Public Program Day 2

Public Program Day 2 1990-04-05

Location
Talk duration
31'
Category
Public Program
Spoken Language
Hindi

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5 अप्रैल 1990

Public Program

Ramlila Maidan, New Delhi (भारत)

Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - VERIFIED

सार्वजनिक कार्यक्रम, रामलीला मैदान दिल्ली, भारत 05 अप्रैल 1990 (ऑडियो-1)

सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार!

कल आपसे मैने कहा था कि हमारे अंदर एक बड़ा भारी सत्य है और बाह्य में दूसरा सत्य। पहला सत्य तो ये है कि हम आत्मा हैं, हम आत्मा स्वरूप हैं और दूसरा सत्य ये है कि ये सारी सृष्टि, ये सारा संसार एक बड़ी सूक्ष्म ऐसी शक्ति है, उससे चलता है। और ये शक्ति जो है, इस शक्ति को ही पाना, उसमे एकाकारिता में जाना, यही एक योग है। ये दूसरा वाला सत्य है और इन दोनों सत्य को हमें इस वक़्त मान लेना चाहिए। संशय करना तो बहुत आसान है और पढ़ लिख कर मनुष्य और अधिक संशय करने लगता है, इसीलिए कबीर ने ये कहा है की पढ़ी पढ़ी पंडित मूरख भये क्योंकि पढ़-पढ़ के उनके अंदर संशय और ज़्यादा हो जाता है और उनकी संवेदना कम हो जाती है और वो बुद्धि से ही तर्क वितर्क से जानना चाहते हैं कि सत्य क्या है पर सत्य बुद्धि के परे है; सत्य बुद्धि से परे है और ये इस जीवंत क्रिया के साथ होगा। अब अगर आप एक साइंटिस्ट् है, आप एक शास्त्रीय आधार को देखना चाहते हैं तो उसके लिए सबसे पहले धारणा दी जाती है, हैपोथेसिस (hypothesis) दिया जाता है। अगर वो धारणा सही है तो उस धारणा को आपको पहले समझ लेना चाहिए और अपने दिमाग़ को खुला रखना चाहिए जैसे साइंटिस्ट् को चाहिए और उसके बाद देखिए कि अगर ये हो जाता है और ये अगर घटित हो जाता है तो फिर आपको ये मान्य कर लेना चाहिए। अगर आप इसे मान्यता देना चाहते हैं तो नहीं दे सकते, लेकिन जिस वक़्त ये सिद्ध हो जाए तब आपके लिए आवश्यक है कि आप अपनी इमानदारी में इस्तेमाल करें क्योंकि ये आपके हित के लिए हैं, सारे संसार के हित के लिए हैं। इसी प्रकार एक दूसरा प्रश्न हुआ है कि कलयुग मे अवतार कब होगा और ये अवतार होगा तो उसका समय क्या होगा, आदि आदि। तो बात ये है की अवतार अगर हुआ तो आप क्या पहचानेंगें? आज तक आपने किसी को पहचाना है? इतने अवतरण संसार मे हो गये, किसी ने किसी को पहचाना नहीं। पहले ये तो तैयारी हो जाए की हम उन्हे पहचाने जो अवतार होगा, नहीं तो कलयुग में भी जो अवतार है वो भी बेकार जाएगा। इसलिए सबसे पहले आपकी तैयारी होनी चाहिए, आप में आत्मसाक्षात्कार होना चाहिए और जब आपका आत्मसाक्षात्कार हो जाएगा तभी आप पहचान पाएँगे की अवतार कौन है और कौन नहीं। इसकी पहचान के लिए ही सहज योग है। आप पहले अपना आत्मसाक्षात्कार हासिल कर लीजिए, उसके बाद आप स्वयं ही जान जाइएगा कि सत्य क्या है और असत्य क्या है। क्योंकि जब हम देख नहीं पाते किसी चीज़ को, ऐसे समझ लीजिए आपने एक हाथ मे साँप पकड़ लिया है और अंधेरा है आपको दिखाई नहीं दे रहा तो हम अगर कहेंगे कि इसमें साँप है तो आप हमसे झगड़ा करेंगे कि नहीं ये तो साँप नहीं, ये तो रस्सी है। लेकिन जैसे ही प्रकाश आ जाएगा आप अपने आप से ही उस साँप को छोड़ दीजिएगा, उसी प्रकार असत्य की बात है कि असत्य अपने आप ही छूट जाता है। और कुंडलिनी जागरण, ये विषय बिल्कुल ही सहज है, ये कठिन बिल्कुल नहीं है क्योंकि हम उसके मीन-मेख निकालते हैं इसलिए ये कठिन हो जाता है जैसे की एक बीज को आप पृथ्वी में छोड़ देते हैं तो ये माता उसे अपने ही आप उसे जागृति दे देती है क्योंकि उस बीज में भी ये बँधा हुआ है और उस माता में भी ये शक्ति है। क्योंकि माता में भी ये शक्ति है और क्योंकि उस बीज में भी ये शक्ति है तो ये अपने आप घटित हो जाता है, तो ये प्रकृति का नियम है। प्रकृति के नियम को आप समझा नहीं सकते कि ये कैसे होता है उसमे आप तर्क वितर्क करिए, आप किताबें पढ़िये, सर के बल खड़े हो जाइए तो क्या बीज उग आयेगा? वो तो जब तक आप माँ के उदर में नहीं डालेंगे तब तक वो बीज उग नहीं सकता। उसी प्रकार ये भी एक जीवंत क्रिया है। आज आप अमीबा से इंसान हो गए, इंसान हो गए सो कैसे हो गए ये कोई नहीं सोचता कि कौन सी शक्ति ने हमारे अंदर ये कार्य किया है। ये सूक्ष्म शक्ति हमारे अंदर कौन सी है, किस शक्ति के कारण हम आज इंसान हो गए। इस पर कोई विचार नहीं कर सकता और ना ही कोई कर सका है।

साइन्स (science) में भी ऐसे बहुत से प्रश्न हैं जिस पर डॉक्टर्स हों, साइंटिस्ट हों जवाब नहीं दे सकते, जिसका जवाब सिर्फ़ आपको सहज योग में मिल सकता है। कारण ये है कि सहज योग उस शक्ति से एकाकारिता प्राप्त करता है जहाँ से दुनिया भर की चीज़ें बनी और जिसका आप साइंस(science) जानते है; जो सामने है, जो चीज़ दिखाई दे रही उसी का आप साइंस(science) जान सकते हैं, जो चीज़ अदृश्य में है उसके लिए आपको अदृश्य में उतरना पड़ेगा, सारे संसार में आज जो इतने पेड़ की तरह से पाश्चिमात्य देशों में आप देखते हैं कि बड़ी वहाँ खुशहाली वगैरह है सो नहीं है। मैने आपसे पहले ही बताया कि वहाँ कोई खुशाली नहीं है, बड़ा बुरा हाल है। हम लोग जो हैं, कम से कम अपनी फॅमिली है, अपने बाल बच्चे हैं, अपने घर बार, हमारा समाज बहुत अभी अच्छा है, लेकिन वहाँ आप देखेंगे कि लोग ना तो उनके पास माँ बाप हैं, ना ही उनके पास बच्चे हैं, ना ही उनके पास कोई रिश्तेदार है, सब कुछ पैसा पैसा हो जाने से लोग बिल्कुल त्रस्त हो गये हैं। और ये जो पेड़ बढ़ गया है बहुत बड़ा पहाड़, उसके मूल इस देश मे है और कल ही मैंने आपसे बताया था कि इसकी ज़िम्मेदारी आपके पास है कि इस मूल की शक्ति को आप सारे संसार को पहुँचाएँ। लेकिन अगर आप इस मूल की शक्ति को सब जगह नही पहुँचाना चाहते तो आप पे ये ज़िम्मेदारी आ जाएगी कि आपने इसको स्वीकारा नहीं। अब ये हमारा धरोहर है। हमारा हेरिटेज(Heritage), अनादिकाल से कुण्डलिनी के बारे मे अपने देश मे लिखा है; ऐसा नही कि सिर्फ़ अपने देश मे लिखा गया है, अनेक देशों मे लिखा गया है। Thou, thou जो है वो भी यही कुण्डलिनी है। अनेक तरह से आसन वगेहरा कर के भी इसका वर्णन किया जाता है; इसका वर्णन अनेक तरह से है। बाइबल में भी इसे कहा जाता है कि तुम्हारे अंदर इसका वृक्ष है और ये जो ट्री ऑफ लाइफ (tree of life) है, इसी की वजह से आपका पुनर्जन्म् होगा। हर जगह ये तो बात कही जाती है की दुनिया में जो लफ़ानी है, जो चीज़ें क्षणभंगुर हैं, जो नष्ट होने वाली हैं उसका इस्तेमाल सोच समझ के करना चाहिए, पर सारे जितने शास्त्र हैं, जितने धर्म हैं उसका मूल तत्व एक ही है कि आप उस अनंत जीवन को प्राप्त करें। और सब व्यर्थ है। अनंत जीवन को प्राप्त करना ही इसका मुख्य सबसे बड़ा हेतु है और इसमें कोई भी हेतु नहीं। जो कुछ भी हम कर रहे हैं, जो कुछ भी हम भगवान का नाम याद कर रहे हैं, स्मरण कर रहे हैं, दौड़ रहें है, मंदिर में जा रहें है मस्जिद में जा रहें है, प्रार्थना कर रहे हैं इसका एक ही हेतु है कि उस अनंत जीवन को प्राप्त करें और उस अनंत जीवन को प्राप्त करने के लिए हमें आत्मसाक्षात्कार लेना है। ये सहज में है इसलिए लोग सोचते हैं कि ऐसे कैसे हो सकता है लेकिन आपको मालूम है गुरु नानक साहब ने भी कहा है सहज समाधि लाओ, ये सब सहज में ही होता है। अगर समझ लीजिए अगर ये असहज होता तो कितनी कठिन बात है कि समझ लीजिए कि आप श्वास ले रहें हैं श्वास लेना बहुत ज़रूरी है, नितांत आवश्यक चीज है। अगर उसके लिए आपको किताबें पढ़नी पड़ती और शास्त्र पढ़ने पड़ते तो कितने लोग जीवित रहते उसी तरह से ये भी नितांत आवश्यक है जिसे वाइटल (vital) कहते हैं। जो बिल्कुल बहुत ज़रूरी चीज़ है उसके लिए अगर आपको किताबें पढ़नी पड़ें और उसके लिए आपको शास्त्र को खोलना पड़े तो फिर कितने लोग उत्थान को प्राप्त करेंगे। ये क्रिया होने वाली थी और घटित होनी हैं इस पर भृगु मुनि ने भी एक बड़ा भारी ग्रंथ लिखा है, जिसका नाम ‘नाड़ी ग्रंथ’ हैं अगर बन पड़े तो आप लोग उसे पढ़ें तब आपको विश्वास होगा। मुश्किल ये है की सामने स्वयं सिद्ध चीज रहते हुए भी आपको मिसालें देनी पड़ती है पहले, किसी ने कुछ लिखा उस किताब मे लिखा हैं, इस किताब में लिखा हैं, ऐसा लिखा हैं तब लोगों को समझ में आता हैं पर मैं सीधी बात पूछती हूँ की अगर यहाँ मैने कहा हैं कि एक हीरा पड़ा हुआ है मूल्यवान हीरा हैं और उस हीरे को आप प्राप्त कर सकते हैं और आपको एक पैसा नहीं देना, आप क्या सोचते हैं आप कोई बैठे रहेंगे। सारी दुनिया से लोग दौड़ के आएँगे, वही बात मैं अगर कहूँ की आपके हृदय मे एक हीरा है जिसको आप चमका लीजिये जिसका आप प्रकाश अपने चित्त में ले लीजिए तो आप क्या शंका पे शंका कर बैठेंगे? फिर एक बात और पूछी गयी कि ये बात कहीं शास्त्रों मे लिखी नही गयी। बहुत सी बातें शास्त्रों में नही लिखी गयी, इसीलिए तो आपके सामने हम आए हैं। अगर सभी बात लिखी होती तो आज हम यहाँ क्यूँ खड़े होते, पहले ही सब लिख दिया होता। ये भी नही लिखा कि कुंडलिनी के जागरण के बाद आपकी ऊँगलियों में जागृति आ जाती है और ये भी नहीं लिखा की इसमें आप चक्रों को जानते हैं। सब चीज़ जो लिखा है वो अगर आखिरी शब्द होता, उसके बाद अगर कुछ बताना ही नही होता तो उन्होने क्यूँ कहा कि उसके बाद रियलाइज़ेशन (realisation) होगा, क़यामा आएगा। किसी ने कहा कि ऐसा दिन आएगा की जब आपका लास्ट जजमेंट (Last Judgement) होगा, ये सब अगली बातें क्यूँ कही? भविष्य की बातें क्यूँ कही? कलयुग की बात क्यूँ कही? अगर उसी वक़्त सब बात कहनी होती, तो कुछ ना कुछ तो कलयुग मे भी कार्य होना है और बहुत बहुत बहुत ही महत्वपूर्ण और इतना ऊँचा कार्य, इतना भव्य और इतना दिव्य कार्य है ये कि इस कार्य के बारे में, आप जब तक इसमें उतरेंगे नहीं, आप समझ ही नहीं सकते। पहाड़ के नीचें खड़े होकर अगर आप चाहें कि किसी सुंदर शहर की आप शोभा देखें, देख नहीं सकते। आपको पहाड़ पर चढ़ना होगा, पहाड़ पर चढ़ कर आप अकस्मात देखते है कि अरे वाह कमाल है कितना बढ़िया नज़ारा है जिसे देख रहे है हम, कौनसी दुनिया में हम आ गये हमे समझ में नहीं आ रहा और अगर ये बात है ही और अगर ऐसा आपके अंदर छुपा हुआ इतना सौंदर्य, इतना गौरव और इतना सब कुछ है तो फिर इसे पाने में हिचकिचाना कोई बड़ी भारी अकल की बात तो मुझे लगती नहीं। इससे तो ऐसा जान पड़ता है कि लोग अभी तैयारी में ही नही हैं, वो अभी यही सोच रहे हैं की इसको पाएँ या नही पाएँ। जब आपकी ही संपत्ति आपके अंदर है, कुंडलिनी जब आप ही के अंदर है तो फिर उसको पाने मे आपको क्यों हर्ज़ होना चाहिए? इस कुंडलिनी के जागरण से आप ये समझ जाएँगे कि सारे जितने भी धर्म हुए, वो सारे ही धर्म एक वृक्ष पर, एक जीवित वृक्ष पर एक फूल के भाँति अलग अलग समय आए और जिन्होंने लाएँ हैं वो सब असली लोग थें, वें सब आपस में रिश्तेदारी थे। लेकिन उनके लाने के बाद हमने फूल तोड़ लिए और उन फूलों को हमने अपने इसमें ले लिया चंगुल में और कहने लगे ये हमारे फूल हैं, ये हमारे फूल हैं और फिर ये फूल मर गये और इन मरे हुए फूलों के लिए हम परेशान हैं। असलियत मे हम आए नहीं, अगर हम असलियत पर आएँ तो ये लोग सब रिश्तेदार हैं और बहुत नजदिक के रिश्तेदार हैं और सब ये सोच कर दुनिया में आए थे कि एक के बाद, एक के बाद हम लोगों को समझाएँगे की ये काल आने वाला है और इस काल मे आपको आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त होना है और उसी के बाद आप परमात्मा को जान सकेंगे। किसने नहीं कहा, ईसा मसीह ने कहा नो दाइसेल्फ (Know Thyself)। किसने नहीं कही ये बात? आज तक कोई भी आप किताब उठा कर देख लें, आपको आश्चर्य होगा कि सारे विश्व में जिस जिस महान साधु संतों ने, महर्षियों ने और किन किन महान अवतरणो ने और पैगंबरो ने एक ही बात कही कि तुम अपने को जानो, अपने को पहचानो। अब इसमें ये हुआ कि कैसे पहचाने, कैसे जाने। सो उसमे भी यही बात है कि ये आपके अंदर शक्ति है, इसकी जागृति होनी चाहिए और जागृति होते ही आप उसे प्राप्त कर सकेंगे।

आप लोगों मे कुछ लोग ऐसे भी हैं जो किसी न किसी व्याधि से भी ग्रस्त हैं, जिस व्याधि से ग्रस्त हैं, उसके लिए कल बताया गया था कि किस तरह से कुण्डलिनी के जागरण से आपके चक्रों मे शक्ति आ जाने से आपकी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं। अभी आपसे कहना क्या है लेकिन आप जानते हैं कि दिल्ली शहर मे ही यहाँ यूनिवर्सिटी मे दो डॉक्टरों को MD की पदवी मिल गई। अभी हम परसो गये थे करनाल में तो वहाँ पर एक महाशय आए थे, वो बचपन से बोलते नही थे, तीस साल की उनकी उम्र हो गयी थी, ना वो सुनते थे ना बोलते थे। कभी उन्होंने मुँह से एक शब्द भी नही निकाला था, तो उनको सहज योग में आते ही, उन्होने बोलना शुरू कर दिया और अब सब का नाम ले रहें है। इस प्रकार यहाँ पर ऐसे भी लोग हैं जिनके ब्लड कॅन्सर ठीक हो गये, बहुत सी बीमारियाँ ठीक हो गयीं। लेकिन किसी का ठेका लिया नही है और सहज योग कोई बीमारी ठीक करने के लिए नहीं है ये कुंडलिनी की जागृति के लिए है। अगर आपकी कुंडलिनी की जागृति हो जाएगी तो आपकी बीमारियाँ भी ठीक हो जाएँगी और आपको कभी बीमारी नहीं हो सकती। अगर आप ठीक से सहज योग में बैठें हैं और ध्यान धारणा में रहें तो आपको कोई भी बीमारी नहीं हो सकती ।

अब उसके बाद ये जो है ये किस तरह से घटित होता है और ये किस तरह से हमारे पैरासिम्पथेटिक (parasympathetic) नर्वस सिस्टम को किस तरह से प्लावित करता है, ये सब बातें आप सेंटर पे आइए आप सब कुछ सीख सकते हैं और समझ सकते हैं। उसके लिए आपको कोई रुपया पैसा कुछ देने की ज़रूरत नहीं, कोई देने की ज़रूरत नहीं। ये तो सारा ज्ञान परमात्मा का है और परमात्मा के ज्ञान के लिए आप कुछ पैसा नहीं दे सकते। न ही आप पे इसमें कुछ किसी तरह का भी उत्तरदायित्व है। आपकी अपनी चीज है, उसको आप पा लीजिए और ये आपकी अपनी संपत्ति है, इसे आप जान लीजिए और फिर अनंत सागर मे डूब जाइए और जो कुछ भी शास्त्रों मे लिखा है, वो हर एक बात इससे सिद्ध होती है। कोई सा भी शास्त्र उठाइए, उसके लिए ज़रूरत नहीं की आप गीता में ही कुछ पूछें या आप ये कहें की हमे ये सिद्ध कर दीजिए कि रामायण मे ये लिखा था या उसमें ये लिखा हुआ था। असल में उनको भी समझने के लिए बहुत ज़रूरी है की हम आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करें। जैसे गीता पे, पाँच सौ गीतायें लिखी। अगर एक ही सत्य है तो पाँचसौ टिकाएँ लिखी हैं अगर एक ही सत्य हैं तो पांच सौ टिकाएँ क्यूँ लिखी है। इसकी वजह ये है की सबकी दृष्टि सूक्ष्म नहीं है। अब गीता की ही बात लीजिए, जैसे कि लोग कहते हैं की कृष्ण ने पहले ही कह दिया कि ज्ञान योग करो। ज्ञान योग का मतलब लोग लगाते हैं कि पढ़ना, लिखना और किताबें रटना और खूब जानना। ये ज्ञान योग नही है, ये तो बुद्धि योग है। ये बुद्धि योग है जिससे आदमी को घमंड आ जाता है। जो लोग गीता पे प्रवचन देते हैं वो लोग सोचते हैं की वही व्यास मुनी हैं और उस तरह से बात करते हैं कि आश्चर्य होता है, मुझे उनसे गर्मी गर्मी लगती है, जैसे कोई पता नही क्या हवा मे उड़ रहे हैं। उनको कोई होश ही नहीं है और फिर वो रुपया पैसा भी बहुत लेते हैं, उनके दर्शन के लिए भी कभी कभी वो लोग पाँच सौ रुपया ले लेते हैं क्यों कि वो गीता सुनाते है ये जो गीता प्रवचन होते है इसमें गीता नही सुनाते, वो अपनी ही बकवास सुनाते है। मैं आपको अभी समझाऊंगी। ज्ञान का मतलब होता है अपने नसों पे जानना। ‘ग्न’ शब्द जो है या ‘ज्ञान’ शब्द जो है, ‘ग्न’ ‘ज्ञान’ दो शब्द हैं जिन्हे एक ही ढंग से कहा जाता है। उत्तर में जिसे आप ‘ज्ञ’ कहते हैं, दक्षिण में उसे ‘ज्न’ (jna) कहते हैं, दोनों एक ही चीज हैं। अब इससे भी पहले, ईसामसीह के जो पहले शिष्य थे उनको नोस्टिकस (gnostics) कहा जाता था। नोस्टिकस (gnostics) माने जिन्होने जाना, जिसे बुद्ध कहते है, बुद्ध माने जिसने जाना। जिसने जाना माने कोई बुद्धि से थोड़ी न जाना। ये लोग कोई कॉलेज गये थे, यूनिवर्सिटी गये थे, स्कूल गये थे? उन्होने जाना कैसे? जाना अपने नसों में, जाना अपने अंदर, ये जो जानना है ये ज्ञान मार्ग है इसलिए कृष्ण ने कहा था तुम ज्ञान मार्ग को ही प्राप्त करो। पर अर्जुन ने तो भी जो सवाल किए, तो उन्होने कहा अच्छा ठीक है तुम भक्ति मार्ग करो। भक्ति मार्ग पर उन्होने कहा कि (पुष्पम फलं तोयं) जो भी तुम फूल, पत्ती, पानी मुझे दोगे मैं स्वीकार करूँगा लेकिन एक शब्द पे नचाया हैं क्योंकि कृष्ण हैं। कृष्ण जो थे वो बड़े डिप्लोमॅटिक थे। वो जानते थे कि मनुष्य जो है उसकी बुद्धि उल्टी बैठी हुई है उल्टे ही काम करता है तो उन्होने सोचा कि टेढ़ी ऊँगली घी निकलेगा उन्होने एक शब्द ऐसा रखा, उन्होने कहा कि तुमको अगर भक्ति करनी है तो अनन्य भक्ति करो।

अब अनन्य शब्द पे हम लोग कहें कि हम अनन्य भक्ति करते हैं। अनन्य का मतलब है जब आपका संबंध परमात्मा से हो गया तब आप अनन्य हो गये। जब दूसरा कोई नही होता, जब आप एकाकारिता मे आ गये, वो उन्होने कहा कि वो भक्ति करो। उससे पहले की भक्ति नहीं बतायी है। लेकिन ये अनन्य शब्द को ना समझने से लोग सोचते है की रात दिन ‘हरे राम हरे कृष्ण’ करो तो आपको परमात्मा मिल जाएँगे। कभी नहीं मिल सकते। उल्टे आपको कॅन्सर (cancer) की बीमारी हो जाएगी। मैं आपको बता रहीं हूँ। इस तरह की क्योंकि श्री कृष्ण जो हैं, वो हमारे विशुद्धि चक्र में बैठे हैं और उनका अगर हम नाम इस तरह से बेकार में लें, वो कोई हमारे जेब में तो नहीं हैं, हमारे नौकर नहीं हैं जो हर समय हम उनका नाम लें। एक साधारण गवर्नर का भी नाम आप लें तो आपको पुलिस पकड़ लेगी, और जिस परमात्मा को, परमात्मा जो सबसे ऊँचा है उसका नाम ये इस तरह से लेते हैं जैसे वो हमारे जेब ही मे बैठा हुआ है। जैसे वो इतना सस्ता है कि उसका नाम लें। और जब हम इस तरह से उसका नाम लेते हैं तो वही नाराज़ हो जाता है और हमारे ऊपर आफत आती है और लोग कहते हैं की माँ ऐसा क्यों हुआ। की हम तो इतना ये करे, हमने दस लाख जप करे, फलाना किया, ढिकाना किया। आपको अधिकार नही है। आपको अधिकार नहीं, आपको अनाधिकार हैं जब तक आपकी एकाकारिता नही होगी, तो आपके हित की नहीं बात हुई। आपकी अच्छाई के लिए इससे आपको कोई फायदा नही, पागलपन है। आप पहले आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करें फिर एक अक्षर, एक अक्षर उनके नाम का लेने से ही कार्य हो जाएगा। आपके हृदय मे ही वो बैठे हैं एक ही अक्षर उनका लेने से आपका कार्य हो सकता हैं आपके कार्य मे पूरी तरह से, आपको बिल्कुल ऐसा लगेगा कि आप परमात्मा के साम्राज्य मे आ गए। इस तरह से आपके सारे कार्य होते रहेंगे। लेकिन अगर आप चाहें कि परमात्मा का नाम लें, उनके नाम का ढिंढोरा पीटें, उनके नाम से ये करें वो करें, मंदिर खोलें, सत्कार करें, दुनिया भर की बेकार की बातें करें उनसे अगर फ़ायदा होना होता तो आज तक हो जाता।कहाँ हुआ है? दुनिया के किस कोने मे हुआ है, बताइए?

लोगों ने तरह तरह के धन्धे करें हैं धर्म के नाम पर। किस कोने मे, कौन से धर्म में मनुष्य को फ़ायदा हुआ है, ये मुझे बताइए। हर जगह आफ़त, ग़रीबी, परेशानी, हर तरह की जो रईस लोग है उनके यह इतनी बीमारियाँ हैं इतनी बीमारियाँ हैं, इतना असंतोष है इतने झगड़े हैं। ये क्यों हो रहे? तो यही कलयुग में होने का है, जब मनुष्य समझता है कि ये कैसे? तो लोग फिर कहने लग गये कि भगवान ही नही है, परमात्मा ही नही है, कुछ ऐसी चीज़ ही नही है जो परमात्मा है। इस तरह फिर बहुत से लोग तैयार हो गये। ऐसा कहने से भी, परमात्मा जो हैं सो हैं और उनको जानने के लिए सिर्फ़ आपकी दृष्टि नहीं थी, जो दृष्टि आप प्राप्त करें। जब आप उसको जान लीजियेगा, तब आपका ज्ञान मार्ग पूरा हो जाएगा और तभी आप भक्ति कर सकते है। फिर कर्म योग मे भी उन्होने अपनी होशियारी दिखाई है। कृष्ण तो लीला ही करते थे, वो जानते थे कि लीला से ही आप लोग ठीक होंगे तो इसलिए उन्होने लीला की कि कर्म योग में उन्होंने एक शब्द पर सबको नचा दिया कि तू जो कुछ कर्म कर रहा है, वो कर, पर सब कर्म परमात्मा के चरणों मे रख दे। हो ही नही सकता, जब तक आपको आत्मसाक्षात्कार नही मिलता है तब तक आपका अहं भाव कि मैं ये कर रहा हूँ, वो जा ही नहीं सकता। जा ही नहीं सकता क्योंकि आपको यही लगता है कि मैंने ये किया है। तो फिर कोई आदमी खून कर के भी ये कहेगा कि मैंने तो परमात्मा पे छोड़ दिया, परमात्मा ने किया, परमात्मा जानें। ग़लत काम कर के भी कह सकता हैं मैंने परमात्मा पे छोड़ दिया। आपका अहं भाव अभी आपके अंदर है और उस अहं भाव के ही सहारे आप सब कार्य कर रहे हैं और आप हमेशा कहेंगे कि मैने किया, आपके अंदर ये भावना बनी रहेगी। लेकिन जब कुंडलिनी का जागरण होता है, तो आज्ञा चक्र को जब ये भेदती है, तो आज्ञा चक्र मे दो तरफ से, (श्री माताजी अपने दोनों हाथ अपने सिर पे दोनों तरफ रखती हैं) आप देखते हैं कि आपके अंदर अहंकार और कुसंस्कारों का एक बड़ा भारी balloon (गुब्बारा) जैसा बना होता है। ये पूरा का पूरा खिच जाता है, अंदर की ओर और आपके ब्रह्मरंध्र से कुंडलिनी बाहर आती है।

तो आपके जो कर्म हैं, जिसको आप कहते कि मैं कर्म भोग रहा हूँ, वो सारे के सारे ख़त्म हो गये। जानवरों मे तो कोई कर्म का विचार भी नही है। एक शेर है वो कोई सा भी जानवर खा सकता है और गाय को मार सकता है, कोई भी काम कर सकता है। कोई भी जानवर कोई सा भी काम करता है, उसे वो पाप नही। मनुष्य ही सोचता है कि पाप है पुण्य है, ये उसके अहंकार की वजह से है की मैने ये काम किया, ये पाप ये पुण्य है। और जिस वक़्त ये कुंडलिनी आपके आज्ञा चक्र को भेदती है उसी वक़्त में आपको आश्चर्य होगा ये पूरी की पूरी दोनों संस्थाएँ खिंच जाती हैं और आप पूरी तरह से स्वच्छ हो जाते हैं और आपके ब्रह्मरंध्र से कुंडलिनी निकल कर के एकाकारिता प्राप्त करती है और इसलिए मैं बार बार आपसे कहती हूँ कि आप सबको माफ़ कर दीजिए और अपने को भी माफ़ कर दीजिए। इसी से आज्ञा चक्र खुलता है। ये दो चीज से आज्ञा चक्र खुलता है। इसका खुलना बहुत ज़रूरी है। तो इस प्रकार उन्होने कर्म की जो बात कही की कर्म अकर्म में उतर गए है। अब जब सहज योग मे आने के बाद लोग जो काम करते हैं, तो वो क्या कहते हैं, वो ये कहते हैं कि माँ ये हो रहा है, ये चल रही है, ये बन रही है। देखिए हम एक बार अमेरिका गये थे, तो हमारे साथ एक गयीं थीं। उनका लड़का होनोलुलू से आया तो वो कहने लगीं कि माँ इसको आप पार करा दीजिए। मैने कहा मुझसे तो हो नही रहा है, तो कहने लगीं कि फिर क्या करें। मैने कहा कि तुम पार कराओ तो कहने लगीं कि मुझसे तो नहीं हो रहा है। तो मैंने कहा इसको झूठा सर्टिफिकेट तो दे नही सकते। इसमें झूठा सर्टिफिकेट तो दे नही सकते, झूठा सर्टिफिकेट तो हो नही सकता; सहज योग मे आपको पार होना पड़ता है और उससे आगे भी आपको बनना पड़ता है। ये नही कि आप सिर पे तमगा लगा के घूमें कि हम सहज योगी हैं, हम विश्व निर्मल धर्म के एक अनुयायी हैं, कुछ नही। ना हमारे यहाँ मेंबरशिप है, ना कुछ है, आपको बनना पड़ता है। जैसे एक बीज को पेड़ बनना है, ऐसे ही आपको भी एक वृक्ष बनना है। आप अपने ऊपर तमके लगाकर घूम नहीं सकते कि मै ये हूँ, मै वो हूँ, मैं सहजयोगी हूँ, मैंने ये प्राप्त किया, ये चलने वाली चीज़ नहीं है। ये आपके अंदर घटित होना पड़ता हैं और धीरे धीरे कुण्डलिनी आपको बनाती है और उधर आपको ध्यान देना पड़ता हैं जब तक कुण्डलिनी के जागरण का सवाल है तब तक तो मैं ये कहूँगी कि वो सहज में हो सकता है। लेकिन उसके बाद उसे सवारना पड़ता है, उसे समझना पड़ता है और उसकी उपाध्यता देखते हुए उसका use देखते हुए वो देखते हुए की उसको किस तरह से हम इस्तेमाल कर सकते है| आपको आश्चर्य होता है कि आप स्वयं ही उस शक्ति मे विलीन हो जाते हैं आप ही मे से शक्ति बहने लग जाती है और इतना मज़ा आता है लोगो को पार कराने में, इतना मज़ा आता है; दुनिया मैं इस चीज को इतने सहज मैं ही सीख सकते हैँ।

इस तरह का कार्य सारे भारत वर्ष में होना चाहिए, मैने आपसे कहा था, लेकिन सब से अधिक ये तो के मैं कहूँगी दिल्ली शहर में होना चाहिए क्योंकि दिल्ली तो राजधानी है ना भारत वर्ष की और यहाँ होता क्या है, झगड़े के सिवा तो मैने कुछ देखा नहीं। हर बार दिल्ली के बारे में पूछो तो यही नज़र आता है हर बार यही आता है कि ये झगड़ा कर रहे हैं, वो झगड़ा कर रहें हैं। धर्म के नाम पे झगड़ा करना भी महा बेवकूफी की बात है। अरे धर्म कभी भी झगड़ा नहीं सिखा सकता ना। परमात्मा तो रहमत है, रहीम, परमात्मा जो दया के सागर हैं, उनके आश्रय मे रहने वाले कैसे झगड़ा कर सकते हैं। अब सहज योग मे हर तरह के लोग हैं, हर जाति के, मुसलमान, हिंदू, ख्रिशचियन, हर तरह के लोग हैं और हर लोग इतने आपस में प्रेम से रहते हैं, ये विचार ही नही रहता क्योंकि जिस एक तत्व को पा लिया और उस तत्व में प्लावित हो गये और जब उसके आनंद मे रंग गये फिर ये अनेक और ये जो बेकार के फर्क हैं, खत्म हो जाते हैं और आपको ऐसा लगता है कि मै इस विराट के अंग-प्रत्यंग में एक छोटा सा एक सेल (cell) हूँ। या ऐसा कहिये कि इस बड़े विशाल सागर में मैं एक बिंदु मात्र हूँ, लेकिन वो बिंदु भी खो गया और वो बिंदु खो कर के और एकाकारिता आ गई है। मैं सागर ही हूँ। ये चीज़ हो जाने पर ही आप जानेंगे कि आज तक जो आपने मेहनत करी है। वो सफलीभूत हो गया।

अब लौट कर जब आप जाएँगे तब आप समझेंगे कि क्या अच्छा है, क्या बुरा है, किस चीज का फ़ायदा हुआ, किस चीज का नहीं, और आप आश्चर्य करेंगे कि परदेश में, जहाँ पर लोगों ने परमात्मा का नाम ही छोड़ दिया और Russia जैसा देश जहाँ की वो भगवान को मानते ही नहीं थे, वहाँ हज़ारों लोग, हज़ारों लोग सहज योग में आ गये। वहाँ की गवर्नमेंट (Government) ने भी सहज योग को मान लिया, यहाँ तक की वहाँ के ministers ने मान लिया हैं। और अपने यहाँ जो हम लोग इतना धर्म धर्म करते हैं, हमारी खोपड़ी में बात नहीं जाती क्योंकि कुछ ना कुछ अजीब सी चीज सिर पे बैठी हुई है जो अच्छी बात नहीं है। अब ये आपके लाभ की बात है, आपकी अपनी शक्ति की बात है आपके अपने उत्थान की बात है और सारे विश्व के कल्याण की बात है, जिसे आप समझ के, सूझ बूझ से प्राप्त करें और उसमें जम जाएँ। आशा है, अगले साल फिर मैं आऊँगी और आप सबको यहाँ पर मिलूँगी और आपसे भेंट होगी। और मैं जानूँगी जिन जिन को भी आज, जिसको भी आत्मसाक्षात्कार मिल गया है और जिनको नहीं हुआ, सबके लिए यही कहना है कि आप सेंटर में आएँ। सेंटर में आ कर के और अपना आत्मसाक्षात्कार पूरी तरह से जान लें और उसको बढ़ाए। जैसा बढ़ाना चाहें, बढ़ाएँ; और वो समझा देंगे आपको सब अच्छी तरह से, यहाँ पर दिल्ली में बहुत अच्छे सहज योगी हैं। बड़े संजीदा तरीके से आपको समझा देंगे और आप में वो चैतन्य भर देंगे जिसकी हमें आज तक आशा रही| आप सबको अनंत आशीर्वाद |

किसी ने अपने बेटे के लिए पूछा था तो ये कहना है बेटे का अपना फोटो आश्रम में भेज दीजिए बाद में मैं इस पर विचार करूँगी। और भी कोई समस्या है तो एक एक कर के आश्रम में भेजिए। अब तो आप परमात्मा के साम्राज्य में आ गये हैं, तो ये तो अब हमारा कर्तव्य हो जाता है कि आपकी सब परेशानियाँ, दुविधाएँ, ठीक करें, लेकिन सबसे बड़ी चीज़ है कि अपने को आत्मसाक्षात्कारी बना कर के आप स्वयं ही अपने को ठीक कर सकते हैं। क्योंकि जिस पानी में आप डूब रहे थे, उस पानी से आप उठ गए, अब आप नाव में आ गये, उसको आप देख रहे, अब जब आप तैराक हो गये तो उसी पानी में कूद कर के आप हज़ारों को बचा सकते हैं। यही एक बड़ी भारी स्थिति थी जिसके बारे में लोग कहा करते थे, वो आप सहज में प्राप्त करिए। पहले तो आपको निर्विचार समाधि आएगी, जिसे थॉटलेस अवेयरनेस (thoughtless awareness) कहते हैं, जहाँ आप सतर्क रहते हैं लेकिन विचार आपके ठहर जाते हैं। और उसके बाद एक दूसरी स्थिति आएगी है जिसे निर्विकल्प समाधि कहते हैं, जहाँ आप में कोई विकल्प नहीं रह जाएगा और इस चैतन्य लहरियों से आप अनेक कार्य कर सकते है। आशा है आप लोग पूर्ण विश्वास से अपने उपर भी विश्वास रखें और पूर्ण विश्वास से इस कार्य को करें और ऐसा ना हो कि आधे अधूरे रह जाएँ जैसे कि कोई बीज उगाये थे और वो सड़क पर पड़ गए, इस तरह से ना हो जाए। आप लोग सब वृक्ष बनने के काबिल हैं आप पढ़े लिखे हो, चाहे आप छोटे हो, चाहे बड़े हो, रईस हो, ग़रीब हो, कोई जाति, धर्म, पंथ कहीं के भी रहने वाले हो, किसी भी देश के हो, सबके लिए ये हासिल हो सकता हैं इसे आप सब लोग प्राप्त करें यहीं एक माँ की विनती है।

कल कहा था के कुण्डलिनी का जागरण किसी जबर्दस्ती से नहीं हो सकता है यह आपकी अपनी स्वतंत्रता में आपके माँगने पर ही हो सकता है, कोई आप पर जबर्दस्ति नहीं की जा सकती, इसमें कोई जोर नहीं लगाए जा सकता हैऔर आपको नम्रता से माँगना होगा कि मा हमें आत्मसाक्षात्कार दीजिए। दूसरी बात, इसमें दो शर्ते हैं, उसमें से एक शर्त तो यह है कि आप लोग पहले अपना जो भूतकाल है, जो बीत गया है, पिछला समय है, उसे पूरी तरह से भूल जाएँ। उस जीवन को, उस जिन्दगी को आप पूरी तरह से भूल जाएँ। इस वक्त आप यहां मेरे सामने, वर्तमान में बैठे हुएं हैं। और मैंने यह गलती की, मैंने यह पाप किया, मैंने यह किया, यह सब चीज़ आप भूल जायें महरबाने से। मैं आप से कहती हूँ, आपने कोई पाप नहीं किया, आपने कोई गलती नहीं करी और जो लोग यह आपको बताते हैं, यह सब बहुत बड़े पापी हैं। इनको कोई अधिकार नहीं है, ऐसी बात बताएं। तो आप कृपया इस बात को आप भूल जाईयें और इस तरह की बात आप बिल्कुल न सोचें। अपने प्रति गौरव रखिए, अपने प्रति मान रखें। क्योंकि आप मानव हैं, आप मनुष्य हैं। आप संसार मैं सबसे उच्च ऐसी प्राणी मात्र में आते हैं इसलिए आप अपने को इस तरह से नीचे न गिराएं और पूरी तरह से अपने को मुक्त कर लें इन बातों से। इस क्षण आप पेरे सामने जब बैठे हैं तो भूतकाल की बात तो सोचना नहीं, वैसे ही आप भविश्य की भी कोई बात न सोचें। दूसरी बात यह है कि आपको इस वक्त सब लोगों को एक साथ क्षमा कर देनी है और ये नहीं विचार करना कि क्षमा करना बड़ा कठिन है या कैसे करें। असल में आप जब किसी को क्षमा नहीं करते हैं तो क्या करते हैं, कुछ भी नहीं करते हैं यह तो एक मिथ्या बात है कि आप क्षमा नहीं करते या क्षमा करते हैं लेकिन जब आप क्षमा नहीं करते तब आप गलत हातों में खेलते हैं और वो लोग जिस तरह से आपको सताना चाहते हैं वो खुदी आप सताते हैं, खुदी; इसलिए कृपया पूरे हृदय से आप सब को क्षमा करते हैं यह दो चीज़ें आपको माननी पड़ेगी, यह आग्या चक्र की वज़ह से; यह चक्र जो है न, मैंने कहा कल बड़ा संकीर्ण है और इसमें यही दो आदतें पड़ी हुई हैं। इसको अगर आप किसी तरह से मेरी शर्तों को मान लें तो मैं विनती करती हूँ कि इसे कृपया मान लें और इसे करें। I

सार्वजनिक कार्यक्रम, राम लीला मैदान दिल्ली, भारत 05 अप्रैल 1990 (ऑडियो-2)

अब आप से जो लोग उपर बैठे हों, तो जूते चप्पल आप उतार लीजे, अगर पीछे भी बैठे हों तो भी, और आराम से सहजासन जैसे होता है कि पहले अच्छे से पहले के आराम से बैठे, लेकिन कोई गर्दन बहुत पीछे न फेके न आगे फेके, न कोई बदन को झुकाएँ है, अपने सीधे जैसे बैठे हैं, इस तरह से आप आराम से बैठिए। अब आपको लेफ्ट हैंड जो है, वो मेरी और करनी होगा, इसका मतलब यह है कि आपकी इच्छा है कि आप आत्म साक्षात्कार पाएं, यह आपकी इच्छा दर्शाता है। अब आप, दूसरा जो हाथ है, राइट हैंड है, इससे अपना क्रिया करना होती है, यानी अपने अलग-अलग चक्रों को पूरी तरह से लेफ्ट साइड में ही हम लोग काम करेंगे, और उनको हमें इसी तरह से पल्लवित करना है, नरिश करना है, और जिसके कारण कुन्डलीनी का जागरण आसान हो जाएगा, और आप आगे भी इसको जान सकेंगे। अब कृपया आप, कोई शंका न करते हुए, कृपया मेरे और लेफ्ट हैंड करेंगे, और पहले आप देखें कि किस तरह से आपको अलग अलग चक्रों पर हाथ रखना है, इसे आपको दिखाएंगे. अच्छा, अब लेफ्ट हैंड मेरी और हो गया, और राइट हैंड हृदय पर रखना है, अब हृदय में आत्मा है, आत्मा ये परमात्मा का प्रतिविम्ब है, हमारे हृदय के अंदर, लेकिन इसका पीठ, यहाँ इसकी सीट जो है, वो यहाँ ब्रह्मरंद्र में है, यहाँ पर, तालु में है, जहाँ पर एक बहुत, आप जानते हैं, छोटी सी जगह थी, यह बहुत स्लिक् सी, बहुत नरम सी, यहाँ हड्डी थी, यह जगह थी, तालु। अब यह राइट हैंड हृदय पर रख लें, और यह आपके आत्मा का स्थान है, उसके बाद यह राइट हैंड पेट के उपर हिस्से में रखे, यह गुरु तत्व है; यह अनेक गुरुओं ने, सद्गुरुओं ने हमारे लिये बनाया हुआ गुरु तत्व है, और इसकी जागृति होनी ज़रूरी है, जिससे आप ही अपने आप गुरु हो जाते हैं। आप यह राइट हैंड अब पेट के नीचे हिस्से में रखें, दबा के लेफ्ट साइड, यह चक्र जो है शुद्ध इच्छा का है, शुद्ध इच्छा का चक्र है, मानें यहां से शुद्ध विद्या का चक्र है, जिससे की शुद्ध इच्छा जाग्रत होती है, शुद्ध विद्या का। शुद्ध विद्या से आप जान सकते हैँ की परमात्मा का नियम क्या है, क्योंकि आपके हाथ से ही चैतन्य बहना शुरु हो जायेगा, और यह चैतन्य बहते हुए आपके अंदर ही इसका अनुभव होगा, अच्छा क्या है और बुरा क्या है; यह सारा ज्ञान जो है, यह इसी चक्र से आप इसको जान सकते हैं, इसका उपयोग कर सकते हैं, यह शुद्ध विद्या का चक्र है। इसे आप अपने राइट हैंड से दबाएं, यह पेट के नीचले हिस्से में लेफ्ट हैंड साइड पर है, आप फिर से अपना हाथ उठा करके आप पेट के ऊपरी हिस्से में रखे, फिर ये हाथ उठा करके आप हृदय पर रखें। अब अपना हाथ गर्दन और कंधा इसके बीच में जो कोण है उस पर रखें। जहां तक आप पीछे ले जा सकते हैं। और अपने सर को राइट में मोड़ लें। जहां तक मोड़ सकते हैं। अब ये जो आपने चक्र यहाँ पर जो दबाया हुआ है इस चक्र से आपको बहुत सी तकलीफे हो सकती हैं अगर इसमें बिगाड़ आजाएं। ये चक्र इसलिए बिगड़ जाता है जब आप अपने को दोशी समझते हैं और सोचते हैं कि मुझे ये गल्ती नहीं करनी चाहिए मैरा ये दोश है, मैं ये पाप किया। इस तरह के अपने को नीचे गिराने की जितनी बाते हैं उससे यह चक्र खराब हो जाता है और उसके कारण आपको अन्जाइना जैसी विमारी हो सकती है, स्पॉन्डिलाईटिस जैसी तरह तरह की तकलीफे आपको हो सकती है। इसलिए आप अपनी गर्दन को दूसरी ओर मोड़ कर के आपको ये कहना पड़ेगा कि मैं दोशी नहीं हूँ। अब इस हाथ को आप सर के अपने जो कपाल है अब इसे माथा कहते हैं इसे माथा कहते हैं माथा और कपाल जिसे कहते हैं इस कपाल पर अपने हाथ को इस तरह से आड़ा रखें और नीचे गर्दन झुका के दोनों तरफ से दबाएं जैसे सर दर्द होता दोनों तरफ से दबाएं; ये चक्र आपको इसलिए, इसलिए है कि यहाँ पर क्षमा न मांगने से, क्षमा न करने से और वही वही सोचने से जो तकलीफे हो जाती हैं वो इस चक्र को खुळते ही ठीक हो जाती हैं। इसलिए यहाँ पर आपको सबको क्षमा करना होगा, सबको, यह नहीं सोचना किसे किसे करना है, क्या करना है अब यही हाथ आपके सर के पिछले हिस्से में जाएगा और सर को पूरी तरह से आप उन्नत कर लें, उपर की और यहाँ पर अपनी गल्तियों को न गिनते हुए, अपने को दोशी न समझते हुए आपको परम चैतन्य से क्षमा माँगनी है अगर कोई आपके जानी अनजानी गल्तियों हो तो। अब इस हाथ के हतेली को आपको ताड़ना पड़ेगा और इसके बीच का जो हिस्सा है, यहाँ का तालु, यह जो हतेली है इसके बीच का उसे बराबर इस ब्रह्मरंदर पर जिसे की हम तालु कहते हैं जो बचपन में एक स्लीक सी नरम सी हड्डी थी उस पर बराबर रखें और उंग्लिया बाहर के और खीचे और दबाव डाले और सर को पूरी तरह से झुका ले; अब इसे दबा करके और इसे घुमाए घड़ी के काटे जैसे सात मरतबा कृपया आप इसको घुमाए सात मरतबा इसे आप घुमाए घड़ी के काटे जैसे उंग्लिया बाहर के और खीच ले, दबाव पूरा डाले और सर मीचे झुका ले; यह बहुत महतुपूर्ण प्रक्रिया है इसको आप हलके तरीके से न करिएगा। अब अपना आप हाथ हटा ले इतना ही मात्र करना है। अब आपको आँख बंद कर लेनी है और आप चश्मा भी उतार ले जब तक मैं न कहूँ तब तक आप कृपया आँख न खोलें। अगर कोई गले में आपने माला वाला पहनी हो तो इसे निकाल लीजिए, कोई औरतों के लिए नहीं, लेकिन ये ऐसी जो कोई-कोई माला पहनते हैं कोई गंदे डोरे पहनते हैं सब निकाल लीजिए और कोई कमर में कसा हुआ हो, कहीं कसा हुआ है तो उसे भी आप ढ़ीला कर लें, तो अच्छा। अब आप आँख बंद कर लें लेफ्ट हैंड मेरी और करें और राइट हैंड अपने हार्ट पर रखें अपने हृदय पर रखें, अपने दिल पर रखें अब यहां पर मेरे से, मुझे आप एक सवाल पूछे तीन बार, यह बड़ा ही महत्वपूर्ण है जैसे मैंने शुरुआत में बताया था कि आपका एक बड़ा सत्य आपके बारे में एक बड़ा सत्य है वो यह है कि आप शुद्ध आत्मा है; तो कृपया आप यहां एक सवाल पूछे बहुत महत्वपूर्ण, ‘श्री माता जी क्या मैं शुद्ध आत्मा हूँ, श्री माता जी क्या मैं शुद्ध आत्मा हूँ’, आप चाहें तो मा कहें जाहें श्री माता जी कहें, ‘मा क्या मैं शुद्ध आत्मा हूँ’, यह सवाल पूछे। अब आप अपना राइट हैंड पेट के ऊपरी हीस्से में रखें लेफ्ट हैंड साइड पर दबाते हैं यह गुरु तत्व का चक्र है अगर आप आत्मा है तो आप अपने गुरु हो जाते हैं क्योंकि आत्मा के प्रकाश में आप सब कुछ समझते हैं; इसलिए यहाँ एक प्रश्न फिर से तीन बार पूछें श्री माता जी क्या मैं स्वयं का गुरु हूँ श्री माता जी क्या मैं अपना ही गुरु हूँ, यह पूछे। यह सब महागुरुओं के सद्गुरुओं के कृपा से ही होता है। आप से मैंने पहले ही कहा था कि इसकी जबर्दस्ती नहीं हो सकती, आप पर शुद्ध विध्या लादी नहीं जा सकती, इसलिए अब आप अपना राइट हैंड पेट के नीचले हिस्से में रखें लेफ्ट हैंड साइड पर दबाएँ। यह शुद्ध विध्या का चक्र है, महा-विध्या का चक्र है; यहाँ पर आप पर मैं कोई जबर्दस्ती नहीं कर सकती हूँ इसलिए आपको कहना होगा छ: बार श्री माता जी मुझे आप शुद्ध विध्या दीजिये; यह आपको इसलिए छ: बार कहना है क्योंकि इस चक्र में छ: पंखुड़ियाँ है। यह कहते ही कि आपको सुद्ध विध्या चाहिए कुंडलिनी का जागरण शुरू हो गया और कुंडलिनी उपर के तरफ चढ़ने लग गई। अब आपको चाहिए कि आप उपर के चक्रों को भी पल्लवित करें, नरिश करें जिससे यह कुंडलिनी उपर चढ़ जाए ठीक से। अब आप अपना राइट हैंड पेट के उपरी हिस्से में रखें और उसे आप दबाएं, राइट हैंड पेट के उपरी हिस्से में लेफ्ट हैंड साइड पे रखें और यहाँ पर इस चक्रों को पूरी तरह से मदद करने के लिए पूर्ण आत्मविश्वास के साथ दस मर्तबा कहें श्री माता जी मैं स्वयम का गुरू हूँ, पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कहिए; अपनी गल्तियाँ गिनने की जरूरत नहीं, इस वक्त अपने को नीचा देखने की जरूरत नहीं, पूर्ण विश्वास के साथ दस मर्तबा कहिए श्री माता जी मैं स्वयम का गुरू हूँ। आप के बारे में एक महान सत्य मैंने बताया था कि आप ये शरीर, बुद्धी, मन, अहंकार आदी उपाधियाँ नहीं है, आप शुद्ध स्वरूप आत्मा है यही सत्य है; सो कृपया पूर्ण विश्वास के साथ आप अपना राइट हैंड हृदय पे रखें और पूर्ण विश्वास के साथ पूर्ण आत्म विश्वास के साथ आप कहें बारह मर्तबा श्री माता जी मैं शुद्ध आत्मा हूँ श्री माता जी मैं शुद्ध आत्मा हूँ, कृपया आप बारह मर्तबा यह कहें। अब एक बात आप समझ लीजिए कि परमचैतन्य यह ज्ञान और प्रेम का सागर है यह शांती और आनंद का सागर है, पर सबसे अधिक एक क्षमा का सागर है इसलिए आप कोई सी भी गलती करें यह क्षमा का सागर उसे अपने अंदर समेट सकता है। इसलिए आप अपना राइट हैंड गर्दन और कन्धे के बीच जो कोण है उसमें रखें और सर को राइट साइड में घुमा दें और यहाँ पर पूर्ण आत्म विश्वास के साथ आप कहें कि श्री माता जी मैं बिल्कुल दोशी नहीं हूँ कृपया कहें, सोलह मरतबा कहें कि मैं बिल्कुल दोशी नहीं हूँ मैंने कोई दोश नहीं किया मैं बिल्कुल निर्दोश हूँ, कहिए; क्योंकि यह चक्र बड़े जोरों में पकड़ रहा है आप लोगों का। आप से मैंने पहले भी कहा कि बहुत से लोग कहते हैं कि दूसरों को क्षमा करना बड़ा कठिन है लेकिन आप क्षमा करें या नहीं करें आप कुछ नहीं करते हैं सिर्फ इस मिथ्या में पड़ करके आप अपने को ही तकलीफ देते हैं जब आप किसी को क्षमा नहीं करते हैं और वो जो इन्सान चाहता है आपको सताना वो आप ही अपने को सताता है; इसलिए अब अपना राइट हैंड आप अपने कपाल पर अपने माथे पर रखें और अपने सर को झुका ले और दोनों तरफ से इसे दबाए और इसको दबा करके और पूर्ण हृदय से ये कहें पूरे दिल के साथ ये कहें कि माँ मैंने सब को क्षमा कर दिया। कितने बार की बात नहीं है और पूर्ण हृदय से कहें कोई अपनी तकलीफ, परेशानी जो कुछ भी आपने उठाई है वो सब भुला दे और ये के कोई याद न करें पूरी तरह से सब को एक साथ क्षमा करें एक साथ सब को अब अपना पूर्ण राइट हैंड अपने सर के पिछले हिस्से में रखें और अपनी गर्दन को उपर उठा लें जहां तक हो सकता है; यहां पर अपनी गल्तियों को न गिनते हुए अपने को किसी तरह से नीचे न गिराते हुए अपने ही समाधान के लिए पूर्ण हृदय से कहें कि हे परम चैतन हमसे अगर कोई गल्ति हो गई हो जाने अनजाने तो क्षमा कर दें, पूर्ण हृदय से कहें इतने बार की बात नहीं पूर्ण हृदय से आप कहें गर्दन पूरी उपर उठा लें आकाश की ओर; अब अपनी हतेली को पूरी तरह से खोल लें और हतेली का जो बीच का हिस्सा है उसे आप अपने तालू पर जो की एक बच्पन में नरम सी हड्डी थी, स्लीक सी हड्डी थी उस पर बराबर रखें और सर को झुका लें, सर को झुका करके और अपने हाथ को खूब अच्छे से दबाएँ, अपने हाथ का दबाव उस पर खूब अच्छे से डालें उंग्लिया बाहर की तरह खूब खीच लें जिससे दबाव अच्छा पड़ेगा अब इस हाथ को सात मरतबा आप घड़ी के काटे के तरह बहुत धीरे धीरे घुमाएं लेकिन जोर डालें, यह बहुत जरूरी प्रक्रिया है; लेकिन यहां भी मैं आपपर जबर्दस्ती नहीं कर सकती हूँ इसलिए आप कृपया इसको घुमाते हुए साथ मरतबा यह कहें कि श्री माता जी मुझे आप कृपया आत्म साक्षात्कार दीजिये, इसकी जबर्दस्ती नहीं हो सकती, श्री माता जी मुझे आप कृपया आत्म साक्षात्कार दीजिये; आप कृपया सात मरतबा कहें जोर से दबाए हुँये पीछे की तरफ पूरी तरह खीच ले; बाद में आप कहेंगे कि मुझे आत्म साक्षात्कार नहीं हुआ। अब अपना हाथ नीचे ले लीजिए और धीरे धीरे आँखें खोले दोनों हाथ इस तरह से रखे धीरे धीरे आँख खोल लीजिए इस तरह से तो दोनों हाथ मेरे और करें; अच्छा मेरे और आप निर्विचारिता में देखें, निर्विचारिता में देखें, कोई विचार नहीं करते हुए देखें। अब आप राइट हैंड मेरे और करें इस तरह से और सर को झुका ले और लेफ्ट हैंड से इस तालु पर देखें नज़दीक से नहीं जरा दूर से इसको छूते हुए नहीं दूरी से कि आपके सर में से कोई ठंडी हवा आ रही है क्या? अब लेफ्ट हैंड मेरी और करें अब सर को झुका लें और अब राइट हैंड से देखें कि आपके तालु से कोई ठंडी हवा आ रही है क्या? अब लेफ्ट हैंड मेरी ओर करें अब फिर सर छुका कर राइट हैंड से देखें कि इसके अंदर से आपके तालु के अंदर से कोई ठंडी हवा आ रही है या कि गरम भी आ रही होगी, कोई हरज नहीं गरम आ रही है चाहे ठंडी आ रही है बाद में ठंडी आ जाएगी; अब दोनों हाथ आकाश की ओर करें और गर्दन पीछे कर लें और एक सवाल करें कि श्री माता जी ये क्या परमचैतन्य है? श्री माता जी ये क्या परमात्मा की प्रेमशक्ति है? श्री माता जी ये क्या सब दूर फैली हुई सूक्ष्म परमात्मा की इच्छा शक्ति है? इसमें से कोई सा भी सवाल आप तीन बार पूछे यही: रूह है, यही परमचैतन्य है। अब दोनों हाथ आप नीचे लीजिए जिन लोगों के तालु से या दोनों हाथ से ठंडी हवा महसूस हुई है वो सब लोग अपने दोनों हाथ उपर करें ऐसे सब लोग दोनों हाथ उपर करें, आज तो सब लोग पार हो गए। आप लोग बहुत थोड़े हैं, जो नहीं हुए आपको अनंत आशीर्वाद हमारा है अनंत आशीर्वाद और आप सबको नमस्कार हैं। अब आपने जो पाया है इसे आगे बढ़ाना है इसको ऐसा नहीं छोड़ देना है; इस आत्म साक्षात्कार का आप मान रखें, अपना मान रखें और इसका पूरी तरह से लाभ उठाएं पर्मात्मा आपको सद्बुद्धि दे यही हमारा आपको आशीर्वाद है और आपको कोई परेशानी हो, कोई तकलीफ हो आप हमें चिट्ठी लिख सकते हैं और हम आपके साथ हमेशा रहेंगे। आप हमारे सेंटर पर आईएगा वहाँ पर यह आपको पूरी तरह से आगे कैसे बढ़ना हैं यह सब बता देगें; हम लोग कोई बड़े ताम झाम से नहीं रहते हैं, हमारा सेंटर भी बहुत साधारण तरह का है, जैसा भी है मा का घर समझ के उसे मानने कर लेना चाहिए और वहाँ पर प्रेम से आप लोग सब आएं और आपको सब कुछ प्रेम से बताया जाएगा उसे आप स्वीकारें। आशा है आप लोग, मैं अगले साल जब आऊँ तो, बड़े बड़े वृक्षों की तरह उन्नत हो जाएंगे।

Ramlila Maidan, New Delhi (India)

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