Bholapan, Innocence

Bholapan, Innocence 1973-09-10

Location
Talk duration
53'
Category
Public Program
Spoken Language
Hindi
Video
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10 सितम्बर 1973

Public Program

New Delhi (भारत)

Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft

मैंने आपसे बताया था पहले भाषणों में, पहली चीज़ जरूरी है सहजयोग में वो है प्रेम। जो आदमी प्रेम नहीं कर सकता वो सहजयोग में उतर नहीं सकता। और प्रेम का भी थोड़ा बहुत आप से बताया था। उसके बाद मैंने कहा था, पवित्रता। जो आदमी पवित्रता की भावना नहीं रखता है, वो भी आदमी सहजयोग में उतर नहीं सकता। आदिकाल से पवित्रता की भावनायें चलती आयीं हैं। उन्हीं को ले कर मैंने कहा है । आज तीसरी बात बताना है, खास कर रियलाइज्ड लोगों के लिये कि रियलाइजेशन हमारा नया जन्म है। जब बच्चा जन्मता है, कोई भी बच्चा आप देखिये, संसार की कोई भी जाति का हो, चाहे वो जपानी हो, चाहे वो अफ्रिकन हो, चाहे वो अमेरिकन हो, उस बच्चे में एक चीज़ सब में होती है और वो है उसकी अबोधिता, उसका इनोसन्स। बच्चे की विशेषता है इसका इनोसन्स । इसलिये रियलाइज्ड आदमी तभी कहलाया जायेगा जब वो पूरी तरह से इनोसन्स में उतर जायें | वैसे भी जो बहुत चालाक लोग होते हैं, चातुर्य बहुत ज्यादा होता है और जिनकी बुद्धि बड़ी तल्लख होती है और हजार आदमिओं को ठग लेने में और झूठ बोलने में, चालाकी दिखाने में बड़े तरबेज़ होते हैं, ऐसे लोग सहजयोग के लिये बिल्कुल बेकार होते हैं। इसलिये जो लोग काफ़ी ठगाये गये हैं दुनिया में और सताये गये हैं, वो सहजयोग के लिये बहुत ठीक हैं। संसार में चाहे वो बहुत यशस्वी लोग न हो, लेकिन सहजयोग में वो बहुत ही ज्यादा यशस्वी हैं। अबोधिता एक बहुत बड़ी देन है। यह भी जन्मजन्मांतर की .. (अस्पष्ट)। आप देखियेगा बहुत से बुजुर्ग लोग भी बहुत ही अबोध होते हैं। बहुत भोलेभाले, बहुत सीधेसाधे और बहुत से छोटे बच्चे भी बहुत चालाक, धूर्त होते हैं। आजकल के जमाने में जो आदमी दो-चार पैसे ले के किसी को ठग मारे वो सब से बड़ा यशस्वी आदमी समझा जाता है। एक उदाहरण के तौर पे, जैसे एक हमारे रिश्तेदार थे । हम उनके घर गये, वो अपने को बड़े भारी आदमी समझते थे और वो बड़े विद्वान समझते हैं अपने को और बीवी बेचारी अनपढ़। उसको वो कुछ खास समझते नहीं। कहते हैं, 'बेवकूफ़ है, ये सारा मेरा पैसा लुटा देगी।' एक पहले दर्जे के कंजूष हैं वो बताने लग गये, देखिये, ये जमीन है, ये मकान है, ये पूरा किराये पर ले लिया और तीस साल पहले कर लिया था और इसका मैं सिर्फ सौ रुपया किराया दे रही हूँ। और ये सारी जमीन मेरे कब्जे में है और किसी की मजाल नहीं की हाथ लगाये।' बैठे हुये है आराम से। न कहीं जाते हैं, बैठे है जमीन पर दावा लगा कर के। और कहने लगे, 'मेरी उल्लू बीबी है। उसकी वजह से मुश्किल है। न जाने आज कितने महल खड़े किये होते। अब किराये के मकान में रह रहा हूँ।' उनको तीन- चार गाली देने में भी उनको कोई हर्ज नहीं था। लेकिन ये तो हमारे रिश्ते में जेठ होते थे, तो हम चुपचाप बैठे, अभी क्या बोले। इसके बाद उनकी जो बीबी थी वो बेचारी चुपचाप सुन के घर जाती। इतने में एक आदमी आया। वो कहने लगा, ‘साहब, देखिये, मैं घरमालिक की ओर से आया हूँ और घर मालकिन कह रही है कि आपके यहाँ इतने इमली के पेड़ है, उन्हें इमली बहुत पसंद आती है। तो आप कहिये, दो रुपया आपको देते है, आप हमें थोड़ी इमली दे दीजिये।' ये बिगड़ गये। ‘वा, क्या सोचते हो, दो रुपये की इमली कहाँ से आयेगी। पाँच रुपये दो तो देंगे।' काफी झकझक झकझक करी। उसके बाद अपने बीबी से कहा, 'खबरदार, ये आदमी ऊपर चढ़ने न पाये । यहाँ से इमली न उतारने पाये।’ उसके बेचारे के सौ रुपये के मकान में वो रह रहे हैं। उसको कम से कम कुछ नहीं तो तीन- चार हजार रुपये का नुकसान कर रहे हैं। बड़ा पैसे वाला है। दे सकता है सब कुछ। अब कहने लगे कि, 'ऐसा लॉ आने वाला है। ये घर मेरा होने वाला है। मेरा इस पे कब्जा होने वाला है।' इसकी वो इंतजार में है। बहरहाल जब वो चले गये तो उनकी बीबी ने उस आदमी को अन्दर बुलाया। कहने लगी, 'तुमको कौनसी इमली के मँगवायें हैं, वो तोड़ लो।' उसको देख के पाँच रुपये निकाल दिये, तो उसने कहा, 'पाँच रुपये क्यों दे रहे हो ? मुझी को देना है पैसा।’ कहने लगी, ‘अरे भाई, तुम चढ़े। तुम्ही ने मेहनत करी। इसके पाँच रुपये । और उनको मेरा नमस्ते कहना। जाओ। ले जाओ। भाग जाओ। और कल अगर और चाहिये तो आ जाना, लेकिन बारह बजे के बाद आना तब ये चले जाते हैं।' तो उसने ये जबाब दिया कि 'मैं तो इंतजार में था कि कब खिसकेंगे और मैं इमली तोडूंगा। मैं आपको तो जानता हूँ।' अब वो अपने को बड़े चालाक, होशियार समझते हैं। और सब उनपे हँसते हैं, 'गधे कहीं के।' इस तरह जो अकलमंद लोग हैं, जो अपने को बड़े चालाक, होशियार और झूठ बोलना, इसमें जो अपने को बड़े होशियार समझते हैं, वो सब होशियारी जो है जहाँ के तहाँ रह जायेगी । और ऐसों का सहजयोग नहीं होने वाला। और कल अगर संहार शुरू हो गया तो ये लोग पहले कटेंगे और भोला आदमी हमेशा बच जाता है। भोले आदमी में बड़ी विशेषता होती है। मैं स्वयं बहुत भोली हूँ। बहुत लोग मुझे कहते है। मेरे घर में तो सब लोग मुझ से परेशान हैं। मेरे भोलेपन से । हमारे घर में ऐसा हुआ एक दिन की हम दिल्ली में रहते थे तब कि बात है। बहुत साल पहले की । तो बजार गये थे। दिल्ली के बजार में। वहाँ एक आदमी आया बेचारा, मुझ से कहने लगा कि, 'बहुत चोट लग गयी है। और समझ में नहीं आता मैं कैसे करूँ? मैं कैसे जिऊँगा?' मैंने कहा, 'चलो, मोटर में बैठो तुम ।' उसको घर ले आये। घर पे लाये तो उसको हमने मलमपट्टी करी । और वैसे भी हमें जरूरत है मलमपट्टी करने की । हाथ फेरा, बिचारा ठीक हो गया। उसको मेरे लिये बड़ा प्रेम हा गया । और वो सुबह से शाम तक, चार बजे मैं उठी तो वो भी चार बजे उठ के सब मेहनत करी जो मैं कर रही हूँ। लेकिन हमारे घर के लोग बहुत व्यवहार चातुर्य । उनका कहना, 'पता नहीं, कहाँ से चोट खा के आया है। हो सकता है कोई डाकू होगा ।' मैंने कहा, 'होगा डाकू, अब तो बदल गया है न! अब उसका कितना स्वभाव बदल गया है।' मैंने कहा, 'उस पे विश्वास तो कर के देखो।' कहने लगे, 'नहीं नहीं, इसको तो पुलिस में देना होगा। पुलिस को पता करना चाहिये। रोज उसके पीछे पड़ सब लोग लगे रहे। हमारे भाईसाहब भी थे, मेरे हजबंड भी थे, और भी लोग, सब लोग। उनकी कॉन्फरन्स हो गयी। इसको बिठाना ही चाहिये पुलिस में । मैंने कहा, 'भाई, माफ़ कर दो एक बार । देखो, अगर चोरी करना है तो कर ही लेगा। नहीं होगा तो ठीक ही है। ऐसी कौन सी बात है। ऐसा कौनसा हमारे पास धन घर के अन्दर पड़ा हुआ है।' तो उस के पीछे ये लोग पड़े। एक दिन हम शादी में गये। शादी में हम लोग गये तो उसको बाहर बिठा के गये । अन्दर घर में नहीं । चोरी कर जायेगा, फलाना होगा। मैंने कहा, 'अच्छा भाई!' हम जेवर पहन के गये थे। रात को दो बजे करीब आये। सब थक गये थे। मेरे हजबंड भी सो गये। मेरे भाई भी सो गये। मैं भी सो गयी। मैंने जेवर उठा कर के बाथरूम में रख दिये। सब को कोई सोचवोच नहीं रहा कि घर में चोर है। जब सबेरे उठे तो हमारे हजबंड की पैर की चप्पल गायब। इनका देखा तो पर्स गायब। वहाँ से आगे गये तो कोट गायब। आगे चले, मेरे भाई साहब थे, उनके पाँच सौ रुपये गायब। उनका कोट गायब। उनका न जाने एक बक्सा के बक्सा ही खाली था । और मेरे इतने महँगे जेवर वहाँ पड़े हुये थे, खानदानी हमारे जेवर, एक चीज़ को कुछ हुआ नहीं। इनकी सब चीज़े उठा के वो भागता पड़ा। क्योंकि उनके लिये वो डाकू ही था। मेरा सब सामान छोड़ गया और इन सब की चीज़े ले के चंपत हो गया। तो वो लोग कहने लगे कि 'ये आश्चर्य है, हमने ता कुछ किया नहीं।' हमने कहा, 'तुम उसकी जान पे लगे हुये थे न ! पुलिस में जाओ, पुलिस में जाओ। तो देखो।' उस पे विश्वास करते ! हम घर पे भी नौकरों पर कर के देखिये। विश्वास करें, विश्वास रखें। हम विश्वास इसलिये नहीं करते कि हमारा अपने ऊपर विश्वास नहीं। दुनिया सब पे विश्वास रखिये। जितना हम विश्वास करना सीखेंगे उतना ही इन्सान आप पे विश्वास करेगा। लाख में से एकाध आप को ठगेगा । हम को तो कोई ठग ही नहीं पाता। ठगना भी चाहें तो ठग ही नहीं पाता। ठगता नहीं। और हम पाते क्या हैं? दो-चार रूपया ही न! ठग के क्या पाते हैं? कौन सी गठरी ? पाप की तो गठरी पाते हैं। मुझ से यहाँ पर भी बहुत से लोग होशियारी दिखाते हैं। कुछ ऐसे पढ़ाते है बातें इधर उधर की। जितनी मैं भोली हूँ, उतना ही मेरे जो अन्दर का है न वो बड़ा है। मैं किसी चक्कर में नहीं आती। बड़ा मुश्किल है मुझे चक्कर में डालना। अब कोई कहे, ये चीज़ें, वो चीजें। चक्कर में नहीं आने वाली! हालांकि मैं हूँ बहुत सीधी-साधी । इसकी वजह है वजह ये है कि जो आदमी रियलाइज्ड होता है और जो अपने चित्त लिये बैठा है वो कहीं उलझता ही नहीं। आपने मेरे साथ चालाकी की, वो दिव्य जो है वो घुमा देगा उधर के उधर । कोई आदमी चालाकी करेगा ही मेरे साथ वो फट् से उसे घुमा देगा। इसी का एक और उदाहरण देती हूँ। रामकृष्ण परमहंस की पत्नी, दोनों आदमी एक बार जंगल में जा रहे थे। ये बिल्कुल भोली भाली थी बेचारी । जंगल में से आ रहे थे तो जंगल में से आते आते ऐसा हुआ कि रामकृष्ण तो आगे चले गये, वो पीछे रह गयी। तो चोरों ने सोचा कि चलो कोई औरत मिल गयी, पकड़ो इसको । तो उसके साथ हो लिये। उन्होंने कहा कि, 'भाई, तुम आ गये। अच्छा हो गया । तुम्हारे दामाद जो है, सामने चले गये और मैं अकेली रह गयी । चलो, तुम मेरे भाई आ गये, मेरे बाप आ गये, मेरे लिये बड़ा अच्छा हो गया। मेरे लिये तो कुछ आराम हो गया। नहीं तो मैं सोच रही थी, कि अकेले मैं रास्ता कैसे ढूँढूंगी । चलो, भाई तुम्हारा क्या नाम है? अच्छा तुम मेरे भैय्या हो । तुम मेरे बाप हो ।' वो लोग कहने लगे, हम तो इसको पकड़ के ले जा रहे थे। ये तो हम को बाप, भाई बना रही है। उसके सीधेपन से और भोलेपन से इतने रीझ गये, कि वो उसको घर ले गये और जिंदगीभर अपनी लड़की की तरह बनाया और रामकृष्ण को अपने दामाद जैसे | वो चोर और डाकू लोग भी प्यार पहचानते हैं। साँप और शेर और गीदड़ ये सब प्यार पहचानते हैं। क्योंकि शेर अपने बच्चे को नहीं खाता । साँप अपने बच्चे को नहीं काटता। और हम भी साँप हो जायें तो साँप हम को नहीं पहचानेगा। भोलापन हमेशा मदद करता है। जो आदमी भोला होता है उसको दुनिया हमेशा मदद करती है और एक उसका मॉडर्न उदाहरण देती हूँ। एक साहब कस्टम में थे। भोले भाले थे। बोलते बहुत थे | भोले लोग बोलते भी ज्यादा है कभी कभी। क्योंकि उनमें चालाकी नहीं थी ना ! अन्दर में घुस के बैठेंगे या कभी बोलते हैं, कभी नहीं बोलते हैं। ये जरूरी नहीं कि हर एक भोला आदमी बोलता है। चालाक भी कभी-कभी बड़बड़ाते हैं बहुत। तो ये जो भोलापन था इस आदमी का, वो आ कर के इसको बताये, कि 'अरे साहब, मैं गया था वहाँ, मैंने वहाँ से लाया में है कैमेरा।' एक कस्टम ऑफिसर को बताये। अमरिका से आये और कस्टम ऑफिसर को बताते हैं कि 'कैमेरा लाया हूँ, ऐसा कैमेरा है, किसी को देखना है।' और दिखाने लगा। यहाँ लोग छुपाते हैं अपना कैमेरा । फिर उसको बताने लगे कि, 'मैं वहाँ से डायमंड रिंग ले के आया। किसी को देखना है। देखो, मैं लाया हूँ।' तो वो जो इतने भोले पन से बोलने लग गया, कि वो कस्टम ऑफिसर ने सोचा कि ये ऐसे ही डींग मार रहा है । ये लाया क्या होगा। मुझे बेवकूफ बना रहा है। असली लाया वो ऐसी बात क्यों करेगा। तो कहने लगा, 'अभी जा, मेरा सिरदर्द कम होगा।' और दूसरा आदमी आयेगा, छुपा के और इधर उधर देख के तो उनको, 'आईये इधर, आपके पास क्या है?' । भोले आदमी पर वैसे भी मनुष्य को तरस आता है। अगर कोई भोले आदमी को सताता है तो उसकी आहें इतनी लगती है कि वो डर से भी आदमी सताना भूल जायें और कोई भोले आदमी को सताता है तो जन्मजन्मांतर उसे देना पड़ता है। इसलिये भोला आदमी सब से श्रेष्ठ है। और जो आदमी बहुत ज़्यादा किसी चीज़ में उलझता है, अधिकतर आप देखियेगा, ज्यादा तर ऐसा होता है, कि जब भी आदमी को कोई बूरा काम करना होता है वो बड़ा सिरीयस हो जाता है। हमने ऐसे साहब को देखा है, जिनकी आदत थी ब्राइब लेने की । हमारे हजबंड को वो कहते थे कि, 'तुम घटिया टाइप हो। तुम को तो पैसा ही लेना नहीं आता ।' ऐसे कहा करते थे। लेकिन मैंने देखा है, कि उनसे अगर कोई आदमी मिलने आये और वो पैसे वैसे की बात करने वाला हो, मतलब लेने देने की, एकदम वो सिरीयस हो जाते हैं। हसते खेलते एकदम सिरीयस हो जाते हैं। समझ जाओ कुछ न कुछ ब्राइब की बात है। एक साहब थे, मुझे मालूम है। इनको कैब्रे में जाने का बहुत शौक है। और जब भी कैब्रे की बात होती थी बड़े सिरीयस हो जाते थे। कहाँ जाने का ? कैसे जाने का ? कब जाने का ? बाकी समय हँसते रहेंगे। कैब्रे के मामले में बिल्कुल प्लॅनिंग कर के, सिरीयस हो के, कैब्रे में जाएंगे। कैब्रे में क्यों जाना चाहिये ? अरे, आपको सिरीयस ही रहना है तो मंदिर में जा के बैठो। नहीं वो वहाँ जायेगा । जो आदमी हंसता - खेलता हर समय रहता है और हल्का फुल्का रहता है, उस आदमी को ऐसे रहने से क्या बेवकूफ़ी है, ये क्या बेवकूफ़ी है। भोला जो आदमी होता है वो नटखट होता है। उसका नटखटापन जो होता है वो उसके भोलेपन से आता है। जैसे वो कोई न कोई खुराक लगा देगा। जैसा बताया है। एक साहब हमारे यहाँ आये । उनको बड़ा शौक था कैब्रे डान्स का। कैब्रे माने आपको मालूम नहीं होगा, वहाँ नग्न नृत्य होता है। अब हमसे तो कह नहीं सकते क्योंकि रिश्ते में हमे बड़े होते थे। तो हमारे घर में एक बड़े सिविल वाले साहब हैं। वो ऐसे ही नटखट टाइप हैं । तो उनसे कहने लगे, 'हमको ले चलिये।' अब वो बुजुर्ग आदमी ठहरे। शैतान बहुत है न ! वो ले गये और पुलिस थाने में उनको डाल दिया। 'मैं तो आऊंगा नहीं, आप चले जाईये ।' वो बेचारे सीधे चले गये। वहाँ जा के देखा तो सब पुलिस वाले खड़े। वो बेचारे आये थे देहात से । उनको मालूम नहीं था कहाँ, कैसे होता है? उनको लगा, पुलिस वहाँ लगती होगी। ऐसे जगह जरूर पुलिस होती है। ऐसी जगह जहाँ ऐसे धंधे होते हैं वहाँ पुलिस लगती है। तो उन्होंने सोचा, इसलिये यहाँ पुलिस है। अन्दर गये तो लोगों ने कहा, 'साहब, आपको कोई कम्प्लेंट है ?' उन्होंने कहा, 'नहीं, वो जरा हमको देखना है' इन्होंने कहा, 'क्या ?' 'अब आप समझ लीजिये, जो बात है उसको ।' इन्होंने कहा, 'आखिर क्या बात है?' उन्होंने कहा, 'साहब, क्यों मज़ाक कर रहे हो। जिस चीज़ के लिये जगह बनी वहीं हम आये हैं।' वो कहने लगे, 'तो आईये, सीधे हवालात में!' और कहने लगे, 'हवालात में आपको किस ने पहुँचा दिया?’ ऐसे उनको बेवकूफ़ बनाया जाता है। ये जो अपनी विषय की ओर दौड़ने की युक्ति है, ये आदमी को चालाक बनाती है। क्योंकि उसको छुपाने के लिये आदमी जरूर चालाक बनता है। विषय की ओर दौड़ने की अपनी जो प्रवृत्तियाँ हैं बार बार उसी की ओर प्रवृत्ति दौड़ती है। रियलाइजेशन के बाद ठीक होता है और देख सकते हैं कि अरे वा, बेवकूफ़ की तरह चले जा रहे हैं वहाँ पर । कहाँ चले जा रहे हैं? अपनी ओर हम देख सकते हैं। अपनी बेवकूफ़ियाँ देख सकते हैं। अपने साथ खिलवाड़ भी कर सकते हैं। अपने साथ नटखटपना कर सकते हैं। बहुत अपने साथ खेल कर सकते हैं। देख सकते हैं, किस बेवकूफ़ी में हम फँसे हुये हैं। तो भोला आदमी जो होता है वो अलिप्त हो कर के देखता है मज़ा, 'क्या अजीब हालत है साहब | समझ में नहीं आता है।' ये भोलेपन की निशानियाँ है । भोला आदमी जो होता है उसका चित्त कहीं ऐसा दौड़ता है। वो अपने भोलेपन में अन्दर है। जैसे छोटे बच्चे, उनको अगर आप किसी कैब्रे डान्स तो छोड़िये, आप किसी व्यक्ति से मिला दीजिये तो जोर जोर से रोना शुरू कर देते हैं। उनके बाल वाल देख के एकदम रोना शुरू कर देते हैं। आप अगर कैब्रे डान्स में छोटे बच्चे को ले कर जाईये, बहुत जोर से रोते हैं। आप कोशिश कर के देखिये, किसी समझदार बच्चे को ले जायें, ३-४ साल के बच्चे को तो वो जोर जोर से रोना शुरू कर देगा कि ये क्या है? बच्चे की आप हालत देखिये, कि अगर उसके सामने कोई भी विक्षिप्तता होती है तो इसकी ओर वो पहले रोने लग जाता है। और या तो उसको समझ नहीं आता है कि ये क्या है ? या दूसरा काम, कोई भी बात वो सीधी सीधी कह देता है। उनमें कोई लगाव, छुपाव, दुराव कभी नहीं होता। ऐसे बच्चे हर एक चीज़ को देखते रहते हैं। जैसे एक बार किसी ने कहा अपने बच्चे से वो साहब आ रहे हैं, लेकिन खाते है घोड़े जैसे। अब उन्होंने वो सुन लिया। अपनी पत्नी को उन्होंने कहा, उनसे तो कहा नहीं कुछ। जब वो आ के बैठे तो ये उनकी शकल जा के देखें बार बार । उसके बाद कहने लगे, 'मम्मी, ये तो घोड़े जैसे नहीं खाते। कुछ भी कह रहे, घोड़े जैसे खाते हैं।' मानो, उसमें उनको कोई ये नहीं लगा, कि भाई, मैं कोई बुरी बात कह रही हूँ, अच्छी बात कह रही हूँ। किसी को दुःख देने वाली बात है। सीधी सीधी बात उन्होंने कह दी। और बच्चों में ये समझ आ जाती है कि ये किस तरह से कर रहे हैं, उनका क्या ढंग है। सब की नकल उतारते हैं। बच्चों में आदत होती है। नकल उतारने वाला आदमी भी एक तरह से भोला होता है। क्योंकि वो भी नकल तभी उतार सकता है, जब कि वो साक्षी हो और खास कर वो अपनी नकल उतार सके ये सब से बड़ी बात है। जो आदमी अपने ऊपर हँस सकता है वो सब से भोला आदमी है। अपनी बेवकूफ़ी की है, हँसो । अपनी ओर नज़र करें कि क्या साहब दौड़े चले जा रहे हैं। क्या कहने। तोंद आपकी निकली हुई है, बाल आपके चले गये हैं। जा कहाँ रहे हैं आप। जेब में पैसा नहीं है आप की नज़र कहाँ तक जायेगी। बार बार आपकी नज़र कहाँ उतरेगी । रियलाइजेशन के बाद जो आदमी इतनी लगन से आता है वो सज्जनों की संगति को जोड़ता है। और जो आदमी गहराई में नहीं उतरता वो अपना बहाना ढूँढता है और दुर्जनों की संगति में घूमता है। दूसरी संगति में घूमेगा वो हजारों बहाने बतायेगा कि आना नही हो सकता। और जिनको आना है देवळे साहब से बतायें। लेकिन देवळे साहब को कहीं जाने का है। रस्ते में चलते चलते मैंने यही खोज लिया कि देवळे साहब हमारे यहाँ बैठ गये मोटर में और फिर चल दिये। उनका कुछ प्रोग्रॅम था। वो बैठ गये मोटर में और चले आये बाहर । उनको तीन घंटा हमने लगाया। क्योंकि इसमें जो मजा आ रहा है और किसी चीज़ में नहीं। लेकिन जब इसका मजा ही पूरा नहीं है तो चित्त जरूर बाहर दौड़ेगा। 'आज कहाँ गये थे ? पार्टी में गये थे। क्यों साहब ? जाना ही पड़ा, इसमें ऐसा था, उसमें ऐसा था ।' और भोले जो यहाँ रोज आते है। उनका क्या होगा? क्योंकि सज्जनों की संगती में विषयों की ओर चित्त जाता ही नहीं, उलझता ही नहीं। भागो, प्रोग्रॅम है भागो। यहाँ सज्जनों का मेला लगता है। सत्संगती में बैठ के जो मजा आयेगा, वो वहाँ क्या मजा आने वाला है। यहाँ इतनी चली आ रही है, जो दिखायी नहीं देती। जो उनको दिखायी नहीं दे रही लेकिन आ रही है। यहाँ पे बरस रही है, वहाँ हम खींचे चले जा रहे हैं। उस परमात्मा की बेसुमार, बड़ा मज़ा आयेगा। माताजी आये चाहे नहीं आये। बैठ जाओ। दूसरे रियलाइज्ड आदमी को मिलने में जो मज़ा आता है, आहाहा, आ गये बड़ा मजा आयेगा। लेकिन जो लोग अभी पूरी तरह से उतरे नहीं हैं वो अभी भूतों की तरफ ही गये हैं। 'करना पड़ता है, जाना पड़ता है। मिलना पड़ता है।' कुछ जाना नहीं पड़ता है, करना नहीं पड़ता है और देखना नहीं पड़ता है। आपका चित्त अगर यहाँ है तो आपको आना ही पड़ता है। कल अगर आप शराबी हैं तो शराबखाने में ही पाईयेगा और अगर आप रियलाइज्ड है तो ..... (अस्पष्ट) और जगह जाने से मतलब। जब मज़ा का सारा अर्थ ही यहाँ पर है, तो और जगह घूमने से मतलब! हर वक्त चिल्लाते ही चिल्लाते हैं। शराबी लोग चिल्लाते हैं सारा वक्त। शराब न पी, ये न कर, वो न कर। वो छोड़ता है क्या अपनी बोतल । घर में नहीं तो बाहर, बाहर नहीं तो दोस्त के घर में। सीधे सीधे रमी खेलने वाला आदमी देखिये जो रमी खेलता है। इसकी बीबी चिल्लाने लग गयी तो वो अपने घर में जा के खेलेगा। वहाँ पे चिल्लाये तो उधर जा के खेलेगा । वहाँ पुलिस चिल्लायी तो और कहीं जा के खेलेगा। ये छोड़ने वाला नहीं। इसलिये लत नहीं लगनी चाहिये। अगर लत लग गयी तो कहीं भी मज़ा नहीं आता। यही बात, यही सोचना, यही बोलना, यही करना । लोग कहते हैं कि, 'तुम्हारी माताजी से हम बोअर हो गये।' लेकिन आप बोअर नहीं होने वाले। आप कहें, चलो तो, देखो तो क्या बात है। कोई किसी की भी बात कहेगा तो ये कहेगा कि भाई पहले चलेगा। पहले उसे देखिये। सब की बात तो बाद में होती रहेगी। हमने पाया है, हमने जरूर जाना है। और सारे घर वालों को हम बदल दे। घर वाले तो आपको पसन्द कर नहीं सकते जब तक वो लोग पार नहीं। ये कोई भी गुस्सा होने की बात नहीं। एक बार हमारे यहाँ ऐसा ही हो गया कि एक साहब हमारे पर गुस्सा हो गये कि, 'आप बार बार जाती हो । आपने सामान रखना शुरू कर दिया, तो हमने भी सामान रखना शुरू कर दिया ।' 'देखो साहब, आपको जिस चीज़ की शौक है आप करें। हमें जिस चीज़ का शौक है हम करते हैं। वो तो आप चाहे रोके, चाहे नहीं रोकिये, हम को तो जाना होगा ही। चाहे हम यहीं भी बैठे रहें चित्त तो हमारा वहीं है।' जब इसका मज़ा लग गया। अब नाटक वाले देखिये। जिनको नाटक का शौक होता है। चाहे जेब में पाँच रुपया नहीं हो तो तीन रुपये का टिकट ले कर भी जायेंगे नाटक देखने । हर जगह आप अपना पैसा दे कर के पूरा शौक पूरा करते है, यहाँ बिन पैसे का शौक । क्या मज़ा आता है। दूसरों में बँट जाने में जो मज़ा आता है, और किसी चीज़ में नहीं। लोग बाहर रुपया, इसको दान करो, उसको दान करो, दान कमिटी बनायेंगे। बाहर जा के, बांग्लादेश जा के दान करेंगे। अरे, यही दान हो रहा है बस् ! एक छोटासा बच्चा है। उसको लग गयी .... (अस्पष्ट) 'लागी नाही छूटे' पर लगनी तो चाहिये। जबान में लगती नहीं। क्योंकि आपका दिल और आपकी इच्छा चाहिये। जिसका मज़ा है वो तो गहराई में जा कर के लो और वो तभी होता है कि आदमी इतना भोला हो और वो अपनी धुन में चलता रहे। वो भोलेपन से ही बच जाता है। उसका जो भोलापन है उसको बचाता है। और आदमी भोला तभी होता है जब परमात्मा के हवाले है। क्योंकि उसका सब प्लैनिंग करने वाला वो बैठा है। सब देखने वाला वो बैठा है। बच्चा क्यों भोला है? क्योंकि वो उसकी माँ के हवाले है। अपने पास और भी आयुध है लोगों को ट्रीट करने के। आप तो जानते हैं बहुत सारे आयुध हैं। कोई बिगड़े, नाराज़ हो, घूमाओ। लेकिन पहले अपने ऊपर घुमाईये । हो सकता है कि आप भी अपने दिमाग के अभिपारित हो । अपना ही दिमाग आपको समझा रहा है, ये नहीं हुआ तो ये नहीं नहीं ऐसा नहीं । जब बिल्कुल सब कुछ शांत हो जायें। मुंबई में कोई सिनेमा न चलता हो, कोई पार्टी न होती हो, कोई शादी न होती हो, घर में कोई मेहमान न हो, ऐसा दिन तो मेरे ख्याल में आज तक न आयें। तो फिर वैसा ही आप पायेंगे । जितनी अन्दर से मुमुक्षुता आपके पास खींचेगी और उसको देखना पड़ेगा। है अन्दर। उसके बगैर आप पार होने वाले नहीं। पिछले जनम में और मेरे चले जाने के बाद, खास कर, मैं जाने वाली नहीं, एखाद-दो महिने में चली जाऊँगी। जब तक हिम्मत है तब तक .... (अस्पष्ट) । देखिये अब क्या होता है? लेकिन आप लोगों में से ऐसे कितने लोग हैं...। इस बात को कितने लोग सोच रहे हैं, कि हमारे हाथ से हजारो लोगों का कल्याण होने वाला है। हमारे हाथ से हजारों लोग पार होने वाले हैं। और हम जो सीमित, अभी थोड़े से हैं, वो कहीं अधिक एक एक आदमी हजारों आदमी होंगे। आज ही मेरी बातचीत हुई थी ....साहब से | एक लक्ष्मणजी महाराज है वहाँ । कश्मिर में है, बड़े माने हैं, सबकुछ। मैं मानती हूँ। इतने माने हुये हैं, वो भी आपके जैसे सेल्फ रियलाइज्ड और वो कुण्डलिनी जागृति नहीं जानते। वो पार करना नहीं जानते। वो पढ़े लिखे आदमी है, सिर्फ पार है। उस पे भी उन्होंने अपना मत छोड़ा है कि सारे दुनिया में लोग इनसे मिले, उनसे मिले । उनसे मिल के क्या खाक होने वाला है। वो क्या कुण्डलिनी की जागृती जानते हैं? कुछ भी। ये उँगलियों से अगर कुण्डलिनी की जागृती करना सिखा दे, तो हम जो कहे वो करें । पर उनका नाम है, क्योंकि वो अपना मत बना के बैठे हैं। झंडा गाड के बैठे हैं। सब दुनिया उनको मिलने आती है। (अस्पष्ट) आप उनसे पूछिये कि किसी के चक्र बताईये तो मैं जो कहें वो मानू। अगर वो बता दें कि किस का चक्र कहाँ पकड़ा है, इतना भी बता दें या ये भी बता दें कि इस आदमी की जागृति हुई है कि नहीं तो मैं जो कहें वो करूं । इन्होंने मुझे देख कर ये भी नहीं पहचाना कि मैं रियलाइज्ड हूँ कि नहीं। तब फिर आगे की बात करें। और तुम लोग क्या पहचान लोगे कि नहीं? मैंने उनको देख कर के पहचान लिया कि इनके बापदादाओं से ले कर के और जन्मजन्मांतर के हजारों साल का सारा इतिहास सामने खुल गया । और इन महाशय जी ने अभी पहचाना भी नहीं और वहाँ सारी दुनिया उनको जानती है। बंबई शहर तक उनका नाम है, वहाँ नाम है, वहाँ नाम है। और यहाँ जो हजारों कितने ऊँचे लोग यहाँ बैठे हैं उनका कुछ भी नहीं। क्यों? क्योंकि ये संसारी लोग है। संसार में बैठे है। लेकिन जिस दिन आपने संसार ही सब कुछ समझ लिया सब व्यर्थ हो गया हमारा जीना ! आप इस संसार से उठ कर के जब तक आप पूरे सृष्टि में उतरेंगे नहीं और जब तक आप इसमें पूरी तरह से अपना ध्यान लगायेंगे नहीं तब तक आपका देना बिल्कुल बेकार हो गया। मैं यही सोचूंगी कि पत्थर के थे। एक , एक आदमी एक महानुभावों से बड़ा है जिनके हजारों कॉलनियाँ हैं। इसी से ये सोच सकते हैं कि वो ये नहीं पहचान पायें कि मैं रियलाइज्ड हूँ या नहीं। ये छोटा बच्चा भी बता देता है कि रियलाइज्ड है। ऐसे भी लोग हैं जो रियलाइज्ड तो छोडिये जिनकी जागृती भी नहीं, इसके पीछे में झेंडा लगा के बैठे हैं। मारे ये लगा लगा के बैठे हो, 'ये साहब बहुत बड़े आदमी है।' कल अगर मेरे सामने आयें तो हूँ, हूँ होगा उनका और कुछ नहीं और आपके सामने भी ऊँ, ॐ होगी। ऐसे हैं वो लोग ! जरा सा हाथ आप कर दें कुण्डलिनी उनकी बढ़ा चढ़ा के ऐसे देखते रहें। आप लोग जानते हैं, इसलिये नटखटपना आ जाता है। भोला आदमी सब कुछ जान जाता है। इसलिये वो नटखट हो जाता है और ये नटखटपना हम यहाँ करते रहते हैं। आपने देखा है आप लोग थोडे थोडे नटखट हो गये हैं। थोडे थोडे आप नटखट हो गये हैं। जैसे किसी के ऊपर से भगाते हैं, उडाते हैं और हटाते हैं, और क्या क्या मज़ा आप करते हैं। कितना मज़ा हम लोग करते हैं। लेकिन जो अपने को ज्यादा अकलमंद समझे बैठे हैं और अपने को बड़े भारी आदमी समझे बैठे हैं और जो कहते हैं कि हम झंडा गाड़ के बड़े बड़े साधुबाबा हो गये। आपको कोई जरूरत नहीं ऐसी झूठी बात पर विश्वास करने की जब आपके पास सच्चाई है। आपके हाथ से आप जानते हैं। जब जान लिया किसी आदमी को कि ये ऐसा तो खत्म काम। जब वो आपके नीचे ही हैं तो आपका क्या मतलब है उसके सामने झुकने का! उसकी तरफ़ दौड़ने का! इसका मतलब है कि रियलाइजेशन में आप अपने चित्त पे ध्यान नहीं देते। चित्त पे जरा भी ध्यान आप दें, तो देखियेगा की चित्त विषय की ओर दौड रहा है। इसके मेस्मरिजम में या उसके तड़कभड़क में, उसकी आर्टिफिशिआलिटी में है। क्योंकि भोला आदमी आर्टिफिशिआलिटी जानता नहीं। वो सब के सामने अपनी सादगी पसंद है। उसमें कृत्रिमता बिल्कुल नहीं होती। सारी कृत्रिमता एकदम गिर जाती है। यानी ये भी कृत्रिमता कि हम कुछ हैं, फलाने हैं हम, हिंदू हैं, मुसलमान हैं, सब कृत्रिम है। हम क्या हैं, आप समझ लें । हम सिर्फ आत्मज्ञ हैं, रियलाइज्ड हैं। हम एक ही धागे के बंधे हुये जान हैं और लहर के ऊपर में साथ साथ हँसते है और साथ-साथ रोते हैं। सब एक साथ। मैं किसी को कहती हूँ कि आओ, शुरू शुरू में ऐसा है । शराबखाने का भी एडवर्टाइजमेंट देना पड़ता है, वहाँ एक ढोल पीट के आदमी कहता है, 'आओ, आओ, यहाँ शराब सस्ती मिलती है।' एक बार आओगे, थोड़ा चटका लगेगा, फिर ठीक होगा। चटका लगने की बात है। सारे प्रश्न सॉल्व हो जाते हैं। शराबी से पूछो। मैं तो ऐसे ऐसे गरीब लोगों को शराब पीते देख के बड़ा दुःख होता है। हमारा नौकर है। वो थोडी शराब पीता है। लंडन जाने का था तो मैंने कहा, 'तुम्हारा तो शराब के बिना चलता नहीं। मेरे घर में शराब चलती नहीं।' तो कहने लगा कि, 'माताजी, देखिये भाई, तो बात ये है कि लंडन में मैं तो पिऊंगा। मैंने कहा, 'तो आप यहीं बैठिये ।' कहने लगा, 'रोकना बहुत मुश्किल जायेगा मुझे।' मैंने कहा, 'रूकवा मैं दूँ, लेकिन तुमको प्रॉमिस करना होगा कि तुम मेरे साथ चलोगे ।' कहने लगा, 'माताजी, ले जाओ तो ले जाओ लेकिन शराब मैं तो वहाँ पिऊँगा।' सच्चा आदमी है। मैंने कहा, 'मेरा तेरा चल नहीं सकता। (अस्पष्ट) तू यही रह । सीधी बात है। तेरे को पीना है तो वहाँ नहीं चल सकता। अगर तेरा काबू होता है...।' 'मेरा काबू नहीं।' स्वयं कहें कि, 'मेरा काबू नहीं। अब मेरा काबू कहाँ रह गया। अब तो मैं इसी में बहाऊँगा।' धीरे धीरे देखना घरवाले भी आपके व्यवहार के लिये...। जो लोग महाकंजुष होंगे वो खुद देखेगें कि इतनी पैसों की चिंता है। पहले एक पैसे का हिसाब, दो पैसे का हिसाब | इसको इतना दिया, इससे इतना लिया। थोडे दो-चार रुपये छोड़ो। टॅक्सी वाले से झीक झीक | सब भगवान के हवाले है। धीरे धीरे उस आदमी में इतना भोलापन आ जाता है। पूरी तरह से वो भोला हो जाता है। बिल्कुल भोला । देखिये छोटा बालक होता है। उसका सब कुछ माँ पर है, वो रोता है तभी जब उसे भूख लगती है तब उसकी माँ उसको दूध देगी क्योंकि वो बच्चा पूरी तरह से अपनी माँ पर है। जो बच्चा थोड़ा सा अपनी माँ ..... 'तू कमा और खा ।' लेकिन जो बच्चा पूरी तरह से माँ पर है, वो पूरी तरह से अपने माँ पर थोड़े दिन है, उसको कोई चिंता नहीं। उसको टाइम पे दूध मिल जायेगा, उसको टाइम पे देखा जायेगा। जब एक साधारण मनुष्य की माँ इतना करती है तब सारे संसार की माँ और सारे संसार का जो पालनकर्ता है वो कितना हमारा विचार करता है। मैंने बहुत बार आपसे कहा है, कि रियलाइजेशन में आप से दिव्यता है। दिव्यता जो है देखने वाले देव ही आप के साथ लगे रहते हैं। देवतायें आपके साथ हैं। ये आपको पता नहीं कि हर एक ऊपर पचासों देवता मंडरा रही हैं। पचासों देवता आपके रक्षण करेंगे। लेकिन जब देखेंगे कि आप अपने से दगा कर रहे हैं, छोड़ कर के भाग जायेंगे। रुकने वाले नहीं। आपकी दिव्यता से खो जायेंगे । वाइब्रेशन का रुक जाना ही दिव्यता का खो जाना है। लेकिन जहाँ वाइब्रेशन्स आते हैं वहीं उसकी सुगन्ध फैलती है। वहीं देवता है। वहीं देवता लोग आ कर के आप पर मंडरा रहे हैं। जैसे सुगन्ध बंद हो गयी भाग गये। उनका काम ही ये है, जैसे फूलों पर मधुकर मंडराते हैं, ऐसे देवताओं का काम है आपके ऊपर मंडराना। और आप ही का काम है ये। मनुष्य को ही ये कार्य करना है और मनुष्य जितना अपने को भोलेपन रखे, जितने सादगी में रखे और सोचते रहे कि ये काम में करने में हम क्या चालाकी करते हैं। जरा देखा ना, चले चालाकी करने । हँसी आयीं । वाह, वाह क्या चालाकी की । एकदम उसका पता चल जायेगा | आपको फौरन पता चल जायेगा कि इसका और इस चालाकी स्वभाव का हमारा क्या इलाज है। लोग आ के बड़े चालाकी से बात करते हैं। हम भी इतने भोले बन के... सुनाते रहो, सुनाते है। क्या चालाकी कर लेंगे। आप हम को दे ही क्या सकते हैं जो हमारे साथ बात करें। कोई भी आदमी चालाकी से कोई भी पंजा हमारे ऊपर डालता है हाथ नहीं लगने वाला। वही सादगी और भोले पन से तो हम मिट जाते हैं। मर जाते है ऐसे आदमिओं पर जो भोले पन के हैं। इसलिये तो प्राण अपने लगा देंगे कि जो भोला है । और ऐसे चालाक आदमी जो अपने को बहुत समझते है एक दिन उनको भी पता होता है कि सारी चालाकी आ कर उनके ही खोपड़ी में बैठे गयी । सारी चीज़ हमारी पॅराबोली से .... जायें, जिस तरह से जाती है वहीं रह जाती है। हम चालाकी दूसरे से करते हैं और चालाकी हमें खा जाती है। एक आदमी दूसरे से चालाकी करता है वो समझता है, वो भी चालाकी करता है । इसलिये पता नहीं दोनों के दोनों धड़ से गिर जाते हैं। ये चालाकी करने में ही हमारा .... और ये सारी चालाकी आती कहाँ से है। ये चालाकी इसी तरह हमारे अन्दर आती है क्योंकि हम लोग पूरी समय डरते रहते है। यहाँ डरने का कोई सवाल ही नहीं। समझ लीजिये किसी का कोई चक्र पकड़ गया तो हम डरते नहीं हैं। हमारे पास कोई गड़बड़ हो घर में तो हम किसी पड़ोसी को जा के नहीं बतायेंगे। छुपा लेंगे घर के अन्दर, कि 'भाई हमारी लड़की का ऐसा हो गया। किसी से न कहना ।' क्योंकि हम दूसरे से डरते हैं। ज्यादा से ज्यादा अपनी बीबी से बतायेंगे । और जब दूसरा ही हमारा अंगप्रत्यंग हो गया तब इस में डरने की कौनसी बात है! ये तो सभी हमारे हो गये हैं। कोई भी बात हो गयी, हमारे अन्दर कोई भी दोष हो गया, हम जाहीर कर देते हैं, भाई, हमारा पकड़ा है। इसे निकाल दो । हटा दो। अब हृदय चक्र का किसी का पकड़ना । ऐसे अगर किसी का हृदय चक्र पकड़ा है तो मेरे यहीं पे मार दें । लेकिन आप में से किसी का हृदय चक्र पकड़ा तो, 'माताजी, हमारा हटाव । निकालो अभी ।' निकालना ही पड़ेगा। क्योंकि अपना जिसे हम दोष समझते हैं जो हम हैं वहीं खत्म होता है। हम हैं, हमारे चक्रों के दोष है वो हमारे नहीं क्योंकि हम अविनाशी, निष्कलंक | वो इन चक्रों के दोष हैं। चक्रों के दोष निकालने के लिये हमें क्या डरने की कौनसी बात है। हम तो अविनाशी हैं, निष्कलंक हैं। असंग में खड़े हुये हम अलग हैं। और ये चक्र अलग हैं। इन चक्रों में खराबी आ गयी, ठीक है, हम नहीं निकालेंगे तो दूसरा हमारा हाथ निकाल देगा। हमारे यहाँ तो इन साहब को नहीं पता होगा। ऐसा भोला आदमी, आप ही लोग कितने भोले हैं, जो आ कर कहते हैं कि मेरा ये पकड़ गया, मेरा ये पकड़ गया। मेरा ऐसा हो गया, मेरा वैसा हो गया। ये भोलेपन है। कोई अपना दोष बताता है किसी से कोई कभी नहीं कहेगा कि मेरा दिमाग खराब हो गया है। अब परसों .... इनका दिमाग पकड़ गया। तो आये पकड़ के हाथ मेरे पास। कहने लगे, 'माँ, मेरा सिर पकड़ गया।' और अभी भी सब से बताते हैं कि 'मेरा सिर पकड़ गया ।' पकड़ जाता है। दिमाग बौखला जाता है कभी कभी। लेकिन इसको आदमी दोष नहीं समझे। क्योंकि जो हम हैं वो अहम् से हट के वो दो हैं। ब्रह्म जो है वो अलग है और वो अलग है देख रहे हैं, कि हम वो नहीं है जिससे हम आयडेंटिफाय करते हैं, जिससे हम तादात्म्य पाये हैं। लेकिन हम उसके तादात्म्य पड़ गये हैं, जो अविनाशी, निष्कलंक है। जिससे कलंक नहीं। सर्वशक्तिमान, निर्भयता में, ज्ञानपूर्ण, प्रेममय अन्दर खड़ा है। ऐसे अपने स्वरूप को देखने वाला आदमी क्यों चालाकी करने जायेगा? कभी नहीं करने वाला। आदमी जो डरपोक होता है, घबराता है, जिसको सारी दुनिया लूट रही है वो चालाकी करेगा। जो खुद ही राजा बना के खड़ा हुआ है वो किस से चालाकी करेगा। जिससे किसी से लेना नहीं वो क्यों चालाकी करेगा? आप अपने पर देखें कि जब भी आप कोई कार्य करते हैं, कभी कभी तो लोग कहते हैं कि, 'माताजी, हम आपके लिये चाँद-सितारें तोड़ लायें।' भाई तोडो, इतना बड़ा लंबा चौडा आकाश है। लेकिन जब करने पे आता है तो देखते हैं कि छोटे बातों पर फिसल जाते हैं। छोटी सी बात पे फिसल जायें। मुझे क्या ? रिलेटिवली सब चीज़ चलती नहीं। किसी न किसी चीज़ के साथ जुड़ के चलती है। ये बढ़िया है, कि मेरा लड़का ठीक हो जाये तो मैं करूँ । बस, गये आप काम से । 'मेरा घर-द्वार ठीक हो जाये तो मैं करूँ। मेरी लड़की की शादी हो जायें तब मैं आऊंगा ध्यान में ।' गये आप काम से । न शादी होगी न आप आयेंगे। वो कहते हैं न 'सौ मण तेल हुये न राधा न सिंह ।' वो बात है। ऐसे संकल्प, विकल्प वही मन करता है जो पूरी तरह रियलाइजेशन का मजा नहीं लेता। ये हो तो वो, वो हो तो वो, इसका क्या मतलब है? है तो है ही, बहुत है। जो है तो इसी वख्त है, जो पाने का है इसी वक्त है, हर क्षण पाने का है। हर मिनट पाने का है। और जो सीधा, भोला भाला आदमी हर क्षण...., ऐसा आदमी सब को प्यारा लगता है। किसी को इसलिये प्यारा लगता है कि वो सोचें हम उसको बुद्ध बना रहे हैं। किसी को इसलिये प्यारा लगता है कि सोचें इसे हम एक्सप्लॉइट कर ले दो-चार रुपया निकाल के। किसी को इसलिये भी प्यारा लगता है कि ऐसे आदमी की कंपनी बड़ी सुहानी होती है। उसकी बातें बड़ी प्यारी होती हैं। चोर, ठगों को बच्चे इसलिये अच्छे लगते कि गले की माला खींच लेंगे। उनके कमर से धन निकाल लें। उचक्कों को बच्चे इसलिये अच्छे लगते हैं कि ले जा के बजार में बेच डालेंगे, उनसे पैसा कमाएंगे। लेकिन किसी गंदे आदमी को बच्चे इसलिये पसंद है कि उनकी कंपनी में ऐसा लगता है कि जैसे फूलों के साथ आप रह रहे हो। उनके साथ आप भी बच्चे हो जाते हैं, इसलिये बच्चे बड़े प्यारे लगते हैं। अपने तो आप पर निर्भर हैं, लेकिन बच्चा तो बदलता नहीं। चाहे वो चोर-उचक्का हो, चाहे वो किस का हृदय हो, सब के लिये वो स्वर ही है। और जब तक वो स्वर लूट नहीं, जब तक उसमें अपने अन्दर सुगन्ध लुटाने की शक्ति नहीं तब तक उसको कौन देखेगा। लूटना ये कोई लूटना नहीं है। लेकिन अपनी सुगन्ध लुटाने की शक्ति जो खो देता है वो जरूर लूटता है। और दिमागी जमाखर्च होता है। माताजी ने कहा, 'वहाँ आओ ध्यान में ।' 'मैं इतने बड़े घर की बहू हूँ। मैं वहाँ जा के कहाँ बैठूंगी जमीन पर। वहाँ तो सब लोग सर पे हाथ रखते हैं।' इतने बड़े घर की बहु आज है। कल क्या थी आप? और इतने बड़े घर की बहू हो कर भी आपको आनन्द नहीं मिला और आज जमीन पर बैठ कर आनन्द मिलता है, तो फिर स्वीकार्य करना चाहिये। इतनी भी अकल आप के अन्दर नहीं है तो आप मत आईये। भोले आदमी में अहंकार नहीं है। उसको अहंकार होता ही नहीं। अहंकार चीज़ क्या होती है उसको वो मालूम ही नहीं। उसको बोलो जमीन पर बैठ जाओ, बैठ जायेगा। उसको बोलो यहाँ बैठ जाओ, बैठ जायेगा। उसका कभी भी अहंकार नहीं दुखता है। आप लोगों का अगर कहीं भी अहंकार दुखे तो समझना चाहिये रियलाइजेशन थोड़ा कच्चा है। दोनों पकड़ा है आ जाना यहाँ पर बिठाने के लिये। माताजी, चीज़ पकड़ गयी। छोटी सी चीज़ में लोगों का अहंकार दुख जाता है। जैसे अभी ट्रेन में बैठे, मेरे पास एक आदमी बैठ जायेगा इधर, दूसरा उधर बैठ जायेगा। वो बोले हम को पास में नहीं बिठाये । ऐसी छोटी छोटी चीज़ से आपका अहंकार टूटता है, तो ये सोच लेना चाहिये कि रियलाइजेशन में हम अभी पूरे खरे उतरे नहीं हैं। आपने मुझे देखा है। मुझे कुछ समझता नहीं है। हालांकि मैं बहुतों का अहंकार दुखाती हूँ। लेकिन मैं एकदम बेवकूफ़ हूँ। मुझे प्रोटोकॉल बिल्कुल नहीं आता। कुछ भी प्रोटोकॉल मुझे कतई नहीं आता। और अब कभी आने ही नहीं वाला, कि उनको ऐसा करना चाहिये, उनको ऐसी बात करनी चाहिये। ऐसा नहीं करना चाहिये। मैं तो कभी किसी को गले से भी लगा लेती हूँ, कभी किसी को झाड़ भी देती हूँ। लेकिन जब तक मेरे अन्दर प्रेम करने की शक्ति है तब तक मेरा कुछ नहीं जाने वाला। क्योंकि प्रेम से बढ़ के कोई प्रोटोकॉल ही नहीं सिखाने वाला बढ़िया । वो कभी कभी आश्चर्य में रह जाता है। अभी मैं वहाँ गयी थी । वो लोग पहचानते नहीं थे। वो लोग रोने लगे..... उनको मैंने गले से लगा लिया। वो भी आदमी भौचक्का रह गये कि इस औरत में क्या है। वो रोने लग गये यहाँ पर । जो सोचा जाता है वो चालाकी है। क्योंकि हम ऐसा सोचते हैं। कहेंगे, कहने दो। क्या कहेंगे? जो मैं हूँ, मैं ही रहूँगी । किसी के कहने ना कहने से कोई बदलने नहीं वाला । किसी के बकने से कोई बदलता नहीं। कोई कुछ भी बकता रहे, बकने से कुछ बदलता है? जो आप हैं वो आप ही हैं। लेकिन इतना जरूर होना चाहिये की आप अपने पे सच्चाई रखें। आप अपने साथ छूट न बरतें। आप अपने दिमाग में चक्कर न लगायें। चालाकी न करें। असल में हम अपने साथ अपने को ही ठगते रहते हैं सुबह से शाम तक। देखते रहिये आप किस तरह से करते रहते हैं। जब आपका मन बतायेगा, हाँ, मैं बड़ा ठगी हूँ। अपने को ठग रहा हूँ। अपने को ठग रहा है । आज सभी लोग करीबन पार हैं यहाँ। एकाध दो लोगों का कुछ रुक गया। अब जब वाइब्रेशन्स रुक गये हैं तो उसको चला लेने का तरीका आप ही लोगों ने निकाला है। जैसे फोटो को ऐसा करना चाहिये, किस तरह से कहाँ पर क्या देना चाहिये। कैसे पहचानना चाहिये कौन सा चक्र बैठा हुआ है। जैसे कि आपके हाथ पर वाइब्रेशन्स नहीं आ रहे हैं तो कोई न कोई उँगली कट हुई है। इससे आपको पता हो जाना चाहिये, जैसे ये बीच में जो हैं ये आपका नाभि चक्र। ये नाभि चक्र पे हैं। फिर ये जो चक्र है विशुद्धि चक्र | फिर ये चक्र आज्ञा चक्र और ये चक्र स्वाधिष्ठान चक्र। और ये आपका अनहत चक्र, जो सबसे छोटी उँगली पर है, क्योंकि नाजूक हैं न । और सब से भोला होता है। हृदय में जो वास करता है वो सबसे भोला होता है | हृदय बिल्कुल भोला भाला होता है। माने उनको ये भी होश नहीं रहता कि राक्षसों को उन्होंने वरदान दे के रखे है मुझे सताने के लिये। लेकिन है, भोले आदमी को ये भी होश नहीं रहता है, कि मैं किस को वरदान दे रहा हूँ। अपनी बीबी को उठा के दे दिया उन्होंने रावण को। ऐसे भोले शंकर जी हृदय में वास करते हैं तो उनको कौन ठग सकता है? शंकर जी को कोई ठग लेते हो। बीबी को ले गये, लेकिन बच गयी न उनकी बीबी । और वो जो भी देते हैं, वरदान देते हैं उससे ..... जरूर बच जाता है, वो उनके भोलेपन से ही। वो तो बेचारे अपना पूरा देते हैं आशीर्वाद ! लेकिन उसमें एक न एक कोई ऐसी गड़बड़ छूट जाती है कि जिससे वो मर जाता है आदमी। नरसिंह अवतार में आप जानते हैं। उन्होंने वरदान दिया हुआ था। ये पकड़ आ गयी तो मारे गये। रावण को वरदान दिया मारे गये। कंस को वरदान दिया था मारे गये। नरकासुर, महिषासुर सब मारे गये वरदान दिये हुये। ये वरदान का लूप होल भी शंकर जी के भोलेपन का ही भाग है और उनका जो नटखटपना है विष्णुजी में है। इसलिये उनका कॉम्बिनेशन अच्छा चलता है, शंकरजी और विष्णुजी में बड़ा बढ़िया कॉम्बिनेशन है। और जब तक वो बैठे हैं तो आपको चिंता की कोई बात ही नहीं। कभी आप शंकर जी के पास जाईये, कभी विष्णु जी के पास जाईये। लाइट बात है। बहुत सीरियस बात नहीं है ये। सीरियस नहीं बिल्कुल लाइट । अपने मन को एकदम लाइट रखे। अभी एरोप्लेन आये, उधर देखोगे, उधर कुछ आये उधर देखोगे, हर एक चीज़ को । एरोप्लेन हमारे यहाँ आता है हजारों बार। जितनी बार एरोप्लेन आयेगा सब बच्चे दौड़ कर के बाय, बाय करेंगे। समुंदर का पानी आता है दो बार । जितनी बार समुंदर का पानी आयेगा सब बच्चे दौड़ के जायेंगे, चिल्लायेंगे। कहीं भी कोई हलचल हो जाये, दौड़ गये। कहने का मतलब ये है कि जो भोला आदमी होता है, वो परमेश्वर के पास है। तभी वो भोला है। वो दिखने में ना इतना व्यवस्थित है ना कोई बात आपको चमत्कार दिखायेगी, ना उसे बुद्धिचातुर्य और ऐसा आदमी हमारे सहजयोग के लिये दोस्त है। जो भोला, सीधा-साधा, सरल होता है और अधिकतर मैंने ये भी देखा कि जिनियस लोग होते हैं, विद्वान वो बड़े भोले होते है। मुझे कभी कभी उनके भोलेपन पे ऐसा ये आता है, इतनी भोली जैसी बात करेंगे, कि लगता है कोई छोटा बच्चा है। इतने ज्ञानी पुरुष हो कर भी इतने भोलेपन से बात करते हैं कभी कभी आश्चर्य होता है। जो ज्ञान उन्होंने पाया है वो परमात्मा से पाया है। उनके भोलेपन की वजह से ही उनके अन्दर है । आप बात करें या न करें, ये मेरा मतलब नहीं है। लेकिन अन्दर कुछ हंसती-खेलती दुनिया है एक छोटे बच्चे में। अधिकतर बच्चों की कंपनी में रहा करो, बूढों की कंपनी में मत रहा करो। हमारे यहाँ कोई कोई ८० साल के भी लोग १८ साल के हो गये हैं। ऐसे लोगों की कंपनी में रहा करे कि जो बच्चों जैसे हैं। और अपना मन भी बच्चों जैसा साधा रखे. जिससे सहजयोग में बड़ी मदद रहेगी। आदमी आगे बढ़ता है। बच्चे जब मेरे पास पार होते हैं, मैं देखती हूँ वो बड़ी श्रद्धा से। मेरे दो बच्चे हैं, ग्रँड चिल्ड्रन, आप जानते हैं, दोनों पार ही हैं। रोज घर में झगड़ा, पूजा में भी जाने का है, मुझे लगता है दोनों मेरे गोद में बैठ जायेंगे इससे बेहतर है कि उनसे बता दूँ। रोज सबेरे उठ कर के, इतने छोटे बच्चे, डेढ़ साल के, दो साल के, दोनों पैर के नीचे में हाथ रख कर के सर लगा के आधा घण्टा, कौन बच्चा रहेगा दूध पिये बगैर। वो किये बगैर उनका होता ही नहीं। जैसे की दूध से भी ज्यादा जरूरी है। बड़ी वाली को बता दी अब छोटी वाली कुण्डलिनी ...... और छोटी वाली जैसे ही उन पर हम हाथ रखेंगे। अब उस दिन नौकरानी को गरम गरम आता था तो 'जाओ, नानी के पैर पड़ो।' बड़ी वाली कहती थी। और उनको लगन है। नानी हम को पूजा में ले जाओ, नानी हम को पूजा में ले जाओ। छोटे छोटे बच्चों को जिनको बिस्कीट, चॉकलेट अच्छे लगते हैं, चॉकलेट नहीं चाहिये, कुछ नहीं चाहिये, बस पूजा में ले जाओ। जैसा बच्चे अपने माँ के लिये, दुनिया में कुछ भी उसको दो, माँ के लिये रोता है ऐसे ही हैं। कहने से नहीं होता। मैं कहूँगी शराब पिओ, शराब पिओ... | शराब तो मुँह में लग जायेगी लेकिन ध्यान नहीं लगने वाला। ध्यान नहीं लगने वाला आसानी से शराब लग जायेगी। ध्यान मुँह में जब लग जायेगा तब फिर मुझे कुछ कहना नहीं पड़ेगा। इसलिये आपकी इच्छा बहुत जरूरी है। आपकी इच्छा बहुत ज्यादा मान जायें, इसका बड़ा मान है और इसलिये आपको इच्छा करनी पड़ेगी। 'प्रभु, मुझे तेरी लगन लगे, तेरी' जैसे जैसे आदमी यही कहता जायेगा, धीरे धीरे ये चीज़ यही घटती है, यही बसती है, उतरता जायेगा अपने ही अन्दर, अपनी ही गहराई में। अपनी ही सुन्दरता में जायेगा। मैंने आपसे बताया था पहले भाषणों में, पहली चीज़ जरूरी है सहजयोग में वो है प्रेम। जो आदमी प्रेम नहीं कर सकता वो सहजयोग में उतर नहीं सकता। और प्रेम का भी थोड़ा बहुत आप से बताया था। उसके बाद मैंने कहा था, पवित्रता। जो आदमी पवित्रता की भावना नहीं रखता है, वो भी आदमी सहजयोग में उतर नहीं सकता। आदिकाल से पवित्रता की भावनायें चलती आयीं हैं। उन्हीं को ले कर मैंने कहा है । आज तीसरी बात बताना है, खास कर रियलाइज्ड लोगों के लिये कि रियलाइजेशन हमारा नया जन्म है। जब बच्चा जन्मता है, कोई भी बच्चा आप देखिये, संसार की कोई भी जाति का हो, चाहे वो जपानी हो, चाहे वो अफ्रिकन हो, चाहे वो अमेरिकन हो, उस बच्चे में एक चीज़ सब में होती है और वो है उसकी अबोधिता, उसका इनोसन्स। बच्चे की विशेषता है इसका इनोसन्स । इसलिये रियलाइज्ड आदमी तभी कहलाया जायेगा जब वो पूरी तरह से इनोसन्स में उतर जायें | वैसे भी जो बहुत चालाक लोग होते हैं, चातुर्य बहुत ज्यादा होता है और जिनकी बुद्धि बड़ी तल्लख होती है और हजार आदमिओं को ठग लेने में और झूठ बोलने में, चालाकी दिखाने में बड़े तरबेज़ होते हैं, ऐसे लोग सहजयोग के लिये बिल्कुल बेकार होते हैं। इसलिये जो लोग काफ़ी ठगाये गये हैं दुनिया में और सताये गये हैं, वो सहजयोग के लिये बहुत ठीक हैं। संसार में चाहे वो बहुत यशस्वी लोग न हो, लेकिन सहजयोग में वो बहुत ही ज्यादा यशस्वी हैं। अबोधिता एक बहुत बड़ी देन है। यह भी जन्मजन्मांतर की .. (अस्पष्ट)। आप देखियेगा बहुत से बुजुर्ग लोग भी बहुत ही अबोध होते हैं। बहुत भोलेभाले, बहुत सीधेसाधे और बहुत से छोटे बच्चे भी बहुत चालाक, धूर्त होते हैं। आजकल के जमाने में जो आदमी दो-चार पैसे ले के किसी को ठग मारे वो सब से बड़ा यशस्वी आदमी समझा जाता है। एक उदाहरण के तौर पे, जैसे एक हमारे रिश्तेदार थे । हम उनके घर गये, वो अपने को बड़े भारी आदमी समझते थे और वो बड़े विद्वान समझते हैं अपने को और बीवी बेचारी अनपढ़। उसको वो कुछ खास समझते नहीं। कहते हैं, 'बेवकूफ़ है, ये सारा मेरा पैसा लुटा देगी।' एक पहले दर्जे के कंजूष हैं वो बताने लग गये, देखिये, ये जमीन है, ये मकान है, ये पूरा किराये पर ले लिया और तीस साल पहले कर लिया था और इसका मैं सिर्फ सौ रुपया किराया दे रही हूँ। और ये सारी जमीन मेरे कब्जे में है और किसी की मजाल नहीं की हाथ लगाये।' बैठे हुये है आराम से। न कहीं जाते हैं, बैठे है जमीन पर दावा लगा कर के। और कहने लगे, 'मेरी उल्लू बीबी है। उसकी वजह से मुश्किल है। न जाने आज कितने महल खड़े किये होते। अब किराये के मकान में रह रहा हूँ।' उनको तीन- चार गाली देने में भी उनको कोई हर्ज नहीं था। लेकिन ये तो हमारे रिश्ते में जेठ होते थे, तो हम चुपचाप बैठे, अभी क्या बोले। इसके बाद उनकी जो बीबी थी वो बेचारी चुपचाप सुन के घर जाती। इतने में एक आदमी आया। वो कहने लगा, ‘साहब, देखिये, मैं घरमालिक की ओर से आया हूँ और घर मालकिन कह रही है कि आपके यहाँ इतने इमली के पेड़ है, उन्हें इमली बहुत पसंद आती है। तो आप कहिये, दो रुपया आपको देते है, आप हमें थोड़ी 2 इमली दे दीजिये।' ये बिगड़ गये। ‘वा, क्या सोचते हो, दो रुपये की इमली कहाँ से आयेगी। पाँच रुपये दो तो देंगे।' काफी झकझक झकझक करी। उसके बाद अपने बीबी से कहा, 'खबरदार, ये आदमी ऊपर चढ़ने न पाये । यहाँ से इमली न उतारने पाये।’ उसके बेचारे के सौ रुपये के मकान में वो रह रहे हैं। उसको कम से कम कुछ नहीं तो तीन- चार हजार रुपये का नुकसान कर रहे हैं। बड़ा पैसे वाला है। दे सकता है सब कुछ। अब कहने लगे कि, 'ऐसा लॉ आने वाला है। ये घर मेरा होने वाला है। मेरा इस पे कब्जा होने वाला है।' इसकी वो इंतजार में है। बहरहाल जब वो चले गये तो उनकी बीबी ने उस आदमी को अन्दर बुलाया। कहने लगी, 'तुमको कौनसी इमली के मँगवायें हैं, वो तोड़ लो।' उसको देख के पाँच रुपये निकाल दिये, तो उसने कहा, 'पाँच रुपये क्यों दे रहे हो ? मुझी को देना है पैसा।’ कहने लगी, ‘अरे भाई, तुम चढ़े। तुम्ही ने मेहनत करी। इसके पाँच रुपये । और उनको मेरा नमस्ते कहना। जाओ। ले जाओ। भाग जाओ। और कल अगर और चाहिये तो आ जाना, लेकिन बारह बजे के बाद आना तब ये चले जाते हैं।' तो उसने ये जबाब दिया कि 'मैं तो इंतजार में था कि कब खिसकेंगे और मैं इमली तोडूंगा। मैं आपको तो जानता हूँ।' अब वो अपने को बड़े चालाक, होशियार समझते हैं। और सब उनपे हँसते हैं, 'गधे कहीं के।' इस तरह जो अकलमंद लोग हैं, जो अपने को बड़े चालाक, होशियार और झूठ बोलना, इसमें जो अपने को बड़े होशियार समझते हैं, वो सब होशियारी जो है जहाँ के तहाँ रह जायेगी । और ऐसों का सहजयोग नहीं होने वाला। और कल अगर संहार शुरू हो गया तो ये लोग पहले कटेंगे और भोला आदमी हमेशा बच जाता है। भोले आदमी में बड़ी विशेषता होती है। मैं स्वयं बहुत भोली हूँ। बहुत लोग मुझे कहते है। मेरे घर में तो सब लोग मुझ से परेशान हैं। मेरे भोलेपन से । हमारे घर में ऐसा हुआ एक दिन की हम दिल्ली में रहते थे तब कि बात है। बहुत साल पहले की । तो बजार गये थे। दिल्ली के बजार में। वहाँ एक आदमी आया बेचारा, मुझ से कहने लगा कि, 'बहुत चोट लग गयी है। और समझ में नहीं आता मैं कैसे करूँ? मैं कैसे जिऊँगा?' मैंने कहा, 'चलो, मोटर में बैठो तुम ।' उसको घर ले आये। घर पे लाये तो उसको हमने मलमपट्टी करी । और वैसे भी हमें जरूरत है मलमपट्टी करने की । हाथ फेरा, बिचारा ठीक हो गया। उसको मेरे लिये बड़ा प्रेम हा गया । और वो सुबह से शाम तक, चार बजे मैं उठी तो वो भी चार बजे उठ के सब मेहनत करी जो मैं कर रही हूँ। लेकिन हमारे घर के लोग बहुत व्यवहार चातुर्य । उनका कहना, 'पता नहीं, कहाँ से चोट खा के आया है। हो सकता है कोई डाकू होगा ।' मैंने कहा, 'होगा डाकू, अब तो बदल गया है न! अब उसका कितना स्वभाव बदल गया है।' मैंने कहा, 'उस पे विश्वास तो कर के देखो।' कहने लगे, 'नहीं नहीं, इसको तो पुलिस में देना होगा। पुलिस को पता करना चाहिये। रोज उसके पीछे पड़ सब लोग लगे रहे। हमारे भाईसाहब भी थे, मेरे हजबंड भी थे, और भी लोग, सब लोग। उनकी कॉन्फरन्स हो गयी। इसको बिठाना ही चाहिये पुलिस में । मैंने कहा, 'भाई, माफ़ कर दो एक बार । देखो, अगर चोरी करना है तो कर ही लेगा। नहीं होगा तो ठीक ही है। ऐसी कौन सी बात है। ऐसा कौनसा हमारे पास धन घर के अन्दर पड़ा हुआ है।' तो उस के पीछे ये लोग पड़े। एक दिन हम शादी में गये। शादी में हम लोग गये तो उसको बाहर बिठा के गये । अन्दर घर में नहीं । चोरी कर जायेगा, फलाना होगा। मैंने कहा, 'अच्छा भाई!' हम जेवर पहन के गये थे। रात को दो बजे करीब आये। सब थक गये थे। मेरे हजबंड भी सो गये। मेरे भाई भी सो गये। मैं भी सो गयी। मैंने जेवर उठा कर के बाथरूम में रख दिये। सब को कोई सोचवोच नहीं रहा कि घर में चोर है। जब सबेरे उठे तो हमारे हजबंड की पैर की चप्पल गायब। इनका देखा तो 3 पर्स गायब। वहाँ से आगे गये तो कोट गायब। आगे चले, मेरे भाई साहब थे, उनके पाँच सौ रुपये गायब। उनका कोट गायब। उनका न जाने एक बक्सा के बक्सा ही खाली था । और मेरे इतने महँगे जेवर वहाँ पड़े हुये थे, खानदानी हमारे जेवर, एक चीज़ को कुछ हुआ नहीं। इनकी सब चीज़े उठा के वो भागता पड़ा। क्योंकि उनके लिये वो डाकू ही था। मेरा सब सामान छोड़ गया और इन सब की चीज़े ले के चंपत हो गया। तो वो लोग कहने लगे कि 'ये आश्चर्य है, हमने ता कुछ किया नहीं।' हमने कहा, 'तुम उसकी जान पे लगे हुये थे न ! पुलिस में जाओ, पुलिस में जाओ। तो देखो।' उस पे विश्वास करते ! हम घर पे भी नौकरों पर कर के देखिये। विश्वास करें, विश्वास रखें। हम विश्वास इसलिये नहीं करते कि हमारा अपने ऊपर विश्वास नहीं। दुनिया सब पे विश्वास रखिये। जितना हम विश्वास करना सीखेंगे उतना ही इन्सान आप पे विश्वास करेगा। लाख में से एकाध आप को ठगेगा । हम को तो कोई ठग ही नहीं पाता। ठगना भी चाहें तो ठग ही नहीं पाता। ठगता नहीं। और हम पाते क्या हैं? दो-चार रूपया ही न! ठग के क्या पाते हैं? कौन सी गठरी ? पाप की तो गठरी पाते हैं। मुझ से यहाँ पर भी बहुत से लोग होशियारी दिखाते हैं। कुछ ऐसे पढ़ाते है बातें इधर उधर की। जितनी मैं भोली हूँ, उतना ही मेरे जो अन्दर का है न वो बड़ा है। मैं किसी चक्कर में नहीं आती। बड़ा मुश्किल है मुझे चक्कर में डालना। अब कोई कहे, ये चीज़ें, वो चीजें। चक्कर में नहीं आने वाली! हालांकि मैं हूँ बहुत सीधी-साधी । इसकी वजह है वजह ये है कि जो आदमी रियलाइज्ड होता है और जो अपने चित्त लिये बैठा है वो कहीं उलझता ही नहीं। आपने मेरे साथ चालाकी की, वो दिव्य जो है वो घुमा देगा उधर के उधर । कोई आदमी चालाकी करेगा ही मेरे साथ वो फट् से उसे घुमा देगा। इसी का एक और उदाहरण देती हूँ। रामकृष्ण परमहंस की पत्नी, दोनों आदमी एक बार जंगल में जा रहे थे। ये बिल्कुल भोली भाली थी बेचारी । जंगल में से आ रहे थे तो जंगल में से आते आते ऐसा हुआ कि रामकृष्ण तो आगे चले गये, वो पीछे रह गयी। तो चोरों ने सोचा कि चलो कोई औरत मिल गयी, पकड़ो इसको । तो उसके साथ हो लिये। उन्होंने कहा कि, 'भाई, तुम आ गये। अच्छा हो गया । तुम्हारे दामाद जो है, सामने चले गये और मैं अकेली रह गयी । चलो, तुम मेरे भाई आ गये, मेरे बाप आ गये, मेरे लिये बड़ा अच्छा हो गया। मेरे लिये तो कुछ आराम हो गया। नहीं तो मैं सोच रही थी, कि अकेले मैं रास्ता कैसे ढूँढूंगी । चलो, भाई तुम्हारा क्या नाम है? अच्छा तुम मेरे भैय्या हो । तुम मेरे बाप हो ।' वो लोग कहने लगे, हम तो इसको पकड़ के ले जा रहे थे। ये तो हम को बाप, भाई बना रही है। उसके सीधेपन से और भोलेपन से इतने रीझ गये, कि वो उसको घर ले गये और जिंदगीभर अपनी लड़की की तरह बनाया और रामकृष्ण को अपने दामाद जैसे | वो चोर और डाकू लोग भी प्यार पहचानते हैं। साँप और शेर और गीदड़ ये सब प्यार पहचानते हैं। क्योंकि शेर अपने बच्चे को नहीं खाता । साँप अपने बच्चे को नहीं काटता। और हम भी साँप हो जायें तो साँप हम को नहीं पहचानेगा। भोलापन हमेशा मदद करता है। जो आदमी भोला होता है उसको दुनिया हमेशा मदद करती है और एक उसका मॉडर्न उदाहरण देती हूँ। एक साहब कस्टम में थे। भोले भाले थे। बोलते बहुत थे | भोले लोग बोलते भी ज्यादा है कभी कभी। क्योंकि उनमें चालाकी नहीं थी ना ! अन्दर में घुस के बैठेंगे या कभी बोलते हैं, कभी नहीं बोलते हैं। ये जरूरी नहीं कि हर एक भोला आदमी बोलता है। चालाक भी कभी-कभी बड़बड़ाते हैं बहुत। तो ये जो भोलापन था इस आदमी का, वो आ कर के इसको बताये, कि 'अरे साहब, मैं गया था वहाँ, मैंने वहाँ से लाया में 4 है कैमेरा।' एक कस्टम ऑफिसर को बताये। अमरिका से आये और कस्टम ऑफिसर को बताते हैं कि 'कैमेरा लाया हूँ, ऐसा कैमेरा है, किसी को देखना है।' और दिखाने लगा। यहाँ लोग छुपाते हैं अपना कैमेरा । फिर उसको बताने लगे कि, 'मैं वहाँ से डायमंड रिंग ले के आया। किसी को देखना है। देखो, मैं लाया हूँ।' तो वो जो इतने भोले पन से बोलने लग गया, कि वो कस्टम ऑफिसर ने सोचा कि ये ऐसे ही डींग मार रहा है । ये लाया क्या होगा। मुझे बेवकूफ बना रहा है। असली लाया वो ऐसी बात क्यों करेगा। तो कहने लगा, 'अभी जा, मेरा सिरदर्द कम होगा।' और दूसरा आदमी आयेगा, छुपा के और इधर उधर देख के तो उनको, 'आईये इधर, आपके पास क्या है?' । भोले आदमी पर वैसे भी मनुष्य को तरस आता है। अगर कोई भोले आदमी को सताता है तो उसकी आहें इतनी लगती है कि वो डर से भी आदमी सताना भूल जायें और कोई भोले आदमी को सताता है तो जन्मजन्मांतर उसे देना पड़ता है। इसलिये भोला आदमी सब से श्रेष्ठ है। और जो आदमी बहुत ज़्यादा किसी चीज़ में उलझता है, अधिकतर आप देखियेगा, ज्यादा तर ऐसा होता है, कि जब भी आदमी को कोई बूरा काम करना होता है वो बड़ा सिरीयस हो जाता है। हमने ऐसे साहब को देखा है, जिनकी आदत थी ब्राइब लेने की । हमारे हजबंड को वो कहते थे कि, 'तुम घटिया टाइप हो। तुम को तो पैसा ही लेना नहीं आता ।' ऐसे कहा करते थे। लेकिन मैंने देखा है, कि उनसे अगर कोई आदमी मिलने आये और वो पैसे वैसे की बात करने वाला हो, मतलब लेने देने की, एकदम वो सिरीयस हो जाते हैं। हसते खेलते एकदम सिरीयस हो जाते हैं। समझ जाओ कुछ न कुछ ब्राइब की बात है। एक साहब थे, मुझे मालूम है। इनको कैब्रे में जाने का बहुत शौक है। और जब भी कैब्रे की बात होती थी बड़े सिरीयस हो जाते थे। कहाँ जाने का ? कैसे जाने का ? कब जाने का ? बाकी समय हँसते रहेंगे। कैब्रे के मामले में बिल्कुल प्लॅनिंग कर के, सिरीयस हो के, कैब्रे में जाएंगे। कैब्रे में क्यों जाना चाहिये ? अरे, आपको सिरीयस ही रहना है तो मंदिर में जा के बैठो। नहीं वो वहाँ जायेगा । जो आदमी हंसता - खेलता हर समय रहता है और हल्का फुल्का रहता है, उस आदमी को ऐसे रहने से क्या बेवकूफ़ी है, ये क्या बेवकूफ़ी है। भोला जो आदमी होता है वो नटखट होता है। उसका नटखटापन जो होता है वो उसके भोलेपन से आता है। जैसे वो कोई न कोई खुराक लगा देगा। जैसा बताया है। एक साहब हमारे यहाँ आये । उनको बड़ा शौक था कैब्रे डान्स का। कैब्रे माने आपको मालूम नहीं होगा, वहाँ नग्न नृत्य होता है। अब हमसे तो कह नहीं सकते क्योंकि रिश्ते में हमे बड़े होते थे। तो हमारे घर में एक बड़े सिविल वाले साहब हैं। वो ऐसे ही नटखट टाइप हैं । तो उनसे कहने लगे, 'हमको ले चलिये।' अब वो बुजुर्ग आदमी ठहरे। शैतान बहुत है न ! वो ले गये और पुलिस थाने में उनको डाल दिया। 'मैं तो आऊंगा नहीं, आप चले जाईये ।' वो बेचारे सीधे चले गये। वहाँ जा के देखा तो सब पुलिस वाले खड़े। वो बेचारे आये थे देहात से । उनको मालूम नहीं था कहाँ, कैसे होता है? उनको लगा, पुलिस वहाँ लगती होगी। ऐसे जगह जरूर पुलिस होती है। ऐसी जगह जहाँ ऐसे धंधे होते हैं वहाँ पुलिस लगती है। तो उन्होंने सोचा, इसलिये यहाँ पुलिस है। अन्दर गये तो लोगों ने कहा, 'साहब, आपको कोई कम्प्लेंट है ?' उन्होंने कहा, 'नहीं, वो जरा हमको देखना है' इन्होंने कहा, 'क्या ?' 'अब आप समझ लीजिये, जो बात है उसको ।' इन्होंने कहा, 'आखिर क्या बात है?' उन्होंने कहा, 'साहब, क्यों मज़ाक कर रहे हो। जिस चीज़ के लिये जगह बनी वहीं 5 हम आये हैं।' वो कहने लगे, 'तो आईये, सीधे हवालात में!' और कहने लगे, 'हवालात में आपको किस ने पहुँचा दिया?’ ऐसे उनको बेवकूफ़ बनाया जाता है। ये जो अपनी विषय की ओर दौड़ने की युक्ति है, ये आदमी को चालाक बनाती है। क्योंकि उसको छुपाने के लिये आदमी जरूर चालाक बनता है। विषय की ओर दौड़ने की अपनी जो प्रवृत्तियाँ हैं बार बार उसी की ओर प्रवृत्ति दौड़ती है। रियलाइजेशन के बाद ठीक होता है और देख सकते हैं कि अरे वा, बेवकूफ़ की तरह चले जा रहे हैं वहाँ पर । कहाँ चले जा रहे हैं? अपनी ओर हम देख सकते हैं। अपनी बेवकूफ़ियाँ देख सकते हैं। अपने साथ खिलवाड़ भी कर सकते हैं। अपने साथ नटखटपना कर सकते हैं। बहुत अपने साथ खेल कर सकते हैं। देख सकते हैं, किस बेवकूफ़ी में हम फँसे हुये हैं। तो भोला आदमी जो होता है वो अलिप्त हो कर के देखता है मज़ा, 'क्या अजीब हालत है साहब | समझ में नहीं आता है।' ये भोलेपन की निशानियाँ है । भोला आदमी जो होता है उसका चित्त कहीं ऐसा दौड़ता है। वो अपने भोलेपन में अन्दर है। जैसे छोटे बच्चे, उनको अगर आप किसी कैब्रे डान्स तो छोड़िये, आप किसी व्यक्ति से मिला दीजिये तो जोर जोर से रोना शुरू कर देते हैं। उनके बाल वाल देख के एकदम रोना शुरू कर देते हैं। आप अगर कैब्रे डान्स में छोटे बच्चे को ले कर जाईये, बहुत जोर से रोते हैं। आप कोशिश कर के देखिये, किसी समझदार बच्चे को ले जायें, ३-४ साल के बच्चे को तो वो जोर जोर से रोना शुरू कर देगा कि ये क्या है? बच्चे की आप हालत देखिये, कि अगर उसके सामने कोई भी विक्षिप्तता होती है तो इसकी ओर वो पहले रोने लग जाता है। और या तो उसको समझ नहीं आता है कि ये क्या है ? या दूसरा काम, कोई भी बात वो सीधी सीधी कह देता है। उनमें कोई लगाव, छुपाव, दुराव कभी नहीं होता। ऐसे बच्चे हर एक चीज़ को देखते रहते हैं। जैसे एक बार किसी ने कहा अपने बच्चे से वो साहब आ रहे हैं, लेकिन खाते है घोड़े जैसे। अब उन्होंने वो सुन लिया। अपनी पत्नी को उन्होंने कहा, उनसे तो कहा नहीं कुछ। जब वो आ के बैठे तो ये उनकी शकल जा के देखें बार बार । उसके बाद कहने लगे, 'मम्मी, ये तो घोड़े जैसे नहीं खाते। कुछ भी कह रहे, घोड़े जैसे खाते हैं।' मानो, उसमें उनको कोई ये नहीं लगा, कि भाई, मैं कोई बुरी बात कह रही हूँ, अच्छी बात कह रही हूँ। किसी को दुःख देने वाली बात है। सीधी सीधी बात उन्होंने कह दी। और बच्चों में ये समझ आ जाती है कि ये किस तरह से कर रहे हैं, उनका क्या ढंग है। सब की नकल उतारते हैं। बच्चों में आदत होती है। नकल उतारने वाला आदमी भी एक तरह से भोला होता है। क्योंकि वो भी नकल तभी उतार सकता है, जब कि वो साक्षी हो और खास कर वो अपनी नकल उतार सके ये सब से बड़ी बात है। जो आदमी अपने ऊपर हँस सकता है वो सब से भोला आदमी है। अपनी बेवकूफ़ी की है, हँसो । अपनी ओर नज़र करें कि क्या साहब दौड़े चले जा रहे हैं। क्या कहने। तोंद आपकी निकली हुई है, बाल आपके चले गये हैं। जा कहाँ रहे हैं आप। जेब में पैसा नहीं है आप की नज़र कहाँ तक जायेगी। बार बार आपकी नज़र कहाँ उतरेगी । रियलाइजेशन के बाद जो आदमी इतनी लगन से आता है वो सज्जनों की संगति को जोड़ता है। और जो आदमी गहराई में नहीं उतरता वो अपना बहाना ढूँढता है और दुर्जनों की संगति में घूमता है। दूसरी संगति में घूमेगा वो हजारों बहाने बतायेगा कि आना नही हो सकता। और जिनको आना है देवळे साहब से बतायें। लेकिन देवळे साहब को कहीं जाने का है। रस्ते में चलते 6 चलते मैंने यही खोज लिया कि देवळे साहब हमारे यहाँ बैठ गये मोटर में और फिर चल दिये। उनका कुछ प्रोग्रॅम था। वो बैठ गये मोटर में और चले आये बाहर । उनको तीन घंटा हमने लगाया। क्योंकि इसमें जो मजा आ रहा है और किसी चीज़ में नहीं। लेकिन जब इसका मजा ही पूरा नहीं है तो चित्त जरूर बाहर दौड़ेगा। 'आज कहाँ गये थे ? पार्टी में गये थे। क्यों साहब ? जाना ही पड़ा, इसमें ऐसा था, उसमें ऐसा था ।' और भोले जो यहाँ रोज आते है। उनका क्या होगा? क्योंकि सज्जनों की संगती में विषयों की ओर चित्त जाता ही नहीं, उलझता ही नहीं। भागो, प्रोग्रॅम है भागो। यहाँ सज्जनों का मेला लगता है। सत्संगती में बैठ के जो मजा आयेगा, वो वहाँ क्या मजा आने वाला है। यहाँ इतनी चली आ रही है, जो दिखायी नहीं देती। जो उनको दिखायी नहीं दे रही लेकिन आ रही है। यहाँ पे बरस रही है, वहाँ हम खींचे चले जा रहे हैं। उस परमात्मा की बेसुमार, बड़ा मज़ा आयेगा। माताजी आये चाहे नहीं आये। बैठ जाओ। दूसरे रियलाइज्ड आदमी को मिलने में जो मज़ा आता है, आहाहा, आ गये बड़ा मजा आयेगा। लेकिन जो लोग अभी पूरी तरह से उतरे नहीं हैं वो अभी भूतों की तरफ ही गये हैं। 'करना पड़ता है, जाना पड़ता है। मिलना पड़ता है।' कुछ जाना नहीं पड़ता है, करना नहीं पड़ता है और देखना नहीं पड़ता है। आपका चित्त अगर यहाँ है तो आपको आना ही पड़ता है। कल अगर आप शराबी हैं तो शराबखाने में ही पाईयेगा और अगर आप रियलाइज्ड है तो ..... (अस्पष्ट) और जगह जाने से मतलब। जब मज़ा का सारा अर्थ ही यहाँ पर है, तो और जगह घूमने से मतलब! हर वक्त चिल्लाते ही चिल्लाते हैं। शराबी लोग चिल्लाते हैं सारा वक्त। शराब न पी, ये न कर, वो न कर। वो छोड़ता है क्या अपनी बोतल । घर में नहीं तो बाहर, बाहर नहीं तो दोस्त के घर में। सीधे सीधे रमी खेलने वाला आदमी देखिये जो रमी खेलता है। इसकी बीबी चिल्लाने लग गयी तो वो अपने घर में जा के खेलेगा। वहाँ पे चिल्लाये तो उधर जा के खेलेगा । वहाँ पुलिस चिल्लायी तो और कहीं जा के खेलेगा। ये छोड़ने वाला नहीं। इसलिये लत नहीं लगनी चाहिये। अगर लत लग गयी तो कहीं भी मज़ा नहीं आता। यही बात, यही सोचना, यही बोलना, यही करना । लोग कहते हैं कि, 'तुम्हारी माताजी से हम बोअर हो गये।' लेकिन आप बोअर नहीं होने वाले। आप कहें, चलो तो, देखो तो क्या बात है। कोई किसी की भी बात कहेगा तो ये कहेगा कि भाई पहले चलेगा। पहले उसे देखिये। सब की बात तो बाद में होती रहेगी। हमने पाया है, हमने जरूर जाना है। और सारे घर वालों को हम बदल दे। घर वाले तो आपको पसन्द कर नहीं सकते जब तक वो लोग पार नहीं। ये कोई भी गुस्सा होने की बात नहीं। एक बार हमारे यहाँ ऐसा ही हो गया कि एक साहब हमारे पर गुस्सा हो गये कि, 'आप बार बार जाती हो । आपने सामान रखना शुरू कर दिया, तो हमने भी सामान रखना शुरू कर दिया ।' 'देखो साहब, आपको जिस चीज़ की शौक है आप करें। हमें जिस चीज़ का शौक है हम करते हैं। वो तो आप चाहे रोके, चाहे नहीं रोकिये, हम को तो जाना होगा ही। चाहे हम यहीं भी बैठे रहें चित्त तो हमारा वहीं है।' जब इसका मज़ा लग गया। अब नाटक वाले देखिये। जिनको नाटक का शौक होता है। चाहे जेब में पाँच रुपया नहीं हो तो तीन रुपये का टिकट ले कर भी जायेंगे नाटक देखने । हर जगह आप अपना पैसा दे कर के पूरा शौक पूरा करते है, यहाँ बिन पैसे का शौक । क्या मज़ा आता है। दूसरों में बँट जाने में जो मज़ा आता है, और किसी चीज़ में नहीं। लोग बाहर रुपया, इसको दान करो, उसको दान करो, दान कमिटी बनायेंगे। बाहर जा के, बांग्लादेश जा के दान करेंगे। अरे, यही दान हो रहा है बस् ! 7 एक छोटासा बच्चा है। उसको लग गयी .... (अस्पष्ट) 'लागी नाही छूटे' पर लगनी तो चाहिये। जबान में लगती नहीं। क्योंकि आपका दिल और आपकी इच्छा चाहिये। जिसका मज़ा है वो तो गहराई में जा कर के लो और वो तभी होता है कि आदमी इतना भोला हो और वो अपनी धुन में चलता रहे। वो भोलेपन से ही बच जाता है। उसका जो भोलापन है उसको बचाता है। और आदमी भोला तभी होता है जब परमात्मा के हवाले है। क्योंकि उसका सब प्लैनिंग करने वाला वो बैठा है। सब देखने वाला वो बैठा है। बच्चा क्यों भोला है? क्योंकि वो उसकी माँ के हवाले है। अपने पास और भी आयुध है लोगों को ट्रीट करने के। आप तो जानते हैं बहुत सारे आयुध हैं। कोई बिगड़े, नाराज़ हो, घूमाओ। लेकिन पहले अपने ऊपर घुमाईये । हो सकता है कि आप भी अपने दिमाग के अभिपारित हो । अपना ही दिमाग आपको समझा रहा है, ये नहीं हुआ तो ये नहीं नहीं ऐसा नहीं । जब बिल्कुल सब कुछ शांत हो जायें। मुंबई में कोई सिनेमा न चलता हो, कोई पार्टी न होती हो, कोई शादी न होती हो, घर में कोई मेहमान न हो, ऐसा दिन तो मेरे ख्याल में आज तक न आयें। तो फिर वैसा ही आप पायेंगे । जितनी अन्दर से मुमुक्षुता आपके पास खींचेगी और उसको देखना पड़ेगा। है अन्दर। उसके बगैर आप पार होने वाले नहीं। पिछले जनम में और मेरे चले जाने के बाद, खास कर, मैं जाने वाली नहीं, एखाद-दो महिने में चली जाऊँगी। जब तक हिम्मत है तब तक .... (अस्पष्ट) । देखिये अब क्या होता है? लेकिन आप लोगों में से ऐसे कितने लोग हैं...। इस बात को कितने लोग सोच रहे हैं, कि हमारे हाथ से हजारो लोगों का कल्याण होने वाला है। हमारे हाथ से हजारों लोग पार होने वाले हैं। और हम जो सीमित, अभी थोड़े से हैं, वो कहीं अधिक एक एक आदमी हजारों आदमी होंगे। आज ही मेरी बातचीत हुई थी ....साहब से | एक लक्ष्मणजी महाराज है वहाँ । कश्मिर में है, बड़े माने हैं, सबकुछ। मैं मानती हूँ। इतने माने हुये हैं, वो भी आपके जैसे सेल्फ रियलाइज्ड और वो कुण्डलिनी जागृति नहीं जानते। वो पार करना नहीं जानते। वो पढ़े लिखे आदमी है, सिर्फ पार है। उस पे भी उन्होंने अपना मत छोड़ा है कि सारे दुनिया में लोग इनसे मिले, उनसे मिले । उनसे मिल के क्या खाक होने वाला है। वो क्या कुण्डलिनी की जागृती जानते हैं? कुछ भी। ये उँगलियों से अगर कुण्डलिनी की जागृती करना सिखा दे, तो हम जो कहे वो करें । पर उनका नाम है, क्योंकि वो अपना मत बना के बैठे हैं। झंडा गाड के बैठे हैं। सब दुनिया उनको मिलने आती है। (अस्पष्ट) आप उनसे पूछिये कि किसी के चक्र बताईये तो मैं जो कहें वो मानू। अगर वो बता दें कि किस का चक्र कहाँ पकड़ा है, इतना भी बता दें या ये भी बता दें कि इस आदमी की जागृति हुई है कि नहीं तो मैं जो कहें वो करूं । इन्होंने मुझे देख कर ये भी नहीं पहचाना कि मैं रियलाइज्ड हूँ कि नहीं। तब फिर आगे की बात करें। और तुम लोग क्या पहचान लोगे कि नहीं? मैंने उनको देख कर के पहचान लिया कि इनके बापदादाओं से ले कर के और जन्मजन्मांतर के हजारों साल का सारा इतिहास सामने खुल गया । और इन महाशय जी ने अभी पहचाना भी नहीं और वहाँ सारी दुनिया उनको जानती है। बंबई शहर तक उनका नाम है, वहाँ नाम है, वहाँ नाम है। और यहाँ जो हजारों कितने ऊँचे लोग यहाँ बैठे हैं उनका कुछ भी नहीं। क्यों? क्योंकि ये संसारी लोग है। संसार में बैठे है। लेकिन जिस दिन आपने संसार ही सब कुछ समझ लिया सब व्यर्थ हो गया हमारा जीना ! आप इस संसार से उठ कर के जब तक आप पूरे सृष्टि में उतरेंगे नहीं और जब तक आप इसमें पूरी तरह से अपना ध्यान लगायेंगे नहीं तब तक आपका देना बिल्कुल बेकार हो गया। मैं यही सोचूंगी कि पत्थर के थे। एक 8 , एक आदमी एक महानुभावों से बड़ा है जिनके हजारों कॉलनियाँ हैं। इसी से ये सोच सकते हैं कि वो ये नहीं पहचान पायें कि मैं रियलाइज्ड हूँ या नहीं। ये छोटा बच्चा भी बता देता है कि रियलाइज्ड है। ऐसे भी लोग हैं जो रियलाइज्ड तो छोडिये जिनकी जागृती भी नहीं, इसके पीछे में झेंडा लगा के बैठे हैं। मारे ये लगा लगा के बैठे हो, 'ये साहब बहुत बड़े आदमी है।' कल अगर मेरे सामने आयें तो हूँ, हूँ होगा उनका और कुछ नहीं और आपके सामने भी ऊँ, ॐ होगी। ऐसे हैं वो लोग ! जरा सा हाथ आप कर दें कुण्डलिनी उनकी बढ़ा चढ़ा के ऐसे देखते रहें। आप लोग जानते हैं, इसलिये नटखटपना आ जाता है। भोला आदमी सब कुछ जान जाता है। इसलिये वो नटखट हो जाता है और ये नटखटपना हम यहाँ करते रहते हैं। आपने देखा है आप लोग थोडे थोडे नटखट हो गये हैं। थोडे थोडे आप नटखट हो गये हैं। जैसे किसी के ऊपर से भगाते हैं, उडाते हैं और हटाते हैं, और क्या क्या मज़ा आप करते हैं। कितना मज़ा हम लोग करते हैं। लेकिन जो अपने को ज्यादा अकलमंद समझे बैठे हैं और अपने को बड़े भारी आदमी समझे बैठे हैं और जो कहते हैं कि हम झंडा गाड़ के बड़े बड़े साधुबाबा हो गये। आपको कोई जरूरत नहीं ऐसी झूठी बात पर विश्वास करने की जब आपके पास सच्चाई है। आपके हाथ से आप जानते हैं। जब जान लिया किसी आदमी को कि ये ऐसा तो खत्म काम। जब वो आपके नीचे ही हैं तो आपका क्या मतलब है उसके सामने झुकने का! उसकी तरफ़ दौड़ने का! इसका मतलब है कि रियलाइजेशन में आप अपने चित्त पे ध्यान नहीं देते। चित्त पे जरा भी ध्यान आप दें, तो देखियेगा की चित्त विषय की ओर दौड रहा है। इसके मेस्मरिजम में या उसके तड़कभड़क में, उसकी आर्टिफिशिआलिटी में है। क्योंकि भोला आदमी आर्टिफिशिआलिटी जानता नहीं। वो सब के सामने अपनी सादगी पसंद है। उसमें कृत्रिमता बिल्कुल नहीं होती। सारी कृत्रिमता एकदम गिर जाती है। यानी ये भी कृत्रिमता कि हम कुछ हैं, फलाने हैं हम, हिंदू हैं, मुसलमान हैं, सब कृत्रिम है। हम क्या हैं, आप समझ लें । हम सिर्फ आत्मज्ञ हैं, रियलाइज्ड हैं। हम एक ही धागे के बंधे हुये जान हैं और लहर के ऊपर में साथ साथ हँसते है और साथ-साथ रोते हैं। सब एक साथ। मैं किसी को कहती हूँ कि आओ, शुरू शुरू में ऐसा है । शराबखाने का भी एडवर्टाइजमेंट देना पड़ता है, वहाँ एक ढोल पीट के आदमी कहता है, 'आओ, आओ, यहाँ शराब सस्ती मिलती है।' एक बार आओगे, थोड़ा चटका लगेगा, फिर ठीक होगा। चटका लगने की बात है। सारे प्रश्न सॉल्व हो जाते हैं। शराबी से पूछो। मैं तो ऐसे ऐसे गरीब लोगों को शराब पीते देख के बड़ा दुःख होता है। हमारा नौकर है। वो थोडी शराब पीता है। लंडन जाने का था तो मैंने कहा, 'तुम्हारा तो शराब के बिना चलता नहीं। मेरे घर में शराब चलती नहीं।' तो कहने लगा कि, 'माताजी, देखिये भाई, तो बात ये है कि लंडन में मैं तो पिऊंगा। मैंने कहा, 'तो आप यहीं बैठिये ।' कहने लगा, 'रोकना बहुत मुश्किल जायेगा मुझे।' मैंने कहा, 'रूकवा मैं दूँ, लेकिन तुमको प्रॉमिस करना होगा कि तुम मेरे साथ चलोगे ।' कहने लगा, 'माताजी, ले जाओ तो ले जाओ लेकिन शराब मैं तो वहाँ पिऊँगा।' सच्चा आदमी है। मैंने कहा, 'मेरा तेरा चल नहीं सकता। (अस्पष्ट) तू यही रह । सीधी बात है। तेरे को पीना है तो वहाँ नहीं चल सकता। अगर तेरा काबू होता है...।' 'मेरा काबू नहीं।' स्वयं कहें कि, 'मेरा काबू नहीं। अब मेरा काबू कहाँ रह गया। अब तो मैं इसी में बहाऊँगा।' धीरे धीरे देखना घरवाले भी आपके व्यवहार के लिये...। जो लोग महाकंजुष होंगे वो खुद देखेगें कि इतनी पैसों की चिंता है। पहले एक पैसे का हिसाब, दो पैसे का हिसाब | इसको इतना दिया, इससे इतना लिया। थोडे दो-चार रुपये छोड़ो। टॅक्सी वाले से झीक झीक | सब भगवान के हवाले है। धीरे धीरे उस आदमी में इतना भोलापन आ जाता है। पूरी तरह से वो भोला 9 हो जाता है। बिल्कुल भोला । देखिये छोटा बालक होता है। उसका सब कुछ माँ पर है, वो रोता है तभी जब उसे भूख लगती है तब उसकी माँ उसको दूध देगी क्योंकि वो बच्चा पूरी तरह से अपनी माँ पर है। जो बच्चा थोड़ा सा अपनी माँ ..... 'तू कमा और खा ।' लेकिन जो बच्चा पूरी तरह से माँ पर है, वो पूरी तरह से अपने माँ पर थोड़े दिन है, उसको कोई चिंता नहीं। उसको टाइम पे दूध मिल जायेगा, उसको टाइम पे देखा जायेगा। जब एक साधारण मनुष्य की माँ इतना करती है तब सारे संसार की माँ और सारे संसार का जो पालनकर्ता है वो कितना हमारा विचार करता है। मैंने बहुत बार आपसे कहा है, कि रियलाइजेशन में आप से दिव्यता है। दिव्यता जो है देखने वाले देव ही आप के साथ लगे रहते हैं। देवतायें आपके साथ हैं। ये आपको पता नहीं कि हर एक ऊपर पचासों देवता मंडरा रही हैं। पचासों देवता आपके रक्षण करेंगे। लेकिन जब देखेंगे कि आप अपने से दगा कर रहे हैं, छोड़ कर के भाग जायेंगे। रुकने वाले नहीं। आपकी दिव्यता से खो जायेंगे । वाइब्रेशन का रुक जाना ही दिव्यता का खो जाना है। लेकिन जहाँ वाइब्रेशन्स आते हैं वहीं उसकी सुगन्ध फैलती है। वहीं देवता है। वहीं देवता लोग आ कर के आप पर मंडरा रहे हैं। जैसे सुगन्ध बंद हो गयी भाग गये। उनका काम ही ये है, जैसे फूलों पर मधुकर मंडराते हैं, ऐसे देवताओं का काम है आपके ऊपर मंडराना। और आप ही का काम है ये। मनुष्य को ही ये कार्य करना है और मनुष्य जितना अपने को भोलेपन रखे, जितने सादगी में रखे और सोचते रहे कि ये काम में करने में हम क्या चालाकी करते हैं। जरा देखा ना, चले चालाकी करने । हँसी आयीं । वाह, वाह क्या चालाकी की । एकदम उसका पता चल जायेगा | आपको फौरन पता चल जायेगा कि इसका और इस चालाकी स्वभाव का हमारा क्या इलाज है। लोग आ के बड़े चालाकी से बात करते हैं। हम भी इतने भोले बन के... सुनाते रहो, सुनाते है। क्या चालाकी कर लेंगे। आप हम को दे ही क्या सकते हैं जो हमारे साथ बात करें। कोई भी आदमी चालाकी से कोई भी पंजा हमारे ऊपर डालता है हाथ नहीं लगने वाला। वही सादगी और भोले पन से तो हम मिट जाते हैं। मर जाते है ऐसे आदमिओं पर जो भोले पन के हैं। इसलिये तो प्राण अपने लगा देंगे कि जो भोला है । और ऐसे चालाक आदमी जो अपने को बहुत समझते है एक दिन उनको भी पता होता है कि सारी चालाकी आ कर उनके ही खोपड़ी में बैठे गयी । सारी चीज़ हमारी पॅराबोली से .... जायें, जिस तरह से जाती है वहीं रह जाती है। हम चालाकी दूसरे से करते हैं और चालाकी हमें खा जाती है। एक आदमी दूसरे से चालाकी करता है वो समझता है, वो भी चालाकी करता है । इसलिये पता नहीं दोनों के दोनों धड़ से गिर जाते हैं। ये चालाकी करने में ही हमारा .... और ये सारी चालाकी आती कहाँ से है। ये चालाकी इसी तरह हमारे अन्दर आती है क्योंकि हम लोग पूरी समय डरते रहते है। यहाँ डरने का कोई सवाल ही नहीं। समझ लीजिये किसी का कोई चक्र पकड़ गया तो हम डरते नहीं हैं। हमारे पास कोई गड़बड़ हो घर में तो हम किसी पड़ोसी को जा के नहीं बतायेंगे। छुपा लेंगे घर के अन्दर, कि 'भाई हमारी लड़की का ऐसा हो गया। किसी से न कहना ।' क्योंकि हम दूसरे से डरते हैं। ज्यादा से ज्यादा अपनी बीबी से बतायेंगे । और जब दूसरा ही हमारा अंगप्रत्यंग हो गया तब इस में डरने की कौनसी बात है! ये तो सभी हमारे हो गये हैं। कोई भी बात हो गयी, हमारे अन्दर कोई भी दोष हो गया, हम जाहीर कर देते हैं, भाई, हमारा पकड़ा है। इसे निकाल दो । हटा दो। अब हृदय चक्र का किसी का पकड़ना । ऐसे अगर किसी का हृदय चक्र पकड़ा है तो मेरे यहीं पे मार दें । 10 लेकिन आप में से किसी का हृदय चक्र पकड़ा तो, 'माताजी, हमारा हटाव । निकालो अभी ।' निकालना ही पड़ेगा। क्योंकि अपना जिसे हम दोष समझते हैं जो हम हैं वहीं खत्म होता है। हम हैं, हमारे चक्रों के दोष है वो हमारे नहीं क्योंकि हम अविनाशी, निष्कलंक | वो इन चक्रों के दोष हैं। चक्रों के दोष निकालने के लिये हमें क्या डरने की कौनसी बात है। हम तो अविनाशी हैं, निष्कलंक हैं। असंग में खड़े हुये हम अलग हैं। और ये चक्र अलग हैं। इन चक्रों में खराबी आ गयी, ठीक है, हम नहीं निकालेंगे तो दूसरा हमारा हाथ निकाल देगा। हमारे यहाँ तो इन साहब को नहीं पता होगा। ऐसा भोला आदमी, आप ही लोग कितने भोले हैं, जो आ कर कहते हैं कि मेरा ये पकड़ गया, मेरा ये पकड़ गया। मेरा ऐसा हो गया, मेरा वैसा हो गया। ये भोलेपन है। कोई अपना दोष बताता है किसी से कोई कभी नहीं कहेगा कि मेरा दिमाग खराब हो गया है। अब परसों .... इनका दिमाग पकड़ गया। तो आये पकड़ के हाथ मेरे पास। कहने लगे, 'माँ, मेरा सिर पकड़ गया।' और अभी भी सब से बताते हैं कि 'मेरा सिर पकड़ गया ।' पकड़ जाता है। दिमाग बौखला जाता है कभी कभी। लेकिन इसको आदमी दोष नहीं समझे। क्योंकि जो हम हैं वो अहम् से हट के वो दो हैं। ब्रह्म जो है वो अलग है और वो अलग है देख रहे हैं, कि हम वो नहीं है जिससे हम आयडेंटिफाय करते हैं, जिससे हम तादात्म्य पाये हैं। लेकिन हम उसके तादात्म्य पड़ गये हैं, जो अविनाशी, निष्कलंक है। जिससे कलंक नहीं। सर्वशक्तिमान, निर्भयता में, ज्ञानपूर्ण, प्रेममय अन्दर खड़ा है। ऐसे अपने स्वरूप को देखने वाला आदमी क्यों चालाकी करने जायेगा? कभी नहीं करने वाला। आदमी जो डरपोक होता है, घबराता है, जिसको सारी दुनिया लूट रही है वो चालाकी करेगा। जो खुद ही राजा बना के खड़ा हुआ है वो किस से चालाकी करेगा। जिससे किसी से लेना नहीं वो क्यों चालाकी करेगा? आप अपने पर देखें कि जब भी आप कोई कार्य करते हैं, कभी कभी तो लोग कहते हैं कि, 'माताजी, हम आपके लिये चाँद-सितारें तोड़ लायें।' भाई तोडो, इतना बड़ा लंबा चौडा आकाश है। लेकिन जब करने पे आता है तो देखते हैं कि छोटे बातों पर फिसल जाते हैं। छोटी सी बात पे फिसल जायें। मुझे क्या ? रिलेटिवली सब चीज़ चलती नहीं। किसी न किसी चीज़ के साथ जुड़ के चलती है। ये बढ़िया है, कि मेरा लड़का ठीक हो जाये तो मैं करूँ । बस, गये आप काम से । 'मेरा घर-द्वार ठीक हो जाये तो मैं करूँ। मेरी लड़की की शादी हो जायें तब मैं आऊंगा ध्यान में ।' गये आप काम से । न शादी होगी न आप आयेंगे। वो कहते हैं न 'सौ मण तेल हुये न राधा न सिंह ।' वो बात है। ऐसे संकल्प, विकल्प वही मन करता है जो पूरी तरह रियलाइजेशन का मजा नहीं लेता। ये हो तो वो, वो हो तो वो, इसका क्या मतलब है? है तो है ही, बहुत है। जो है तो इसी वख्त है, जो पाने का है इसी वक्त है, हर क्षण पाने का है। हर मिनट पाने का है। और जो सीधा, भोला भाला आदमी हर क्षण...., ऐसा आदमी सब को प्यारा लगता है। किसी को इसलिये प्यारा लगता है कि वो सोचें हम उसको बुद्ध बना रहे हैं। किसी को इसलिये प्यारा लगता है कि सोचें इसे हम एक्सप्लॉइट कर ले दो-चार रुपया निकाल के। किसी को इसलिये भी प्यारा लगता है कि ऐसे आदमी की कंपनी बड़ी सुहानी होती है। उसकी बातें बड़ी प्यारी होती हैं। चोर, ठगों को बच्चे इसलिये अच्छे लगते कि गले की माला खींच लेंगे। उनके कमर से धन निकाल लें। उचक्कों को बच्चे इसलिये अच्छे लगते हैं कि ले जा के बजार में बेच डालेंगे, उनसे पैसा कमाएंगे। लेकिन किसी गंदे आदमी को बच्चे इसलिये पसंद है कि उनकी कंपनी में ऐसा लगता है कि जैसे फूलों के साथ आप रह रहे हो। 11 उनके साथ आप भी बच्चे हो जाते हैं, इसलिये बच्चे बड़े प्यारे लगते हैं। अपने तो आप पर निर्भर हैं, लेकिन बच्चा तो बदलता नहीं। चाहे वो चोर-उचक्का हो, चाहे वो किस का हृदय हो, सब के लिये वो स्वर ही है। और जब तक वो स्वर लूट नहीं, जब तक उसमें अपने अन्दर सुगन्ध लुटाने की शक्ति नहीं तब तक उसको कौन देखेगा। लूटना ये कोई लूटना नहीं है। लेकिन अपनी सुगन्ध लुटाने की शक्ति जो खो देता है वो जरूर लूटता है। और दिमागी जमाखर्च होता है। माताजी ने कहा, 'वहाँ आओ ध्यान में ।' 'मैं इतने बड़े घर की बहू हूँ। मैं वहाँ जा के कहाँ बैठूंगी जमीन पर। वहाँ तो सब लोग सर पे हाथ रखते हैं।' इतने बड़े घर की बहु आज है। कल क्या थी आप? और इतने बड़े घर की बहू हो कर भी आपको आनन्द नहीं मिला और आज जमीन पर बैठ कर आनन्द मिलता है, तो फिर स्वीकार्य करना चाहिये। इतनी भी अकल आप के अन्दर नहीं है तो आप मत आईये। भोले आदमी में अहंकार नहीं है। उसको अहंकार होता ही नहीं। अहंकार चीज़ क्या होती है उसको वो मालूम ही नहीं। उसको बोलो जमीन पर बैठ जाओ, बैठ जायेगा। उसको बोलो यहाँ बैठ जाओ, बैठ जायेगा। उसका कभी भी अहंकार नहीं दुखता है। आप लोगों का अगर कहीं भी अहंकार दुखे तो समझना चाहिये रियलाइजेशन थोड़ा कच्चा है। दोनों पकड़ा है आ जाना यहाँ पर बिठाने के लिये। माताजी, चीज़ पकड़ गयी। छोटी सी चीज़ में लोगों का अहंकार दुख जाता है। जैसे अभी ट्रेन में बैठे, मेरे पास एक आदमी बैठ जायेगा इधर, दूसरा उधर बैठ जायेगा। वो बोले हम को पास में नहीं बिठाये । ऐसी छोटी छोटी चीज़ से आपका अहंकार टूटता है, तो ये सोच लेना चाहिये कि रियलाइजेशन में हम अभी पूरे खरे उतरे नहीं हैं। आपने मुझे देखा है। मुझे कुछ समझता नहीं है। हालांकि मैं बहुतों का अहंकार दुखाती हूँ। लेकिन मैं एकदम बेवकूफ़ हूँ। मुझे प्रोटोकॉल बिल्कुल नहीं आता। कुछ भी प्रोटोकॉल मुझे कतई नहीं आता। और अब कभी आने ही नहीं वाला, कि उनको ऐसा करना चाहिये, उनको ऐसी बात करनी चाहिये। ऐसा नहीं करना चाहिये। मैं तो कभी किसी को गले से भी लगा लेती हूँ, कभी किसी को झाड़ भी देती हूँ। लेकिन जब तक मेरे अन्दर प्रेम करने की शक्ति है तब तक मेरा कुछ नहीं जाने वाला। क्योंकि प्रेम से बढ़ के कोई प्रोटोकॉल ही नहीं सिखाने वाला बढ़िया । वो कभी कभी आश्चर्य में रह जाता है। अभी मैं वहाँ गयी थी । वो लोग पहचानते नहीं थे। वो लोग रोने लगे..... उनको मैंने गले से लगा लिया। वो भी आदमी भौचक्का रह गये कि इस औरत में क्या है। वो रोने लग गये यहाँ पर । जो सोचा जाता है वो चालाकी है। क्योंकि हम ऐसा सोचते हैं। कहेंगे, कहने दो। क्या कहेंगे? जो मैं हूँ, मैं ही रहूँगी । किसी के कहने ना कहने से कोई बदलने नहीं वाला । किसी के बकने से कोई बदलता नहीं। कोई कुछ भी बकता रहे, बकने से कुछ बदलता है? जो आप हैं वो आप ही हैं। लेकिन इतना जरूर होना चाहिये की आप अपने पे सच्चाई रखें। आप अपने साथ छूट न बरतें। आप अपने दिमाग में चक्कर न लगायें। चालाकी न करें। असल में हम अपने साथ अपने को ही ठगते रहते हैं सुबह से शाम तक। देखते रहिये आप किस तरह से करते रहते हैं। जब आपका मन बतायेगा, हाँ, मैं बड़ा ठगी हूँ। अपने को ठग रहा हूँ। अपने को ठग रहा है । आज सभी लोग करीबन पार हैं यहाँ। एकाध दो लोगों का कुछ रुक गया। अब जब वाइब्रेशन्स रुक गये हैं तो उसको चला लेने का तरीका आप ही लोगों ने निकाला है। जैसे फोटो को ऐसा करना चाहिये, किस तरह से कहाँ पर क्या देना चाहिये। कैसे पहचानना चाहिये कौन सा चक्र बैठा हुआ है। जैसे कि आपके हाथ पर वाइब्रेशन्स नहीं 12 आ रहे हैं तो कोई न कोई उँगली कट हुई है। इससे आपको पता हो जाना चाहिये, जैसे ये बीच में जो हैं ये आपका नाभि चक्र। ये नाभि चक्र पे हैं। फिर ये जो चक्र है विशुद्धि चक्र | फिर ये चक्र आज्ञा चक्र और ये चक्र स्वाधिष्ठान चक्र। और ये आपका अनहत चक्र, जो सबसे छोटी उँगली पर है, क्योंकि नाजूक हैं न । और सब से भोला होता है। हृदय में जो वास करता है वो सबसे भोला होता है | हृदय बिल्कुल भोला भाला होता है। माने उनको ये भी होश नहीं रहता कि राक्षसों को उन्होंने वरदान दे के रखे है मुझे सताने के लिये। लेकिन है, भोले आदमी को ये भी होश नहीं रहता है, कि मैं किस को वरदान दे रहा हूँ। अपनी बीबी को उठा के दे दिया उन्होंने रावण को। ऐसे भोले शंकर जी हृदय में वास करते हैं तो उनको कौन ठग सकता है? शंकर जी को कोई ठग लेते हो। बीबी को ले गये, लेकिन बच गयी न उनकी बीबी । और वो जो भी देते हैं, वरदान देते हैं उससे ..... जरूर बच जाता है, वो उनके भोलेपन से ही। वो तो बेचारे अपना पूरा देते हैं आशीर्वाद ! लेकिन उसमें एक न एक कोई ऐसी गड़बड़ छूट जाती है कि जिससे वो मर जाता है आदमी। नरसिंह अवतार में आप जानते हैं। उन्होंने वरदान दिया हुआ था। ये पकड़ आ गयी तो मारे गये। रावण को वरदान दिया मारे गये। कंस को वरदान दिया था मारे गये। नरकासुर, महिषासुर सब मारे गये वरदान दिये हुये। ये वरदान का लूप होल भी शंकर जी के भोलेपन का ही भाग है और उनका जो नटखटपना है विष्णुजी में है। इसलिये उनका कॉम्बिनेशन अच्छा चलता है, शंकरजी और विष्णुजी में बड़ा बढ़िया कॉम्बिनेशन है। और जब तक वो बैठे हैं तो आपको चिंता की कोई बात ही नहीं। कभी आप शंकर जी के पास जाईये, कभी विष्णु जी के पास जाईये। लाइट बात है। बहुत सीरियस बात नहीं है ये। सीरियस नहीं बिल्कुल लाइट । अपने मन को एकदम लाइट रखे। अभी एरोप्लेन आये, उधर देखोगे, उधर कुछ आये उधर देखोगे, हर एक चीज़ को । एरोप्लेन हमारे यहाँ आता है हजारों बार। जितनी बार एरोप्लेन आयेगा सब बच्चे दौड़ कर के बाय, बाय करेंगे। समुंदर का पानी आता है दो बार । जितनी बार समुंदर का पानी आयेगा सब बच्चे दौड़ के जायेंगे, चिल्लायेंगे। कहीं भी कोई हलचल हो जाये, दौड़ गये। कहने का मतलब ये है कि जो भोला आदमी होता है, वो परमेश्वर के पास है। तभी वो भोला है। वो दिखने में ना इतना व्यवस्थित है ना कोई बात आपको चमत्कार दिखायेगी, ना उसे बुद्धिचातुर्य और ऐसा आदमी हमारे सहजयोग के लिये दोस्त है। जो भोला, सीधा-साधा, सरल होता है और अधिकतर मैंने ये भी देखा कि जिनियस लोग होते हैं, विद्वान वो बड़े भोले होते है। मुझे कभी कभी उनके भोलेपन पे ऐसा ये आता है, इतनी भोली जैसी बात करेंगे, कि लगता है कोई छोटा बच्चा है। इतने ज्ञानी पुरुष हो कर भी इतने भोलेपन से बात करते हैं कभी कभी आश्चर्य होता है। जो ज्ञान उन्होंने पाया है वो परमात्मा से पाया है। उनके भोलेपन की वजह से ही उनके अन्दर है । आप बात करें या न करें, ये मेरा मतलब नहीं है। लेकिन अन्दर कुछ हंसती-खेलती दुनिया है एक छोटे बच्चे में। अधिकतर बच्चों की कंपनी में रहा करो, बूढों की कंपनी में मत रहा करो। हमारे यहाँ कोई कोई ८० साल के भी लोग १८ साल के हो गये हैं। ऐसे लोगों की कंपनी में रहा करे कि जो बच्चों जैसे हैं। और अपना मन भी बच्चों जैसा साधा रखे. जिससे सहजयोग में बड़ी मदद रहेगी। आदमी आगे बढ़ता है। बच्चे जब मेरे पास पार होते हैं, मैं देखती हूँ वो बड़ी श्रद्धा से। मेरे दो बच्चे हैं, ग्रँड चिल्ड्रन, आप जानते हैं, दोनों पार ही हैं। रोज घर में झगड़ा, पूजा में भी जाने का है, मुझे लगता है दोनों मेरे गोद में बैठ जायेंगे इससे बेहतर है कि उनसे बता दूँ। रोज सबेरे उठ कर के, इतने 13 छोटे बच्चे, डेढ़ साल के, दो साल के, दोनों पैर के नीचे में हाथ रख कर के सर लगा के आधा घण्टा, कौन बच्चा रहेगा दूध पिये बगैर। वो किये बगैर उनका होता ही नहीं। जैसे की दूध से भी ज्यादा जरूरी है। बड़ी वाली को बता दी अब छोटी वाली कुण्डलिनी ...... और छोटी वाली जैसे ही उन पर हम हाथ रखेंगे। अब उस दिन नौकरानी को गरम गरम आता था तो 'जाओ, नानी के पैर पड़ो।' बड़ी वाली कहती थी। और उनको लगन है। नानी हम को पूजा में ले जाओ, नानी हम को पूजा में ले जाओ। छोटे छोटे बच्चों को जिनको बिस्कीट, चॉकलेट अच्छे लगते हैं, चॉकलेट नहीं चाहिये, कुछ नहीं चाहिये, बस पूजा में ले जाओ। जैसा बच्चे अपने माँ के लिये, दुनिया में कुछ भी उसको दो, माँ के लिये रोता है ऐसे ही हैं। कहने से नहीं होता। मैं कहूँगी शराब पिओ, शराब पिओ... | शराब तो मुँह में लग जायेगी लेकिन ध्यान नहीं लगने वाला। ध्यान नहीं लगने वाला आसानी से शराब लग जायेगी। ध्यान मुँह में जब लग जायेगा तब फिर मुझे कुछ कहना नहीं पड़ेगा। इसलिये आपकी इच्छा बहुत जरूरी है। आपकी इच्छा बहुत ज्यादा मान जायें, इसका बड़ा मान है और इसलिये आपको इच्छा करनी पड़ेगी। 'प्रभु, मुझे तेरी लगन लगे, तेरी' जैसे जैसे आदमी यही कहता जायेगा, धीरे धीरे ये चीज़ यही घटती है, यही बसती है, उतरता जायेगा अपने ही अन्दर, अपनी ही गहराई में। अपनी ही सुन्दरता में जायेगा। मैंने आपसे बताया था पहले भाषणों में, पहली चीज़ जरूरी है सहजयोग में वो है प्रेम। जो आदमी प्रेम नहीं कर सकता वो सहजयोग में उतर नहीं सकता। और प्रेम का भी थोड़ा बहुत आप से बताया था। उसके बाद मैंने कहा था, पवित्रता। जो आदमी पवित्रता की भावना नहीं रखता है, वो भी आदमी सहजयोग में उतर नहीं सकता। आदिकाल से पवित्रता की भावनायें चलती आयीं हैं। उन्हीं को ले कर मैंने कहा है । आज तीसरी बात बताना है, खास कर रियलाइज्ड लोगों के लिये कि रियलाइजेशन हमारा नया जन्म है। जब बच्चा जन्मता है, कोई भी बच्चा आप देखिये, संसार की कोई भी जाति का हो, चाहे वो जपानी हो, चाहे वो अफ्रिकन हो, चाहे वो अमेरिकन हो, उस बच्चे में एक चीज़ सब में होती है और वो है उसकी अबोधिता, उसका इनोसन्स। बच्चे की विशेषता है इसका इनोसन्स । इसलिये रियलाइज्ड आदमी तभी कहलाया जायेगा जब वो पूरी तरह से इनोसन्स में उतर जायें | वैसे भी जो बहुत चालाक लोग होते हैं, चातुर्य बहुत ज्यादा होता है और जिनकी बुद्धि बड़ी तल्लख होती है और हजार आदमिओं को ठग लेने में और झूठ बोलने में, चालाकी दिखाने में बड़े तरबेज़ होते हैं, ऐसे लोग सहजयोग के लिये बिल्कुल बेकार होते हैं। इसलिये जो लोग काफ़ी ठगाये गये हैं दुनिया में और सताये गये हैं, वो सहजयोग के लिये बहुत ठीक हैं। संसार में चाहे वो बहुत यशस्वी लोग न हो, लेकिन सहजयोग में वो बहुत ही ज्यादा यशस्वी हैं। अबोधिता एक बहुत बड़ी देन है। यह भी जन्मजन्मांतर की .. (अस्पष्ट)। आप देखियेगा बहुत से बुजुर्ग लोग भी बहुत ही अबोध होते हैं। बहुत भोलेभाले, बहुत सीधेसाधे और बहुत से छोटे बच्चे भी बहुत चालाक, धूर्त होते हैं। आजकल के जमाने में जो आदमी दो-चार पैसे ले के किसी को ठग मारे वो सब से बड़ा यशस्वी आदमी समझा जाता है। एक उदाहरण के तौर पे, जैसे एक हमारे रिश्तेदार थे । हम उनके घर गये, वो अपने को बड़े भारी आदमी समझते थे और वो बड़े विद्वान समझते हैं अपने को और बीवी बेचारी अनपढ़। उसको वो कुछ खास समझते नहीं। कहते हैं, 'बेवकूफ़ है, ये सारा मेरा पैसा लुटा देगी।' एक पहले दर्जे के कंजूष हैं वो बताने लग गये, देखिये, ये जमीन है, ये मकान है, ये पूरा किराये पर ले लिया और तीस साल पहले कर लिया था और इसका मैं सिर्फ सौ रुपया किराया दे रही हूँ। और ये सारी जमीन मेरे कब्जे में है और किसी की मजाल नहीं की हाथ लगाये।' बैठे हुये है आराम से। न कहीं जाते हैं, बैठे है जमीन पर दावा लगा कर के। और कहने लगे, 'मेरी उल्लू बीबी है। उसकी वजह से मुश्किल है। न जाने आज कितने महल खड़े किये होते। अब किराये के मकान में रह रहा हूँ।' उनको तीन- चार गाली देने में भी उनको कोई हर्ज नहीं था। लेकिन ये तो हमारे रिश्ते में जेठ होते थे, तो हम चुपचाप बैठे, अभी क्या बोले। इसके बाद उनकी जो बीबी थी वो बेचारी चुपचाप सुन के घर जाती। इतने में एक आदमी आया। वो कहने लगा, ‘साहब, देखिये, मैं घरमालिक की ओर से आया हूँ और घर मालकिन कह रही है कि आपके यहाँ इतने इमली के पेड़ है, उन्हें इमली बहुत पसंद आती है। तो आप कहिये, दो रुपया आपको देते है, आप हमें थोड़ी इमली दे दीजिये।' ये बिगड़ गये। ‘वा, क्या सोचते हो, दो रुपये की इमली कहाँ से आयेगी। पाँच रुपये दो तो देंगे।' काफी झकझक झकझक करी। उसके बाद अपने बीबी से कहा, 'खबरदार, ये आदमी ऊपर चढ़ने न पाये । यहाँ से इमली न उतारने पाये।’ उसके बेचारे के सौ रुपये के मकान में वो रह रहे हैं। उसको कम से कम कुछ नहीं तो तीन- चार हजार रुपये का नुकसान कर रहे हैं। बड़ा पैसे वाला है। दे सकता है सब कुछ। अब कहने लगे कि, 'ऐसा लॉ आने वाला है। ये घर मेरा होने वाला है। मेरा इस पे कब्जा होने वाला है।' इसकी वो इंतजार में है। बहरहाल जब वो चले गये तो उनकी बीबी ने उस आदमी को अन्दर बुलाया। कहने लगी, 'तुमको कौनसी इमली के मँगवायें हैं, वो तोड़ लो।' उसको देख के पाँच रुपये निकाल दिये, तो उसने कहा, 'पाँच रुपये क्यों दे रहे हो ? मुझी को देना है पैसा।’ कहने लगी, ‘अरे भाई, तुम चढ़े। तुम्ही ने मेहनत करी। इसके पाँच रुपये । और उनको मेरा नमस्ते कहना। जाओ। ले जाओ। भाग जाओ। और कल अगर और चाहिये तो आ जाना, लेकिन बारह बजे के बाद आना तब ये चले जाते हैं।' तो उसने ये जबाब दिया कि 'मैं तो इंतजार में था कि कब खिसकेंगे और मैं इमली तोडूंगा। मैं आपको तो जानता हूँ।' अब वो अपने को बड़े चालाक, होशियार समझते हैं। और सब उनपे हँसते हैं, 'गधे कहीं के।' इस तरह जो अकलमंद लोग हैं, जो अपने को बड़े चालाक, होशियार और झूठ बोलना, इसमें जो अपने को बड़े होशियार समझते हैं, वो सब होशियारी जो है जहाँ के तहाँ रह जायेगी । और ऐसों का सहजयोग नहीं होने वाला। और कल अगर संहार शुरू हो गया तो ये लोग पहले कटेंगे और भोला आदमी हमेशा बच जाता है। भोले आदमी में बड़ी विशेषता होती है। मैं स्वयं बहुत भोली हूँ। बहुत लोग मुझे कहते है। मेरे घर में तो सब लोग मुझ से परेशान हैं। मेरे भोलेपन से । हमारे घर में ऐसा हुआ एक दिन की हम दिल्ली में रहते थे तब कि बात है। बहुत साल पहले की । तो बजार गये थे। दिल्ली के बजार में। वहाँ एक आदमी आया बेचारा, मुझ से कहने लगा कि, 'बहुत चोट लग गयी है। और समझ में नहीं आता मैं कैसे करूँ? मैं कैसे जिऊँगा?' मैंने कहा, 'चलो, मोटर में बैठो तुम ।' उसको घर ले आये। घर पे लाये तो उसको हमने मलमपट्टी करी । और वैसे भी हमें जरूरत है मलमपट्टी करने की । हाथ फेरा, बिचारा ठीक हो गया। उसको मेरे लिये बड़ा प्रेम हा गया । और वो सुबह से शाम तक, चार बजे मैं उठी तो वो भी चार बजे उठ के सब मेहनत करी जो मैं कर रही हूँ। लेकिन हमारे घर के लोग बहुत व्यवहार चातुर्य । उनका कहना, 'पता नहीं, कहाँ से चोट खा के आया है। हो सकता है कोई डाकू होगा ।' मैंने कहा, 'होगा डाकू, अब तो बदल गया है न! अब उसका कितना स्वभाव बदल गया है।' मैंने कहा, 'उस पे विश्वास तो कर के देखो।' कहने लगे, 'नहीं नहीं, इसको तो पुलिस में देना होगा। पुलिस को पता करना चाहिये। रोज उसके पीछे पड़ सब लोग लगे रहे। हमारे भाईसाहब भी थे, मेरे हजबंड भी थे, और भी लोग, सब लोग। उनकी कॉन्फरन्स हो गयी। इसको बिठाना ही चाहिये पुलिस में । मैंने कहा, 'भाई, माफ़ कर दो एक बार । देखो, अगर चोरी करना है तो कर ही लेगा। नहीं होगा तो ठीक ही है। ऐसी कौन सी बात है। ऐसा कौनसा हमारे पास धन घर के अन्दर पड़ा हुआ है।' तो उस के पीछे ये लोग पड़े। एक दिन हम शादी में गये। शादी में हम लोग गये तो उसको बाहर बिठा के गये । अन्दर घर में नहीं । चोरी कर जायेगा, फलाना होगा। मैंने कहा, 'अच्छा भाई!' हम जेवर पहन के गये थे। रात को दो बजे करीब आये। सब थक गये थे। मेरे हजबंड भी सो गये। मेरे भाई भी सो गये। मैं भी सो गयी। मैंने जेवर उठा कर के बाथरूम में रख दिये। सब को कोई सोचवोच नहीं रहा कि घर में चोर है। जब सबेरे उठे तो हमारे हजबंड की पैर की चप्पल गायब। इनका देखा तो पर्स गायब। वहाँ से आगे गये तो कोट गायब। आगे चले, मेरे भाई साहब थे, उनके पाँच सौ रुपये गायब। उनका कोट गायब। उनका न जाने एक बक्सा के बक्सा ही खाली था । और मेरे इतने महँगे जेवर वहाँ पड़े हुये थे, खानदानी हमारे जेवर, एक चीज़ को कुछ हुआ नहीं। इनकी सब चीज़े उठा के वो भागता पड़ा। क्योंकि उनके लिये वो डाकू ही था। मेरा सब सामान छोड़ गया और इन सब की चीज़े ले के चंपत हो गया। तो वो लोग कहने लगे कि 'ये आश्चर्य है, हमने ता कुछ किया नहीं।' हमने कहा, 'तुम उसकी जान पे लगे हुये थे न ! पुलिस में जाओ, पुलिस में जाओ। तो देखो।' उस पे विश्वास करते ! हम घर पे भी नौकरों पर कर के देखिये। विश्वास करें, विश्वास रखें। हम विश्वास इसलिये नहीं करते कि हमारा अपने ऊपर विश्वास नहीं। दुनिया सब पे विश्वास रखिये। जितना हम विश्वास करना सीखेंगे उतना ही इन्सान आप पे विश्वास करेगा। लाख में से एकाध आप को ठगेगा । हम को तो कोई ठग ही नहीं पाता। ठगना भी चाहें तो ठग ही नहीं पाता। ठगता नहीं। और हम पाते क्या हैं? दो-चार रूपया ही न! ठग के क्या पाते हैं? कौन सी गठरी ? पाप की तो गठरी पाते हैं। मुझ से यहाँ पर भी बहुत से लोग होशियारी दिखाते हैं। कुछ ऐसे पढ़ाते है बातें इधर उधर की। जितनी मैं भोली हूँ, उतना ही मेरे जो अन्दर का है न वो बड़ा है। मैं किसी चक्कर में नहीं आती। बड़ा मुश्किल है मुझे चक्कर में डालना। अब कोई कहे, ये चीज़ें, वो चीजें। चक्कर में नहीं आने वाली! हालांकि मैं हूँ बहुत सीधी-साधी । इसकी वजह है वजह ये है कि जो आदमी रियलाइज्ड होता है और जो अपने चित्त लिये बैठा है वो कहीं उलझता ही नहीं। आपने मेरे साथ चालाकी की, वो दिव्य जो है वो घुमा देगा उधर के उधर । कोई आदमी चालाकी करेगा ही मेरे साथ वो फट् से उसे घुमा देगा। इसी का एक और उदाहरण देती हूँ। रामकृष्ण परमहंस की पत्नी, दोनों आदमी एक बार जंगल में जा रहे थे। ये बिल्कुल भोली भाली थी बेचारी । जंगल में से आ रहे थे तो जंगल में से आते आते ऐसा हुआ कि रामकृष्ण तो आगे चले गये, वो पीछे रह गयी। तो चोरों ने सोचा कि चलो कोई औरत मिल गयी, पकड़ो इसको । तो उसके साथ हो लिये। उन्होंने कहा कि, 'भाई, तुम आ गये। अच्छा हो गया । तुम्हारे दामाद जो है, सामने चले गये और मैं अकेली रह गयी । चलो, तुम मेरे भाई आ गये, मेरे बाप आ गये, मेरे लिये बड़ा अच्छा हो गया। मेरे लिये तो कुछ आराम हो गया। नहीं तो मैं सोच रही थी, कि अकेले मैं रास्ता कैसे ढूँढूंगी । चलो, भाई तुम्हारा क्या नाम है? अच्छा तुम मेरे भैय्या हो । तुम मेरे बाप हो ।' वो लोग कहने लगे, हम तो इसको पकड़ के ले जा रहे थे। ये तो हम को बाप, भाई बना रही है। उसके सीधेपन से और भोलेपन से इतने रीझ गये, कि वो उसको घर ले गये और जिंदगीभर अपनी लड़की की तरह बनाया और रामकृष्ण को अपने दामाद जैसे | वो चोर और डाकू लोग भी प्यार पहचानते हैं। साँप और शेर और गीदड़ ये सब प्यार पहचानते हैं। क्योंकि शेर अपने बच्चे को नहीं खाता । साँप अपने बच्चे को नहीं काटता। और हम भी साँप हो जायें तो साँप हम को नहीं पहचानेगा। भोलापन हमेशा मदद करता है। जो आदमी भोला होता है उसको दुनिया हमेशा मदद करती है और एक उसका मॉडर्न उदाहरण देती हूँ। एक साहब कस्टम में थे। भोले भाले थे। बोलते बहुत थे | भोले लोग बोलते भी ज्यादा है कभी कभी। क्योंकि उनमें चालाकी नहीं थी ना ! अन्दर में घुस के बैठेंगे या कभी बोलते हैं, कभी नहीं बोलते हैं। ये जरूरी नहीं कि हर एक भोला आदमी बोलता है। चालाक भी कभी-कभी बड़बड़ाते हैं बहुत। तो ये जो भोलापन था इस आदमी का, वो आ कर के इसको बताये, कि 'अरे साहब, मैं गया था वहाँ, मैंने वहाँ से लाया में है कैमेरा।' एक कस्टम ऑफिसर को बताये। अमरिका से आये और कस्टम ऑफिसर को बताते हैं कि 'कैमेरा लाया हूँ, ऐसा कैमेरा है, किसी को देखना है।' और दिखाने लगा। यहाँ लोग छुपाते हैं अपना कैमेरा । फिर उसको बताने लगे कि, 'मैं वहाँ से डायमंड रिंग ले के आया। किसी को देखना है। देखो, मैं लाया हूँ।' तो वो जो इतने भोले पन से बोलने लग गया, कि वो कस्टम ऑफिसर ने सोचा कि ये ऐसे ही डींग मार रहा है । ये लाया क्या होगा। मुझे बेवकूफ बना रहा है। असली लाया वो ऐसी बात क्यों करेगा। तो कहने लगा, 'अभी जा, मेरा सिरदर्द कम होगा।' और दूसरा आदमी आयेगा, छुपा के और इधर उधर देख के तो उनको, 'आईये इधर, आपके पास क्या है?' । भोले आदमी पर वैसे भी मनुष्य को तरस आता है। अगर कोई भोले आदमी को सताता है तो उसकी आहें इतनी लगती है कि वो डर से भी आदमी सताना भूल जायें और कोई भोले आदमी को सताता है तो जन्मजन्मांतर उसे देना पड़ता है। इसलिये भोला आदमी सब से श्रेष्ठ है। और जो आदमी बहुत ज़्यादा किसी चीज़ में उलझता है, अधिकतर आप देखियेगा, ज्यादा तर ऐसा होता है, कि जब भी आदमी को कोई बूरा काम करना होता है वो बड़ा सिरीयस हो जाता है। हमने ऐसे साहब को देखा है, जिनकी आदत थी ब्राइब लेने की । हमारे हजबंड को वो कहते थे कि, 'तुम घटिया टाइप हो। तुम को तो पैसा ही लेना नहीं आता ।' ऐसे कहा करते थे। लेकिन मैंने देखा है, कि उनसे अगर कोई आदमी मिलने आये और वो पैसे वैसे की बात करने वाला हो, मतलब लेने देने की, एकदम वो सिरीयस हो जाते हैं। हसते खेलते एकदम सिरीयस हो जाते हैं। समझ जाओ कुछ न कुछ ब्राइब की बात है। एक साहब थे, मुझे मालूम है। इनको कैब्रे में जाने का बहुत शौक है। और जब भी कैब्रे की बात होती थी बड़े सिरीयस हो जाते थे। कहाँ जाने का ? कैसे जाने का ? कब जाने का ? बाकी समय हँसते रहेंगे। कैब्रे के मामले में बिल्कुल प्लॅनिंग कर के, सिरीयस हो के, कैब्रे में जाएंगे। कैब्रे में क्यों जाना चाहिये ? अरे, आपको सिरीयस ही रहना है तो मंदिर में जा के बैठो। नहीं वो वहाँ जायेगा । जो आदमी हंसता - खेलता हर समय रहता है और हल्का फुल्का रहता है, उस आदमी को ऐसे रहने से क्या बेवकूफ़ी है, ये क्या बेवकूफ़ी है। भोला जो आदमी होता है वो नटखट होता है। उसका नटखटापन जो होता है वो उसके भोलेपन से आता है। जैसे वो कोई न कोई खुराक लगा देगा। जैसा बताया है। एक साहब हमारे यहाँ आये । उनको बड़ा शौक था कैब्रे डान्स का। कैब्रे माने आपको मालूम नहीं होगा, वहाँ नग्न नृत्य होता है। अब हमसे तो कह नहीं सकते क्योंकि रिश्ते में हमे बड़े होते थे। तो हमारे घर में एक बड़े सिविल वाले साहब हैं। वो ऐसे ही नटखट टाइप हैं । तो उनसे कहने लगे, 'हमको ले चलिये।' अब वो बुजुर्ग आदमी ठहरे। शैतान बहुत है न ! वो ले गये और पुलिस थाने में उनको डाल दिया। 'मैं तो आऊंगा नहीं, आप चले जाईये ।' वो बेचारे सीधे चले गये। वहाँ जा के देखा तो सब पुलिस वाले खड़े। वो बेचारे आये थे देहात से । उनको मालूम नहीं था कहाँ, कैसे होता है? उनको लगा, पुलिस वहाँ लगती होगी। ऐसे जगह जरूर पुलिस होती है। ऐसी जगह जहाँ ऐसे धंधे होते हैं वहाँ पुलिस लगती है। तो उन्होंने सोचा, इसलिये यहाँ पुलिस है। अन्दर गये तो लोगों ने कहा, 'साहब, आपको कोई कम्प्लेंट है ?' उन्होंने कहा, 'नहीं, वो जरा हमको देखना है' इन्होंने कहा, 'क्या ?' 'अब आप समझ लीजिये, जो बात है उसको ।' इन्होंने कहा, 'आखिर क्या बात है?' उन्होंने कहा, 'साहब, क्यों मज़ाक कर रहे हो। जिस चीज़ के लिये जगह बनी वहीं हम आये हैं।' वो कहने लगे, 'तो आईये, सीधे हवालात में!' और कहने लगे, 'हवालात में आपको किस ने पहुँचा दिया?’ ऐसे उनको बेवकूफ़ बनाया जाता है। ये जो अपनी विषय की ओर दौड़ने की युक्ति है, ये आदमी को चालाक बनाती है। क्योंकि उसको छुपाने के लिये आदमी जरूर चालाक बनता है। विषय की ओर दौड़ने की अपनी जो प्रवृत्तियाँ हैं बार बार उसी की ओर प्रवृत्ति दौड़ती है। रियलाइजेशन के बाद ठीक होता है और देख सकते हैं कि अरे वा, बेवकूफ़ की तरह चले जा रहे हैं वहाँ पर । कहाँ चले जा रहे हैं? अपनी ओर हम देख सकते हैं। अपनी बेवकूफ़ियाँ देख सकते हैं। अपने साथ खिलवाड़ भी कर सकते हैं। अपने साथ नटखटपना कर सकते हैं। बहुत अपने साथ खेल कर सकते हैं। देख सकते हैं, किस बेवकूफ़ी में हम फँसे हुये हैं। तो भोला आदमी जो होता है वो अलिप्त हो कर के देखता है मज़ा, 'क्या अजीब हालत है साहब | समझ में नहीं आता है।' ये भोलेपन की निशानियाँ है । भोला आदमी जो होता है उसका चित्त कहीं ऐसा दौड़ता है। वो अपने भोलेपन में अन्दर है। जैसे छोटे बच्चे, उनको अगर आप किसी कैब्रे डान्स तो छोड़िये, आप किसी व्यक्ति से मिला दीजिये तो जोर जोर से रोना शुरू कर देते हैं। उनके बाल वाल देख के एकदम रोना शुरू कर देते हैं। आप अगर कैब्रे डान्स में छोटे बच्चे को ले कर जाईये, बहुत जोर से रोते हैं। आप कोशिश कर के देखिये, किसी समझदार बच्चे को ले जायें, ३-४ साल के बच्चे को तो वो जोर जोर से रोना शुरू कर देगा कि ये क्या है? बच्चे की आप हालत देखिये, कि अगर उसके सामने कोई भी विक्षिप्तता होती है तो इसकी ओर वो पहले रोने लग जाता है। और या तो उसको समझ नहीं आता है कि ये क्या है ? या दूसरा काम, कोई भी बात वो सीधी सीधी कह देता है। उनमें कोई लगाव, छुपाव, दुराव कभी नहीं होता। ऐसे बच्चे हर एक चीज़ को देखते रहते हैं। जैसे एक बार किसी ने कहा अपने बच्चे से वो साहब आ रहे हैं, लेकिन खाते है घोड़े जैसे। अब उन्होंने वो सुन लिया। अपनी पत्नी को उन्होंने कहा, उनसे तो कहा नहीं कुछ। जब वो आ के बैठे तो ये उनकी शकल जा के देखें बार बार । उसके बाद कहने लगे, 'मम्मी, ये तो घोड़े जैसे नहीं खाते। कुछ भी कह रहे, घोड़े जैसे खाते हैं।' मानो, उसमें उनको कोई ये नहीं लगा, कि भाई, मैं कोई बुरी बात कह रही हूँ, अच्छी बात कह रही हूँ। किसी को दुःख देने वाली बात है। सीधी सीधी बात उन्होंने कह दी। और बच्चों में ये समझ आ जाती है कि ये किस तरह से कर रहे हैं, उनका क्या ढंग है। सब की नकल उतारते हैं। बच्चों में आदत होती है। नकल उतारने वाला आदमी भी एक तरह से भोला होता है। क्योंकि वो भी नकल तभी उतार सकता है, जब कि वो साक्षी हो और खास कर वो अपनी नकल उतार सके ये सब से बड़ी बात है। जो आदमी अपने ऊपर हँस सकता है वो सब से भोला आदमी है। अपनी बेवकूफ़ी की है, हँसो । अपनी ओर नज़र करें कि क्या साहब दौड़े चले जा रहे हैं। क्या कहने। तोंद आपकी निकली हुई है, बाल आपके चले गये हैं। जा कहाँ रहे हैं आप। जेब में पैसा नहीं है आप की नज़र कहाँ तक जायेगी। बार बार आपकी नज़र कहाँ उतरेगी । रियलाइजेशन के बाद जो आदमी इतनी लगन से आता है वो सज्जनों की संगति को जोड़ता है। और जो आदमी गहराई में नहीं उतरता वो अपना बहाना ढूँढता है और दुर्जनों की संगति में घूमता है। दूसरी संगति में घूमेगा वो हजारों बहाने बतायेगा कि आना नही हो सकता। और जिनको आना है देवळे साहब से बतायें। लेकिन देवळे साहब को कहीं जाने का है। रस्ते में चलते चलते मैंने यही खोज लिया कि देवळे साहब हमारे यहाँ बैठ गये मोटर में और फिर चल दिये। उनका कुछ प्रोग्रॅम था। वो बैठ गये मोटर में और चले आये बाहर । उनको तीन घंटा हमने लगाया। क्योंकि इसमें जो मजा आ रहा है और किसी चीज़ में नहीं। लेकिन जब इसका मजा ही पूरा नहीं है तो चित्त जरूर बाहर दौड़ेगा। 'आज कहाँ गये थे ? पार्टी में गये थे। क्यों साहब ? जाना ही पड़ा, इसमें ऐसा था, उसमें ऐसा था ।' और भोले जो यहाँ रोज आते है। उनका क्या होगा? क्योंकि सज्जनों की संगती में विषयों की ओर चित्त जाता ही नहीं, उलझता ही नहीं। भागो, प्रोग्रॅम है भागो। यहाँ सज्जनों का मेला लगता है। सत्संगती में बैठ के जो मजा आयेगा, वो वहाँ क्या मजा आने वाला है। यहाँ इतनी चली आ रही है, जो दिखायी नहीं देती। जो उनको दिखायी नहीं दे रही लेकिन आ रही है। यहाँ पे बरस रही है, वहाँ हम खींचे चले जा रहे हैं। उस परमात्मा की बेसुमार, बड़ा मज़ा आयेगा। माताजी आये चाहे नहीं आये। बैठ जाओ। दूसरे रियलाइज्ड आदमी को मिलने में जो मज़ा आता है, आहाहा, आ गये बड़ा मजा आयेगा। लेकिन जो लोग अभी पूरी तरह से उतरे नहीं हैं वो अभी भूतों की तरफ ही गये हैं। 'करना पड़ता है, जाना पड़ता है। मिलना पड़ता है।' कुछ जाना नहीं पड़ता है, करना नहीं पड़ता है और देखना नहीं पड़ता है। आपका चित्त अगर यहाँ है तो आपको आना ही पड़ता है। कल अगर आप शराबी हैं तो शराबखाने में ही पाईयेगा और अगर आप रियलाइज्ड है तो ..... (अस्पष्ट) और जगह जाने से मतलब। जब मज़ा का सारा अर्थ ही यहाँ पर है, तो और जगह घूमने से मतलब! हर वक्त चिल्लाते ही चिल्लाते हैं। शराबी लोग चिल्लाते हैं सारा वक्त। शराब न पी, ये न कर, वो न कर। वो छोड़ता है क्या अपनी बोतल । घर में नहीं तो बाहर, बाहर नहीं तो दोस्त के घर में। सीधे सीधे रमी खेलने वाला आदमी देखिये जो रमी खेलता है। इसकी बीबी चिल्लाने लग गयी तो वो अपने घर में जा के खेलेगा। वहाँ पे चिल्लाये तो उधर जा के खेलेगा । वहाँ पुलिस चिल्लायी तो और कहीं जा के खेलेगा। ये छोड़ने वाला नहीं। इसलिये लत नहीं लगनी चाहिये। अगर लत लग गयी तो कहीं भी मज़ा नहीं आता। यही बात, यही सोचना, यही बोलना, यही करना । लोग कहते हैं कि, 'तुम्हारी माताजी से हम बोअर हो गये।' लेकिन आप बोअर नहीं होने वाले। आप कहें, चलो तो, देखो तो क्या बात है। कोई किसी की भी बात कहेगा तो ये कहेगा कि भाई पहले चलेगा। पहले उसे देखिये। सब की बात तो बाद में होती रहेगी। हमने पाया है, हमने जरूर जाना है। और सारे घर वालों को हम बदल दे। घर वाले तो आपको पसन्द कर नहीं सकते जब तक वो लोग पार नहीं। ये कोई भी गुस्सा होने की बात नहीं। एक बार हमारे यहाँ ऐसा ही हो गया कि एक साहब हमारे पर गुस्सा हो गये कि, 'आप बार बार जाती हो । आपने सामान रखना शुरू कर दिया, तो हमने भी सामान रखना शुरू कर दिया ।' 'देखो साहब, आपको जिस चीज़ की शौक है आप करें। हमें जिस चीज़ का शौक है हम करते हैं। वो तो आप चाहे रोके, चाहे नहीं रोकिये, हम को तो जाना होगा ही। चाहे हम यहीं भी बैठे रहें चित्त तो हमारा वहीं है।' जब इसका मज़ा लग गया। अब नाटक वाले देखिये। जिनको नाटक का शौक होता है। चाहे जेब में पाँच रुपया नहीं हो तो तीन रुपये का टिकट ले कर भी जायेंगे नाटक देखने । हर जगह आप अपना पैसा दे कर के पूरा शौक पूरा करते है, यहाँ बिन पैसे का शौक । क्या मज़ा आता है। दूसरों में बँट जाने में जो मज़ा आता है, और किसी चीज़ में नहीं। लोग बाहर रुपया, इसको दान करो, उसको दान करो, दान कमिटी बनायेंगे। बाहर जा के, बांग्लादेश जा के दान करेंगे। अरे, यही दान हो रहा है बस् ! एक छोटासा बच्चा है। उसको लग गयी .... (अस्पष्ट) 'लागी नाही छूटे' पर लगनी तो चाहिये। जबान में लगती नहीं। क्योंकि आपका दिल और आपकी इच्छा चाहिये। जिसका मज़ा है वो तो गहराई में जा कर के लो और वो तभी होता है कि आदमी इतना भोला हो और वो अपनी धुन में चलता रहे। वो भोलेपन से ही बच जाता है। उसका जो भोलापन है उसको बचाता है। और आदमी भोला तभी होता है जब परमात्मा के हवाले है। क्योंकि उसका सब प्लैनिंग करने वाला वो बैठा है। सब देखने वाला वो बैठा है। बच्चा क्यों भोला है? क्योंकि वो उसकी माँ के हवाले है। अपने पास और भी आयुध है लोगों को ट्रीट करने के। आप तो जानते हैं बहुत सारे आयुध हैं। कोई बिगड़े, नाराज़ हो, घूमाओ। लेकिन पहले अपने ऊपर घुमाईये । हो सकता है कि आप भी अपने दिमाग के अभिपारित हो । अपना ही दिमाग आपको समझा रहा है, ये नहीं हुआ तो ये नहीं नहीं ऐसा नहीं । जब बिल्कुल सब कुछ शांत हो जायें। मुंबई में कोई सिनेमा न चलता हो, कोई पार्टी न होती हो, कोई शादी न होती हो, घर में कोई मेहमान न हो, ऐसा दिन तो मेरे ख्याल में आज तक न आयें। तो फिर वैसा ही आप पायेंगे । जितनी अन्दर से मुमुक्षुता आपके पास खींचेगी और उसको देखना पड़ेगा। है अन्दर। उसके बगैर आप पार होने वाले नहीं। पिछले जनम में और मेरे चले जाने के बाद, खास कर, मैं जाने वाली नहीं, एखाद-दो महिने में चली जाऊँगी। जब तक हिम्मत है तब तक .... (अस्पष्ट) । देखिये अब क्या होता है? लेकिन आप लोगों में से ऐसे कितने लोग हैं...। इस बात को कितने लोग सोच रहे हैं, कि हमारे हाथ से हजारो लोगों का कल्याण होने वाला है। हमारे हाथ से हजारों लोग पार होने वाले हैं। और हम जो सीमित, अभी थोड़े से हैं, वो कहीं अधिक एक एक आदमी हजारों आदमी होंगे। आज ही मेरी बातचीत हुई थी ....साहब से | एक लक्ष्मणजी महाराज है वहाँ । कश्मिर में है, बड़े माने हैं, सबकुछ। मैं मानती हूँ। इतने माने हुये हैं, वो भी आपके जैसे सेल्फ रियलाइज्ड और वो कुण्डलिनी जागृति नहीं जानते। वो पार करना नहीं जानते। वो पढ़े लिखे आदमी है, सिर्फ पार है। उस पे भी उन्होंने अपना मत छोड़ा है कि सारे दुनिया में लोग इनसे मिले, उनसे मिले । उनसे मिल के क्या खाक होने वाला है। वो क्या कुण्डलिनी की जागृती जानते हैं? कुछ भी। ये उँगलियों से अगर कुण्डलिनी की जागृती करना सिखा दे, तो हम जो कहे वो करें । पर उनका नाम है, क्योंकि वो अपना मत बना के बैठे हैं। झंडा गाड के बैठे हैं। सब दुनिया उनको मिलने आती है। (अस्पष्ट) आप उनसे पूछिये कि किसी के चक्र बताईये तो मैं जो कहें वो मानू। अगर वो बता दें कि किस का चक्र कहाँ पकड़ा है, इतना भी बता दें या ये भी बता दें कि इस आदमी की जागृति हुई है कि नहीं तो मैं जो कहें वो करूं । इन्होंने मुझे देख कर ये भी नहीं पहचाना कि मैं रियलाइज्ड हूँ कि नहीं। तब फिर आगे की बात करें। और तुम लोग क्या पहचान लोगे कि नहीं? मैंने उनको देख कर के पहचान लिया कि इनके बापदादाओं से ले कर के और जन्मजन्मांतर के हजारों साल का सारा इतिहास सामने खुल गया । और इन महाशय जी ने अभी पहचाना भी नहीं और वहाँ सारी दुनिया उनको जानती है। बंबई शहर तक उनका नाम है, वहाँ नाम है, वहाँ नाम है। और यहाँ जो हजारों कितने ऊँचे लोग यहाँ बैठे हैं उनका कुछ भी नहीं। क्यों? क्योंकि ये संसारी लोग है। संसार में बैठे है। लेकिन जिस दिन आपने संसार ही सब कुछ समझ लिया सब व्यर्थ हो गया हमारा जीना ! आप इस संसार से उठ कर के जब तक आप पूरे सृष्टि में उतरेंगे नहीं और जब तक आप इसमें पूरी तरह से अपना ध्यान लगायेंगे नहीं तब तक आपका देना बिल्कुल बेकार हो गया। मैं यही सोचूंगी कि पत्थर के थे। एक , एक आदमी एक महानुभावों से बड़ा है जिनके हजारों कॉलनियाँ हैं। इसी से ये सोच सकते हैं कि वो ये नहीं पहचान पायें कि मैं रियलाइज्ड हूँ या नहीं। ये छोटा बच्चा भी बता देता है कि रियलाइज्ड है। ऐसे भी लोग हैं जो रियलाइज्ड तो छोडिये जिनकी जागृती भी नहीं, इसके पीछे में झेंडा लगा के बैठे हैं। मारे ये लगा लगा के बैठे हो, 'ये साहब बहुत बड़े आदमी है।' कल अगर मेरे सामने आयें तो हूँ, हूँ होगा उनका और कुछ नहीं और आपके सामने भी ऊँ, ॐ होगी। ऐसे हैं वो लोग ! जरा सा हाथ आप कर दें कुण्डलिनी उनकी बढ़ा चढ़ा के ऐसे देखते रहें। आप लोग जानते हैं, इसलिये नटखटपना आ जाता है। भोला आदमी सब कुछ जान जाता है। इसलिये वो नटखट हो जाता है और ये नटखटपना हम यहाँ करते रहते हैं। आपने देखा है आप लोग थोडे थोडे नटखट हो गये हैं। थोडे थोडे आप नटखट हो गये हैं। जैसे किसी के ऊपर से भगाते हैं, उडाते हैं और हटाते हैं, और क्या क्या मज़ा आप करते हैं। कितना मज़ा हम लोग करते हैं। लेकिन जो अपने को ज्यादा अकलमंद समझे बैठे हैं और अपने को बड़े भारी आदमी समझे बैठे हैं और जो कहते हैं कि हम झंडा गाड़ के बड़े बड़े साधुबाबा हो गये। आपको कोई जरूरत नहीं ऐसी झूठी बात पर विश्वास करने की जब आपके पास सच्चाई है। आपके हाथ से आप जानते हैं। जब जान लिया किसी आदमी को कि ये ऐसा तो खत्म काम। जब वो आपके नीचे ही हैं तो आपका क्या मतलब है उसके सामने झुकने का! उसकी तरफ़ दौड़ने का! इसका मतलब है कि रियलाइजेशन में आप अपने चित्त पे ध्यान नहीं देते। चित्त पे जरा भी ध्यान आप दें, तो देखियेगा की चित्त विषय की ओर दौड रहा है। इसके मेस्मरिजम में या उसके तड़कभड़क में, उसकी आर्टिफिशिआलिटी में है। क्योंकि भोला आदमी आर्टिफिशिआलिटी जानता नहीं। वो सब के सामने अपनी सादगी पसंद है। उसमें कृत्रिमता बिल्कुल नहीं होती। सारी कृत्रिमता एकदम गिर जाती है। यानी ये भी कृत्रिमता कि हम कुछ हैं, फलाने हैं हम, हिंदू हैं, मुसलमान हैं, सब कृत्रिम है। हम क्या हैं, आप समझ लें । हम सिर्फ आत्मज्ञ हैं, रियलाइज्ड हैं। हम एक ही धागे के बंधे हुये जान हैं और लहर के ऊपर में साथ साथ हँसते है और साथ-साथ रोते हैं। सब एक साथ। मैं किसी को कहती हूँ कि आओ, शुरू शुरू में ऐसा है । शराबखाने का भी एडवर्टाइजमेंट देना पड़ता है, वहाँ एक ढोल पीट के आदमी कहता है, 'आओ, आओ, यहाँ शराब सस्ती मिलती है।' एक बार आओगे, थोड़ा चटका लगेगा, फिर ठीक होगा। चटका लगने की बात है। सारे प्रश्न सॉल्व हो जाते हैं। शराबी से पूछो। मैं तो ऐसे ऐसे गरीब लोगों को शराब पीते देख के बड़ा दुःख होता है। हमारा नौकर है। वो थोडी शराब पीता है। लंडन जाने का था तो मैंने कहा, 'तुम्हारा तो शराब के बिना चलता नहीं। मेरे घर में शराब चलती नहीं।' तो कहने लगा कि, 'माताजी, देखिये भाई, तो बात ये है कि लंडन में मैं तो पिऊंगा। मैंने कहा, 'तो आप यहीं बैठिये ।' कहने लगा, 'रोकना बहुत मुश्किल जायेगा मुझे।' मैंने कहा, 'रूकवा मैं दूँ, लेकिन तुमको प्रॉमिस करना होगा कि तुम मेरे साथ चलोगे ।' कहने लगा, 'माताजी, ले जाओ तो ले जाओ लेकिन शराब मैं तो वहाँ पिऊँगा।' सच्चा आदमी है। मैंने कहा, 'मेरा तेरा चल नहीं सकता। (अस्पष्ट) तू यही रह । सीधी बात है। तेरे को पीना है तो वहाँ नहीं चल सकता। अगर तेरा काबू होता है...।' 'मेरा काबू नहीं।' स्वयं कहें कि, 'मेरा काबू नहीं। अब मेरा काबू कहाँ रह गया। अब तो मैं इसी में बहाऊँगा।' धीरे धीरे देखना घरवाले भी आपके व्यवहार के लिये...। जो लोग महाकंजुष होंगे वो खुद देखेगें कि इतनी पैसों की चिंता है। पहले एक पैसे का हिसाब, दो पैसे का हिसाब | इसको इतना दिया, इससे इतना लिया। थोडे दो-चार रुपये छोड़ो। टॅक्सी वाले से झीक झीक | सब भगवान के हवाले है। धीरे धीरे उस आदमी में इतना भोलापन आ जाता है। पूरी तरह से वो भोला हो जाता है। बिल्कुल भोला । देखिये छोटा बालक होता है। उसका सब कुछ माँ पर है, वो रोता है तभी जब उसे भूख लगती है तब उसकी माँ उसको दूध देगी क्योंकि वो बच्चा पूरी तरह से अपनी माँ पर है। जो बच्चा थोड़ा सा अपनी माँ ..... 'तू कमा और खा ।' लेकिन जो बच्चा पूरी तरह से माँ पर है, वो पूरी तरह से अपने माँ पर थोड़े दिन है, उसको कोई चिंता नहीं। उसको टाइम पे दूध मिल जायेगा, उसको टाइम पे देखा जायेगा। जब एक साधारण मनुष्य की माँ इतना करती है तब सारे संसार की माँ और सारे संसार का जो पालनकर्ता है वो कितना हमारा विचार करता है। मैंने बहुत बार आपसे कहा है, कि रियलाइजेशन में आप से दिव्यता है। दिव्यता जो है देखने वाले देव ही आप के साथ लगे रहते हैं। देवतायें आपके साथ हैं। ये आपको पता नहीं कि हर एक ऊपर पचासों देवता मंडरा रही हैं। पचासों देवता आपके रक्षण करेंगे। लेकिन जब देखेंगे कि आप अपने से दगा कर रहे हैं, छोड़ कर के भाग जायेंगे। रुकने वाले नहीं। आपकी दिव्यता से खो जायेंगे । वाइब्रेशन का रुक जाना ही दिव्यता का खो जाना है। लेकिन जहाँ वाइब्रेशन्स आते हैं वहीं उसकी सुगन्ध फैलती है। वहीं देवता है। वहीं देवता लोग आ कर के आप पर मंडरा रहे हैं। जैसे सुगन्ध बंद हो गयी भाग गये। उनका काम ही ये है, जैसे फूलों पर मधुकर मंडराते हैं, ऐसे देवताओं का काम है आपके ऊपर मंडराना। और आप ही का काम है ये। मनुष्य को ही ये कार्य करना है और मनुष्य जितना अपने को भोलेपन रखे, जितने सादगी में रखे और सोचते रहे कि ये काम में करने में हम क्या चालाकी करते हैं। जरा देखा ना, चले चालाकी करने । हँसी आयीं । वाह, वाह क्या चालाकी की । एकदम उसका पता चल जायेगा | आपको फौरन पता चल जायेगा कि इसका और इस चालाकी स्वभाव का हमारा क्या इलाज है। लोग आ के बड़े चालाकी से बात करते हैं। हम भी इतने भोले बन के... सुनाते रहो, सुनाते है। क्या चालाकी कर लेंगे। आप हम को दे ही क्या सकते हैं जो हमारे साथ बात करें। कोई भी आदमी चालाकी से कोई भी पंजा हमारे ऊपर डालता है हाथ नहीं लगने वाला। वही सादगी और भोले पन से तो हम मिट जाते हैं। मर जाते है ऐसे आदमिओं पर जो भोले पन के हैं। इसलिये तो प्राण अपने लगा देंगे कि जो भोला है । और ऐसे चालाक आदमी जो अपने को बहुत समझते है एक दिन उनको भी पता होता है कि सारी चालाकी आ कर उनके ही खोपड़ी में बैठे गयी । सारी चीज़ हमारी पॅराबोली से .... जायें, जिस तरह से जाती है वहीं रह जाती है। हम चालाकी दूसरे से करते हैं और चालाकी हमें खा जाती है। एक आदमी दूसरे से चालाकी करता है वो समझता है, वो भी चालाकी करता है । इसलिये पता नहीं दोनों के दोनों धड़ से गिर जाते हैं। ये चालाकी करने में ही हमारा .... और ये सारी चालाकी आती कहाँ से है। ये चालाकी इसी तरह हमारे अन्दर आती है क्योंकि हम लोग पूरी समय डरते रहते है। यहाँ डरने का कोई सवाल ही नहीं। समझ लीजिये किसी का कोई चक्र पकड़ गया तो हम डरते नहीं हैं। हमारे पास कोई गड़बड़ हो घर में तो हम किसी पड़ोसी को जा के नहीं बतायेंगे। छुपा लेंगे घर के अन्दर, कि 'भाई हमारी लड़की का ऐसा हो गया। किसी से न कहना ।' क्योंकि हम दूसरे से डरते हैं। ज्यादा से ज्यादा अपनी बीबी से बतायेंगे । और जब दूसरा ही हमारा अंगप्रत्यंग हो गया तब इस में डरने की कौनसी बात है! ये तो सभी हमारे हो गये हैं। कोई भी बात हो गयी, हमारे अन्दर कोई भी दोष हो गया, हम जाहीर कर देते हैं, भाई, हमारा पकड़ा है। इसे निकाल दो । हटा दो। अब हृदय चक्र का किसी का पकड़ना । ऐसे अगर किसी का हृदय चक्र पकड़ा है तो मेरे यहीं पे मार दें । लेकिन आप में से किसी का हृदय चक्र पकड़ा तो, 'माताजी, हमारा हटाव । निकालो अभी ।' निकालना ही पड़ेगा। क्योंकि अपना जिसे हम दोष समझते हैं जो हम हैं वहीं खत्म होता है। हम हैं, हमारे चक्रों के दोष है वो हमारे नहीं क्योंकि हम अविनाशी, निष्कलंक | वो इन चक्रों के दोष हैं। चक्रों के दोष निकालने के लिये हमें क्या डरने की कौनसी बात है। हम तो अविनाशी हैं, निष्कलंक हैं। असंग में खड़े हुये हम अलग हैं। और ये चक्र अलग हैं। इन चक्रों में खराबी आ गयी, ठीक है, हम नहीं निकालेंगे तो दूसरा हमारा हाथ निकाल देगा। हमारे यहाँ तो इन साहब को नहीं पता होगा। ऐसा भोला आदमी, आप ही लोग कितने भोले हैं, जो आ कर कहते हैं कि मेरा ये पकड़ गया, मेरा ये पकड़ गया। मेरा ऐसा हो गया, मेरा वैसा हो गया। ये भोलेपन है। कोई अपना दोष बताता है किसी से कोई कभी नहीं कहेगा कि मेरा दिमाग खराब हो गया है। अब परसों .... इनका दिमाग पकड़ गया। तो आये पकड़ के हाथ मेरे पास। कहने लगे, 'माँ, मेरा सिर पकड़ गया।' और अभी भी सब से बताते हैं कि 'मेरा सिर पकड़ गया ।' पकड़ जाता है। दिमाग बौखला जाता है कभी कभी। लेकिन इसको आदमी दोष नहीं समझे। क्योंकि जो हम हैं वो अहम् से हट के वो दो हैं। ब्रह्म जो है वो अलग है और वो अलग है देख रहे हैं, कि हम वो नहीं है जिससे हम आयडेंटिफाय करते हैं, जिससे हम तादात्म्य पाये हैं। लेकिन हम उसके तादात्म्य पड़ गये हैं, जो अविनाशी, निष्कलंक है। जिससे कलंक नहीं। सर्वशक्तिमान, निर्भयता में, ज्ञानपूर्ण, प्रेममय अन्दर खड़ा है। ऐसे अपने स्वरूप को देखने वाला आदमी क्यों चालाकी करने जायेगा? कभी नहीं करने वाला। आदमी जो डरपोक होता है, घबराता है, जिसको सारी दुनिया लूट रही है वो चालाकी करेगा। जो खुद ही राजा बना के खड़ा हुआ है वो किस से चालाकी करेगा। जिससे किसी से लेना नहीं वो क्यों चालाकी करेगा? आप अपने पर देखें कि जब भी आप कोई कार्य करते हैं, कभी कभी तो लोग कहते हैं कि, 'माताजी, हम आपके लिये चाँद-सितारें तोड़ लायें।' भाई तोडो, इतना बड़ा लंबा चौडा आकाश है। लेकिन जब करने पे आता है तो देखते हैं कि छोटे बातों पर फिसल जाते हैं। छोटी सी बात पे फिसल जायें। मुझे क्या ? रिलेटिवली सब चीज़ चलती नहीं। किसी न किसी चीज़ के साथ जुड़ के चलती है। ये बढ़िया है, कि मेरा लड़का ठीक हो जाये तो मैं करूँ । बस, गये आप काम से । 'मेरा घर-द्वार ठीक हो जाये तो मैं करूँ। मेरी लड़की की शादी हो जायें तब मैं आऊंगा ध्यान में ।' गये आप काम से । न शादी होगी न आप आयेंगे। वो कहते हैं न 'सौ मण तेल हुये न राधा न सिंह ।' वो बात है। ऐसे संकल्प, विकल्प वही मन करता है जो पूरी तरह रियलाइजेशन का मजा नहीं लेता। ये हो तो वो, वो हो तो वो, इसका क्या मतलब है? है तो है ही, बहुत है। जो है तो इसी वख्त है, जो पाने का है इसी वक्त है, हर क्षण पाने का है। हर मिनट पाने का है। और जो सीधा, भोला भाला आदमी हर क्षण...., ऐसा आदमी सब को प्यारा लगता है। किसी को इसलिये प्यारा लगता है कि वो सोचें हम उसको बुद्ध बना रहे हैं। किसी को इसलिये प्यारा लगता है कि सोचें इसे हम एक्सप्लॉइट कर ले दो-चार रुपया निकाल के। किसी को इसलिये भी प्यारा लगता है कि ऐसे आदमी की कंपनी बड़ी सुहानी होती है। उसकी बातें बड़ी प्यारी होती हैं। चोर, ठगों को बच्चे इसलिये अच्छे लगते कि गले की माला खींच लेंगे। उनके कमर से धन निकाल लें। उचक्कों को बच्चे इसलिये अच्छे लगते हैं कि ले जा के बजार में बेच डालेंगे, उनसे पैसा कमाएंगे। लेकिन किसी गंदे आदमी को बच्चे इसलिये पसंद है कि उनकी कंपनी में ऐसा लगता है कि जैसे फूलों के साथ आप रह रहे हो। उनके साथ आप भी बच्चे हो जाते हैं, इसलिये बच्चे बड़े प्यारे लगते हैं। अपने तो आप पर निर्भर हैं, लेकिन बच्चा तो बदलता नहीं। चाहे वो चोर-उचक्का हो, चाहे वो किस का हृदय हो, सब के लिये वो स्वर ही है। और जब तक वो स्वर लूट नहीं, जब तक उसमें अपने अन्दर सुगन्ध लुटाने की शक्ति नहीं तब तक उसको कौन देखेगा। लूटना ये कोई लूटना नहीं है। लेकिन अपनी सुगन्ध लुटाने की शक्ति जो खो देता है वो जरूर लूटता है। और दिमागी जमाखर्च होता है। माताजी ने कहा, 'वहाँ आओ ध्यान में ।' 'मैं इतने बड़े घर की बहू हूँ। मैं वहाँ जा के कहाँ बैठूंगी जमीन पर। वहाँ तो सब लोग सर पे हाथ रखते हैं।' इतने बड़े घर की बहु आज है। कल क्या थी आप? और इतने बड़े घर की बहू हो कर भी आपको आनन्द नहीं मिला और आज जमीन पर बैठ कर आनन्द मिलता है, तो फिर स्वीकार्य करना चाहिये। इतनी भी अकल आप के अन्दर नहीं है तो आप मत आईये। भोले आदमी में अहंकार नहीं है। उसको अहंकार होता ही नहीं। अहंकार चीज़ क्या होती है उसको वो मालूम ही नहीं। उसको बोलो जमीन पर बैठ जाओ, बैठ जायेगा। उसको बोलो यहाँ बैठ जाओ, बैठ जायेगा। उसका कभी भी अहंकार नहीं दुखता है। आप लोगों का अगर कहीं भी अहंकार दुखे तो समझना चाहिये रियलाइजेशन थोड़ा कच्चा है। दोनों पकड़ा है आ जाना यहाँ पर बिठाने के लिये। माताजी, चीज़ पकड़ गयी। छोटी सी चीज़ में लोगों का अहंकार दुख जाता है। जैसे अभी ट्रेन में बैठे, मेरे पास एक आदमी बैठ जायेगा इधर, दूसरा उधर बैठ जायेगा। वो बोले हम को पास में नहीं बिठाये । ऐसी छोटी छोटी चीज़ से आपका अहंकार टूटता है, तो ये सोच लेना चाहिये कि रियलाइजेशन में हम अभी पूरे खरे उतरे नहीं हैं। आपने मुझे देखा है। मुझे कुछ समझता नहीं है। हालांकि मैं बहुतों का अहंकार दुखाती हूँ। लेकिन मैं एकदम बेवकूफ़ हूँ। मुझे प्रोटोकॉल बिल्कुल नहीं आता। कुछ भी प्रोटोकॉल मुझे कतई नहीं आता। और अब कभी आने ही नहीं वाला, कि उनको ऐसा करना चाहिये, उनको ऐसी बात करनी चाहिये। ऐसा नहीं करना चाहिये। मैं तो कभी किसी को गले से भी लगा लेती हूँ, कभी किसी को झाड़ भी देती हूँ। लेकिन जब तक मेरे अन्दर प्रेम करने की शक्ति है तब तक मेरा कुछ नहीं जाने वाला। क्योंकि प्रेम से बढ़ के कोई प्रोटोकॉल ही नहीं सिखाने वाला बढ़िया । वो कभी कभी आश्चर्य में रह जाता है। अभी मैं वहाँ गयी थी । वो लोग पहचानते नहीं थे। वो लोग रोने लगे..... उनको मैंने गले से लगा लिया। वो भी आदमी भौचक्का रह गये कि इस औरत में क्या है। वो रोने लग गये यहाँ पर । जो सोचा जाता है वो चालाकी है। क्योंकि हम ऐसा सोचते हैं। कहेंगे, कहने दो। क्या कहेंगे? जो मैं हूँ, मैं ही रहूँगी । किसी के कहने ना कहने से कोई बदलने नहीं वाला । किसी के बकने से कोई बदलता नहीं। कोई कुछ भी बकता रहे, बकने से कुछ बदलता है? जो आप हैं वो आप ही हैं। लेकिन इतना जरूर होना चाहिये की आप अपने पे सच्चाई रखें। आप अपने साथ छूट न बरतें। आप अपने दिमाग में चक्कर न लगायें। चालाकी न करें। असल में हम अपने साथ अपने को ही ठगते रहते हैं सुबह से शाम तक। देखते रहिये आप किस तरह से करते रहते हैं। जब आपका मन बतायेगा, हाँ, मैं बड़ा ठगी हूँ। अपने को ठग रहा हूँ। अपने को ठग रहा है । आज सभी लोग करीबन पार हैं यहाँ। एकाध दो लोगों का कुछ रुक गया। अब जब वाइब्रेशन्स रुक गये हैं तो उसको चला लेने का तरीका आप ही लोगों ने निकाला है। जैसे फोटो को ऐसा करना चाहिये, किस तरह से कहाँ पर क्या देना चाहिये। कैसे पहचानना चाहिये कौन सा चक्र बैठा हुआ है। जैसे कि आपके हाथ पर वाइब्रेशन्स नहीं आ रहे हैं तो कोई न कोई उँगली कट हुई है। इससे आपको पता हो जाना चाहिये, जैसे ये बीच में जो हैं ये आपका नाभि चक्र। ये नाभि चक्र पे हैं। फिर ये जो चक्र है विशुद्धि चक्र | फिर ये चक्र आज्ञा चक्र और ये चक्र स्वाधिष्ठान चक्र। और ये आपका अनहत चक्र, जो सबसे छोटी उँगली पर है, क्योंकि नाजूक हैं न । और सब से भोला होता है। हृदय में जो वास करता है वो सबसे भोला होता है | हृदय बिल्कुल भोला भाला होता है। माने उनको ये भी होश नहीं रहता कि राक्षसों को उन्होंने वरदान दे के रखे है मुझे सताने के लिये। लेकिन है, भोले आदमी को ये भी होश नहीं रहता है, कि मैं किस को वरदान दे रहा हूँ। अपनी बीबी को उठा के दे दिया उन्होंने रावण को। ऐसे भोले शंकर जी हृदय में वास करते हैं तो उनको कौन ठग सकता है? शंकर जी को कोई ठग लेते हो। बीबी को ले गये, लेकिन बच गयी न उनकी बीबी । और वो जो भी देते हैं, वरदान देते हैं उससे ..... जरूर बच जाता है, वो उनके भोलेपन से ही। वो तो बेचारे अपना पूरा देते हैं आशीर्वाद ! लेकिन उसमें एक न एक कोई ऐसी गड़बड़ छूट जाती है कि जिससे वो मर जाता है आदमी। नरसिंह अवतार में आप जानते हैं। उन्होंने वरदान दिया हुआ था। ये पकड़ आ गयी तो मारे गये। रावण को वरदान दिया मारे गये। कंस को वरदान दिया था मारे गये। नरकासुर, महिषासुर सब मारे गये वरदान दिये हुये। ये वरदान का लूप होल भी शंकर जी के भोलेपन का ही भाग है और उनका जो नटखटपना है विष्णुजी में है। इसलिये उनका कॉम्बिनेशन अच्छा चलता है, शंकरजी और विष्णुजी में बड़ा बढ़िया कॉम्बिनेशन है। और जब तक वो बैठे हैं तो आपको चिंता की कोई बात ही नहीं। कभी आप शंकर जी के पास जाईये, कभी विष्णु जी के पास जाईये। लाइट बात है। बहुत सीरियस बात नहीं है ये। सीरियस नहीं बिल्कुल लाइट । अपने मन को एकदम लाइट रखे। अभी एरोप्लेन आये, उधर देखोगे, उधर कुछ आये उधर देखोगे, हर एक चीज़ को । एरोप्लेन हमारे यहाँ आता है हजारों बार। जितनी बार एरोप्लेन आयेगा सब बच्चे दौड़ कर के बाय, बाय करेंगे। समुंदर का पानी आता है दो बार । जितनी बार समुंदर का पानी आयेगा सब बच्चे दौड़ के जायेंगे, चिल्लायेंगे। कहीं भी कोई हलचल हो जाये, दौड़ गये। कहने का मतलब ये है कि जो भोला आदमी होता है, वो परमेश्वर के पास है। तभी वो भोला है। वो दिखने में ना इतना व्यवस्थित है ना कोई बात आपको चमत्कार दिखायेगी, ना उसे बुद्धिचातुर्य और ऐसा आदमी हमारे सहजयोग के लिये दोस्त है। जो भोला, सीधा-साधा, सरल होता है और अधिकतर मैंने ये भी देखा कि जिनियस लोग होते हैं, विद्वान वो बड़े भोले होते है। मुझे कभी कभी उनके भोलेपन पे ऐसा ये आता है, इतनी भोली जैसी बात करेंगे, कि लगता है कोई छोटा बच्चा है। इतने ज्ञानी पुरुष हो कर भी इतने भोलेपन से बात करते हैं कभी कभी आश्चर्य होता है। जो ज्ञान उन्होंने पाया है वो परमात्मा से पाया है। उनके भोलेपन की वजह से ही उनके अन्दर है । आप बात करें या न करें, ये मेरा मतलब नहीं है। लेकिन अन्दर कुछ हंसती-खेलती दुनिया है एक छोटे बच्चे में। अधिकतर बच्चों की कंपनी में रहा करो, बूढों की कंपनी में मत रहा करो। हमारे यहाँ कोई कोई ८० साल के भी लोग १८ साल के हो गये हैं। ऐसे लोगों की कंपनी में रहा करे कि जो बच्चों जैसे हैं। और अपना मन भी बच्चों जैसा साधा रखे. जिससे सहजयोग में बड़ी मदद रहेगी। आदमी आगे बढ़ता है। बच्चे जब मेरे पास पार होते हैं, मैं देखती हूँ वो बड़ी श्रद्धा से। मेरे दो बच्चे हैं, ग्रँड चिल्ड्रन, आप जानते हैं, दोनों पार ही हैं। रोज घर में झगड़ा, पूजा में भी जाने का है, मुझे लगता है दोनों मेरे गोद में बैठ जायेंगे इससे बेहतर है कि उनसे बता दूँ। रोज सबेरे उठ कर के, इतने छोटे बच्चे, डेढ़ साल के, दो साल के, दोनों पैर के नीचे में हाथ रख कर के सर लगा के आधा घण्टा, कौन बच्चा रहेगा दूध पिये बगैर। वो किये बगैर उनका होता ही नहीं। जैसे की दूध से भी ज्यादा जरूरी है। बड़ी वाली को बता दी अब छोटी वाली कुण्डलिनी ...... और छोटी वाली जैसे ही उन पर हम हाथ रखेंगे। अब उस दिन नौकरानी को गरम गरम आता था तो 'जाओ, नानी के पैर पड़ो।' बड़ी वाली कहती थी। और उनको लगन है। नानी हम को पूजा में ले जाओ, नानी हम को पूजा में ले जाओ। छोटे छोटे बच्चों को जिनको बिस्कीट, चॉकलेट अच्छे लगते हैं, चॉकलेट नहीं चाहिये, कुछ नहीं चाहिये, बस पूजा में ले जाओ। जैसा बच्चे अपने माँ के लिये, दुनिया में कुछ भी उसको दो, माँ के लिये रोता है ऐसे ही हैं। कहने से नहीं होता। मैं कहूँगी शराब पिओ, शराब पिओ... | शराब तो मुँह में लग जायेगी लेकिन ध्यान नहीं लगने वाला। ध्यान नहीं लगने वाला आसानी से शराब लग जायेगी। ध्यान मुँह में जब लग जायेगा तब फिर मुझे कुछ कहना नहीं पड़ेगा। इसलिये आपकी इच्छा बहुत जरूरी है। आपकी इच्छा बहुत ज्यादा मान जायें, इसका बड़ा मान है और इसलिये आपको इच्छा करनी पड़ेगी। 'प्रभु, मुझे तेरी लगन लगे, तेरी' जैसे जैसे आदमी यही कहता जायेगा, धीरे धीरे ये चीज़ यही घटती है, यही बसती है, उतरता जायेगा अपने ही अन्दर, अपनी ही गहराई में। अपनी ही सुन्दरता में जायेगा। मैंने आपसे बताया था पहले भाषणों में, पहली चीज़ जरूरी है सहजयोग में वो है प्रेम। जो आदमी प्रेम नहीं कर सकता वो सहजयोग में उतर नहीं सकता। और प्रेम का भी थोड़ा बहुत आप से बताया था। उसके बाद मैंने कहा था, पवित्रता। जो आदमी पवित्रता की भावना नहीं रखता है, वो भी आदमी सहजयोग में उतर नहीं सकता। आदिकाल से पवित्रता की भावनायें चलती आयीं हैं। उन्हीं को ले कर मैंने कहा है । आज तीसरी बात बताना है, खास कर रियलाइज्ड लोगों के लिये कि रियलाइजेशन हमारा नया जन्म है। जब बच्चा जन्मता है, कोई भी बच्चा आप देखिये, संसार की कोई भी जाति का हो, चाहे वो जपानी हो, चाहे वो अफ्रिकन हो, चाहे वो अमेरिकन हो, उस बच्चे में एक चीज़ सब में होती है और वो है उसकी अबोधिता, उसका इनोसन्स। बच्चे की विशेषता है इसका इनोसन्स । इसलिये रियलाइज्ड आदमी तभी कहलाया जायेगा जब वो पूरी तरह से इनोसन्स में उतर जायें | वैसे भी जो बहुत चालाक लोग होते हैं, चातुर्य बहुत ज्यादा होता है और जिनकी बुद्धि बड़ी तल्लख होती है और हजार आदमिओं को ठग लेने में और झूठ बोलने में, चालाकी दिखाने में बड़े तरबेज़ होते हैं, ऐसे लोग सहजयोग के लिये बिल्कुल बेकार होते हैं। इसलिये जो लोग काफ़ी ठगाये गये हैं दुनिया में और सताये गये हैं, वो सहजयोग के लिये बहुत ठीक हैं। संसार में चाहे वो बहुत यशस्वी लोग न हो, लेकिन सहजयोग में वो बहुत ही ज्यादा यशस्वी हैं। अबोधिता एक बहुत बड़ी देन है। यह भी जन्मजन्मांतर की .. (अस्पष्ट)। आप देखियेगा बहुत से बुजुर्ग लोग भी बहुत ही अबोध होते हैं। बहुत भोलेभाले, बहुत सीधेसाधे और बहुत से छोटे बच्चे भी बहुत चालाक, धूर्त होते हैं। आजकल के जमाने में जो आदमी दो-चार पैसे ले के किसी को ठग मारे वो सब से बड़ा यशस्वी आदमी समझा जाता है। एक उदाहरण के तौर पे, जैसे एक हमारे रिश्तेदार थे । हम उनके घर गये, वो अपने को बड़े भारी आदमी समझते थे और वो बड़े विद्वान समझते हैं अपने को और बीवी बेचारी अनपढ़। उसको वो कुछ खास समझते नहीं। कहते हैं, 'बेवकूफ़ है, ये सारा मेरा पैसा लुटा देगी।' एक पहले दर्जे के कंजूष हैं वो बताने लग गये, देखिये, ये जमीन है, ये मकान है, ये पूरा किराये पर ले लिया और तीस साल पहले कर लिया था और इसका मैं सिर्फ सौ रुपया किराया दे रही हूँ। और ये सारी जमीन मेरे कब्जे में है और किसी की मजाल नहीं की हाथ लगाये।' बैठे हुये है आराम से। न कहीं जाते हैं, बैठे है जमीन पर दावा लगा कर के। और कहने लगे, 'मेरी उल्लू बीबी है। उसकी वजह से मुश्किल है। न जाने आज कितने महल खड़े किये होते। अब किराये के मकान में रह रहा हूँ।' उनको तीन- चार गाली देने में भी उनको कोई हर्ज नहीं था। लेकिन ये तो हमारे रिश्ते में जेठ होते थे, तो हम चुपचाप बैठे, अभी क्या बोले। इसके बाद उनकी जो बीबी थी वो बेचारी चुपचाप सुन के घर जाती। इतने में एक आदमी आया। वो कहने लगा, ‘साहब, देखिये, मैं घरमालिक की ओर से आया हूँ और घर मालकिन कह रही है कि आपके यहाँ इतने इमली के पेड़ है, उन्हें इमली बहुत पसंद आती है। तो आप कहिये, दो रुपया आपको देते है, आप हमें थोड़ी 2 इमली दे दीजिये।' ये बिगड़ गये। ‘वा, क्या सोचते हो, दो रुपये की इमली कहाँ से आयेगी। पाँच रुपये दो तो देंगे।' काफी झकझक झकझक करी। उसके बाद अपने बीबी से कहा, 'खबरदार, ये आदमी ऊपर चढ़ने न पाये । यहाँ से इमली न उतारने पाये।’ उसके बेचारे के सौ रुपये के मकान में वो रह रहे हैं। उसको कम से कम कुछ नहीं तो तीन- चार हजार रुपये का नुकसान कर रहे हैं। बड़ा पैसे वाला है। दे सकता है सब कुछ। अब कहने लगे कि, 'ऐसा लॉ आने वाला है। ये घर मेरा होने वाला है। मेरा इस पे कब्जा होने वाला है।' इसकी वो इंतजार में है। बहरहाल जब वो चले गये तो उनकी बीबी ने उस आदमी को अन्दर बुलाया। कहने लगी, 'तुमको कौनसी इमली के मँगवायें हैं, वो तोड़ लो।' उसको देख के पाँच रुपये निकाल दिये, तो उसने कहा, 'पाँच रुपये क्यों दे रहे हो ? मुझी को देना है पैसा।’ कहने लगी, ‘अरे भाई, तुम चढ़े। तुम्ही ने मेहनत करी। इसके पाँच रुपये । और उनको मेरा नमस्ते कहना। जाओ। ले जाओ। भाग जाओ। और कल अगर और चाहिये तो आ जाना, लेकिन बारह बजे के बाद आना तब ये चले जाते हैं।' तो उसने ये जबाब दिया कि 'मैं तो इंतजार में था कि कब खिसकेंगे और मैं इमली तोडूंगा। मैं आपको तो जानता हूँ।' अब वो अपने को बड़े चालाक, होशियार समझते हैं। और सब उनपे हँसते हैं, 'गधे कहीं के।' इस तरह जो अकलमंद लोग हैं, जो अपने को बड़े चालाक, होशियार और झूठ बोलना, इसमें जो अपने को बड़े होशियार समझते हैं, वो सब होशियारी जो है जहाँ के तहाँ रह जायेगी । और ऐसों का सहजयोग नहीं होने वाला। और कल अगर संहार शुरू हो गया तो ये लोग पहले कटेंगे और भोला आदमी हमेशा बच जाता है। भोले आदमी में बड़ी विशेषता होती है। मैं स्वयं बहुत भोली हूँ। बहुत लोग मुझे कहते है। मेरे घर में तो सब लोग मुझ से परेशान हैं। मेरे भोलेपन से । हमारे घर में ऐसा हुआ एक दिन की हम दिल्ली में रहते थे तब कि बात है। बहुत साल पहले की । तो बजार गये थे। दिल्ली के बजार में। वहाँ एक आदमी आया बेचारा, मुझ से कहने लगा कि, 'बहुत चोट लग गयी है। और समझ में नहीं आता मैं कैसे करूँ? मैं कैसे जिऊँगा?' मैंने कहा, 'चलो, मोटर में बैठो तुम ।' उसको घर ले आये। घर पे लाये तो उसको हमने मलमपट्टी करी । और वैसे भी हमें जरूरत है मलमपट्टी करने की । हाथ फेरा, बिचारा ठीक हो गया। उसको मेरे लिये बड़ा प्रेम हा गया । और वो सुबह से शाम तक, चार बजे मैं उठी तो वो भी चार बजे उठ के सब मेहनत करी जो मैं कर रही हूँ। लेकिन हमारे घर के लोग बहुत व्यवहार चातुर्य । उनका कहना, 'पता नहीं, कहाँ से चोट खा के आया है। हो सकता है कोई डाकू होगा ।' मैंने कहा, 'होगा डाकू, अब तो बदल गया है न! अब उसका कितना स्वभाव बदल गया है।' मैंने कहा, 'उस पे विश्वास तो कर के देखो।' कहने लगे, 'नहीं नहीं, इसको तो पुलिस में देना होगा। पुलिस को पता करना चाहिये। रोज उसके पीछे पड़ सब लोग लगे रहे। हमारे भाईसाहब भी थे, मेरे हजबंड भी थे, और भी लोग, सब लोग। उनकी कॉन्फरन्स हो गयी। इसको बिठाना ही चाहिये पुलिस में । मैंने कहा, 'भाई, माफ़ कर दो एक बार । देखो, अगर चोरी करना है तो कर ही लेगा। नहीं होगा तो ठीक ही है। ऐसी कौन सी बात है। ऐसा कौनसा हमारे पास धन घर के अन्दर पड़ा हुआ है।' तो उस के पीछे ये लोग पड़े। एक दिन हम शादी में गये। शादी में हम लोग गये तो उसको बाहर बिठा के गये । अन्दर घर में नहीं । चोरी कर जायेगा, फलाना होगा। मैंने कहा, 'अच्छा भाई!' हम जेवर पहन के गये थे। रात को दो बजे करीब आये। सब थक गये थे। मेरे हजबंड भी सो गये। मेरे भाई भी सो गये। मैं भी सो गयी। मैंने जेवर उठा कर के बाथरूम में रख दिये। सब को कोई सोचवोच नहीं रहा कि घर में चोर है। जब सबेरे उठे तो हमारे हजबंड की पैर की चप्पल गायब। इनका देखा तो 3 पर्स गायब। वहाँ से आगे गये तो कोट गायब। आगे चले, मेरे भाई साहब थे, उनके पाँच सौ रुपये गायब। उनका कोट गायब। उनका न जाने एक बक्सा के बक्सा ही खाली था । और मेरे इतने महँगे जेवर वहाँ पड़े हुये थे, खानदानी हमारे जेवर, एक चीज़ को कुछ हुआ नहीं। इनकी सब चीज़े उठा के वो भागता पड़ा। क्योंकि उनके लिये वो डाकू ही था। मेरा सब सामान छोड़ गया और इन सब की चीज़े ले के चंपत हो गया। तो वो लोग कहने लगे कि 'ये आश्चर्य है, हमने ता कुछ किया नहीं।' हमने कहा, 'तुम उसकी जान पे लगे हुये थे न ! पुलिस में जाओ, पुलिस में जाओ। तो देखो।' उस पे विश्वास करते ! हम घर पे भी नौकरों पर कर के देखिये। विश्वास करें, विश्वास रखें। हम विश्वास इसलिये नहीं करते कि हमारा अपने ऊपर विश्वास नहीं। दुनिया सब पे विश्वास रखिये। जितना हम विश्वास करना सीखेंगे उतना ही इन्सान आप पे विश्वास करेगा। लाख में से एकाध आप को ठगेगा । हम को तो कोई ठग ही नहीं पाता। ठगना भी चाहें तो ठग ही नहीं पाता। ठगता नहीं। और हम पाते क्या हैं? दो-चार रूपया ही न! ठग के क्या पाते हैं? कौन सी गठरी ? पाप की तो गठरी पाते हैं। मुझ से यहाँ पर भी बहुत से लोग होशियारी दिखाते हैं। कुछ ऐसे पढ़ाते है बातें इधर उधर की। जितनी मैं भोली हूँ, उतना ही मेरे जो अन्दर का है न वो बड़ा है। मैं किसी चक्कर में नहीं आती। बड़ा मुश्किल है मुझे चक्कर में डालना। अब कोई कहे, ये चीज़ें, वो चीजें। चक्कर में नहीं आने वाली! हालांकि मैं हूँ बहुत सीधी-साधी । इसकी वजह है वजह ये है कि जो आदमी रियलाइज्ड होता है और जो अपने चित्त लिये बैठा है वो कहीं उलझता ही नहीं। आपने मेरे साथ चालाकी की, वो दिव्य जो है वो घुमा देगा उधर के उधर । कोई आदमी चालाकी करेगा ही मेरे साथ वो फट् से उसे घुमा देगा। इसी का एक और उदाहरण देती हूँ। रामकृष्ण परमहंस की पत्नी, दोनों आदमी एक बार जंगल में जा रहे थे। ये बिल्कुल भोली भाली थी बेचारी । जंगल में से आ रहे थे तो जंगल में से आते आते ऐसा हुआ कि रामकृष्ण तो आगे चले गये, वो पीछे रह गयी। तो चोरों ने सोचा कि चलो कोई औरत मिल गयी, पकड़ो इसको । तो उसके साथ हो लिये। उन्होंने कहा कि, 'भाई, तुम आ गये। अच्छा हो गया । तुम्हारे दामाद जो है, सामने चले गये और मैं अकेली रह गयी । चलो, तुम मेरे भाई आ गये, मेरे बाप आ गये, मेरे लिये बड़ा अच्छा हो गया। मेरे लिये तो कुछ आराम हो गया। नहीं तो मैं सोच रही थी, कि अकेले मैं रास्ता कैसे ढूँढूंगी । चलो, भाई तुम्हारा क्या नाम है? अच्छा तुम मेरे भैय्या हो । तुम मेरे बाप हो ।' वो लोग कहने लगे, हम तो इसको पकड़ के ले जा रहे थे। ये तो हम को बाप, भाई बना रही है। उसके सीधेपन से और भोलेपन से इतने रीझ गये, कि वो उसको घर ले गये और जिंदगीभर अपनी लड़की की तरह बनाया और रामकृष्ण को अपने दामाद जैसे | वो चोर और डाकू लोग भी प्यार पहचानते हैं। साँप और शेर और गीदड़ ये सब प्यार पहचानते हैं। क्योंकि शेर अपने बच्चे को नहीं खाता । साँप अपने बच्चे को नहीं काटता। और हम भी साँप हो जायें तो साँप हम को नहीं पहचानेगा। भोलापन हमेशा मदद करता है। जो आदमी भोला होता है उसको दुनिया हमेशा मदद करती है और एक उसका मॉडर्न उदाहरण देती हूँ। एक साहब कस्टम में थे। भोले भाले थे। बोलते बहुत थे | भोले लोग बोलते भी ज्यादा है कभी कभी। क्योंकि उनमें चालाकी नहीं थी ना ! अन्दर में घुस के बैठेंगे या कभी बोलते हैं, कभी नहीं बोलते हैं। ये जरूरी नहीं कि हर एक भोला आदमी बोलता है। चालाक भी कभी-कभी बड़बड़ाते हैं बहुत। तो ये जो भोलापन था इस आदमी का, वो आ कर के इसको बताये, कि 'अरे साहब, मैं गया था वहाँ, मैंने वहाँ से लाया में 4 है कैमेरा।' एक कस्टम ऑफिसर को बताये। अमरिका से आये और कस्टम ऑफिसर को बताते हैं कि 'कैमेरा लाया हूँ, ऐसा कैमेरा है, किसी को देखना है।' और दिखाने लगा। यहाँ लोग छुपाते हैं अपना कैमेरा । फिर उसको बताने लगे कि, 'मैं वहाँ से डायमंड रिंग ले के आया। किसी को देखना है। देखो, मैं लाया हूँ।' तो वो जो इतने भोले पन से बोलने लग गया, कि वो कस्टम ऑफिसर ने सोचा कि ये ऐसे ही डींग मार रहा है । ये लाया क्या होगा। मुझे बेवकूफ बना रहा है। असली लाया वो ऐसी बात क्यों करेगा। तो कहने लगा, 'अभी जा, मेरा सिरदर्द कम होगा।' और दूसरा आदमी आयेगा, छुपा के और इधर उधर देख के तो उनको, 'आईये इधर, आपके पास क्या है?' । भोले आदमी पर वैसे भी मनुष्य को तरस आता है। अगर कोई भोले आदमी को सताता है तो उसकी आहें इतनी लगती है कि वो डर से भी आदमी सताना भूल जायें और कोई भोले आदमी को सताता है तो जन्मजन्मांतर उसे देना पड़ता है। इसलिये भोला आदमी सब से श्रेष्ठ है। और जो आदमी बहुत ज़्यादा किसी चीज़ में उलझता है, अधिकतर आप देखियेगा, ज्यादा तर ऐसा होता है, कि जब भी आदमी को कोई बूरा काम करना होता है वो बड़ा सिरीयस हो जाता है। हमने ऐसे साहब को देखा है, जिनकी आदत थी ब्राइब लेने की । हमारे हजबंड को वो कहते थे कि, 'तुम घटिया टाइप हो। तुम को तो पैसा ही लेना नहीं आता ।' ऐसे कहा करते थे। लेकिन मैंने देखा है, कि उनसे अगर कोई आदमी मिलने आये और वो पैसे वैसे की बात करने वाला हो, मतलब लेने देने की, एकदम वो सिरीयस हो जाते हैं। हसते खेलते एकदम सिरीयस हो जाते हैं। समझ जाओ कुछ न कुछ ब्राइब की बात है। एक साहब थे, मुझे मालूम है। इनको कैब्रे में जाने का बहुत शौक है। और जब भी कैब्रे की बात होती थी बड़े सिरीयस हो जाते थे। कहाँ जाने का ? कैसे जाने का ? कब जाने का ? बाकी समय हँसते रहेंगे। कैब्रे के मामले में बिल्कुल प्लॅनिंग कर के, सिरीयस हो के, कैब्रे में जाएंगे। कैब्रे में क्यों जाना चाहिये ? अरे, आपको सिरीयस ही रहना है तो मंदिर में जा के बैठो। नहीं वो वहाँ जायेगा । जो आदमी हंसता - खेलता हर समय रहता है और हल्का फुल्का रहता है, उस आदमी को ऐसे रहने से क्या बेवकूफ़ी है, ये क्या बेवकूफ़ी है। भोला जो आदमी होता है वो नटखट होता है। उसका नटखटापन जो होता है वो उसके भोलेपन से आता है। जैसे वो कोई न कोई खुराक लगा देगा। जैसा बताया है। एक साहब हमारे यहाँ आये । उनको बड़ा शौक था कैब्रे डान्स का। कैब्रे माने आपको मालूम नहीं होगा, वहाँ नग्न नृत्य होता है। अब हमसे तो कह नहीं सकते क्योंकि रिश्ते में हमे बड़े होते थे। तो हमारे घर में एक बड़े सिविल वाले साहब हैं। वो ऐसे ही नटखट टाइप हैं । तो उनसे कहने लगे, 'हमको ले चलिये।' अब वो बुजुर्ग आदमी ठहरे। शैतान बहुत है न ! वो ले गये और पुलिस थाने में उनको डाल दिया। 'मैं तो आऊंगा नहीं, आप चले जाईये ।' वो बेचारे सीधे चले गये। वहाँ जा के देखा तो सब पुलिस वाले खड़े। वो बेचारे आये थे देहात से । उनको मालूम नहीं था कहाँ, कैसे होता है? उनको लगा, पुलिस वहाँ लगती होगी। ऐसे जगह जरूर पुलिस होती है। ऐसी जगह जहाँ ऐसे धंधे होते हैं वहाँ पुलिस लगती है। तो उन्होंने सोचा, इसलिये यहाँ पुलिस है। अन्दर गये तो लोगों ने कहा, 'साहब, आपको कोई कम्प्लेंट है ?' उन्होंने कहा, 'नहीं, वो जरा हमको देखना है' इन्होंने कहा, 'क्या ?' 'अब आप समझ लीजिये, जो बात है उसको ।' इन्होंने कहा, 'आखिर क्या बात है?' उन्होंने कहा, 'साहब, क्यों मज़ाक कर रहे हो। जिस चीज़ के लिये जगह बनी वहीं 5 हम आये हैं।' वो कहने लगे, 'तो आईये, सीधे हवालात में!' और कहने लगे, 'हवालात में आपको किस ने पहुँचा दिया?’ ऐसे उनको बेवकूफ़ बनाया जाता है। ये जो अपनी विषय की ओर दौड़ने की युक्ति है, ये आदमी को चालाक बनाती है। क्योंकि उसको छुपाने के लिये आदमी जरूर चालाक बनता है। विषय की ओर दौड़ने की अपनी जो प्रवृत्तियाँ हैं बार बार उसी की ओर प्रवृत्ति दौड़ती है। रियलाइजेशन के बाद ठीक होता है और देख सकते हैं कि अरे वा, बेवकूफ़ की तरह चले जा रहे हैं वहाँ पर । कहाँ चले जा रहे हैं? अपनी ओर हम देख सकते हैं। अपनी बेवकूफ़ियाँ देख सकते हैं। अपने साथ खिलवाड़ भी कर सकते हैं। अपने साथ नटखटपना कर सकते हैं। बहुत अपने साथ खेल कर सकते हैं। देख सकते हैं, किस बेवकूफ़ी में हम फँसे हुये हैं। तो भोला आदमी जो होता है वो अलिप्त हो कर के देखता है मज़ा, 'क्या अजीब हालत है साहब | समझ में नहीं आता है।' ये भोलेपन की निशानियाँ है । भोला आदमी जो होता है उसका चित्त कहीं ऐसा दौड़ता है। वो अपने भोलेपन में अन्दर है। जैसे छोटे बच्चे, उनको अगर आप किसी कैब्रे डान्स तो छोड़िये, आप किसी व्यक्ति से मिला दीजिये तो जोर जोर से रोना शुरू कर देते हैं। उनके बाल वाल देख के एकदम रोना शुरू कर देते हैं। आप अगर कैब्रे डान्स में छोटे बच्चे को ले कर जाईये, बहुत जोर से रोते हैं। आप कोशिश कर के देखिये, किसी समझदार बच्चे को ले जायें, ३-४ साल के बच्चे को तो वो जोर जोर से रोना शुरू कर देगा कि ये क्या है? बच्चे की आप हालत देखिये, कि अगर उसके सामने कोई भी विक्षिप्तता होती है तो इसकी ओर वो पहले रोने लग जाता है। और या तो उसको समझ नहीं आता है कि ये क्या है ? या दूसरा काम, कोई भी बात वो सीधी सीधी कह देता है। उनमें कोई लगाव, छुपाव, दुराव कभी नहीं होता। ऐसे बच्चे हर एक चीज़ को देखते रहते हैं। जैसे एक बार किसी ने कहा अपने बच्चे से वो साहब आ रहे हैं, लेकिन खाते है घोड़े जैसे। अब उन्होंने वो सुन लिया। अपनी पत्नी को उन्होंने कहा, उनसे तो कहा नहीं कुछ। जब वो आ के बैठे तो ये उनकी शकल जा के देखें बार बार । उसके बाद कहने लगे, 'मम्मी, ये तो घोड़े जैसे नहीं खाते। कुछ भी कह रहे, घोड़े जैसे खाते हैं।' मानो, उसमें उनको कोई ये नहीं लगा, कि भाई, मैं कोई बुरी बात कह रही हूँ, अच्छी बात कह रही हूँ। किसी को दुःख देने वाली बात है। सीधी सीधी बात उन्होंने कह दी। और बच्चों में ये समझ आ जाती है कि ये किस तरह से कर रहे हैं, उनका क्या ढंग है। सब की नकल उतारते हैं। बच्चों में आदत होती है। नकल उतारने वाला आदमी भी एक तरह से भोला होता है। क्योंकि वो भी नकल तभी उतार सकता है, जब कि वो साक्षी हो और खास कर वो अपनी नकल उतार सके ये सब से बड़ी बात है। जो आदमी अपने ऊपर हँस सकता है वो सब से भोला आदमी है। अपनी बेवकूफ़ी की है, हँसो । अपनी ओर नज़र करें कि क्या साहब दौड़े चले जा रहे हैं। क्या कहने। तोंद आपकी निकली हुई है, बाल आपके चले गये हैं। जा कहाँ रहे हैं आप। जेब में पैसा नहीं है आप की नज़र कहाँ तक जायेगी। बार बार आपकी नज़र कहाँ उतरेगी । रियलाइजेशन के बाद जो आदमी इतनी लगन से आता है वो सज्जनों की संगति को जोड़ता है। और जो आदमी गहराई में नहीं उतरता वो अपना बहाना ढूँढता है और दुर्जनों की संगति में घूमता है। दूसरी संगति में घूमेगा वो हजारों बहाने बतायेगा कि आना नही हो सकता। और जिनको आना है देवळे साहब से बतायें। लेकिन देवळे साहब को कहीं जाने का है। रस्ते में चलते 6 चलते मैंने यही खोज लिया कि देवळे साहब हमारे यहाँ बैठ गये मोटर में और फिर चल दिये। उनका कुछ प्रोग्रॅम था। वो बैठ गये मोटर में और चले आये बाहर । उनको तीन घंटा हमने लगाया। क्योंकि इसमें जो मजा आ रहा है और किसी चीज़ में नहीं। लेकिन जब इसका मजा ही पूरा नहीं है तो चित्त जरूर बाहर दौड़ेगा। 'आज कहाँ गये थे ? पार्टी में गये थे। क्यों साहब ? जाना ही पड़ा, इसमें ऐसा था, उसमें ऐसा था ।' और भोले जो यहाँ रोज आते है। उनका क्या होगा? क्योंकि सज्जनों की संगती में विषयों की ओर चित्त जाता ही नहीं, उलझता ही नहीं। भागो, प्रोग्रॅम है भागो। यहाँ सज्जनों का मेला लगता है। सत्संगती में बैठ के जो मजा आयेगा, वो वहाँ क्या मजा आने वाला है। यहाँ इतनी चली आ रही है, जो दिखायी नहीं देती। जो उनको दिखायी नहीं दे रही लेकिन आ रही है। यहाँ पे बरस रही है, वहाँ हम खींचे चले जा रहे हैं। उस परमात्मा की बेसुमार, बड़ा मज़ा आयेगा। माताजी आये चाहे नहीं आये। बैठ जाओ। दूसरे रियलाइज्ड आदमी को मिलने में जो मज़ा आता है, आहाहा, आ गये बड़ा मजा आयेगा। लेकिन जो लोग अभी पूरी तरह से उतरे नहीं हैं वो अभी भूतों की तरफ ही गये हैं। 'करना पड़ता है, जाना पड़ता है। मिलना पड़ता है।' कुछ जाना नहीं पड़ता है, करना नहीं पड़ता है और देखना नहीं पड़ता है। आपका चित्त अगर यहाँ है तो आपको आना ही पड़ता है। कल अगर आप शराबी हैं तो शराबखाने में ही पाईयेगा और अगर आप रियलाइज्ड है तो ..... (अस्पष्ट) और जगह जाने से मतलब। जब मज़ा का सारा अर्थ ही यहाँ पर है, तो और जगह घूमने से मतलब! हर वक्त चिल्लाते ही चिल्लाते हैं। शराबी लोग चिल्लाते हैं सारा वक्त। शराब न पी, ये न कर, वो न कर। वो छोड़ता है क्या अपनी बोतल । घर में नहीं तो बाहर, बाहर नहीं तो दोस्त के घर में। सीधे सीधे रमी खेलने वाला आदमी देखिये जो रमी खेलता है। इसकी बीबी चिल्लाने लग गयी तो वो अपने घर में जा के खेलेगा। वहाँ पे चिल्लाये तो उधर जा के खेलेगा । वहाँ पुलिस चिल्लायी तो और कहीं जा के खेलेगा। ये छोड़ने वाला नहीं। इसलिये लत नहीं लगनी चाहिये। अगर लत लग गयी तो कहीं भी मज़ा नहीं आता। यही बात, यही सोचना, यही बोलना, यही करना । लोग कहते हैं कि, 'तुम्हारी माताजी से हम बोअर हो गये।' लेकिन आप बोअर नहीं होने वाले। आप कहें, चलो तो, देखो तो क्या बात है। कोई किसी की भी बात कहेगा तो ये कहेगा कि भाई पहले चलेगा। पहले उसे देखिये। सब की बात तो बाद में होती रहेगी। हमने पाया है, हमने जरूर जाना है। और सारे घर वालों को हम बदल दे। घर वाले तो आपको पसन्द कर नहीं सकते जब तक वो लोग पार नहीं। ये कोई भी गुस्सा होने की बात नहीं। एक बार हमारे यहाँ ऐसा ही हो गया कि एक साहब हमारे पर गुस्सा हो गये कि, 'आप बार बार जाती हो । आपने सामान रखना शुरू कर दिया, तो हमने भी सामान रखना शुरू कर दिया ।' 'देखो साहब, आपको जिस चीज़ की शौक है आप करें। हमें जिस चीज़ का शौक है हम करते हैं। वो तो आप चाहे रोके, चाहे नहीं रोकिये, हम को तो जाना होगा ही। चाहे हम यहीं भी बैठे रहें चित्त तो हमारा वहीं है।' जब इसका मज़ा लग गया। अब नाटक वाले देखिये। जिनको नाटक का शौक होता है। चाहे जेब में पाँच रुपया नहीं हो तो तीन रुपये का टिकट ले कर भी जायेंगे नाटक देखने । हर जगह आप अपना पैसा दे कर के पूरा शौक पूरा करते है, यहाँ बिन पैसे का शौक । क्या मज़ा आता है। दूसरों में बँट जाने में जो मज़ा आता है, और किसी चीज़ में नहीं। लोग बाहर रुपया, इसको दान करो, उसको दान करो, दान कमिटी बनायेंगे। बाहर जा के, बांग्लादेश जा के दान करेंगे। अरे, यही दान हो रहा है बस् ! 7 एक छोटासा बच्चा है। उसको लग गयी .... (अस्पष्ट) 'लागी नाही छूटे' पर लगनी तो चाहिये। जबान में लगती नहीं। क्योंकि आपका दिल और आपकी इच्छा चाहिये। जिसका मज़ा है वो तो गहराई में जा कर के लो और वो तभी होता है कि आदमी इतना भोला हो और वो अपनी धुन में चलता रहे। वो भोलेपन से ही बच जाता है। उसका जो भोलापन है उसको बचाता है। और आदमी भोला तभी होता है जब परमात्मा के हवाले है। क्योंकि उसका सब प्लैनिंग करने वाला वो बैठा है। सब देखने वाला वो बैठा है। बच्चा क्यों भोला है? क्योंकि वो उसकी माँ के हवाले है। अपने पास और भी आयुध है लोगों को ट्रीट करने के। आप तो जानते हैं बहुत सारे आयुध हैं। कोई बिगड़े, नाराज़ हो, घूमाओ। लेकिन पहले अपने ऊपर घुमाईये । हो सकता है कि आप भी अपने दिमाग के अभिपारित हो । अपना ही दिमाग आपको समझा रहा है, ये नहीं हुआ तो ये नहीं नहीं ऐसा नहीं । जब बिल्कुल सब कुछ शांत हो जायें। मुंबई में कोई सिनेमा न चलता हो, कोई पार्टी न होती हो, कोई शादी न होती हो, घर में कोई मेहमान न हो, ऐसा दिन तो मेरे ख्याल में आज तक न आयें। तो फिर वैसा ही आप पायेंगे । जितनी अन्दर से मुमुक्षुता आपके पास खींचेगी और उसको देखना पड़ेगा। है अन्दर। उसके बगैर आप पार होने वाले नहीं। पिछले जनम में और मेरे चले जाने के बाद, खास कर, मैं जाने वाली नहीं, एखाद-दो महिने में चली जाऊँगी। जब तक हिम्मत है तब तक .... (अस्पष्ट) । देखिये अब क्या होता है? लेकिन आप लोगों में से ऐसे कितने लोग हैं...। इस बात को कितने लोग सोच रहे हैं, कि हमारे हाथ से हजारो लोगों का कल्याण होने वाला है। हमारे हाथ से हजारों लोग पार होने वाले हैं। और हम जो सीमित, अभी थोड़े से हैं, वो कहीं अधिक एक एक आदमी हजारों आदमी होंगे। आज ही मेरी बातचीत हुई थी ....साहब से | एक लक्ष्मणजी महाराज है वहाँ । कश्मिर में है, बड़े माने हैं, सबकुछ। मैं मानती हूँ। इतने माने हुये हैं, वो भी आपके जैसे सेल्फ रियलाइज्ड और वो कुण्डलिनी जागृति नहीं जानते। वो पार करना नहीं जानते। वो पढ़े लिखे आदमी है, सिर्फ पार है। उस पे भी उन्होंने अपना मत छोड़ा है कि सारे दुनिया में लोग इनसे मिले, उनसे मिले । उनसे मिल के क्या खाक होने वाला है। वो क्या कुण्डलिनी की जागृती जानते हैं? कुछ भी। ये उँगलियों से अगर कुण्डलिनी की जागृती करना सिखा दे, तो हम जो कहे वो करें । पर उनका नाम है, क्योंकि वो अपना मत बना के बैठे हैं। झंडा गाड के बैठे हैं। सब दुनिया उनको मिलने आती है। (अस्पष्ट) आप उनसे पूछिये कि किसी के चक्र बताईये तो मैं जो कहें वो मानू। अगर वो बता दें कि किस का चक्र कहाँ पकड़ा है, इतना भी बता दें या ये भी बता दें कि इस आदमी की जागृति हुई है कि नहीं तो मैं जो कहें वो करूं । इन्होंने मुझे देख कर ये भी नहीं पहचाना कि मैं रियलाइज्ड हूँ कि नहीं। तब फिर आगे की बात करें। और तुम लोग क्या पहचान लोगे कि नहीं? मैंने उनको देख कर के पहचान लिया कि इनके बापदादाओं से ले कर के और जन्मजन्मांतर के हजारों साल का सारा इतिहास सामने खुल गया । और इन महाशय जी ने अभी पहचाना भी नहीं और वहाँ सारी दुनिया उनको जानती है। बंबई शहर तक उनका नाम है, वहाँ नाम है, वहाँ नाम है। और यहाँ जो हजारों कितने ऊँचे लोग यहाँ बैठे हैं उनका कुछ भी नहीं। क्यों? क्योंकि ये संसारी लोग है। संसार में बैठे है। लेकिन जिस दिन आपने संसार ही सब कुछ समझ लिया सब व्यर्थ हो गया हमारा जीना ! आप इस संसार से उठ कर के जब तक आप पूरे सृष्टि में उतरेंगे नहीं और जब तक आप इसमें पूरी तरह से अपना ध्यान लगायेंगे नहीं तब तक आपका देना बिल्कुल बेकार हो गया। मैं यही सोचूंगी कि पत्थर के थे। एक 8 , एक आदमी एक महानुभावों से बड़ा है जिनके हजारों कॉलनियाँ हैं। इसी से ये सोच सकते हैं कि वो ये नहीं पहचान पायें कि मैं रियलाइज्ड हूँ या नहीं। ये छोटा बच्चा भी बता देता है कि रियलाइज्ड है। ऐसे भी लोग हैं जो रियलाइज्ड तो छोडिये जिनकी जागृती भी नहीं, इसके पीछे में झेंडा लगा के बैठे हैं। मारे ये लगा लगा के बैठे हो, 'ये साहब बहुत बड़े आदमी है।' कल अगर मेरे सामने आयें तो हूँ, हूँ होगा उनका और कुछ नहीं और आपके सामने भी ऊँ, ॐ होगी। ऐसे हैं वो लोग ! जरा सा हाथ आप कर दें कुण्डलिनी उनकी बढ़ा चढ़ा के ऐसे देखते रहें। आप लोग जानते हैं, इसलिये नटखटपना आ जाता है। भोला आदमी सब कुछ जान जाता है। इसलिये वो नटखट हो जाता है और ये नटखटपना हम यहाँ करते रहते हैं। आपने देखा है आप लोग थोडे थोडे नटखट हो गये हैं। थोडे थोडे आप नटखट हो गये हैं। जैसे किसी के ऊपर से भगाते हैं, उडाते हैं और हटाते हैं, और क्या क्या मज़ा आप करते हैं। कितना मज़ा हम लोग करते हैं। लेकिन जो अपने को ज्यादा अकलमंद समझे बैठे हैं और अपने को बड़े भारी आदमी समझे बैठे हैं और जो कहते हैं कि हम झंडा गाड़ के बड़े बड़े साधुबाबा हो गये। आपको कोई जरूरत नहीं ऐसी झूठी बात पर विश्वास करने की जब आपके पास सच्चाई है। आपके हाथ से आप जानते हैं। जब जान लिया किसी आदमी को कि ये ऐसा तो खत्म काम। जब वो आपके नीचे ही हैं तो आपका क्या मतलब है उसके सामने झुकने का! उसकी तरफ़ दौड़ने का! इसका मतलब है कि रियलाइजेशन में आप अपने चित्त पे ध्यान नहीं देते। चित्त पे जरा भी ध्यान आप दें, तो देखियेगा की चित्त विषय की ओर दौड रहा है। इसके मेस्मरिजम में या उसके तड़कभड़क में, उसकी आर्टिफिशिआलिटी में है। क्योंकि भोला आदमी आर्टिफिशिआलिटी जानता नहीं। वो सब के सामने अपनी सादगी पसंद है। उसमें कृत्रिमता बिल्कुल नहीं होती। सारी कृत्रिमता एकदम गिर जाती है। यानी ये भी कृत्रिमता कि हम कुछ हैं, फलाने हैं हम, हिंदू हैं, मुसलमान हैं, सब कृत्रिम है। हम क्या हैं, आप समझ लें । हम सिर्फ आत्मज्ञ हैं, रियलाइज्ड हैं। हम एक ही धागे के बंधे हुये जान हैं और लहर के ऊपर में साथ साथ हँसते है और साथ-साथ रोते हैं। सब एक साथ। मैं किसी को कहती हूँ कि आओ, शुरू शुरू में ऐसा है । शराबखाने का भी एडवर्टाइजमेंट देना पड़ता है, वहाँ एक ढोल पीट के आदमी कहता है, 'आओ, आओ, यहाँ शराब सस्ती मिलती है।' एक बार आओगे, थोड़ा चटका लगेगा, फिर ठीक होगा। चटका लगने की बात है। सारे प्रश्न सॉल्व हो जाते हैं। शराबी से पूछो। मैं तो ऐसे ऐसे गरीब लोगों को शराब पीते देख के बड़ा दुःख होता है। हमारा नौकर है। वो थोडी शराब पीता है। लंडन जाने का था तो मैंने कहा, 'तुम्हारा तो शराब के बिना चलता नहीं। मेरे घर में शराब चलती नहीं।' तो कहने लगा कि, 'माताजी, देखिये भाई, तो बात ये है कि लंडन में मैं तो पिऊंगा। मैंने कहा, 'तो आप यहीं बैठिये ।' कहने लगा, 'रोकना बहुत मुश्किल जायेगा मुझे।' मैंने कहा, 'रूकवा मैं दूँ, लेकिन तुमको प्रॉमिस करना होगा कि तुम मेरे साथ चलोगे ।' कहने लगा, 'माताजी, ले जाओ तो ले जाओ लेकिन शराब मैं तो वहाँ पिऊँगा।' सच्चा आदमी है। मैंने कहा, 'मेरा तेरा चल नहीं सकता। (अस्पष्ट) तू यही रह । सीधी बात है। तेरे को पीना है तो वहाँ नहीं चल सकता। अगर तेरा काबू होता है...।' 'मेरा काबू नहीं।' स्वयं कहें कि, 'मेरा काबू नहीं। अब मेरा काबू कहाँ रह गया। अब तो मैं इसी में बहाऊँगा।' धीरे धीरे देखना घरवाले भी आपके व्यवहार के लिये...। जो लोग महाकंजुष होंगे वो खुद देखेगें कि इतनी पैसों की चिंता है। पहले एक पैसे का हिसाब, दो पैसे का हिसाब | इसको इतना दिया, इससे इतना लिया। थोडे दो-चार रुपये छोड़ो। टॅक्सी वाले से झीक झीक | सब भगवान के हवाले है। धीरे धीरे उस आदमी में इतना भोलापन आ जाता है। पूरी तरह से वो भोला 9 हो जाता है। बिल्कुल भोला । देखिये छोटा बालक होता है। उसका सब कुछ माँ पर है, वो रोता है तभी जब उसे भूख लगती है तब उसकी माँ उसको दूध देगी क्योंकि वो बच्चा पूरी तरह से अपनी माँ पर है। जो बच्चा थोड़ा सा अपनी माँ ..... 'तू कमा और खा ।' लेकिन जो बच्चा पूरी तरह से माँ पर है, वो पूरी तरह से अपने माँ पर थोड़े दिन है, उसको कोई चिंता नहीं। उसको टाइम पे दूध मिल जायेगा, उसको टाइम पे देखा जायेगा। जब एक साधारण मनुष्य की माँ इतना करती है तब सारे संसार की माँ और सारे संसार का जो पालनकर्ता है वो कितना हमारा विचार करता है। मैंने बहुत बार आपसे कहा है, कि रियलाइजेशन में आप से दिव्यता है। दिव्यता जो है देखने वाले देव ही आप के साथ लगे रहते हैं। देवतायें आपके साथ हैं। ये आपको पता नहीं कि हर एक ऊपर पचासों देवता मंडरा रही हैं। पचासों देवता आपके रक्षण करेंगे। लेकिन जब देखेंगे कि आप अपने से दगा कर रहे हैं, छोड़ कर के भाग जायेंगे। रुकने वाले नहीं। आपकी दिव्यता से खो जायेंगे । वाइब्रेशन का रुक जाना ही दिव्यता का खो जाना है। लेकिन जहाँ वाइब्रेशन्स आते हैं वहीं उसकी सुगन्ध फैलती है। वहीं देवता है। वहीं देवता लोग आ कर के आप पर मंडरा रहे हैं। जैसे सुगन्ध बंद हो गयी भाग गये। उनका काम ही ये है, जैसे फूलों पर मधुकर मंडराते हैं, ऐसे देवताओं का काम है आपके ऊपर मंडराना। और आप ही का काम है ये। मनुष्य को ही ये कार्य करना है और मनुष्य जितना अपने को भोलेपन रखे, जितने सादगी में रखे और सोचते रहे कि ये काम में करने में हम क्या चालाकी करते हैं। जरा देखा ना, चले चालाकी करने । हँसी आयीं । वाह, वाह क्या चालाकी की । एकदम उसका पता चल जायेगा | आपको फौरन पता चल जायेगा कि इसका और इस चालाकी स्वभाव का हमारा क्या इलाज है। लोग आ के बड़े चालाकी से बात करते हैं। हम भी इतने भोले बन के... सुनाते रहो, सुनाते है। क्या चालाकी कर लेंगे। आप हम को दे ही क्या सकते हैं जो हमारे साथ बात करें। कोई भी आदमी चालाकी से कोई भी पंजा हमारे ऊपर डालता है हाथ नहीं लगने वाला। वही सादगी और भोले पन से तो हम मिट जाते हैं। मर जाते है ऐसे आदमिओं पर जो भोले पन के हैं। इसलिये तो प्राण अपने लगा देंगे कि जो भोला है । और ऐसे चालाक आदमी जो अपने को बहुत समझते है एक दिन उनको भी पता होता है कि सारी चालाकी आ कर उनके ही खोपड़ी में बैठे गयी । सारी चीज़ हमारी पॅराबोली से .... जायें, जिस तरह से जाती है वहीं रह जाती है। हम चालाकी दूसरे से करते हैं और चालाकी हमें खा जाती है। एक आदमी दूसरे से चालाकी करता है वो समझता है, वो भी चालाकी करता है । इसलिये पता नहीं दोनों के दोनों धड़ से गिर जाते हैं। ये चालाकी करने में ही हमारा .... और ये सारी चालाकी आती कहाँ से है। ये चालाकी इसी तरह हमारे अन्दर आती है क्योंकि हम लोग पूरी समय डरते रहते है। यहाँ डरने का कोई सवाल ही नहीं। समझ लीजिये किसी का कोई चक्र पकड़ गया तो हम डरते नहीं हैं। हमारे पास कोई गड़बड़ हो घर में तो हम किसी पड़ोसी को जा के नहीं बतायेंगे। छुपा लेंगे घर के अन्दर, कि 'भाई हमारी लड़की का ऐसा हो गया। किसी से न कहना ।' क्योंकि हम दूसरे से डरते हैं। ज्यादा से ज्यादा अपनी बीबी से बतायेंगे । और जब दूसरा ही हमारा अंगप्रत्यंग हो गया तब इस में डरने की कौनसी बात है! ये तो सभी हमारे हो गये हैं। कोई भी बात हो गयी, हमारे अन्दर कोई भी दोष हो गया, हम जाहीर कर देते हैं, भाई, हमारा पकड़ा है। इसे निकाल दो । हटा दो। अब हृदय चक्र का किसी का पकड़ना । ऐसे अगर किसी का हृदय चक्र पकड़ा है तो मेरे यहीं पे मार दें । 10 लेकिन आप में से किसी का हृदय चक्र पकड़ा तो, 'माताजी, हमारा हटाव । निकालो अभी ।' निकालना ही पड़ेगा। क्योंकि अपना जिसे हम दोष समझते हैं जो हम हैं वहीं खत्म होता है। हम हैं, हमारे चक्रों के दोष है वो हमारे नहीं क्योंकि हम अविनाशी, निष्कलंक | वो इन चक्रों के दोष हैं। चक्रों के दोष निकालने के लिये हमें क्या डरने की कौनसी बात है। हम तो अविनाशी हैं, निष्कलंक हैं। असंग में खड़े हुये हम अलग हैं। और ये चक्र अलग हैं। इन चक्रों में खराबी आ गयी, ठीक है, हम नहीं निकालेंगे तो दूसरा हमारा हाथ निकाल देगा। हमारे यहाँ तो इन साहब को नहीं पता होगा। ऐसा भोला आदमी, आप ही लोग कितने भोले हैं, जो आ कर कहते हैं कि मेरा ये पकड़ गया, मेरा ये पकड़ गया। मेरा ऐसा हो गया, मेरा वैसा हो गया। ये भोलेपन है। कोई अपना दोष बताता है किसी से कोई कभी नहीं कहेगा कि मेरा दिमाग खराब हो गया है। अब परसों .... इनका दिमाग पकड़ गया। तो आये पकड़ के हाथ मेरे पास। कहने लगे, 'माँ, मेरा सिर पकड़ गया।' और अभी भी सब से बताते हैं कि 'मेरा सिर पकड़ गया ।' पकड़ जाता है। दिमाग बौखला जाता है कभी कभी। लेकिन इसको आदमी दोष नहीं समझे। क्योंकि जो हम हैं वो अहम् से हट के वो दो हैं। ब्रह्म जो है वो अलग है और वो अलग है देख रहे हैं, कि हम वो नहीं है जिससे हम आयडेंटिफाय करते हैं, जिससे हम तादात्म्य पाये हैं। लेकिन हम उसके तादात्म्य पड़ गये हैं, जो अविनाशी, निष्कलंक है। जिससे कलंक नहीं। सर्वशक्तिमान, निर्भयता में, ज्ञानपूर्ण, प्रेममय अन्दर खड़ा है। ऐसे अपने स्वरूप को देखने वाला आदमी क्यों चालाकी करने जायेगा? कभी नहीं करने वाला। आदमी जो डरपोक होता है, घबराता है, जिसको सारी दुनिया लूट रही है वो चालाकी करेगा। जो खुद ही राजा बना के खड़ा हुआ है वो किस से चालाकी करेगा। जिससे किसी से लेना नहीं वो क्यों चालाकी करेगा? आप अपने पर देखें कि जब भी आप कोई कार्य करते हैं, कभी कभी तो लोग कहते हैं कि, 'माताजी, हम आपके लिये चाँद-सितारें तोड़ लायें।' भाई तोडो, इतना बड़ा लंबा चौडा आकाश है। लेकिन जब करने पे आता है तो देखते हैं कि छोटे बातों पर फिसल जाते हैं। छोटी सी बात पे फिसल जायें। मुझे क्या ? रिलेटिवली सब चीज़ चलती नहीं। किसी न किसी चीज़ के साथ जुड़ के चलती है। ये बढ़िया है, कि मेरा लड़का ठीक हो जाये तो मैं करूँ । बस, गये आप काम से । 'मेरा घर-द्वार ठीक हो जाये तो मैं करूँ। मेरी लड़की की शादी हो जायें तब मैं आऊंगा ध्यान में ।' गये आप काम से । न शादी होगी न आप आयेंगे। वो कहते हैं न 'सौ मण तेल हुये न राधा न सिंह ।' वो बात है। ऐसे संकल्प, विकल्प वही मन करता है जो पूरी तरह रियलाइजेशन का मजा नहीं लेता। ये हो तो वो, वो हो तो वो, इसका क्या मतलब है? है तो है ही, बहुत है। जो है तो इसी वख्त है, जो पाने का है इसी वक्त है, हर क्षण पाने का है। हर मिनट पाने का है। और जो सीधा, भोला भाला आदमी हर क्षण...., ऐसा आदमी सब को प्यारा लगता है। किसी को इसलिये प्यारा लगता है कि वो सोचें हम उसको बुद्ध बना रहे हैं। किसी को इसलिये प्यारा लगता है कि सोचें इसे हम एक्सप्लॉइट कर ले दो-चार रुपया निकाल के। किसी को इसलिये भी प्यारा लगता है कि ऐसे आदमी की कंपनी बड़ी सुहानी होती है। उसकी बातें बड़ी प्यारी होती हैं। चोर, ठगों को बच्चे इसलिये अच्छे लगते कि गले की माला खींच लेंगे। उनके कमर से धन निकाल लें। उचक्कों को बच्चे इसलिये अच्छे लगते हैं कि ले जा के बजार में बेच डालेंगे, उनसे पैसा कमाएंगे। लेकिन किसी गंदे आदमी को बच्चे इसलिये पसंद है कि उनकी कंपनी में ऐसा लगता है कि जैसे फूलों के साथ आप रह रहे हो। 11 उनके साथ आप भी बच्चे हो जाते हैं, इसलिये बच्चे बड़े प्यारे लगते हैं। अपने तो आप पर निर्भर हैं, लेकिन बच्चा तो बदलता नहीं। चाहे वो चोर-उचक्का हो, चाहे वो किस का हृदय हो, सब के लिये वो स्वर ही है। और जब तक वो स्वर लूट नहीं, जब तक उसमें अपने अन्दर सुगन्ध लुटाने की शक्ति नहीं तब तक उसको कौन देखेगा। लूटना ये कोई लूटना नहीं है। लेकिन अपनी सुगन्ध लुटाने की शक्ति जो खो देता है वो जरूर लूटता है। और दिमागी जमाखर्च होता है। माताजी ने कहा, 'वहाँ आओ ध्यान में ।' 'मैं इतने बड़े घर की बहू हूँ। मैं वहाँ जा के कहाँ बैठूंगी जमीन पर। वहाँ तो सब लोग सर पे हाथ रखते हैं।' इतने बड़े घर की बहु आज है। कल क्या थी आप? और इतने बड़े घर की बहू हो कर भी आपको आनन्द नहीं मिला और आज जमीन पर बैठ कर आनन्द मिलता है, तो फिर स्वीकार्य करना चाहिये। इतनी भी अकल आप के अन्दर नहीं है तो आप मत आईये। भोले आदमी में अहंकार नहीं है। उसको अहंकार होता ही नहीं। अहंकार चीज़ क्या होती है उसको वो मालूम ही नहीं। उसको बोलो जमीन पर बैठ जाओ, बैठ जायेगा। उसको बोलो यहाँ बैठ जाओ, बैठ जायेगा। उसका कभी भी अहंकार नहीं दुखता है। आप लोगों का अगर कहीं भी अहंकार दुखे तो समझना चाहिये रियलाइजेशन थोड़ा कच्चा है। दोनों पकड़ा है आ जाना यहाँ पर बिठाने के लिये। माताजी, चीज़ पकड़ गयी। छोटी सी चीज़ में लोगों का अहंकार दुख जाता है। जैसे अभी ट्रेन में बैठे, मेरे पास एक आदमी बैठ जायेगा इधर, दूसरा उधर बैठ जायेगा। वो बोले हम को पास में नहीं बिठाये । ऐसी छोटी छोटी चीज़ से आपका अहंकार टूटता है, तो ये सोच लेना चाहिये कि रियलाइजेशन में हम अभी पूरे खरे उतरे नहीं हैं। आपने मुझे देखा है। मुझे कुछ समझता नहीं है। हालांकि मैं बहुतों का अहंकार दुखाती हूँ। लेकिन मैं एकदम बेवकूफ़ हूँ। मुझे प्रोटोकॉल बिल्कुल नहीं आता। कुछ भी प्रोटोकॉल मुझे कतई नहीं आता। और अब कभी आने ही नहीं वाला, कि उनको ऐसा करना चाहिये, उनको ऐसी बात करनी चाहिये। ऐसा नहीं करना चाहिये। मैं तो कभी किसी को गले से भी लगा लेती हूँ, कभी किसी को झाड़ भी देती हूँ। लेकिन जब तक मेरे अन्दर प्रेम करने की शक्ति है तब तक मेरा कुछ नहीं जाने वाला। क्योंकि प्रेम से बढ़ के कोई प्रोटोकॉल ही नहीं सिखाने वाला बढ़िया । वो कभी कभी आश्चर्य में रह जाता है। अभी मैं वहाँ गयी थी । वो लोग पहचानते नहीं थे। वो लोग रोने लगे..... उनको मैंने गले से लगा लिया। वो भी आदमी भौचक्का रह गये कि इस औरत में क्या है। वो रोने लग गये यहाँ पर । जो सोचा जाता है वो चालाकी है। क्योंकि हम ऐसा सोचते हैं। कहेंगे, कहने दो। क्या कहेंगे? जो मैं हूँ, मैं ही रहूँगी । किसी के कहने ना कहने से कोई बदलने नहीं वाला । किसी के बकने से कोई बदलता नहीं। कोई कुछ भी बकता रहे, बकने से कुछ बदलता है? जो आप हैं वो आप ही हैं। लेकिन इतना जरूर होना चाहिये की आप अपने पे सच्चाई रखें। आप अपने साथ छूट न बरतें। आप अपने दिमाग में चक्कर न लगायें। चालाकी न करें। असल में हम अपने साथ अपने को ही ठगते रहते हैं सुबह से शाम तक। देखते रहिये आप किस तरह से करते रहते हैं। जब आपका मन बतायेगा, हाँ, मैं बड़ा ठगी हूँ। अपने को ठग रहा हूँ। अपने को ठग रहा है । आज सभी लोग करीबन पार हैं यहाँ। एकाध दो लोगों का कुछ रुक गया। अब जब वाइब्रेशन्स रुक गये हैं तो उसको चला लेने का तरीका आप ही लोगों ने निकाला है। जैसे फोटो को ऐसा करना चाहिये, किस तरह से कहाँ पर क्या देना चाहिये। कैसे पहचानना चाहिये कौन सा चक्र बैठा हुआ है। जैसे कि आपके हाथ पर वाइब्रेशन्स नहीं 12 आ रहे हैं तो कोई न कोई उँगली कट हुई है। इससे आपको पता हो जाना चाहिये, जैसे ये बीच में जो हैं ये आपका नाभि चक्र। ये नाभि चक्र पे हैं। फिर ये जो चक्र है विशुद्धि चक्र | फिर ये चक्र आज्ञा चक्र और ये चक्र स्वाधिष्ठान चक्र। और ये आपका अनहत चक्र, जो सबसे छोटी उँगली पर है, क्योंकि नाजूक हैं न । और सब से भोला होता है। हृदय में जो वास करता है वो सबसे भोला होता है | हृदय बिल्कुल भोला भाला होता है। माने उनको ये भी होश नहीं रहता कि राक्षसों को उन्होंने वरदान दे के रखे है मुझे सताने के लिये। लेकिन है, भोले आदमी को ये भी होश नहीं रहता है, कि मैं किस को वरदान दे रहा हूँ। अपनी बीबी को उठा के दे दिया उन्होंने रावण को। ऐसे भोले शंकर जी हृदय में वास करते हैं तो उनको कौन ठग सकता है? शंकर जी को कोई ठग लेते हो। बीबी को ले गये, लेकिन बच गयी न उनकी बीबी । और वो जो भी देते हैं, वरदान देते हैं उससे ..... जरूर बच जाता है, वो उनके भोलेपन से ही। वो तो बेचारे अपना पूरा देते हैं आशीर्वाद ! लेकिन उसमें एक न एक कोई ऐसी गड़बड़ छूट जाती है कि जिससे वो मर जाता है आदमी। नरसिंह अवतार में आप जानते हैं। उन्होंने वरदान दिया हुआ था। ये पकड़ आ गयी तो मारे गये। रावण को वरदान दिया मारे गये। कंस को वरदान दिया था मारे गये। नरकासुर, महिषासुर सब मारे गये वरदान दिये हुये। ये वरदान का लूप होल भी शंकर जी के भोलेपन का ही भाग है और उनका जो नटखटपना है विष्णुजी में है। इसलिये उनका कॉम्बिनेशन अच्छा चलता है, शंकरजी और विष्णुजी में बड़ा बढ़िया कॉम्बिनेशन है। और जब तक वो बैठे हैं तो आपको चिंता की कोई बात ही नहीं। कभी आप शंकर जी के पास जाईये, कभी विष्णु जी के पास जाईये। लाइट बात है। बहुत सीरियस बात नहीं है ये। सीरियस नहीं बिल्कुल लाइट । अपने मन को एकदम लाइट रखे। अभी एरोप्लेन आये, उधर देखोगे, उधर कुछ आये उधर देखोगे, हर एक चीज़ को । एरोप्लेन हमारे यहाँ आता है हजारों बार। जितनी बार एरोप्लेन आयेगा सब बच्चे दौड़ कर के बाय, बाय करेंगे। समुंदर का पानी आता है दो बार । जितनी बार समुंदर का पानी आयेगा सब बच्चे दौड़ के जायेंगे, चिल्लायेंगे। कहीं भी कोई हलचल हो जाये, दौड़ गये। कहने का मतलब ये है कि जो भोला आदमी होता है, वो परमेश्वर के पास है। तभी वो भोला है। वो दिखने में ना इतना व्यवस्थित है ना कोई बात आपको चमत्कार दिखायेगी, ना उसे बुद्धिचातुर्य और ऐसा आदमी हमारे सहजयोग के लिये दोस्त है। जो भोला, सीधा-साधा, सरल होता है और अधिकतर मैंने ये भी देखा कि जिनियस लोग होते हैं, विद्वान वो बड़े भोले होते है। मुझे कभी कभी उनके भोलेपन पे ऐसा ये आता है, इतनी भोली जैसी बात करेंगे, कि लगता है कोई छोटा बच्चा है। इतने ज्ञानी पुरुष हो कर भी इतने भोलेपन से बात करते हैं कभी कभी आश्चर्य होता है। जो ज्ञान उन्होंने पाया है वो परमात्मा से पाया है। उनके भोलेपन की वजह से ही उनके अन्दर है । आप बात करें या न करें, ये मेरा मतलब नहीं है। लेकिन अन्दर कुछ हंसती-खेलती दुनिया है एक छोटे बच्चे में। अधिकतर बच्चों की कंपनी में रहा करो, बूढों की कंपनी में मत रहा करो। हमारे यहाँ कोई कोई ८० साल के भी लोग १८ साल के हो गये हैं। ऐसे लोगों की कंपनी में रहा करे कि जो बच्चों जैसे हैं। और अपना मन भी बच्चों जैसा साधा रखे. जिससे सहजयोग में बड़ी मदद रहेगी। आदमी आगे बढ़ता है। बच्चे जब मेरे पास पार होते हैं, मैं देखती हूँ वो बड़ी श्रद्धा से। मेरे दो बच्चे हैं, ग्रँड चिल्ड्रन, आप जानते हैं, दोनों पार ही हैं। रोज घर में झगड़ा, पूजा में भी जाने का है, मुझे लगता है दोनों मेरे गोद में बैठ जायेंगे इससे बेहतर है कि उनसे बता दूँ। रोज सबेरे उठ कर के, इतने 13 छोटे बच्चे, डेढ़ साल के, दो साल के, दोनों पैर के नीचे में हाथ रख कर के सर लगा के आधा घण्टा, कौन बच्चा रहेगा दूध पिये बगैर। वो किये बगैर उनका होता ही नहीं। जैसे की दूध से भी ज्यादा जरूरी है। बड़ी वाली को बता दी अब छोटी वाली कुण्डलिनी ...... और छोटी वाली जैसे ही उन पर हम हाथ रखेंगे। अब उस दिन नौकरानी को गरम गरम आता था तो 'जाओ, नानी के पैर पड़ो।' बड़ी वाली कहती थी। और उनको लगन है। नानी हम को पूजा में ले जाओ, नानी हम को पूजा में ले जाओ। छोटे छोटे बच्चों को जिनको बिस्कीट, चॉकलेट अच्छे लगते हैं, चॉकलेट नहीं चाहिये, कुछ नहीं चाहिये, बस पूजा में ले जाओ। जैसा बच्चे अपने माँ के लिये, दुनिया में कुछ भी उसको दो, माँ के लिये रोता है ऐसे ही हैं। कहने से नहीं होता। मैं कहूँगी शराब पिओ, शराब पिओ... | शराब तो मुँह में लग जायेगी लेकिन ध्यान नहीं लगने वाला। ध्यान नहीं लगने वाला आसानी से शराब लग जायेगी। ध्यान मुँह में जब लग जायेगा तब फिर मुझे कुछ कहना नहीं पड़ेगा। इसलिये आपकी इच्छा बहुत जरूरी है। आपकी इच्छा बहुत ज्यादा मान जायें, इसका बड़ा मान है और इसलिये आपको इच्छा करनी पड़ेगी। 'प्रभु, मुझे तेरी लगन लगे, तेरी' जैसे जैसे आदमी यही कहता जायेगा, धीरे धीरे ये चीज़ यही घटती है, यही बसती है, उतरता जायेगा अपने ही अन्दर, अपनी ही गहराई में। अपनी ही सुन्दरता में जायेगा।

New Delhi (India)

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