछ प्रमाण नहीं मिलता। लेकिन जो साधू होता है, जो असली सद्गुरू होता है, उसके लिये प्रमाण की क्या जरूरत है? संस्कृत में कहा जाता है कि कस्तुरी अगर कहीं हैं, तो उसके लिये थोड़ी कसम लेनी पड़ती है, कि वो कस्तुरी है। उसका सुगंध अपने आप ही आपको याद करा देता है, कि ये कस्तुरी है। इसी प्रकार आपके अन्दर जो शक्तियाँ हैं, जब तक उसका प्राद्र्भाव नहीं होगा, जब तक उसका प्रकाश फैलेगा नहीं, सिर्फ कहने से क्या आप विश्वास कर लेंगे? या कोई भी विश्वास कर लेगा , कि आप बहत बड़े आत्मा है या आप बहुत बड़े धार्मिक हैं। या आप ऐसा कोई जीव है, कि जो बहुत ही पूर्वजन्म के सुकृत के साथ इतना पुण्यवान आत्मा है। इस तरह के लेबल लगा लेने से, कोई पूरण्यवान नहीं होता है। दूसरी बात ये भी कही जाती है कि कर्म करने से मनुष्य स्वच्छ हो जाता है। मैंने कहा 'मुनष्य कर्म क्या करता है?' जब तक ये भावना आपके अन्दर हैं कि आप कर्म कर रहे हैं, तब तक आप सच्चे हैं ही नहीं। आपके अन्दर अहंकार बैठा जा रहा है और वो अहंकार जो है, वो आपको बता रहा है कि आप ये कर्म कर रहे हैं, आप वो कर्म कर रहे हैं। पर वास्तविक हम लोग कर्म क्या कर रहे हैं? कोई चीज़ मर गयी। कोई पेड़ मर गया, तो उससे फर्निचर बना दिया या कोई जो पत्थर थे उन्हें ला कर के मकान खड़े कर दिये। तो आपने क्या बड़ा भारी काम कर दिया। मरे से मरा काम कर दिया। आपने कोई जिंदा काम किया है? सहजयोग के बाद जब आप पार हो जाते हैं, तो आपके हाथों से कुण्डलिनी उठती हैं उपर। एक बहुत बड़े साधू थे, बहुत मशहूर थे। तो वो मुझे कहने लगे कि, 'माँ, इन सब लोगों को आप क्यों मोक्ष दे रही हैं? इनको क्यों इतनी शक्तियाँ दे रही हैं?' मैंने कहा, 'साहब, ऐसा है, कि हम क्यों दे रहे हैं, ये तो आप हम से
मत पूछिये। लेकिन हम दे जरूर रहे हैं। और ये सोचिये, हाँ, हमारी मर्जी। जिसे चाहें दें । आप हमारे उपर जबरदस्ती करने वाले कौन होते हैं?' कहने लगे कि, 'हमने तो इतनी मेहनत की। हमने इतना किया। 'क्यों की मेहनत ? मैंने कहा था।' कोई मेहनत करने की जरूरत नहीं । अगर आप मेहनत कर रहे हैं तो फिर ये क्यों, कि 'हमने मेहनत करी। मैंने ऐसा किया। इतने उपवास किये। फिर मैंने संन्यास ले लिया। मैंने बीबी-बच्चे छोड़ दिये। ' मैंने कहा था आपसे? आपने क्यों किया? अगर आप ये सब चीज़ नहीं करते तो भी आप आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करतें । यही बात है, कि हम कुछ भी नहीं कर सकते। ये जिवंत क्रिया है। अपने आप घटित होती है। और हम मानव का ये जन्मसिद्ध अधिकार है, कि वो इस योग को प्राप्त करें । भगवान ने आपको मनुष्य किस लिये बनाया है? ऐसे ही आधा-अधूरा छोड़ देने के लिये। इन अज्ञान में गोते लगाने के लिये। ऐसा तो नहीं हो सकता। वो तो परमात्मा, परम दयालू, कृपावान है। वो क्या आपको इस तरह से छोड़ देंगे ? वो से लोग सोचते हैं, कि अब सारा संसार नष्ट होने वाला है। अरे, जिसने ये संसार बनाया है, बहुत इतना बलिष्ठ और इतना समर्थ है। वो क्या संसार को नष्ट होने देगा ? कभी भी नहीं और इसलिये जान लीजिये, कि आप | लोगों में से ही वो बलिष्ठ लोग तैयार होंगे, जो सारे संसार को बदल सकते हैं और सारी दुनिया में आनंद ला सकते हैं। आज बहुत देर हो गयी हैं, पर मैंने सोचा है, कि १६ तारीख को मैं फिर से नोएडा में आऊंगी। तब आप लोगों अच्छे से सब समझाऊंगी। लेकिन आप लोग इतना खर्चा मत करो। मुझे बड़ा ये लगता है इतना सारा को बहुत खर्चा कर दिया और इतनी सारी आरास कर दी तुम लोगों ने। इतना खर्चा कैसे उठा रहे हैं पता नहीं! कोई खर्चा करने की जरूरत नहीं । एक माँ के लिये कितना खर्चा करने का! कोई सर्वसाधारण तरिके से ही तुम लोग इंतजाम कर लेना और इतना खर्चा मत करना। मैं सोलह तारीख को फिर यहाँ आऊंगी। अब देर बहुत हो गयी है। आप लोग भी इतनी देर से इंतजार कर रहे थे। हालांकि मैं चाहती थी, कि आप लोग मुझे सवाल पुछे और मैं उसका जबाब दें। लेकिन ये हो सकता है, कि आप लोग सवाल पूछें, और सोलह तारीख को मैं आपके सब सवालों का जबाब दे दूँ। दसरी बात ये है कि जैसे यहाँ आपने इतने सारे लाइट लगायें हैं। पूछिये कि इन लाइट्स को इस तरह से जलाना है, तो कहेंगे, उसे जला दीजिये। ...... (अस्पष्ट) हो जायेंगी। इसी प्रकार आपके अन्दर भी पूर्ण व्यवस्था हो गयी। परमात्मा के यहाँ भी नोएडा वाले लोग रहते हैं। उन्होंने बहुत सुंदर सारी व्यवस्था आपके अन्दर कर रखी है। व्यवस्थित रूप से। और बस, एक स्वीच लगाने की बात है कि वो सब हो जायेगा। अब अगर कोई नोएडा वाले यहाँ के बतायें, कि यहाँ से ये बिजली आयें। यहाँ से ये ले आयें। यहाँ से वो लायें । ये बिजली का इतिहास क्या है ? तो सर दर्द हो जायेगा। आप कहेंगे कि भैय्या, पहले बत्ती लगाओ फिर बात करेंगे । ऐसी बात है। सहजयोग में पहले आप अपने प्रकाश को प्राप्त हों और उसके बाद हम फिर बात करेंगे। तो हो सकता है कि आज, अभी हम इसका प्रयोग करें। और उसके बाद फिर आप सोलह तारीख को आयें। तो पूरी तरह से विषद रूप में बतायें । और जिन लोगों को आज अनुभव नहीं होगा, उनको सोलह तारीख को अवश्य हो ही जाना है । तो फिर से मैं चाहती हूँ कि बहुत दु:ख है मुझे कि इतनी देर से आयी हूँ लेकिन इससे ये भी है कि जो नितांतता
से परमेश्वर को चाहते हैं, इस वक्त यही बैठे हये हैं। ऐसे तो हमारा टाइम इधर -उधर बहुत बित जाता है। लेकिन इन्होंने कहा भी था कि नौ बजे रामायण खत्म होगी तभी लोग आयेंगे। तब मैंने कहा कि, जो रामायण को देखना चाहते वो रामायण देखें और जो अपने को जानना चाहते हैं वो आयें और ऐसा ही हुआ, कि आप इतनी बड़ी तादाद में आये हैं। और देख कर बहुत आनन्द आया| इतने लोग सत्य को खोज रहे हैं और परमात्मा को खोज रहे हैं। आप सब को अनन्त आशीर्वाद! ज्यादा से ज्यादा दस-पन्द्रह मिनिट लगेंगे। जब आपने इतनी सबूरी दिखायी है, तो दस-पन्द्रह मिनिट और आप लोग आराम से बैठिये। बहुत साधी, सरल बात है। उसमें कोई मेहनत करने की जरूरत नहीं। सर के बल खड़े होने की जरूरत नहीं । आज यहीं तक बताया हुआ है और सोलह तारीख को मैं और भी चीजें बताऊंगी आप लोगों को। लेकिन लेफ्ट हैंड आप मेरी ओर करें । मैं लेफ्ट और राइट कहूँगी, क्योंकि हिंदी में एक कहते हैं, पंजाबी में तो लेफ्ट हाथ मेरी ओर दुसरा कहते हैं, मराठी में तिसरा कहते हैं, तो चलिये अंग्रेजी ही सही । लेफ्ट और राइट। करें। क्योंकि ये हाथ ये बताता है, कि आपकी इच्छा है कि आप आत्मसाक्षात्कार चाहते हैं। ये इच्छाशक्ति का प्रतीक हैं। इसलिये आपकी इच्छा ये है कि आप आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त होना चाहते हैं। और दूसरा राइट हैंड जो है आपका ये क्रियाशक्ति है। इसलिये इस शक्ति से आप अलग अलग चक्रों को छू सकते हैं। उनको भी मदद करते हैं, कि वो कुण्डलिनी का प्रवाह ठीक करें। इसलिये हम ये कर रहे हैं। वैसे तो जरूरत है नहीं आप लोगों के लिये| लेकिन इसलिये कर रहे हैं कि आप लोगों को भी इसका थोड़ा बहुत अध्यात्म हो जायें। तो सबसे पहले लेफ्ट हैंड आप हमारी ओर करेंगे सब लोग और राइट हैंड आप अपने हृदय पे रखें। अपने हृदय में आत्मा का वास है। आत्मा जो है ये परमात्मा का प्रतिबिंब है और कुण्डलिनी जो है ये आदिशक्ति का माने परमात्मा के इच्छाशक्ति का प्रतिबिंब है | इन दोनों का योग होना ही सहजयोग है। और वो ही जिवंत क्रिया जैसे कि एक बीज को आप जमिन में, इस माँ के उदर में छोड़ते ही उसको अंकुरित कर सकते हैं । उसी प्रकार ये कुण्डलिनी भी एक जिवंत क्रिया के स्वरूप जागृत है। इसमें कोई तकलीफ़ नहीं होती। कोई परेशानी नहीं होती। इसके लिये आप पैसा नहीं दे सकते। ये बताईये जब आप खेती करते हैं तो इस पृथ्वी को कितना पैसा देते हैं। क्या वो समझती है रूपया, पैसा। या वो बीज जो होता है वो समझता है, कि इतना रूपया लेना चाहिये भाई, अंकुरित होने का! कुछ भी नहीं। इसी प्रकार ये दोनों भी कार्य बुद्धि से परे जिवंत क्रिया में होते है। आप से मैं ये कहँगी कि आप अपना हाथ हृदय पे रखिये और उसके बाद अपना हाथ, सब हम काम लेफ्ट साइड में करेंगे, तो अपना राइट हैंड पेट के उपरी हिस्से में रखिये। ये हमारे गुरु तत्त्व है। गुरु तत्त्व माने हमारे अन्दर जो बड़े बड़े सद्गुरुओं ने काम किये हैं, ये चक्र विशेष रूप से बनाया हआ है, कि ये चक्र जागृति से हम अपने गुरु को जाने। क्योंकि जब प्रकाश आ जाता है, तो हम अपने ही गुरु हो जाते हैं। और ये सारे सद्गुरुओं की कृपा से बना हुआ है। ये के। ये चक्र शुद्ध इच्छा का या शुद्ध विद्या का है। शुद्ध इच्छा तो कुण्डलिनी की शक्ति है। ये इच्छा ऐसी है कि जो शुद्ध है। माने ये कि बाकि इच्छायें जो हैं वो तृप्त हो जाती है, पर तो भी इच्छा खत्म नहीं होती। एक से दुसरे, दुसरे गुरु तत्त्व होता है। इसके बाद आप यही राइट हैंड पेट के निचले हिस्से में रखें, लेफ्ट हैंड साइड को दबा
ये से तिसरे ऐसी इच्छा चलती रहती है। पर समाधान नहीं होता। शुद्ध इच्छा है। शुद्ध इच्छा क्या है कि हम उस परमात्मा से एकाकारिता साध्य करें। उससे योग घटित हो। उसकी जो शक्ति चारों तरफ फैली है उससे एकाकारिता लायें। ये आपकी शुद्ध इच्छा है, जो सुप्तावस्था में है। उसके बारे में शायद आप जानते भी नहीं । हो सकता है, पहले मैं घर बना लूँ, फिर एक मोटर खरीद लँ, फिर ये करूँ, वो करूँ, पर ये शुद्ध इच्छायें नहीं है। क्योंकि एक की दूसरे पर घूमती है। लेकिन जो असल में आपके अन्दर जिसके बारे आप जानते भी नहीं है, एक ही इच्छा है, कि इस सर्वव्यापी परमचैतन्य की कलाकार से हम एकाकारिता साध्य करें। यही असली, शुद्ध इच्छा है। और इसको प्राप्त करते ही आप एकदम निर्मल हो जाते हैं। और यही चीज़ है जो गुरुओं ने कहा हुआ है, कि आप निर्मल हो जायें। शुद्ध हो जायें । इस इच्छा की शक्ति से हम कुण्डलिनी है और इसके पुण्यप्रताप से जो हमारी नस नस में शक्ति जागृत होती है, और जिससे हम शुद्ध विद्या जानते हैं, अशुद्ध विद्या नहीं। अशुद्ध विद्या माने जादूटोना करना, किसी को मंत्रमुग्ध करना और मेस्मराइज कर देना वगैरा ये अशुद्ध विद्या है। क्योंकि इसमें भूतविद्या, प्रेतविद्या, श्मशान विद्या आदि बहुत गंदी चीज़ों का लोग उपयोग करते हैं। लेकिन जब शुद्ध विद्या आपको मिलती है, तो आपके अन्दर नस नस में बैठती है, आप जानते हैं। आप अपने पाँचो उंगलि और छः और सात चक्रों में जान सकेंगे कि ये तो आपकी मानसपुत्री है, कि आपके मन में ... .(अस्पष्ट) है कौनसा चक्र पकड़ रहा है, और आपका राइट हैंड है उससे भी आप जान सकेंगे कि आपकी शारीरिक और आपकी बौद्धिक कौनसी तकलीफ़ है। इसी तरह से यहाँ भी सात चक्र हैं, यहाँ भी सात है। आपकी उंगलियों पे आप जान सकेंगे, कि आपको कौनसी तकलीफ़ है। मोहम्मद साहब ने कहा हुआ है कि जब कियामा आयेगा, जब आपका पुनरुत्थान का समय आयेगा, जब रिझरेक्शन का समय आयेगा, तब आपके हाथ बोलेंगे और आप उसी रात शहादत देंगे। कोई हम नयी बात थोडी कह रहे हैं। पुनरुत्थान का समय आयेगा यही हम बात कर रहे हैं। ये समय आया है। अब इस वक्त जो जो चाहें वो उस परम सत्य को जान भी सकते हैं और उससे पूर्णतया योग प्राप्त कर सकते हैं। पहले एकाकारिता उसके साक्षिवत संबंध हो जाता है। जब तक हमारा संबंध उसके साथ नहीं होता है, तब तक हम बिल्कुल बेकार है। जैसा इसका (माइक) संबंध हम मेन को नहीं लगायेंगे तब तक ये बेकार है। उसके बाद क्या होता है? वो मैं सोलह तारीख को पूरी तरह से समझा दूँगी। लेकिन हिंदुस्तान में आप सभी लोग जानते हैं, कि जो साधु-संत होते हैं, उनका परमात्मा से योग होता है। उसके लिये घरद्वार छोड़ना, उपास-तापास करना, दुनिया भर की आफ़त करना, या काषाय वस्त्र पहन कर के संन्यास लेना, ये किसी किसी चीज़ की जरूरत नहीं। ये सब अन्दर की अवस्था है। इसको हमें पाना है। तो ये आपकी शुद्ध विद्या है और शुद्ध विद्या आपको माननी होगी। मैं जबरदस्ती आप पर लादूंगी नहीं। फिर ये हाथ आप उपर की तरफ़ हिलायें। जो हम अपने लेफ्ट हैंड साइड में पेट के उपरी हिस्से में रखते हैं, जहाँ की गुरु तत्त्व है। फिर ये हाथ आप हृदय पे रखिये। फिर ये हाथ आप गर्दन और कंधा इसके बीच में जो कोण है उस पर पीछे तक मोड़ कर रखें। और राइट साइड में मोड़ें। आप कृपया सब लोग बैठ जायें। जमिन पर बहुत फायदा होता है। आप लोग सब बैठ जायें। बैठ जाईये। एक पाँच मिनिट की बात है। आराम से बैठिये।
अब गर्दन पे हाथ रखें और गर्दन इस तरफ़ मोड़ें। जिनके पैर में जूते हैं, जो कुर्सी पर बैठे हैं, जूते उतारें, तो अच्छा रहेगा। पृथ्वी तत्त्व से बहुत फायदा होता है। जो जमिन पर बैठे हैं वो भी जूते उतार लें। इधर गर्दन मोड़ लें। अब ये चक्र जब पकड़ता है, जब मनुष्य ये सोचता है कि 'मैंने ये पाप किया, मैंने ये पाप किया।' आखिर ऐसा सोचने से कोई अच्छा असर नहीं आ रहा। इससे मनुष्य इस चक्र को पकड़ लेता है और इससे अनेक तकलीफें होती है, सी बीमारियाँ हो जाती है। इसलिये किसी को भी ये नहीं सोचना इस समय कि मैं खराब हूँ, मैं पापी बहुत हूँ। बिल्कुल भी ऐसी बात नहीं सोचनी है। आखिर आप कोई भगवान तो है नहीं। आप मनुष्य है। अब इस हाथ को अपने माथे पे आडा रखे और उसको ऐसे दबायें, कपाल पे । माथा माने सर नहीं, माथा माने ये, कपाल। सामने का । इसे फोर हेड कहते हैं। इसे इस तरह दबायें जैसे सरदर्द होता है। अब इसको आप, हाथ को पीछे की ओर ले जायें और इस पर अपना सर रख दें और उपर की ओर देखें। अभी आज्ञा चक्र है। आज्ञा चक्र का जो सामने का हिस्सा है, ये है क्षमा करने का और जो पिछला हिस्सा है वो क्षमा माँगने का। अब हाथ को तानें। इसके बाद हम करेंगे । अभी में दिखा रही हूँ क्या करना होगा। इस हाथ को तान लीजिये और इस उंगलियों पीछे की तरफ़ कर के, इस जगह को जो हमारी तालू है, उसे सर झूका कर के इस तरह से बैठे। धीरे धीरे घड़ी की काँटे के जैसे घूमायें। बस इतना ही आपको करना होगा। अब सब लोग आँख बंद कर दे । चश्मे भी उतार दें। क्योंकि आपको आँख खोलने की कोई जरूरत नहीं । इसलिये आप सब लोग चश्मे उतार दें और आराम से बैठिये। पैर में जूते वरगैरा हो तो उतार दें। अब सब से पहले ये कहना है कि अपने प्रति प्रसन्न हों। अपने प्रति इस तरह से क्षमा करनी चाहिये । 'मैंने ये गलती की, मैंने वो गलती की।' इस तरह से ग्लानि के विचार अपने मन से भगा दें| ऐसी तो गलतियाँ होती ही रहती है। ऐसी गलतियाँ न करें तो आप मानव कैसे! इसके लिये अपने को कोई दोष न दें। प्रसन्नचित्त हो कर बैठे। अब सब लोग आँख बंद कर दें और लेफ्ट हैंड हमारी ओर करें और राइट हैंड अपने हृदय पे रखें । लेफ्ट हैंड अपने हृदय पे रख कर के जिस तरह से आप कॉम्प्यूटर से सवाल पूछते हैं, ऐसा एक बहुत महत्त्वपूर्ण मुझे एक सवाल करें और वो सवाल ये है कि, श्रीमाताजी, क्या मैं आत्मा हूँ?' ये सवाल आप तीन बार पूछिये। 'श्रीमाताजी, क्या मैं आत्मा हूँ?' सब लोग आँख बंद कर के पूर्ण शांति से अपने हृदय पे हाथ रख कर के, और लेफ्ट हैंड हमारी ओर कर के और कृपया पूछे, 'श्रीमाताजी, क्या मैं आत्मा हूँ?' तीन बार पूछिये। आपको गर्दन हिलाने की जरूरत नहीं, आपको शरीर हिलाने की जरूरत नहीं है। बिल्कुल शांतिपूर्वक पूछिये। अब जब आप आत्मा हो गये तो आप अपने गुरु भी हा जाते हैं। क्योंकि आत्मा के प्रकाश में हम स्वयं ही अपना चालन कर सकते हैं। अपना राइट हैंड सर के उपरी हिस्से में रख कर के लेफ्ट हैंड हमारी ओर करें और उसे दबा दें। और यहाँ पर आप पेट को दबा कर के लेफ्ट हैंड साइड में एक दूसरा सवाल पूछे, 'श्रीमाताजी, क्या मैं स्वयं का गुरु हूँ?' तीन मर्तबा ये सवाल पूछिये। अब अपना राइट हैंड अपने ........(अस्पष्ट) नीचले हिस्से में रखे। मैंने आप से पहले ही कहा है कि मैं आप पर शुद्ध विद्या लाद नहीं सकती। जिसे बोध कहते हैं। लादा नहीं जा सकता। इसलिये आपको कहना होगा, 'श्रीमाताजी, मुझे आप कृपया शुद्ध विद्या दीजिये।' ये छ: मर्तबा आप कहिये। श्रीमाताजी, मुझे आप कृपया शुद्ध विद्या दीजिये।' इस वक्त औरों की बात नहीं सोचनी है। इस वक्त हमें अपने को देखना है। दूसरों को नहीं। ये छः मर्तबा कहिये । कारण ये चक्र, इस ০
में छ: पंखुड़ियाँ हैं। इसलिये आप कृपया छ: मर्तबा कहिये। शुद्ध विद्या को माँगते ही कुण्डलिनी में हलचल शुरू हो जाती है। और कुण्डलिनी उपर की ओर उठने लग गयी| इसलिये हमें चाहिये की ऊपर की चक्रों में उसकी मदद करें, कि वो आसानी से उपर की ओर सरकें । इसलिये राइट हैंड पेट के उपरी हिस्से में रखिये और उपरी हिस्से में रख कर के, और दबायें लेफ्ट हैंड साइड को। यहाँ आपको पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कहना होगा, इस चक्र को खोलने के लिये, 'श्रीमाताजी, मैं स्वयं का गुरु हूँ।' और क्योंकि दस गुरुतत्त्व हैं इसलिये इसको दस बार कहिये। 'श्रीमाताजी, मैं स्वयं का गुरु हूँ।' पूर्ण आत्मविश्वास के साथ। इस राइट हैंड को आप अपने हृदय पे रखिये । लेकिन ध्यान दीजिये कि ये सब से महत्त्वपूर्ण चक्र भी है और प्रश्न भी है और इसका उत्तर आपको देना है। पूर्ण आत्मविश्वास के साथ। इसको हृदय पे रखिये और आप कहिये, पूर्ण आत्मविश्वास के साथ, 'श्रीमाताजी, मैं आत्मा हूँ।' बारह बार। 'श्रीमाताजी, मैं आत्मा हूँ।' आपको मैंने पहले भी कहा कि आप अपने प्रति प्रसन्न हो जायें । क्योंकि परम चैतन्य जो है, ये शांति, दया और आनन्द के सागर है । लेकिन सब से अधिक लोग क्षमा के कारण है, इसलिये आपने कोई भी गलति की हो, तो वो इतनी शक्तिशाली क्षमा की शक्ति रखते हैं कि वो अपने सारे दोषों को बिल्कुल पूरी तरह से अपने अन्दर नष्ट कर देते हैं। इसलिये आप अपने प्रति प्रसन्नचित्त हो कर रहें। और अपना राइट हैंड गर्दन और कंधे के बीच में जो कोण है उसपे सामने से रखे और गर्दन को राइट साइड में घूमा कर सोलह मर्तबा, पूर्ण आत्मविश्वास के साथ 'श्रीमाताजी , मैं दोषी नहीं हूँ।' सोलह मर्तबा कहें। पूर्ण विश्वास के साथ, कृपया कहें, कि 'श्रीमाताजी, मैं दोषी नहीं हूँ।' आदमी का यहीं चक्र सब से ज्यादा पकड़ रहा है। न जानें क्यों आपने यही सिखाया है कि आप हमेशा अपने पे दोष लेते हैं। जो कुछ भी आप हैं, उसको कुण्डलिनी जो आपकी माँ, आपकी अपनी, खुद, नीजी, वैयक्तिक आपकी माँ है। उसको जानने दीजिये। आप क्यों अपना न्याय करते हैं? आप अपनी गलती क्यों स्वीकार रहे हैं। उसको जानने दीजिये। वो सब कुछ आपके बारे में जानती है। उसी को तय करने दीजिये। अब अपना राइट हैंड कपाल पे दोनों तरफ़ दबा के पकड़िये। और यहाँ आपको कहना होगा, कि 'श्रीमाताजी, हमने सबको एकसाथ क्षमा कर दिया। अब बहुत से लोग कहते हैं, कि बड़ा मुश्किल हैं क्षमा करना। लेकिन आपको ये बताना चाहती हूँ, कि आप क्षमा करें या न करें, ये दोनों ही भ्रम है। लेकिन अगर आप क्षमा नहीं करते हैं, तो आप दूसरों के हाथ खेलते हैं। इसलिये सब को क्षमा कर दीजिये। कृपया आप सब को क्षमा कीजिये। मन से, इसके बाद सवाल नहीं। हृदय से एकसाथ कह दीजिये, एक एक का नाम गिनने की जरूरत नहीं, किसने क्या किया ये जानने की जरूरत नहीं, सिर्फ इतना कहिये कि, 'श्रीमाताजी, हमने सबको एकसाथ क्षमा कर दिया है। पूर्ण हृदय से। अब ये हाथ आप सर के पिछे हिस्से में ले जायें। और उस पर अपना सर पूरी तरह से झेलें। और इसके बाद आप अपने समाधान के लिये, अपने बारे में ऐसा कहें कि, 'हे परम चैतन्य, अगर हमसे कोई गलति ह्यी हो, तो आप हमें क्षमा कर दीजिये।' लेकिन इस वक्त आप अपनी गलतियाँ न गिनते बैठे। कृपया अपने पे दोष न लेते हये स्वच्छ हृदय से कहें, कि हमारी जो भी गलतियाँ ह्यी हों, आप हमें क्षमा कीजिये। अब आपके साथ पूरी तरह से पा लें और तान कर के इसका दूसरा हिस्सा अपने तालू पे रख के लेकिन सर जरूर झूका लें। गर्दन को झूका के, उसको बराबर तालू पे रख के और आप उसे घूमाईये। सात मर्तबा आप इसे घूमा कर, धीरे धीरे, घड़ी के काँटे जैसे
लेकिन फिर यही बात है, कि मैं आप पर आत्मसाक्षात्कार लाद नहीं सकती। मैं जबरदस्ती नहीं कर सकती। मुझे आपके स्वतंत्रता का मान है। इसलिये आप अपनी स्वतंत्रता में कहें, सात मर्तबा, 'श्रीमाताजी, मुझे आप कृपया आत्मसाक्षात्कार दीजिये। ' ऐसा आप सात मर्तबा कह के और अपनी तालू को घूमायें। सर नीचे झुका के सात बार। अब मैं प्रणव फूँकूंगी। इसलिये आप सर झुका लें और कार्य हो जायेगा। (माताजी माइक में फँक रही है) अब हाथ नीचे। धीरे धीरे आँख खोले। अब दोनों हाथ मेरी ओर करिये। अब अपना राइट हैंड मेरी ओर ऐसे रखे। राइट हैंड। और गर्दन झुका कर के, और लेफ्ट हैंड से देखें कि आपके तालू भाग से जहाँ आपकी होती थी बचपन में, वहाँ से ठंडी ठंडी हवा आ रही है कि नहीं। और अगर गर्म आ रही है तो कोई हर्ज नहीं। देखिये गर्म या ठंडी। हवा आप ही के तालू में से आनी चाहिये। आप ही को अपना पता होना होगा । मेरे कहने से नहीं होने वाला। अब लेफ्ट हैंड मेरी ओर करें। अब सर झुकायें और फिर से देखें। हाथ उपर रखना चाहिये। ये नहीं कि उसको चिपका के रखें, अधांतरी। देखिये, ठंडी हवा आ रही है कि नहीं । राइट हैंड मेरी ओर और सर झुका के देखिये, कि ठंडी हवा आ रही है कि नहीं। किसी किसी को बहुत जोर से आती है। अब दोनों हाथ आकाश की ओर कर के गर्दन पीछे करें और एक प्रश्न करें कि, 'श्रीमाताजी, क्या यही परम चैतन्य है?' 'श्रीमाताजी, क्या यही परमात्मा का प्रेम है?' ये प्रश्न तीन बार मुझे करें आप। कृपया। अब हाथ नीचे ले लें। अब दोनों हाथ मेरी ओर करें। धीरे धीरे आँखें खोले । अब निर्विचार हो जायें । बहुत एकदम से शांति लगेगी और ऐसा लगेगा कि आप बिल्कुल पूरी तरह से रिलॅक्स हो गये। अब कुछ कुछ लोगों में नीचे से भी हवा आ सकती है। उनको चाहिये, कि हाथ उपर कर के इस तरह से बैठें। किसी को राइट हैंड में आ रही हो। किसी को राइट हैंड में आ रही हैं लेफ्ट में हैंड में नहीं आ रही है, तो सब लोग ऐसा करें कि लेफ्ट हैंड हमारी ओर करें और राइट हैंड जमीन की ओर करें। राइट हैंड में आ रही होगी, तो वो लेफ्ट हैंड हमारी ओर करें और राइट हैंड जमीन पर रखें। किसी किसी के हाथ में आ रही होगी, सर में नहीं आ रही होगी। तो वो ऐसा कहें कि, "श्रीमाताजी, आप लोग ऐसे होंगे जिनकी कुलदेवता होगी। किसी किसी को मानते होगे। उनको हमारे सर में आयें। इसी प्रकार कुछ ये चाहिये, कि पूछे 'श्रीमाताजी, क्या आप कुलदेवता हैं?' आप किसी गुरु को मानते हैं, नानक साहब को मानते हैं, जो असली सद्गुरु हैं। पूछे 'श्रीमाताजी, क्या आप नानकसाहब हैं?' महावीर हो तो, महावीर के लिये पूछे, दत्त के लिये पूछें। हमें तो कोई ड्र नहीं। आप हमसे पूछे तीन बार। अब जिनके लेफ्ट हैंड में आती है और राइट हैंड में नहीं आती, वो राइट हैंड हमारी ओर करें। जिनके लेफ्ट हैंड में आती है और राइट हैंड में नहीं आती, वो राइट हैंड हमारी ओर करें । माने जो नहीं आती वो मेरी ओर करें। और लेफ्ट हैंड जो है उसे उपर की तरफ़। इस तरह। पीछे। एक कवच लेना होता है। क्योंकि माँ का आँचल हैं| लेफ्ट हैंड हमारी ओर करें। इसलिये एक बार, आपके पार होने के बाद, कुण्डलिनी के जागरण के बाद कोई ऐसी शक्ति आपको सता नहीं सकती। तो रोज सोने से पहले और सबेरे बाहर जाने से पहले आप ले सकते हैं। तो लेफ्ट हैंड हमारी ओर करिये। और राइट हैंड उठा कर के धीरे धीरे इधर लायें। एक, वापस ले जा कर के दो, फिर वापस ले जा कर के तीन, उसके बाद फिर चार। ये कवच है। चार, ये पाँच और ये छः और ये सात। सात मर्तबा करने से साढ़े तीन पूर्ण मंडल हो जाते हैं । कुण्डलिनी देखिये साढ़े तीन कुण्डल हैं। अब कुण्डलिनी को कैसे उठाना है? अब बैठे बैठे लेफ्ट हैंड हमारी ओर करें । इस तरह से। लेफ्ट हैंड, ऐसे। दिखायी दे रहा है। कुण्डलिनी त्रिकोणाकार अस्थि में हैं। इस तरह से रखें और राइट हैंड को उसके उपर रखें। इस तरह से। लपेटते हुये। लेफ्ट हैंड सीधा रखें, राइट हैंड लपेटते चलें। लपेटते लपेटते गर्दन थोडा उपर कर के एक गाँठ बाँध लें। ये कुण्डलिनी की गाँठ है। फिर दुसरा हाथ। इसे इस तरह से लेफ्ट हैंड पे रखें और राइट हैंड उस पे लपेटते ह्ये फिर दूसरी बार उठाईये। उठाते उठाते, गर्दन पीछे की ओर ले जा कर के इसे दूसरी बार बाँधें। अब तीसरी बार तीन गाँठ बांधिये। ऐसे ही हाथ रखते हये आप चलते ही जाईये। ऐसे बराबर और फिर गर्दन को पीछे ले जा कर के और फिर एक गाँठ, फिर एक दूसरी तरफ़ और फिर एक तिसरी तरफ़। आपने बाँध दिया। अब हाथ मेरी ओर करें। अब जिन लोगों के हाथ में से ठंडक आयी हों या जिन लोगों को सर में ठंडक महसूस हयी हों ऐसे सब लोग दोनों हाथ उपर करें। आप सब को मेरा प्रणाम ! ये नोएडा भी क्या चीज़ है पता नहीं। जमूना जी के किनारे, आप सभी के सभी पार हो गये। इसके बाद गड़बड़ करने की जरूरत नहीं। शांतिपूर्वक रहें। क्योंकि कहा गया है कि, 'मस्त हये फिर क्या बोले।' तो मस्ती में बैठे रहें। अपना मज़ा उठायें । और हम चाहेंगे थोड़ा रिलीफ़ हो जायें । हम भी बहुत दिन बाद आयें हैं भारत में, अगर आप इज़ाजत दें तो थोड़ा हम भी म्यूज़िक सुनना चाहते हैं। आप लोग शांतिपूर्वक बैठे रहें। और विचार न करें। आपस में बातचित न करें, विचार न करें | किसी किसी को नहीं भी हआ तो भी चिंता की कोई बात नहीं।