Public Program Day 1 1974-03-25
25 मार्च 1974
Public Program
Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)
Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft
परम तत्त्व का अर्थ क्या है? वो किस तरह से सृजन करता है? ये चीज़ क्या है? इसके बारे में अनेक ग्रंथ, भाषणादि बहुत कुछ व्याख्यान संसार में हुये हैं। बहुत कुछ कहा गया है। परम शब्द परमात्मा का द्योतक है। ये परमेश्वरी शक्ति है, जो हर अणु-रेणु में वास कर के परमेश्वर का कार्य को संचलित करती है, चलाती है। अब ऐसे कहने से, बातचीत करने से इस जमाने में विश्वास नहीं करता। कोई इसको मान नहीं सकता। लेकिन जैसे मैंने आपसे पहले भी बरताया है, कि अभी लंडन में, हाल ही में मैंने एक चित्र देखा था, जिसमें उन्होंने सल्फर डाय ऑक्साईड के मॉलेक्यूल्स दिखाये थे । उसमें दिखाया कि सल्फर और ऑक्सिजन के बीच में, उसके अणुओं के बीच में जो बंध है, बाँड है, उनमें कोई परम जो है जिसे ये लोग भी , साइंटिस्ट भी वाइब्रेशन्स ही कहते है। आँखों देखी बात है। आँखो से आप भी देख सकते है। अणु और रेणुओं की स्थिति ये साइंटिस्ट बता सकते हैं कि ये अणु क्या हैं और रेणु क्या हैं? वो किस तरह से हैं? वो किस तरह से स्थित है ? जड़ त्त्व का पता साइंटिस्ट लगा सकते हैं। लेकिन उस में आंदोलित होने वाला चैतन्य जिसे वो वाइब्रेशन्स कहते है उसके बारे में वो बहुत ही अनजान है और उसके बारे में वो कुछ भी बता नहीं सकते। हर एक के लिये वो तत्त्व आंदोलित हो रहा है। वो जड़ में है, वनस्पति में है, पशुओं में है और आप में है। अपनी अपनी जगह वो आंदोलित है और संपूर्ण में चेतित भी है। माने ये कि जो परम तत्त्व आप के अन्दर चेतना पा रहा है वही इस बैठक में भी है। अन्तर इतना ही है कि उस चेतन तत्त्व को जानने वाला इतना भी जागृत नहीं हुआ है, लेकिन मानव में ही ये जागृति आयी हुई है कि उस चेतन तत्त्व को जानें। वही चेतन तत्त्व, परम तत्त्व सारे संसार का संचालक है। जो कुछ भी है, संसार का जो भी कुछ है वो इसी का बनाया हुआ है। आप अगर कहें कि ये पंखा है, ये किसने बनाया? ये भी उसी चेतन तत्त्व की चालना से ही मूर्त स्वरूप में आज पंखे की रूप में आया है। साइन्स भी उसी चेतन तत्त्व की चालना से, उसी की प्रेरणा से हमारी बुद्धि में समाया हुआ है। जो वाणी हमारी मुख से चल रही है वो भी उसी चेतन त्त्व की प्रभुत्व में चलती है। सब कुछ उसी चेतन तत्त्व से चल रहा है। आप इसी से समझ लें कि हमारे अन्दर जो जीवन है वो उसी चेतन तत्त्व का आविरमाव है। जिस दिन ये हृदय बंद हो जायेगा उस दिन आप देखियेगा कि यही वाणी रुक जायेगी, आँखें रुक जायेगी, विचार आना रुक जायेगा, कहना-सुनना बंद हो जायेगा, ये शरीर एक व्यर्थ सा, बूझे हये दीप जैसा खत्म हो जायेगा। फिर चेतन त्त्व को जानने की क्या जरूरत है? ये जरूर जान लेना चाहिये। इस युग में मानव ये सोचता है कि ये सब जानने की क्या जरूरत है? 'भगवान भगवान' करने की जरूरत क्या है। इसका हमें क्या फायदा! इसके पीछे में क्यों भाग रहे हैं? क्यों समय बरबाद कर रहे हैं? अपनी जिंदगी का क्यों न आनन्द ले रखें। लेकिन एक बड़ा भारी सत्य है जो हम से छुपा है माया के रूप में, आनन्द, चैतन्य स्वरूप अपना। इसीलिये संसार में आप किसी से भी पूछे कि, 'क्या भाई, तुम सुखी हो?' वो कहेगा, 'नहीं भाई !' 'क्या तुम्हें आनन्द आ रहा है?' 'नहीं आ रहा है!' आखिर इस देश में, अपने देश को छोडिये, लेकिन और देशों में, जहाँ पर इतनी अधिभौतिक प्रगति हो गयी है, जहाँ लोग इतने ऊँचे ন
Original Transcript : Hindi सिरे पर पहुँच गये हैं कि उनके पास कभी कुछ नहीं रहा है, वो लोग महान दःखी क्यों? सोचने ही की बात है। बहुत से लोगों में ये विचार ही नहीं उत्पन्न होता है, कि हमें आनन्द क्यों नहीं होता है? हम किसी भी चीज़ की ओर दौड़ते हैं? सारे इकोनॉमिक साइन्स आधारस्तंभ में एक ही वाक्य है कि 'नो इकोनॉमिक वाँट्स इन कॉपी फॅशन!' किसी भी, कितनी भी आप जरूरत रखें, आज आपको चूड़ियों की जरूरत हैं, चूड़ियाँ मिलीं, चूड़ियों के बाद साड़ी मिल गयी। साड़ी मिलने के बाद आपको कुछ और चीज़़ चाहिये, इसके बाद में कुछ और चीज़। इन जनरल नो इकोनॉमिक्स वॉट धिस फॅशन। इसका मतलब ये है कि मन उसी को हर एक चीज़ में खो गया हो, लेकिन किसी भी चीज़ में वो तृप्त नहीं है। तृप्ति कहीं भी नहीं होती, त्याग कहीं भी नहीं दिखता है, प्यास बढ़ती ही जाती है, बढ़ती ही जाती है। प्यासा आदमी मर जाता है, फिर जन्म लेता है, फिर प्यासे के साथ दौड़ता है। घर में भी वो दौड़ते रहता है। खुश नहीं रहता है, लेकिन आनन्द नहीं पाता। कारण उसका एक ही है, कि जिस चीज़ से आनन्द का उपभोग होता है वही चीज़ हमारे अन्दर अभी जागृत नहीं हुई है। वो अगर दीप है और वो अगर चाहे की मेरे से प्रकाश, मेरे कोई भी मार्ग नहीं । वो अन्दर प्रकाश और बाहर प्रकाश हो तो उसके अन्दर दीप ही जलाना पड़ेगा और दूसरा प्रकाश से भाग कर अगर प्रकाश जलाना चाहे तो कैसे प्रकाश आयेगा? परम तत्त्व से मुँह मोड़ कर के आप कभी भी संसार में आनन्द नहीं पा सकते। अब ये कोई में नयी बात नहीं बता रही हूँ। ऐसी बातें हज़ारों वर्षों से ऋषि- मुनियों ने इस भारत वर्ष में, इस योगभूमि में और भोग भूमिओं में भी बहुतों ने कह दी। और कहा और कह के मर भी गयें और तीसरे दिन फिर कहा और फिर मर गये। दुनिया भर की चीज़ें हो गयी। पर किसी ने इसको पाया नहीं। अन्तर इतना ही है कि मैं आपको थोड़ा इस आनन्द का दर्शन मात्र दे रही हूँ। इस आनन्द को पाने के लिये आपको थोड़े से अपने दर्शन होने है। जो आपके अन्दर आनन्द दे रहा है वो आप अपने स्वयं है और उस के दर्शन देने की पात्रता आप में स्वयं ही स्थित है । सिर्फ मैं इतना ही करती हूँ कि जरा आपका शीशा पोंछ देती हूँ। इसकी भी बहत लोग ऐसी चर्चा करते हैं कि 'बड़े बड़े युगों के और कल्पांतरों के बाद में ही ऐसी दशा में मनुष्य आता है, कि वो इस चीज़ को पाता है।' होगा और ऐसा भी कहते हैं कि 'ऐसे कैसे संभव हो जाता है। आज कल तो कलियुग में मनुष्य तो अत्यंत .... (अस्पष्ट) हो गया है और वो किस तरह से पा सकता है।' अब इसका जवाब ऐसा ही देना चाहिये कि इसी कलियुग में हम चंद्रमा पर जा सकते हैं तो हो सकता है कि अपने अंतर्तम में ही चलें। कोई ऐसी करुणा ही स्वयं हो कर आये कि आप लोग इस दशा में आ जाये। क्यों नहीं हो सकता है? आखिर इतने दिनों से जो आप घंटियाँ बजा रहे थे और आरतियाँ उतार रहे थे और आवाहन पे आवाहन हो रहे थे, हजारों देवताओं के जो पूजन हये थे और जो मस्जिदों में बुलंद आवाज में परमेश्वर को पुकारा जा रहा था वो सुनने वाला कोई बहरा था। जो कभी हिल नहीं सकता। या एकदम वो बहरा था या आप एकदम मूर्ख थे। और अगर सुनवाई हो गयी हो और अगर समझ लीजिये कि इंतजामात हो गये हो तो इसमें इतनी शंका करने की क्या जरूरत है? आपकी गठरी से मैं कुछ लेती नहीं हूँ। आपसे मैं कुछ माँगती नहीं हूँ। आप ही में आपको जगा रही हूँ। आप ही की शक्तियाँ आपको दे रही हूँ। लेकिन मनुष्य बड़ा विचित्र है। जो आपकी सारी पॉवर्स और शक्तियाँ खींच लें और अपने वश में कर के
आपको नचाये ऐसा आदमी आपको पसन्द आये। जो जन्मजन्मांतर तक आपको लूटता रहे, आपके पैसे, आपकी अबूरू, इसके पीछे नाचना आपको पसन्द हैं। बड़ा अज़ीब मनुष्य का मन है! हज़ारों आदमी ऐसे आदमी के पीछे भागते हैं, जो पूरी तरह से आप पर छा कर और आपको एकदम ही गिरा देता है और छोटा सा ....(अस्पष्ट) बना कर के और जन्मजन्मांतर के लिये आपको शापित कर देता है। ऐसे आदमी की तरफ़ दौड़ बड़ी जल्दी होती है और जो आपकी ही स्थापना करने के लिये और आप ही का पूजन करने के लिये बैठा है, उधर आँख नहीं उठती इन्सान की! ये विचार क्यों नहीं आता, सोच क्यों नहीं लेता कि 'उस पागल दशा में जहाँ दौड़ा जा रहा था इतनी दिन तक मैंने.... इस दिन में मैंने कौनसी ऐसी शक्ति पायी हैं जो मेरी अपनी स्वयं है ।' गुरु वही है जो आपके अन्दर आपकी शक्ति का सृजन करे और आपको अपने से परिचित करे वही गुरु है। जो आपकी सारी पॉवर छीन ले और आपको बेवकूफ़ बनाता है, ये गुरू है कि घण्टाल है! आपको खुद सोचना है। मानव के अन्दर ऐसे विचित्र दोष मैं देखती हूँ। हो सकता है कि हमारे लिये मानव का समझना मुश्किल है। जैसे मानव को हमारी ओर देखना मुश्किल जाता है। दूसरा दोष बड़ा विचित्र सा मानव में है कि जब कोई जीवित रहता है तो उसकी दुर्दशा कर देते हैं और जब वो मर जाता है तो उसको चार चाँद लगाते है। सीता जी को उसके घर से निकाल दिया तब कोई साधु-संत मिला नहीं। जब वो मर गयी तो उनके हज़ारों मंदिर बना कर रख दिये। क्राइस्ट को क्रॉस पर चढ़ा दिया। जब वो मर गयें तो उनके हज़ारों मंदिर बना कर रख दिये। समझ में नहीं आता। जिस वख्त वो जीवित हैं सब आँखें, सबकुछ क्या खत्म हो गयी। कोई जाने त्या विणा। अरे, उनको जानने वाले कम से कम एक-दो तो आदमी थे। उनकी भी बात नहीं सुनी। उन्होंने कमाल कर के दिखायें वो भी नहीं देखा । और उनको उठा के क्रॉस पर डाल दिया। मोहम्मद साहब का हाल वही हुआ। ज्ञानेश्वर जी का हाल दूसरा हुआ। वो मर गयें तो आपने उनके पचासों मंदिर इस बंबई शहर में बना दिये। मानव को समझना बड़ा कठिन है कि जब सत्य जीवित खड़ा हो जाता है तब मानव पीठ मोड़ लेता है। और जब वो किसी आत्मा में मृत हो कर खत्म हो जाता है तब मानव अपने माथे पर लगा के 'मैं फलाना, मैं ढिकाना, मैं ज्ञानेश्वर जी का संत हूँ,' और घूमता है। मरी हुई चीजों से इतना प्रेम मानव को क्यों हैं मेरी कुछ समझ में नहीं आता। जो विनाशी चीजें हैं उससे मनुष्य इतना प्रेम क्यों करता है? रियलाइझेशन के बाद भी में देखती हूैँ कि थोडा डगाडग डगाडग मन चलता ही है। मृत में, किसी भी मृत वस्तु में, जड़ वस्तु में अपना ध्यान देना ही स्वयं मृत हो जाना है। विराट का पूरा चित्र भी हम अगर आपके सामने खड़ा भी करें, तो कोई फायदा होने वाला नहीं, ये हमें कभी कभी लगने लगता है। मनुष्य की खोज क्या सत्य की है या असत्य की है। मनुष्य का प्रेम असत्य से क्यों हैं? हालांकि वैसे देखिये, तो हमें असत्य कोई अच्छा नहीं लगता । अगर हम आपसे कोई बात झूठ बोलें तो आपको थोड़ी हम अच्छे लगेंगे ! लेकिन सूक्ष्म से, सूक्ष्मतर में मनुष्य अपने को अगर जा के ये देख सकता है कि उसमें जड़ की ओर, मृत की ओर ध्यान बहुत अधिक है, बहुत ही अधिक है और फिर वो दुःखी है। सारा संसार दुःखी है। इनका क्या किया जायें जो बेकार ही में दुःखी है? वो तो ऐसा ही हुआ आपका दिया (दीप), सजाया, सँवारा, सुन्दर बनाया, इसमें सुन्दर सा दीप ही जलाने की व्यवस्था कर दी, अब बाती लगाओ। बाती भी सजा दी और दीप भी जला दिया तो भी आप दुःखी है, अंधेरे में हैं। इस पर गौर करना होगा। इस पर सोचना होगा। संसार में बहुत बड़ा, घनघोर संग्राम चल रहा
है। वो संग्राम आपने काली के अवतार में सुना था उससे महाभयंकर संग्राम आज संसार में चल रहा है । इसमें जिसकी जीत होगी वो ही निर्धार करेगा कि इस सृष्टि का सृजन पूरा होगा कि खत्म होगा। एक तरफ तो पूरी तरह से राक्षस और उनकी सेनायें तैयार बैठी हुई हैं। अभी तक तो मृतावस्था में ही वो है। और कुछ कुछ राक्षसों ने जन्म लिया हुआ है। क्या हमें उन लोगों का साथ देना है? या हमें सत्ययुग को इस संसार में लाना है। बहुत से लोग मुझ से कहते हैं कि इस देश की गरीबी कैसे दूर होगी? आपके बकवास से दूर होगी क्या? विएतनाम का युद्ध कैसे बंद होगा? आपकी चिंता से बंद होगा क्या? नहीं होगा ना! वो तो जितनी आप बातचीत कर रहे हैं क्या आप असलियत से अपना मन होगा। जो युद्ध विएतनाम में है वो युद्ध आपके अन्दर भी है। जो अभी भी गरीबी की बातचीत है वो अभी भी आपके अन्दर भी हो रही है। आप अगर अमीर होना चाहें तो अपने अन्दर हो सकते हैं और अगर गरीब, दरिद्र होना चाहें तो अपने अन्दर हो सकते है। जिस देश की आत्मा ही गरीब हो जाये के वो देश अमीर कैसे हो सकता है? हमारी आत्मा में दरिद्रता है। उस पर बादल छा गये हैं, अज्ञान बादल। जिसको कि मैं निगेटिविटी कहती हैँ उसके बादल छाये हैं इस सारे संसार पर। और सब से ज्यादा इस देश में मैं ज्यादा देखती हूँ कि सारे भूत यहीं पर हैं उनको और कोई जगह नहीं मिली और तुम लोग अपने हृदय में उनको हदय स्थान दिये बैठे हो। मन की दरिद्रता दूर हुये बगैर सारा सुहाना समय भी बेकार जाता है। ऐसे ऐसे राक्षसों को आपने हृदय में स्थान दिया है इस देश में कि राक्षसों का नाश कर भी नहीं सकते । क्योंकि उनके सारे निशाचर आपके अन्दर घुसे पड़े हये हैं। इनका अगर नाश करे तो उनके निशाचर आपको खा जाये। जिस दिन आप लोग उनको निकाल फेकेंगे उसी दिन सब का ठिकाना हो जायेगा अपने आप।| लेकिन पहली बात तय कर लें कि हमें परम तत्त्व को पूरी तरह से, पूरी सच्चाई के साथ जानना है। इससे बढ़ के संसार में कोई धनसंपत्ती नहीं। परम धन वही है। सारे परम आनन्द की उपलब्धि ही उसी में है उसको पहले पा लीजिये। अपने मन को इधर से उधर उधर से इधर करने की कोई जरूरत नहीं। बेकार की बातें ले कर के कि इस देश की गरीबी कैसे दूर होगी? आप प्राइम मिनिस्टर ऑफ इंडिया हैं? जो आप सब चीज़ का ठेका लिये बैठे हैं। गरीबी तो शायद दूर भी हो जायेगी लेकिन आप लोगों के भूत दूर होने हैं। जिनके देशों में गरीबी नहीं वहाँ देखिये दूसरे तरह के भूत काम कर रहे हैं। लंडन में गये। इसामसीह ने बताया था कि भूतों के चक्कर में जाना मत। उन्होंने साफ़ साफ़ बता दिया बेचारों ने, सौ मर्तबा कहा होगा, कि सारे ईसाई देश इसी भूतों के चक्कर में फँसे हये हैं। जो वहाँ के बूढ़ें लोग हैं उनके अपने लिये मिडियम चल रहे हैं, ये चल रहे हैं, वो चल रहे हैं और जो जवान है वो यहाँ से गये उनको लूटने के लिये| सब भूतों के चक्कर में घूम रहे हैं। किसी ने परम तत्त्व को आज तक खोजा नहीं। न उधर किसी की .....उठाने वाले हैं, और अपने को ईसा मसीह का बड़ा भारी चेला कहते हैं। अमेरिका में यही हाल हैं। वहाँ तो विचराष्ट्र चल रहा है, खुले आम । जैसे अपना भानामती होता है, निकालते हैं, वो निकालते हैं, ये करते हैं, वो करते हैं, वो वहाँ पे बाकायदा खुले आम, रेग्यूलर सोसाइटी है। अपने ये यहाँ उसका नाम भाविक और भगवान बन के लोग करते हैं, जैसे अपने यहाँ डबल स्टैंडर्ड हैं न, ढोंग बहुत है। इसी देश में ऐसा ढोंग है। हम लोगों को तो ढोंग को तो त्याग करना आता नहीं, सत्य को क्या करें? ऐसा ढोंग इन लोगों
ने रचा हुआ है। ढोंगियों के पीछे में आप लोग भागे चले जा रहे हैं। हो सकता है आप मोड़ लो अपने को पूरी तरह। लोग बैठे ह्ये हैं। आपको आश्चर्य होगा कि आप बड़े चुने ह्ये लोग हैं, बड़े ही चुने हये लोग हैं इसलिये आप पार हैं। कितने लोगों के हाथ से वाइब्रेशन्स आते हैं संसार में जरा जा के देखिये तो। बड़े बड़े लोग मैंने देख लिये, बड़े स्वामी और साधु और फलाने, ऐसे कौन बड़े भारी लगे हुये हैं दुनिया में जरा जा के देख लीजिये जिनके अन्दर से वाइब्रेशन्स आते हैं। सब ढोंगी लोग हैं, भोंद लोग हैं। और आप लोगों की हाथ से वाइब्रेशन्स आ रहे हैं। जिसका वर्णन बड़े बड़े महात्माओं ने 'बड़ी ऊँची दशा में जब मनुष्य पहुँचता हैं तब मिलता है,' इस तरह से किया है । कुछ कर के दिखाना है ये बात है। मैं देखती हूँ, मुझे बड़ा आश्चर्य होता है । चालाकी से अब संसार के रंगमंच में आप ही धर्म अन्दर कभी खड़ा नहीं हो सकता। और मेरे पास चालाकी है, चालाकी आयी कहाँ से? मेरी पेट से आयी हैं। मुझ से चालाकी करते हैं। मेरे सामने बड़े साधु महात्मा बन के बैठते हैं। उस चालाकी को त्याग दो। ये जो कुछ वाइब्रेशन्स हैं, ये तुम्हारे अन्दर जो कुछ भोलापन है वही बह रहा है। ये जो थोड़ा सा तुम्हारे अन्दर भोलापन आया है तुम्हारी माँ से वही बह रहा है। भोलेपन में रहो। भोले आदमी को कोई ठग नहीं सकता। ये सत्य है। और ठगेगा तो भी ऐसा नाटक बनेगा कि ठगने वाला ही ठग जायेगा। रावण के चक्कर में सीताजी फँस गयी थीं, उनके भोलेपन का एक दर्शन है, लेकिन मज़ाल नहीं कि उनका वो हाथ पकड़ सकें या उनसे कोई बदतमीजी कर सकें। भोलेपन की तेजस्विता कहाँ और रावण की चालाकी कहाँ! एक साधारण सी अबला, उसके ऊपर किसी भी तरह का हमला नहीं कर सका और जब तक सीताजी को अपने सर पे उठाये रखा, उसे अपनी साक्षात् माँ याद आ गयी। उसका सारा बड़प्पन एक छोटे बच्चे जैसे हो गया। .ऐसा ही श्री रावण जी का हाल था। इसलिये अपने भोलेपन को न त्यागिये। अपने भोलेपन में सहजयोग में उठिये। वही आपको अत्यंत कर्तृत्व शक्ति देगा । आप ही लोग स्टेज पर हैं। कोई और आता ही नहीं और कोई आ जायें मेरा बेटा तो मैं आपको दिखा दूेँ अपना करिश्मा! लेकिन कोई आता ही नहीं । कहता है, चलने दो| क्योंकि आज स्पेशलिटी पॅटर्न चला हैं न। सामान्य जनता से ही असामान्य काम करना है। सामान्य लोगों से असामान्य कर के दिखाना है । इसलिये ऐसे कोई आते नहीं और आते हैं तो जंगल में जा के बैठते हैं। आप लोग स्टेज पर आये हैं और बैकग्राऊंड में सब लोग बैठे हैं गण आदि, उसका आपको पता नहीं लगेगा। लेकिन याद रखना एक-एक आपकी अॅक्शन, एक-एक आपकी बात जो आप छुपायें और गड़बड़ आप करें सब चीज़ उनके पास लिखी जा रही है। और वो ऐसा आपको टाँग अड़ा कर गिरायेंगे कि फिर कहियेगा मुँह के बल आ कर कि, 'माँ, ये क्या | हुआ? हम तो तुम्हारी ही सेवा करते थे।' उनसे आप पार नहीं आ सकते। इसलिये मैं बार बार आपसे बता रही हूँ कि बच के रहना। सहजयोग में बहुत ही भोलापन चाहिये और जो आप में भोला होगा उसके चरणों में पड़ने के लिये तैयार है। किसी भी चालाकी में घुसने का प्रयत्न ना करें। फिर आप बचेंगे , फिर आप प्रोटेक्टेड है, फिर आप मेरे कवच में हैं। चालाकी से बचिये। आज के शुभमुहूर्त पर बार बार आपसे एक ही कहना है, कि कोई क्षण अपने जीवन में ऐसे महत्त्वपूर्ण होते हैं कि हम इस किनारे से उस किनारे तक चल ही जाये, भवसागर तर ही जाते हैं, लेकिन भवसागर की थपेड़ें खाने के बाद अगर किनारे पर पहुँच गये तो बहत नयी उम्मीद सोचने की बहुत जरूरत है। नहीं तो भवसागर पार करने का
कुछ फायदा ही नहीं। आप लोगों को जो भी अनुभव साक्षात्कार से आये, वो किनारे पर बिल्कुल ही बेकार हो जाते हैं। तब मुझे समझ ही नहीं आता कि अब इनको कौनसा इंजक्शन दँ कि उठ कर खड़े हो जाओ। हर एक को आज प्रतिज्ञा करनी चाहिये, जो लोग पार हैं, कि हमारे हाथों से बहुतों के हृदय में दीप जलें। और जो ...... हमने उठाया है वहीं सब को बाँटें। इतनी प्रतिज्ञा आप सबको करनी चाहिये। इसके लिये हम क्या कर रहे हैं? हम इसके लिये क्या प्रयत्नशील हैं? इतने शिष्य तो कभी भी किसी गुरु के नहीं होंगे जितने मेरे बच्चे हैं। और शिष्य से भी कहीं अधिक बच्चे अपने होते हैं। लेकिन कलियुग का मामला और माँ का हिसाब - किताब जोड़ लें इससे बहुत बचने की जरूरत है। माँ की स्थापना कलियुग में बड़ी मुश्किल से होती है। और अगर हो जाये तो ऐसा आदमी परम शक्तिशाली हो सकता है। दूसरों से लड़ने में अपनी शक्ति व्यर्थ न करें। आपस में लड़ाई-झगड़ा लगाने में अपनी शक्ति व्यर्थ न करें। दूसरों की ओर देख कर के अपनी शक्ति नष्ट न करें । लेकिन अपने से लड़िये, खुद से लड़िये, अपने ओर देखें, अपनी ओर नज़र करें और अपने से पूछो कि, 'क्यों मैं इतना निर्बल हो रहा हूँ? क्या बात है? क्यों?' कौनसी ऐसी बात है जो हमने आपको दी नहीं? कौनसी ऐसी बात हैं जो हमने आप को समझायी नहीं? आपने कहा 'हमें शरीर की जरूरत है।' शरीर दे दिया। किसी ने कहा 'हमारे बाल सफ़ेद कर दो ।' तो बाल 'बेटा दे सफ़ेद कर दिये। किसी ने कहा, 'हमारे बाल काले कर दो।' उनके बाल काले कर दिये। किसी ने कहा, दो।' उनको बेटा दे दिया। किसी ने कुछ माँगा, वो दे दिया। किसी ने कहा, 'माँ, इसका सारा ज्ञान बताओ।' सारा गोप से गोपनीय ज्ञान बताने के लिये बैठे हैं। किसी ने कहा, 'माँ, हमें ये चीज़ें दों, वो चीज़ें दों।' दे दी। देने के बाद भी ऐसा ही हमला करना हैं तो क्या कहें? हम लेने वाले तो नहीं हैं। लेकिन आपको और कुछ अगर पाना ही है, तो उठना होगा। बगैर उठे काम नहीं होगा। आज के दिन जरूर सब को मन ही मन प्रतिज्ञा करनी है। छोटी छोटी चीज़ों में मैं देखती हूँ मनुष्य घबरा जाता है। जैसे एक साहब को मैंने कहा , 'यहाँ बैठिये ।' दूसरे से कहा, 'वहाँ बैठिये।' फिसल गये। कोई साहब थे उनको मंत्र गाने को कहा, दूसरे को ये कहा, फिर फिसल गये। ये क्या है? आपको मैंने क्या आत्मतत्त्व का ज्ञान नहीं दिया? क्या आपको मैंने परम तत्त्व की बातें नहीं बताई? उसमें मैंने कभी कंजूसी की है क्या? मूर्खता की बात ही है कि लड़ने वाले क्या पायेंगे? कोई आदमी यहाँ बैठे, कोई आदमी वहाँ बैठे, चाहे कहीं भी बैठे, माँ के में हदय बैठना चाहिये। या अपनी कुर्सियाँ ले के एक भी आदमी मर जायें तो मैं मान लँ की कुर्सी का कोई अर्थ होता है। सब की कुर्सियाँ भी यहीं छूट जाती हैं, बैठक भी छूट जाती है। अध्यात्म की बैठक बिठाईये । जो गहराई में उतरता है वो (अस्पष्ट) बैठता है। दूसरे से आपको कोई मतलब नहीं है। अन्दर ही अन्दर आप मुझे जान सकते हैं, अन्दर ही अन्दर आप मुझे पा सकते हैं। लेकिन अपने ही अन्दर, अन्दर घुसना होगा, दूसरों के ऊपर या दूसरों की ओर जिनकी दृष्टि है उनको मैं बार बार बताना चाहती हूँ कि ऑर्गनाइझेशन का कोई मेरे आगे मतलब नहीं। मेरे लिये ऑर्गनाइझेशन आदि कुछ मतलब नहीं। जो आपकी शरीर के अन्दर ऑर्गनाइझेशन चल रहा है उसको क्या आप सम्भाले हुये हों? आपका हृदय जो धकधक कर रहा है, आपके जो श्वास चल रहे हैं, पेट के अन्दर आपका जो पूरा खान पचन हो रहा है, उसका ऑर्गनाइझेशन क्या आप सम्भाले ह्ये हों? उसको कौन सम्भाल रहा है, उस ऑर्गनाइझेशन को? उसके अन्दर का परम तत्त्व और वही परम तत्त्व आपके ऑर्गनाइझेशन और सब आपके
एकत्रित भावनाओं को सम्भालने वाला और महान कार्य को उठाने वाला है। लेकिन ये बीच में अनन्य बाजी लगाने की हमारी वृत्ति, जिसे की ये भारतीय वृत्ति कहते हैं, शर्म आनी चाहिये हमको भी। इस भारत वर्ष में ऐसे महान महान लोगों का वास हुआ, उनके चरण इस भूमि पर पड़े हैं, उस भूमि में इतने निकृष्ट जाति के लोग पैदा हये हैं। समझ नहीं आता है कि कलियुग का सारा यहीं अवतरित होने वाला है! जब भी आपका मन कोई जेलसी से भर जायें अपने साथ घृणा करें। घृणा करें, 'छी, छी, आज भी ....(अस्पष्ट) मैंने ऐसी बातें की। आज कितना मंगल का समय, कितना आनन्द का समय है और कितनी बहार आनी चाहिये थी। जैसे कि संसार में एक नया ही वातावरण, हवा फैलें। उसकी जगह देखती हैँ कि जेलसी की बातें हैं। वही दश्मन हैं हमारे, याद रखिये। हमारे महत कार्य में, हमारे परम कार्य में, परम तत्त्व जीना चाहता है, पनपना चाहता है, फूटना चाहता है सारे संसार के आनन्द और शांति को। आप जरा सम्भल के रहिये। आप लोग जरा सम्भल के रहें और सुख, उसको पा लें। सहजयोग का जो एक छोटासा दोष है, उसे समझ लें कि आपकी स्वतंत्रता पूरी तरह मानी जायेगी। आपकी स्वतंत्रता पूरी तरह मानी जायेगी और उसका पूरा आदर होगा। अपनी स्वतंत्रता का उपयोग अपने को परतंत्र करने में मत लगाईये। अपनी स्वतंत्रता की इज्जत करें और अपने स्वतंत्रता को जानें। बाजी हमारी होगी! आज कुछ लोग नये हैं यहाँ पर, बहुत से लोग पुराने भी हैं। जो पा चुके हैं उनके पास में वाइब्रेशन्स हैं । आपके वाइब्रेशन्स मुझे खींचतें हैं। आप में वाइब्रेशन्स बहुत ज्यादा हैं, लेकिन उसका कुछ अन्दर इको कम आता है। उसके अन्दर पडसाद कम आते है। बहत वाइब्रेशन्स हैं यहाँ पर, मुझे खींच लायें लंडन से। मैं भागी चली आरीं उसी वाइब्रेशन्स की वजह से। ऐसा लगा की एक सहस्र दलों का कमल खिल रहा है बंबई में। कमल अपनी जगह खिल रहा है लेकिन पंखुड़ियाँ अभी तक निजीव ही नज़र आ रही हैं । इसी में जीवन है , अपने जीवन को वो जानें । वो सुगन्धित हैं और हर एक पंखुडी में से ये सुगन्ध सारे संसार को याद कर लें। उसी दिन स्वर्ग और परमात्मा सभी एकाकार आपको नजर आयेंगे । अब सब लोग मेरी ओर हाथ करें। और जो लोग realised हो कर के भी थोड़े- बहुत जल-वल रहे हैं, वो लोग हाथ को झटकें या हिल रहे हैं वो झटक लें, वो 2 मिनट में बात खत्म हो जाएगी।