Public Program 1997-12-04
4 दिसम्बर 1997
Public Program
Ramlila Maidan, New Delhi (भारत)
Talk Language: English, Hindi | Transcript (Hindi) - Draft | Translation (English to Hindi) - Draft
'सार्वजनिक प्रवचन एवं आत्म साक्षात्कार' , -Types of powers through Kundalini Awakening , Ramlila Maidan, New Delhi, India 12-4-1997
सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा प्रणाम।
सर्वप्रथम ये जान लेना चाहिए, कि सत्य की अनेक व्याखायें हो चुकी हैं और अनेक किताबें इस पर लिखी गई हैं। धर्म पुरस्सर कितनी किताबें, कितने प्रवचन, कितने भजन, कितनी भक्ति आप के सामने हैं। आज विशेषकर तेग बहादुर गुरु जी का विशेष दिवस है। उन्होंने भी कहा है, कि परमात्मा की भक्ति करो। परमात्मा की भक्ति से आप प्राप्त कर सकते हैं अपने अंदर के संतुलन को, अपने अंदर की शांति को, और जो कुछ भी आप के अंदर एक तरह से दुर्गुण चिपके हुए हैं, वो सब खत्म हो जाएंगे।
पर आज कल का जमाना ऐसा नहीं रहा। आज कल के जमाने के लोग कोई विशेष हैं। एक इधर तो वो बहुत साधक हैं, खोज रहे हैं, सत्य को पाना चाहते हैं, और दूसरी तरफ ऐसे लोग हैं कि जिनको किसी भी चीज का डर ही नहीं लगता। न तो परमात्मा का डर लगता है। उनसे बताया जाए कि ऐसे गलत काम करने से तुम्हे नर्क प्राप्त होगा। वो उस चीज को नहीं मानते। ये कहा जाता है कि सात जन्म तक मनुष्य इस पाप को ले कर के न जाने कितने तो भी हर तरह के दुख दर्द से गुजरता है। कुछ भी कहिए, किसी भी चीज से डराइए, कुछ भी कहिए, वो डर मनुष्य में बैठता नहीं। ऐसे अजीब पत्थर जैसे लोग हो गए हैं।
अब हत्या करना तो महापाप है। फिर मानव की हत्या इस बुरी तरह से करना, छोटे बच्चों को मारना तो बहुत ही महान पाप है लेकिन पाप की भावना ही जब खत्म हो गई, और कोई पाप पुण्य को मानता ही नहीं और 'मैं ही सब कुछ हूं। जो करूंगा सो ठीक है और वो भी सिर्फ पैसों के लिए, जिस की चाहो उस की हत्या कर सकता हूं।'
ये जो स्तिथि आज कलजुग की है, ऐसी कभी नहीं थी। हालांकि, सब लोग ऐसे नहीं है। बहुत से लोग बहुत धार्मिक हैं, बहुत अच्छे हैं और मानते हैं की पाप नहीं करना चाहिए। इतना ही नहीं, नहीं करते! लेकिन ऐसे लोग जो आतताई लोग हैं, जो उग्रवादी हैं, उनके पीड़न से, उनकी तकलीफों से वे आज त्रस्त हैं।
फिर लोग कहते हैं कि फिर भगवान है कहां? भगवान की शक्ति कहां है? जो हम जिंदगी भर इतनी अच्छाई से चलते हैं और फिर हमें इस तरह से ये बिलकुल दलित लोग, दलित मेरा मतलब है जो इतने नीचे गिरे हुए लोग हैं, ये लोग हमें सताते हैं। कोई भी भावना ले कर के लोग आजकल मार रहे हैं। अब धर्म की भावना को लेकर भी वह सोचते हैं, किसी को कत्ल करना बहुत अच्छी बात है। समझ में नहीं आता भगवान के नाम पर भी लोग किसी का नाश करना बुरा नहीं समझते और परमात्मा के नाम पर पैसा इकट्ठा करना, परमात्मा के नाम पर सब तरह का झूठ और पाखंड फैलाना, यह आज की समस्या कुछ जबरदस्त है। और किसी को कुछ एहसास ही नहीं होता, महसूस ही नहीं होता, सोचते नहीं है कि ऐसे कैसे आप छोटे-छोटे बच्चों को मार देते हैं, औरतों को मार देते हैं। इतनी निर्दयता कभी भी देखी नहीं। कोई वजह हो, युद्ध हो तो बात समझ में भी आती है। पर ऐसे कोई बात नहीं, सिर्फ पैसे के लिए। क्योंकि किसी ने आपको पैसा दिया, आप जाकर किसी को मार देते हैं। ये पैसे की जो आजकल बड़ी भारी लालच आ गई है, उससे मनुष्य यह नहीं समझता कि कितने बड़े पाप के गर्त में वह फंसा जा रहा है।
ये माना की गरीबी है दुनिया में और अपने देश में बहुत ज्यादा गरीबी है। उसको हटाने के तरीके भी बना सकते हैं। उस को सोच सकते हैं समझ सकते हैं। इसका एक ही अर्थ है, कि लोग बिलकुल अंधे हो गए। उनकी समझ में नहीं आता कि ऐसा हम क्यों करते हैं। और बस पागल जैसे, सब तरह से अपना भी सर्वनाश कर रहे हैं।
अब इसका इलाज आज कलयुग में है, तो वो है सहज योग। माने आप पहले अपने को जानिए, आप क्या हैं। आप अपने को पहचाने बगैर, ना तो धर्म जान सकते हैं ना आप परमात्मा को जान सकते हैं, क्योंकि धर्म के नाम पर भी दुनिया भर के गुनाह हो रहे हैं, और अच्छाई के नाम पर भी बहुत उत्पात हो रहे हैं। कुछ लोगों को समझ में ही नहीं आता है, कि क्या करना चाहिए जिस से की ये मनुष्य की स्तिथि ठीक हो जाए।
एक दूसरे से मनुष्य डरने लग गया है, घबड़ाता है, परेशान है और परमात्मा से नहीं डरता। ये सारी बातें करने से गर्मी भर आती है और कुछ नहीं। लेकिन मनुष्य में वो संवेदना नहीं। उसके अंदर वो शक्ति नहीं रह गई, जिस से वो उसे जाने वो क्या कर रहा है, किस गर्त में फंस रहा है। क्या कर रहा है, कहां गुमराह हो रहा है। अब उसे कितना भी समझाओ, समझाना समझाना रह जाता है और सिर्फ मस्तिष्क तक, जिसे की मेंटल कहते हैं उस से आगे नहीं। अब किसी ने बुद्धि से समझ भी लिया, तो भी एक तरफा वो ठीक से भी चले तो भी दूसरी तरफ वो गलत चल सकता है।
ये सब जो आज संसार में हो रहा है, लोगों को अविश्वास हो रहा है। सोचते हैं कि परमात्मा नाम की कोई चीज नहीं। उसकी चैतन्य नाम की कोई शक्ति नहीं। तो अब हमारी समझ में ये आना चाहिए, कि कुछ न कुछ परिवर्तन जब तक मनुष्य में नहीं होगा, जब तक मनुष्य बदलेगा नहीं, जब तक उसकी वास्तविकता क्या है वो ना समझे, और समझने के बाद, उसमें जब तक वो आत्मीयता ना आए, तब तक वो जानवर से भी बदतर होता जा रहा है। कम से कम जानवर अपने बच्चों को नहीं मारते। आप अगर कुछ जानवरों को साथ छोड़ दीजिए, और वो एक जाति के होंगे तो वो आपस में मारते नहीं। और हम लोग अपनी ही जाति, याने मानव जाति का ही संहार कर रहे हैं। बड़े बड़े नाम ले कर के बड़े बड़े ध्येय बताना। इत्ती (रिकॉर्डिंग कटी है) किसी का भी भला नहीं हो सकता। आप का तो बिलकुल नहीं हो सकता है।
पर ये मेरे कहने से कोई चीज बदलने वाली नहीं। उसके लिए आप के अंदर परिवर्तन होना चाहिए। आप के अंदर यह बात आनी चाहिए कि आप समझ लें आप क्या हैं। इस की परमेश्वर ने आप के अंदर पूरी व्यवस्था की है। आप के अंदर कुंडलिनी नाम की शक्ति है और आप को इस के बारे में सब बताया गया है। और ये सब चक्र हैं जिस से की कुंडलिनी का गुजरना जरुरी है। सारे बड़े बड़े गुरुओं ने कुंडलिनी का वर्णन किया हुआ है। हर एक धर्म में कुंडलिनी का धर्म है।
मोहम्मद साहब ने भी बताया है कि जब उनको उत्थान हुआ, तो एक सफेद घोड़े पर जैसे बैठ कर के वो सात मंजिलें उतर गए जैसे की सात हमारे चक्र होते हैं। पर उनको गहराई से कोई पढ़ता ही नहीं। उनको समझता ही नहीं है। कोई भी गुरु जो की असली गुरु थे, उनकी बातें आप सुने तो उन्होंने ये सारी बातें बताई हुई हैं।
इस परिवर्तन के सिवाय कोई और मार्ग आप के अंदर नहीं है, क्योंकि इस परिवर्तन से आप में शक्ति आ जाती है। आप सशक्त हो जाते हैं। अपना आत्म सम्मान आप वो समझते हैं और उस आत्म सम्मान में ही आप गौरांवित होते हैं। उस के गौरव को आप समझते हैं, कि इतनी बड़ी हमारे सामने एक संपति, बहुत बड़ी संपत्ति हमारे अंदर आ गई कि हम अपनी आत्मा को समझते हैं और उसका हम सम्मान करते हैं। ये तो नहीं हो सकता है हम आपसे कहे कि आप आत्मा है, तो आप कहेंगे (काय पर से??) कैसे कहा आप ने कि आप आत्मा हैं? इसको सिद्ध करना होगा और यही सिद्धता आप सहज योग में पाते हैं।
दूसरी बात समझने की है, कि यह आपके अंदर, सब के अंदर यह शक्ति है। अभी यहां जितने लोग बैठे हैं, मेरे ख्याल से 99% लोगों ने इस को महसूस किया है और इसका अनुभव किया है। ये बड़ी मेरे लिए भी बहुत आनंद की बात है कि इस उत्तर प्रदेश में और दिल्ली में इतने लोगों ने इस को स्वीकार्य किया, और अपनाया है और अपना कर इस चीज को अपने अंदर बसाया। अब आप का कर्तव्य होता है कि आप के अंदर जो शक्तियां आई है उसे आप जान लें। क्या क्या शक्तियां आप के अंदर हैं।
पहली जो शक्ति आपके अंदर ये है कि आप स्वयं दूसरों को जाग्रत कर सकते हैं। दूसरी शक्ति आपके अंदर यह आयेगी, कि ये दुनिया भर की जो इच्छाएं, आकांक्षाएं और जो ये लालसाएं हैं वह न जाने कहां खत्म हो गईं, क्योंकि ये अंधकार जो हमारे अंदर छाया हुआ है, जब प्रकाश आते ही नष्ट हो जाता है तो हम प्रकाश के रास्ते पर चलना शुरू कर देते हैं। उसी में हमें बड़ा समाधान और आनंद और बहुत सुख मिलता है। और इसी की हमें प्रतीक्षा थी, जो आज हम अनुभव कर रहे हैं। ये चीज बातचीत की नहीं अनुभव की है। और जब हो जाती है तब मानव एक विशेष स्वरूप का, मैं जिसको महामानव कहती हूं, बन जाता है। महामानव का मतलब पहले तो ये होता है की वो अपने अंदर सब को महसूस कर सकता है। इस को हम सामूहिक चेतना कहते हैं। वो हमें अंदर जागृत हो जाती है और उस सामूहिक चेतना से हम क्यों किसी को मारेंगे? कौन है दूसरा जिसे हम मारें? हम अपने ही को मार रहे हैं। किसको ठगना है? हम अपने ही को ठग रहे हैं। ये समझ लेना चाहिए कि हमारे ही अंदर पूरा विश्व है। पर ये समझने से नहीं होगा। ये महसूस करना चाहिए, अंदर में इसका अनुभव आना चाहिए। जब इसका अनुभव आएगा तो आप को आश्चर्य होगा, कि आप तो शांति के सागर हैं। आप के अंदर शांति विराजमान, एक सुंदर स्वरूप में बसती है। और वो शांति आप सब दूर फैलाना चाहते हैं। आप को लगता है कि मैं ही क्यों इसको अनुभव करूं? और इतने लोग हैं, उनको भी ये अनुभव मैं दे सकता हूं। इस तरह से एक अंतरिक एकता आप के अंदर स्थापित हो जाती है।
कोई धर्म की बात करने की जरूरत नहीं, कोई डराने की जरूरत नहीं, कोई धमकाने की जरूरत नहीं। आप के अंदर स्वयं ही प्रकाश जब आ जाता है, तो आप अपने ही को सम्मानित
करते हैं और उस सम्मान में आप की ये जो दुनिया भर की बेकार की चीजों में भाग दौड़ मची है, वो सब रुक जाती है।
जैसे अभी हम आ रहे थे। देखते हैं रास्ते पर मोटरों पर मोटरें। ये चला जा रहा है, वो जा रहा है। ये क्षण भर रुक कर आप देखें, तो लगेगा कहां जा रहे हैं पागल जैसे! उल्टी तरफ कहां जा रहे हैं? क्या करने जा रहे हैं? क्या मिलने वाला है? यही आप की दशा हो जायेगी। और फिर आप खुद खड़े हो जाएंगे और रोकेंगे, ''भाई रास्ता उधर नहीं इधर है।'' ये जो एक आप के अंदर शक्ति बसी हुई है, ये जगाने की शक्ति आप के अंदर है। फिर अपने को शुद्ध करने की आप के अंदर शक्ति है।
रास्ते से पढ़ते आ रही हूं कि 'स्वच्छ दिल्ली ' स्वच्छ कैसे हुई? स्व, स्व माने आप, स्वयं आत्मा। इसी से हो सकता है? ऐसे बाहरी स्वच्छता से क्या फायदा? अंदर से जब स्वच्छता हो जायेगी तो आप जानिएगा कि आप क्या हैं। आप के अंदर कितने सद्गुण हैं। कितने आप के अंदर प्रेम के प्रवाह बह रहे हैं। कितने आनंद की सृष्टि आप के अंदर हो सकती है और ये आप कितने लोगों ने अनुभव किया है, कोई नई बात मैं नहीं बता रही हूं, पर अब उसको बढ़ाना है और दूसरों को देना है।
मुझे पता हुआ कि बहुत जगह से लोग यहां आए हैं, बाहर से परदेस भी आएं हैं। और आप भी आज पास से, उत्तर प्रदेश के लोग, दिल्ली के इतने लोग यहां आए हुए हैं। अब आप सोच लीजिए के आप सब एक हैं। ये भावना जो है की हम सब एक हैं, ये सिर्फ दिमागी जमाखर्च नहीं हैं। ये अंदरूनी, अंदर से आप को अहसास होता है कि हम सब वास्तव में एक हैं। एक ही सागर की अनेक लहरें जैसे बहती हैं, ऐसे ही आडोलित हो रहे हैं हम, वही आंदोलन चल रहा है, और जब इस चीज को आप ठीक से पा लीजिएगा, इस के अंदर आप ठीक से उतर जाइएगा तो न जाने एक आदमी कितने लोगों की जिंदगी बदल सकता है। इसी तरह से यह सहज योग फैलने वाला है।
लेकिन इसके साथ प्रताड़ना नहीं कर सकते आप। इस को आप दगा नहीं दे सकते। बहुत से लोग हैं हमको ठगते हैं, पैसा ले जाते हैं, ले जाने दो! ऐसे जो लोग हैं जो गलत काम करते हैं, उनको करने दो। अब आप को चाहिए कि आप क्या हैं। आप की शक्ति क्या है? और आप इस को इस्तेमाल क्या कर रहे हैं? एक गुरु आए, एक ही, उन्होंने दुनिया बदल दी। उन्होंने इतना कुछ कर दिया। इतना कुछ लिख दिया।इतना कुछ बोल गए। और हम लोग तो हजारों हैं। हजारों में हजारों हैं। हर जगह फैले हुए और हम लोग सब एक हैं।
पहले बिचारे एक एक गुरु होते थे, एक एक साधु होते थे, सूफी होते थे और उनको सब लोग सताते थे। उन को छलते थे। आज ऐसी बात नहीं है। आज हम सब एक हैं किसी भी जाति के हों। आप हिंदू में पैदा हुए, मुसलमान में पैदा हुए, क्रिश्चियन में पैदा हुए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आप इस देश में पैदा हुए हो, परदेस में पैदा हुए हो, इससे भी फर्क नहीं पड़ता। आप की एकता आप महसूस करिएगा, चाहे आप जहां जाएं।
अब इस में ये है, कि ये चीज एक अनुभव हैं, माने आप को कुछ होना है। आप को कुछ बनना है। सहज योग में ऐसा नहीं कि आपने 10 पैसे दिए और आप मेंबर हो गए। ऐसा नहीं होता! आप को बनना है, और वो बनना आप के लिए बहुत आसान है। उस में पैसे वैसे का तो सवाल ही नहीं उठता। भगवान को पैसा मालूम नहीं क्या चीज है, लेकिन आप भी समझ जाएंगे कि बनना जो है कठिन नहीं। अपने आप सब चीज़ घटित होती है। अपने आप सब अच्छाई हमारे अंदर उतरती है और हमें प्रकाशित करती है।
तो ये क्या बात है ये किस तरह से हों रहा है। क्योंकि जब आप की कुंडलिनी जागृत होती है तो आप का संबंध चारों तरफ फैली हुई विश्व की चैतन्य शक्ति से, आप एकाकारिता प्राप्त करते हैं। उस एकाकारिता से आप स्वयं, जैसे की अब ये बिजली है, देखिए यह चारों तरफ फैली हुई है। इसका संबंध उस शक्ति से है, जहां से ये बिजली आ रही है। इसी प्रकार आप का भी संबंध उस से हो जाता है। और होने के बाद आप फिर देखते हैं कि आप का हर एक काम सुलझ जाता हैं। हर एक चीज ठीक हो जाती है। कोई गड़बड़ भी करे, वो ठीक हो जाती है।
अब ये जो मैं कह रही हूं कोई झूठी बात नहीं है। आप इसका प्रत्यय लीजिए और इसका अनुभव कीजिए और अनुभव के बाद आपको लगता है, कि मैं क्यों परेशान हूं? सब चीज तो ठीक हो गई। मैं क्यों परेशान हूं? मैं किस चीज के लिए परेशान हूं? हर चीज की एक हद होती है और जब वो हद से गुजर गई, तो देखते है आप, कि हैरान हैं सब चीज सामने, सब चीज ठीक हो गई। सब मामला बन गया। ये आप लोगों का अनुभव है, और ये अनुभव आप चारों तरफ फैलाइए, क्योंकि आज जो है अपना देश ऐसे कगार पर पड़ा हुआ है, कि न जाने कब लुढ़क जाए, इसलिए आप लोगों को इस की धुरी सम्हालनी है। आप को रोकना है। आप ही लोग इसके संभालने वाले सत्व हैं। ये नहीं कि हम सहज योगी हो गए और बस हो गया।
इस देश की जो प्रज्ञा बिगड़ गई है, इस के जो हालात बिगड़ गए हैं, इस में सब को एक जुट हो कर आप को रोकना है, और आप के अंदर ये आशीर्वाद हैं, कि आप हर तरह की शक्ति को प्राप्त करें। आज हमारे यहां इतने बड़े बड़े गुरु हो गए, इतने बड़े बड़े अवतरण हो गए, लेकिन वो सारे अवतरण आज आप के अंदर दृश्यमान होने चाहिए। लोगों को दिखाई देना चाहिए और उनको लगना चाहिए, कि ये कोई चीज आई है। ये कोई विशेष चीज है। ये ऐसे वैसे आदमी नहीं हैं जो बेवकूफी में आ जाएं। ये सिर्फ बेवकूफी की बात नहीं है। ना जाने किस वजह से हमारे अंदर इतनी क्रूरता और इतनी गिरी हुई बातों का समन्वय हो गया। अगर यह सिर्फ पैसों के लिए के लिए हो तो भी समझ में आता है, पर उस के अलावा ये किसी तरह की राक्षसी प्रवृत्ति से कार्य होता है। और ये राक्षसी प्रवृत्ति आज संसार में बहुत बढ़ गई है। पहले एक ही रावण था लेकिन आज में देखती हूं कि हर दस आदमी के बाद एक रावण खड़ा हुआ है। पर बाकी के दस अगर पूरी तरह सहज योगी हैं तो वो उस रावण को पूरी तरह नष्ट कर सकते हैं। उसकी नष्टता का मतलब है कि उसका जागरण। उसकी नष्टता ये नहीं कि उसके दस सिर उतारें, उस को आप जागृत करना है और उस को जाग्रत कर के उस को ये आनंद का अनुभव दें।
सहज का रास्ता प्रेम का है, सिर्फ प्रेम और प्रेम जो सत्य है। सत्य और प्रेम में कोई भी अंतर नहीं। अगर आप किसी को प्यार करते हैं तो उसके बारे में सब जानते हैं। इस प्रेम की शक्ति को आप इस्तेमाल करें। लोग समझते ही नहीं हैं कि ये जो चैतन्य सृष्टि है, यह सब हमारे अंदर प्रेम की वर्षा है। इसमें से प्रेम बहता है और यह प्रेम जो है, सारे संसार में छा जाएगा एक दिन, कि आप आश्चर्य करेंगे कि ये संसार क्या था और क्या नहीं। आप ही के, आप ही के आयुष में ये होगा, आप ही की जिंदगी में ये होगा और आप देख कर हैरान होंगे कि यह दुनिया आपने बदल दी, कहां से कहां पहुंचा दी। आप को कोई खास मेहनत नहीं करनी। सब आनंद की बात है।
जब आप दूर दूर से आए हैं, आप ने देखा है कि जब आप गाड़ी में बैठ कर आ रहे थे, तो भी आप मजे उठा रहे थे। जब आपको कहीं और रहना पड़ा, जहां के रहने की व्यवस्था नहीं है, तो भी आप मजे उठा रहे हैं। एरोप्लेन से जब मैं आती हूं तो मुझे चिंता रहती है, कि एरोप्लेन अगर टाइम से नहीं पहुंचा, तो वहां न जाने कितने बिचारे लोग आए होंगे। पर मैं देखती हूं कि सब खुशहाल हंस रहे हैं। मैने कहा, 'भई कर क्या रहे थे? चार पांच घंटे लेट हो गया प्लेन।' कहने लगे, 'मां इतना मजा आया! ऐसे तो कहीं भी नहीं आता।' ये समझने की बात है कि इंतजार में लोग परेशान रहते हैं लेकिन यहां इंतजार में ही लोगों ने मजा उठाया और देखा। ये सारी सुंदर, अप्रतिम इस तरह की जो जिंदगी आप के सामने है, बस आप को इसमें उतरना है। प्रयत्नशील हो कर के उतरना है। ध्यान से इस में उतरना है और इस को प्राप्त करना है।
ये काम बुद्धि से नहीं जाना जा सकता, ना ही ये काम कोई मेहनत करने की ज़रूरत कि आप सिर के बल खड़े हो जाइए। कुछ नहीं! बस आप इस में घुलते जाइए और इस में पिघलते जाइए। इस प्यार की जो महानता है वो ये है, कि आप को कोई कष्ट नहीं। आप के सारे जो कष्ट हैं वो पता नहीं कहां नष्ट हो जाते हैं और जो आप के अंदर जो एक नया जागरण होता है, उस से सारी दुनिया एक बड़ी अदभुत सी चीज लगती है।
वैसे देखिए, तो परमात्मा ने बहुत सुंदर दुनिया बनाई। उसकी कोई गलती नहीं और उस ने आप के अंदर भी कुण्डलिनी बना के रखी है। वो भी चाहता है कि आप अपने जागरण को प्राप्त करें और इसमें उतरें, पर आप छोटी छोटी चीजों में उलझे हुए हैं। बेकार की बात जैसे कि कोई कहेगा कि, 'साहब मैं तो ईसाई हूं। मैं तो नहीं मानता। मैं फलाना हूं। मैं तो नहीं मानता।' अरे! नहीं मानने से क्या फायदा है? सारे धर्मों में लिखा है कि आप को आत्म साक्षात्कार पाना है। बगैर आत्म साक्षात्कार के आप परमात्मा को भी नहीं जान सकते। यह बात बिल्कुल सही है, और जब तक आप इसको प्राप्त नहीं करते आप बैचेन रहे, आप परेशान रहे, आप तकलीफ में रहे, पर जैसे ही ये प्यार का सागर उमड़ता हुआ आप को अंदर खींच लेगा, आप सोचेंगे पता नहीं ये कैसे?
बहुत से सहज योगियों ने मुझ से कहा कि 'मां क्या हमारे पूर्व जन्म के कर्म बहुत अच्छे थे, कि हमें ये चीज प्राप्त हो गई।' मैने कहा, 'पूर्वजन्म की बात ही न करो, अभी इसी जन्म की बात करो।' इसी जन्म में आप का परिवर्तन हो गया है और इस परिवर्तन को स्वीकारें सिर आंखों पे। और इसकी वजह से जो जो कार्य हो सकता है, बहुत प्रेम से करो।
कोई आदमी खराब हो सकता है। सहज योग में ऐसे आदमी घुस आते हैं, कुछ हर्ज नहीं! उससे आपका कुछ लेना-देना नहीं। आपका लेना देना परमात्मा से है, इस परम चैतन्य से है और इतना सुघड़, इतना शास्त्रीय और कोई सा भी मार्ग नहीं, क्योंकि पहले जो बिचारे हो गए, अवतरण हो गए, गुरु हो गए, वो एक तो आप लोगों को जाग्रति नहीं दे पाए, और दूसरी बात ये भी है कि उनको समझना आप लोगों के बस का नहीं। यह सर्वसाधारण बुद्धि तक पहुंचने वाली बहुत ही (अस्पष्ट) है कि कुंडलिनी का जागरण कर लो।
इस के लिए कोई ज़रूरी नहीं, कि कोई जाति पाति कुछ, यह सब व्यर्थ की बातें, व्यर्थ के विद्रोह हैं। आपस में जो रिश्तेदारी है, प्यार है, वो दूसरे तरह से समझना चाहिए, कि जिस में कोई लोभ नहीं है, कोई मोह नहीं है, कोई मत्सर नहीं है, सिर्फ प्यार ही प्यार है। ऐसी रिश्तेदारी आपस में हो जाती है सहज योग में और अगर कुछ कमी रह जाती है, तो उस को भी आप ध्यान से साफ कर लेते हैं। ऐसे सुंदरतम, महान जीवन के आप अधिकारी हैं और उसे प्राप्त करना चाहिए।
ये भारतवर्ष योगभूमि है। यहां कुछ भी होने दीजिए। बेकार की चीज़ें होती रहती हैं। पर ये योगभूमि है और इस योगभूमि का मतलब यह है, कि यहां पर सब से ज्यादा चैतन्य की महिमा है। चैतन्य चारों तरफ यहां फैला हुआ है। अभी आप प्रदूषण की बात करते हैं, पर मुझे तो चैतन्य ही दिखाई देता है चारों ओर। आप लोग जहां बैठे हैं वहां भी चैतन्य ही चैतन्य है। जैसे जैसे सहज योगी बढ़ेंगे, ये प्रदूषण आदि चीजें अपने आप नष्ट हो जाएंगी। ये मेरी बात आप बांध के रखिए।
अब अपने जीवन की ओर थोड़ी दृष्टि करें, कि हम क्या कर रहे हैं। हम अपना जीवन कैसा व्यतीत कर रहे हैं। रात दिन पैसे की चिंता? रात दिन और बेकार चीजों की चिंता करते हैं या हम अपने चिंतन में बैठ कर अपने को देख रहे हैं और अपने गौरव को देख रहे हैं, अपनी महानता को देख रहे हैं, और उसके साथ अपने प्यार का प्रवाह सारे संसार में फैलाना चाहते हैं? ये एक सहज योगी का परम कर्तव्य है। उस को कुछ पैसा देना जरूरी नहीं, उस को कुछ करना जरुरी नही। उस के सारे कार्य ठीक हो जाएंगे। बस एक ही उसे करना है कि अपने को पूरी तरह से वो जान ले, कि वो कितना महान है, उस में कितनी विशेषताएं हैं।
आज आप लोग यहां पर आए इतने दिन में। बहुत परेशानी से भी आए हैं लोग। मैंने सुना कि बाहर से आए हैं। यहां कोई व्यवस्था भी नहीं कि मेरे बच्चों के लिए कोई व्यवस्था करूं। वो अपने ही अंदर समाये हुए हैं और व्यवस्थित हैं। कैसे कैसे हो रहा है सब कुछ, समझ में नहीं आता, क्योंकि ये अंदर की जो एकता है उसका स्वरूप, उस एकता में आप मजे उठा रहे हैं। चाहे मंडप के नीचे बैठे, चाहे नदी के पास जा के बैठें, चाहे कहीं बैठें। जब चार आदमी सहज योगी मिल जाते हैं, बस उनको मजा आता रहता है। ये सब आनंद का प्रदुर्भाव है। आनंद फूटता है अंदर और इस का सारा स्थान हमारे हृदय में है और इस आनंद को जब हम अपने अंदर प्राप्त करते हैं, तो जैसे आप को बताया गया होगा, कि सहस्त्रार् में ये निरानंद हो जाता है। बस कोई कह ही नहीं सकता कि ये आनंद क्या है, निरानंद, पूरी तरह से आनंद, हर एक चीज में आनंद। छोटी छोटी चीजों में, बड़ी बड़ी चीजों में सब में आनंद ही आता है और जब आप की दृष्टि ऐसी किसी चीज पर जायेगी, जो गलत है, जिस से समाज की हानि होती है, जिससे लोगों को दुख हो रहा है, तो आपको आश्चर्य होगा कि आप का जो चित्त है वो कार्यान्वित होता है और वो कार्यान्वित हो कर के इन सब चीजों को खत्म कर सकता है।आप का चित्त वहां जाना चाहिए। अगर आप का चित्त सिर्फ अपने में ही समाया हुआ है तो बेकार है, क्योंकि ये चित्त जो है ये प्रकाशित है। ये चित्त आप जहां भेजेंगे, कोई सी भी चीज आप जान लेंगे, फौरन उस चीज का इलाज हो सकता है और वो भी सामूहिकता में। पर हमारे चित्त को भी हमें स्वच्छ रखना चाहिए। अगर हमारा चित्त ऐसी वैसी चीज़ों में उलझा रहे, तो वो इतना कार्यान्वित नहीं हो सकता। पर अगर हमारा चित्त उस परम शक्ति से प्लावित है और उस से आशिर्वादित है, तो वो चित्त इतना कार्य कर सकता है। कहीं भी आप जायेंगे आप को आश्चर्य होगा कि कल ही हम ने सोचा था आज हो गया। और बड़े पैमाने पर, बड़ी सामूहिकता पर ये कार्य करता है।
ये सोचना, कि अब हम दो चार सहज योगी हो गए, तो हमारा क्या? दो चार नहीं है, आप अनेक अनेक, हर देश में, हर जगह आप बसते हैं।
[English to Hindi translation]
मैं क्षमा चाहती हूं कि मुझे हिंदी भाषा में बोलना पड़ रहा है, क्योंकि बहुत सारे लोग हैं जो सिर्फ हिंदी भाषा जानते हैं।
परंतु मुझे आप लोगों के लिए दुख है क्योंकि मैं आपसे दोबारा मिल नहीं पाऊंगी, चूंकि आप टूर पर जा रहे हैं।
मैं जो उन्हें बता रही हूं, वो ये कि, धर्म के द्वारा जो कुछ भी सिखाया जाए, और जो कुछ भी कह कर के वो आप को डराएं कि आप नर्क में जायेंगे, ये होगा, वो होगा, जो भी कुछ है, लोग किसी भी चीज से नहीं डरते। और वो क्या चाहते हैं? वो चाहते हैं कि जो कुछ भी उन्हें करना है, वो उसे करेंगे। वो डरते नहीं हैं। उनका भय खत्म हो चुका है। परमात्मा का भय खत्म हो चुका है। पाप का भय खत्म हो चुका है। ये सब समाप्त हो चुका है, और इसीलिए ये समझना महत्पूर्ण है, कि हम को एक नए व्यक्तित्व में परिवर्तित होना है।
यह व्यक्तित्व शांति का समुद्र बन जाता है, शांति का समुद्र और इस शांति से आप शांति फैला सकते हैं, और जब आप शांत होते हैं, आप अपने जीवन की वास्तविकता, अपने जीवन का सौंदर्य देखते हैं। तभी आप समझते हैं, के अन्य लोग भी उतने ही सुंदर हैं जितने कि आप।
अब यह सब विनाश, युद्ध, सब बेकार की चीजें हो रही हैं, क्योंकि हम सोचते हैं वे दूसरे लोग हैं और हम भिन्न हैं। हम सब एक हैं, एक ही धागे में एक साथ बंधे हुए। भूमि देवी भी उसी का अंग प्रत्यंग है। सारे तारे और सारे आकाशीय पिंड सभी उसी का अंग प्रत्यंग हैं, और हम उनमें से एक हैं।
तो यह परिवर्तित होना था। इस विश्व को आपके द्वारा परिवर्तित होना था। आप उत्प्रेरक हैं। आपके द्वारा यह परिवर्तित होगा, ना की इसके बारे में बात करने से, या लोगों को धमकाने से, या उन्हें कथाएं सुनाने से। हर प्रकार की चीजें हैं इस दुनिया में हो रही हैं। परिवर्तन जो इतना महत्वपूर्ण है उसे प्राप्त करना बहुत सरल है क्योंकि आप साधक हैं। आप सत्य के साधक हैं और आप जानते हैं कि इसे सरलता से प्राप्त किया जा सकता है और अनुभव किया जा सकता है। जब वो शांति आप खुद अपने अंदर अनुभव करते हैं, लोग देखते हैं, प्रभावित होते हैं, और आप शांति फैला सकते हैं। शांति तभी संभव है, अगर आप के अंदर वास्तविक दिव्य प्रेम बह रहा है, वरना प्रेम की बातें करना व्यर्थ है।
मैं ऐसे लोगों को जानती हूं जिन्हें शांति पुरस्कार मिले हैं। मुझे नहीं मालूम उन्हें यह पुरस्कार क्यों मिले हैं। उनके अंदर बिलकुल शांति नहीं है। आपके अंदर शांति होनी चाहिए और यह शांति तभी संभव है जब आप में परिवर्तन होता है, परिवर्तन एक नए जीव में, एक नया व्यक्तित्व में, जिसके बारे में सारी भविष्यवाणियां हैं। सभी धर्म ग्रंथों ने इसके बारे में कहा है। सभी अवतरणों और सभी संतों ने इसके बारे में बताया है। वह परिवर्तन आपके लिए उपलब्ध है। अगर आप ये परिवर्तन चाहते हैं, तो वह बिल्कुल भी कठिन नहीं है, परंतु आपको ज्ञात होना चाहिए कि आप वह परिवर्तन बहुत ही सरलता से प्राप्त करने के योग्य हैं।
मुझे दुख है कि अब आप सब लोग टूर पर चले जाएंगे और मैं इस बार आपके साथ यात्रा नहीं करूंगी। परंतु मुझे आशा है कि आप सब यात्रा का आनंद लेंगे और कला और सौंदर्य का आनंद लेंगे।
परमात्मा आप सबको आशीर्वादित करें।
[Hindi transcription]
आप सब को परमात्मा आशीर्वादित करें!
I am so very happy to see you all here. आप सब को देख के मैं तो आनंद से भर गई। जो मै सोच भी नहीं सकती थी कि इतना ज्यादा सहज योग का फैलाव होगा, आज दिखाई दे रहा है और बड़ी आशाएं मेरे अंदर आ गई हैं, कि अब ये दुनिया बदलेगी और जरूर बदलेगी। (तालियों का स्वर, श्री माताजी के चेहरे पर एक मुस्कुराहट)
अब आज के लिए कार्यक्रम छोटा सा है, कि आप लोगों की जाग्रति करना। इतने लोग यहां जागृत बैठे हैं, कोई खास जरूरत नहीं पर तो भी, आप लोग चाहते हैं तो उसको बहुत आसानी से किया जा सकता है। इस भारतवर्ष में बहुत आसान है। बाहर तो मेरे हाथ पैर टूटते थे। यहां तो बहुत आसान है क्योंकि आप नहीं जानते कि किस भूमि पर आप बैठे हैं। ये भूमि महान भूमि है और इसपे बैठा हुआ इंसान एक अत्यंत पवित्र वस्तु पर बैठा हुआ है। ये अपना देश बहुत पवित्र है और इस में जो पवित्र और धार्मिक शक्तियां हैं वो आप की मदद करती हैं। आप नहीं जानते कि हिंदुस्तान का आदमी कुछ भी कहिए, कुछ तो बहुत ही खराब हो गए हैं, सड़ गए हैं लेकिन एक विशेष रूप से धार्मिक, इसलिए मैने देखा है कि यहां हजारों लोग हों, फट से पार हो जाते हैं। पर उस में उतरने की क्षमता कम है।
अब जैसे ये परदेसी लोग हैं इनको टाइम लगता है। इन्होंने कभी सुना भी नहीं था, कि ऐसा कुछ हो सकता है। इनको समय लगता है पार होने मे, पर ऐसे जमते हैं ये लोग, कि एक एक हीरा बन के निकलता है। वही सब आप में होना चाहिए। आधा अधूरापन जो है, यह ठीक नहीं।
इसलिए मेरी ये विनती है कि आज फिर से आप को जाग्रति का अनुभव आएगा, पर उसके बाद आप इस में ध्यान करें और अपनी प्रगति करें। और दूसरों को जब आप जाग्रति देंगे, उसका आनंद अनुभव करें। इस से बढ़ कर और कोई चीज है ही नहीं। इस से बढ़ के सुखदाई चीज और कोई नहीं है। और आप ने देखा हो होगा, आप में से बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्होंने लोगों को जाग्रति दी, और उनको पार कराया और उनको बिलकुल बदल दिया। ऐसी ऐसी चीजें हैं।
इटली में एक माफिया के लीडर साहब मुझ से मिलने आए और मुझे कहने लगे कि, 'मां मुझे आप पार कराइए।' तो मैने कहा, 'तुम्हारे माफिया का क्या होगा?' कहने लगे, 'क्या काम का है ये माफिया। मुझे नहीं चाहिए। मुझे तो भगवान के माफिया में जाना है।'(श्री माताजी हंसते हुए) तो मैंने कहा, भगवान का कोई माफिया नहीं। भगवान के दरबार में सिवाय प्यार के और कोई चीज नहीं।' और वो आदमी पार हो गए और उन्होंने सब माफिया खत्म कर दिया उस जगह का। इस तरह से धीरे धीरे बहुत सी चीजें ठीक हो जाएंगी।
अब आप लोग सब इस तरह से मेरी ओर हाथ कीजिए।
दोनो हाथ मेरी ओर ऐसे करें, सीधे। और अब अपने तालू भाग, आंख खुली रंखें, आंख बंद करने की जरूरत नहीं है। अपने तालू भाग पर अपना राइट हैंड इस तरह से रखें, माथे से ऊपर, हट कर, सिर से ऊपर।
अब आप अपने लेफ्ट हैंड सिर पे ऊपर रखिए और सिर झुका के और देखिए कि आप के अंदर से, आप के खुद के अंदर से, कुंडलिनी जाग्रति के कारण ठंडी ठंडी हवा या गरम हवा सिर में से आ रही है। ये समुहकिता में और भी जल्दी कार्य करता है। अब जरा हाथ कभी जरा ऊपर भी करना पड़ता है। बहुत ऊपर तक आती है, किसी को नजदीक आती है। थोड़ा हाथ को घुमा के देख लीजिए।
अब लेफ्ट हैंड मेरी ओर करें। और राइट हैंड को अपने सिर मे तालू के ऊपर, जो एक स्निग्ध सा हिस्सा था जब आप बच्चे थे, उसके ऊपर ऊपर राइट हैंड रखें।
सब अपने हाथ ऐसे ऊपर कर के सिर नीचे कर लें और मुझ से एक सवाल, तीन सवालों में से कोई सा भी, एक सवाल तीन बार पूंछे।
ये क्या आदिशक्ति की शक्ति है?
क्या मां ये परम चैतन्य है?
इस में से कोई भी एक प्रश्न तीन बार पूछिए। हाथ ऊपर करिए और सिर पीछे करिए। अब हाथ नीचे कर लीजिए।
फिर से दोनो हाथ मेरी और करें। इस के बाद जब आप की कुंडलिनी आज्ञा चक्र को लांघ जायेगी, तो आप निर्विचारिता में उतरेंगे। आप को पूरा होश रहेगा लेकिन आप निर्विचार होंगे। निर्विचारिता बहुत ज़रूरी है। अब दोनों हाथ मेरी तरफ कर के आप निर्विचार होने का प्रयत्न करें।
अब देखिए कि आप के हाथ में ठंडी या गरम हवा जैसे आ रही हो, जो चैतन्य लहरी कहलाई जाती है, या आप की उंगलियों में आ रही हो, या आप के तलुए में आ रही हो या आप के सिर से जिसे ब्रह्मरंध कहते हैं वहां से निकल रही हो।
अगर आप जिस ने इसको महसूस किया, आप कृपया दोनों हाथ अपने ऊपर कीजिए।
सब को अनंत आशिर्वाद है!
हर इंसान जो यहां बैठा हुआ है, हर एक इंसान।
अनंत आशिर्वाद! बच्चों को तो और भी। नीचे कर लीजिए हाथ।
आप सब लोग पार हो गए। अब इस के आगे थोड़ी सी कोशिश करने से, आप अपने चक्रों को भी साफ कर सकते हैं। अपनी परेशानियों को सब को ठीक कर सकते हैं। अब आप से फिर मुलाकात होगी। फिर इस से दुगने लोग आएंगे।
आशा है आप लोग आनंद के सागर में हमेशा खुशी से रहें।
अनंत आशिर्वाद!
(इसके पश्चात श्री माताजी के आगे परदेसी सहज योगी भाई बहन सुंदर हिंदी भजन गा रहे हैं और श्री माताजी उनको ध्यान से देख सुन रही हैं। दूर तक बैठा विशाल जनसमूह में सभी तालियां बजा रहे हैं, झूम रहे हैं और दिव्य संगीत का आनंद ले रहे हैं। इस बीच कुछ सहज योगी श्री माताजी को अलग अलग टोकरियों में बारी बारी से ला कर विभिन्न प्रसाद अर्पित कर रहे हैं। श्री माताजी अपने हाथ प्रसाद पर घुमा कर उसे चैतन्यित कर रही हैं और थोड़ा सा प्रसाद कभी ग्रहण भी कर रही हैं। सहजी मग्न हो कर गा रहे हैं और सभी आनंद ले रहे हैं तथा कुछ लोग श्री माताजी के फोटो खींच रहे हैं। अंत तक श्री माताजी संगीत का आनंद लेते हुए मंच पर विराजमान दिख रही हैं।)