Public Program Day 2

Public Program Day 2 1974-03-26

Location
Talk duration
35'
Category
Public Program
Spoken Language
Hindi

Current language: Hindi, list all talks in: Hindi

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26 मार्च 1974

Public Program

Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft

1974-0326-SARVJANIK KARYKRAM-MUMBAI -HINDI

आप चाहें पर्मात्मा पर विश्वास करें या ना करें, इससे पर्मात्मा का होना ना होना निर्भर नहीं है। और अगर हम आपसे कितना भी कहें कि पर्मात्मा है और आप उसका विश्वास भी करलें, तो भी उसके कोई फ़र्क पड़ने वाला नहीं। चाहें आप अविश्वास करें, तो भी आप अज्ञान में हीं अविश्वास करेंगे, और जब आप विश्वास कर रहे हैं, तब भी आप अज्ञान मैं ही हैं। उसको पाए बगर विश्वास कर लेना भी अज्ञान ही होता है। और उस पे अविश्वास कर लेना भी अज्ञानी ही होता है। इसलिए जब मैं इस विषय पर बातचित कर रही हूँ, आपको एक खुले दिमाग से, जैसे कि एक साईंन्टिस्ट होता है, एक शोधक होता है, जिसे कुछ भी पता नहीं है, इसके प्री कंसीवड आइडियाज नहीं है, जिसने पहलें से ही कुछ सोच नहीं रखा है, इस तरह से आपक पहचान होनी चाहिए। इस विषय पर न जाने कितनी किताबें मनुष्यों ने लिख मारी हैं, एक अनंत सागर सा हैं, उसमें से न जाने कितने ही लोगों ने सारा ही असत्य ही लिखा हैं; लेकिन सत्य और असत्य की पहचान क्या है? सत्य की पहचान यह है, कि वो हर हालत जाहिर हो जाता है, और किसी भी कसौटी पर वो झूठा साबित नहीं होता है, वो ही सत्य है। जो हम आपके सामने बात भी करेंगे, या जो कुछ भी आपको बताएंगे, इसको एक साइंटिस्ट की तरह से सुनने का मतलब ही होता है, कि आपके सामने एक हाइपोथीसिस हम रख रहे हैं, एक विचार रख रहे हैं, उस विचार को हम बाद में आपको सिद्ध करके दिखा सकते हैं; और जो यहां लोग पार बैठे हैं, जिन्होंने हमारे काम देखें, वो जानते हैं कि यह बात सिद्ध होती हैं। लेकिन दिमाग खुला रखें, यह बहुत ज़रूरी है, क्योंकि आप में से बहुत से लोग ऐसे हैं, कि इस विषय में बहुत कुछ पढ़ चुके हैं; लिखने मैं तो कुछ भी नहीं लगता, आपके पास थोड़ा’ सा पैसा हो या आपको कोई थोड़ी मदद कर के लिए तैयार हो तो आप किताबों पर किताबें लिखते चले जा सकते हैं और आपको सत्य की कोई भी खोज करना जरूरी नहीं है। धर्म के मामले में पूछने वाला कौन है, कि तुमने ऐसा क्यों लिखा, धर्म पे तो, चाहें जो भी चाहें बोल सकता है, हिटलर जैसे आदमी भी धर्म पे बोलता था, और नेपोलियन जैसे आदमी भी बोलता था, क्योंकि धर्म में उनको पकड़ने वाला कायदा अभी तक बना कहा है, जिसको जो चाहें तो धर्म के नाम पे अधर्म भी बेचिए, तो उनको जेल में डालने वाला कायदा अभी बना नहीं है। लेकिन आप अगर सत्य के पुजारी हैं और आप सत्य को ही जानना चाहते हैं तो हमारी बात पर भी आपको पूरी तरह से यकीन नहीं करना चाहिए। जब तक आप यह ना देखें कि जो हम कह रहें हैं वो वास्तविक है; आप मनुष्य हैं और आपको अपनी खुद्दारी में खाड़ा रहना चाहिए, यह नहीं कि जो आपको कुछ कह दे या लिख दे, बता दे वो आप पे छा जाएं यह मनुष्यता का लक्षण बिल्कुल नहीं है। जो मनुष्य की सीढ़ी पर खड़ा होकर के परमात्मा को ये भी कहता है कि तू नहीं है वो कहीं अधिक अच्छा है उस आदमी की परिवत्ता में जो परमात्मा को कहता है कि हाँ तू है। सहजयोग में परतंत्र आदमी के साथ हम कुछ नहीं कहते हैं। 3.04 कल मैंने आप से यहीं कहा था कि सहजयोग में आपकी अबोधिता, इन्नोसंस बहुत जरूरी है; लेकिन स्वतंत्रता अत्यंत आवश्यक है और इसलिये अत्यंत स्वतंत्र बुद्धी से आप बैठें, नहीं तो हमारा विनायन हो, न तो हमारा नकार हो और ना ही हमारा स्वीकार हो जब तक आप इसको पा नहीं जाते हैं। जो कुछ भी हम बात कह रहे हैं वो जब तक आप का सैल्फ रियलाइजेशन नहीं हो जाता है तब तक पता ही नहीं होता। आप जान ही नहीं सकतें हैं, उस बात को जिसे हम कहें, जैसे कि जब तक आपका कनेक्शन नहीं लगता है आप कोई भी टेलफोन करिए उसका कोई अर्थ नहीं होता। कम से कम, कम से कम मनुष्य को जब धर्म के बारे में जानना होता है तो Realization कम से कम एक दशा है; उससे पहले मनुष्य उस योग्य नहीं है जो धर्म को जाने। जैसे अपने देश में पहले कहते थे कि सिर्फ ब्रामण ही धर्म को जाने; अब ब्रामण का अर्थ ही वो होता था कि जो रियलाइज हो। हर एक आदमी ब्रामण नहीं होता था। आज मैंने आप से कहा था कि मैं किसकी प्रश्टा ब्रह्म आदी बातों की चर्चा करूँगी। पहले भी मैंने बताया हुआ है कि जैसे कोई एक बीज होता है और उसके अंदर, जो कुछ भी उसमें से पैदा होने वाला है, उस सब का नक्शा होता है उसी तरह से आप एक ब्रह्म स्वरूप का विचार करें कि एक ब्रह्म स्वरूप बीज वर्तवान है जिसका आदी नहीं और अंत नहीं है क्योंकि बीज से पेड़ होता है और पेड़ से बीज होता है जो अनादी है ऐसा एक ब्रह्म बीज़ स्वरूप में आप अपने चित्त में खड़े हैं। इस ब्रह्म की स्तिथि एक साधरण बीज जैसी है जो की स्रिजन शक्ती से संपादित जैसे कि एक छोंटा सा बीज होता है इस के अंदर उसकी जर्मिनेटिंग पावर या उसकी स्रिजन शक्ती होती है उसी तरह से इस ब्रह्म मे भी अपनी स्रिजन शक्ति है, और जब वह पहले ही फूट पड़ता है, पहले ही उसमें उसका स्पंदन होता है, पहले ही जब वह स्पंदित हो जाता है उसकी वश्च प्रणव की स्थापना होती है, उसमें शक्ती की स्थापना होती है। और वो शक्ती उस बीज से अलग हट कर अपने अहंकार में स्थापित हो करके सारी पृथ्वी की रचना करती है, और वो जो बीज है, वो ईश्वर स्वरूप हो करके और उसका खेल देखते हैं। जैसे कि एक टेलिविज़न रखा हुआ है, उसे वो देखा उसको पसंद खेल आ गया, तो वो देख रहा है और उसको ना पसंद आ गया, तो वो उसको आफ कर देगा। इसी इश्वर को हमारे शास्त्रों में शिव के नाम से जानते हैं और उस शक्ती को शिवानी कहते हैं; जिसे हम महाशिव करके पुकारते हैं उसी को लोग इश्वर, फादर, गौड, परमात्मा और जिसे हमशक्ल कहते हैं उसी को लोग होली घोस्ट, जीव आदी अनेक शब्दों से सावरण करते हैं। यही शक्ती सारा सृजन करती है। यह शक्ती जब प्रियन करने लग जाती है उस वक्त वो अपने ढंग से सृजन करती है, उसका अपना एक ढंग है। मानव दशा में आने पर यह शक्ती, जैसे की मैंने कल आपको बताया था यह एक जड़ तत्व है और एक चैतन्य तत्व है; दो तत्वों से यह सारी सृष्टि बनती है। चैतन्य तत्व जब जड़ तत्त्व पे काम करता है तब यह सृष्टि का सृजन होता है और सारी सृष्टि तैयार होती है। करते, करते मनुष्य दशा पे हम आ जाते हैं। इस विस्तृत रूप से तो मैं बहुत बार बता चुकी हूँ लेकिन आज विशेषत: कुंडिलिनी पर आना है इसलिए मैं जरा जल्दी में यहाँ पहुंचना चाहती हूँ। मनुष्य में जब जड़ शक्ति छोटे से बच्चे के रूप में माँ के गर्भ में दो-तीन साल की, दो-तीन महीने की दशा मैं पहली मर्तबा स्पंदित होता है, उस वक्त उस के हृदय में जो पहला स्पंदन होता है, जो पहला स्पंदन उस बच्चे के हृदय मैं होता है, वो ईश्वर का होता है। उसी को हम आत्मा कहते हैं। पर्मात्मा आत्मा स्वरूप हमारे शरीर में पहले भागता है। और शक्ती जो है, वो हमारे सर से, इस तालू प्रदेश से चीर करके अंदर हमारे पृष्ठ भाग में, जो स्पाइनल कॉर्ड है, जो रीड़ की हड्डी है, उससे गुजरके और त्रिकोण आकार इस अस्थि कुंड में जा करके बैठती है। यह बैठती है या नहीं, वहाँ होती है या नहीं, इसकी क्या स्थिती है, वास्तविकता है या नहीं, आप कह रहे हैं, इसको क्यों मानना चाहिए? बिल्कुल न मानें, लेकिन मैं आपको दिखा सकती हूँ। आप चाहे पार हो न हो, अपके पास आँखें हैं, आप कि अंधे नहीं हैं, तो आप देख सकते हैं, कि यह वहाँ पर कुंडिलिनी के नाम से स्थित है, और जब कोई मेरे पैर पे आता है, तो फौरन वहाँ पर स्पंदन होने लगता है, यहां तक कि त्रिकोण-आकार अस्थि मैं भी। त्रिकोण-आकार अस्थि में स्पंदन होने की कोई बात नहीं, क्योंकि वहाँ हृदय नहीं है, वहाँ कोई हृदय नहीं है, लेकिन वहाँ आपको दिखाई देता है, कि उस आदमी का अगर वो कोई कपड़ा पहने हुए है, तो वह उपर नीचे हिलता है, और कभी-कभी बहुत जोर से हिलता है।

उसके बाद आप देखते हैं, कि जब वो चीज़ चढ़ती हैं, वो ऊपर। ऊपर में चढ़ते वक्त, वो किसी-किसी जगहें रुकते हुए स्पंदित होती हैं, और किसी-किसी जगहें इसका स्पंदन इतने जोर से दिखाए देता है, कि जैसे हृदय चक्र, जहां पीछे में हैं, वहाँ पर आपको ऐसा लगता है कि कपड़ा उठ रहा होता है। उठ रहा है ऊपर।

इसके जो हम लोगों ने प्रयोग किये हैं और एक्स्पेरिमेंट किए हैं वो लोगों ने अपने आँखों से साक्षात देखा हुआ है। जो लोग कहते हैं कि कुंडलिनी कोई चीज़ी नहीं होती हैं, कुंडलिनी में विश्वाश नहीं करते हैं उनको चाहिए कि एक मरतबा आके देखें कि कुंडलिनी नाम की चीज आपके अंदर में हैं, शक्ती नाम की चीज आपके अंदर में हैं और ये आपके त्रिकोणाकार अस्थी में है, उधर उधर नहीं है। इसका सामने साक्षात हो सकता है। आप इन आखों से, naked eye से आप देख सकते हैं कि इसके अंदर कुंडलिनी है; उसके बाद आप ये भी देखते हैं कि धीरे धीरे आपके पीठ में ऐसा लगता है कभी कोई चीज चल रही है। किसी किसी को तो सिर्फ हमें देखते ही साथ फटाक से ऐसा लगता है कोई चीज चल रही है। ये उनके पूर्व जन्म के पुण्यों का तरीका है, जो उन्होंने पुण्य इकट्ठे किये हैं वो एक दम से साक्षात हो जाते हैं और खट से कुंडिलिनी, फोर्स से उठ जाती है। और किसी किसी में रुकावट लगती है धीरे धीरे चढ़ी, इससे नीचे उतर गई। किसी को थोड़ी गर्मी लगती है उसकी वजह ये है कि आपके अंदर जो कुंडिलिनी का मार्ग है वो जैसे मैं यहाँ आपको दिखा रही हूँ, इस तरह के छेद के प्रती है जैसे की एक इधर से खीच सकते हो और एक इधर से खीच सकते हो इस देख रहे हैं आप ये दो और शक्तियां हमारे अंदर हैं जो की इड़ा और पिंगला हैं इसके बारे मैं कल बताऊंगी वो किसी न किसी कारण के अपनी तरफ इस मार्ग को खीच लेती हैं और उसी लिए ये मार्ग अवरुद्ध हो जाता है और कुंडिलिनी ऊपर उठ नहीं पाती, वो जाकर रुक जाती है उस जगह जहां मार्ग अवरुद्ध है। ये कुंडिलिनी साक्षात चैतन्य शक्ति है। चैतन्य का मैंने कल आप से बताया ही था कि चैतन्य सब जानता है चैतन्य सब पहचानता है इतना ही नहीं लेकिन संसार का सारा सृजन ही चैतन्य से होता है और चैतन्य जो है वो प्रेम है ये कुंडिलिनी भी प्रेम और स्वरुपिनी आपकी अपनी मा हैं। ये जरा सा फर्क आ जाता है, जो आपकी अपनी मा हैं उसका और कोई बेटा नहीं है; वो आपके बारे में सब कुछ जानती है जैसे कोई टैप रिकॉरडर अपने अंदर सब कुछ संचित किए हुए है कि इस बच्चे के क्या दोश है, इसमें क्या तकलीफ है, इसके शरीर में कौन सी पीड़ा है, इसकी माँ की कौन से वेदना है, इसने क्या क्या तकलीफ उठाई हैं। यह साक्षात है, आजकल के मौडर्न टाइम्स में कोई जरा कुंडिलिनी की बात करें तो लोग उपहास होगा लेकिन इसी टाइम में जबकि आप साइंस की इतनी बड़ी भजा और पताका लगा कर घूम रहे हैं; उस समय आ गया है कि आपको फिर से धर्म के रास्ते कि ओर अपनी नज़र उठा कर देखना पड़ेगा क्योंकि साइंस को अब समझ चुका है कि अभी तक हम ने जो कुछ जाना है। मेडिकल साइंस में कैंसर, कैंसर समझी नहीं आ रहा कि क्या है, कैंसर क्या चीज़ है कि किसी के समझी नहीं आ रहा। जो लोग साइंस के नाम पर डंके की चोट पर बड़ी सांस और अहंकार चुकाते हैं मुझे बता दें कि कैंसर का ही। बड़े बड़े डाक्टर होते हैं वो नहीं बता पाएंगे मैं बताती हूँ कि कैंसर यही जो मैंने आपसे कहा था कि Sympathetic Nervous System की क्रियाओं से, over activity से होता है और इसका इलाज सहजोयोग के सिवाय कोई और है नहीं; आज जो मैं कह रही हूँ दस साल बाद चाहे लोग मान जाएँ, पर न जाने कितने लोग कैंसर से ग्रसित हो जाएँगे। संसार अजीब है, कोई चीज का आप पता लगाइए तो मानव का दिमाग ऐसा होता है जो पता लगाता है उसी को फांसी चढ़ा दो, उसकी बात मत सुनो लेकिन मरने के बाद में मंदिर बनाएंगे और उसका ग़ौरव करेंगे। आज मैं जिंदा आपके सामने बता रही हूँ कि कैंसर किस बिमारी का नाम है, जिसे मैं कहती हूँ कि ओवर एक्टिविटी ऑफ सिमपाए सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम यह डॉक्टर लोग भी मानने के लिए तैयार हैं लेकिन एक आध डॉक्टर को अगर कैंसर पड़ जाय तो माता जी के चरण में आते हैं कि मैं माता जी पास जाएंगे क्योंकि हम तो रियलाइजेशन के पीछे में हैं कैंसर के पीछे में नहीं है लेकिन डॉक्टर लोग अगर आँख खोल के देखे और इसको समझने की कोशिश करें और इसका विचार नहीं करें कि उनके पैसों का क्या होगा तो वो स्वयं भी इस बिमारी का इलाज कर सकते हैं और लोगों को ठीक कर सकते हैं। इसलिए साइंस से आप कुंडिलिनी के बारे में अगर पूछना चाहते हैं तो मैं ये कहूँगी कि आपके आँख है इसका तो आपको विश्वास है या नहीं; अगर इसका विश्वास है तो आपके आँख से देख लीजिए कि किसी के पीठ के नीचे की हड्डी में अगर स्पंदन हो रहा है तो आखिर वो क्या है। और वो होने के बाद आपके पूरे होश में अगर ये निर्विचारिता स्थापित हो रही है तो आखिर ऐसी कौन सी चीज़ है कि जिसे आप ये निर्विचार हो सकते हैं। साइकॉलजिस्ट कितने भी बड़े हो उनसे पूछ लीजिए कि आप ये निर्विचारिता हमारे अंदर स्थापित कर सकते हैं। प्राण से आपको उतार लेंगे, आपका माइंड को स्विच ऑफ कर लेंगे, लेकिन आपके होश में जिसकी बात इनर साइलेंन्स की है और अंतर शांती की बात है अगर करके दिखा देंगे तो हम मान जाएंगे आपका साइंस बहुत बड़ी है। अंतर की शांती आए वगर बाहर की शांती हम ला नहीं सकते है; लेकिन सारी साइकोलोजी की खिताबे आप खोल के देख लिजीये लिए और इन्य साइकोलोजिस्ट के पास जाकर देखें क्या ये शांत है। ये क्या हमारा इलाज करेंगे जो स्वयं भी उसके शिकार है जिसके हम। लेकिन कितनी भी बात कहूं, कैसे कैसे समझाओ कि बचो ये कलयुग का जमाना है और इस कलयुग में ही बड़ा भारी उद्धार होने का समय आ गया है और उसी के साथ पूरे विश्व का भी पूरा इंतजाम है क्योंकि जो ईश्वर सुपर्वाइज करने बैठे हुए, जो सर्वसाक्षी हैं वो आपका स्विच ऑफ करने के लिए बड़े लालाईत हैं। देख रहे हैं; खेल बनेगा तो चीज़ हमारी है, और नहीं तो संहार। आप देख ही रहे हैं कि संसार में किस तरह की चीजें किस तरह की चीजें संसार आज मैं खड़ी हो रही हैं; युद्ध है, गरीबी है, रुगणा वस्थायें हैं, देखा नहीं जाता है और इसका कोई भी ईलाज मनुष्य ढूँढ कर नहीं निकाल सकता। कोई कहता है कि कमयुनिज़्म लाओ, कोई कहता है कि सोशईलिज़्म लाओ, कोई कहता है कि फलानाईज़्म लाओ, कोई कहता है कि आप कैपिटलिज़्म; इन सब के लाने के लिए उस परम आनन्द की उपलब्धी हुए बगैर, उन तारों को छेड़ने की शक्ति मिले बगैर आप कभी भी आनन्द पा ही नहीं सकते हैं और संतोष आप को होई नहीं सकता है। संतोष मनुष्य को परमात्मा के चर्णों में ही मिलता है, लेकिन जब मैं परमात्मा की बात करती हूँ तो मौडर्न आदि नाम आ जाता है, जाए हाँ माताजी आगे रक्षे पराओ वहाँ तक तो सब लोग पीछे पीछे चलते हैं जब तब मैं साइन्स की बात करती हूँ पर जैसे ही मैंने परमात्मा की बात की, इतना अहंकार है, इतना, आदमी इतना अहंकारी हो गया कि अपने को समझता क्या है। उस परमात्मा जिसने हमें बनाया और जिसने सारी सृष्टी की रचना की उसको हम चुनौती दे रहे हैं, आप हैं किस खेत की मूलि, उखाड़ के फेक दिये जाएँगे। परमात्मा के नाम में अधर्म देख रहे हैं, सेक्स की बाते ज़ब परमात्मा के नाम में आप अगर करियेगा तो आप बड़े धर्मात्मा कहलाये जाते हैं; कलयुग की भी हद होती है, परिसीमा में पाप मैं हम लोग वाकई डूब चुके हैं। साइंस से अगर आप पाप धोकर दिखा सकें, साइंस से अगर आप प्यार बना कर दिखा सकें तो मैं साइंस के सामने हारी हूँ। लेकिन हमारा भाषण भी एक भाषण मात्र रह जाए और कोई अनुभूती आपको नहीं है, आप ज़ब हमारे रहते हुए भी कुछ न पाए तो हमारा आना भी व्यर्थ हुआ और कहना भी व्यर्थ हुआ। ऐसा कलयुग का जोर, ऐसा अन्धकार, अहंकार हमारे सर पे छाया हुआ है कि हम अपने आगे किसी को कुछ सोचते ही नहीं। एक पाँव के धूल के बराबर भी ये सारी सृष्टि नहीं है, जो वो परमातमाँ है। मेरी बात का आपको मैं यकीन दिलाना नहीं चाहती हूँ लेकिन एक दिन इसका आपको मैं साक्षात कराऊँगी। पहले अपनी तैयारी ही करती हूँ। आजकल के नव ज़वान लड़के और आजकल का जो समाज तैयार हो रहा है उसमें कितना ही बताया जाए उनके सर में कभी नहीं घुसने वाला, इसका कारण ही कि धर्म के नाम पे महा अधर्म ख़ड़ा कर रहे हैं। कुंडिलिनी की तो बात किसी ने की नहीं, कुंडिलिनी की बात उस जमाने में बेचारों ने कुछ कह ही नहीं, उस पर भी क्रॉस् पर चढ़ा दिया। कुंडिलिनी अंदर साक्षात है और उसका साक्षात हो सकता है। अगर आपको देखना हो तो आप आये और नहीं देखना है और नहीं जानना है तो अज्ञान की जो जो तकलीफ़ें हैं उनको सहना ही होगा। पर एक विचार तो करना ही है क्या कि आखिर हम कर क्या रहे हैं, हम दोड़ कहाँ रहे हैं, क्या पा रहे हैं। अपने ही अंदर अपने ही उस देह के अंदर सारे देवता बैठे हैं। अब यह कहते हैं साहब, क्या ऐसे कैसे माता जी कह रहे है कि हमारे अंदर देवता हैं; उसका भी आपको मैं प्रमाण देती हूँ। एक साहब को पेट की शिकायत है वो हमारे पास आते हैं कि माँ! पेट में बहुत दिन से दर्द होता है, एक दूसरी आती हैं वो कहती है हमें बच्चे नहीं होते हैं; हमने कहा अच्छा तुम हमारे ओर देखो। उनको देखते हैं कि कुंडिलिनी जो होती है वो स्वाधिष्ठान चक्र में बैठी हुई है, एक छोटा बच्चा बता देगा कि यहाँ पर इस उंगली में हमें गर्मी आ रही है जितने भी लोग बैठे हैं आप लोग देखें वो आँख बंद करके बता देगी कि इसी उंगली पर, इसी अंगुठे पर हमें गर्मी आ रही है; इससे बढ़के और साइंस क्या हो सकती है कि सबकी सब एक ही बताया कि इसमें हमें गर्मी आ रही है। मैं तुमसे नहीं बता रही हूँ उनसे पूछा कि साहब आपको बीमारी क्या कि साहब हमें तो नीचे पेट में बहुत दर्द होता है और किसी ने कहा कि हमें पेशाब की शिकायत रहती है और कुछ ने कहा कि हमारे बच्चों में सारे के सारे आउर्टिक प्लेशर जिसे कहते हैं जो स्वाधिष्ठान चक्र से चालित बीमारियाँ है और वो इसे वहाँ पे आप महसूस कर सकते हैं, अब इसे ज़्यादा और आपको मैं प्रमाण क्या दूँ कि एक दो साल का बच्चा भी यही अंगूठा दिखाएगा और सब लोग यही अंगूठा दिखा कर बताएंगे माँ ! यहाँ और फिर जब मैं उस आदमी से कहती हूँ कि अच्छा तुम ब्रह्मदेव का और सरस्वती का नाम लो; वैसे लेते ही खट से और वो कहता माँ! मेरी तकलीफ ठीक हो गई। अब इससे भी ज़्यादा कोई प्रमाण चाहिए, साक्षात ब्रह्मदेव और सरस्वती वहाँ बैठे हुए हैं अगर नहीं बैठे होते तो काम कैसे हो गया; और किसी का भी नाम लीजिएगा होने नहीं वाला। इसका अब इससे ज़्यादा और क्या प्रमाण देना चाहिए, आप लोगों के सामने। इसको बुद्धी वादी कहें कि बुद्धू वादी कहें जो देखते हुए भी इस चीज़ को नहीं मानते हैं जिसके मुलाधार चक्र पे तकलीफ हो उसके यहां गर्मी आती है अगर उस पे बहुत जोर की बाधा हो, बाधा जिसे कहते हैं रुकावट या किसी किसी पर उस सोसाइटी में भूत बाधा में जब बैठता है तो बहुत जोर की गर्मी आती है यहां तक कि यहां ब्लिस्टर्स आ जाते हैं बहुत से लोग जो अपने को भगवान और आदि आदि कह कर घूम रहे है उनको तो छोड़ो, उनके शिष्यों पर भी होते रहते हैं तो ब्लिस्टर्स आ जाते हैं। उन लोगों के हाथ जल गए हैं, उन लोगों की उँगलियाँ जल गई हैं सब की एक साथ उँगलियाँ जल गई हैं। मेरी नातिन दो साल की, वो पार ही पैदा हुँई हैं। वो भागती हैं सब लोगों से। एक ही उंग्ली पर सबके ही वो जलन आती है एक ही उंग्ली अगर इसी पर सबके जलन आ रही है तो उसके आज्ञा चक्र पे पकड़ है और आज्ञा चक्र पे जो क्रॉस है, उसके इसामसीह ने अपने को लटका लिया और इसामसीह वहाँ हैं चाहे आप इसाई हो चाहे नहीं, उसका साक्षात सामने आता है। बड़े आयें हिन्दू बनने वाले और बड़े आयें ईसाई बनने वाले, सबको द्वेष करने के तरीके सूझते हैं, प्रेम का कोई तरीका सूझता नहीं। सबके यहां पर अंदर इसामसीह का स्थान है और वहीं गणेश जी है जो भी साक्षात मनुष्य स्वरूप है; इसकी पह्चान है कि गणेश जी के भी बाप नहीं थे और इसा के भी बाप नहीं थे, लेकिन अगर कोई पागल आदमी हो या जिस पर भूत बाधा हो, जो मेंटली डेफिशियंट हो और वो अगर हमारे सामने आ जाए तब हम जो हमको मदद कर रहे हैं, या उनके आज्ञा चक्र को छुड़ा रहे हैं; अगर हम उनसे कहें की ईसामसीह का नाम लो, जिसुस क्राईस्ट का नाम लो, खट से खुल जाएगा आज्ञा चक्र। हम कैसे जानते हैं ये तो कोई प्रशन नहीं हुआ क्योंकि हम जानते हैं और ये होने पर भी उस पर भी अगर आप लोग विश्वाश नहीं करेंगे कि अलग अलग अपने चक्रों पर अलग अलग देवताओं का स्थान पहले ही से आदी शक्ति ने बनाया हुआ है जब आपका नामोनिशा भी नहीं था और जो लोग आपस में लड़ रहे हैं उनको भी पता होना चाहिए कि आप आपस में जिन गुरुओं के लिए लड़ रहे हैं वो एक जैसे हम मुहमद साहब और गुरू नानक के लिए था। मुहमद साहब और गुरू नानक दोनों एक ही आदमी थे, उसकी एक पहचाँन कि नानक जी के जीवन में ही हम आपको बता रहे हैं कि एक बार नानक जी लेटे थे लोगों ने कहा कि आप क्या मक्का के तरफ, उदर में काबा है उदर में आप अपने पाँ करके क्यों लेटे हैं; उन्होंने कहा अच्छा उधर मैं पैर कर लेता हूँ, उधर काबा घूम गया। काबा क्या है मुहमद साहब के पाँव की घूल है और वही नानक साहब के लिए है क्योंकि दोनों एक ही आदमी हैं और उसके पहचान हम कुंडिलिनी मैं आपको कराते हैँ। जिस किसी को अगर कैन्सर हो जाए, या तो नानक साहब उसको ठीक कर सकते हैं या मोहम्मद साहब, ओर कोई नहीं कर सकता। हमारे यहाँ जो वॉइड है, हमारे यहाँ इस जगह में जो गैप है जिसे डॉक्टर च्यांस कहते हैं, जिसे कि हम भवसागर कहते हैं उस भवसागर को पार करने वाले जो आदि गुरू हमारे दत्तात्रेय जी थे, इनके ही ये सारे अवतार हैं। उनमें से किसी का तो भी आपको नाम लिये बगैर आपकी यह वॉइड की तक्लीफ है जो कि कैन्सर को बनाती है कैन्सर की पहचान है कि यहाँ पर धखा धख, धखा धख कुंडिलिनी मारती है; आप ठीक नहीं हो सकते हैं। मैं यह पूछना चाहती हूँ कि कितने यहाँ मुसल्मान हैं और कितने यहाँ सिख हैं; एक चीज के लिए मुहम्मद साहब मना कर गये थे कि शराब को पीना मत, उन्होंने कहा था कि छूना नहीं, और कुछ नहीं कह गए, उस चीज के पीछे उनका मर्डर भी कर दिया।

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उनकी क्या दशा की हम जानते हैं और आज मैं मुसल्मानों से पूछना चाहती हूँ कि शराब जरूर पियेंगे और अगर मस्जिद मैं जरा से बच जाए तो लड़ना शुरू कर देते हैं। और शराब जरूर पीते हैं; और इतना ही नहीं कविता भी लिख दि शराब पे, भगवान हो गई शराब। जब हम और गुरु जी ने हमें सत्य का पथ बताया है, उसी पथ को तोड़ने पर हर समय अपने के लिए नफरत करने पर जुटे हुए हैं, सारे संसार में नफरत को बाटने की सोच रहे हैं तब और क्या करें? और उसमें अहंकार इतना छिपा हुआ है, अहंकार हमारे अंदर सूक्ष्म से सूक्ष्मत: । वो अहंकार आपको विशेश रूप से दिया गया था कि “अहम करोती”, तो मुझे करने का है, मुझे क्या करने का है? उसे पाने का है, उसका कार्य मुझे करने का है। उसकी मुझे शक्ती दी ; एक ब्रश है, उसे क्या करने का है? कि एक कलाकार के हाथ में पूरी तरह से हो जाने का है, समर्पन करने का है। उस समर्पन को तो छोड़ कर तो इस अहंकार मैं तो प्रविष्टि करी हुई है। उसका भी रूप देख लिए, कभी अरब के लोग अकड़े बैठे हुए, कभी ये लोग अकड़े बैठे, कभी वो अकड़े बैठे; सब के दिन फिरने वाले हैं। आपको पता होना चाहिए कि किसी भी देश में कोई किसी भी तरह से हानी होगी तो वो देश ही नहीं मिटेगा, लेकिन सारा संसार मिट जाएगा। इसी तरह से हर एक मनुष्य का है, अगर हमारे अंदर अगर कोई हानी होई नहीं तो एक ही सृष्टि की रचना करने वाली वो शक्ति हमारे अंदर और सब के अंदर सूत्र रूप से जो बह रही है उसमें धक्का लगेगा। और कौन सा साइंटिफिक सूत्र आप चाहते हैं अंधों के लिए कोई साइंटिफिक सूत्र पूरा नहीं है। उनके लिए तो यही अजीब बात है कि एक ओरत जात, वो भी एक हाउ्स वाइफ वो कैसे ये सब बातें जानती हैं और सीता जी कौन थी और राधा जी कौन थी और मेरी कौन थी, कोई कहीं के बड़ी भारी विदीशियाँ थीं। कि आपको पहचानने के लिए पहले अपने अंदर प्यार होना चाहिए; थोंड़ा सा प्यार आपके अंदर आजाए आपकी कुंडिलिनी को हम ठिकाने कर देंगे क्योंकि वो प्रेम स्वरूपनी है, उसे आपसे अत्यंत प्रेम है और जब मनुष्य अत्यंत प्रेम किसी से करता है तो वो क्या चाहता है कि यही प्रेम सारे संसार में हो क्योंकि प्रेम देने का जो अत्यानंद है, वो चाहता है कि ये भी अपनाएँ है और वो भी अपनाएँ और वो भी है। सब कुछ हम जिस अत्यानंद के लिए कर रहे हैं वो सिर्फ इस प्रेम के प्रकाश के लिए है इस प्रेम के प्रकाश के लिए आपको सुसज्जित किया है, जैसे मैंने कहा था। आपका दीप जलाया जाएगा, लेकिन छुपा के। बहुत बड़े काम के लिए आप चुने गए हैँ, आप चुने हुए लोग हैं हजारों मैं से, हजारों। बाद मैं यह नहीं कहना की माँ यह नहीं बताया, वो नहीं बताया; सब चीज हम बताने को तैयार हैं, और आपके काम सब बताएँगे। और हर तरह काप के लिए संरक्षण भी है। यह नहीं कि आप जंगलों मैं भाग जाइए संसार से, कोई जरूरत नहीं है। आप को कोई भी ऐबनोरमल काम करने की जरूरत नहीं है। घर गृहस्ती मैं ही बाल बच्चों के अंदर ही आपके अंदर यह सुंदर कार्य होने वाला है। और बहार आ गई है और बहार की खबर आपको है नहीं, फूलों की सजावट जरूर होने है, आप लोग जो सामने बैठे हैं। मुझे उम्मीद करनी चाहिए की कैसे मेरे सामने मैं, मैं चाहती हूँ कि किस तरह से आपके हृदय मैं दोड़ कर के उस सुगंध को मैं बहा सकूँ। और फिर आप ही दूसरे एक दूसरे को दे करके कहैं हाँ, हाँ, हाँ क्या सौन्दर्य है, क्या सुगंध है। सब से इस सृष्टि अगर कोई सुंदर कार्य हुआ है तो वो मनुष्य है। मनुष्य इतना सुंदर है बताते हैं बहुत ही आल्हाजदाई है। और इस वाइबरेशन को जानने वाली इस प्रेम को जानने वाली इस आनन्द को जानने वाली अपनाने वाली एक की चीज़ है, वो है मनुष्य। ऐसे ही एक सुंदर मनुष्य के हृदय में मैं यहीं चाहती हूँ कि उस आनन्द के दर्शन हों और फिर वो आनन्द को इस तादाद में पाता है। आप लोग मेरे और हाथ करके बैठे हैं; आपमैं से कुछ-कुछ लोगों के हाथ में कुछ ठंडा ठंडा सा जैसे कि कोई एयर कंडिशनर से आता है, ऐसी ठंडक क्या आ रही है। सर पे हाथ रख कर देखें अपने प्रेम की ओर अपनी बुद्धि मैं तो आप देखिएगा की कोई विचार नहीं आ रहे हैँ, विचार रुक जाएँगे। लेकिन आप होश मैं हैं, पूरे होश मैं। (इंग्लिश वर्षंन का कुछ भाग शुरू)

Birla Kreeda Kendra, Mumbai (India)

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