Public Program, Parmatma ko yaad karne

Public Program, Parmatma ko yaad karne 1989

Location
Talk duration
105'
Category
Public Program
Spoken Languages
Hindi
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Current language: Hindi. Talks available in: Hindi

The talk is also available in: English

14 मार्च 1989

Public Program

Noida (भारत)

Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft

सत्य को खोजने वाले आप सब साधको को हमारा नमस्कार। कल जैसे मैंने आप से कहा था कि सत्य है अपनी जगह, उसे हम बदल नहीं सकते और न हीं हमारे बुद्धि से हम उसे जान सकते हैं। यह बुद्धि से परे, जो सत्य है वो परम चैतन्य के रूप से चारो तरफ कार्यान्वित है कार्य करता है। ऐसी बात तो अनेकों ने कही और आपने भी सुनी हैं लेकिन आज तक किसीको प्रचीती नहीं आई, उसका बोध नहीं हुआ, किसी ने उसे महसूस नहीं किया। उसका कारण एक था, के उसे जानने के लिए अपने नसों पर हमें एक सूक्ष्म स्थिति प्राप्त होनी चाहिए और वो सूक्ष्म स्थिति है आत्म-साक्षातकार जिसके बारे में हर एक धर्म संस्थापकारो ने, अवतर्णों ने और बड़े बड़े दृष्टा और सद्गुरूओ ने बातचीत की और हमसे कहा कि आप आत्म-साक्षातकार को पहले प्राप्त हो l लेकिन कैसे हो, क्या करें इसके मामले में बहुत धीरे-धीरे ये गुप्त बात कही गई क्योंकि आप जानते हैं कि संसार में कोई सी भी आधी-अधूरी बात ले करके लोग उसको पैसा बनाने का एक साधन बना लेते हैं l इसलिए ये शुद्ध विद्या के बारे में बहुत कम लोग जानते थे l राजा जनक के ज़माने में नचिकेता नाम के एक बहुत शंका से भरे हुए विद्यार्थी उनके पास आये और उनको ये समझ में नहीं आ रहा था कि ये राजा है, राजा जैसे रहता है, सब कपड़े, वस्त्र, अलंकार आदि सब इससे संपूर्ण, ऐसा ये राजा जनक विदेही क्यों कहलाया जाता है और सब इनके चरण धूली को अपने सर से क्यों लगाते हैं ? तो उनको इन्होंने कहा कि भई तुम मुझसे सब मांग लो, मैं आत्म-साक्षातकार नहीं दे सकता हूँ क्योंकि तुम बहुत शंका करते हो, ऐसे शंके वाले आद्मी को आत्म-साक्षातकार देना कठिन था l तो उन्होंने उनकी इतनी परिक्षा ली, इतनी परिक्षा ली, उनके ऊपर एक बार तल्वार अटका दी रात भर, कि किसी भी वक़्त गिर जाए और तुम सो और हर तरह की चीज़ों से उनकी इतनी परिक्षा लेने के बाद कहते हैं कि उन्होंने उन्हें आत्म-साक्षातकार प्रदान किया । इसी प्रकार हमने जाना कि बुद्ध को, महावीर आदि सब ने आत्म-साक्षातकार की खोज की और प्राप्त किया l लेकिन उस वक्त उन्होंने सोचा कि सब लोग बाहर भटके हुए हैं और गलत चीजों में ही भगवान को देख रहे हैं l जैसे कि उन्होंने कहा कि आप इन चक्रों में देवता हैं उनको आप जाने । उनकी बात जब चल पड़ी तो लोग बस कर्मकांड करने लग गए l तो इन दोनों ने ही ये बात शुरू की कि भई इसकी बात करने से कोई फायदा नहीं, गर आपको गर शहद को पाना है तो शहद ही की बात करो फूलों की बात से तो गरबर् हो रही हैं l तो उन्होंने कहा कि उस बात को अभी थोड़ी देर के लिए भुला दिया जाए सिर्फ ये कहें कि आप आत्म- साक्षातकार को प्राप्त हो और जब उन्होंने बहुत इस पर कहा तो लोग कहने लगे कि ये तो ईश्वर को मांनते ही नहीं थे, इनका अनीश्वरवाद था l किन्तु उस वक़्त ये समय ऐसा था कि उन्हें ये बात करनी पड़ी l पर बात बात ही रह जाती चाहे आप बात फूलों की करें या शहद की करें l जब तक आप स्वयं मधुकर नहीं हो जाते तब तक आप शहद तक नहीं पहुँच पाते - ये असलियत है l इसलिए आप सबको उस सूक्ष्म दशा में जाना चाहिए जहां पर आप इसका एहसास कर सकते हैं, इसको आप प्रतीत कर सकते हैं कि चारो तरफ आपके जो परम चैतन्य की दुनिया हैं और ये परम चैतन्य परमात्मा का प्यार चारो तरफ छाया हुआ अरु-रेणु हर जगह है l और ये प्यार हमें इसलिए नहीं जान पड़ता क्योंकि हम अन्धेरे के जाल में फंसे हुए हैं या अज्ञान का जाल हमारे अंदर इस तरह से घुस पड़ा है l एक अंधा कुछ देख नहीं सकता , उसी प्रकार हम भी जो सत्य है उसे जान नहीं पाते है l अभी तक जो कुछ भी सत्य के बारे में जाना है वो हमारा Relative सत्य है, माने केवल सत्य नहीं l इसका कारण यह है कि हम उस दशा में नहीं पहुंचे जिसे हम कहे सकते हैं कि यही एक सत्य है और सब लोग मिलकर कहेंगे कि यही एक सत्य है l आत्म-साक्षातकार करने के लिए पर्मात्मा ने हमारे अंदर बहुत सुंदर व्यवस्था दी हुई है जिसे हम कहे सकते हैं कि एक कुंडलिनी नाम की शक्ति हमारे अंदर स्थित है l यह त्रिकोणाकार अस्थी में सेक्रम में बसी हुई साढ़े तीन कुंडलों में है इसलिए इसको कुंडलिनी कहते हैं ,आप चाहे इसे कुछ भी कह दें l और ये पर्मात्मा का जो विशेष रूप माने उनकी जो शुद्ध इच्छा है, पर्मात्मा की जो इच्छा है उसके प्रतीक स्वरूप, माने आदि शक्ति प्रतीक स्वरूप प्रतिविंबित है , माने यहाँ पर जो आपको ये शक्ति दिखाई देती है , ये आपके अंदर भी प्रतिविंबित है। दूसरे, हमारे ह्रदय में बसे हुए आत्मा जो है वो भी पर्मात्मा का प्रतिविंब है l तो पर्मात्मा का प्रतिविंब तो हमारे अंदर आत्मा स्वरूप है और त्रिकोणाकार अस्ती में जो कुंडलिनी बसी है, ये उनकी इच्छा उसका प्रतिविंब है । जब ये इच्छा हमारे अंदर से छह चक्रों को भेदती हुई ब्रह्मरंध्र को भेदती है, माने हमारे सर में जो तालु भाग है उस तालु भाग को जब ये भेदती है, तब ये कह सकते है कि इस शक्ति का मिलन आत्मा-तत्व से होता हैl हालाकि आत्मा आपके ह्रदय में होता है किन्तु उसका पीठ, उसकी जगह तालु पर होती है l इसलिए जिस वक्त कुंडलिनी आपके उठ करके इस ब्रह्मरंध्र को भेदती है तो आपको आत्मा का ज्ञान हो जाता है। आत्मा के ज्ञान में एक तो आत्म का ज्ञान भी होता है माने आप अपने बारे में जानते हैं कि आप में क्या तकलिफे हैं, आप में क्या दोष हैं l जैसे कि ईसा ने कहा है कि आपका एक आखरी न्याय होने वाला है - last judgement; वो समय आज आया हुआ हैंl इसी को भी आप कह सकते हैं जैसे मुहम्मद साहब ने कहा है कि कियामा माने आपका रिसरेक्शन, वो भी समय यही है और इस समय आप स्वयं ही अपने को देख सकते है कि आपके अंदर क्या खराब है। गर किसी आदमी से कहा जाए कि तुम्हारे अंदर बहुत अहंकार है तो वो आपको मार पीट डालेगा l लेकिन गर आप उस आदमी की कुंडलिनी जागरूत कर दें और उसको वो प्राप्त कर लें, तो खुद ही आके मुझसे कहेगा कि मां मेरा आज्ञा बड़ा पकड़ा है इसे ज़रा ठीक कर दीजिये माने मेरा अहंकार जो है बड़ा बढ़ गया है , इसे आप कम करें l वो इसी तरह से बात करता है l यही बात ईसा मसीह के बारह शिष्यों ने कहा था ; जब उनके अंदर वो कहते हैं कि cool breeze of the holy ghost उन्हें आने लगते हैं l holy ghost माने ही कुंडलिनी है l तो वो जब बाते करने लग गयें, तो वो चक्रों की बात करने लग गयें l तो उन चक्रों की बात को सुन करके दूसरों ने सोचा कि यह क्या पागल हो गएँ है ? यह कौन सी भाषा बोल रहें है जो हमारे समझ में नहीं आए? चक्रों की भाषा आप तब ही बोल सकते हैं जब आपमे ज्ञान हो और उस ज्ञान के लिए आपको पहले आत्म-साक्षातकार को प्राप्त होना है l और इस योग को आपको पूरी तरह से ऐसा जमा लेना है कि फिर ये न हिले l इतने स्थिति में चले जाएं जहाँ ये हिल न पाएं l तब कहना चाहिए कि आपने आत्म-साक्षातकार को पूर्णत्व से पा लिया। कल भी बहुत से लोग जैसे की पार हो गए, कुंडलिनी आ गई, तो बीच में एक ब्रह्मनाडी है उससे बिल्कुल एक जैसे बाल के बराबर उसकी शक्ति ऊपर उठती है क्योंकि बहुत सारे ऐसे तन्तु हैं जिससे ये कुंडलिनी बनी है l उसका एक तन्तु मात्र इस ब्रह्मनाडी से पहले उठता है और ब्रह्मरंद्र को भेदने के बाद वो धीरे, धीरे, धीरे, धीरे सब चीज़ को और भी ढीला करता है, रिलैक्स करता है, उससे आपके चक्र भी खुलते हैं और और कुंडलिनी के सूत्र ऊपर चड़ते हैं, ये वास्तविकता हैं l किसी किसी में, जो कि बहुत आदमी संतुलन में है, बैलेंस्ड है, एक दम से कुंडलिनी काफ़ी उसके तन्तु ऊपर चड़ जाते हैं और उसका ब्रह्मरंद्र पूरी तरह से खुल जाता है। जो सत्य है और जो वास्तविक है वो आपको सुन लेना चाहिए और आप माने या न माने उसके आपको प्रचीति कम से कम देखनी चाहिए। शुरुवात में, सहज योग के शुरुवात में बड़ी अड़चने आई क्योंकि सत्य कहना कोई आसान चीज नहीं है कोई भी आद्मी सत्य को बर्दाश्त नहीं करता है l जैसे कि बहुत से झूठे गुरू संसार में उस जमाने में आए और लोगों को मैंने ऐसे सोलह लोगों के नाम और छह ऐसी औरते उनके नाम पूरे नाम सहित बताया तो सब घबरा गये कि वो मुझे कोई न कोई आके बंदूक से मार देंगे l लेकिन आज तक कोई किसी की हिम्मत नहीं पड़ी और न हीं किसी ने मेरे ऊपर केस की इस मामले में l तो इसका मतलब है कि ये जो लोग हैं झूठे लोग हैं, वो खुद ही डरपोक हैं और वो घबडाते हैं कि सत्य जो है वो एक बार संसार में आ जाएगा तो हमारा पेट कैसे भरेगा ? आप लोगों से सहज योग के बारे में इतना कहना है कि ये एक जीवन्त क्रिया है, और जैसे एक बीज आप पृथ्वी तत्व में डालने से उसको अंकुरित करते हैं, वैसे ही आपके अंदर की कुंडलिनी, स-ह-ज माने आपके साथ जन्मी हुई वो कुंडलिनी जागरूत हो करके योग को प्राप्त करती है और ये सहज योग ये आपका जन्म-सिद्ध अधिकार हैl तब फिर आपके अंदर स्व-तंत्र आता हैl स्व माने ये की स्व माने आपके आत्मा और उसका तंत्र माने उसका मेकैनिजम काम करने लग जाता है l जो हम आज स्वतंत्रता की बात कर रहे हैं ये अस्ली स्वतंत्रता नहीं, ये तो थोड़ी देर की ऐसा लगता है कि हम स्वतंत्र हो गए क्योंकि अगर ये अंग्रेज़ नहीं जाते तो सहज योग भी कहां से होता ? ये अंग्रेज़ों के जाने से सहज योग तो ठीक चल पड़ा लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हम पूरी तरह से स्वतंत्र हो गए क्योंकि हमने अपने स्व का तंत्र जाना नहीं l तो इस स्वधर्म को जानने के लिए आत्म-साक्षातकार होना चाहिएl बड़े बड़े संतों ने इस पर कहा हुआ है । शिवाजी महाराज जो कि वास्तविक में एक बड़े भारी संत ही थे क्योंकि वो भी एक आत्म-साक्षातकारी पुरुष थे l उन्होंने कहा के स्वधर्म रागवाओ । इससे आगे आपको क्या करना है - स्वधर्म का जागरण l स्वधर्म का जागरण करे बगैर कुछ नहीं हो सकता लेकिन लोग करने क्या लग गए कि उस चीज़ को छोड़ करके दूसरी चीज़ करने लगे । हर धर्म में ये लिखा है कि आप उस अविनाशी तत्व को प्राप्त करें l ऐसा कोई धर्म नहीं, जिसने ये कहा है कि आप बस इधर उधर लड़ाई जगड़ा करो, इसकी गर्दन काटो, उसकी गर्दन काटो या बड़े बड़े प्रवचन करो, लेक्चर दो, इस तरह कोई भी धर्म में नहीं लिखा l उल्टे तो आदि शंकराचार्य ने कहा है कि शब्द जालम से छुट्टी पाओ l ये शब्द जालम है सारा l इसलिए जो बैठ करके आपको बड़े बड़े प्रवचन सुनाते हैं और बड़े बड़े कथानक सुनाते हैं इससे हमारी कुंडलिनी का जागरण नहीं हो सकता l उल्टे जैसे कि कबीर दास जी ने कहा है कि पढ़ी पढ़ी पंडित मूरख भए, वो हो जाता हैl दुनिया भर की बेकार की चीज़े खोपडी में भर जाने से वहाँ का जो सत्व है, वही खत्म हो जाता है । इसका मतलब ये नहीं कि आपने पढ़ा है वो सब बेकार ही है, पर उसका चयन, उसको जानना कि कौन सी चीज़ पढ़नी, कौन सी चीज़ नहीं पढ़नी l विलायत में तो मैं देखती हूँ, जहां जाती हूँ कि वहां तो जैसे गुरु शौपिंग होता है l कहेंगे देखो इस गुरु से आप मिले हैं क्या - पार्टीज में, हम तो वहां बिल्कुल चुप चाप खड़े होते हैं वो तो है महंगा न पर है अच्छा, मानें क्या चीज़ है भगवान जाने l कोई महंगा होगा, कोई जरा सस्ता होगा; गुरु के यही वहाँ पे वर्णन होते हैं कि कौन कितना महंगा है और कौन कितना सस्ता । क्या गुरु को भी गर आप खरीद ले तो वो आपका गुरु कैसे होगा ? जो आप गर गुरु को खरीदना जानते हैं तो फिर दुनिया में कोई चीज़ ऐसी रही ही नहीं गई कि जो कोई महान हो, विशाल हो , आप से ऊंची हो सके । पर जब आप इस चीज़ को प्राप्त करते हैं तब आप स्वयम ही गुरु हो जाते हैं । मैं आज गुरु तत्व के लिए इसलिए कह रही हूँ क्योंकि कल नाभी चक्र के बारे में कहा था उसके चारो तरफ हमारे गुरु तत्व हैं l और स्वाधिष्ठान चक्र जिसके बारे में मैंने कल बताया था, वो जैसे कि नाभी चक्र में से निकल करके उसकी एक डंठी चारो तरफ घूमती है और यह जो आपको हिस्सा दिखाई दे रहा है, इसको प्लावित करती है । ये स्वाधिष्ठान चक्र के बारे मैंने आपको कल बताया था कि दिल्ली वाले लोगों का सबसे ज्यादा स्वाधिष्ठान चक्र पकड़ता है और इसी वजह से उनके लिवर और उनको लिवर की खराबी हो जाती है , डाइबिटीज हो जाता है और उनको ब्लड कैंसर हो जाता है I उनको ब्लड प्रेशर हो जाता है, किडनी ट्रबल हो जाता है और इस तरह के नाना विद प्रकार हो करके अन्त में कभी-कभी ये सब चीज छूट भी गई तो हार्ट अटैक आ जाता है । यह व्यवस्था इसलिये होती है कि मनुष्य को पहले कुछ न कुछ परमात्मा चाहते इत्तला दे कि भई तू बहुत ज्यादा कर रहा है अब जरा कुछ कम कर l पर मनुष्य उसकी नोटिस नहीं लेता है l सरकारी नोटिस आये तो बहुत जल्दी सुन लेता है, पर शरीर की नोटिस को नहीं सुनता है कि मेरा शरीर अब नोटिस दे रहा है क्योंकि अतिकर्मी आदमी जो बहुत ज़्यादा सोचता है वो इस चक्र को इतना ज़्यादा इस्तमाल करता है कि अपने ब्रेन का जो ग्रे सेल है उसमें बदलने के लिए कि बाकि सब चीज़े उसकी जो है वो दूषित रह जाती है l और इसलिए जितने भी लोग प्लानिंग करते हैं, फ्यूचरिस्टिक हैं, और हर समय सोचते रहते हैं, उनकी ये सारी बीमारियां हो जाती हैं, ये मैंने आपसे कल सब बताया था । आज जो है मैं आपको गुरु चक्र के बारें में बताऊँगी कि जो गुरु तत्व हमारे इसको हम कह सकते हैं कि भवसागर है , इसमें जो गुरु तत्व हमारा खराब हो जाता है, तब भी बहुत परेशानियां हो जाती है I गलत गुरु के सामने सर झुकाना- किसी के सामने सर झुकाने की कोई ज़रूरत ही नहीं है l मुझे भी लोग पैर छूते हैं i भई मैंने तुमको क्या दिया, तुम मेरे क्यों पैर छू रहे हो? पर हम लोगो की आदत है , तू भी आया भईया तो ठीक है, तू भी आया भईया ठीक है, तू भी , सबको नमस्कार करते हैं i हिंदुस्तान में खास करते हैं I पता हुआ कि पहला वाला अभी जेल से छूट आया है, दूसरा वाला भी मर्डर करके आया है, तीसरा वाला रुपया पैसा लूट करके भाग आया है l हमारे पास तो यह अंदाज़ हो जाता है कि कौन असली, कौन नकली l पर गुरु तत्व में एक बात आप गांठ बाँध के रख ले, जो आदमी आपसे रुपये पैसे की बात करता है, वह आदमी गुरु कहलाने लायक नहीं l इसमें आप देखिये कि निन्यानवे फीसदी लोग आप उसमें से निकाल देखें l आपको एक हे भी ऐसा बिरला मिल जाएगा कि जो पैसे की बात शुरू में नहीं करेगा लेकिन बाद में करेगा ही, क्योंकि उनके पास कुछ है ही नहीं देने को l वो तो आपके नोच खसोट में लगे है l ये नहीं हुआ तो आपकी बीबी बच्चों में उनको इंटरस्ट होगा, या कुछ ऐसी वैसी चीज़े होंगी जिससे आप जान जायेंगे कि ये गुरू नहीं हो सकते l जिस आदमी का चरित्र ही इतना कलंकित है और जिसके मन में कोई भी शुद्ध विचार नहीं, ऐसे गंदे लोग गुरू कैसे हो सकते हैं ? ऐसा कहीं शास्त्र में लिखा है ? एक और मुझे पता है गुरू महाराज, उनके सारे शिष्यो को आजकल एपिलेप्सी की बिमारी हैं l उनका नाम भी अजीब सा है l वो पुना में थे l वो मैं कहती हूँ कि ब्राह्मणो का करदन काल है l सारे ब्राह्मण, उनके शिष्य हैं l अब सबकी आखे ऊपर चढ़ जाती हैं; हाथ पैर थरथराते हैं; हालत खराब, और छोटी उम्र में ही वो लोग बुड्ढे लगते हैं l उनके शिष्य आये, उन्होंने मुझसे कहा आपने करुणोपाय करुणोपाय गरुणोपाय सुना है क्या ? मैंने कहा नहीं भई कौन से शास्त्र में लिखा है यह सब ? कहने लगे हमारे गुरुजी कहते है ये सब l मैंने कहा अच्छा, आपके गुरुजी कहते थे तो कोई हवा से लटक पड़े ? क्या बात है कि क्या उनके लिए कोई शास्त्र का कोई मतलब नहीं ? किसी शास्त्र में भी तो यह बात लिखी होनी चाहिए कि ऐसे कोई उपाय होते हैं l यह आपने कहां से ढूंढ निकाले, और उपाय आपने खूब किए कि सारे लोग जो है उनके एपिलेप्सी की बीमारी आ गई l तो वो कुछ उनकी समझ में नहीं आए क्योंकि उनका धंदा था वो l तो वो चले गए, उनकी तो बात दुसरी हुई l लेकिन इस प्रकार के इतने विक्षिप्त लोग गुरू बन गए है और लोग जाकर उन्हीं के चरण छूते हैं , तो ये जो चरण छूने की जो बिमारी है पहले आप ये तै कर लें कि हम गर किसी के चरण नहीं छूते हैं, और तब गर गुरू हम से खुश है तब वो आ जाए l वो आपको अपना गुलाम बना लेगा l कैसी कैसी बातें आपको समझाएगा जिससे आपसे वाहवाह क्या बात है कुछ कहेगा कि तुम्हारे बाप का ऐसा हुआ तुम्हारे माँ का ऐसा हुआ l ये तो कोई भी बता सकता हैं l इसको मन कवड़ी कहते हैं l ये लोग मन की बात बता सकते हैं l एक तरह के ये भी पिशाच विद्या और गंदी विद्या करते हैं , मैली विद्या, और उससे वो भी ये सब काम करते हैं l उससे आप लोग अभिभूत हो जाते हैं l लेकिन समझ लीजिये, किसी ने आपसे बातें बताई भी तो उसमें क्या विशेष मिल गया ? उससे कोई आपके अंदर परिवर्तन आया ? या आपके अंदर आनंद आया ? या उससे कोई आपको सुख मिला ? आपको खुद सोचना चाहिए कि इससे कौन सा सुख मिला ? अभी हमारे पास ऐसे बहुत से ये गुरुओ के मार खाए हुए लोग आते हैं जिनके कि घर लुट गए, बच्चे बिगड़ गए, सब दुनिया बर्बाद हो गई l तो सबसे पहले आपको देखना चाहिए इनके शिष्य कैसे है ? उनकी आप पे कैसी है ? उनके शिष्य तो दुनिया भर के धंधे करते हैं l और कहने लगे बाबा ने मुझे अंगुठी दे दी l अरे भई फायदा क्या उस बाबा के अंगुठी का, गर आप ધંધો से नहीं बचते और डबल ही धंधे करते हैं ? तो हमने कहा कि गर आप इतने धंधे करते हैं तो ये बाबा के अंगुठी का फायदा क्या है? तो कहने लगे इसका एक फायदा है , कुछ भी करो कुछ नहीं होता l मैंने कहा वाह ! उसके बाद दो साल बाद हार्ट अटैक आ गया और वह चले गए सिधार गए अपने आप l सो इन चीज़ों के तरफ आपको अपनी बुद्धी थोड़ी सी तो भी लगानी चाहिए और सोचना चाहिए इससे हमें क्या प्राप्त हुआ ? फिर कोई कहेंगा कि चलो ये साधना करें, साधना करें, आज करी, दूसरे साल करी, तीसरे साल करी, चौथे साल साधना करते रहो l उससे फायदा क्या हुआ,? आपका क्रोध उससे ठीक नहीं हुआ, आपकी तबियत उससे ठीक नहीं हुई , उल्टे आप बिमार पड़ गए l तो फिर वो लोग कहते हैं कि देखो भई गुरू जो है वो थोड़ा सा आपको आशिर्वाद दे सकता है , पर आपके सारे कर्म तो नहीं खा सकता ? तो फिर ऐसे गुरू को पालने की क्या ज़रुरत है ? इस प्रकार आपका गुरू तत्व खराब हो जाता है और आपको आश्चर्य होगा कि बहुत से कैंसर के पेशेंट्स गुरू तत्व खराब होने से होता है l कम से कम जिन कैंसर के पेशेंट्स को मैंने ठीक किया है उसमें से कमसकम 80 फीसदी लोग गुरू के ही मातहत पाए गए l गुरू नहीं तो कोई भूतविद्या, नहीं तो कोई तांत्रिक, नहीं तो कोई इसी तरह का प्रकार l अब यह तो विच्क्रैफ्ट वगैरह तो अमेरिका में बहुत ही ज़्यादा चल पड़ा है l वो ही लोग कैंसर को पाते हैं l और इस कैंसर को भी ठीक करना बहुत आसान हो जाता है क्योंकि जब इस भूत विद्या से कोई ऐसा असर आता है, गर आपको यह मालूम है कि इस आदमी को उस चीज़ से हटाना कैसे, वो आदमी ठीक हो सकता है l तो कैंसर अगर आपको हुआ है तो सहज योग में आकर के ठीक है आप ठीक हो जाएगा l पर आप अभी ठीक हो जाइये जिससे कैंसर ही न हो आपको, वो बेहतर बात है l खासकर गुरु तत्व खराब होने से हमारा यहाँ पर जो ग्यारह एकादश रुद्र है, एक चक्र यहाँ है , वो पकड़ जाता है l और जब यह पकड़ जाता है तो समझ लेना चाहिए कि कैंसर की शुरुवात हो गई l अब आपको मैं बताती हूँ कैंसर कैसे होता है समझने की बात है l अब आप डॉक्टर हो या न डॉक्टर हो बहुत आसानी से समझ सकते है कि हमारे अंदर दो सिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम है – लेफ्ट और राइट और दोनों कार्यान्वित होती है l एक से लेफ्ट से शक्ति जाती है एक राइट से शक्ति जाती है l जब हम कोई काम को करना चाहते हैं जैसे हमें अपने ह्रदय के ठोके बढ़ाने हैं, तो हम दोड़ेंगे तो सिम्पथाटिक नर्वस सिस्टम से हम कर लेते हैं l पर जिस वक्त वो शांत होता है, और अपने नॉर्मल स्थिति में आता है, वो पैरा सिम्पथाटिक से आता है l वो भी (unclear); सो क्या होता है कि जब बहुत ज़्यादा हम इस्तमाल करने लगते हैं तो ये टूट जाता है l ये चक्र है बीच में ,ये टूट गया तो ये इधर बहने लग गया और इसको कहते हैं कि अपने आप ही चलने लग गया , क्योंकि इसका सम्बन्ध जिससे कंट्रोल करने का है वो ब्रेन जो है उससे सम्बन्ध ही टूट गया इस चक्र का l अब आपको तकलीफ होने लग गई कैंसर की, कैसे ? कि ये ऐसी आपकी, अब इसको कहते हैं वर्नरेबल , माने इस वक़्त आपकी तैयारी है कि आप कैंसर पा ले l कोई अति कर्मी आदमी हो उसे कैंसर हो सकता; कोई भी एक आदत का आदमी हो, उसे कैंसर हो सकता l कोई सी भी चीज़ से आप रगड़ खाते हो उससे कैंसर हो सकता है , वर्नरेबल l पर फिर लेफ्ट साइड से यही जो मैंने आप से कहा था कि अपने अंदर जो कुछ मरा हुआ है, जो भूत काल में हुआ है, शुरू से अनादि काल से, जब से यह सृष्टी बनी , तब से हमारे अंदर लेफ़्ट साइड में है l उसमें से अगर कोई चीज़ अंदर घुस आए तो वही कहते हैं कि शुरूआत करता है, ट्रिगर करता है l उसको डाक्टर लोग प्रोटीन 53 या प्रोटीन 58 कुछ भी नाम दीजिये नाम बस दे देते हैं l अब हमारे हिंदुस्तान में तो गुरूओं की बिमारी है l हर गाँव में जाओ तो वहाँ ये गुरू है तो वह गुरू l फिर काशी के गंडे, डोरे, तावीज, ये सब चलते हैं l हाथ में माला दे देगें, आप रख के बैठे रहिये l इसको रखने से विशुद्धि चक्र में माने आपके थ्रोट में हो सकता है l फिर मंत्र दे देते हैं l मंत्र देने से भी आपको कैंसर हो सकता है l जिस चीज का आपको मंत्र देंगे, समझ लीजिये आपको विशुद्धि चक्र का दिया है या नाभी का मंत्र दे दिया है, समझ लीजिये, और आपका विशुद्धि चक्र खराब है तो क्या फायदा नाभी के चक्र से l और दूसरी बात ऐसी भी है कि आप शिवजी का मंत्र दे देते हैं l शिव तो ह्रदय में रहते हैं l लेकिन आपका सम्बन्ध नहीं है और आप शिव शिव शिव कहने लगे जैसे कि कोई समझ लीजिये यहाँ पर Prime Minister साहब है तो आप जा करके और उनके नाम से पुकारना शुरु कर दे तो पुलिस आपको पकड़ लेती है l ऐसे ही शिव स्वय भी नाराज हो जाते हैं आप से l क्या वो आपकी जेब में बैठे हैं ? हर समय उनको परेशान करते रहते हो l तो आपका ह्रदय पकड़ जाएगा और सारे शिव भक्तों को हार्ट अटेक आता है l उसी तरह गुरू तत्व को जो लोग महाराष्ट्र में बहुत हैं, यहाँ ज़रा कम है गुरू तत्व; उसको जब वह गुरू महिमा पढ़ते हैं, गुरू का यह पढ़ते हैं, वह करते हैं तो आप पहचान लेंगे कि इनके वो पेट की तकलीफ़ है l आप कहिए आप गुरू को मानते हैं ? हाँ ! आप दत्तात्रेय को मानते हैं ? हाँ! आपको पेट की तकलीफ़ हैं ? हाँ ! जिस चीज़ पे आप इस तरह से लग जाते हैं उसी की आपको तकलीफ़ हो जाती हैं l अब हनुमान जी का यहां बड़ा ज़ोर है l वो भी अच्छी बात है, पर हनुमान जी कोई आसान नहीं है l हनुमान जी से तो अभी योग घटित हुआ नहीं आपका, और हनुमान जी का चालीसा पढ़ने से आपका राइट हार्ट पकड़ जाता है l श्री राम और सीता, हनुमान जी किसी का भी नाम लेने से राइट हार्ट पकड़ जाता है और उसकी वजह से आपको अस्थमा हो जाएगा, अस्थमा हो ही जाएगा यह मैं आपको बता दूँ l आप छूट नहीं सकते, क्योंकि आपका राइट हार्ट पकड़ जाता है l फिर इसी प्रकार के बहुत सी चीज़े हैं जिसको आप रक्खे रहते हैं पर इसमें एक और चक्र पकड़ता है वो है लेफ्ट विशुद्धि l क्योंकि मंत्र के कहने से जबकि आपका कनेक्शन नहीं है तो लेफ्ट विशुद्धि भी पकड़ जाता है l इसका साधारण एक उदहारण यह बात है - जब तक आपके फोन का गर कनेक्शन हीं नहीं हो, और आप फोन हीं घुमाते रहे, तो फोन ख़राब हो जाता है l उसका कनेक्शन होना बहुत जरूरी है l और जब तक यह कनेक्शन नहीं होता है, गर आप ऐसा ही द्राविडी प्राणायाम करते रहें तो आप इंसान है इतने नजाकत से और इतने प्रेम से पर्मात्मा ने आपको सँवारा है, बनाया है, वो नाज़ुक चीज़ है, उसे आप क्यों रगड़ रहें है ? फिर बहुत से गुरुओं का ये भी है कि तुम सोमवार करो , मंगल करो, बुध करो, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार , सब करो और रविवार को सारा पैसा लाके मुझे दे दो l खूब अच्छे से उपवास करो l भई ऐसे पर्मात्मा कैसे कह सकते है कि आप अपनी गर माँ से नाराज हो तो कहते हैं आज मैं खाना नहीं खाऊंगा, हो गया, सारा घर ख़राब हो जाता है l ये तो पर्मात्मा को नाराज़ करने का तरीका है कि मैं ये खाना नहीं खाऊंगा, मैं ये नहीं करुंगा, मेरा आज उपवास है l और उसमें भी उल्टापणा बहुत है l (unclear) की हद है l उल्टापणा ऐसा है कि जिस दिन जन्म होता है भगवान का, उसी दिन उपवास करो मानो उस दिन कोई सूतक हैं क्या, उस दिन कोई मर गया ? आपके घर में बच्चा पैदा होते तो आप लड्डू बांटते हैं और जब भगवान पैदा होते हैं तो आप भूखे मरते हैं l इसका कोई कारण होना चाहिए ना ? ये किसने पढ़ाया है पता नहीं; एक एक चीज़ ऐसी दिखाई देती है समझ में नहीं आता कि एक तो ऐसे ही अज्ञान और ऊपर से इस तरह का अज्ञान, उससे कितनी बीमारियां होती है l

एक महाशय थे, वो सहज योगी थे l वह हमारे पास आये, तो हम तो, हमारा प्रसाद तो चना है, तो उनको चना दिया गया, तो इधर उधर देखने लग गएl हमने कहा क्यों भई क्या बात है ? कहने लगे आज संकष्टी है, तो आज हम चना नहीं खाएंगे, आज उपवास हैं। अरे मैंने कहा, आप इतने बड़े गणपति भक्त हैं, आज वो संकष्टी जो कि उनका जन्म दिवस मनाया जाता है, उस दिन आप कुछ खाएंगे नहीं, यह किसने बताया आपसे ? नहीं कहने लगे , ऐसे ही हम ! तो मैंने कहा, आप आये किस सिलसिले में ? कहने लगे हमें प्रॉस्टेट ग्लैंड की तकलीफ़ हैं। मैंने कहा होगी ही, क्योंकि प्रॉस्टेट ग्लैंड तो श्री गणेश ही आपके सँभालते हैं तो आपको और क्या होने वाला ? प्रॉस्टेट ग्लैंड तो होयेगा ही l पर मैंने कहा, कि अब आप चना खाईए l आपको आश्चर्य होगा उन्होंने चना खाया, और मैंने कहा, अब कहो मैंने उपवास छोड़ दिया हैं गणेश जी मुझे क्षमा कर दो , अब आप जिस दिन पैदा होंगे उस दिन मै मोदक खाऊंगा l वापस गए , प्रॉस्टेट ही ठीक हो गया l इन छोटी छोटी बातों में हमने गलतियां करी , बड़ी छोटी छोटी बातों में। फिर हमारे यह दर्द होता है, कभी वह तकलीफ़ होती है, ये सब छोटी छोटी बातों में हम गलती करते गए , जिसने जो कहा वह करते गए l हम लोग इस क़द्र मिंधे लोग हैं, इस क़द्र हमारे अंदर अब भी ग़ुलामी का इतना बीज है कि कोई कुछ भी कह दे वो करने लगते हैं l कहने लगे कि साहब आज अब हमने हरा धनिया खाना छोड़ दिया, हमने कहा क्यों भई , हरा धनिया क्यों ? क्योंकि हमारी जीजी नहीं खाती हैं तो हमने सोचा हम भी नहीं खायें l हमने कहा भई वो नहीं खाती, वो कम अक्ल वाली हैं, जो आप ये अक्ल का काम कर रहे है , आपको छोड़ना हैं, तो कद्दु अद्धु छोड़ दो, पर ये हरा धनिया क्यों छोड़ते हैं ? सारा ज़ायका खाने का चला जाए l इस तरह के पागलपन की हमारे अंदर आहार और इस तरह के विचार हमारे अन्दर बहुत सारे भरे है l यह खाएं, रोज़ा रक्खेंगे, चालीस दिन का रोज़ा रक्खेंगे और पूरे समय तो खाने पीने की बात सोचते रहेंगे l क्या फ़ायदा ऐसे रोज़ा रखने से, उपवास करने से ( unclear word) हैं, तरह तरह की चीज़े हमारे अंदर इससे आ गई l धर्म का तत्व किसी भी धर्म में मुझे लगता है, कि जैसे एकदम पूरी तरह से ढक सा गया हैं, इतनी वाह्य की चीज़े हैं, इतनी गलत चीज़ें इसके अंदर आ गई, कि लोग अब कहने लग गयें, या फिर बच्चे कहते हैं, ये क्या धर्म-वर्म हैं, सब झूठ l झूठ नहीं हैं, धर्म हैं, हमारे अंदर जो दस धर्म हैं, ये हमारे भवसागर में हैं, और ये दस धर्म मनुष्च के हैं l जैसे कि कार्बन की चार वेलन्सीज होती हैं, ऐसे हमारी दस वेलन्सीज होती हैं l और जब ये ख़राब हो जाती हैं, तब ही हम मनुष्यता से गिरते जाते हैं, और हमारा शरीर भी फिर उससे खराब होता जाता है l अब जैसे कि नानक साहब ने कहा है, उनसे पहले मुहम्मद साहब ने कहा, कि आप शराब मत पियों l उस ज़माने में आप जानते हैं कि सिगरेट विगरेट नहीं थी, तो उन्होंने कहा भई शराब मत पियों, कोई मादक चीज मत पियों l उनके बाद वही नानक साहब बन के आये l उन्होंने कहा नहीं बाबा, शराब भी नहीं पियों, सिगरेट भी मत पियों l अब कहेंगे कि हाँ, पर उन्होंने तो ड्रग लेने के लिए मना नहीं किया था, तो अब ड्रग लेने में क्या हर्ज है ? मानें ये कि हम ढूंढते रहते हैं किस तरह से अपना सर्वनाश करें l अब उस वक़्त में ड्रग थे कहाँ ? अब मैं कहूं कि ड्रग मत पियों समझ लीजिए, तो आगे जाकर आप कहेंगे कि माता जी ने सिर्फ़ ड्रग को मना किया था, बाकी तो मना ही नहीं किया l लेकिन ये सोचना चाहिए कि कोई भी मादक चीज लेने से वो आपके चेतना पे असर करती है इसलिए उसको नहीं लेना चाहिए l ये लोग जो हमें बता गयें, वो हमारे भले के लिए और हमारे संतुलन के लिए l गर हमारे अंदर संतुलन नहीं आएगा तो कुंडलीनी कैसे जगेगी ? जब बीच में ही रुकावट हो जाएगी, तो कुंडलीनी कैसे जग सकती है ? और वो कैसे अंदर जा सकती ? तो उन्होंने कहा आप संतुलन में रहो l अब धर्म के कर्मकांड भी तो हजारों हैं l वो भी इतने व्यर्थ और इतने बेकार हैं कि कुछ पूछे नहीं l कोई मर गया तो, कोई पैदा हो गया तो, किसी की शादी हो गयी तो, दुनिया भर के कर्मकांडों में सब ने लपेट लिया हैं, और गर उसमे रहे तो उस किसी का अर्थ ही लगता नहीं l कोई अर्थपूर्ण चीज हो तो उसे करना चाहिए, निरर्थक कुछ न कुछ, क्योंकि हम लोग करते आये हैं, उसी ढंग से आज चलना चाहिए, या करना चाहिए , यह गलत बात है l फिर उसके ऊपर लोग निकलते हैं बड़े सुधारक, वो भी अंधे l वो क्या सुधारना करेंगे ? वो अपनी चीज निकाल लेते हैं, जैसे कि हिंदु धर्म में यह यह गलतिया हैं, तो आर्य धर्म, आर्य समाज निकला l आर्य समाज के लोगों से तो बापरे, उनसे आप बात करते करते पागल हो जाएंगे l ऐसा लगेगा कि उनसे बात करना छोड़ के समुन्दर में कूद पड़ें l इतने तो वो आर्ग्युमेंट करते हैं, इतने आर्ग्युमेंट करेंगे कि आप घबडा जाएंगे, वो प्रकाश है, वो फलाना है l अरे भई कुछ अंदर तो हो, बाहरी बाहर आप बोले जा रहें, बोले जा रहें l इस तरह की चीज़े हम रोज़ मर्रा अपने जीवन में देखते हैं l इसाई धर्म में भी इतनी गलतियां और इतनी गड़बड़ हैं कि जिसकी कोई हद नहीं l के जब देखते हैं तो लगता है बापरे ईसा मसीह ने क्या कहा और क्या हो गया l कैसे लोग ये आ गए हैं ईसा के नाम पर ? इनका कोई सम्बन्ध ही नहीं बनता है ईसा से l इसी प्रकार मुसल्मानों का हाल है, इसी प्रकार आप देखो तो सिखों का हाल है, इसी प्रकार महाबीर के फॉलोवर्स का है, और इसी प्रकार बुद्ध के फॉलोवर्स का है l सब एक से एक बढ़के अज्ञान में बढ़ते ही जा रहे हैं, बढ़ते ही जा रहे हैं, बढ़ते ही जा रहे हैं l अँधेरे में लड़ाई-झगड़ा तो होगा ही l इस अँधेरे को हटाने के लिए मैं कहती हूँ, आप पहले जाग्रति ले लो, आत्म-साक्षातकार को प्राप्त करो, फिर जानो कि तुम्हें क्या बता गए हैं, और तुमने क्या पाया हैं। मैं तो कहती हूँ, सभी बहुत ऊँचे लोग थे, लेकिन उनका तत्व जो है, वो ही छूट गया, और इतना विद्रूप रूप हो करके, हर आदमी बदनाम हैं, हर धर्म बदनाम हैं। गर आपको इसाईयों के बारे पूछना है, तो आप जाके ज्यूज लोगों से पूछें। तो ज्यूज बताएंगे कि इसाई कितने अधर्मी हैं, और ज्यूज के बारें मे पूछना हो, तो आप मुसल्मानों से पूछ लीजिये, तो बताएंगे कि देखिये कितने अधर्मी हैं। और मुसल्मानों के बारें मे पूछना हो, तो हिन्दुओ से पूछ लीजिये , बताएंगे महा अधर्मी हैं। और हिन्दुओ के बारें मे पूछना हो, तो और लोग जो हैं बुद्धधर्मी, वो बताएंगे कि ये बिल्कुल बेकार लोग हैं। जैन लोग तो सोचते हैं कि सभी लोग बिल्कुल बेकार हैं, हम ही एक विशेष रूप के हैं, क्योंकि हम मच्छर भी नहीं मारते हैं। अब ये क्या मैं मच्छर और मुर्गियों को रियलाजेशन देने वाली हूँ क्या? उनको बचा करके क्या करना है? अरे भई इंसान जो है, ये तो उत्क्रांति की चरम सीमा है, एपिटोम अफ इवलूशन, यही तो न पाएगा ये l बाकी सब चीज़ों का इतना महत्व करने की क्या ज़रूरत है? और उनके पीछे भागने की क्या ज़रूरत है? कि साब हम तो हैं, कि हम मच्छर भी नहीं, हम खटमल भी नहीं मारते हैं। क्या कहने आपके, आप बड़े बहादुर आदमी l इस प्रकार की धारणाएं हमारे समाज में कितने तरह से फैली हुई है और फिर लोग कहते है कि धर्म निरपेक्ष है हम लोग l अरे भाई धर्म निरपेक्ष हो पर असली धर्म को क्यों न जगया जाए, जो हमारे अंदर दस तत्वों में बसा हुआ हैं l एक बार कुंडलिनी के जागरण के बाद, एक सहजोगी बनने के बाद, यह दस धर्म उसके अंदर जाग जाते हैं l फिर वो चाहे तो शराब नहीं पी सकता, मैं कुछ नहीं कहती हूँ, तो मैं कहूंगी आधे लोग उठके चले जाएंगे l शराब मत पियो, ऐसे मैं कभी नहीं कहती। गर मैं कहूंगी, तो आधे लोग उठके चले जाएंगे l पर फिर देख लेना आप पी नहीं सकते हैं, उसके बाद में उसके जो चोरी करने की आदत हैं वो चली जाएगी l उसके अंदर जो स्त्रियों के प्रति या पुरुषो के प्रति एक तरह की ग़लत धारणा है, वो चली जायेंगी l इस तरह से ये जो दस हैं, एक आनंद में अनुष आ जाएगा, और एक समाधान में आ जाएगा और ये जो अपने अंदर दस गुण हैं, वो जागृत हो जाएंगे l इसलिए मैं कहती हूँ कि किसी गुरु के पास जाने के से पहले उनके शिष्यो को देखो , उनके शिष्य कैसे हैं? लेकिन गर आपके दिमाग में अभी भी ऐसे ही गुरु बसे हैं, जो बकवास करते रहते हैं सुबह से शाम तक, ये बोल, वो बोल, ऐसे भी गुरु हैं, जो कहते हैं कि दुनिया में कोई सत्य है ही नहीं, और कोई सच्चा गुरु है ही नहीं , क्योंकि यह नहीं है तो उससे अच्छा कोई हो ही नहीं सकता l और उनको ही लोग बहुत मानकर के इतनी गलत रास्ते पर चल पड़े है l जब असत्य होता है तो उसका सत्य भी होना ही चाहिए l नहीं तो मनुष्य एकदम आज कहाँ से कहाँ पहुँच जाता और ख़त्म हो जाता l उस सत्य को मानने के लिए पहले अपने अंदर धर्म जागरण होनी चाहिए और वो कुंडलिनी के जागरण से हमारे अंदर हो जाते हैं l धीरे-धीरे कुंडलिनी अपना पूरा प्रकाश अपने धर्म स्थानों पर दे देती है और मनुष्य असल माने में धर्मिक होता है नकली माने में नहीं l जैसे कि हमारे यहाँ किस्सा है कि एक बार नामदेव एक कावड़ ले करके और पानी ले करके द्वारिका जा रहे थे और पूरी समय वहाँ से चल करके वहां तक पहुंचे l और अब मंदिर में चढ़ने की बात आई तो वहाँ दिखा एक गधा प्यास से मर रहा है, तो उन्होंने अपने कावड़ का सारा पानी उसी को दे दिया l तो उन्होंने क्या कर रहे हो , तुम तो भगवान को चढाने आये थे ? मैंने कहा कहने लगे मैंने भगवन ही को चढ़ाया है और वहीं से लौट पड़े l ये धर्म की जो सुक्ष्म भावना है प्रेम की , और समझने की कि किसकी क्या जरूरते हैं, किसको क्या देना चाहिए, ये सब हमारे अंदर धर्म जागृत होने पर ही आती है बाहर के धर्मों से नहीं आने वाली l और बाहर के धर्मों में तो एक साधारण बात है कि कोई भी धर्म के आप हो, हर पाप आप कर सकते हैं कोई आप पे बन्धन नहीं पर सहज योगी नहीं कर सकता l अगर करता है तो उसके सब चैतन्य एकदम ग़ायब हो जाएगा हाथ से , उसका आनंद ही छूट जाएगा l वो कर ही नहीं सकता गलत काम , कर ही नहीं सकता l वो किसी को मर्डर कर नहीं सकता, न हीं वो किसी को दुःख दे सकता हैं l हाँ, वो आप से ये ज़रूर सपष्ट कहेगा कि आपमें तकलीफ़ है इसे ठीक कर लीजिये l उसे आप चाहे दुःख समझे चाहे कुछ समझे , पर ये तो कोई बताने वाला चाहिए l आज सहज योग इतने ज़ोर से दुनियां में फैला है l तीस देशों में ये सहज योग चल पड़ा है l आज भारत वर्ष में भी , मैं कहती हूं महाराष्ट्र में सहजयोग बहुत ज़ोर से फैला है और हो सकता है कि उत्तर प्रदेश में भी और आपके दिल्ली में इधर भी सब दूर सहजयोग बहुत ज़ोरों में फैल जाएगा l लेकिन बहुत ज़्यादा फैलना ये सहजयोग का कर्त्तव्य नहीं है l ठोस लोगो को तैयार करना ही सहजयोग का कर्त्तव्य है l इसलिए बहुत से लोग है कि वो हाँ हाँ माताजी आपकी घर में रखे हैं फोटो; हम रोज़ ध्यान करते हैं, इससे नहीं होना है l ये एक समश्टी, एक कलेक्टिव का कार्य है l एक शरीर है, उस शरीर के आप अंग प्रत्यंग है और सबको जागृत होना पड़ेगा l और जब तक आप एक साथ नहीं मिल करके करेंगे आपको उसका लाभ बहुत कम रहेगा और थोड़े दिन बाद आप ही आकर कहेंगे कि हां कैंसर तो ठीक हो गया लेकिन अब किडनी की बिमारी हो गई l ये तो शरीर की तो विशेष बात है नहीं, लेकिन जो आत्मा का आनंद मिलता है कल मैं आत्मा के बारे में आपको बताऊंगी l नाभि चक्र के बाद में आप देखें कि ऊपर में ह्रदय चक्र है जिसे कि हम अनहत चक्र भी कहते हैं और लोग कहते हैं कि यहाँ पर जो स्पंदन होता है उर्जा का , वो अनहत है माने एक ही सुनाई देता है l लेकिन यह चक्र जो है यह हमारे शरीर में जो स्टर्नम हड्डी है इसके नीचे में है l और यह साक्षात जगदंबा का चक्र है जहाँ मां स्वरूप आप है l इस स्टर्नम की हड्डी में डाक्टर लोग जानते हैं कि एंटी बॉडीज बनती हैं बारह साल की उम्र तक, जो कि बाद में सारे शरीर में फैल जाती हैं और जो कोई बिमारी आपके ऊपर आती है या कोई तकलीफ होती है तो यह एंटी बॉडीज उससे लड़ती है l यह वास्तव में सहजयोग के हिसाब से गण है जो की माँ सारे शरीर में फैला देती है l पर जब भी कभी मनुष्य को भय लगता है या उसको कोई मानसिक तकलीफ हो जाती है या कोई मानसिक पीड़ा हो जाती है तब यह चक्र जो है यह उसका संदेशा स्टर्नम को दे देता है और यहाँ स्टर्नम हिलने लग जाता है और उससे ही सारा संदेश इन एंटी बॉडीज को चला जाता है और वो सुसज्ज हो जाते हैं l अब जैसे वेस्ट में कैंसर की बीमारी बहुत कॉमन है l इसलिए औरतों को होती है कि उनका मातृत्व जो है वो धोके में है l एक आदमी है वो बीवी की परवाह नहीं करता और इधर- उधर आवारा टाइप का है, इधर उधर घूमता है दूसरी औरतों के पीछे लगा हुआ है, ऐसी औरतों को एक तरह से अपने मातृत्व पे ये लगता है कि मैं माँ हो गई हूँ और मेरे मातृत्व की इन्होने इज़्ज़त नहीं की तो उसका जब मातृत्व हिलता है तो उसे ब्रेस्ट कैंसर हो सकता है l अमेरिका में यह बीमारी बहुत ज़्यादा है l हालाँकि वो लोग कहते हैं कि हम तो स्वतंत्र हैं चाहे जिस आदमी के साथ रहें , चाहे जिस औरत के साथ रहें l लेकिन इस तरह की चीज़ बड़ी दुखदाई होते हैं, बहुत दुःख देती हैं और वो दुःख जो है कैंसर के रूप में प्रकटित होती हैं l इसके अलावा भी बहुत सी बीमारियां इस चक्र के खराब से होने से होती हैं l पर विशेष करके इससे उस से होती है कि जिससे हमारे अंदर एक तरह से मानसिक भय आ जाता हैं l किसी भी चीज़ से हम भयभीत हो जाते हैं, जो हो सकता है कि किसी के माँ बाप बड़े ज़बरदस्त हो या किसी का बच्पन बहुत खराब बीत जाएं या किसी तरह से उसे परेशानी में रहना पड़े या कोई भी उस पे आघात आ जाएं, एकदम वो स्कूल में खराब हो जाएं उसकी हालत या उसको इम्तिहान में वो फेल हो जाएं, कोई न कोई ऐसा आघात उस पे आने से ही ये चक्र पकड़ जाता हैं और मानसिक स्थिति को ठीक करने के लिए ये चक्र जो है इसको ठीक करना पड़ता है l ये जानना चाहिए कि आपकी माँ जगदम्बा है, वो इतनी शक्ति शालिनी है आपको क्या हो सकता है ? लेकिन ये कहने से नहीं होगा l जब तक कुंडलिनी जगदम्बा वहाँ नहीं जाती है और जब तक उसको प्लावित नहीं करती है, मनुष्य ठीक नहीं होता है l आजकल तो बहुत से बच्चे और बहुत से लोग ऐसे हैं जो डिप्रेशन में चले जाते हैं l ये डिप्रेशन इसी चक्र के पकड़ से आता है l इसको ठीक करना भी बहुत आसान है सरल है, सहज है, सिर्फ ये कि कुंडलिनी का जागरण होना चाहिए l उसके बाद का जो चक्र है विशुद्धी का चक्र है l ये बहुत बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि इसकी सोलह पंखुड़ियाँ है और ये सारे आँख, नाक, मुँह, जीभ, सब जो कुछ भी है उसको चालित करती है, कंठ को भी चालित करती है l इस चक्र को बहुत से लोग इसलिए भी खराब कर देते है जैसे स्मोकिंग से या ज़्यादा बोलने से , कोई लोग कम बोलने से, मौन रहने से, ऐसे अनेक चीज़ों से यह चक्र खराब हो जाता है l पर सबसे ज़्यादा ये मंत्र बोलने से गलत मंत्र बोलने से बहुत ज़्यादा ये खराब हो जाता है l उसकी वजह से लेफ्ट साइड जब पकड़ जाती है तो यहां का ये आप जब यह सोचते है की मैं बहुत दोषी हूँ , मैंने यह ग़लती की, मैंने वह ग़लती की, तब यह चक्र पकड़ते है l जब यह चक्र आप पकड़ते हैं इससे एंजाइना की बीमारी हो सकती है आपको, और भी अनेक बीमारयां है जो कि इस चक्र की वजह से, स्पॉन्डिलाइटिस वगैरह इस चक्र से l राइट साइड के चक्र से आपको ज़ुकाम हमेशा रहेगा , आपको तकलीफ रहेगी, आपका आवाज जो है वो बुढ़ाए जाएगा जल्दी और बोलते वक्त में आप ठीक से बोल नहीं पाएंगे l कोई-कोई लोग तो एकदम कुछ दिनों बाद एकदम मौन ही ले लेते हैं, इतना ज़्यादा यह चक्र खराब हो जाता है l लेकिन इसके आगे की विषय यह है, अगर आप एक ही मंत्र को बहुत बोलते रहें जैसे हरे रामा, हरे कृष्णा, इन लोगों को यहां का थ्रोट का कैंसर हो जाता है l इस तरह के मंत्र बोलने से थ्रोट का कैंसर हो जाता है और फिर उसकी जो आगे चीज बढ़ती है तो वो फिर हो सकता है कि सारे शरीर में फैल जाएं l पहले उस चक्र पे ही गति करती है कैंसर की और उसके बाद में दूसरे चक्रों में भी यह उतर सकता है l अब ये विशुदी चक्र जो है यह वैसे तो बहुत ज़रूरी है क्योंकि इसी से हमारे हाथों का सम्बन्ध है और इन्ही हाथों में आप इसका एहसास करते है कि हमारे चारो तरफ परम चैतन्य फैला है इसका आप एहसास कर सकते हैं, इसको जान सकते हैं l लेकिन जब ये विशुदी चक्र आपका खराब होता है तो हालाँकि आप कहते हैं, माँ हमको तो बड़ा अच्छा लगा, हम बहुत रिलैक्स्ट हो गए, आराम मिला पर ये हाथ में नहीं महसूस होता है l इसकी वजह ये कि ये आपका चक्र खराब है l इसका मतलब ये नहीं कि आप उसकी वजह से और भी गिल्टी फील करें, और भी बुरा समझें l इसका मतलब ये कि उसे ठीक कर लेना है जो भी दोष हैं उसे आप ठीक कर लें l बहुत अहंकारी मनुष्य का भी राइट साइड पकड़ जाता है l जो बहुत वलगना करता है, मैं ऐसा हूँ, मैंने ये किया ऐसे मतलब हवाई घोड़े पर जो बैठे होते हो , उनका भी ये चक्र पकड़ जाता है और उसके भी अनेक विद तकलीफे और परेशानियां उसके सामने आ जाती है l इस चक्र के बाद आज्ञा चक्र है l ये भी बड़ा महत्वपूर्ण है और खासकर दिल्ली वालों के लिए, क्योंकि यहाँ लोग सोचते बहुत है, सोचते ही रहते हैं, पता नहीं क्या सोचते हैं ? पागल जैसे सोचते रहते हैं l अब उस सोचने से ये चक्र बहुत चलने लग जाता है l इस चक्र में यही सोचा जाता है ज़्यादातर - इसने मुझे यह कहा, मैं इसको ऐसा ठीक कर दूँगा, उसने मुझे यह करा, मैं उसको ठीक कर दूँगा l अरे भई मनुष्य का तो यह स्वाभाव ही है कि किसी की तारीफ़ न कर, किसी की तारीफ़ , मुझे भी लोग गालियां बकते हैं l आपको आश्चर्य होगा कि मुझे भी गाली बकने वाले दुनिया में लोग है l तो जिसके आदत पड़ गई गाली बकने की वो तो हर एक चीज़ को गाली बकेगा और अगर उसे कुछ नहीं मिला तो एक लैंप पोस्ट को भी जाके गाली बक देगा , वो तो आदत है, उसको क्यों इतना बुरा मानना और उसके लिए इतना क्यों फिल करना कि उसको मैं ऐसे ठीक करूँगा, मैं वैसे ठीक करूँगा , मैं उसको माफ़ नहीं कर सकता l आप नहीं कर सकते तो आप ही की खोपड़ी ख़राब जा रही l तो ये जो चक्र है ये बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि जब ये जागृत हो जाता है तो हमारे अंदर बसा हुआ इगो और सुपर इगो इस तरह की जो दो चीज़े हैं, माने मन और अहंकार, ये दोनों ही चीज़े अंदर से एकदम खिचा जिससे कि आपके कर्म, जिसे कहते हैं आपके कुसंस्कार सब खिच आने से और ये ब्रह्मरंद्र जो है खुल जाता है l उसके ऊपर जो गोल सी जगह बनी हुई है इसी को लिंबिक एरिया कहते हैं l ये लिंबिक एरिया है जो खुली हुई जगह है और ये बहुत महत्वपूर्ण है l जब ये लिंबिक एरिया आपकी खराब हो जाती है तब आपको आनन्द मिलना तो असंभव, लेकिन कोई आनन्द की लहर भी नहीं आती है l अब जब आप ये सब मौडर्न म्यूजिक सुनते हैं, अब ये पता लगाया गया है ये जो मौडर्न म्यूजिक है, इससे आपकी लिंबिक एरिया जो है वो बिल्कुल संवेदनशील-नम हो जाती है l तो पहले तो शुरुआत में जो ये म्यूजिक शुरू हुआ था तो सर्व साधारण तरीके से सुन सकता था आदमी l अब तो ऐसा है कि आपके कान फट जाए और ऐसा लगता है कि सर फट जाएगा l इस तरह का जबरदस्त म्यूजिक जब तक नहीं होगा तब तक समझ में नहीं आ सकता और पहले ज़माने का जो क्लासिकल इनका म्यूजिक था वो तो अब लोग सुनते ही नहीं क्योंकि उनकी समझ ही में नहीं आता है, उससे कोई संवेदन नहीं होता है l और अपना जो क्लासिकल म्यूजिक है जो कि बहुत ही संवेदनशील है, उसके लिए तो समझना ही नहीं रही तो क्या समझना l फिर उसके बाद में आप ड्रग्स लें, शराब लें या कोई इस तरह की नशीली चीज़े लें l ड्रग्स से तो यह जो चीज़ है एकदम ही नम हो जाती है उसमें कोई भी चीज़ महसूस ही नहीं हो सकता है l तो धीरे-धीरे ऐसे लोग ड्रग वालों को तो चाहिए कि उनके ऊपर चिल्लाए और एक तरह का पागलपन आ जाता है l अब आप लोग अंग्रेज़ो को बहुत ऊँचे आदमी समझते हैं l लेकिन हमारा तो अनुभव और ही है कि जैसे कैम्ब्रिज के पढ़े हुए बड़े भारी कोई साहब है और ड्रग व्रग ले करके तैयार बिलकुल हमारे लिए l तो उनसे पूछा भाई आपका क्या नाम ? आपने पूछा मेरा क्या नाम ? हाँ मैंने पूछा आपका क्या नाम ? आपने क्या पूछा कि मेरा क्या नाम है ? मैंने कहा जी जनाब आपका नाम क्या है ? अच्छा तो मेरा नाम क्या है ? अब सोच रहे हैं उनको अपना नाम भी याद नहीं l मैंने कहा माफ करिए और फिर से कैम्ब्रिज में चले गए l पर उसके बाद जागृति के आने के बाद सारा उनका जो एडूकेशन वापस आ जाता है और वो आदमी बढ़िया हो जाता है l ये ड्रग लेने से मनुष्य कितना महा मुर्ख हो जाता है ये गर देखना आपको हो तो आप कभी इंग्लेंड आइये तो मैं आपको दिखाऊं l और यहाँ ही दो चार ला कर दिखाने से लोगों को पता हो जाएगा कि मनुष्य कितना महा मुर्ख हो जाता है l फिर आपके बच्चे जो ये लेते हैं, उनकी मृत्यु भी बड़ी जल्दी हो जाती है l जैसे कोकेन लेने से मनुष्य आधी ज़िन्दगी जीता है और आधी ज़िन्दगी तड़पता है l और उसके बाद वो ख़त्म हो जाता है l इसलिए ड्रग बुरी चीज़ है l लेकिन ड्रग को तो इतना बुरा कहते हैं पर शराब को नहीं कहते हैं क्योंकि इतने सालों से वहाँ शराब चल पड़ी है l हर गांव में जाइये तो जो पब होगा सबसे बढ़िया जो घर होगा पब होगा, और उसमें किसी राजा का या रानी का नाम होगा l अपने यहाँ कोई राजा रानी का नाम रक्खे तो लोग उसपे डेफ़मेशन केस कर दे l पर इस तरह की वहाँ पर चीज़ चल पड़ी थी उसकी वजह से शराब और ड्रग, इन देशों का सर्वनाश हुआ जा रहा है l और फिर अपनी स्वतंत्रता में इन्होंने कोई भी बंधन न रखने से इनका ऐसा ही सर्वनाश हुआ जाता है l अब आपको उस रस्ते पे जाना है या परमात्मा के रस्ते पे जाना है ये आप समझ लें, पहले सोच लीजिये कि ये लोग कहाँ जा रहे हैं और हमें कहाँ जाना है l ये अगर गड्ढे में गिर रहे हैं और आपको भी गड्ढे में गिरना है तो गिर जाइये, हालांकि उसमें से भी बहुत से लोग सहजयोग में आ गए लेकिन जब गड्ढे में गिर के आते हैं तो ऐसे बढ़िया वो लोग है कि आप देख के हैरान हो जाएंगे कि उनको कितनी श्रद्धा और कितना विचार है और वो श्रद्धा अंधी नहीं जानी हुई श्रद्धा और उसके सहजयोग के लिए प्राण देने को तैयार हैं l तो इसी प्रकार जब आप ऊपर देखते हैं तो सबसे आखरी जो चक्र हैं उसे सहस्रार चक्र कहते हैं l यह सहस्रार हमारे लिंबीक एरिया के चारों तरफ जो हमारी नसे हैं एक हज़ार, वो नसे l जिस वक़्त कुंडलिनी अंदर जा करके उसको प्रज्वलित करती है तो अंदर ये नसे ऐसी दिखाई देती है जैसे कि कोई प्रज्वलित बहुत सुन्दर शान ऐसी शिखाएं हो जैसे कि उसको आप कह सकते हैं कि जैसे लौ , अलग-अलग लौ और अनेक रंगों से भरी हुई इतनी सुन्दर दिखाई देती हैं l यही इसके लिए ही कहा गया है, बाइबल में कहा गया है कि I appear before you like tongues of flames - यही सहस्रार है l इस सहस्रार के जगने के बाद आप देखते हैं कि आपके आनंद की अनुभूति आने लग जाती है l फिर ब्रह्मरंद्र खुलने के बाद आप देखते हैं कि पूरी तरह से आप रिलैक्स हो जाते हैं और पूरी समय आपका सम्बन्ध उस अनन्त जीवन से हो जाता है, उस परम चैतन्य से हो जाता है जो पूरे समय आपके अंदर बहते रहता है l आप कुछ भी करिये, कोई भी काम करिये, कितना भी आप जागरण करें, कितनी भी मेहनत करें, कितने भी आप कुछ भी करें, आप थकान नहीं आती आपको , आप करते ही रहते हैं और उसी आनंद में रहते हैं l ऐसा आदमी एक विशेष रूप का आदमी हो जाता है l पर ये सब करके भी एक और बड़ी भारी बात है कि आप पर्मात्मा के साम्राज्य में जाते हैं, पर्मात्मा के साम्राज्य में जाते हैं l वहाँ इस कदर efficiency है , अपनी टेलिफोन जैसा मामला नहीं ; एक बार पर्मात्मा को याद करने से ही काम होता है l आपको आश्चर्य होगा कि ये सामने कैसे खड़े हैं ? अरे भई मैं तो सोच रहा था इनको कहां से ढूंढ के लाऊँ, ये तो सामने खड़े l कोई चीज आपको चाहिए वो सामने आके खड़े हो जाए l ऐसे प्रश्न जो हैं छूटते ही जाते हैं, छूटते ही जाते हैं और आपको लगता है कि क्या मैं तो कुछ कर ही नहीं रहा हूँ l हमारे यहाँ ऐसे भी बच्चे आए हैं कि जो क्लास में बिलकुल फेल होते थे और उनके माँ-बाप ले के आए; आज वो फर्स्ट आ रहे हैं, उनको स्कॉलरशिप मिल रही है l जो कोई आपको स्कॉलरशिप वाला मिलेगा अधिकतर वो सहजयोगी होगा l सारे इम्तहानों में फर्स्ट आ रहे हैं l यह हुआ कैसे पता नहीं; अभी एक लड़का पच्चीस साल में चार्टेड अकाउंटेंट हो गया l मैंने कहा कैसे ? कहने लगे सहजयोग ; पर हुआ कैसे यूं ? पच्चीस साल में तो कोई होता ही नहीं , वो कहने लगे पता नहीं माँ मैं कैसे हो गया, मुझे पता ही नहीं मैं हो गया चार्टेड अकाउंटेंट l इस प्रकार इसके इतने डैमेंशन्स है इतने आयाम है, इतने आशीर्वाद है; उस आशीर्वाद को पहली मर्तबा आप जानते हैं कि ये आशीर्वाद हैl हर तरह के प्रश्न आपके जो है छूट जाते हैं कहीं और आप अपने मस्ती में रहते हैं, आनंद में रहते हैं l आशा है आज भी आप सब लोग इसे प्राप्त करेंगे और उसे पूरी तरह से जोड़ लेंगे l और अगर चाहें तो दो चार प्रश्न पूछें, लेकिन बेकार के प्रश्न पूछने से समय बर्बाद करना है l हमारे तो व्यवस्था पर कहते हैं माँ प्रश्न पूछने को कहो ही नहीं क्योंकि सब लोग ऐसे बेकार जो होते हैं वही प्रश्न करते हैं और उनको कुछ मालुमात ही नहीं होता ; तो कोई ऐसा प्रश्न हो जो आपको पूछना हो तो पूछ ले और नहीं तो आपने आज कोई भी प्रश्न मुझे लिख कर के दिया नहीं l मैंने कहा था कि आप मुझे लिख कर के प्रश्न दे तो मैं वो जवाब दे दूँगी l तो आज कोई भी प्रश्न दिया इसका मतलब आपको कोई प्रश्न है ही नहीं और गर हो तो पूछ लीजिये, एक आध प्रश्न पूछ लीजिये l ( Pause) एक प्रश्न है उन्होंने पुछा कि कुडलिनी का जागरण कैसा हो ? वो ही तो करना है मुझे l आप इस पृथ्वी के पृथ्वी में आप एक बीच छोड़ देते हैं वो कैसे पनपता है ? वो पृथ्वी में शक्ति है, वो अपने आप ही पनप जाता है वैसी ही चीज़ है l जीवंत चीज़ को कैसे, क्या क्या बताएँ? एक बीज से व्रुक्ष कैसे होता है, फिर उससे फूल कैसे आते हैं और फिर वो फल कैसे हो जाता है, क्या आप बता सकते हैं ? इसी प्रकार आपके अंदर सब बनी हुई चीज़ है, वो सिर्फ घटित होती है l अब गायत्री मंत्र जो है वो उन लोगों को कहना चाहिए कल मैं इस पर बताऊंगी विशुद्ध रूप से जो कि लेफ्ट साइडेड है माने जो बिंधे हैं, जो डरते हैं हमेशा, जिनसे कुछ काम नहीं होता , जो हमेशा दुसरों से भयभीत रहते हैं , ऐसे लोगों को गायत्री मंत्र कहना चाहिए l पर जो पहले ही घोड़े पर सवार हैं ऐसे लोगों को गायत्री मंत्र नहीं कहना चाहिए क्योंकि ये राइट साइडेड मंत्र है l इससे आपकी जो है राइट साइड और बढ़ जाएगा l गर कोई आदमी राइट साइडेड है मानें हमेशा फ्यूचर की बात करता है , प्लान करता है, ये करता है, वो करता है और उपर से गायत्री मंत्र भी गाए तो हार्ट अटैक आ सकता है , क्योंकि गायत्री मंत्र वैसे भी रियलाइजेशन से पहले तो कोई मंत्र कहना ही नहीं चाहिए पहली बात, और रियलाइजेशन के बाद भी आपको देखना चाहिए, तारतम्य उसका होना चाहिए, कि कौन सी आपकी साइड है , कि आप लेफ्ट साइडेड हैं या राइट साइडेड हैं l लेकिन गायत्री मंत्र में जो बात कही गई है, उसका कुंडलिनी से क्या सम्बन्ध है, वो मैं अभी बता दूँ आपको l हालाँकि ये लेफ्ट, राइट साइड की सारी शक्ती है, क्योंकि ये material यानि जो जड़ वस्तु है और उससे भी आकाश तत्त्व आदि, अनेक तत्वों से सम्बंधित है l अब हमारे शरीर में जो यहाँ पर आप देख सकते हैं कि जो कुंडलिनी है और जो पहला चक्र है जिसे कि हम मूलाधार कहते हैं , मूलाधार चक्र और दूसरा मूलाधार; पहले चक्र है और फिर मूलाधार l मुलाधार मानें जिसमें मूल रखा हुआ है, वो है सेक्रम बोन l यह दोनों पृथ्वी तत्व से बना है, तो भू l भू से शुरुवात हुई , फिर उसके बाद में भूर्व स्वाधिष्टान चक्र जो अंतरिक्ष में फिरता है इसलिए भूर्व, यह उसके इसेंस है भू, भूर्व, स्वाहा, स्वाहा माने इसेंस है नाभि चक्र का, जहां पर कि सब चीज़ जो है, वो डाइजेस्ट हो जाते हैं, सब consume हो जाते हैं, यह नाभि चक्र है, भू, भूर्व, स्वाहा l अब यहाँ पर जब आता है तो मन, यहां मन है, मन माने अभी आपको जैसे मैंने बताया, कि यह मन का चक्र है, कि मनुष्य का मन जो है, वो इससे प्रज्वलित होता है l गर कोई मनुष्य बिंधा हो, उसकी हालत खराब हो, तो उसके अंदर ताकत आ जाती है, उसके अंदर प्रोत्साहन आ जाता है, मन; फिर ये जनाः क्योंकि यह कलेक्टिव काम है, जनाः इससे हम जन को देते है हाथ चूम लेते है, हाथ मिलाते है, नमस्कार करते है, जो भी हमारा संपर्क शारीरिक होता है, वो इस चक्र से होता है l हम बोलते हैं, भाषण करते हैं, किसी से वार्तालाप करते हैं, इस चक्र से होता है l इसलिए यह जनाः है, और फिर यह तपः है, आज्ञा चक्र जो है, ईसा मसीह का है, उसने तप किया था l वो तपस्विता हमारे अंदर है, वो तपः है, यह तपः है, और फिर सत्य आपको सहस्रार में होता है l इस प्रकार सात चक्रों का जो इसेंस होता है, वो ही आपके गायत्री मंत्र में है l लेकिन उसके पहले से आपको पहले जनना चाहिए कि आप कौन सा मंत्र को किस वजह से इस्तमाल कर रहे हैं , इन सब चीज़ों को समझ लेना चाहिए l उसको आप सहज योग में कोई मंत्र वगैरह कहने की भी ज़रूरत नहीं होती l कुछ कुंडलिनी खड़ाक से ऊपर चली जाती है l पर यह जो बताया गया, जब लोग जानते नहीं थे तो मंत्र उच्चारण करके लोगों को वो ट्रांस में डाल देते थे, उनको भुलावे में डाल देते थे , और उनको एक तरह से कुछ - क्या कहना चाहिए कि अभीभूत कर लेते थे l जैसे एक साहब है, उनसे हमने पुछा भई तुम्हे कौन सा मंत्र दिया गया ? तो कहने लगे उन्होंने तो कहा हमारे गुरुजी ने बताना नहीं l कितने रुपए दिये ? कहने लगे 300 पाउंड दिये एक मंत्र के l कौन सा मंत्र दिया भाई ? नहीं वो बताने का नहीं , बड़ी मुश्किल से बताया तो एक साहब बताते इंगा, एक बताता है पिंगा और तीसरा बताता है ठिंगा l और कोई हिंदुस्तानी को बताया तो वो समझ जाए l अब आप राम का मंत्र दिया राम का मंत्र दिया so right heart राम का मंत्र दे दिया आपको किसलिए दिया ? आपको क्या अस्थमा की बीमारी है जिस लिए दिया ? किसलिए आपको मंत्र दिया है यह? नहीं ऐसे ही उन्होंने राम दिया, मैं राम राम करता हूँ l हो गई बीमारी अस्थमा की, क्योंकि आप राम राम राम राम कर रहे हैं और राम चंद्र जी क्या आपके नौकर है ? अवतरण है वो; उनका नाम लेते वक्त ज़रा गर्दन झुका करके भी नाम ले लिया हो जाता है गर आप पार है तो l गर आप पार नहीं तो आपको कोई अधिकार ही नहीं आपको सामराज्य में नहीं l समझ लीजिये आप इंगलैंड के रहने वाले नहीं हैं और आप वहाँ की क्रीम को जाके कहें कि साब देखो मुझे रैशन नहीं मिलता है इंडिया में तो कहें कि भइया मुझसे क्या कह रहे हो ? तुम जाके अपनी गवर्नमेंट से कहो l ऐसी बात है कि जब आप उसके गवर्नमेंट में नहीं आए भगवान के तो आप उससे मांग क्या रहे हैं ? आप पहले उसके गवर्नमेंट में तो आओ, उसके आप नागरिक बनो, उसके सिटज़न बनो, फिर आप जो चाहें सो l इतना तर्क शुद्ध लोजिकल इतना लोजिकल है सारा कुछ इतना साइंटिफिक है इतना साइंटिफिक है कि डॉक्टर लोग भी हैरान होते हैं l अभी हमारे यहाँ पे तीन डॉक्टर लोग M.D. कर रहे हैं l एक ने तो कर दिया सहज योग लेकर इतने आश्चर्यजनक चीज है l लेकिन हम लोगों को कुछ मालूम नहीं इसलिए यह लोग तंत्र लगाते हैं मंत्र लगाते हैं दुनिया भर की चीज़े करते हैं और उसका इतना रुपया पैसा देते हैं l हमें यह मंत्र दिया मंत्र देने के लिए गुरू काहे को चाहिए ? कोई गधा भी दे सकता l जब आपको पता ही नहीं क्या मंत्र देना चाहिए, आप क्यों मंत्र दे रहे हैं ? जैसे कि जब तक आपकी मोटर ही नहीं शुरू हुई और आप अभी वहीं खड़े हुए हैं और आप ये बोल रहे हैं कि जहाँ बीच में जहाँ रुकावट आने वाली है उसी का आप इंतज़ाम कर रहे हैं, तो लोग कहेंगे भई वहाँ जाओ तो सही जहाँ रुकावट नहीं वहीं खड़े हो गोल गोल घूम रहे हैं, फैदा क्या ? तो हर चीज एक बड़ी शास्त्रिय है और ये सबसे बड़ी बात कि ये हमारा धरोहर है , ये हमारा हेरिटेज है, हिंदुस्तानी लोगों का ये हेरिटेज है, ये भारतीय संस्कृति की देन है हमारे पास l इसको हम नहीं प्राप्त करेंगे तो कौन करेगा ? आप इन लोगों को देखिए जो विदेश से आ रहे हैं, ऐसा गाते हैं कि आप हैरान हो जाइएगा , जो मराठी भाषा इतनी कठिन भाषा है , उस भाषा में वो लोग गाने गाते हैं l ऐसे गाने कि आप हैरान हो जाएंगे कि इन्होंने कैसे गाया ? जिनको हमारे स्वर नहीं मालूम, जिनको गणपति का ग नहीं मालूम l सर्व धर्मों का साऱ सहजयोग में आपको मिलेगा और सर्व धर्म कितने सत्य हैं वो भी आपको मालूम पड़ जाएगा l इस तरह से कहते हैं कि हम सब भाई भाई; भाई भाई से कुछ नहीं होता है l लेकिन इसमें हम लोग असली भाई भाई हो जाते हैं, इसमें असली रिश्ता जुड़ जाता है l ऐसा रिश्ता जुड़ता है मैं देखती रहती हूँ कि आपस की जो दोस्ती इन लोगों की है कि विलायत की ये जो अंग्रेज जो पहले अपने को बॉस समझते थे, आते हैं वहाँ से कुर्ता पायजामा पहन करके और पहले तो अपनी भूमी की थोड़ी सी चरण धूलि अपने सर में लेते हैं, कहते हैं ये योग भूमी हैं और जब अपने देहातों में जाते हैं तो ऐसे गले लगाते हैं सबको कि जैसे पता नहीं कहा के मित्र मिल गए l पर वही, वहाँ के जो रहने वाले अंग्रेज हैं उनसे भागते हैं l इसके वर्णन बहुत सुन्दर ज्ञानेश्वर जी ने किये है l किसी वक़्त मौका होगा तो आपको सुनाया जाएगा l बहुत ही सुन्दर उसका वर्णन कि ये क्या होने वाला है , क्या दुनिया में होने वाली है बात, कैसे लोग होने वाले है और इसकी शुरुआत तो हो ही गई है l आशा है आप लोग भी इसमें गहनता से उतरेंगे l ये नहीं कि आज मेरा भाषण सुना, कल उनका सुन लिया, परसो उनका सुन रहे l तो इस तरह से तो चलने वाला नहीं l जिस जगह थोड़ा सा भी पानी मिलता है, वहीँ कुआँ खोदना चाहिए l ये नहीं कि दस जगह छेद करते फिरो l आपको कोई पैसा देना नहीं है, कुछ नहीं सिर्फ थोड़ा समय ज़रूर देना होगा अपने लिए और उसमें इसे आप प्राप्त कर सकते हैं l आपकी जो शक्ति उसे आप पा सकते हैं; हो गया ? और तो नहीं हो गया ( Unclear ) आप लिख के दे दीजिये भाई साहब आप लिख के दे दें , ((Unclear ) वो कल बताऊँगी न, कल की बात कल के लिए भी कुछ छोड़ देना चाहिए ; क्या कहा ? लिखे मूसा पढ़े ईसा, वो तो हाल नहीं ? ( from the audience) -तत्वों से (Shri Mataji - हा ! ) तत्वों से रोग होने की बात माननी चाहिए (Unclear)? तत्वों से रोग होने की बात मानी नहीं जाए l (Unclear) ( Shri Mataji) - नहीं बिलकुल नहीं, आपके शास्त्र बहुत सही है, लेकिन एक इस पे बड़ा सुन्दर संस्कृत में श्लोक है कि अमन्तरं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनुशदं , अयोग्या पुरुषो नास्ति , योजग सत्र दुर्लभः l कोई भी ऐसा अक्षर नहीं है जिसमें मन्त्र नहीं, कोई भी ऐसा मूल नहीं है जिसमें औषधि नहीं और कोई भी पुरुष आयोग्य नहीं है लेकिन उसकी योजना करने वाला चाहिए l जो लोग पागलखाने से निकल के आकर आपको मन्त्र दे रहा है , कोई जेलखाने से छूट करके आकर आपको मन्त्र दे रहा है उनको अधिकार नहीं अनाधिकार चेष्टा है समझे ना , अनाधिकार चेष्टा नहीं कर सकते l हम तो कोई भी शास्त्र को बुरा नहीं कहते लेकिन जो लोग इस तरह से शास्त्र को इस्तमाल करते और अपने ऊपर इसकी ज़िम्मेदारी ले लेते हैं कि हम दूसरों को मंत्र दे रहे हैं, काशाय वस्त्र पहन लिया , हो गए बड़े साधु बाबा l अगर कोई साधु बाबा है तो कहा हुआ है कि साहिब मिली है, सो ही सदगुरु l (Unclear) हाँ, हाँ बेटे बड़ा नुकसान होता है भइया, मैं तुमसे बताती हूँ सच बात , मैं तो माँ हूँ ना, मैं झूठ नहीं बोलूँगी l ग़लत आदमी से मंत्र लेने से तो नुकसान हो जाता है l कहिए भाई साहब l (from the audience) - माँ ये बहुत ही झूठा रीती-रिवाज़ विषयी प्रश्न है, ईसा को सूली, गांधी को गोली ; सबका सुख चाहने वाले लोगों को क्यों परेशानी होती है , कोई मन्त्र आप दे सकते हैं ? ( Shri Mataji ) - जो इन्होंने कहा ठीक बात कि ईसा को सूली हुई, गांधी को गोली हुई इसलिए ईसा भी अमर हो गए और गांधी जी भी अमर हो गए l उसका असर आपको देखना चाहिए l असल में, न तो कोई ईसा को सूली दे सकता है न गांधी को गोली मार सकता है क्योंकि जो संत होते हैं, उनको कोई भी दु:ख-तकलीफ़ होती नहीं लेकिन वो अपने बलिदान से सिद्ध करते हैं कि मनुष्य कितना मूर्ख, महा मूर्ख l लेकिन अब ये समय आ गया है कि किसी भी सन्त को हाथ लगाने की कोशिश न की जाये ये समय आ गया है l समय की तैयारियाँ होती है और ये समय आ गया है कि ख़बरदार, गर किसी ने हाथ लगाया तो देख लेना l (Unclear) अनेक, आज तो अनेक सन्त हम तैयार कर रहे है, आपको भी सन्त बना देते हैं l (तालियाँ) पहले कम होते थे, अब हज़ारों की तादात में हो रहे हैं l ( From the audience) - चक्रों की विशुद्धी कैसे पता लगाएं व उनको कैसे शुद्ध करें? कुछ Examples दीजिये ? ( Shri Mataji ) - हाँ, आपने चक्रों के बारें में पूछा कि किस तरह से वो शुद्ध न हों तो कैसे पता लगाएं तो वो आप जब हमारे सेंटर पर जाएंगे तो आप जान लेंगे कि हमारे उंग्लियों में पाँच, छह और सात ये चक्र हैं और पाँच, छह और सात ये चक्र हैं l तो ये लेफ्ट साइड के जो हैं ये आपके मानसिक स्थिति को दर्शाते हैं और राइट साइड के जो हैं वो आपके बौद्धिक और आपके शारीरिक स्थिति को दर्शाते हैं l अब गर इसमें से कोई सी भी उंग्ली में गर चिठक, ऐसे गर्मी लग रही हो या कहीं ऐसा लग रहा हो कि जड़ता आ रही है, कुछ आ रही है तो उसका सिर्फ, उसका अर्थ क्या है ये आप सीख लीजिये l आप उसको किस तरह से ठीक करना है, वो भी आपको बता देंगे l महीने भर में आप गुरू हो जाएंगे, सब गुरू हो जाएंगे क्योंकि आपके हाथ के नीचे तो पहले कुंडलिनी चलेगी l ( From the audience ) – (Unclear) सत्य को किस सीमा तक जाना जा सकता है कि वहाँ प्रभु का हाथ आशिष रुप रहे ? ( Shri Mataji ) - बस आप एक बार पार हो जाएं, वहीं आपको उनकी चरण मिल जाएंगे और उनका हाथ आप पर आशिष रुप रहेगा, (Unclear) मेरा हाथ है ही, देखूं वहाँ ठंडक आ रही की नहीं ? (From the audience) - प्रश्न है कि मोक्ष का सेल्फ रियलाइजेशन से क्या सम्बन्ध है ? (Shri Mataji ) - मोक्ष जो है वो तरह तरह से लोग जानते हैं, सेल्फ रियलाइजेशन जो है ये मोक्ष ही है l सारे संसार की जो विपदा है, तकलीफ़ है वो इसलिए है क्योंकि हम अंधकार में अज्ञान में है l जब वो अज्ञान छूट जाता है, तब हम मोक्ष में आ गए, लेकिन सेल्फ रियलाइजेशन आने के बाद भी मनुष्य को स्थिर होना चाहिए l प्रथम तो वो निर्विचार होता है, इसे कहेंगे निर्विचार समाधी, क्षण में हो सकता है, तत्क्षण होता है तत्क्षण l रामदास स्वामी से पुछा गया कि कितनी देर लगती हैं कुंडलिनी के जागरण को ? तो उन्होंने कहा तत्क्षण, पर उसको लेने वाला और करने वाला होना चाहिए , यह दो चीज़ है l अब दूसरी बात है कि जब आप, कोई-कोई लोग ऐसे भी है उसी वक़्त वो निर्विकल्प में भी चले जाते हैं उनको शंका ही नहीं रह जाती है फिर निर्विकल्प समाधी आ जाती है उसको आपको प्राप्त करना है l जब निर्विकल्प में आने के बाद फिर आगे की बात आपको सोचना चाहिए l एकदम से ही आप कहे कि हम एकदम से ही परम हो जाये तो ऐसा नहीं होता है l जितना आप बर्दाश्त कर सकते उतना ही होगा l पर निर्विकल्प में आते ही आप अपने ही आप ढलने लग जाते हैं उस ओर l जिस वक़्त आपके बंधन टूट गये तब ही आप मोक्ष को प्राप्त हो गये l लेकिन इस बंधन को टूटने के बाद आप कहाँ तक आप पहुँचते हैं यह आगे का रास्ता है पर मोक्ष तो हो गया l ( From the audience ) - माताजी मोक्ष विद्या में बताया गया है कुण्डलिनी जागृत होते समय विभिन्न चक्रों से विभिन्न प्रकार की आवाज़े आती है l ( Shri Mataji ) - यह जिसने भी बताया है योग विद्या से में तो यह योग विद्या वालों को कुछ मालूमात नहीं है l आवाज़ तो तब आएगी किसी भी चीज़ की जब उसमें रुकावट हो, गर रुकावट ही नहीं हो तो आवाज़ कैसे आएगी ? तो जब कुंडलिनी चढ़ती है तो उसमें विभिन आवाज़ आने की कोई सवाल ही नहीं उठता है l गर विभिन उसमें आवाज़ आ रही है तो कोई न कोई रुकावट है, तब आ सकती है आवाज़ l इसी प्रकार किसी किसी में गर्मी आ जाती है, किसी किसी की कुंडलिनी बार बार नीचे गिरती है पर ऐसी कोई विपत्ति की चीज़ नहीं आती है l पर जब कुंडलिनी उठती है तो बहुतों को सुगंध भी आता है क्योंकि कुंडलिनी जहां बैठी हुई है वह मैंने आप से बताया है पृथ्वी तत्व से बना हुआ है और पृथ्वी का जो कॉज़ल है, अअअ.. उसका जो तत्व है वो सुगंध है, इसलिए सुगंध आती है जब कुंडलिनी उठती है बहुतों को l और ऐसे भी सुगंध आती है बहुतों को जब वो पार हो जाते हैं l पर इसका मतलब यह है कि जैसे आप यहाँ से एयरपोर्ट जाना है आपको प्लेन पकड़ना है समझ लीजिये l तो इधर उधर सब चल ही रहा है लेकिन आप तो इस चीज़ में कि भई किसी तरह से वहां पहुँच जाये तो यह सब साइडमें कुछ न कुछ होते रहता है पर यह आवाज़ आना कोई बड़ी अच्छी स्थिति नहीं है l इसका मतलब है कि चक्रों में कुछ रुकावट है l ( From the audience ) - श्री माताजी एक प्रश्न है कि मैं वेटलेस हो जाता हूँ, यह किस चक्र की रुकावट है ? ( Shri Mataji ) - वेटलेस आप गर हो जाते हैं तो कोई चक्र की रुकावट नहीं पर यह वेटलेसनेस देखनी पड़ेगी क्या चीज़ है l कभी कभी यह ऐसा है कि अब उसमें भूत विद्या भी हो सकती है कि कोई आत्मा समझ लीजिये ऐसा है जो आपके अंदर घुस जाए और आपका जो मतलब ज़रा लंबा-चौड़ा किस्सा है यह, तो इसको (unclear) अनुभव तो हुआ, बहुत कुछ अनुभव हुआ लेकिन मैं बाजदफा ये वेटलेस हो जाता हूँ l ( Shri Mataji ) - ओके, बहुत अच्छी बात है वही मैंने कहा ( Unclear) नहीं नहीं वो तो अच्छी बात है कि वेटलेसनेस आ जाए l ( From the audience) - ( Unclear ) I feel possessed. ( Shri Mataji ) - अच्छा, that has to be cleared out है ना? If you feel it, it’s a good idea because you know about it. It can be cleared out no problem. (From the audience) - मुसीबत में क्या करना चाहिए? अब ये तो बड़े वेग टर्म है, मुसीबत मानें कौन सी मुसीबत? हो सकता है आप ही किसी के लिए मुसीबत हो। (Clapping & laughter from audience) ये प्रश्न भी एक मुसीबत है। ( From the audience) - नाद क्या है इसके बारे में बताएं l ( Shri Mataji ) - सारे प्रश्न आज ही पूछ लीजिएगा; नाद क्या है, ब्रह्म क्या है? नाद वही है, जिस वक़्त हमारे अंदर चैतन्य बहता है , तब उसकी एक बड़ी सुन्दर सी धारा बहती है। पर उसकी आवाज आपको सुनाई नहीं देती। उसका भी एक नाद है। इसी तरह जब अति सूक्ष्म आप हो जाते हैं, तो आपको सुनाई दे सकता है। उसके बाद में, इसमें चैतन्य में आप पार हो जाते हैं तो आप देखते हैं आकाश में से छोटे-छोटे ऐसे कॉमा के जैसे ऐसे चमकते हुए चैतन्य के ऐसे छोटे-छोटे धराएँ दिखाई देते है। तो ये, इसमें भी प्रकाश होता है। अब आपको आश्चर्य होगा कि बहुत से हमारे पास ऐसे फोटोग्राफ्स हैं, वो अभी आपको हम बाद में दिखाएंगे, इसमें आपको आश्चर्य होगा कि ये प्रकाश के जो कण है उसको पकड़ा गया। ऐसे आज कल हो रहा है, बहुत से फोटोग्राफ्स, इतने चमत्कार पूर्ण हैं, पर वो अभी नहीं मैं बताऊंगी, क्योंकि सब सत्य मनुष्य नहीं झेल सकता, धीरे धीरे झेल सकता है। ( From the audience ) – श्री माताजी बाकि सब प्रश्न बड़े पर्सनल हैं, अगर वो सेंटर पे आयें। ( Shri Mataji ) - अच्छा, बाकि प्रश्न बहुत ज़्यादा पर्सनल होंगे, कि मेरा बेटा बिमार है, कि मेरी बीवी बिमार है। इन सब लोगों के लिए विनती हैं कि आप लोग सब सेंटर पे आयें, और आपको जैसा बताया जाएं, वैसा आप करें, और आपको बताती हूं कि दावे के साथ फायदा होगा, लेकिन उसको आप ठीक से करें। पर सबसे जो बात है, कि जो लोग बिमारी के लिए आते हैं, बिमारी ठीक होते ही बेकार हो जाते हैं। अब यह सोचना है, कि जिस लाइट से प्रकाश मिलने ही नहीं वाला, ऐसे लाइट को आप ठीक करेंगे ? तो कॉमन सेंस तो भगवान के पास भी है, कि वो ऐसे लाइट को,what is she said ? No that’s not correct. Please be seated I will tell you. All right ? उन्होंने सवाल पूछा कि ओम नमःशिवाय बोलते हैं यह ठीक नहीं, आपको अधिकार नहीं अभी इस चीज़ का ... और उससे आपको तकलीफ ही हो जाएगी। असल में क्या बताए, इतना अन्धकार है और इस इग्नरंस का भी फायदा कितने लोग उठाते हैं, कुछ भी बताते रहते हैं, कहते रहते हैं, छाप देते हैं, लोग वो ही करने लग जाते हैं, क्योंकि सब लोग खोज रहे हैं, सब साधक हैं l दुःख की तो बात ही है कि सारे बड़े शुद्ध मन से, भोलेपन से परमात्मा को खोज ही रहे हैं, उसमें न जाने किस-किस जाल में फँस जाते हैं, इतनी परेशानी में फँस जाते हैं, लेकिन कोई भी बात, कोई भी ऐसी आफ़त हुई हो, तो उसको भूल जाइये, पूर्णतः, कृपया उसे पूर्णतः भूल जाइये, और ये न सोचे कि मैंने ये गलती की, वो गलती की l पहली तो शर्त यह है कि मैंने कोई गलती की ही नहीं, मैं बिल्कुल दोषी नहीं हूँ, ये धारणा अंदर बनाएं, तभी ये होगा, नहीं तो होने नहीं वाला और जो पर्सनल प्रश्न है, हमारे यहाँ पर एक दिल्ली में भी एक बड़ी मुश्किल से एक आश्रम बन गया, और वहाँ पे हमारा प्रोग्राम होता है, इसके अलावा भी हर जगह सेंटर्स हैं, काफी सेंटर्स हैं, और लोग बहुत होशियार हैं, बहुत जानकार है, नम्र है, प्रेमी है, मेहनत करते हैं, और आप लोग वहाँ जाएं, और उनसे गर पूछें तो आपकी पूरी मदद कर देंगे l कोई आपको आप पहले बताया कि रुपया, पैसा, किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है, सिर्फ आप जा करके उनसे पूछें, आपको क्या शिकायत वो ठीक होगी, और जैसे मैंने कहा, कि आपको एक निश्चय कर लेना चाहिए, कि हम माँ ठीक होने के बाद, हम सहज योग को पूरी तरह से करेंगे, और सहज योग का जो प्रकाश है हम दूसरों को देंगे, क्योंकि अगर आप ऐसा नहीं करने वाले हैं, तो यह तो बेकार हो जाती चीज़ है, हज़ार लोगों को ठीक करते है और जो जहां से तहां बैठा रहता है l तो इस तरह से नहीं, हम माँ सहज योग में उतरेंगे और लोगों की मदद करेंगे, ऐसा विचार करना चाहिए, क्योंकि कोई सा भी, आप ईसा मसीह ने कहा है कि ज्योत को जला करके दीप कोई पलंग के नीचे नहीं रखता है, ऐसी बात है, कि हमें जो चीज़ प्राप्त हुई हो, दूसरों को दिये बगैर चैन नहीं आने वाला, और उससे फायदा भी नहीं होने वाला l आज आपकी बीमारी ठीक हो जाएगी फिर कल दूसरी हो जाएगी l तो मैं यही एक काम करती रहूंगी कि आपकी बीमारियां ठीक करती रहूं l इससे बेहतर है कि आप अपनी बीमारी ठीक करने के बाद हमेशा के लिए ठीक हो जाइये और दूसरों को भी ठीक करिये l एक ज्योत से ही दूसरी ज्योत बढ़ेगी, और सारे संसार की भलाई हमें करने का है, सारे संसार का कल्याण होना चाहिए, और उसके लिए कितनी अभिनव चीज़, कितनी सुन्दर चीज़ हमारे पास है, जो चैतन्य है, उसे हमें देना चाहिए l अब हम फिर से कुंडलिनी जागरण का प्रोग्राम कल के जैसे करेंगे, उसके लिए कोई किसी को परेशान होने की बात नहीं है l एक दस मिनिट का काम है, दस मिनिट का l आप लोग घड़ी न देखें, कहीं बारह मिनिट लग जाए ( laughter) तो मुझको सजा मत देना और प्रसन्नचित्त बैठे, हम आपकी माँ हैं, हम कोई गुरु वुरु नहीं हैं, यही सोच करके, कि ये कुंडलिनी भी आपकी माँ हैं, और हरेक की अलग-अलग माँ हैं, ये व्यक्तित है, हरेक प्रकार (unclear) है, आप फूलों पर रख देते ना, फूल तो नाराज़ हो जाते हैं l ( Shri Mataji asking to adjust the mike - ज़रा सा आगे) अपने प्रति प्रसन्नचित्त हो, मैंने ये गलती की, मैंने वो गलती की, मैं ऐसा ख़राब हूँ, मैं वैसा ख़राब हूँ और मैं बड़ा पापी हूँ और दुनिया भर की चीज़ें जो लोगों ने बताई है, सबको आप माफ कर दें और भूल जाएँ बिलकुल भूल जाएँ l मैं आपसे कहती हूँ कि मनुष्य गलती कर सकता है, परमात्मा नहीं कर सकता l इसलिए कोई आप परमात्मा नहीं है, और आपसे गर गलती हो गई है तो ऐसे कौन सी बात है ? इसलिए आप अपने प्रति प्रसन्न हो जायें पहली बात है; यह एक बड़ी भारी शर्त है कि आप अपने को (बल), किसी तरह से भी अपना न्याय न करें और कोई भला बुरा अपने को न कहे, ठीक है ? (आवाज़ unclear) हाँ, अच्छा, अब लेफ्ट हैंड आप हमारे ओर कर लें l लेफ़्ट राइट की बा्त कल बताऊंगी l लेफ्ट माने आप की इच्छा शक्ति, और कुंडलीनी आप की शुद्ध इच्छा है , शुद्ध इच्छा, माने बाकी सब इच्छाएं कैसी होती हैं, कोई भी इच्छा होती है आपकी तो वो पूरी होने पर दूसरी इच्छा होती है, तीसरी होती है, चौथी होती है। माने इकनॉमिक्स का लॉ ही है, इन जेनरल वांट्स are not satiable । पर शुद्ध इच्छा एक आपके अंदर है जो सुप्त अवस्था में है, आप नहीं जानते , बहुत से लोग जानते भी नहीं, वो यह है कि उस परम चैतन्य से हम एकाकारिता प्राप्त करें। बस यह शुद्ध इच्छा है, बाकी जितनी भी इच्छाएं है, आज यह पास करना है, आज इम्तिहान देना है, नौकरी चाहिए, फलाना, , तो वो फिर एक के बाद एक , एक के बाद एक चलती रहती है, मनुष्य को समाधान नहीं मिलता, तो शुद्ध इच्छा की जो शक्ति है वो है कुंडलिनी l अब आप लेफ्ट हैंड हमारे ओर करें, लेफ्ट हैंड से आप इच्छा शक्ति इच्छा आप जो करें वो है, और आप इच्छा यह करें कि आपको आत्म-साक्षातकार, एक विनती यह भी है कि जिनको सहज योग करना हो, वो बैठें नहीं तो चले जाएं पर यह नहीं कि आप दूसरे लोगों को देख रहें, ताक रहे l इस वक़्त में आपको अपने को देखना है और अपने को जानना है, सीधा हिसाब, तो लेफ्ट हैंड आप हमारे ओर करें, और राइट हैंड जो है, वो अपने हृदय पर रक्खे l अब जो राइट हैंड है, यह क्रिया शक्ति है, इससे हम अपने अनेक चक्रों को प्लावित करते हैं, तो राइट हैंड आप अपने हृदय पर रक्खे, और लेफ्ट हैंड आप हमारे ओर करते हैं l इसका मतलब है आपको इच्छा है कि आप आत्म-साक्षातकार को प्राप्त हो l अब एक बात याद रखना चाहिए कि जो लोग बैठे हुए हैं कुर्सिओं पे, वो जूता वूता उतार लें, क्योंकि जूता - ज़मीन को छुना चाहिए पैर, ज़मीन जो है हमारी परेशानियों को खीच लेती है, जूता चप्पल हो, उसे (हट) उतार लें, और जो लोग ज़मीन पे बैठे हैं, उन्होंने तो जूते पहने नहीं होंगे, तो ठीक ही बात है, आराम से बैठें, सहज आसन पे, एक के ऊपर एक चढ़ा के, आराम से बैठो बेटे, पैर ऐसा खोल करके आराम से, पूरी तरह से, खोल करके, पूरे आराम से बैठें पर गर्दन न झुकाएँ न पीछे को लाएँ, सीधे ऐसे जैसे हम बैठते हैं सहज में ऐसे बैठिए और आँख जब बंद करना है तो बिल्कुल जैसे हम नींद के वक़्त जैसे आँखें बंद कर लेते हैं इस तरह से, न तो उसको ऊपर चढ़ाएँ और न ही उसको ज़ोर से दबाएँ l बिल्कुल सहज में ही काम होता है, सहज आसन में बैठना है l तो यह हाथ हृदय पे है क्योंकि हृदय में सबसे पहले आत्मा है, इसलिए पहले आत्मा को ही हम ललकारते हैं l दूसरी बात, जब हम आत्मा हैं तो हम अपने गुरू भी हैं, इसलिए गुरु तत्व जो की हमारे पेट के ऊपरी हिस्से में है ; सारा काम हम लेफ्ट साइड में करेंगे - उस पर आप अपना लेफ्ट हैंड रखें ; राइट हैंड रखेंगे लेफ्ट साइड में गुरु तत्व पे l हम खड़े होके करेंगे l ( mike adjustments अच्छा ठीक है) l अब आप अपना हाथ पेट के ऊपरी हिस्से में सारा काम लेफ्ट हैंड से होगा तो ऊपरी हिस्से में लेफ्ट साइड l उसके बाद अपना हाथ पेट के नीचले हिस्से में आप लेफ्ट हैंड साइड में l ये आपका शुद्ध विद्या का चक्र है, शुद्ध विद्या मानें जिससे आपके नसों में ये एक नया आयाम पैदा हो जाएगा इससे आप जान सकेंगे के आपका आत्म-स्वरूप क्या है और दुसरों का क्या है l और सारे परमेश्वरी कायदे कानून आपके हाथ में से परतेंगे उसमें से उसका प्रादुर्भाव होगा l उसके बाद फिर आप अपना हाथ पेट के ऊपरी हिस्से पर लें जो की गुरु तत्व हमारे अंदर बनाया गया है l उसके बाद आप फिर से अपने हृदय पे आत्मा तत्व पे l उसके बाद जैसे मैंने शुरू में कहा है कि अपने बारे में कोई भी गिल्ट न रखते हुए आप ये हाथ गर्दन और सर , गर्दन और कंधा, इसके बीच में यहाँ जो कोण है उसपे रखे और सर को पूरी तरह से राइट साइड को घुमा ले l अब ये राइट हैंड ये जो है ये चक्र हमारा जो है विशुद्धी का लेफ्ट साइड इसलिए पकड़ता है कि हम गिल्टी फील करते हैं l अब ये राइट हैंड आप अपने माथे पर या जिसे कपाल कहते हैं या फोरहेड पर ऐसे रखें कि जैसे दोनों तरफ से दबाएं जैसे सिरदर्द के वक्त हम करते हैं; नहीं सरदर्द के लिए करते हैं और सर को नीचे की ओर झुका लें l उसके बाद यही राइट हैंड आप सर के पीछे के हिस्से में छोड़ें और गर्दन को पीछे में मोड़ करके इस पर झुका लें अपना सिर, ऐसा रोक लें, झेल लें इसे l उसके बाद यह हाथ पूरी तरह से खोल लें और इसके बीचों बीच जो जगह है, इस हाथ के बीचों बीच जो जगह है , इसको बराबर अपने तालू पर रखें जहां एक नरम हड़ी थी बच्पन में और गर्दन को झुका लें l अब इस उंग्लियों को खूब बाहर तान करके और इसे आप सात मर्तबा धीरे धीरे घुमाय जैसे कि घड़ी के कांटे होते हैं l उंग्लियों राइट हैंड पहले राइट हैंड सर पे जाएगा लेफ्ट हैंड हमारी तरफ़,एक ही हाथ से काम करना है दोनों हाथ से नहीं l लेफ्ट हैंड हमारी ओर, लेफ्ट हैंड लेफ्ट हैंड है न उसको हमारी तरफ़ रखे ; अच्छा राइट हैंड सर पर रखे उसको दबायें ज़ोर से, उंगलियां ऊपर और इसको दबायें और सात मर्तबा दबायें, fingers should be stretched outside, stretch them outside and just rotate and move it, नहीं नहीं , ऐसे रखिये और सात मर्तबा इसको घुमाईये, बस इतना ही हमको करने का है l हाथ यहां रखते हैं और बहुत से लोग इधर से रखते हैं गलत बात, सिर्फ एक ही हाथ से काम करना है लेफ्ट हैंड पूरी समय हमारे तरफ रहे l अच्छा अब` आप लोग आखें बंद कर लें और चश्मे को भी उतार दें , उसके कोई ज़रूरत नहीं है और जब तक मैं नहीं कहती हूँ आप कृपया आखें न खोलें l इसको अब नीचे करें l अब दस मर्तबा पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कहें इस चक्र को मदद करने के लिए कि श्री माताजी मैं स्वयं का गुरू हूँ, श्री माताजी मैं स्वयं का गुरू हूँ दस मर्तबा कहिये बीचों बीच इधर l अब आप यह हाथ राइट हैंड अपने ह्रदय पे रक्खें, लेफ्ट हैंड हमारी तरफ़ रक्खें और सबसे जो महत्त्वपूर्ण और सत्य बात है वो जान लें कि आप स्वयं आत्मा है l मन:, बुद्धि:, शरीर, अहंकार आदि आदियाँ है लेकिन आप आत्मा हैं l इसलिए आप कृपया बारह मर्तबा ह्रदय पे हाथ रक्खें कहें कि श्री माताजी मैं आत्मा हूँ , पूर्ण आत्म विश्वास से कहें बारह मर्तबा श्री माताजी मैं आत्मा हूँ l परम चैतन्य ये दया, प्रेम, शांति, आनंद सब के सागर हैं किन्तु सबसे अधिक क्षमा के सागर हैं l इसलिए आप कोई ऐसी गलती नहीं कर सकतें जो क्षमा नहीं हो सकें l इसलिए आप कृपया अपने को क्षमा पहले करें और अपना राइट हैंड गर्दन और कंधे के बीच में जो कोण हैं उसमें रख करके अपनी गर्दन राइट साइड को मोड़ लें और इस तरह से मोड़ करके आप सोलह मर्तबा कहें श्री माताजी मैं बिलकुल भी दोषी नहीं हूँ, पूर्ण आत्म विश्वास के साथ कहें श्री माताजी मैं बिलकुल भी दोषी नहीं हूँ l गर्दन को मोड़ लें l अब अपना राइट हैंड आप अपने माथे पर रक्खें, कपाल पर रक्खें, रख करके अब दबाएं और ये कहें कि श्री माताजी मैंने सब को क्षमा कर दी l अब बहुत से लोग ये सोचते हैं कि क्षमा करना बहुत कठिन है किन्तु आप क्षमा करें या न करें आप कुछ भी नहीं करतें l इसलिए आपको कहना चाहिए कि मैं सब को क्षमा कर देता हूँ कारण आप क्षमा न करने से आप गलत हाथों में गलत लोगों के चक्कर में पड़ जाते हैं l इसलिए कृपया कहिए कि मैं सब को एक साथ क्षमा करता हूँ l अब अपना राइट हैंड सर के पीछे के हिस्से में लें ; कितने बार का सवाल नहीं उठता इसमें l इसमें आप पूर्ण हृदय से कहें, सर के पिछले हिस्से में हाथ रख के उस पर अपने सर को रख के ऊपर की ओर उठाएं और अपनी गलतियां न गिनते हुए और दोषी न समझते हुए अपने ही समाधान के लिए कहें कि श्री माताजी या हे परम चैतन्य मुझसे गर कोई गलति हो गई हो तो मुझे क्षमा कर दे l ज़रा गर्दन से ज़रा ऊपर पकड़ना जहां ऑप्टिक लोब होता है l अब आप इस हाथ को फिर तान ले और तान करके इसका बिचला हिस्सा जो है इसको आप अपने तालु भाग पर रखें और उंग्लियों को बाहर की ओर खींच लें और बहुत ही धीरे धीरे अपने सर की चमड़ी को जिसे स्कैल्प कहते हैं आप घुमाय सात मर्तबा, उंग्लिया बाहर की तरफ बाहर की तरफ उंग्लिया तान के ज़ोर से दबाएं और धीरे धीरे इसे सात मर्तबा आप घुमाय बहुत धीरे धीरे l अब ये फिर ऐसी बात है कि यहां मैं आपकी स्वतंत्रता का पूर्ण मान रखती हूँ और मैं आप पर ज़बरदस्ती नहीं कर सकती इसलिए आप कहें कि श्री माताजी मुझे आप आत्म साक्षातकार दीजिये, मैं ज़बरदस्ती नहीं कर सकती l आपको मांगना होगा, इसलिए आप कहें श्री माताजी मुझे आप आत्म साक्षातकार दीजिये सात मर्तबा कहिए l इसके साथ ही मैं प्रणव को फूकूंगी जिससे कि कुण्डलिनी बाहर निकल आयेगी ( Shri Mataji blowing the auspicious breeze) l अब आप अपना हाथ नीचे लें और अपनी आँखें भी खोल लें और दोनों हाथ मेरी ओर इस तरह से करें, मेरी ओर आप देखें विचार न करते हुए निर्विचारिता में आप कर सकते हैं ऐसे दोनों हाथ, चश्मा पहन लें, दोनों हाथ निर्विचारिता में बैठें l अब आप अपना राइट हैंड मेरी ओर करें , राइट हैंड और अपने सर को नीचे झुका करके देखें कि सर से कोई ठंडी हवा तो नहीं आ रही ? राइट हैंड मेरी ओर करें और सर के तालु भाग से देखें, (किसी किसी को तो बहुत दूर तक आती है) कि कोई ठंडी हवा तो नहीं आ रही ? अब अपना लेफ्ट हैंड मेरी ओर करें और सर फिर झुका लें और झुका करके फिर देखें राइट हैंड से कि कोई ठंडी हवा तो नहीं आ रही है ? राइट हैंड से देखिये कोई ठंडी हवा आ रही है सर मे से? अब एक बार और ; अब राइट हैंड मेरी ओर करें और फिर से आप लेफ्ट हैंड से सर झुका के देखें कि कोई ठंडी हवा आ रही है क्या अपने तालु से ? हाँ ! अब दोनों हाथ आकाश की ओर करें इस तरह से और एक सवाल पूछे कि श्री माताजी क्या ये परम चैतन्य है, श्री माताजी क्या ये परमात्मा का प्रेम है ? इस तरह से तीन बार सवाल करें गर्दन पीछे करके ऊपर की ओर देखें l अब हाथ नीचे कर लें l अब जिन लोगों के हाथ में (ऐसे हाथ रखें) और या सर से ठंडी हवा आई हो ऐसे सब लोग अपने दोनों हाथ ऊपर करें l ###e 890314-public-program-parmatma-ko-yaad-karne-noida-hindi-original SGtguva0 ###e आपको नहीं आई? आपको नहीं आई; आधिकतर लोगों को आ गई, आधिकतर l सब को मेरा प्रणाम l हाँ गर्म आई होगी, किसी किसी को गर्म आ रही है; अंदर की गर्मी l जिनको गर्म आई है और नहीं भी तो राइट हैंड मेरे ओर करें, सब लोग राइट हैंड मेरी ओर करें और लेफ्ट हैंड इधर रखें, लिवर पे और अब पूर्ण ह्रदय से सब को क्षमा करें l किसी किसी ने इसमें कन्जूसी की है; पूर्ण ह्रदय से क्षमा करें, प्रेम पूर्वक ( Pause) पूर्ण ह्रदय से करना है क्षमा; आ गई ठंडक ? पहले से बेहतर है; आ रही है ? आने दो, आने दो; या समझ लीजिये, आप गर कोई वकील साहब हों या आप इंजिनियर हों, आर्किटेक्ट हों, कुछ भी हों तो आप एक सवाल पूछें श्री माता जी, क्या आप सारे आर्किटेक्ट की आर्किटेक्ट हैं ? क्या आप सारे इंजिनियर्ज़ की इंजिनियर हैं ? क्योंकि हम भी तो अंदर का इंजिनियरिंग ही कर रहे हैं l इस तरह से सवाल करें l आ रही ठंडक, गायत्री वालों को आ रही है ? आपने गायत्री पूछा आ रही है गायत्री से हो जाता है l आप पूछे श्री माता जी क्या आप साक्षात गायत्री है ? पूछो सवाल, मुझको कोई डर नहीं ; ऐसे बैठो बेटा ज़रा, पूछिए पूछिए l या किसी आप देवी देवताओं को मानते हैं या किसी भी सच्चे गुरु को मानते हैं उनके नाम से पूछ लीजिये l वो भी रोक लेते है कभी कभी पहचानने के लिए l हाँ, आया ना जवाब मिल गया ? शक्ति एक ही होती है सब में एक ही शक्ति होती है l हर एक समय पर वो आती है और अपना कार्य करती है l तुम्हारे, अच्छा तुम मन्त्र पढ़ते हो क्या ? हाँ? लीवर तो बहुत ज़बरदस्त पकड़ा है आपका और कल का भी एक दिन है कल भी क्रुपया आप लोग आ जाइएगा l और जिनको नहीं भी हुआ आज उनको हो ही जाएगा l अच्छा, फिर से एक बार तो देखूँ किस किस के हाथ में या सर में ठंडक आई; दोनों हाथ ऊपर करें l थोड़ा चश्मा लगा के देखिये l ओफहो ! ज़रा देखिये तो बिजली का क्या हाल हो गया l हे भगवान ! सबको अनन्त आशिर्वाद है, अनन्त आशिर्वाद अनन्त आशिर्वाद है, सबको अनन्त आशिर्वाद है l

Noida (India)

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