Sahajyog ki Utapatti

Sahajyog ki Utapatti 1973-12-07

Location
Talk duration
45'
Category
Public Program
Spoken Language
Hindi

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7 दिसम्बर 1973

Public Program

Birla Kreeda Kendra, मुंबई (भारत)

Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft

[ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK]

प्रेम की तो कोई भाषा नहीं होती है, जो प्रेम के बारे में कहा जाये। हमारी माँ हमसे जब प्यार करती है, वो क्या कह सकती है की उसका प्यार कैसा है? ऐसे ही परमेश्वर ने जब हमें प्यार किया, जब उसने सारी सृष्टि की रचना की, तब उनके पास भी कोई शब्द नहीं थे कहने के लिये। मनुष्य ही जब अपने निमित्त को, अपने इन्स्ट्रमेंट को पूरा कर लेता है, तभी भाषा का अवलंबन हो कर के हम लोग कुछ प्रभु की स्तुति कर सकते हैं। आज के लिये कोई विशेष विषय या सब्जेक्ट तुम लोगों ने मुझे बताया नहीं। क्योंकि तीन दिनों में पूरी बात कहने की है। आज उत्पत्ति पे मैं कुछ कहूँगी। मेरा जो कुछ कहना है वो हायपोथिटिकल है। हर एक साइन्स में पहले हायपोथिसिस है। हायपोथिसिस का मतलब है अपनी जो कुछ खोज है उस खोज के बारे में उसकी विचारणा जनसाधारण के सामने रखी जायें । उसके बाद देखा जाता है कि जो कुछ कहा गया है उसमें सत्य कितना है। फॅक्ट कितना है, फॅक्च्युअल कितना है। जिस दिन वो चीज़ सिद्ध हो जाती है उसी दिन लोग उसे साइन्स के कायदे या लॉ समझते हैं। उसी तरह मेरा कहना ही आप लोगों के लिये, अधिकतर लोगों के लिये बिल्कुल हायपोथिटिकल है। लेकिन उसकी सिद्धता भी हो सकती है और दिखायी जा सकती है। इसके अलावा आदिकाल से अनेक द्ष्टाओं ने जिसको देखा है। इसे जाना है और किताबों में लिख रखा है। उससे भी उनकी पुष्टि हो सकती है। किंतु जो कुछ भी लिखा दिया है उसकी पुष्टि से पढ़ने से या किसी को मान लेने से नहीं होती। किंतु उसका अनुभव स्वयं से ही होना चाहिये। आज सृष्टि के उत्पत्ति की बात मैं आप से कुछ करना चाहती हूँ। प्रथम का दिवस है और उसका सहजयोग से क्या संबंध है, वो भी बताना है। ब्रह्म के बारे में कहा जाता है कि वो आदि और अंत से परे है। नित्य है। जिसे हम चैतन्य समझते हैं, जिसे हम चैतन्य शक्ति समझते हैं, उससे ब्रह्म का स्वरूप अलग है। चैतन्य शक्ति उसी ब्रह्म का एक अंग है । ब्रह्म माने जो कुछ भी है, सब कुछ ब्रह्म ही है। जैसे एक बीज ही सब कुछ पेड़ होता है। जैसे एक ही बीज में से पूरा पेड़ का पेड़ और अनंत पेड़ निकलते रहते हैं और फिर से वही पेड़ जा कर के बीज में खत्म हो जाता है, उसी प्रकार ब्रह्म अनेक प्रकार, विकारों में प्रादुर्भावित होता है, मॅनिफेस्टेशन होता है और अंत में फिर वही बीज बन जाता है । फिर बीज से अनेकानेक, अनेकानेक अनंत विश्व बंद होते हैं। जैसे की एक पेड़ का बीज होता है, ऐसे ही एक ब्रह्म का भी बीज समझ लीजिये, जिसे हम ब्रह्म बीज कहें| हर एक बीज की अपनी सृजन शक्ति होती है। हर एक बीज तृणात्मक होता है। उसी प्रकार ब्रह्म की जो सृजन शक्ति है वही ब्रह्म और उनकी ब्रह्म शक्ति के नाम से जाना जाता है। परमात्मा को ये सारी सृष्टि रचने की क्या आवश्यकता पड़ गयी। जब वो संपूर्ण है। मनुष्य कितना भी संपूर्ण हो जाये, जब तक उसका एक बच्चा नहीं हो जाता, उसे आनंद नहीं आता। उसको ऐसा लगता है ये जो भी कमाया है वो कुछ किस के लिये? इसलिये संसार में बहुत से लोग होते जो बहुत धनी होते हैं, अगर उनके पास एक बच्चा नहीं होता तो वो बहुत प्रयत्न करते हैं कि किसी भी तरह से उन्हें एक बच्चा हो। कम से कम एक बच्चा हो जायें। ये जो कुछ

उनके पास है, वो किसी को दे सकें, किसी को रिव्हिल कर सके। इसी प्रकार परमात्मा को जब प्रेम हुआ, उनके हृदय में जब प्रेम बंदिस्त हुआ उसी वक्त उनके अन्दर से बहने वाली उनकी शक्तियाँ संचित हो कर के आद्य शक्ति या ब्रह्मशक्ति में स्थापित हो गयी। अब बीच में बचा हुआ जो कुछ भी है वही ईश्वर और परमात्मा है। इसके लिये साइन्स वाले मुझ से बार बार ये कहते हैं कि हम ईश्वर को नहीं मानते। आप ईश्वर को न मानें लेकिन अपने हृदय को मानते हो, इस हृदय में जो स्पंदित है वो क्या है? इस हृदय में जो स्पंदित है वही ईश्वर है। जो परमात्मा है वही आत्मास्वरूप हमारे अन्दर हृदय में स्पंदित है और हर समय हमारा साक्षी है। हमारे हर कार्य का वो साक्षी है और हर एक को वो देखता है। वही आत्मा है। उसी को लोग स्पिरीट कहते हैं, स्पिरिच्युअल कहते हैं। उसी को लोग सोल, जीवात्मा, जो वो जीव धारण करता है तब वो जीवात्मा आदि शब्दों से जानते हैं । ये जो अपने हृदय में बसा हुआ साक्षिस्वरूप परमात्मा है, उस की शक्ति जो शुरुआत में आद्य शक्ति सारे सृष्टि की रचना करने के लिये कृतज्ञ होती है। उस वक्त उसमें तीन तरह के परिवर्तन आते हैं या वो अपने को परिवर्तित करते हैं । पहले तो उसे ये इच्छा होती है कि मुझे बच्चा होना चाहिये। सृष्टि होनी चाहिये। क्रियेशन होना चाहिये। इस के कारण ही वो अपने अन्दर तमोगुण धारणा करती है। इसके बारे में भी पहले मैंने आपको बताया हुआ है कि वो किस दिशा में चलती है और किस तरह से होता है। इच्छा ब्लैकबोर्ड की तो यहाँ पहले व्यवस्था नहीं हो पायी। पहले जो इच्छा की जाती है, इच्छा करना आवश्यक है। उसी से तमोगुण का वलय तैयार होता है। सारा वलय बिंदुमात्र जो आद्य शक्ति है उसके गति से, मूवमेंट से होता है आपको आश्चर्य होगा, की एक बिंदु जब घूम कर अपनी ही जगह आना चाहता है तो उसका वलय पैराबोलिक होता है। आइन्स्टाइन कहते हैं कि हर एक चीज़ की मूवमेंट पैराबोलिक होती है। अपने यहाँ शिवजी के मंदिर में आपने देखा होगा कि उसकी शक्ति जो होती है उसका भी वलय पैराबोलिक होता है। आइनस्टाइन अब कह रहे है कि जो चीज़ की घूमती है वो पैराबोलिक घूमती है। उसी हिसाब से ये भी कहना चाहिये कि जो प्यार है वो भी पैराबोलिक घूमता है और द्वेष भी पैराबोलिक घूमता है। माने जहाँ से जाता है वहीं लौट कर वापस आता है। इसी गती को पैराबोलिक कहते हैं। इसी प्रकार से पहले वलय के आकार को हम कह सकते हैं कि जिसने तमोगण की रचना संसार में है। जैसे एक पंखे में तीन पत्रे जोड़े जाते हैं उसी तरह से अगर आप कल्पना कर सकते हैं तो पहले एक पैराबोलिक गति का चलना हुआ। दूसरे जब किसी चीज़ की इच्छा की जाये तो उसके लिये कुछ कार्यान्वित होना पड़ता है। कुछ कार्य करना पड़ता है। बगैर कार्य के नहीं हो सकता। तो अॅक्टिवेटिंग छोड़ के साइन्स, जिसने रजोगुण की स्थापना की। उन्होंने दुसरी जो मूवमेंट की, दूसरा जो पैराबोलिक मूवमेंट किया उसके कारण रजोगुण की स्थापना की और जो अक्टिवेटिव हुई, जो कार्यान्वित हुई, अब उसका ये हुआ कि अब अपना प्यार उंडेल दे, उस क्रियेशन में। अपना प्यार उस सृजन किये हुये उस बच्चे पे उंडेल दे। यही रिवोल्यूशन है और यही सत्त्वगुणों की रचना करते हैं। इस तरह से आप सोच सकते हैं कि एक ही चीज़ तीन बार घूम कर के तीन गुणों को किस तरह से बनाती है। उसके ही अनेकविध पम्म्युटेशन्स अँड कॉम्बिनेशन्स मिलने, जोड़ने, घटाने से ही बनने वाली ये सारी सृष्टि और उसमें से ही एक पृथ्वी की रचना होती है। पृथ्वी की रचना भी एक पैराबोलिक मूवमेंट है। अभी आप अगर साइन्स |

में पढ़े तो एक्सप्लोजन की थेअरी बड़ी जबरदस्त है, लोगों के दिमाग में बैठी हुई है। पर दस साल पहले मैं भी यही कहती थी कि एक्सप्लोजन हुआ है । बगैर एक्सप्लोजन से हमारी जो उत्क्रांति आज हुई है वो हो नहीं सकती थी। एवोल्यूशन की जिस हालत में हम पहुँचे हैं ये बार बार एक्सप्लोजन हो कर के ही हम इस दशा पर आये। लेकिन और आज वही बात लोग कहने लग गये हैं कि कोई न कोई ऐसा एक संघ एकठ्ठा हुआ था जो एकदम से टूट पड़ा उसके अन्दर से सारी सूर्यमंडल आदि अनेक मंडल बने। आज साइन्स वाले इसी बात को कह रहे हैं। उसी प्रकार जब पृथ्वी बनने के बात भी दूसरा एक एक्सप्लोजन शुरू हुआ, जहाँ जीवंतता मनुष्य में आयी। पहले तो आप जानते हैं कि छोटे छोटे एक सेल के प्राणी जीवधारी हये। उसके बाद बढ़ते बढ़ते मनुष्य की दशा में हम लोग आ गये। उत्क्रांति के बारे विस्तारपूर्वक बताने की जरूरत नहीं। लेकिन वहाँ पर भी अगर आप सोचें, अगर आप विचार करें, ..... नाम के बड़ा भारी बायलोजिस्ट है, उसने लिखा हुआ है, कि मनुष्य जड़ से बना है। तो आश्चर्य होता कि इतने थोड़े समय में, इतने थोड़े समय में मनुष्य कैसे बनता है। इसमें कोई चान्स नहीं था। यूँही नहीं बन गया था लेकिन कोई न कोई इसके पीछे में हाथ था। कोई न कोई कार्य इसे कर रहा था। कोई न कोई इस सृजन को गति दे | रहा था, सम्भाल रहा था और उसका नेतृत्व कर रहा था। आखिर ये शक्ति ऐसे न होती तो अभी तक मनुष्य तो छोड़ो पर कुछ अमिबा भी इस संसार में नहीं आ सकते थे। जिसे की ' लॉ ऑफ चान्स' साइन्स में माना जायें । ये बायोलॉजिस्ट परमात्मा की तो बात करते नहीं हैं। लेकिन हाँ ये जरूर उन्होंने कहा है कि ऐसी तो कोई व्यक्ति हम समझ नहीं पाते लेकिन ये जो शक्ति है, ये जरूर ऐसी कोई न कोई शक्ति है जिसने ये सृष्टि की रचना की हुई है। इतना भी उनका कहना बहुत है। अब जब मनुष्य खड़ा हो गया और सृष्टि की ओर उसने नज़र की, तो वो अपने को भी जानवर से अलग पाता है। हम लोग ये सोच नहीं पाते कि हम जानवर से कितने अलग हैं। हम ये समझ ही नहीं पाते हैं कि हम में और उनमें महदंतर है। और जब हम ये भी सोचते हैं कि हम उन्हीं से इवॉल्व हये, तो आश्चर्य होता है कि हम इनसे इवॉल्व कैसे हये! कोई आश्चर्य की बात नहीं। अगर आप ये सोचें की हम लोग कि वायुयान से कभी भी चन्द्रमा पर नहीं पहुँच पाते। एक पच्चीस-तीस साल पहले तो हम लोग सोच भी नहीं सकते थे, कि हम लोग चन्द्रमा की ओर जायें। कोई ऐसी बात सोचता तो लोग हँसते कि क्या बेवकूफ़ी की बात कर रहे हैं। ऐसा हो ही नहीं सकता। असंभव की बात समझी जाती है। आज मनुष्य जो चन्द्रमा पर भी पहुँच गया है, वो भी एक्सप्लोजन के ही थिअरी पर है। आपने देखा होगा कि जो स्पेसक्राफ्ट आकाश में छोड़े जाते हैं, उनमें चार तरह के एक्सप्लोजन लगाये जाते हैं। पहले एक्सप्लोजर से वो कुछ हद तक चले जाते हैं। समझ लीजिये कि उनकी गति अगर दस हजार मील होती हो तो दूसरे एक्सप्लोजर से उसके दस गुना उसकी गति कर देते है, तीसरे एक्सप्लोजर उसकी दस गुना गति हो जाती है और चौथे एक्सप्लोजर फिर दस गुना हो जाती है। अगर एक्सप्लोजन बीच में न हों तो एक ही गति पर वो कभी भी चन्द्रमा नहीं पहुँच सकता। वही फिर मनुष्य के उत्क्रांति के मामले में हुआ है कि वो एक गति से दूसरी गति में आने के लिये, कुछ न कुछ बड़ा भारी एक्सप्लोजन हुआ और उसी के कारण आज मनुष्य उतने से, थोड़े से समय में ही बहुत ही थोड़े समय में, आश्चर्यजनक थोड़े से समय में ही आ कर के और इस स्थिति में पहुँच गया है, जहाँ वो बहुत कुछ समझ सकता है और बहुत कुछ जान सकता है, लेकिन अब भी इसे बहुत जानने का है। बहुत कुछ इसे जानने का है। हमारे हृदय में मैंने आपसे पहले ही कहा था , कि हमारे हृदय में जो स्पंदन हो रहा है, ये कौनसी शक्ति से हो रहा है?

ये अगर किसी डॉक्टर से पूछे, बड़े पढ़े लिखे डॉक्टर से पूछे। तो वो आपको इसका उत्तर एक ही देंगे कि, 'इसकी एक संस्था है, जिसको हम स्वयंचालित संस्था, ऑटोनॉमस नर्वस सिस्टीम कहते है।' इसके अलावा आगे नहीं जायेंगे। मनुष्य इसके आगे नहीं जा पा रहा है। सिर्फ इतना ही कहता है कि इसका ये नाम है। अगर हम कल कहें कि हमारे देश की राज्यव्यवस्था कैसे हो रही है। तो हम सिर्फ नाम दे देंगे, कि इसमें एक गर्वमेंट ऑफ इंडिया नाम की संस्था है और वो ये कार्य कर रही है। तो ये कोई बड़ा साइंटिफिक जबाब तो नहीं है। क्योंकि वो संस्था क्या है? वो कैसे कार्यान्वित है? वो कैसे चल रही है ? इसके बारे में तो कोई जाना ही नहीं। सिर्फ आपने नाम देने से उसका मुँह ही बंद कर दिया। सिर्फ नाम देने के लिये ही सारे साइन्स की उत्पत्ति नहीं हयी है। किंतु ये बताने के लिये कि ये शक्ति, ये सृष्टि, ये सृजन, ये सब क्यों, कहाँ, कैसे ? लेकिन साइन्स शायद वहाँ पर कभी पहुँच पाये , या न पहुँच पाये, आप लोग पहुँच सकते हैं। साइन्स की दृष्टि अत्यंत अॅनॅलिटिकल है। विकेंद्रीकरण है। आप जानते हैं कि एक | हाथ के लिये एक डॉक्टर होता है, दूसरे हाथ के लिये दूसरा डॉक्टर। संपूर्ण, समग्र ज्ञान साइन्स से आना बहुत है। जैसे कि एक पेड़ में बहुत से फूल खिले हुये हैं। हर एक एक-एक फूल को देख रहा है और उसके बारे में जाँच-पड़ताल कर रहा है और कोई कह रहा है कि इसका रंग पीला होता है। कोई कह रहा है नीला होता है, लेकिन कोई अगर उस चैतन्य में या उस रस में, जिससे की सारी सृष्टि उस पेड़ की हुई है, उतर सकें, तो वो बता सकता है, जब कि वो स्रोत पे पहुँच जायें। वो बता सकता है कि इसकी सृष्टि कैसी है। ये अलग अलग फूल क्यों हैं? इनके अलग अलग रंग क्यों हैं? ये पत्तियाँ अलग अलग क्यों हैं? क्योंकि आपने उसकी जड़ पकड़ ली। हालांकि बहुत से लोग, बंबई में, जब भी हम बात करते हैं तो कहते हैं कि, 'यहाँ लोगों को खाने-पीने को नहीं, चीनी नहीं मिल रही है। माताजी आप ये कैसे भगवान की बात कर रहे हैं।' ऐसा भी लोगों को कहना चाहिये? लोग कहते हैं कि आपको इस वक्त ये क्या पड़ा हुआ है? लेकिन ये सब क्यों हो रहा है, अगर सोचा जाये। एक पल आप सोच लें, खाने-पीने को नहीं। अमेरिका में लोग आत्महत्या कर रहे हैं। भाग रहे हैं अपने घर से, पागल हो रहे हैं लोग। कहाँ नहीं है ह्यूमन क्रायसेस! सारे संसार में आप किसी से भी बातें करें, तो ऐसा लगेगा कि पहाड़ सी बात है। चाहे उनके पास खाने-पीने को हो, चाहे उनके पास बाल- बच्चे हो, चाहे ना हो। संसार में एक भी कोई सुखी जीव तो दिखायी नहीं देता है। अगर यही बात है तो सिर्फ खाने-पीने से ही आप खुश होने वाले हैं। जो लोग अत्यंत सुखी इस मामले में हैं वो भी मुझे कभी सुखी नहीं दिखे। क्या कारण है, क्या वजह है कि वो भी टूटे चले जा रहे हैं? खत्म हये ऐसे चले जा रहे हैं? इसका कारण ये है कि जो पेड़ अत्यंत बहार बन जाये और विशाल हो जाये बहार और अपने स्त्रोत पे जा कर न बैठे, अपने स्रोत को न पकड़े, अपने सोच को न पकड़े वो पेड़ जरूर हिल जाये । जहाँ से हमें सारी शक्तियाँ मिल रही हैं, जहाँ से हम शक्ति पा कर के और शक्तिशाली हो सकते हैं उसी की अगर हम खोज न लगाये तो जरूर हम भी, एक एक व्यक्ति टूटेगा, एक एक देश टूटेगा, एक एक संसार का कण-कण टूट जायेगा। क्योंकि जो इंटिग्रेटिंग, जो बांधने वाली, जो सृजन करने वाली, जो शक्ति देने वाली एनर्जी गिविंग वायटॅलिटी जो स्वयं चैतन्य है उसका जब तक हम पता नहीं लगायेंगे, तब तक हम चैतन्यरहित हो जायेंगे । मृत हो जायेंगे| सारे संसार का संहार हो जायेगा। इसलिये आप समझ सकते हैं, कि कितना आवश्यक है, कि उस चीज़ का हम पता लगायें। उस शक्ति का

हम पता चलायें। जो हमारे हृदय में धक-धक चल रही है। और हमारे उपर में आवाहन इस चीज़ का चालित है कि, 'जानो ये क्या है? मैं रात-दिन धक-धक, धक -धक तुम्हारे हृदय में चल रही हूँ। तुम्हारा श्वसन चला रही हूँ।' तो इसे जान लीजिये कि ये चीज़ क्या है। अगर इसे जाना नहीं , तो सारा के सारा ट्ूटेगा । सारी परमात्मा की सृष्टि की रचना सारी की सारी खत्म हो जायेगी और इसकी दारोमदार, इसकी जिम्मेदारी, रिस्पॉन्सिबिलिटी हर एक मानव की है। मानव ही ऐसा है जो कि आज सृष्टि की स्टेज पर खड़ा है। आज मानव में ही वो शक्ति चल रही है, जिसे वो जान सकता है। क्या कुत्ते, बिल्ली इसे समझेंगे? मैं क्या कुत्ते, बिल्लिओं से जा कर के कहूँ, या जंगलों में पेड़ों से जा कर के कहूँ कि, 'भाई तुम अपनी शक्ति जानो।' मुझे तो आप ही लोगों को बताना है बारबार, कि जिस शक्ति के सहारे आज आप चल रहे हैं, उसे जरूर जानिये। और इसका परिणाम , न जानने का परिणाम आप को होगा। कहीं भी मनुष्य को शांति नहीं। जंगल में चला जाये, घर से भाग जाये, दुनिया छोड़ दे लेकिन उसे शांति नहीं है। उसे आनंद नहीं है। उसकी शक्ति हीन हो रही है। घबरा रहा है। साधारण तरह से समझाया जाये तो ऐसे समझा सकते है, कि आपके अन्दर जो पेट्रोल भरा गया है, जो शक्ति का पेट्रोल भरा गया है, वही आप खत्म करेंगे। अपनी कार्यशक्ति से करना ही चाहिये। कार्य करने के लिये ही शक्ति है। पेट्रोल खत्म करना ही चाहिये। पेट्रोल अगर भरा | गया है अगर उसे खर्च नहीं करियेगा, तो आप भी व्यर्थ हैं। लेकिन फिर से पेट्रोल भरने की व्यवस्था आवश्यक होनी चाहिये। जब बच्चा तीन साल का हो जाता है, तभी उसके पेट्रोल के जो स्तर का जो बूच होता है वो बंद किया जाता है। उसको बंद कर दिया जाता है और वो तोड़ दिया जाता है उस शक्ति से जो उसके अन्दर भरती है। इसी को हम कुण्डलिनी शक्ति कहते हैं। कुण्डलिनी शक्ति के बारे में आपने हजारो चीजें पढ़ी होगी, सुना होगा। लेकिन मेरे स्वयं की ये धारणा है, बहुत ही कम लोगों ने इसे जाना है। जो कुछ लिखा है पढ़-लिख कर के, इधर उधर देख कर के जिन्होंने इसे लिखा है वो कोई लिखना नहीं है। आप लोग कभी हमारे ध्यान वगैरा में आयें तो हम आपको दिखा सकते हैं कि कुण्डलिनी का स्पन्दन आपके अन्दर होता है। आपकी पीठ की रीढ़ की हड्डी के नीचे में त्रिकोणाकार में कुण्डलिनी का स्पन्दन है । आप उसे देख सकते हैं। कोई हवाई बातचीत मैं नहीं कर रही हूँ। उसका स्पन्दन, उसका उठना और चढ़ना आप अपने हाथ से देख सकते हैं। हमारे यहाँ भी बहत से डॉक्टर्स पार हो गये हैं । साइकोलॉजिस्ट पार हो गये हैं। जिनको हम कहते हैं कि पार हो गये हैं, जिन्होंने इस शक्ति का अंदाज लिया। वो लोग इस बात को मानते हैं। लेकिन उनकी बात कौन सुनता है? मेरी बात कौन सुनता है? पता नहीं दस साल बात शायद.....। अगर अमेरिका से बात आयेगी , तो हम लोग सुनेंगे। क्योंकि हम विश्वास ही नहीं कर सकते, कि ऐसा कोई कर सकता है, और एक साधारण गृहिणी ऐसा कार्य कैसे कर सकती है। वास्तविक बचपन से ही मैं कुण्डलिनी देखती थी और इसके बारे में सब कुछ जानती रही। लेकिन मैं ये नहीं समझ पाती थी कि मनुष्य का क्या.....(अस्पष्ट)? मनुष्य ऐसा क्यों है? मनुष्य नाटक देखते देखते ऐसा क्यों सोचता है कि वही शिवाजी महाराज हैं? वो नाटक खेल रहा है ये क्यों भूला हुआ है। छोटे बच्चे हैं, कोई खेल रचते हैं, खेलते हैं, उसके बाद फिर फेंकते हैं । कोई भी उस खेल से चिपकता नहीं। और हम लोग किसी खेल को ऐसा समझते हैं कि वो हमारा खेल है। छोटे बच्चे भी मकान बनाते हैं, तोड़ देते हैं। उसके बाद कुछ और इकठ्ठा करते हैं।

उसको छोड़ देते हैं। मेरे ध्यान में बच्चे आते हैं। मुझ से पूछते हैं, 'माताजी, आप डॉक्टर, डॉक्टर क्यों खेल रहे हैं? वो सोचते हैं कि सारा संसार खेल है । फिर बड़े होने पर हम क्यों इतना सोचते हैं कि ये खेल है। इतनी सिरियस होने की कौन सी बात है? बड़ी अजीब सी बात है। बहत दिनों की बात है, मैं बताती हूँ। कुछ लोग प्लेन से जा रहे थे। अपने सर पे उन्होंने बोजा उठाया था। किसी को समझ में नहीं आया। पूछा, 'आप ये क्या कर रहे हैं?' उन्होंने कहा, 'मैं बोजा जो है हल्का कर रहा हूँ।' भी नहीं । बड़ा सिरियसली कहा उन्होंने। ऐसे ही हम लोग कर रहे हैं। वास्तविक हमारा कार्य कुछ हमें कुछ करने का नहीं है। जैसे ये माइक है, इसे कुछ नहीं करने का है । सिर्फ मेरी जो वाणी है आप तक पहुँचानी है। लेकिन अगर ये माइक कहेगा कि 'मुझी को बोलने का है ।' तो मुझे तकलीफ़ हो जायेगी। और अगर ये बोलने लग जायें तो मेरा बोलना खत्म! हम कुछ करते नहीं हैं। जैसे ये उंगलियाँ अगर कभी सोचने लगें कि, इसमें से एक उँगली, कि मैं अलग हूँ । मुझे कार्य विशेष करना है। ये उँगली शरीर से ही संबंधित है और उनकी शक्ति पर चल रही है । ये शरीर भी चल रहा है। ये उसी का पार्ट अँड पार्सल है। अंगमात्र है। अब ये कहना कि ये जो उँगली है ये अलग से ही हो रही है। हो सकता है ये उँगली बधिर हो रही हो। ऐसा सोच रही है। हो सकता है कि हम भी किसी कारण बधिर हो गये हैं। या हट गये हैं उस शक्ति से थोड़ी देर के लिये। जितनी भी यहाँ बिजलियाँ जल रही हैं आप जानते हैं। इसमें एक ही शक्ति चल रही है, पर हो सकता है कि इसमें से एक बल्ब निकाल कर के उसे एक अलग से बँटरी में लगा दिया जाये, जो बॅटरी खुद ही बिजली को चा्ज करे। हो सकता है कि आप सब अपनी अपनी शक्ति ले कर किसी कारण के अन्दर दो शक्तियाँ ऐसे चलती हैं, एक से तो वो भरता है और एक इस्तमाल अलग हो गये हैं और है ही। मनुष्य करता है। जिसके कारण स्वरूप उसके अन्दर में अहंकार और प्रतिअहंकार, इगो और इगो नाम की दो सुपर संस्थायें तैय्यार हो कर के उसे पूरी तरह से ढक देती हैं। और उस कारण वह सब ओर फैली हुई ऑल पर्वेडिंग शक्ति से वंचित होता है। सिर्फ मुझे आपका यही खोल देने का है। जैसे ही ये खुल जाता है, आप उस शक्ति को जानने लगते हैं। और एकदम आपके अन्दर शांति आती है। इतना ही नहीं कि आपके अन्दर शांति आ जाती है पर समग्रता आ जाती है, इंटिग्रेशन। और पूरी तरह से रिलॅक्स है। ये बहुत आवश्यक है और जो भी आवश्यक होता है, वो होता ही है। होना ही पड़ता है। जैसे कि जब कोई चीज़ गिरती है तो हम हाथ उसको लगा ही लेते हैं। ऐसे ही परमात्मा ने गिरते हये संसार को बचाने के लिये ही सहजयोग का आपके सामने आविष्कार दिया है। सहजयोग मेरा आविष्कार नहीं है । आविष्कार कौन सा भी, हमारा होता ही नहीं है। जैसे कि हम ग्रॅविटी का हम पता लगायें तो वो कोई हमारा आविष्कार नहीं है। ग्रॅविटी तो वहाँ थी ही। उसका सिर्फ पता लगा लिया। जो आपके अन्दर चीज़ है, जो आपका | जन्मसिद्ध हक है इसे मैंने पता लगा लिया कि आप उस चीज़ को पा लें। और बस इसी का पता लगाने के लिये मैंने बहुत समय बिताया है और इसका पता लग गया। इस का पता आपको घर-घर पहुँचाना होगा। विशेष कर आज का जो हमारा युवक वर्ग है उस की ओर देख कर के आप लोगों का जी घबराता है। इनको क्या हो गया है? उद्धट हो गये हैं। जैसे कि इनकी कोई पकड़ ही नहीं रह गयी। इन पर कुछ तो इलाज करो। सहजयोग के सिवाय कोई इलाज नहीं उनको ठिकाने लगाने का बच्चों पे तो सहजयोग इतनी जल्दी बनता है। इतनी जल्दी इसे बच्चे पाते हैं,

मैंने देखा है, जब भी स्कूलों में व्यवस्था करी। जब भी स्कूलों में मैं गयी हूँ मैंने देखा है, कि सौ बच्चों में से अस्सी बच्चे पाते हैं। वही स्कूल के बच्चे जब बड़े हो जाते हैं, हाइस्कूल में जाते हैं, उनको जरा समय लगता है। उनमें यही संख्या साठ-सत्तर आ जाती है। पर कॉलेज के बच्चे, हिन्दुस्थान के, पता नहीं किस से बने हुये हैं, बहुत मुश्किल काम है। बहुत मुश्किल काम है, कुछ कुछ ऐसी टीम है, लोगों ने मुझे इनवाइट किया, उनके वाइस चैन्सलेर आ कर कहे कि, 'माताजी, आप मेहेरबानी करिये। हम लोगों की नाक कट जायेगी। ये बच्चे जैसे बिल्कुल बंदर जैसे हैं।' मैंने कहा, 'ये तुम मेरे ऊपर छोड़ो।' 'नहीं', कहने लगे, 'हम नहीं करेंगे । ' ऐसा मारा इन्होंने , ऐसा पीटा। हिप्पिझम अमेरिका में आया लेकिन यहाँ जो आया है उसे आप बच के रहिये। उसकी ओर से अपनी दृष्टि हटा देने से, कोई भी प्रश्न हल नहीं होता। आप वास्तविक अपने देश की उन्नति और देशों की भी भलाई के विचार से सोचते हो तो यो सोच लीजिये कि सारी दारोमदार इन युवकों पर है। उनको सहजयोग से ही ठीक करना पड़ेगा । सहजयोग माने परमात्मा का योग। और ये वही कर सकता है जो स्वयं रियलाइज्ड हो। जो स्वयं प्लावित हो और जिसके अन्दर से ये शक्ति बह रही हो, वही ये कार्य कर सकता है। जितने लोग सहजयोग में पायेंगे वही लोग अंत में कार्य शक्ति का निर्धार करेंगे। पर ऐसे हैं कितने? बड़ी कठिनाई है। आपको आश्चर्य होगा पाँच साल बहत मेहनत करने के बाद, बंबई में असल में जिसको कहना चाहिये, रियलाइज्ड हजार आदमी हैं। बड़ी मुश्किल से। वो भी (अस्पष्ट) में उतना नहीं। उसमें से ग्यारह आदमी ऐसे हैं जो दुसरों को पार करा सके। अमेरिका में बहुत जल्दी लोग पार हो जाते हैं। लेकिन .... (अस्पष्ट) है उनका। रोज ही वो लोग गुरु बदलते हैं। रोज ही वो कुँओ खोदते हैं। सोचते नहीं, समझते नहीं, उसकी गहराई को नापते नहीं। ये कितना अत्यावश्यक है ये हम जानते नहीं । उसकी कितनी जरूरत है उसे हम समझते नहीं । जिस वक्त हम इसे समझ लें वो क्षण बड़ा ही भाग्यशाली है। हमारा चिल्लाना तो बना ही है, हमारा कहना तो बना ही रहेगा। एक माँ है पुकार पुकार के अपने बच्चों को कितना समझायें। लेकिन भी तो लगनी चाहिये। अगर बच्चों को भूख ही नहीं है तो उनके सामने क्या दौड़-दौड़ के, भूख पैर पड़-पड़ के कहा जाये। जो लोग पार हो जाते हैं, जो इस शक्ति से परिपूर्ण हो जाते हैं, उनको कोई भी बीमारी नहीं आ सकती और आने पर भी वो उसे ठीक कर सकते हैं। क्योंकि ये ज्ञान दिया जा सकता है कि इस बीमारी को इस शक्ति से कैसे ठीक किया जाये। आपके हाथ में से धीरे-धीरे बहने वाली ये जो लहरियाँ हैं, जिसे की चैतन्य लहरी आदि बहुत पहले से कहा गया है। आदि शंकराचार्य ने भी अपने किताबों में लिखा है लेकिन उनको आज तक पढ़ता कौन है! इस लहरियों से आप दूसरों का भी भला कर सकते हैं। अपना तो भला हो ही जायेगा। ऐसे लोगों को निरोगी बनाता है। ऐसे लोग दूसरों को निरोगी बनाते है और दीर्घायु हैं। इतना ही नहीं आयु जादा होती है लेकिन आनंद में रहते हैं। इतना ही नहीं कि आनंद में रहते हैं लेकिन उनके अन्दर में कलेक्टिव कॉन्शसनेस कहते हैं। जिसको की हम पॅरा... सम चेतना, इसका आज तक कोई आविष्कार ही नहीं, हम लोग जानते ही नहीं समचेतना को। कहने वाले वैसे बहुत बार समचेतना पर कहा है। लेकिन कोई साफ़ साफ़ बात नहीं। आप अगर ध्यान में आ कर के इसे पा लें, मेडिटेशन में आ कर के पा लें, तो आप समझ जाईयेगा कि समचेतना हम क्या करते हैं। इसका अर्थ सिर्फ यही है कि आपके अन्दर जो चेतना है इसे हम जानें। आपकी अन्दर की कुण्डलिनी को हम समझ लें और जब हम आपकी.

कुण्डलिनी धीरे-धीरे अपने प्यार से उठा रहे हैं, तब इसकी रुकावटें भी हम समझ गये और उसको भी हम हटा दें। यहाँ बैठे बैठे .... की कुण्डलिनी, आश्चर्य की बात है, देखते ही आप समझ सकते हैं कि किस परेशानी में वो बैठे हये हैं। उनको क्या तकलीफ़ है। कहाँ रुकावट है । चैतन्य कहाँ है। ये कोई बाह्य चीज़ नहीं होती। कोई विचार करने पर किसी को आप नफ़रत करते हैं, किसी से आप को दश्मनी है, ये नहीं, आप ये सोचते नहीं । आप सोचते हैं कि किस तरह से आप उसको दें। देते ही साथ वो जो जिसे आप दे रहे हैं उसका भला ही होगा, वो ठीक ही होगा। इससे बढ़ के कोई जनसेवा, समाज सेवा है ही नहीं। क्योंकि इसमें करते वक्त मनुष्य ये नहीं सोचता है कि इस हाथ से इस हाथ का भला करें। ये तो दोनों हाथ जब एक हो गये और इसमें जब दर्द हुआ अपने आप, ऑटोमॅटिकली आप ठीक हो गये। सहजयोग याने क्या है? इसका अर्थ क्या है? इसके में आगे कैसे बढ़ना चाहिये? वो मैं कल बताने वाली हूँ। लेकिन आज मैंने यही भूमिका बाँधी है, कि सहजयोग के सिवाय संसार का तारण नहीं, सॅल्वेशन नहीं। बाकी जितनी भी हो गये, उनसे जितना भी होता होगा लेकिन सॅल्वेशन नहीं होगा। तारण नहीं हो सकता है, अगर संसार का तारण करना है तो सहजयोग का ही अवलंबन करना चाहिये। जो परमात्मा का अपना ही मार्ग है। वो ही ये कार्य कर रहे हैं, सिर्फ आपको जानना मात्र है। दु:ख सिर्फ इतना है कि सहजयोग में आपकी स्वतंत्रता पर ही .....। अगर आप इसको पूरी तरह से सोच-विचार कर के, अन्दर से पाते हैं, अन्दर की प्यार से नहीं पायेंगे ये काम नहीं हो सकता। अमेरिका में एक साहब बड़े आदमी थे। वो मेरे साथ चार दिन आ के रहे। कहने लगे, 'मुझे पार कराओ। वो पार नहीं हये। वो बड़े परेशान कि साधारण गृहिणियाँ पार हो रही हैं और हम पार नहीं हो रहे हैं। क्या बात है, हम क्यों नहीं पार हो रहे हैं?' तो मैंने उनसे कहा कि, 'आप नहीं पार हो रहे हैं इसका कारण में नहीं हूँ। इसका कारण | आप ही हैं। मैं तो प्रयत्नशील हूँ कि इसको पार करूँ, उनको पार करूँ। लेकिन इसका कारण मैं नहीं हूँ कि आप पार नहीं हुये। वो पूछने लगे कि, 'फिर कारण क्या है?' मैंने कहा कि, 'कारण ये है कि अन्दर से वो प्यार जगाओ। वो आर्तता जगी नहीं जो अपने प्रति होनी चाहिये। जिस दिन वो प्यार जग जायेगा , वो स्वयं ही पार हो जायेगा ।' दूसरे दिन सबेरे चार बजे नहा-धो के बैठ गये और फट् से पार हो गये। ये हो जाता है। दिखने में बहुत ही अद्भुत। है ही अद्भुत ! लेकिन बहुत कुछ अद्भुत संसार में होता है। इसी तरह से ये भी घटित होना है। कार्य करना है, इसे अपनाना है। उसके बारे में शंका-कुशंका करने से कुछ नहीं होने वाला। आज उत्पत्ति से ले के मनुष्य तक पहुँचा दिया है आप लोगों को। और मनुष्य से मनुष्य को आगे कहाँ जाना है, ....(अस्पष्ट)। लेकिन हमारे इशारे करने से भी और कहने से भी कार्य नहीं हुआ। आपके अन्दर ये माँग है या नहीं। आप इसे चाहते हैं या नहीं। आप अपनी शांति को पूरे हृदय से चाहते हैं या अभी भी कहीं जड़ता में हैं। कल सहजयोग माने क्या ? सहजयोग से कैसे प्राप्ति होती है? आदि विषय पर आपके सामने विस्तारपूर्वक कहुँगी । आज सब का विचार ये भी था कि ध्यान करे बगैर माताजी के भाषण में अर्थ नहीं हो सकता। ध्यान तो होना ही है। जिन लोगों को ध्यान में जाना है, और उसे प्राप्त करना है, वो लोग रूक जायें। थोड़ी देर में ध्यान भी होगा, और ध्यान के बाद हम देखेंगे कि कितने लोग इसे पा सकते हैं। कल सबेरे इन लोगों ने ध्यान का ९:३० बजे प्रोग्रॅम रखा है। वो भी आप लोग अटेंड करें। जो लोग आज पार हो जायेंगे वो भी और नहीं होंगे वो भी। क्योंकि परमात्मा के

लिये थोड़ा समय देना है। हम तो परमात्मा के लिये समय ही नहीं दे पाते। हमारे पास सारे संसार के लिये समय है। सिनेमा भी जायेंगे तो तीन घण्टा बैठेंगे। लेकिन परमात्मा के लिये कितने घण्टे देते हैं? हम वहीं टाइम देते हैं कि जिसमें हम कर रहे हैं। पूजा करें तो भी कोई फायदा नहीं। पहले आप का कनेक्शन तो लगने दीजिये। आपका कनेक्शन ही लगा नहीं है। बगैर कनेक्शन लगाये हये आप किसे याद कर रहे हैं और इसे क्या बुला रहे हैं। आप लोगों में से जो भी ध्यान में जाना चाहें वो थोड़ी देर के लिये रूक जायें। लेकिन जिनको नहीं जाना हो वो अभी पहले चले जायें। दूसरों को डिस्टर्ब नहीं करना है ध्यान के वक्त। क्योंकि वो परमात्मा को खोजने वाले हैं । उनकी इज्जत करे और बाद में ध्यान में उठ के जाना नहीं होगा। करीबन ध्यान को भी 20-25 मिनट लग जाएंगे, ध्यान में हम देखे लेंगे। और जिनको जाना हो वो अभी चले जाएं। [Marathi] जो लोग realise हो गए हैं, वो पीछे चले जाएँ।

Birla Kreeda Kendra, Mumbai (India)

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