Interview 1994-07-31
31 जुलाई 1994
Interview
Varikstraat Ashram, Amsterdam (Holland)
Talk Language: English, Hindi | Transcript (Hindi) - Reviewed
मुलाकात – हिंदुस्तान टिव्ही स्टेशन, वरिक्स्त्रात आश्रम, अॅमस्टरडॅम, हॉलंड
३१.७.१९९४
प्रश्नकर्ता :- श्री माताजी, आप छोटे रुपमें अपना परिचय दे सकती है ?
श्री माताजी :- परिचय ऐसे की, शालिवाहन का जो खानदान था, उस खानदान के हम है| हमारे पिता और माता दोनोही गांधीजीके परमभक्त थे| और हमारे पिता अपनी कोंन्स्टीटयुएन्ट असेम्बली और उसके बाद पार्लमेंट वगैरा सबके मेम्बर थे| माता भी हमारी ऑनर्स मैथमेटिक्स में थी| और हमारे एक भाई साहब जो है वो अपने कॅबिनेट के मिनिस्टर भी है| लेकिन असल में अध्यात्मिक रूपसे हमारे माता पिता हमें पहचानते थे, की हममें कोई विशेष बात है| और हमारा विवाह हो गया, एक तो हम मेडिकल कॉलेज में पढ़ते थे, लाहोर में, और लाहोर में गड़बड़ी शुरू हो गयी| तो हमारा विवाह हो गया और जिनसे विवाह हुआ वो भी एक बहुत प्रसिद्ध व्यक्ति है, उनका नाम है डॉ. सी.पि.श्रीवास्तव| बादमे वो जाकरके लंडनमें स्थित एक यु.एन.का, यु.एन.की एक संस्था है जिसको की आय.एम्.ओ. कहते है, ‘इण्टरनॅशनल मेरीटाइम ऑर्गनाइजेशन’ उसके सेक्रेटरी जनरल चुने गये| १३४ नेशन्सने उनको चुना है| वो हमारे पति है| और फिर उन्होंने रिटायरमेंट ले ली| हमारे दो बच्चे है और एक लड़की जो है उसका बिहार में विवाह हुआ है, वो राजेन्द्र बाबुके रिश्तेदार है|
प्रश्नकर्ता :- अच्छा| ज्यादातर हम देखते है की, भारतसे आते है योगी, महर्षि लोग, ज्यादातर ये पुरुष है| आप अकेली एक महिला है, आप इस बातको विशेष देखते है भी?
श्रीमाताजी :- हां, क्यों की यह कार्य महिला ही कर सकती है| पुरुषोंके बसका नहीं| श्रीराम आये तो वनवास चले गये| श्रीकृष्ण आये तो वो थोड़े दिनमे वो भी खतम हो गये| उसके बादमे, उनको जब गुस्सा आता था, तो वह अपना सुदर्शन चक्र चलाते थे| इसा मसीह आये तो वह क्रूस पे लटक गये| मोहम्मद साहब आये तो उनको जहर दे दिया| इस प्रकार, जो एक बच्चोंको सम्भालनेकी सुझबुझ है वो तो माँ को ही आ सकती है, और जिसे हम कहते है की धैर्य, इसके अलावा बच्चोंके साथ जो सबुरीसे रहना चाहिये वो तो माँ ही जान सकती है|
प्रश्नकर्ता :- अच्छा, आपके इन दिनों क्या क्या कार्य है?
श्रीमाताजी :- इन दिनों ये ही हम करते है की, हर एक देशमें जाना और वहाँ पर सहजके बारेमें बताना और आज क़लके जमाने में ऐसा कोई विशेष स्वरुप आ गया है की हर एक देश में, हजारोंकी तादातमें लोग परमात्माको खोज रहे है| वो चाहे परमात्माको खोजे, चाहे वो सत्य को खोजे, बात एक ही है| तो, उनको राह दिखानेवाला कोई नही है| सबलोग उनके, सबको मालूम है की ऐसा बजार लग गया है, मार्केट हो गया है, तो सब पैसे बनानेपे लगे हुए है| असलियत बात ये है की, असलियत पानेके लिए आप कुछभी पैसा वैसा नहीं दे सकते, उसको आप खरीद नहीं सकते, ये आपके अंदरकी शक्ति है जो जागृत करती है|
प्रश्नकर्ता :- अच्छा| हम तो कर्मयोग जानते है, ज्ञानयोग, भक्तियोग, तंत्रयोग| आपने सहजयोगका नाम लिया है, इसकी क्या विशेषता है?
श्रीमाताजी :- इसकी विशेषता ये है की सब योगोंका ये तत्व है| कर्मयोग, कृष्णने कहा की आप अपना कर्म करो, पर कृष्ण जो थे वो डिप्लोमॅट थे| सिधी बात नहीं करेंगे, सोचा की ये सब टेढ़े दिमागके है तो टेढ़ी उंगलीही चलानी चाहिये| तो उन्होंने जो बात आपसे कही कर्मयोग की, उसमें एक खास बात उन्होंने कही की ”कर्मण्येवाधिकारस्ते फलेषुमाकदाचीन”| एक बात तो ये कह दी की कर्म हम कर सकते है, फल की अपेक्षा नहीं कर सकते| और दूसरा उन्होंने कहा कि, जो भी कर्म करो वो मुझे आप समर्पित करो| ये हम कर नहीं सकते, क्यों की हमारे अंदर अहंकार है| हम कोई भी कर्म करते है तो ये नहीं सोचते है की ये परमात्मापे छोड़ दिया जाय| कल कोई मर्डर करेगा वो भी परमात्मापे छोड़ देगा| उसमेंही एक खूबी है की, मतलब ये की आप परमात्मासे पहले सम्बंधित हो जाओ, उसके बाद आप यही कहेंगे, कुछ कर्म ऐसाही करेंगे की जो अकर्म हो जायेगा| आप कुछ भी करेंगे, आपको लगेगा नहीं की आप कुछ कर रहे है, हो रहा है| ये जब स्थिती आये, इस स्थिती पर उन्होंने बात की थी| पर और भक्तिपर भी उन्होंने कहा की पुष्पम् फलम् तोयम्, जो भी हमें दो हम ले लेंगे, पर देंगे क्या इसपरही उनकी खुबिया है| उन्होंने ये कहा की देनेके वक्त में की.....( संस्कृत मध्ये शब्द माहित आहे मला पण मराठी हिंदी मध्ये.....सोचना पडता है कभी कभी हिंदी भाषामें...जो भी ......जरासा बंद कर देना.......)
प्रश्नकर्ता :- वैसे तो हम पश्चिम देशोमें कर्मयोग जानते है, भक्तियोग, ज्ञानयोग, तंत्रयोग| ये सहजयोग का नाम आपने लिया है इसकी क्या विशेषता है ?
श्रीमाताजी :- इसकी विशेषता है की सब जितने भी योग है, सब इसमे अंतर्हित है| मतलब ये की सहजयोगसे जब तक आपका सम्बन्ध परमेश्वरसे नहीं होता है, तब तक सभी योग व्यर्थ है| उसमेंसे कर्मयोग कृष्णने बनाया, भक्तियोग बनाया, ये दोनों है| उसमे उन्होंने इशारा किया है की, तुम्हारा उससे सम्बन्ध होना चाहिये| पहले कहा की तुम जो कार्य करो मुझपर छोडो, वो हम छोड़ नहीं सकते, ये सहजयोग के बाद होता है| फिर दूसरी बात उन्होंने भक्ति कही की अनन्य, भक्ती माने दूसरा कोई नहीं होता, ये भी सहजयोगके बाद ही हो सकता है| क्योकि जबतक आपका उनसे सम्बन्ध नहीं होता है, तो अब कोइसा भी कर्म करें वो आप अपनेही ऊपर लेंगे| फिर तंत्रयोग जो है, तो तंत्रयोग जो है उसमे हम भी तंत्र ही इस्तेमाल करते है| तंत्र माने ये की हमारे अंदर जो मेकॅनिझम है उसको तंत्र कहते है| तो उसी मेकॅनिझम को इस्तेमाल हम करते है| पर जो तांत्रिक होते है, उनको इसके बारेमें कुछ मालूमात नहीं और वो सब गलत सलत कम करते रहते है| हम तांत्रिक नहीं है, पर हम तंत्रविद्यामें बात कर रहे है, क्योंकि चक्रोंकी बात है, उसके जो तिन चैनल्स है उनकी बाते है| अब इसपर किसीने लिखा नहीं ये बात तो नहीं है, सब ने कहा है| सहज समाधी लागो, किसने कहा, आप जानते होंगे की जो कहा गया है, गुरुनानक है, गुरुनानक नहीं कबीर......Kabir had said it and also Gurunanak. गुरुनानकने तो बहुत कुछ कहा, लेकिन कबिरने इसपे कहा कि इडा पिंगला सुखमन नाडीरे.....इडा पिंगला सुखमन नाडी रे....| शून्य शिखर पर अनहद बाजी रे....| सब बात अनहद, अब अनहद जो है वो स्पंद करके आपके आदि शंकराचार्यने कहा है| ये जो सबने जो बाते कही है उसका पूरा अनुभव, उसका पूरा निवेदन, एक्सप्लनेशन आपको सहजयोगके बाद होता है| जब तक आपका सम्बन्ध नहीं हुआ, समझ लीजिए टेलीफोन में आपका सम्बन्ध नहीं है, कनेक्शन नहीं है, आप किसको फोन करे जा रहे हो?
प्रश्नकर्ता :- सहजयोगमें आसन, प्राणायाम ये सब बाते चलती है?
श्रीमाताजी :- जी नहीं| आपके अंदर जो कुण्डलिनी है वो जागृत होती है और छे चक्रोमेंसे गुजरकरके अंतमे तालुभागसे निकलके और इस सारे ओर जो चैतन्यसृष्टि है उससे एकाकारिता प्राप्त करती है| लेकिन, अगर समझ लीजिये आपको कोई शारीरिक तकलीफ है, आपकी अगर कोई रीढ़ की हड्डी गड़बड़ है, तो हम उसको आसन बता सकते है| पर सब आसन सब लोग करे तो ये ऐसाही हुआ की जैसे एक मेडिसिन बॉक्समेंसे सब लोग सारी मेडिसिन ले| सबका एक शास्त्र होता है, नियम होता है, और उसके अनुसार हमनें देखा की अभी तक तो हमनें किसीको कोई आसन बताया ही नहीं|
प्रश्नकर्ता :- ये कुण्डलिनीका नाम आपने लिया है .........
श्रीमाताजी :- हमारे प्रोग्राम के बाद जाता ही है......
प्रश्नकर्ता :- तो साधक क्या करता है, जब वो आसन नहीं लेता या प्राणायाम नहीं करता?
श्रीमाताजी :- सहज है ना, उसमें कुछ करना नहीं है, उसमें रमना है| असल में जैसे एक बिज को आप बो देते है, तो ये पृथ्वीमाता उसमेंसे अंकुर निकालकरके उसका वृक्ष बना देती है| इसीप्रकार की आपकी जो बिज है उसमें एक कुण्डलिनी, एक समझ लीजिये अंकुर स्वरुप है और वो जागृत हो जाती है| हो जाने के बाद वो अपने आप अपना रास्ता ढूंढती है| और जब आप कुछ करने लग जाते है तब आपमें ईमबॅलेंस आ जाता है| कुछ करना नहीं पर निर्विचारितामें उतरना चाहिये, ये पहली स्थिती निर्विचारिताकी है जो आप प्राप्त कर सकते है| जैसे समझ लीजिये की हर समय विचार करते है तो, या तो पहला विचार करते है या आगेका विचार करते है| तो या तो हम भूतमें या भविष्यमें रहते है, और दोनों चीजे नहीं है, भूत खतम हो गया और भविष्य है ही नहीं| तो जो वर्तमान है इसके अंदर उतरनेके लिए कुण्डलिनी ही कार्यान्वित होती है| तब कोई विचार नहीं रहता, निर्विचार समाधिमे बैठते है और आपकी उन्नति होती है| अनेक आपके अंदर जो जो भी शक्तियां है सब जागृत हो जाती है|
प्रश्नकर्ता :- दुसरे योगोमें, योग परंपराओमें मै पढता हुँ, सुनता हूँ की कुण्डलिनी शक्तिसे बचना चाहिए वो खतरनाक भी हो सकता है, साधक को मार भी सकता है या पागल कर सकता है?
श्रीमाताजी :- ये बहुत गलत बात है, ना कभी ऐसा हो सकता है, क्योंकि कुण्डलिनी आपकी स्वयं माँ, आपकी अपनी माँ है, वो आपके बारेमें सबकुछ जानती है| जब आप पैदा हुए थे तो आपकी माँने सारा दुख अपनी ऊपर उठाया, आपने तो कोई दुख नहीं उठाया| ये बहुत गलत बात कहनी है, ये ऐसे लोग कहते है जिनको ये कार्य नहीं आता और जो नहीं चाहते की लोग सत्यकी ओर जाए|
प्रश्नकर्ता :- सहजयोग एक व्यक्तिका जीवन कैसे बदल सकता है?
श्रीमाताजी :- सब तरहसे बदल सकता है| एक तो उसकी शारीरिक स्थिति एकदम ठीक हो जाती है| अब आपसे मैंने बताया की मेरी उमर ७१ सालकी है और रोज करीबन सफ़र करते है, कुछ नहीं हम आरामसे बैठे हुए है| इसीप्रकार आपका जीवन जो है एक तो बहुत सशक्त हो जाता है, और बहोत सारी चीजें जिससे आप पहले पीड़ित रहते है, वो बीमारिया ठीक हो जाती है, कॅन्सर की बीमारी ठीक हुई है इससे| बहोतोंकी बहोतसारी बीमारिया ठीक हो जाती है हर तरह की| अब एक तो शारीरिक स्वास्थ्य, फिर आपको मानसिक स्वास्थ्य मिलता है| बहोतसे लोग है उनमे डिप्रेशन होता है, किसीमे कुछ और तरह की जैसे की एपिलेप्सी आदि वगैरा, लुनसी वो तक ठीक होते है, सहजयोगसे वो तक ठीक होती है| फिर आपके जो अंतरिक इच्छा है, हमेशा एक साधक चाहता है की परमात्मा को प्राप्त करे, उसकी शक्ति को प्राप्त करे, और उसकी ओर बहोत मेहनत करता है, वो प्राप्ति हो जाती है, तो आपकी शारीरिक, मानसिक और बौधिक भी| ऐसे बच्चे हमने देखे है जो पढ़नेमें बहोत कमजोर थे वो फर्स्ट आने लग गये| क्योंकि आपकी बुद्धि जो है उसके अंदर जब कुण्डलिनी आती है, तो प्रकाशित कर देती है| इस प्रकार आपकी बुद्धि भी बडी प्रगल्भ हो जाती है| आपका जो चित्त है वो स्थिर हो जाता है, एकाग्र हो जाता है, और बहोत ही इनोसेंट हो जाता है|
प्रश्नकर्ता :- अच्छा| सहजयोगी एकांतमे बैठ सकता है या ग्रुपमे जिसको कह सकते है?
श्रीमाताजी :- एकांतमे भी बैठना पड़ता है उसको, लेकिन अधिकतर ग्रुप में उसकी प्रगति ज्यादा होती है| क्यों की एक दुसरेकी लेनदेन आपोआप हो जाती है, इसलिए इसको सामूहिकतामें आना चाहिये| क्योकि जैसे है, आप कहिये की एक, छोटासा बिंदु सागरमें मिल गया, तो वो सागर हो गया फिर सागरके साथ चलना चाहिये, सागरसे अलग हटकरके तो चलेगा नहीं| किन्तू वैसे घरमे भी ध्यान धारणा करनी पड़ती है, दस मिनिट, ज्यादा नहीं दस मिनिटकी ध्यानधारणा| जैसे की कोई स्नात होता है इसी तरहसे वो नहा लेता है जैसे की सफाई हो जाये, क्योकि ये सारा जो कार्य है ये निर्मल तत्वका है| प्यार का निर्मल तत्व जो है उससे आदमी इतना शुद्ध हो जाता है, एकदम जिसे ख़ालिस कहते है|
प्रश्नकर्ता :- आधुनिक समाजमे हम देखे तो हर तरफ की कठिनाइयाँ सामने आती है जैसे विश्व में भूक से लोग मरते है, या लड़ाईयाँ होती है, या जातिवाद बढ़ता जाता है, तो इसपर सहजयोगका क्या जवाब है?
श्रीमाताजी :- बहोत बड़ा असर है| सबसे पहले तो जातिवाद वगैरा मनुष्य भूल जाता है, क्योकी वो विश्व बंधुत्व उसमें आ जाता है| वो सोचता है की दूसरा कौन है, हम सब एक है| अब हमारे यहाँ शादियाँ होती है, हरसाल ९०-८०-६० शादियाँ होती है| कोई इधरसे लेकर वहाँ कहिभी शादी हो जायेगी और सब लोग बड़े आरामसे, इनकी फॅमिलीलाइफ अच्छी हो गयी, इनको बड़े प्यारे प्यारे बच्चे है और बहोत शुद्ध है अंत:करणके| इन्होंने ड्रग्स छोड़दी, शराब छोड़दी, सिगरेट छोड़दी, मैंने कुछ नहीं कहा, अपने आप ही सब छुट जाता है| जैसे की हाथमें कोई साप अंधेरेमें लेके बैठे है और जैसा दिया आ जाए उसे छोड़ देता है, इस तरहसे ये लोग बिलकुल शुद्ध होकरके बैठ गये| तो ये एक मनुष्यही से सारे प्रश्न है ना, आपके राजकीय है, आपके जितनेभी प्रश्न है संसारके वो मनुष्यकी वजहसे है, जिस वखत में मनुष्य ठीक हो जायेगा तो सब प्रश्न ठीक हो जायेंगे|
प्रश्नकर्ता :- लेकिन कठिनाइयाँ इतनी बडी है और सहजयोग मै अपने बारेमें कहूँ तो कल ही सुना|
श्रीमाताजी :- नहीं, पता नहीं क्यों आप अनभिज्ञ रहे, ये बहोत पुराना शब्द है| ये बहोत पुरानी ये है, लेकिन पहले इसको जरासा गुप्त रक्खा जाता था, इसलिये आपने नहीं सुना होगा| पर ये चीज सहज का मतलब तो ये है की जो, सहज ऐसे भी आप हिन्दीमें समझते है, सहज, पर सह-ज माने आपके साथ पैदा हुआ ये योगका अधिकार आपका है, जिसे आपको प्राप्त करना है|
प्रश्नकर्ता :- सहज हम समझते है अपनी भाषामें की आसान|
श्रीमाताजी :- आसान| वही बात है, बस्स|
प्रश्नकर्ता :- अच्छा| और समाजमेंभी कठिनाइयाँ है, हर तरह की समस्याएँ है, जैसे लोग पागल हो जाते है, या पश्चिम देशोमें बहोत दौड़ते है, बहोतही भौतिकता है|
श्रीमाताजी :- भौतिकता बहोत है|
प्रश्नकर्ता :- और हर तरहकी फेमिली प्रॉब्लम्स है, छुट्टी छुट्टा हो जाते है पति पत्निमें ?
श्रीमाताजी :- अब तो नया एक समज लीजिये की एक नयी रेस तैयार हो रही है, एक नए तरह के लोग जो ये सब चीजोंसे परे है| ना तो फॅमिलीके प्रॉब्लम्स है, ना ही इनके सोसायटीके प्रॉब्लम्स है, ना ही किसी चिजके, क्योंकि मनुष्यही ये सब प्रॉब्लम करता है| एक एक घटक, गर मनुष्य ठीक हो जाये और वो सब एक घटक हो जाये तो प्रश्न क्या रह जायेगा| अब हमारे यहाँ देखो ६५ देशोमें, अलग अलग देशोमें, ये कार्य हो रहा है और ये लोग मिलते है जब चार चार पांच पांच हजार लोग कभी मैंने इनको झगडा करते नहीं देखा, कभी मैंने कोई आर्गुमेंट करते नहीं देखा, हा...एक दुसरोंके चूहुल जरुर है लेकिन वो तो सब मजाक ही में आनंद में रहते है सभी|
प्रश्नकर्ता :- अच्छा| आप नारी है, औरत है, आप हमारे बहनोंके प्रति कुछ संदेश दे सकती है जो अपनी हक़ पर इस समय आगे चल रहे है?
श्रीमाताजी :- नारीयोंके लिए संदेश ये है की हमारी संस्कृतीने नारियोंपर बहोत बोझा डाला| उन्होंने धर्म को संभाला, उन्होंने अपने घरोंको संभाला, अपने बच्चोंको संभाला, अपने पतियोंको संभाला है| उससे आजभी हम कह सकते है की जैसा समाज हिन्दुस्तान में है, वो कही आपको नहीं मिलेगा| फिर वो चाहे मुसलमान, हिन्दू, इसाई कोई भी हिन्दुस्तान के सीख लोग है, उनके भी यहाँ अमन, शांति है वो औरतोने बना रखी है, ये औरतोंका कार्य है| औरत जो है ये पृथ्वी तत्व के जैसी होती है, जो सब चीज को बर्दाश्त करकेभी फिरसे उसको प्लावित करती है| और मनुष्य जो है वो सूर्यके जैसा है, तो सूर्यका ताप सहन करना और उस तापसे दूसरी चिजोंको उत्पन्न करना, ये सारा कार्य पृथ्वीतत्व करती है| इसी तरहसे स्त्री बहोत शक्तिशालीनी है और हिंदुस्तान की स्त्री को तो लोग बहोतही शक्तिशालिनी समझते है| यहाँ तक की कहा जाता है की ‘यत्र नार्या पूज्यंते, तत्र रमन्ते देवताः’| जहाँ नारी पूजनीय हो और पूजी जाये वही देवता बैठते है|
प्रश्नकर्ता :- लेकिन हम यहाँ पश्चिम देशोमें आकर हम हिन्दुस्तानी कुछ अपनी संस्कृती ..........
श्रीमाताजी :- वो सब जगह हो रहा है....
प्रश्नकर्ता :- छोड़ते जाते है......
श्रीमाताजी :- वो सब जगह हो रहा है|
प्रश्नकर्ता :- हाँ....इसपर आपका क्या मत है?
श्रीमाताजी :- वो सब जगह हो रहा है, हिन्दुस्तान में भी, कोकोकोला कल्चर कहते है, वो भी थोडा थोडा शहरोंमें आ गया है| लेकिन फिर मूड जायेगा, क्योकी इसकी जब दुष्टता दिखाई देगी और इसकी तकलीफें दिखाई देगी, तो लोग मूड जायेंगे| हमें अभी चायना के मीले थे कल्चरल अटॅची, वो बता रहे थे की चायनामें बहोत कोकोकोला कल्चर आया और अब बदल रहा है| लेकिन तो भी हमारे अंदर ऐसी ठोस चीजे है की वहाँ हम नहीं बदल सकते| काफी ठोस चीजें है|
प्रश्नकर्ता :- हमारी भारतीय संस्कृती की क्या विशेषता है?
श्रीमाताजी :- सबसे बड़ी बात ये है की ये धर्म पे आधारित है, धर्म माने जिसको कहना चाहिये मोरालिटी, की मनुष्यको जो है नैतिक बंधन बहोत है, नीतिमत्ता बहोत जरुरी चीज है| और वो निती यहाँ छुट गयी, इन देशोंसे निति छुट गयी तो उनका कल्चर क्या होगा| और अपनी जो संस्कृती है उसमे निति सबसे बड़ी चीज है| किसकी निति कैसी है तरह तरहके उदाहरण है इसपर तरह तरह के|
प्रश्नकर्ता :- अच्छा| इस सवालको हम फिर करेंगे......वो....बादल शोर मचा रहे है................................................
प्रश्नकर्ता :- श्रीमाताजी, भारतीय संस्कृती की क्या विशेषता है?
श्रीमाताजी :- विशेषता ये है की अपनी भारतीय संस्कृती नितिमत्तापे आधारित है, निति बहोत बड़ी चीज है, अनीती अपने संस्कृतिमें मानी नहीं जाती| और यहाँकी संस्कृतिमें निति अलग है और उनकी संस्कृती अलग है| संस्कृतिमें कुछ भी नितिकी बातचीत नहीं है| जैसे मुझे आश्चर्य हुआ की एक लेडी से मैंने बात करी तो वो अंग्रेज थी, बहोत ही पढीलिखी, तो कहने लगी ये तो हमारे संस्कृतिमें है की औरतें अपने बदन को जादा खोल दें, मैंने कहा अब ये कैसी संस्कृती इनकी है| तो इसप्रकार इनकी संस्कृतीमें निति नहीं, पहली चीज जिसमें नीति नहीं है, वो क्या संस्कृती होगी| इसलिये हिन्दुस्तानियोंको चाहिये की अपनी नीतिको जखडके रखें और अपनी संस्कृतीको जखड के रखें, क्योंकि बादमें सभी लोग उसमें आने वाले है, तो क्यों बह जाए? अभी ये लोग है देखिए बिलकुल हिन्दुस्तानी नीति पर चालु है| अपने आपसे, क्योंकि आत्माका उसमें अंश है, आत्माका प्रकाश है| उसमें हमारी संस्कृती पनपी है, हमारी संस्कृती आई है, जो बड़े बड़े अपने यहाँ द्रष्टा हो गये, बड़े बड़े संत साधू, असली वाले, उनसे आयी हुई है ये संस्कृती, और इनकी संस्कृती आयी कहाँसे? इसा मसिहने जो बातें कही, वो तो उसके छदामभरभी ये लोग नहीं काम कर सकते| उन्होंने जो बात कही है वो सब सहजयोगियोंका वर्णन है, की तुम्हारे आँख में भी ऐसे भाव नहीं होना चाहिये, की जिससे कोई आप दूषित भावसे किसीकी ओर देखें| इतनी बारीकी तक वो पहूँच गये, और ये यही लोग है, इसाई लोग, उनको क्या मालूम|
प्रश्नकर्ता :- फिर भी हम देखते है की ये पश्चिमी देशोमें गोरे जात, भारतीय आध्यात्मिकता की ओर बढ़ते है, ये आपको कैसा लगता है?
श्रीमाताजी :- इसलिये बात ये है की हमारे हिंदुस्तानिय यह सोचते है की हम तो सब जानते है| लेकिन ये लोग नहीं, ये तो सोचते है की हम तो डूब रहे है, और हमारा सहारा ये ही एक अध्यात्म है, और अध्यात्म में वो कुछभी करके बेचारा आना चाहते है| इसमें बहोत खो भी गये क्यों की हमारे देश से भी एक से एक बिलंदर लोग आये, काफी लूटा इनको, बहोत सताया लेकिन मैं देखती हूँ की ये जीतने गहरे उतरते है, जितने गहराईसे सहजयोगको पकड़ते है, हिन्दुस्तानकेभी पकड़ते है, पर बाहरके नहीं, बाहरके हिन्दुस्तानी नहीं इतनी जोरसे पकड़ते सहजयोगको| ये बड़ी ...क्या बात है पता नहीं मुझे|
प्रश्नकर्ता :- अच्छा, एक अंतिम सवाल आपसे पूछता हूँ| कही मैंने पढ़ा है की आपको लोग अवतार मानते है, आप अपने को खुद कैसे देखती है?
श्रीमाताजी :- हम बतायेंगे नहीं, हम बताना नहीं चाहते, कुछ तो हम है ही, उसके बगैर थोडेही कार्य हो रहा है| लेकिन बात ये है की गर आप कुछ बताये के हम ये है वो है तो लोग मारनेको दौड़ते है| मुझे मरना नहीं है| ईसामसीह ने कहा की मैं ईश्वर का पुत्र हूँ, ये बात सही थी, उसे कृसिफाय कर दिया| मोहम्मद साहब को जहर दे दिया, अपने यहाँ सारे संतोंको छलछल के मार डाला| अब आपके बिहारमें... मै कहूँ, कबीर हो गए, बुद्ध हो गए, यानि बिहार जगह कैसी! जैनीयोंके महावीर हो गये और वहाँ पीर हो गये, सब हो गये, लेकिन उन्होंने कहा की, कबिरने सुरती कहा है कुण्डलिनीको| तो वहा सुरती तम्बाकूको कहते है| बताइये, अब क्या खा जाये, जो उनके बातचीतका उनके कहनेका, उनके उपदेशोंका जो विपर्यास कर दिया और जिस तरहसे हमने अपने सबको बिगाड़ लिया है| तो बेहतर है की अभी हम कुछ ना कहें, हम कहें आप पहले पार हो जाओ फीर सूक्ष्मदृष्टिसे आप जानो हम क्या है| कहनेकी कोई जरुरत नहीं हमें, क्या जरुरत है, हम एक स्त्री है, माँ है इतना समझ लो|
प्रश्नकर्ता :- धन्यवाद| बात ये है यहाँ पश्चिमी समस्याओमेंभी हम मिलते जुलते है, मतलब डिवोर्स लोग जादा करते है, डिवोर्स को कहते है छुट्टी-छुट्टा ना, हिंदी में|
श्रीमाताजी :- घटस्फोट कहते है, मराठीमें घटस्फोट कहते है, तलाक कहते है हिंदी में|
प्रश्नकर्ता :- नहीं, तलाक उर्दू में कहते है, हिंदी में क्या कहते है?
श्रीमाताजी :- हिंदी में क्या कहते है|
प्रश्नकर्ता :- हम अपनी भाषामें छुट्टी-छुट्टा कहते है, तो मतलब समझ जायेगी आप|
श्रीमाताजी :- हाँ हाँ, छुट्टी-छुट्टा, समझते है|
प्रश्नकर्ता :- हमारे लोग सूर्यंनामसे यहाँ आए इस देशमें, होलंडमें, तो यहाँकी समस्याओंमेंभी मीलते है, उलझ गये है, जैसे छुट्टी-छुट्टा ज्यादा होती है, और यहाका स्ट्रेस जो बढ़ता जाता है, लोग भौतिकता के पीछे दौड़ते है, इसपर आपका क्या संदेश है?
श्रीमाताजी :- इसका इलाज सहजयोग है| क्योकि जब सहजयोग हो जाता है, तो आप जान जाते है की आप अकेले नहीं| आपके साथ सब इसी आनंद को उठा रहे है, सारी चीज आनंद के लिये ही है| अगर आपको आनंद मीलने जाता है तो आप भौतिकता के पीछे में क्यों जायेंगे, भौतिकतासे कोई मतलब नहीं| पर भौतिकतामें जो उसका गुण है वो ये है की जैसे लोग आए और उनको आपको प्यार जताना है, तो उन्होंने आपको बिस्किट दे दिया, चाय दे दी कोई आपको प्रेजेंट दे दिया, ये भौतिकता है| भौतिकताका सौन्दर्य ये है, और दूसरा उसका अंग ये है की आर्ट| उसके..जो ये जड़ चीज है इसको किस तरहसे सुन्दरतासे बनाया जाए, ये एक दूसरा उसका बड़ा...अस्थेटीक्स जिसे कहते है, सौन्दर्य, साधन वो आप उससे कर सकते है| लेकिन जब भौतिकता माने पैसा हो गया तब सभी चीज बिलकुल विद्रुप हो गयी| पर इसका जो संवेदन है ये सहजयोग के बाद आता है| संवेदन इसका, जैसे की गंगाके इसकी बनी हुई ये चीजे है, ये सहजयोगियोंके लिये बहोत प्यारी चीजें है, क्युंकी उसमेंसे चैतन्य बह रहा है| जिसमेंसे चैतन्य बहेगा उसीको सौन्दर्यपूर्ण मानते है| ऐसे मोनालिसाका जो पिक्चर है, उसमें चैतन्य है| बहोत सी जगह, जैसे ये है ये सिस्टिन चैपल इसमें चैतन्य आ रहा है| जहाँ चैतन्य आएगा वही सुन्दर चीज है| फिर उसको अपनानेकी जरुरत क्या, उसका मजा उठाओ| समझ लीजिये की ये कारपेट हमारा है, तो हमारे लिए सरदर्द है की इसको इन्श्युअर कराओ, की क्या कराओ, दुनियाभरकी चीजे, पर आपका है तो हमारे लिए अच्छा है की हम इसका मजा उठाएँ| तो ममत्व छुट जाता है, आपको आश्चर्य होगा की रशियामें बिलकुल लोगोमें ममत्व नहीं| गवर्नमेंटने उनसे कहा की तुमलोग अपने अपने फ्लैट ले लो और उसको देखो, कहा भाई हमें नहीं चाहिये, हम कुछ ओन नहीं करना चाहते है, तुमही रखलो| ये एक कल्पना है की हम किसि चिजको ओन करते है, किस चीजको हम ओन करते है, सब तो यही छूटनेवाला है, पर ये सहजसे घटित हो जाता है|
प्रश्नकर्ता :- अच्छा, धन्यवाद्|
श्रीमाताजी :- सारी समस्या है, अब आपके अगर कोई गरीब लोग है, एक चीज और बताना चाहूँगी .......गरीब लोगोंके लिये| देखिए जैसा हमारा देश है शेतीप्रधान, जीसको कहते है ना खेतीहर लोग, अधिकतर खेती, खेती प्रधान देश| सहजयोग से क्या होता है, की जो खेतिकी जो पैदावर है, कभी कभी दस टाइम्स कभी कभी बीस टाइम्स बढ़ सकती है| एक एक सूर्यफूल इतना बड़ा बड़ा निकलता है इस चैतन्य लहरियोंसे, और बहोत कुछ हो सकता है| तो इसलिए जैसे जो सहजयोगी है वो रईस हो गये, क्योंकि उनके पास सबसे बढ़िया बिज है, उनके पास सबसे पहले पैदावार है, और ओर लोगोंसे वो बहोत बेहतर है| तो जो देश खेतिहरोंका है उनके लिये तो सहजयोग बहोत कमाल का है| दूध भी, अपने हिन्दुस्तानकी गाय जादा से जादा चार पांच सेर दूध देती है, वो करीबन बारा सेर दूध देती है, और हमलोगोंको हायब्रिड सीड नहीं लेना पड़ता, साधारण सीड कोही वाईब्रेट करके करनेसे सब काम हो जाता है| तो आपको किसीकी....कम्पनिकी गुलामी करनेकी जरुरत नहीं| इसप्रकार हमारे देश, खासकर हमारे देश का तो प्रोब्लम हल हो सकता है| अनेक चीजे है, सहजयोग में लोग समझते है की अपने देश में क्या क्या विशेष चीज है, क्या क्या हम बाहर भेज सकते है| इसकी एक सूक्ष्म दृष्टी आ जाती है, और इस तरहसे आप देखिये कीतने अपने देशसे लोग बाहर सामान भेज रहे है, क्या क्या कर रहे है, आप लोग भी इसपे खूप पनप जायेंगे, क्योकि एक सूक्ष्म दृष्टी आ जाती है| हर तरह से मनुष्य की जो व्यक्ति है वो समष्टि हो जानेकी वजहसे बहोत कुछ जो विशेष रूप से छिपे हुए गुण है वो सारे प्रकाशित होते है| बड़े बड़े म्युजिसियन्स सहजयोगमें है, बड़े बड़े आर्टिस्ट लोग सहजयोग में है, अपने कमांडर इन चीफ़ साहब भी सहजयोग में है, तो इसप्रकार मतलब ये चीज ऐसी है, इसको प्राप्त होते ही मनुष्य एक ....जिसको परमपद कहते है उस स्थितिमें जाता है| हमेशा हम कहते है ना परमपद दीजिये, ये परमपद है|
प्रश्नकर्ता :- धन्यवाद|
श्रीमाताजी :- ...............................और तो नहीं रहेगा कोई प्रश्न|