Sahasrara - Atma

Sahasrara - Atma 1985-02-16

Location
Talk duration
85'
Category
Public Program
Spoken Language
Hindi

Current language: Hindi, list all talks in: Hindi

The post is also available in: English.

16 फ़रवरी 1985

Public Program

New Delhi (भारत)

Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft

Sahastrar - Atma Date : 16th February 1985 Place Delhi Туре Public Program Speech Language Hindi

ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK Scanned from Hindi Nirmala Yog सत्य के खोजने वाले सभी साध्कों को हमारा प्रणाम । जीवित रहेंगे? यह हृदय का जो स्पन्दन है- अनहदू, हर आज का मधुर संगीत आज के विषय से बहत सम्बन्धित घड़ी अपने आप ही कार्यान्वित रहता है उसको चलाने के है जिसके लिए मैं देब चौधरी को बहुत-बहुत घन्यवाद देती लिए अगर हमें बाहुय से कोई उपचार करना पड़ता तो हूँ। सभी सहज व्यवस्था हो जाती है और आज संगीत में जो कितने लोग इस संसार में जीवित पैदा होते? ऐसी अनेक आपने सात स्वरों का खेल देखा, हमारे अंदर भी ऐसा ही चीजें जो जीवन्त हैं, हम देखते हैं। फल खिलते हैं अपने आप सुन्दर संगीत नि्माण हो सकता है। यह जो कण्डलिनी के और इनके फल भी हो जाते हैं अपने आप। यह ऋतम्भरा सात चक्र आप देख रहे हैं वे हैं मूलाधार चक्र, मलाधार, स्वाधिष्ठान, नाभि, हृदय, विश्द्धि, आज्ञा और सहस्रार। इसके अलावा हमारे अन्दर सूर्य और चन्द्र के भी चक्र हैं। ब्रहमरन्ध्र को छेदने के बाद भी तीन और चक्र हमारे अन्दर हैं और कार्य करते हैं जिन्हें हम अर्धबिन्द, बिन्दू और वलय कहते हैं। यह सार हमारे अन्दर स्वर हैं। जैसे "स" से शुरू करें तो "सा र गा मा पा धा नी" सहलार पर "नी" जाकर पहुँचता है। इसी प्रकार इन सब चक्रों को शक्ति देने वाले ऐसे ग्रह भी हैं। जैसे मूलाधार पर मंगल, स्वाधिष्ठान पर बुद्ध, नाभि पर गुरू, हृदय पर शुक्र, विशद्धि पर शानि कितने गहन और कितने गणित से बने हैं, इसका अन्दाजा आज्ञा पर सूर्य और सहस्रार पर सोमवार जो कि शिवजी या देवी का स्थान माना जाता है, आदि शक्ति का। इसी प्रकार हमारे नव ग्रह भी इन चक्रों पर बास करते हैं। इसका मतलब यह है कि जो कुछ भी ओकार श्री गणेश से प्रगट है, बह सारा ही एक ही सुर एक ही ताल में पुर्णतः बद्ध हो कर के एक सुन्दर संगीत का साज परमात्मा ने हमारे अन्दर तैयार रखा है। इसको छेदने के लिए ही कण्डलिनी कार्यान्वित होती है। जब क्णडलिनी इन चक्रों को छेदती हुई बहमरन्ध्र तक पहुँचती है, उसके उत्थान से हर चक्र में न जाने कितनी ही गतिविधियाँ हो जाती हैं। बहुत-से लोग सोचते हैं और कहते भी हैं कि माँ यह इतना सरल कैसे? सरल तो ऐसे है कि जितनी भी जीवन्त क्रियाये है, सब चिल्कल ही सहज है। पुक बीज में अंकुर भी सहज ही आता हैं लेकिन जो हम रोज देखते हैं, उसके प्रति कोई भी प्रश्न खड़ा नहीं होता। उसे हम मान लेते हैं। जैसे कि आपके श्वास की क़िया जो है, यह कितनी सहज है। उसके लिए अगर आपको किसी गुरू के पास जाना पड़े या कछ ग्रत्थ पढ़ना पड़े या किसी लाइबेरी में जाना पड़े तो कितने लोग है। यह एक कमाल की चीज है जिसे देखते ही बनता है। प्रज्ञा है जिसने इस पूरी सूष्टि को आशिर्वादित किया है, वह यह सारे जीवन्त कार्य हर क्षण, हर पल करती रहती है। इतना ही नहीं, इसका चयन इतना अद्वितीय है कि उसका अनुमान हम अपनी मानवीय बद्धि से नहीं लगा सकते हैं। माने एक आम के पंड़ में सिर्फ आम ही लग सकता है। एक हिन्दुस्तानी के घर एक हिन्दुस्तानी ही पैदा होता है। मेरा मतलब यह नहीं है कि हिन्दुस्तानी कोई ब्राण्ड लेकर आता है। लेकिन उसकी शक्ल-सुरत से आप जानते हैं कि यह हिन्दुस्तानी है। यह जो चयन है, यह जो चुनाव है, यह हमारे दिमाग में आ ही नहीं सकता। जैसे कि मैंने पहले कहा था कि येह सिर्फ एक ही हो सकता है कि जो सृष्टि में प्रेम है उसे हम सागर में ढाल सकते हैं। सागर से एकाकार होने पर सारी की सारी शक्तियों को देख सकते हैं, जान सकते हैं और उसका आनन्द भी लट सकते हैं। यही कार्य यह कण्डलिनी करती है। लेकिन इसकी साज की व्यवस्था इतनी सुन्दर है कि सारे स्वर जा कर अन्त में अपने मस्तिष्क में, मूलाधार से लेकर सहस्रार तक सातों के सातों, जिन्हें हम कहते हैं कि चक्रों के पीठ, पूरी तरह से अपने कार्य में संलग्न हैं। यह सात चक्र जो हम नीचे देखते हैं, इनके पीठ हमारें मस्तिष्क में हैं। यह सारा तो आप किताबों से जान सकते हैं। लेकिन जिसने आपको बनाया उसका आप कमाल देखिये। सात स्वर बनाने के बाद उसके जो पीठ हैं, उसके हर एक स्वर का निनाद, इन सात पीठों से बने हुए इस मस्तिष्क में इस तरह से घुमाया जाता है। इसकी जो शक्ति है उसको किस तरह से एक सुन्दर-सुगठित ताल बद्ध स्वर में अलापा जाता कुछ 2

Original Transcript : Hindi इस कमाल को हम इसलिए नहीं देख पाते कि हमारी दृष्टि ही बाहर की ओर है। अगर कहा जाए कि आप अन्दर की हैं। यह सारे चक्र भी पंच महाभूतों से, एलिमैन्ट से बने हैं। ओर दृष्टि ले जायें तो आप कहेंगे कि यह कैसे करें माँ? यह तो मुश्किल काम है। आप इस बक्ते मेरी बात सुन रहे हैं। आपका सारा चित्त मेरी ओर है। लैकिन अगर कोई घटना घटित हो जाती है, तो आपका चित्त वेहां आकर्षित हो हो सकता था लेकिन होता नहीं है। पैरासिथैटिक तव्स्स जाता है। इसी प्रकार कुण्डलिनी का जागरण जब होता है, सिस्टम से ही हम इन चक्रों को संचालित करते हैं। जब तक तो जो आपका चित्त बाह्य में फैला हुआ है, वह एकदम अन्दर की तरफ दौड़ता है और जैसे एक कपड़ा बाहर से एक कपड़ा चारों तरफ फैला हुआ है और उसके अन्दर से कोई चीज उसे ढकेलती हुई उसे इस तरफ से उस तरफ ले जाती जोर न जमा लें तब तक न हम बदल सकते हैं न दुनिया है, इस प्रकार कण्डलिनी सहस्रार पर आने पर उसे चाक करती है। लेकिन उसका चाक करना भी इतना सुन्दर है कि जब वह भेदन होता है तो उस कण्डलिनी का प्रकाश चारों तरफ फैल जाता है। जो कहा है "राम नाम रस भीनी"। वह चदरिया जो कि हमारे। चित्त की है, उसमें सत्य का प्रकाश फैल जाता है। अब यह उसकी सुन्दर रचना है कि हृदय चक्र बराबर यहाँ बीचोंबीच हैं, जहाँ पर कि हमारा ब्रह्मरन्ध छेदन होता है। बहमरन्ध का छेदन उस जगह है, जहाँ हमारा हृदय है। इसका मतलब यह है कि हमारे हृदय में इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति और धर्मशक्ति जिनसे हमारा जब तक परमात्मा को पाने की इच्छा नहीं होगी, तब तक यह भेदन ठीक नहीं होगा। सारा काम हृदय का है। यह समझने की बात है। आप लोगों ने बुद्धि से मेरी बात को समझ लिया। बुद्धि से समझने की बात ठीक है। लेकिन जब तक यह हृदय से संचालित नहीं होगी, तब तक यह हृदय से प्लावित नहीं होगी, तब तक हमारे अंग-अंग में यह बसने नहीं होती। जैसे कि एक ही स्वर में, एक ही ताल पर सातों वाली चीज नहीं है। लेकिन हृदय में है हमारी आत्मा का स्थान। इसीलिए यह समझ लेना चाहिए कि हृदय को छेदने कण्डलिनी, डोर की तरह पिरोई जाती है। इस तरह से पूरी के लिए पहले हम अपने हृदय को खोल लें। इस हृदय में आत्मा का वास है जिसके ऊपर सात रंगों में इन सात पीठों का प्रकाश फैला हुआ है। इतना निकट का सम्बन्ध हमारे इस मस्तिष्क का, हमारे इस ब्रेन का और इस हृदय का है। लेकिन आज हमारा हृदय एक तरफ काम करता है, नाड़ियां हैं- डॉक्टर लोग जिस पर कभी-कभी बड़ा झगड़ा शरीर दसरी तरफ काम करता है और बुद्धि तीसरी तरफ। इसमें कोई समग्रता नहीं है। समग्र माने सब अग्रों में से एक हृदयहीन बातें हैं जिनमें कोई सुर नहीं, माधुर्य नहीं। एक ही सूत्र जाना चाहिए। इसमें कोई संघटन नहीं है। इसलिए हम अपने से ही रोज लड़ते हैं। अपने से ही रोज़ झगड़ा रहता है। किसी का एक चक्र अच्তा है तो दूसरा खराब, दूसरा अच्छा है तो तीसरा बिल्कुल कमजोर हो चुका है और और बड़ी सुन्दरता से उनका प्रकाश आपस में झिलमिल चौथा बेकार हो चुका हैं। इन चक्रों की लड़ाई में ही सब तरह की दुविधा, परेशानियाँ, चिन्ता, बीमारियाँ आ जाती यह सारे के सारे चक्र जिन पीठों से संचालित होते हैं, गवर्न होते हैं, वह पीठ हमारे मस्तिष्क में है और हमारे मस्तिष्क के ही सैन्ट्रल नव््स के साथ इन सारे चक्रों का चलन-वलन हम पैरासिम्पैथेटिक पर प्रभुत्व न जमा लें, जब तक हमारा सम्बन्ध आटोतॉमस सिस्टम (स्वचालित प्रणाली) जिसको हम नहीं चला सकते, ऐसी स्वयं चालित के स्वयं पर अपना बदल सकती है। बाह्य से आप किसी चीज को ठीक कर लें। किसी पेड में अगर कोई खराबी हो जाये और आप अगर किसी पत्ते को ट्ीटमैन्ट दे दें तो शायद वह थोड़ी देर के लिए ठीक भी हो जाये। लेकिन असली बीमारी उसके जड़ में है और उसके अन्दर जो रस, रिसता है,जब तक उसको आप दवा नहीं दंगे, तब तक वह पेड़ आप बचा नहीं सकते। इतना ही नहीं इन सातों पीठों का यहाँ सम्मेलन है। यहाँ तीन जो शक्तियां हमारे अन्दर प्रवाहित हैं- हमारी क्रान्ति का पथ बनता है, जिससे हम रिवोल्यूशनरी प्रोसेस में जाते हैं, यह तीनों ही शक्तियां एकत्रित हो जाती हैं। इस प्रकार इस मस्तिष्क में सात चक्रों और तीन शक्तियों का समन्वय होता है। लेकिन उनमें रिलेशनशिप उनकी दोस्ती मात्र होती है, एकीकरण (इन्टीग्रेशन) नहीं होता, समग्रता 1. स्वर नाचें, ऐसी स्थिति तब आती है जब एक ही दछिद्र से तरह से भेदन करती हुई सहस्रार को भेद देती है। सहस्रार के बारे में जितना भी कहा जाए कम हैं। सहस्रार जो हमारा आखिरी चक्र है, उसमें एक हजार पंखडियां हैं जो कि वास्तव में हमारे अंदर एक हजार उठाते हैं कि नहीं ९८२ हैं या कुछ हैं। बह तो बिल्कुल हजार इसमें पंखुड़ियां हैं जो कि इन नाड़ियों को तेजोमय करती हैं। यह ऐसे दिखाई देती हैं जैसे कि किसी कमल पुष्प में एक हजार पंखुड़ियां हैं और वे पंखुड़ियां सजीव हो कर के होता है। अत्यन्त शान्त ऐसी यह तेजोवलय से भरी हैं, 3

Original Transcript : Hindi बाह्य से जरूर हम उनके गण गाते हैं, उनके गाने गाते हैं. प्रकाशित हो कर आन्दोलन करती रहती हैं। इस आन्दोलन उनकी प्रशंसा करते हैं। लेकिन हम अभी भी उससे से जो हमारे अन्दर आनन्द निर्माण होता है, उसे निरानन्द अनभिज्ञ हैं। अभी तक हमने यह जाना ही नहीं कि वे हंमारे अन्दर बसे हुए इस कार्य के लिए तत्पर हैं। कण्डलिनी का उसमें कोई दूसरी चीज़ नहीं होती है। आनन्द में दो चीज जागरण होने के पश्चात ही यह ज्ञान हमें होता है। तेजपुन्ज ज्योतियां जैसे कि पंखुड़ियां हों। इस तरह से कहते हैं। निरानन्द माने केबल आनन्द। एब्सोल्यूट ज्वायँ। सुख और दुख नहीं होते, केवल आनन्द मात्र होता है और सहग्रार सुन्दर व्यवस्था ऐसी है कि अगर आप अपने बह मौन ही में जाना जा सकता है जैसे कबीरदास जी ने कहा ब्रेन को काट दें और ट्रान्स सैक्शन में उसे देखें तो ऐसे था "जब मस्त हुए फिर क्या बोले"। बह जो एक श्रेष्ठों की, दिखाई देगा जैसे कि कमल की पंखड़ियां इस तरह से चारों की योगियों की स्थिति है। तरफ लगी हुई हैं। सहस्रार का दूसरों कमाल। आप देखिये इस निरानन्द स्थिति में उतारने के लिए जब कडलिनी कि श्रीफल माना जाता है देवी का फल जिसे हम लोग नारियल कहते हैं। इसकी तुलना हर बार ब्रेन से होती है। ओर पहुचा सकती है जहाँ उस निरानन्द का सागर आपके आपको आश्चर्य होगा कि ऋतम्भरा प्रज्ञा ऐसी है कि आप सम्मुख लहलहाता है। इतनी काव्यमय कण्डलिनी की नारियल के पेड़ के नीचे या हजारों पेड़ों के नीचे सो जाइये। आज तक कहीं भी ऐसी वारदात नहीं हुई कि नारियल का बनता है। हालांकि कुछ-कुछ लोगों में मैं देखती हूँ कि पेड़ किसी पशु पर या किसी मनष्य पर गिरा हो। क्या आप इस कमाल से परिचित हैं? जब तक आप समुद्र के किनारे कहीं-कहीं देखती हैं कि जैसे कोई कमजोर माँ छटपटाती नहीं जाते तब तक आप इस कमाल को नहीं जान सकते हुई किसी तरह से अपने बच्चे को पुनर्जन्म देने के लिए और समुद्र में भी एक कमाल देखिये कि नारियल के पेड़ समुद्र के किनारे होते हैं। इतनी जोर की हवा, बरसात और मानसून का थपेड़ा होते हुए भी सारे नारियल के पेड़ समुद्र की ओर झुक जाते हैं क्योंकि वह हमारा गुरू तत्व हैं। करती है कि किसी तरह मेरे बच्चे को उसका जन्म मिल क्योंकि वह हमारा गुरू है, इसलिए उसके आगे झूके रहते जाय। यह करूणामयी माँ प्रेममयी है। यह आपको किसी हैं, नतमस्तक हैं। उनकी समझ सहज और नैसर्गिक है और तरह से तकलीफ कैसे दे सकती हैं। जिसने हजारों वर्षों से हमारी समझ अभी बहुत ऊँची होने के कारण इतनी यही प्रतीक्षा की कि मेरा बेटा किसी न किसी दिन इस शद्ध नैसर्गिक नहीं है। हम जरूरत से ज्यादा कुछ लम्बे हो गये इच्छा को पूरी करेगा और इस योग को प्राप्त करेगा। बह हैं। अगर आप जरूरत से ज्यादा लम्बे हो जाइयेगा तो आपको किसी प्रकार से भी दख नहीं देती। लेकिन जैसे मैंने बहुत-सी चीजें जो पाने की हैं, कभी-कभी खो जाती हैं। या अगर जरूरत से ज्यादा नाटे हो जाइयेगा तो भी बह चीज खो उच्च चीजों के प्रति भी उनमें कोई आदर नहीं है। उनको ही जाती है। इसका मतलब यह है कि जब तक आप मध्य किसी भी चीज के प्रति आदर नहीं है। वास्तव में यह लोग मार्ग में नहीं होते तब तक आपकी कण्डलिनी का जागरण स्वयं का भी आदर नहीं करते। इसलिए यह समझ ही नहीं बड़ा कठिन कार्य है। लेकिन फिर भी आजकल परमात्मा सकते कि संसार में कोई चीज उच्च हो सकती है या ऐसी की कृपा इतनी जबरदस्त है, इतनी अनुकम्पा इस वक्त कोई विशाल या महान चीज हो सकती है जो पूर्णतः पवित्र उनकी बह रही है, मैं स्वयं आश्चर्य करती हूँ कि हजारों लोग एक साथ पार हो जाते हैं। हालांकि इसके बारे में तत्पर है जो सिर्फ थोड़ी-सी सहायता करने से आपको उस शक्ति है, इतना सुन्दर उसका चलन-चालन है कि देखते ही कण्डलिनी आहत है, आहत स्थिति में कण्डलिनी हैं। धीरे-धीरे उठती है, गिरती है, उठती है, गिरती है। इस प्रकार यह कण्डलिनी बेचारी जो हजारों जन्म से आपके साथ थी और आज फिर आपके साथ है, पूर्णतः प्रयत्न आपको बताया कि दुनिया में इतने कटु लोग हैं कि शुद्ध और हो । भृगु हमारे सामने इतने सन्तों का उदाहरण होते हुए भी हम मुनि ने अपने नाड़ी ग्रन्थ में लिखा था कि ऐसा होगा और लोग भूल जाते हैं कि जब वे इस संसार में आये तो वे अपने सब की बीमारियाँ अपने आप ठीक हो जायेंगी। सब की लिये नहीं आये क्योकि उनको क्या करना था? वह सब कछ तकलीफें दूर हो जायेंगी और कण्डलिनी सहज में ही जागृत पाये हुए थे। वे कुछ देने के लिए हमारे पास आये और जो हो जायेगी। आप सोचिये कि भुग मनि का देश के इतिहास कुछ उन्होंने देना था, वह हमारे अन्दर, हमारे शरीर के में कौन सा स्थान है? कहते हैं कि हजारों वर्ष पूर्ण भूग मुनि हो गये और उन्होंने भी कण्डलिनी के बारे में बताया था कि अन्तर्गत कर दिया। सिर्फ उसकी जानकारी हमें नहीं है। 4

Original Transcript : Hindi सहज में ही कृण्डलिनी जागृत होगी। लेकिन हम, हमारे ने मेरे साथ इतना जुर्म किया। आप उस पर बह पड़े। हो देश के जो लेखक हैं, प्रवक्ता हैं, दृष्टा हैं, बड़े-बड़े ऊँचे सकता है कि बह किसी जेल से छूटा हुआ चोर हो। हो सकता है कि वह आपको लूटने के लिए आया हो या आपको में कितना जानते हैं? आज ही किसी ने पूछा कि माँ मर्डर करने के लिए आया हो। आप जान नहीं सकते कि वह शिवरात्रि का क्या महत्व है? क्या शिवजी का जन्म हुआ आदमी कौंन है। क्योंकि आप सत्य तो जानते नहीं है। सत्य था ? शिवजी का जन्म तो होता नहीं। क्योंकि जो सदाशिव को जानने का मतलब यह होता है कि आप उस चीज को हैं, उनका जन्म होने का कोई मतलब ही नहीं है। लेकिन जाने जो सब चीजों का सार और तत्व है। जैसे कि सन्ष्य का सार और तत्व क्या है? उसका सार और तल्व उसकी सारा संसार परबरह्म स्थिति में सो रहा था, यह महारात्रि हैं आत्मा है। उस आत्मा को जानते ही आपका जो ज्ञान है, परब्रहम। जैसे हम सो जाते हैं तो हमारी सुष्टि सारी हमारे वह अज्ञान-सा लगता है और ज्ञान को आप अपनी नसों, पर अपने सैन्ट्रल नर्वस सिस्टम पर जानते हैं। जैसे कि एक वह महारात्रि थी और तब जब सदाशिव जागृत हुए, साहब मेरे पास आये और कहने लगे कि माँ मुझे एन्जाइना सदाशिव माने जो कभी भी नहीं बदलते, जो सिर्फ एक की बीमारी है, मुझे ठीक कर दीजिए मैंने कहा कि अच्छा ठीक है, आप बैठिए। मैंने उनकी कुण्डलिनी जागृत सन्त साध हैं और यहाँ के जो अवतरण हो गये, उनके बारे 1 शिवरात्रि का मतलब यह है कि यह महारात्रि, जिस वक्त साथ सो जाती है। उसी प्रकार यह सारी सृष्टि सो गई थीं। साक्षी स्वरूप होकर सारे संसार को देखते हैं, वह सदाशिव की। जब जागृत हुए तब उन्होंने जो अपनी शक्ति जो उतको दर्द उठा थोड़ा सा। मैंने कहा अच्छा अब आप ठीक आदिशक्ति जिसे कि होलीघोस्ट कहते हैं, जिसे वेदों में ई हो गये, अब हम जा रहे हैं। उसने कहा, "माँ, आप क्या कर मैंने कहा, बेटे तुम ठीक हो गये, हम जा रहे हैं।" वह उदास हो कर बैठ इसलिए शिवरात्रि आज मनाई जाती है कि आज महारात्रि गये। मैं मोटर में वैठ गई थी। मैं उतर कर आई और मैंने कहा कि मेरी बात आप सुनिये। आप अभी जाकर अपना वही सदाशिव जब हमारे हृदय में आत्मास्वरूप प्रकाशित एन्जाइनॉग्राफी लीजिए और इस प्रकार आप विश्वास कर होते हैं तो इसे शिव कहा जाता है। इस बक्त बहुत से लोग लीजिएगा कि मैंने जो कहा है, वही सही कहा है। वह डाक्टर के पास गए और डाक्टर ने कहा कि अरे भई तुमको तो एन्जाइना लीजिएगा कि मैंने जो कहा कि अरे भई तुमको तो एन्जाइना था, तुमको तो हो क्या गया? तुम ठीक कैसे हो गये? तो आपको जो जानना है, वह जानना क्योंकि डॉक्टर ने आपको बताया है, इसलिए जानना हुआ और हमारो जानना हैं कि उस दिन हम उपवास करते हैं, जिस दिन वे जागृत इसलिए है कि आपकी जो वायब्रेशन्स हैं, आपका जो चैतन्य है, उसको हमारी आत्मा ने बता दिया। जब आत्मा बोलती समय है। हम लोग भी एक महारात्रि में डूबे हुए हैं। एक है तब यह चैतन्य चलता है और यह आपको बता देता है। महारात्रि जिसमें यह घोर कलयुग छाया हुआ है। एक कोई-सी भी बात जिसके बारे में आपको जानना हो कि इस आदमी की तकलीफ क्या हैं, जब आप योगी हो जाते हैं, आप उसकी ओर हाथ कीजिए। आपकी ऊंगलियों के इशारे पर आप बता सकते हैं कि इस आदमी को क्या बीमारी है। और जब बीमारी आपको पता है और आप जानते हैं बीमारी के कारण जिसे काँज एण्ड इफेक्ट कहते हैं, उससे परे उठना है,वह सब भ्रम है। जैसे कि एक आदमी आपके सामने आपको आ गया तो आपने बीमारी ठीक कर दी और उससे आकर खड़ा होता है और आप उसे देखते ही सोचते हैं कि परे उठना बहुत ही आसान है। उसे कण्डलिनी पर डाल कितना अच्छा आदमी है। जब उसने आपके सामने दीजिए। कण्डलिनी जो है यह काज और इफैक्ट से परे है। आपने उसको कण्डलिनी पर डाल कर उसकी कृण्डलिनी उठा दी तो काम खत्म। तबीयत ठीक हो गई उसकी। कहा गया, जिसे अचीन्हा कहते हैं। इस शक्ति को अपने से रही हैं, मेरा तो अभी हार्ट अटैंक आ गया। अलग करके और कहा कि सुष्टि की रचना करो। तुम के बाद शिवजी आज जागृत हुए, सदाशिव जागृत हुए। अज्ञान में उपवास करते हैं। शिवरात्रि के दिन उपवास करने का कोई तुक समझ में नहीं आता क्योंकि जिनको यह ही मालूम नहीं कि शिवरात्रि के दिन क्या हुआ। यहां तक लोगों ने पूछा कि क्या उस दिन शिवजी की मृत्यु हुई? शिव अनन्त हैं उनकी मृत्यु कैसे हो सकती है? इतने लोग अज्ञानी हुए थे। आज हमारे अन्दर बह आत्मा जागृत होने का महारात्रि और इस महारात्रि में जागृत होने के लिए आज आप सम्मख बैठे हैं। आपके अन्दर बसी हुई आत्मा आज जागृत होगी। यह आत्मा सचिदानन्द है। सतु चित्त और आनन्द। सत् माने यह कि आप सत्य को जानते हैं। अभी तक आपने सल्य को नहीं जाना है। अभी तक जो जाना गिड़गिड़ाना शुरू कर दिया कि साहब देखिये मैं इतना अच्छा आदमी हूँ। मैंने इतनी अच्छाई की और इस आदमी 5

Original Transcript : Hindi कण्डलिनी का जागरण और उसका बिठाना बहुत मुश्किल मछली पानी से बाहर निकली थी, उसके बाद दस-बारह काम है। किन्तु जब यह हो गया तो आगे फिर काम खत्म। आपको आगे फिर कुछ करने की जरूरत नहीं है। जो इतनी बाद न जाने कितनी मछलियां ऊपर निकलकर आज मानव बड़ी-कठिन समस्यायें हैं, वह सोचते हैं कि इसका कारण स्थिति में बैठी हुई हैं। इसी प्रकार अनेक वर्षों से हम लोगों यह है कि इस वजह से परिणाम यह है और इस कारण ने तपस्या की है। परमात्मा से योग मांगा है, मेहनत की है परिणाम को ठीक करने से सब ठीक हो जाएगा। तो और आज सर्व-साधारण मनुष्य बनकर संसार में आये हैं कभी-भी वह चीज नहीं ठीक होने वाली। मैंने आपको पहले और आज उसकों प्राप्त करने का जो आपका हक, आपकी बताया कि एक चीज ठीक करिएगा तो दूसरी खराब हो जाएगी। उससे परे जो परमात्मा का साम्राज्य है, जो अवतरणों ने कहा है, सब सच करके दिखाना है। उसके सहस्रार में विराजता है, उस साम्राज्य में आप आइये, लिए एक ही बस शर्त है कि कृण्डलिनी का जागरण हो कर आपका आगमन हो, आपका स्वागते है। नमस्कार करके के आपके अन्दर बह प्रकाश जागृत हो जो कि आपकी आप अन्दर आइये और जब आप वहाँ बैठे हैं तो किसकी नस-नस में बहे और आप जाने कि आप योगी जन हो गये। मजाल है जो आपकी ओर आँख टेढ़ी करके देख सके। मराठी में रामदास स्वामी ने कहा है, "समर्थाचिया बक्र पाहे सकती। असा सर्व भूमण्डली को नाहि।" जिसने समर्थ की ओर आँख तिरछी करके देखी, ऐसा सारे भू-मण्डल में कोई नहीं, यह जानने के लिए भी आपको योगी जन होना नहीं। लेकिन पहली चीज यह है कि आप परमात्मा के चाहिए। क्योंकि हम जो कह रहे हैं, हो सकता है कि झूठ साम्राज्य में आये हैं या नहीं। फिर आने के बाद बहाँ जम है कह रहे हों। लेकन अगर आप योगी जन हैं तो आप हाथ या नहीं। जमने की बात बहुत बड़ी सोचने की है। तत्सत् फैलाकर के जान सकते हैं कि आपके अन्दर चैतन्य की जो है जिसे हम सतु कहते हैं वह अपने सैन्ट्रल नव्से सिस्टम लहरियाँ बह रही हैं और आप समझ सकते हैं कि यह सच से जाना जाता है। कोई कहेगा कि माँ यहाँ पर यह फूल बिछे हुए हैं। यह हम अपनी आँख से देख रहे हैं न? यह आँख नहीं। परमात्मा है, इसलिए आपके अन्दर चैतन्यकी हमारी जो है, यह हमारी सैण्ट्रल नव््स सिस्टम बता रहा है लहरियाँ बहनी शरू हो जायेंगी। पर गलती से दुष्ट आदमी कि यहाँ यह फूल रखे हैं। फिर जब हम महसूस भी करें तो के लिए आप पूछे कि यह आदमी अच्छा है या बुरा तो हो हम कह सकते हैं कि यहाँ फूल हैं क्योंकि हम इसे महसूस करते हैं। इसको जानना हैं। यही ज्ञान, यही वेद जिससे विद गर्मी आ जाय, शायद एक-आध छाला भी आ जाय। लेकिन होता है, जिससे बोध होता है। जो हमारे सैण्ट्रल नव्स्स सिस्टम में जाना जाता है, यही हमारी उत्क्रान्ति का लक्षण है और बाकी सब कुछ दिमागी जमा खर्च है या तो भावना की दष्टि आपके पैसे पर है, आपकी सत्ता पर हैं। आपके की फिक्र। निकली होंगी फिर एक-आध हजार निकली हों। उसके इच्छा है पूरी होगी जो साधु-सन्तों ने कहा है, जो इन योगी जन हुए बगैर कोई-सी भी बात समझाई नहीं जा तो आप सब जो हमारे मुह से सुन रहे हैं, वह सत्य है या बात है। आप यह सवाल पूछे कि संसार में परमात्मा है या सकता है कि या तो परे चैतन्य बन्द हो जायें, शायद आपको राक्षस को और सन्तों को पहचानने के और भी बहुत से तरीके हैं। ब्द्धि से भी लोग समझ सकते हैं कि जिस आदमी घर के बच्चे-बीबियों पर है, वह आदमी कभी- भी सन्त नहीं जब कुण्डलिनी जा कर सहस्रार को प्रकाशित करती है हो सकता। सन्तों के लक्षण बार-बार कहे गये तो भी हम तो हम सब ज्ञान के अधिकारी हो जाते हैं। आप सोचिये कि गलती कर जाते हैं। इसलिए सत्य को जानने के लिए जब हमारे यहाँ से सन्त साधु हुए थे, तब न यहाँ यूनिवर्सिटी कण्डलिनी को पहले हमारे सहस्त्रार में प्रवेश करके उसको थी, न कॉलेज था, लेकिन ज्ञान के भण्डार थे, दृष्टा थे। एक प्रकाशित करना चाहिए। जहाँ यह हजार पंखुड़ियाँ जागृत से एक योगी इस संसार में हो गये। इंग्लैण्ड में एक विलियम हो कर के सुन्दर कलियों के जैसे, पंखड़ियों के जैसे सुन्दर ब्लेक नाम के कवि हुए हैं। अगर आप उनका भविष्य पढ़े तो नित्य रहे। जिसे आप अभी नहीं देख सकते बाद में आप देख आश्चर्यचकित हो जायेंगे कि एक एक चीज, सहजयोग के सकते हैं। जब आप स्वयं ही प्रकाशित होते हैं तो आप बारे में उन्होंने इतने साफ तरीके से लिखा है कि बड़ा आश्चर्य होता है। ऐसे दृष्टा मार्कण्डेय जैसे लोग हो गये तो आप लोग क्यों नहीं हो सकते। आरम्भ में जरूर एक ही प्रकाश दीजिए। जब तक आपकी बुद्धि में यह प्रकाश नहीं प्रकाश कैसे देखेंगे। जब आप प्रकाश हो गये तब लोग पृछते हैं कि माँ अब क्या करें? जब दीप जला दिया तो अब 6

Original Transcript : Hindi आता तब तक आपकी शक्ति एक हजार गुना कम है। मैं तो दूसरे की है। जो मैंने उसका कच्चा चिट्ठा खोलना शुुरू किया तो वह आंखें फाड़-फ़ाड़ कर देखने लगा कि माँ ने तो इस आदमी को तो एक ही बार देखा और इतना कैसे बता पेड़ एक छोटा-सा बीज जो अंकृरित हो कर इतना बड़ा पेड़ गई। पर यह बताना कोई बड़ी भारी बात नहीं है। इसकी हो जाता है। उसी प्रकार मनुष्य की बुद्ध जो इतरनी छोटी कोई जरूरत भी नहीं है आपको। लेकिन आप यह बता सकते हैं कि आपमें कौन सा दोष है। तो जब आप सत्य हो शाखायें भी चारों तरफ उतर-उतर कर के उसे और भी जाते हैं तो असत्य से आप अलग हो जाते हैं। जैसे कि इस कपड़े पर अगर कोई दाग लगा है और इस बक्त कोई प्रकाश आ जाये तो मैं इससे अलग सोचती हैँ कि इसको कैसे साफ किया जाये। इसी प्रकार आप अपने से अलग हटकर जानते हैं कि यह असत्य है, यह हम नहीं लें सकते। जैसे एक साहब आये और कहने लगे कि माँ मेरा आज्ञा चक्र ठीक कर नहीं है। बैठक चाहिए। पार तो हो जायेंगे आप। ठीक है, दीजिए मतलब क्या ? कि मझे अहंकार हो गया है, इसे आप निकाल दीजिए। अगर किसी आदमी को कह दीजिए कि आपको अहंकार हो गया है तो वह मार बैठेगा आपको। लेकिन जिस वक्त आज्ञा में दर्द होने लग जाता है तो वह खुद बह अभ्यास नहीं होगा, आपके अन्दर उसकी संवेदना, इस ही कहता है कि माँ मेरा आज्ञा जरा आप ठीक कर दीजिए। इस आज्ञा से मैं परेशान हूँ। यदि एक चीज आपकी दूषित हैं तो वह इशारा ही नहीं करती, कभी-कभी दुखती भी है, तक जड़ रही हैं । और जब तक ये नसें जागृति के नये कभी-कभी बताती भी है, जताती भी है और ऊँगलियों पर आप जानते हैं कि आपको क्या शिकायत है और आप उस शिकायत से एकाकार नहीं है। हम लोग यह प्राप्त करने से पहले एकाकार हों। आप बहुत सीरियस हैं इतना सीरियस होने की कोई जरूरत नहीं है। हल्के तरह से रहिए। प्रसन्नचित रहिए। परमात्मा का विषय सीरियस नहीं है, कहूँ कि इसका कोई अन्त ही नहीं, अनन्त है यह शक्ति। उससे पहले जो इतनी सी शक्ति है। जैसे कि एक बरगद का और सीमित लगती है, वह इतनी बढ़ जाती है कि उसकी स्थापित करतीं जाती है। यह परमात्मा का सत्य स्वरूप है। आत्मा का सल्य स्वरूप है। आत्मा सत्य के लिए भटकती है लेकिन सहजयोग में जरूरी है कि आपकी बैठक होनी चाहिए। अच आपने म्यूजिक सुना। हिन्दस्तानियों को तो यह बात समझनी चाहिए कि म्यूजिक जो है बैठक के बगैर पर उसके बाद जब बैठक नहीं होगी तो आप समर्थ नहीं हो सकते, आप पूरी तरह से इसमें प्रभुत्व नहीं पा सकते। इसके लिए बैठक चाहिए, अभ्यास चाहिए और जब तक कदर नाजक संवेदना, गहन संवेदना जागृत नहीं हो सकती। क्योंकि यह नसों से जाना जाएगा। ये नसें आज आयाम में, डॉयमेन्शन में जब तक नहीं जागृत होती तब तक आप नहीं जान सकते। बहुत से लोग कई बार यह सोचते हैं कि इनको क्या पता होगा? यह तो बहुत सीधी लगती है। एक बार एक साहब आये और कहने लगे कि माँ, देखिये, यह आपका फोटों कैसे हैं? मैंने कहा कि बिल्कुल गलत। मैं बता दं कि गंभीर जरूर है। आप प्रसन्नचित रहिए। यह किसने निकाला। उन्होंने कहा, "अच्छा, बताइये। मैंने उस आदमी का नाम बता दिया जिसने वह फोटो निकाला था। मैंने कभी देखा भी नहीं था, किसी ने भी नहीं देखा था। वह चक्कर में आ गये कि माँ तुमने कैसे जाना। मैंने कहा, "हम सबके चक्रों को जानते हैं। उस चक्र को इस चक्र में जान गये कि उसी के जरिये यह काम हो रहा है, इसका मतलब उसी आदमी ने यह फोटो खींचा है। एक साहब हमें समझाने आये कि माँ आप जानती नहीं हैं। आप बड़ी सीधी हैं। यह बड़ा राजकामी आदमी है, इससे संभल अभिमान नहीं, दराभिमान- यह जो हमारी खोपड़ी में लग कर रहिए। यह कुछ गड़बड़ कर सकता है। मैंने कहा कि अच्छा इतना ही वताना है आपको? कहने लगे, "हाँ। अच्छा अब सुनिये आप इसके बारे में मैं क्या जानती हैं कि इसकी बीबी अपनी नहीं है, किसी बाह्मण की बीबी भगाकर लाया है। इसका बच्चा तो इसका है लेकिन बीबी एक साहब गये मिनिस्टर साहब से मिले। तो वहाँ एक साहब बैठे हुए थे। वह खुब कद रहे थे। उनकी समझ में नहीं आया तो उन्होंने कहा, "साहब, मतलब क्या है? आपको हो क्या गया?" तो कहने लगे कि आपको पता नहीं कि मैं पिए हूँ। उन्होंने कहा कि अच्छा म्झे नहीं पता था कि आप पिए हुए हैं। माफ करना। यह जो हम अपने ऊपर चढ़ा लेते हैं कि किसी नौकरी में हो गये, किसी पोजीशन में हो गये, दो-चार पैसे इकटूठे हो गये। उसका जो अभिमान, जाता है जिससे हम अजीब से हो कर पिए हुए घुमते हैं, यह छुट कर मनुष्य देखता है कि यह जो है, यह बाह्य है। जैसे अपनी बद्धि का गुमान, अपने पढ़ने लिखने का गुमान, हर तरह के गमान मनष्य में चढ़ जाते हैं। वह तो बात-बात पर घोड़े पर बैठ जाता है। घोड़ा है नहीं घोड़े पर बैठा है। यह 7

Original Transcript : Hindi उड़ा रहा है। पतंग आकाश में उड़ रही है, लड़का जो है, आपने हाथ में साँप पकड़ा है, उसे आप छोड़ देते हैं, उसी खेल रहा है और सबसे बातचीत कर रहा है, हँस रहा है लेकिन उसका चित्त पुरा उस पतंग पर है। यही योगी जन का किस्सा होता है कि सबसे बोलते रहे किन्तु चित्त उसका आत्मा की ओर है। दूसरी जो कविता की पंक्ति है, उसमें तो यह देवता हमारे दोनों ही इगो और सुपर इगो जिसे कि लिखा है कि कुछ औरतें हैं, पानी घड़े में लेकर जा रही हैं। चार-चार गगरियाँ सर पर रखीं हुई हैं। जल्दी-जल्दी जा रही हैं और आपस में मजाक भी हो रहा है, हँसी भी हो रही है, बातचीत भी हो रही है। लेकिन सारा चित्त उनका उस वक्त हमारे हाथ बोलते हैं। हाथ बोलते हैं कि हाँ गगरी पर है और उदाहरण तीसरा उन्होंने कहा है कि एक माँ है जो अपने बच्चे को लेकर सारा काम कर रही हैं। घर का सारा काम वह कर रही हैं लेकिन उसका चित्त पूरी तरह अपने बच्चे पर है। यही कृण्डलिनी जिसका सारा चित्त आप पर लगा हुआ है, सारा विचार इसका आपके ऊपर है और इतनी इंच्छुक और उत्कण्ठा से इन्तजार कर रही है कि कब मेरा बेटा इस और आयेगा जहाँ वह अपने सब इस तरह से छूट जाता है जैसे कि प्रकाश में अगर तरह से सब कुछ छूट जाता है। कहना नहीं पड़ता। लेकिन उसने किया क्या? किया यह कि आज्ञा चक्र को, जब कण्डलिनी चढ़ती है और वहाँ का देवता जब जागृत होता है मनस और अहंकार कहते हैं, दोनों को ही आपस में खींच लेता है, शोषित कर देता है और ब्रहमरन्ध्र में ऐसी जगह बन जाती है कि कुण्डलिनी खट् से बाहर चली जाती है। कण्डलिनी पार हो गई है। जो लोग पार हो जाते हैं, वही महसूस कर सकते हैं यहाँ की ठण्डी हवा और जो नहीं होते हैं, उनको मुश्किल होता है उण्डी हवा महसूस करना। उसके बाद जब आपके किसी चक्र में दोष हो, अगर आपके विश्द्धि चक्र में दोष हो या अगर आपके नाभि चक्र में दोष हो तो इन ऊँगलियों पर आप जान सकते हैं कि कहाँ पर दोष है, उसके बारे में आप सब कुछ जान सकते हैं। पुनर्जन्म को प्राप्त करे। उसको दुनिया की कोई और चीज आप संसार की सारी बातों को जान सकते हैं। यहाँ बैठे-बैठे, नहीं चाहिए। उसका यह कार्य जब तक पूरा नहीं होता तब आपके कोई रिश्तेदार हों, कोई और हों, उनके बारे में आप जान सकते हैं। देश के बारे में जान सकते हैं। देश के चैन नहीं है। वह ढूंढती फिरेगी। इधर जा, उधर जा, जंगल नेताओं के बारे में जान सकते हैं। इलैक्शन के बारे में जान सकते हैं। चाहे जो भी जानना चाहें, आप सब कुछ जान सकते हैं। लेकिन योग होने के बाद मनुष्य का मन इन सब चीजों से हट कर परमात्मा की ओर लग जाता है। इन चीजों सुबुद्धि से मेरा बच्चा इस योग को प्राप्त करेंगा। तो आप में उनको मजा नहीं आता है। जब आपने सबसे ऊँचा अमत आत्मा का जो स्वरूप है, उस सत्य को जानें। पी लिया फिर किसी गन्दगी का पानी पीना आप पसन्द नहीं करते। जो चीज अच्छी नहीं, उसमें कोई मजा नहीं आता। सारी चीजें, जिसे कहते हैं कि प्राथमिकताएं आपकी बदल कर आप दूसरे ही आदमी हो जाते हैं। क्योंकि जिस चीज में राजसिक जो झूठ और सच का फर्क ही नहीं जानते। उनको मजा आता है, वही होता है। एक शराबी को लें । मैं तो कोई चीज में गलती ही नजर नहीं आती और तीसरे ज्यादा नहीं जानती शराबियों के बारे में लेकिन मैंने देखा है सात्विक होते हैं जो सत्य को पहचान कर चलते हैं। लेकिन कि जब वह शराब पीता है तो शाम होते ही उसको याद आ जाता है और फिर दुनिया में कुछ भी हो रहा हो, सब छोड़-छोड़ कर बैठ जाते हैं अपना मसनद लगाकर। यही लोग होते हैं। हीरे को बराबर पहचान लेते हैं। ऐसे ही जो हाल एक योगीजन का होता है। मस्ती में आ गये तो उसी मस्ती में डूबे रहते हैं, उसी शान्ति में समाये रहते हैं जो मसीह को देखिये कि जब एक वैश्या को लोगों ने पत्थर आत्मा की देन है। महाराष्ट्र के एक बड़े भारी कवि नामदेव हैं, उनकी कविता है ग्रन्थ साहिब में। उसमें एक कविता खड़े हो गये और कहा कि भाई तुम में से जिसने कोई पाप बहुत सुन्दर है जिसमें लिखा है कि एक छोटा बच्चा पतंग नहीं किया हो वह पत्थर मारे, वह भी मुझे और सबके हाथ तक शुद्ध इच्छा जो आपके अन्दर सुप्तावस्था में है, उसको में जा, पैसे में खोज, इसमें खोज, उसमें खोज। आप जो-जो गलतियाँ करेंगे, बेचारी उससे आहत होती जाएगी पर अन्त में वह बैठी रहेगी कि एक दिन ऐसा जरूर आयेगा जिस दिन जैसा मैंने आपको बताया कि संसार में तीन तरह के लोग होते हैं- एक तो तामसिक लोग जो कि झूठ को ही सत्य मानकर उसके पीछे अपनी जिन्दगी बर्बाद कर देते हैं। दूसरे जब आप योगीजन होते हैं तो सिवाय सत्य के आप कोई चीज को पकड़ ही नहीं सकते। अचुक जैसे रत्न पारखी सत्य को एकदम पकड़ लेते हैं। उदाहरण के लिए ईसा मारना शुरू किया तब इसा मसीह वहां जा कर उसके सामने 8.

Original Transcript : Hindi रूक गये क्योंकि वह इस चीज को जानते थे कि इस औरत ने जो भी गलती की है और जो भी इसने अपने जीवन का बुरा किया है, वह सब परमात्मा क्षमा करने वाले हैं, वही शिक्षा देने वाले हैं और हम मनुष्य उसको क्यों दोष लगायें। जिसने सत्य को जाना, वह असत्य के पास कैसे खड़ा रह सकता है? आप ही बताइये। अगर आपने प्रकाश में कोई बह आपके अंदर ऐसा बहेगा कि जैसे पूरी की पूरी शक्ति चीज देख ली, तब भी क्या आप खाई में कुदेंगे? जिस प्रेम की आपके अन्दर प्लवित होकर, आपको महसूस होगा प्रकाश में आपने देख लिया कि इससे मेरा पूरा नुकसान हो जिससे ऐसा लगेगा कि सारी दुश्चिन्ता पता नहीं कहा चली रहा है, मुझे पूरी तरह से तकलीफ होने वाली है तो फिर गयी जैसे आपका संगीत था निर्विचार में अगर आप आप क्या ऐसा कहेंगे कि आ बैल मुझे मार? क्योंकि यह प्रकाश हमारे पास नहीं है, इसीलिए पा सकते थे। लेकिन जब तब आप विचार करते गये- अब रात-दिन हम अपनी जिन्दगी बरबाद किये जा रहे हैं। कोई कहता है कि आपके देश की हालत ठीक हो जायेगी आप पैसा दे दीजिए। सौ रु० आप किसी को दे दीजिए, बह शराब के ठेके पर सीधे चला जाएग्रा। आप रूसी को भविष्य में और ने तो आप भूत काल में। न ही आप फ्यूचर पोजीशन दीजिए। जैसे मैंने कल धोबी का किस्सा बताया था। आप किसी भी बिद्वान को बड़ी नौकरी दे दीजिए या किसी सत्ता में भेज दीजिए, उसकी खोपड़ी एकदम उल्टी बैठ जाएगी। सत्ता कोई झेल नहीं सकता, सम्पत्ति कोई झेल नहीं सकता और स्वतंत्रता को भी नहीं झेल सकता। यह तो मनुष्य की दशा है तो फिर सोचना चाहिए कि इससे कोई न कोई ऊँची दशा होगी जहाँ से सब चीज का भोग मनुष्य ले सकता है और भोग तभी ले सकता है, जब बह है तब आनन्द उसका स्वभाव हमारे अन्दर स्फरित होता है. सत्य में खड़ा हो। जिस बक्त इन फलों की सजावट देखेंगे तो आप कहेंगे कि इतने फूल थे, पता नहीं किसने लगाये, आनन्दित हूँ। आप शक्ल-सूरत से जान सकते हैं कि हाँ यह कितना रूपया लगाया, यह किया वह किया... सब दनिया इन्सान बहुत मजे में है। भर की बातें करेंगे। लेकिन अगर कोई योगी होगा तो उसके सामने बस हठात् खड़ा हो जाएगा। निर्विचार स्थिति में। बनाने वाले ने इसमें जो आनन्द डाला है जिस हृदय से यह बनाया है, उसका सारा आनन्द उसके माथे से ऐसा बहेगा कि यहाँ तो लोग यह सोचते हैं कि जो आदमी मजे में है, वह जैसे गंगा की धारा। वह यह नहीं जानता कि किसने बनाया, क्या किया। उसका जो आनन्द उसमें स्थित है, निराकार स्थिति में, वह पूरा का पूरा उसके ऊपर से बहुता रहेगा। उसमें विचार नहीं है। वह निर्विचार स्थिति में उसे देखेगा| इस प्रकार हर चीज का जो आनन्द है, वह आप सत्य में ही में औरतों की गन्दगी चल रही है और पाँचवे घर में पा सकते हैं और कहीं नहीं पा सकते। कभी भी आप किसी चीज की ओर दृष्टि करते हैं जब उसके बीच में विचार खड़ा हो जाये तो आप सोचिये कि उसकी आनन्ददायी शक्ति खत्म हो गई। उसमें कोई आहलाद नहीं रहता। राधा जी को कहा जाता है कि वह परमात्मा की आहलाददायिनी शक्ति है। वह आह्लावदायिनी शक्ति विचार से एकदम खत्म हो जाती है। जैसे ही सामने विचार आ जाय। आप समझ लीजिए विचार से एकदम अन्धियारा आ जाता है। लेकिन निर्विचार में आप किसी चीज को देखें तो उसमें बसा हुआ आनन्द, उसमें बसा हुआ सत्य जो निराकारस्वरूप है, 1. उसको सुन सकते तो इसका क्या असली असर है, उसे आप टाइम हो रहा है, अब ऐसा है, वैसा है... घर जाना हैं। क्योंकि जब आप योगीजन हो जाते हैं जब आप सहस्रार में स्थित होकर जब आप बर्तमान में विराजते हैं। न तो आप में और न ही आप पास्ट में। आप बर्तमान में होते हैं और हर वर्तमान का क्षण अपना एक आयाम, एक डायमेन्शन एक अपना दर्पण रखता है और उसमें इतनी छटायें हैं फिर उसका मजा देखें। अगर हम चाहें तो उसका मजा उठायें तो ऐसा लगता है कि हजारों जिह्वा होने पर भी जो मजा नहीं आ सकता है वह यह बर्तमान में आते ही पता नहीं कहां से इतना आ रहा है। जब आत्मा हमारे अन्दर जागृत हो जाती इन्सपॉयर होता है। यह नहीं कहना पड़ता कि हाँ अब में जब मैं पहली मर्तबा पेरिस गई थी तो लोगों ने कहा कि माँ आप तो बहुत खुश नजर आती हैं। मैंने कहा कि फिर। तो कहने लगे कि यह पेरिस में नहीं चल सकता। कहने लगे अज्ञानी है। उसको मालूम नहीं है कि दुनिया में क्या आफत आ रही है मजे में बैठा है तो आप कुछ लम्बा मुँह करके बात करें। अब मेरे लिये बहुत कि हर तीसरे घर में शराब की बोतलें खुल रही हैं, चौथे घर मश्किल। तब मैंने उनको कहा यह मसर्रतें हो रही हैं कि किसको मर्डर किया जाय और किस के पैसे खाये जायें। तो ऐसी दशा में क्या वहाँ आनन्द का राज होगा? 1. जब कभी हम पैदल चलते तो लोग बैठे रहते थे बहुत लम्बा मुँह बनाकर। मैंने कहा कि भई इनको क्या आफत 9.

Original Transcript : Hindi आ गई? कहने लगे कि ये लोग प्रेन्च में आपस में बातें कर रहे हैं और कह रहे हैं कि ऐसा करते हैं कि अष्ट ग्रह आने चीज है क्या? लेकिन न भी समझें तो कोई हर्ज नहीं पर मौज वाले हैं और हो सकता है कि तब हम खत्म हो जायें तो बड़ा अच्छा होगा। उसका इन्तजार हो रहा है कि वह कब आयेंगे क्योंकि आपका चित्त जो है वह प्रकाशित हो जाता है। और कब हम खत्म हों। मैंने कहा कि उसके लिए अष्ट ग्रह का इन्तजार करने की क्या जरूरत है, ऐसे ही जाकर डूब हमारे अन्दर जो नई जागृति उत्पन्न होती है, वह है जायें वहाँ नदी है। इतने अगर यह दुखी जीव हैं, तो तब तक इन्तजार करने की इनको क्या जरूरत हैं? शायद अष्ट ग्रह के चक्कर से बच ही जायें तो यह जाकर हमने वहाँ देखा। इस तरह की उन्होंने अपनी दशा बना ली है कि हम तो बड़े रहे- वह सारा शुभ है जिस कार्य से चैतन्य बहता है, जिस दुखी जीव हैं और हमारे जैसे दुखी जीव के लिए यही अच्छा है कि हम मर जायें आपको आश्चर्य होगा कि स्विटजरलैण्ड नार्वे में एक स्पर्धा है, कम्पटीशन है कि कितने लोग वहाँ इस साल आत्महत्या करने से मरे। जवान लड़के १७ साल से २५ साल के वहाँ आपस में स्पर्धा लगाते है पर हम जान सकते हैं कि हमारे अन्दर कौन सा दोष है हैं कि इस साल स्विटजरलैण्ड को अधिक नम्बर मिले । कारण यह है कि आपने पैसा इकट्ठा कर लिया किन्तु में उसे पाते हैं वैसे समिष्टि में भी पाते हैं। माने जैसे आनन्द आपको मिला नहीं, यह बात सही है। सब कुछ मिल गया। मोटरें मिल गई और कया-क्या हम लोग जो है। ढूँढते रहते हैं हिन्दुस्तान में, वह सब उनके पास होने के बाद अब वह ढूँढ़ रहे हैं कि अब हम मरेंगे कैसे। उसके लोगों ने जो सिद्धान्त बनाए वे सब खोखले हैं। जैसे कोई इन्तजामात सोचते हैं कि किस तरह से मरना ठीक रहेगा। वे नहीं जानते कि कोई मरता तो है नहीं। वे फिर वापस आ जायेंगे रोने के लिए। कोई परमानैन्टली मरता नहीं है, यह परेशानी और है। ये जो रोनी सूरतें हैं, इनको बदलो, इसके लिए वे तैयार नहीं हैं। आप धीरे-धीरे इस चीज को समझने का प्रयत्न करें कि यह में रहिये और इस मौज को, आनन्द को सब को बाँटिये। अब चित्त हमारा अटेन्शन है और इस अटेन्शन में कॅलैक्टिव कॉन्शियस- सामूहिक चेतना। लेकिन मैं कहूँगी "सामूहिक शुभ चेतना"। शुभ-अशुभ विचार तो हमें रहे नहीं। शुभ वह जिससे कि चैतन्य हमारे अन्दर से बहता गाने से चैतन्य बहुता है। जिस भक्ति या संगीत से चैतन्य की लहरियाँ बहें वही शुभ है और वही सौन्दर्य की लहरियाँ भी हैं। तो यह शुभ चेतना हमारे अन्दर जागृत हो जाती है। इसके माने यह नहीं कि हमारी बद्धि में कोई चीज आ जाती क्यों कि हम आत्म-साक्षात्कार भी पाते हैं और हम जैसे वस्तु हम एक व्यक्ति में पाते हैं, वैसे हम सामूहिकता में भी पाते अब कॅलैक्टिव का चमत्कार देखिये। आज तक आप कहता है कि हमारा विश्वास पूँजीवाद में है, कोई कहता है कि हमारा साम्यवाद में है। किसी का इसमें है उसमें है, सब खोखला है। हमें समझ लीजिए कि हम बड़े भारी पँजीपति हैं क्योंकि अगर सब शक्तियाँ हमारे अन्दर जमा हो गई तो हम तो पूँजीपति हो गये लेकिन हम हैं बड़े भारी साम्यवादी भी जब तक इसे बाँटेंगे नहीं, हमें चैन नहीं आयेगा। अभी क्षण भर में आपको मिल सकता है, आसानी से आपको मिल एक साहब ने पूछा कि आप क्यों सहजयोग करते हैं? आप क्यों जागृति करते हैं लोगों की? आप सुखी हैं। आपके पति तरफ नजर करने की जरूरत है। ये चीजें सब आपको मिल इतने अच्छे हैं? आप क्यों जागृति करते हैं लोगों की? आप सकती हैं। तब आप यह सोच लीजिए कि सिर्फक सहस्रार पर सुखी हैं। आपके पति इतने अच्छे हैं। आपके बाल बच्चे इतने अच्छे हैं। घर में बैठिये जा कर। कहाँ बैठें? चैन नहीं। होना चाहिए और इसका भेदन भी बहुत सूक्ष्म तरीके से जैंब तक इसे बाँटेंगे नहीं मजा नहीं आयेगा। एक शराबी को होता है। अब इसकी कितनी नाड़ियाँ हैं? कौन सी नाड़ी देखा आपने कि अकेला वह शराब नहीं पी सकता। इसी प्रकार यह भी शराब आप अकेले नहीं पी सकते। इसका मजा नहीं आयेगा। बाँटेंगे तो सामूहिकता में आप जागृत हो आपको कोई बढ़िया मोटर लाकर दे दे तो आप पहले उसके जाते हैं। लेकिन इसमें एक अहम् बात कि आपका चित्त वह अन्दर घुसकर थोड़ी देखते हैं कि इसका कौन-सा पूर्जा ठीक जो आदि तत्व है, जो विराट है, अकबर हैं, उसमें जागृत हो जाता है। जैसे इस शरीर के अंग-प्रत्यंग जागृत हो जायें तो उस समय आप उस विराट के अंग प्रत्यंग बनकर उसमें आपका सत्य आपही के अन्दर बसा हुआ है। वह एक सकता है। बस थोड़ा सा उन्मुख होने की जरूरत है, उस ही कृण्डलिनी को रूकना नहीं चाहिए, उसका भेदन भी कहाँ खुलती है? कौन से चक्र कहाँ होते हैं और कैसे बन्द करते हैं- यह सब बातें बताने की जरूरत नहीं है। अगर है या नहीं है। आप तो गाड़ी उठाकर चल दिये मजा उठाने के लिए। इसी प्रकार सहज योग को प्राप्त करने के बाद 10

Original Transcript : Hindi काम नहीं है। जो वीर हों बह सामने आयें। बेकार लोगों के ऊपर उपकार कर रहे हैं? आप किसको दे रहे हैं। अरे भई लिए सहजयोग नहीं है। ऐसे तो हम बड़े वीर बनते हैं। एक अगर इस ऊँगली में शिकायत हुई तो दूसरी ऊँगली उसको तम्बाकू तो छोड़ी नहीं जाती। तम्बाकू के पत्ते से आप डरते हैं। आय क्या बीरता दिखायेंगे? शराब की बातलें सारे शरीर को पता है कि इस ऊँगली को शिकायत है और दिखी नहीं कि आप ढह गये यह क्या वीरता दिखलायेंगे सारा शरीर उसकी मदद करता है। कल एक साहब ने बड़े आप? वीर हों तो सामने आयें और वीरों के गले में ही कुण्डलिनी की माला पड़ सकती है। ऐसे हमारे देश में ऐसे कुछ वीर निकल आयें तो बाकी जो दूसरे हैं, वे भी ठीक हों जायें उनको भी खींचना है लेकिन पहले हिम्मत की जरूरत है कि हम उस पर दृढ़ रहें क्योंकि सहजयोग के बाद जागृत होते हैं। उसके बाद दूसरा कौन है? आप किसके 1 अपने आप ही रगड़ देती है। उसको कुछ कहना पड़ता है? पते की बात कही थी" कि किसी भी जगह की गरीबी पुरी खुशहाली के लिए खतरा है। इसी प्रकार जिस वक्त आपकी जागृति हो जाती है आप कॅलैक्टिव में आ जाते हैं तो कहीं भी कोई तकलीफ हो जाये, कहीं भी कोई परेशानी हो जाये आप तरन्त समझ जाते हैं मनुष्य एक तरह से इतना अछूता हो जाता है और गन्दगी से इतना भागता है कि लोग कहते हैं कि भई इसको क्या हो गया। पहले अच्छा आता था, शराब पीता था और मजाक करता था। इसके काफी सीक्रेटस भी पता चलते थे। शराब की बोतल के पीछे आप चाहें तो डान्स भी इससे करा लो। अब इसको क्या हुआ। बैंकार गया। क्योंकि आप सारे गुणों की खान बन जाते हैं। ऐसा आदमी एक तेजस्वीं पुरुष होता है और उस तेजस्विता के पीछे भी अत्यन्त करूणामय, अत्यन्त प्रेममय, अत्यन्त सुखदाई और एक शानदार व्यक्ति आपका चित्त स्वयं ही सामूहिक चेतना से प्लावित एक नये आयाम में कि तकलीफ है। उसके लिए आप प्रार्थना मात्र करें तो कार्य हो जाता है। क्योंकि अब आपको परमात्मा का एकाकार हो गया है। आपको कोई सिफारिश नहीं चाहिए कि कोई बाबा जी आपको देंगे या कोई साध जी आपको देंगे। परमात्मा से कहिए और परमात्मा आपका कार्य कर देंगे और करते हैं। हजारों के ऐसे कार्य हुए हैं। इतने सहजयोगी यहाँ बैठे हैं। एक-एक से पूटछिए तो एक-एक इतनी बड़ी किताब आपको लिख देंगे दो-दो, तीन-तीन साल में उनके ये अनुभव हैं। अब आप जानते हैं। कुछ लोग बीमार मेरे पास आते हैं। मेरे हाथ टूट जाते हैं। मेरा सिर दुख जाता है, अनेक परेशानियाँ है। अभी कुछ देहात के लोग आये थे। बहुत दूर से... शिलाँग से। उस आदमी को बताया गया था कि तुम्हें कैंसर की बीमारी है। यहाँ एक प्रोग्राम उन्होंने अटैण्डता है किया। वापस गये तो डॉक्टर हैरान हो गये। कहने लगे कि आपका कैंसर कैसे ठीक हो गया? एक बम्बई के महाशय... बस वह अल्लाह को बहुत मानते थे मुसलमान। मोहम्मद आपको इतने नये-नये आयाम, इतने नये-नये विचार और नाम उनका। प्रोग्राम में आये। उनको दस साल से इतने स्फूर्त कलायें दिखाता है कि आप आश्चर्यचकित हो डायबिटीज था। बस एक बार प्रोग्राम में आये। मैंने उनसे बात भी नहीं की, जाना भी नहीं और उनसे मिली भी नहीं, बच्चों को लाते थे कि माँ यह क्लास में नहीं पढ़ता, बहुत वह ठीक हो गये कुछ-कृुछ लोगों के पीछे तो मैरे हाथ टूट जाते हैं। उनकी कण्डलिनी उठना तो दूर रहा, मेरे हाथ टूट जाते हैं। पहाड़ जैसी कृण्डलिनी उठाते-उठाते ऐसी ऐसे लोग जो कि नौकरी में नहीं थे, जो कुछ करना ही नहीं तकलीफ हो जाती है कि क्या करू। क्योंकि इनके दिमाग जानते थे वे लाखोंपति हो गये यह कैसे हो गया? ये सारी ज़्यादा हैं। सिर पर अहंकार के पहाड़ के पहाड़ बाँधे हये हैं। ही शक्तियाँ हमारे अन्दर हैं। लक्ष्मी जी की भी शक्ति अपने को बहुत समझते हैं। तो कण्डलिनी भी कहती है कि हमारे अन्दर है। जिस वक्त मनुष्य किसी भी सृजन को जरा ठोकरें खाने दो, तब ठीक होयेंगे। कण्डलिनी उठती करता है, कार्य को करता है तब उसके अन्दर जो ब्रहमदेव नहीं है, मैं क्या करू? इसलिए नम्रता के साथ, दूढ़ निश्चय है जो कि रचयिता हैं, जो कि स्वाधिष्ठान चक्र पर अधिष्ठित के साथ सहजयोग में उतरना है। ऐसे-वैसे लोगों का यह है, वे जब जागरूक हो जाते हैं तो ऐसा आदमी ऐसे-ऐसे आपको डाल देता है और आप आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि यह कैसे हो गया। माँ, हमने तो कुछ किया भी नहीं फिर यह कैसे हो गया? "योगक्षेम वहम्यहम" योग के बाद क्षेम परमात्मा देखते हैं। यह कृष्ण ने कहा भी है। - वही घटित संहम्रार का जो चमत्कार हैं। सहस्त्रार की जागृति जाते हैं कि क्या यह मेरा ही ब्ेन है। ऐसे ऐसे लोग जो अपने पीछे है ऐसे ऐसे लोग जो कुछ भी गाना-बजाना नहीं जानते े, कुछ भी कला नहीं सीख सकते, वे कलामय हो गये 11

Original Transcript : Hindi रचना करता है जैसा कि मैंने आपको बताया जितने भी संसार के महान कलाकार हुए हैं, सब के सब आत्म साक्षात्कारी हुए हैं। अगर वे साक्षात्कारी नहीं होते तो वे महान नहीं होते। आजकल हम देखते हैं कि टुटपुंजिए कि कितने लोग आपके आगे-पीछे चलते हैं । किस तरह कलाकार लोग हैं, ऐसे टूटपंजिए लेखक हैं कि एक मिनिस्टर के यहाँ नौकरी छोड़ी, उसके खिलाफ लिख दिया। अभी यहाँ भाषण में कुछ कहा और वहाँ जा कर कुछ लिख दिया। ऐसे टूटपुंजिए लोग तब जब उसके अंदर जागृति हो कह दिया कि भगवान नहीं है। इससे ज्यादा तो आपने कुछ जाती है तो वे पुर्णता पर आते हैं। तब वे समझते हैं कि यह क्या मैं कौड़ी पर कहां खड़ा था। असल रत्न मेरे अन्दर होते करें या न करें, वह पिता परमात्मा अत्यन्त प्रेममय, हुए मैं कौड़ी में कहां फंसा था। यह जागृत जब हमारे अन्दर लिए जो कुछ करना है, करता है और करेगा और आपको हो जाती है, जब उसके आन्दोलन शुरू हो जाते हैं तो ऐसा चाहता है कि आप उसके साम्राज्य में आयें और अपने संगीत अंदर चलता है कि आप कभी अकेले ही नहीं होते। जो लोग कहते हैं कि मैं बोर हो रहा हैं। यह शब्द ही मिट जाता है। कभी आदमी बोर ही नहीं होता। जो अपने में मगन हो गया, वह बोर कैसे हो सकता है। आजकल बड़ी अनुभव है, बह आप अपनी नसों पर जान सकेंगे, अपने बीमारी है। लोग कहते हैं कि मैं बोर होता हूं। मुझे यह शब्द ही समझ नहीं आता कि यह क्या होती है बला? ऐसे मगन हो जाते हैं, ऐसे मस्त हो जाते हैं चाहें जंगल में बैठे हों, चाहे देश में और विश्व में उसे जान सकेंगे। किसी के साथ बैठे हों, अपनी मस्ती में आप जमे रहिएगा और आपका व्यक्तित्व, आपकी पर्सनैलिटी ऐसे निखर जाएगी कि आप जहाँ कहीं भी खड़े रहें आपके अन्दर से इसकी धारायें बहेँगी। वहीं पर जहाँ पर आप खड़े है बही है। समय की वात है, यह समय आ गया है समय-समय की पर जो अनेक लोग हैं, उनको भी फायदा होगा। सृष्टि उनकी बंधी हुई है। हम क्या सोचते हैं कि सिर्फ हमी लोग इस दुनिया में हैं और इसके अलावा कोई है ही नहीं। आप तो अभी इस स्टेज पर नहीं आये नहीं तो आप जानते आपकी रक्षा होती है। अभी तो परमात्मा को जाना ही नहीं, उसका सिर्फ नाम ही लेते रहे, उसकी गलतियाँ ही निकालते रहे। उसको दोष ही देते रहे और अगर काम नहीं बना तो किया नहीं है आज तक भगवान के लिए। आप चाहे कुछ आपके सिंहासन पर विराजमान हों। यही उसका सिहासन आपके सहस्रार में है। यहाँ आपको प्रवेश करना है और फिर बहुमरन्ध छेदने के बाद उसकी जो कृपा का, आशीर्वाद का चरित्र में जान सकेंगे। अपने व्यवहार में जान सकेंगे, अपने दोस्तों में जान सकेंगे, अपने समाज में जान सकेंगे अपने यही उसका आशीर्वाद है और आज वह दिन आ गया है कि उसको फिर से प्रस्थापित किया जाए, उसको फिर जाना जोए, उसको भूला.न जाये। घबराने की कोई ऐसी बात नहीं बात होती है। आज बहार आ गई है और हजारों लोग, एक बेचारे हमारे सहजयोगी हैं। वह बस से रोहरी से आ करोड़ों लोग उस पृष्प की स्थिति से अब फल होने जा रहे रहे थे। बस उनकी ऊपर से नीचे गिर गई। बस इतने नीचे हैं। परमात्मा आप सब को सखी रखे। आशा है, सहजयोग गिर गई कि तीन-चार बार घुम कर बस फिर चारों पहियों में प्राप्त करने के बाद आप लोग अपनी इज्जत करें आप पर खडी हो गई। जो ड्राइवर था, वह घबड़ाकर भाग गया। एक साहब ने कहा कि कमाल है, हमें किसी को चोट ही नहीं बैठक करें। बैठक किये बगैर यह कार्य आगे नहीं हो आई हम लोग सब गोल-गोल घुमते रहे और यहाँ फिर जमीन पर अच्छे से आ गये, गाड़ी ठीक से बैठ गईं, यह कैसे आपके हाथ में है। जो कुछ मैंने कहा उसको आज तक नहीं हो गया? यहाँ कोई न कोई भगत बैठा है। वे हमारे सहज की अंगठी पहनते हैं। उनको पकड़ लिया। वे माता जी के बड़े-बड़े वक्ष की तरह इस देहली के शहर में खड़े हो जायें तो शिष्य हैं। चलो अब कोई बात नहीं। एक साहब उठे और देखिये दुनिया बदलने में कुछ टाइम नहीं लगेगा। परमात्मा कहने लगे कि मुझे आता है गाड़ी चलाना। गाड़ी में चाबी गी हुई थी उन्होंने शुरू किया और गाड़ी चल दी। ऐसे अनेकोनेक उदाहरण मैं बता सकती हैं जो घटित हुई हैं। क्योंकि आपको संभालने वाले हैं देवदत सब साथ हैं। सारी योगीजन हों, उसके प्रति अग्रसर हों। पूरा चित्त लगायें | सकता। जागृति आसान है लेकिन इसका पेड़ बनाना रखना। इसके आगे अगले माल में चाहती हूँ कि सब लाग एक आप सब को सबवाद्धि दे। 12

New Delhi (India)

Loading map...